635  ये वही इंसान है बनाया था परमेश्वर ने जिसे

1

रौंदा है शैतान ने इंसान को, इंसान को।

नहीं है इंसान अब वो आदम और हव्वा,

हुआ करता था जो सृष्टि की शुरुआत में।

भरपूर है वो धारणा से, कल्पना से, ज्ञान आदि से,

हैं ख़िलाफ़ ये सारी बातें परमेश्वर के, और भरपूर दूषित स्वभाव से।

है मगर इंसान फिर भी वही परमेश्वर की नज़र में, बनाया था जिसे उसने।

है मगर इंसान फिर भी वही परमेश्वर की नज़र में, बनाया था जिसे उसने।


2

अब भी है इंसान पर शासन उसी का,

अब भी है अधीन इंसान परमेश्वर के आयोजन के।

अब भी रहता है इंसान उसी व्यवस्था में जो तय की है परमेश्वर ने।

परमेश्वर की नज़र में, इंसान को बस दूषित किया है शैतान ने, उस शैतान ने।

ढका है महज़ धूल-मिट्टी से वो, जकड़ा हुआ है भूख से, भूख से

है थोड़ा धीमा प्रतिक्रिया में, थोड़ा कमज़ोर याददाश्त में, है थोड़ा-सा बूढ़ा उम्र में।

हैं मगर उसके सारे क्रियाकलाप और सहज-ज्ञान, बिल्कुल पहले जैसे।

बचा लेगा इस इंसान को परमेश्वर। बचा लेगा इस इंसान को परमेश्वर।


3

जब ये इंसान पुकार सुनेगा, रचनाकार की पुकार सुनेगा,

उसकी वाणी सुनेगा, उठेगा और खड़ा होगा वाणी की दिशा ढूंढेगा और दौड़ेगा।

जब ये इंसान परमेश्वर का रूप देखेगा, तो अनदेखा कर देगा, छोड़ देगा सबकुछ,

ख़ुद को परमेश्वर को समर्पित कर देगा,

और परमेश्वर की ख़ातिर अपना जीवन भी त्याग देगा, त्याग देगा।


4

इंसान का दिल जब समझेगा, परमेश्वर के सच्चे वचनों को समझेगा,

तो वो नकार देगा, त्याग देगा शैतान

को और सृष्टिकर्ता के साथ आ खड़ा होगा।

जब वो धूल अपनी झाड़ लेगा, साफ कर लेगा,

और फिर से सृष्टिकर्ता से आपूर्ति, पोषण पाने लगेगा,

तो याददाश्त अपनी बहाल कर लेगा।

फिर वो हकीकत में, सचमुच सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व में लौट आएगा।

फिर वो हकीकत में, सचमुच सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व में लौट आएगा।


—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I से रूपांतरित

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