644  सृष्टिकर्त्ता की सच्ची भावनाएँ मानवता के लिये

निम्नलिखित वचन को योना की पुस्तक 4:10-11 में दर्ज किया गया है:

"तब यहोवा ने कहा, 'जिस रेंड़ के पेड़ के लिये

तू ने कुछ परिश्रम नहीं किया, न उसको बढ़ाया,

जो एक ही रात में हुआ, और एक ही रात में नष्‍ट भी हुआ;

उस पर तू ने तरस खाई है।

फिर यह बड़ा नगर नीनवे,

जिसमें एक लाख बीस हज़ार से अधिक मनुष्य हैं

जो अपने दाहिने बाएँ हाथों का भेद नहीं पहिचानते,

और बहुत से घरेलू पशु भी उसमें रहते हैं,

तो क्या मैं उस पर तरस न खाऊँ?'"

ये यहोवा परमेश्वर के वास्तविक वचन हैं,

उनके और योना के बीच का वार्तालाप।

यद्यपि यह संवाद एक संक्षिप्त वार्तालाप है,

यह मनुष्य के निमित्त सृष्टिकर्ता की चिंता

और उसे त्यागने की उनकी अनिच्छा से लबालब भरा हुआ है।

ये वचन उस सच्चे रवैये और एहसासों को प्रकट करते हैं

जिसे परमेश्वर ने अपनी सृष्टि के लिए

अपने हृदय के भीतर संजोकर रखा है,

और इन स्पष्ट वचनों से,

जिस प्रकार के वचन मनुष्य के द्वारा कभी कभार ही सुने जाते हैं,

परमेश्वर मानवता के लिए अपने सच्चे इरादों को बताता है।


1

सृष्टिकर्त्ता हर वक्त बीच है इंसान के।

वो हर वक्त बात करता है, इंसान और सृष्टि से।

हर रोज़ नया काम कर रहा है वो।

उसका स्वभाव और सार व्यक्त होते हैं,

व्यक्त होते हैं इंसान के साथ उसके संवाद में।

उसके विचार और ख़्याल प्रकट होते हैं पूरी तरह से।

हाँ, दिखाई देते हैं, वो उसके काम में पूरी तरह से।

नज़र रखता है, साथ रहता है वो हर पल इंसान के,

अपने ख़ामोश वचनों से वो बात करता है इंसान से और पूरी सृष्टि से।

स्वर्ग में है परमेश्वर अपनी सृष्टि के बीच।

इंतज़ार करता और नज़र रखता है वो। साथ तुम्हारे है वो।

हाथ स्नेही हैं उसके और सशक्त हैं। हल्के हैं उसके कदम।

मनोहारी और कोमल है उसकी आवाज़,

उसका रूप पास से गुज़रता है और मुड़ता है,

आगोश में लेता है पूरी इंसानियत को।

सुंदर और सौम्य है उसका चेहरा।

उसने न कभी छोड़ा है, ओझल कभी न हुआ है।

दिन-रात साथ है इंसान के वो। सतत साथी है इंसान का वो।


2

समर्पित परवाह, विशेष अनुराग अपना

जो प्रदर्शित करता है वो इंसान के लिये,

अपनी सच्ची चिंता और प्यार इंसान के लिये,

वो सब रोशनी में आए धीरे-धीरे नीनवे शहर को जब बचाया उसने।

ख़ासकर, यहोवा और योना के संवाद ने,

ज़ाहिर कर दी करुणा की सीमा सृष्टिकर्ता की,

जो वो महसूस करता है अपने रचे इंसान के लिये।

उनके संवाद से जानोगे तुम सच्ची भावनाएँ परमेश्वर की इंसान के लिये।

स्वर्ग में है परमेश्वर अपनी सृष्टि के बीच।

इंतज़ार करता और नज़र रखता है वो। साथ तुम्हारे है वो।

हाथ स्नेही हैं उसके और सशक्त हैं। हल्के हैं उसके कदम।

मनोहारी और कोमल है उसकी आवाज़,

उसका रूप पास से गुज़रता है और मुड़ता है,

आगोश में लेता है पूरी इंसानियत को।

सुंदर और सौम्य है उसका चेहरा।

उसने न कभी छोड़ा है, ओझल कभी न हुआ है।

दिन-रात साथ है इंसान के वो। सतत साथी है इंसान का वो।


—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II से रूपांतरित

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