648  परमेश्वर का स्वभाव दयालु, प्रेमपूर्ण, धार्मिक और प्रतापी है

ईश्वर ने आग से सदोम शहर का नाश किया,

ये चीज़ों को मिटाने का उसका सबसे तेज़ तरीका है।


1

जलाकर सदोम के लोगों को

नष्ट कर दिये उनके शरीर, प्राण और आत्मा,

ताकि इंसानी संसार से और अदृश्य संसार से भी

उनका अस्तित्व ही मिट जाए।


कोप दिखाने का ये एक तरीका है ईश्वर का।

ऐसी अभिव्यक्ति और प्रकटन

ईश्वर के कोप के सार का एक हिस्सा है।

ईश्वर के धार्मिक स्वभाव के सार का प्रकटन है।


जब ईश्वर अपना कोप बरसाए,

वो कृपा और दया दिखाना बंद करे।

वो सहनशीलता और धैर्य अब न दिखाए।

कुछ भी उसे धैर्य बनाए रखने को,

कृपा या सहनशीलता दिखाने को मना न सके।


2

इन चीज़ों की जगह ईश्वर बेहिचक

अपना कोप बरसाए, अपना प्रताप दिखाए,

अपनी इच्छानुसार काम करे।

वो ये चीज़ें तेज़ी और सफाई से करे

अपनी इच्छानुसार करे।


ईश्वर अपना कोप और प्रताप ऐसे ही दिखाए,

इंसान को इसका अपमान नहीं करना चाहिए।

ये उसके धार्मिक स्वभाव के

एक हिस्से को व्यक्त करे।


जब लोग देखें ईश्वर का प्रेम और परवाह,

वे उसका कोप और प्रताप न देख सकें,

न देख पाएँ कि वो अपमान सहन न करे।

लोग सोचते ईश्वर का धार्मिक स्वभाव है

बस दया, प्रेम और सहनशीलता।


पर जब ईश्वर करे किसी शहर का विनाश,

जब करे वो लोगों से घृणा,

तो लोग देख सकें उसके क्रोध और प्रताप में

उसकी धार्मिकता का दूसरा पहलू।

ये है अपमान के प्रति ईश्वर की असहिष्णुता।


—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II से रूपांतरित

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