सत्य का अनुसरण कैसे करें (10)
हाल ही में हमने जन्मजात स्थितियों, मानवता और भ्रष्ट स्वभावों के मुद्दों पर कई संगतियाँ कीं; मुख्य रूप से हमने इन तीन पहलुओं की कुछ अभिव्यक्तियों के बारे में विस्तार से और विशिष्ट रूप से संगति की। ऐसी विस्तृत संगति के जरिये क्या तुम लोगों ने इन अभिव्यक्तियों के विशिष्ट वर्गीकरण की कुछ समझ प्राप्त की है? (हाँ।) इन तीनों पहलुओं में विशिष्ट अभिव्यक्तियों की समझ प्राप्त करने के बाद क्या अब तुम्हारे लिए यह और स्पष्ट है कि लोगों को अपने भ्रष्ट स्वभाव क्यों छोड़ देने चाहिए या लोगों में किन चीजों को बदलने और छोड़ देने की जरूरत है? किन पहलुओं को बदलने की जरूरत है, किन्हें बदलने की जरूरत नहीं है, किन पहलुओं का अभ्यास सत्य सिद्धांतों के अनुसार किया जाना चाहिए और कौन-से पहलू वे जन्मजात स्थितियाँ हैं जिन्हें परमेश्वर द्वारा पूर्व-नियत और व्यवस्थित किया गया है, जो भ्रष्ट स्वभावों से असंबंधित हैं और जिनके लिए लोगों को प्रयास करने या कोई बदलाव करने की आवश्यकता नहीं है—क्या अब ये मामले स्पष्ट हैं? (हम इनके बारे में पहले से कुछ हद तक ज्यादा स्पष्ट महसूस करते हैं।) स्पष्टता प्राप्त करने के बाद क्या तुम लोगों को शुद्ध करने, उनके स्वभावों को रूपांतरित करने और उन्हें शैतान के प्रभाव से बचाने के परमेश्वर के कार्य का महत्व समझते हो? क्या अब यह स्पष्ट है कि सत्य प्रदान करने और लोगों में विभिन्न समस्याओं को उजागर करने के लिए परमेश्वर का कार्य करना और बोलना किस तरफ निर्देशित है? क्या परमेश्वर द्वारा लोगों में सभी समस्याओं का प्रकाशन उनकी जन्मजात स्थितियों की तरफ निर्देशित है? (नहीं।) क्या यह मानवता में लोगों की प्राकृतिक कमियों की तरफ निर्देशित है? (नहीं।) तो फिर यह किस तरफ निर्देशित है? (मुख्य रूप से लोगों के भ्रष्ट स्वभावों की तरफ निर्देशित है।) यह मुख्य रूप से उन सिद्धांतों की तरफ निर्देशित है जिनके द्वारा लोग आचरण और कार्य करते हैं और परमेश्वर, सत्य, सकारात्मक चीजों और ऐसे दूसरे मुद्दों के प्रति उनके दृष्टिकोणों और रवैयों की तरफ निर्देशित है। भ्रष्ट स्वभाव क्या होते हैं? भ्रष्ट स्वभाव शैतान की प्रकृति से उत्पन्न होते हैं और शैतान की प्रकृति से ही प्रकट किए जाते हैं। ये सभी चीजें सत्य सिद्धांतों के खिलाफ जाती हैं, भ्रामक होती हैं और परमेश्वर का प्रतिरोध करने के क्रियाकलाप और अभिव्यक्तियाँ हैं। यही चीजें वे प्राथमिक चीजें हैं जो परमेश्वर का प्रतिरोध करती हैं और लोगों द्वारा सत्य के खिलाफ जाने, सत्य से विश्वासघात करने, परमेश्वर के इरादों के खिलाफ जाने और परमेश्वर की अपेक्षाओं के खिलाफ जाने में समर्थ होने के मूल कारण हैं। दूसरी तरफ, जन्मजात स्थितियाँ सिर्फ कुछ मूलभूत, सहज चीजें होती हैं जो जन्मजात होती हैं; लेकिन फिलहाल मानवजाति जीवित रहने के लिए जिस जीवन पर भरोसा करती है, वह भ्रष्ट स्वभाव हैं। इसलिए, परमेश्वर का कार्य लोगों के भ्रष्ट स्वभावों को बदलने का लक्ष्य रखता है। ठीक इसलिए क्योंकि भ्रष्ट स्वभाव परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं और वे शैतान के हैं और यह कहा जा सकता है कि वे सभी नकारात्मक चीजों की समग्र अभिव्यक्तियाँ हैं—लोगों में प्रकट होने वाले विभिन्न भ्रष्ट स्वभाव या भ्रष्ट स्वभावों से जुड़ी विभिन्न अवस्थाएँ, विस्तृत प्रकाशन और अभिव्यक्तियाँ, ये सभी नकारात्मक चीजों से संबंधित हैं—इसलिए लोगों द्वारा परमेश्वर का प्रतिरोध करने का मूल कारण उनकी जन्मजात स्थितियाँ या उनकी मानवता में कुछ कमियाँ नहीं है, बल्कि वह जीवन है जो जीवित रहने के लिए भ्रष्ट स्वभावों को अपना आधार बनाता है। यह जीवन निश्चित रूप से शैतान से उत्पन्न होता है। इस प्रकार अंत में जिस चीज को रूपांतरित करने की जरूरत है वह लोगों के भ्रष्ट स्वभाव हैं और जिस चीज को छोड़ देने की जरूरत है वह भी लोगों के भ्रष्ट स्वभाव ही हैं। यकीनन यह भी कहा जा सकता है कि जब लोगों के भ्रष्ट स्वभाव बदल जाते हैं सिर्फ तभी वे परमेश्वर का प्रतिरोध करना बंद कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में, जब लोग अपने भ्रष्ट स्वभाव छोड़ देते हैं सिर्फ तभी इसका मतलब होता है कि उन्हें बचा लिया गया है, और जब लोगों को बचा लिए जाता है सिर्फ तभी वे परमेश्वर का प्रतिरोध करना बंद कर सकते हैं और पूरी तरह से परमेश्वर के प्रति समर्पण कर सकते हैं। इसलिए, लोगों को बचाने के परमेश्वर के कार्य का सच्चा अर्थ उन्हें अपने भ्रष्ट स्वभाव छोड़ देने में समर्थ बनाना है। परमेश्वर द्वारा लोगों को यह बताने कि सत्य का अनुसरण करने का मतलब है परमेश्वर के वचनों के अनुसार कार्य करना और सत्य को अपनी कसौटी मानकर लोगों और चीजों को देखना और आचरण और कार्य करना, का सच्चा अर्थ और अभिप्रेत नतीजा लोगों को अपने भ्रष्ट स्वभाव छोड़ देने और परमेश्वर के वचनों को अपना जीवन मानकर लोगों और वस्तुओं को देखने और आचरण और कार्य करने में समर्थ बनाना है। तुम समझ रहे हो? (हाँ।)
इससे पहले हमने जन्मजात स्थितियों, मानवता और भ्रष्ट स्वभावों से जुड़े कुछ विशिष्ट प्रकाशनों और अभिव्यक्तियों पर संगति की थी। कुछ अभिव्यक्तियाँ जन्मजात स्थितियों से, तो कुछ मानवता में कमियों से संबंधित होती हैं, कुछ नीच चरित्र की अभिव्यक्तियाँ होती हैं और कुछ भ्रष्ट स्वभावों की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ होती हैं। व्यक्ति की मानवता में कमियाँ और उसकी मानवता का नीच सार ही वे चीजें हैं जिन्हें लेकर लोग अक्सर भ्रमित हो जाते हैं। मानवता में कमियाँ ज्यादातर जन्मजात स्थितियों के तहत आती हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग बोलते समय हकलाते हैं और कुछ लोगों का स्वभाव चिड़चिड़ा या शांत होता है। जब तक मानवता में ये कमियाँ नीच चरित्र की श्रेणी में नहीं आती हैं तब तक ये मूल रूप से जन्मजात स्थितियों के दायरे में आती हैं। हालाँकि, नीच चरित्र जन्मजात स्थितियों से संबंधित नहीं है; यह भ्रष्ट स्वभाव की अभिव्यक्ति है और इसे जन्मजात स्थितियों के तहत नहीं बल्कि भ्रष्ट स्वभाव के तहत आना चाहिए। वह इसलिए क्योंकि परमेश्वर ने व्यक्ति के चरित्र में दो मूलभूत चीजें दी हैं : जमीर और विवेक। अगर किसी का चरित्र नीच है तो उसमें उसके जमीर और विवेक की समस्याएँ शामिल हैं। यह निश्चित रूप से उसकी जन्मजात स्थितियों से संबंधित नहीं है। यह निश्चित रूप से भ्रष्ट स्वभावों के तहत आता है; यह किसी भ्रष्ट स्वभाव की अभिव्यक्ति है। यह दिखाने के लिए तथ्य काफी हैं कि शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जाने के बाद व्यक्ति अपने जमीर और विवेक खो देता है। शैतान उसका दिल पूरी तरह से गुमराह कर देता है और वह शैतान से आने वाले ऐसे बहुत-से विचारों और दृष्टिकोणों को और साथ ही बुरी प्रवृत्तियों से आने वाली कुछ कहावतों और मतों को भी स्वीकार लेता है। जब चीजें इस हद तक पहुँच जाती हैं तब उसके जमीर और विवेक पूरी तरह से भ्रष्ट हो जाते हैं और बिगड़ जाते हैं—यह कहा जा सकता है कि इस समय उसके जमीर और विवेक पूरी तरह से खो गए हैं। प्रदर्शित यह होता है कि उसका चरित्र बहुत ही खराब और बुरा है। यानी उसने सकारात्मक चीजें स्वीकारने से पहले ही अपने दिल में शैतान से प्राप्त कई भ्रामक बातें स्वीकार ली हैं। इन चीजों ने उसकी मानवता को बुरी तरह से भ्रष्ट कर दिया है जिसके नतीजतन उसकी मानवता बहुत ही खराब हो चुकी है। उदाहरण के लिए, जब वह दुनिया से “हर व्यक्ति अपनी सोचे और बाकियों को शैतान ले जाए” वाला शैतानी विचार और दृष्टिकोण स्वीकार लेता है तब क्या उसका जमीर सुधरेगा, जस का तस रहेगा या बिगड़ जाएगा? (वह बिगड़ जाएगा।) और इस बिगड़ने की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? (वह जो भी करता है उसमें सिर्फ अपने ही स्वार्थों का ध्यान रखता है।) वह अपने खुद के मकसद और स्वार्थों के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। वह दूसरों को धोखा दे सकता है, उन्हें नुकसान पहुँचा सकता है और ऐसा कुछ भी कर सकता है जो नैतिकता और जमीर के खिलाफ जाता हो। वह ऐसा जितना ज्यादा करता है, उसके क्रियाकलाप उतने ही बेदर्द होते जाते हैं, उसके दिल का अँधेरा उतना ही गहराता जाता है, उसमें जमीर की भावना उतनी ही कम होती जाती है और उसमें मानवता उतनी ही कम बाकी रह जाती है। अपने खुद के स्वार्थों के लिए वे किसी को भी ठगेंगे और धोखा देंगे, अपने परिचितों और अनजान लोगों दोनों को समान रूप से धोखा देंगे—वे सहकर्मियों, परिजनों और यहाँ तक कि अपने आस-पास के सबसे करीबी लोगों को भी धोखा देंगे और उन लोगों को नुकसान पहुँचाएँगे जो उन पर सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं। शुरू-शुरू में जब वे ऐसी चीजें करते हैं तब वे कुछ अंदरूनी संघर्ष और अपने जमीर में एक हल्के-से एहसास का अनुभव करते हैं। बाद में वे सोचने लगते हैं कि कैसे कार्रवाई करनी है और सबसे पहले अपरिचित अजनबियों से शुरू करते हैं और आखिरकार अपने रिश्तेदारों पर भी कोई दया नहीं दिखाते हैं। देखो, उनकी मानवता धीरे-धीरे भ्रष्ट होती जा रही है, यह शैतान के विचारों और दृष्टिकोणों, जैसे कि “स्वार्थ सर्वोपरि होते हैं” और “हर आदमी अपने लिए सोचे और बाकियों को शैतान ले जाए,” से धीरे-धीरे नष्ट होती जा रही है। धीरे-धीरे नष्ट होने की यह प्रक्रिया ही वह प्रक्रिया है जिसमें उनका जमीर तब तक धीरे-धीरे जागरूकता खोता रहता है और काम करना बंद कर देता है जब तक कि अंत में वह पूरी तरह से खो जाने की हद तक नहीं पहुँच जाता। अंत में उनके क्रियाकलापों में कोई नैतिक सीमा या जमीर की भावना नहीं रहती है और वे किसी को भी धोखा दे सकते हैं। क्या कारण है कि वे किसी को भी धोखा दे सकते हैं? इसका मूल कारण क्या है? इसका कारण यह है कि उन्होंने शैतान के विचारों और दृष्टिकोणों को स्वीकार लिया है और वे शैतान के विचारों और दृष्टिकोणों के वर्चस्व के तहत कार्य करते हैं। आखिरकार उनकी मानवता के जमीर और विवेक अब और काम नहीं करते हैं; यानी मानवता में जो मूलभूत चीजें होनी चाहिए वे पूरी तरह से काम करना बंद कर देती हैं, वे शैतान के बुरे विचारों द्वारा पूरी तरह से नष्ट और नियंत्रित हो जाते हैं। नष्ट होने और नियंत्रण की प्रक्रिया उनके द्वारा इन विचारों और दृष्टिकोणों को स्वीकारने की प्रक्रिया है और यकीनन यह उनके भ्रष्ट होने की भी प्रक्रिया है। जैसे-जैसे उनकी मानवता के जमीर और विवेक भ्रष्ट होते जाते हैं, वैसे-वैसे अंत में उनमें यह प्रदर्शित होता है कि उनकी मानवता बहुत ही खराब हो गई है और ज्यादा गंभीर मामलों में वे अपनी मानवता खो बैठते हैं। ये सामान्य भ्रष्ट मनुष्यों की मानवता की कुछ अभिव्यक्तियाँ हैं।
कुछ विशेष मामले भी होते हैं जिनमें कुछ लोग यहाँ तक कि मनुष्य के रूप में भी जन्म नहीं लेते हैं, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि उनमें जमीर और विवेक हैं। इसे अमूर्त रूप से कहा जाए तो वे मनुष्यों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग नहीं होते हैं। वैसे तो नया जन्म, पुनर्जन्म और देहांतरण का विषय लोगों के लिए अमूर्त और अदृश्य है, फिर भी लोगों को इसे आसानी से समझने में समर्थ होना चाहिए; यह एक ऐसी चीज है जिसे लोग समझ और बूझ सकते हैं। ऐसे लोग मनुष्यों से पुनर्जन्म लिए हुए नहीं होते हैं, तो वे किससे पुनर्जन्म लिए होते हैं? कुछ लोगों का नया जन्म होता है और वे पशुओं से देहांतरित होते हैं और कुछ दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए होते हैं; वे बिना मानवता के पैदा होते हैं। मानवता रहित लोग जमीर या विवेक के बिना पैदा होते हैं; यह पूरी तरह से भ्रष्टता के कारण नहीं होता है। वे जन्मजात जीते-जागते शैतान और जीते-जागते दानव होते हैं। वे दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए होते हैं। उदाहरण के लिए, मसीह-विरोधी कुकर्मी होते हैं; वे कुकर्मियों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग होते हैं। जीवन में आगे चलकर वे शैतान के और भी विचारों और दृष्टिकोणों को स्वीकारते हैं। उनके पास मूल रूप से जो है और वे बाद में जो हासिल करते हैं दोनों का संयोजन उन्हें उत्तरोत्तर बुरा बनाता चला जाता है। ऐसे लोग जन्म से ही सकारात्मक चीजों से प्रेम नहीं करने वाले होते हैं; वे जन्मजात सकारात्मक चीजों से विमुख होते हैं और सकारात्मक चीजों का घोर प्रतिरोध करते हैं और उनसे नफरत करते हैं। इसलिए, ऐसे लोगों में मानवता की यह अभिव्यक्ति होती है कि उनमें रत्ती भर भी जमीर या विवेक नहीं होता है। उनमें मानवता का कोई भी गुण या मजबूत पक्ष देखना पूरी तरह से असंभव है। यकीनन इस गुण का मतलब गायन में माहिर होना, अपने दृष्टिकोणों को व्यक्त करने में माहिर होना या किसी विशेष तकनीकी कौशल या पेशे में माहिर होना नहीं है। ये वे गुण नहीं हैं जिनका जिक्र किया गया है। बल्कि इसका मतलब मानवता के गुण हैं, जैसे कि दयालु और अच्छे स्वभाव वाला होना, दूसरों को समझना या सहानुभूति रखना। मानवता के जमीर और विवेक के दायरे में ये विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ उनमें पूरी तरह से गैर मौजूद होती हैं। तो ऐसे लोगों की मानवता के मुख्य लक्षण क्या हैं? विचलन और बुराई। ये दो मुख्य लक्षण हैं। वे सकारात्मक चीजों से प्रेम नहीं करते हैं; जब वे सकारात्मक चीजों के बारे में सुनते हैं तब वे यह तो मान सकते हैं कि वे सही हैं, लेकिन उन्हें कभी स्वीकार नहीं करते हैं। उनके दिलों में हर चीज और हर वह चीज जो वे प्रकट करते हैं, विचलन और बुराई से संबंधित होती है। यह उन लोगों के मुख्य लक्षणों में से एक है जिनका अंतर्निहित मानवता सार बुराई है। ऐसे लोग दानवों और शैतानों से पुनर्जन्म लिए हुए और उनसे देहांतरित होते हैं। यहाँ तक कि जीवन में आगे चलकर कृत्रिम प्रेरणा, शिक्षा, प्रभाव या अनुकूलन के बिना भी वे पहले से ही बहुत बुरे होते हैं। वे अंतर्निहित रूप से इस किस्म के प्राणी होते हैं। उनके विचारों और दृष्टिकोणों में अंतर्निहित रूप से ऐसी बहुत-सी मूलभूत चीजें होती हैं जो शैतान की हैं। उस पर वे जन्म के बाद शैतान की बुरी प्रवृत्तियों से और भी ज्यादा भ्रामक विचारों और दृष्टिकोणों को स्वीकारते हैं। इसलिए, यह कहा जा सकता है कि ऐसे लोगों के प्रकृति सार की आग में घी डाला जाता है, यह और भी ज्यादा बुरा और बदतर हो जाता है, यानी इसमें हर वह जहरीला गुण होता है जिसकी कल्पना की जा सकती है और यह और भी ज्यादा गंभीर हो जाता है। ये जानवरों से पुनर्जन्म लिए हुए और दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों के दो विशेष मामले हैं। सामान्य स्थिति यह है कि चाहे कोई व्यक्ति मानवता में किसी भी कमी के साथ पैदा हुआ हो, जब तक वह नीच चरित्र की कुछ अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करता है तब तक यह भ्रष्ट स्वभावों के दायरे में आता है। अगर वह सत्य स्वीकार सकता है, सत्य का अभ्यास कर सकता है और सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चल सकता है तो आखिरकार वह अपने सभी भ्रष्ट स्वभावों को छोड़ सकता है। जब वह अपने भ्रष्ट स्वभावों को छोड़ देता है तब उसके चरित्र के नीच पहलू भी तदनुसार बदल जाते हैं। ऐसे लोगों को ही बचाया जा सकता है; वे सामान्य भ्रष्ट मनुष्य हैं। भले ही तुम बुरे चरित्र की कुछ अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करो या तुममें सत्यनिष्ठा की कमी हो या तुम्हारी मानवता की कुछ अभिव्यक्तियाँ सत्य के अनुरूप न हों और वे दूसरों के लिए घिनौनी हों, तो भी जब तक तुम्हारे जमीर और विवेक मौजूद हैं और वे लोगों और चीजों को देखने, आचरण करने और कार्य करने के तुम्हारे तरीके के लिए मूलभूत स्थितियाँ बन सकते हैं—यानी तुम्हारे जमीर और विवेक लोगों और चीजों को देखने, आचरण और कार्य करने के तुम्हारे तरीके को प्रभावित करते हैं और तुम्हारे जमीर और विवेक अब भी तुममें कार्य कर सकते हैं—तब तक अंततः तुम्हारे भ्रष्ट स्वभावों को बदला जा सकता है। अगर किसी व्यक्ति के जमीर और विवेक उसके किसी भी कार्य को नियंत्रित या मार्गदर्शित नहीं कर सकते हैं तो फिर यह कहा जा सकता है कि ऐसा व्यक्ति सत्य स्वीकारने में असमर्थ है और उसका अभ्यास करने में तो वह और भी ज्यादा असमर्थ है। इसलिए ऐसे लोग अपने भ्रष्ट स्वभाव आसानी से नहीं छोड़ेंगे। ऐसा क्यों है? क्योंकि ऐसे लोगों के जमीर और विवेक किसी भी प्रकार से काम नहीं करते हैं। उनके पास सत्य स्वीकारने का अवसर अब और नहीं है और उनमें सत्य स्वीकारने की मूलभूत स्थितियाँ अब और नहीं हैं। इन लोगों के लिए अपने भ्रष्ट स्वभावों को छोड़ देना बहुत मुश्किल होता है। इसलिए, चाहे तुम्हारी मानवता में कोई भी समस्या हो, यह देखने के लिए खुद को जाँचो कि जब तुम किसी ऐसे तरीके से कार्य करने वाले हो जो मानवता या सत्य के खिलाफ जाता है तब क्या तुम अपने जमीर में कुछ महसूस करते हो या तुम्हारे दिल में कोई दर्द या तिरस्कार महसूस होता है और क्या तुम्हारे दिल में यह मापने की कोई सीमा या मानक है कि यह कार्य करना चाहिए या नहीं, क्या इस मामले को करना नैतिकता या जमीर के खिलाफ जाता है और उससे भी ज्यादा गहराई से, क्या यह सत्य सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। अगर तुममें जमीर की भावना है, तुम यह माप सकते हो कि यह मामला मानवता और सत्य के खिलाफ जाता है और तुम अपने जमीर और विवेक के प्रकार्य तहत खुद को संयमित कर सकते हो और अपने क्रियाकलापों पर नियंत्रण रख सकते हो तो फिर तुम्हारे पास सत्य स्वीकारने और सत्य सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास करने का अवसर या संभावना है। लेकिन अगर कुछ भी करते समय तुम अपने जमीर में कुछ भी महसूस नहीं करते हो, तुम यह माप नहीं सकते हो कि इस मामले का मानक क्या है या तुम्हें यह करना चाहिए या नहीं और तुम यह नहीं जानते कि इस चीज को करना मानवता, नैतिक न्याय या सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है या नहीं—और इसके अलावा, इस चीज को करते समय यह जमीर, मानवता या सत्य सिद्धांतों के खिलाफ जाता है, लेकिन तुम्हारा जमीर तुम्हें इस गलत और नकारात्मक चीज को करने से रोकने के लिए काम नहीं कर पाता है—तो मूल रूप से तुम जैसे लोगों के पास सत्य स्वीकारने का कोई अवसर नहीं है। इसके बाद होता यह है कि तुम्हारे पास अपने भ्रष्ट स्वभावों को छोड़ देने का कोई अवसर नहीं होता है।
लोग भ्रष्ट स्वभावों को छोड़ सकते हैं या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे सत्य स्वीकार सकते हैं या नहीं—यह बिल्कुल स्पष्ट है। और लोग सत्य स्वीकार सकते हैं या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उनमें जमीर की भावना है या नहीं। तो इसका भेद कैसे पहचाना जा सकता है कि किसी व्यक्ति में जमीर की भावना है या नहीं? इसके लिए यह देखना जरूरी है कि क्या कार्य करते समय उसमें वह सबसे मूलभूत जमीर है जो मानवता में होना चाहिए और क्या जब वह कुछ करता या कहता है, तब उसका जमीर काम करता है। उदाहरण के लिए, जब तुम किसी को बदनाम करने के लिए कुछ ऐसा कहना चाहते हो जो तुम्हारे जमीर और तथ्यों के खिलाफ जाता है या जब तुम झूठ बोलना चाहते हो, तब तुम्हारा जमीर तुम्हें फटकारता है : “मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए। ऐसा कहना झूठ बोलना और धोखा देना है जिसका मतलब है कि मैं ईमानदार व्यक्ति नहीं हूँ। परमेश्वर पड़ताल कर रहा है और मेरा अपना जमीर मुझे ऐसा नहीं करने देगा। ऐसा कहना उचित नहीं है।” ऐसे विचार आने का मतलब है कि तुम्हारा जमीर काम कर रहा है। जब तुम्हारा जमीर काम कर रहा होता है तब यह हो सकता है कि तुम जो शब्द कहते हो उनमें अब भी कुछ मिलावट हो या मान वीय इरादे के तत्व हों और वे 100 फीसदी सटीक न हों। हालाँकि, तुम्हारे जमीर के प्रभाव के तहत तुम जो शब्द बोलते हो वे पहले से ही अपेक्षाकृत उचित होते हैं। अगर तुम सत्य का और अभ्यास कर सकते हो और सिद्धांतों के आधार पर बोल सकते हो तो तुम जो शब्द कहोगे वे पूरी तरह से उचित होंगे और तुम ईमानदार व्यक्ति बन जाओगे। लेकिन अगर कोई व्यक्ति जमीर के प्रकार्य के अधीन नहीं है तो जरूरी नहीं कि वह ईमानदार व्यक्ति बनने या ईमानदार शब्द बोलने में समर्थ हो। उदाहरण के लिए, जब ऊपरवाला उससे किसी के बारे में पूछता है तब हो सकता है कि वह सोचे, “वह व्यक्ति सचमुच बुरा नहीं है। उसकी काबिलियत अच्छी है और उसकी मानवता भी काफी अच्छी है। क्या ऊपरवाला उसे पदोन्नत करने के लिए उसके बारे में पूछ रहा है? अगर उसे पदोन्नत किया जाता है तो इसका मतलब है कि मुझे पदोन्नत नहीं किया जाएगा। मैं सच नहीं बता सकता; मैं बस यही कहूँगा कि वह औसत है”—वह इस बारे में सोचने लगता है कि किस तरीके से बात की जाए कि उसे फायदा हो। जब वह इस तरीके से सोचता है तब क्या उसका जमीर काम कर रहा होता है? उसमें जमीर है ही नहीं और वह जमीर के प्रकार्य के अधीन नहीं है। जमीर रहित लोगों में मानवता नहीं होती है। वे जो भी कहना चाहते हैं, कह देते हैं और वे जब भी झूठ बोलना चाहते हैं, बोल देते हैं। झूठ बोलने से उन्हें बुरा क्यों नहीं लगता है? क्योंकि वे जमीर के प्रकार्य के अधीन नहीं होते हैं। इस प्रकार उनके दिल में जमीर और विवेक द्वारा कोई संयम नहीं होता है और न ही संयमित करने की कोई शक्ति होती है। आखिरकार वे अपनी इच्छानुसार झूठ बोल सकते हैं और झूठ बोलने की अपनी व्यक्तिगत इच्छा पूरी कर सकते हैं। अंत में ऐसे लोगों द्वारा अभिव्यक्त सार क्या होता है? यह जमीर की संयमित करने की शक्ति के बिना चीजें करना है जिसका मतलब है कि वे जमीर के प्रकार्य के अधीन नहीं होते हैं। जो लोग जमीर के प्रकार्य के अधीन नहीं होते हैं, वे अपने दिलों में दोषी या असहज महसूस किए बिना गलतियाँ और बुरे कर्म करते हैं। इसलिए, वे अपने स्वार्थ का उपयोग कसौटी के रूप में करके सभी चीजें करते हैं। ऐसे लोगों में संयमित करने की कोई शक्ति नहीं होती है और वे जमीर के प्रकार्य के अधीन नहीं होते हैं, तो क्या वे सत्य का अभ्यास कर सकते हैं? (नहीं।) वे सत्य का अभ्यास नहीं कर सकते हैं। तुममें किस तरह की मानवता है, यह मापने के लिए तुम्हें मुख्य रूप से यह देखना होगा कि क्या तुम्हारे शब्द और क्रियाकलाप जमीर और विवेक से शासित होते हैं और क्या तुम सत्य का अभ्यास कर सकते हो, भ्रष्ट स्वभावों को छोड़ सकते हो और उद्धार प्राप्त कर सकते हो। अगर तुम्हारे जमीर और विवेक अभी भी सामान्य रूप से कार्य कर सकते हैं तो फिर तुम जमीर और विवेक वाले व्यक्ति हो। अगर तुम्हारे शब्द और क्रियाकलाप जमीर और विवेक द्वारा संयमित नहीं हैं और यहाँ तक कि तुम बिना किसी संयम के पूरी तरह से जान-बूझकर और निर्ल्लजता से कार्य भी कर सकते हो तो तुम न सिर्फ जमीर और विवेक रहित हो, बल्कि तुममें मानवता की भी कमी है। अगर किसी व्यक्ति की मानवता में प्रदर्शित हर चीज मूल रूप से नीच चरित्र के दायरे में आती है तो फिर उस व्यक्ति में मूल रूप से कोई मानवता है ही नहीं। मानवता नहीं होने की कसौटी जमीर और विवेक की गैर-मौजूदगी और जमीर के प्रकार्य के बिना चीजें करना है। उदाहरण के लिए, अगर तुम किसी व्यक्ति को बताते हो कि उसे जमीर और मानवता से आचरण करना चाहिए तो वह सोचता है : “जमीर का क्या महत्व है? क्या जमीर होने से पैसा मिल सकता है? क्या जमीर होने से मेरा पेट भर सकता है?” लेकिन जमीर वाले लोगों के लिए यह बात भिन्न है। अगर वे कभी-कभार लालच में आकर ऐसा कुछ बुरा कर बैठते हैं जिससे दूसरों को नुकसान पहुँचता है तो बाद में वे आत्म-निंदा और पछतावा महसूस करेंगे, वे सोचेंगे, “मैंने लोगों के साथ ऐसा करके वाकई उनके साथ अन्याय किया है। क्या यह बुराई करना नहीं है? मैं उस समय इतना भ्रमित कैसे हो सका? मैं खुद पर संयम क्यों नहीं रख सका? मुझे अपनी गलती सुधारने का कोई तरीका ढूँढ़ने की जरूरत है।” देखो, उन्होंने उस समय किसी को धोखा दिया था और भले ही उन्हें कुछ फायदा हुआ हो, लेकिन जब वे इस फायदे के बारे में सोचते हैं तब वे अपने दिल में असहज महसूस करते हैं और खुद से नफरत करते हैं, वे सोचते हैं, “मैं ऐसा कैसे कर सका? मैं भविष्य में दोबारा ऐसा बिल्कुल नहीं कर सकता। मैं ऐसा दोबारा करने के बजाय गरीबी में जीना या भूखा रहना पसंद करूँगा। व्यक्ति को ऐसा नहीं करना चाहिए—ऐसा करने से उसे जीवन भर पछताना पड़ेगा!” ऐसी कोई चीज एक बार करना भी उन्हें मरी हुई मक्खी निगलने जितना घिनौना लगता है। इसलिए वे दोबारा कभी ऐसा नहीं करते हैं। वे अपने दिलों में पछतावा और परेशान महसूस करते हैं। दूसरी तरफ, मानवता रहित लोग अपना दिमाग खपाते हैं और अपना पूरा ध्यान दूसरों को धोखा देने पर केंद्रित करते हैं, बिल्कुल भी पीछे हटे बिना उन्हें पूरी तरह से धोखा देते हैं; उनका जमीर उन्हें दोष नहीं देता है और वे कोई दया नहीं दिखाते हैं। वे दूसरों को बहुत नुकसान पहुँचाते हैं और यह सोचकर खुश भी होते हैं, “वे इसी लायक हैं! किसने कहा था उन्हें मेरे हत्थे चढ़ने के लिए? अगर मैं उन्हें धोखा नहीं दूँगा तो और किसे धोखा दूँगा? यह बस उनकी बदकिस्मती थी कि वे मुझसे टकरा गए!” क्या ऐसे लोगों में जमीर की कोई भावना होती है? (नहीं।) चाहे वे दूसरों को कितना भी धोखा दें या उन्हें किसी भी हद तक नुकसान पहुँचाएँ, वे कभी माफी का एक शब्द नहीं बोलते हैं और उन्हें किसी भी तरह का कोई अपराधबोध या पछतावा नहीं होता है। इसके बजाय वे अपने दिलों में गर्वित और भाग्यशाली महसूस करते हैं। हर बार जब वे धोखे से मिली चीजों का आनंद लेते हैं तब वे परेशान नहीं होते हैं, बल्कि मानते हैं कि यह पूरी तरह से जायज है। वे सोचते हैं कि वे सक्षम, कुशल और चतुर हैं, कि उन्होंने उस समय जो सोचा और किया वह सही था और उन्हें अपनी धोखाधड़ी से और भी ज्यादा मिलना चाहिए था। मुझे बताओ, क्या ऐसे लोगों में मानवता होती है? (नहीं।) बुरा कर्म करने के बाद भी वे इस तरीके से सोच सकते हैं और ऐसा व्यवहार प्रदर्शित कर सकते हैं। क्या तुम्हें लगता है कि इस तरह के व्यक्ति को बचाया जा सकता है? क्या ऐसे हालातों का सामना करने पर वे फिर से धोखा देंगे? (वे देंगे।) वे धोखा देने में और भी ज्यादा निपुण हो जाएँगे, खुद से और भी ज्यादा खुश हो जाएँगे और जितना ज्यादा धोखा देंगे, स्वयं को उतना ही अधिकाधिक चालाक महसूस करेंगे। हर धोखे के साथ उनका दिल और भी अंधकारमय होता जाएगा, उनके क्रियाकलाप और भी निर्मम होते जाएँगे और उनके तरीके और भी क्रूर होते जाएँगे। ऐसे लोग उद्धार से परे होते हैं। यह कहा जा सकता है कि वे शैतान द्वारा पूरी तरह से बंदी बनाए जा चुके हैं। वे पूरी तरह से कुकर्मी, दानव और बदमाश हैं। अगर तुम ऐसे लोगों से जमीर और मानवता की बात करोगे तो वे तुम्हारा उपहास करेंगे और कहेंगे, “तुम महा बेवकूफ हो, जमीर और मानवता से कार्य करते हो—इसके लिए तुम्हें कौन पैसे देने वाला है? क्या तुम आखिर में बस गरीब नहीं रह जाओगे? देखो मैं कितना अच्छा कर रहा हूँ और जरा अपने आप को देखो—कितने दयनीय हो!” वे तुम्हारा उपहास करेंगे और तुम्हारा तिरस्कार करेंगे। ऐसी मानवता पूरी तरह से जमीर रहित होती है—ऐसे लोगों का जमीर पूरी तरह से खो चुका होता है; वे पूरी तरह से दानवों द्वारा कब्जे में लिए जा चुके होते हैं और वे पूरी तरह से जीते-जागते दानव बन चुके होते हैं। इसलिए, ऐसे लोगों से सत्य के बारे में बात मत करो—वे इसे स्वीकार नहीं कर सकते। उनमें तो सामान्य मानवता तक नहीं होती है, फिर वे सत्य कैसे स्वीकार सकते हैं? जो लोग सत्य स्वीकार सकते हैं उनके पास लोगों और मामलों को देखने, आचरण और कार्य करने की बात आने पर एक सीमा होती है, विशेष रूप से जब उसमें उनके अपने स्वार्थ शामिल होते हैं। यह सीमा क्या है? यह अपने जमीर द्वारा संयमित और नियंत्रित होना है। अगर वे अपने जमीर द्वारा संयमित और नियंत्रित किए जा सकते हैं तो यह कहा जा सकता है कि ऐसे लोगों में अब भी कुछ हद तक मानवता है और उनके स्व-आचरण की एक सीमा है। इसका मतलब है कि वे एक निश्चित स्तर के औचित्य से कार्य करते हैं। दूसरों के साथ संगति करते समय या कोई भी चीज करते समय अगर वे सत्य सिद्धांतों को नहीं समझते हैं या सत्य के अनुसार कार्य करने का तरीका नहीं जानते हैं तो वे कम-से-कम जमीर की सीमाओं का पालन तो कर ही सकते हैं। दूसरे शब्दों में, उनके जमीर में अब भी जागरूकता होती है और वह काम कर सकता है। अगर उनका जमीर काम कर सकता है तो फिर उनके पास सत्य स्वीकारने का अवसर है। उनका जमीर सकारात्मक दिशा में विकसित होगा और अंत में उनके चरित्र के जो हिस्से अच्छे नहीं हैं उनमें कुछ हद तक बदलाव आएगा। जैसे-जैसे धीरे-धीरे उनका चरित्र रूपांतरित होता जाएगा, वैसे-वैसे उनके विभिन्न भ्रष्ट स्वभाव भी चरणबद्ध तरीके से त्याग दिए जाएँगे। क्या अब यह स्पष्ट है? (हाँ।)
लोगों को यह स्पष्ट रूप से देखना चाहिए कि परमेश्वर किसे बचाता है और वह लोगों के किन हिस्सों को बचाता और रूपांतरित करता है। एक बात तो यह है कि उन्हें खुद की स्पष्ट समझ होनी चाहिए और दूसरी बात यह है कि उनमें अपने आस-पास के लोगों का भेद पहचानने की क्षमता भी होनी चाहिए। नीच चरित्र की अभिव्यक्तियों के संबंध में, इनमें से कुछ अभिव्यक्तियों के साथ भ्रष्ट स्वभावों के प्रकाशन जुड़े हुए है। ये मुख्य रूप से उन अभिव्यक्तियों को संदर्भित करते हैं जो सत्य का उल्लंघन करती हैं, परमेश्वर के प्रति विद्रोही हैं और परमेश्वर के प्रति प्रतिरोधी हैं। लोगों की नजर में ऐसे क्रियाकलाप कानून का उल्लंघन नहीं करते हैं और कानून द्वारा उन्हें सजा नहीं सुनाई जाएगी, लेकिन परमेश्वर द्वारा उनकी निंदा की जाती है। ये भ्रष्ट स्वभाव के तहत आते हैं। नीच चरित्र की दूसरी अभिव्यक्तियों से न सिर्फ भ्रष्ट स्वभाव जुड़े होते हैं, बल्कि वे क्रूर मानवता सार की समस्या से भी संबंधित होती हैं। ऐसे लोग किसी भी तरह का बुरा कर्म करने में सक्षम होते हैं और वे पूरी तरह से कुकर्मी होते हैं। अगर किसी व्यक्ति के चरित्र के सिर्फ एक ही पहलू में समस्याएँ हैं, लेकिन फिर भी वह जमीर और विवेक से बोलता और कार्य करता है और वह सिर्फ विशेष हालातों में ही कोई बुरा कर्म करता है तो वह कुकर्मी नहीं है। कुकर्मियों में किसी भी तरह का कोई जमीर या विवेक नहीं होता है। क्या जमीर और विवेक के बिना लोग अच्छी चीजें कर सकते हैं? बिल्कुल नहीं। क्या वे सत्य का अभ्यास कर सकते हैं? इसकी तो और भी कम संभावना है। अगर किसी व्यक्ति का जमीर काम कर रहा है और उसमें संयमित करने की शक्ति है तो फिर उसका चरित्र और व्यवहार कुछ हद तक सुधर सकता है। अगर किसी व्यक्ति में कोई जमीर नहीं है और चाहे वह कुछ भी करे, उसमें जमीर के प्रकार्य की कमी रहती है तो फिर उसके चरित्र और व्यवहार में सुधार नहीं होगा। इसलिए, किसी व्यक्ति का भेद पहचानना पूरी तरह से उसके चरित्र या सत्यनिष्ठा पर आधारित नहीं हो सकता है; मुख्य चीज यह देखना है कि क्या उसके पास जमीर और विवेक हैं और क्या उसके जमीर और विवेक काम कर रहे हैं। अगर उसमें जमीर और विवेक हैं और जब वह कार्य करता है तब उसके जमीर और विवेक काम कर सकते हैं तो फिर उसमें अब भी मूलभूत मानवता है। अगर उसके क्रियाकलापों में जमीर और विवेक के प्रकार्य की कमी है तो उसमें मूलभूत मानवता नहीं है—वह मानवता रहित है। जिन लोगों में जमीर का मूलभूत प्रकार्य और मूलभूत मानवता होती है उनके पास उद्धार का अवसर होता है, जबकि जिन लोगों में मूलभूत मानवता की कमी होती है उनके पास उद्धार का कोई अवसर नहीं होता है। कोई व्यक्ति उद्धार प्राप्त कर सकता है या नहीं, इसमें मुख्य कारक क्या है? (मुख्य कारक यह है कि क्या उसमें जमीर और विवेक हैं।) सही कहा। तो क्या तुम लोग यह भेद पहचान सकते हो कि किसी व्यक्ति में जमीर और विवेक हैं या नहीं? (हम थोड़ा-सा भेद पहचान सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण चीज यह देखना है कि क्या जब कोई व्यक्ति कार्य करता है तब वह आंतरिक रूप से जमीर और विवेक द्वारा संयमित होता है और क्या उसकी नैतिक सीमाएँ होती हैं।) धर्म-सिद्धांत और सिद्धांत के लिहाज से इसे इसी तरीके से समझाया गया है—क्या तुम्हारे पास कोई ठोस उदाहरण हैं? (उदाहरण के लिए, कुछ लोग अपना कर्तव्य करते समय सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं और बेतहाशा बुरे कर्म करते हैं और भाई-बहन उनकी समस्याओं की तरफ ध्यान दिलाते हैं या उनकी काट-छाँट करते हैं। ऐसे मामलों में अगर उन लोगों में जमीर और विवेक हैं तो वे सक्रियता से चिंतन करेंगे और खुद को जानने का प्रयास करेंगे। हालाँकि, अगर उनमें जमीर और विवेक की कमी है तो उनमें नाराजगी उत्पन्न हो सकती है या यहाँ तक कि वे हमला और पलटवार भी कर सकते हैं।) यह अच्छा उदाहरण है। जब दूसरे लोग जमीर और विवेक वाले लोगों द्वारा कुछ गलत चीज करने के कारण उनकी आलोचना करते हैं तब वे शर्मिंदा और दोषी महसूस करते हैं। उनके दिलों में फछतावा होता है और फछतावे के साथ उनमें प्रायश्चित की अभिव्यक्तियाँ होती हैं और वे बेहतर करने को तैयार रहते हैं। जहाँ तक जमीर और विवेक रहित लोगों की बात है, तो चाहे वे कितने भी बड़े बुरे कर्म या गलतियाँ क्यों न करें, चाहे वे कलीसियाई कार्य को कितना भी नुकसान क्यों न पहुँचाएँ या भाई-बहनों के लिए कितनी भी मुसीबत और विघ्न-बाधाएँ क्यों न उत्पन्न करें, उनकी आलोचना होने पर उनके पास खुद को सही ठहराने और अपना बचाव करने के लिए सैकड़ों कारण होते हैं, वे अपने अपराधों को जरा-सा भी स्वीकारने से इनकार कर देते हैं। यह स्पष्ट है कि वे कार्य को नुकसान पहुँचाते हैं, लेकिन फिर भी उनके दिलों में कोई अपराधबोध नहीं होता है। मुझे बताओ, क्या उन्हें फछतावा होगा? (नहीं होगा।) उन्हें फछतावा नहीं होगा। क्या बिना फछतावे वाले लोग प्रायश्चित कर सकते हैं? (नहीं।) क्या जो लोग प्रायश्चित नहीं कर सकते हैं, वे सत्य स्वीकारने वाले लोग होते हैं? (नहीं।) क्या वे यही चीजें करना जारी रखेंगे? (हाँ।) कब तक? (चूँकि उनमें जमीर की कमी है, इसलिए वे इसे करते रहेंगे।) सही कहा। वे इसे करते रहेंगे। चाहे दूसरे लोग कुछ भी कहें, वे नहीं सुनेंगे : “मैं बस इसी तरीके से चीजें करता हूँ—किसी को पसंद हो या न हो! कलीसियाई कार्य को नुकसान होने से मेरा क्या लेना-देना है? सिर्फ यही चीज मायने रखती है कि मेरा खुद का कोई नुकसान न हो।” उनका यही दृष्टिकोण है। ठीक है, इस विषय पर हमारी संगति के लिए बस इतना ही। हमने जो संगति की है, उस पर चिंतन करना, उसे अपने आप से और अपने आस-पास की चीजों और लोगों से मिलाना, धीरे-धीरे उसे समझना और इन शब्दों का उपयोग दूसरों को, चीजों को और खुद को देखने के लिए करना। थोड़ा-थोड़ा करके तुम इन चीजों की समझ प्राप्त कर लोगे।
इससे पहले हमने ऐसी कई विशिष्ट अभिव्यक्तियों के बारे में संगति की थी जिनमें मानवता, जन्मजात स्थितियाँ और भ्रष्ट स्वभाव शामिल हैं। आज हम कुछ ऐसी विशिष्ट अभिव्यक्तियों के बारे में संगति करना जारी रखेंगे जिनमें ये तीन पहलू शामिल हैं। हम पहली अभिव्यक्ति से शुरू करेंगे : घटियापन। इस शब्द का क्या मतलब है? (इसका मतलब है कि कोई व्यक्ति संतुलित नहीं है, ईमानदार और उचित नहीं है और वह गुपचुप और चोरी-छिपे रहता है।) (इसका मतलब है कि किसी व्यक्ति का व्यवहार और चाल-ढाल अपेक्षाकृत दुष्ट लगते हैं।) अपेक्षाकृत दुष्ट—यह जरा-सा अमूर्त लगता है। ज्यादातर लोग यह कल्पना नहीं कर सकते हैं कि यह दुष्टता आखिर किस रूप में अभिव्यक्त होती है। क्या और भी हैं? (घटियापन का मतलब है कि व्यक्ति का व्यवहार और चाल-ढाल अपेक्षाकृत निम्न दर्जे के हैं।) तुमने कितने पहलुओं का जिक्र किया है? गुपचुप और चोरी-छिपे रहने वाला, दुष्ट, निम्न दर्जे का, घिनौना, शर्मनाक होना—क्या यही अभिव्यक्तियाँ नहीं हैं? (हाँ।) तो क्या घटियापन की अवधारणा को घिनौना और निम्न दर्जे के होने से प्रतिस्थापित किया सकता है? (हाँ।) घटियापन की इन अभिव्यक्तियों को किस पहलू के तहत श्रेणीबद्ध किया जाता है? (नीच चरित्र।) क्या यह मानवता की एक कमी है? (नहीं।) यह अभिव्यक्ति मानवता की कमी से कहीं ज्यादा गंभीर प्रकृति की है, इसलिए इसे मानवता की कमी के रूप में श्रेणीबद्ध नहीं किया जा सकता है। घटियापन नीच चरित्र की अभिव्यक्ति है। अगर कोई घटिया ढंग से कार्य करता है, वैसे तो यह नहीं कहा जा सकता है कि वह व्यक्ति कुकर्मी है, लेकिन घटियापन की अभिव्यक्तियों से इसे देखा जाए तो वह हमेशा लोगों को विमुख और घिनौना अनुभव करवाता है। ऐसे लोग जो घटियापन प्रदर्शित करते हैं, निश्चित रूप से पाजी और चोरी-छिपे ढंग से चीजें करते हैं, बिल्कुल भी निष्कपट नहीं होते हैं, अपेक्षाकृत नीच तरीके से व्यवहार करते हैं और हमेशा घिनौनी चीजें करते हैं। यानी वे चीजें करने में घिनौने, बेशर्म और शर्मनाक तरीकों का उपयोग करते हैं, ऐसे तरीके जो ईमानदार या खुले नहीं होते हैं। ज्यादातर लोग जब यह देखते हैं तब घिनौनापन और नफरत महसूस करते हैं। इससे पता चलता है कि वे घिनौने और अधम हैं। उनका सबसे प्रधान लक्षण विशेष रूप से दयनीय, नीच और घिनौना होना है। वे चाहे जो कुछ भी करें या कहें, उसमें वे ईमानदार और खुले नहीं हो सकते हैं; वे हमेशा कुछ चालें चलते रहते हैं और कुछ शर्मनाक चीजें करते रहते हैं। उदाहरण के लिए, परमेश्वर में विश्वास रखने को सार्वभौमिक रूप से एक बहुत उचित मामला माना जाता है, कुछ ऐसा जिसे लोग समझ सकते हैं और स्वीकार सकते हैं। लेकिन जब ये लोग परमेश्वर में विश्वास रखते हैं तब वे इस तरह से कार्य करते हैं जैसे उन्होंने गलत मार्ग अपना लिया हो, मानो यह कोई शर्मनाक बात हो। ये उस प्रकार के लोग हैं जो घिनौने और घटिया होते हैं। आमतौर पर घटिया लोग दूसरों के बीच क्या भूमिका निभाते हैं? (वे नकारात्मक चरित्र वाले, तिरस्कार किए जाने लायक लोग होते हैं।) वे नकारात्मक भूमिका निभाते हैं। ऐसे लोगों में क्या लक्षण होते हैं? ऐसा हो सकता है कि उनके रूप-रंग से तुम यह न बता सको कि वे बहुत बुरे हैं या तुम यह न देख सको कि वे जो करते हैं उसमें उनका कोई बुरा इरादा होता है। हालाँकि, कुछ समय तक उनसे मेल-जोल रखने के बाद तुम्हें लगता है कि वे हमेशा ऐसे तरीके से बोलते और कार्य करते हैं जो ईमानदार और खुला नहीं होता है। वे जो कहते हैं वह सुनने में अच्छा लगता है लेकिन पर्दे के पीछे वे जो करते हैं वह कुछ और ही चीज होती है। तुम्हें हमेशा लगता है कि उनके इरादे सही नहीं हैं या वे उन चीजों के बारे में बात नहीं करते हैं जिन्हें करने का वे इरादा रखते हैं जिससे तुम चकित रह जाते हो। अंत में तुम्हें लगने लगता है कि ऐसे लोग बेहद गैर-भरोसमंद हैं और वे सिर्फ घिनौनी, कपटी चीजें करते हैं और हमेशा तुम्हारे मामले बिगाड़ते हैं। ये घटिया लोग हैं। तुम इन लोगों को खुलेआम अपने अलग-अलग विचार व्यक्त करते या खुलेआम अपनी आपत्तियाँ प्रकट करते नहीं देखोगे। हो सकता है कि दूसरों के सामने वे कुछ ऐसा तक कह दें जो सुनने में अच्छा लगे, जैसे, “हम ऐसा नहीं कर सकते; हमें जमीर से कार्य करना चाहिए।” हालाँकि, पर्दे के पीछे वे चीजों में हेरफेर करते हैं, कुछ भेद नहीं पहचानने वाले, बेवकूफ और अनाड़ी लोगों को अपने इरादों के अनुसार कार्य करने के लिए उकसाते हैं। अंत में वे जो मामला पूरा करना चाहते थे वह पूरा हो जाता है, वे इस उपलब्धि का आनंद लेते हैं और फिर भी किसी को समझ नहीं आता कि यह उनकी कारस्तानी थी। तुम देखो कि वे दूसरों की मौजूदगी में कुछ कहते या करते नहीं हैं, फिर भी अंत में घटनाक्रम उसी दिशा में आगे बढ़ता है जिसमें उन्होंने हेरफेर की। इस परिप्रेक्ष्य से ऐसे लोग कुछ हद तक धूर्त भी होते हैं। क्या तुम लोगों के आस-पास घटिया लोग हैं? क्या आमतौर पर दूसरों के लिए घटिया लोगों का भेद पहचानना या उनकी असलियत देखना आसान होता है? (नहीं।) ये लोग खुद को बहुत गहराई से छिपा लेते हैं। उनके साथ जो मुद्दा है वह चरित्र की समस्या है; उनमें खराब मानवता सार होता है। क्या तुम लोगों के सामने घटिया लोग आए हैं? क्या तुम ऐसे लोगों की मुख्य अभिव्यक्तियों के बारे में स्पष्ट हो? (ज्यादा नहीं।) अब से तुम्हें ध्यान देने और यह देखने की जरूरत है कि तुम्हारे आस-पास किस तरह के लोग अक्सर घटियापन की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ प्रकट करते हैं। क्या इस लिहाज से ये अभिव्यक्तियाँ अपेक्षाकृत अमूर्त और छिपी हुई होती हैं? (हाँ।) भले ही तुम्हारे आस-पास ऐसे लोग हों, फिर भी तुम्हारे लिए उन्हें देखना आसान नहीं होगा क्योंकि उनका भेद पहचानना मुश्किल है। जब किसी दिन तुम लोग इसी तरह के किसी व्यक्ति को पहचान लोगे तब तुम उसे देख सकते हो और उसकी अभिव्यक्तियों को शुरू से अंत तक दर्ज कर सकते हो कि ताकि यह पता लगा सको कि सच में उसके लक्षण और सार क्या हैं, और फिर उसका सारांश प्रस्तुत कर सकते हो। घटियापन की अभिव्यक्ति के विषय पर हम अभी के लिए यहीं रुक जाएँगे।
अगली अभिव्यक्ति अश्लीलता है। सबसे पहले जरा एक नजर डालो—अश्लीलता किस पहलू के तहत आती है? (नीच चरित्र।) यह नीच चरित्र के तहत आती है। तो फिर आमतौर पर अश्लीलता का मतलब किस तरह की समस्याएँ हैं? (व्यक्ति के अंतर्वैयक्तिक आचरण की समस्याएँ।) यह बिल्कुल सटीक है—आमतौर पर अश्लीलता में पुरुषों और महिलाओं के बीच अंतर्वैयक्तिक आचरण की समस्याएँ शामिल होती हैं। तो क्या अश्लीलता पुरुषों पर लागू होती है या महिलाओं पर? (पुरुषों और महिलाओं दोनों पर।) यह सिर्फ एक लिंग पर लागू नहीं होती है। ऐसे पुरुष हैं, और ऐसी महिलाएँ हैं। इसलिए, ऐसा नहीं है कि सिर्फ पुरुष ही अश्लील हो सकते हैं। अगर महिलाओं में अंतर्वैयक्तिक आचरण की समस्या है, तो यह भी अश्लीलता है। तो अश्लीलता की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? हमेशा विपरीत लिंग के साथ घुलना-मिलना और दिखावा करना पसंद करना—यह किस तरह की समस्या है? क्या यह कुछ हद तक अश्लील नहीं है? (हाँ।) विपरीत लिंग को देखकर वे उत्तेजित हो जाते हैं। जितने ज्यादा विपरीत लिंग के लोग होते हैं, उतने ही ज्यादा वे उत्तेजित हो जाते हैं और उतना ही ज्यादा दिखावा करना चाहते हैं। खासकर कुछ लोगों के लिए वे किस हद तक दिखावा करते हैं? अपनी छाती उघाड़ना और अपनी पीठ दिखाना, उत्तेजक इशारे करना, उत्तेजक शब्द कहना—क्या ये अश्लीलता की अभिव्यक्तियाँ नहीं हैं? (हाँ।) जब तक विपरीत लिंग के लोग, चाहे उनकी उम्र कुछ भी हो या चाहे उन्हें वे पसंद करते हों या नहीं, उनके आस-पास होते हैं, तब तक वे उन्हें आकर्षित करने के लिए भड़कीले, कामोत्तेजक या आकर्षक ढंग से कपड़े पहनते हैं। क्या यह अश्लीलता की अभिव्यक्ति नहीं है? (हाँ।) यह सबसे आम अभिव्यक्ति है। ये परिघटनाएँ पहले से ही आम हो चुकी हैं और अविश्वासियों के बीच इन्हें किसी असामान्य चीज के रूप में नहीं देखा जाता है। वे इसे अश्लीलता नहीं मानते हैं, बल्कि इसके बजाय इसे बहुत सामान्य और उचित मानते हैं। उनका मानना है कि महिला और पुरुष दोनों को खुद को विपरीत लिंग के व्यक्ति के लिए आकर्षक बनाने और उसके द्वारा सराहे जाने के लिए सुंदर ढंग से कपड़े पहनने चाहिए ताकि विपरीत लिंग के सदस्य उनका अनुसरण करने के लिए ललचा जाएँ। क्या ऐसे विचार और दृष्टिकोण अश्लील विचार और दृष्टिकोण हैं? (हाँ।) वे हमेशा विपरीत लिंग के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनना चाहते हैं, हमेशा उन्हें आकर्षित करना चाहते हैं और अपने लिए उनमें दिलचस्पी जगाना चाहते हैं; उनकी वैवाहिक स्थिति या उम्र चाहे जो भी हो, उनके पास हमेशा ये विचार और ये क्रियाकलाप होते हैं और उनका जीवन ऐसे ख्यालों से भरा रहता है—क्या यह अश्लीलता नहीं है? (हाँ।) ये कुछ ऐसी अभिव्यक्तियाँ हैं जो ज्यादातर लोगों को अपेक्षाकृत स्वीकार्य लगती हैं और वे इन्हें अत्यधिक अश्लील नहीं समझते हैं—यह बस खुद को विपरीत लिंग के व्यक्ति के सामने पेश करना और दिखावा करना पसंद करना है। उदाहरण के लिए, अच्छे कपड़े पहनना, थोड़ा-सा इत्र छिड़कना, जरा-सा लुभावने कपड़े पहनना, उत्तेजक शब्द कहना या अपने आकर्षण की नुमाइश करना—ये अश्लील अभिव्यक्तियाँ ऐसी चीजें हैं जो ज्यादातर लोगों को सहनीय लगती हैं। अश्लीलता की एक और गंभीर अभिव्यक्ति यह है कि ऐसे लोग चाहे किसी भी परिवेश में विपरीत लिंग के सदस्यों को देखें, वे धृष्टता करने और उन्हें छूने की हिम्मत करते हैं। वे बिना यह विचार किए कि दूसरा व्यक्ति सहमत है या नहीं, यूँ ही उसके करीब आ जाते हैं और उसे छू लेते हैं, ऐसे पेश आते हैं जैसे वे हमेशा से एक-दूसरे से परिचित रहे हों। वे दूसरों के भावों और प्रतिक्रियाओं को देखने में विशेष रूप से कुशल होते हैं। अगर वे देखते हैं कि कोई व्यक्ति दूर नहीं भागता है और अपेक्षाकृत दब्बू है, तो वे यूँ ही उसके सिर या पीठ को छू लेने की हिम्मत करते हैं या यहाँ तक कि उसके करीब बैठ जाते हैं, या अगर दूसरा व्यक्ति प्रतिरोध नहीं करता है तो वे उसका हाथ पकड़ लेते हैं। कुछ महिलाएँ सीधे पुरुषों की गोद में बैठ सकती हैं, इस बात की परवाह किए बिना कि जब दूसरे इसे देखेंगे, तो उन्हें कैसा लगेगा। यह आम दिखावे से आगे बढ़कर कुछ ज्यादा ठोस बात हो गई है। क्या यह अश्लील होना नहीं है? (हाँ।) क्या ज्यादातर लोग इस तरह की अश्लीलता स्वीकार सकते हैं? (वे इसे स्वीकार नहीं सकते हैं।) कुछ लोग इसे कोई बड़ी बात नहीं मानते हैं और यहाँ तक कहते हैं, “यह अश्लीलता नहीं है। पुरुष और महिला का एक-दूसरे के प्रति स्नेह दिखाना बहुत सामान्य बात है। नहीं तो जीने का क्या मतलब है? पुरुषों को महिलाओं में मजा लेना चाहिए और महिलाओं को पुरुषों में—सिर्फ तभी जीवन दिलचस्प बनता है।” अगर विपरीत लिंग का कोई भी व्यक्ति उनके प्रति ऐसे अश्लील इशारे नहीं करता है, तो वे सोचते हैं, “कहीं ऐसा तो नहीं कि मुझमें कोई आकर्षण नहीं है? विपरीत लिंग के लोग मेरी ओर आकर्षित क्यों नहीं होते?” फिर वे निराश हो जाते हैं। जब ऐसे लोगों के सामने कोई ऐसा अश्लील व्यक्ति आता है जो उनके साथ कामुक रिश्ते बनाने का प्रयास करता है, तो वे बहुत संतुष्ट और अंदर से खुश महसूस करते हैं। कम-से-कम वे शारीरिक और मानसिक रूप से तृप्त महसूस तो करते ही हैं, सोचते हैं कि किसी का उनमें दिलचस्पी लेना उनके जीवन को सार्थक बनाता है। इसलिए, कुछ लोग इस तरह की अश्लीलता को स्वीकार सकते हैं। उदाहरण के लिए, मान लो कि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को पसंद करता है और उसके प्रति भावनाएँ रखता है; अगर दूसरा व्यक्ति हमेशा उसे नजरअंदाज करता है और उसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाता है, तो उसे बहुत निराशा होती है। लेकिन अगर वह व्यक्ति कभी-कभार उसे छू लेता है, छेड़ता है, उसके हाथों को सहलाता है या उसके शरीर की गर्माहट महसूस करने के लिए उसके करीब बैठ जाता है—या इससे भी आगे जाकर, अगर वह कोई पुरुष है जिसने किसी महिला के साथ धृष्टता की है, तो वह सोचती है, “वाह, यह अच्छा है, वह मुझे पसंद करता है। भले ही हम इस दुनिया में हमेशा के लिए एक न हो सकें, उसका मेरे साथ इस तरह से अश्लील व्यवहार करना कम-से-कम मेरे जीवन को सार्थक तो बनाता ही है!” देखो, कुछ लोग इस तरह की अश्लीलता से नफरत करने के बजाय इसे अपने दिलों की गहराइयों से स्वीकार लेते हैं। उनका रवैया इस बात पर निर्भर करता है कि ऐसी चीजें करने वाला विपरीत लिंग का व्यक्ति उनकी पसंद का व्यक्ति है या नहीं। अगर वे उसे पसंद करते हैं और उससे विकर्षित महसूस नहीं करते हैं या यहाँ तक कि अपने दिलों में उसकी लालसा भी करते हैं, तो वे ऐसे अश्लील लोगों या अश्लील क्रियाकलापों से नफरत नहीं करते हैं। इसके बजाय वे उसे स्वीकार सकते हैं और अपने दिलों में उसका स्वागत कर सकते हैं, अपने दिलों में उसे जगह दे सकते हैं। इस प्रकार कुछ लोग भीतर से ऐसे अश्लील व्यक्तियों को स्वीकार लेते हैं। चूँकि अश्लील लोग अच्छे नहीं होते हैं, तो क्या इसका मतलब यह नहीं है कि जो लोग इस तरह का अश्लील व्यवहार स्वीकार सकते हैं, वे भी अश्लील होते हैं? (हाँ।) वे भी अश्लील होते हैं। ऐसी कुछ अभिव्यक्तियाँ हैं जो इस तरह की अश्लीलता से ज्यादा गंभीर हैं—सिर्फ थोड़ा-सा दिखावा करना नहीं, सिर्फ नजरों में बात करना नहीं या थोड़ा-सा शारीरिक स्पर्श करना नहीं, बल्कि इससे भी आगे बढ़ना। ऐसी अश्लील चीजें इन लोगों के मन पर पूरी तरह से हावी हो जाती हैं। अगर ऐसा तब होता है जब कोई डेटिंग कर रहा है, तो यह सामान्य अभिव्यक्ति है। लेकिन अगर किसी की उम्र और वास्तविक हालात इसकी अनुमति नहीं देते हैं और फिर भी वह जब भी विपरीत लिंग के व्यक्ति को देखता है, तब पूरी तरह से ऐसी बातें सोचता है, तो इस अभिव्यक्ति का सार क्या है? इसका मतलब है कि विपरीत लिंग के व्यक्ति से सामना होने पर उसके मन में हमेशा एक तरह की इच्छा और लालसा होती है या उसके मन में कोई लक्ष्य होता है—ऐसा नहीं है कि वह बस अपनी कोई मानसिक जरूरत पूरी करना चाहता है और बस हो गया; बल्कि वह ठोस क्रियाकलाप करना और ठोस प्रगति करना चाहता है। अपने दिल में वह इन चीजों के पीछे लगातार भागता रहता है; अपने मन में अश्लील चीजों के बारे में सोचने के अलावा, अपने व्यवहार के लिहाज से वह अपनी कामुक इच्छा को तुष्ट करने और उसे बाहर निकालने के लिए विपरीत लिंग के उपयुक्त सदस्यों से संपर्क बनाने का प्रयास करना शुरू कर देता है। क्या ऐसे लोग अश्लील नहीं होते हैं? (हाँ।) पिछले दो प्रकार के अश्लील लोगों की तुलना में क्या इस प्रकार का अश्लील व्यक्ति बहुत खतरनाक और डरावना नहीं है? (हाँ।) ऐसे अश्लील लोग किसी भी समय क्रियाकलाप कर सकते हैं—यह पहले से ही यह दिखा देता है कि वे बहुत दुष्ट और अश्लील हैं। जहाँ तक इससे आगे के स्तरों की बात है, हम उन पर आगे चर्चा नहीं करेंगे।
तो इन तीन प्रकार की अश्लीलताओं में से तुम लोग किसे स्वीकार सकते हो? यानी इनमें से कौन-सा प्रकार तुम लोगों को यह महसूस करवाता है कि किसी का इस तरीके से कार्य करना सामान्य है, कोई बड़ी समस्या नहीं है और वह ऐसा व्यक्ति है जिसके प्रति तुम बहुत घिन या तिरस्कार महसूस नहीं करते हो और जिसे कुछ हद तक स्वीकार सकते हो? तुम लोग अश्लीलता के किस स्तर को स्वीकार सकते हो? (हम किसी भी स्तर को स्वीकार नहीं कर सकते हैं।) तुम अश्लीलता के किसी भी स्तर को क्यों स्वीकार नहीं कर सकते? (अश्लीलता के अंतिम प्रकार की प्रकृति काफी नीच है और वैसे तो अश्लीलता के पहले प्रकार में विपरीत लिंग के लोगों के सामने सिर्फ दिखावा करना शामिल है, लेकिन यह उनके आस-पास के लोगों के लिए विघ्न उत्पन्न करता है।) पहले प्रकार के व्यक्ति के दिल में लिंग भेद का स्पष्ट बोध नहीं होता है। ज्यादातर लोग विपरीत लिंग के लोगों से मेलजोल रखते समय पुरुषों और महिलाओं के बीच की सीमाओं का ध्यान रखते हैं। विशेष रूप से जब महिलाओं की पुरुषों से मेलजोल रखने की बात आती है, तो उन्हें पुरुषों के सामने संयमी होना चाहिए और कुछ सीमाएँ बनाकर रखनी चाहिए। हालाँकि कुछ महिलाओं को विपरीत लिंग के लोगों से मेलजोल रखने में मजा आता है और जब उन्हें ऐसा कोई नजर आता है जिसे वे पसंद करती हैं, तो वे उत्तेजित हो जाती हैं। उन्हें जैसे ही मौका मिलता है, वे संपर्क बनाने का बहाना ढूँढ़ती हैं। जो कोई भी जानबूझकर विपरीत लिंग के लोगों से मेलजोल रखने का प्रयास करता है, उसके दिल में कुछ असामान्य बात होती है। वैसे तो अश्लीलता के पहले प्रकार में कार्य करने के ठोस अश्लील तरीके शामिल नहीं होते हैं या यह किसी ठोस घटना की तरफ नहीं ले जाता है और न ही इसमें यौन उत्पीड़न शामिल होता है, लेकिन इन लोगों की अभिव्यक्तियों के आधार पर, अंतर्वैयक्तिक आचरण के लिहाज से, इनमें पुरुषों और महिलाओं के बीच स्पष्ट सीमाओं की कमी होती है। यानी अपने दिलों में वे कोई स्पष्ट सीमा नहीं रखते हैं और वे यह नहीं समझते हैं कि सामान्य लोगों में शर्म की भावना होनी चाहिए और उन्हें दूसरों को खुद को नीचा दिखने का मौका नहीं देना चाहिए। अगर कोई इस बारे में कुछ महसूस किए बिना अश्लील अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करता है तो वह सामान्य व्यक्ति नहीं है और कम-से-कम उसमें सामान्य लोगों के जमीर और विवेक नहीं हैं। चाहे व्यक्ति पुरुष हो या महिला, उसे महिला और पुरुष के बीच की सीमाओं का पालन करना चाहिए और उसके दिल में यह स्पष्ट होना चाहिए कि इन सीमाओं को पार नहीं किया जा सकता है। परमेश्वर ने पुरुषों और महिलाओं को अंतर्निहित अंतरों के साथ बनाया है; उनके बीच की रेखा को धुँधला करना संभव नहीं है। अगर किसी व्यक्ति में हमेशा पुरुषों और महिलाओं के बीच स्पष्ट सीमाओं की कमी रहती है और वह विपरीत लिंग के लोगों के सामने लगातार दिखावा करता रहता है, तो यह सिर्फ सामान्य स्वच्छंदता या संयम की कमी नहीं है—इसमें अंतर्वैयक्तिक आचरण के मामले शामिल हैं। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह जो चीजें करता है उसमें ठोस समस्याएँ शामिल हैं या नहीं, जब तक इन अभिव्यक्तियों में अंतर्वैयक्तिक आचरण के मुद्दे शामिल हैं, वे मानवीय शर्म की भावना से असंगत है। खासकर पुरुषों और महिलाओं के बीच के मामलों में अगर कोई व्यक्ति शर्म से अनजान है या उसमें शर्म की भावना नहीं है, तो वह बहुत खतरे में है। अगर तुम जानबूझकर विपरीत लिंग के लोगों के सामने अपने आकर्षण की नुमाइश कर सकते हो और उन्हें आकर्षित करने का प्रयास करते हो, तो इस बात की बहुत संभावना है कि तुम अश्लीलता के अगले स्तर पर पहुँच जाओगे। हो सकता है कि तुम दिखावा करने से शुरुआत करो, लेकिन यह आसानी से छेड़छाड़ करने में बदल सकता है और छेड़छाड़ करने से यह आसानी से किसी और ठोस चीज में बदल सकता है और अंत में यह तुम्हारे लिए नियंत्रण से बाहर हो सकता है। देखो, चाहे अश्लीलता का स्तर कोई भी हो, जब तक यह अश्लीलता के दायरे में आता है, इसमें अंतर्वैयक्तिक आचरण की समस्या शामिल होती है। एक बार जब इसमें अंतर्वैयक्तिक आचरण की कोई समस्या शामिल हो जाती है, तब गंभीरता के स्तरों के बीच कोई अंतर नहीं रह जाता है। वह इसलिए क्योंकि ऐसी समस्याएँ बढ़ सकती हैं—दिखावा करने और शर्म की भावना के अभाव से शुरू होकर यह आसानी से शारीरिक संपर्क, लगाव होने और फिर एक दूसरे से अलग नहीं किए जा सकने की तरफ बढ़ सकती है। वहाँ से यह चीज आगे बढ़ सकती है और नियंत्रण से बाहर हो सकती है जिससे पछतावे के लिए बहुत देर हो जाती है। एक बार जब यह हकीकत बन जाती है, तो इसे उचित अंत तक लाना मुश्किल हो जाता है। इसलिए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम अश्लीलता की अभिव्यक्तियों का कौन-सा प्रकार प्रदर्शित करते हो, जब तक इसमें अंतर्वैयक्तिक आचरण की एक समस्या शामिल है, अगर तुम खुद को नहीं रोकते हो और तुममें शर्म की भावना नहीं है—अगर तुम इस बात से पूरी तरह से उदासीन हो कि दूसरे लोग तुम्हारे बारे में क्या कहते हैं, लोग तुम्हारा मूल्यांकन कैसे करते हैं या परमेश्वर तुम्हें कैसे देखता है—तब तक तुम बहुत बड़े खतरे में हो। बहुत बड़े खतरे में होने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि सामान्य अश्लील क्रियाकलापों और अभिव्यक्तियों से शुरू होकर पतन की और अग्रसर होना और ऐसी बेतुकी चीजें करना बहुत आसान है जो तुम्हें जीवन भर का पछतावा दे जाती हैं। तुम समझ रहे हो? (हाँ।) इसलिए, अगर तुम अश्लीलता की समस्या के सार की असलियत नहीं देख सकते हो और उसे समय पर हल करने में विफल होते हो, तो तुम बहुत ही परेशान करने वाले व्यक्ति हो। अगर तुम ऐसी अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हो या तुम्हें ऐसी चीजों का अनुसरण करने में मजा आता है, तो यह साबित करता है कि तुम्हारी मानवता में एक गंभीर समस्या है। क्या समस्या है? शर्म की भावना का अभाव है। अंतर्वैयक्तिक आचरण का मुद्दा व्यक्ति के शर्म की भावना से संबंधित है। अगर तुममें शर्म की भावना का अभाव है, तो इसका मतलब है कि ऐसी चीजें करते समय तुम्हारी कोई सीमा नहीं होती है। तुम जो भी सोचते हैं, उस पर कार्य कर सकते हो। तुम्हारे विचार और इच्छाएँ न तो नियंत्रित होंगी और न ही सीमित होंगी। जब तक परिवेश उपयुक्त है, तब तक तुम्हारे विचार और इच्छाएँ खुद को सक्रिय करने के मौके का उपयोग करेंगी, उनमें धीरे-धीरे उभार आएगा और वे फटने की हद तक पहुँच जाएँगी। इसके भयानक नतीजे सामने आएँगे।
अगर तुम्हारे आस-पास ऐसे अश्लील लोग हैं जिनकी अश्लीलता की समस्या सिर्फ कभी-कभार कोई अकेली उत्तेजक टिप्पणी करना नहीं है और जिनकी अश्लीलता सिर्फ कुछ विशिष्ट व्यक्तियों की तरफ निर्देशित नहीं है—बल्कि वे अक्सर इस तरह से व्यवहार करते हैं, उनमें शर्म की किसी भी तरह की कोई भावना नहीं है और जब दूसरे लोग उनसे नफरत करते हैं, उन्हें याद दिलाते हैं या चेतावनी देते हैं तब भी समस्या अनसुलझी रह जाती है और वे अश्लील ही बने रहते हैं और उनकी अश्लीलता उत्तरोत्तर गंभीर होती चली जाती है—और अगर तुम लोगों के सामने ऐसे लोग आ जाते हैं तो तुम्हें उनसे बचना चाहिए। तुम्हें उनसे क्यों बचना चाहिए? क्योंकि अश्लील लोगों में कोई शर्म नहीं होती है। क्या बेशर्म लोगों का अपने क्रियाकलापों में कोई संयम होता है? क्या वे खुद पर संयम रख सकते हैं? (नहीं।) वे खुद पर संयम नहीं रख सकते, इसलिए तुम्हें ऐसे लोगों से बचना चाहिए; उनके साथ मेलजोल रखने से बचने का भरसक प्रयास करो। अगर कार्य की वजह से तुमसे उनसे संपर्क रखना अपेक्षित है और इससे बचा नहीं जा सकता है, तो इसे पूरी तरह से व्यावसायिक संपर्क बनाए रखो, लेकिन जब तुम उनसे बातचीत करो, तो सबसे अच्छा यह होगा कि कई दूसरे लोग वहाँ मौजूद रहें। उनके साथ अकेले में मेलजोल मत रखो और उन्हें शोषण करने का कोई मौका मत दो। उनके साथ अकेले रहने से बचने का पूरा प्रयास करो ताकि तुम प्रलोभन में न पड़ो और शैतान को शोषण करने का कोई मौका न दो। चाहे यह किसी भी तरह का अश्लील व्यवहार क्यों न हो, जब तक तुम यह पहचान लेते हो कि ऐसे लोगों को अपने अंतर्वैयक्तिक आचरण में कोई शर्म नहीं है, वे विपरीत लिंग के किसी भी सदस्य के साथ इश्कबाजी कर सकते हैं और वे इतने अश्लील भी हैं कि विपरीत लिंग के कई सदस्यों की मौजूदगी में फूहड़ चुटकुले भी सुना सकते हैं, ऐसे बोल सकते हैं जैसे यह बिल्कुल सामान्य बात हो, जिससे सुनने वालों के गाल लाल हो जाते हैं, वे झेंप जाते हैं और इसे सुनना बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं, जबकि उन्हें खुद कुछ भी महसूस नहीं होता है, वे अनजान होते हैं और उन्हें कोई परवाह नहीं होती है, तो ऐसे लोगों से बचना चाहिए। तुम समझ रहे हो? (हाँ।) खासकर तब जब अकेले में उनसे बातचीत करते समय वे तुम्हारे लिए विशेष चिंता और ध्यान दिखाते हैं और तुम्हारे दोषों और कमियों के प्रति और भी ज्यादा सहनशील होते हैं और फिर अक्सर तुम्हारे साथ छेड़छाड़ करते हैं या बाहर से तो खुद को सज्जन और सभ्य दिखाते हैं, लेकिन उनके शब्दों में हमेशा फूहड़पन का हल्का इशारा होता है—ऐसे लोग बहुत खतरनाक होते हैं और तुम लोगों को उनसे सावधान रहना चाहिए। कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो, जिन मामलों के लिए स्पष्ट रूप से समान लिंग के किसी व्यक्ति के साथ संगति की जा सकती है या उनके बारे में उससे पूछताछ की जा सकती है उन मामलों के लिए या जिस कार्य को समान लिंग के किसी व्यक्ति के साथ सँभाला जा सकता है उस कार्य के लिए, ऐसा नहीं करते है बल्कि विपरीत लिंग के किसी व्यक्ति को ढूँढ़ने पर जोर देते हैं। विपरीत लिंग के जिस भी व्यक्ति पर उनकी नजर पड़ती है, उससे वे लगातार सवाल पूछते रहते हैं, उसे तंग करते रहते हैं, उससे बेकार की बातचीत शुरू कर देते हैं और उसे परेशान करने के लिए कहानियाँ बनाते हैं, हमेशा उससे ऐसे बेकार प्रश्न पूछते रहते हैं जिन्हें पूछने की जरूरत नहीं होती है और इस व्यक्ति से अकेले में मेलजोल रखने के मौके पैदा करने का बेहद प्रयास करते हैं। मौके तलाशने का उनका मकसद अपनी खुद की इच्छाएँ पूरी करना होता है। चाहे तुम पुरुष हो या महिला, ऐसे लोगों से सामना होने पर तुम्हें क्या करना चाहिए? (उनसे दूर रहना चाहिए।) तुम्हें उन्हें मना करने का कोई तरीका सोचना चाहिए; उन्हें बात साफ-साफ समझा दो। यूँ ही चुपचाप उनसे दूर रहकर यह मत सोच लेना कि बस इतना ही काफी है। अगर वे कभी-कभार तुम्हें एक बार तंग करें, तो हो सकता है कि तुम यह तय नहीं कर पाओ कि वे बदतमीजी से व्यवहार कर रहे हैं या नहीं। लेकिन अगर वे बार-बार तुम्हें तंग करते हैं, तो तुम्हें उन्हें यह बात स्पष्ट कर देनी चाहिए। तुम्हें क्या कहना चाहिए? तुम उनसे कह सकते हो : “तुम मुझे एक-दो बार से ज्यादा परेशान कर चुके हो—तुम कहना क्या चाहते हो? अपनी बात साफ-साफ कहो! क्या हमारे बीच सच में उस तरह का कामकाजी रिश्ता है? यहाँ ऐसे बहुत से लोग हैं जिनसे तुम पूछ सकते हो, फिर भी तुम मुझसे पूछने और मेरे पास आने पर अड़े रहते हो—क्या हम वाकई इतने करीब हैं? ऐसा मत करो। मुझे दिलचस्पी नहीं है और मुझे इस तरीके से लोगों से मेलजोल रखना पसंद नहीं है। कृपया भविष्य में मुझे फिर से परेशान मत करना। मुझे तुममें किसी भी तरह की कोई दिलचस्पी नहीं है। अगर तुम भविष्य में मुझे इसी तरह से परेशान करते रहे, तो मेरे से बुरा कोई नहीं होगा!” ऐसे लोगों से पेश आने का क्या तरीका अपनाना चाहिए? (उनसे दूर रहना और उन्हें मना करना।) अगर ऐसे लोग बार-बार फटकारे जाने पर भी ढीठ बने रहते हैं, तो उनसे कैसे निपटा जाना चाहिए? उन्हें फिर कलीसिया के प्रशासनिक विनियमों के अनुसार अलग-थलग करके या हटाकर उनसे निपटा जाना चाहिए। कुछ लोग खुशामदी होते हैं, जो दूसरों को नाराज करने की हिम्मत नहीं करते हैं और अंदर ही अंदर इस तरह के अश्लील व्यक्ति से डरते हैं। यह परेशानी वाली बात है। वे उनके द्वारा सिर्फ खिलवाड़ ही किए जा सकते हैं। ऐसे अश्लील लोगों के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए। उनके प्रति तुम्हारा व्यवहार ठंडा होना चाहिए, लेकिन झुंझलाने की जरूरत नहीं है—बस शांति से बोल दो : “चलो, हम ये बचकाने खेल नहीं खेलें। मुझे साफ-साफ समझ आ रहा है कि तुम क्या कहना चाहते हो। मेरे साथ यह खेल खेलने से तुम्हारी दाल नहीं गलेगी। तुम मुझे पसंद नहीं हो, इसलिए कृपया मुझे फिर से परेशान मत करना! अगर तुम मुझे बार-बार परेशान करोगे, तो मेरे पास तुमसे निपटने के बहुत-से तरीके हैं!” क्या यह उन्हें मना करना नहीं है? (हाँ।) क्या तुम लोग उन्हें इस तरीके से मना कर पाओगे? (परमेश्वर के वचन सुनने के बाद, हाँ। परमेश्वर के बोलने से पहले हम उन्हें इस तरह से मना करने की हिम्मत नहीं करते थे।) यकीनन यह सिर्फ एक उदाहरण है। ऐसी परिस्थितियाँ सिर्फ पुरुषों द्वारा महिलाओं को परेशान किए जाने तक ही सीमित नहीं हैं; इनमें महिलाओं द्वारा पुरुषों को परेशान किया जाना भी शामिल है। संक्षेप में, चाहे तुम कोई पुरुष हो या महिला जिसे परेशान किया जा रहा हो, अगर तुम यह स्पष्ट रूप से देख सकते हो कि ऐसे अश्लील लोग मेलजोल रखने में, दिल खोलकर बातचीत करने में या तुमसे परामर्श करते समय सचमुच सामान्य रूप से शामिल नहीं हो रहे हैं, तो तुम उन्हें मना कर सकते हो। ऐसे लोगों से मेलजोल रखते समय उनका इरादा भाँपना बहुत आसान है और तुम्हें सावधान रहना चाहिए। तुम्हें उनसे कहना चाहिए : “हम एक-दूसरे से परिचित नहीं हैं, इसलिए बेहतर होगा कि तुम मुझे परेशान न करो!” अगर वे बार-बार तुम्हें परेशान करते हैं और फिर भी तुम्हें उन्हें मना करने में शर्म आती है, यह फिक्र होती है कि कहीं तुम उनकी भावनाओं को ठेस न पहुँचा दो, यह सोचते हो कि भाई-बहन होने के नाते तुम्हें उनके प्रति सहनशील होना चाहिए तो तुम्हें उन नतीजों को समझना चाहिए जो इस सहनशीलता के कारण हो सकते हैं। अगर तुम उन्हें पसंद करते हो और उनके साथ मेलजोल रखने को तैयार हो, तो यह तुम्हारी आजादी है। यकीनन, क्या किसी अश्लील व्यक्ति से सहानुभूति रखना या यहाँ तक कि उसे पसंद करना बेवकूफी नहीं है? अगर वे तुम्हारे साथ अश्लील ढंग से व्यवहार कर सकते हैं, तो वे दूसरों के साथ भी ऐसा कर सकते हैं। ऐसे लोगों से मेलजोल रखना अपनी ही कब्र खोदना है—मौत को दावत देना है। इसलिए, ऐसे लोगों के मामले में तुम्हें सीधे मना कर देना चाहिए; उन्हें सब कुछ स्पष्ट कर दो और उनसे दूरी बनाए रखने के लिए कह दो। क्या यह बहुत आसान नहीं है? (हाँ।) सच में अश्लील लोगों का मतलब है वे लोग जिनकी मानवता में शर्म नहीं होती है। यकीनन, लोग, चाहे वे पुरुष हों या महिलाएँ, विपरीत लिंग के लोगों से मिलते समय कभी-कभार जरा-सी असामान्य अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित कर सकते हैं। जब तक यह आदतन न हो, इसके कारण क्रियाकलाप या दुष्परिणाम न हों और कुछ समय की अवधि के बाद जब व्यक्ति को यह अनुचित लगे तो वह इसे सुधार सके, तब तक इसे अश्लीलता के रूप में श्रेणीबद्ध नहीं किया जा सकता है। इन जरा-सी असामान्य अभिव्यक्तियों को व्यापक नहीं बनाया जाना चाहिए। अश्लील होना व्यक्ति की मानवता में शर्म की कमी की अभिव्यक्ति है। ऐसे लोगों की प्राथमिक अभिव्यक्ति यह है कि अपने अंतर्वैयक्तिक आचरण में उनमें कोई शर्म नहीं होती है—वे बेलगाम, असंयमित और विशेष रूप से स्वच्छंद होते हैं। इसे व्यक्ति की मानवता में अश्लीलता की अभिव्यक्ति के रूप में श्रेणीबद्ध किया जाता है। अब क्या तुम्हें मालूम है कि ऐसे लोगों से कैसे निपटना है और उन्हें कैसे सँभालना है? (हाँ।) अश्लीलता के विषय पर हमारी चर्चा यहीं समाप्त होती है।
आओ हम एक और अभिव्यक्ति के बारे में बात करें : कलुषता। यह किस तरह की समस्या है? (यह नीच चरित्र की समस्या है।) कलुषता नीच चरित्र के तहत आती है और इसे मानवता के तहत श्रेणीबद्ध किया जाता है। क्या कलुषता कुछ हद तक घटियापन के समान है? (हाँ।) यह भी नीच चरित्र की अभिव्यक्ति है। कलुषता का मतलब है नियमों का पालन किए बिना, छलपूर्ण तरीके से कार्य करना और न सिर्फ सिद्धांतों या जमीर और नैतिकता की सीमाओं के बिना कार्य करना बल्कि ऐसे ढंग से भी चीजें करना जो विशेष रूप से घिनौना और नीच हो। कलुषता की क्या अभिव्यक्तियाँ हैं? उदाहरण के लिए, एक कलुषित व्यक्ति देखता है कि किसी ने एक अच्छी सी गाड़ी खरीदी है जिसे खरीदने की खुद उसकी आर्थिक क्षमता नहीं है। उस व्यक्ति के पास से गुजरते समय वह ऊपरी तौर पर उसे बधाई देता है और कहता है, “अच्छी कार है! तुम जरूर अमीर होगे!” उसके शब्द सुखद लगते हैं, लेकिन कार मालिक के वहाँ से जाते ही वह कार पर थूक देता है—थू! क्या यह कलुषित होना नहीं है? (हाँ।) थूकना किस तरह का व्यवहार है? (कलुषित होने का।) इसे कलुषित होना कहते हैं। कलुषता विशेष रूप से घिनौना, गंदा और अधम होना है—यह शर्मनाक ढंग से व्यवहार करना है जिसके कारण दूसरे लोग तुम्हारा मजाक उड़ाते हैं और तुम्हारा तिरस्कार करते हैं, जो लोगों को यह महसूस करवाता है कि तुम्हारा चरित्र अधम है और तुम एक कलंक हो। उदाहरण के लिए, कुछ लोग देखते हैं कि उनके पड़ोसी के पास एक अच्छा कुत्ता है और उन्हें अंदर ही अंदर जलन होती है : “उसके परिवार के पास एक बहुत ही अच्छा कुत्ता है। मैंने वह कुत्ता क्यों नहीं खरीदा?” इसलिए वे कुत्ते को मार डालने का तरीका ढूँढ़ लेते हैं और बाद में वे खुशी से फूले नहीं समाते हैं। घर पहुँचते ही वे जश्न मनाते हैं, शैम्पेन पीते हैं और दावत करते हैं और इतने ज्यादा खुश होते हैं जितना इससे पहले कभी नहीं हुए। मुझे बताओ, यह व्यक्ति भयानक है या नहीं? (है।) यह कलुषित होना है। जब तक दूसरों के साथ कुछ अच्छा होता है और वे खुश होते हैं, तब तक वे दुखी रहते हैं और दूसरों के लिए चीजें बिगाड़ने के तरीके सोचते रहते हैं। जब वे दूसरों को मुसीबत का सामना करते देखते हैं तब वे उनके दुख पर संतुष्टि से खुश होते हैं। ऐसे लोग बहुत कलुषित होते हैं।
कलुषित लोगों के विचार बहुत नकारात्मक होते हैं। वे नकारात्मक कैसे होते हैं? उदाहरण के लिए, जब तुम सामान्य हालात में किसी को कुछ देते हो तब उसे एहसानमंद महसूस करना चाहिए और कहना चाहिए, “यह चीज बहुत अच्छी है। तुम इसे सच में पसंद किया करते थे, लेकिन अब तुम्हें इसकी जरूरत नहीं है। तुमने इसे किसी और को नहीं दिया, बल्कि तुरंत मुझे दे दिया—हम सच में दोस्त हैं!” जमीर और विवेक वाला कोई भी व्यक्ति इस तरीके से सोचेगा; वह इस मामले को सकारात्मक रूप से बूझेगा। लेकिन कलुषित लोगों की सोच विकृत होती है। वे मन ही मन कहेंगे : “तुमने यह मुझे सिर्फ इसलिए दी क्योंकि तुम्हें इसकी अब और जरूरत नहीं है। अगर तुम्हें अब भी इसकी जरूरत होती तो क्या तुम इसे मुझे दे देते? तुम अच्छी चीजें अपने लिए रख लेते हो और बुरी चीजें मुझे दे देते हो—ऐसा कौन चाहता है! क्या तुम मुझे भिखारी की तरह टरका रहे हो? क्या तुम्हें लगता है मुझे नहीं पता कि क्या अच्छा है? तुमने यह मुझे सिर्फ इसलिए दिया क्योंकि तुम्हें इसकी अब और जरूरत नहीं है और फिर भी तुम मुझसे एहसानमंद होने की उम्मीद करते हो। तुमने मुझे बेवकूफ समझा है क्या?” देखो, इतने साधारण से मामले पर वे कितने घिनौने, गंदे और नीच तरीके से सोचते हैं। उन्हें कोई चीज देने से तुम उल्टा अपने लिए मुसीबत खड़ी कर लेते हो। इससे मुसीबत क्यों खड़ी हो जाती है? क्योंकि जिस व्यक्ति को तुमने यह चीज दी है वह एक कलुषित व्यक्ति है—कोई ऐसा है जो घिनौने, गंदे और नीच विचारों वाला है। वह किसी के भी बारे में नकारात्मक सोचता है। जब वह किसी व्यक्ति को देखता है तब वह उसे सिद्धांतों के आधार पर नहीं देखता और न ही उस व्यक्ति के चरित्र या स्व-आचरण के सिद्धांतों के आधार पर देखता है जिन्हें वह उसके साथ बहुत सारे साल बिताने से जानता है। इसके बजाय वह दूसरों को अपने ही चरम, अड़ियल विचारों और दृष्टिकोणों के आधार पर देखता है। ऐसे लोग बहुत कलुषित होते हैं। अगर तुम उनसे मेलजोल नहीं रखते हो या उन्हें कुछ नहीं देते हो तो सब कुछ शांतिपूर्ण बना रहता है। लेकिन अगर तुम सच में उनके साथ मेलजोल रखते हो और उनकी मदद करते हो तो वे अक्सर तुम्हारे बारे में राय बनाते हैं और तुम्हारी आलोचना करते हैं। जब वे तुम्हें किसी अच्छी चीज का उपयोग करते देखते हैं तब वे हमेशा उसकी चाह करते हैं। अगर तुम उन्हें वह चीज नहीं देते हो तो वे सोचते हैं कि तुम लोभी और कंजूस हो। ऐसे लोग बहुत परेशान करने वाले लोग होते हैं और उनके साथ मिलजुलकर रहना बहुत ही मुश्किल होता है। हो सकता है कि वे प्रत्यक्ष कुछ न कहें, लेकिन दिल की गहराई में, गुप्त रूप से वे हमेशा तुमसे प्रतिस्पर्धा करते रहते हैं, अपने दिलों में तुम्हारे प्रति नकारात्मक विचार उत्पन्न करते रहते हैं। सादे शब्दों में कहा जाए तो ऐसे लोगों के पास ओछे दिल और ओछे विचार होते हैं। मुझे लगता है कि “ओछा” शब्द किसी व्यक्ति के विचारों और दिल को गंदा बताने के लिए बिल्कुल उपयुक्त है—इसका मतलब है कि वह साफ नहीं है, सकारात्मक नहीं है और दयालु नहीं है। कोई बात चाहे कितनी भी सकारात्मक क्यों न हो, जब वह उसके बारे में बोलता है तब वह किसी नकारात्मक चीज में बदल जाती है। तुम उसके लिए चाहे कितनी भी अच्छी चीजें क्यों न करो, वह न सिर्फ इसकी सराहना नहीं करता है, बल्कि तुम्हारा अपमान भी करता है और तुम्हें फँसाता भी है, कहता है कि तुम्हारे इरादे बुरे हैं। अगर तुम उसे कुछ फायदा पहुँचाते हो तो वह सोचेगा कि कहीं तुम उसका शोषण करने का प्रयास तो नहीं कर रहे। अगर तुम उसके प्रति उदासीन होते हो तो वह सोचेगा कि क्योंकि तुम दौलतमंद और ताकतवर हो, इसलिए तुम गरीबों को नीची नजर से देखते हो। उसे लगेगा कि तुममें मानवीय स्पर्श की कमी है, तुम लोगों के साथ मिलजुलकर रहना नहीं जानते हो और दूसरों की भावनाओं का ध्यान रखने में अक्षम हो। अगर तुम उससे दूरी बना लेते हो तो वह भी कारगर नहीं होगा—अब भी उसके पास इस बारे में कहने को कुछ न कुछ होगा। ऐसे लोग बहुत परेशान करने वाले लोग होते हैं। तुम उनके साथ चाहे जैसे भी मेलजोल रख लो, तुम उन्हें कभी संतुष्ट नहीं कर सकते। तुम नहीं जानते कि वे क्या सोचेंगे और तुम नहीं जानते कि तुम जो चीजें अच्छे इरादों से करते हो उनसे क्या मुसीबतें खड़ीं होंगी। इसलिए ऐसे लोगों से निपटने का एक ही तरीका है—उनसे दूर रहना और उनसे कोई मेलजोल न रखना। दोस्त बनाते समय ऐसे लोगों को मत चुनना क्योंकि वे बहुत ही ज्यादा कलुषित होते हैं; उनसे मेलजोल रखने से तुम पर बड़ी मुसीबत और बड़ा संकट आएगा और यह सारा संकट और परेशानी पूरी तरह से अनावश्यक है। क्या कलुषित लोगों में तार्किकता होती है? (नहीं।) यह कहने का क्या मतलब है कि उनमें कोई तार्किकता नहीं होती है? (उनमें कोई जमीर या विवेक नहीं होता है और न ही कोई नैतिक सीमाएँ होती हैं।) इसके क्या विवरण हैं? (उनमें सामान्य लोगों की सोच नहीं होती है।) सामान्य लोगों की सोच न होना एक पहलू है। मुझे बताओ, क्या ऐसे लोगों में कोई शर्म होती है? (नहीं।) उनमें कोई शर्म नहीं होती है, सामान्य मानवता की सोच नहीं होती है और वे सिर्फ विकृत और भ्रामक तर्क ही बोलते हैं। उनके तर्क का लक्ष्य अपने ही हितों की रक्षा करना है—यह सब कुछ विकृत तर्क है। अगर तुम उन्हें कोई चीज देते हो तो वे कहते हैं कि तुम उन्हें नीची नजर से देखते हो और उन्हें सिर्फ वही चीजें देते हो जिनकी तुम्हें जरूरत नहीं है। अगर तुम उन्हें कुछ भी नहीं देते हो तो वे कहते हैं कि तुम बहुत ही ज्यादा कंजूस हो। क्या ये शब्द विकृत तर्क नहीं हैं? (हाँ।) वे चीजों को बस सही ढंग से समझ ही नहीं पाते हैं और बहुत नकारात्मक तरीके से सोचते हैं—यह विकृत तर्क है। अविश्वासी अक्सर कहते हैं कि लोगों को उचित ढंग से आचरण करना चाहिए—अगर कोई अविवेकी है और सिर्फ विकृत तर्क बोलता है तो वह निकम्मा है। अगर कोई व्यक्ति तुम्हें कोई चीज देता है तो इसका मतलब है कि वह तुम्हारा कुछ सम्मान करता है; अगर वह तुम्हें वह चीज नहीं देता है तो यह भी उचित है—वह अपनी चीजें जिसे चाहे दे सकता है। अगर जब वह तुम्हें कोई चीज देता है तब भी तुम दोष ढूँढ़ते हो, लेकिन अगर वह नहीं देता है तो तुम उसे कंजूस कहते हो तो क्या यह विवेक से परे होना नहीं है? क्या इस तरह से विकृत तर्क करने वाले लोग कलुषित नहीं होते हैं? (होते हैं।) वे बेहद कलुषित होते हैं! कलुषित लोग विवेक से परे होते हैं, इसलिए कोई भी तर्क उनकी समझ में नहीं आता है। जमीर और विवेक के अनुसार या सत्य सिद्धांतों के आधार पर कार्य करने का उनके लिए कोई मतलब नहीं होता है। कलुषता कुछ हद तक घटियापन के समान है, है ना? (हाँ।) उदाहरण के लिए, कुछ लोग कोई चीज खरीदने के लिए पैसे खर्च करते हैं और हमेशा महसूस करते हैं कि वह उस कीमत के लायक नहीं है, मानो उनका कोई नुकसान हुआ हो। फिर वे सोचते हैं, “तुमने मेरा फायदा उठाया है, इसलिए मुझे कोई ऐसा रास्ता ढूँढ़ निकालना होगा जिससे तुम्हारा नुकसान करवा सकूँ—सिर्फ तभी मैं अंदर से संतुलित महसूस करूँगा।” इस तरह के लोग जो घिनौने और कलुषित होते हैं हमेशा यही सोचते रहते हैं कि दूसरों का कैसे फायदा उठाया जाए। अगर उन्हें लगता है कि उन्हें नुकसान हुआ है तो वे दूसरों के लिए चीजें मुश्किल बना देते हैं; वे हमेशा यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि वे हार न जाएँ और सिर्फ तभी वे संतुष्ट होते हैं। अगर वे किसी और का फायदा उठाते हैं तो वे जश्न मनाते हैं और इतने खुश होते हैं कि हँसते हुए अपने सपनों से जाग जाते हैं। तुम किसी चीज पर कितना पैसा खर्च करते हो यह तुम्हारी अपनी पसंद है—किसी ने तुम्हें उसे अपना पैसा देने के लिए मजबूर नहीं किया। चूँकि तुमने इसे खुशी से खरीदा, फिर तुम अब भी नाराज क्यों हो और अब भी दूसरों का फायदा उठाने और अपना नुकसान होने से बचने का प्रयास क्यों कर रहे हो? क्या ऐसे लोग बहुत कलुषित नहीं होते हैं? (हाँ।) जब वे किराने का सामान खरीदने सुपरमार्केट जाते हैं और उन्हें लगता है कि वह बहुत ही ज्यादा महँगा है तब अपना नुकसान होने से बचने के लिए वे कुछ अतिरिक्त प्लास्टिक बैग ले लेते हैं। अगर यह नए साल या किसी छुट्टी के दौरान होता है और सुपरमार्केट कैलेंडर दे रहा होता है तो उन्हें कई और कैलेंडर लेने पड़ते हैं और सिर्फ तभी वे संतुष्ट होते हैं। जब वे दूसरों का फायदा उठाते हैं तब वे आनंदित होते हैं और घूम-घूमकर यह तक दिखावा करते हैं कि वे कितने सक्षम और कुशल हैं। मुझे बताओ, ऐसे लोगों में किस तरह की मानसिकता होती है? चाहे यह कुछ भी हो, वे हमेशा इस आधार पर चीजों को मापते हैं कि क्या वे फायदा उठा सकते हैं और अपना नुकसान होने से बच सकते हैं। बस इस तरह का विचार और दृष्टिकोण बहुत कलुषित और घिनौना है। यकीनन इसका एक दबंगई पहलू भी है और एक बुरा पहलू भी। ऐसे लोगों से निपटना मुश्किल होता है और वे मीन-मेख निकालने वाले लोग होते हैं। ऐसे लोगों में मानवता के कई दोष प्रदर्शित होते हैं—मानवता के परिप्रेक्ष्य से उनके सोचने के तरीके सामान्य समझ या व्यवहार के किसी भी नियम के अनुरूप बिल्कुल नहीं होते हैं और सामान्य मानवता की मूलभूत नैतिक आधाररेखा से नीचे आते हैं; यकीनन वे मानवता के जमीर और विवेक के अनुरूप भी नहीं होते हैं। वे बहुत विकृत, बहुत नीच और बहुत दबंग भी होते हैं। क्या ऐसे लोग अक्सर लोगों के समूहों में नहीं देखे जाते हैं? (हाँ।) कलुषित लोग नीच चरित्र वाले लोग होते हैं और उनसे निपटना बहुत मुश्किल होता है। जब तक किसी चीज से उनके हित जुड़े होते हैं, चाहे वह भौतिक हित हो या उनका अहंकार और रुतबा हो, तब तक इस लिहाज से उनका आचरण प्रकट हो जाएगा; यह बहुत ही स्पष्ट रूप से प्रदर्शित हो जाएगा। वे विकृत और भ्रामक तर्क बोलना शुरू कर देंगे, उन पर तर्क का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। ठीक है, कलुषित लोगों पर हमारी चर्चा यहीं समाप्त होती है।
एक और अभिव्यक्ति खुदगर्जी है। क्या खुदगर्जी अच्छी होती है? (नहीं।) तो पहले मुझे बताओ, क्या खुदगर्जी जन्मजात होती है? (नहीं।) खुदगर्जी जन्मजात नहीं होती है, तो यह किस प्रकार की समस्या है? (मानवता का दोष है।) (मुझे लगता है कि यह चरित्र की समस्या है।) खुदगर्जी को परिस्थिति के आधार पर श्रेणीबद्ध किया जाना चाहिए। खुदगर्जी के कुछ उदाहरण मानवीय सहजप्रवृत्ति की अभिव्यक्तियाँ हैं; वे एक प्रकार की मानवीय सहजप्रवृत्ति हैं, ऐसा अधिकार हैं जो लोगों को होना चाहिए, यह अपने हितों की रक्षा करने का अधिकार है। अगर यह मानवीय सहजप्रवृत्ति की अभिव्यक्ति है तो यह ऐसी चीज है जो लोगों के पास जरूर होनी चाहिए। इस तरह की खुदगर्जी अपने मानवाधिकारों की रक्षा करने और अपने वैध अधिकारों और हितों की रक्षा करने की अभिव्यक्ति है। इस तरह की खुदगर्जी जायज है; यह मानवता का दोष नहीं है। लेकिन एक और तरह की अभिव्यक्ति है जो इस तरह की खुदगर्जी से ज्यादा गंभीर है—यह दूसरों के हितों को नुकसान पहुँचाने से जुड़ी है और यह मानवता का दोष है; यह चरित्र की समस्या तक बढ़ चुकी है। इन मुद्दों का भेद पहचाना जाना चाहिए : खुदगर्जी की कौन-सी अभिव्यक्तियाँ जायज हैं, खुदगर्जी की कौन-सी अभिव्यक्तियाँ मानवता का दोष हैं और खुदगर्जी की कौन सी अभिव्यक्तियाँ चरित्र की समस्या से जुड़ी हैं। अगर इन मुद्दों को स्पष्ट रूप से देखा जा सके तो व्यक्ति जान जाएगा कि सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास कैसे करना है। उदाहरण के लिए, लोग अपने जीवन का अच्छी तरह से ध्यान रखना चाहते हैं, अपनी जिम्मेदारियों और दायित्वों को पूरी तरह से निभाना चाहते हैं और दूसरों की चिंता किए बिना खुद को अच्छी तरह से सँभालना चाहते हैं, दूसरों के हितों का अतिक्रमण किए बिना बस खुद को अच्छी तरह से सँभालना चाहते हैं—मानवता के परिप्रेक्ष्य से यह भी एक तरह की खुदगर्जी है, है ना? लेकिन दूसरे परिप्रेक्ष्य से यह लोगों में एक सहजप्रवृत्ति वाली प्रतिक्रिया भी है। यकीनन यह परमेश्वर द्वारा लोगों को दिया गया एक मूलभूत अधिकार भी है—यानी तुम्हें दूसरों की चिंता किए बिना पहले अपना ध्यान रखने का अधिकार है। अपने मानव जीवन को कायम रखकर तुम अपनी उत्तरजीविता कायम रख रहे हो। यह जायज है। यकीनन मानवता के परिप्रेक्ष्य से सिर्फ अपना ध्यान रखना और दूसरों की चिंता न करना भी खुदगर्जी की अभिव्यक्ति है। लेकिन इस तरह की खुदगर्जी मानवता की एक सामान्य अभिव्यक्ति है और जायज है। वैसे तो मानव परिप्रेक्ष्य से इसे मानवता का दोष माना जाता है, लेकिन वास्तव में यह मानवता का दोष नहीं है। दूसरों का ध्यान रखने में समर्थ हुए बिना या दूसरों का ध्यान रखने की इच्छा रखे बिना सिर्फ अपनी परवाह करना—अच्छा खाना खाना और गर्म कपड़े पहनना, अपना कार्य अच्छी तरह से करना, अपने दायित्व पूरे करना और बस हो गया—यह तुम्हारा अधिकार है और यह परमेश्वर द्वारा तुम्हें दी गई सहजप्रवृत्ति भी है। जन्मजात स्थितियों के परिप्रेक्ष्य से अगर कोई व्यक्ति अपना ध्यान रखना तक नहीं जानता, अगर उसमें इस जन्मजात सहजप्रवृत्ति की कमी है तो फिर वह वयस्क होने का मानक पूरा नहीं करता है। इस तरह की खुदगर्जी लोगों में एक सहज प्रतिक्रिया होती है। वैसे तो वे सिर्फ अपनी परवाह करते हैं, सिर्फ अपने अधिकारों और हितों की रक्षा करते हैं, जीवन-यापन करने के लिए अपनी मूलभूत जरूरतों का और साथ ही अपने जीवन और कार्य के दायरे के भीतर मामलों का ध्यान रखते हैं, फिर भी जब तक वे दूसरों के हितों का अतिक्रमण नहीं करते हैं, तब तक इस तरह की खुदगर्जी की निंदा नहीं की जाती है। जिस तरह की खुदगर्जी सचमुच नीच चरित्र के स्तर तक पहुँच जाती है, सिर्फ अपनी परवाह करने से परे चली जाती है, वह दूसरों के हितों और अधिकारों का अतिक्रमण करने या उन्हें नुकसान पहुँचाने, दूसरों के मानवाधिकारों के अतिक्रमण से भी जुड़ी होती है। यह असली खुदगर्जी है और यह नीच चरित्र की समस्या है। अगर तुम अपने खुद के हितों, प्रतिष्ठा, रुतबे और अभिमान की रक्षा करने के लिए दूसरों के हितों पर कब्जा करने या उन्हें जबरन ले लेने में कोई कसर नहीं छोड़ते हो—दूसरों के हितों को अपना मान लेते हो, सिर्फ अपने बारे में सोचते हो और दूसरों के बारे में नहीं, यहाँ तक कि दूसरों के लिए जीने का कोई रास्ता तक नहीं छोड़ते हो—तो इस तरह की खुदगर्जी नीच चरित्र को दर्शाती है। उदाहरण के लिए, रात को जब बाकी सब सो रहे होते हैं तब तुम जोशीला महसूस करते हो और तुम्हें नींद नहीं आती, इसलिए तुम कोई गाना गाना चाहते हो। जैसे-जैसे तुम बहकते जाते हो, वैसे-वैसे तुम जोर-जोर से गाने लगते हो, यहाँ तक कि गाना गाते हुए तुम संगीत भी बजाते हो और नाचते भी हो। तुम्हारी अपनी मनोदशा बेहतर हो जाती है और तुम खुश हो जाते हो, लेकिन तुम बाकी सभी को जगा देते हो जिससे वे और सो नहीं पाते हैं। इसे क्या कहते हैं? (खुदगर्जी।) इस तरह के व्यवहार को खुदगर्जी कहते हैं। क्या यह व्यवहार नीच चरित्र का संकेतक है? (हाँ।) यह व्यवहार नीच चरित्र का संकेतक क्यों है? (क्योंकि वे दूसरों के बारे में नहीं सोचते हैं और दूसरों के आराम पर असर डालते हैं।) खुद को खुश करने के लिए तुम दूसरों के आराम और नींद के समय की बलि चढ़ाने से नहीं हिचकिचाते हो और अपने गाना गाने और मौज-मस्ती करने में सभी को अपना साथ देने के लिए मजबूर करते हो। अपने खुद के मकसद हासिल करने और अपने हितों की रक्षा करने के लिए तुम दूसरों के हितों और अधिकारों का अतिक्रमण करते हो। यानी तुम्हारे अपने हितों की रक्षा करने की शर्त है दूसरे लोगों के हितों और अधिकारों को बलि चढ़ाना। इस तरह की अभिव्यक्ति को खुदगर्जी कहते हैं। इस तरह की खुदगर्जी घिनौना, नीच चरित्र इसलिए दर्शाती है क्योंकि इस तरह का व्यवहार दूसरों के हितों को नुकसान पहुँचाता है। तुम अपने हितों की रक्षा करने के लिए अनुचित साधनों का उपयोग करते हो जबकि दूसरों के हितों को नुकसान पहुँचाते हो और उन्हें कमजोर करते हो—इसे खुदगर्जी कहते हैं। उदाहरण के लिए, जब सब लोग इकट्ठे खाना खा रहे होते हैं तब कुछ लोग सिर्फ इस बात की परवाह करते हैं कि उन्हें मांस मिलता है या नहीं और यहाँ तक कि वे दूसरों के हिस्से का मांस भी खा जाते हैं। क्या ज्यादा मांस खाने वाले ऐसे लोग खुदगर्ज होते हैं? (हाँ।) वे जिस तरीके से आचरण करते हैं वह अनुचित होता है, वे सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं और दूसरों की अनदेखी करते हैं—इसे खुदगर्जी कहते हैं। इस स्थिति को खुदगर्जी क्यों कहा जाता है? इसे नीच चरित्र क्यों माना जाता है? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे अपने हितों की रक्षा करने के लिए दूसरों के हितों का अतिक्रमण करते हैं, दूसरों की चीजें जब्त कर लेते हैं और उन्हें अपना मानकर ले लेते हैं। इसे खुदगर्जी कहते हैं और इस तरह की खुदगर्जी घिनौनी मानवता और नीच चरित्र को दर्शाती है। इसलिए अगर तुम दूसरों के हितों का अतिक्रमण करके और उन्हें नुकसान पहुँचाकर अपने अधिकारों और हितों की रक्षा करते हो तो तुम खुदगर्ज व्यक्ति हो, नीच चरित्र वाले व्यक्ति हो। यह भी कहा जा सकता है कि तुम खराब मानवता वाले व्यक्ति हो। लेकिन अगर तुमने दूसरों के हितों को नुकसान नहीं पहुँचाया है, दूसरों के रिश्तों को तार-तार नहीं किया है या उन्हें नुकसान नहीं पहुँचाया है और दूसरों की चिंता किए बिना सिर्फ अपने बारे में सोचा है तो इस प्रकार की खुदगर्जी अब भी कुछ हद तक जायज कही जाने योग्य है। ज्यादा-से-ज्यादा यह कहा जा सकता है कि तुम बहुत दयालु नहीं हो और तुम ओछे और आत्म-केंद्रित हो, लेकिन तुम खराब व्यक्ति नहीं हो; यह नीच चरित्र के स्तर तक नहीं पहुँचता है। क्या इन दो तरह की खुदगर्जी की प्रकृति में कोई अंतर है? (हाँ।) लोगों की खुदगर्जी के स्तर और वे कैसे व्यवहार करते हैं इसके सार के आधार पर उनके चरित्र का भेद पहचानकर यह देखा जा सकता है कि लोगों के भीतर का चरित्र अलग-अलग होता है—इसमें भेद होते हैं।
कुछ लोग दूसरों के मामलों के बारे में कभी चिंता नहीं करते हैं और सिर्फ अपने मामलों पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं। हो सकता है कि ऐसे लोग बहुत नेकदिल, बहुत मिलनसार और दूसरों के साथ अपने मेलजोल में बहुत गर्मजोशी भरे न लगें। लेकिन वे कभी भी बाधाएँ उत्पन्न नहीं करते हैं, कभी भी दूसरों के बारे में झूठ या अफवाहें नहीं फैलाते हैं और दूसरों की चीजों पर अतिक्रमण या उन्हें जब्त नहीं करते हैं। यकीनन वे कभी भी अपनी चीजें दूसरों को नहीं देते हैं। हो सकता है कि वे बहुत लोभी और कंजूस लगें, लेकिन वे कभी भी दूसरों के हितों को नुकसान नहीं पहुँचाते हैं और वे अपने आचरण के तरीके में बहुत सिद्धांतनिष्ठ होते हैं। ऐसे लोगों की एक आधाररेखा होती है जो यह है : “मैं तुम्हारा फायदा नहीं उठाता हूँ और तुम्हें मेरा फायदा उठाने के बारे में नहीं सोचना चाहिए। मैं कभी भी तुम्हारा शोषण नहीं करता हूँ और तुम्हें मेरा शोषण करने के बारे में नहीं सोचना चाहिए।” वे बहुत सिद्धांतनिष्ठ होते हैं। वैसे तो ऐसे लोग दूसरों के प्रति उदासीन होते हैं, दूसरों की मदद करने के इच्छुक नहीं होते हैं, दूसरों से मेलजोल नहीं रखते हैं और दूसरों के प्रति ज्यादा मिलनसारिता या जोश नहीं दिखाते हैं, लेकिन वे कभी भी दूसरों को नुकसान नहीं पहुँचाते हैं। भले ही उनके पास कोई चीज बहुत ज्यादा मात्रा में हो तो भी वे उसे दूसरों को नहीं देते हैं। जब वे देखते हैं कि दूसरों के पास अच्छी चीजें हैं तब कभी-कभी उन्हें ईर्ष्या या जलन हो सकती है, लेकिन उन्हें लालचपूर्ण ढंग से ले लेने का उनका कोई इरादा नहीं होता है; वे चुपके से दूसरों का फायदा भी नहीं उठाते हैं, न ही वे अपने खुद के फायदे के लिए दूसरों के हितों का अतिक्रमण करते हैं। इन ऊपर बताए गए बिंदुओं को देखा जाए तो वे बुरे नहीं होते हैं। तो क्या इसका मतलब यह है कि उनकी मानवता अच्छी है? उनकी मानवता अच्छी है या नहीं, यह उनके जमीर और विवेक, सत्य स्वीकार करने के उनके रवैये और सकारात्मक चीजों के प्रति उनके रवैये पर निर्भर करता है—यह अलग मामला है। लेकिन कम-से-कम दूसरों के साथ मिलजुलकर रहने में उनके द्वारा अपनाए गए रवैये और ढंग को देखा जाए तो वे दूसरों के प्रति दुर्भावनापूर्ण नहीं होते हैं। ऊपर से ऐसा लगता है कि वे बहुत खुदगर्ज हैं, सिर्फ अपनी परवाह करते हैं, अपनी छोटी-सी दुनिया में जीते हैं और दूसरों के मामलों के बारे में चिंता नहीं करते हैं। लेकिन वे कभी भी दूसरों के हितों को नुकसान नहीं पहुँचाते हैं, इसलिए उनका चरित्र अब भी ठीक-ठाक है। यानी जब तुम उनसे बातचीत करते हो या उनके साथ भौतिक या सामाजिक लेन-देन करते हो, तब कम-से-कम वे तुम्हारे हितों को नुकसान तो नहीं पहुँचाएँगे। अगर तुम उनसे सलाह माँगते हो या उनसे कुछ सुझाव देने के लिए कहते हो तो वे तुम्हारी मदद कर देंगे, लेकिन अगर तुम नहीं कहते हो तो वे मदद करने की पहल नहीं करेंगे। इस अभिव्यक्ति से देखा जाए तो ऐसा लग सकता है कि ऐसे लोग काफी कटे-कटे रहते हैं, लेकिन इस तथ्य से देखा जाए कि वे कभी भी दूसरों का फायदा नहीं उठाते हैं या दूसरों के हितों को नुकसान नहीं पहुँचाते हैं तो उनमें अब भी मानवता मौजूद है और वे अपेक्षाकृत शालीन हैं। क्या इस तरीके से इसे देखना सटीक और वस्तुनिष्ठ है? (हाँ।) इसलिए सभी खुदगर्ज लोग कुकर्मी या खराब चरित्र वाले लोग नहीं होते हैं। तुम्हें यह भी देखना चाहिए कि क्या उनकी खुदगर्जी दूसरों के हितों को नुकसान पहुँचाने या दूसरों की संपत्ति पर कब्जा जमाने की सीमा तक पहुँच गई है और साथ ही यह भी देखना चाहिए कि उनके आचरण के और दुनिया से निपटने के सिद्धांत क्या हैं, उनके चरित्र का सार क्या है और क्या उनके आचरण करने के तरीके में सीमाएँ और सिद्धांत हैं। कुछ लोग जिस तरीके से दूसरों से मिलजुलकर रहते हैं उसमें वे ऊपर से बहुत उदार और गर्मजोशी भरे लगते हैं। वे दूसरों को देते भी हैं, दूसरों की मदद भी करते हैं और दूसरों के लिए चीजें भी करते हैं। अगर ऐसी कोई चीज है जिसमें तुम्हें मदद चाहिए और अगर वे इसे देख लेते हैं तो तुम्हारे माँगे बिना ही तुम्हारीमदद कर देते हैं। इन अभिव्यक्तियों से देखा जाए तो वे काफी दयालु लगते हैं। लेकिन अगर तुम उन्हें नाराज कर देते हो या अनजाने में ऐसा कुछ कर देते हो जो उनके हितों को नुकसान पहुँचाता है तो वे उस बात को जाने नहीं देंगे, वे मन-मुटाव पालेंगे, पुरानी रंजिशों का जिक्र करेंगे और तुम्हें कुचल डालने तक चुप नहीं बैठेंगे। ये बुरे लोग हैं—मानवता में उन लोगों से कहीं बदतर हैं जो बाहर से खुदगर्ज लगते हैं। तुम समझ रहे हो? (हाँ।) लोगों के बीच इन दोनों में से कौन-सा प्रकार ज्यादा आम है? तुम लोग किस प्रकार को पसंद करते हो? ज्यादातर लोग उन लोगों को पसंद नहीं करते हैं जो उदासीन और खुदगर्ज होते हैं। कुछ लोग जब तुम्हें मुश्किल में देखते हैं तब वे मदद करने की पहल करेंगे। अगर तुम मदद न भी माँगो तो भी वे पता करेंगे कि क्या तुम्हें मदद की जरूरत है। अगर तुम्हें जरूरत हो तो वे तुम्हारी मदद कर देंगे। ऐसे लोगों में दूसरों के प्रति प्रेम होता है और उनमें दूसरों को देने और उनकी मदद करने के प्रति झुकाव होता है। कुछ दूसरे लोग जब तुम्हें मुश्किल में देखते हैं तो वे तुम्हारी मदद करने की पहल नहीं करेंगे, फिर भी अगर तुम खुलकर बोलते हो और उनसे मदद माँगते हो तो वे तुम्हारी मदद कर देंगे। वैसे तो ऐसे लोग थोड़े से निष्क्रिय होते हैं, फिर भी वे खराब लोग नहीं होते हैं और उन्हें अच्छे लोग माना जा सकता है। एक और प्रकार का व्यक्ति होता है—तुम जिस मुश्किल का सामना कर रहे हो वह चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, वह मदद नहीं करेगा। अगर तुमने उससे मदद माँग भी ली तो भी वह मना करने के बहाने और कारण ढूँढ़ लेगा। इस तरह का व्यक्ति सबसे ज्यादा खुदगर्ज होता है। कुछ लोग अक्सर बाहरी तौर पर कहते हैं, “अगर तुम्हें किसी मदद की जरूरत हो तो बस मुझे बता देना।” जब कुछ नहीं चल रहा होता है तब वे विशेष रूप से नेकदिल, सक्रिय और सकारात्मक लगते हैं। लेकिन जब तुम वास्तव में उनसे किसी चीज के लिए मदद माँगते हो तब वे मदद करने के बाद चुकौती के बारे में आभास देना शुरू कर देंगे, ऐसी चीजें कहेंगे, “मैंने उस मामले के लिए अपने बॉस को तोहफे देने में इतने पैसे खर्च किए।” देखो, ऊपर से वे काफी नेकदिल लगते हैं, बदले में कुछ माँगे बिना तुम्हें सेवाएँ देने और तुम्हारे लिए चीजें करने की पेशकश करते हैं। लेकिन जब वे मदद कर देंगे, उसके बाद तुम कभी भी उनके इस व्यक्तिगत उपकार का पूरा बदला नहीं चुका पाओगे। ऐसे लोग कितने कपटी होते हैं! क्या तुम्हें ऐसे लोगों से मेलजोल रखना चाहिए? (नहीं।) मैं बस ऐसे लोगों से मेलजोल नहीं रखता। वे मीठी-मीठी बातें करते हैं, विशेष गर्मजोशी और लिहाज दिखाते हैं। वे तुम्हारे मुँह पर अच्छी-अच्छी बातें कहते हैं, लेकिन तुम्हारी पीठ पीछे बुरी चीजें करते हैं। वे जो भी करते हैं उसमें उनका कोई सिद्धांत नहीं होता है; वे बस मुस्कुराते हुए बाघ हैं, अपनी मुस्कान के पीछे खंजर छिपाए रहते हैं। जब कुछ नहीं चल रहा होता है तब वे हमेशा तुम्हारे साथ हँसते हैं और मजाक करते हैं, ऐसा दिखाते हैं जैसे तुम उनके बहुत करीब हो। लेकिन जब तुम्हें सच में उनकी मदद की जरूरत होती है तब वे कहीं नजर नहीं आते हैं। यहाँ तक कि जो चीजें उनके लिए बहुत आसान होती हैं, उन्हें करने से बचने के लिए भी वे कारण और बहाने ढूँढ़ ही लेंगे। भले ही वह कोई ऐसी चीज हो जिसके लिए कम मेहनत की जरूरत हो, फिर भी वे तुमसे व्यक्तिगत उपकार माँगते हैं। जब वे तुम्हारे लिए कुछ करते हैं तब वे तुम्हें बदले में उन्हें कुछ देने के लिए मजबूर करने के सभी तरह के तरीके सोच लेंगे। तुम इस व्यक्तिगत उपकार का पूरा बदला कभी नहीं चुका पाओगे। दूसरी तरफ, जो लोग बाहर से काफी ठंडे लगते हैं और काफी खुदगर्ज दिखते हैं, उनकी अक्सर अपने आचरण में सीमाएँ होती हैं और वे अपने क्रियाकलापों में बहुत सावधान होते हैं। वैसे तो हो सकता है कि वे तुम्हारे प्रति उदासीन हों, लेकिन वे कभी तुम्हारे खिलाफ कोई साजिश नहीं रचेंगे। अगर तुम उनसे किसी चीज के लिए सच्चे ढंग से मदद माँगते हो तो वे निश्चित रूप से बहुत गंभीरता से मदद करेंगे। बाद में अगर तुम किसी छोटे-मोटे व्यक्तिगत उपकार या किसी भौतिक चीज से उनका बदला चुकाते हो तो वे उससे उचित रूप से पेश आएँगे। लेकिन अगर तुम उन्हें कुछ नहीं देते हो तो वे तुमसे कुछ नहीं माँगेंगे और न ही वे उपकारों या चुकौती की माँग करने के लिए बार-बार यह बात छेड़ेंगे। ऐसे लोग सच्चे होते हैं; वे बाहर से जैसे दिखते हैं, अंदर से भी ठीक वैसे ही होते हैं। लेकिन अक्सर ऐसे लोगों को कोई पसंद नहीं करता है, यह कहा जाता है कि वे खुदगर्ज हैं, उनके साथ मिलजुलकर रहना मुश्किल है, वे ठंडे हैं और उनमें मानवीय स्पर्श की कमी है और कोई भी उनसे संपर्क नहीं रखना चाहता। वास्तव में इनमें से कुछ लोगों में ठीक-ठाक मानवता होती है। तुम लोग अपने आस-पास नजर दौड़ाओ और देखो कि इस तरह का व्यक्ति कौन है। वैसे तो वे वाक्पटु नहीं होते हैं, उनका व्यक्तित्व काफी ठंडा होता है और बाहर से उनमें मानवीय स्पर्श की कमी दिखाई देती है और वे दूसरों से बातचीत में शामिल होना या बातचीत शुरू करना नहीं जानते हैं, फिर भी वे अपने आचरण में काफी सिद्धांतनिष्ठ होते हैं। हो सकता है कि वे बहुत दयालु न हों, फिर भी उनके दिलों में कोई दुर्भावना नहीं होती है; कम-से-कम ज्यादातर लोगों के प्रति उनका कोई बुरा इरादा नहीं होता है। वे बाहर से जैसे दिखते हैं अंदर से भी बिल्कुल वैसे ही होते हैं। वे लोगों के दिल जीतने के लिए हथकंडों या सांसारिक आचरण के फलसफों का उपयोग नहीं करते हैं। ऐसे लोग सीधे-सादे होते हैं। क्या यही बात है? (हाँ।) तो क्या अब तुम्हारे पास एक आधार नहीं है जिस पर तुम्हें खुदगर्ज लोगों से सही ढंग से पेश आना चाहिए? तुम्हें किस आधार पर उनसे पेश आना चाहिए? यह तुम्हारी भावनाओं या पसंद पर आधारित नहीं हो सकता है और न ही इस पर आधारित हो सकता है कि तुम इन लोगों को पसंद करते हो या नहीं, तुम उनसे मिलजुलकर रहते हो या नहीं, वे तुम्हारे लिए मददगार या फायदेमंद हैं या नहीं और न ही यह तुम्हारे प्रति उनके रवैये पर आधारित हो सकता है—यह इन पर आधारित नहीं हो सकता है। इसके बजाय यह उनके चरित्र, उनके मानवता सार और लोगों के प्रति, सत्य के प्रति और सकारात्मक चीजों के प्रति उनके रवैये पर आधारित होना चाहिए। इन्हीं कारकों के आधार पर तुम्हें खुदगर्ज लोगों से पेश आना चाहिए। अगर वे सच में बुरे लोग हैं तो उसी के अनुसार उनसे निपटो। अगर वे बाहर से खुदगर्ज दिखते हैं, लेकिन उनकी मानवता बुरी नहीं है तो तुम्हें उनसे ऐसे पेश नहीं आना चाहिए कि वे बुरे लोग या बुरी मानवता वाले लोग हैं। भले ही तुम्हें ये लोग पसंद न हों या वे दूसरों के साथ मेलजोल रखने या रिश्ते बनाए रखने में अच्छे न हों, फिर भी तुम उन्हें सिर्फ इसलिए बुरे लोग या मानवता रहित नहीं मान सकते क्योंकि वे बाहर से खुदगर्ज दिखते हैं। यह इन लोगों के प्रति पूर्वाग्रह है। तो क्या अब तुम्हारे पास खुदगर्ज लोगों से पेश आने का सिद्धांत नहीं है? इसे सामान्यीकृत नहीं किया जा सकता है; बल्कि यह उनके मानवता सार पर और सत्य और अपने कर्तव्य के प्रति उनके रवैये पर और उस रवैये पर आधारित होना चाहिए जिससे वे आचरण करते हैं—तुम्हें इसी सिद्धांत के अनुसार उनसे पेश आना चाहिए। खुदगर्जी के मुद्दे पर हमारी संगति यहीं समाप्त होती है।
अगली अभिव्यक्ति है बड़ी-बड़ी बातें करना और कुछ भी वास्तविक न करना। आओ हम पहले यह चर्चा करें कि यह किस प्रकार की समस्या है। ऐसे लोगों को ऊँचे-ऊँचे धर्म-सिद्धांत बोलने और बड़ी-बड़ी बातें करने में आनंद आता है। सभाओं में वे अक्सर अपनी आकांक्षाओं, संकल्पों, अपनी खुद की समझ और कार्य के लिए अपनी योजनाओं पर चर्चा करते हैं। लेकिन जब कुछ वास्तविक करने का समय आता है तब वे कोई ऊर्जा नहीं जुटा पाते हैं। ऐसे लोगों में किस प्रकार की समस्या होती है? क्या यह जन्मजात स्थितियों, मानवता या भ्रष्ट स्वभावों का मुद्दा है? (मुझे लगता है कि यह भ्रष्ट स्वभावों के तहत आता है।) क्या यह भ्रष्ट स्वभावों के तहत आता है? यहाँ दो समस्याएँ शामिल हैं, है ना? एक है मानवता में दोष—वे कुछ भी वास्तविक करने के इच्छुक नहीं होते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इसके लिए उन्हें चिंता करने, कष्ट सहने, कीमत चुकाने और ऊर्जा खपाने की जरूरत होगी। क्या यहाँ थोड़ा-सा आलसीपन का संकेत नहीं है? क्या आलसीपन मानवता का दोष है? (हाँ।) जो लोग इतने आलसी होते हैं, वे कुछ भी वास्तविक नहीं करते हैं, फिर भी वे बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। वे अब भी खुद को ऊँचे आसन पर बिठाना और दूसरे लोगों को ऊँचे धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देना पसंद करते हैं। क्या यह खराब स्वभाव को दर्शाता है? क्या इसमें भ्रष्ट स्वभाव के तत्व भी शामिल हैं? (हाँ।) यह किस प्रकार का भ्रष्ट स्वभाव है? (अहंकार।) यह एक अहंकारी भ्रष्ट स्वभाव है। और तो और, वे आलसी होते हैं, आराम पसंद करते हैं जबकि कार्य से नफरत करते हैं, वे चीजों को व्यावहारिक रूप से नहीं करते हैं और वे वास्तविक क्रियाकलाप में शामिल होने के अनिच्छुक होते हैं, फिर भी वे रोब जमाना, अपने रुतबे का हक जताना और दूसरों को उपदेश देना चाहते हैं—वे सिर्फ अपने होंठ फड़फड़ाने के इच्छुक होते हैं, लेकिन एक तिनका तक उठाने के इच्छुक नहीं होते। उनकी मानवता में कमियाँ काफी होती हैं और उनका भ्रष्ट स्वभाव बहुत स्पष्ट होता है। क्या ये दोनों बहुत जाहिर समस्याएँ नहीं हैं? (हाँ।) क्या ऐसे लोग बहुत सारे नहीं हैं? (हाँ।) कार्य पर चर्चा करते समय वे बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और रुकने का नाम ही नहीं लेते हैं, लेकिन जब कुछ वास्तविक करने की बात आती है तब वे एक कदम नहीं उठा सकते हैं। चलो हम इस बारे में बात न करें कि उनकी काबिलियत कैसी है—सिर्फ इस तथ्य के आधार पर कि वे खाली बातें ही करते हैं और कुछ भी वास्तविक नहीं करते हैं, उन्हें निकम्मे लोगों के रूप में निरूपित किया जा सकता है। वे कुछ भी वास्तविक नहीं करते हैं, फिर भी रोब दिखाना और रुतबे के फायदे लेना चाहते हैं—क्या वे विवेकहीनता की हद तक अहंकारी नहीं हैं? वे खाली बातें करते हैं, कुछ भी वास्तविक नहीं करते हैं और वे आलसी और अहंकारी दोनों हैं—वे निकम्मे लोग हैं, है ना? अगर उनसे कोई कार्रवाई करने और कुछ वास्तविक करने, कार्य को व्यवस्थित करने, उसकी योजना बनाने और उसे कार्यान्वित करने के लिए कहा जाता है तो वे ऐसा करने के अनिच्छुक होते हैं; वे अपने दिलों की गहराइयों में इसके प्रति प्रतिरोध महसूस करते हैं। ऐसे लोग बस कितने आलसी होते होंगे! ये लफंगे लोग हैं जो अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं। उन्हें बस गपशप करने में आनंद आता है, वे कुछ भी करना नहीं चाहते हैं, वे बस बेतरतीब ढंग से जीवन जीना, अच्छा खाना खाना और अच्छे कपड़े पहनना चाहते हैं और इसके बावजूद वे यह भी चाहते हैं कि दूसरे उनका बहुत सम्मान करें और उन्हें ऊँचे स्तर के व्यवहार से और रुतबे वाले लोगों को दिए जाने वाले व्यवहार से आनंद मिलता है। उनकी मानवता कैसी है? (खराब।) क्या तुम्हें ऐसे लोग घिनौने लगते हैं? (हाँ।) जब कुछ लोग ऐसे लोगों को देखते हैं जो वाक्पटु तो होते हैं लेकिन कुछ भी वास्तविक नहीं करते हैं, तब वे उनसे ईर्ष्या करते हैं। वे सोचते हैं, “वे लगातार बोल सकते हैं और वे जो भी कहते हैं वह सुगठित और सुव्यवस्थित होता है—इससे पता चलता है कि उनके पास सत्य वास्तविकता है।” सभी विवेकशील लोगों को यह पता चल सकता है कि अक्सर वे जो कुछ भी कहते हैं वह सब परमेश्वर के घर के धर्मोपदेशों और संगतियों से सीखा हुआ होता है, उनके अपने अनुभवों से प्राप्त किया हुआ नहीं होता है। इसलिए, वैसे तो सुनने में उनका उपदेश देना प्रभावशाली लगता है, लेकिन वे कोई भी समस्या बिल्कुल हल नहीं कर सकते हैं। समय के साथ लोग स्पष्ट रूप से यह देख सकते हैं कि ऐसे लोग शुरू से ही धोखेबाज थे। तुम जो भी प्रश्न पूछते हो, वे उसका जवाब नहीं दे सकते हैं और न ही वे कोई सिद्धांत या अभ्यास के मार्ग बता सकते हैं, फिर भी वे चाहते हैं कि तुम उनके बारे में ऊँची राय रखो। वे तुमसे अपने बारे में ऊँची राय कैसे रखवाते हैं? वे अपने प्रदर्शनों और बातों का उपयोग तुम्हारे दिल में जगह बनाने के लिए करते हैं जिससे तुम उनसे ईर्ष्या करते हो, उनकी सराहना करते हो और उनका सम्मान करते हो। क्या ऐसे लोग बेशर्म नहीं हैं? वे कोई वास्तविक कार्य नहीं करते हैं और न ही वे वास्तविक कार्य करने में सक्षम होते हैं, फिर भी वे चाहते हैं कि दूसरे लोग उनके बारे में ऊँची राय रखें और वे फिर भी अपनी बड़ी-बड़ी बातों से दूसरों की ऊर्जा और समय बरबाद करना चाहते हैं, लेकिन अंत में वे कतई कोई भी समस्या हल नहीं कर सकते हैं। जिन लोगों को परमेश्वर में विश्वास रखते हुए बस एक-दो वर्ष ही हुए हैं, वे अब भी उनके द्वारा गुमराह हो सकते हैं, लेकिन जिन लोगों को परमेश्वर में विश्वास रखते हुए बहुत सारे वर्ष हो चुके हैं और जो सत्य वास्तविकता को जरा-सा भी समझते हैं वे उनकी बड़ी-बड़ी बातें नहीं सुनना चाहते हैं। फिर भी अगर तुम सुनने से इनकार करते हो तो वे तुम्हारे बारे में नकारात्मक राय बनाते हैं और कहते हैं कि तुम सत्य से प्रेम नहीं करते हो। क्या ऐसे लोग बहुत परेशान करने वाले नहीं होते हैं? (हाँ।) उन्हें सत्य के किसी भी पहलू की सिर्फ आंशिक समझ होती है और जब वे थोड़े-से धर्म-सिद्धांत समझ लेते हैं तो वे उन्हें स्पष्ट रूप से नहीं समझा सकते हैं, फिर भी वे दूसरों को इन धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देना चाहते हैं और दूसरों से इन्हें स्वीकार करवाना चाहते हैं। अगर तुम सुनने से इनकार करते हो तो वे कहते हैं कि तुम सत्य से प्रेम नहीं करते हो और उनका सम्मान नहीं करते हो। लेकिन अगर तुम उनकी बात सुन ही लेते हो तो तुम्हें बेचैनी महसूस होती है और तुम शांत नहीं बैठ सकते। तुम शांत क्यों नहीं बैठ सकते? क्योंकि तुममें ऐसी बहुत सी समस्याएँ हैं जिन्हें हल करने की जरूरत है और ऐसा बहुत-सा कार्य है जिसे करने की जरूरत है और तुम्हारे पास उनकी बड़ी-बड़ी बातें सुनने का समय नहीं है। अगर कोई सच में उन लोगों की सराहना करता है जो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं तो वह किस तरह का व्यक्ति है? वह एक निठल्ला, बेवकूफ और ऐसा व्यक्ति है जिसके पास करने के लिए कोई बेहतर चीज नहीं है। जब कर्तव्य निभाने की बात आती है तब ऐसे लोगों में कोई समर्पण का भाव नहीं होता है और वे किसी भी प्रकार कोई बोझ नहीं उठाते हैं; वे जीवन में बस खानापूरी करना चाहते हैं, वे मुफ्तखोरी करते हैं और मरने की प्रतीक्षा करते हैं। वे हर रोज समय गुजारने के लिए कुछ गहन धर्म-सिद्धांत सुनते हैं, फिर भी वे सोचते हैं कि उन्होंने कुछ प्राप्त किया है और परमेश्वर में अपने विश्वास में प्रगति की है : “वे जिन सत्यों का उपदेश दे रहे हैं वे दिन-ब-दिन और ऊँचे होते जा रहे हैं—उनका उपदेश देना जल्द ही तीसरे स्वर्ग के स्तर तक पहुँच जाएगा! ये सभी स्वर्ग से प्राप्त रहस्य हैं!” वे बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लोगों द्वारा बोले गए ढेरों धर्म-सिद्धांत सुनते हैं, फिर भी वे यह नहीं जानते हैं कि अपना कर्तव्य निभाने में कैसे समर्पित रहना है या अपना कर्तव्य निभाने में किन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। तो क्या इन चीजों को सुनना उपयोगी है? (नहीं।) जब तुम लोगों का सामना बड़ी-बड़ी बातें करने और ऊँचे-ऊँचे धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देने वाले लोगों से हो तो तुम्हें क्या करना चाहिए? क्या तुम्हें ध्यान से उनका अनुसरण करना चाहिए या उन्हें अस्वीकार कर देना चाहिए? (उन्हें अस्वीकार कर देना चाहिए।) तुम्हें उन्हें कैसे अस्वीकार करना हैं? तुम्हें यह जानने की जरूरत है कि उन्हें कैसे अस्वीकार करना है और तुम उन्हें क्यों अस्वीकार कर रहे हो। अगर तुम्हें यह नहीं पता हो तो जब तुम उन्हें अस्वीकार करोगे तब हो सकता है कि तुम अब भी अपने दिल में यह सोचो, “क्या उन्हें अस्वीकार करने का मतलब यह है कि मुझे सत्य से प्रेम नहीं है?” अगर तुम्हारा यह विचार है तो यह परेशानी की बात है—यह साबित करता है कि तुममें कोई विवेकशीलता नहीं है और तुम यह नहीं समझते कि सत्य वास्तविकता क्या है। अगर तुम उन्हें धर्म-सिद्धांत बोलते हुए सुनते हो और अब भी यही सोचते हो कि वे सत्य पर संगति कर रहे हैं और यहाँ तक कि अपने दिल में उनका अनुमोदन भी करते हो तो तुम निरे बेवकूफ हो। अगर तुममें बड़ी-बड़ी बातें करने वाले ऐसे लोगों द्वारा बोले गए धर्म-सिद्धांतों के बारे में विवेकशीलता है तो तुम्हें उन्हें अस्वीकार कर देना चाहिए। इसका कारण यह है कि वे जो कुछ भी बोलते हैं वह सब कुछ धर्म-सिद्धांत और खोखले शब्द हैं—यह बेकार है। यह भूख मिटाने के लिए केक का चित्र बनाने या प्यास बुझाने के लिए आलूबुखारों को निहारने जैसा है—यह वास्तविक समस्याओं को बिल्कुल भी हल नहीं कर सकता है। वे बहुत-से धर्म-सिद्धांत बोलते हैं, लेकिन ये धर्म-सिद्धांत उन वास्तविक समस्याओं से मेल नहीं खाते हैं जिनका सामना लोग अपने कर्तव्य करते समय करते हैं और ये उन्हें बिल्कुल हल नहीं कर सकते हैं। उन्हें सुनना न सुनने से बिल्कुल भी भिन्न नहीं है। वे नहीं जानते कि सुसमाचार कार्य और कलीसियाई जीवन में उठने वाली समस्याओं को कैसे हल किया जाए; वे नहीं जानते कि कार्य व्यवस्थाओं को कैसे कार्यान्वित किया जाए या किस कार्य में ऐसी कमियाँ और दरारें हैं जिन्हें ठीक करने की जरूरत है या जिन पर अनुवर्ती कार्रवाई करने की जरूरत है; और वे नहीं जानते कि जब दूसरे लोग विकृत धारणाओं को उठाते हैं तो कैसे उनका समाधान या खंडन करना है। वे इसमें से कुछ भी नहीं जानते हैं तो क्या उनकी बड़ी-बड़ी बातें सुनना समय की बरबादी नहीं है? यही कारण है कि तुम्हें उन्हें अस्वीकार कर देना चाहिए। लिहाजा, इन बड़ी-बड़ी बातों को इसलिए अस्वीकार कर देना चाहिए क्योंकि ये लोग जो बोलते हैं वह सत्य नहीं होता, बल्कि धर्म-सिद्धांत होते हैं। धर्म-सिद्धांत क्या होते हैं? धर्म-सिद्धांत ऐसे शब्दों से बने होते हैं जो मानवीय धारणाओं और कल्पनाओं के अनुरूप होते हैं। ये लोग समस्या के सार पर ध्यान केंद्रित करने वाले सत्य सिद्धांतों पर संगति नहीं करते हैं। वैसे तो उनके शब्द सुनने में सुखद लगते हैं और स्पष्ट और तार्किक ढंग से व्यक्त किए जाते हैं, लेकिन वे समस्याओं को बिल्कुल हल नहीं कर सकते हैं। इसलिए ये शब्द धर्म-सिद्धांत हैं; चाहे वे कितने भी सही क्यों न लगें, वे सत्य सिद्धांत नहीं हैं। कुछ लोगों के शब्द उथले लग सकते हैं, लेकिन वे समस्या के मूल पर वार कर सकते हैं और उसका सार स्पष्ट रूप से समझा सकते हैं। भले ही उनके कुछ शब्द गालियों जैसे बुरे लगें, फिर भी वे ऐसे शब्द होते हैं जिन्हें लोग स्वीकार कर सकते हैं और वे वास्तविक समस्याओं को हल कर सकते हैं। निस्संदेह, ये शब्द सत्य सिद्धांतों के अनुरूप होते हैं। कुछ शब्द सुखद, चातुर्यपूर्ण, परिमार्जित और गहन लग सकते हैं, लेकिन वे वास्तविक समस्याओं को बिल्कुल हल नहीं कर सकते हैं। वे सत्य सिद्धांतों से रत्ती भर भी संबंधित नहीं होते हैं और न ही वे लोगों को कोई मार्ग या दिशा दिखा सकते हैं। ये सभी सत्याभासी धर्म-सिद्धांत हैं। इसलिए इन शब्दों को अस्वीकार कर देना चाहिए। ऐसे लोगों को अस्वीकार करने का कारण यह है कि उनकी बड़ी-बड़ी बातें वह समय बरबाद करती हैं जिसका उपयोग तुम्हें अपना कर्तव्य निभाने में करना चाहिए, वह समय बरबाद करती हैं जिसका उपयोग तुम्हें सत्य खोजने में करना चाहिए और ये तुम्हारी व्यक्तिगत ऊर्जा को बरबाद करती हैं—इसलिए, तुम्हें उन्हें अस्वीकार कर देना चाहिए। तुम्हें उन्हें कैसे अस्वीकार करना चाहिए? बस “अलविदा” कहकर तुम्हें उन्हें अस्वीकार कर देना है, है ना? या तुम कह सकते हो, “चुप हो जाओ, मुझे तुम्हारी हर बात समझ में आ रही है। तुम मेरे उस प्रश्न का उत्तर कब दोगे जो मैंने तुमसे पूछा था? अगर तुम उसका उत्तर नहीं दे सकते हो तो तुरंत यहाँ से चले जाओ और मेरा समय बरबाद करना बंद करो।” क्या उन्हें अस्वीकार करने का यह तरीका अच्छा है? (हाँ।) मुझे यह काफी अच्छा लगता है—वरना तुम उन्हें और कैसे अस्वीकार करोगे? उनकी बड़ी-बड़ी बातों, धर्म-सिद्धांतों और नारों को अस्वीकार करना बिल्कुल फरीसियों को अस्वीकार करने जैसा है। इस तरह के लोग कुछ भी वास्तविक नहीं कर सकते हैं। उनकी मानवता मानक स्तर की नहीं होती है, उनकी काबिलियत खराब होती है और वे वास्तविक कार्य करने में मूल रूप से अक्षम होते हैं। इसके बावजूद वे अब भी तुम्हें गुमराह करने का प्रयास करने के लिए ऊँचे-ऊँचे धर्म-सिद्धांतों का उपयोग करते हैं। अगर तुम उन्हें अस्वीकार नहीं करते हो तो तुम निरे बेवकूफ हो। ऐसे लोगों से सामना होने पर उन्हें अस्वीकार करना सही है। बस “अलविदा” कहो और चले जाओ—यह बहुत आसानी से हल होने वाली चीज है, है ना? ठीक इसी तरीके से उन लोगों से पेश आना चाहिए जो बड़ी-बड़ी बातें तो करते हैं लेकिन कोई वास्तविक चीज नहीं करते हैं। इस तरह के लोग उचित और गंभीर तरीके से चीजें करने वाले लोग नहीं हैं; ये लोग व्यावहारिक ढंग से चीजें करने वाले लोग नहीं हैं। वे जो कहते हैं उसमें विश्वसनीयता नहीं होती है, वह ऐसा कुछ नहीं होता है जो जुड़े जाने योग्य हो और वह ऐसा कुछ नहीं है जो ऐसे सुने जाने योग्य हो मानो वह कोई कारगर सलाह या कोई कारगर मार्ग हो। इसलिए जब उनकी बड़ी-बड़ी बातों की बात आती है तब बस उन्हें सीधे अस्वीकार कर दो—उनकी कही बातों को लिख लेने की कोई जरूरत नहीं है और यह सँजोने योग्य नहीं हैं। इसी के साथ बड़ी-बड़ी बातों के मुद्दे पर हमारी चर्चा यहीं समाप्त होती है।
आओ हम एक और अभिव्यक्ति के बारे में बात करें : राजनीति पर चर्चा करना पसंद करना। कुछ लोग अपने देश की राजनीतिक स्थिति या वैश्विक राजनीतिक स्थिति और साथ ही उच्च-स्तरीय राजनीतिक हस्तियों की नीतियों और बयानों, उनके शासन की कार्यसूची और राजनीतिक पंथ, विभिन्न नीतियों को कार्यान्वित करने के उनके तरीकों और साधनों वगैरह-वगैरह पर चर्चा करना पसंद करते हैं। संक्षेप में, वे अक्सर राजनीति से जुड़े विषयों पर चर्चा करते हैं; चाहे ये विषय प्राचीन राजनीति से संबंधित हों या आधुनिक राजनीति से या घरेलू राजनीति से संबंधित हों या अंतर्राष्ट्रीय राजनीति से, उन्हें समय-समय पर इन विषयों को उठाने में आनंद आता है। क्या राजनीति पर चर्चा करना पसंद करना जन्मजात स्थितियों, मानवता या भ्रष्ट स्वभावों के तहत आता है? तुम्हें नहीं पता, है ना? वह इसलिए क्योंकि यह विषय कुछ हद तक विशेष है। वे राजनीति पर चर्चा करना पसंद करते हैं और तुम लोगों की नजर में राजनीति कोई सकारात्मक चीज नहीं है। तुम सोचते हो : “अगर राजनीति पर चर्चा करना जन्मजात स्थितियों के भीतर कोई रुचि और शौक होता तो परमेश्वर लोगों को इस तरह की रुचि और शौक नहीं देता; अगर यह खराब मानवता का मुद्दा होता तो बिना कुछ खराब किए सिर्फ इस पर चर्चा करना खराब मानवता के समान नहीं होना चाहिए और यह भ्रष्ट स्वभाव के स्तर तक तो और भी कम पहुँच सकता है। तो इसे कहाँ वर्गीकृत किया जाना चाहिए?” अंत में तुम किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचते हो। क्या यही बात है? (हाँ।) तो क्या तुम लोगों का इस तरीके से सोचना सही है? तुम अंत में किसी निष्कर्ष पर क्यों नहीं पहुँचते हो? तुम कहाँ अटक रहे हो? तुम “राजनीति” शब्द पर अटक रहे हो, है ना? (हाँ।) अगर मैं ललित कलाओं, संगीत, नृत्य, डिजाइन या अर्थशास्त्र पर चर्चा करना पसंद करने की बात करूँ तो इसे कहाँ वर्गीकृत किया जाएगा? (इसे जन्मजात स्थितियों में रुचि और शौक के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा।) अगर मैं इतिहास पर चर्चा करना या विशिष्ट भोजन पर चर्चा करना पसंद करने का जिक्र करूँ तो उसे कहाँ वर्गीकृत किया जाना चाहिए? (जन्मजात स्थितियों में।) जब यह कहा जाता है कि किसी व्यक्ति को किसी चीज पर चर्चा करना पसंद है, किसी चीज का अनुसंधान करना पसंद है या वह किसी चीज में अच्छा है तब इसका मतलब है कि उसे वह क्षेत्र पसंद है और उसे इसमें रुचि होती है। इसलिए, इसे जन्मजात स्थितियों के भीतर रुचि और शौक के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। लेकिन क्योंकि इस मामले में ये लोग जिस विषय पर चर्चा करना पसंद करते हैं वह राजनीति है, इसलिए तुम इसे इस तरीके से वर्गीकृत करने का साहस नहीं करते हो। तुम इसे इस तरीके से वर्गीकृत करने का साहस क्यों नहीं करते हो? क्योंकि राजनीति बहुत ही संवेदनशील विषय है और राजनीति कोई विशेष रूप से सकारात्मक चीज नहीं है, है ना? (सही कहा।) वैसे तो राजनीति कोई विशेष रूप से सकारात्मक चीज नहीं है, लेकिन जैसा कि अभी जिक्र किया गया है राजनीति पर चर्चा करना पसंद करने में जो गतिविधि है, वह चर्चा ही है। इसलिए इसे जन्मजात स्थितियों के भीतर रुचि और शौक के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए। ऐसे व्यक्ति की जन्मजात रुचि और शौक एक सापेक्ष मात्रा तक राजनीति का अनुसरण करना और उस पर चर्चा करना पसंद करना है। लेकिन क्या वह राजनीति में भाग लेता है? हम अभी तक उस पर नहीं पहुँचे हैं; अभी के लिए हम अपना पूरा ध्यान सिर्फ चर्चा के कार्य तक ही सीमित रख रहे हैं, इसलिए इसे सिर्फ जन्मजात स्थितियों के भीतर रुचि और शौक के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। क्या अब तुम समझ रहे हो? (हाँ।) इसे इस तरीके से कहना वस्तुनिष्ठ है; यह एक तथ्य है, है ना? (हाँ।) उदाहरण के लिए, मान लो कि किसी को प्राचीन सम्राटों पर चर्चा करना पसंद है और वह अक्सर इस बारे में बात करता है कि कुछ सम्राट अपने मंत्रियों और आम जनता से किस तरह से पेश आते थे, कुछ शासक किस तरह से लगन से शासन करते थे और लोगों की परवाह करते थे और राष्ट्र के अनाज भंडार किस तरह से पर्याप्त थे और उनके शासनकाल के दौरान जनता का रहन-सहन किस स्तर तक पहुँच गया था। वे इस बारे में भी बात करते हैं कि कौन-से सम्राट अत्याचारी थे और उनके शासन में प्रजा किस तरह से बेसहारा थी, जबकि ये सम्राट खर्चीली दावतों और ऐयाशी में लिप्त रहते थे और अपने महलों में अत्यधिक ऐशो-आराम से रहते थे। फिर वे समकालीन राजनीतिक हस्तियों की समस्याओं पर चर्चा करते हैं, इस बारे में बात करते हैं कि कौन अच्छा काम कर रहा है और कौन नहीं, वगैरह। उन्हें बस इन चीजों पर चर्चा करना पसंद है। दूसरे शब्दों में, जन्मजात रूप से इस व्यक्ति की इस प्रकार के विषयों और मामलों में अपेक्षाकृत रुचि है। अपने दैनिक जीवन में उसके आराम और मनोरंजन करने का तरीका इन राजनीतिक मामलों पर चर्चा करना है, वह इसका उपयोग समय गुजारने के साधन के रूप में करता है—यह उसके जीवन का एक हिस्सा है। अगर उसे राजनीति पर सिर्फ चर्चा करना पसंद है तो यह सिर्फ एक रुचि और शौक है। क्या इसमें उसकी मानवता शामिल है? अगर तुम उसके राजनीति पर चर्चा करना पसंद करने को देखते हो तो तुम यह नहीं बता सकते कि उसका चरित्र कैसा है क्योंकि तुम यह नहीं देख सकते कि राजनीति के प्रति उसका रवैया और दृष्टिकोण क्या हैं। उसे बस ऐसे विषयों पर चर्चा करने में आनंद आता है और इन मामलों में उसकी रुचि है; इसमें उसके आचरण के सिद्धांत शामिल नहीं हैं। अगर किसी को राजनीति पर बस चर्चा करना पसंद है और वह अपने दैनिक जीवन में दूसरों से बातचीत करते समय और चीजों से निपटते समय इसे एक मनोरंजक विषय, बातचीत की सामग्री या बार-बार चर्चा का केंद्र मानता है तो यह एक रुचि और शौक है और इसमें उस व्यक्ति की मानवता शामिल नहीं है। ऐसी रुचि और शौक वाले लोग दूसरे शौक रखने वाले लोगों जैसे ही होते हैं—वे बराबर हैं। इस व्यक्ति को महत्वाकांक्षी, खराब मानवता वाला या नीच चरित्र वाला नहीं कहा जा सकता क्योंकि उसे राजनीति पर चर्चा करना पसंद है। वैसे तो परमेश्वर में विश्वास रखने वाले लोग राजनीति में भाग नहीं लेते हैं, लेकिन जब खुद राजनीति की बात आती है तब हर व्यक्ति को इसमें भाग लेने का अधिकार है। राजनीति कोई सकारात्मक चीज नहीं है, लेकिन इसे नकारात्मक भी नहीं कहा जा सकता है—यह बस एक ऐसी चीज है जो मनुष्य के सामाजिक विकास के क्रम में अनिवार्य रूप से मौजूद रहती है। इसलिए, सिर्फ राजनीति पर चर्चा करना पसंद करना इस बात को नहीं दर्शाता है कि व्यक्ति का चरित्र कैसा है। यह किसी ऐसे व्यक्ति जैसा है जिसे नृत्य करने में आनंद आता है—तुम यह नहीं कह सकते कि यह व्यक्ति पथभ्रष्ट है या वह उचित काम नहीं करता है। अगर किसी को इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद पसंद हैं तो तुम यह भी नहीं कह सकते कि यह व्यक्ति बड़ी-बड़ी चीजें करने में सक्षम है या यह सकारात्मक व्यक्ति है। क्या इस तरह की राय सही होगी? (नहीं।) तो इसका मूल्यांकन कैसे किया जाना चाहिए? यह इस बात पर निर्भर करता है कि तुम अपनी रुचियों और शौक के साथ क्या करते हो। अगर तुम कोई न्यायसंगत ध्येय में लगते हो तो तुम्हारी रुचियाँ और शौक फायदेमंद मूल्य की रचना कर सकते हैं। अगर तुम अपनी रुचियों और शौक का उपयोग नकारात्मक चीजें करने में लगाते हो, ऐसी चीजें जो लोगों को नुकसान पहुँचाती हैं और उनकी रुचियों को खराब करती हैं, तब भी यह नहीं कहा जा सकता कि तुम्हारी रुचियाँ और शौक नकारात्मक हैं—बल्कि इसका मतलब यह है कि तुम्हारी मानवता खराब है और तुम जिस मार्ग पर चल रहे हो वह गलत है। तुम अपनी रुचियों और शौक का उपयोग बुरी चीजें करने के लिए कर सकते हो, लेकिन तुम्हारी रुचियाँ, शौक, खूबियाँ और संबंधित पेशेवर कौशल, तकनीकी कौशल और ज्ञान अपने आप में नकारात्मक नहीं हैं। तुम्हारी रुचियाँ और शौक चाहे जो भी हों, वे तुम्हारे उपयोग के लिए हैं। अगर तुम सही मार्ग पर चलते हो तो तुम अपनी रुचियों और शौक के साथ जो करते हो वह न्यायसंगत है। अगर तुम सही मार्ग पर नहीं चलते हो तो तुम अपनी रुचियों और शौक का उपयोग जो करने में करते हो वह न्यायसंगत नहीं है, बल्कि बुराई है। उदाहरण के लिए, कंप्यूटर सिर्फ एक मशीन है—यह एक तकनीकी साधन है। तुम कंप्यूटर का उपयोग सभाओं, धर्मोपदेशों और सुसमाचार का प्रचार करने के लिए कर सकते हो, लेकिन साथ ही कई खराब लोग और बुरे लोग कंप्यूटर का उपयोग बुरी चीजें करने के लिए भी कर सकते हैं। इसलिए, जब कंप्यूटर का उपयोग किसी न्यायसंगत ध्येय में लगने के लिए किया जाता है तब तुम यह नहीं कह सकते कि कंप्यूटर खुद न्यायसंगत है; इसी तरह से जब कंप्यूटर का उपयोग बुरी चीजें करने के लिए किया जाता है तब तुम यह नहीं कह सकते कि कंप्यूटर खुद बुरा है। तुम समझ रहे हो? (हाँ।) इसी तरह से जो लोग राजनीति पर चर्चा करना पसंद करते हैं उनके लिए राजनीति पर चर्चा करने की यह अभिव्यक्ति एक रुचि और एक शौक है—इसमें उनके मानवता सार के मुद्दे शामिल नहीं हैं। इसके अतिरिक्त, जो लोग राजनीति पर चर्चा करना पसंद करते हैं वे राजनीतिक विषय पसंद करते हैं। वे हमेशा सही और गलत के मामलों पर चर्चा करना और ऐसे विषयों पर दूसरों से बहस करना पसंद करते हैं जो राजनीतिक दृष्टिकोणों से संबंधित हैं। कुछ लोगों की मशहूर लोगों और महान हस्तियों से संबंधित विषयों में विशेष रूप से रुचि होती है, जबकि कुछ लोगों की उन विषयों में विशेष रूप से रुचि होती है जो समाज के अंधकारमय पहलुओं को उजागर करते हैं। लेकिन जो भी हो, जो लोग राजनीति पर चर्चा करना पसंद करते हैं, उनके पास सत्य नहीं होता है और उनके दिलों में परमेश्वर के लिए कोई जगह नहीं होती है—यह पूरी तरह से निश्चित है। ठीक है, राजनीति पर चर्चा करना पसंद करने के मुद्दे पर हमारी चर्चा के लिए इतना ही काफी है।
राजनीति पर चर्चा करना कुछ लोगों की रुचि और शौक होता है। अब चलो हम इस चर्चा को एक कदम और आगे बढ़ाएँ और राजनीति में भाग लेना पसंद करने के बारे में बात करें। राजनीति में भाग लेना पसंद करना राजनीति पर चर्चा करना पसंद करने के समान नहीं है—इसमें क्रियाकलाप शामिल है। राजनीति में भाग लेना पसंद करना सिर्फ किसी तरह की भोजन-पश्चात बातचीत की सामग्री या मनोरंजन नहीं है और न ही यह सिर्फ रुचियों और शौक या राजनीति की परवाह करने के स्तर तक सीमित रहती है; बल्कि इसमें वह मार्ग शामिल है जिस पर व्यक्ति चलता है। तो फिर राजनीति में भाग लेना पसंद करने वाले लोग किस मार्ग पर चलते हैं? क्या इसमें उनकी मानवता शामिल होती है? (हाँ।) तो राजनीति में भाग लेना पसंद करने को किस रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए? यह तुम सभी के लिए एक मुश्किल प्रश्न है—तुम इसकी असलियत नहीं देख सकते हो। तो फिर चलो हम इसके बारे में संगति करें। जीवन के हर क्षेत्र में ऐसे लोग मौजूद हैं जो राजनीति पर चर्चा करना पसंद करते हैं। देखो, वैसे तो किसान समाज के सबसे निचले पायदान पर रहते हैं, लेकिन उनमें से कुछ राजनीति के उच्चतर स्तरों से संबंधित मामलों के बारे में बहुत जानते हैं और वे ऐसे निश्चित दृष्टिकोण व्यक्त कर सकते हैं जिनमें राजनीति शामिल होती है। जो लोग व्यापार और अर्थतंत्र में जुटे हैं, वे भी राजनीति पर चर्चा करते हैं और यहाँ तक कि कला और शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोग भी राजनीति पर चर्चा करते हैं। कहने का मतलब यह है कि हर प्रकार के क्षेत्र में ऐसे लोग मौजूद हैं जो राजनीति पर चर्चा करना पसंद करते हैं और राजनीतिक विषयों में उनकी रुचि है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि व्यक्ति किस क्षेत्र से जुड़ा है, अगर उसे राजनीति पर चर्चा करना पसंद है तो इसका पूरी तरह से यह कारण है कि उसकी राजनीति में रुचि है। इस रुचि का उसकी अंतर्निहित काबिलियत और उसके परिप्रेक्ष्य की ऊँचाई से एक विशेष संबंध है। वह राजनीतिक शक्ति के दायरे के भीतर विषयों पर पकड़ बना सकता है, इसलिए समय-समय पर वह अपने खुद के दृष्टिकोण व्यक्त करता है। उसकी अभिव्यक्तियाँ जन्मजात स्थितियों के भीतर रुचि और शौक के स्तर पर ही रहती हैं। लेकिन राजनीति में भाग लेने का मतलब विचार के स्तर पर इस तरह की रुचि और शौक से संतुष्ट होना नहीं है; बल्कि इसका मतलब है अपने मूल क्षेत्र को छोड़ देना और राजनीतिक कार्य में लग जाने, राजनीतिक मंच पर कदम रखने और राजनीतिक हस्तियों से व्यवहार करने का फैसला लेना। तो ऐसे लोगों के साथ क्या समस्या है? राजनीति में भाग लेना पसंद करने वाला इस तरह का व्यक्ति हो सकता है आमतौर पर राजनीति पर बहुत चर्चा न करे, लेकिन वह चाहे कोई भी करियर क्यों न चुने, जब तक वह ऐसा कोई कार्य करता है जो राजनीति से संबंधित नहीं है तब तक उसकी उसमें कोई रुचि नहीं होती है और उसे लगता है कि उसकी संभावनाएँ निराशाजनक हैं। लेकिन जब राजनीति में भाग लेने की बात आती है तब उसकी आँखें इच्छा से रोशन हो उठती हैं और उसकी रुचि पैदा हो जाती है। जब वह सुनता है कि कोई मेयर, गवर्नर, विधायक या राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ रहा है तब उसे अपने दिल में किसी चीज की हानि का एहसास होता है और वह खुद इसमें भाग लेने के तरीके सोचने में अपना दिमाग खपाने लगता है। वह किस तरह का व्यक्ति है? क्या वह ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसे सत्ता की बेहद इच्छा है? (हाँ।) तो इस तरह के व्यक्ति की मानवता के भीतर क्या अतिरिक्त चीज है? क्या वह पैसों के प्रति पूरी तरह से जुनूनी है या सत्ता के प्रति? (वह सत्ता के प्रति पूरी तरह से जुनूनी है।) वह सत्ता को सर्वोपरि देखता है, इसे अपने जीवन के रूप में देखता है, इसे अपने पूरे जीवन के लिए अनुसरण करने का लक्ष्य मानता है। तो वह वास्तव में किस तरह का व्यक्ति है? उसकी मानवता के भीतर क्या अतिरिक्त चीज है जो आम लोगों में नहीं होती है? (महत्वाकांक्षा और इच्छा।) उसमें क्या करने की महत्वाकांक्षा और इच्छा है? (सत्ता पर वर्चस्व रखना।) सत्ता पर वर्चस्व रखने से उसे सबसे सीधा फायदा क्या मिलता है? (रुतबा हासिल होता है और दूसरे लोग बहुत सम्मान करते हैं।) ये गौण हैं, महत्वपूर्ण फायदा नहीं हैं। (वे लोगों को नियंत्रित करना चाहते हैं।) यह करीब है। अगर किसी व्यक्ति को पद पर होना अच्छा लगता है, लेकिन वह जिस पद पर आसीन है वह सिर्फ एक खोखली पदवी है और उसके अधीन एक भी मातहत नहीं है तो क्या इसे सत्ता होना माना जा सकता है? (नहीं।) इसे सत्ता होना नहीं माना जा सकता। उसके पास कोई विशेष विशेषाधिकार नहीं है और वह पद पर होने के किसी भी फायदे का आनंद नहीं उठा सकता है। उसकी नजर में क्या ऐसे पद का कोई वास्तविक मूल्य है? (नहीं।) तो इस प्रकार के व्यक्ति में एक ऐसी चीज होती है जो दूसरों में नहीं होती—सत्ता के लिए अत्यधिक प्रबल महत्वाकांक्षा और इच्छा। चूँकि उसमें इस किस्म की महत्वाकांक्षा और इच्छा है, इसलिए वह जो लक्ष्य हासिल करना चाहता है वह सिर्फ दूसरों द्वारा बहुत सम्मान से देखा जाना, पूजा जाना या ईर्ष्या किया जाना जैसा सरल नहीं है, इसके बजाय वह पद पर होना, अधिकार रखना और दूसरों की अगुआई करना चाहता है। यही उसकी महत्वाकांक्षा और इच्छा होती है—अगर उसका कोई रुतबा न हो तो क्या वह अपना लक्ष्य हासिल कर सकता है? क्या कोई उसकी बात सुनेगा? बिल्कुल नहीं। इसीलिए वह रुतबा हासिल करने के लिए दृढ़ संकल्पित होता है। जैसे ही उसके पास रुतबा आ जाएगा, तब जब वह बोलेगा तो लोग उसकी बात सुनेंगे और जब वह दूसरों से कुछ करने की माँग करेगा तब ऐसे लोग होंगे जो उसकी आज्ञा मानेंगे और उसका अनुपालन करेंगे—तब उसकी महत्वाकांक्षा और इच्छा, जिसे वह हासिल करना चाहता है, वास्तविकता बन सकेगी। जो लोग राजनीति में भाग लेना पसंद करते हैं, उन्हें नेक और आकांक्षी के रूप में भले शब्दों में वर्णित तो किया जा सकता है, लेकिन सादे शब्दों में कहा जाए तो वे सिर्फ पद पर होने के प्रति जुनूनी होते हैं—उन्हें बस पद पर होना बहुत पसंद होता है। जब वे पद पर नहीं होते हैं तब वे अपनी नहीं चला सकते हैं और उनके पास अगुआई करने के लिए कुछ मातहत नहीं होते हैं और इसलिए वे हताश हो जाते हैं और उन्हें लगता है कि जीवन निराशाजनक है। लेकिन जैसे ही वे पद पर होते हैं तब जब वे बोलते हैं तब उनकी बात सुनने वाले लोग होते हैं, उनके अनुयायी होते हैं और नतीजतन उन्हें लगता है कि जीवन आनंददायक है। तो क्या उनकी मानवता में कोई समस्या है? (हाँ।) क्या इसे उनकी मानवता का दोष कहा जा सकता है? (नहीं।) यह निश्चित रूप से इतना सरल नहीं है। तो फिर यह किस तरह की समस्या है? (भ्रष्ट स्वभावों की।) क्या उनकी मानवता के लिहाज से इस तरह का व्यक्ति भरोसेमंद होता है? (नहीं।) तो क्या उसका चरित्र अच्छा है? (नहीं।) यह अच्छा क्यों नहीं है? (वह हमेशा लोगों को नियंत्रित करना चाहता है और हमेशा अपनी चलाना चाहता है।) इस तरह के व्यक्ति में रुतबे की विशेष रूप से प्रबल इच्छा होती है—वह अपनी चलाने के लिए हमेशा विभिन्न अवसर ढूँढ़ना चाहता है और हमेशा अगुआई की भूमिका में रहना और दूसरों को नियंत्रित करना चाहता है। ऐसे लोग गैर-भरोसेमंद होते हैं और उनका चरित्र भी अच्छा नहीं होता है। परमेश्वर के घर में इस किस्म के बहुत से लोग हैं। अगर परमेश्वर का घर उन्हें कार्य की किसी मद का प्रभारी बनाता है तो वे मानते हैं कि इसका मतलब है कि वे पद पर हैं और अगुआई की भूमिका में सेवा कर रहे हैं। क्या वे सत्य सिद्धांत खोजेंगे? क्या वे कार्य-व्यवस्थाओं को कार्यान्वित करेंगे? (नहीं।) अगर वे पर्यवेक्षक या अगुआ होने को पद पर होना मानते हैं तो वे निश्चित रूप से कार्य-व्यवस्थाओं को कार्यान्वित नहीं करेंगे और वे निश्चित रूप से वास्तविक कार्य नहीं करेंगे। वे क्या करेंगे? वे अपने खुद के उद्यम में लग जाएँगे, अपना आधिपत्य खड़ा करेंगे, अपना खुद का रुतबा मजबूत करेंगे और अपने से नीचे के लोगों को अपने विचार संप्रेषित करेंगे और लोगों को अपनी बात सुनाएँगे—जिससे कार्य-व्यवस्थाएँ, परमेश्वर के इरादे और सत्य निरर्थक हो जाएँगे। ऐसे लोगों का सार बिल्कुल यही होता है। जब उनके पास कोई रुतबा नहीं होता है तब वे अपनी पूरी ताकत से उसके पीछे भागते हैं और जैसे ही उन्हें रुतबा हासिल हो जाता है, उनके लिए इसका यह मतलब होता है कि उन्हें एक अवसर मिल गया है। क्या करने का अवसर? अपनी खुद की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने का और अपने रुतबे को हर संभव अधिकतम सीमा तक मजबूत करने का अवसर; वे ऐसे अवसर का उपयोग अपनी महत्वाकांक्षाओं को और पद पर होने की अपनी लत को पूरा करने के लिए करते हैं।
राजनीति में भाग लेना पसंद करना खराब चरित्र और भ्रष्ट स्वभाव दोनों का मामला है। यहाँ कितने भ्रष्ट स्वभाव शामिल हैं? (अहंकार और क्रूरता।) अहंकार, क्रूरता, सत्य से विमुखता और अड़ियलपन—ये सारे भ्रष्ट स्वभाव मौजूद हैं; हर एक मौजूद है। तो फिर यहाँ सबसे गंभीर भ्रष्ट स्वभाव कौन-सा है? वह क्रूरता है—जो विशिष्ट विशेषता सबसे स्पष्ट है वह है क्रूरता। जो लोग राजनीति में भाग लेना पसंद करते हैं, वे अगर दुनिया में निराश और असफल हैं, राजनीति में भाग लेना तो चाहते हैं लेकिन उन्हें अवसर नहीं मिल रहा है या राजनीतिक हलकों में घुसने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा है तो जब वे परमेश्वर के घर में आते हैं तब उनकी महत्वाकांक्षा मर नहीं जाती है—वे अब भी राजनीति में भाग लेना चाहते हैं। इसलिए वे विभिन्न स्तरों पर अगुआओं के चुनाव से इस तरह पेश आते हैं मानो यह सरकारी अधिकारियों का चुनाव हो। हर बार जब ऐसा कोई चुनाव होता है तब वे भाग लेने के लिए बेहद उतावले रहते हैं, हर जगह लोगों से उन्हें वोट देने की पैरवी करते हैं। जैसे ही वे अगुआ बन जाते हैं, वे इसे पद पर होने, अपने लिए रुतबा पकड़कर रखने, शक्ति हथियाने और वे जैसा चाहें वैसा करने के रूप में देखते हैं। वे जैसे भी चाहें वैसे कार्य करते हैं और परमेश्वर के घर द्वारा उन्हें सौंपे गए कार्य को और जो कर्तव्य उन्हें करना चाहिए उसे अनदेखा करते हैं, सिर्फ रुतबे के फायदों में लिप्त रहने की परवाह करते हैं। वे अगुआ का कर्तव्य निभाने को पद पर होना मानते हैं, वे वही करते हैं जो उन्हें पसंद हो और वे करना चाहते हों और ऐसे किसी भी तरीके से कार्य करते हैं जो उन्हें अपना खुद का आधिपत्य खड़ा करने, अपने खुद का रुतबा मजबूत करने, दूसरों को अपनी बात सुनाने और पद पर होने की अपनी लत को पूरी तरह से संतुष्ट करने में सक्षम करता है। वे परमेश्वर के घर के कार्य पर या कार्य-व्यवस्थाओं की अपेक्षाओं पर विचार नहीं करते हैं। इस तरह के लोग बहुत खतरनाक होते हैं—अगर उन्हें अभी तक मसीह-विरोधी के रूप में प्रकट न भी किया गया हो तो भी वे मसीह-विरोधी बनने की प्रक्रिया में हैं। क्या जो लोग राजनीति में भाग लेना पसंद करते हैं उनमें अच्छे लोग होते हैं? नहीं, इनमें अच्छे लोग नहीं होते हैं। जिन लोगों में सत्ता की प्रबल इच्छा होती है, उनके लिए सत्य से प्रेम करना संभव नहीं है। क्योंकि उनमें सत्ता के लिए अत्यधिक जोरदार इच्छा होती है, इसलिए उनका जमीर और विवेक उनकी सत्ता की इच्छा और उसके अनुसरण को दबा या रोक नहीं सकते हैं। अगर कोई व्यक्ति राजनीति में भाग लेना पसंद करता है या ऐसा करने के प्रति अत्यधिक जुनूनी है और उसमें ऐसा करने की जोरदार इच्छा है तो इसका मतलब है कि उसमें रुतबे और शक्ति की जोरदार महत्वाकांक्षा है। उसके इरादे और उद्देश्य और उसके स्व-आचरण और क्रियाकलापों का आधार जमीर और विवेक द्वारा निर्धारित होने के बजाय पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करते हैं कि वह सत्ता हासिल कर सकता है या नहीं और उसकी महत्वाकांक्षा पूरी हो सकती है या नहीं। यही कारण है कि ऐसे लोगों की मानवता भयावह होती है। सत्ता की अपनी इच्छा पूरी करने और सत्ता हासिल करने के लिए वे कुछ भी करने और किसी भी चीज का बलिदान देने में सक्षम होते हैं—यहाँ तक कि उन लोगों का भी जिनके वे सबसे करीब होते हैं और जिनसे वे सबसे ज्यादा प्रेम करते हैं। इस आधार पर देखा जाए तो क्या ऐसे लोगों में मानवता होती है? (नहीं।) उदाहरण के लिए, मान लो कि एक आदमी राजनीति में भाग लेना पसंद करता है और उसकी सत्ता की अत्यधिक जोरदार इच्छा है। जब उसके लिए राजनीति में भाग लेने और रुतबे और सत्ता, जिनकी वह आकांक्षा करता है, को हासिल करने का एक अवसर उत्पन्न होता है तब अगर उसे वह रुतबा, जिसका वह पीछा कर रहा है, हासिल करने के लिए अपनी प्रेमिका का बलिदान भी देना पड़े तो भी वह ऐसा करने से हिचकिचाएगा नहीं—उसका दिल बिल्कुल भी नर्म नहीं पड़ेगा। कुछ लोग रुतबा हासिल करने के लिए अपने माता-पिता तक का बलिदान देने से नहीं हिचकिचाएँगे—वे किसी का भी बलिदान देने में सक्षम हैं। सिर्फ एक चीज है जिसे वे कभी भी जाने नहीं देंगे और वह है रुतबा। दूसरे शब्दों में, वे किसी भी व्यक्ति, घटना या चीज का उपयोग रुतबे के लिए सौदेबाजी के सिक्कों और विनिमय की कीमत के रूप में कर सकते हैं। तो ऐसे लोगों के चरित्र को देखा जाए तो क्या उनमें वास्तव में जमीर और विवेक होता है? (नहीं।) यही कारण है कि इस तरह के लोग बहुत भयावह होते हैं। हो सकता है कि उनका जमीर और विवेक गायब हो चुके हों या हो सकता है कि शुरू से ही उनमें जमीर या विवेक रहा ही न हो—दोनों बातें संभव हैं। मैं क्यों कहता हूँ कि दोनों बातें संभव हैं? जब इन लोगों का कोई रुतबा नहीं होता है और जब राजनीतिक मामले शामिल नहीं होते हैं तब हो सकता है कि वे दूसरों के साथ मिलजुलकर रहें, हो सकता है कि वे लोगों की मदद करें, हो सकता है कि वे दूसरों का कभी फायदा न उठाएँ और हो सकता है कि वे दान दें और बहुत सहनशील हों। ऊपर से ऐसा लगता है कि उनमें मानवता है और उनका जमीर और विवेक सामान्य दिखते हैं। लेकिन तुम्हें नहीं पता कि वे अपनी आत्मा की गहराई में किस चीज से प्रेम करते हैं। जब तुम्हें पता चलता है कि अपनी आत्मा की गहराई में वे जिससे प्रेम करते हैं वह रुतबा और सत्ता है और तुम उनकी मानवता को फिर से देखते हो तब तुम्हारा नजरिया बदल जाता है और उनकी मानवता के बारे में तुम्हारी समझ और मूल्यांकन भी बदल जाता है। जब रुतबा और सत्ता शामिल नहीं होते हैं तब जब वे दूसरों से मेलजोल रखते हैं तब वे सामान्य ढंग से व्यवहार करते हैं और वे शालीन लोग लगते हैं। लेकिन जैसे ही उन्हें रुतबा और सत्ता हासिल हो जाती है, उनका व्यवहार अब पहले जैसा नहीं रहता है—तुम यह अब और नहीं देख सकते कि उनका जमीर या विवेक कहाँ है। सिर्फ तब जाकर तुम्हें एहसास होता है कि ऐसे लोग वाकई भयावह होते हैं। यह पता चलता है कि उन्होंने जो मानवता दिखाई, वह अस्थायी थी—वह बस एक विशेष परिवेश के और विशेष फायदों की लालसा के कारण ऐसे हालात में बेनकाब हुई जिनमें उनकी प्रिय सत्ता और रुतबा शामिल नहीं थे। लेकिन जैसे ही रुतबा और सत्ता शामिल हो जाते हैं, उनकी असली मानवता प्रकट हो जाती है। जब तुम उनकी असली मानवता देखते हो तब तुम उन्हें ऐसे लोगों के रूप में परिभाषित करते हो जो मानवता से रहित होते हैं। यानी उनके दिलों की गहराइयों में बसी मूलभूत चीज को देखने से पहले तुम्हें लगता है कि वे दूसरों के साथ यथोचित रूप से मिलजुलकर रह सकते हैं और वे मानवता से रहित नहीं हैं। लेकिन जब तुम उनकी आंतरिक दुनिया और उनके मानवता सार को सही मायने में समझ जाते हो और देखते हो कि उन्हें रुतबे और शक्ति से प्रेम है तब तुम्हें एहसास होता है कि ऐसे लोगों में कोई मानवता नहीं होती है—वे दोगले होते हैं। अविश्वासी इस तरह की अभिव्यक्ति को क्या कहते हैं? क्या इसे खंडित व्यक्तित्व नहीं कहा जाता है? (हाँ।) एक गैर-मानव मानव देह पहन लेता है—जब वह दूसरों से मेलजोल रखता है तब तुम यह नहीं देख सकते कि उसकी आत्मा की गहराई में क्या बसा है, इसलिए तुम सोचते हो कि वह एक सामान्य व्यक्ति है—शायद तुम यह भी मानते हो कि वह एक अच्छा व्यक्ति है। लेकिन जब तुम उसका दूसरा पहलू देखते हो तब तुम न सिर्फ यह सोचना बंद कर देते हो कि वह अच्छा व्यक्ति है बल्कि तुम्हें वह भयावह भी लगने लगता है। गैर-मानव होने का यही मतलब है। गैर-मानव आखिर क्या होते हैं? भले ही वे जो प्रदर्शित करते हैं वह जरा-सा मानव के समान हो, लेकिन यह वास्तविक नहीं होता है। क्योंकि उनके पास सत्य वास्तविकता नहीं होती है, इसलिए उनकी कभी-कभार की अच्छी अभिव्यक्तियाँ उनके सार को नहीं दर्शाती हैं। जब वे सही मायने में अपना मार्ग चुनते हैं तब वे जो मानवता प्रदर्शित करते हैं, वही उनका सार होता है। इसलिए, तुम्हें ऐसे लोगों के बाहरी रूप-रंग से गुमराह नहीं होना चाहिए—मुख्य चीज यह देखना है कि वे किस मार्ग पर चलते हैं और उनका सार क्या है। क्या अब मैंने इस मामले को स्पष्ट रूप से समझा दिया है? (हाँ।) तुम लोगों को क्या समझ आया है? अगर किसी व्यक्ति को राजनीति पर चर्चा करना अच्छा लगता है और यह सिर्फ विचार के स्तर तक ही रहता है और सिर्फ एक रुचि और शौक है तो यह कोई समस्या नहीं है। लेकिन अगर उसे राजनीति में भाग लेना अच्छा लगता है तो अब यह विचार का मुद्दा नहीं रह जाता है—इसमें उसके स्व-आचरण की और जिस मार्ग पर वह चलता है उसकी समस्या शामिल है। जैसे ही इसमें उसके आचरण करने का तरीका और वह मार्ग शामिल होता है जिस पर वह चलता है, इसमें उसका चरित्र शामिल हो जाता है। और जब इसमें उसका चरित्र शामिल होता है तब ज्यादातर मामलों में इसमें भ्रष्ट स्वभाव शामिल होते हैं। क्या यह ऐसा नहीं है? (हाँ।) चलो ठीक है, राजनीति में भाग लेना पसंद करने की अभिव्यक्ति पर हमारी चर्चा यहीं समाप्त होती है।
आओ हम एक और अभिव्यक्ति के बारे में बात करें, साहित्य पसंद करना। यह किस प्रकार की अभिव्यक्ति है? (एक जन्मजात स्थिति।) यानी ऐसे लोग स्वाभाविक रूप से साहित्य पसंद करते हैं। क्योंकि उन्हें साहित्य पसंद होता है, इसलिए जब साहित्य से संबंधित विषयों, किताबों और मामलों की बात आती है तब वे एक विशेष लगाव और जिज्ञासा अभिव्यक्त करते हैं या वे एक विशेष रवैया अभिव्यक्त करते हैं—यह जन्मजात स्थिति है। तो फिर तकनीक पसंद करने के बारे में क्या कहते हो? (यह एक जन्मजात स्थिति है।) यानी बाहरी दुनिया की चीजों की दखलंदाजी न होने या उनके बीच में न पड़ने पर लोग कुछ विशेष तरह की चीजों में बहुत रुचि रखते हैं, वे उस प्रकार की किताबें पढ़ना पसंद करते हैं और वे उस प्रकार के विषयों पर ध्यान देना और चर्चा करना भी पसंद करते हैं; साथ ही उनकी आकांक्षा उस प्रकार की चीजों से संबंधित किसी पेशे या क्षेत्र में शामिल होने की भी होती है। यह जन्मजात है—इसके लिए यह जरूरत नहीं होती कि दूसरे लोग बीच में पड़ें और न ही इसे सिखाने की जरूरत होती है और यकीनन इसके लिए यह जरूरत नहीं होती कि उनके जीवनकाल के दौरान उन्हें दूसरे लोग जानबूझकर उन्हें प्रभावित करें या मतारोपण करें। वे जन्म से ही कुछ चीजों को पसंद करते हैं। तकनीक पसंद करना जन्मजात स्थिति है तो पौधों और जानवरों को पसंद करने के बारे में क्या कहते हो? (वह भी जन्मजात स्थिति है।) पौधों और जानवरों को पसंद करना—पेड़ों, कीड़ों और पक्षियों की परवाह करना; विशेष रूप से छोटे जानवरों के साथ घुलना-मिलना पसंद करना, उनके साथ करीबी संपर्क रखना और उनके प्रति विशेष रूप से प्रेमपूर्ण और सहनशील होना—एक जन्मजात स्थिति है। देखो, जन्मजात स्थितियों के भीतर शामिल ये चीजें बहुत सामान्य हैं, है ना? (हाँ।) इनमें अहंकार और दुष्टता जैसी भ्रष्ट स्वभावों वाली नकारात्मक चीजें शामिल नहीं हैं। फिर ये चीजें जैसे कि विमानन पसंद करना, इतिहास पसंद करना, खगोल विज्ञान और भूगोल पसंद करना, पोषण विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान पसंद करना, कानून पसंद करना, खेती पसंद करना—ये किस प्रकार की अभिव्यक्तियाँ हैं? (जन्मजात स्थितियाँ।) कुछ लोग खेती पसंद करते हैं; वे विभिन्न पौधों की कलम लगाने, उनमें सुधार करने और उनकी उपज पर शोध करना पसंद करते हैं, वे पौधों पर जलवायु और तापमान के प्रभावों पर शोध करना पसंद करते हैं, वे सब्जियाँ, फसलें, पेड़ और फूल लगाना पसंद करते हैं। रोजाना उनके हाथ मिट्टी से सने रहते हैं और मेहनत के कारण उनमें छाले पड़ जाते हैं। इन लोगों को डॉक्टर, वकील या अधिकारी बनना पसंद नहीं आएगा—वे बस खेती करना और पौधों को सँभालना पसंद करते हैं और इस तरह से जीकर वे बहुत सहज महसूस करते हैं। क्या लोगों को जो पसंद है, उनकी जो रुचियाँ और शौक हैं उसका उनकी मानवता से कोई संबंध है? (नहीं।) क्या यह उनकी मानवता को प्रभावित करता है? (नहीं।) मूल रूप से, यह उसे प्रभावित नहीं करता है। किसानों को बहुत नेक नहीं कहा जा सकता; उनमें भी भ्रष्ट स्वभाव होते हैं। इसी तरह, वे उच्च-स्तरीय बुद्धिजीवी, जैसे कि वे लोग जो प्रौद्योगिकी, साहित्य, चिकित्सा या कानून जैसे क्षेत्रों में शामिल हैं, उनमें किसानों से ज्यादा मानवता नहीं होती है। इतना ज्ञान प्राप्त करने, इतनी सारी किताबें पढ़ने और इतने लंबे समय तक शिक्षित होने के बाद अंत में उन्हें परमेश्वर की बिल्कुल भी समझ नहीं होती है—उन्होंने बस किताबों से जरा-सा ज्यादा सीखा है और थोड़ा-सा ज्यादा ज्ञान और अंतर्दृष्टि प्राप्त की है। लेकिन जब यह बात आती है कि उन्हें कैसे आचरण करना चाहिए, किस तरह के जीवन मार्ग का अनुसरण करना चाहिए, उन्हें परमेश्वर में कैसे विश्वास रखना चाहिए और उसकी आराधना कैसे करनी चाहिए और जीवन के तमाम तरह के मामलों में स्व-आचरण के सिद्धांतों के अनुरूप होने के लिए किस तरह से कार्य करना चाहिए—तो उन्हें इनमें से किसी भी चीज के बारे में कुछ भी पता नहीं होता है। विभिन्न क्षेत्रों में रुचि और शौक रखने वाले लोगों की समान विशेषता यह होती है कि वे जो भी पसंद करते हैं उसे करने को तैयार रहते हैं और वे उस क्षेत्र के कार्य में शामिल होने को तैयार रहते हैं और फिर वे खुद को उस क्षेत्र के लिए समर्पित कर देते हैं। वे खुद को चाहे किसी भी क्षेत्र के लिए समर्पित क्यों न कर दें, जब तक वे इस समाज के भीतर हैं तब तक उन्हें शैतान द्वारा अनुकूलित और भ्रष्ट किया गया है। किसी भी व्यक्ति की मानवता सिर्फ इसलिए नेक नहीं बन जाती है कि उसकी रुचियाँ और शौक या वे जिस क्षेत्र में शामिल हैं वह दूसरों से ज्यादा नेक या सम्मानजनक है। इसी प्रकार, कोई भी व्यक्ति सिर्फ इसलिए दूसरों से ज्यादा अधम या भ्रष्ट नहीं बन जाता क्योंकि वह जिस पेशे में है वह निचले दर्जे का है, नीचा है या दूसरों द्वारा नीची नजर से देखा जाता है। इसके विपरीत, किसी व्यक्ति की रुचियाँ और शौक चाहे जो भी हों, वह चाहे किसी भी शक्ति या गुण का उपयोग करके किसी भी क्षेत्र में जुटा हो, अंत में उसके पास जो विचार और दृष्टिकोण होते हैं वे सत्य के अनुरूप नहीं होते हैं। सभी लोगों का सत्य के प्रति और परमेश्वर के प्रति समान रवैया होता है और वे जो प्रकट करते हैं वह सब भ्रष्ट स्वभाव होता है। लोगों का साझापन यह है कि वे भ्रष्ट स्वभावों को अपने जीवन के रूप में जीते हैं। इसलिए, तुम्हारी रुचियाँ और शौक चाहे कुछ भी हों और तुम चाहे किसी भी पेशे में लगे हो, इसका मतलब यह नहीं है कि तुम्हारी मानवता इससे प्रभावित होगी और न ही इसका मतलब यह है कि तुम्हारी मानवता किसी हद तक उन्नत या नष्ट हो जाएगी। इन तथ्यों से यह देखा जा सकता है कि परमेश्वर लोगों को जो जन्मजात स्थितियाँ देता है वे उनके स्व-आचरण और क्रियाकलापों की कसौटियों को प्रभावित नहीं करती हैं या उनके क्रियाकलापों के मार्ग और दिशा को नहीं बदलती हैं। ज्यादा-से-ज्यादा ये रुचियाँ और शौक सिर्फ ऐसे साधन या एक प्रकार की जन्मजात पूँजी हैं जिन पर वे जीवित रहने के लिए निर्भर करते हैं ताकि वे जिस क्षेत्र में लगे हैं, उसके जरिये वे आमदनी कमा सकें और इस प्रकार अपनी आजीविका बनाए रख सकें। लेकिन अपनी आजीविका बनाए रखने की प्रक्रिया में विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के समूहों के बीच लोग जिन विभिन्न विचारों और दृष्टिकोणों को स्वीकार करते हैं, वे समान ही होते हैं। इसलिए, अंततः कोई व्यक्ति चाहे किसी भी क्षेत्र में हो, वह समाज के किसी भी कोने में हो या वह लोगों के किसी भी समूह या किसी भी जाति से संबंधित हो, वह जो भ्रष्टता प्राप्त करता है वह समान ही होती है। तुम सिर्फ इसलिए दूसरों से ज्यादा नेक या कम गहराई में भ्रष्ट नहीं हो जाते कि तुम जरा-सा ज्यादा ऊँचे स्तर की नौकरी या पेशे में लगे हो और न ही तुम सिर्फ इसलिए दूसरों से ज्यादा गहराई में भ्रष्ट हो जाते हो कि तुम जिस क्षेत्र में लगे हो वह निम्न श्रेणी का है। संक्षेप में, तुम्हारी जन्मजात रुचियाँ और शौक चाहे जो भी हों, अंत में तुम इस समाज में और लोगों के बीच शैतान द्वारा अनिवार्य रूप से और प्रबल रूप से भ्रष्ट कर दिए जाते हो।
अब आओ हम एक और अभिव्यक्ति के बारे में बात करें। कुछ लोग वित्तीय और लेखा-जोखा रखने का कार्य पसंद करते हैं; वे संख्याओं से निपटना पसंद करते हैं और अपना पूरा जीवन वित्तीय कार्य में जुटकर बिता देते हैं। वे हर रोज लेखा-जोखा रखते हैं, खातों का निपटान करते हैं, भुगतान और धन की प्राप्तियों को सँभालते हैं—उनका दिमाग सारा समय आँकड़ों से भरा रहता है, फिर भी यह उन्हें कभी थकाऊ नहीं लगता है। वित्तीय और लेखा-जोखा रखने का कार्य पसंद करना—यह किस पहलू के तहत आता है? (जन्मजात स्थितियों के।) यह एक ऐसी खूबी है जो परमेश्वर लोगों को देता है। चूँकि तुम इसमें अच्छे हो, इसलिए तुम स्वाभाविक रूप से यह पेशा स्वीकार करते हो और फिर तुम अपने जीवन भर के लिए एक आजीविका सुरक्षित कर लेते हो—इसी तरह से तुम अपना भरण-पोषण करते हो। यह परमेश्वर द्वारा तुम्हारे लिए स्वर्ग से मन्ना या बटेर नीचे भेजने के समान है ताकि तुम्हारे पास खाने के लिए कोई चीज हो। यह रुचि और शौक आसमान से गिरते सुनहरे हंस की तरह है जो तुम्हारे हाथों में उतरता है, तुम्हें यह रुचि और शौक रखने में सक्षम करता है। फिर तुम स्वाभाविक रूप से अपनी रुचि और शौक से संबंधित पेशे में जुट जाते हो और इसे अपनी आजीविका बनाकर अब तक खुद को बनाए रखे हुए हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम इसे अच्छी तरह से करते हो या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने वर्षों से इसमें शामिल हो, अगर यह कोई ऐसी चीज है जिसके साथ तुम पैदा हुए तो यह वही है जिसे परमेश्वर ने तुम्हारे लिए निर्धारित किया है—यह एक जन्मजात स्थिति है। संक्षेप में, यह सब कुछ परमेश्वर से आता है—यहाँ लोगों के लिए शेखी बघारने के वास्ते कुछ भी नहीं है। क्या यह सही नहीं है? (हाँ।)
व्यापार करना पसंद करना, व्यापार करने में कुशल होना—यह किस पहलू के तहत आता है? (जन्मजात स्थितियों के।) व्यापार करने में कुशल होने का मतलब है अपना व्यवसाय ज्यादातर लोगों से बेहतर ढंग से चलाना। हो सकता है कि दूसरे लोग दो-तीन महीने व्यवसाय चलाएँ और फिर उनका दिवाला निकल जाए, यहाँ तक कि वे अपनी शुरुआती पूँजी भी गँवा दें, लेकिन वे दो-तीन वर्ष अपना व्यवसाय चलाते हैं और उत्तरोत्तर बेहतर करते जाते हैं। धीरे-धीरे उनका जीवन खुशहाल होता जाता है—उनका परिवार बेहतर खाता-पहनता है, उनका छोटा घर बड़े घर में बदल जाता है, उनकी छोटी कार बड़ी कार में बदल जाती है और उनका जीवन बेहतर होता जाता है; वे दौलतमंद व्यवसायी बन जाते हैं। व्यवसाय करने में कुशल होना—क्या यह जन्मजात स्थिति है? (हाँ।) व्यवसाय करने में कुशल होना, यह जन्मजात स्थिति उनकी खूबी है। उन्होंने व्यवसाय करने के तरीके का कभी विशेष रूप से अध्ययन नहीं किया और न ही वे अपने माता-पिता से प्रभावित हुए, फिर भी वे एक छोटा व्यवसाय चलाने और पैसे कमाने में आसानी से सफल हो जाते हैं। तुम उनसे पूछते हो, “क्या तुम्हें व्यापार करना मुश्किल लगता है?” वे कहते हैं, “बिल्कुल नहीं। मैं बस अपने दिमाग का उपयोग करता हूँ और इस बारे में सोचता हूँ कि चीजों को ऐसे किस तरीके से किया जाए जो उपयुक्त हो और पैसा कमा सके और फिर मैं आगे बढ़ता हूँ और उसी तरीके से चीजें करता हूँ—और अंत में पैसा मेरा होता है।” तुम कहते हो, “व्यापार करना तुम्हें बहुत सरल और आसान लगता है। मैं ऐसा क्यों नहीं कर सकता?” क्यों? क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हें वह खूबी नहीं दी है, इसलिए तुममें वह हुनर बस है ही नहीं। इसलिए जिनके पास कोई खूबी है उन्हें घमंड नहीं करना चाहिए और जिनके पास वह खूबी नहीं है उन्हें जलन नहीं होनी चाहिए। परमेश्वर जो देता है उसे कोई छीन नहीं सकता—अगर तुम उसे न भी चाहो तो भी तुम उसे मना नहीं कर सकते। परमेश्वर ने बस तुम्हें इसमें कुशल बना दिया है और इस खूबी के जरिये उसने तुम्हें आजीविका का साधन या अपना जीवन कायम रखने के लिए एक व्यवसाय प्रदान किया है। यह परमेश्वर का अनुग्रह है। दूसरे लोग सीखते हैं, उन्हें सिखाया जाता है और वे अभ्यास करते हैं, फिर भी वे चाहे कैसे भी प्रयास क्यों न करें, अच्छे नतीजे हासिल नहीं कर सकते हैं। लेकिन तुम इसे बिना सीखे ही कर सकते हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कैसे सोचते हैं, उनका दिमाग तुम्हारे दिमाग जैसा तेजी से काम नहीं करता है और वे तुम्हारे जितना अच्छी तरह से काम नहीं कर सकते हैं। तो तुम्हारी यह खूबी कहाँ से आती है? क्या यह जन्मजात नहीं है? और जो चीज जन्मजात होती है क्या वह परमेश्वर प्रदत्त नहीं होती हैं? तुम हमेशा वही कहते हो जो तुम्हें अच्छा लगता है, जिसमें तुम कुशल हो—लेकिन क्या यह ऐसा कुछ है जो तुमने माँगा था? कुछ लोग कहते हैं कि उन्हें यह विरासत में अपने माता-पिता से मिला है। तो फिर तुम्हें कुछ और विरासत में क्यों नहीं मिला? यह खूबी अपनी अगली पीढ़ी को देने का कोई तरीका ढूँढ़ने का प्रयास करो—क्या तुम ऐसा कर सकते हो? क्या इस मामले में तुम्हारा फैसला चलता है? (नहीं।) निश्चित रूप से नहीं। तुम्हारे पास जो खूबी है वह परमेश्वर ने दी है—दूसरे तुमसे चाहे कितना भी क्यों न जलें, वे इसे हटा नहीं सकते हैं और न ही छीन सकते हैं और अगर तुम इसे न भी चाहो तो भी परमेश्वर तुम्हें यह खूबी देता है। चूँकि परमेश्वर ने तुम पर अनुग्रह किया है, इसलिए तुम्हें यह उससे स्वीकार करना चाहिए। अभिमानी मत बनो और शेखी मत बघारो। अभिमान करना और शेखी बघारना मानव अज्ञानता की अभिव्यक्तियाँ हैं।
तो तुम्हें उस खूबी से कैसे सही से पेश आना चाहिए जो तुम्हें परमेश्वर ने दी है? अगर परमेश्वर के घर को इस क्षेत्र में कर्तव्य निभाने के लिए तुम्हारी जरूरत पड़ती है तो तुम्हें अपनी खूबी का उपयोग अपने कर्तव्य में, कलीसिया के कार्य में करना चाहिए। इसे अपने पास रोककर मत रखो—इसे उपयोग में लाओ और ऐसा चरम सीमा तक करो। इस तरीके से परमेश्वर ने तुम्हें जो खूबी दी है, वह व्यर्थ में नहीं दी गई होगी; तुमने परमेश्वर से जिस अनुग्रह और विशेष व्यवहार का आनंद लिया है उसका बदला परमेश्वर को चुका दिया जाएगा। ऐसा करने से तुम जमीर वाले व्यक्ति बन जाते हो—तुम बस अपने लिए लाभ नहीं खोज रहे हो बल्कि परमेश्वर का बदला चुका रहे हो। यही सही ढंग से कार्य करना है। भले ही तुम यह सोचते हो कि “मेरे पास यह खूबी, यह रुचि और शौक है और मेरे लिए यह बाएँ हाथ का काम है” तो अगर तुम इसे अपना कर्तव्य मानते हो तो तुम सिर्फ अपनी खूबी, रुचि और शौक पर निर्भर नहीं रह सकते। तुम्हें यह परमेश्वर के बताए सिद्धांतों और परमेश्वर के घर की जरूरतों के अनुसार करना चाहिए और फिर इसे अपनी खूबी के साथ जोड़ना चाहिए। इस तरीके से तुम्हारा कर्तव्य सही ढंग से पूरा होगा और तुमने अपनी वफादारी अर्पित कर दी होगी। यह ठीक वैसा ही है जैसे परमेश्वर ने अब्राहम को एक पुत्र प्रदान किया था—जब परमेश्वर ने उसे वह प्रदान किया था तब अब्राहम बहुत आनंदित हुआ था और जब परमेश्वर ने उसे वापस लेना चाहा था तो अब्राहम को उसे खुशी से और पूरी तरह से परमेश्वर को अर्पित करना पड़ा था। वह खुद को रोक नहीं सका था या उसने शर्तें तय करने का प्रयास नहीं किया था और उससे भी बढ़कर, वह परमेश्वर के बारे में शिकायत नहीं कर सका था या उसका अपमान नहीं कर सका था—उसे अपना पुत्र पूरे दिल से और नेकनीयती से अर्पित करना पड़ा था। जब परमेश्वर तुम पर अनुग्रह करता है तो तुम बहुत खुश और संतुष्ट होते हो, यह महसूस करते हो कि तुमने एक लाभ प्राप्त किया है और कि परमेश्वर तुम्हारे प्रति दयालुता दिखाता है। परमेश्वर के इतने अधिक अनुग्रह का आनंद लेने के बाद जब परमेश्वर तुमसे कुछ अर्पित करने के लिए कहता है तब तुम्हारा रवैया क्या होता है? क्या तुम इसे त्यागना सह सकते हो? क्या तुम इसे परमेश्वर को अर्पित कर सकते हो और इसे बिना किसी शंका के परमेश्वर को लौटा सकते हो? परमेश्वर ने तुम्हें जो दिया है अगर तुम वह परमेश्वर को बिना शर्त, परमेश्वर अपेक्षित सिद्धांतों के अनुसार, बिना किसी शिकायत के, बिना शंका के और उसे अपने लिए रखे बिना लौटा सकते हो, बल्कि उसे परमेश्वर को अर्पित कर सकते हो तो तुम एक सृजित प्राणी के रूप में मानक स्तर के हो; तुमने जो कर्तव्य किया है वह भी मानक स्तर का है और परमेश्वर संतुष्ट हो जाएगा। परमेश्वर की तुमसे माँगें ऊँची नहीं हैं क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हें जो दिया है वह तुम जो अर्पित कर सकते हो उससे बहुत गुना ज्यादा है। तुम्हें जीवन देने के अलावा परमेश्वर ने तुम्हें वह पूँजी और स्थितियाँ भी दी हैं जिन पर तुम जीवित रहने के लिए निर्भर रहते हो। क्योंकि तुम्हारे पास यह खूबी, रुचि और शौक है, इसलिए तुमने कितना लाभ प्राप्त किया है? तुमने परमेश्वर के कितने अनुग्रह का आनंद लिया है? अब तक तुम परमेश्वर का कितना बदला चुका चुके हो? अगर तुमने सिर्फ अभी परमेश्वर का बदला चुकाना शुरू किया है तो तुम अत्यंत धीमे हो। अगर तुमने अतीत में अच्छा नहीं किया है तो अब से तुम्हें बिना किसी शंका के परमेश्वर को अर्पित करना चाहिए; अपने पास बिना कुछ भी रोककर रखे अपनी खूबी, पेशेवर कौशल और अपने कर्तव्य में तुमने जिन विभिन्न पेशेवर सिद्धांतों में महारत हासिल की है उनका उपयोग करो क्योंकि तुम जो अर्पित करते हो वह मूल रूप से परमेश्वर का था—यह तुम्हें परमेश्वर ने प्रदान किया था। जब तुम ये चीजें अर्पित करते हो और उनका उपयोग अपने कर्तव्य में करते हो, तब एक बात तो यह है कि परमेश्वर इसे स्वीकार करेगा और दूसरी बात यह है कि तुम सत्य हासिल करोगे, जीवन हासिल करोगे और परमेश्वर की स्वीकृति हासिल करोगे—तुम्हें प्रचंड लाभ होंगे और तुम कतई कोई नुकसान नहीं सहोगे। साथ ही, परमेश्वर ने तुमसे तुम्हारी रुचि, शौक और खूबी का आनंद लेने का तुम्हारा अधिकार नहीं छीना है। चूँकि परमेश्वर ने तुम्हें यह रुचि और शौक प्रदान किया है, इसलिए वह इन्हें कभी नहीं छीनेगा। तुम चाहे कितना भी अर्पित क्यों न कर दो, ये फिर भी तुम्हारे पास ही रहेंगे—परमेश्वर यह सुनिश्चित करता है कि ये तुम्हारे भीतर अंतहीन रूप से मौजूद रहें; ये तुम्हारे अस्तित्व का एक भाग हैं। अगर तुम परमेश्वर को अर्पित नहीं करते हो तो सिर्फ यही कहा जा सकता है कि तुममें कोई जमीर नहीं है, कि तुम एक सृजित प्राणी के रूप में मानक स्तर के नहीं हो और कि तुममें परमेश्वर के प्रति कोई नेकनीयती नहीं है। अगर तुममें नेकनीयती जरूर है तो तुमने परमेश्वर से जो प्राप्त किया है और जो तुम्हारे पास है उसका बदला तुम्हें परमेश्वर को चुकाना चाहिए। तुम्हारा यह रवैया होना चाहिए। परमेश्वर ने तुम्हें जितना भी प्रदान किया है, तुम जितना भी समझते हो और तुम जितना भी करने में सक्षम हो, उसे फिर तुम्हें बिना किसी शंका के परमेश्वर को अर्पित कर देना चाहिए। क्या तुम्हें लगता है कि परमेश्वर तुमसे इसे व्यर्थ में अर्पित करवाएगा? अब्राहम को देखो—जब परमेश्वर ने उससे इसहाक माँगा था तब उसने इसहाक को वेदी पर चढ़ा दिया था। लेकिन अब्राहम की नेकनीयती देखने के बाद क्या परमेश्वर ने सचमुच इसहाक को ले लिया था? परमेश्वर ने उसे नहीं लिया था—परमेश्वर ने इसहाक को उसे लौटा दिया था और पास ही एक मेमना तैयार कर दिया था। अब्राहम को न सिर्फ परमेश्वर को इसहाक लौटाने की जरूरत नहीं पड़ी, बल्कि उसे एक पहले से तैयार मेमना भी मिला था। अंत में परमेश्वर ने उसे जो आशीष दिया था वह उसकी कल्पना से अनगिनत गुना बढ़कर था। यकीनन यह कोई ऐसी चीज नहीं थी जिसकी अब्राहम कल्पना कर सकता था और न ही यह कोई ऐसी चीज थी जो उसने माँगी थी। लेकिन परमेश्वर लोगों से पक्षपातपूर्ण ढंग से पेश नहीं आता है; वह बस इसी तरीके से लोगों को आशीष देता है—परमेश्वर यही इच्छा करता है। यहाँ तक कि जब तुमने अभी तक परमेश्वर को कोई बदला नहीं चुकाया है, फिर भी उसने पहले ही तुम्हें बहुत कुछ प्रदान कर दिया है। तो अगर तुम सच में परमेश्वर का बदला चुकाते हो तो क्या तुम्हें लगता है कि वह तुम्हें कम चीजें प्रदान करेगा? बिल्कुल नहीं—परमेश्वर तुम्हें जो आशीष देता है वह उस सबसे बहुत बढ़कर होगा जिसकी तुम कभी कल्पना कर सकते हो। तो मुझे बताओ, परमेश्वर ने तुम्हें जो खूबियाँ दी हैं क्या उन सबको अर्पित करना और अपने कर्तव्य में उनका उपयोग करना आसान है? मान लो कि तुम सोचते हो : “ये खूबियाँ, रुचियाँ और शौक जो मेरे पास स्वाभाविक रूप से हैं, कुछ ऐसी चीजें हैं जिनके साथ मैं पैदा हुआ, मुझे ये मेरे माता-पिता से विरासत में मिली हैं। ये मेरे अच्छे गुणसूत्रों और अनुकूल पृष्ठभूमि की बदौलत हैं। ये परमेश्वर द्वारा प्रदान की गई हैं या नहीं, मुझे नहीं पता। खैर, मेरी सिर्फ खुशकिस्मती है—यह मेरी अपनी तकदीर है। जहाँ तक यह बात है कि मैं इन्हें परमेश्वर को लौटाऊँगा या नहीं, यह मैं बाद में तय करूँगा। अभी ऐसा करने की मेरी कोई योजना नहीं है।” मुझे बताओ, क्या इसका मतलब यह होगा कि तुममें जमीर है? (नहीं।) अगर परमेश्वर ने तुमसे तुम्हारी वे रुचियाँ, शौक, खूबियाँ और दूसरी चीजें नहीं भी छीनी होतीं जो उसने तुम्हें प्रदान की हैं तो भी तुम्हें परमेश्वर का आशीष नहीं मिलता। परमेश्वर की नजर में तुम एक सृजित प्राणी के रूप में मानक स्तर के नहीं होगे—कम-से-कम परमेश्वर इस तरह के लोगों को पसंद नहीं करता है। परमेश्वर लोगों को कुछ खास रुचियाँ, शौक और खूबियाँ प्रदान करता है और उनके लिए उसकी विशिष्ट अपेक्षाएँ भी होती हैं। जहाँ तक यह सवाल है कि लोग इन रुचियों, शौक और खूबियों से कैसे पेश आएँ तो उनके पास ऐसे सिद्धांत भी होने चाहिए जो सत्य के अनुरूप हों। एक बात तो यह है कि इन्हें अपनी पूँजी के रूप में मत लेना; इसके अतिरिक्त, अगर परमेश्वर के घर का कार्य तुमसे तुम्हारी रुचियों, शौक और खूबियों से संबंधित कर्तव्य निभाने की अपेक्षा करता है तो तुम्हें इस कर्तव्य को अपने व्यक्तिगत दायित्व के रूप में स्वीकार करने के लिए कर्तव्यबद्ध महसूस करना चाहिए। तुम्हें पूरी तरह से और बिना शंका के वह अर्पित कर देना चाहिए जो परमेश्वर ने तुम्हें प्रदान किया है ताकि परमेश्वर अपने प्रति एक सृजित प्राणी की नेकनीयती और समर्पण का आनंद ले सके। क्या यह एक गरिमापूर्ण और गौरवशाली बात नहीं है? (हाँ।) अगर तुम परमेश्वर को वे गुण और खूबियाँ अर्पित नहीं कर सकते हो जो उसने तुम्हें प्रदान की हैं तो तुम परमेश्वर के कर्जदार हो—यह एक शर्मनाक चीज है। जब परमेश्वर ने तुम्हें ये गुण और खूबियाँ प्रदान की थीं तब तुम बहुत खुश हुए थे, लेकिन जब परमेश्वर तुमसे इन्हें उसे अर्पित करने के लिए कहता है तब तुम चिढ़ जाते हो, तुम नहीं चाहते कि परमेश्वर इनका उपयोग करे और तुम चाहते हो कि उन्हें सिर्फ तुम्हारे लिए उपयोग किया जाए। क्या यह कोई विवेक दर्शाता है? वे तुम्हारी निजी वस्तुएँ नहीं हैं—वे परमेश्वर द्वारा प्रदान की गई हैं। चूँकि वे परमेश्वर द्वारा प्रदान की गई हैं, इसलिए जब उसे इनकी जरूरत होती है तब तुम्हें उन्हें अर्पित कर देना चाहिए। इन्हें अर्पित करने में समर्थ होना दर्शाता है कि तुममें परमेश्वर के प्रति समर्पण और नेकनीयती है। अगर तुम उन्हें अर्पित नहीं करना चाहते हो या ऐसा अनिच्छा और हिचकिचाहट से करते हो तो यह साबित करता है कि तुममें परमेश्वर के प्रति न तो समर्पण है और न ही नेकनीयती है। सिर्फ यही कहा जा सकता है कि तुम्हारी मानवता और चरित्र में कोई समस्या है।
ठीक है, हमारी आज की संगति यहीं समाप्त होती है। अलविदा!
23 दिसंबर 2023