सत्य का अनुसरण कैसे करें (13)

पिछली बार हमने जिस विषय पर संगति की थी वह इससे संबंधित था कि लोगों का भेद कैसे पहचानें और उन्हें कैसे देखें। यह कहा जा सकता है कि इस तरह का विषय लोगों के लिए रुचिकर होता है लेकिन, क्योंकि यह विषय कुछ हद तक विशिष्ट है और लोगों की संभावनाओं और नियतियों के महत्वपूर्ण मुद्दे से संबंधित है, इसलिए यह श्रोताओं में कुछ ऐसी भावनाएँ जगाता है जो सत्य के दूसरे पहलुओं द्वारा उत्पन्न भावनाओं से भिन्न होती हैं। कुछ लोगों के लिए ये भावनाएँ विशेष रूप से सुखद नहीं होतीं। यह विषय सुनने के बाद कुछ लोग गंभीर आंतरिक उथल-पुथल का अनुभव कर सकते हैं और सुन्न लोग भी कुछ थोड़े-से आंतरिक उथल-पुथल का अनुभव कर सकते हैं। है ना? (हाँ।) लोगों की प्रतिक्रियाएँ चाहे जो भी हों, बहरहाल, जब इन विषयों पर संगति हो चुकी होती है उसके बाद परमेश्वर के चुने हुए लोगों को लोगों का भेद पहचानने और विभिन्न मामलों की असलियत जानने में कुछ सहायता मिलती है और वे कुछ अंतर्दृष्टि और भेद पहचानने की क्षमता प्राप्त करने में समर्थ होते हैं। है ना? (हाँ।) पिछली बार हमने पशुओं से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों की कुछ अभिव्यक्तियों और विशेषताओं के बारे में संगति की थी। तो इस किस्म के लोगों की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? (पिछली बार, हमने संगति की थी कि पशुओं से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों में चार विशेषताएँ होती हैं : पहली, उनमें विकृत समझ होती है; दूसरी, वे विशेष रूप से सुन्न होते हैं; तीसरी, वे विशेष रूप से भ्रमित होते हैं; और चौथी, वे विशेष रूप से बेवकूफ होते हैं।) ये चार लक्षण पशुओं से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों की मूलभूत विशेषताएँ हैं। तो क्या तुम सभी ने इसका सारांश कर लिया है कि इस किस्म के लोगों की मूलभूत अभिव्यक्तियाँ वास्तव में क्या हैं? दूसरे शब्दों में, उनके बाहरी रूप—उनकी वाणी, आचरण और उनकी मानवता की विभिन्न अभिव्यक्तियों—को देखा जाए तो उनमें ऐसी कौन-सी अभिव्यक्तियाँ हैं जो इन चार विशेषताओं से संबंधित हैं? उदाहरण के लिए, सत्य से पेश आने के उनके तरीके की और उनकी मानवता के जमीर और विवेक की क्या विशेषताएँ हैं? यकीनन ये लक्षण मूल रूप से विकृत समझ, सुन्नता, भ्रमित होना और बेवकूफी की चार विशेषताओं में शामिल किए जाते हैं, है ना? (हाँ।) अब वास्तविक जीवन में तुम जिन अभिव्यक्तियों को देख सकते हो और जिनका सामना कर सकते हो, उनमें से कुछ अभिव्यक्तियों के आधार पर इन चार विशेषताओं को और विस्तार से समझाओ। तुम लोग दूसरी किन अभिव्यक्तियों के बारे में जानते हो? उदाहरण के लिए, पशुओं से पुनर्जन्म लिए हुए लोग बहुत सुन्न होते हैं। अगर तुम सिर्फ एक प्रतीकात्मक उदाहरण देकर उनकी समस्या की तरफ ध्यान दिलाते हो तो भले ही तुम उन्हें इस समस्या के बारे में कई बार बताओ, वे फिर भी नहीं समझेंगे। इसलिए, उन्हें यह एहसास दिलाने के लिए कि यह उनके बारे में है तुम्हें स्पष्ट रूप से कहना पड़ेगा, “मैं तुम्हारे बारे में बात कर रहा हूँ,”। नहीं तो वे मान लेंगे कि यह किसी और की समस्या के बारे में है, यह उनसे संबंधित नहीं है और वे सोचेंगे कि वे बिल्कुल ठीक कर रहे हैं। क्या यह सुन्नता नहीं है? (हाँ।) उनसे जरा-सी प्रतिक्रिया करवाने के लिए भी तुम्हें इसे ठीक उनकी आँखों के सामने रखना होगा। तो क्या वे सत्य समझ सकते हैं? (नहीं।) वे सत्य क्यों नहीं समझ सकते? (क्योंकि वे प्रतिक्रिया करने में सुस्त होते हैं और परमेश्वर के वचनों का अर्थ नहीं समझ सकते। जब दूसरे लोग उनकी समस्याओं पर ध्यान दिलाते हैं तब वे सिर्फ एक धर्म-सिद्धांत या विनियम पर ही पकड़ बना पाते हैं; वे इसे किसी सकारात्मक परिप्रेक्ष्य से नहीं समझ सकते हैं और इस प्रकार उनके लिए सकारात्मक प्रवेश पाना असंभव है।) यह समझने की क्षमता से रहित होना है। सुन्नता के लिहाज से, जब कोई किसी तरह की अवस्था पर उनका ध्यान दिलाता है तब वे बस यह एहसास कर ही नहीं सकते कि इसका उनसे क्या लेना-देना है, उनके पास वाकई इस तरह की अवस्था है या नहीं और वाकई खुद उन्हें उस तरह की समस्या है या नहीं—वे इन चीजों का एहसास नहीं कर सकते हैं और न ही यह समझ सकते हैं कि दूसरा व्यक्ति क्या कह रहा है। भले ही तुम स्पष्ट रूप से बता दो कि उन्होंने क्या चीज की, उन्होंने कौन-से शब्द कहे या किस दिन उन्होंने कौन-सी अभिव्यक्ति प्रदर्शित की और वे जानते हैं कि तुम उनके बारे में बात कर रहे हो, लेकिन फिर भी वे जिस पर पकड़ बनाते हैं वह बस एक मामला, एक कथन या एक वाक्य होता है और वे उसे अस्पष्ट, सतही ढंग से याद कर लेते हैं। उसे याद कर लेने के बाद वे बस एक विनियम से चिपके रहते हैं : वे शब्द मत कहो और वे चीजें मत करो; ये चीजें करो, और उस तरीके से कार्य करो। वे जीवन भर इस विनियम से चिपके रह सकते हैं जिसके चलते वे किसी की भी संगति स्वीकारने से इनकार कर देते हैं और यहाँ तक कि जंगली घोड़े भी उन्हें खींचकर दूर नहीं ले जा सकते। जैसे-जैसे समय, भौगोलिक परिवेश, लोगों, घटनाओं और चीजों वगैरह में बदलावों के कारण स्थिति विकसित होती है, तुम उन्हें बताते हो कि जिस तरीके से वे पहले कार्य करते थे, वह अब और कारगर नहीं है और उन्हें अपने पेश आने के तरीके या रणनीति को समायोजित करने की जरूरत है—हालाँकि सिद्धांत वास्तव में नहीं बदला है—लेकिन वे इसे समझ नहीं सकते हैं। वे कहते हैं, “मैं इतने वर्षों से इसी तरीके से अभ्यास कर रहा हूँ और मुझे यह ठीक लगता है। बहुत वर्षों पहले अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने जिस बारे में संगति की थी मैं उसी के आधार पर अभ्यास कर रहा हूँ। मैं अपने अभ्यास का तरीका क्यों बदलूँ?” उनके पास एक आधार भी है, लेकिन दरअसल वे वर्षों से इसे जाने बिना या खुद इसका एहसास किए बिना ही एक विनियम का पालन किए जा रहे हैं।

विकृत समझ होने की विशेषता के लिहाज से, पशुओं से पुनर्जन्म लिए हुए ज्यादातर लोग विकृत समझ की अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं। उनके सोचने का ढंग सामान्य लोगों के सोचने के ढंग से भिन्न होता है। उनके विचार बहुत ही सनकी, अजीब और कभी-कभी तो चौंका देने वाले ढंग से अप्रत्याशित भी होते हैं—तुम कल्पना ही नहीं कर सकते कि वे ऐसा क्यों सोचते हैं और तुमने कभी सोचा भी न होगा कि इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति मुद्दों पर इतने अनोखे ढंग से विचार करेगा। उनके विचारों से तुम हक्के-बक्के रह सकते हो। वह इसलिए क्योंकि सामान्य सोच वाले लोग आमतौर पर मुद्दों पर सामान्य सोचने के ढंग के अनुसार विचार करते हैं, जबकि पशुओं से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों के सोचने का ढंग बहुत ही निराला होता है। वे अक्सर कुछ अनोखे और अजीबोगरीब कथन व्यक्त करते हैं और जब कोई सामान्य सोच वाला व्यक्ति उन्हें सुनता है तब वह चौंक पड़ता है। अगर तुम किसी मुद्दे पर विचार करने के लिए उनके सोचने के तरीके का पालन करने का प्रयास करो तो तुम पाओगे कि यह बहुत ही अजीब है और गतिरोध की स्थिति में आ जाता है। क्योंकि उनके सोचने का तरीका ऐसा होता है, इसलिए वास्तविक जीवन में—चाहे वे अपना कर्तव्य कर रहे हों, दूसरों से मेलजोल रख रहे हों या कुछ विशेष हालातों, लोगों, घटनाओं और चीजों का सामना कर रहे हों—उनके विचार हमेशा बहुत ही अजीब होते हैं और वे ज्यादातर लोगों के साथ मिलजुलकर नहीं रह सकते हैं। वे मानव जगत में रहने वाले प्राणी नहीं लगते हैं, बल्कि ऐसा लगता है जैसे वे किसी दूसरी दुनिया में रह रहे हों। तुम यह कभी नहीं समझ सकते कि वे जिस तरीके से सोचते हैं उसका क्या कारण है या वे ऐसे विचार क्यों पेश करते हैं। वे जिस तरीके से मुद्दों पर विचार करते हैं, वह अक्सर सामान्य मानवता की सोच के दायरे को पार कर जाता है और सामान्य सोच के उचित मार्ग से भटक जाता है। अंतिम नतीजा यह होता है कि सभी लोगों को मुद्दों पर विचार करने का उनका ढंग, रुख और सिद्धांत बहुत अजीब लगते हैं। अगर ऐसा व्यक्ति उस समय मौजूद हो जब सभी लोग किसी मुद्दे पर विचार कर रहे हों या संगति कर रहे हों और वहाँ ज्यादातर लोगों में भेद पहचानने की क्षमता की कमी हो, उनके पास अपनी राय नहीं हो या वे सत्य सिद्धांतों को नहीं समझते हों तो अक्सर होता यह है कि उस व्यक्ति के किसी एक विकृत विचार और दृष्टिकोण के कारण उनकी विचार शृंखलाएँ पूरी तरह से थम जाएँगी या सामान्य चर्चा में व्यवधान पड़ेगा और वह बाधित हो जाएगी। और अंतिम नतीजा क्या होगा? इस तरह से काफी बहस और विचार-विमर्श करने के बाद लोगों को पता चलता है कि उस व्यक्ति द्वारा पेश किया गया नजरिया सही मार्ग से भटक गया है, वह न तो वस्तुनिष्ठ है और न ही व्यावहारिक और इसके अतिरिक्त यह बहुत ही सनकी भी है और मुद्दों पर विचार करने का उसका ढंग भी बेहद अजीब है। जब सामान्य लोग गपशप करते हैं और बात करते हैं तब बातचीत और जीवंत हो उठती है, सभी लोग संबंधित मुद्दों पर और स्पष्ट हो जाते हैं और वे जितनी ज्यादा गपशप करते हैं, विषय उतना ही आगे बढ़ता जाता है। लेकिन अगर यह व्यक्ति एक शब्द भी बीच में बोल देता है तो बातचीत विषय से हट जाती है। दूसरे लोग अवाक रह जाते हैं, उन्हें लगता है कि इस व्यक्ति के शब्द बहुत ही अजीब हैं और वे उनका उत्तर नहीं दे पाते हैं। इस प्रकार चर्चा का विषय बाधित हो जाता है। वैसे तो इस प्रकार के व्यक्ति के विचार और नजरिए “अनोखे” होते हैं, फिर भी वे सामान्य सोच वाले लोगों द्वारा पेश किए गए नजरियों से लगातार भिन्न होते हैं। उनके विचार और नजरिये वे नहीं होते हैं जो सामान्य मानवता के होने चाहिए और वे सामान्य मानवता की सोच के दायरे में नहीं आते हैं, इसलिए वे जो चीजें कहते हैं वे दूसरों को अजीब या यहाँ तक कि अकल्पनीय भी लगती हैं और उनके समाधानों और मार्गों से लोगों को कोई मदद नहीं मिलती है और ऊपर से उनमें गड़बड़ी करने, विघ्न-बाधा डालने, नष्ट करने और तोड़फोड़ करने की प्रकृति होती है। अगर वे चुप रहते हैं और सभी की विचार शृंखलाएँ कुछ हद तक स्पष्ट रहती हैं तो यह ठीक है, लेकिन जैसे ही वे बीच में टोक देते हैं और अपनी राय बताते हैं या कोई सुझाव देते हैं, तो सभी लोग इसे सुनकर अस्त-व्यस्त हो जाते हैं, इससे चर्चा विषय से भटक जाती है और अच्छे नतीजे हासिल करना मुश्किल हो जाता है। लेकिन सचमुच अच्छी काबिलियत वाला व्यक्ति मुद्दे के मूल को सटीकता से पहचान सकता है और वह उसके महत्वपूर्ण बिंदु पर पकड़ बना सकता है और समस्या को हल करने के लिए सही मार्ग बता सकता है। कम-से-कम वह कुछ सार्थक और मूल्यवान सुझाव तो दे ही सकता है जो दूसरों की विचार शृंखलाओं पर बने होते हैं। अगर वह कोई सुझाव पेश करता है और सभी को वह उपयुक्त लगता है और वे उसे स्वीकारने को तैयार हैं तो फिर इसका मतलब है कि इस अच्छी काबिलियत वाले व्यक्ति द्वारा पेश किया गया सुझाव महत्वपूर्ण बिंदु पर जा लगा है, क्योंकि यह व्यक्ति चीजों की असलियत जानने में समर्थ है। अगर वह कुछ नहीं बोलता है तो हो सकता है कि सभी लोग किसी भी निष्कर्ष पर पहुँचे बिना तीन दिनों तक चर्चा करते रहें। देखो, इन दोनों प्रकार के लोगों के ही अपने-अपने अनोखे विचार होते हैं जो दूसरे लोगों से भिन्न होते हैं, लेकिन अच्छी काबिलियत वाले व्यक्ति द्वारा पेश किए गए नजरिए दूसरों को किसी मुद्दे के सार की असलियत जानने में मदद कर सकते हैं और जब लोग खो जाते हैं तब उन्हें सही दिशा और अभ्यास का मार्ग ढूँढ़ने में सहायता कर सकते हैं। विकृत समझ वाला व्यक्ति भिन्न होता है। उसके नजरिए और सोचने का विकृत ढंग अक्सर उस समय ध्वस्त करने और बाधा डालने वाले प्रभाव डालते हैं जब लोग मामलों पर चर्चा कर रहे होते हैं या सामान्य बातचीत कर रहे होते हैं। इसलिए, अगर पशु से पुनर्जन्म लिया हुआ विकृत समझ वाला व्यक्ति किसी भी कलीसिया में या कार्य के किसी भी पहलू में शामिल है तो वह विघ्न-बाधाएँ और गड़बड़ियाँ उत्पन्न कर सकता है और हर कोई उससे पूरी तरह से तंग आ जाएगा और मन में सोचेगा, “बस जल्दी करो और उसे बाहर निकाल दो—वह बहुत ही ज्यादा परेशान करने वाला व्यक्ति है! वह हर रोज बेतुकी बकवास करता है और फिर भी खुद को बहुत विद्वान समझता है, जबकि वास्तव में वह जो कहता है वे सब भ्रांतियाँ होती हैं।” शुरू में हो सकता है कि कुछ लोग उसे पूजें, लेकिन समय के साथ वे उसकी असलियत जान जाएँगे और कहेंगे, “इस व्यक्ति में कोई गहन अंतर्दृष्टि नहीं है। वह दिन भर दिखावटी ढंग से बुद्धिमान व्यक्ति होने का बस दिखावा कर रहा है। दरअसल वह जो नजरिए और विचार पेश करता है, वे सरासर बेतुके होते हैं और उनका उन मुद्दों से कोई लेना-देना ही नहीं होता है जिन्हें सँभाला जाना चाहिए।” उन्हें यह व्यक्ति चिढ़ पैदा करने वाला लगने लगेगा और वे उससे विकर्षित होते चले जाएँगे। इसलिए, अगर इस प्रकार का व्यक्ति किसी बहुत ही तकनीकी या पेशेवर कार्य के लिए जिम्मेदार है या अपना कर्तव्य करते हुए कोई महत्वपूर्ण कार्य स्वीकारता है तो वह जल्द ही दूसरों में चिढ़ उकसाएगा क्योंकि वह जो नजरिए और माँगें पेश करता है वे हमेशा लोगों को अविश्वसनीय लगती हैं और कार्य करने के उचित तरीके के बारे में निश्चित नहीं होने देतीं। अगर वह सिर्फ एक साधारण अनुयायी है, सिर्फ निर्देशों और आदेशों का पालन कर रहा है तो वह जो चीजें करेगा उनमें कुछ विचलन बार-बार दिखाई देंगे। अगुआओं, कार्यकर्ताओं और उसके आस-पास के लोगों को लगातार उस पर अनुवर्ती कार्रवाई करनी होगी और उसका पर्यवेक्षण करना होगा। जैसे ही वे उससे अपनी नजरें हटाएँगे, वह गलतियाँ करेगा और दूसरों को उसकी त्रुटियाँ ठीक करने में, उनका उपाय करने में और उसकी गड़बड़ियाँ साफ करने में हमेशा उसकी मदद करनी पड़ेगी। अंत में जब सब देखेंगे कि इस प्रकार का व्यक्ति मदद से परे है तब वे कहेंगे, “वह हमेशा यहाँ विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न करता रहता है और किसी को भी शांति नहीं मिल पाती है। क्या उसे बाहर नहीं निकाला जा सकता? वह जहाँ भी जाना चाहता है उसे जाने दो!” सबकी यही प्रतिक्रिया होगी। शुरू में वे उसके साथ धैर्य रखेंगे, सोचेंगे, “हम सब भाई-बहन हैं, हममें से किसी का भी आध्यात्मिक कद बड़ा नहीं है और सत्य की हमारी समझ उथली है—आओ, एक-दूसरे को सहारा दें और मदद करें।” लेकिन लंबे समय तक उसके संपर्क में रहने के दौरान वे उसकी असलियत जान लेंगे। यह पता चलता है कि उसका मुद्दा छोटा आध्यात्मिक कद होने का मुद्दा नहीं है—उसकी काबिलियत और समझ में समस्या है। ऐसा नहीं है कि उसकी समझ उथली है या उसकी सोच बचकानी है; बल्कि उसकी समझ विकृत है। चीजों को देखने का उसका तरीका और उसके विचार और नजरिए सामान्य सोच के दायरे के बाहर हैं और उसकी राय अक्सर बाकी सभी से भिन्न होती हैं। दूसरे लोग जो कहते हैं वह उन्हें स्वीकारने से इनकार कर देता है, भले ही वह सही ही हो और वह किसी भी तरह का स्पष्टीकरण नहीं सुनता। एक बार जब वह अपने खुद के विचार पर डट जाता है तो फिर जंगली घोड़े भी उसे उससे पीछे नहीं खींच सकते हैं। कहने का मतलब है कि वह अच्छे-बुरे में भेद नहीं कर सकता। जिन चीजों को वह अपने विचारों और नजरिए में अच्छा मानता है, वे सामान्य मानवता की सोच वाले लोगों के लिए और कुछ नहीं बल्कि विकृत चीजें होती हैं—ऐसी चीजें जिन्हें खुलेआम पेश नहीं किया जा सकता। उसके नजरिए सिर्फ बचकाने या नीच और बेकार ही नहीं होते; वे ऐसे विचार या नजरिए होते ही नहीं हैं जो सामान्य मानवता की सोच से उत्पन्न होते हों। इसलिए इस प्रकार का व्यक्ति ज्यादातर लोगों के साथ मिलजुलकर नहीं रह सकता। ऐसा किसी भ्रष्ट स्वभाव या जीवनयापन की आदतों में अंतर या भाषा-संबंधी बाधाओं के कारण नहीं होता है और यह निश्चित रूप से उसके द्वारा कुछ बुरे कर्म करने या विचित्र व्यवहार में शामिल होने के कारण नहीं होता है। यह मुख्य रूप से उन विशेषताओं के कारण होता है जो उसकी मानवता को प्रदर्शित करती है—विकृत समझ, सुन्नता, भ्रमित होना और बेवकूफी—जिससे उसके लिए ज्यादातर लोगों के साथ मिलजुलकर रहना असंभव हो जाता है। यकीनन, बुरे लोग और मसीह-विरोधी भी ज्यादातर लोगों के साथ मिलजुलकर नहीं रह सकते हैं, लेकिन वैसे तो उनमें भी यही लक्षण होता है, फिर भी दूसरों के साथ मिलजुलकर रहने में उनकी असमर्थता का सार या परिघटना पशुओं से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों से भिन्न होती है। बुरे लोग और मसीह-विरोधी दूसरों के साथ इसलिए मिलजुलकर नहीं रह सकते क्योंकि वे सार में दानव होते हैं, जबकि पशुओं से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों में सामान्य मानवता की सोच, बुद्धिमत्ता और साथ ही सामान्य मानवता के जमीर और विवेक की पूरी तरह से कमी होती है, इसलिए सामान्य लोगों के लिए उनसे गपशप करना बहुत मुश्किल होता है—वे सिर्फ मामूली, घरेलू मामलों के बारे में ही बात कर सकते हैं जिनमें सिद्धांत शामिल नहीं होते हैं जिससे बातचीत का दायरा बहुत सीमित रह जाता है। पशुओं से पुनर्जन्म लिए हुए लोग आखिर दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग नहीं होते, वे उस किस्म के लोगों से भिन्न होते हैं, और वे सजीव प्राणियों की एक श्रेणी से भी संबंधित होते हैं। इसलिए, जब तक प्रमुख सिद्धांत शामिल नहीं होते हैं तब तक वे अपने दैनिक जीवन में या अपने कर्तव्य करते हुए दूसरों से जुड़ सकते हैं, संप्रेषण कर सकते हैं और मेलजोल रख सकते हैं। हालाँकि, जैसे ही प्रमुख सत्य सिद्धांत या कौन-सा मार्ग अपनाना है इस बारे में चुनाव शामिल होते हैं, इस प्रकार का व्यक्ति ज्यादातर लोगों के साथ पूरी तरह से बेमेल हो जाता है और अब उनके साथ और मेलजोल नहीं रख सकता है। उदाहरण के लिए, तुम इस प्रकार के व्यक्ति से रोजमर्रा के जीवन के विषयों पर बातचीत करते हो—तुम्हें कौन-से खाद्य पदार्थ और पकवान पसंद हैं, उन्हें अच्छी तरह से कैसे पकाया जाए, अपने घर के शहर के बारे में बातें वगैरह-वगैरह। तुम जितनी ज्यादा बात करते हो, तुम्हारे पास कहने के लिए उतनी ही ज्यादा चीजें होती हैं और बातचीत उतनी ही गर्माहट भरी होती जाती है। क्या इसका मतलब यह है कि तुम दोनों एक-दूसरे के अनुकूल हो? क्या इसका मतलब यह है कि तुम एक ही श्रेणी से संबंधित हो? (नहीं।) तुम सिर्फ इस तरह की बातचीत के आधार पर उन चीजों को नहीं पहचान सकते। लेकिन जब तुम इन विषयों पर जैसे कि तुम परमेश्वर में क्यों विश्वास रखते हो और परमेश्वर में विश्वास पर तुम्हारे क्या नजरिए हैं और ऐसे विषयों पर बात करते हो जो विचारों और नजरियों, सत्य सिद्धांतों, जीवन के प्रति दृष्टिकोणों, मूल्यों, लोगों द्वारा अपनाए जाने वाले मार्गों, लोगों के लक्ष्यों वगैरह-वगैरह से जुड़े होते हैं, तब तुम्हारे विचार, नजरिए और तुम्हारे सोचने के ढंग उत्तरोत्तर भिन्न दिशाओं में चले जाते हैं, एक ही रास्ते पर नहीं रहते हैं और बातचीत थम जाती है। और ऐसा क्यों होता है? क्योंकि उनकी समझ विकृत होती है। जब तुम उन्हें पहली बार बोलते हुए सुनते हो तब तुम्हें लगता है कि वे बहुत चतुर हैं, लेकिन समय के साथ तुम्हें पता चलता है कि वे सिर्फ शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं और बहुत धृष्ट हैं। उनके प्रति तुम्हारी भावनाएँ बदल जाती हैं, अब ये उतनी गर्माहट भरी नहीं रहतीं, बाधाएँ खड़ी हो जाती हैं और तुममें से प्रत्येक जिन श्रेणियों से संबंधित है, उनका भेद स्पष्ट हो जाता है। देखो, जब तुम लोग पारिवारिक जीवन या अपने व्यक्तिगत अतीत पर चर्चा करते हो या रोजमर्रा के जीवन के दायरे के भीतर विषयों के बारे में गपशप करते हो, जैसे कि खाना-पीना, फुर्सत, रुचियाँ और शौक, तब भी तुम बातचीत कर सकते हो। लेकिन जैसे ही बातचीत में विचारों और नजरियों, सत्य सिद्धांतों, जीवन के प्रति दृष्टिकोणों, मूल्यों, जीवन मार्गों या परमेश्वर और कर्तव्य के प्रति रवैयों का जिक्र होता है तो वह थम जाती है। उनके प्रति तुम्हारा नजरिया बदल जाता है और तुम्हारे प्रति उनका नजरिया भी बदल जाता है। तुम अपने दिल में उनके प्रति कुछ चिढ महसूस करने लगते हो और उनके दिल में तुम्हारे प्रति बाधाएँ खड़ी होने लगती हैं। वे तुम्हें नापसंद करते हैं और तुम उन्हें नापसंद करते हो। धीरे-धीरे तुम एक-दूसरे से दूर होते चले जाते हो और अब तुम्हारे पास कोई साझा भाषा नहीं रह जाती। इस प्रकार से लोगों की विभिन्न श्रेणियाँ में भेद स्पष्ट हो जाता है। इसलिए, यह भेद करने के लिए कि कोई व्यक्ति किस श्रेणी से संबंधित है, यह देखना चाहिए कि उसकी समझने की क्षमता कैसी है, क्या उसमें सामान्य व्यक्ति जैसे जमीर और विवेक हैं और क्या उसमें सामान्य सोच और बुद्धिमत्ता हैं। जहाँ तक इस प्रकार के व्यक्ति का प्रश्न है जिसने पशु से पुनर्जन्म लिया है, तो हम विशिष्ट रूप से अब और उस पर संगति नहीं करेंगे। इसके बाद हम दूसरे दो प्रकार के लोगों पर संगति करते हुए जारी रखेंगे। वह समाप्त करने के बाद हम वापस आएँगे और इन तीन प्रकारों की तुलना करेंगे। इस तुलना के जरिए इन तीन प्रकार के लोगों का भेद कैसे पहचाना जाए, यह विषय उत्तरोत्तर स्पष्ट और विशिष्ट होता जाएगा।

पिछली बार हमने जिक्र किया था कि लोग मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में विभाजित किए जाते हैं। इन तीन श्रेणियों में कैसे भेद स्पष्ट किया जाता है? उनकी उत्पत्ति के आधार पर उनमें भेद स्पष्ट किया जाता है। पहली श्रेणी वे हैं जिन्होंने पशुओं से पुनर्जन्म लिया है, दूसरी श्रेणी वे हैं जिन्होंने दानवों से पुनर्जन्म लिया है और तीसरी श्रेणी वे हैं जिन्होंने मनुष्यों से पुनर्जन्म लिया है। हमने उन लोगों की विशेषताओं पर चर्चा समाप्त कर ली है जिन्होंने पशुओं से पुनर्जन्म लिया है और अब आओ, हम उन लोगों की विशेषताओं के बारे में बात करें जिन्होंने दानवों से पुनर्जन्म लिया है। तुम लोग दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों की कौन-सी मुख्य विशेषताएँ सोच सकते हो? (वे सत्य और परमेश्वर के प्रबल विरोधी होते हैं।) यह कुछ हद तक एक सामान्य कथन है; तुम्हें उनकी मूलभूत अभिव्यक्तियों का वर्णन करना होगा और तुम्हें इस प्रकार के लोगों के जीवन के दैनिक प्रकाशनों और उनकी विशिष्ट अभिव्यक्तियों का उपयोग करके उनकी विशेषताएँ संक्षेप में प्रस्तुत करनी होंगी। क्या तुम जानते हो कि विशेषता क्या होती है? विशेषता एक अभिव्यक्ति है जो एक निश्चित प्रकार के व्यक्ति का सार दर्शाती है। अगर किसी में एक निश्चित प्रकार के व्यक्ति की विशेषताएँ हैं तो उसमें उस प्रकार के व्यक्ति का सार है और अगर कोई उस प्रकार का व्यक्ति है तो उसमें स्वाभाविक रूप से वे विशेषताएँ होंगी—कोई भी अपवाद नहीं है। विशेषता यही होती है। क्या तुम लोग दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों की विशेषताएँ सोच सकते हो? (वे सत्य से विशेष रूप से विमुख होते हैं और उससे नफरत करते हैं। सत्य सुननेपर वे गुस्से और विकर्षण से प्रतिक्रिया करते हैं।) सत्य देखकर गुस्से और विकर्षण से प्रतिक्रिया करना एक विशिष्ट अभिव्यक्ति है। तुम और क्या सोच सकते हो? (वे दुष्ट और कपटी होते हैं। मुझे नहीं पता कि इसे विशेषता माना जाएगा या नहीं?) यह कुछ हद तक प्रासंगिक है। (वे निष्ठुर और अहंकारी भी होते हैं।) निष्ठुरता एक और विशिष्ट अभिव्यक्ति है। अहंकार एक आम विशेषता है जो भ्रष्ट मनुष्यों में होती है और यह सिर्फ दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों में ही नहीं होती; यह पशुओं से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों और मनुष्यों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों—इन दोनों प्रकार के लोगों—में भी होती है। उन विशिष्ट शैतानी भ्रष्ट स्वभावों के अलावा, दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों में उनकी मानवता के लिहाज से कौन-सी विशिष्ट विशेषताएँ होती हैं? यानी वे अपने दैनिक जीवन में जो प्रकट करते हैं, कहते हैं और करते हैं, उसकी मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? (क्रूरता।) यह एक विशेषता है। और कौन-सी विशेषताएँ हैं? दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों और पशुओं से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों दोनों में कुछ विशेष और मूलभूत विशेषताएँ होती हैं, लेकिन इन दोनों प्रकारों की विशेषताएँ पूरी तरह से भिन्न होती हैं। पशुओं से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों की विशेषताएँ विकृत समझ, सुन्नता, भ्रमित होना और बेवकूफी हैं। ये विशेषताएँ ही क्यों? ये विशेषताएँ यह प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त हैं कि इस प्रकार का व्यक्ति अपने सार के लिहाज से मानवीय विशेषताओं की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है और उस उचित बुद्धिमत्ता और सोचने के ढंग की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है जो मनुष्यों में होती हैं। इसलिए, ये ठेठ विशेषताएँ प्रमाणित करती हैं कि इस किस्म के लोग पशुओं से पुनर्जन्म लिए हुए होते हैं। दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग पशुओं से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों से भिन्न होते हैं। उनकी विशेषताएँ क्या हैं? चूँकि वे दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए होते हैं, इसलिए वे दानव हैं जो मनुष्य बन गए हैं। उनका आंतरिक सार वही होता है जो एक दानव का होता है। वैसे तो वे पशु नहीं होते हैं—वे बेवकूफ या सुन्न नहीं होते हैं और शायद उनमें विकृत समझ नहीं होती है—लेकिन वे मनुष्य भी नहीं होते हैं और उनमें मनुष्यों की सामान्य सोच नहीं होती है। क्योंकि वे दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए होते हैं, इसलिए वे सार और वास्तविक रूप के लिहाज से बिना किसी अंतर के निश्चित रूप से दानवों के साथ पूरी तरह से संगत होते हैं और उनके जैसे होते हैं। तो दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों की क्या विशेषताएँ हैं? पहली विशेषता यह है कि वे आदतन झूठ बोलते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे किस तरह से झूठ बोलते हैं, उनके चेहरे लाल नहीं होते हैं, उनके दिलों की धड़कनें तेज नहीं होती हैं और वे बिना कोई गलती किए या कमजोर पड़े, बेहद सामान्य और स्वाभाविक रूप से कार्य करते हैं। कोई भी यह भेद पहचान नहीं सकता कि उनके कौन-से शब्द सच्चे हैं और कौन-से झूठे। दूसरी विशेषता है विचलन। तुम लोगों ने अभी-अभी तीसरी विशेषता का जिक्र किया, जो कि बुराई है। दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों में तीन विशेषताएँ होती हैं—वैसे तो पशुओं से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों की तुलना में उनमें एक विशेषता कम होती है, लेकिन फिर भी वे लोगों को जिस विनाशकारी शक्ति से और जिस मात्रा में भारी नुकसान पहुँचाते हैं, वह पशुओं से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों द्वारा पहुँचाई गई चोट या क्षति से कहीं ज्यादा होता है, क्योंकि वे दानव होते हैं। मात्रा के लिहाज से, लोगों को कष्टदायक ढंग से नुकसान पहुँचाने के दानवों के साधन पशुओं द्वारा लोगों को नुकसान पहुँचाने के साधनों से कहीं ज्यादा तीव्र होते हैं। लोगों को जाल में फँसाना, कुचल डालना, सुन्न करना, गुमराह करना और कष्टदायक ढंग से नुकसान पहुँचाना दानवों में जन्मजात है; यह उनका प्रकृति सार है। जहाँ तक पशुओं का प्रश्न है, जब तक वे खूंखार नहीं होते हैं तब तक आमतौर पर उनमें मनुष्यों के प्रति कोई बड़ी विनाशकारी शक्ति नहीं होती है; सिर्फ कुछ खास जानवर ही लोगों को कुछ हद तक कष्टदायक ढंग से नुकसान पहुँचाते हैं, मनुष्यों का माँस खाते हैं या सहज प्रवृत्ति के कारण लोगों को नुकसान पहुँचाते हैं। दानव भिन्न होते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे बड़े दानव हैं या छोटे—विभिन्न प्रकार के दानवों के बीच भेद करने की कोई जरूरत नहीं है—वे सभी लोगों को एक जैसा और भारी नुकसान पहुँचाते हैं। कोई भी तथाकथित अंतर सिर्फ साधनों या विधियों में अभिव्यक्त होता है, लेकिन दानवों के सार के लिहाज से यह हमेशा लोगों को कष्टदायक ढंग से नुकसान पहुँचाना होता है। चाहे तुमने उन्हें उकसाया हो या नहीं, उनका प्रकृति सार हमेशा लोगों को चोट पहुँचाना होता है। जब तक तुम उनके करीब रहते हो, जब तक तुम्हारे जीवन के बड़े या छोटे मामले उनसे जुड़े होते हैं तब तक तुम्हें उनसे नुकसान पहुँचने की संभावना रहती है। अगर तुम कुछ सत्य समझते हो, तुम्हारे पास कुछ सत्य वास्तविकताएँ हैं और तुममें इन दानवों के संबंध में भेद पहचानने की क्षमता है तो तुम्हें जिस मात्रा में उनके द्वारा नुकसान पहुँचाया जाएगा वह अपेक्षाकृत कम हो जाएगी या घट जाएगी। लेकिन अगर तुम्हारा आध्यात्मिक कद छोटा है, तुम सत्य नहीं समझते हो और तुम सत्य और जीवन से रहित व्यक्ति हो तो तुम्हें जिस मात्रा में नुकसान पहुँचाया जाएगा, उसका आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है—वे तुम्हें जिस भी तरीके से नुकसान पहुँचाना चाहेंगे, वे तुम्हें उसी तरीके से नुकसान पहुँचाएँगे और वे जिस भी हद तक तुम्हें नुकसान पहुँचाना चाहेंगे, तुम्हें उसी हद तक नुकसान पहुँचाया जाएगा। यही वह नुकसान है जो दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों द्वारा दूसरे लोगों को पहुँचाया जाता है। देखो, जब दानव सत्ता में होते हैं तब अगर तुम उनका समर्थन करते हो तो भी तुम्हें उनके द्वारा नुकसान पहुँचाया जाएगा और अगर तुम उनका समर्थन नहीं करते हो या उनका विरोध करते हो तो भी तुम्हें नुकसान पहुँचाया जाएगा। जब तक तुम उनके द्वारा शासित हो, जब तक तुम उनकी शक्ति के अधीन हो, जब तक तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो, लेकिन तुमने सत्य प्राप्त नहीं किया है या तुम परमेश्वर द्वारा पूरी तरह से प्राप्त नहीं किए गए हो तब तक तुम पूरी तरह से दानवों के पराजित प्रतिद्वंद्वी हो, उनके शिकार हो और कोई भी इसका अपवाद नहीं है। यह बड़े दानवों के बारे में है। जहाँ तक दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों का प्रश्न है, वे वास्तविक जीवन के छोटे दानव हैं, वे विभिन्न प्रकार के दानव हैं। अगर तुम उनके साथ रहते हो तो सबसे आम घटनाओं में से एक यह होगी कि वे आदतन झूठ बोलेंगे। तुम हमेशा उनके द्वारा छले जाओगे और हमेशा उनके द्वारा ठगे जाओगे; तुम नहीं जानोगे कि उनके कौन-से शब्द सच्चे हैं और कौन-से झूठे और तुम इस हद तक परेशान हो जाओगे कि तुम हर रोज असहज महसूस करोगे। “क्या उन्होंने यह जो चीज कही वह सच्ची है या झूठी? क्या वे मुझे फिर से छलने का प्रयास कर रहे हैं? मैं कैसे यह भेद पहचान सकता हूँ कि वे जो कहते हैं वह सही है या गलत?” देखो, अगर तुम उनके साथ रहोगे तो तुम उनके नुकसान से बहुत ज्यादा कष्ट सहोगे। उनके लगातार झूठ बोलने का यह मामला ही तुम्हें इस हद तक परेशान कर देगा कि तुम पूरी तरह से अव्यवस्थित हो जाओगे और हर दिन तुम्हारे दिल में न तो शांति होगी, न सुकून होगा और न ही खुशी होगी।

दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए प्रकार का व्यक्ति आदतन झूठ बोलता है और वह जो भी चीज करता है वह बहुत ही कपटपूर्ण होती है। वह दूसरों से गुप्त रूप से जो कुछ भी कहता है या पर्दे के पीछे जो कुछ भी करता है, उसके बारे में बाद में सच नहीं बताता; बल्कि वह एक अलग ही कहानी पेश करता है। वह तुम्हारे सामने दूसरों को बुरा-भला कहता है और दूसरों के सामने तुम्हें बुरा-भला कहता है। नतीजतन तुम्हारे और उन दूसरे लोगों के बीच रुकावटें उत्पन्न हो जाती हैं और तुम एक-दूसरे के बारे में बुरा सोचते हो। दरअसल तुम लोग एक-दूसरे से बिल्कुल भी परिचित नहीं हो और तुम एक-दूसरे के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते। इस दानव ने तुम लोगों के बीच कलह के बीज बोने के लिए कहानियाँ बनाईं, ठीक इसी कारण से तुम लोग दुश्मन बन गए हो। शैतान ने तुम्हें उल्लू बनाया है, लेकिन फिर भी तुम्हें नहीं पता कि क्या चल रहा है और तुम्हें लगता है कि शैतान ने जो कहा वह सच है और वह तुम्हारे प्रति अच्छा है। देखो, जो व्यक्ति आदतन झूठा है, वह लोगों को इस हद तक उल्लू बना सकता है। वह लगातार झूठ बोलता है; वह जब तुम्हारे साथ होता है तब अक्सर चुगली करता है, कलह के बीज बोता है और कहानियों को बढ़ा-चढ़ाकर और नमक-मिर्च लगाकर मनमाने ढंग से अफवाहें गढ़ता है और बेबुनियाद दावे करता है। यह बात तुम्हें इस हद तक परेशान कर देती है कि तुम असहज महसूस करते हो, तुम्हें लगातार भेद पहचानना पड़ता है और चौकस रहना पड़ता है : “अमुक ने मेरे बारे में क्या बुरी चीजें कहीं? मुझे अमुक के साथ कैसे पेश आना चाहिए?” वह तुम्हें इस हद तक परेशान कर देता है कि तुम पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो जाते हो जिससे तुम्हारे जीवन की लय, तुम्हारे जीने के तरीके और तुम्हारी मौजूदा स्थिति बिगड़ जाती है। जब तुम्हारा आध्यात्मिक कद छोटा होता है और तुम सत्य नहीं समझते हो और जब तुमने अभी तक सत्य प्राप्त नहीं किया होता है तब तुम अक्सर उसके प्रभाव में आ जाते हो और यहाँ तक कि उसकी कुछ झूठी बातों से गुमराह, परेशान और बेबस हो जाते हो और बँध जाते हो। उदाहरण के लिए, मान लो कि तुम कलीसियाई अगुआ के रूप में चुने जाते हो और वह तुमसे कहता है, “अमुक व्यक्ति ने तुम्हारे बारे में यह कहा : ‘वह आदमी सोचता है कि वह अगुआ बन सकता है? वास्तव में वह कुछ भी नहीं है, फिर भी उसमें लोगों के साथ सत्य पर संगति करने का दुस्साहस है!’” दरअसल उस व्यक्ति ने ऐसा बिल्कुल नहीं कहा; यह बात तो दानव कहना चाहता था और वह इसका दोष किसी और के मत्थे मढ़ रहा है। उसकी बस यह एक टिप्पणी ही तुम्हें कमजोर महसूस करवा देती है और तुम परमेश्वर के सामने आते हो और प्रार्थना करते हो, “हे परमेश्वर, मेरा आध्यात्मिक कद सच में छोटा है और मैं इस कार्य की जिम्मेदारी नहीं उठा सकता। मैं तुम्हारा एहसानमंद हूँ, मैंने अपना कार्य ठीक से नहीं किया है। मैं इस्तीफा देना चाहता हूँ, लेकिन मुझे डर है कि यह निष्ठाहीनता होगी। मुझे क्या करना चाहिए?” उसने तुम्हें इस हद तक परेशान कर दिया है कि तुम अपना कार्य जारी नहीं रख सकते हो; अगर तुम आगे बढ़ते हो तो भी तुम ऐसा एक तरह की नकारात्मक भावना के साथ करते हो जिससे धीरे-धीरे तुम कलीसिया के कार्य के प्रति अपने दायित्व का बोध खोते जाते हो जब तक कि अंततः यह कार्य ठप नहीं पड़ जाता। तुम परेशान कर दिए गए हो, है ना? (हाँ।) इस प्रकार के व्यक्ति के साथ रहना, मेलजोल रखना और कार्य करना वाकई परेशानी वाली बात है। उसके शब्दों में बहुत ही ज्यादा असत्यता, बहुत ही ज्यादा मिलावट, उसकी अपनी खुद की बहुत ही ज्यादा इच्छा और उसके अपने बहुत ही ज्यादा मकसद होते हैं; वह जो कुछ भी कहता है वह झूठ होता है। तुम्हें लगातार यह भेद पहचानना होगा : “उसके कौन-से शब्द सच्चे हैं और कौन-से झूठे? उसने पर्दे के पीछे वास्तव में क्या किया है और क्या नहीं किया है? क्या वह परमेश्वर में सच्चा विश्वासी है? वह कहता है कि वह भविष्य में अपना कर्तव्य निश्चित रूप से अच्छी तरह से करेगा और परमेश्वर के घर ने उसे जो पदोन्नति दी है वह उसकी कसौटी पर निश्चित रूप से खरा उतरेगा—क्या ये शब्द सच में दिल से निकले हैं? क्या उसने जो शपथ ली और उसने जो संकल्प व्यक्त किया वह उन्हीं के अनुसार कार्य करेगा?” जब तुम उसका व्यवहार देखते हो तब तुम्हारा मन प्रश्नों की एक शृंखला से भर जाता है। तुम्हें अक्सर लगता है कि वह डरावना है, लेकिन उसके शब्द काफी भरोसमंद और उचित लगते हैं। फिर भी रात को सपनों में तुम देखते हो कि उसका चेहरा एक दानव के चेहरे में बदल गया है, वह अपने नुकीले दाँत दिखा रहा है और अपने पंजे लहरा रहा है और तुम हैरत में पड़ जाते हो, “क्या वह वास्तव में मनुष्य है? उसके कौन-से शब्द सच्चे हैं और कौन-से झूठे? ऐसा क्यों है कि मैं उसकी असलियत नहीं जान सकता? इस प्रकार का व्यक्ति बहुत ही ज्यादा डरावना है!” तुम्हें लगता है कि वह डरावना और गैर-भरोसेमंद है, लेकिन जब तुम उसके कार्य की जाँच करते हो तब वह मूल रूप से ठीक-ठाक होता है और जब तुम उसे बोलते हुए सुनते हो तब तुम्हें कोई गलती दिखाई नहीं पड़ती। लेकिन तुम उसकी असलियत बस जान ही नहीं पाते हो—तुम्हारे आत्मा में एक बेनाम संदेह है और तुम हमेशा अपने दिल में महसूस करते हो कि वह परेशानी खड़ी कर सकता है, हमेशा महसूस करते हो कि उसके शब्द निष्ठाहीन हैं और पूरी तरह से सच्चे नहीं हैं। शायद एक दिन उसकी झूठ बोलने वाली प्रकृति उजागर हो जाए और उसके बारे में तुम्हारी आशंका की पुष्टि हो जाए : तुम्हें पता चले कि उस समय उसके बारे में तुम्हारा संदेह और आशंका सही थी और वैसे तो उसके कहे शब्द सुनने में बहुत अच्छे और भरोसे के लायक थे, लेकिन वे सब झूठे और भ्रामक थे; उसने पर्दे के पीछे कोई वास्तविक कार्य किया ही नहीं। तो क्या इस प्रकार के व्यक्ति पर अब भी भरोसा किया जा सकता है? (नहीं।) वैसे तो तुम्हें अपने दिल में लगता है कि अब उस पर और भरोसा नहीं किया जा सकता, लेकिन जब तुम उससे दोबारा मिलते हो और उसे बोलते हुए सुनते हो तब उसकी समझ बिल्कुल शुद्ध लगती है, उसकी बातें सुनने में अच्छी लगती हैं और तुम उसके शब्दों में कोई समस्या नहीं पाते हो और बाहर से वह कष्ट भी सह सकता है और कीमत भी चुका सकता है। तुम सोच में पड़ जाते हो, “यहाँ चल क्या रहा है? शायद मैंने उसे गलत समझा, शायद मेरी सोच नीचतापूर्ण थी। चलो, मैं उस पर एक बार और भरोसा कर लेता हूँ। बहरहाल, अभी मुझे इस कार्य में उसकी जगह लेने के लिए कोई उपयुक्त व्यक्ति नहीं मिल रहा है, इसलिए मैं एक बार और उसका उपयोग करूँगा।” फिर तुम उसका उपयोग करना जारी रखते हो और अंतिम नतीजा अब भी वही होता है : तुम्हें पता चलता है कि तुम उससे दोबारा धोखा खा गए हो। वह अच्छे तरीके से बोलता है, लेकिन वास्तव में पर्दे के पीछे वह बस अपनी अलग ही खिचड़ी पका रहा होता है और कुछ भी वास्तविक नहीं करता है। अगर वह सुसमाचार प्रचार के दौरान एक महीने में दस लोग प्राप्त करता है तो वह यह कहने पर अड़ जाता है कि वे पचास थे। वह बस सच बोलेगा ही नहीं। वह आदतन झूठा है, झूठ बोलने में माहिर है। तुम उस पर भरोसा करते हो और बार-बार उसका उपयोग करते हो और नतीजतन तुम्हें बार-बार बेवकूफ बनाया जाता है। और अंत में नुकसान किसका होता है? यकीनन इन चीजों का अनुभव करने के जरिए लोगों में दूसरों के संबंध में भेद पहचानने की क्षमता विकसित होती है, उनकी अंतर्दृष्टि बढ़ती है, उनके अनुभव में बढ़ोतरी होती है और वे लोगों का आकलन करने में बेहतर हो जाते हैं, लेकिन सचमुच नुकसान किसका होता है? कलीसिया के कार्य का। तो मुझे बताओ, क्या दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों का बस यह एक प्रकृति सार—जो कि आदतन झूठा होना है—दूसरों को बहुत नुकसान पहुँचाता है या नहीं? (हाँ, पहुँचाता है।) यह नुकसान कितना बड़ा है? क्या वह तुम्हें गुमराह कर सकता है? (हाँ, हमें गुमराह किया जा सकता है और हमारा शोषण किया जा सकता है।) तुम्हें गुमराह किया जा सकता है, तुम्हारा शोषण किया जा सकता है और तुम्हें परेशान किया जा सकता है—क्या यह तुम्हारे साथ हेरा फेरी किए जाने की हद तक पहुँच सकता है? (हाँ।) अगर तुम जवान हो, तुममें अनुभव की कमी है और तुम सत्य नहीं समझते हो और मामलों की असलियत नहीं जान सकते हो तो तुम्हारे साथ उनके द्वारा हेरा फेरी की जा सकती है। उनके द्वारा हेरा फेरी किए जाने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि तुम उनके सामने बेबस हो जाते हो, तुम उनके द्वारा नियंत्रित हो जाते हो, उनके द्वारा तुम्हारे हाथ-पैर बाँध दिए जाते हैं, चीजों के बारे में तुम्हारे सोचने का तरीका और तुम्हारे विचार और नजरिए उनके द्वारा प्रभावित हो जाते हैं और उनके प्रभाव में डगमगा जाते हैं, तुम आगे जो भी करते हो वह पूरी तरह से उनकी योजना के अनुसार आगे बढ़ता है और तुम पूरी तरह से उस जाल में फँस जाते हो जो उन्होंने तुम्हारे लिए बनाया है—हेरा फेरी किए जाने का यही मतलब है। वे पर्दे के पीछे पहले से ही इसकी पूरी योजना बना लेते हैं, तुम्हारे खिलाफ साजिश रचने के लिए हर किस्म की युक्तियों का उपयोग करते हैं। वे तुम्हारी असलियत पूरी तरह से जानते है—तुम क्या समझते हो और तुम किसकी असलियत नहीं जान सकते हो, किन मामलों में तुम्हारे पास भेद पहचानने की क्षमता है और किन मामलों में नहीं, तुम्हारी सीमाएँ क्या हैं, तुम्हारा किस तरह से शोषण किया जा सकता है और कौन-से शब्द तुम्हें गुमराह कर सकते हैं। अंत में वे झूठ गढ़ने और तुम्हें बेवकूफ बनाने के लिए तुम्हारे दोषों और विभिन्न कमजोर पक्षों का फायदा उठाते हैं। तुम अपने दिल में यह स्पष्ट रूप से जानते हो कि उन्होंने जो किया वह गलत था या उन्होंने जो कहा उसमें एक समस्या थी और वे झूठ बोल रहे थे, लेकिन तुम्हारे पास इससे निपटने के लिए बुद्धिमानी नहीं है; तुम दुखी तो हो, लेकिन उनके सामने बेबस हो और तुम उनके द्वारा सिर्फ नकेल पकड़कर चलाए जा सकते हो। क्या यह उनके द्वारा हेरा फेरी किया जाना नहीं है? (हाँ।) अंततः स्थिति जिस दिशा में विकसित होती है, वह बिल्कुल अंतिम नतीजे तक उनकी योजना के अनुसार आगे बढ़ती है—इसका मतलब है कि उनके द्वारा तुम्हारे साथ हेरा फेरी की जाती है। यानी तुम स्थिति के विकास की दिशा को नियंत्रित करने की क्षमता पूरी तरह से खो बैठते हो और पूरी तरह से उनके द्वारा नकेल पकड़कर चलाए जाते हो। वे जो भी लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं, वे जो भी पूरा करना चाहते हैं, वे जिसका भी शोषण करना चाहते हैं और वे जिस भी तरीके से चीजें करना चाहते हैं, उस लिहाज से अंततः वे अपना रास्ता प्राप्त कर ही लेते हैं। मुझे बताओ, क्या यह उनके द्वारा हेरा फेरी किया जाना नहीं है? (हाँ, है।)

मुझे बताओ, दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों के आदतन झूठे होने की प्रकृति के लिहाज से, क्या वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को और विशेष रूप से कलीसिया के कार्य को जो नुकसान पहुँचाते हैं, वह बहुत बड़ा होता है या नहीं? (वह बहुत बड़ा होता है।) यह नुकसान बहुत ही बड़ा होता है! तो कुछ व्यक्तियों के दैनिक जीवन को प्रभावित करने के अलावा वे लोगों को दूसरा कौन-सा बड़ा नुकसान पहुँचाते हैं? (दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों के क्रियाकलापों से उनके आस-पास के लोगों के लिए जो विघ्न-बाधा उत्पन्न होती है, वह बहुत ही गंभीर होती है। मेरा इससे पहले ऐसे ही एक व्यक्ति से सामना हुआ था; वह जहाँ भी होता था, वह जगह साजिशों से और शक्ति और रुतबे के लिए होड़ से भर जाती थी, लोगों के बीच रुकावटें उत्पन्न हो जाती थीं और भाई-बहन भी अपने दिलों में अंधकार महसूस करते थे।) इससे अव्यवस्था उत्पन्न हुई, है ना? (हाँ।) यह लोगों को एक-दूसरे पर संदेह करने, एक-दूसरे से लड़ने और अव्यवस्था की अवस्था में प्रवेश करने का कारण बना—यह बहुत ही बड़ा नुकसान है! तो बाद में क्या सभी ने इस दानव का भेद पहचानने की क्षमता प्राप्त की थी? (हाँ।) क्या उसे दूर कर दिया गया था? (उसे दूर कर दिया गया था।) जब उसे दूर कर दिया गया, उसके बाद क्या सभी ने चीजों का सारांश प्रस्तुत किया था? उसके झूठ बोलने की मुख्य विशिष्ट अभिव्यक्ति, उसने जो झूठ बोले, उसने जिन चीजों की खातिर झूठ बोले, जब उसने झूठ बोले तब उसने जिन विधियों और आवाज के जिस लहजे का उपयोग किया, वह जो उद्देश्य हासिल करना चाहता था—क्या तुम सभी लोगों ने इन विशिष्ट विधियों और अभिव्यक्तियों का सारांश प्रस्तुत किया था? (हमने किया था। उदाहरण के लिए, वह आदतन झूठा है; उसके शब्दों में सही और गलत में भ्रम पैदा करने और काले को सफेद कहकर बुलाने की, सकारात्मक व्यक्तियों को नकारात्मक और नकारात्मक व्यक्तियों को सकारात्मक बनाने की प्रकृति है। वह जिससे भी ईर्ष्या या नफरत करता था, उस पर बेबुनियाद आरोप लगाता था और भाई-बहनों को उसका विरोध करने के लिए उकसाता था जिससे अव्यवस्था उत्पन्न होती थी। उसने कुछ अच्छे लोगों का या उन लोगों का भी दमन किया था जिन्हें अपने कर्तव्यों में नतीजे मिले थे, जबकि उन लोगों की पदोन्नति की थी जिन पर वह कृपादृष्टि रखता था और जिन्होंने उसकी खुशामद की थी।) यह मसीह-विरोधी है, है ना? (हाँ।) इस प्रकार के व्यक्ति द्वारा झूठ बोलने की मुख्य विधियाँ क्या हैं? अचानक कहीं से मनगढ़ंत बातें बनाना, कहानियों को बढ़ा-चढ़ाकर और उनमें नमक-मिर्च लगाकर बताना, दोष को दूसरों के मत्थे मढ़ देना, झगड़े करवाने के लिए कहानियाँ सुनाना और कलह के बीज बोना—और क्या? (आग भड़काना।) आग भड़काना और झगड़े बढ़ाना। उदाहरण के लिए, दो लोग आपस में बहुत अच्छी तरह से मिलजुलकर रह रहे हैं, वे किसी भी बात पर बहस नहीं करना चाहते या किसी से भी दुश्मनी नहीं करना चाहते, लेकिन इस प्रकार का व्यक्ति उनके बीच आग लगाकर उन्हें आपस में लड़ना शुरू करवा देता है। अगर वह उन दो लोगों को लड़ते हुए देखता है तो उसे खुशी होती है कि उसकी साजिश सफल हो गई है। हर समूह में इस किस्म के कुछ लोग होते हैं। हर किसी में भ्रष्ट स्वभाव होते हैं, लेकिन क्या मनुष्यों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग ये चीजें करेंगे? (नहीं।) क्यों नहीं? उनमें और दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों में क्या अंतर है? (सामान्य लोगों में जमीर का न्यूनतम मानक होता है।) सही कहा। उनमें जमीर का न्यूनतम मानक होता है; वे अपने स्व-आचरण में जमीर द्वारा संयमित होते हैं। वे ये नैतिक रूप से भ्रष्ट चीजें नहीं करेंगे, ये चीजें जिनका मतलब है सत्यनिष्ठा और गरिमा को खोना या ये चीजें जो दूसरों को नुकसान पहुँचाती हैं और खुद को लाभ पहुँचाती हैं। जमीर होने का मतलब है कि उनमें एक न्यूनतम मानक है और इस प्रकार उनके क्रियाकलाप संयमित होते हैं। तो क्या दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए इन लोगों में जमीर होता है? (नहीं।) तो फिर उनके पास किस तरह के दिल होते हैं? (दुर्भावनापूर्ण दिल।) उनके पास दुर्भावनापूर्ण और दुष्ट दिल होते हैं और इसलिए वे आदतन झूठ बोल सकते हैं और वे चाहे कैसे भी झूठ बोलें, वे भीतर से असहज महसूस नहीं करते हैं। वे असहज क्यों नहीं महसूस करते हैं? क्योंकि वे दानव हैं और उनमें जमीर नहीं है, इसलिए जब वे झूठ बोलते हैं और बुराई करते हैं तब उन्हें न तो असहज महसूस होता है और न ही वे तिरस्कृत महसूस करते हैं। इसके विपरीत, अगर वे झूठ नहीं बोलते हैं और अगर—वे जहाँ हैं—वहाँ वे कोई बुराई नहीं करते हैं या कोई हंगामा नहीं मचाते हैं और अव्यवस्था नहीं फैलाते हैं और हर कोई शांति और आनंद से जीता है और हर कोई परमेश्वर के सामने जीता है तो वे भीतर से परेशान और असहज महसूस करते हैं। वे असहज क्यों महसूस करते हैं? वह इसलिए क्योंकि हर कोई परमेश्वर के सामने आता है, उसके वचनों पर सोच-विचार करता है, उसके वचनों और सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करता है, सामान्य मानवता के भीतर जीता है और उनकी आराधना नहीं करता है; वे लोगों के बीच अलग से दिखाई नहीं देते हैं या महत्वपूर्ण महसूस नहीं करते हैं, इसलिए वे सोचते हैं, “इस तरह से जीना बहुत ही उबाऊ है, इसमें कोई मजा नहीं है!” मौज-मस्ती करने, जीवन को रोचक बनाने, सम्मानपूर्वक और महत्व की भावना के साथ जीने के लिए उन्हें लोगों के बीच कुछ न कुछ बखेड़ा खड़ा करना पड़ता है, कुछ समस्याएँ उत्पन्न करनी पड़ती हैं, कुछ हलचल मचानी पड़ती है और कुछ अशांति और अव्यवस्था फैलानी पड़ती है। वह कहावत क्या है? तूफान खड़ा कर देना। इस प्रकार का व्यक्ति जहाँ भी हो वहीं तूफान खड़ा करना पसंद करता है; वह अपनी मर्यादा में रहना पसंद नहीं करता। सामान्य लोग अपनी मर्यादा में रहना चाहते हैं—स्थिर जीवन जीना चाहते हैं और नियमित रूप से वह करना चाहते हैं जो उन्हें करना चाहिए—वे तूफान खड़ा करना पसंद नहीं करते हैं। जो लोग दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए होते हैं वे अपनी मर्यादा में नहीं रहते हैं। वे अपनी मर्यादा में क्यों नहीं रहते हैं? क्योंकि इस प्रकार के व्यक्ति के भीतर एक दानव बसता है और दानव जिस भी समूह में शामिल होते हैं, उसमें समस्याएँ उत्पन्न करना पसंद करते हैं। भले ही तुमने उन्हें उकसाया नहीं हो या नाराज नहीं किया हो, तो भी वे बस अपने आप ही परेशानी खड़ी करने लगते हैं—यह तूफान खड़ा करना है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इस प्रकार का व्यक्ति किस समूह में शामिल है, चाहे तुम उसे दूर से देखो या उसके सदस्यों के हालातों के बारे में पूछताछ करो, तुम्हें हमेशा ऐसा लगता है कि वहाँ राक्षसी माहौल है। समय-समय पर तुम सुनते हो कि व्यक्ति A का व्यक्ति B से कोई झगड़ा है, व्यक्ति C और व्यक्ति D की आपस में नहीं निभ रही है और वे एक-दूसरे को नजरअंदाज कर रहे हैं, व्यक्ति E का व्यक्ति F से अपने कार्य में विवाद हैं, व्यक्ति G हमेशा रुतबे के लिए होड़ करता रहता है और उसके काम को हमेशा नए सिरे से करने की जरूरत होती है। अगर तुम्हें कोई ऐसी कलीसिया दिखाई पड़ती है जहाँ हमेशा अव्यवस्थित और गंदा माहौल रहता है, जहाँ बिल्कुल शांति नहीं है, जहाँ लोग हमेशा एक-दूसरे के साथ निभाने या सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग करने में असमर्थ हैं तो वहाँ एक या यहाँ तक कि एक से अधिक दानव हैं जो उसके भीतर विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न कर रहे हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कलीसिया में कितने दानव विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न कर रहे हैं, वे दूसरे लोग जिनमें न्यूनतम मानक का जमीर है और जो सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना चाहते हैं, उन सभी को इनसे बुरी तरह से नुकसान पहुँचता है। जैसे ही सभी प्रकार के दानवों को दूर कर दिया जाता है, जब सब लोग फिर से इकट्ठे कलीसियाई जीवन जीते हैं और अपने कर्तव्य करते हैं तब माहौल अलग ही होता है। वैसे तो तुम यह नहीं कह सकते कि हर कोई बेहद जोश में होता है, लेकिन कम-से-कम सभी को यह तो लगता ही है कि वहाँ के लोगों में मानवीय गर्मजोशी है और वे परेशानी खड़ी नहीं करते हैं; वहाँ का माहौल राक्षसी नहीं है, बल्कि यह मानवीय माहौल है। जिन जगहों पर माहौल राक्षसी होता है, वहाँ जब लोग इकट्ठे बात करते हैं तब उनकी आँखों के भाव में कुछ गड़बड़ होती है, और साथ ही बोलते समय उनकी आवाज के लहजे में और माहौल में कुछ गड़बड़ होती है। जब वे बात करते हैं तब वे नजरें नहीं मिलाते हैं; इसके अलावा, वे जो कहते हैं वह बहुत ही सरल होता है, उनमें से कोई भी दिल से बोलने को तैयार नहीं होता और कोई मौखिक संवाद नहीं होता है। ऐसा लगता है जैसे उनके बीच कोई दीवार हो। उनके बीच कोई संवाद नहीं होता; वे अपने दिलों में नफरत रखते हैं। हो सकता है कि ये लोग पीड़ित हों। चाहे ये लोग पीड़ित हों या पीड़क, संक्षेप में कहें तो, इस समूह में दानव घुले-मिले हुए हैं और विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न कर रहे हैं, लोगों के दिलों को इस हद तक परेशान कर रहे हैं कि वे उलझन में पड़े हुए हैं और उन्हें कोई शांति नहीं मिल रही है। जब इस समूह के लोग एक साथ रहते हैं तब उन्हें हमेशा लगता है कि चीजें असंतोषजनक हैं और सुचारू रूप से नहीं चल रही हैं, वे सामंजस्यपूर्ण ढंग से एक साथ नहीं रह सकते हैं और यकीनन सामंजस्यपूर्ण सहयोग का तो और भी प्रश्न नहीं उठता। इस समूह में बोलते, कार्य करते और अपने कर्तव्य करते समय लोग हमेशा भीतर से नाखुश महसूस करते हैं और उनके बीच रुकावटें भी होती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस समूह में विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न करने वाले दानव हैं और इसलिए हर कोई बेबस है और दुखी महसूस करता है।

कुछ लोगों ने दानवों द्वारा भारी विघ्न-बाधाओं का अनुभव किया और मूलतः उनके साथ दानवों ने हेरा फेरी की। जब मैंने उन्हें एक-दो महीने बाद देखा तब उनके चेहरे किसी तरह से उतरे हुए लग रहे थे, मानो उन्हें बेवकूफ बनाया गया हो। क्या ऐसा हो सकता है कि उनमें पवित्र आत्मा के कार्य और परमेश्वर की मौजूदगी की कमी थी? वे क्यों इतने अजीब लग रहे थे? बाद में सावधानी से की गई पूछताछ के जरिए मुझे पता लगा कि सचमुच कुछ घटित हुआ था : दो दानवों ने इन सभी लोगों को नियंत्रित किया था। दानवों ने किस हद तक उन्हें नियंत्रित किया था? दानवों ने जो भी चाहा वह किया; ऊपरवाले द्वारा जारी कार्य-व्यवस्थाएँ और ऊपरवाले द्वारा संगति किए गए सिद्धांत कार्यान्वित नहीं किए जा सके—वे सभी वहाँ सिर्फ नाम के लिए मौजूद थे। इन दो दानवों द्वारा रास्ता रोकने के कारण किसी ने भी अपनी राय व्यक्त करने या समस्याओं की रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं की। बाद में जब इन दोनों दानवों का जिक्र किया गया तब कुछ लोगों को इतना गुस्सा आया कि वे फूट-फूट कर रोने लगे। तुमने उन्हें उस समय क्यों उजागर नहीं किया? वहाँ इतने सारे लोगों के होते हुए भी किसी ने भी उठ खड़े होने और दानवों को उजागर करने की हिम्मत नहीं की—उन दानवों में कितनी ज्यादा शक्ति रही होगी? बाहर से वे मनुष्य लगते हैं, लेकिन उनका सार वास्तव में दानव का सार है। इस प्रकार का व्यक्ति जहाँ भी जाता है, दूसरे लोग उससे डरते हैं। उसके संपर्क में आने भर से ही लोगों को डर महसूस होता है, वे असहज महसूस करते हैं। अगर कोई बच्चा इस तरह के व्यक्ति से मिले तो वह इतना डर जाएगा कि रोने लगेगा। जब निष्कपट लोग इस प्रकार के व्यक्ति से मिलते हैं तब वे किस हद तक डर जाते हैं? जब वे उनके सामने होते हैं तब वे जोर से साँस लेने या ऊँची आवाज में बोलने की हिम्मत नहीं करते हैं और यहाँ तक कि रास्ता बदलकर जल्दी से उनसे बचने का प्रयास भी करते हैं। किसी ने देखा कि ये दानव कार्य को कार्य-व्यवस्थाओं के अनुसार कार्यान्वित नहीं कर रहे हैं और कहा, “इसे इस तरह से करना सही नहीं है; यह ऊपरवाले द्वारा संगति किए गए सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है।” उन दानवों में से एक ने पलटकर उत्तर दिया, “यहाँ मेरी मर्जी चलती है। अगर तुमने अपनी हद पार की तो मानो या न मानो, मैं तुम्हें इसी समय निष्कासित कर सकता हूँ!” इससे वह व्यक्ति इतना ज्यादा डर गया कि उसका चेहरा फीका पड़ गया और उसने फिर से अपनी राय व्यक्त करने की हिम्मत नहीं की और डबडबाई आँखों से कहा, “मैं गलत था। बस ऐसे दिखाओ जैसे मैंने कुछ कहा ही न हो। तुमसे बार-बार विनती है कि मुझे निष्कासित मत करना!” दूसरों ने यह देखा और कहा, “वह बहुत ही डरावना है, उसकी शक्ति बहुत ही ज्यादा है! जो उसकी बात नहीं मानेगा, उसे वह निष्कासित कर देगा! हमें परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य करने का अवसर बड़ी मुश्किल से मिला। अगर उसने हमें निष्कासित कर दिया तो हम अपने मामले की गुहार कहाँ लगाएँगे? क्या हमारा काम तमाम नहीं हो जाएगा? क्या हमारे उद्धार की उम्मीद चली नहीं जाएगी? हमें वाकई अपनी राय व्यक्त नहीं करनी चाहिए; एक पल की लापरवाही के कारण हमें निष्कासित नहीं होना चाहिए।” देखो, वे इस हद तक भयभीत थे। अंततः जब दानवों को उजागर किया जा रहा था तब कुछ लोगों ने यह उजागर किया कि किस तरह से दानवों ने कलह के बीज बोए थे और गुटबाजी की थी, जबकि दूसरे लोगों ने उन भ्रांतियों को उजागर किया जो लोगों को गुमराह करने के लिए दानवों ने फैलाई थीं। दरअसल इन लोगों ने उस समय दानवों द्वारा की गई बुराई को स्पष्ट रूप से देखा था; बस यही था कि किसी ने एक भी शब्द कहने या प्रतिरोध करने की हिम्मत नहीं की थी। यहाँ तक कि कुछ लोग बोलते-बोलते रोने भी लगे, वे काफी दयनीय लग रहे थे। लेकिन जब दानव उनके साथ हेरा फेरी और उन्हें नियंत्रित कर रहे थे तब उन्होंने प्रतिरोध क्यों नहीं किया? तब वे शक्तिहीन क्यों हो गए थे? अब जब ऊपरवाला दानवों को संभालने वाला था तब उन्हें अपनी शक्ति मिल गई। मुझे बताओ, अगर परमेश्वर ने इन छोटे आध्यात्मिक कद और सत्य नहीं समझने वाले लोगों की निगरानी और रक्षा नहीं की होती और अगर उन्हें परमेश्वर का बचाव नहीं मिला होता तो क्या वे दानवों द्वारा इस हद तक गंभीर रूप से नुकसान नहीं पहुँचाए गए होते कि उनका काम तमाम हो जाता? क्या ऐसा ही नहीं है? (हाँ।) देखो, लोग परमेश्वर से उतना नहीं डरते हैं, लेकिन जब दानव और शैतान लोगों को सताते हैं तब वे इतने भयभीत हो जाते हैं कि वे सिर से पैर तक काँप उठते हैं और स्पष्ट रूप से रो भी नहीं पाते हैं—वे कितनी बुरी तरह से डरे होते हैं! जब ऊपरवाले ने इन दोनों दानवों को उजागर किया और उन्हें संभाला तब उन लोगों ने यह खबर सुनी और आखिरकार उन्हें आजादी महसूस हुई। उन कुछ महीनों के दौरान वे दानवों द्वारा नियंत्रित किए जा रहे थे और शैतान की शक्ति के अधीन जी रहे थे, वे अंधकार में डूब चुके थे जहाँ आशा की कोई किरण नजर नहीं आ रही थी, और वे शून्य में चीख-चीखकर रोए जा रहे थे। उनके जीवन कितने दयनीय थे! आखिरकार इन दोनों दानवों को बाहर निकाल दिया गया और हर कोई आजाद और खुश हो गया। मैं हैरत में पड़ गया, “ऊपरवाले ने इस बार इन दोनों दानवों को बाहर निकाल दिया है, तो अगर इन लोगों का सामना बुराई करने वाले और लोगों को नियंत्रित करने वाले दानवों से फिर से होता है तो क्या वे उनका भेद पहचान पाएँगे? क्या वे खुद दानवों को उनके पदों से हटा पाएँगे और ऊपरवाले को आगे आकर मामले को सुलझाने की जरूरत नहीं पड़ेगी? क्या वे सब इकट्ठे होकर दानवों को उजागर करने, उनके सारे बुरे कर्मों का सारांश प्रस्तुत करने और फिर उन्हें उनके पदों से हटाने और उनकी बात नहीं सुनने, उनके द्वारा अपने कर्तव्य करने में बाधित नहीं होने और उन्हें कलीसिया से लात मारकर बाहर निकालने में सक्षम होंगे?” लेकिन उनके आध्यात्मिक कद को देखा जाए तो मुझे अफसोस है कि वे उसे हासिल नहीं कर सकेंगे। वैसे तो ये लोग सच्चाई से परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, उनमें कष्ट सहने का संकल्प है, वे लगन से अपना कर्तव्य करने के इच्छुक हैं और सत्य का अनुसरण करने के इच्छुक हैं, लेकिन वे बस बहुत ही ज्यादा कायर हैं। जब सिर्फ एक छोटा-सा दानव विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न करने के लिए सामने आया तब ये लोग, चाहे उनकी उम्र कितनी भी रही हो, बिदककर पीछे हट गए और डर गए, वे सब उसके नियंत्रण में आ गए और प्रतिरोध करने की हिम्मत नहीं कर सके। यह देखकर मुझे लगा कि ये लोग तो बहुत ही दयनीय हैं। अगर परमेश्वर लोगों की रक्षा नहीं करता, उनके लिए चिंतित नहीं रहता और उनकी निगरानी नहीं करता तो इस मानवजाति के पास जिंदा बचने का कोई रास्ता नहीं होता। वास्तविक जीवन में घटने वाली इन घटनाओं को देखो : विभिन्न दानवों का व्यवहार, उनके मकसद और चीजें करने की उनकी विधियाँ और युक्तियाँ लगभग समान होती हैं और उनका भेद पहचानना आसान होता है, फिर भी जब विभिन्न दानव गड़बड़ियाँ और विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न करने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बाधित करने, नियंत्रित करने, बाँधने और गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाने के लिए बाहर आते हैं तब कम ही लोग खड़े होने और प्रतिरोध करने की हिम्मत करते हैं, कोई भी इन दानवों को उजागर करने, उन्हें उनके पदों से हटाने और उन्हें कलीसिया से दूर करने की पहल नहीं करता है; वे बस दानवों को परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नियंत्रित करने और कलीसिया के कार्य में व्यवधान डालने और तोड़फोड़ करने देते हैं। ये दयनीय लोग यह सब बस सहते रहते हैं; वे अपने दिलों में परेशान महसूस करते हैं और परमेश्वर से प्रार्थना करते समय खून के आँसू रोते हैं, लेकिन उनके पास कोई समाधान नहीं होता है; उनके पास कोई बुद्धिमानी भरी विधि नहीं होती है और वे दानवों का प्रतिरोध करने, उनसे लड़ने और उनसे निपटने के लिए सत्य का उपयोग एक शक्तिशाली हथियार के रूप में नहीं करते हैं। कोई भी ऐसा नहीं करता है और न ही ऐसा करने की हिम्मत करता है; उनमें दानवों का सामना करने तक का साहस नहीं होता है। किसी भी कलीसिया में अगर लोगों को नियंत्रित करने और कलीसिया के कार्य में गड़बड़ करने और बाधा डालने के लिए बुरे लोग या दानव प्रकट होते हैं तो ज्यादातर लोग इसे बस सहते रहते हैं। अंत में परमेश्वर का घर ही इन विभिन्न प्रकार के दानवों से निपटने के लिए आगे आता है और कलीसिया में उनका समय समाप्त कर देता है जिससे भाई-बहन सुरक्षित रहने, सामान्य रूप से कलीसियाई जीवन जीने, परमेश्वर के वचनों को सामान्य रूप से खाने-पीने और अपने कर्तव्य सामान्य रूप से करने में समर्थ हो जाते हैं और कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदें सुव्यवस्थित ढंग से आगे बढ़ने में समर्थ हो जाती हैं। पूरी तरह से, परमेश्वर द्वारा लोगों को भेजने और परमेश्वर के घर द्वारा व्यक्तिगत रूप से इस विशिष्ट कार्य के निर्वहन की व्यवस्था और मार्गदर्शन करने के जरिए ही इन अपरिपक्व, जाहिल और कमजोर लोगों की बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किए जाने और गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाए जाने से रक्षा होती है। सत्य नहीं समझने वाले ये बेवकूफ और जाहिल कितने दयनीय होते हैं! व्यापक परिवेश में पूरी मानवजाति शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दी गई है; विशिष्ट जीवनयापन के परिवेशों में लोगों को विभिन्न दानवों द्वारा परेशान और नियंत्रित किया जाता है और गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाया जाता है। कुछ लोग आध्यात्मिक कद में छोटे होते हैं और उनके पास उथली नींव होती है, इसलिए जब उनका सामना बुरे लोगों की विघ्न-बाधाओं से होता है तब वे इन चीजों की असलियत नहीं जान सकते हैं। वे हमेशा यही सोचते हैं कि कलीसिया में बुरे लोग मौजूद नहीं होने चाहिए और सोचते हैं कि लोगों के बीच कोई प्रेम या मानवीय गर्मजोशी नहीं है। कुछ लोग तो अपना कर्तव्य तक अब और नहीं करना चाहते, कहते हैं, “इससे तो घर पर रहकर परमेश्वर में विश्वास रखना बेहतर होगा। ऐसे लोगों को कलीसिया में मौजूद रहने की अनुमति क्यों दी जाती है?” जो लोग सत्य नहीं समझते हैं, वे इन चीजों की असलियत नहीं जान सकते हैं। वे इन मामलों से सबक नहीं सीख पाते हैं; उन्हें नहीं पता कि उनका ऐसी चीजों से सामना होने के पीछे परमेश्वर के अच्छे इरादे हैं; वे नहीं जानते कि उन्हें किसके पक्ष में खड़ा होना चाहिए या सत्य सिद्धांतों का उपयोग करते हुए इन मामलों से कैसे पेश आना चाहिए; वे दानवों का विरोध करने और उनसे लड़ने के लिए सच्चे भाई-बहनों के साथ एकजुट होने में समर्थ नहीं हैं। क्या यह आध्यात्मिक कद में छोटा होना नहीं है? क्या यह दयनीय नहीं है? (हाँ, है।)

दानव से पुनर्जन्म लिए हुए प्रकार के व्यक्ति की पहली विशेषता जो उसके दैनिक जीवन में प्रकट होती है वह आदतन झूठ बोलना है। इस बात पर ध्यान दिए बगैर कि व्यक्ति की उम्र, लिंग या पृष्ठभूमि क्या है और वह कितने वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखे हुए है, जब तक उसकी बातों में हमेशा झूठ होते हैं, जब तक वह झूठ से भरा होता है और आदतन झूठ बोलता है तब तक वह दानव से पुनर्जन्म लिया हुआ है; वह मनुष्य नहीं है। मनुष्य भी झूठ बोलते हैं क्योंकि उनमें भ्रष्ट स्वभाव होते हैं; भ्रष्ट स्वभावों के भीतर निहित धोखेबाजी और दुष्टता मनुष्य के झूठ बोलने का कारण बन सकती हैं। लेकिन मनुष्य के झूठ बोलने की मात्रा दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों के झूठ बोलने की मात्रा से भिन्न होती है। अगर कोई व्यक्ति आदतन झूठ बोलता है तो अकेला यह तथ्य ही यह प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि वह अपने सार में मनुष्य नहीं है, बल्कि एक दानव है। जमीर के प्रभाव के कारण मनुष्यों के लिए आदतन झूठ बोलने की हद तक पहुँचना बिल्कुल असंभव है। वैसे तो ऐसे समय भी आते हैं जब मनुष्य झूठ बोलते हैं और धूर्तता करते हैं, लेकिन उनका झूठ बोलना भ्रष्ट स्वभाव का एक सामान्य प्रकाशन भर है; इसमें कुछ खास मामलों के संबंध में कभी-कभार झूठ बोलना शामिल होता है। वैसे तो बाहर से मनुष्यों का झूठ बोलना और दानवों का झूठ बोलना एक जैसा लग सकता है, लेकिन सार में, उनमें अंतर होता है। जब दानव झूठ बोलते हैं तब उन्हें कभी भी आत्मग्लानि या पछतावा महसूस नहीं होता है। इसके अलावा, वे अपने आप से खुश होते हैं, संतुष्ट महसूस करते हैं और वे जो झूठ बोलते हैं और जो धोखे वाले कार्य करते हैं उनके संबंध में उन्हें उपलब्धि का बोध होता है। अगर कोई झूठ असफल हो जाए तो वे ज्यादा लोगों को धोखा देने के लिए ज्यादा झूठ बोलने और ज्यादा उन्नत भ्रामक युक्तियाँ अपनाने के अपने प्रयास उत्तरोत्तर बढ़ा देंगे। लेकिन जब भ्रष्ट स्वभावों वाले सामान्य मनुष्य झूठ बोलते हैं, उसके बाद उनका जमीर असहज हो जाता है और वे तिरस्कृत महसूस करते हैं और इतने ज्यादा कलंकित महसूस करते हैं कि जीना ही नहीं चाहते। अगर उन्होंने किसी को धोखा दिया है तो उस व्यक्ति से दोबारा मिलने पर उन्हें कुछ हद तक शर्मिंदगी महसूस होती है। अगर उनसे सार्वजनिक रूप से अपना झूठ स्वीकार करने और फिर कभी झूठ नहीं बोलने और सिर्फ सच बोलने का वादा करने के लिए कहा जाए, तो उनका मौजूदा आध्यात्मिक कद अभी तक उस स्तर तक नहीं पहुँचा है। हालाँकि उनमें एक आंतरिक जागरूकता होती है; उन्होंने जो झूठ बोले उनके लिए वे शर्म, अपराधबोध और असहजता महसूस करते हैं; वे भीतर से दोषी महसूस करते हैं। लेकिन किसी दानव से पुनर्जन्म लिया हुआ इस प्रकार का व्यक्ति आदतन झूठ बोलता है। वह झूठ बोलने के बाद न तो कोई आंतरिक आरोप और न ही कोई अपराधबोध महसूस करता है। वह अपराधबोध क्यों महसूस नहीं करता है? क्योंकि वह दानव है। लोगों या परमेश्वर के प्रति अपराधबोध महसूस करना, अपने दिल में दोषी महसूस करना—यह तो मनुष्य की सामान्य जागरूकता है। चूँकि वह दानव है, इसलिए उसमें ऐसी जागरूकता नहीं है। इसलिए वह झूठ बोलना जारी रख सकता है और यहाँ तक कि अपने प्रयास भी उत्तरोत्तर बढ़ा सकता है; वह झूठ बोलता ही रहेगा और कभी नहीं बदलेगा। अंततः उसका झूठ बोलना कब बंद होता है? सिर्फ अपने भौतिक जीवन की अंतिम साँस के बाद, जब वह और नहीं बोल सकता तब जाकर उसका झूठ बोलना बंद होता है। लेकिन उसके भीतर बसे झूठ बोलने वाले दानव की आत्मा किसी दूसरे व्यक्ति में पुनर्जन्म ले लेती है और फिर वह व्यक्ति झूठ बोलना जारी रखता है। इसलिए, दानवों की झूठ बोलने वाली प्रकृति कभी नहीं बदलती। यह आदतन झूठ बोलना है। दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग किसी को भी धोखा दे सकते हैं और कोई भी झूठ बोल सकते हैं। वे किसी भी परिस्थिति में और किसी भी मामले के बारे में झूठ बोल सकते हैं और उनकी झूठ बोलने की युक्तियाँ विशेष रूप से परिष्कृत होती हैं; कोई भी नहीं देख सकता कि वे झूठ बोल रहे हैं। देखो, जब अक्सर झूठ बोलने वाले लोग कोई झूठ बोलते हैं तब यह एक सामान्य व्यक्ति के सच बोलने जैसा होता है—यह बहुत स्वाभाविक लगता है जिसमें कोई प्रत्यक्ष खामी नहीं होती है। तुम्हें ऐसा लग सकता है कि वे सच बोल रहे हैं। अगर तुम उनके झूठ को सच मान लोगे तो वे मन ही मन तुम पर हँसेंगे और सोचेंगे, “बेवकूफ, मैं तो बस मजाक कर रहा था और तुमने उसे सच मान लिया? तुम वाकई निरे बेवकूफ हो!” अगली बार जब वे तुमसे मिलेंगे तब भी वे झूठ ही बोलेंगे और तुम्हारे साथ खिलवाड़ करेंगे, सिर्फ यह देखने के लिए कि वह झूठ सुनने के बाद तुम्हारी क्या प्रतिक्रिया होती है। अगर तुम इसे फिर से सच मान लोगे तो वे और भी खुश हो जाएँगे, उन्हें उपलब्धि का और भी ज्यादा बोध होगा और उन्हें और भी ज्यादा लगेगा कि वे जिस तरह से आचरण करते हैं उसमें वे सफल हैं। मुझे बताओ, क्या वे मनुष्य हैं? क्या उनमें मानवीय जागरूकता है? क्या उनमें मानवीय जमीर का बोध है? जाहिर तौर पर नहीं है। उनके झूठ जितने ज्यादा प्रभावी होंगे, वे भीतर से उतने ही ज्यादा तुष्ट और खुश होंगे, उन्हें अपनी उपलब्धि का बोध उतना ही ज्यादा होगा और वे उतने ही ज्यादा सक्षम महसूस करेंगे। अगर कोई दिन ऐसा गुजर जाता है जब उन्होंने किसी को धोखा देने या किसी के साथ खिलवाड़ करने के लिए झूठ न बोला हो तो उन्हें लगता है कि वह दिन असहज था और सार्थक नहीं था, और उन्हें लोगों को धोखा देने का कोई न कोई अवसर ढूँढ़ना ही पड़ता है। उदाहरण के लिए, अगर कोई दानव देखता है कि दो लोगों के बीच अच्छा रिश्ता है और वे अपने कर्तव्यों में सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग कर रहे हैं तो वे भीतर से असहज महसूस करते हैं और सोच-विचार करते हैं, “चलो, मैं कुछ कलह के बीज बो दूँ और कुछ अफवाहें फैला दूँ ताकि तुम दोनों एक दूसरे के खिलाफ हो जाओ, और फिर तुम चाहकर भी वापस अच्छा रिश्ता नहीं बना पाओगे।” बस कुछ ही शब्दों से यह दानव उन दो लोगों को भ्रम के जाल में फाँस लेता है और फिर उनके बीच मतभेद और विवाद हो जाते हैं और अब वे पहले जैसे सामंजस्यपूर्ण ढंग से नहीं रहते हैं जिससे यह दानव आनंदित होता है, वह असाधारण रूप से खुश हो जाता है। कलीसिया में छिपे दानव हमेशा इस तरह की चीजें करते रहते हैं। अविश्वासी दुनिया के दानव भाई-बहनों को बेरहमी से गिरफ्तार करते हैं। जब तक तुम कहते हो कि तुम परमेश्वर में अब और विश्वास नहीं रखते या उसका अनुसरण नहीं करते या अगर तुम परमेश्वर के बारे में शिकायत करते हो या परमेश्वर को धोखा देते हो तब तक वे खुश हैं। तुम कुछ भी कर सकते हो—तुम खा-पी सकते हो, वेश्यावृत्ति कर सकते हो और जुआ खेल सकते हो; तुम आगजनी, हत्या और लूटपाट कर सकते हो; तुम कोई भी अपराध कर सकते हो—जब तक तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते तब तक वे खुश हैं। क्या मनुष्यों के बीच दानवों द्वारा की जाने वाली चीजों और आध्यात्मिक लोक में शैतान द्वारा की जाने वाली चीजों के बीच कोई संबंध है? क्या इसमें कोई समानता है? ये दानव उन लोगों से विशेष रूप से नफरत करते हैं जो परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और सही मार्ग पर चलते हैं। जो कोई भी सत्य का अनुसरण करता है या हमेशा सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने पर अड़ जाता है या अक्सर परमेश्वर की गवाही देता है या लगन से अपना कर्तव्य करता है—जब वे ऐसे लोगों को देखते हैं तब उन्हें गुस्सा आ जाता है और वे उन्हें दुश्मन मान लेते हैं। यह जलन नहीं है; यह नफरत है। तबाही का उद्देश्य हासिल करने के लिए वे जो विधियाँ अपनाते हैं उनमें से एक है तुम्हें परेशान करने, गुमराह करने और घसीटकर नीचे गिराने के लिए झूठ बोलकर धोखा देना। हो सकता है कि ऐसा करने से उन्हें कोई लाभ न पहुँचे, लेकिन एक बार जब वे तुम्हें घसीटकर नीचे गिरा चुके होते हैं ताकि तुम परमेश्वर में आस्था खो दो, नकारात्मक और कमजोर हो जाओ और अपना कर्तव्य करने के अनिच्छुक हो जाओ या दूसरों के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से अब और सहयोग न कर सको तब उनका उद्देश्य हासिल हो चुका होता है, वे खुश हो जाते हैं और उनकी चिंताएँ गायब हो जाती हैं। क्या दानव यही चीज नहीं करते हैं? (हाँ।) यह तथ्य निश्चित है कि शैतान आदतन झूठे होते हैं, यह सभी संदेहों से परे है। किसी भी व्यक्ति को ले लो—चाहे उसकी जाति कोई भी हो, उसका रूप-रंग कैसा भी हो, चाहे वह लंबा हो या ठिगना, मोटा हो या दुबला, बदसूरत हो या सुंदर, चाहे उसकी शिक्षा का स्तर कोई भी हो या उसका व्यक्तित्व कैसा भी हो, चाहे उसकी प्रतिभाएँ बड़ी हों या छोटी, चाहे उसमें खूबियाँ हों या नहीं, चाहे उसकी रुचियाँ और शौक कुछ भी हों—उसमें बस एक विशेषता होने की जरूरत है, कि वह आदतन झूठ बोल सके और कभी भी न बदले। यह कभी-कभार झूठ बोलना नहीं है, न ही यह कोई और विकल्प नहीं होना है और न ही यह किसी विशेष मामले में बुद्धिमानी का उपयोग करने की जरूरत होना है, बल्कि वह जरूरत पर ध्यान दिए बगैर, स्थिति या पृष्ठभूमि पर ध्यान दिए बगैर, मामले पर ध्यान दिए बगैर झूठ बोलने, मनगढ़ंत बातें बनाने, चालें चलने और तुच्छ चालबाजियों में संलग्न होने पर अड़ जाता है। अगर उसमें यह विशेषता है तो इस किस्म का व्यक्ति पूरी तरह से दानव है। यह विश्वास बिल्कुल मत करना कि वह एक अच्छा व्यक्ति बन सकता है और उसके मुँह से निकलने वाली सुखद बातों पर तो बिल्कुल विश्वास मत करना। भले ही वह संकल्प व्यक्त करे या भयानक कसमें खाए, उस पर विश्वास मत करना क्योंकि वह दानव है, मनुष्य नहीं है। भले ही दानव भयानक कसमें खाएँ, यह सिर्फ कुछ समय के लिए स्थिति से निपटने के लिए होता है; यह सब धोखा है। वे अपनी खाई कसमों के अनुसार कार्य करने में मूल रूप से असमर्थ होते हैं। अगर तुम उन पर विश्वास करते हो तो तुम बेवकूफ हो; तुम दानवों के सार की असलियत नहीं जान सकते। वे किसी भी चीज के बारे में झूठ बोल सकते हैं, इसलिए वे जो भयानक कसमें खाते हैं वे भी झूठ होते हैं। क्योंकि वे कभी यह विश्वास नहीं करते हैं कि परमेश्वर हर चीज की पड़ताल करता है और यह विश्वास नहीं करते हैं कि परमेश्वर हर व्यक्ति के क्रियाकलापों के अनुसार प्रतिफल देगा—वे यह विश्वास नहीं करते हैं कि परमेश्वर इस तरीके से कार्य कर सकता है, इसलिए वे अपने क्रियाकलापों में सिर्फ अपनी इच्छा का पालन करते हैं, अपनी मर्जी से झूठ बोलते हैं और धोखा देते हैं; वे अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए कुछ भी करने में सक्षम हैं। यह दानवों की विशेषता है और उनका प्रकृति सार भी। अब तुम इस मामले को स्पष्ट रूप से देख रहे हो, है ना? (हाँ।)

पशुओं से पुनर्जन्म लिए हुए लोग भी ठीक दानवों की तरह झूठ बोलते हैं क्योंकि उनमें भ्रष्ट स्वभाव होते हैं, लेकिन फटकारे जाने पर वे अपने दिलों में इसे कुछ हद तक स्वीकार लेते हैं। वैसे तो वे इसे स्वीकार सकते हैं, लेकिन अपने पाशविक गुण के कारण वे सत्य नहीं समझ सकते हैं, इसलिए वे कभी भी यह ठीक से नहीं समझते हैं कि झूठ नहीं बोलने का क्या मतलब है या सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने का क्या मतलब है। अगर वे कहें, “मैं फिर कभी झूठ नहीं बोलूँगा, मैं सच बोलना चाहता हूँ” तो भी जब वे इसे व्यवहार में लाने का प्रयास करते हैं तब वे बहुत ही अनाड़ी और बुद्धू लगते हैं। दूसरों को यह दृश्य हास्यकर लगता है और वे कहते हैं, “इस तरह से सत्य का अभ्यास कौन करता है? ऐसा तो मैंने पहली बार देखा है—इससे सचमुच मेरे ज्ञान के दायरे का विस्तार हुआ है!” यह ऐसा है जैसे कोई पशु मनुष्य की तरह उठ खड़ा हुआ हो और बिल्कुल सीधा चल रहा हो; यह बहुत ही भद्दा और अजीब लगता है। पशुओं से पुनर्जन्म लिए हुए कुछ लोग ईमानदार भी होना चाहते हैं और कुछ अच्छी चीजें भी करना चाहते हैं, लेकिन वे अभ्यास के सटीक सिद्धांत ढूँढ़ नहीं सकते हैं। जब वे अभ्यास करते हैं तब यह बहुत ही बेतुका लगता है और एक मजाक बन जाता है। दूसरों को यह दृश्य हास्यकर लगता है, लेकिन फिर भी ये लोग सोचते हैं कि वे ईमानदार हैं। क्या यह बेहूदा नहीं है? मान लो कि तुम उनसे कहते हो, “अगर तुम ईमानदार व्यक्ति बनना चाहते हो तो तुम्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तुम झूठ नहीं बोल रहे हो, बहाने नहीं बना रहे हो, खुद को सही ठहराने का प्रयास नहीं कर रहे हो या अनुचित रूप से बहस नहीं कर रहे हो। यह करना पर्याप्त है। यही ईमानदार होना है। अगर तुम ऐसी चीजें करते हो जो सत्य का उल्लंघन करती हैं और इस तरह से तुम अपराध करते हो तो तुम खुलकर बात कर सकते हो और सबके सामने खुद को उजागर कर सकते हो। कोई भी व्यक्ति ऐसा कुछ भी कहे जो सत्य के हिसाब से है तो उसे स्वीकार लो। तर्कहीन या बेहूदा चीजें मत करो।” लेकिन वे इसे नहीं समझते हैं। जब वे इसे व्यवहार में लाते हैं तब वे गलती करते हैं। तुम लोगों की राय में इस प्रकार के व्यक्ति की सबसे बड़ी समस्या क्या है? वह यह है कि वह सामान्य मनुष्यों के मानक पर खरा नहीं उतरता है। क्या पशुओं से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों और दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों में कोई अंतर है? (हाँ।) यह अंतर कहाँ निहित है? (उनका विकृत अभ्यास इसलिए नहीं है क्योंकि वे दानवी प्रकृति के दानव हैं, बल्कि मुख्य रूप से इसलिए है क्योंकि उनमें काबिलियत की कमी है और वे उस सामान्य सोच और विवेक को प्राप्त नहीं कर सकते जो मनुष्यों में होनी चाहिए।) सही कहा, उनकी काबिलियत कम पड़ जाती है। हो सकता है कि खराब काबिलियत वाले लोग व्यक्तिपरक रूप से सत्य का अभ्यास करना चाहें, लेकिन वे सिद्धांतों पर पकड़ नहीं बना सकते; वे सिर्फ विनियमों को ही पकड़कर रख सकते हैं। इसलिए उनका अभ्यास उग्र, मूर्खतापूर्ण और बेवकूफी भरा होता है। लोग उनकी मदद करना चाहते हैं, लेकिन उनका स्वभाव काँटेदार साही जैसा होता है जिससे लोग यह समझ नहीं पाते हैं कि शुरुआत कहाँ से करें। उनसे सत्य की संगति चाहे कैसे भी की जाए, वे इसे समझने में या इस पर पकड़ बनाने में असमर्थ लगते हैं। पाँच-छह वर्षों की मदद और सहारे के बाद वे सिर्फ कुछ शब्द और धर्म-सिद्धांत ही समझते हैं और अब भी सत्य का अभ्यास नहीं कर सकते। उनकी काबिलियत बहुत ही ज्यादा खराब है। फिर भी ये बेवकूफ लोग हमेशा घिनौनी चीजें करते रहते हैं। जब यह बड़े या उचित मामलों से संबंधित न हो तब शिष्टाचार या सम्मान की चिंता के कारण तुम अब भी उनसे बात करने के लिए खुद को तैयार कर सकते हो। लेकिन जैसे ही उचित मामले शामिल होते हैं, उदाहरण के लिए, कर्तव्यों या कार्य के निर्वहन पर चर्चा करते समय, तुम्हें एक चिंताजनक, असहज एहसास होता है, तुम डरते हो कि वे किसी तरीके से प्रतिरोध करेंगे या आपत्ति करेंगे और तुम्हें शर्मिंदा करेंगे। इस प्रकार का व्यक्ति उचित विषयों पर चर्चा करने के योग्य नहीं है। तुम बस उनसे मेलजोल रख ही नहीं सकते; उनके साथ मेलजोल रखने से बहुत ही ज्यादा समस्याएँ आती हैं और यह उचित विषयों को भी प्रभावित करेगा। वे हमेशा टेढ़ी-मेढ़ी दलीलें और विषय से हटकर टिप्पणियाँ देते रहते हैं जिन्हें सुनना बस घिनौना लगता है। इस प्रकार के व्यक्ति ने और कौन-सी विकृत चीजें की हैं? अगर उनमें विपरीत लिंग के किसी व्यक्ति के लिए भावनाएँ जाग उठती हैं और उनमें दुष्ट काम-वासना होती है तो वे सोचते हैं कि उन्हें ईमानदार व्यक्ति होना चाहिए, इस बारे में खुलकर बात करनी चाहिए और इसे अपने भीतर दबाकर नहीं रखा जा सकता, इसलिए किसी सभा में वे इस मामले के बारे में खुलेआम बात करते हैं। जिस विपरीत लिंग के व्यक्ति के लिए उनके मन में भावनाएँ होती हैं, उसे यह सुनकर अजीब और असहज महसूस होता है और वह शर्मिंदा महसूस करता है। अगर तुम उन्हें रोकने का प्रयास करते हो तो वे परेशान हो जाते हैं, कहते हैं, “मैं दिल से बोल रहा हूँ और ईमानदारी से कह रहा हूँ। तुम्हें मुझे सत्य का अभ्यास करने से रोकने का क्या अधिकार है? यह मेरा अधिकार है! मैंने आखिरकार इस बारे में बोलने की हिम्मत जुटा ही ली, फिर भी तुम मुझे रोक रहे हो! परमेश्वर भी मुझे नहीं रोकता, तो फिर तुम्हें ऐसा करने का क्या अधिकार है? परमेश्वर तो मुझे ईमानदार व्यक्ति बनने का मौका भी देता है; यह तो बस तुम ही हो जो मुझे नीची नजर से देखते हो और ईमानदार नहीं होने देते। अगर मैं इस मामले को अपने भीतर ही दबाए रखूँ और इसके बारे में बात न करूँ तो क्या यह तथ्यों को छिपाना नहीं है? क्या यह धोखेबाज व्यक्ति होना नहीं है? तब मैं ईमानदार व्यक्ति नहीं होऊँगा। अगर मैं ईमानदार व्यक्ति नहीं हूँ तो क्या फिर भी परमेश्वर मुझे बचाएगा?” जैसा कि तुम देख सकते हो, सुनने वाला हर व्यक्ति असहज और शर्मिंदा महसूस करता है, फिर भी यह व्यक्ति विस्तार से बताने पर अड़ जाता है और तुम उसे रोक भी नहीं सकते। मुझे बताओ, इस मामले के संबंध में क्या किसी को सहनशील और धैर्यवान होना चाहिए या उसे रोकने के लिए सत्य सिद्धांतों की संगति करनी चाहिए? (हमें उसे रोकने के लिए सत्य सिद्धांतों की संगति करनी चाहिए।) अगर कोई प्रेमवश मदद करने का प्रयास करता है, उसे भविष्य में ऐसी बातें नहीं कहने के लिए समझाता है जिनसे दूसरों की नैतिक उन्नति नहीं होती है तो क्या वह इसे समझने और स्वीकारने में समर्थ होगा? (नहीं।) तो इस प्रकार के व्यक्ति का विकृतियों के प्रति झुकाव है, वह कुछ हद तक मूर्ख है और उसका विवेक बहुत दुरुस्त नहीं है, इसलिए उसे सिर्फ रोकने का ही सहारा लिया जा सकता है। हर किसी में दुष्ट कम-वासना होती है और कभी-कभार व्यक्ति के मन में विपरीत लिंग के किसी व्यक्ति के लिए कुछ भावनाएँ हो सकती हैं या वह उसके प्रति कुछ विचार रख सकता है। इसे निजी रूप से खुद पहचान लेना ही पर्याप्त है। अगर चीजें गलत दिशा में जा रही हैं तो उस व्यक्ति के साथ संपर्क कम-से-कम कर देना चाहिए या भविष्य में उसके साथ अकेले रहने से बचना चाहिए। सामान्य मानवता वाले लोग ऐसे मामलों से निपटते समय बुद्धिमानी भरी विधियों का उपयोग करेंगे और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करेंगे। वे जानते हैं कि इस तरह के मामलों को ईमानदार व्यक्ति बनने के लिए केवल अभ्यास के सिद्धांत लागू करके नहीं सँभाला जा सकता और इसके लिए बुद्धिमानी के कुछ सिद्धांत भी लागू करने होंगे। लेकिन पशुओं से पुनर्जन्म लिए हुए लोग ऐसे मामलों को सँभालना नहीं जानते हैं और यहाँ तक कि वे ऐसी चीजों के बारे में खुलेआम बात करने को भी ईमानदार होना मानते हैं। उन्हें नहीं पता कि यह क्या नतीजे लेकर आएगा। जब वे ईमानदार होने का प्रयास करते हैं तब वे बस एक विनियम और औपचारिकता का पालन करते हैं। और नतीजा क्या होता है? वे खुद पर, जिसके लिए उनमें भावनाएँ हैं उस पर और बाकी सभी पर मुसीबत ले आते हैं। जिस व्यक्ति के लिए उनमें भावनाएँ हैं वह इस मामले से प्रभावित और बेबस हो जाता है और परिस्थिति का सामना करने में असमर्थ महसूस करता है। इसे सुनकर बाकी सभी लोग भी थोड़ी शर्मिंदगी महसूस करते हैं, सोचते हैं, “अगर हम सुनते हैं तो ऐसा लगता है जैसे हम किसी की निजता में ताक-झाँक कर रहे हों; लेकिन अगर हम नहीं सुनते हैं तो वे तब भी बात करने पर अड़े रहेंगे, और यह विश्वास करेंगे कि वे ईमानदार हो रहे हैं।” देखो, सभी को यह मामला पेचीदा और परेशान करने वाला लगता है। क्या तुम यह नहीं कहोगे कि इस प्रकार का व्यक्ति एक बहुत बड़ी मुसीबत है? अगर तुम सिद्धांतों की संगति करते हो तो वह उसे स्वीकार नहीं करता है, और कहता है : “जब तुम लोग ईमानदार हो रहे होते हो और खुलकर बात करते हो तब तुम कुछ भी कह सकते हो, लेकिन जब मैं कुछ कहता हूँ तब यह ठीक नहीं होता है। क्या मैं भी ईमानदार नहीं हो रहा हूँ? मुझे बोलने का अधिकार क्यों नहीं है?” यहाँ तक कि वह इस बात पर भी ध्यान नहीं देता कि दूसरे लोग क्या कह रहे हैं। क्या उसका यह मामला खुलेआम संगति करने के लिए उपयुक्त है? इस प्रकार का व्यक्ति इसकी असलियत जान ही नहीं पाता है और ईमानदार होने के सिद्धांत नहीं समझता है। अंत में वह सभी को यह महसूस करवा देता है कि स्थिति को सँभालना काफी मुश्किल है। उसके प्रकार के लोग उसकी नकल करेंगे, कहेंगे, “देखो, वह ऐसी चीजों तक के बारे में संगति कर सकता है। उसमें सच में संकल्प है, वह सच में ईमानदार हो रहा है!” शुद्ध समझ वाले लोग यह सुनने पर जान जाते हैं कि उसका अभ्यास गलत है और यह पथभ्रष्ट हो गया है। अगर तुम उसकी मदद करना चाहो तो वह इसे स्वीकार ही नहीं करेगा। वह क्या कहेगा? “तुम मेरी मदद नहीं कर पाओगे। मेरी समझ तुम्हारी समझ से अलग है। मैं तो बस इसी तरीके से अभ्यास करने वाला हूँ।” तो फिर क्या किया जा सकता है? क्या तुम उसकी मदद करने में समर्थ हो? (नहीं।) अगर तुम वाकई उसकी मदद करने का प्रयास करोगे तो आखिर में तुम बस हालात को और बिगाड़ दोगे; न सिर्फ वह इसे स्वीकार नहीं करेगा, बल्कि वह तुमसे बहस भी करेगा और उलझेगा भी। क्या यह परेशानी वाली बात नहीं है? (हाँ।)

पशुओं से पुनर्जन्म लिए हुए लोग भी झूठ बोलने की अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं, लेकिन उनका झूठ बोलना ठीक वैसे अभिव्यक्त नहीं होता जैसे कि दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों का होता है। झूठ बोलने के प्रति उनका रवैया और झूठ बोलने के लिए वे जो विधियाँ अपनाते हैं वे भी अलग होती हैं। जब दानवों द्वारा बोले गए झूठ उजागर किए जाते हैं तब कोई विकल्प नहीं होने पर अगर वे बाहर से यह स्वीकार लें कि उन्होंने झूठ बोला था तो भी वे अभी भी पूरी तरह से जायज महसूस करते हैं। उन्हें लगता है कि यह कोई बड़ी बात नहीं है। या अगर वे अपना रुख व्यक्त करें और सबके सामने यह मान लें कि उनका झूठ बोलना गलत था तो भी पर्दे के पीछे वे अभी भी वैसे ही झूठ बोलते हैं और धोखा देते हैं, वे जरा भी नहीं बदलते। वे झूठ बोलने को कोई दुष्ट मामला या नकारात्मक चीज नहीं मानते। यह उनके जीवित रहने का हथियार है—वे इसे कैसे छोड़ सकते हैं? जो लोग आदतन झूठ बोलते हैं, वे मानते हैं, “इस मानव दुनिया में रहते हुए अगर व्यक्ति झूठ न बोले, अगर वह खुलकर बात करे और दूसरों के सामने खुद को उजागर कर दे और अगर दूसरे लोग सब कुछ जान जाएँ और ठीक से समझ जाएँ तो क्या तब भी उसका कोई अस्तित्व होगा? क्या तब भी जीवन का कोई मतलब होगा? क्या तब भी उसमें गरिमा होगी? इसके अलावा, अगर व्यक्ति हमेशा हर चीज के बारे में कोरा सच बोले तो जीवन कितना नीरस और फीका हो जाएगा! झूठ बोलना ही पड़ता है, चाहे कोई कारण हो या न हो।” किसी भी परिप्रेक्ष्य से, चाहे वे जानबूझकर झूठ बोलते हों या अनजाने में, यह उनकी प्रकृति की स्वाभाविक अभिव्यक्ति है। संक्षेप में, आदतन झूठ बोलना दानवों की एक प्रमुख विशेषता है—यह निस्संदेह निश्चित है। अकेले इसी बिंदु से इस पर विचार किया जाए तो इस प्रकार के लोगों के लिए सत्य स्वीकारना और ईमानदार होना बिल्कुल असंभव है; वे ऐसा बिल्कुल नहीं कर सकते। इसके अलावा, वे ईमानदार व्यक्ति होने की परमेश्वर की अपेक्षा के प्रति तिरस्कार महसूस करते हैं। चाहे उनका सामना किसी विशिष्ट मामले से हो या न हो, लोगों के ईमानदार होने की परमेश्वर की अपेक्षा के प्रति उनका रवैया हमेशा तिरस्कार, उपहास, विकर्षण और बेहद नफरत का होता है। वे ईमानदार व्यक्ति होने के संबंध में परमेश्वर की अपेक्षा और आचरण के सिद्धांत को अवहेलना से देखते हैं। अपने दिलों की गहराइयों से वे सत्य के प्रति विमुख होते हैं और उसे अस्वीकार करते हैं; यहाँ तक कि वे ईमानदार व्यक्ति होने का भी सीधा विरोध करते हैं और ऐसा होने से इनकार भी करते हैं।

दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों में आदतन झूठ बोलना एक बहुत ही स्पष्ट विशेषता है। जब तक तुम्हारा उनसे करीबी संपर्क रहता है, जब तक तुम कार्य या जीवन में उनसे बातचीत करते हो, संप्रेषण करते हो और मेलजोल रखते हो तब तक उनकी इस आदतन झूठ बोलने की विशेषता या असली चेहरा धीरे-धीरे उजागर होता जाएगा। इसलिए, इस प्रकार के व्यक्ति की असलियत जानना बहुत आसान है। तुम्हें दूसरे लोगों, घटनाओं या चीजों के बारे में व्यक्ति के विचारों और नजरियों को देखने की जरूरत नहीं है। जब तक तुम यह पता लगा लेते हो कि वह आदतन झूठा है तब तक तुम अकेले इसी बिंदु के आधार पर सौ प्रतिशत निश्चितता के साथ कह सकते हो कि वह दानव है, मनुष्य नहीं। कुछ लोग पूछते हैं, “क्या इसकी एक प्रतिशत भी संभावना है कि जो व्यक्ति आदतन झूठ बोलता है वह दानव न हो और अभी भी उसके पास उद्धार प्राप्त करने की उम्मीद हो?” मैं तुम्हें बताता हूँ, इसकी बिल्कुल कोई संभावना नहीं है। जो कोई भी आदतन झूठ बोलता है वह सौ प्रतिशत दानव है; कुछ और होने की एक प्रतिशत भी संभावना नहीं है। समझे? कुछ लोग कहते हैं, “क्या ऐसा हो सकता है कि कुछ लोग इसलिए आदतन झूठ बोलते हैं क्योंकि वे बहुत गहराई से भ्रष्ट हो चुके हैं, वे समाज के बुरे रुझानों से बहुत ही बुरी तरह से प्रभावित हो चुके हैं और उनकी मानवता का जमीर और विवेक दब चुका है या वे दानवों द्वारा पूरी तरह से आत्मसात कर लिए गए हैं और इसी कारण से वे आदतन झूठ बोलते हैं? अगर भाई-बहनों की मदद और सहारे की एक अवधि के बाद और परमेश्वर के वचनों से सींचे और पोषित किए जाने के बाद उनका जमीर धीरे-धीरे जाग सके और उनका विवेक धीरे-धीरे ठीक हो सके तो क्या वे बदल नहीं जाएँगे और आदतन झूठ बोलना बंद नहीं कर देंगे?” मैं तुम्हें बताता हूँ, ऐसी कोई संभावना नहीं है, करोड़ों में एक की भी संभावना नहीं है। इसलिए, जो कोई भी आदतन झूठ बोलता है, वह दानव है, बिल्कुल भी मनुष्य नहीं है, उसमें जरा-सी भी सामान्य मानवता नहीं है। समझे? (समझ गए।) यह निश्चित है; इसमें कोई अपवाद नहीं हैं और कोई विशेष परिस्थितियाँ नहीं हैं। तुम लोगों को इस मामले को स्पष्ट रूप से देखना होगा। शायद तुम किसी ऐसे व्यक्ति को देखो जो किसी मामले को सँभालते समय अविश्वासियों से कुछ असत्य कह देता है—झूठ जैसा कुछ—ताकि वह परमेश्वर के घर के हितों का बचाव कर सके और भाई-बहनों की रक्षा कर सके। तब तुम्हें इस मामले के बारे में संदेह होगा, तुम सोचोगे, “इससे पहले मुझे लगता था कि वह सत्य का अनुसरण करने वाला व्यक्ति है, तो फिर वह इतने बड़े मुद्दे के बारे में झूठ कैसे बोल सका? अगर वह इस बड़े मुद्दे के बारे में झूठ बोल सकता है तो क्या वह दानव है? क्या सत्य का उसका अनुसरण एक मुखौटा है?” क्या समझने का यह तरीका सही है? (नहीं।) इसमें क्या गलत है? इस मामले को सही ढंग से कैसे देखा जाना चाहिए? (उसने उस व्यक्ति के क्रियाकलापों के पीछे के इरादे या हासिल किए गए प्रभाव का भेद नहीं पहचाना है। अगर कोई कुछ असत्य कहता है, लेकिन वह ऐसा कोई सकारात्मक प्रभाव हासिल करने के लिए—परमेश्वर के घर के हितों का बचाव करने और भाई-बहनों की रक्षा करने के लिए—करता है तो यह झूठ बोलना नहीं है; यह एक तरह की बुद्धिमानी है। उसने झूठ बोलने और बुद्धिमानी का उपयोग करने में अंतर का भेद नहीं पहचाना।) तुम्हें झूठ बोलने की प्रकृति को स्पष्ट रूप से देखना होगा। देखो कि कोई झूठ किस सिद्धांत पर आधारित है और यह क्या उद्देश्य हासिल करने का लक्ष्य रखता है। अगर कोई व्यक्ति कोई सकारात्मक प्रभाव हासिल करने और सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए कुछ असत्य कहता है तो यह झूठ बोलना नहीं है—यह बुद्धिमानी है। इसके अलावा देखो कि क्या वह ऐसा व्यक्ति है जो दैनिक जीवन में आदतन झूठ बोलता है। अगर उसने सिर्फ एक घटना में झूठ बोला तो तुम यह तय नहीं कर सकते कि वह झूठा है या वह आदतन झूठ बोलता है, है ना? (हाँ।) अगर किसी बड़े मामले में उसने परमेश्वर के घर के हितों का बचाव करने के लिए कुछ असत्य कहा हो और तुम उसे ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित कर देते हो जो आदतन झूठ बोलता है तो यह विकृत होना है। लोगों को इस तरह से निरूपित करना और देखना सिद्धांतों के हिसाब से नहीं है। अगर उसने अपना खुद का सम्मान और प्रतिष्ठा बचाने के लिए एक घटना में झूठ बोला, लेकिन वह आमतौर पर ज्यादातर मामलों में झूठ नहीं बोलता है और अगर वह झूठ बोलता भी है तो अगर वह बाद में उसे सुधार सकता है तो ऐसे व्यक्ति को भी आदतन झूठ बोलने वाला तय नहीं किया जा सकता। सिर्फ दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग ही आदतन झूठ बोलते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “तुम कहते हो कि वे आदतन झूठ बोलते हैं, लेकिन कभी-कभी वे सच भी बोलते हैं। उदाहरण के लिए, उन्होंने कुछ खरीदा और जब किसी ने उसकी कीमत पूछी तब उन्होंने सच-सच बता दिया; उन्होंने उस बारे में झूठ नहीं बोला। तो तुम कैसे कह सकते हो कि वे आदतन झूठ बोलते हैं?” जब निजता, हित, रुतबा या सम्मान का प्रश्न न हो तब उन्हें झूठ बोलने की कोई जरूरत नहीं होती है। झूठ बोलना उनके लिए भी थकाऊ होता है, इसलिए परेशानी से बचने के लिए वे मामूली चीजों के बारे में झूठ नहीं बोलते हैं। हालाँकि, सिर्फ इसलिए कि वे एक अवसर पर झूठ नहीं बोलते हैं या मामूली चीजों के बारे में झूठ नहीं बोलते हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि वे आदतन झूठ नहीं बोलते हैं। तुम्हें बस यह देखने की जरूरत है कि क्या वे दूसरों से संप्रेषण करते समय, बड़ी घटनाओं का वर्णन करते समय या उनका ब्यौरा देते समय, जब उनके अपने हित, शोहरत, फायदा, रुतबा, संभावनाएँ या जिम्मेदारियाँ शामिल होती हैं या जब उनके अपने विचार शामिल होते हैं तब क्या वे झूठ बोलते हैं या नहीं। ऐसी स्थिति में देखो कि उनके शब्दों में कितनी असत्यता है, कितनी सच्चाई है और कितनी विश्वसनीयता है। अगर उनके शब्दों में बहुत ही ज्यादा असत्यता है, जो व्यावहारिक रूप से काले को सफेद में बदल देते हैं, अचानक कहीं से चीजें गढ़ लेते हैं, दोष को दूसरों के मत्थे मढ़ देते हैं; अगर वे अपनी की गई बुरी चीजों का आरोप दूसरों पर लगा देते हैं और दूसरों द्वारा की गई अच्छी चीजों का श्रेय खुद ले लेते हैं; अगर उन्होंने किसी मामले में गलती की और इसके लिए उन्हें जिम्मेदार होना चाहिए, लेकिन वे अपनी बातों से बहला-फुसलाकर बच निकलते हैं, अपनी जिम्मेदारी से पूरी तरह से पल्ला झाड़ लेते हैं और इसे दूसरों पर मढ़ देते हैं; अगर उन्होंने अपना कार्य अच्छी तरह से नहीं किया या कोई कीमत नहीं चुकाई या अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं की या उन्होंने ऐसा इसलिए नहीं किया क्योंकि उन्हें खतरे का डर था और उन्होंने झूठ बोला, सच्चाई छिपाने और खुद को जिम्मेदारी से मुक्त करने के लिए अपेक्षाकृत उचित बहाना दिया—क्या ये झूठ नहीं हैं? (हाँ, हैं।) ये सब झूठ हैं। यह आदतन झूठ बोलना है। यानी जब भी मामलों में उनके निजी हित, जिम्मेदारियाँ, सम्मान, रुतबा वगैरह जुड़े होते हैं तब वे इन सभी में झूठ बोलते हैं। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति ने एक मेजबान परिवार के लिए सत्तर युआन की एक कुर्सी खरीदी। लौटने के बाद खर्च की रिपोर्ट देते समय उसने सोचा, “यह सफर काफी थकाऊ था और ऐसा तो हो नहीं सकता कि मैंने बेकार ही दौड़-धूप की हो। मुझे किसी भी तरह से तीस युआन कमाने ही होंगे। यह तीस युआन श्रम के लिए, इस दौड़-धूप के लिए है।” तो उसने कहा कि कुर्सी की कीमत सौ युआन है। देखो, उसने झूठ बोला, है ना? उसने झूठ क्यों बोला? (वह थोड़ा फायदा लेना चाहता था।) वह थोड़ा-सा मुनाफा कमाना चाहता था। मान लो कि वह भाई-बहनों के साथ मिलकर कर्तव्य कर रहा है और दो लोगों को मिलजुलकर रहते देख वह सोचता है, “मेरे साथ किसी की दोस्ती नहीं है, सब मुझे नीची नजर से देखते हैं और कोई भी मेरे साथ मिलजुलकर नहीं रहता। चलो मैं तुम दोनों के बीच झगडा शुरू करवा देता हूँ और तुम लोगों के रिश्ते में कुछ कलह के बीज बो देता हूँ।” तो वह उनमें से एक व्यक्ति से कहता है, “अमुक ने कहा कि तुम खुद को अच्छा पढ़ा-लिखा समझते हो और अगर तुम इतने ही पढ़े-लिखे हो तो ऐसा क्यों है कि तुम लेख नहीं लिख सकते?” फिर वह दूसरे व्यक्ति के पास जाता है और कहता है, “अमुक व्यक्ति ने कहा कि वैसे तो तुम लंबे हो, लेकिन तुम्हारा शरीर सुडौल नहीं है और तुम्हारे शरीर के ऊपर का और नीचे का हिस्सा अनुपात में नहीं हैं।” इन कुछ शब्दों से वह दोनों के बीच कलह के बीज बो देता है। जब वे दोनों फिर से मिलते हैं तब वे फूट डालने वाले शब्दों को याद करके एक-दूसरे को नापसंदगी से देखते हैं और असहज महसूस करते हैं। उकसाने वाले को क्या हासिल हुआ? बाहर से ऐसा लगता है कि उसे कुछ हासिल नहीं हुआ, लेकिन यह देखकर कि दोनों एक-दूसरे से दूर हो गए हैं और उनके रिश्ते में खटास आ गई है वह अंदर से सुकून महसूस करता है और अब उसे और जलन नहीं होती। तब उसे लगता है कि उसने कोई फायदा हासिल किया है। इसलिए, वह इस मामले में झूठ तक बोलता है। हो सकता है कि कोई कहे, “क्या यह अपना फायदा किए बिना दूसरों को नुकसान पहुँचाना नहीं है? अगर वे दोनों आपस में बात कर लें तो क्या उन्हें पता नहीं चल जाएगा कि तुमने उनके बीच आग लगाई है? क्या इससे तुम खुद पर आपदा नहीं ले आओगे?” क्या उसे इसकी परवाह है? उसे परवाह नहीं है। जब तक वे दोनों अलग रहते हैं तब तक उसे जलन नहीं होती और उसे लगता है कि उसने कोई फायदा हासिल किया है। क्या ऐसा दानव नहीं करते हैं? (हाँ।) दानव ठीक ऐसे ही कार्य करते हैं।

हो सकता है कि दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग छोटे-मोटे, मामूली मामलों के बारे में सच-सच बोलें, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उनमें झूठ बोलने की प्रकृति नहीं होती। सभी मामलों में, चाहे वे महत्वपूर्ण हों या आम, जब तक उन्हें लगता है कि उनकी छवि जुड़ी हुई है, जब तक वे असहज महसूस करते हैं या वे कोई फायदा पाना चाहते हैं या कोई लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं—जब तक उनका कोई इरादा है और वे कार्य करना चाहते हैं—तब तक उसे पूरा करने के लिए उनका तरीका निश्चित रूप से झूठ का उपयोग करने का होगा। यह आदतन झूठ बोलना है। जब भोजन, कपड़ों या आश्रय की बात आती है तब वे शायद झूठ नहीं बोलते हैं; आमतौर पर वे छोटी-मोटी बातों की खातिर झूठ बोलने के लिए दिमागी ऊर्जा खर्च करने का कष्ट नहीं करते हैं। इसके अलावा, उनकी नजर में कुछ लोग बस उनके स्तर या दर्जे के होते ही नहीं हैं, वे उनके अस्तित्व को स्वीकारने की भी परवाह नहीं करते हैं और उनके साथ खिलवाड़ करने या हेरा फेरी करने से उन्हें उपलब्धि का कोई बोध नहीं होता है, इसलिए वे किसी भी तरीके से उनके खिलाफ कार्य करने की परवाह नहीं करते। अगर वे किसी के खिलाफ कार्य करने जा रहे हैं तो वह जरूर कोई ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिसे वे अपने स्तर का समझते हों, जिसके साथ वे खेल खेल सकें और जो उनका प्रतिद्वंद्वी हो—सिर्फ तभी वे उस व्यक्ति के अस्तित्व को स्वीकारेंगे। यह दानवों की एक और विशेषता है। अगर तुम साधारण व्यक्ति हो तो वे मानते हैं कि तुममें बुद्धिमत्ता की कमी है, तुम उनके साथ खेल खेलने के लिए सक्षम या योग्य नहीं हो और उन्हें यह बात गैर-दिलचस्प लगती है, इसलिए वे तुम्हें नजरअंदाज कर देते हैं। दानव इस बारे में बहुत चयनशील होते हैं कि वे किसके साथ खिलवाड़ करते हैं। जब वे तुम्हारे साथ रहते हैं तब शायद तुम उन्हें कभी झूठ बोलते न देखो या उन्हें जानबूझकर किसी भी चीज के बारे में झूठ बोलते न सुनो, लेकिन जब तक वे दानव हैं तब तक वे निश्चित रूप से झूठ बोलेंगे; यह दानवों की जन्मजात प्रकृति है। अगर वे तुमसे झूठ नहीं बोलते हैं तो शायद वह इसलिए क्योंकि वे तुम्हें इस योग्य नहीं समझते हैं। वे सोचते हैं, “हुँह! मैं तो तुमसे झूठ बोलने तक की जहमत भी न उठाऊँ, और फिर भी तुम डरते हो कि मैं तुम्हारे साथ खिलवाड़ करूँगा। तुम हो कौन? तुम्हें लगता है कि तुम कोई हो?” उनके मन में तुम्हारे लिए कोई सम्मान नहीं है; झूठ बोलना तो भूल ही जाओ, तुमसे बात करने तक के लिए उन्हें परेशान नहीं किया जा सकता। यह ऐसा है कि जब तुम किसी भ्रमित व्यक्ति से किसी के साथ उसके रिश्ते के बारे में पूछो और वह कहे, “मैं उसके स्तर का नहीं हूँ। उसमें मुझसे बेहतर काबिलियत है, उसमें अच्छे फैसले लेने की क्षमता है। मैं तुच्छ व्यक्ति हूँ, उसके जितना नेक नहीं हूँ। वह मेरे साथ मेलजोल नहीं रखना चाहता।” यहाँ तक कि भ्रमित लोग भी ऐसा महसूस करते हैं। आओ, अब देखें कि दानव किसके साथ खिलवाड़ करना पसंद करते हैं, किसके साथ विवाद करना पसंद करते हैं, किसे गुमराह करना, किसका शोषण करना और किसके साथ हेरा फेरी करना पसंद करते हैं। क्या उनके भी मानक और एक निश्चित दायरा नहीं होता है? (हाँ।) जब वे लोगों का एक समूह चुनते हैं तब वे लोग ऐसे होने चाहिए जो उन्हीं की तरह दिमागी खेल खेलते हों और चालें चलते हों। सिर्फ ऐसे लोगों से मेलजोल रखते समय ही उन्हें खुशी होती है और मजा आता है, और सिर्फ तभी उन्हें अपने खेलों से कुछ उपलब्धि का बोध होता है। इसलिए, जब दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों की बात आती है तब उनके आदतन झूठ बोलने की विशेषता और सार की असलियत जाननी चाहिए। सिर्फ इसलिए कि उन्होंने तुमसे झूठ नहीं बोला है, इसका मतलब यह नहीं है कि वे झूठ नहीं बोलते हैं और इसका मतलब यह नहीं है कि उनकी झूठ बोलने की प्रकृति नहीं है। अगर वे तुमसे करीब से मेलजोल नहीं रखते हैं और तुम्हारे अस्तित्व को स्वीकारते तक नहीं हैं और उन्हें बस लगता है कि तुम कोई साधारण-से विश्वासी हो, तुम कोई उच्च-शिक्षित व्यक्ति नहीं हो—बस एक गृहिणी या किसान हो—और उनके मन में तुम्हारे लिए कोई सम्मान नहीं है तो फिर वे सोचेंगे कि तुमसे झूठ बोलने का मतलब खुद को नीचे गिराना होगा, यह उनकी दिमागी कोशिकाओं को बरबाद करना होगा और वे तुमसे झूठ बोलने तक का कष्ट नहीं करेंगे। तो फिर तुम ऐसे व्यक्ति की असलियत कैसे जान सकते हो? चूँकि वे ऐसे दानव हैं जो आदतन झूठ बोलते हैं, इसलिए उनकी प्रकृति भले ही इस स्थिति में बेनकाब न हो, वह दूसरी उपयुक्त स्थितियों में बेनकाब हो जाएगी। सिर्फ इसलिए कि उन्होंने तुमसे झूठ नहीं बोला है, इसका मतलब यह नहीं है कि वे झूठ नहीं बोलेंगे। जब तक उनमें दानव का सार है तब तक उनकी झूठ बोलने की प्रकृति निश्चित रूप से उजागर होगी; यह छिपी नहीं रह सकती। चाहे वे इसे अच्छी तरह से छिपाएँ या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इसका कितना हिस्सा उजागर होता है, जब तक उनकी झूठ बोलने की प्रकृति है और वे बार-बार झूठ बोलते हैं तब तक वे दानव हैं; वे बिल्कुल भी मनुष्य नहीं हैं। सच्चे मनुष्य बार-बार झूठ नहीं बोलते हैं; कहने का मतलब यह है कि मनुष्य से पुनर्जन्म लिए हुए लोग बार-बार झूठ नहीं बोलते हैं। मैं क्यों कहता हूँ कि वे बार-बार झूठ नहीं बोलते हैं? क्योंकि जैसे ही वे झूठ बोलते हैं, उनका जमीर उन्हें फटकारता है और उन पर आरोप लगाता है। अगर वे कोई ऐसा बड़ा झूठ बोल दें जिसके बुरे नतीजे हों तो उन्हें जीवन भर खुद से घिन आएगी; उनके दिलों में झूठ बोलने के प्रति विकर्षण होने लगेगा और वे अनावश्यक चीजों के बारे में झूठ नहीं बोलेंगे। इस प्रकार उनका झूठ बोलना लगातार कम होता जाएगा। क्योंकि उनका जमीर उन्हें फटकारता है, इसलिए वे खुद पर संयम रखेंगे ताकि वे इसी तरह की गलतियाँ कम करें और अंततः उन्हें बिल्कुल न करने की हद तक पहुँच जाएँ। यह कुछ ऐसा है जिसे मनुष्य हासिल कर सकते हैं। लेकिन दानव इसे हासिल नहीं कर सकते। झूठ बोलने के बाद उन्हें कोई फटकार महसूस नहीं होती है, इसलिए जब वे झूठ बोलना चाहते हैं तब कोई अंकुश नहीं होता है; कोई भी चीज उन पर अंकुश नहीं लगा सकती—कोई भी माहौल उन पर अंकुश नहीं लगा सकता और न ही कोई प्रतिष्ठा या रुतबे वाला व्यक्ति उन पर अंकुश लगा सकता है और यकीनन सत्य में भी उन पर अंकुश लगाने की कोई शक्ति नहीं होती है। उन्हें उजागर करने वाले दूसरे लोग संभवतः उन पर अंकुश नहीं लगा सकते, सत्य की तो बात ही रहने दो, जो उनके लिए बस कागज पर लिखा हुआ पाठ है, बस धर्म-सिद्धांत और विनियम है और उन पर बिल्कुल भी अंकुश नहीं लगा सकता है। अंकुशों के बिना उनका झूठ बोलना उनका प्राकृतिक खुलासा है; वे कभी भी, कहीं भी, जरूरत के अनुसार तरह-तरह के भिन्न-भिन्न झूठ बोल सकते हैं। यह उनकी प्रकृति है; यह कभी भी, किसी भी समय नहीं बदलेगी। तो फिर उनकी प्रकृति की असलियत कैसे जानी जा सकती है? देखो कि उनके आस-पास के लोग उनका मूल्यांकन कैसे करते हैं। अगर उनसे परिचित लोग कहते हैं, “वह आदमी आदतन झूठ बोलता है, उसके मुँह से निकलने वाली हर चीज झूठ होती है, वह अपना चेहरा लाल किए या दिल की धड़कन तेज किए बिना झूठ बोलता है और वह किसी भी चीज के बारे में झूठ बोल सकता है; कोई भी उसकी एक भी बात पर विश्वास करने की हिम्मत नहीं करता है” तो यह तय किया जा सकता है कि वह दानव है, मनुष्य नहीं है। अब जब मैंने इतना कुछ कह दिया है तब क्या तुम लोग दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों में आदतन झूठ बोलने की इस विशेषता की असलियत जान सकते हो और उनमें इसकी मौजूदगी की पुष्टि कर सकते हो? यह नियम, यह निष्कर्ष—“जो लोग आदतन झूठ बोलते हैं वे दानवों के समतुल्य हैं”—हमेशा अपरिवर्तित रहता है। समझे? (समझ गए।)

क्या दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों की पहली विशेषता—आदतन झूठ बोलना—की स्पष्ट रूप से संगति हो गई है? (हाँ, यह स्पष्ट है।) इस विषयवस्तु को स्वीकारना और समझना आसान होना चाहिए। क्यों? क्योंकि अपने दैनिक जीवन में तुम्हें अक्सर इस प्रकार का व्यक्ति दिखाई देता है; बस यही है कि इससे पहले तुम उनके झूठ बोलने की अभिव्यक्तियों को भ्रष्टता के सामान्य प्रकाशन मानते थे। अब संगति के जरिए तुम जान गए हो कि उनकी झूठ बोलने की प्रकृति और झूठ बोलने की अभिव्यक्तियाँ कभी भी क्यों नहीं बदलतीं—यह पता चला है कि यह उनके गुण से तय होता है, इसलिए इस प्रकार का व्यक्ति नहीं बदल सकता। भविष्य में ऐसे लोगों से सामना होने पर क्या किया जाना चाहिए? (ऐसे लोगों के साथ संगति करने या उनकी मदद करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर वे पर्यवेक्षक हैं तो उन्हें बरखास्त कर देना चाहिए। अगर वे पहले से ही बुरे कर्मों की कुछ अभिव्यक्तियाँ दिखा चुके हैं और उन्होंने कलीसिया के कार्य में गड़बड़ करना और बाधा डालना शुरू कर दिया है तो उन्हें जरूरत के अनुसार दूर कर दिया जाना चाहिए और उन्हें कलीसिया में एक और दिन भी रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।) दानव आदतन झूठ बोलते हैं; यह निश्चित है कि वे नहीं बदल सकते। हालाँकि एक प्रकार का दानव ऐसा है जिसके पास विशेष क्षेत्रों में कुछ गुण या ताकतें होती हैं। अगर वह सेवा करने का इच्छुक है तो उसका उपयोग सेवा के लिए किया जा सकता है। परमेश्वर अपने कार्य में सेवा करने के लिए सभी चीजों का उपयोग करता है; बड़ा लाल अजगर ऐसा ही एक सेवा करने वाला और विषमता है। परमेश्वर के घर में कार्य करने के लिए व्यक्ति में बुद्धिमानी होनी चाहिए; यह भी एक सिद्धांत है। अगर दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग सेवा करने के इच्छुक हैं या उसके लिए उपयुक्त हैं तो सेवा करने के लिए उनका उपयोग करो। अगर वे सेवा भी नहीं कर सकते या उनकी सेवा से लाभ की तुलना में हानि ज्यादा होती है और बहुत ही ज्यादा क्षति पहुँचती है और उनका उपयोग करने से परमेश्वर के घर को कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं मिलता है, बल्कि उसे उनके बारे में चिंता करनी पड़ती है तो फिर वे सेवा करने के लिए उपयुक्त नहीं हैं, इसलिए सेवा करने की उनकी योग्यता रद्द कर दी जानी चाहिए। क्या यह करना उचित है? (हाँ, ऐसा करना सिद्धांतनिष्ठ है।) उनसे सिद्धांतों के अनुसार पेश आना चाहिए। भेद पहचानने की क्षमता एक चीज है, लेकिन जब उन्हें सँभालने की बात आती है तब तुम्हारे पास बुद्धिमानी और सिद्धांत होने चाहिए और ऐसा वास्तविक स्थिति के आधार पर करो। इन मामलों की संगति करने का यह लक्ष्य है कि तुम भेद पहचानने की क्षमता प्राप्त करो, तुम यह स्पष्ट रूप से जान लो कि विभिन्न प्रकार के लोगों के सार क्या हैं और व्यक्ति के सार के जरिए यह तय करो कि क्या वह सत्य स्वीकार सकता है और उद्धार प्राप्त कर सकता है या नहीं। हालाँकि, यह तुमसे “सभी को एक ही साँचे में ढालने” वाला तरीका लागू करवाने के लिए नहीं है, दानव के रूप में निरूपित किए गए सभी लोगों को हटाकर उन्हें सँभालने के लिए नहीं है। बल्कि यह तुमसे परमेश्वर के घर के कार्य के सिद्धांतों और जरूरतों के अनुसार सेवा करने के लिए दानवों का प्रभावी रूप से उपयोग करवाने के लिए है। मान लो कि कुछ दानव कहते हैं, “यह देखकर कि मैं दानव हूँ, तुम सेवा करने के लिए मेरा उपयोग करना चाहते हो। अगर मुझे उद्धार नहीं मिल सकता है तो मैं सेवा नहीं करूँगा!” इस स्थिति में क्या किया जाना चाहिए? (अगर वे सेवा करने के अनिच्छुक हैं तो उन्हें जाने दो।) अगर वे सेवा करने तक के इच्छुक नहीं हैं तो उन्हें जल्दी से चले जाने दो। कुछ दानव कहते हैं, “तुम सेवा करने के लिए मेरा उपयोग करना चाहते हो? हरगिज नहीं! मैं तुम्हारे लिए सेवा नहीं करूँगा! मैं कुछ भी बुरा नहीं करूँगा, मैं परमेश्वर के घर में बस जैसे-तैसे समय काटता रहूँगा। जब कार्य करने का समय आएगा तब मैं बस लापरवाह रहूँगा, सिर्फ औपचारिकताएँ निभाऊँगा; मैं तुम्हारे लिए इसे निष्ठापूर्वक नहीं करूँगा!” ऐसे लोगों का पता लगने पर क्या किया जाना चाहिए? (उन्हें दूर कर देना चाहिए।) जैसे ही दानव की स्पष्ट रूप से पहचान हो जाती है, उसे तुरंत दूर कर दो; कोई दया मत दिखाओ। अगर कुछ दानव अच्छे-से व्यवहार करते हैं और जानते हैं कि वे आदतन झूठ बोलते हैं और दानव हैं और वे ईमानदार लोग नहीं हो सकते और उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते क्योंकि उनकी प्रकृति यही तय करती है, लेकिन बहुत-से वर्षों तक सत्य सुनने के बाद वे भी परमेश्वर का अनुसरण करना और अंततः आशीष प्राप्त करना चाहते हैं और वे वही करते हैं जो परमेश्वर का घर उनसे करने के लिए कहता है—अगर ऐसे लोग विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न नहीं करते हैं और उनके लिए उपयुक्त कार्य हैं तो उन्हें सेवा करने का अवसर दिया जा सकता है। जब सृष्टिकर्ता द्वारा दिए गए कर्तव्य की बात आती है तब सभी सृजित प्राणियों को, चाहे वे किसी भी श्रेणी से संबंधित हों, इसे अपना खुद का कर्तव्य मानना चाहिए; यह कुछ ऐसी चीज है जिससे बचा नहीं जा सकता। भले ही कोई व्यक्ति दानव और शैतान हो, अगर वह खुशी-खुशी परमेश्वर के लिए सेवा करता है तो परमेश्वर उससे अन्यायपूर्ण रूप से पेश नहीं आएगा; यह सभी सृजित प्राणियों के साथ व्यवहार करने का परमेश्वर का सिद्धांत है। अगर तुम खुद को एक सृजित प्राणी मानते हो और तुम्हारा गुण चाहे कोई भी हो, तुम सृष्टिकर्ता की आराधना करने, सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व के तहत आत्मसमर्पण करने और एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य पूरा करने के इच्छुक हो और तुम सेवा करने के इच्छुक हो, भले ही अंत में तुम्हारे लिए कोई अच्छा परिणाम या गंतव्य न हो, तो यह भी उचित है। परमेश्वर इसे अस्वीकार नहीं करता; परमेश्वर लोगों को सेवा करने का अवसर देता है। यह बस इस बात पर निर्भर करता है कि लोग इस मामले को कैसे सँभालते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “चूँकि मेरा जन्मजात गुण अच्छा नहीं है और मैं चाहे कोई भी कर्तव्य क्यों न करूँ, मेरी उद्धार प्राप्त करने की कोई उम्मीद नहीं है, इसलिए मैं अब और कोई कर्तव्य नहीं करूँगा, मैं सेवा नहीं करूँगा! तुम सेवा के लिए मेरा उपयोग करना चाहते हो और अंत में तुम लोग आशीष प्राप्त करोगे और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करोगे, लेकिन मेरे लिए कोई हिस्सा नहीं होगा, इसलिए मैं अब और विश्वास नहीं रखने वाला!” यह बिल्कुल सही है। अगर दानव जाना चाहते हैं तो उन्हें जाने दो। अगर वे नहीं जाते हैं तो उन्हें हटा देना पूरी तरह से सिद्धांतों के अनुसार है। कुछ दानव कहते हैं, “मैं इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि मैं आदतन झूठ बोलता हूँ, मैं सबसे झूठ बोलता हूँ, यहाँ तक कि परमेश्वर से भी। लेकिन चाहे परमेश्वर का घर मुझसे सेवा करवाए या मुझसे एक विषमता की तरह कार्य करवाए—चाहे मेरे साथ कैसा भी व्यवहार किया जाए, भले ही मुझसे मनुष्य की तरह पेश न आया जाए, मुझे कोई शिकायत नहीं है। इस तथ्य को नहीं बदला जा सकता कि मैं दानव हूँ, है ना? मुझसे जो भी सेवा करने के लिए कहा जाता है, मुझसे जो भी प्रयास करने के लिए कहा जाता है, मैं उसे करने के लिए इच्छुक हूँ।” क्या ऐसे लोगों को स्वीकार किया जाना चाहिए? (हाँ।) सैद्धांतिक रूप से, उन्हें भी स्वीकार किया जा सकता है। जब तक उनके उद्धार के लिए उम्मीद की एक किरण है तब तक उन्हें स्वीकार किया जाना चाहिए। चाहे वे यह बात स्वीकार करें या न करें कि वे दानव हैं, उनमें कम-से-कम कुछ आत्म-ज्ञान तो है, वे सेवा करने के इच्छुक हैं और उनमें जरा-सा समर्पण है; यह स्वीकृति की शर्तों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। जहाँ तक यह प्रश्न है कि क्या वे अपना कर्तव्य मानक स्तर के तरीके से कर सकते हैं, तो यह देखना बाकी है, है ना? (हाँ।) संक्षेप में, कोई व्यक्ति चाहे किसी भी प्रकार का हो, भले ही उसके गुण का भेद पहचान लिया गया हो, तो भी उस व्यक्ति से पेश आने में सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना चाहिए। यकीनन यहाँ सिर्फ एक ही सिद्धांत नहीं है—ऐसा नहीं है कि सभी दानवों को अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए और बाहर निकाल दिया जाना चाहिए, सभी दानवों को नरक में डाल दिया जाना चाहिए; यही एकमात्र सिद्धांत नहीं है। परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है और सेवा करने के लिए सभी चीजों का उपयोग करता है। कौन-सी चीजें सेवा कर सकती हैं, कौन-सी चीजें क्या सेवा करती हैं और वे कैसे सेवा करती हैं, वे किस चरण में सेवा करती हैं, वे कितने समय तक सेवा करती हैं, वे कितनी सेवा करती हैं, किन हालातों में उनका उपयोग अब और नहीं किया जाता है और किन परिस्थितियों में उनका उपयोग जारी रह सकता है—इन सब के लिए सिद्धांत हैं और इन सब में परमेश्वर की बुद्धि निहित है। लोग इस मामले को आवेशपूर्ण ढंग से नहीं देख सकते; उन्हें सिद्धांतों की तलाश करनी होगी। अगर सभी यह मानते हैं कि एक विशेष तरीके से कार्य करना सही है और यह सिद्धांतों के अनुरूप है तो उसी तरीके से कार्य करो; तुम्हें जिस भी तरीके से कार्य करना चाहिए, तुम उसी तरीके से कार्य करो। सिद्धांतों का उल्लंघन करना, क्षणिक गुस्से के आधार पर किसी व्यक्ति को आँख मूँदकर और बेबुनियाद ढंग से सँभालना, सत्य और परमेश्वर के वचनों के प्रति सख्त नहीं होने का रवैया है; सच पूछो तो यह परमेश्वर का भय मानने वाले दिल की कमी की भी अभिव्यक्ति है, इसलिए इस तरह से बिल्कुल कार्य मत करो। दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों की पहली विशेषता—आदतन झूठ बोलना—पर संगति करने के लिए मूल रूप से यही है; सिद्धांत सभी पहलुओं से स्पष्ट रूप से समझा दिए गए हैं।

दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों की दूसरी विशेषता “पथभ्रष्टता” है। चूँकि यह एक विशेषता है, यह कोई अस्थायी अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि एक ऐसी चीज है जो उनकी प्रकृति से अक्सर प्रकट होती है और यह पूरी तरह से उनके विचारों, नजरियों, स्वभावों और सार का प्रतिनिधित्व कर सकती है। तो, जो लोग दानव हैं उनकी “पथभ्रष्टता” वाली विशेषता की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? पथभ्रष्टता क्या है? पथभ्रष्टता के साथ अक्सर कौन-सा शब्द प्रयोग किया जाता है? (दुष्टता।) और कौन-सा शब्द प्रयोग किया जाता है? (विकृत प्रकृति।) विकृत प्रकृति, दुष्ट काम-वासना। कौन-सी दूसरी अभिव्यक्तियाँ पथभ्रष्टता हैं? कुटिल और असामान्य होना, है ना? (हाँ।) कुटिल और असामान्य होने के अलावा और क्या है? (अत्यधिक जोड़-भाग करने वाला और रहस्यमय होना, अनुभवी षडयंत्रकारी होना, कुछ हद तक अथाह होने का एहसास देना।) ये लगभग सभी इसमें शामिल हैं। कुटिल, धूर्त, चालाक, जोड़-भाग करने वाला और रहस्यमय होना और घाघ षडयंत्रकारी होना—ये सभी पथभ्रष्टता की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ और विशेषताएँ हैं। तो फिर, किन मामलों में दानव ये विशेषताएँ अभिव्यक्त करते हैं? सारतः, लोग जो सोचते हैं—कुटिलता, प्रच्छन्नता, चालाकी वगैरह, जो स्वभाव से संबंधित हैं या आचरण करने और मामले सँभालने की विधियों में अभिव्यक्त होती हैं—उनके अलावा एक और तरह की पथभ्रष्टता क्या है? यह लोगों की दुष्ट काम-वासना है; इस तरह की पथभ्रष्टता को लम्पटता कहा जाना चाहिए। चूँकि “पथभ्रष्टता” शब्द का उपयोग किया गया है, इसलिए हम देह की सामान्य शारीरिक जरूरतों या प्रतिक्रियाओं की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि लम्पटता की बात कर रहे हैं—इसे भी पथभ्रष्टता कहा जाता है। अभी-अभी जिक्र की गई कुटिलता, प्रच्छन्नता वगैरह स्वभाव से संबंधित हैं; लम्पटता देह से संबंधित पथभ्रष्टता है। क्या “लम्पटता” शब्द काफी उपयुक्त नहीं है? (हाँ।) यहाँ एक और शब्द है जो और भी ज्यादा उपयुक्त है—यौन उत्तेजकता। अविश्वासी लोग अक्सर कहते हैं कि कोई व्यक्ति गुप्त रूप से कामुक है, फूहड़ है; ये सभी शब्द दुष्ट काम-वासना के पहलू को संदर्भित करते हैं। लम्पटता और यौन उत्तेजकता के अलावा क्या और भी शब्द हैं? (क्या नीचता उनमें से एक है?) नीचता उनमें से एक नहीं है; नीचता लम्पटता से अलग है। नीचता व्यक्ति की गरिमा और सत्यनिष्ठा से संबंधित है, जबकि लम्पटता और यौन उत्तेजकता मुख्य रूप से व्यक्ति के अंतर्वैयक्तिक आचरण से संबंधित हैं। हमने अभी-अभी पथभ्रष्टता के दो पहलुओं के बारे में बात की : एक पहलू स्वभाव से संबंधित है, दूसरा पहलू दैहिक वासना से संबंधित है। एक और पहलू है, जो यह है कि इस प्रकार का व्यक्ति अक्सर श्रवण-संबंधी और दूसरे संवेदी मतिभ्रमों का अनुभव करता है—उसमें हमेशा कुछ असामान्य अभिव्यक्तियाँ होती हैं। उदाहरण के लिए, वह अक्सर कहता है, “परमेश्वर ने मुझे प्रकट किया कि आज सुबह छह बजे मुझे पूर्व दिशा में जाना होगा; वहाँ एक संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता मुझसे मिलना चाहता है।” “कल रात मैंने एक सपना देखा; शायद आज दो भाई या बहन मेरे घर आएँगे।” उसे अक्सर श्रवण-संबंधी और दूसरे संवेदी मतिभ्रम होते हैं, वह हमेशा असामान्य सपनों, दर्शनों या अचानक शब्द कौंध उठने जैसी परिघटनाओं के आधार पर अपना जीवन जीता है और जब कुछ सामान्य से परे घटता है तो वह असामान्य तरीके से व्यवहार करता है—वह विशेष रूप से अतिवादी है। कभी-कभी वह प्रार्थना करने और परमेश्वर के वचन पढ़ने के लिए सुबह तीन-चार बजे उठ जाता है; कभी-कभी रात को जब बाकी सभी लोग आराम कर रहे होते हैं तब वह आधी रात तक जगा रहता है, परमेश्वर के वचन पढ़ने या भजन सीखने पर अड़ जाता है। वह तब सोता है जब दूसरे लोग भोजन कर रहे होते हैं या कार्य कर रहे होते हैं और जब दूसरे लोग आराम कर रहे होते हैं तब वह ऊर्जावान हो जाता है; वह हमेशा असामान्य होता है, हमेशा सामान्य लोगों से अलग होता है। क्या इसे भी पथभ्रष्टता की अभिव्यक्ति मानी जा सकती है? (हाँ।) क्या इस असामान्यता का वर्णन करने के लिए कोई उपयुक्त शब्द है? मान लो कि कोई व्यक्ति बाहर से सामान्य दिखता है, लेकिन वह चीजों को हमेशा एक विशेष रूप से विकृत और अतिवादी ढंग से करता और समझता है; इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम उसके साथ कैसे संगति करते हो, वह समझ ही नहीं सकता है। कभी-कभी उसे श्रवण-संबंधी और दूसरे संवेदी मतिभ्रमों का अनुभव होता है; दूसरे समय, वैसे तो कोई स्पष्ट वाणी या कथन सुनाई नहीं देता है, फिर भी उसके भीतर अजीब विचार आते हैं जो उसे कुछ न कुछ करने के लिए कहते हैं। लेकिन वह चाहे जो भी करे, उसका सत्य से कोई लेना-देना नहीं होता और यह विनियमों का पालन करने के मानक तक को पूरा नहीं करता। तुम लोग इस प्रकार के व्यक्ति का वर्णन करने के लिए कोई उपयुक्त शब्द नहीं सोच सकते, है ना? (नहीं, हम नहीं सोच सकते।) क्या तुम लोगों को लगता है कि “विचित्र” शब्द उपयुक्त है? उसका बाहरी व्यवहार विशेष रूप से अजीब और असामान्य लगता है और वह हमेशा अस्थिर और चिड़चिड़ा रहता है। लेकिन अगर तुम उसकी निंदा करते हो तो तुम उसमें कोई बड़ी समस्या नहीं गिना सकते और अगर तुम उसे अच्छा व्यक्ति मानते हो तो भी वह कुछ हद तक सनकी लगता है—तुम कुछ हद तक उसकी असलियत नहीं देख पाते हो। जब तुम बस कभी-कभार उसे बोलते हुए सुनते हो तब वह ठीक लगता है, लेकिन अगर तुम उसे चुपके से देखो तो तुम पाओगे कि उसके क्रियाकलाप बहुत ही सनकी, बहुत ही असंगत हैं। यह अच्छा संकेत नहीं है; यह कहा ही नहीं जा सकता कि वह क्या कर सकता है। बाद में पता चलता है कि वह प्रार्थना के दौरान दूसरी भाषाओं में बोल सकता है; आमतौर पर वह खुद से भी लगातार बातें करता रहता है, मानो वह किसी से गपशप कर रहा हो और ऐसा करते हुए वह हँसता भी है, जिसे देखकर सनसनाहट-सी होने लगती है। यह भी पथभ्रष्टता की अभिव्यक्ति है। चलो, अभी के लिए हम इस पहलू का वर्णन करने के लिए “विचित्र” शब्द का उपयोग करते हैं। संक्षेप में, हम दानवों की पथभ्रष्टता की अभिव्यक्तियों का सारांश प्रस्तुत कर चुके हैं। इसमें कुल मिलाकर तीन पहलू हैं : एक है देह की दुष्ट काम-वासना; एक है हमेशा कुछ असामान्य अभिव्यक्तियाँ होना, विशेष रूप से विचित्र होना; और एक अन्य पहलू स्वभाव से संबंधित है—बहुत कुटिल होना। कुटिलता का मतलब है कि इस प्रकार का व्यक्ति एक निश्चित हद तक धोखेबाज और शातिर होता है, जिसकी थाह पाना साधारण लोगों के लिए असंभव है। जब लोग इस प्रकार के व्यक्ति से मेलजोल रखते हैं तो वे अक्सर चिंतित, बेचैन और भयभीत महसूस करते हैं; उन्हें अक्सर यह डर रहता है कि अंत में वे उसके द्वारा बेच दिए जाएँगे और तब भी वे उसकी चिल्लर गिनने में उसकी मदद कर रहे होंगे—वे उसके जाल में फँस जाने से डरते हैं। इस प्रकार का व्यक्ति विशेष रूप से धूर्त और चालाक होता है। हो सकता है कि वह तुम्हारे सामने बहुत विनम्र और परिष्कृत ढंग से बात करे, लेकिन वह तुम्हारे पीठ पीछे तुम्हारे खिलाफ साजिश रचे जा रहा है, बिना तुम्हें पता लगने दिए तुम्हारे खिलाफ लंबे समय से लड़ाई लड़ रहा है। जब तुम्हें इसका पता चलेगा तब तुम्हारे पसीने छूट जाएँगे और तुम सोचोगे, “खुशकिस्मती से परमेश्वर ने मेरी रक्षा की! अगर मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं रखता तो वह मुझे नुकसान पहुँचा देता; यहाँ तक कि मेरी जान भी जा सकती थी!” यही इस प्रकार के दानव की दुष्टता है। मैं क्यों कहता हूँ कि ऐसे लोग पथभ्रष्ट होते हैं? वे बाहर से जैसे दिखते हैं उससे यह बताना सच में आसान नहीं है; तुम्हें उन चीजों से शुरुआत करनी होगी जिन्हें करने की वे योजना बनाते हैं और उन शब्दों से शुरुआत करनी होगी जिन्हें वे हर रोज प्रकट करते हैं—यह तुम्हारे लिए इस प्रकार के व्यक्ति के विकृत सार और प्रकृति को स्पष्ट रूप से देखने के लिए पर्याप्त है।

दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग हर रोज किस बारे में सोचते हैं? उदाहरण के लिए, मान लो कि एक बहन को अगुआ बनाने के लिए पदोन्नत किया जाता है। तो वे विचार करते हैं, “वह लड़की इतनी कम उम्र में पदोन्नत होकर अगुआ बन गई। वह मुझसे कैसे बेहतर है? मैं तो उसे नीची नजर से देखता था, मैंने कभी उसकी लल्लो-चप्पो नहीं की और न ही उसके साथ अच्छा रिश्ता बनाया। अब वह अगुआ है, मेरी प्रत्यक्ष वरिष्ठ है, इसलिए मुझे उसकी लल्लो-चप्पो करनी ही पड़ेगी। मुझे यह देखना होगा कि क्या उसे अपने दैनिक जीवन में, भौतिक या आध्यात्मिक रूप से, किसी मदद की जरूरत है। अगर वह इस झाँसे में नहीं आई, अगर मैं उसे राजी नहीं कर सका तो मैं दूसरे नरम तरीके आजमाऊँगा—मैं उसके सामने कुछ कोमल शब्द, कुछ विनम्र शब्द, कुछ खुशामदी शब्द कहूँगा। मुझे पहले यह देखना होगा कि उस पर कौन-सा तरीका काम करता है। क्या वह लल्लो-चप्पो के झाँसे में आती है या बुरे लोगों की दुष्ट युक्तियों के? क्या उसे भोजन पसंद है या मौज-मस्ती? क्या उसे कपड़े पसंद हैं या गहने? उसे क्या पसंद है? मुझे उसे समझना होगा, उसके करीब जाना होगा, उसकी लल्लो-चप्पो करनी होगी, उसके साथ अच्छा रिश्ता बनाना होगा और उसके इरादों और राय की टोह लेने का प्रयास करना होगा।” चाहे कोई भी अगुआ बने, वे यही सोचते हैं कि उस अगुआ के करीब कैसे पहुँचा जाए और उसके साथ अच्छा रिश्ता कैसे बनाया जाए। इससे पहले जब यह बहन अगुआ नहीं थी तब वह जो भी कहती थी उसके बारे में वे अवज्ञापूर्ण होते थे। उदाहरण के लिए, अगर वह कहती, “आओ, अब से हम हफ्ते में एक बार इकट्ठे हों” तो यह सुनने के बाद वे विचार करते थे, “बाकी कलीसियाएँ हफ्ते में दो बार जुटती हैं, लेकिन हम तो सिर्फ एक बार इकट्ठे होने वाले हैं। हम तुम्हारी बात क्यों मानें? तुम खुद को समझती क्या हो?” चूँकि अब यह बहन अगुआ है, इसलिए जब वह बोलती है तो उनकी प्रतिक्रिया अलग होती है; अब वे पहले की तरह खंडन करने वाले शब्द नहीं बोलते हैं, बल्कि कहते हैं, “वह बहन जो कहती है वही सत्य है!” बाहर से वे बहुत आज्ञाकारी ढंग से कार्य करते हैं, मानो वे ऐसे हों जो आज्ञा मान सकते हों, लेकिन अंदर ही अंदर वे कहते हैं, “तुम्हें क्या पता? तुम्हें अगुआ बने तो बस कुछ ही दिन हुए हैं! यह कार्य पहले मैं किया करता था, लेकिन अब तुम अगुआ हो। ठीक है, अगुआ का फैसला ही अंतिम होता है। मैं पहले तुम्हारी बात से सहमत होऊँगा, लेकिन मैं तुम्हारे पीठ पीछे कैसे कार्य करता हूँ, यह मेरा अपना फैसला है। मैं बस तुम्हारे साथ खिलवाड़ करूँगा!” कुछ लोग अगुआ चुने जाते हैं और जब उनसे पूछा जाता है, “क्या तुम लोगों की कलीसिया में अगुआओं का चुनाव सिद्धांतों के अनुसार हुआ था?” तो वे सोच में पड़ जाते हैं, “अगर यह सिद्धांतों के अनुसार हुआ होता तो क्या तब भी मैं अगुआ बन सकता था? लेकिन मैं तुम्हें सच नहीं बता सकता।” तो वे कहते हैं, “यह सिद्धांतों के अनुसार किया गया था। मैंने कलीसियाई अगुआ के रूप में सेवा करते हुए दो कार्यकाल पूरे किए हैं। शुरू में मैं इसे फिर से नहीं करना चाहता था; मुझे डर था कि अगर मैंने ऐसा किया तो भाई-बहन आपत्ति करेंगे, इसलिए मैंने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली। लेकिन फिर भी अंत में, भाई-बहनों ने मुझे चुना, इसलिए मैं इसे अनिच्छा से कर रहा हूँ। जब भी अगुआ बनने के लिए कोई नया उम्मीदवार आएगा, मैं इस्तीफा दे दूँगा।” सुनने में यह अच्छा लगता है, लेकिन क्या वे वास्तव में ऐसा करने का इरादा रखते हैं? उनका ऐसा करने का बिल्कुल कोई इरादा नहीं है। वे बस झूठ बोल रहे हैं और तुम्हारे साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, सिर्फ वही चीजें कह रहे हैं जो सुखद लगती हैं, जो तुम्हें संतुष्ट करती हैं, जो तुम्हें धोखा दे सकती हैं और गुमराह कर सकती हैं। जब बात ऊपरी स्तर के अगुआओं की आती है तो वे यह विचार करते हैं कि उनकी लल्लो-चप्पो कैसे करें, उनकी खुशामद कैसे करें और उन्हें कैसे गुमराह करें ताकि ये अगुआ उन्हें महत्व दें और उन्हें पदोन्नत करें। अगर वे पदोन्नत नहीं हो सकते हैं तो वे यह विचार करते हैं कि इससे पहले कार्य करते समय उनसे जो खामियाँ, पथभ्रष्टताएँ और गलतियाँ हुईं, साथ ही पर्दे के पीछे उन्होंने जो अपराध और कपटपूर्ण व्यवहार किए, उन्हें अगुआओं से कैसे छिपाया जा सकता है ताकि उन्हें उनके बारे में पता न चले, वे बिना कोई जिम्मेदारी उठाए इन चीजों से कैसे बच निकल सकते हैं। क्या ये वही अभिव्यक्तियाँ हैं जो मानवता में होनी चाहिए? क्या ये सकारात्मक हैं या नकारात्मक? (नकारात्मक।) ये किस हद तक नकारात्मक हैं? इस हद तक कि किसी के द्वारा उनके कार्य पर अनुवर्ती कार्यवाही या उसका निरीक्षण किए जाने से पहले ही वे अपने मन में इन चीजों पर विचार कर चुके होते हैं, वे लंबे समय से मानसिक रूप से तैयार रहते हैं—उनके मन लंबे समय से इन चीजों से भरे होते हैं। मुझे बताओ, क्या यह कुटिल नहीं है? (हाँ।) इस प्रकार का व्यक्ति अपने श्रोताओं के हिसाब से चालाकी से बोलता है, अलग-अलग अगुआओं से अलग-अलग चीजें कहता है। अगर अगुआ महिला है तो वह उसकी तारीफ एक देवी के रूप में करता है; अगर अगुआ पुरुष है तो वह उसकी तारीफ एक आकर्षक, हृष्ट-पुष्ट आदमी के रूप में करता है। क्या यह कुटिल नहीं है? (हाँ।) यह पथभ्रष्टता की एक प्रमुख विशेषता है। अगुआओं के प्रति उसका रवैया और अभिव्यक्तियाँ ऐसी ही होती हैं—बहुत ही कुटिल और बहुत ही धूर्त। उसकी आंतरिक दुनिया बेहद जटिल होती है; वहाँ ढेरों विचार ठसाठस भरे होते हैं, लेकिन उनमें से कोई भी सकारात्मक नहीं होता। वह मानवता, सत्य या सही मार्ग पर चिंतन नहीं करता है; वह बस इसी पर चिंतन करता है कि अगुआओं की लल्लो-चप्पो और चापलूसी कैसे की जाए, अपना खुद का रुतबा कैसे बचाए रखा जाए, चीजों से कैसे बच निकला जाए, कैसे निठल्ले ही बने रहा जाए, बिना पता लगे, बिना कोई जिम्मेदारी उठाए, कैसे कलीसिया पर पलता रहे, खाता-पीता रहे और बदले में कुछ भी न दे। अपने मन में वह बस इन्हीं मुद्दों के बारे में योजनाएँ बनाता है, षडयंत्र रचता है और सोचता है; वह सभी किस्म की चालें चलता है और उसका जमीर कभी कोई फटकार या आरोप महसूस नहीं करता। जब वह लोगों के समूह में आता है तब वह उन्हें अपनी आँखों से बारीकी से जाँचता है : “उन कुछ गृहिणियों में अंतर्दृष्टि की कमी है; उनमें मेरा भेद पहचानने की संभवतः कोई क्षमता नहीं हो सकती। मैं जो चालें चलता हूँ वे उनका कुछ भी मतलब नहीं निकाल पाएँगी। अगर वे ऐसा कर भी लेती हैं तो भी मुझे नीचे नहीं गिरा पाएँगी। नन्हीं मछलियाँ बड़ी लहरें पैदा नहीं कर सकतीं; वे समस्या नहीं होंगी। उनके अस्तित्व को स्वीकार करने की कोई जरूरत नहीं है। जहाँ तक बाकी कुछ लोगों की बात है, उनमें से एक व्यक्ति कलीसियाई अगुआ है, दूसरा व्यक्ति एक अधेड़ बहन है जिसे परमेश्वर में विश्वास रखते हुए कई वर्ष हो गए हैं और फिर एक युवा बहन है जिसके बारे में सुना है कि उसने विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान की पढ़ाई की है। इन कुछ लोगों से मुझे जरा-सा खतरा है। मुझे पहले किससे निपटना चाहिए? मुझे पहले किससे मेलजोल रखना चाहिए और किसका दिल जीतना चाहिए? मैं उनमें से एक कैसे बन सकता हूँ? मैं प्रतिष्ठा कैसे स्थापित कर सकता हूँ? कौन मेरा सहायक होगा और कौन मेरा विरोधी होगा? मुझे किससे दोस्ती करनी चाहिए, किससे दूर रहना चाहिए और किससे चौकस रहना चाहिए? इन मामलों के लिए लंबे समय से योजना बनाने की जरूरत पड़ती है; मुझे इन पर विचार करना होगा।” कुछ दिनों तक देखने के बाद वे समझ जाते हैं कि उन्हें किसके साथ मेलजोल रखना चाहिए और साँठ-गाँठ करनी चाहिए, किसे फुसलाया जा सकता है और किसका शोषण किया जा सकता है, कौन उनकी विरोधी शक्ति है और कौन सत्य समझता है और सिद्धांतों को बनाए रखता है और किससे चौकस रहना चाहिए—वे ये सब चीजें समझ लेते हैं। वे अपने दिल में चिंतन करते हैं, “मुझे उन लोगों से चौकस रहना चाहिए जिनमें मेरा भेद पहचानने की क्षमता है। मैं उन्हें नाराज नहीं कर सकता और न ही मुझे उनके करीब जाना चाहिए। मुझे उनसे पूरी तरह से दूर रहना चाहिए, कहीं ऐसा न हो कि मैं गलती कर दूँ और वे मेरी असलियत देख लें। उनकी मौजूदगी में मुझे बिल्कुल भी लापरवाही से बात नहीं करनी चाहिए, कहीं ऐसा न हो कि उन्हें मेरे खिलाफ कुछ ऐसा मिल जाए जिसका उपयोग वे कलीसिया में मुझे उजागर करने और मेरा गहन-विश्लेषण करने के लिए कर सकें। अगर भाई-बहनों ने भेद पहचानने की क्षमता प्राप्त कर ली तो वे मुझे दूर कर देंगे। यह नहीं चलेगा!” हर रोज वह बस इन्हीं चीजों के बारे में सोचता है। किससे जूझना है और कैसे जूझना है ताकि यश हासिल कर सके और खुद को अच्छा दिखा सके, किससे मेलजोल रखना है ताकि वह बिना नुकसान उठाए फायदे हासिल कर सके, कुछ मामलों में उसे जो नुकसान हुए हैं उनकी भरपाई कैसे करनी है—वह दिन भर बस इन्हीं चीजों पर चिंतन करता है। यह तक हो सकता है कि वह आधा दिन यह सोचते हुए बिता दे कि किसी ने उसे किस नजर से देखा है : “कल फलाँ ने मुझे बहुत भेदती नजर से देखा। उसका क्या मतलब था? क्या उसमें मेरा भेद पहचानने की क्षमता है? यह अच्छा संकेत नहीं है। उसने मेरी कौन-सी समस्या देख ली है? मुझे अगले कुछ दिन सावधान रहना होगा और मुँह से कोई भी बात नहीं निकलने देनी है। इसके अलावा, मुझे दूसरों की आँखों के भावों से चीजों को पढ़ना सीखने की जरूरत है और मुझे लापरवाह नहीं होना चाहिए। पिछले दो दिनों से मेरी पलक फड़क रही है; ऐसा लग रहा है जैसे कुछ बुरा होने वाला है। मुझे सावधान रहना होगा, मैं सचमुच उम्मीद करता हूँ कि कुछ भी गड़बड़ न हो; अगर मैं सावधान नहीं रहा तो हो सकता है कि मुझे दूर कर दिया जाए।” वह लोगों से कैसे मेलजोल रखता है, इसमें बाहर से देखने पर कोई समस्या नजर नहीं आती। उसके भोजन, नींद और कार्य सब सामान्य लगते हैं। लेकिन उसके दिल और मन में जो है वह सामान्य नहीं है। इस असामान्यता की अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? वह यह है कि वह जिन चीजों के बारे में सोचता है वे सब बहुत ही कुटिल और दूसरों की समझ से परे होती हैं।

दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग बहुत ही संदिग्धतरीके से जीते हैं। उनके विचारों में निहित हर चीज पर सिर्फ अँधेरे कोनों में ही चिंतन किया जा सकता है, गणना की जा सकती है, योजना बनाई जा सकती है और पूर्व-चिंतन किया जा सकता है। उनके दिल पूरी तरह से यश और लाभ के लिए होड़, षड्यंत्र, तुलना, ईर्ष्या, विवाद, प्रतिशोध जैसी चीजों से भरे होते हैं। वे सत्य की रत्ती भर भी तलाश नहीं करते हैं। चाहे वे किसी भी मामले को सँभाल रहे हों, वे उस पर संगति करने और उसके बारे में खुलकर और ईमानदारी से कोई फैसला लेने के लिए उसे सबके सामने प्रस्तुत नहीं करते हैं; इसके बजाय वे गुप्त रूप से कुछ लोगों की तलाश कर लेते हैं और उनके साथ फैसले लेते हैं। हर कलीसिया में इस किस्म के कुछ लोग होते हैं। वे अल्पभाषी होते हैं और कोई भावना नहीं दिखाते; उनका सामना चाहे किसी भी चीज से हो, वे चुप रहने का चुनाव करते हैं और कभी भी आसानी से अपना रुख व्यक्त नहीं करते। बाहर से वे लोगों से विनम्रता से बात करते हैं, लेकिन वे कभी भी सच नहीं बोलते या यह प्रकट नहीं करते कि उनके दिलों में सच में क्या है; उनके पास किसी के लिए भी कोई सच्चा शब्द नहीं होता है। उदाहरण के लिए, कुछ लोग चाहे वे किसी से भी मेलजोल रखें, अपने अंतरतम विचारों को कभी प्रकट नहीं करते; यहाँ तक कि उनके परिवार के सबसे करीबी सदस्य भी नहीं जानते कि वे हर रोज क्या सोचते हैं। उनका परिवार तक उन्हें नहीं समझता, फिर बाहर के लोगों की तो बात ही छोड़ दो। अगर तुम उनके जिगरी दोस्त, बचपन के दोस्त, बरसों पुराने दोस्त या कार्यस्थल के अच्छे सहकर्मी हो तो भी तुम्हें नहीं पता होता कि वे क्या सोच रहे हैं; कोई भी उनकी थाह नहीं ले सकता है। वे चाहे कैसे भी बोलें या कार्य करें, कोई भी उनकी असलियत नहीं देख सकता। लेकिन कभी-कभार, हो सकता है कि वे मुँह से कुछ शब्द निकल जाने दें : “फलाँ मुझसे बेहतर है, तो क्या हुआ! एक दिन मैं उससे आगे निकल जाऊँगा, तुम बस देखते जाओ!” इन “तुम बस देखते जाओ” शब्दों के पीछे एक गहरा अर्थ निहित है; इसका मतलब है कि वे हर रोज अपने दिलों और मनों में चिंतन-मनन कर रहे होते हैं। बाहर से वे शांत और सौम्य जान पड़ते हैं, लेकिन उनके दिलों में तूफान और अशांति मची रहती है। वे किन चीजों के बारे में सोचते हैं? अगर ये खुले और ईमानदार मामले होते, सकारात्मक बातें होतीं जैसे कि जीवन में सही मार्ग, सत्य का अभ्यास, जमीर के अनुसार कार्य करना, आचरण कैसे करना है, परमेश्वर से प्रेम कैसे करना है और लगन से अपना कर्तव्य कैसे करना है—अगर वे इन चीजों के बारे में बार-बार सोचते, उनकी तलाश करते, उन पर चिंतन करते, उन्हें जाँचते और अपने दिल में उन्हें समझने का प्रयास करते तो उनके आंतरिक दिल बहुत शांत होते और उनमें शांति होती और आनंद होता और वे अधिकाधिक सामान्य जीवन जीते, कुटिलता से नहीं जीते। इन सकारात्मक अवस्थाओं में रहने वाले लोग समय-समय पर अपने आस-पास के लोगों से और जिनके वे अपेक्षाकृत करीब हैं उनसे आध्यात्मिक अनुनाद और संवाद करते। लेकिन दानव अपने दिलों में जिन बातों पर चिंतन करते हैं और जिनके बारे में सोचते हैं वे सभी कुटिल चीजें होती हैं। कुटिलता का मतलब वे अमूर्त चीजें हैं जिन्हें सामान्य लोग नहीं देख सकते, वे बल्कि असामान्य चीजें हैं, अँधेरे कोनों में छिपी चीजें हैं जिन्हें खोजना और समझना लोगों के लिए मुश्किल होता है, ऐसी चीजें हैं जिनकी सामान्य लोगों को जरूरत नहीं होती है। ये अँधेरे कोने दानवों की आंतरिक दुनियाएँ हैं। उनके दिल इन कुटिल चीजों से भरे हुए हैं। हर रोज वे दूसरों से तुलना करते हैं, दूसरों से विवाद करते हैं, दूसरों के विरुद्ध साजिशें करते हैं और चालें चलते हैं, रुतबे, सम्मान और अंतिम फैसले के लिए होड़ करते हैं; वे सिर्फ इन्हीं मामलों के बारे में सोचते हैं। अगर तुम उनसे पूछते हो कि क्या अब उनके पास ईमानदार व्यक्ति होने का कोई मार्ग है तो वे तुम्हें उत्तर नहीं देंगे, तुम्हारी उपस्थिति को स्वीकार नहीं करेंगे और इसका जिक्र नहीं करना चाहेंगे। वह इसलिए क्योंकि उनके दिल इन नकारात्मक, कुटिल मामलों से भरे हुए हैं; वे सिर्फ इन्हीं चीजों के बारे में सोचते हैं। जब कभी-कभार उन्हें तकनीकी या पेशेवर पहलुओं से संबंधित मुद्दों पर जरा-सा सोचना पड़ता है तब वे अपने कार्य या जीवन की जरूरतों के कारण ऐसा सिर्फ अस्थायी तौर पर करते हैं। जैसे ही इस पहलू का उनका कार्य पूरा हो जाता है, वे तुरंत उन कुटिल मामलों के बारे में फिर से सोचने लगते हैं, उन पर चिंतन करते हैं, “किसके गुण मेरे गुणों से ज्यादा महान हैं? मैं किस पहलू में उससे ज्यादा शक्तिशाली हूँ, किस पहलू में वह मुझसे कमतर है? क्या फलाँ व्यक्ति ने पिछली बार मुझसे बात करते समय मुझे जानबूझकर नीचा नहीं दिखाया था? ऐसा लगता है कि उन दोनों लोगों ने लंबे समय से सामान्य रूप से बातचीत नहीं की है—उनके बीच क्या हुआ? अगर उनके बीच कोई टकराव या समस्या उत्पन्न हुई है तो क्या मुझे उससे कुछ फायदा हासिल हो सकता है? उनमें से एक मेरे लिए फायदेमंद है और मेरी मदद कर सकता है और मैं सच में उस व्यक्ति से मेलजोल रखना चाहता हूँ, लेकिन वह मेरी उपस्थिति कभी स्वीकार ही नहीं करता। अगर उन दोनों के बीच कोई टकराव है तो क्या मैं इस मौके का फायदा उठा सकता हूँ और उस व्यक्ति के साथ संपर्क स्थापित करने के इस अच्छे अवसर का उपयोग कर सकता हूँ?” वे अपने दिलों में जिस भी चीज पर चिंतन करते हैं और सोचते हैं, उसका सकारात्मक चीजों से कोई लेना-देना नहीं होता और परमेश्वर में विश्वास रखने और सत्य का अनुसरण करने से कोई लेना-देना नहीं होता। क्या इस प्रकार का व्यक्ति डरावना है? (हाँ।) अगर तुम उससे मेलजोल रखते हो तो यह दानव से मेलजोल रखने के समान है। तुम उसके खिलाफ कोई साजिश नहीं रचते, लेकिन वह तुम्हारे खिलाफ साजिशें रच रहा है और हर रोज तुम्हें देख रहा है, तुम्हारे बारे में सोच-विचार कर रहा है और तुम्हारे पीठ पीछे तुम्हें बारीकी से जाँच रहा है : “उसके वैसा कहने का क्या मतलब था? क्या उसका निशाना मेरी तरफ है? मैं किस तरह से उत्तर दूँ ताकि वह मेरी असलियत न देख सके? मैं किस तरह से उत्तर दूँ जिससे मुझे फायदा हो? अगर मैंने उत्तर नहीं दिया तो क्या वह सोचेगा कि मैं बेवकूफ हूँ, मुझे आसानी से डराया-धमकाया जा सकता है या मैं सचमुच परमेश्वर में विश्वास नहीं रखता? क्या वह ऐसा सोच सकता है? मुझे यह पता लगाने की जरूरत है कि उसके दिमाग में सच में क्या चल रहा है।” जब तुम लगातार उसकी साजिशों के बीच जीते हो तब क्या तुम दिल में सहज महसूस करते हो? (नहीं।) यह ऐसा है जैसे तुम्हारे बगल में कोई अदृश्य राक्षस हो; तुम शांति या आनंद महसूस नहीं कर सकते। जब तुम उससे मेलजोल रखते हो तब तुम्हें बस एक ही एहसास होता है : लगातार असहजता का बोध। यह असहजता बहुत सामान्य है क्योंकि सामान्य लोगों का अंतर्ज्ञान या छठी इंद्रिय उन्हें दानवों के प्रति, अपने आस-पास मौजूद असामान्य प्राणियों के प्रति असहजता महसूस करवाती है। भले ही तुम उसे सच में अच्छी तरह से नहीं जानते और यह समझा नहीं सकते कि आखिर क्या गलत है, तो भी जब तुम उसके साथ होते हो तब तुम्हें हमेशा असहजता महसूस होती है, मानो कुछ बुरा होने वाला हो। यह इस चीज को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि उसके मन में बुरे इरादे हैं, वह तुम्हारे खिलाफ साजिशें रच रहा है और उसकी तुम्हे लेकर गुप्त योजनाएँ हैं। तुम उसकी जासूसी करती निगाहों के नीचे जीते हो और वह हर रोज तुम्हारा बारीकी से अध्ययन करता है—यह तुम्हें अपने बगल में कोई बाघ या शेर होने से भी ज्यादा असहज महसूस करवाता है। अगर इस बाघ या शेर को तुमने पाला-पोसा होता तो भले ही यह भयंकर जानवर हो, फिर भी तुम कभी भी असहज महसूस नहीं करते। लेकिन अगर तुम्हारे आस-पास कोई दानव हो तो, क्योंकि उसमें विकृत प्रकृति सार है, इसलिए तुम असहज महसूस करोगे। यह असहजता आत्मा में निहित भावना है; यह दानव के कार्य में लगे होने के कारण होती है। शायद दानव तुम्हें किसी भी हद तक कष्टदायक ढंग से नुकसान पहुँचाने का व्यक्तिपरक रूप से इरादा न रखता हो, लेकिन बस उसकी तुम्हारे खिलाफ लगातार साजिशें रचना और तुम्हारी जासूसी करना तुम्हारी आत्मा को असहज बना देगा। अपने बगल में एक दानव के होते हुए तुम शांति और आनंद से बिल्कुल नहीं रह पाओगे, जब तक वह दानव न हो या तुम्हारे पास पर्याप्त आध्यात्मिक कद और परमेश्वर में पर्याप्त आस्था हो या तुम्हारे पास जीवन के रूप में सत्य हो—जब तक इनमें से कोई एक शर्त पूरी नहीं होती है, ऐसी स्थिति में वह तुम्हारे लिए कोई खतरा उत्पन्न नहीं करेगा या तुम पर कोई प्रभाव नहीं डालेगा और तुम असहज महसूस नहीं करोगे। अगर इनमें से कोई भी शर्त पूरी नहीं होती है तो जब कोई दानव लगातार तुम पर जासूसी करेगा तब तुम असहज महसूस करोगे। यह धीरे-धीरे किस हद तक बढ़ जाएगा? तुम उसके प्रति विकर्षण महसूस करोगे और उससे चौकस रहोगे, तुम भीतर से अशांत रहोगे और तुम बहुत-से मामलों में परेशान, बाधित और बँधे होगे। अगर वह पास में है तो जब तुम कुछ चीजें करोगे या बोलोगे तब तुम्हें हमेशा उसकी आँखों के भाव, उसके आचरण या उसकी राय पर विचार करना होगा। हो सकता है कि तुम लगातार यह पता लगाने का प्रयास करो, “वह मेरे बारे में क्या सोचेगा? ऐसा क्यों है कि मैं उसकी असलियत नहीं देख सकता? मुझे ऐसा क्यों लगता है कि वह जोड़-भाग करने वाला और रहस्यमय है? वह मुस्कान ऐसी क्यों लगती है मानो वह स्वीकृति की मुस्कान न हो? मैं इतना डरा हुआ क्यों हूँ? मैं उससे इतना प्रभावित क्यों हूँ?” अगर तुम सत्य नहीं समझते और तुममें भेद पहचानने की क्षमता बिल्कुल नहीं है तो इस प्रकार के व्यक्ति के साथ कुछ समय तक मेलजोल रखने के बाद तुम स्वाभाविक रूप से उससे प्रभावित हो जाओगे और अंत में ऐसी स्थिति में पहुँच जाओगे जो बहुत ही भयावह है।

दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग अपने दैनिक जीवन में प्राकृतिक रूप से जो प्रकट करते हैं और अपने दिल में जो सोचते हैं उन्हें देखा जाए तो उन्हें विकृत सार वाले लोगों के रूप में निरूपित किया जा सकता है। अगर तुम्हारा उनसे और गहरा, और आगे संपर्क नहीं रहा हो तो शायद तुम उनकी आंतरिक दुनियाओं को नहीं समझते, लेकिन इस प्रकार के व्यक्ति का भेद पहचानने का सबसे सीधा और सरल तरीका उसके बाहरी रूप-रंग की एक विशेषता है : वह अक्सर अपनी आँखों में एक दुष्ट भाव और एक धूर्त मुस्कान प्रकट करता है। उसकी आँखों में उस दुष्ट भाव का मतलब एक चंचल और संदिग्ध नजर है, एक ऐसी नजर जो बहुत साफ और स्पष्ट नहीं है और न ही बहुत ईमानदार और निष्कपट है, बल्कि एक ऐसी नजर जिसकी थाह पाना मुश्किल प्रतीत होता है। तुम्हें लगता है कि इस नजर में कोई छिपा हुआ अर्थ है, लेकिन वह बस तुम्हें बताएगा ही नहीं कि वह क्या है। इसके अतिरिक्त, जब वह बोलता है तब वह गूढ़ तरीके से चीजों का संकेत देकर तुम्हें अटकलें लगाने के लिए प्रेरित करता है, चीजों की तरफ इशारा करने के लिए शब्दों का उपयोग करता है और तुम्हें गलती से यह विश्वास दिलाता है कि वह एक विशेष तरीके से सोचता है, लेकिन वास्तव में यह ध्यान भटकाने के लिए एक चाल है। तुम जो समझते हो, वह उसका असली अर्थ बिल्कुल नहीं होता; वह बस तुम्हारे साथ छल करना चाहता है और तुम्हारी हँसी उड़ाना चाहता है। तुम्हें उसकी नजर में कोई ईमानदारी नहीं मिल सकती; यह एक चंचल और संदिग्ध, और भटकने वाली नजर है, इसमें एक अस्पष्ट, मायावी एहसास है। जैसे ही तुम उसकी आँखों में यह भाव देखते हो, तुम्हारे दिल में अचानक शंका जाग उठती है और तुम्हें संदेह होता है कि तुमने जो कहा या किया वह गलत था। अगर तुम उसकी आँखों में यह भाव नहीं देखते हो तो तुम्हें लगता है कि तुम्हारी राय सही है, तुम्हारी अपनी समझ शुद्ध है, कि ये बातें सत्य सिद्धांतों के हिसाब से हैं और तुम्हें एक निश्चित तरीके से कार्य करना चाहिए और तुममें ऐसा करने का दृढ़ विश्वास है। लेकिन जैसे ही तुम उससे नजरें मिलाते हो या वह तुम्हें उस दुष्ट भाव से घूरता है, तो अनजाने में तुम्हें अपने पूरे शरीर में बर्फीली सिहरन-सी महसूस होती है। हालाँकि कोई स्पष्ट शब्द नहीं बोले जाते हैं, लेकिन उसकी आँखों में वह दुष्ट भाव तुम्हें एक मनोवैज्ञानिक संकेत देता है, वह तुम्हें गुमराह करता है जिससे तुम्हें तुरंत खुद पर संदेह होने लगता है : “क्या मैंने कुछ गलत कह दिया? कुछ गलत कर दिया? मैंने कहाँ गलती कर दी?” विचाराधीन मामला और सिद्धांत स्पष्ट रूप से बहुत स्पष्ट और असंदिग्ध हैं और तुम निश्चित थे कि इसे उसी तरीके से किया जाना चाहिए था और यह सही था, लेकिन उससे नजरें मिलाने के बाद तुम संदेह में पड़ गए। इस तरह का भाव दानव का भाव है। यह एक पहलू है : उसकी आँखों के दुष्ट भाव के कारण तुम्हें संदेह होने लगता है। दूसरा पहलू यह है कि कभी-कभी उसकी आँखों के उस दुष्ट भाव में एक विशेष अर्थ निहित होता है—तिरस्कार। तुम युवा हो, तुम्हारे पास उथला अनुभव है, तुम्हारे पास जीवन अनुभव की कमी है और हो सकता है कि तुममें मानवता के कुछ दोष भी हों, इसलिए जब उसकी नजरें तुम्हारी नजरों से मिलती हैं तब तुम तुरंत आत्मविश्वास खो देते हो, तुम चूर-चूर हो जाते हो और तुरंत खुद पर संदेह करने लगते हो, खुद को बहुत मामूली समझने लगते हो, उससे कमतर समझने लगते हो और उसके सामने शक्तिहीन हो जाते हो। यह दानव का भाव है। यह दुष्ट भाव कभी-कभी लोगों के विचारों को भ्रमित कर देता है, कभी-कभी लोगों के आत्मविश्वास को हिला देता है और कभी-कभी लोगों को नकारात्मक और निराश भी महसूस करवाता है।

जब दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों का भेद पहचानने की बात आती है तब अगर अभी भी तुम्हारे पास उनकी आँखों का भाव देखकर उनका भेद पहचानने का अनुभव नहीं है तो यह देखो कि वे हर रोज किस बारे में सोचते हैं, यह देखो कि वे हर रोज लोगों से क्या बातें करते हैं और क्या सामान्य संवाद होता है या नहीं। अगर कोई सामान्य संवाद नहीं होता है और ज्यादातर लोग उन्हें समझ नहीं पाते हैं और ज्यादातर लोगों से मेलजोल रखने का उनका सिद्धांत मौन रहना है और उनके सबसे करीबी लोग भी यह नहीं जानते कि वे हर रोज किस बारे में सोचते हैं और वे उनके सटीक विचारों और नजरियों पर आसानी से पकड़ नहीं बना पाते या यह थाह नहीं ले पाते कि वे वास्तव में क्या सोच रहे हैं तो यह स्पष्ट है कि ऐसे लोग वाकई जोड़-भाग करने वाले और रहस्यमय हैं। उनकी चुप्पी का मतलब यह नहीं है कि उनका कोई विचार या नजरिया नहीं है; दरअसल उनके वास्तविक विचार उनके मन में छिपे होते हैं, बस वे उन्हें व्यक्त नहीं करते। अगर वे उन्हें व्यक्त नहीं करते हैं तो तुम यह कैसे पता लगा सकते हो कि वे शातिर हैं? उनकी एक तरह की मक्कारी भरी मुस्कान होती है; वे अक्सर एक बनावटी मुस्कान धारण करते हैं। जब वे तुम्हारे आमने-सामने होते हैं तब वे एक बनावटी मुस्कान प्रदर्शित करते हैं, लेकिन जब वे मुड़ जाते हैं तब उनका चेहरा भावशून्य, मुस्कान रहित हो जाता है। इस प्रकार के व्यक्ति खौफनाक, डरावना होते हैं; वे दानव होते हैं। समझे? (समझ गए।) उदाहरण के लिए, मान लो कि तुम उनसे किसी विषय पर चर्चा करते हो। जब तुम अपना नजरिया बता देते हो, उसके बाद वे अपना रुख व्यक्त नहीं करते हैं, बल्कि एक मक्कारी भरी मुस्कान प्रकट करते हैं। क्या तुम्हें पता है कि मक्कारी भरी मुस्कान का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि तुम्हें नहीं पता होता कि यह मुस्कान स्वीकृति की है या अस्वीकृति की, और तुम्हें नहीं पता होता कि वे वास्तव में तुम्हारे कहने का मतलब समझ रहे हैं या नहीं। वे बस “हे हे” करके हँसते हैं। तुमने जो कहा उस बारे में वे यह नहीं कहते कि वह सही है या वह गलत है, वे यह नहीं कहते कि वे उसे समझते हैं या वे उसे नहीं समझते, और इसलिए तुम बूझ नहीं सकते कि इस हँसी का सच में क्या मतलब है। उन्होंने तुम्हें उत्तर दे दिया है, लेकिन यह उत्तर कोई उत्तर नहीं देने के समान है। अगर उन्होंने उत्तर नहीं दिया होता तो तुम अनुमान लगाते कि शायद उन्हें समझ नहीं आया; लेकिन उनका इस तरह से उत्तर देना तुम्हें चक्कर में डाल देता है। तुम्हें नहीं पता होता कि यह हँसी उपहास, अवज्ञा, मजाक दर्शाती है या सहमति और स्वीकृति। अगर तुम उनसे उनका नजरिया पूछते हो तो वे फिर से “हे हे” करके हँसते हैं, “ठीक है, ठीक है” कहते हैं, और बोलने के बाद उनके चेहरे का भाव अचानक उतर जाता है। यह तुम पर अदृश्य रूप से अत्यधिक दबाव डालता है। अगर तुम्हारा आध्यात्मिक कद छोटा है और तुम्हारे पास कोई वास्तविक रुख या सही विचार और नजरिया नहीं है तो तुम उनसे डर सकते हो। यही कारण है कि उनकी इस मुस्कान को मक्कारी भरी मुस्कान कहते हैं—कुटिल और शातिर होने को मक्कार होना कहते हैं। वे आसानी से अपने नजरिए प्रकट नहीं करते हैं। वे मानते हैं कि एक शब्द कहना बहुत ही कम है, दो शब्द कहना बहुत ही ज्यादा है और एक बार कोई विचार स्पष्ट रूप से कह दिया जाए या उसका मतलब कोई विशिष्ट चीज हो तो वह विफलता है, गलती है। इसलिए उनके लिए सबसे अच्छा तरीका है मुस्कुराना और तुम्हें कयास लगाने देना—तुम जो भी अर्थ निकालना चाहो, वही कयास लगा सकते हो, तुम्हें जैसे पसंद हो वैसे कयास लगा सकते हो, लेकिन कम-से-कम तुम्हें यह एहसास होता है कि वे तुम्हारे प्रति शत्रुतापूर्ण नहीं हैं और इस प्रकार उनका लक्ष्य हासिल हो जाता है। उन घाघ लोगों को देखो जो षडयंत्रकारी और अत्यधिक शातिर हैं और उन लोगों को देखो जो कपटी और धूर्त हैं और निष्ठुर युक्तियों का उपयोग करते हैं : वे ज्यादा कुछ नहीं कहते और न ही उनके चेहरे पर ज्यादा भाव होते हैं, लेकिन उनकी नजर और उनकी मुस्कानें विकृत होती हैं। सामान्य भ्रष्ट मनुष्य और जानवरों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग, ये सभी दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों से दूर भागते हैं; वे ऐसे लोगों से मेलजोल रखने को तैयार नहीं होते और ऐसे लोगों के साथ रहना उन्हें डरावना लगता है, इससे उनमें सनसनाहट-सी होने लगती है। इससे उनमें सनसनाहट-सी क्यों होने लगती है? क्योंकि ऐसे लोग मनुष्य नहीं होते, वे दानव होते हैं और दानव कुछ भी करने में सक्षम होते हैं। जब सामान्य मनुष्य किसी के साथ मेलजोल रखते हैं तब उनके कारण उस व्यक्ति में सनसनाहट नहीं होती है। सामान्य लोगों में जमीर और विवेक होता है, वे संयम और अंकुश से कार्य करते हैं और उनके पास न्यूनतम मानक होते हैं। ज्यादा-से-ज्यादा, जब वे गुस्से में होते हैं तब हो सकता है कि वे तुम्हें जरा-सा कोसें और कुछ ऐसी अप्रिय बातें कह दें जो तुम्हारे आत्म-सम्मान को कुछ हद तक ठेस पहुँचाती हों। लेकिन दानव अलग होते हैं; वे तुम्हें कोसते नहीं हैं या तुम्हारे आत्म-सम्मान को ठेस नहीं पहुँचाते हैं, लेकिन वे तुम्हें नुकसान जरूर पहुँचाते हैं। वे तुम्हारे पीठ पीछे यह सोच-विचार करते हैं कि तुम्हें कैसे गुमराह किया जाए; वे एक गड्ढा खोदते हैं और तुम्हें खुद उसमें छलाँग लगाने के लिए राजी कर लेते हैं। जब तुम उसमें छलाँग लगा देते हो तब वे ऊपर से तुम्हें देखते हैं, तुम्हारी बदकिस्मती पर मन ही मन खुश होते हैं और साथ ही एक अच्छा व्यक्ति होने का ढोंग करते हुए कहते हैं, “मैं तुम्हें बचाऊँगा! तुम इसमें कैसे गिर गए? मुझे लगा कि ज्यादातर लोगों को पता है कि यहाँ एक गड्ढा है।” यहाँ तक कि वे अच्छे आदमी का किरदार भी निभाना चाहते हैं जिससे तुम उनकी बातों पर विश्वास कर लो। क्या इस तरह का व्यक्ति डरावना नहीं होता? वह गड्ढा उसने खोदा था और उसने उसे विशेष रूप से तुम्हारे लिए तैयार किया था; अगर उसमें तुम छलाँग नहीं लगाओगे तो कौन लगाएगा? जब तुम गड्ढे में छलाँग लगा देते हो उसके बाद वह तुम्हें बचाने के लिए हाथ बढ़ाता है और तुम्हें बचाते हुए कहता है, “तुमने छलाँग क्यों लगाई?” तुम्हारी बदकिस्मती पर मन ही मन खुश होते हुए वह ऐसा भी बना देता है कि तुम्हें एहसास नहीं होता कि यह गड्ढा उसी ने खोदा था। स्पष्ट रूप से उसी ने तुम्हें नुकसान पहुँचाया, फिर भी वह तुम्हें उसके प्रति अत्यंत आभारी महसूस करवा देता है। क्या यह पथभ्रष्टता नहीं है? (हाँ।) यह सरासर पथभ्रष्टता है!

एक चीज है जो दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग अक्सर करते हैं, जिसे सभी ने देखा है : दानव लोगों को खुश करने के लिए सुखद चीजें कहने में सबसे माहिर होते हैं। उदाहरण के लिए, जब ऐसा कोई व्यक्ति तुम्हें कार्य करते हुए देखता है तब वह भीतर छिप जाता है और देखता रहता है। जब तुम कार्य समाप्त कर लेते हो तब वह बाहर आकर कहता है, “ओह, तुम कब से कार्य कर रहे हो! तुमने मुझे बताया क्यों नहीं? मैं तुम्हारी मदद कर सकता था और बोझ बाँट सकता था। अगर थकान हो रही है तो हम साथ मिलकर इसे निपटा सकते हैं। अगली बार जब तुम कार्य करो तब बस मुझे बता देना—यह तो छोटी-सी बात है। मुझसे मदद माँगने में संकोच मत करना!” जब तुम यह सुनते हो तब तुम्हारा दिल बाग-बाग हो उठता है और तुम सोचते हो कि हालाँकि उसने मदद नहीं की, लेकिन उसका ऐसा करने का इरादा था और उसके शब्द ही पर्याप्त हैं। वह अपनी सुखद बातों से तुम्हें धोखा देता है। देखो, वह ऐसी चीजें कहने के लिए वास्तव में खुद को तैयार कर सकता है और उसे ऐसा करने में बिल्कुल शर्म नहीं आती। तो तुम यह कैसे जान सकते हो कि उसकी बातें झूठी हैं? अगली बार जब तुम अपने काम पूरे कर लेते हो तब वह आता है और फिर से सुखद बातें कहता है : “तुमने मुझे बताया क्यों नहीं कि तुम कार्य कर रहे हो? हर बार तुम मुझसे मदद नहीं माँगते; तुम सच में मुझसे परायों की तरह पेश आ रहे हो। तुम मेरे साथ इतनी औपचारिकता क्यों कर रहे हो?” दो-तीन बार ऐसा होने के बाद तुम जान जाते हो कि वह कार्य में वास्तव में तुम्हारी मदद नहीं करना चाहता और वह तुम्हें बस धोखा देने और खुश करने के लिए कुछ सुखद चीजें कह रहा है। जब सच में कोई ऐसी चीज होती है जिसमें उसकी मदद की जरूरत पड़ती है तब उसका कहीं कोई अता-पता नहीं होता। यह किस तरह का व्यक्ति है? यह दानव है, मनुष्य तो बिल्कुल नहीं है। दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग खुद से मिलने वाले हर व्यक्ति को धोखा देने और अपने खुद के उद्देश्य हासिल करने के लिए उनसे सुखद चीजें कहेंगे। वे धूर्त चालों से भरे होते हैं; वे मनुष्य नहीं बल्कि दानव हैं। क्या ऐसे लोगों से मेलजोल रखने के कोई मायने हैं? तुम्हें उन पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देना चाहिए। क्या तुम्हारे दैनिक जीवन में ऐसे लोग हैं? (हाँ।) ऐसे लोग इस मामले में इसी तरह से व्यवहार करते हैं और दूसरे मामलों में भी वे इसी तरीके से व्यवहार करते हैं—वे हमेशा लोगों को धोखा देते हैं। वे इतने ही ज्यादा पथभ्रष्ट होते हैं; वे लोगों के प्रति ईमानदार नहीं होते।

क्या तुम सभी लोग दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों की “पथभ्रष्टता” वाली विशेषता की एक अभिव्यक्ति—यानी कुटिलता—का भेद पहचानने में कुछ हद तक समर्थ हो? (हाँ।) इस प्रकार का व्यक्ति विशेष रूप से धोखेबाज, विशेष रूप से कुटिल और विशेष रूप से कपटी और मक्कार होता है। अगर तुम अभी भी उसकी अभिव्यक्तियों को भ्रष्टता के सामान्य प्रकाशन मानते हो और अभी भी भाई-बहनों के रूप में उसकी मदद करते हो और उसे सहारा देते हो तो क्या यह बेवकूफी की अभिव्यक्ति नहीं है? (हाँ।) तुम्हें भविष्य में ये बेवकूफी भरी चीजें दोबारा बिल्कुल नहीं करनी चाहिए; वह मनुष्य नहीं बल्कि दानव है और वह कोई ऐसा नहीं है जिसकी तुम मदद करो और जिसे सहारा दो। वह अपने दिल में जानता है कि सत्य क्या है, और यह कि ईमानदार व्यक्ति होना अच्छा है। लेकिन जानना एक बात है; उसकी अपने से ऐसी कोई अपेक्षा नहीं है और वह कभी भी ईमानदार व्यक्ति होने का अभ्यास नहीं करता है। ऐसा नहीं है कि वह इसका अभ्यास करना चाहता है लेकिन कर नहीं सकता; बल्कि इस तरीके से अभ्यास करने का उसका कभी इरादा ही नहीं होता। इस बारे में सोचो—वह अपने दिल में क्या साजिशें रचता है और क्या योजनाएँ बनाता है? एक भी चीज सकारात्मक चीजों से संबंधित नहीं है और एक भी विचार सकारात्मक विचारों और नजरियों से संबंधित नहीं है। वह सत्य का अभ्यास करने का इरादा नहीं रखता और न ही सही मार्ग पर चलने का इरादा रखता है, और इसलिए वह अपने दिल में सत्य सिद्धांतों की कभी भी तलाश नहीं करता और न ही यह तलाश करता है कि परमेश्वर के इरादों के अनुसार कैसे कार्य करना है। वह एक सृजित प्राणी का कर्तव्य पूरा करने या समर्पित होने और अपनी ईमानदारी अर्पित करने का इरादा भी नहीं रखता। वह जिन चीजों का जोड़-भाग करता है वे सब कुटिल चीजें हैं। कुछ लोग कहते हैं, “वह जो भी जोड़-भाग करता है, वह उसकी आंतरिक दुनियाओं का मामला है—उसका भेद पहचानना आसान नहीं है। जब वह इस बारे में खुलकर बात ही नहीं करता और इस पर संगति ही नहीं करता तब दूसरे लोग यह कैसे जान सकते हैं कि वह क्या सोच रहा है? वह बाहर से काफी अच्छा व्यवहार करता है और फिलहाल चल रहे कामों में खुद को व्यस्त भी रखता है। तुम यह क्यों कहते हो कि वह कुटिल है और उसे दानवों के रूप में क्यों निरूपित करते हो?” दूसरे लोग कहते हैं, “वह बस जरा-सी दुष्ट नजर और जरा-सी मक्कारी भरी मुस्कान प्रकट करता है; हम अभी भी इस चीज की असलियत नहीं देख सकते कि वह अपनी आंतरिक दुनियाओं में क्या सोच रहा है।” तो यह भेद कैसे पहचाना जा सकता है कि वह दानव है? व्यक्ति के विचार अमूर्त होते हैं; अगर वह उन्हें व्यक्त नहीं करता है तो तुम उसे नहीं देख सकते या उसका पता नहीं लगा सकते और तुम उसका भेद नहीं पहचान पाओगे। हालाँकि, किसी व्यक्ति के विचार और नजरिए चाहे जो भी हों, वह अपनी आंतरिक दुनिया में चाहे किसी भी चीज की लालसा या जोड़-भाग करता हो, वह अपने उद्देश्य हासिल करने के लिए निश्चित रूप से कार्य करेगा और इसलिए उसके पास हमेशा कुछ ऐसी चीजें होंगी जिन्हें वह जीता है, कुछ अभिव्यक्तियाँ होंगी। जब तक वह लोगों के बीच रहेगा तब तक दूसरे लोग उन चीजों को देखने या उनके संपर्क में आने में समर्थ होंगे जिन्हें वह करता है। हो सकता है कि तुम्हें पता न हो कि वह अपने दिल की गहराइयों में क्या जोड़-भाग कर रहा है, क्या साजिश रच रहा है और क्या योजना बना रहा है, लेकिन वह जो भी साजिश रचता है, योजना बनाता है और जोड़-भाग करता है, वे सब एक दिन उसके द्वारा बेनकाब और अभिव्यक्ति हो जाएँगे; वह उन्हें वास्तविकता में बदल देगा और वह लोगों के बीच कुछ क्रियाकलाप करेगा। जब ये चीजें तुम्हारी आँखों के सामने घटित होंगी तब क्या तुम उन्हें देखने में समर्थ नहीं होगे? क्या तुम उस व्यक्ति का भेद पहचानने में समर्थ नहीं होगे? कुछ लोग कहते हैं, “अगर मैं उसकी अभिव्यक्तियाँ देख लूँ तो भी मुझे नहीं पता होता कि इस प्रकार के व्यक्ति का भेद कैसे पहचानना है या उसे कैसे निरूपित करना है।” इसे सँभालना आसान है; इस प्रकार के व्यक्ति में कई विशेषताएँ होती हैं और तुम इन विशेषताओं के जरिए उसका भेद पहचान सकते हो। पहली विशेषता यह है कि वह हमेशा अपनी खुद की मर्जी के अनुसार कार्य करता है और कभी भी सत्य सिद्धांतों की तलाश नहीं करता। वह चाहे कुछ भी करे, उसकी योजना वह स्वयं पहले ही बना लेता है और पूरी तरह से अपनी खुद की योजनाओं, विचार-प्रवाह और इरादों के अनुसार, पूरी तरह से अपनी इच्छानुसार कार्य करता है। वह सबकी राय नहीं पूछता और यकीनन इससे भी ज्यादा वह सत्य सिद्धांतों की तलाश नहीं करता या कार्य-व्यवस्थाओं के अनुसार कार्य नहीं करता। अगर तुम इन अभिव्यक्तियों को देख सकते हो तो क्या फिर दानव पूरी तरह से उजागर नहीं हो जाते हैं? (हाँ।) कुछ लोग कहते हैं, “शायद वे सत्य समझते हैं और सत्य सिद्धांत जानते हैं, इसलिए वे दूसरों से चर्चा किए बिना ही जानते हैं कि क्या करना है।” यह कथन फिर से गलत है; यह चीजों की असलियत देखने में असमर्थता को दर्शाता है। तुम लोगों के लिए, दानव जो चीजें कहते हैं और करते हैं, वे मुश्किल रुकावटों की एक श्रृंखला है। चाहे उन्होंने भाई-बहनों की राय माँगी हो या नहीं, तुम्हें स्पष्ट रूप से यह देखना चाहिए कि उनके क्रियाकलापों का उद्देश्य, मकसद, शुरुआती बिंदु और सिद्धांत उनकी अपनी प्रतिष्ठा, रुतबे और सम्मान को बचाने के लिए हैं या कलीसिया के कार्य को बचाने के लिए हैं, और इससे जो अंतिम प्रभाव हासिल हुआ, क्या वह परमेश्वर के घर के हितों को बचाता है, और क्या यह ज्यादातर लोगों के लिए हानि, नुकसान और तोड़-फोड़ लाता है या लाभ। दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग चाहे कुछ भी करें, यह हमेशा अपने खुद के हितों को बचाने के लिए होता है; यह दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों की एक और विशेषता है। उनकी नजर में उनके हित सभी चीजों से ऊपर हैं, ठीक किसी व्यापार करने वाले व्यापारी की तरह : हित सर्वोपरि हैं। किसके हित सर्वोपरि हैं? दानवों के अपने हित सर्वोपरि हैं। अगर कुछ करने से उनके हित, सम्मान, रुतबे, प्रतिष्ठा या भौतिक संपत्तियों और धन का बचाव हो सकता है तो वे खुद को बिल्कुल भी पीछे नहीं हटेंगे, बल्कि उसे अंत तक कार्यान्वित करेंगे, उसे अंत तक पूरा करेंगे। भले ही ऊपरी स्तर के अगुआ या भाई-बहन इसका विरोध करें और इसे आगे पूरा न किया जा सके और वे सामने रुकावट की दीवार खड़ी पाएँ, तो भी वे पेचीदा युक्तियाँ अपनाएँगे, सभी विरोधियों को हटाने और सभी बाधाओं को दूर करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे ताकि वे जो करना चाहते हैं उसे जारी रख सकें। वे बिल्कुल भी पीछे नहीं हटेंगे; वे सिर्फ अपने हितों का बचाव करते हैं। अब तुम इसे स्पष्ट रूप से देख सकते हो : चाहे वे योजनाएँ हों, साधन हों, उपाय हों या वे कदम हों जिनके बारे में वे साजिश रचते हैं, योजना बनाते हैं और उपाय करते हैं, वे अपने मन में इन सारी चीजों का जोड़-भाग कर चुके होते हैं; वे सिर्फ हितों के बारे में सोचते हैं और उनके मन हितों के विचारों से भरे होते हैं; किसका उपयोग करना है, किसके करीब जाना है, किससे दूर रहना है, किसका समर्थन करना है, किसका विरोध करना है, किसे बरखास्त करवाना है—वे अपने हितों के अनुसार इन सब चीजों की रणनीति बनाते हैं। अगर कार्य करने और अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में वे इस बिंदु तक पहुँच जाते हैं तो वे मसीह-विरोधी हैं, दानव हैं जो अपना असली रूप प्रकट कर रहे हैं। ऐसे लोग बेहद रहस्यमय और जोड़-भाग करने वाले होते हैं; वे हर रोज इन चीजों पर चिंतन करते हैं। अगर उन्हें कलीसिया के सभी लोगों पर पकड़ बनानी हो तो कितना समय लगेगा? जब वे कलीसिया के सभी सदस्यों की स्थिति पर, हर व्यक्ति की वास्तविक समस्याओं और असली कठिनाइयों पर स्पष्ट पकड़ बना लेते हैं और सही समय आ गया होता है, सिर्फ तभी वे कार्य करना शुरू करते हैं, जो चाहें करते हैं—वे किसी के प्रति ढील नहीं दिखाते हैं और कोई भी उन्हें रोक नहीं सकता है। वे कलीसियाई कार्य करने की आड़ में अपने खुद के उद्यम चलाते हैं, अपने खुद के लिए लाभ हासिल करने का प्रयास करते हैं। अंततः नुकसान कलीसिया के कार्य और भाई-बहनों के जीवन-प्रवेश को होता है। वे सभी भाई-बहनों के जीवन-प्रवेश और परमेश्वर के घर के हितों की बलि चढ़ाने की कीमत पर अपने व्यक्तिगत हितों की पूर्ति को सर्वोपरि रखने का अपना लक्ष्य हासिल करते हैं। इस बिंदु पर क्या तुम उन्हें स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते? वे जिस तरीके से चीजें करते हैं उसे और अंतिम नतीजों को देखा जाए तो वे दानव हैं; वे मनुष्य नहीं हैं। वे दिन भर बहुत कम बोलते हैं और मुश्किल से ही कभी अपने विचार व्यक्त करते प्रतीत होते हैं, लेकिन वास्तव में वे हर रोज यही जोड़-भाग करते हुए बिताते हैं कि कैसे कार्य करना है ताकि वे लाभ हासिल कर सकें। हालाँकि बाहर से वे काफी शांत, काफी परिष्कृत, काफी नाजुक और काफी शिष्ट दिखाई पड़ते हैं और बातूनी नहीं दिखाई पड़ते, लेकिन भीतर से उनके दिल उफनते हुए सागर की तरह अशांत होते हैं। वे इन चीजों पर पूरी पकड़ बना लेते हैं और फिर वे उन योजनाओं को कार्यान्वित करते हैं जिन्हें उन्होंने सोच रखा है, और अंतिम नतीजा यह होता है कि वे ठीक अपनी साजिश के अनुसार सफल होते हैं। क्या यह दानव का कार्य नहीं है? (हाँ।) यह दानव का कार्य है। इस बिंदु पर क्या तुम उनकी असलियत नहीं देख सकते?

पिछले वर्ष के सुसमाचार कार्य में उत्पन्न हुई एक बहुत ही बड़ी समस्या सीधे कुछ दानवों से संबंधित थी, यह सीधे दानवों के क्रियाकलापों से संबंधित थी। उन दानवों ने जब कार्य किया तब उन्होंने सत्य सिद्धांतों की कभी भी तलाश नहीं की। ऊपरवाले द्वारा कार्य सौंपे जाने के बाद उन्होंने उसे व्यक्तिगत रूप से तत्परता से स्वीकार तो कर लिया, लेकिन जब वे कलीसियाओं में कार्य करने गए तब वे बस पागलों की तरह बुरी चीजें करने लगे। उन्होंने परमेश्वर के घर के हितों का बचाव नहीं किया और नतीजतन परमेश्वर के चढ़ावों का नुकसान हुआ, सुसमाचार कार्य में नुकसान हुआ और कलीसियाई जीवन को नुकसान हुआ; कई क्षेत्रों में नुकसान हुए और उन्होंने कलीसिया के कार्य में भी अराजकता उत्पन्न की। हो सकता है कि तुम यह असलियत नहीं देखो कि दानव क्या सोच रहा है और न ही तुम यह जानो कि उन्होंने सिद्धांतों की तलाश की है या नहीं। लेकिन जब वे कार्य करते हैं और तुम पहले संकेत देखते हो तब तुम जानोगे कि उनके क्रियाकलापों की विधि और स्रोत गलत हैं, वे पूरी तरह से अपना दिखावा कर रहे हैं, अपनी खुद की इच्छानुसार चीजें कर रहे हैं, मनमाने ढंग से और मनमर्जी से कार्य कर रहे हैं और एक स्वतंत्र राज्य स्थापित कर रहे हैं। इसके अलावा, दानवों के गिरोह एक-दूसरे की रक्षा करते हैं; उनमें से कोई भी परमेश्वर के घर के हितों का बचाव नहीं करता है। बड़े दानव चाहे कुछ भी करें, अनुयायी और छोटे दानव उनकी चापलूसी करने और तलवे चाटने में एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं। बड़े दानव लापरवाही से और मनमर्जी से कार्य करते हैं और छोटे दानव उनकी देखादेखी करते हैं और उनकी खुशामद करते हैं—वे एक-दूसरे के साथ घनिष्ठता से कार्य करते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि वे अभी भी इस तथ्य की असलियत नहीं देख सकते कि किसी व्यक्ति का सार दानव का सार है। ऐसे में उनके द्वारा किए गए किसी कार्य की प्रकृति और उसके नतीजों को देखो। अगर प्रकृति और नतीजे बहुत गंभीर हैं तो यह निश्चित हुआ जा सकता है कि यह किसी दानव का कार्य है। उदाहरण के लिए, सुसमाचार का प्रचार करने में प्राप्त लोगों की झूठी संख्याएँ रिपोर्ट करने के मामले में कुछ लोगों ने कहा, “क्या झूठी संख्याएँ रिपोर्ट करना सिद्धांतों के खिलाफ नहीं है? हमें वास्तविक संख्याएँ रिपोर्ट करनी चाहिए; जितने भी लोग प्राप्त हुए हैं, हमें उतने लोग ही रिपोर्ट करने चाहिए। हम अपनी रिपोर्ट में झूठ कैसे बोल सकते हैं? जब सौ लोग प्राप्त हुए तब हम एक हजार लोग कैसे रिपोर्ट कर सकते हैं या जब एक हजार लोग प्राप्त हुए तब हम दस हजार लोग कैसे रिपोर्ट कर सकते हैं?” इन नकली अगुआओं में से एक ने क्या कहा? “तुम्हें इसकी रिपोर्ट इसी तरीके से करनी चाहिए; हर कोई इसकी रिपोर्ट इसी तरीके से करता है। यही पवित्र आत्मा का प्रवाह है!” क्या तुम लोग इस कथन का भेद पहचान सकते हो? झूठी और मनगढ़ंत संख्याएँ रिपोर्ट करना स्पष्ट रूप से परमेश्वर को धोखा देने का प्रयास है। यह पवित्र आत्मा का प्रवाह कैसे हो सकता है? यह एक बुरा चलन है। पवित्र आत्मा ने लोगों से झूठ बोलने या झूठी संख्याएँ रिपोर्ट करने के लिए नहीं कहा; सिर्फ दानव ही ऐसी चीजें कह सकते हैं। क्या तुम लोग इसका भेद पहचान सकते हो? चूँकि वह नकली अगुआ ऐसे बेतुके शब्द बोल पाया, इसलिए वह कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है; वह नकली अगुआ भी दानवों की श्रेणी का है। क्या तुम लोग इस मामले की असलियत देख सकते हो? क्या तुम लोग यह भेद पहचान सकते हो कि ऐसे शब्द दानवों द्वारा बोले जाते हैं? सिर्फ दानव और शैतान ही ऐसी चीजें कह सकते हैं। अगर तुम लोग इस मामले की असलियत नहीं देख सकते तो तुम लोगों में भेद पहचानने की क्षमता की बहुत ही ज्यादा कमी है। अगर जानवरों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग इसकी असलियत नहीं देख सकते तो यह कुछ हद तक क्षम्य है क्योंकि वे मनुष्य नहीं हैं; उनमें मानवीय आत्मा नहीं है। अगर तुममें सच में भेद पहचानने की क्षमता है और तुम इस मामले की असलियत देख सकते हो तो क्या तुमने अपनी जिम्मेदारी पूरी की है? क्या तुम इस मामले को रोकने और उजागर करने के लिए उठ खड़े हुए हो? मान लो कि तुम कहते हो, “मैंने इसकी असलियत देखी है, लेकिन मेरे साधारण रुतबे के कारण मेरे शब्द कम महत्व रखते हैं और मैं कमजोर और अकेला हूँ; मैं इसे रोकने या उजागर करने की हिम्मत नहीं कर सकता!” ऐसे में तुम एक निकम्मे कायर हो! तुम अपनी बात पर अड़े नहीं रहे और तुम अपनी गवाही में डटे नहीं रहे; तुम परमेश्वर के वफादार सेवक नहीं हो, तुमने एक व्यक्ति की जिम्मेदारी पूरी नहीं की है। तुम बस एक भ्रमित व्यक्ति हो, एक निकम्मे कायर हो। मुझे बताओ, क्या परमेश्वर निकम्मे कायरों को पसंद करता है? (नहीं।) परमेश्वर तुम्हें जीवन प्रदान करता है, तुम्हें सत्य की आपूर्ति करता है और तुम्हारे दैनिक जीवन में शैतान के नुकसान से तुम्हारी रक्षा करता है। लेकिन यह पता चलता है कि तुम सत्य स्वीकार नहीं करते हो, बल्कि बुराई करने के लिए शैतान का अनुसरण करते हो, दानवों के बीच रहते हो और शैतान को तुम्हें नुकसान पहुँचाने की अनुमति देते हो। तुम शैतान के वास्तविक चेहरों को स्पष्ट रूप से देखते हो, लेकिन फिर भी उन्हें उजागर नहीं करते। यह मुसीबत को दावत देना है; तुम शैतान द्वारा बेवकूफ बनाए जाने के लायक हो। परमेश्वर तुम्हें सत्य की आपूर्ति करता है ताकि तुम्हारी भेद पहचानने की क्षमता बढ़ाने में तुम्हें सक्षम कर सके। अगर तुममें भेद पहचानने की क्षमता है लेकिन फिर भी तुम मूक-बधिर होने का ढोंग करते हो, नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों को उजागर करने के लिए उठ खड़े नहीं होते तो तुम एक निकम्मे कायर हो! तुमने वह जिम्मेदारी पूरी नहीं की है जो एक व्यक्ति को करनी चाहिए; तुम अपनी जिम्मेदारी में लापरवाह हो, तुम कचरा हो, निकम्मे कायर हो, मुफ्तखोर हो, बेकार हो! दानवों का लोगों को सुसमाचार का प्रचार करने में झूठे आँकड़ों की रिपोर्ट करने के लिए मजबूर करना—यह अभ्यास बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिए और इसका भेद पहचानना मुश्किल नहीं होना चाहिए। मान लो कि कोई तुम्हें लात या घूँसा मारता है। तुम्हें नहीं पता कि वह तुमसे इस तरह से क्यों पेश आ रहा है और तुम यह भेद नहीं पहचान सकते कि इससे उसका क्या मतलब है। फिर वह तुम्हारी गर्दन पर चाकू घोंप देता है और तब जाकर तुम्हें एहसास होता है, “वह मेरी जान लेने का प्रयास कर रहा है!” मुझे बताओ, आखिर तुम कितने बेवकूफ हो? वह दुर्भावनापूर्ण इरादे से तुम्हें लात मारता है, लेकिन फिर भी तुम यह तक नहीं पहचान सकते कि वह एक दुष्ट व्यक्ति है और तुम अभी भी उससे तर्क करने का प्रयास करते हो, “मैंने तुम्हें नाराज तो नहीं किया, फिर तुम क्यों मुझे लात मार रहे हो? क्या तुममें मानवता है?” अगर वह तुम्हें बिना किसी कारण के लात मारता है तो क्या वह दुष्ट व्यक्ति नहीं है? क्या दुष्ट व्यक्ति से तर्क करने का कोई फायदा है? अगर वह चाकू लेकर तुम पर झपट पड़े तो पछतावों के लिए बहुत देर हो चुकी होगी। जब तक तुम मदद के लिए चिल्लाओगे तब तक बहुत ही ज्यादा देर हो चुकी होगी; तुम्हारी जीवनलीला समाप्त हो चुकी होगी। देखो तुम आध्यात्मिक कद में कितने छोटे हो, तुम कितने बेवकूफ हो! दानवों का सामना करते समय तुम्हें हमला करने की पहल करनी चाहिए, निष्क्रिय मत बनो। अगर तुम हमेशा निष्क्रिय रहते हो, जब शैतान तुम्हारी जान लेने वाला होता है सिर्फ तभी प्रतिक्रिया करते हो और परमेश्वर से तुम्हें बचाने की गुहार लगाते हो तो यह बहुत ही ज्यादा निष्क्रियता है, बहुत ही ज्यादा मंदबुद्धि है! परमेश्वर ऐसे लोगों को पसंद नहीं करता।

कुछ लोग नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों से संबंधित समस्याओं की रिपोर्ट बहुत ही घुमा-फिरा कर करते हैं। वे अपनी स्थानीय कलीसिया में उनकी रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं करते, बल्कि ऐसा करने के लिए दूसरे इलाकों की कलीसियाओं में जाते हैं, वे डरते हैं कि उनके स्थानीय इलाके में कोई यह खबर फैला देगा और बुरे लोग पता लगा लेंगे और उन्हें सताएँगे। ये लोग इस कद्र छोटे आध्यात्मिक कद के होते हैं। तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो, फिर भी तुम बुरे लोगों और दानवों से इतना डरते हो? क्या दानवों में इतनी बड़ी शक्ति होती है? क्या दानव तुम्हारी जान ले सकते हैं? क्या तुम्हारा भाग्य दानवों के हाथ में है? तुम उनसे इतना क्यों डरते हो? वे बस बुरे लोग हैं; वे तुम्हारे साथ क्या कर सकते हैं? सबसे बदतर परिदृश्य में भी, इस देश में कानून हैं—तुम किस चीज से डरते हो? यह चीन नहीं है जहाँ दानव बेलगाम घूमते हैं; यह एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ कानून का राज है। और इसके अलावा यह तथ्य बताने की जरूरत नहीं है कि कलीसिया में तुम्हारे भाई-बहन हैं—वे बुरे लोग तुम्हारे साथ क्या कर सकते हैं? कुछ लोग अगुआओं और कार्यकर्ताओं से जुड़े मुद्दों की रिपोर्ट करते हुए ही इतने डर जाते हैं। यह उनमें कम आस्था होने की समस्या नहीं है; ये तो निकम्मे कायर और डरपोक लोग हैं जो जीने तक के लायक नहीं हैं! परमेश्वर ने तुम्हें जो साँस दी, वह तुम पर बर्बाद हो गई है; इसे किसी पशु को देना बेहतर होता। पशु भी दबाए जाने पर व्यक्ति को काट सकता है। तुम जीवित हो, फिर भी तुममें इतनी-सी भी हिम्मत नहीं है; तुम बहुत ही ज्यादा कायर हो! हालाँकि कुछ लोग बुरे लोगों से सामना होने पर उनसे सामने से लड़ने की हिम्मत नहीं करते, लेकिन वे कलीसिया के कार्य का बचाव करने के लिए बुद्धिमानी का उपयोग करते हैं। वे बुरे लोगों के मुद्दों की रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को करते हैं और सत्य से प्रेम करने वाले लोगों के साथ मिलकर उन बुरे लोगों को उनके पदों से हटाने के लिए एकजुट हो जाते हैं। उनमें इस तरह का संकल्प होता है : “तुम बुरे व्यक्ति हो, लेकिन मैं तुमसे नहीं डरता। मैं तुम्हें परमेश्वर के घर के कार्य में बाधा डालने और तोड़-फोड़ करने के लिए कोई बुराई नहीं करने दूँगा। मैं तुम्हारी मर्जी नहीं चलने दूँगा। मैं तुमसे लड़ने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दूँगा—तुम मेरे साथ क्या कर सकते हो? सबसे बुरा यही होगा कि तुम मेरी जान ले लोगे, लेकिन जब तक मुझमें साँस है, मैं अंत तक तुमसे लड़ूँगा!” क्या तुम लोगों में यह आस्था है? उन निकम्मे कायरों में ऐसी आस्था नहीं है। जब वे दानवों को कलीसिया के कार्य में बाधा डालते देखते हैं तब वे अपने दिलों में जानते हैं कि यह गलत है, ये दानव और मसीह-विरोधी हैं जो बुराई कर रहे हैं। लेकिन वे सोचते हैं, “मैं उन्हें उजागर नहीं कर सकता और न ही उनकी रिपोर्ट कर सकता हूँ; मुझे अपने लिए कोई मुसीबत नहीं खड़ी करनी चाहिए। मुसीबत जितनी कम हो, उतना ही अच्छा है; अपनी रक्षा करना अत्यंत जरूरी है। अगर बुरे लोगों को उजागर करने के कारण मुझे कलीसिया से निष्कासित कर दिया गया और मैं परमेश्वर में विश्वास रखने और उद्धार पाने के मौके तक से वंचित रह गया और मैं अपना कर्तव्य तक पूरा नहीं कर सका तो क्या मुझे पूरी तरह से हटा नहीं दिया गया होगा?” वे बुरे लोगों को उजागर करने की हिम्मत नहीं करते, वे उनके प्रतिशोध से बहुत डरते हैं। इसलिए, जब बड़ा लाल अजगर परमेश्वर के चुने हुए लोगों का पागलों की तरह दमन और उत्पीड़न करता है तब वे भी निश्चित रूप से डर जाते हैं और अगर वे गिरफ्तार हो गए तो वे निश्चित रूप से यहूदा बन जाएँगे और परमेश्वर को धोखा देंगे। इसलिए अगर तुम कलीसिया में बुरे लोगों से डरते हो और जब उन्हें बुराई करते देखते हो तब तुम उन्हें उजागर करने की हिम्मत नहीं करते तो क्या यह शैतान के आगे आत्मसमर्पण करना नहीं है? परमेश्वर तुम्हें सत्य की आपूर्ति करता है, तुम्हें आस्था देता है और उसने अब तक तुम्हारी रक्षा की है और तुम्हें जीवित रखा है। तुम वही साँस लेते हो जो परमेश्वर ने तुम्हें दी है, उसी सत्य का आनंद लेते हो जिसकी वह तुम्हें आपूर्ति करता है, और उसके अनुग्रह का आनंद लेते हो। तुम्हारे पास कलीसियाई जीवन की इतनी अच्छी स्थितियाँ हैं और तुम काफी आराम से रहते हो। लेकिन जब बुरे लोग परमेश्वर के घर में विघ्न उत्पन्न करते हैं तब तुम इसे देखते हो और इसका भेद पहचान लेते हो, लेकिन फिर भी तुम एक शब्द तक कहने की हिम्मत नहीं करते, यहाँ तक कि तुम जोर से साँस लेने की भी हिम्मत नहीं करते—तुम किस तरह के प्राणी हो? तुम जीने तक के लायक नहीं हो! तुम अपनी स्थानीय कलीसिया के मुद्दों की रिपोर्ट स्थानीय अगुआओं को नहीं करते, बल्कि उनकी रिपोर्ट करने के लिए दूसरे इलाकों की कलीसियाओं में जाते हो। इस तरह की तुच्छ, कायर मानसिकता के चलते क्या तुम महान चीजें पूरी कर सकते हो? और फिर भी तुम कहते हो कि तुम परमेश्वर की गवाही देना चाहते हो और विजेता बनना चाहते हो—तुम कुछ भी नहीं हो, तुम एक जानवर से भी बदतर हो! कुत्ता तक अपने मालिक की रक्षा करना जानता है। अगर कोई अजनबी आ जाता है तो कुत्ता अपनी पूरी ताकत लगाकर भौंकता है, क्योंकि उसे अपने मालिक की सुरक्षा को खतरा महसूस होता है। कुछ कुत्ते बड़े नहीं होते और उन्हें एक ही लात से जमीन पर गिराया जा सकता है, लेकिन वे डरते नहीं हैं और तब भी अपनी पूरी ताकत लगाकर भौंकते हैं—वे ऐसा अपने मालिकों की रक्षा करने के लिए करते हैं। कुछ कुत्ते तो अपने मालिकों की रक्षा करने के लिए अपनी जान तक जोखिम में डाल देते हैं। इन लोगों में इतनी-सी आस्था तक नहीं है और ये इतने भी वफादार नहीं हैं जितना कि अपने मालिक के प्रति एक पहरेदार कुत्ता होता है—ये सब निकम्मे नीच हैं! वे परमेश्वर के अनुग्रह और भरण-पोषण का मुफ्त में आनंद लेते हैं, बदले में कुछ नहीं देते और यहाँ तक कि यह भी मान कर चलते हैं कि परमेश्वर को लोगों से प्रेम करना ही चाहिए और उन पर दया दिखानी ही चाहिए। जब वे देखते हैं कि कलीसिया के कार्य में बाधा डाली जा रही है और तोड़-फोड़ की जा रही है, तब वे अपने दिलों में कोई दुःख या खेद महसूस नहीं करते। इसका मतलब है कि वे एक जानवर से भी बदतर हैं, एक पहरेदार कुत्ते से भी कहीं ज्यादा बदतर हैं। भविष्य में जब फिर से तुम्हारा सामना दानवों से हो तब तुम्हें क्या करना चाहिए? अगर तुम उनकी असलियत नहीं देख पा रहे हो और यह नहीं जानते कि जब वे मुस्कुराते हैं तब वे क्या बुरी चीजें करने की योजना बनाते हैं या उनकी आँखों के भावों में कौन-से दुष्ट इरादे छिपे हैं तो पहले तुम उनकी जाँच-परख कर सकते हो। उनका पर्यवेक्षण करने के लिए एक विश्वसनीय व्यक्ति ढूँढ़ो और देखो कि वे गुप्त रूप से क्या कहते और करते हैं और अपने साथियों के साथ मिलकर क्या साजिश रचते हैं। तुम्हें उनकी सभी साजिशों और योजनाओं को शुरू में ही नष्ट कर देना चाहिए, उन्हें कामयाब नहीं होने देना चाहिए और परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान नहीं पहुँचने देना चाहिए। कुछ लोगों में इस तरह का संकल्प होता है : “मुझे परमेश्वर के घर के द्वार की अच्छी तरह से रखवाली करनी है, मुझे एक अच्छा पहरेदार कुत्ता बनना है। मुझे नहीं पता कि दूसरे लोग इस मामले से कैसे पेश आएँगे, लेकिन जहाँ तक मेरी बात है, मैं इसे यूँ ही नहीं जाने दूँगा; मैं दानवों से अंत तक लड़ूँगा!” इसे ही परमेश्वर के प्रति वफादारी कहते हैं; यह उनके द्वारा यह प्रमाणित करने का प्रयास नहीं है कि वे कितने सक्षम हैं। “मैं ऐसा करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा रखूँगा; मेरे यहाँ रहते किसी भी दानव के पास अपनी मर्जी चलाने या कामयाब होने का कोई मौका नहीं है! मैं परमेश्वर के घर के द्वार की रखवाली करूँगा, भाई-बहनों की रक्षा करूँगा, परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करूँगा और परमेश्वर के घर के कार्य का बचाव करूँगा। किसी के पास भी बाधा डालने या तोड़-फोड़ करने का कोई मौका नहीं है—अगर मैंने किसी को ऐसी चीजें करते देखा तो मैं उसके साथ नरमी नहीं बरतूँगा। अगर उसे बरखास्त किया जाना चाहिए तो उसे बरखास्त कर दिया जाएगा, अगर उसे निष्कासित किया जाना चाहिए तो उसे निष्कासित कर दिया जाएगा और अगर उसे बाहर निकाल दिया जाना चाहिए तो उसे बाहर निकाल दिया जाएगा। मैं बिल्कुल भी पीछे नहीं हटूँगा!” क्या तुम लोगों में यह आस्था है? (हाँ।) जब मनुष्यों से या पशुओं से लड़ने की बात आती है तब अगर तुम काफी सक्षम हो, लेकिन जब तुम्हें दानवों से लड़ना पड़ता है तब तुम दब्बू बन जाते हो, डर जाते हो और एक कछुए की तरह अपनी खोल में सिमट जाते हो तो परमेश्वर कहता है कि तुम्हारा काम तमाम हो गया है, तुम नाकारा हो, तुम सत्य प्राप्त नहीं कर पाओगे और तुम्हें उद्धार नहीं मिल सकता। दानवों से लड़ना एक सच्ची लड़ाई है; यह परमेश्वर के लिए गवाही देने की लड़ाई है। यह एक ऐसी लड़ाई है जो विजेताओं, संतों और परमेश्वर के अनुयायियों को लड़नी ही पड़ेगी, यह वह रुख है जो उन्हें अपनाना ही पड़ेगा और यह वह दृढ़ निश्चय और संकल्प है जो उनमें होना ही चाहिए। “दानवों से अंत तक लड़ो! या तो वे हैं या मैं! मैं बिल्कुल भी नहीं डरूँगा, मैं बिल्कुल भी सहमकर पीछे नहीं हटूँगा और मैं बिल्कुल भी हतोत्साहित नहीं होऊँगा!” क्या तुम लोगों में यह दृढ़ निश्चय है? (अब हममें है।)

कुछ लोग आध्यात्मिक कद में बहुत ही छोटे होते हैं। जब उनका सामना शक्ति और रुतबे वाले लोगों से होता है, विशेष रूप से उन लोगों से जो भयानक दिखने वाले, घाघ और बेहद शातिर और साथ ही धूर्त और चालाक भी होते हैं तब उन्हें अपने दिलों में डर महसूस होता है। यह बात बहुत अच्छी तरह से जानते हुए भी कि ये लोग दानव हैं, वे उनकी झूठी तारीफ करने, उन्हें मनाने और उन्हें जगह देने पर अड़े रहते हैं और उन्हें रत्ती भर भी नाराज करने की हिम्मत नहीं करते, उन्हें उजागर करने की तो बात ही छोड़ दो। जब वे दानवों और शैतानों को देखते हैं तब वे किसी भी सिद्धांत को कायम रखने की हिम्मत नहीं करते और न ही उनमें संतों जैसी कोई मर्यादा होती है। कुछ तो यहाँ तक कहते हैं, “हमें इन लोगों के साथ तालमेल बिठाना चाहिए और उनके साथ अच्छे रिश्ते बनाने चाहिए, नहीं तो कलीसिया का कार्य आगे नहीं बढ़ सकता।” स्पष्ट रूप से ये लोग परमेश्वर के घर में कोई अच्छा प्रयोजन पूरा नहीं करते हैं और स्पष्ट रूप से ये वही लोग हैं जिन्हें दानवों और मसीह-विरोधियों के रूप में निरूपित किया जाता है और जिन्हें निष्कासित या बहिष्कृत कर दिया जाना चाहिए, लेकिन फिर भी कुछ लोग उन्हें बर्दाश्त करते हैं। इन व्यक्तियों को लगता है कि वे उन लोगों को नहीं हरा सकते; वे अपने दिलों में भयभीत और आतंकित हैं, अपनी स्वयं की स्थिति के बारे में चिंतित हैं और उनके द्वारा अलग-थलग कर दिए जाने या डराए-धमकाए जाने के बारे में चिंतित हैं। उनमें उनसे निपटने की बुद्धिमानी नहीं है, उनमें उनसे लड़ने के लिए पर्याप्त आध्यात्मिक कद की कमी है और वे बार-बार सहमकर पीछे हट जाते हैं, बार-बार हार मान लेते हैं और समझौता कर लेते हैं। नतीजतन, तीन महीने और फिर छह महीने बीत जाते हैं और अंत में कलीसिया का कार्य ठप हो जाता है और कलीसियाई जीवन अस्त-व्यस्त। वे इन बुरे लोगों और दानवों को विघ्न उत्पन्न करते हुए स्पष्ट रूप से देखते हैं, वे इन स्थानीय गुंडों को कलीसिया में बेलगाम उधम मचाते देखते हैं, लेकिन फिर भी वे अपनी सुरक्षा, रुतबे, प्रतिष्ठा और हितों पर आँच आने के डर से उन्हें उजागर करने या उनसे निपटने की हिम्मत नहीं करते हैं। तुम्हारा रुतबा, तुम्हारी प्रतिष्ठा और व्यक्तिगत सुरक्षा इतनी महत्वपूर्ण कैसे हो सकती है? क्या परमेश्वर के घर के कार्य की कोई भी मद तुम्हारे उस तुच्छ जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है? बुरे से बुरे परिदृश्य में, अगर तुम परमेश्वर के प्रति वफादारी के कारण कुछ जोखिम उठा भी लेते हो तो क्या परमेश्वर तुम्हारी रक्षा नहीं करेगा? अगर तुम परमेश्वर के घर के हितों का बचाव करने के लिए बुद्धिमानी का उपयोग करते हो और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करते हो तो क्या परमेश्वर तुम्हें शैतानों के हवाले कर देगा ताकि वे जब चाहें तब तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार करें और तुम्हें कष्टदायक ढंग से नुकसान पहुँचाएँ? (नहीं।) परमेश्वर ऐसे लोगों को बहुत ही संजोकर रखता है, उसके लिए उन्हें संजोकर रखना कभी पर्याप्त नहीं होता है; तो फिर वह तुम्हें शैतानों के हवाले कैसे कर सकता है? तुम्हारी आस्था बहुत ही छोटी है। तुम ठीक उस समय के पतरस की तरह हो—प्रभु यीशु ने उसे समुंदर से पुकारा, “आओ,” जिसका अर्थ था कि पतरस समुंदर पर ऐसे चलने लगे जैसे वह कोई समतल जमीन हो, लेकिन पतरस जितना ज्यादा चला, वह उतना ही ज्यादा डरता गया और उसने परमेश्वर में आस्था खो दी। अगर परमेश्वर तुम्हें आने के लिए कहता है तो इसका मतलब है कि उसने तुमसे एक वादा किया है और वह निश्चित रूप से तुम्हारी रक्षा कर सकता है; वह तुम्हें खतरे का सामना नहीं करने देगा। अगर तुम्हारा जीवन खतरे में हो तो भी तुम्हें इसे कैसे सँभालना चाहिए? क्या तुम्हें बस खुशी से अपना जीवन परमेश्वर को नहीं सौंप देना चाहिए? इसमें क्या बड़ी बात है? क्या दानव वास्तव में इतने भयानक हैं? बड़ा लाल अजगर विश्वासियों का दमन करता है और उन्हें गिरफ्तार करता है और फिर भी तुम अपनी आस्था में डटे रह पाते हो; ऐसा कठोर परिवेश तुम्हें भयभीत नहीं करता है। लेकिन जब कलीसिया में कुछ छोटे-मोटे दानव दिखाई देते हैं, तब तुम इतना डर जाते हो कि सहमकर तुरंत वापस अपनी खोल में सिमट जाते हो और बुराई करने में उनका अनुसरण करने के लिए विवश महसूस करते हो। क्या यह तुम्हारी गवाही खोना नहीं है? (हाँ।) यह कहा जा सकता है कि कुछ कलीसियाओं और निश्चित कार्य परिवेशों में दानवों का अपनी मर्जी चलाना, कलीसिया के कार्य को अराजकता में झोंक देना और उसे ठीक जैसे वे चाहते थे वैसे बर्बाद कर देना जिससे भाई-बहनों को अपने कर्तव्य करने के लिए उपयुक्त परिवेश न मिले, यह कुछ लोगों द्वारा इन दानवों की असलियत देख लेने के बावजूद उनसे लड़ने के लिए नहीं उठ खड़े होने, बल्कि अपनी रक्षा करने के लिए इन दानवों और शैतानों से समझौता कर लेने से संबंधित है। यह कहा जा सकता है कि ये लोग जानबूझकर दानवों को बुराई करने और कलीसिया के कार्य में बाधा डालने की अनुमति देते हैं। अगर तुम कलीसिया के कार्य में बाधा डालने वाले दानवों की असलियत देख लेते हो, लेकिन फिर भी उनसे नहीं लड़ते हो या उन्हें उजागर नहीं करते हो तो क्या यह दानवों को बुराई करने की अनुमति देना नहीं है? अगर दानवों द्वारा बुराई करने का पता लगने पर तुम तुरंत उन्हें उजागर कर देते हो, उन्हें सँभालते हो और उन्हें रोकते हो तो कुछ हद तक नुकसानों में कमी लाई जा सकती है और अराजकता कम की जा सकती है। क्या यह परमेश्वर के घर के कार्य और भाई-बहनों के जीवन प्रवेश दोनों के लिए फायदेमंद नहीं है? तो तुम ऐसा क्यों नहीं करते? अगर तुम ऐसा नहीं करते हो तो इसका मतलब है कि तुममें परमेश्वर के प्रति कोई निष्ठा नहीं है। भले ही तुम किसी भी स्तर के अगुआ या कार्यकर्ता हो या कोई साधारण अनुयायी हो, जब तक तुम बुराई करने वाले और कलीसिया के कार्य में बाधा डालने वाले दानवों की असलियत देख लेने पर भी परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने के लिए उन्हें उजागर नहीं करते हो तब तक तुम अपनी गवाही में दृढ़ता से डटे हुए नहीं हो, तुम एक भ्रमित व्यक्ति हो और तुम जीने के लायक नहीं हो! तुमने एक मनुष्य होने की जिम्मेदारी पूरी नहीं की है, इसलिए तुम उस साँस को लेने के हकदार नहीं हो जो परमेश्वर ने तुम्हें दी है। तुम समझ रहे हो? (हम समझ रहे हैं।) इस मामले में लोगों को क्या करना चाहिए? तुम चाहे किसी भी तरह के दानव का सामना करो—चाहे वह पथभ्रष्ट हो, बुरा हो, कपटी हो, निष्ठुर हो या शातिर हो—और चाहे उसका उद्देश्य कुछ भी हो, यदि तुम उसे कलीसिया के कार्य में बाधा डालते देखते हो और तुम उसका भेद पहचान लेते हो तो तुम्हें उसे उजागर करने और रोकने के लिए उठ खड़े होना चाहिए। यहीं पर तुम्हारी जिम्मेदारी निहित है। कुछ लोग कहते हैं, “मुझे नहीं पता कि उन्हें रोकने के लिए क्या कहना है।” तो फिर परमेश्वर से प्रार्थना करो और बुद्धिमानी भरी विधियों का उपयोग करते हुए उनसे पेश आओ। अभी के लिए उसे मत उकसाओ; उसे सीधे उजागर करके मत उकसाओ। बल्कि उसे उसकी योजनाओं और उद्देश्यों में सफल होने से रोकने के लिए हर तरीका आजमाओ। सबसे पहले कलीसिया के कार्य का जितना हो सके उतना बचाव करो और सुनिश्चित करो कि परमेश्वर के घर के हित सुरक्षित रहें। फिर उस दानव से निपटने के सबसे उपयुक्त तरीके के बारे में सत्य समझने वालों या अगुआओं और कार्यकर्ताओं से परामर्श करने का अवसर ढूँढ़ो। यह कार्य बुद्धिमानी से किया जाना चाहिए। एक तरफ तुम्हें शैतान से लड़ना होगा, शैतानों और दानवों के बुरे कर्मों को रोकना होगा, भेद पहचानने की क्षमता प्राप्त करने में भाई-बहनों की मदद करनी होगी, और भाई-बहनों की और साथ ही परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा करनी होगी। दूसरी तरफ जितना हो सके, तुम्हें अपनी भी रक्षा करनी होगी। अगर तुम्हारे लिए खतरे या विपत्ति का सामना करना सच में जरूरी हो जाए तो तुम्हें अपने बचाव के रास्ते या सुरक्षा के बारे में सोचे बिना, इसे अपना परम कर्तव्य मानकर करना चाहिए। यह कलीसिया के कार्य की जरूरतों के कारण है और यहीं पर तुम्हारी जिम्मेदारी निहित है। तुम्हें यह करना होगा और तुम्हें यह करना चाहिए; नहीं तो तुम उस जीवन के अयोग्य होगे जो परमेश्वर ने तुम्हें दिया है और उस भरण-पोषण के अयोग्य होगे जिसकी उसने तुम्हें इतने वर्षों से आपूर्ति की है। क्या ऐसा नहीं है? (ऐसा ही है।) दानवों से पेश आने के मामले में सभी को यही रुख अपनाना चाहिए। तुम परमेश्वर के हाथों बनाए गए सृजित प्राणी हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम मनुष्यों की श्रेणी से संबंधित हो या जीवित प्राणियों की किसी और श्रेणी से, जब तक तुम्हारी मौजूदा पहचान मानव है, एक सृजित मनुष्य है, तब तक तुम्हें सृजित मनुष्य की जिम्मेदारियाँ उठानी चाहिए, तुम उनसे बच नहीं सकते। मान लो कि तुम जानते हो कि कोई व्यक्ति चढ़ावे चुरा रहा है, लेकिन तुम न तो इसकी परवाह करते हो और न ही इसके बारे में पूछते हो, कहते हो, “मैं डरता हूँ कि कहीं वह नाराज न हो जाए। अगर मैं उसे उजागर कर देता हूँ और उसे नाराज कर देता हूँ तो वह न सिर्फ मेरे पीठ पीछे मेरे लिए चीजें मुश्किल बना देगा, बल्कि वह इसे कभी जाने भी नहीं देगा। वह एक दुष्ट व्यक्ति है! मैं उसे उजागर करने या उसकी रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं कर सकता!” ऐसे में तुम्हारा काम तमाम हो चुका है, तुम एक नाकारा कायर हो और तुम अपनी जिम्मेदारी पूरी करने में विफल हो गए हो। तो अगर तुम अपनी जिम्मेदारी पूरी करना चाहो तो तुम्हें क्या करना चाहिए? अपने अगुआ को एक पर्ची लिखने का मौका ढूँढ़ो, उस पर अपने नाम से हस्ताक्षर मत करना, और तथ्यों को स्पष्ट रूप से बताओ ताकि अगुआ जान जाए और वह इसे तुरंत सँभाल सके और इसे रोक सके, इस प्रकार चढ़ावों को नुकसानों से बचा सके। अगुआ को यह जानने की जरूरत नहीं है कि इसकी रिपोर्ट किसने की; यह पर्याप्त है कि परमेश्वर जानता है। तो चढ़ावों की रक्षा करने के मामले में किस सिद्धांत को कायम रखा जाना चाहिए? सही मानसिकता क्या है? यह चढ़ावों की नुकसानों से रक्षा करना और बुरे लोगों को कामयाब नहीं होने देना है। यह तुम्हारी जिम्मेदारी है। परमेश्वर का घर सभी से उसके हितों की रक्षा करने, भाई-बहनों की रक्षा करने, अपने कार्य का बचाव करने और परमेश्वर के चढ़ावों की रक्षा करने के लिए जोखिम उठाने के लिए नहीं कह रहा है; वह इसकी खातिर तुम सभी से दूसरे लोगों को नाराज करने या खुद को मुश्किल परिस्थितियों में डालने के लिए नहीं कह रहा है। परमेश्वर के घर का यह मतलब नहीं है। अगर तुम बुरे लोगों से डरते हो या लोगों को नाराज करने से डरते हो तो तुम गुमनाम रूप से समस्याओं की रिपोर्ट कर सकते हो; तुम गुमनाम रूप से बुरे लोगों और दानवों को उजागर भी कर सकते हो। इस तरीके से, हालाँकि तुमने अपने हस्ताक्षर नहीं किए हैं, फिर भी तुमने अपनी जिम्मेदारी और दायित्व पूरे कर दिए हैं और तुम अपनी जिम्मेदारी से नहीं भागे हो। अगर तुम ऐसा कर सकते हो तो इसका मतलब है कि तुम अपनी जिम्मेदारी में लापरवाह नहीं हुए हो। ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम्हारे पास यह दिल है, जो महसूस करता है कि यहीं पर तुम्हारी जिम्मेदारी निहित है और तुम्हें यह जिम्मेदारी पूरी करनी चाहिए, परमेश्वर के घर के कार्य का बचाव करना चाहिए और उसके हितों की रक्षा करनी चाहिए। यह अच्छा कर्म है और परमेश्वर इसे याद रखेगा। तुम लोगों के लिए स्पष्ट सत्य यहाँ दिया गया है : दानवों से लड़ने के लिए कोई निर्धारित तरीका नहीं है; दानवों को हराने में समर्थ होना, परमेश्वर के घर के हितों का बचाव करना, कलीसियाई कार्य की विभिन्न मदों की रक्षा करना, कलीसियाई जीवन की रक्षा करना और भाई-बहनों के जीवन प्रवेश का बचाव करना—यही सर्वोच्च सिद्धांत है। तुम समझ रहे हो? (हम समझ रहे हैं।) दानवों से लड़ने के लिए कोई निर्धारित तरीका नहीं है; तुम उनकी काट-छाँट करने की विधि का उपयोग कर सकते हो, तुम उन्हें उजागर करने की विधि का उपयोग कर सकते हो और यकीनन तुम उन्हें बरखास्त करने और उनके कर्तव्यों को फिर से सौंपने की विधि का भी उपयोग कर सकते हो, और इसके अलावा तुम उन्हें रोके रखने के लिए उनसे चीजों पर सावधानी से चर्चा करने और उन्हें आश्वासन देने की विधि का भी उपयोग कर सकते हो—दानवों को रोकने के लिए विभिन्न बुद्धिमानी भरी विधियों का उपयोग करो और साथ ही कलीसियाई कार्य की विभिन्न मदों का बचाव भी करो। यह बुद्धिमान होना है। तुम अपने दिल में जानते हो कि ये लोग दानव हैं और तुम उनसे चाहे कैसे भी पेश आओ, यह गलत नहीं है क्योंकि वे सच्चे भाई-बहन नहीं हैं, वे सच्चे मनुष्य नहीं हैं और वे परमेश्वर द्वारा नहीं चुने गए हैं। वे परमेश्वर के घर में शैतान के सेवक के रूप में कलीसिया में बाधा डालने के लिए आए हैं। दानवों के प्रति तुम्हारा ऐसा रवैया होना चाहिए : “अगर तुम यहाँ विघ्न उत्पन्न करने आए हो तो मैं तुम्हारे साथ नरमी नहीं बरतूँगा। अगर तुम यहाँ तोड़-फोड़ करने आए हो तो इसकी बिल्कुल भी अनुमति नहीं है! अगर तुम विघ्न उत्पन्न नहीं करते हो या तोड़-फोड़ नहीं करते हो और चुपचाप कलीसिया में अपनी सीमा में रहते हो तो मैं तुम्हें नजरअंदाज कर दूँगा। लेकिन जैसे ही तुमने कोई हरकत की या कुछ कहा, बुराई करने का इरादा किया तो मैं तुम्हारे साथ नरमी नहीं बरतूँगा! तुम चाहे जो भी बुरी चीजें करना चाहो, तुम चाहे जो भी भ्रांतियाँ फैलाना चाहो, पहले तुम्हें मुझे हराना होगा—देखना कि मैं तुम्हें छोड़ता हूँ या नहीं। नहीं तो कलीसिया के कार्य में बाधा डालने के बारे में सोचो भी मत!” दानवों से पेश आने में लोगों को यही रवैया और सिद्धांत अपनाना चाहिए और यही वह गवाही भी है जो लोगों को देनी चाहिए।

परमेश्वर सत्य क्यों व्यक्त करता है और लोगों को सत्य की आपूर्ति क्यों करता है? वह इसलिए ताकि परमेश्वर में विश्वासी लोग सत्य को अपने जीवन के रूप में प्राप्त कर सकें और ताकि लोग दानवों का भेद पहचान सकें, दानवों से छुटकारा पा सकें और दुष्ट दानव यानी शैतान के खिलाफ पूरी तरह से विद्रोह कर सकें। लोगों ने बहुत सारे सत्य सुने हैं और सत्य का बहुत सारा प्रावधान प्राप्त किया है, फिर भी अंततः जब उनका सामना बुराई करते हुए और विघ्न उत्पन्न करते हुए दानवों से होता है तब वे उनका भेद पहचानने में विफल हो जाते हैं। कुछ लोगों में दानवों का भेद पहचानने की कुछ क्षमता होती है, लेकिन वे उन्हें उजागर करने की हिम्मत नहीं करते और उनसे निपटने की हिम्मत तो और भी नहीं करते—इस किस्म के लोग नाकारा होते हैं। तुम्हारे पास कोई गवाही नहीं है और तुम परमेश्वर के पक्ष में नहीं खड़े हुए हो—तुमने परमेश्वर का दिल तोड़ दिया है। लोगों द्वारा सत्य का अनुसरण करने और उसे समझने का उद्देश्य यह है कि वे दानवों से दूर रहें, दानवों को अस्वीकार करें और परमेश्वर के प्रति सच्चा समर्पण प्राप्त करने, परमेश्वर के पक्ष में खड़े होने और परमेश्वर का आदेश पूरा करने में समर्थ हों। दानवों की बात करें तो, जब भी एक दानव का पता लगता है तब उस एक को बाहर निकाल दो और जब भी दो दानवों का पता लगता है तब उस जोड़े को बाहर निकाल दो ताकि कलीसिया शुद्ध बनी रहे। इस तरीके से शैतान और दानव पूरी तरह से शर्मसार हो जाएँगे और फिर कलीसिया के कार्य में और बाधा नहीं डाल पाएँगे। वे सांसारिक दुनिया में कैसे विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न करते हैं, यह हमारे सोचने का विषय नहीं है; वे कौन-से गैर-कानूनी कार्य करते हैं, कौन-सी बुरी चीजें करते हैं और वे सांसारिक दुनिया में किससे लड़ते हैं, इन सबका हमसे कोई लेना-देना नहीं है। हम न तो इसमें दखल देते हैं और न ही इसके बारे में पूछताछ करते हैं और हम इसकी परवाह भी नहीं करते। लेकिन बस एक चीज है : परमेश्वर के घर में उनका इस तरह से विघ्न उत्पन्न करना स्वीकार्य नहीं है और उन्हें सँभाला जाना चाहिए, रोका जाना चाहिए और बाहर निकाल दिया जाना चाहिए। सबसे पहले अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस कार्य को करने में अगुआई करनी चाहिए; उन्हें इसे अपनी अनिवार्य जिम्मेदारी समझना चाहिए। दूसरा, सभी पर्यवेक्षकों, टीम अगुआओं और साधारण भाई-बहनों में यह आध्यात्मिक कद होना चाहिए और यह गवाही भी होनी चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “क्या परमेश्वर का घर किसी तरह का आंदोलन शुरू कर रहा है? क्या यह लोगों को सताना है?” यह लोगों को सताना नहीं है; यह दानवों को सताना है। दानवों को ही सताया जाना चाहिए; हम लोगों को नहीं सताते। भाई-बहनों में भ्रष्टता के खुलासे होते हैं, लेकिन वे सामान्य लोग हैं, उनमें जमीर और विवेक है और साथ ही उनके क्रियाकलापों और स्व-आचरण में न्यूनतम मानक भी हैं। अगर सत्य और जीवन प्रवेश का उनका अनुसरण कुछ हद तक खराब भी हो और वे आध्यात्मिक कद में छोटे भी हों और उनमें ज्यादा सत्य वास्तविकता न भी हो तो भी हमें उनके प्रति सहनशील और धैर्यवान होना चाहिए, उनसे सही ढंग से पेश आना चाहिए और उन्हें सिद्धांतों के अनुसार सँभालना चाहिए। लेकिन दानवों से कैसे पेश आना है इसके लिए सिद्धांत अलग है। अगर वे सेवा करने को तैयार हैं तो हम सेवा करने के लिए उनका उपयोग कर सकते हैं। अगर वे सेवा करने को तैयार नहीं हैं तो हमें उन्हें बाहर निकालकर उन्हें सँभालना चाहिए; हमें उनके साथ बिल्कुल भी नरमी नहीं बरतनी चाहिए! दानवों से पेश आने के लिए यही सिद्धांत है। जब भाई-बहनों में कमजोरियाँ होती हैं या भ्रष्ट स्वभाव के प्रकाशन होते हैं तब उन्हें क्षमा किया जा सकता है और दोष-मुक्त किया जा सकता है और उनसे सहनशीलता और समझदारी से पेश आया जा सकता है। लेकिन दानव भाई-बहन नहीं हैं। अगर वे सिर्फ कुछ नकारात्मक या गैर-जिम्मेदाराना चीजें कहते हैं, लेकिन वे लोगों को गुमराह करने के लिए पाखंड या भ्रांतियाँ नहीं फैला रहे हैं और उन्होंने कोई गड़बड़ी या विघ्न-बाधा उत्पन्न नहीं की है तो फिर उन्हें बख्शा जा सकता है और तुम उन्हें जानबूझकर अनदेखा कर सकते हो। अगर तुम देखते हो कि वे कुछ समस्याएँ उत्पन्न करने और बुराई करने वाले हैं और यह एक खास पैमाने तक पहुँच रहा है तो उन्हें उजागर कर देना चाहिए और प्रतिबंधित कर देना चाहिए। अगर उन्हें प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता तो उन्हें सीधे बाहर निकाल दो। दानवों को लगता है कि कलीसिया जैसे-तैसे आगे बढ़ने की एक आसान जगह है; उन्हें लगता है कि कलीसिया में कोई भी तूफान उठा सकता है, ठीक वैसे जैसे समाज में होता है। उनका इस तरीके से सोचना गलत है। कलीसिया परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए सत्य का अनुसरण करने और उद्धार प्राप्त करने की जगह है, दानवों के लिए तूफान उठाने की जगह नहीं है और न ही दानवों के लिए अपने खुद के उद्यम चलाने या अपने सपने साकार करने की जगह है और न ही यह दानवों के लिए अपनी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ पूरी करने की जगह है। जब दानव अपना असली रूप दिखा देते हैं और अपने खुद के उद्यमों को अंजाम देने, अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित करने और कलीसिया के कार्य में बाधा डालने और तोड़-फोड़ करने ही वाले होते हैं—जैसे ही उनके दो-मुँहे खुर प्रकट हो जाते हैं—तो तुम्हें ऐसे समय में क्या करना चाहिए? सिद्धांतों के अनुसार कार्य करो; भाई-बहनों को इन दानवों के खिलाफ उठ खड़ा होना चाहिए और लड़ना चाहिए और उन्हें बिल्कुल भी दया नहीं दिखानी चाहिए या नरमी नहीं बरतनी चाहिए। अगर तुम दानवों के साथ हमेशा नरमी बरतते हो तो तुम अपने प्रति बेरहम हो रहे हो। वे कलीसिया में लोगों को हमेशा गुमराह और परेशान करते रहते हैं और कलीसिया के कार्य में तोड़-फोड़ करते रहते हैं। ऐसे हालातों में तुमने विश्वास के बहुत-से वर्षों में परमेश्वर के प्रति जो आस्था और ज्ञान प्राप्त किया है, वह इन दानवों के गुमराह करने और परेशान करने के कारण कुछ ही दिनों में समाप्त हो जाएगा। इसलिए, अगर तुम सत्य प्राप्त करना चाहते हो तो तुम्हें दानवों से लड़ने और उनका विरोध करने के लिए अग्रसक्रिय रूप से उठ खड़ा होना पड़ेगा। जब तुम उनके दो-मुँहे खुरों को पूरी तरह से उजागर हुए और उनके वीभत्स चेहरे को पूरी तरह से बेनकाब हुआ देखते हो तब तुम्हें उन्हें उजागर करना चाहिए, उनके सार को निरूपित करना चाहिए और फिर उन्हें दूर कर देना चाहिए। क्या परमेश्वर के चुने हुए लोगों को यही चीज नहीं करनी चाहिए और उन्हें यही जिम्मेदारी पूरी नहीं करनी चाहिए? (हाँ।) ठीक यही वह गवाही है जो विजेताओं के पास होनी चाहिए। सभी को इसे समझना चाहिए और इसे कभी नहीं भूलना चाहिए। शैतानों और दानवों से नहीं डरने का मतलब औपचारिकता के तौर पर उनसे संबंध तोड़ देना नहीं है, बल्कि इसका मतलब है सही-गलत के बड़े मुद्दों के सामने, सिद्धांत के मामलों के सामने, अपना मार्ग चुनने के मामले के सामने और परमेश्वर के घर के हितों से जुड़े मामलों में दानवों के खिलाफ लड़ने के लिए उठ खड़े होना, उनके बुरे कर्मों को रोकना, परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करना और भाई-बहनों के अपने कर्तव्य करने के लिए सामान्य परिवेश का बचाव करना। परमेश्वर के चुने हुए हर व्यक्ति का यही दायित्व है।

क्या हमने दानव के सार वाले लोगों की इन दो अभिव्यक्तियों—आदतन झूठ बोलना और पथभ्रष्टता—पर अपनी संगति लगभग पूरी नहीं कर ली है? इस प्रकार के व्यक्ति के प्रति लोगों को जो नजरिया और रुख रखने चाहिए वे स्पष्ट हैं और लोगों को जो जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए वे भी स्पष्ट हैं। तो आगे तुम्हारे सामने कौन-सा मुद्दा है? वह यह है कि हमने जिन अभिव्यक्तियों और प्रकाशनों पर संगति की है, उन्हें कैसे लिया जाए और कैसे उन्हें इन लोगों के साथ जोड़ा जाए और फिर उनका भेद पहचाना जाए और कैसे इस प्रकार के व्यक्ति के सार की असलियत देखी जाए। जैसे ही तुम्हारे पास भेद पहचानने की क्षमता होगी, तुम्हारे दिल में यह स्पष्ट हो जाएगा कि विभिन्न प्रकार के लोगों के सही मायने में क्या गुण होते हैं, लोगों से पेश आने के तुम्हारे सिद्धांत ज्यादा सटीक होंगे और तुम मूर्खतापूर्ण या बेवकूफी भरी चीजें नहीं करोगे या तुम उन्हें उतनी ज्यादा नहीं करोगे। आज हमारी संगति के लिए बस इतना ही। अलविदा।

27 जनवरी 2024

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परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 6) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 7) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 8) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 9) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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