सत्य का अनुसरण कैसे करें (5)

क्या हाल ही में कुछ लोगों ने कुछ नकारात्मक अफवाहें सुनी हैं? (हाँ।) जब तुम लोगों ने ये अफवाहें सुनीं तब तुम्हारी क्या प्रतिक्रिया थी? क्या तुम डर गए थे? क्या तुम जिज्ञासु थे? क्या तुम लोग जानना चाहते हो कि ये अफवाहें आखिर किस बारे में हैं? (हम नहीं जानना चाहते, क्योंकि हम पहले से ही जानते हैं कि बड़ा लाल अजगर अक्सर हवा-हवाई अफवाहें गढ़ता है। चाहे वह कुछ भी कहे, वह झूठा ही होता है। इसलिए, हमें इन अफवाहों के विवरण में कोई दिलचस्पी नहीं है और हम उसके शैतानी शब्दों को समझने का प्रयास नहीं करना चाहते।) बड़ा लाल अजगर लोगों को गुमराह करने और भ्रष्ट करने के लिए सभी तरह की अफवाहें गढ़ता है और बहुत-से लोग ये अफवाहें सुनने के बाद गुमराह हो जाते हैं। कुछ लोग डर जाते हैं और सच्चे मार्ग को स्वीकारने की हिम्मत नहीं करते हैं; जिन कुछ लोगों ने इसे स्वीकार लिया है, वे भी संदेहपूर्ण हो जाते हैं और परमेश्वर में अब और विश्वास नहीं रखना चाहते हैं। बड़े लाल अजगर की अफवाहें सुनने से पहले ऐसा लगता था कि ये लोग बिना किसी संदेह के परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और परमेश्वर का अनुसरण करने और अपना कर्तव्य करने के इच्छुक हैं। लेकिन अफवाहें सुनने के बाद उनमें तुरंत संदेह जन्म ले लेते हैं और उनका परमेश्वर का अनुसरण करने और अपना कर्तव्य करने का अब और दिल नहीं करता है। विशेष रूप से, बड़े लाल अजगर द्वारा गिरफ्तार किए गए लोगों में से कुछ लोग उसकी क्रूर यातनाओं के दबाव में आकर हार मान लेते हैं और परमेश्वर का नाम नकार देते हैं और यहाँ तक कि उनमें से कुछ लोगों को “तीन कथन” पर हस्ताक्षर करने और मौखिक रूप से परमेश्वर का अपमान करने के लिए भी मजबूर किया जाता है। ऐसे लोग बहुत सारे हैं। तुम सभी ने ढेरों अफवाहें और नकारात्मक प्रचार सुने हैं और यह भी देखा है कि जब बड़ा लाल अजगर परमेश्वर में विश्वासी लोगों को गिरफ्तार कर लेता है, उसके बाद वह उनकी बुद्धि भ्रष्ट करता है—सचमुच बहुत सारे लोग गुमराह हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त, वह अपनी सेवा करवाने के लिए परमेश्वर के साथ विश्वासघात करने वालों का उपयोग भी करता है, उनसे कलीसिया की निगरानी करवाता है और परमेश्वर में विश्वासियों का पीछा और खुफिया निगरानी करवाता है। धार्मिक विश्वास को जड़ से उखाड़ने और परमेश्वर की कलीसिया को हटाने के लिए बड़ा लाल अजगर परमेश्वर के चुने हुए लोगों के दमन और गिरफ्तारी को एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्य, एक राजनीतिक मिशन मानता है और इसे बड़ी संपूर्णता और मेहनत से अंजाम देता है। इससे परमेश्वर के कई विश्वासी डर जाते हैं, इसलिए वे परमेश्वर में विश्वास रखने की हिम्मत नहीं करते हैं और अपना कर्तव्य करने की हिम्मत नहीं करते हैं। विशेष रूप से, बड़े लाल अजगर द्वारा गढ़ी गई अफवाहें सुनने के बाद बहुत से लोग गुमराह हो जाते हैं। जहाँ तक इन अफवाहों का प्रश्न है, परमेश्वर के घर ने बहुत पहले ही इनका सारांश प्रस्तुत कर दिया है और इनके भेद की पहचान करवा दी है, इसलिए यहाँ उन पर चर्चा करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर तुम सच में गिरफ्तार किए जाते हो और बड़ा लाल अजगर इन अफवाहों का उपयोग तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट करने का प्रयास करने के लिए करता है, तुम्हें एक रुख अपनाने के लिए मजबूर करता है और तुम्हें “तीन कथन” पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर करता है तो तुम्हें क्या करना चाहिए? अब तुम लोगों को यह पता है कि बड़े लाल अजगर द्वारा गढ़ी गई सभी अफवाहें झूठी, भ्रामक और छलपूर्ण होती हैं। हालाँकि तुम लोगों का रवैया उन्हें नहीं सुनने, उनकी तरफ नहीं देखने और उन पर विश्वास नहीं करने का है, फिर भी अगर ये अफवाहें तुम्हारे सामने रख दी जाएँ जिससे वे तुम्हें सुनाई दें, दिखाई दें और यहाँ तक कि तुम यह भी सोचो कि वे तथ्यात्मक हैं तो क्या तुम डोल जाओगे? तुम अपने दिल में क्या सोचोगे? क्या तुम तथ्यों के बारे में सच्चाई जानना चाहोगे? क्या तुम उन्हें सत्यापित करना चाहोगे? जहाँ तक बड़े लाल अजगर द्वारा लोगों को गुमराह करने और भयभीत करने के लिए अफवाहें गढ़ने या लोगों की बुद्धि भ्रष्ट करने और वैचारिक कार्य करने के लिए अफवाहों और नास्तिकता का उपयोग करने का प्रश्न है, क्या हमें लोगों को प्रतिरक्षित करने के लिए सत्य की संगति करने की जरूरत है? क्या यह कार्य की जरूरी मद है? कुछ लोग कहते हैं, “बड़ा लाल अजगर इतने वर्षों से हमारे बारे में, विशेष रूप से मसीह के बारे में, पवित्र आत्मा द्वारा उपयोग किए जाने वाले आदमी के बारे में और कलीसिया और कलीसियाई कार्य के बारे में अफवाहें गढ़े जा रहा है। हमने कभी उनका स्पष्टीकरण नहीं दिया है, हम कभी अपना रवैया या दृष्टिकोण स्पष्ट करने के लिए आगे नहीं आए हैं, हमने कभी कोई बचाव नहीं किया है—क्या यह उचित है?” कुछ लोग परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू करने से लेकर अब तक बड़े लाल अजगर और धार्मिक दुनिया की विभिन्न अफवाहों का कभी स्पष्ट रूप से भेद नहीं पहचान पाए हैं। उनके दिलों में इन चीजों को लेकर हमेशा एक प्रश्नचिह्न मौजूद रहा है। इस प्रश्नचिह्न का मतलब न तो पूर्ण अविश्वास है और न ही पूर्ण विश्वास; बल्कि इसका मतलब यह है कि वे इन मामलों को देखने के लिए बीच का रुख अपनाते हैं, यह सोचते हैं कि शायद ये सब चीजें बड़े लाल अजगर द्वारा गढ़ी गई अफवाहें हैं या फिर शायद ये तथ्य हैं। क्या यह “शायद” सत्य की तलाश करने का परिप्रेक्ष्य दर्शाता है? (नहीं।) यह ऐसा विश्वास करने का परिप्रेक्ष्य है कि अफवाहों को सत्यापित करने और उनकी पुष्टि करने की जरूरत है या यह प्रतीक्षा करने और देखने का परिप्रेक्ष्य है, जानकार लोगों द्वारा कुछ वास्तविक हालातों का खुलासा किए जाने की प्रतीक्षा करने का परिप्रेक्ष्य है। मुझे बताओ, तुम्हें क्या लगता है कि लोगों द्वारा इन दोनों में से कोई भी परिप्रेक्ष्य रखने से क्या नतीजे निकलेंगे? क्या ऐसे लोग खतरे में हैं? इन दोनों में से कौन-सा परिप्रेक्ष्य लोगों को मजबूती से डटे रहने में सक्षम बना सकता है? (इन दोनों में से कोई भी परिप्रेक्ष्य लोगों को मजबूती से डटे रहने में सक्षम नहीं बना सकता है। अगर किसी में यह “शायद” वाला विचार है तो यह दर्शाता है कि वह अभी भी सच्चे मार्ग के बारे में निश्चित नहीं है और उसमें अभी भी संशयवाद के तत्व मौजूद हैं। ऐसे में अफवाहें उनके लिए एक बड़ा प्रलोभन बन जाती हैं। अगर लोग सच्चे मार्ग के बारे में निश्चित नहीं हो सकते हैं, सत्य में विश्वास नहीं रख सकते हैं और बड़े लाल अजगर के सार की असलियत नहीं देख सकते हैं तो वे वास्तव में बहुत बड़े खतरे में हैं।) आज तक ये लोग सच्चे मार्ग के बारे में निश्चित नहीं हो पाए हैं। उनका सार क्या है? (सार में वे अविश्वासी हैं।) वे अविश्वासी हैं। क्या ऐसे बहुत सारे लोग हैं जो इन दोनों में से कोई परिप्रेक्ष्य पकड़कर रखते हैं? निश्चित रूप से ऐसे बहुत सारे लोग हैं। जब ये लोग अफवाहें सुनते हैं तब उनके दिलों में परमेश्वर के बारे में संदेह पैदा हो जाते हैं और वे अफवाहों की तह तक पहुँचना चाहते हैं, यह पता लगाना चाहते हैं कि वे सच्ची हैं या झूठी। हालाँकि, क्योंकि वे नहीं जानते हैं कि इस मामले को हल करने के लिए सत्य की तलाश कैसे करनी है, अंत में वे इसे अनसुलझा ही रहने देते हैं। दरअसल यह समस्या अभी भी उनके दिलों में बसी होती है और यह हल नहीं होती है। जब तुम लोग ये अफवाहें सुनते हो तब क्या तुम सत्य की तलाश करते हो? क्या तुम अफवाहों का गहन-विश्लेषण करने और उनका भेद पहचानने के लिए सत्य की तलाश करते हो या तुम इन अफवाहों को एक-एक करके सत्यापित करते हो ताकि यह अंतर कर सको कि वे सही हैं या गलत और यह देख सको कि वे वास्तव में सच्ची हैं या झूठी? अफवाहें सुनने के बाद तुम लोग अपने दिल में यही सोचते हो कि वे झूठी हैं, यह पूरी तरह से बड़ा लाल अजगर है जो अफवाहें गढ़ रहा है और कीचड़ उछालने वाला अभियान चला रहा है, लेकिन तुम सत्य और तथ्यों के आधार पर उनका खंडन नहीं करते हो और वास्तव में तुम्हारे दिल में अभी भी कुछ संदेह होते हैं और तुम बस इन धर्म-सैद्धांतिक कथनों का उपयोग अपने संदेह हल करने के लिए करते हो। क्या इस तरह से सोचना तुम्हें डटे रहने में सक्षम कर सकता है? क्या यह सत्य की तलाश करना है? क्या यह दर्शाता है कि तुम सत्य समझते हो और सत्य प्राप्त कर चुके हो? क्या समस्या जड़ से हल की जा चुकी है? (नहीं।) तो क्या तुम लोग सत्य का उपयोग इस समस्या को हल करने के लिए करना चाहते हो ताकि तुम लोग इन अफवाहों का भेद पहचान सको, गुमराह न हो सको, तुम्हारे दिल में किसी भी तरह का कोई प्रश्न न रहे और मेरे प्रति तुम्हारे संदेह, दुविधाएँ और सतर्कता पूरी तरह से समाप्त हो जाए? कुछ लोग सोचते हैं, “जब से हमने परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू किया है तब से लेकर अब तक हम तुम्हारे धर्मोपदेश सुने जा रहे हैं और तुम्हारी सिंचाई और चरवाही स्वीकार किए जा रहे हैं और हमने कुछ लाभ और प्रगति प्राप्त की है। लेकिन हम वास्तव में तुम्हारे साथ नहीं रहे हैं या हमारा तुमसे एक व्यक्ति के रूप में वास्तविक संपर्क नहीं रहा है। इसलिए हम इस बारे में पूरी तरह से अँधेरे में हैं और अनजान हैं कि तुम किस प्रकार के व्यक्ति हो, तुम्हारा व्यक्तित्व और चरित्र किस तरह का है और तुम किस प्रकार का जीवन जीते हो।” यानी जब इस देह की मानवता की विभिन्न अभिव्यक्तियों और प्रकाशनों और साथ ही मेरे जीवन और लोगों और मामलों से निपटने में मेरे रवैये और विशिष्ट अभिव्यक्तियों की बात आती है तब लोगों ने हमेशा इन चीजों पर प्रश्नचिह्न लगाए हैं और इनके प्रति शंकाएँ पाल रखी हैं। एक तरफ, लोगों द्वारा ये शंकाएँ पालना परमेश्वर के देहधारण के बारे में लोगों के 100% निश्चित नहीं होने से उत्पन्न होता है और दूसरी तरफ, यह धार्मिक दुनिया या बड़े लाल अजगर की अफवाहों द्वारा प्रभावित होने से उत्पन्न होता है क्योंकि सत्य के बारे में उनकी समझ बहुत ही ज्यादा उथली है। इस प्रकार, तुम लोग मेरे बारे में कई अटकलें लगाते हो। यकीनन इन अटकलों की विषयवस्तु निश्चित रूप से सकारात्मक या उचित नहीं है; इसमें निश्चित रूप से कुछ अंधकारमय और नकारात्मक तत्व हैं। ये अटकलें लगाना—क्या यह तुम लोगों के लिए अच्छी चीज है या बुरी? क्या यह बोझ है, बंधन है या प्रोत्साहन है? तुम लोगों को क्या लगता है? (अगर लोगों के दिलों में ये नकारात्मक अटकलें हों तो यह कोई अच्छी चीज नहीं बल्कि एक बोझ है। इससे लोग परमेश्वर के प्रति सतर्क हो जाएँगे; यह चीज परमेश्वर में उनके विश्वास में मदद करने के लिए कुछ नहीं करेगी।) इन नकारात्मक बातों का तुम लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता है? इनके क्या नतीजे होंगे? कुछ खास परिवेशों में क्या ये चीजें तुम लोगों के लिए खतरनाक हैं? (हाँ।) चूँकि ये चीजें बोझ हैं और तुम्हारे लिए कोई अच्छी चीज नहीं हैं, तो क्या तुम्हें इन्हें हल करने के लिए सत्य का उपयोग करना चाहिए? या तुम्हें इन्हें एक तरफ रख देना चाहिए, इन्हें लेकर परेशान नहीं होना चाहिए और इनके बारे में नहीं सोचना चाहिए, और तब तक प्रतीक्षा करनी चाहिए जब तक कि उनका समाधान करने के लिए वास्तव में कोई मुद्दा उत्पन्न न हो जाए, ताकि तब तुम उनका समाधान कर सको? तुम लोगों का क्या रवैया है? (जब मैंने अफवाहें सुनीं तब मैंने उन्हें एक तरफ रख दिया और उन्हें लेकर परेशान नहीं हुआ। लेकिन अभी-अभी परमेश्वर की संगति के जरिए मुझे एहसास हुआ है कि जब ये समस्याएँ उत्पन्न होती हैं तब उन्हें सत्य से हल किया जाना चाहिए। नहीं तो, अपने दिल में इस बोझ को छोड़ा नहीं जा सकता है और निश्चित परिस्थितियों में यह बुरे नतीजों का कारण बन सकता है, यहाँ तक कि परमेश्वर के बारे में संदेह करने और परमेश्वर को नकारने का भी कारण बन सकता है, जो कि बहुत खतरनाक है।) हालाँकि तुम सीधा बोल देते हो कि ये अफवाहें हैं, लेकिन अगर तुम कभी भी इन अफवाहों का भेद नहीं पहचानते हो या उनके प्रति सही रवैया नहीं रखते हो और हमेशा इन नकारात्मक बातों को अपने दिल में रखते हो तो तुम अक्सर इनसे बेबस होते रहोगे। ये अफवाहें तुम्हारे लिए एक चालू टाइम बम जैसी होंगी, जो किसी भी पल, किसी भी जगह फटने के लिए तैयार है। इसके नतीजे निस्संदेह कल्पना से परे होंगे और तुम्हारे चीथड़े उड़ जाएँगे। क्या “तीन कथन” पर हस्ताक्षर करने वाले लोग वही नहीं हैं जिन्होंने बम विस्फोट करके अपने चीथड़े उड़ा दिए? “तीन कथन” पर हस्ताक्षर करने के बाद भी बड़ा लाल अजगर जाने नहीं देता है। वह माँग करता है कि उन्हें मौखिक रूप से कुछ ऐसी बातें कहनी होंगी जो परमेश्वर का अपमान करती हैं और तभी मामला निपट चुका माना जा सकता है। हालाँकि वे अपने दिलों में अनिच्छुक होते हैं, लेकिन उन्हें लगता है कि उनके पास कोई विकल्प नहीं है और वे कैद से बचने के लिए शैतान के आगे हथियार डाल देते हैं। मौखिक रूप से परमेश्वर का अपमान करने के बाद उन्हें लगता है कि आशीष पाने की उनकी उम्मीद जा चुकी है, उनका काम तमाम हो गया है। उन्हें इस बारे में अब और सोचने की जरूरत नहीं होती है कि वे अफवाहें सच्ची हैं या झूठी और परमेश्वर में विश्वास रखने के इतने वर्षों से उन्होंने जो व्याकुलताएँ, चिंताएँ, दब्बूपन और आतंक पाल रखे थे, वे पूरी तरह से गायब हो जाते हैं। साथ ही, उद्धार की उनकी उम्मीद भी चकनाचूर हो जाती है। मुझे बताओ, अगर लोग देहधारी परमेश्वर या इस धारा के बारे में संदेह करते हों तो भी क्या उन्हें परमेश्वर का अपमान करना चाहिए? (नहीं।) जब बड़ा लाल अजगर तुम लोगों को परमेश्वर का अपमान करने के लिए कहता है तब तुम लोग उसकी आज्ञा क्यों मानते हो? यह चाहे कोई भी हो, भले ही वह सच्चे मार्ग को नकारता हो, इस धारा को नकारता हो, फिर भी उसे परमेश्वर का अपमान नहीं करना चाहिए। वे किस तरह के लोग होते हैं जो परमेश्वर का अपमान करते हैं? (जो लोग परमेश्वर का अपमान कर सकते हैं, वे वही लोग हैं जिनमें बुरी मानवता होती है और वे वो लोग भी हैं जिनमें सत्य के लिए विशेष नफरत होती है और जो शैतान के प्रभाव के प्रति समर्पण कर देते हैं।) मुझे बताओ, अगर लोग सही मायने में अपने दिलों में विश्वास करते हैं कि परमेश्वर का अस्तित्व है, यह विश्वास करते हैं कि परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, मानवजाति परमेश्वर द्वारा बनाई गई है, मानव जीवन परमेश्वर द्वारा प्रदान किया गया है और परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है तो क्या वे परमेश्वर का अपमान करेंगे? (नहीं।) वे कभी नहीं करेंगे। हालात चाहे जैसे भी हों, वे परमेश्वर का अपमान नहीं करेंगे। भले ही वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम पर या इस धारा पर जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य है, संदेह करते हों, फिर भी वे कभी भी परमेश्वर का अपमान नहीं करेंगे। इसलिए, जिस तरह का व्यक्ति परमेश्वर का अपमान कर सकता है, वह न सिर्फ इस धारा और देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर को नकारता है, बल्कि वह परमेश्वर के कार्य और परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्य को भी नकारता है। तो फिर इस तरह के लोग किस श्रेणी में आते हैं? (वे दानव हैं; वे ऐसे लोग हैं जो अपने दिलों में परमेश्वर को नकारते हैं।) इस प्रकार के लोग शैतान और दानवों के गिरोह का हिस्सा हैं; वे परमेश्वर के चुने हुए लोग नहीं हैं, परमेश्वर की भेड़ें नहीं हैं—वे गैर-मनुष्य हैं। कुछ लोग बड़े लाल अजगर द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद, क्योंकि वे सत्य नहीं समझते हैं और उनमें भेद पहचानने की क्षमता नहीं होती है, अफवाहें सुनकर शंकालु हो जाते हैं। वे देहधारी परमेश्वर के बारे में संदेह करने लगते हैं और धमकियों, प्रलोभनों और क्रूर यातनाओं के दबाव में आकर परमेश्वर के नाम को नकार देते हैं, इस धारा को नकार देते हैं जो पवित्र आत्मा का कार्य है और कलीसिया को नकार देते हैं। यह पहले से ही परमेश्वर के साथ विश्वासघात करने के समान है। लेकिन कुछ लोग परमेश्वर का अपमान तक कर सकते हैं—यह पूरी तरह से जमीर और विवेक की कमी होना है, यह अक्षम्य है और यह अक्षम्य पाप करना है। जब तुम लोगों का अपमान करते हो या उन पर हमला करते हो, उनकी आलोचना करते हो या उनकी मानहानि करते हो तब कानूनी लिहाज से इसे ज्यादा-से-ज्यादा मानहानि का अपराध या सबसे गंभीर मामलों में व्यक्तिगत हमला कहा जाएगा। यह सच में गंभीर नहीं है और इससे मृत्यु नहीं होती है। लेकिन जब कोई परमेश्वर का अपमान कर सकता है तब समस्या की प्रकृति बदल जाती है। अब यह सिर्फ परमेश्वर का अपमान नहीं रह जाता है—यह परमेश्वर के खिलाफ ईशनिंदा है! ईशनिंदा करने का क्या मतलब है? इसका मतलब है सकारात्मक चीजों, सत्य या परमेश्वर पर सीधा हमला करना, उनकी मानहानि करना, उनका अपमान करना या उन पर कलंक लगाना—ये सब ईशनिंदा है। परमेश्वर पवित्र है, परमेश्वर सर्वोच्च है, परमेश्वर सारी मानवजाति पर संप्रभु है, परमेश्वर ही वह है जो मानवजाति के लिए जीवन प्रदान करता है और परमेश्वर ही मानव जीवन का स्रोत है। परमेश्वर का सार, पहचान और दर्जा सर्वोच्च हैं। परमेश्वर पूर्ण, अच्छा और पवित्र है, वह दोषरहित है और तिरस्कार से परे है। ठीक इसलिए क्योंकि परमेश्वर पवित्र, पूर्ण और सर्वोच्च है और क्योंकि परमेश्वर ही वह स्रोत है जो मानवजाति को जीवन प्रदान करता है, सृजित मानवजाति द्वारा परमेश्वर की तरफ निर्देशित कोई भी कलंक, हमला या अपमान ईशनिंदा है। अब तुम्हें समझ जाना चाहिए कि “ईशनिंदा” क्या है, है ना? (परमेश्वर की तरफ निर्देशित कोई भी हमला, अपमान या कलंक ईशनिंदा है।) अगर “ईशनिंदा” शब्द को समझाना है तो इसका मतलब है सकारात्मक चीजों पर कलंक लगाना, उनकी आलोचना करना या निंदा करना और यह विशेष रूप से सत्य या परमेश्वर पर कलंक लगाना, उसकी आलोचना करना या निंदा करना है। इसे ईशनिंदा कहा जाता है। इसलिए, “ईशनिंदा” शब्द का उपयोग सिर्फ मानवजाति द्वारा परमेश्वर पर कलंक, अपमान, हमले या आलोचना का वर्णन करने के लिए ही किया जा सकता है—यह अपेक्षाकृत उपयुक्त है। जब लोग दूसरों की आलोचना करते हैं, उनका अपमान करते हैं, उन पर हमला करते हैं या उनकी निंदा करते हैं तब अगर यह तथ्यों के अनुरूप नहीं होता है तो यह ज्यादा-से-ज्यादा मानहानि होती है। अगर यह तथ्यों के अनुरूप होता है तो यह मानहानि नहीं होती है। लेकिन लोगों द्वारा परमेश्वर की आलोचना और निंदा तथ्यों को तोड़ना-मरोड़ना है और सत्य को असत्य में बदलना है—यह ईशनिंदा है। परमेश्वर की निंदा करने की हिम्मत करने वाले लोगों की प्रकृति कैसी होती है? क्या परमेश्वर में पाप है? (नहीं।) परमेश्वर पवित्र है, परमेश्वर पाप रहित है, इसलिए परमेश्वर की तरफ निर्देशित कोई भी कलंक, हमला, आलोचना या अपमान ईशनिंदा कहलाता है। जो लोग परमेश्वर का अपमान करते हैं, वे सोचते हैं, “जब तक मैं ऐसी कुछ चीजें कहता हूँ जो परमेश्वर का अपमान करती हैं तब तक मैं रिहा किया जा सकता हूँ और खतरे से बच सकता हूँ। हालातों के मद्देनजर, परमेश्वर इसे याद नहीं रखेगा।” मानव परिप्रेक्ष्य से ये तो बस कुछ गालियाँ हैं जो कोई बड़ी समस्या नहीं लगती हैं। लेकिन परमेश्वर इस मामले को कैसे देखता है? यह जो तुम परमेश्वर का अपमान कर सकते हो वह दर्शाता है कि तुमने अपने दिल में पहले से ही परमेश्वर को नकार दिया है। सिर्फ इसलिए क्योंकि तुम अपने दिल में परमेश्वर के प्रति नफरत रखते हो, तुम उसका अपमान कर सकते हो। चाहे तुम सक्रिय रूप से परमेश्वर का अपमान करो या दूसरों द्वारा तुम्हें उसका अपमान करने के लिए मजबूर किया जाए, यह परमेश्वर को नकारने और परमेश्वर से नफरत करने की अभिव्यक्ति है। इसलिए, इस किस्म का व्यवहार और क्रियाकलाप पूरी तरह से ईशनिंदा है।

कुछ लोग विभिन्न अफवाहों को कभी नहीं छोड़ सकते हैं, हमेशा यही सोचते हैं कि हो सकता है वे सच हों। वे हमेशा यह सत्यापित करना चाहते हैं कि क्या बड़े लाल अजगर यानी सत्तारूढ़ दल, धार्मिक दुनिया और अविश्वासियों द्वारा फैलाई गई अफवाहें—विशेष रूप से वे अफवाहें और टिप्पणियाँ जो ऑनलाइन पोस्ट की जाती हैं—सच हैं। अगर परमेश्वर ने अपना रुख कभी व्यक्त नहीं किया होता या उसके घर ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया होता तो वे पूरी तरह से यह मान लेते कि ये अफवाहें सच हैं और परमेश्वर को नकार देते और परमेश्वर के साथ विश्वासघात करते—यहाँ क्या समस्या है? आखिर वे किस आधार पर परमेश्वर में विश्वास रखते हैं? अगर उनका विश्वास इस बात पर आधारित है कि अफवाहें सच हैं या नहीं तो यह एक बहुत बड़ी गलती है। दरअसल परमेश्वर के घर के धर्मोपदेशों, संगतियों और फिल्मों में कई अफवाहों का पहले ही बहुत स्पष्ट रूप से गहन-विश्लेषण किया जा चुका है और उन्हें झूठा ठहरा दिया गया है; मुझे यहाँ विस्तार में जाने की कोई जरूरत नहीं है। तो तुम लोग अभी भी किन प्रकारों की अफवाहों को सत्यापित करना चाहते हो? आओ आज हम इस विषय को खोलकर रख दें। अगर तुम अफवाहों को सत्यापित करना चाहते हो तो मैं तुम लोगों को बताऊँगा कि मुझे उनके बारे में क्या कहना है ताकि कुछ लोग यह न सोचते रहें, “क्या तुम हमसे कुछ ऐसा छिपा रहे हो जो तुम नहीं चाहते कि हमें पता चल जाए? हमें हमेशा ऐसा लगता है कि हम तुम्हें पूरी तरह से समझ नहीं सकते हैं। हालाँकि हमने तुम्हारा अनुसरण किया है और बहुत सारे सत्य सुने हैं, फिर भी हम अपने दिलों में इस बात को लेकर अनिश्चित रहते हैं कि अफवाहें सच्ची हैं या झूठी, इसलिए हममें हमेशा उन्हें सत्यापित करने का विचार और ख्याल रहता है।” अगर तुम लोग उन्हें सत्यापित करना चाहते हो तो बेझिझक ऐसा कहो। आओ हम इस मामले पर खुलकर बात करें। मैं तुम्हें बताऊँगा कि मुझे उनके बारे में क्या कहना है—छिपाने के लिए यहाँ कुछ भी नहीं है। क्या कोई उन्हें सत्यापित करना चाहता है? (नहीं।) क्या जिस सूझ-बूझ से तुम उन्हें सत्यापित नहीं करना चाहते हो वह इस आधार पर टिकी हुई है कि तुम बड़े लाल अजगर की अफवाहों पर विश्वास नहीं करते हो या ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम्हारा रवैया ऐसा है, “मैं इस मामले को लेकर परेशान नहीं होना चाहता—मैं इसे बस ऐसे ही रहने दूँगा”? या क्या यह इसलिए है क्योंकि तुम डरते हो कि अफवाहों को सत्यापित करने के बाद तुम निराश हो जाओगे और नतीजे का सामना करने में असमर्थ रहोगे और तुम नहीं जानते कि तुम मजबूती से डटे रह सकोगे या नहीं और तुम ऐसे नतीजों का सामना नहीं करना चाहते? इन अफवाहों की विषयवस्तु चाहे कुछ भी हो, चाहे तुम लोग उनकी जाँच करना चाहो या न चाहो, चाहे तुम इन अफवाहों के बारे में मुझे क्या कहना है उसे या उन पर मेरी टिप्पणी सुनना चाहो या न चाहो और चाहे लोगों का रवैया कुछ भी हो, मेरा एक ही रवैया है : अगर तुम सत्य समझते हो तो तुम प्राकृतिक रूप से इन अफवाहों का भेद पहचान पाओगे; अगर तुम लोग सत्य नहीं समझते हो और सत्य की तलाश नहीं करते हो तो फिर मेरी कोई टिप्पणी नहीं है। वह इसलिए क्योंकि मैंने सत्य व्यक्त करते हुए बहुत सारे वचन कहे हैं; मुझे तुम्हें इन अफवाहों को समझाने की कोई जरूरत नहीं है—यह वह कार्य नहीं है जो मुझे करना चाहिए। क्या तुम इतने सारे धर्मोपदेश सुनने के बाद अब भी अफवाहों का भेद नहीं पहचान सकते? अगर तुम ऐसा नहीं कर सकते हो तो इसका मतलब है कि तुम सत्य नहीं समझते हो। जो व्यक्ति सत्य नहीं समझता है उससे चाहे कितना भी कहा जाए, वह बेकार है—यह अविश्वासियों से बात करने जैसा है; तुम चाहे कितना भी कह लो, वे नहीं समझेंगे। इसलिए, जब किसी भी अफवाह की बात आती है तब मेरी कोई टिप्पणी नहीं होती! न तो मैं कुछ समझाना चाहता हूँ, न मैं कुछ कहना चाहता हूँ और न ही मैं किसी बात को उचित ठहराना या उसका बचाव करना चाहता हूँ। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बाहरी दुनिया में क्या कहा जा रहा है, मेरी कोई टिप्पणी नहीं है! क्या तुमने यह स्पष्ट रूप से सुन लिया है? (हाँ।) “कोई टिप्पणी नहीं है”—यह एक तरह का रवैया है। इसके अतिरिक्त, वह क्या है जो मैं इस मामले के संबंध में तुम लोगों से कहना चाहता हूँ? ऐसा है कि चाहे कोई भी समय हो, परमेश्वर की पहचान और सार नहीं बदलेगा, परमेश्वर का दर्जा नहीं बदलेगा, परमेश्वर का स्वभाव नहीं बदलेगा, परमेश्वर का अधिकार और सामर्थ्य नहीं बदलेगा, यह तथ्य नहीं बदलेगा कि परमेश्वर मानवजाति पर संप्रभु है और उसे जीवन प्रदान करता है, परमेश्वर के देहधारण का तथ्य नहीं बदलेगा और यह तथ्य कभी नहीं बदलेगा कि परमेश्वर ही सत्य है, मार्ग है और जीवन है। क्या ये वचन तुम लोगों के संदेहों को हल करने के लिए पर्याप्त हैं? (हाँ।) मुझे तुम लोगों से इस मामले में बस इतना ही कहना है। अगर तुम लोग समझते हो तो फिर इसे स्वीकार करो। अगर तुम नहीं समझते हो तो फिर इस पर चिंतन करने के लिए अपना पूरा समय लो। अगर तब भी तुम्हारे दिल में संदेह रहते हैं और ये वचन तुम्हारे संदेहों को हल नहीं कर सकते हैं तो मैं और कुछ नहीं कर सकता। बस चीजों को अपने ढर्रे पर चलने दो। मैं तुम्हारे लिए बस इतना ही कह और कर सकता हूँ। क्या यह दृष्टिकोण उचित है? (हाँ।) क्या लोगों पर इन वचनों का कुछ प्रभाव पड़ सकता है? विभिन्न जटिल मामलों का सामना करते समय अगर तुम और परमेश्वर के बीच रिश्ते में कोई दरार दिखाई देती है या अगर तुममें परमेश्वर के बारे में गंभीर संदेह जन्म ले लेते हैं और ये वचन तुम्हारी उस समस्या को हल नहीं कर सकते हैं जिसका तुम फिलहाल सामना कर रहे हो तो फिर तुम अविश्वासी हो। तुम जो स्वीकारते हो वह सत्य नहीं बल्कि शैतान के झूठ हैं और वे तमाम शैतानी शब्द हैं जो शैतान बोलता है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा शुरू में आदम और हव्वा के साथ हुआ था—परमेश्वर ने कहा, “तुम लोग बाग के सभी वृक्षों से फल खा सकते हो, लेकिन भले-बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तुम नहीं खाओगे क्योंकि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम लोगों की जरूर मौत हो जाएगी।” परमेश्वर के वचन सुनने के बाद उन्होंने उन वचनों को अपने दिलों में रख लिया। लेकिन जब शैतान ने उनसे कहा, “परमेश्वर ने कहा कि तुम भले-बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल नहीं खाओगे—यह जरूरी तौर पर सच नहीं है। अगर तुम लोग इसे खाओगे तो तुम्हारी निश्चित रूप से मौत नहीं होगी,” तब आदम और हव्वा को तुरंत शक हो गया। उन्होंने परमेश्वर के वचनों को छोड़ दिया और साँप के शब्दों पर विश्वास कर लिया। उन्हें संदेह हुआ कि परमेश्वर ने जो कहा, वह झूठ है। साँप ने जो कहा उसके कारण उन्होंने अब परमेश्वर में और विश्वास नहीं रखा और न ही उसकी आज्ञा का और पालन किया, बल्कि उन्होंने पूरी तरह से साँप के झूठों का अनुसरण किया। यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि इसका अंतिम नतीजा क्या निकला। साँप की बातों पर विश्वास करते हुए और उसे स्वीकारते हुए वे परमेश्वर ने जो कहा था उसे भी नकार रहे थे, यह सोच रहे थे कि परमेश्वर ने जो कहा वह झूठ है। उन्हें अब और विश्वास नहीं था कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं और उन्हें अब और परमेश्वर की पहचान और सार पर विश्वास नहीं था। इसके बजाय वे परमेश्वर के प्रति संशयी थे, उन्हें संदेह था कि परमेश्वर के उनके प्रति कुछ गुप्त मकसद हैं और वह उन्हें झूठ बोलकर धोखा दे रहा है। इसके विपरीत, वे मानते थे कि साँप ने जो कहा वह सच है और साँप उनके फायदे के लिए बोल रहा है। अंतिम नतीजा यह निकला कि वे साँप द्वारा बहका दिए गए और शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिए गए। वे परमेश्वर की देखभाल से भटक गए, उन्होंने परमेश्वर की सुरक्षा खो दी और एक ऐसे मार्ग पर चलना शुरू कर दिया जहाँ से लौटना असंभव था।

क्या तुम लोगों की अफवाहों की समस्या हल हो गई है? अगर यह नहीं हुई है तो खुद ही धीरे-धीरे इस पर काम करो। जहाँ तक यह प्रश्न है कि अफवाहों से कैसे पेश आना है, तो मैं इस बारे में पहले ही बहुत संगति कर चुका हूँ। अगर अब भी ऐसे लोग हैं जो विभिन्न अफवाहों की असलियत नहीं देख सकते हैं और उनका भेद नहीं पहचान सकते हैं तो इस बारे में संगति करो और खुद इसे हल करो। हालाँकि यह मामला कोई बड़ा मामला नहीं माना जाता, लेकिन लोगों के दैनिक जीवन में यह अक्सर उनके मन को क्षुब्ध कर सकता है और उनके जीवन में व्यवधान डाल सकता है। हालाँकि कुछ अफवाहें इस हद तक नहीं जातीं कि तुरंत तुम्हारी जान ले लें, लेकिन वे तुम्हारे लिए एक तरह का उत्पीड़न भी होती हैं, जैसे कि एक तंग करने वाली मक्खी जो लोगों को काटती नहीं है लेकिन लोगों को उससे घिन आती है—वे समय-समय पर तुम्हें परेशान करने के लिए प्रकट होती हैं। विशेष रूप से, जब तुम कमजोर होते हो, जब तुम्हारे सामने विफलता या रुकावटें आती हैं या जब तुम नकारात्मक होते हो तब ये अफवाहें और शैतानी शब्द तुम्हें परेशान करने, तुम्हारे दिल में तुम्हें सताने, तुम्हें पीछे खींचने, तुम्हें थोड़ा-थोड़ा करके नीचे डुबो देने के लिए प्रकट होंगी। ठीक इसी तरीके से कुछ लोग पीछे हट गए हैं और उन्होंने विश्वास रखना छोड़ दिया है। देखो, ब समूहों या साधारण कलीसियाओं में भेजे गए लोग बहुत खतरे में हैं—लेकिन क्या वे लोग जो पूर्णकालिक कर्तव्य करते हैं, खतरे में नहीं हैं? उनमें से कुछ लोग भी बड़े खतरे में हैं। उनमें से कौन-सा समूह बड़े खतरे में है? उन लोगों का समूह जो सत्य समझने में लगातार विफल हो जाते हैं। उन्होंने परमेश्वर के जितने भी वचन सुने हैं, वे उन्हें नहीं समझते हैं। उनके दिलों में हमेशा संदेह रहता है : “मैं यह क्यों नहीं समझ सकता हूँ कि परमेश्वर के कौन-से वचन सत्य हैं? हर कोई कहता है कि सत्य ही मार्ग है, जीवन है—मुझे क्यों नहीं लगता कि यही जीवन है? मैंने भी परमेश्वर के बहुत सारे वचन सुने हैं, लेकिन मेरे भीतर का जीवन नहीं बदला है; मैं अब भी मैं ही हूँ, मैं तो नहीं बदला!” वे कभी भी नहीं समझते हैं कि सत्य क्या है, वे परमेश्वर का कार्य कभी भी नहीं समझते हैं और वे दर्शनों के बारे में हमेशा अस्पष्ट रहते हैं। ऐसे लोग खतरे में हैं। इस तरह के लोग अफवाहें सुनते समय उनका भेद पहचानने के लिए कभी सत्य की तलाश नहीं करते हैं; उन्हें सिर्फ अफवाहों से बचना और उन्हें अस्वीकार करना आता है। अगर वे उनसे बच सकते हैं तो वे संयोग से आपदा से बच जाते हैं; अगर वे उनसे नहीं बच सकते हैं तो वे शैतान द्वारा बंदी बना लिए जाते हैं। मुझे बताओ, क्या यह संयोग है कि ऐसे लोग शैतान द्वारा बंदी बना लिए जा सकते हैं? (नहीं।) जो लोग कभी सत्य नहीं समझते हैं, जो कभी नहीं समझते हैं कि परमेश्वर में विश्वास रखना क्या होता है—क्या ये लोग परमेश्वर की भेड़ें हैं? क्या वे परमेश्वर के वचन समझ सकते हैं? (वे नहीं समझ सकते हैं।) ये लोग कभी भी परमेश्वर के वचन नहीं समझते हैं और न ही वे सत्य की तलाश करते हैं; और उन्हें हमेशा इस बात की चिंता रहती है : “परमेश्वर का दिन कब आएगा? हम स्वर्ग के राज्य में कब प्रवेश करेंगे?” परमेश्वर में विश्वास रखने में लोगों को जो बातें समझनी चाहिए, उनमें से उन्होंने एक भी बात नहीं समझी है। आखिर वे कितने भ्रमित हो सकते हैं! मुझे बताओ, जब मैं इस तरह के भ्रमित व्यक्ति से बात करता हूँ तब मेरे दिल में कैसी भावना होती है? क्या यह सम्मान है या दुःख? या क्या यह रोष की भावना है? इन लोगों को देखकर मुझे चिढ़ होती है। परमेश्वर में विश्वास रखकर इन भ्रमित बेवकूफों को क्या मिल सकता है? बड़े लाल अजगर द्वारा उन्हें गिरफ्तार करने और उनकी बुद्धि भ्रष्ट करने के बाद उन्हें बेनकाब कर दिया जाता है और हटा दिया जाता है। ये लोग रत्ती भर भी सत्य नहीं समझते हैं और परमेश्वर का घर ऐसे लोगों को नहीं चाहता है। उन्हें बड़े लाल अजगर के जरिए ही बेनकाब किया जाता है और हटा दिया जाता है। मुझे बताओ, क्या यह प्रेमहीनता है? (नहीं।) अगर ऐसे लोगों को बड़े लाल अजगर द्वारा गिरफ्तार नहीं किया जाता और उन्हें गुमराह करने वाली ये अफवाहें नहीं होतीं तो क्या वे हमेशा कलीसिया से चिपके रहते? कौन-से हालात उन्हें पीछे लौटने पर मजबूर कर सकते हैं? (यह ठीक बड़े लाल अजगर की अफवाहों के जरिए ही होता है। अफवाहें सुनने और उन पर विश्वास करने के बाद वे पीछे लौट जाते हैं।) यह ठीक बड़े लाल अजगर के राक्षसी पंजों, इस विषमता, के जरिए ही होता है कि वे कैदी बना लिए जाते हैं और अंत में अब और विश्वास नहीं रखते हैं। दरअसल ये लोग सत्य नहीं समझ सकते हैं, कोई कर्तव्य नहीं कर सकते हैं और कोई सेवा नहीं कर सकते हैं। परमेश्वर के घर में वे बस जरूरी गिनती पूरी कर रहे हैं, मुफ्तखोरी कर रहे हैं और मौत की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उनमें से हर एक दयनीय अवस्था में है, फिर भी वे परमेश्वर के अनुयायी होने, परमेश्वर के चुने हुए लोग होने का दावा करते हैं—क्या वे शर्मनाक नहीं हैं? जो लोग परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, वे कम-से-कम मनुष्य तो होने ही चाहिए, बिना आत्मा वाले मुर्दे नहीं, दरिंदे नहीं होने चाहिए। वे ऐसे लोग होने चाहिए जो परमेश्वर के वचन समझ सकते हैं। सिर्फ वे लोग जो परमेश्वर के वचन और सत्य समझ सकते हैं, वे ही परमेश्वर की भेड़ें हैं। सिर्फ परमेश्वर की भेड़ें ही सच्चाई से अपना कर्तव्य कर सकती हैं और परमेश्वर का अनुसरण कर सकती हैं। जो लोग परमेश्वर की भेड़ें नहीं हैं, वे सच्चे अनुयायी नहीं हैं। वे एक मकसद से कलीसिया में घुसपैठ करते हैं, जो कि आशीष प्राप्त करना है। उनके दिलों में कोई परमेश्वर नहीं है। चाहे वे कितने भी वर्षों तक विश्वास रखें, उनके पास कभी भी परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं हो सकता है। दानव, शैतान और जो लोग गंदे राक्षसों और बुरी आत्माओं के कब्जे में होते हैं, वे भी जानते हैं कि यही सच्चा मार्ग है और वे भी आशीषों की इच्छा करते हैं। लेकिन क्या परमेश्वर ऐसे लोगों को चाहता है? (वह नहीं चाहता।) विभिन्न बुरी आत्माएँ और गंदे राक्षस जानवरों पर कब्जा कर लेते हैं और जब वे कई वर्षों के विकास से गुजरते हैं और अलौकिक प्राणी बन जाते हैं, उसके बाद वे हमेशा मनुष्य बनना चाहते हैं। वे गंदे राक्षस, बुरी आत्माएँ या विभिन्न पाशविक आत्माओं के रूप में बने रहने के अनिच्छुक होते हैं; वे और ऊँचे स्तर पर पहुँचना चाहते हैं—मनुष्य बनना चाहते हैं। इसी प्रकार, ये भ्रमित बेवकूफ भी अपना पद ऊँचा करना चाहते हैं, परमेश्वर के चुने हुए लोग बनना चाहते हैं। मुझे बताओ, क्या परमेश्वर ऐसे लोगों को चाहता है? वह नहीं चाहता। भले ही वे कलीसिया में घुसपैठ करें, यह व्यर्थ होगा; चाहे कुछ भी हो, उन्हें दूर कर देना चाहिए। एक बार जब वे दूर हो जाएँगे तब परमेश्वर का घर स्वच्छ हो जाएगा और कलीसिया स्वच्छ हो जाएगी। जो लोग बच जाएँ, वे कम-से-कम ऐसे लोग होने चाहिए जो परमेश्वर की पहचान और सार को मानते हों, जो मानते हों कि परमेश्वर ही सत्य है, मार्ग है और जीवन है और जो खुशी से परमेश्वर की सेवा कर सकते हों। क्या वे भ्रमित बेवकूफ इसे प्राप्त कर सकते हैं? वे इसे प्राप्त करने से बहुत पीछे रह जाते हैं। वे सभी बिना आत्मा वाले मुर्दा लोग हैं, लेकिन फिर भी वे हमेशा आशीष चाहते हैं, हमेशा राज्य में प्रवेश करना चाहते हैं, हमेशा स्वर्ग जाना चाहते हैं। उनकी महत्वाकांक्षा और इच्छा छोटी नहीं होती हैं, लेकिन वे कभी भी यह नहीं देखते हैं कि वे क्या हैं—वे खुद को जरूरत से ज्यादा आँकते हैं! यह सही है कि ऐसे लोगों को हटा दिया जाता है। क्या तुम लोगों को लगता है कि यह अफसोस की बात है? (नहीं।) शुरू से ही परमेश्वर ने कहा, “जैसा कि मैंने पहले कहा है, मुझे बस उत्कृष्ट लोग चाहिए, संख्या में अधिक लोग नहीं।” यह परमेश्वर का अपने चुने हुए लोगों के लिए अपेक्षित मानक है और साथ ही कलीसिया में लोगों की संख्या के संबंध में एक अपेक्षा और सिद्धांत भी है। “मैं उत्कृष्ट लोग चाहता हूँ”—यहाँ, “उत्कृष्टता” का मतलब राज्य के अच्छे सैनिकों से है या विजेताओं से? इनमें से कोई भी सटीक नहीं हैं। सटीक रूप से कहा जाए, तो “उत्कृष्टता” का मतलब वे लोग हैं जिनमें सामान्य मानवता है, जो वास्तव में मनुष्य हैं। परमेश्वर के घर में अगर तुम वे कर्तव्य कर सकते हो जो एक मनुष्य को करने चाहिए, अगर एक मनुष्य के रूप में तुम्हारा उपयोग किया जा सकता है और अगर तुम दूसरों द्वारा खींचे, घसीटे या धकेले बिना एक मनुष्य की जिम्मेदारियों, कर्तव्यों और दायित्वों को पूरा कर सकते हो और तुम बेकार कचरा नहीं हो, मुफ्तखोर नहीं हो, आवारा नहीं हो—तुम मनुष्य की जिम्मेदारियाँ और दायित्व उठा सकते हो और मनुष्य के मिशन का भार उठा सकते हो—सिर्फ यही मनुष्य के रूप में मानक स्तर का होना है! क्या वे आवारा लोग और वे लोग जो उचित कार्यों पर ध्यान नहीं देते हैं, मनुष्य के मिशन का भार उठा सकते हैं? (नहीं।) कुछ लोग जिम्मेदारी उठाने के अनिच्छुक होते हैं; दूसरे इसे नहीं उठा सकते हैं—वे बेकार कचरा हैं। जो लोग मनुष्य की जिम्मेदारियाँ नहीं उठा सकते हैं, उन्हें मनुष्य नहीं कहा जा सकता है। उन लोगों को देखो जो बौद्धिक रूप से विकलांग, मंदबुद्धि, मस्तिष्क पक्षाघातग्रस्त या शारीरिक रूप से लकवाग्रस्त हैं—क्या उन्हें मानक मनुष्य कहा जा सकता है? (उन्हें नहीं कहा जा सकता।) क्यों नहीं? ऐसे लोगों में जीने की कोई क्षमता नहीं होती है, जीवित बचे रहने की कोई क्षमता नहीं होती है और अपनी देखभाल करने की कोई क्षमता नहीं होती है। वे सहायता और देखभाल के लिए पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर रहते हैं, अपना भरण-पोषण करने की क्षमता के बिना जीते हैं और मनुष्य की जिम्मेदारियाँ और दायित्व उठाने में असमर्थ होते हैं। जो लोग परमेश्वर के घर में अपना खुद का कर्तव्य करने में असमर्थ हैं, वे सामान्य मनुष्य नहीं हैं और परमेश्वर उन्हें नहीं चाहता है। चाहे तुम कोई अगुआ हो या कार्यकर्ता या तुम ऐसा विशिष्ट कार्य कर रहे हो जिसमें पेशेवर कौशल शामिल हैं, तुम्हें उस कार्य का भार उठाने में समर्थ होना चाहिए जिसके लिए तुम जिम्मेदार हो। अपने जीवन और उत्तरजीविता का प्रबंधन करने में समर्थ होने से परे तुम्हारा अस्तित्व सिर्फ साँस लेने के बारे में नहीं है, खाने-पीने और मौज-मस्ती करने के बारे में नहीं है, बल्कि उस मिशन का भार उठाने में समर्थ होने के बारे में है जो परमेश्वर ने तुम्हें दिया है। सिर्फ ऐसे लोग ही सृजित प्राणी कहलाने योग्य हैं और मनुष्य कहलाने योग्य हैं। परमेश्वर के घर में जो लोग हमेशा मुफ्तखोरी करना चाहते हैं और हमेशा धोखा देकर आगे बढ़ना चाहते हैं, अंत तक चालाकी से अपना काम निकालने और आशीष प्राप्त करने की उम्मीद करते हैं, वे किसी भी कार्य का भार या कोई भी जिम्मेदारी नहीं उठा सकते हैं, फिर किसी मिशन का भार उठाने की तो बात ही छोड़ दो। ऐसे लोगों को हटा दिया जाना चाहिए और यह कोई अफसोस की बात नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जिसे हटाया जा रहा है वह मनुष्य नहीं है—वह मनुष्य कहलाने योग्य नहीं है। तुम उन्हें निकम्मे लोग, आवारा या कामचोर कह सकते हो; किसी भी हालत में वे मनुष्य कहलाने के लायक नहीं हैं। जब तुम उन्हें कोई कार्य सौंपते हो तब वे उसे स्वतंत्र रूप से पूरा नहीं कर सकते हैं; और जब तुम उन्हें कोई काम सौंपते हो तब वे अपनी जिम्मेदारी नहीं उठा सकते हैं या वह दायित्व पूरा नहीं कर सकते हैं जो उन्हें करना चाहिए—ऐसे लोगों का काम तमाम हो चुका है। वे जीने के लायक नहीं हैं; वे मौत के लायक हैं। परमेश्वर का उनके जीवन को बख्श देना पहले से ही उसका अनुग्रह है, यह एक असाधारण एहसान है।

हम अफवाहों के विषय पर यहीं रुक जाएँगे। अगर अभी भी तुम लोगों की कोई समस्या है तो तुम उन्हें उठा सकते हो और उन पर संगति कर सकते हो या उन्हें खुद हल करने के लिए सत्य की तलाश कर सकते हो। हम इसके बारे में अब और बात नहीं करेंगे, ठीक है? क्या किसी को कोई आपत्ति है? (नहीं।) अगर ऐसी कोई समस्या है जिस पर मैंने चर्चा नहीं की है तो तुम उसे खुद हल करने का कोई तरीका सोच सकते हो। मैंने इस मामले में अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी है। मान लो, कोई कहता है, “हमें अभी तक वह उत्तर नहीं मिला है जो हम चाहते हैं; क्या वे अफवाहें सच्ची हैं या झूठी? कृपया हमें एक स्पष्ट उत्तर दो।” अगर मैं तुम्हें एक स्पष्ट उत्तर दे दूँ तो भी इससे कौन-सी समस्या हल हो सकेगी? यही कारण है कि मैं कहता हूँ कि तुम्हें यह उत्तर खुद ही ढूँढ़ना चाहिए। इस पर मेरी कोई टिप्पणी नहीं है। यह सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि तुम लोगों में भेद पहचानने की क्षमता है या नहीं। जिन लोगों ने सत्य प्राप्त कर लिया है, वे कभी भी गुमराह नहीं होंगे। दरअसल इन अफवाहों ने बहुत सारे लोगों को बेनकाब कर दिया है। जिन लोगों ने वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखा है लेकिन सत्य प्राप्त नहीं किया है, वे सभी बेनकाब हो चुके हैं—यह परमेश्वर की बुद्धि है। यही मेरा उत्तर है। तुम समझ रहे हो? (हाँ।) तो वह क्या है जो मैं तुम लोगों से कहना चाहता हूँ? मैं जो कहना चाहता हूँ वह सब कुछ “वचन देह में प्रकट होता है” के खंडों में और सभी धर्मोपदेशों में है। मैं तुम लोगों से ये वचन ही कहना चाहता हूँ। क्या ये पर्याप्त नहीं हैं? (हाँ, हैं।) अगर कुछ लोग अब भी अड़ जाते हैं, कहते हैं, “तो फिर अफवाहों के बारे में क्या तुम्हारे पास कोई उत्तर है?” तो मैं कहता हूँ नहीं, मेरे पास अब भी कोई टिप्पणी नहीं है। मैं जो कहना चाहता हूँ उसमें से मैंने पहले ही बहुत कुछ धर्मोपदेशों में कह दिया है। अगर तुम लोग सत्य की तलाश करने के इच्छुक हो और तुम इन वचनों को स्वीकार सकते हो और उनका पालन कर सकते हो तो तुम लोगों की समस्याएँ हल हो जाएँगी। अगर तुम लोग इन वचनों को नहीं स्वीकारते हो तो तुम लोगों की समस्याएँ हमेशा के लिए समस्याएँ ही बनी रहेंगी। मैंने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी है; अब इसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। क्या तुमने स्पष्ट रूप से सुन लिया है? (हाँ।)

आओ, हम “सत्य का अनुसरण कैसे करें” विषय पर संगति जारी रखें। इस अवधि के दौरान हम अभी भी “सत्य का अनुसरण कैसे करें” के भीतर “त्याग देना” से संबंधित विषयवस्तु पर चर्चा कर रहे हैं, “अपने और परमेश्वर के बीच की बाधाओं और परमेश्वर के प्रति अपनी शत्रुता को त्याग देना” के मुख्य विषय पर बात कर रहे हैं। इस विषय का पहला पहलू परमेश्वर के बारे में अपनी धारणाओं और कल्पनाओं को त्याग देना है। इस पहलू में हमने परमेश्वर के कार्य के बारे में लोगों की धारणाओं और कल्पनाओं पर चर्चा की है जिसमें एक अपेक्षाकृत जटिल मुद्दा शामिल है : जन्मजात स्थितियों, मानवता और भ्रष्ट स्वभावों के बीच अंतर। इसमें कई बारीकियाँ शामिल हैं। जब लोग रोजमर्रा के जीवन में समस्याओं का सामना करते हैं तब वे अवधारणाओं को लेकर हमेशा भ्रमित रहते हैं और स्पष्ट रूप से यह अंतर नहीं कर पाते हैं कि कोई मुद्दा किस श्रेणी का है या उनमें कैसे भेद किया जाए। उदाहरण के लिए, कुछ खास अभिव्यक्तियों के संबंध में लोग यह अंतर नहीं कर पाते हैं कि वे मानवता से संबंधित हैं या जन्मजात स्थितियों से। और कुछ दूसरी अभिव्यक्तियों के बारे में लोग यह नहीं बता पाते हैं कि वे मुद्दे भ्रष्ट स्वभावों से संबंधित हैं या मानवता से। लोग इन मामलों में अंतर नहीं कर पाते हैं। लोग अक्सर जन्मजात स्थितियों की कुछ समस्याओं और खामियों को भ्रष्ट स्वभाव मान लेते हैं या मानवता के कुछ दोषों और समस्याओं को भ्रष्ट स्वभाव मान लेते हैं। कभी-कभी जब यह भ्रष्ट स्वभाव की अभिव्यक्ति होती है तब भी वे इसे एक जन्मजात स्थिति की अभिव्यक्ति मान लेते हैं जो बदल नहीं सकती है। इसलिए लोग अक्सर परमेश्वर में विश्वास रखने की प्रक्रिया के दौरान जन्मजात स्थितियों, मानवता और भ्रष्ट स्वभावों के मुद्दों के बारे में बहुत अस्पष्ट महसूस करते हैं और उनमें अंतर नहीं कर सकते हैं। पिछली बार हमने इसके एक भाग पर संगति की थी और यकीनन कुछ उदाहरण भी दिए थे, लेकिन मुझे लगता है कि वह पर्याप्त रूप से विशिष्ट नहीं था। आज हम इन तीन श्रेणियों के भीतर मुद्दों को लेंगे और उन पर और विशिष्ट रूप से संगति करेंगे। मैं कुछ विशिष्ट अभिव्यक्तियों और उदाहरणों के बारे में बात करूँगा और फिर तुम लोग यह भेद पहचान जाओगे कि वे किस श्रेणी में आते हैं : जन्मजात स्थितियाँ, मानवता या भ्रष्ट स्वभाव। अगर तुम लोग उनका भेद नहीं पहचान सके तो हम सब मिलकर उनकी खोजबीन करेंगे। यह कैसा विचार है? (अच्छा है।) पिछली बार हमने जन्मजात स्थितियों पर थोड़ी ज्यादा संगति की थी, इसलिए इस संबंध में भेद पहचानने की तुम्हारी क्षमता यकीनन कुछ हद तक ज्यादा स्पष्ट है। लेकिन अभी भी ऐसी कुछ चीजें हैं जो अपेक्षाकृत सीमा रेखा पर हैं या मानवता के पहलुओं से मिलती-जुलती हैं और लोग अभी भी यह अंतर नहीं कर सकते हैं कि उन्हें जन्मजात स्थितियों के तहत श्रेणीबद्ध किया जाना चाहिए या मानवता के। मैं कुछ अभिव्यक्तियों या कुछ व्यवहार और क्रियाकलापों का प्रस्ताव दूँगा और फिर तुम लोग बताओगे कि उन्हें किस पहलू के तहत श्रेणीबद्ध किया जाना चाहिए। इस तरीके से संगति करने का क्या फायदा है? एक बार जब तुम्हें मालूम हो जाएगा कि कोई अभिव्यक्ति किस पहलू से संबंधित है तब तुम्हें यह भी मालूम हो जाएगा कि उससे किस तरीके से पेश आना है और उसे कैसे सँभालना है।

तो चलो, पहली अभिव्यक्ति से शुरू करें : चीजें करने में लगनशील होना, मतलब कि व्यक्ति बहुत मेहनती है। यह किस पहलू से संबंधित है? (यह व्यक्ति की मानवता की अभिव्यक्ति है।) तो फिर क्या यह मानवता का गुण है या दोष? (मानवता का गुण है।) बहुत लगनशील और मेहनती होना मानवता का गुण है। साफ-सुथरापन और सफाई पसंद करना और स्वच्छता बनाए रखना—यह किस तरह की अभिव्यक्ति है? (मानवता का गुण है।) (यह जीवन की एक अच्छी आदत है, यह व्यक्ति की जन्मजात स्थितियों के तहत आता है।) क्या यह जन्मजात स्थिति है? क्या यह व्यक्ति की मानवता का गुण और मजबूत पक्ष नहीं है? (हाँ।) अभी-अभी किसी ने कहा कि यह जन्मजात स्थिति है; यह गलत है। इसमें व्यक्ति की मानवता के साथ-साथ जीवन की आदतें भी शामिल हैं; यकीनन यह मानवता का गुण और मजबूत पक्ष भी है। अगली अभिव्यक्ति : कुछ लोग आलसी होते हैं; उन्हें सुख-सुविधाएँ पसंद होती हैं और मेहनत से नफरत होती है और वे काम करना पसंद नहीं करते हैं। जब वे काम नहीं कर रहे होते हैं तब वे विशेष रूप से सहज महसूस करते हैं, लेकिन जब वे काम करना शुरू करते हैं तब उनका मिजाज बदतर हो जाता है—वे झगड़ालू, चिड़चिड़े और नाराज हो जाते हैं। जब करने के लिए काम होता है तब वे सुस्त, ऊर्जा की कमी महसूस करते हैं और काम नहीं करना चाहते हैं। लेकिन जब खाने-पीने और मौज-मस्ती करने की बात आती है तब उनमें बेहद ऊर्जा होती है। आलस—यह किस तरह की समस्या है? (बुरी मानवता की।) कम-से-कम यह मानवता का दोष है, कमी है और मानवता में एक महत्वपूर्ण समस्या है। यह अभी बुरी मानवता के स्तर तक नहीं पहुँची है। अगर ऐसे लोगों को दूसरों पर हुक्म चलाना और उनका शोषण करना पसंद होता है, वे दूसरों से काम करवाते हैं जबकि खुद कुछ नहीं करते हैं तो यह कैसी समस्या हुई? (बुरी मानवता की।) जब उनसे कोई काम करने के लिए कहा जाता है तब वे उससे बचने के लिए सभी तरह के कारण और बहाने ढूँढ़ लेते हैं; वे बस काम करना ही नहीं चाहते हैं। वे साफ-साफ अपने इरादे नहीं बताते हैं बल्कि तरह-तरह के तरीके, चालबाजियाँ या झूठ और धोखाधड़ी का उपयोग करते हैं, दूसरों से काम करवाने का प्रयास करते हैं जबकि खुद मौज-मस्ती करने के लिए इससे जी चुराते हैं। यह किस तरह की समस्या है? (भ्रष्ट स्वभाव की, दुष्ट स्वभाव की।) क्या यह सिर्फ भ्रष्ट स्वभाव है? जो लोग दूसरों का शोषण करना और दूसरों पर हुक्म चलाना पसंद करते हैं, सबसे पहली बात, वे बुरी मानवता और नीच चरित्र वाले होते हैं। दूसरी बात, दूसरों पर हुक्म चलाने के उनके चालाक तरीके उनके धोखेबाज, दुष्ट स्वभाव को उजागर करते हैं। दूसरों का शोषण करना और उन पर हुक्म चलाना पसंद करने की उनकी अभिव्यक्तियाँ दर्शाती हैं कि, एक तो उनमें बुरी मानवता है और दूसरा उनका भ्रष्ट स्वभाव गंभीर—धोखेबाज और दुष्ट—है। देखो, कुछ अभिव्यक्तियाँ सिर्फ बुरी मानवता या व्यक्ति की मानवता में किसी कमी को दर्शाती हैं और वे भ्रष्ट स्वभाव के स्तर तक नहीं पहुँचती हैं। लेकिन कुछ अभिव्यक्तियाँ जो नीच मानवता की नींव पर आधारित हैं, उनमें सीधे तौर पर भ्रष्ट स्वभाव शामिल होते हैं। इसलिए, कोई भी अभिव्यक्ति इतनी सरल नहीं होती है। कुछ अभिव्यक्तियों में सिर्फ एक समस्या नहीं बल्कि दो समस्याएँ शामिल होती हैं।

छिछलापन—यह किस पहलू के तहत आता है? (यह मानवता का दोष है।) सही कहा, यह मानवता का दोष है। अगर यह सिर्फ खुद को सजाने-सँवारने, खुद को खूबसूरत दिखाने, और अच्छी शक्ल वाला, आकर्षक, सजीला या जवान होने की तारीफें पाने की चाह के बारे में हो—यह चाहना कि दूसरे लोग उसके रूप-रंग के बारे में ऊँची राय या सकारात्मक नजरिया रखें—तो यह सिर्फ मानवता का मामला होने तक सीमित है। यह मानवता का किस तरह का मुद्दा है? स्पष्ट रूप से यह कोई गुण नहीं है बल्कि एक दोष है। हो सकता है कि कुछ लोग कहें, “हर किसी को खूबसूरती से प्रेम होता है—यह दोष कैसे हो सकता है?” तो मैं यह क्यों कहता हूँ कि छिछलापन मानवता का दोष है? चूँकि छिछलापन एक दोष है, इसलिए इसकी अभिव्यक्तियाँ जायज नहीं हैं। छिछलेपन का मतलब उचित, गरिमामय, धर्मनिष्ठ या गंभीर दिखना या दूसरों पर गरिमा और शालीनता की छाप छोड़ना नहीं है; यह उचित दिखने के स्तर पर नहीं है, बल्कि यह उचित दिखने पर जायज रूप से ध्यान देने से कहीं अत्यधिक और गंभीर है। जब लोग छिछले होते हैं तब वे खुद को सजाने-सँवारने और अपनी नुमाइश करने पर विशेष ध्यान देते हैं, दूसरों का ध्यान अपनी छवि पर केंद्रित करवाते हैं, यहाँ तक कि इस चक्कर में कुछ हद तक बेशर्म भी हो जाते हैं—दूसरे शब्दों में, ये लोग बहुत सारे मामलों में रूप-रंग से प्रभावित और बेबस होते हैं। यह मानवता का दोष है। उदाहरण के लिए, कुछ लोगों को बिना सौंदर्य-प्रसाधन लगाए बाहर जाने में शर्मिंदगी महसूस होती है। जब तक वे खुद पर कुछ इत्र न छिड़क लें, वे दूसरों से मिलने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं। वे हमेशा इन्हीं मामलों में डूबे रहते हैं, हमेशा खुद को अत्यधिक सजाना-सँवारना चाहते हैं ताकि दूसरे लोग उनके बारे में अच्छी राय बनाएँ और उन्हें पसंद करें। यह बहुत ही ज्यादा छिछला होना है—इस बिंदु पर यह दोष बन जाता है। यह दोष पहले से ही सामान्य मानवता के दायरे और अपेक्षित मानकों से परे जा चुका है। बहुत ही ज्यादा छिछला होना मानवता का दोष है। इसी के साथ इस अभिव्यक्ति पर हमारी चर्चा समाप्त होती है।

अगली अभिव्यक्ति है सुर्खियाँ बटोरना पसंद करना। यह किस प्रकार की अभिव्यक्ति है? (यह व्यक्ति की मानवता की त्रुटि है; यह खुद को आगे धकेलना पसंद करना है, अपना दिखावा करना पसंद करना है।) तो फिर क्या इसके भीतर कोई भ्रष्ट स्वभाव है? (हाँ, क्योंकि अगर किसी को सुर्खियाँ बटोरना पसंद है तो वह अपना दिखावा करना चाहता है, अलग दिखना चाहता है।) सुर्खियाँ बटोरना पसंद करना और हमेशा अपना दिखावा करने की चाह होना—यह किस तरह की समस्या है? क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि उनमें अगुआई की क्षमता होती है या इसलिए है क्योंकि वे सत्य समझते हैं और उनमें दायित्व का बोध होता है? अगर उनमें दायित्व का बोध है, कार्य क्षमताएँ हैं और वे कार्य की किसी मद का भार उठा सकते हैं तो यह सुर्खियाँ बटोरना पसंद करना नहीं है। तो फिर सुर्खियाँ बटोरना पसंद करना किस तरह की समस्या है? एक पहलू में, यह व्यक्ति की मानवता का दोष है। इस प्रकार के लोग सुर्खियाँ बटोरना पसंद करते हैं। वे जहाँ भी जाते हैं वहाँ अपना दिखावा करना पसंद करते हैं, वे डरते हैं कि वे दूसरे लोगों की नजरों में नहीं आएँगे। वे बहुत दिखावटी तरीके से, बढ़ा-चढ़ाकर और ऊँची आवाज में बोलते भी हैं। जितने ज्यादा लोग होते हैं, वे बोलने के लिए उतने ही ज्यादा उत्सुक होते हैं, हमेशा भीड़ में अपनी जगह बनाने की चाह रखते हैं। सुर्खियाँ बटोरना पसंद करना खराब मानवता की अभिव्यक्ति नहीं मानी जा सकती है। इसमें व्यक्ति का चरित्र शामिल नहीं होता है और यह सिर्फ मानवता का एक दोष है, एक तरह की कमी या समस्या है। मैं क्यों कहता हूँ कि यह मानवता की कमी या समस्या है? क्योंकि यह विवेक की कमी होने की अभिव्यक्ति है। ये लोग लगातार सुर्खियाँ बटोरने का प्रयास करते हैं, लेकिन क्या वे सच में कार्य का भार उठाने में सक्षम हैं? वे हमेशा सुर्खियाँ बटोरना क्यों चाहते हैं? क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि वे महत्वाकांक्षा और इच्छा से संचालित होते हैं? क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें रुतबा, प्रशंसा पाना और खुद को आकर्षण का केंद्र बनाना पसंद है? क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें लोगों के बीच प्रतिष्ठा पाना, दूसरों से बेहतर होना और दूसरों की अगुआई करना पसंद है? (हाँ।) क्या इस तरह के व्यक्ति की मानवता उजागर नहीं हो जाती है? यह किस तरह की मानवता है? इसमें विवेक की कमी है। क्या यह मानवता का दोष नहीं है? (हाँ, है।) एक लिहाज से यह मानवता का दोष है। दूसरे लिहाज से इस तरह का व्यक्ति सिर्फ कभी-कभार ही खुद को आगे धकेलने या अपना दिखावा करने का प्रयास नहीं करता है; बल्कि, क्योंकि वह महत्वाकांक्षा और इच्छा से संचालित होता है और रुतबा, शक्ति और अंतिम फैसला लेने वाला होना पसंद करता है, इसलिए वह सुर्खियाँ बटोरना पसंद करता है। तो क्या इसमें भ्रष्ट स्वभाव भी शामिल नहीं है? (हाँ, है।) यह किस तरह का भ्रष्ट स्वभाव है? (अहंकारी स्वभाव है।) यह अहंकार है। क्या चीज उन्हें सुर्खियाँ बटोरने का अधिकार देती है? क्या चीज उन्हें अंतिम फैसला लेने और दूसरों की अगुआई करने का अधिकार देती है? कुछ लोग कहते हैं, “मैं सत्य समझता हूँ और मुझमें दायित्व का बोध है।” भले ही तुममें दायित्व का बोध हो, फिर भी यह देखना जरूरी है कि क्या तुम वास्तविक कार्य कर सकते हो। यह मामला ऐसा नहीं है कि सिर्फ इसलिए कि तुममें दायित्व का बोध है और तुम इसे करना चाहते हो, तो तुम वास्तव में इसे अच्छी तरह से कर भी सकते हो। इन दोनों चीजों के बीच कोई तार्किक संबंध नहीं है। करने की चाह रखना और करना पसंद करने का मतलब यह नहीं है कि तुम इसे कर भी सकते हो या तुम अगुआई का कार्य में सक्षम हो। तुम्हें सुर्खियाँ बटोरना पसंद है, तुम्हें रुतबा पसंद है—क्या इसका मतलब यह है कि सभी को तुम्हें चुनना ही होगा? कलीसिया के अगुआओं को चुनने के सिद्धांत क्या हैं? (यह इस बात पर आधारित होना चाहिए कि क्या व्यक्ति में कार्यक्षमता है, क्या वह सत्य का अनुसरण करने वाला व्यक्ति है और क्या वह सही व्यक्ति है।) कम-से-कम, तुम्हें सही व्यक्ति तो होना ही चाहिए। तुममें आध्यात्मिक समझ होनी चाहिए, सत्य समझने की क्षमता होनी चाहिए और कार्यक्षमता भी होनी चाहिए। सिर्फ तभी तुम विकसित किए जाने की सभी शर्तें पूरा करते हो और विकास के लिए उम्मीदवार बनते हो। तुम्हें ये सभी शर्तें पूरी करनी होंगी। अगर तुम इनमें से कोई भी शर्त पूरी नहीं करते हो तो क्या हर कोई तुम्हें सिर्फ इसलिए अगुआ चुन लेगा क्योंकि तुम्हें सुर्खियाँ बटोरना पसंद है? ऐसा कभी नहीं होगा। इसलिए अगर तुम हमेशा सुर्खियाँ बटोरना पसंद करते हो, हमेशा अपना दिखावा करना पसंद करते हो तो क्या यह अहंकार नहीं है? (हाँ।) यह अहंकार है और खुद को ज्यादा आँकना है। मानवता के परिप्रेक्ष्य से, अहंकार विवेक की कमी है। अगर सत्य के अनुसार मापा जाए तो यह भ्रष्ट स्वभाव है और यह शैतानी स्वभाव है। सुर्खियाँ बटोरना पसंद करना मानवता का दोष और भ्रष्ट स्वभाव दोनों है जिसमें दो मुद्दे भी शामिल हैं। वैसे तो सुर्खियाँ बटोरने की चाह खराब या बुरी मानवता के स्तर तक नहीं पहुँचती है, इसके बावजूद यह विवेक की कमी की एक विशिष्ट अभिव्यक्ति है और साथ ही अहंकारी स्वभाव की भी अभिव्यक्ति है। अगर किसी व्यक्ति को सिर्फ सुर्खियाँ बटोरना ही पसंद है और वह लोगों का दमन नहीं करता है या उन्हें सताता नहीं है और वह फूट डालने या गुटबाजी करने के लिए कुकर्मियों के साधनों का उपयोग नहीं करता है तो यह उसकी मानवता का सिर्फ एक दोष है। लेकिन अगर वह कुकर्मियों या मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करता है और कुछ बुरे कर्म भी करता है तो मानवता का यह दोष और बिगड़ जाता है—यह क्या बन जाता है? खराब, भयानक और बुरी मानवता—इन पहलुओं का उपयोग ऐसी मानवता का निरूपण करने के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त, ऐसे लोगों द्वारा प्रकट किए जाने वाले भ्रष्ट स्वभावों की अभिव्यक्तियों में अहंकार और क्रूरता दोनों शामिल हैं; यकीनन ज्यादा विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ भी होती हैं। इसलिए, ऐसे लोगों की मानवता का इस आधार पर निरूपण किया जाना चाहिए कि वे किस हद तक इन भ्रष्ट स्वभावों को प्रकट करते हैं। अगर वे सिर्फ सुर्खियाँ बटोरना पसंद करते हैं और वे बुरी मानवता की अभिव्यक्तियाँ नहीं दिखाते हैं—लोगों का दमन नहीं करते हैं या उन्हें सताते नहीं हैं, गुट नहीं बनाते हैं और गुप्त रूप से स्वतंत्र राज्य स्थापित नहीं करते हैं या लोगों को गुमराह करने और उनसे आज्ञा मनवाने के लिए अपरंपरागत तरीकों का उपयोग नहीं करते हैं—तो यह सुर्खियाँ बटोरना पसंद करना सिर्फ मानवता का एक दोष है। लेकिन जैसे ही ऐसे बुरे कर्म कर लिए जाते हैं, तब यह बात सिर्फ मानवता का दोष नहीं रह जाती है। फिर यह किस तरह की समस्या बन जाती है? (यह खराब, भयानक और बुरी मानवता बन जाती है।) बिल्कुल। यह अब सिर्फ मानवता का दोष नहीं है, बल्कि बुरी मानवता है। सुर्खियाँ बटोरना पसंद करना सिर्फ मानवता का एक दोष है। अगर ऐसे व्यक्ति में आध्यात्मिक समझ, एक खास काबिलियत और कार्यक्षमता है तो क्या तुम उसे अपना अगुआ चुनोगे? (हाँ।) तुम उसे क्यों चुनोगे? (क्योंकि वह कुकर्मी नहीं है।) उसका सुर्खियाँ बटोरना पसंद करना उसके भ्रष्ट स्वभाव का प्रकाशन भर है। उसके सुर्खियाँ बटोरना पसंद करने में बुराई का कोई तत्व नहीं है और वह कुकर्मी नहीं है। जब तक वह अगुआ बनने की शर्तें पूरी करता है तब तक उसे चुना जा सकता है और आगे विकसित किया जा सकता है। वैसे तो सुर्खियाँ बटोरना पसंद करना मानवता में खराब विवेक की अभिव्यक्ति है, लेकिन यह देखते हुए कि वह कार्य कर सकता है, उसमें कार्यक्षमता है, आध्यात्मिक समझ है, सत्य बूझने की क्षमता है और इसके अलावा वह कुछ कार्य करने और पर्यवेक्षक बनने को तैयार है, उसे चुना जा सकता है। उसे क्यों चुना जा सकता है? क्योंकि उसकी मानवता मानक स्तर की है और उसकी काबिलियत भी। जब तक वह कुकर्मी या मसीह-विरोधी नहीं हैं, लोगों को नहीं सताएगा, उनका दमन नहीं करेगा और स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का प्रयास नहीं करेगा तब तक उसे अगुआ के रूप में चुना जा सकता है। लेकिन अगर सुर्खियाँ बटोरना पसंद करने में बुरी मानवता के तत्व शामिल हैं तो क्या ऐसे व्यक्ति को चुना जाना चाहिए? (नहीं।) अगुआ के रूप में चुने जाने से पहले ही वह कुटिल साधनों का उपयोग करना, गुप्त रूप से गुट बनाना और वोटों से छेड़छाड़ करना शुरू कर देता है। अपने लक्ष्य प्राप्त करने के लिए वह धूर्त चालें चलता है और यहाँ तक कि वह अफवाहें गढ़ने और ऐसे कुछ अच्छे लोगों के बारे में बुरी बातें करने में भी सक्षम होता है जो सत्य की तलाश में अपेक्षाकृत ईमानदार होते हैं और अपने कर्तव्य करते हैं। वह ऐसी बहुत-सी चीजें करता है जो सत्य और मानवीय नैतिक मूल्यों के खिलाफ हैं जिससे वह कुछ बुरे कर्म कर डालता है। क्या तुम लोग ऐसे व्यक्ति को अगुआ के रूप में चुन सकते हो? (नहीं।) क्यों नहीं? (क्योंकि उसकी मानवता बुरी है।) विशिष्ट रूप से कहें तो ऐसा इसलिए है क्योंकि वह कुकर्मी है; वह लोगों का उपयोग करने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांतों को पूरा नहीं करता है। परमेश्वर का घर कुकर्मियों का उपयोग नहीं करता है। अगर परमेश्वर के चुने हुए लोग कुकर्मियों के हाथों में पड़ जाएँ तो क्या नतीजे होंगे? एक बात तो यह है कि उन्हें सताया जाएगा और उनका दमन किया जाएगा। दूसरी बात यह है कि कलीसिया भुरभुरी रेत की तरह बिखर जाएगी और अव्यवस्थित हो जाएगी। ऐसे में तुम अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहे होगे, बल्कि कुकर्मियों की सेवा कर रहे होगे, कुकर्मियों द्वारा नियंत्रित किए जा रहे होगे और कुकर्मियों का अनुसरण कर रहे होगे। इसके क्या नतीजे होंगे? उद्धार प्राप्त करने की तुम्हारी उम्मीद तहस-नहस हो जाएगी। क्या अब तुम समझते हो? (हाँ।) तो अगर दो लोग सुर्खियाँ बटोरना पसंद करते हैं और दोनों के ही अहंकारी भ्रष्ट स्वभाव हैं तो तुम किस आधार पर किसी एक को अगुआ चुनोगे? (उनकी मानवता के आधार पर।) सही कहा, उनकी मानवता के आधार पर। अहंकार, धोखेबाजी और अड़ियलपन जैसे विभिन्न भ्रष्ट स्वभावों के प्रकाशन सार्वभौमिक हैं; इस लिहाज से सभी एक जैसे हैं। तो अंतर कहाँ निहित है? लोगों की मानवता में। ऊपर से कुछ लोग ज्यादा निरंकुश होते हैं, जबकि कुछ ज्यादा रूढ़िवादी होते हैं; कुछ अपेक्षाकृत भ्रमित और जल्दबाज होते हैं, जबकि दूसरे लोग अपेक्षाकृत चतुर और सावधान होते हैं। कुछ ज्यादा बहिर्मुखी और खुशमिजाज होते हैं, जबकि दूसरे लोग ज्यादा अंतर्मुखी होते हैं। लोगों के व्यक्तित्वों की बाहरी अभिव्यक्तियों में अंतर होता है और उनकी मानवता का सार भी निश्चित रूप से एक जैसा नहीं होता है। कुछ लोगों में जमीर और नैतिकता की सीमाएँ होती हैं, जबकि दूसरों में नहीं होतीं। कुछ लोग तो बुरे, निष्ठुर और क्रूर भी होते हैं—वे बिना किसी शिकन के मार डालते हैं और लोगों को निगल जाते हैं, हड्डियाँ वगैरह भी। वे कुछ भी करने में सक्षम हैं। इसलिए, कुकर्मियों के लिए दूसरों को तड़पाना कुछ भी नहीं है। अगर तुम लोग कुकर्मियों के हाथों में पड़ गए तो तुम्हारे अच्छे दिन समाप्त हो जाएँगे और उसके बाद से तुम अँधेरे में रहोगे। अगर कोई कुकर्मियों के हाथों में पड़ जाता है तो यह बड़े लाल अजगर के हाथों में पड़ने के समान है। क्या तुम लोगों ने इसका अनुभव किया है? (हाँ।) कुकर्मियों की मानवता के लिहाज से बुराई, क्रूरता, निष्ठुरता, नैतिक सीमाओं की गैर-मौजूदगी और जमीर के मानक नहीं होना उनकी सबसे प्रमुख और स्पष्ट अभिव्यक्तियाँ हैं। परमेश्वर के प्रति और सत्य के प्रति उनके रवैये को देखा जाए तो उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल बिल्कुल भी नहीं होता है। वे दुस्साहसी और अविचारी होते हैं, कुछ भी कर डालने की हिम्मत रखते हैं, उनके जमीर की कोई सीमा नहीं होती है। सत्य की बात करें तो, वे उसे रत्ती भर भी स्वीकार नहीं करते हैं। ऊपर तौर पर वे अपने कर्तव्यों में प्रयास कर सकते हैं और कष्ट सह सकते हैं और वे दान भी दे सकते हैं। लेकिन वे जिस तरीके से परमेश्वर और सत्य से पेश आते हैं उसमें उन्हें जरा-सा भी भय नहीं होता है। जब भी परमेश्वर की गवाही देने, देहधारी परमेश्वर की गवाही देने, परमेश्वर की पहचान और सार की गवाही देने, परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने या इस बात की गवाही देने की बात आती है कि परमेश्वर मानवजाति के लिए कैसे कीमत चुकाता है और परमेश्वर मानवजाति को बचाने के लिए कैसे अपने दिल के खून और अपने जीवन का उपयोग करता है तब उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं होता है और वे बोलना नहीं चाहते हैं। अपने दिलों में वे परमेश्वर का तिरस्कार करते हैं। लेकिन जब वे अपनी गवाही देते हैं तब उनके पास कहने के लिए बहुत कुछ होता है और वे लगातार बोले चले जाते हैं। सुर्खियाँ बटोरना पसंद करना मानवता का सिर्फ एक दोष है। अगर ऐसे लोग बुरे कर्म न करें और उनमें जमीर और नैतिकता की सीमाएँ हों तो वे आमतौर पर अपने जमीर की सीमाओं के अनुसार मामलों को माप सकते हैं, बशर्ते वे कुछ सत्य समझ सकें; उनका जमीर कार्य करता है। उदाहरण के लिए, अगर उन्हें अपनी पसंद का कोई विपरीत लिंग का व्यक्ति मिल जाता है और वे उसके पास जाना चाहते हैं तो क्योंकि उनकी मानवता में जमीर की सीमाएँ होती हैं और उनमें सत्यनिष्ठा और शर्म की भावना होती है, इसलिए वे प्राकृतिक रूप से खुद को रोक लेंगे। लेकिन कुकर्मी ऐसी चीजों की परवाह नहीं करते हैं। अगर उन्हें कोई पसंद आ जाता है तो वे जबरदस्ती उसके पास पहुँच जाएँगे; अगर दूसरा पक्ष सहमत नहीं हो तो वे उसे सताने, वश में करने या उसके लिए मुसीबत खड़ी करने के लिए सभी तरह के हथकंडे अपनाएँगे। जमीर की सीमाओं वाले लोग अपने जमीर से नियंत्रित होते हैं; ऐसे कुछ अपराध हैं जो वे नहीं करेंगे और ऐसी कुछ सीमारेखाएँ हैं जिन्हें वे नहीं लाँघेंगे क्योंकि उनमें सत्यनिष्ठा और शर्म की भावना होती है। अगर वे सत्य समझते हैं और उनके द्वारा उसकी स्वीकृति अपेक्षाकृत गहरी और मजबूत है तो उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल होगा। क्योंकि वे परमेश्वर से डरते हैं और उसका भय मानते हैं, इसलिए वे आमतौर पर कुछ सीमारेखाएँ नहीं लाँघेंगे। इसलिए, अगुआ के रूप में ऐसे किसी का होना जिसमें जमीर की सीमाएँ हैं तुम्हारे लिए बहुत फायदेमंद है। कम-से-कम वह तुम्हें चोट नहीं पहुँचाएगा, फिर तुम्हें रोकने या तुम्हें नुकसान पहुँचाने की तो बात ही छोड़ दो और वह तुम लोगों को कुछ भरण-पोषण और मदद भी दे सकता है। लेकिन कुकर्मी अलग होते हैं। वे तुम्हें गुमराह करने के लिए सिर्फ शब्दों का ही उपयोग नहीं करते हैं; वे तुम्हें सताने, तुम्हें दबाने और तुम्हें कुचल डालने के लिए विभिन्न विधियों का भी उपयोग करते हैं। अगर तुम उनकी आज्ञा नहीं मानते हो, उनकी बात नहीं सुनते हो या किसी चीज पर उनसे बहस करते हो तो वे न सिर्फ तुम पर हमला करेंगे, बल्कि तुम्हारी निंदा भी करेंगे, तुम्हें शर्मिंदा भी करेंगे और यहाँ तक कि तुम्हें वश में करने का प्रयास भी करेंगे। इस तरीके से तुम पूरी तरह से उनके हाथों में पड़ जाओगे। आम भ्रष्ट मनुष्यों और कुकर्मियों के बीच सबसे बड़ा अंतर इस बात में निहित है कि उनकी मानवता अच्छी है या बुरी और उनका जमीर कार्य करता है या नहीं। कुकर्मियों में कोई जमीर नहीं होता है, इसलिए उनमें सत्यनिष्ठा या शर्म की कोई भावना भी नहीं होती है और वे किसी भी तरह का बुरा कर्म करने में सक्षम होते हैं। जबकि आम भ्रष्ट मनुष्यों की मानवता में भी दोष और कमियाँ होती हैं, वे जमीर और विवेक द्वारा नियंत्रित होते हैं, इसलिए ऐसी कई तरह की सीमारेखाएँ हैं जिन्हें लाँघने में वे अक्षम होते हैं। भले ही वे परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते हों, फिर भी वे कुछ स्पष्ट बुरे कर्म नहीं करेंगे; उदाहरण के लिए, वे यौन अनैतिकता या चोरी जैसे क्रियाकलाप करने में अक्षम हैं। इस बारे में सोचो : परमेश्वर में विश्वास रखने से पहले जब तुम दुनिया में थे तब अगर कोई तुम्हें व्यभिचार करने कि अनुमति देता तो क्या तुम कर सकते थे? व्यभिचार का क्या मतलब है? इसका मतलब है गलती या आत्म-गलानि का कोई बोध महसूस किए बिना एक से ज्यादा यौन साथी होना, यहाँ तक कि एक ही समय में विपरीत लिंग के कई लोगों के साथ रिश्ते में होना। क्या तुम लोग ऐसी चीज कर सकते हो? (नहीं।) उन व्यभिचारी महिलाओं, वेश्याओं और लम्पटों को देखो—वे ऐसा कर सकते हैं। क्या तुम लोग इन लोगों से अलग नहीं हो? (हाँ।) अंतर कहाँ निहित है? यह इस बात में निहित है कि व्यक्ति में मानवता का जमीर और विवेक है या नहीं। जमीर और विवेक तुम्हें सत्यनिष्ठा और शर्म की भावना देते हैं, इसलिए तुम व्यभिचार के क्रियाकलाप नहीं करोगे और तम्हारा एक मानक होगा : “उस तरीके से आचरण करना अच्छा नहीं है; मैं उस तरह का व्यक्ति नहीं बनूँगा। मैं अपने और उन लोगों के बीच एक स्पष्ट रेखा खींचूँगा। अगर मुझे पीट-पीटकर मार डाला जाए तो भी मैं व्यभिचार नहीं करूँगा।” अगर कुछ लोगों को ऐसी स्थिति में बेच दिया जाए तो वे कहेंगे, “मैं उस तरह का व्यक्ति बनने के बजाय मरना पसंद करूँगा!” कुछ लोग अपमान और अन्याय सहते हैं, अनिच्छा से इसे मान लेते हैं, लेकिन वे अपने दिल में अनिच्छुक होते हैं और स्थिति से बाहर निकलने के किसी भी अवसर को पकड़ लेंगे। हालाँकि, कुछ लोग खुद ही उस तरह की व्यवस्था की तलाश करेंगे, भले ही दूसरे उन्हें रोकने का प्रयास करें। वे ऐसा करते हैं भले ही वे उससे कोई पैसा न कमाएँ—उन्हें बस व्यभिचार करने में आनंद आता है और उन्हें इस बात की बिल्कुल परवाह नहीं होती है कि यह फायदेमंद है या नहीं। क्या ये दोनों प्रकार के लोग अलग नहीं हैं? (हाँ।) लोगों की मानवता में ठीक यही अंतर है। मानवता में अंतर महत्वपूर्ण है। अगर तुम लोग विभिन्न प्रकार के लोगों में मानवता की अभिव्यक्तियों में अंतरों की असलियत देख सकते हो तो तुम लोग लोगों का भेद पहचान पाओगे। इसलिए, किसी व्यक्ति का मूल्यांकन करना पूरी तरह से उसके भ्रष्ट स्वभाव पर या थोड़े समय के लिए या एक घटना में उसकी अभिव्यक्तियों और प्रकाशनों पर आधारित नहीं किया जा सकता है। बल्कि, वह सही मायने में किस तरह का व्यक्ति है, इसका मूल्यांकन उसकी मानवता और उसके प्रकृति सार के आधार पर किया जाना चाहिए। इसके साथ ही सुर्खियाँ बटोरना पसंद करने की अभिव्यक्ति पर हमारी चर्चा यहीं समाप्त होती है।

चलो, हम दूसरी अभिव्यक्ति पर चलें। कुछ लोग चीजों को सुव्यवस्थित ढंग से, दिमागी रूपरेखा के साथ और क्रमबद्ध तरीके से करते हैं; वे विचार और मनन के जरिए यह तय कर सकते हैं कि पहले क्या करना है और बाद में क्या करना है। वे चरणों का पालन करते हैं और चीजें बेतहाशा ढंग से करने के बजाय उनके पास योजनाएँ होती हैं। चाहे वे कुछ भी करें, वे चरणों का पालन करते हैं, यहाँ तक कि कपड़े धोने जैसे सबसे आसान काम के लिए भी। वे कपड़ों को रंग के अनुसार अलग करते हैं, गहरे और हल्के रंग की चीजों को अलग-अलग धोते हैं; वे जानते हैं कि कपड़ों की संख्या के आधार पर कितने पानी और कितने डिटर्जेंट का उपयोग करना है और वे बरबादी से बचते हैं—यह सब कुछ योजनाबद्ध, बहुत व्यवस्थित, सूक्ष्म और किफायती होता है। यह किस प्रकार की अभिव्यक्ति है? (यह मानवता का गुण और मजबूत पक्ष है।) तो क्या यह गुण यह दर्शा सकता है कि इस प्रकार के व्यक्ति में अच्छी मानवता है? (नहीं।) यह उसकी मानवता का सिर्फ एक गुण और मजबूत पक्ष है। यह किसी के चरित्र या आचरण के सिद्धांतों को शामिल करने के स्तर तक नहीं पहुँचता है और न ही इसमें कोई भ्रष्ट स्वभाव शामिल है। यह बस जीवन की एक आदत या जीवन के प्रति एक रवैया है। कुछ लोग चीजों को दिमागी रूपरेखा के साथ, योजना के साथ करते हैं; वे पैटर्न को अच्छी तरह से समझ सकते हैं और जब काम पूरा हो जाता है तब दूसरे लोगों को यह संतोषजनक लगता है। ये अच्छी काबिलियत वाले लोग हैं। लेकिन खराब काबिलियत वाले लोगों के लिए यह अलग है—वे हर चीज उल्टे-पुल्टे और अव्यवस्थित ढंग से, बिना किसी दिमागी रूपरेखा या योजना के, पूरी तरह से बेतरतीब ढंग से करते हैं जो अंत में एकदम गड़बड़झाला हो जाता है। यह किस तरह की समस्या है? (मानवता का दोष है।) मानवता के इस दोष में क्या शामिल है? (अत्यंत खराब काबिलियत।) अत्यंत खराब काबिलियत वाले ऐसे लोगों को बस निर्बुद्धि कहा जाता है। जब मैं कुछ लोगों से कहता हूँ, “क्या तुम बेवकूफ हो? तुम इतनी सरल-सी चीज कैसे नहीं समझ सकते?” तब वे जवाब में कहते हैं, “मैं निर्बुद्धि हूँ।” “निर्बुद्धि” होने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कोई काबिलियत नहीं होना या खराब काबिलियत होना—यह काबिलियत की समस्या है। यह मुद्दा किसके तहत आता है? क्या यह जन्मजात स्थिति नहीं है? (हाँ।) अगर कोई जन्मजात रूप से निर्बुद्धि है तो क्या उसे प्रशिक्षित करने का कोई मतलब है? ऐसे लोग हर चीज को बिना योजना या दिमागी रूपरेखा के करते हैं। एक आसान कार्य में उनका पूरा दिन लग जाता है जिससे महत्वपूर्ण मामलों में देरी हो जाती है। यह कोई काबिलियत नहीं होना या खराब काबिलियत होना है। अविश्वासी लोग बुरी मानवता वाले लोगों का अक्सर बिना काबिलियत वालों के रूप में वर्णन करते हैं। उदाहरण के लिए, जब कोई किसी दूसरे व्यक्ति को कूड़ा फैलाते, अस्वच्छ रहते या सबके सामने जोर-जोर से चीखते-चिल्लाते, पढ़ाई कर रहे या आराम कर रहे लोगों को तंग करते देखता है तब वह कह सकता है कि उस व्यक्ति में कोई काबिलियत नहीं है। मेरी नजर में यह व्यवहार संबंधी कायदों को नहीं समझना और मानवता की कमी है—इसे काबिलियत नहीं होना कैसे कहा जा सकता है? क्या “काबिलियत नहीं होना” का यही मतलब है? “काबिलियत” का क्या मतलब है? इसका मतलब चीजों को करने में कुशलता और कारगरता है—इसे काबिलियत कहते हैं। तो क्या जो लोग बिना किसी दिमागी रूपरेखा के कार्य करते हैं, वे खराब काबिलियत वाले होते हैं? (हाँ।) यह भी मानवता का दोष है। क्या यह दोष जन्मजात है? क्या इसे बदलना आसान है? क्या इसे प्रशिक्षण के जरिए बदला जा सकता है? क्या सुअर को पेड़ पर चढ़ने के लिए मजबूर किया जा सकता है? सुअर इसके लिए नहीं बना है—उसमें यह काबिलियत नहीं होती है। चीजें करने में दिमागी रूपरेखा की कमी होना काबिलियत की समस्या है।

चीजों को जोरदार तरीके से शुरू करना लेकिन कमजोर तरीके से समाप्त करना—यह किस तरह के मुद्दे के तहत आता है? (व्यक्ति की मानवता का दोष है।) यह व्यक्ति की मानवता का दोष है। कुछ लोग किसी उपक्रम को शुरू करते समय उसके लिए अच्छी तरह से योजना बनाते हैं, कुछ बड़े कदम उठाते हैं, लोगों को इकट्ठा करते हैं, रिपोर्ट बनाते हैं, काम सौंपते हैं और यहाँ तक कि संकल्प के बड़े-बड़े बयान भी देते हैं, लेकिन जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते हैं, यह सब कुछ लुप्त हो जाता है और वे इस बारे में अनुवर्ती कार्रवाई, पर्यवेक्षण या निरीक्षण नहीं करते हैं कि क्या चल रहा है। अगर सत्य समझने वाला कोई व्यक्ति पर्यवेक्षण और मार्गदर्शन देने के लिए न हो तो उपक्रम धीरे-धीरे पूरी तरह से ठप हो सकता है या यहाँ तक कि अनचाहे नतीजे भी उत्पन्न हो सकते हैं जिससे कार्य पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो सकता है। ऐसे भी कुछ लोग हैं जो धर्म-सिद्धांतों को बहुत सुबोध और स्पष्ट रूप से बता सकते हैं, लेकिन जब वास्तव में चीजें करने की बात आती है तब उन्हें पता नहीं होता है कि आगे कैसे बढ़ना है और न ही उनके पास कोई ठोस योजना होती है। जब विशेष हालात या अप्रत्याशित स्थितियाँ प्रकट होती हैं तब उन्हें पता नहीं होता है कि उन्हें कैसे सँभालना है, वे न तो दूसरों के साथ संगति करते हैं और न ही अपने से ऊपर के लोगों से मदद माँगते हैं या सलाह लेते हैं। जब वे कोई चीज करना शुरू करते हैं तब वे आत्मविश्वासी लगते हैं, और ऐसी शानदार शुरुआत करते हैं मानो वे कोई महत्वपूर्ण चीज पूरी करने वाले हों, लेकिन जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते हैं, वे उत्साह खो देते हैं और भाग खड़े होते हैं—वे ऐसे गायब हो जाते हैं मानो गधे के सिर से सींग। जब कोई उनसे पूछता है, “अब तुम किस पर कार्य कर रहे हो? वह काम कैसा चल रहा है?” तब वे उत्तर देते हैं, “वह पूरा नहीं होने वाला है।” फिर भी वे समय पर यह रिपोर्ट करने में विफल रहते हैं कि वे चीजें पूरा नहीं करवा सकते हैं, इससे चीजें बिना किसी नतीजे के दो-तीन महीनों के लिए रुक जाती हैं। क्या यह गुस्सा दिलाने वाली बात नहीं है? (हाँ, है।) ऐसे लोग सच में घिनौने होते हैं! इस तरह के लोगों की चीजों को जोरदार तरीके से शुरू करना लेकिन कमजोर तरीके से समाप्त करने के अलावा एक और समस्या होती है : वे जो कुछ भी करते हैं उसे जितना ज्यादा करते हैं वह उत्तरोत्तर उतना ही ज्यादा अव्यवस्थित होता जाता है। हो सकता है कि शुरू में उनके पास कुछ दिमागी रूपरेखा, कुछ विचार और थोड़ी संरचना होती हो, लेकिन जैसे-जैसे वे जारी रखते हैं, उनके विचार उलझते जाते हैं। वे भूल जाते हैं कि उन्होंने काम क्यों शुरू किया था या उन्हें क्या नतीजे हासिल करने थे। जब कोई उन्हें कुछ तलाश करने की सलाह देता है तब वे कहते हैं, “कुछ भी तलाश करने की जरूरत नहीं है। चलो, इसे इसी तरीके से करते रहें—बहरहाल, कोई भी बेकार नहीं बैठा है।” देखो, ये लोग बिजली की गड़गड़ाहट की तरह तेज रफ्तार से चीजें करना शुरू करते हैं। लेकिन जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते हैं, चीजें धीरे-धीरे मंद पड़कर पूरी बंद हो जाती हैं। यह सब बस गड़गड़ाहट है, बारिश बिल्कुल नहीं—कोई नतीजा नहीं निकलता है। अगर तुम काम के बारे में नहीं पूछते हो, उस पर अनुवर्ती कार्रवाई नहीं करते हो या उसका निरीक्षण नहीं करते हो तो वे इसे पूरा हुए बिना ही धीरे-धीरे ठप हो जाने देंगे, इसकी एक रिपोर्ट तक नहीं देंगे। शुरुआत में उन्होंने जो संकल्प व्यक्त किया था, वह कहाँ चला गया? उसे भुला दिया गया है। उन्होंने जो शुरुआती योजना लिखी थी, उसका क्या हुआ? उसका तो कोई नामोनिशान भी नहीं बचा है। और उन विचारों का क्या हुआ जो शुरू में उनके पास थे? वे नदारद हो गए हैं; उन्हें भुला दिया गया है। वे बस इसी किस्म के प्राणी हैं! जब तुम इस प्रकार के व्यक्ति का शुरुआती उत्साह देखते हो तब वह तुम्हें वास्तविक कर्मठ व्यक्ति लगता है। लेकिन असल में वह सरासर निकम्मा है; वह चीजों को व्यावहारिक ढंग से करने वाला व्यक्ति है ही नहीं; वह अधीर व्यक्ति है। वह सिर्फ सुर्खियाँ बटोरने का इच्छुक है, लेकिन वह कष्ट नहीं सहना चाहता और जिम्मेदारी लेने से डरता है। वह जो कुछ भी करता है, वह अधूरा रह जाता है। ऐसे लोगों में किस तरह की मानवता होती है? (खराब मानवता।) मुझे बताओ, क्या इस तरह का व्यक्ति कुछ पूरा कर सकता है? (नहीं।) वह हमेशा जोरदार शुरुआत करता है, लेकिन अंत में कमजोर पड़ जाता है, और पूरी गड़बड़ के साथ समाप्त करता है—यही उसकी शैली है। चाहे वह कोई भी कर्तव्य कर रहा हो, वह काफी उत्साहपूर्वक, संगीत सुनते हुए और गुनगुनाते हुए शुरुआत करता है। लेकिन कुछ समय बाद वह दिलचस्पी खो देता है और बस कार्य को रोक देता है और छोड़कर चला जाता है। वह किस किस्म का प्राणी है? क्या ऐसे लोग घिनौने नहीं होते हैं? (हाँ।) वे बेतहाशा ऐसे काम हाथ में लेते हैं जिनके बारे में वे जानते हैं कि शायद वे उन्हें पूरा करने में सक्षम न हों, वे अपनी योग्यता प्रदर्शित करने, शेखी बघारने और बड़े-बड़े दावे करने का प्रयास करते हैं—क्या उन्हें अपनी क्षमताएँ नहीं पता हैं? अगर वे काम नहीं कर सकते या नतीजे नहीं दे सकते तो वे सीधे-सीधे क्यों नहीं कह देते? उन्हें चीजों में देरी नहीं करनी चाहिए! इसके बजाय वे चुप रहते हैं, तुम्हें धोखा देने का प्रयास करते हुए तुम्हारे कार्य को रोककर रखते हैं। क्या वे नीच चरित्र वाले नहीं हैं? (हाँ।) उनका चरित्र बहुत ही ज्यादा नीच है! क्या ऐसे लोगों को चीजें सँभालने का काम सौंपा जा सकता है? (नहीं।) क्या वे भरोसे के लायक हैं? (नहीं।) ऐसे लोग गैर-भरोसेमंद होते हैं। अगर वे तुम्हें जबान दें तो क्या तुम उन पर विश्वास करने की हिम्मत करोगे? (नहीं।) ये किस तरह के लोग हैं? क्या वे धोखेबाज नहीं हैं? (हाँ।) वैसे तो वे तुम्हें आर्थिक फायदे या यौन प्रयोजनों के लिए धोखा नहीं देते हैं, लेकिन उनका आचरण करने और चीजों को सँभालने का तरीका बहुत ही घिनौना और घृणास्पद होता है। तो इन लोगों के इतने घृणास्पद होने का मूल कारण क्या है? वे नीच चरित्र के होते हैं, अपने आचरण में अपनी जगह पर नहीं रहते हैं, डींगें हाँकना पसंद करते हैं, उस योग्यता का प्रदर्शन करना पसंद करते हैं जो उन्हें लगता है कि उनमें है, सुर्खियाँ बटोरना पसंद करते हैं और अपना दिखावा करना पसंद करते हैं। वे जो भी करते हैं उस पर कभी बने नहीं रहते हैं। साथ ही, वे खुद को ज्यादा आँकते हैं और अपने आध्यात्मिक कद और इस बात से बेखबर होते हैं कि वे किस तरह के काम सँभाल सकते हैं। फिर भी वे अपनी योग्यता प्रदर्शित करने का प्रयास करते हैं और बेधड़क कोई भी महत्वपूर्ण कार्य हाथ में ले लेते हैं। कार्य लेने के बाद भले ही वे उसे अच्छी तरह से न करें और बड़े मामलों में देरी करें, तो भी वे उदासीन रहते हैं; जब तक वे सुर्ख़ियों में रहते हैं तब तक उनके लिए सब कुछ ठीक है। क्या वे घटिया, नीच लोग नहीं हैं? (हाँ।) तो फिर क्या इन लोगों में बहुत ही खराब मानवता नहीं होती है? (हाँ।) अगर तुम लोगों का सामना ऐसे व्यक्ति से होता है तो क्या तुम उसे बड़ी या महत्वपूर्ण चीजें सौंपने का साहस करोगे? (नहीं।) उदाहरण के लिए, अगर तुम्हें सुसमाचार का प्रचार करने के लिए बाहर जाना पड़ता है और तुम्हें अपने छोटे बच्चे का ध्यान रखने के लिए किसी की जरूरत है तो तुम्हें मदद करने के लिए किस तरह का व्यक्ति ढूँढ़ना चाहिए? क्या तुम ऐसे किसी व्यक्ति को चुनने की हिम्मत करोगे जिसे जिम्मेदारी का कोई बोध नहीं है, जो काम पूरा होने तक डटे नहीं रह सकता है और जो गैर-भरोसेमंद है? (नहीं।) क्यों नहीं? क्योंकि हो सकता है कि वह तुम्हारा बच्चा खो दे। अगर तुम उससे पूछते हो कि तुम्हारा बच्चा कैसे खो गया तो वह कहेगा, “मुझे नहीं पता। मुझे तो बस एक पल के लिए झपकी आ गई थी और बच्चा कहीं चला गया। तुम इसके लिए मुझे दोषी कैसे ठहरा सकते हो? बच्चे के पैर हैं और वह खुद चल-फिर सकता है—वह मुझसे बँधा हुआ तो नहीं था। तुम मुझे दोष नहीं दे सकते!” यहाँ तक कि वह जवाबदेही से भी जी चुराता है! क्या यह कोई बेशर्म बदमाश नहीं है? (हाँ।) जीवन-मरण के मामले ऐसे लोगों को बिल्कुल भी नहीं सौंपे जा सकते हैं। वे अपने आचरण में अधीर होते हैं और उनमें कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती है। जब समस्याएँ आती हैं तब उनमें बेशर्मी का सहारा लेने और चीजों को नकारने की धृष्टता होती है। वैसे तो चीजों को जोरदार तरीके से शुरू करना लेकिन कमजोर तरीके से समाप्त करना मानवता का सिर्फ एक दोष है, लेकिन यह विशेष दोष एक अत्यंत गंभीर मुद्दा है—यह सत्यनिष्ठा का मुद्दा है। कुछ लोग सुर्खियाँ बटोरना पसंद करते हैं और कामों को तत्परता से हाथ में ले लेते हैं, लेकिन वे जवाबदेही लेने की हिम्मत नहीं करते हैं। जैसे ही उनके सामने मुश्किलें आती हैं, वे तुरंत जवाबदेही से बच निकलते हैं और स्थिति से अपनी दूरी बना लेते हैं। वे पूरी तरह से गैर-जिम्मेदार होते हैं। वे विशेष रूप से अधीर भी होते हैं और जो भी करते हैं उस पर बने नहीं रह सकते हैं! जब हालात इस कदर बुरे हो जाते हैं तब यह मानवता का सिर्फ एक दोष नहीं रह जाता है—यह वास्तव में नीच चरित्र और खराब मानवता होने का मामला है। मैं क्यों कहता हूँ कि ऐसे लोगों की मानवता खराब होती है? वह इसलिए क्योंकि वे गैर-भरोसेमंद होते हैं—तुम उन्हें कोई भी चीज सौंपने की हिम्मत नहीं करोगे। तुम चाहे उन्हें कोई भी काम सौंप दो, वे आसानी से मान जाते हैं, लेकिन जैसे ही तुम पीछे मुड़ते हो, वे गायब हो जाते हैं और तुम्हें बिल्कुल नहीं पता होता कि वे क्या गुल खिला रहे हैं। हो सकता है कि कई दिन बीत जाने के बाद ही वे तुम्हें फिर से दिखाई दें। अगर तुम उनसे यह नहीं पूछते हो कि काम कैसे प्रगति कर रहा है तो वे तुम्हें वापस कोई रिपोर्ट नहीं देंगे, मानो कुछ हुआ ही न हो। वे किस किस्म के प्राणी हैं? वे सरासर गैर-जिम्मेदार लोग हैं! वे परीक्षा में भी असफल हो जाते हैं और ऐसी किसी छोटी-मोटी बात के लिए भी उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। तुम्हें क्या लगता है कि वे संभवतः और क्या पूरा कर सकते हैं? (कुछ भी नहीं।) अगर तुम उन्हें किसी बच्चे का ध्यान रखने का काम सौंपते हो तो समस्याएँ किसी भी पल खड़ी हो सकती हैं। हो सकता है कि बच्चा गिर जाए और उसे चोट लग जाए, वह कुछ ऐसा खा ले जो उसे नहीं खाना चाहिए या हो सकता है कि बाहर खेलने जाते समय वह भटक जाए या बुरे लोग उसका अपहरण कर लें—ये सभी संभावित परिणाम हैं। क्योंकि वे गैर-जिम्मेदार और अत्यंत नीच चरित्र के होते हैं और वे जो भी करते हैं उसमें जमीर की किसी सीमा का पालन नहीं करते हैं और सिर्फ अपनी स्वार्थी इच्छाएँ पूरी करने के लिए कार्य करते हैं और बाकी सब कुछ अनदेखा कर देते हैं। जब तुम उन्हें कोई काम सौंपते हो तब उन्हें लगता है कि मना करने से उनकी नाक कट सकती है; अपने अभिमान और घमंड को ध्यान में रखते हुए वे मान तो जाते हैं, लेकिन बाद में वे किसी भी तरह की कोई जवाबदेही नहीं लेते हैं। वे डींगें हाँकते हैं जबकि काम अच्छी तरह से पूरा करने में विफल हो जाते हैं। गैर-भरोसेमंद होने का यही मतलब है। क्या ऐसे लोग अच्छे होते हैं? (नहीं।) क्या ऐसे लोग जो चीजों को जोरदार तरीके से शुरू करते हैं लेकिन कमजोर तरीके से समाप्त करते हैं को अगुआ के रूप में चुना जा सकता है? (नहीं।) क्यों नहीं? (क्योंकि वे परमेश्वर के घर के कार्य को नुकसान पहुँचा सकते हैं।) बिल्कुल। जब वे बोलते हैं और वादे करते हैं तब ऐसा लगता है कि उनमें वह सब कुछ करने का दम है और लोग उन लोगों पर भरोसा करने को तैयार होते हैं जो डींगें हाँक सकते हैं। लेकिन जब वास्तव में चीजें करने की बात आती है तब उनके क्रियाकलापों का कोई निश्चित पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता। अगर वे गड़बड़ कर देते हैं तो भी वे तुम्हें इसकी सूचना नहीं देंगे; और अगर कोई समस्या खड़ी हो जाती है तो वे तुम्हें इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं देंगे कि क्या हुआ। तुम बेसब्री से उम्मीद करते हो कि वे चीजें अच्छी तरह से सँभाल लेंगे, लेकिन वे अंत में इसे गड़बड़ कर देते हैं और इस बारे में पूरी तरह से उदासीन भी होते हैं, और तुमने उन्हें जो काम सौंपा था उसे गंभीर मामले के रूप में बिल्कुल नहीं लेते हैं। अपने क्रियाकलापों में उनका अधीर रहने के प्रति झुकाव रहता है। उनमें से कुछ लोग तो पूरी तरह से अपनी रुचि, शौक और जिज्ञासा के आधार पर कार्य करते हैं; उनमें से कुछ लोग ध्यान आकर्षित करना पसंद करते हैं और सिर्फ ध्यान आकर्षित करने और दिखाई देने के लिए ही चीजें करते हैं। ऐसे लोग अधीर और गैर-जिम्मेदार होते हैं और वे व्यावहारिक ढंग से चीजें करने में अक्षम होते हैं। यह काफी परेशान करने वाली बात है। इसमें अभी तक इस बात का जिक्र नहीं किया है कि क्या उनमें आध्यात्मिक समझ है, क्या वे सत्य स्वीकार सकते हैं, क्या वे आज्ञाकारी होते हैं या क्या वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग होते हैं—इसमें अभी तक इन पहलुओं का जिक्र नहीं किया है। पूरी तरह से उनकी मानवता के लिहाज से ऐसे लोग गैर-भरोसेमंद होते हैं। क्या ऐसे लोगों को अगुआओं के रूप में चुना जा सकता है? (नहीं।) जिन लोगों की मानवता मानक स्तर की नहीं है वे विकास तक के लिए योग्य नहीं हैं। क्यों नहीं? क्योंकि उनका चरित्र बहुत ही ज्यादा निम्न होता है—उनमें मूलभूत सत्यनिष्ठा और गरिमा तक की कमी होती है। इसलिए वे न तो अगुआ बनने के योग्य होते हैं और न ही अगुआ के रूप में विकसित किए जाने के योग्य होते हैं।

चलो, अब हम चीजें करने में सतर्क रहने पर चर्चा करें। यह किस तरह की अभिव्यक्ति है? (यह मानवता का गुण है।) चीजें करने में सतर्क रहना, अविचारी नहीं होना और जब मामले उत्पन्न हों तब उनसे शांति से पेश आना और सत्य की तलाश करना—यह मानवता का गुण है। इस बुरे समाज में जटिल पृष्ठभूमि वाले लोगों के विभिन्न समूहों के बीच तुम्हें विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों के आविर्भाव के प्रति सतर्क रहने की जरूरत है। यहाँ तक कि जब तुम परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य कर रहे होते हो तब भी तुम्हारे सामने आने वाली विभिन्न चीजों के बीच कुछ जटिल परिस्थितियाँ होती हैं और तुम्हें उनसे सतर्कता से पेश आना चाहिए। उदाहरण के लिए, अपना कर्तव्य करते समय जब तुम्हारा सामना विघ्न डालने वाले कुकर्मियों से होता है तब तुम्हें सबसे पहले भेद पहचानना सीखना चाहिए और फिर सत्य सिद्धांतों के अनुसार स्थिति से पेश आना चाहिए। अपने कर्तव्य के प्रति तुम्हें यही रवैया रखना चाहिए। चीजें करने में सतर्क रहने में क्या शामिल है? इसमें व्यक्ति का विवेक शामिल है। जब तुम्हारे सामने ऐसे मामले आते हैं जिनकी तुम असलियत नहीं देख सकते हो तब तुम्हें सतर्क रहने की जरूरत है। अगर तुम कुछ सत्य समझते भी हो तो भी जब तुम कुछ विशेष मामलों का अंतर्निहित सार और मूल कारण नहीं समझ सकते हो तब क्या तुम्हें सतर्क रहने की जरूरत है? (हाँ।) ऐसी स्थितियों में तो तुमसे सतर्क रहने की और भी ज्यादा अपेक्षा की जाती है। सतर्क रहना रूढ़िवादी होना या छोटे कदम उठाना नहीं है और न ही यह कार्य करने की हिम्मत नहीं करना या जिम्मेदारी लेने से डरना है—इसका मतलब ये चीजें नहीं हैं। यहाँ जिस सतर्कता की बात की गई है, उसका मतलब मानवता का एक गुण है। सतर्कता की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? यह तब है जब कोई चीज करते समय तुम पहले सत्य सिद्धांतों की तलाश करते हो और फिर उस काम या उस कार्य के लिए अभ्यास के विशिष्ट चरणों, अभ्यास के विशिष्ट मार्ग और इच्छित परिणामों की तलाश करते हो। यानी तुम एक सावधान और सतर्क दिल के साथ महत्वपूर्ण मामलों और अपने खुद के कर्तव्य से पेश आते हो। यकीनन कुछ लोग तब भी विशेष रूप से सतर्क रहते हैं जब वे उन विभिन्न मुद्दों से पेश आते हैं जो उनके दैनिक जीवन में उनके सामने आते हैं; वे लापरवाह नहीं बल्कि बेहद सतर्क हैं। यह कोई बुरी चीज नहीं है; इसे मानवता का गुण भी कहा जा सकता है, उसकी त्रुटि नहीं। सतर्कता को मानवता का गुण कहा जा सकता है; सतर्क रवैया रखने से लोगों को सिर्फ लाभ ही होता है और इससे लोग बिल्कुल किसी भी तरीके से न तो बाधित होंगे और न बँधेंगे। अगर किसी मामले के उत्पन्न होने पर तुम बोलने की हिम्मत नहीं करते हो, अगर तुम कुछ भी करने या किसी से मेलजोल रखने की हिम्मत नहीं करते हो—अगर तुम्हें किसी गिरते हुए पत्ते के तुम्हारे सिर से टकरा जाने का डर है—तो यह अत्यधिक सतर्कता है। हर समय अपनी ही छोटी-सी दुनिया में रहना, अपने दिन बहुत ही ज्यादा चौकस ढंग से गुजारना—क्या यही सतर्कता है? (नहीं।) इस बात से डरना कि अगर तुम खरीदारी करने गए तो तुम्हें ठग लिया जाएगा, इस बात से डरना कि अगर तुमने कोई दुकान खोली तो तुम पैसे गँवा बैठोगे, इस बात से डरना कि अगर तुमने घर खरीदा तो अंततः वह कलंकित संपत्ति बन जाएगी, इस बात से डरना कि अगर तुमने कंप्यूटर खरीदा तो उसमें वायरस होंगे—अत्यधिक भय से इतना ज्यादा बँधे रहना कि तुम कुछ भी करने की हिम्मत न करो और तुम्हें एक कदम उठाना भी मुश्किल लगे—ये निश्चित रूप से उस तरह की सतर्कता की अभिव्यक्तियाँ नहीं हैं जिसकी हम यहाँ बात कर रहे हैं। ये अभिव्यक्तियाँ बताती हैं कि व्यक्ति जाहिल, निकम्मा, दब्बू, अपरिपक्व और स्वतंत्र रूप से जीने की क्षमता से रहित है। ये खराब काबिलियत की अभिव्यक्तियाँ हैं। यानी जब ऐसे व्यक्तियों का सामना इस बुरे समाज और लोगों के जटिल समूहों से होता है तब उनके पास किसी भी तरह का कोई भी जवाबी उपाय नहीं होता है। वे हमेशा चिंतित, भयभीत और इतने डरे-डरे रहते हैं कि सहमकर पीछे हट जाते हैं और आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं करते हैं। या तो उन्हें ठगे जाने और धोखा दिए जाने का डर होता है या उन्हें नुकसान पहुँचाए जाने या कत्ल किए जाने का डर होता है। वे किसी से मेलजोल रखने या कोई भी मामला सँभालने की हिम्मत नहीं करते हैं। जब वे कार्य करने जाते हैं तब उन्हें डर रहता है कि उन्हें उनकी मजदूरी का भुगतान नहीं किया जाएगा। कुछ महिलाएँ बुरा सलूक किए जाने के डर से नौकरी करने तक की हिम्मत नहीं करती हैं। कुछ लोग तो घर से बाहर निकलने तक की हिम्मत नहीं करते हैं, वे डरते हैं कि उनका सामना बुरे लोगों से हो जाएगा और वे डरते हैं कि अगर वे चीजें खरीदेंगे तो वे उनसे लूट ली जाएँगी। संक्षेप में, वे हर चीज से डरते हैं। क्या यह अत्यधिक सतर्क होना नहीं है? यह अत्यधिक चौकस होना है। क्या वे पागल नहीं हैं? कुछ लोगों की इस तरह की मानसिकता होती है, वे दिन भर किसी न किसी बात की चिंता करते रहते हैं और नतीजा यह होता है कि वे कोई भी मामला सँभालने या लोगों से मिलने के लिए बाहर जाने की हिम्मत नहीं करते हैं और वे सिर्फ घर पर ही रह सकते हैं। वे किस तरह के व्यक्ति हैं? (पागल हैं।) वे पागल हैं; वे असामान्य हैं, वे गैर-मनुष्य हैं। निर्णय लेने की क्षमता की कमी होना, वे जो भी करते हैं उसमें कोई सिद्धांत या न्यूनतम मानक नहीं रखना, इस तरह के लोग पुनर्जन्म लिए हुए दरिंदे हैं, उनमें सामान्य मानवता नहीं होती है और उनका अत्यधिक चौकस रहना सतर्कता नहीं है। सतर्कता का क्या मतलब है? सतर्कता का मतलब है चीजों को नपे-तुले, व्यवस्थित और नियमों का पालन करने वाले ढंग से करना और इसी सिद्धांत के आधार पर काफी सख्ती से कार्य करना और जब चीजें हों तब शांत रहना, जल्दबाज, बेतहाशा या आवेगशील न होना और सत्य सिद्धांतों की तलाश करने और बुद्धिमानी भरे तरीके तलाश करने में समर्थ होना। इसे ही सतर्कता कहते हैं और सिर्फ यही सतर्कता मानवता का गुण है।

डींगें हाँकना और शेखी बघारना पसंद करना—ऐसे लोग बहुत हैं। यह भी बुरे समाज का चलन है। बहुत-से लोग बढ़ा-चढ़ाकर बोलते हैं, बिना सोचे-समझे मनगढ़ंत बातें बनाते हैं और लगातार ऊँची आवाज में बेसिरपैर की बातें करते रहते हैं। वे जो कहते हैं वह तथ्यों के बिल्कुल अनुरूप नहीं होता है और वे बहुत ज्यादा हवा-हवाई बातें करते हैं। वे अभी भी खुद को सक्षम मानते हैं, उनमें सत्यनिष्ठा और शर्म की कोई भावना नहीं होती है। क्या ऐसे लोग भरोसे के लायक हैं? (नहीं।) क्या ऐसे लोगों में सत्यनिष्ठा या गरिमा होती है? (नहीं।) ऐसे लोगों में सत्यनिष्ठा और गरिमा नहीं होती है, वे सम्मान के लायक नहीं होते हैं और भरोसेमंद नहीं होते हैं। तो फिर क्या उन्हें महत्वपूर्ण मामलों को सँभालने का काम सौंपा जा सकता है? (नहीं।) तो शेखी बघारना पसंद करना किस तरह की समस्या है? (यह व्यक्ति की मानवता का दोष है।) यह मानवता का दोष है, लेकिन तुम्हें इस व्यक्ति की मानवता को भी देखना होगा—क्या उसकी मानवता बुरी है और क्या वह व्यक्ति सकारात्मक चीजों को स्वीकार सकता है। अगर वह सिर्फ घटिया है और कई वर्षों से अपने पारिवारिक जीवन या सामाजिक परिवेश के प्रभाव में आकर उसे शेखी बघारना और डींगें हाँकना पसंद करने, गैर-जिम्मेदाराना ढंग से और नतीजों पर विचार किए बिना बोलने की बुरी आदत पड़ गई है तो यह उसकी मानवता का सिर्फ एक दोष है। वह बुरा नहीं है; वह बस बहुत ही ज्यादा घटिया होने के स्तर पर है। अगर ऐसा व्यक्ति शेखी बघारने के अलावा दूसरों से मेलजोल रखते समय रोब झाड़ने वाले और क्रूर तरीके से व्यवहार भी करता है और डींगें हाँकने और शेखी बघारने का उसका मकसद दूसरों को दबाना और जिन चीजों की वह शेखी बघारता है और जिन्हें बढ़ा-चढ़ाकर कहता है उन्हें उन चीजों से बेहतर और ऊँचा दिखाना जो दूसरों ने की हैं या दूसरों के पास हैं तो अब यह उसके घटिया होने की समस्या नहीं रही है। यह किस तरह की समस्या है? (यह बुरी मानवता की समस्या है।) यह बुरी मानवता की समस्या है। तो क्या इसमें कोई भ्रष्ट स्वभाव शामिल है? (हाँ।) किस तरह का भ्रष्ट स्वभाव? (क्रूर स्वभाव।) वह घमंडी और क्रूर स्वभाव वाला है। कुछ लोग शेखी बघारना इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि वे बहुत ही ज्यादा घटिया होते हैं। यह उनकी रहन-सहन की आदतों और जीवनयापन के परिवेश के कारण होता है। वे बस समझते ही नहीं हैं कि सच्चाई से बोलने, दिल से बोलने, वास्तविक स्थितियों पर चर्चा करने या जीवन और उचित मामलों पर बात करने का क्या मतलब है। उनमें इस जागरूकता की कमी होती है। ऐसी शिक्षा उनके पारिवारिक और स्कूली परिवेश में गैर-मौजूद है और जब वे समाज में प्रवेश करते हैं तो उसके बाद तो यह और भी ज्यादा गैर-मौजूद हो जाती है। नतीजतन, उनका जन्मजात घटियापन बहुत गंभीर होता है। वे छिछोरे होते हैं और उनमें उचित चाल-ढाल की कमी होती है और वे बस दिखावा करने और दूसरों से अपने बारे में ऊँची राय बनवाने के लिए डींगें हाँकना और शेखी बघारना पसंद करते हैं। अपने दिलों में उनकी कोई दूसरी महत्वाकांक्षा, इच्छा या जरूरत नहीं होती है। अगर वे सिर्फ यही अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं तो यह सिर्फ घटियापन है; यह उनकी मानवता का दोष है। लेकिन अगर उनकी शेखी बघारने का कोई लक्ष्य है और शेखी बघारने के जरिए वे खुद को बहुत ही सक्षम और असाधारण रूप से समर्थ और साथ ही आम लोगों से बेहतर, अलग और बहुत ऊँचे लोगों के रूप में पेश करते हैं तो अब यह घटिया होने की समस्या नहीं रह जाती है। उनका शेखी बघारना पसंद करना एक विशिष्ट सोच से निर्देशित होता है, जो रुतबे, महत्वाकांक्षा और इच्छा की लालसा से संचालित होता है। वे शेखी बघारने का उपयोग दूसरों को दबाने और प्रभावित करने के लिए करते हैं, दूसरों को खुद से कमतर और यह महसूस करवाने के लिए करते हैं कि वे उनके जितने अच्छे नहीं हैं, और दूसरों को उनके प्रति सम्मानपूर्ण होने और उनकी आज्ञा मानने के लिए राजी करने के लिए करते हैं। यही उनकी मानवता की बुराई है। उनका शेखी बघारना पसंद करना मजबूत स्थिति हासिल करने के लिए होता है : “जो कुछ भी तुम्हारे पास है वह मेरे पास भी है। जो कुछ भी तुम कर सकते हो वह मैं भी कर सकता हूँ। जो कुछ भी तुम जानते हो वह मैं भी जानता हूँ। जो कुछ भी तुमने देखा है वह मैंने भी देखा है। मैं तुमसे कमतर नहीं हूँ!” ऐसा भी होता है कि अगर तुमने कोई विशेष खाना खाया हो तो जाहिर तौर पर उसे कभी नहीं खाने के बावजूद वे दावा करेंगे कि उन्होंने खाया है—और इतना ही नहीं, वे कहेंगे कि उन्होंने उसे ज्यादा खाया है और जो खाना उन्होंने खाया वह तुम्हारे खाने से बेहतर था। वे उन बातों की भी शेखी बघारेंगे जो हुई ही नहीं। उनके शेखी बघारने का क्या मकसद है? वे तुम्हें मात देना चाहते हैं, तुमसे मुकाबला करना चाहते हैं और तुम्हें यह महसूस करवाना चाहते हैं कि वे तुमसे बेहतर हैं, कि वे हर मामले में तुम्हारे जितना ही अच्छे हैं। वे महत्वाकांक्षा और इच्छा से संचालित होते हैं। तो क्या ऐसी महत्वाकांक्षा और इच्छा से संचालित मानवता की अभिव्यक्ति सिर्फ घटियापन है या यह बुरी मानवता है? (यह बुरी मानवता है।) क्या यहाँ कोई भ्रष्ट स्वभाव शामिल है? (हाँ।) महत्वाकांक्षा और इच्छा से प्रेरित होना—यह भ्रष्ट स्वभाव है। किस तरह का भ्रष्ट स्वभाव है? (घमंड और क्रूरता।) बिल्कुल। यहाँ ये दो प्रकार के भ्रष्ट स्वभाव हैं : घमंड और क्रूरता। इसके अतिरिक्त, इसमें जरा-सी दुष्टता भी होती है। यानी तुम जो भी कहते हो उस पर वे अपने दिलों में हमेशा विचार करते हैं, हमेशा उसमें से कोई न कोई मतलब निकालने का प्रयास करते हैं और हमेशा उससे दुष्ट विचारों और चरम खयालों के साथ पेश आते हैं। उदाहरण के लिए, अगर तुम कहते हो, “मेरे परिवार के पास टोयोटा कार है; यह एक जापानी कार है,” तो वे कहते हैं, “जापानी कारें अच्छी नहीं होती हैं। जर्मन कारें बेहतर होती हैं। मैं जो जर्मन कार चलाता था, उसका न सिर्फ प्रदर्शन बेहतरीन था बल्कि वह दस साल से भी ज्यादा समय बिना खराब हुए चलती रही—वह तुम्हारी कार से कहीं बेहतर थी!” उन्हें तुमसे बेहतर होना ही पड़ेगा। तुम कहते हो, “मैंने हाई स्कूल तक पास नहीं किया,” वे कहते हैं, “मैंने तो हाई स्कूल पास किया है। तुम मुझसे जलते हो, है ना?” वास्तव में, उन्होंने मिडिल स्कूल भी पास नहीं किया, फिर भी वे तुमसे बेहतर होना चाहते हैं। उन्हें यह महसूस करना अच्छा लगता है कि दूसरे उनसे जलते हैं, उनके बारे में अच्छी राय रखते हैं और उनका सम्मान करते हैं। देखो, वे दूसरों से जो जानकारी प्राप्त करते हैं, उसके प्रति उनकी प्रतिक्रिया हमेशा दुष्ट और चरम होती है। उनमें सामान्य मानवता की सोच की कमी है। सामान्य व्यक्ति यह सुनने पर कि किसी और के पास कोई अच्छी चीज है कह सकता है, “यह तो बढ़िया है कि तुम्हारे पास यह है। क्या तुम मुझे इसकी विशिष्ट सुविधाओं और फायदों के बारे में बता सकते हो? मैं इसके बारे में और जानना चाहूँगा।” सामान्य मानवता वाला व्यक्ति इस तरीके से प्रतिक्रिया देगा। लेकिन जो लोग शेखी बघारना पसंद करते हैं, उनमें सामान्य मानवता नहीं होती है। वे सोचते हैं, “वह चीज तुम्हारे पास है तो मेरे पास क्यों नहीं होनी चाहिए? अगर वह मेरे पास नहीं है तो भी मुझे यह कहना ही पड़ेगा कि वह मेरे पास है और इससे भी ज्यादा मुझे यह कहना ही पड़ेगा कि मेरे वाली तुम्हारे वाली से बेहतर है!” अगर तुमने उनसे उसे निकालकर दिखाने के लिए कहा तो वे कहेंगे, “मैं तुम्हें वह देखने नहीं दूँगा!” जबकि वास्तव में उनके पास वह चीज है ही नहीं। क्या यह दुष्ट है? (हाँ।) दूसरे शब्दों में, जब उनके साथ कुछ होता है या जब वे कोई जानकारी देखते हैं या प्राप्त करते हैं तब उनकी प्रतिक्रिया हमेशा चरम, मानवता से असंगत और दुष्ट होती है, इसलिए उनके स्वभाव में कुछ दुष्टता भी होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो जब तुम उनसे सामान्य रूप से बातचीत या संगति करते हो और तुम्हें लगता है कि तुमने ऐसा कुछ नहीं कहा जो औचित्य रहित मानसिक प्रतिक्रिया का कारण बन सकता है तब उनका मन पहले से ही अनेक विचारों से भरा होता है। वे पहले से ही तुमसे जलते हैं, तुम्हारे प्रति उद्दंड और द्वेषपूर्ण होते हैं और साथ ही वे तुम्हें दबाना भी चाहते हैं। उनका मन इन्हीं चीजों से भरा होता है। क्या तुम यह नहीं कहोगे कि यह दुष्ट है? (हाँ।) दुष्ट लोग शुद्ध नहीं होते हैं। उनके द्वारा प्रकट की गई ज्यादातर अभिव्यक्तियाँ, शब्द और क्रियाकलाप सामान्य मानवता के जमीर और विवेक से मेल नहीं खाते हैं। यह संभव है कि उनके शब्दों में कुछ आक्रामकता हो; आक्रामकता मौजूद होने के अलावा उनके कुछ शब्द झूठे भी हो सकते हैं और कुछ डींगें भी हो सकती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके भीतर दुष्ट विचार होते हैं और इन दुष्ट विचारों से अभिप्रेरित होकर वे जो शब्द बोलते हैं वे सभी झूठ होते हैं, सभी शैतान और दानवों से उत्पन्न हुए होते हैं। ऐसे लोगों में कोई मानवता नहीं होती है; वे गैर-मनुष्य होते हैं। जो लोग शेखी बघारना और डींगें हाँकना पसंद करते हैं, उन्हें दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है। उनका उनकी मानवता के सार के आधार पर निरूपण किया जाना चाहिए। यानी यह फैसला करने के लिए कि उनमें क्या समस्या है यह देखा जाना चाहिए कि क्या वे घटिया हैं और क्या उनकी मानवता बुरी है। अगर उनमें बुरी मानवता है और वे बहुत ही ज्यादा घटिया हैं, बहुत-से बुरे कर्म करने में सक्षम हैं तो वे अच्छे लोग नहीं हैं और उनका कुकर्मियों के रूप में निरूपण किया जाना चाहिए। हालाँकि अगर वे सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और उनमें थोड़ा घटियापन है, लेकिन वे खुद को कोई बुरी चीज करने के लिए तैयार नहीं कर सकते हैं, अभी भी उनमें कुछ जमीर और विवेक है और वे कुछ अच्छी चीजें भी कर सकते हैं तो फिर वे अभी भी अच्छी मानवता वाले लोग माने जा सकते हैं। यह कोई बड़ी बात नहीं है और अगर उनकी काबिलियत अच्छी है तो उन्हें पर्यवेक्षक, अगुआ या कार्यकर्ता भी चुना जा सकता है। भले ही इन दोनों प्रकारों के सभी लोग डींगें हाँकते हों और शेखी बघारना पसंद करते हों, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि उनकी मानवता अच्छी है या बुरी। अगर वे सिर्फ घटिया हैं तो यह उनकी मानवता का दोष है और इसमें भ्रष्ट स्वभाव शामिल नहीं है। लेकिन अगर शेखी बघारने के पीछे उनका कोई इरादा और महत्वाकांक्षा है तो यह बुरी मानवता का संकेत है और इसमें भ्रष्ट स्वभाव शामिल है। उनकी मानवता के लिहाज से यह बुराई है; इसमें जो भ्रष्ट स्वभाव शामिल हैं वे घमंड, दुष्टता या क्रूरता हैं। इसमें खराब चरित्र और भ्रष्ट स्वभाव दोनों शामिल हैं, है ना? (हाँ।)

चलो, एक और अभिव्यक्ति पर चर्चा करें : लापरवाही। व्यक्ति जो भी चीज करता है उसमें लापरवाह होना—यह किस पहलू के तहत आता है? (व्यक्ति की मानवता का दोष है।) ऐसे लोग हर चीज एक मोटे और सामान्य तरीके से देखते हैं, मुख्य बिंदुओं पर पकड़ बनाने में असमर्थ होते हैं। वे जो भी करते हैं वह असावधानी से भरा होता है। वे पाठ आधारित कार्य या दस्तावेज प्रबंधन जैसे सूक्ष्म कार्य नहीं कर सकते हैं। वे ऐसे काम भी नहीं कर सकते हैं जिनमें सटीकता की जरूरत होती है। कपड़े बनाते समय कभी-कभी वे पैंट की टाँगों को उस जगह सिल देते हैं जहाँ बाँहें होनी चाहिए, कभी-कभी लंबी बाँहों को छोटी कर देते हैं या 26 इंच की कमर को 24 इंच की बना देते हैं। वे कपड़े या तो बहुत ही ज्यादा बड़े या बहुत ही ज्यादा छोटे बना देते हैं। वे चाहे जो भी करें, वे हमेशा इतने लापरवाह, इतने बेपरवाह और इतने अनाड़ी होते हैं कि किसी भी चीज को अच्छी तरह से नहीं कर पाते हैं। आखिर वे कितने लापरवाह हो सकते हैं? किसी काम से बाहर जाते समय वे उन चीजों तक को साथ ले जाना भूल सकते हैं जो उन्हें साथ लेकर जानी चाहिए। उदाहरण के लिए, किसी मुकदमे के लिए वकील से मिलने जाते समय वे अपना पहचान पत्र और वकील द्वारा अनुरोध किया गया सबूत लाना भूल जाते हैं। वे बहुत सी चीजें पीछे छोड़ जाते हैं। कभी-कभी उन्हें यह भी पता नहीं होता है कि उन्होंने अपना जरूरी सामान कहाँ रखा है और वे याद रखने का प्रयास भी नहीं करते हैं। नतीजतन, वे अक्सर चीजें खो देते हैं और उन्हें भूल जाते हैं और वे जो चीजें करते हैं वे और उनका दैनिक जीवन पूरा गड़बड़ होता है। ऐसे लोग अपने कार्य या अपने कर्तव्य से जिस तरीके से पेश आते हैं उसमें कभी गंभीर नहीं होते हैं। वे जो कुछ भी करते हैं वह हमेशा जल्दबाजी में और असावधानी से किया हुआ होता है—वे जो कुछ भी देखते हैं उसके बारे में हमेशा केवल एक मोटा-मोटा अनुमान ही लगा पाते हैं, वे जो शब्द सुनते हैं उनके बारे में हमेशा सिर्फ एक मोटा-मोटी समझ ही बना पाते हैं, वे हमेशा सिर्फ मोटे तौर पर और सामान्य शब्दों में ही चीजें कहते हैं और अपनी याददाश्त में चीजों की सिर्फ एक मोटी रूपरेखा ही बनाकर रखते हैं। नतीजतन वे महत्वपूर्ण या गोपनीय कार्य सँभालने में असमर्थ होते हैं; वे ऐसे कार्यों के लिए उपयुक्त नहीं हैं। अगर उनकी लापरवाही सिर्फ उनके निजी जीवन या व्यक्तिगत स्वच्छता से जुड़ी है और इससे दूसरे लोगों या किसी महत्वपूर्ण मामले पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है तो यह सिर्फ उनकी मानवता का एक दोष है—जो भी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं उनके लिए बस वे खुद जवाबदेही ले सकते हैं, और कुछ नहीं। लेकिन अगर इसमें कर्तव्य, महत्वपूर्ण कार्य, किसी की किस्मत और संभावनाएँ, किसी का रुकना या छोड़कर जाना आदि शामिल हो तो फिर ऐसे लोग ऐसे मामले सँभालने के लिए अनुपयुक्त होते हैं क्योंकि वे बहुत ही ज्यादा लापरवाह होते हैं। एक बात तो यह है कि वे इन मामलों में बारीकी से काम नहीं करते हैं; वे इन पर बस एक मोटी नजर डालते हैं, वे इतने आलसी होते हैं कि इन्हें सँभालने के लिए अपने दिमाग का उपयोग नहीं करते हैं या अपनी सोच और ऊर्जा नहीं लगाते हैं। दूसरी बात यह है कि चीजें करने की उनकी शैली और दृष्टिकोण हमेशा ही जल्दबाजी और असावधानी से भरे होते हैं और वे अक्सर चीजें खो देते हैं और भूल जाते हैं। अगर इसमें सिर्फ उनका निजी जीवन शामिल है तो यह कोई बड़ी समस्या नहीं है। लेकिन अगर इसमें जरूरी कार्य या गोपनीय मामले शामिल हैं तो वे चीजें गड़बड़ कर सकते हैं या किसी बड़ी आपदा का कारण भी बन सकते हैं। उदहारण के लिए, किसी को तुरंत पेरिस जाना है, लेकिन अपनी लापरवाही के कारण वह रोम जाने वाले हवाई जहाज का टिकट खरीद लेता है। यहाँ तक कि वह बहुत खुश होकर कहता है, “आज मैंने जो टिकट खरीदा, वह बहुत ही सस्ता था!” दूसरे लोग टिकट देखते हैं और कहते हैं, “यकीनन यह सस्ता है—तुम्हें तो पेरिस जाना था, तुमने रोम जाने का टिकट क्यों खरीदा?” यह तो लापरवाही की हद हो गई! ऐसे लोग हर चीज को उपेक्षापूर्ण और बेपरवाह रवैये से देखते हैं। वे किसी चीज के बारे में एक मोटाअंदाजा लगाने के लिए उस पर बस एक नजर डालते हैं और बात वही समाप्त हो जाती है। उनका इसी तरह का गैर-जिम्मेदाराना रवैया होता है। बेशक, इस रवैये की विशेषता यह भी है कि लोग किसी भी चीज में दिल नहीं लगाना चाहते और आलसी होते हैं—वे इतने आलसी होते हैं कि किसी भी चीज में दिल नहीं लगाते हैं, अपने दिमाग का उपयोग नहीं करते हैं या किसी भी मामले को सँभालते समय विचार नहीं करते हैं। ऐसे लापरवाह लोग महत्वपूर्ण कार्य के लिए अनुपयुक्त होते हैं, विशेष रूप से ऐसे कार्य जिनमें पाठ आधारित कार्य शामिल होते हैं, दस्तावेज प्रबंधन या गोपनीय व्यावसायिक कौशल से जुड़े कार्य। तो फिर, अगर ऐसे लोग अगुआ बन जाते हैं तो क्या वे काम कर सकते हैं? (नहीं। उनका कार्य कभी उचित रूप से नहीं होता है; उसे हमेशा मोटे तौर पर और व्यापक रूपरेखा में किया जाता है और उसे हमेशा अधूरा छोड़ दिया जाता है। वे वास्तविक कार्य नहीं कर सकते हैं।) ऐसे लोगों के कार्य में बारीकियों की कमी होती है; वे हमेशा जल्दबाजी और असावधानी से कार्य करते हैं, चीजों को सतही, बेपरवाह ढंग से सँभालते हैं। उनके शब्द भी हमेशा अस्पष्ट होते हैं और उनका “मोटे तौर पर”, “शायद”, “संभावित” या “संभवतः” जैसे शब्दों का प्रयोग करने के प्रति झुकाव होता है। ऐसे लोग कुछ भी पूरा नहीं कर सकते हैं। परमेश्वर के घर के कार्य की बहुत-सी मदों जैसे कि प्रशासनिक कार्य, कार्मिक कार्य, कलीसियाई जीवन से संबंधित कार्य और सुसमाचार कार्य में विशिष्ट विवरण शामिल होते हैं। विस्तृत कार्य सामने आने पर ऐसे लापरवाह लोगों को सिरदर्द होने लगता है, वे उलझन में पड़ जाते हैं और घुटन महसूस करते हैं; वे ऐसे विस्तृत कार्य में शामिल होने के अनिच्छुक होते हैं। उनका ऐसा आलसी रवैया होता है, इसलिए जब कार्य करने की बात आती है तब वे हमेशा सोचते हैं, “काम का मोटा खाका बनाना ठीक है; आखिर यह कार्य-व्यवस्थाओं में जो कहा गया है उसके पर्याप्त करीब है।” वे हमेशा यह “पर्याप्त करीब होना ठीक है” वाला रवैया बनाए रखते हैं—क्या इस तरह से कार्य अच्छी तरह से किया जा सकता है? (नहीं।) जब वे लोगों का आकलन करते हैं तब वे उसे भी मोटे तौर पर करते हैं—वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं का आकलन मोटे तौर पर करते हैं और वे हर टीम के पर्यवेक्षकों का आकलन भी मोटे तौर पर करते हैं। जब कोई पूछता है, “उस पर्यवेक्षक को परमेश्वर में विश्वास रखते हुए कितना समय हो गया है?” तब वे उत्तर देते हैं, “लगता है तीन वर्ष से ज्यादा हो गए हैं” लेकिन जिस व्यक्ति को परमेश्वर में विश्वास रखते हुए तीन वर्ष हो गए हैं, हो सकता है कि उसने अभी तक कोई आधार तक स्थापित न किया हो—क्या ऐसा व्यक्ति पर्यवेक्षक के रूप में भरोसेमंद हो सकता है? लापरवाह लोग इसकी असलियत देख ही नहीं पाते हैं। इसीलिए उनकी बातों में हमेशा “मोटे तौर पर”, “संभावित”, “शायद”, “संभवतः” और “लगता है” जैसे पदों की भरमार होती है; वे कभी भी सटीक शब्दों का प्रयोग करते ही नहीं हैं। जब कोई पूछता है, “क्या परमेश्वर में विश्वास रखते हुए कभी उसने अगुआ के रूप में सेवा की है?” तब वे उत्तर देते हैं, “लगता है उसने नहीं की है क्योंकि मैंने उसे इसका जिक्र करते नहीं सुना है।” देखो, वे कभी भी किसी भी चीज से निष्ठापूर्वक पेश नहीं आते हैं। अगर तुम विवरण के लिए उन पर जोर डालते हो तो वे बस भावनाओं और धारणाओं पर भरोसा करते हैं। वे यह नहीं कहते हैं, “मैं तुरंत जाकर इस बारे में पूछूँगा और पुष्टि करूँगा।” वे बस इससे निष्ठापूर्वक पेश नहीं आते हैं। हर चीज में जब तक यह “मोटे तौर पर सही” या “काफी करीब” है तब तक वे इसे ठीक मानते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “व्यक्ति को इतनी सूक्ष्मता से क्यों जीना पड़ेगा?” हालाँकि एक लिहाज से यह सच है—दैहिक जीवन से संबंधित मामलों के लिए तुम थोड़े मोटे तौर पर कार्य कर सकते हो—लेकिन जब बात कलीसियाई कार्य की आती है तब तुम मोटे तौर पर कार्य नहीं कर सकते। मोटे तौर पर कार्य करने से उसके नतीजे प्रभावित होते हैं। कभी भी कार्य की किसी भी मद में अच्छे नतीजे सिर्फ विशिष्ट नियोजन, व्यवस्थाओं, अनुवर्ती कार्रवाइयों, पर्यवेक्षण और आग्रह के कारण ही हासिल होते हैं। अगर कार्य को मोटे तौर पर, जल्दबाजी में किया जाता है तो कोई भी कार्य कभी भी नतीजे नहीं दे सकता है। इसलिए, लापरवाही व्यक्ति की मानवता का दोष है और ऐसे लापरवाह लोग महत्वपूर्ण कार्य के लिए योग्य नहीं होते हैं; विशेष रूप से, वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं का कार्य करने के लिए योग्य नहीं होते हैं। चाहे मामला कुछ भी हो, ऐसे लोग हमेशा सिर्फ मोटा-मोटी रूपरेखा सुनते हैं और फिर मान लेते हैं कि वे उसे समझते हैं। उदाहरण के लिए, कलीसियाएँ स्थापित करने के कार्य में कलीसिया कैसे स्थापित की जाए, एक कलीसिया स्थापित करने के लिए कितने लोगों की जरूरत है, कितनी कलीसियाओं से एक जिला बनता है, कितने जिलों से एक क्षेत्र बनता है—परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं में इन सभी के लिए विशिष्ट नियम हैं और साथ ही विशेष हालातों के लिए अतिरिक्त विशिष्ट नियम भी हैं। लेकिन लापरवाह लोग न तो इन नियमों की तलाश करते हैं और न ही इनके बारे में जानने का प्रयास करते हैं, फिर भी वे यह जानने का दावा करते हैं कि आगे कैसे बढ़ना है। जब उनसे विवरण प्रदान करने के लिए कहा जाता है तब वे उत्तर देते हैं, “यह तो बस कलीसियाएँ स्थापित करना है। जैसे ही एक निश्चित संख्या में लोग हो जाते हैं, कलीसिया स्थापित कर दी जाती है।” लेकिन जब उनसे पूछा जाता है, “इसे विशिष्ट रूप से कैसे स्थापित किया जाना चाहिए?” तब वे विवरण नहीं जानते हैं और विवरण प्रदान नहीं कर सकते हैं। अगर वे नए अगुआ हैं और अभी उन्हें नहीं पता है कि कलीसिया कैसे स्थापित की जाती है तो यह बात समझ में आती है। समस्या यह है कि उन्हें पता नहीं है, लेकिन वे इसके बारे में निष्ठावान भी नहीं हैं और इसका अध्ययन नहीं करते हैं और न ही इसकी तलाश करते हैं। क्या ऐसे लोग कलीसियाई कार्य अच्छी तरह से कर सकते हैं? (नहीं।) ऐसे लोगों के लिए हमारे पास सिर्फ दो शब्द हैं—“इस्तीफा दो!” वे अगुआई कार्य के लिए उपयुक्त नहीं हैं। ऐसा कोई कार्य नहीं है जो लोगों से जुड़े कार्य से ज्यादा पेचीदा हो। अगर तुम्हारे पास सतर्क और जिम्मेदार दिल की कमी है और तुम्हारा काम मोटे तौर पर होता है और सूक्ष्मता से नहीं किया जाता है तो चाहे तुम्हारी काबिलियत कितनी भी अच्छी हो, तुम फिर भी उस भूमिका के लिए उपयुक्त नहीं होगे। बहुत ज्यादा लापरवाह होना, हर चीज को मौटे तौर पर करना, सिर्फ रूपरेखा पर ध्यान केंद्रित करना, सिर्फ औपचारिकताएँ निभाने पर ध्यान केंद्रित करना, विवरणों पर ध्यान केंद्रित नहीं करना, चीजों से निष्ठापूर्वक पेश आना नहीं जानना—इसका मतलब है कि तुम अगुआओं और कार्यकर्ताओं के कार्य के लिए बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं हो। समझे? (हाँ।)

लापरवाही मानवता का दोष है। तो फिर चीजें करते समय बारीकी बरतना और निष्ठावान होना और साथ ही मूल, मुख्य बिंदुओं पर पकड़ बनाने में भी समर्थ होना, समस्याएँ कहाँ है यह पहचानने में और समस्याओं के सार की असलियत देखने में समर्थ होना—क्या यह मानवता का गुण है? (हाँ।) बारीकी से चीजें करने वाले लोगों का रवैया काफी हद तक उचित होता है; वे चीजें करने में काफी बारीकी बरतते हैं और ईमानदार होते हैं, वे खुद को शांत करने और जल्दबाजी नहीं करने में समर्थ होते हैं—यह मानवता का गुण है। वैसे तो मानवता के यह गुण वाला व्यक्ति पूर्णकालिक कार्य कर सकता है, लेकिन अगर वह चीजें करने में बहुत धीमा है और उसके कार्य की दक्षता अच्छी नहीं है तो नतीजे बहुत अच्छे नहीं होंगे। इसमें क्या शामिल है? इसमें काबिलियत शामिल है जो कि जन्मजात स्थितियों में से एक है। क्या तुम्हें लगता है कि जो कोई भी बारीकी बरतता है, वह आवश्यक रूप से अच्छा कार्य कर सकता है? यह नजरिया गलत है। कुछ लोग चीजें करने में बहुत ही ज्यादा बारीकी बरतते हैं, इतनी कि वे थोड़े विक्षिप्त-से लगने लगते हैं। उदाहरण के लिए, सब्जियाँ धोते समय वे पत्तों के आगे का हिस्सा धोते हैं और फिर पीछे का हिस्सा धोते हैं, हर पीले पत्ते को हटाते हैं और कीड़ों के बनाए हर छेद को काटकर अलग करते हैं, सुनिश्चित करते हैं कि सब्जियाँ पूरी तरह से साफ धुली हैं। चीजें करते समय बहुत बारीकी बरतना मानवता का गुण है, लेकिन अगर कोई सिद्धांतहीन होने की हद तक अत्यधिक बारीकी बरते और बहुत ही ज्यादा तुच्छ चीजें करे तब यह अनावश्यक और अदक्ष हो जाता है। यह खराब काबिलियत, चीजें पूरी करने में असमर्थ होना और कार्य की जिम्मेदारी उठाने में अक्षम होना दर्शाता है। कुछ लोग जो चीजों को करने में बारीकी बरतते हैं, उनकी सिद्धांतों पर पकड़ होती है, मूल, मुख्य बिंदुओं पर पकड़ होती है, वे तुरंत निर्णय लेकर शीघ्रता और फुर्ती से कार्य करते हैं और समस्याओं को तेजी से सुलझाने में समर्थ होते हैं—यह अच्छी काबिलियत होना है। चीजें करने में बारीकी बरतना चीजें करने में दक्ष होने के समान नहीं है और न ही ये चीजें करने में अच्छे नतीजे हासिल करने के समान है। इसका मतलब सिर्फ धैर्यपूर्वक ध्यान केंद्रित करके रखने में समर्थ होना, शांत रहना, जल्दबाजी नहीं करना, दिखावटी नहीं होना और लापरवाह नहीं होना है। यह ज्यादा से ज्यादा सिर्फ मानवता का एक गुण है और अच्छी काबिलियत तक नहीं पहुँचता है। कुछ लोग चीजें करने में काफी बारीकी बरतते हैं, वे काफी कर्तव्यनिष्ठ दिखते हैं और न तो जल्दबाजी करते हैं और न ही घबराते हैं, और वे बिल्कुल शांत रहते हैं। लेकिन वे मामले सँभालने में अदक्ष होते हैं, महत्व और तात्कालिकता के आधार पर चीजों को प्राथमिकता देने में असमर्थ होते हैं। वे किसी महत्वहीन काम को पकड़ लेते हैं और उस पर लगातार कार्य करते रहते हैं जिससे दूसरे लोग चिंतित और हताश हो जाते हैं और बेताबी से उन्हें एक तेज लात मारना चाहते हैं। वे बहुत धीरे-धीरे कार्य करते हैं जिसमें बिल्कुल भी दक्षता नहीं होती है—वे बस निकम्मे होते हैं! सामान्य उत्तरजीविता क्षमता वाला व्यक्ति उनसे दस-बीस गुना तेजी से कार्य करता है। वे चीजें बहुत ही धीरे-धीरे करते हैं और चाहे वे कितना भी करें, वे कोई विधि नहीं ढूँढ़ सकते हैं, सिद्धांत नहीं ढूँढ़ सकते हैं, उनमें हुनर नहीं होता है और दक्षता की कमी होती है। जिस काम को करने में एक घंटा लगना चाहिए उसे करने में उन्हें पूरा दिन लग सकता है, जिस काम को करने में एक दिन लगना चाहिए उसे करने में उन्हें पाँच दिन लग सकते हैं और जिस काम को करने में पाँच दिन लगने चाहिए उसे करने में उन्हें दस दिन लग सकते हैं, जिससे उन्हें देखकर तुम गुस्सा और हताशा दोनों महसूस करते हो। कुछ महिलाएँ मामले सँभालने में सुस्त होती हैं। यह अच्छी तरह से जानते हुए कि उन्हें किसी काम को सँभालने के लिए जल्द ही बाहर जाना पड़ेगा, वे फिर भी अपने बाल धोने पर अड़ जाती हैं। अपने बाल धोने में वे कोई विधि नहीं ढूँढ़ सकती हैं। अपने सारे बाल एक झटके में धोने के बजाय वे हर लट एक-एक करके धोती हैं और आधे घंटे बाद भी उनका काम पूरा नहीं हुआ होता है। क्या वे पागल नहीं हैं? बाल धोने के कारण वे उचित मामलों में देरी कर देती हैं। मामले जितने ज्यादा जरूरी होते हैं, उन्हें उतनी ही कम तात्कालिकता महसूस होती है और वे यहाँ तक कि उन मामूली मामलों पर ध्यान केंद्रित करती हैं और बिना कोई चिंता या परेशानी महसूस किए महत्वपूर्ण मामलों में देरी करती हैं। अगर तुम उनसे आग्रह करते हो तो उनके पास बहानों का ढेर भी होता है : “मैं ऐसे ही इन उचित चीजों को अधूरा कैसे छोड़ सकती हूँ?” जब तुम ऐसे लोगों को देखते हो तब तुम मन में क्या सोचते हो? तुम बुरी तरह से उन्हें लात मारना चाहोगे। क्या ऐसे लोग लात खाने लायक नहीं हैं? (हाँ।) ऐसे लोगों के लिए भले ही करने के लिए कार्य हो, फिर भी वह उनसे करवाने की कोई जरूरत नहीं है। वे बहुत ही ज्यादा धीरे-धीरे कार्य करते हैं और बहुत ही ज्यादा अनाड़ी होते हैं! जब तुम ऐसे लोगों को देखते हो, जो कछुए की रफ्तार से चीजें करते हैं, तब क्या तुम चिंतित होते हो? (हाँ।) वे कहते हैं, “मैं अपने कार्य में बारीकी बरतता हूँ!” मैं कहता हूँ, “तुम्हारी इतनी बारीकी बरतने का क्या फायदा? दूसरे लोग तुमसे कम बारीकी तो नहीं बरतते हैं, लेकिन वे तुमसे ज्यादा कार्य करते हैं और तुमसे बेहतर तरीके से करते हैं। क्या तुम्हारे बारीकी बरतने से नतीजे हासिल हो सकते हैं? यही मुख्य बात है। अगर तुम चीजें करने में बारीकी बरतते हो और दक्षता और अच्छे नतीजे भी हासिल करते हो तो उस बारीकी बरतने का मूल्य है। लेकिन अगर तुम चीजें करने में सिर्फ बारीकी बरतते हो और अंत में न तो नतीजे हासिल करते हो और न ही दक्षता तो क्या यह फायदेमंद है? यह बेकार है!” कुछ लोग कपड़े बनाने में अत्यंत बारीकी बरतते हैं, लेकिन वे कभी भी सही आकार के कपड़े नहीं बना सकते हैं। वे सटीकता से यह निर्णय नहीं ले सकते हैं कि ये कपड़े पहनने वाले पर जँचेंगे या नहीं, वे यह नहीं बता सकते हैं कि बाँहें बहुत ही ज्यादा लंबी हैं या बहुत ही ज्यादा छोटी या कपड़े बहुत ही ज्यादा तंग हैं या बहुत ही ज्यादा ढीले, उन्हें कफ की मानक चौड़ाई का पता नहीं होता है और उन्हें यह नहीं पता होता है कि कॉलर उपयुक्त है या नहीं। ऐसे लोगों द्वारा बनाए गए कपड़े निश्चित रूप से मानक स्तर के नहीं होंगे। अगर कोई व्यक्ति बारीकी भी बरतता है और सिद्धांतनिष्ठ भी है तो यह सही मायने में मानवता का गुण है। लेकिन अगर कोई सिर्फ बारीकी बरतता है और उसका कोई सिद्धांत नहीं है, वह मुख्य बिंदुओं पर पकड़ बनाने में असमर्थ है, हमेशा मामूली मामलों पर हंगामा करता है और उन पर व्यर्थ ही चिंता करता रहता है तो यह परेशानी वाली बात है। ज्यादातर लोग “बारीकी बरतना” शब्द को आमतौर पर सकारात्मक शब्द मानते हैं, लेकिन बारीकी बरतने के सभी उदाहरण गुण नहीं होते हैं। यह परिस्थिति पर निर्भर करता है। कुछ लोग बिना किसी सिद्धांत के अंधे तरीके से बारीकी बरतते हैं। यह बारीकी बरतना नहीं बल्कि विक्षिप्त होना और मुख्य बिंदुओं पर पकड़ बनाने में असमर्थ होना है; यह खराब काबिलियत दर्शाता है और यह चीजें करने का हुनर ढूँढ़ पाने में असमर्थ होना और सिद्धांतों पर पकड़ बनाने में असमर्थ होना है। इसलिए, मेरी नजर में वैसे तो अभिव्यक्ति या चीजें करने के एक तरीके के रूप में बारीकी बरतना मानवता का गुण है, लेकिन तुम्हें व्यक्ति की काबिलियत को भी देखने की जरूरत है। अगर काबिलियत का ध्यान नहीं रखा जाता है तो फिर चीजें करने में बारीकी बरतने का रवैया रखना फिर भी अच्छा है। अगर व्यक्ति में चीजें करने में काबिलियत और दक्षता दोनों हैं और वह सिद्धांतों का पालन कर सकता है और इसके अलावा वह बारीकी भी बरतता है तो यह बारीकी बरतना सचमुच सोने पर सुहागा है और सही मायने में मानवता का गुण है।

आओ, हम एक और अभिव्यक्ति के बारे में बात करें : दिखावा करना पसंद करना। यह किस तरह के मुद्दे के तहत आता है? (भ्रष्ट स्वभाव।) उदाहरण के लिए, कुछ लोग बहुत जल्दी-जल्दी टाइप करते हैं। दूसरों को यह दिखाने के लिए कि उनमें यह खूबी है, वे कीबोर्ड पर जानबूझकर जोर-जोर से उँगलियाँ दे मारते हैं, मानो कह रहे हों, “जरा मेरी टाइपिंग की लय तो सुनो, तुम्हें पता चल जाएगा कि मैं कितनी तेजी से टाइप करता हूँ!” कुछ लोग विश्वविद्यालय से स्नातक होते हैं, इसलिए वे आदतन ऐसी चीजें कहते हैं, “जब हम विश्वविद्यालय में थे,” “हमारे विश्वविद्यालय के प्रोफेसर,” “हमारे विश्वविद्यालय का कैम्पस” वगैरह-वगैरह। यह किस तरह की अभिव्यक्ति है? (दिखावा करना।) इसे दिखावा करना कहते हैं। कुछ लोग नई कार खरीदते हैं और डरते हैं कि दूसरों को पता नहीं चलेगा कि यह एक महँगा मशहूर ब्रांड है। कार से बाहर निकलने के बाद वे वहाँ से चले नहीं जाते हैं, बल्कि एक पल वे यह देख रहे होते हैं कि कहीं खिड़कियों पर उँगलियों के निशान तो नहीं हैं और अगले पल वे यह देख रहे होते हैं कि पेंट पर खरोंचें तो नहीं हैं। वे कार के आसपास क्यों चक्कर लगाते रहते हैं? यह सिर्फ दूसरों को यह बताने के लिए है कि यह कार उनकी है। यह किस तरह की अभिव्यक्ति है? (दिखावा करना।) कुछ लोगों के पास उच्च श्रेणी का फोन होता है। वे दूसरों को फोन दिखाने के लिए उसकी बैटरी खत्म हो जाने पर भी कॉल पर होने का नाटक करते हैं। इसे क्या कहते हैं? (दिखावा करना।) वे दिखावा क्यों करते हैं? क्या यहाँ गरूर काम नहीं कर रहा है? कुछ लोग मिंक कोट पहनते हैं और बहुत गर्म कमरे में दाखिल होने के बाद भी वे उसे उतारते नहीं हैं। जब कोई उनसे पूछता है, “क्या तुम्हें गर्मी नहीं लग रही है?” तब वे उत्तर देते हैं, “नहीं। मैंने मिंक पहना हुआ है—यह बहुत गर्म है!” वे मान लेते हैं कि दूसरों को इसके बारे में कुछ नहीं पता! उसे उतारते समय वे सुनिश्चित करते हैं कि वे लेबल का दिखावा करें, लोगों के सामने उसका प्रदर्शन करें : “यह कोट न सिर्फ मिंक है, बल्कि फलां नाम के एक उच्च श्रेणी के डिजाइनर ब्रांड का भी है। तुम्हें तो उसके बारे में पता तक नहीं!” अगर दूसरों को पता ही नहीं है तो फिर तुम क्या दिखावा कर रहे हो? क्या यह दिखावा करना बेकार नहीं है? कुछ लोग तो मेरे सामने खुद की नुमाईश करते फिरते हैं, कहते हैं, “तुमने डक डाउन जैकेट पहनी है? तुम्हें मिंक कोट पहनना चाहिए—यह बहुत गर्म है!” मैं कहता हूँ, “यह गर्म तो है, लेकिन वह कोट बहुत भारी है!” वे मिंक कोट पहनते हैं और मेरे सामने खुद की नुमाईश भी करते फिरते हैं। मुझे बताओ, क्या ऐसे लोग जो दिखावा करना पसंद करते हैं, उथले नहीं होते हैं? अपनी मानवता के लिहाज से उनमें दो समस्याएँ होती हैं। एक तो यह कि वे विशेष रूप से सतही होते हैं। जब बाहरी संपत्ति और भौतिक चीजों की बात आती है, जैसे कि वे जो खाना खाते हैं, जो कपड़े पहनते हैं और जिन चीजों का उपयोग करते हैं, तब वे उन सभी का दिखावा करना चाहते हैं। वे दिखावा करने की इच्छा को दबा नहीं पाते हैं और हमेशा दूसरों के सामने इन चीजों का प्रदर्शन करना चाहते हैं, दूसरों को यह बताना चाहते हैं कि वे जो कपड़े पहनते हैं और जिन चीजों का उपयोग करते हैं, वे सभी उच्च श्रेणी के और अनोखे हैं। अगर दूसरे जानते हैं तो क्या फर्क पड़ता है? भले ही दूसरे इसे देखें और उनके बारे में अच्छी राय न बनाएँ, तो भी वे इसका दिखावा करते हैं। क्या यह उथला नहीं है? (हाँ।) वे उथले और बचकाने हैं—दिखावा करना पसंद करने वाले लोगों की यह दूसरी समस्या है। मुझे बताओ, उस तरह से दिखावा करने से उन्हें क्या हासिल हो सकता है? क्या यह बस अपनी मौजूदगी का एहसास दिलाने के लिए है? क्या यह जरूरी है? क्या यह अनावश्यक नहीं है? (हाँ।) 1980 और 1990 के दशक में अगर किसी के चमड़े के जूतों के तल्ले असमान रूप से घिस जाते थे तो वह उस पर लोहे की प्लेट ठोक लेता था जिससे चलने पर तेज आवाज होती थी। कुछ लोगों को तो नए-नवेले चमड़े के जूते पहनने से पहले ही उन पर लोहे की प्लेट सिर्फ इसलिए ठोकनी पड़ती थी ताकि वे दूसरों को बता सकें कि उनके पास एक जोड़ी चमड़े के जूते हैं। यह उन्हें आत्मविश्वास देता था और उन्हें आनंद का एहसास दिलाता था। वे मानते थे, “दूसरों का ध्यान आकर्षित करना अच्छी बात है। यह साबित करता है कि मुझमें आकर्षण है और मेरा अस्तित्व मान्य है। इसलिए मुझे अपने प्रधान गुणों, मजबूत पक्षों और जिन चीजों का मैं मालिक हूँ उन्हें सबके साथ साझा करना होगा।” क्या यह सच में साझा करना है? इसे अपनी शान दिखाना कहते हैं। क्या इस दुनिया में ऐसे काफी सारे लोग नहीं हैं जो अपनी शान दिखाना पसंद करते हैं? (हाँ।) सभी लोगों को लगता है कि यह बिल्कुल सामान्य है, है ना? ऐसे लोगों का न तो कोई तिरस्कार करता है और न ही कोई उन्हें अजीब नजरों से देखता है क्योंकि दुनिया ऐसे लोगों से भरी पड़ी है जो हर तरह के भौतिक और आर्थिक सुखों और रुतबे के सुखों के प्रति जुनूनी हैं। इसलिए, यह दुनिया इन चीजों का गुणगान करती है। परमेश्वर के घर में ऐसे लोगों के प्रति दूसरे लोग नफरत और तिरस्कार महसूस करते हैं। क्यों? जो लोग परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, वे नींव रखने की शुरुआत से लेकर धीरे-धीरे सत्य और मानव होने का मूल्य और अर्थ समझने तक भौतिक सुखों और दुनिया की कुछ सतही चीजों की कम परवाह करने लगते हैं। बाहरी संपत्ति के पीछे भागने की उनकी आंतरिक प्रेरणा कम हो जाती है, उनके अनुसरण के लक्ष्य और दिशा बदल जाते हैं और उनकी आंतरिक दुनिया की जरूरतें बदल जाती हैं। वे भौतिक जरूरतों के बारे में भिन्न परिप्रेक्ष्य बना लेते हैं, उन्हें महसूस होता है कि ऐसी सब चीजें खोखली हैं और उनके दिलों की जरूरतें पूरी नहीं कर सकती हैं। इसलिए हर तरह की चीजों का दिखावा करने और उनकी शान दिखाने की उनकी प्रवृत्ति कम हो जाती है। ऐसी कुछ चीजें क्या हैं जिनका परमेश्वर में विश्वास रखने वाले लोग शायद ज्यादा-से-ज्यादा दिखावा कर सकते हैं या जिनकी शान दिखा सकते हैं? वे शायद अपने कौशलों या खूबियों जैसी चीजों की शान दिखा सकते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग जिन्हें गाना गाना पसंद है, हमेशा दूसरों को अपनी आवाज सुनाना चाहते हैं। वे कहते हैं, “जरा सुनो तो सही, मेरी आवाज कितनी अच्छी है!” वे डरते हैं कि दूसरों को पता नहीं चलेगा कि वे अच्छा गाते हैं और वे इस संबंध में लगातार अपना दिखावा करना चाहते हैं। संक्षेप में, दिखावा करना पसंद करना मानवता का दोष है। यह मानवता में अपरिपक्वता, बचकानेपन और उथलेपन की अभिव्यक्ति है। जब लोग सिर्फ कुछ शब्द और धर्म-सिद्धांत ही समझते हैं और उन्होंने सही मायने में सत्य प्राप्त नहीं किया होता है या सत्य वास्तविकता में प्रवेश नहीं किया होता है तब उनके द्वारा दिखावा करना पसंद करने का दोष प्रदर्शित किए जाने की बहुत संभावना होती है और मानवता के इस दोष पर काबू पाना आसान नहीं होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग सत्य प्राप्त करने से पहले जिन चीजों का दिखावा कर सकते हैं और जिनकी शान दिखा सकते हैं वही उनके जीवनयापन की पूँजी और आत्म-आश्वासन हैं। तुम्हें अपने स्व-आचरण पर और चीजें करने में प्रेरणा पर पूरी तरह से इसलिए विश्वास होता है क्योंकि तुम जीने के लिए रूप-रंग, व्यवहार, खूबियों, शिक्षा के स्तरों, योग्यताओं या पेशेवर कौशलों जैसी चीजों पर भरोसा करते हो। इसलिए, ज्यादातर लोग दिखावा करना पसंद करने की कमी को अलग-अलग हदों तक प्रदर्शित करते हैं और इस पर काबू पाना आसान नहीं है, इसके खिलाफ विद्रोह करना आसान नहीं है। जब लोग सत्य समझते हैं और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करते हैं, उनका एक निश्चित आध्यात्मिक कद होता है और वे सत्य से असंबंधित चीजों की कम परवाह करते हैं, तब वे समझने लगते हैं कि दिखावा करने या शान दिखाने की कोई जरूरत नहीं है और ये चीजें न तो यह दर्शाती हैं कि व्यक्ति में मानवता है और न ही यह कि व्यक्ति का आध्यात्मिक कद है; और यकीनन इससे भी ज्यादा यह कि वे यह नहीं दर्शाती हैं कि व्यक्ति को बचा लिया गया है या वह सत्य और परमेश्वर के प्रति समर्पण करने में समर्थ है। इसलिए, कुछ लोग जो दिखावा करना पसंद करते थे, जैसे-जैसे वे सत्य समझते जाते हैं और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करते जाते हैं, उनकी यह इच्छा धीरे-धीरे कम होती जाती है और मानवता के इस दोष पर अनजाने में काबू पा लिया जाता है और यह गायब हो जाता है। उदाहरण के लिए, किसी ऐसे व्यक्ति को लो जिसने थोड़ी-सी महँगी टी-शर्ट पहनी है। जब वह अचानक थोड़ी-सी गंदी हो जाती है तब वह बहुत चिंतित हो उठता है। कोई और उससे कहता है, “तुम इतने चिंतित क्यों हो? अगर तुम इसे धो लो तो क्या यह ठीक नहीं हो जाएगी?” वह उत्तर देता है, “तुम्हें पता है इस शर्ट की कीमत 200 युआन है?” वह दूसरों को बताने के लिए कीमत का जिक्र करने पर जोर देता है; सिर्फ तभी वह संतुष्ट महसूस करता है। अगर वह व्यक्ति सत्य समझता है तो जब ऐसे मामले दोबारा उसके सामने आएँगे तो वह उनसे सही ढंग से पेश आएगा। वह कीमत का जिक्र नहीं करेगा और इस मौके पर उसका गरूर कुछ हद तक सीमित हो जाएगा। क्या इससे यह नहीं दिखेगा कि उसकी मानवता अपेक्षाकृत परिपक्व हो गई है और अब वह उतनी उथली या बचकानी नहीं रही? (हाँ।) इस तरह से उसका दिखावा करना पसंद करना, उसकी मानवता के इस दोष पर काबू पा लिया जाएगा।

अगली अभिव्यक्ति गरीबों का तिरस्कार करना और अमीरों की तरफदारी करना है। कुछ लोग जब किसी दौलतमंद व्यक्ति को देखते हैं तब तुरंत उसकी खुशामद करने लगते हैं, ऐसी चीजें कहते हैं, “तुम्हारी त्वचा बहुत अच्छी है। तुम अच्छे दिख रहे हो। तुम इतने नेक हो कि तुम्हारी थूक की कीमत भी हम गरीबों से ज्यादा है!” अमीर लोगों और प्रतिष्ठा और रुतबे वाले लोगों से बात करते समय वे विशेष रूप से नम्र होते हैं। लेकिन जब वे किसी किसान को देखते हैं तब वे हमेशा उसका मजाक उड़ाना चाहते हैं और उनके शब्द, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, उसे नीचा दिखाते हैं। गरीबों और अमीरों के प्रति उनके रवैये पूरी तरह से भिन्न होते हैं। वे अमीरों की जरूरतें पूरी करने को तैयार रहते हैं, खुशी से उनके गुलाम बनने की हद तक भी। लेकिन गरीबों के साथ यह एक भिन्न कहानी है—जब गरीब लोग मुश्किलों का सामना करते हैं और मदद माँगते हैं तब वे उन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। निम्न प्रतिष्ठा और निम्न सामाजिक रुतबे वाले लोगों के साथ उनका व्यवहार उच्च सामाजिक रुतबे वाले लोगों के साथ उनके व्यवहार से बिल्कुल भिन्न होता है। यह गरीबों का तिरस्कार करना और अमीरों की तरफदारी करना है। यह किस तरह की समस्या है? (मानवता का दोष है।) क्या यह मानवता का दोष है? मानवता के भीतर यह किस तरह की समस्या है? (नीच चरित्र वाला होना।) यह मानवता के भीतर चरित्र की समस्या है—नीच चरित्र वाला होना। जब वे अमीर लोगों को देखते हैं तब वे आज्ञाकारी मातहत बन जाते हैं और अत्यधिक दासतापूर्ण ढंग से कार्य करते हैं। जब वे गरीब लोगों को देखते हैं तब वे ऐसे कार्य करना चाहते हैं मानो वे मालिक हों। वे किस किस्म के प्राणी हैं? लोगों के साथ इस तरीके से पेश आना दर्शाता है कि उनका कोई सिद्धांत नहीं होता है! गरीब लोगों के पास बस पैसों की थोड़ी-सी कमी होती है और उनके जीवनयापन की स्थितियाँ थोड़ी बदतर होती हैं—उन्होंने तुम्हें कैसे नाराज किया है? क्या गरीब लोगों में अनिवार्य रूप से बुरी मानवता होती है? क्या अमीर लोगों में अनिवार्य रूप से अच्छी मानवता होती है? जो लोग गरीबों का तिरस्कार करते हैं और अमीरों की तरफदारी करते हैं, क्या वे दूसरों को सत्य सिद्धांतों के आधार पर मापते और देखते हैं? स्पष्ट रूप से, नहीं। उनका मानना है कि जिसके पास पैसा है वह नेक और महान है, और जो गरीब है वह नीच और कमतर है। लोगों को मापने का उनका मानक पैसा है। क्या ऐसे लोग अच्छे लोग होते हैं? उनकी मानवता कैसी होती है? (उनकी मानवता बुरी होती है।) जब वे किसी अमीर व्यक्ति को देखते हैं तब वे खुशामदी मुस्कान ओढ़ लेते हैं; जब वे किसी गरीब व्यक्ति को देखते हैं तब उनका चेहरा तुरंत काला पड़ जाता है—उनका चेहरा कितनी जल्दी बदल जाता है! वे अमीर व्यक्ति के लिए शौच का भगोना तक उठाने को तैयार होते हैं, लेकिन गरीब व्यक्ति के लिए एक गिलास पानी तक उड़ेलने को तैयार नहीं होते। वे किस तरह के प्राणी हैं? क्या वे नीच चरित्र वाले नहीं हैं? (हाँ।) क्या ऐसे लोगों का अगुआ होना अच्छा है? (नहीं।) क्यों नहीं? वे किन तरीकों से अगुआ की भूमिका के लिए अनुपयुक्त हैं? (लोगों से पेश आने के तरीके में उनका कोई सिद्धांत नहीं होता है और उनके द्वारा लोगों का चयन और उपयोग सत्य सिद्धांतों पर आधारित नहीं होता है बल्कि इस बात पर आधारित होता है कि व्यक्ति के पास सामाजिक रुतबा और पैसा है या नहीं। अगर वे अगुआ बन जाते हैं तो वे रुतबे और पैसे वाले लोगों को पदोन्नत करेंगे। अगर जिन लोगों को पदोन्नत किया जाता है, वे बुरे लोग हों तो कलीसिया में बुरे लोगों के पास शक्ति होगी और वह एक आपदा होगी।) ऐसे लोग अगुआ बनने के लिए उपयुक्त नहीं हैं। एक बात तो यह है कि वे नीच चरित्र के होते हैं और वे जो भी करते हैं उसमें जमीर का कोई मानक नहीं होता है। दूसरी बात यह है कि अगर उन्हें अगुआ बना दिया जाए तो वे कलीसिया को समाज जैसा कुछ बना देंगे—वे जिस कलीसिया की अगुआई करेंगे, वह एक सामाजिक समूह बन जाएगी। वे उन लोगों को पदोन्नत करेंगे जो दौलतमंद और प्रभावशाली हैं, जिनके पास प्रतिष्ठा, रुतबा और जान-पहचान हैं और जो समाज में फलते-फूलते हैं और वे उन्हें टीम अगुआ और पर्यवेक्षक बना देंगे, जबकि वे उन किसानों, गरीबों और उन लोगों को पैरो तले रौंद डालेंगे जो कम पढ़े-लिखे हैं और मीठे-मीठे शब्द बोलने में अच्छे नहीं हैं, जिनमें अच्छी मानवता है, जिनमें काबिलियत है और जो सत्य का अनुसरण करते हैं, लेकिन निम्न सामाजिक रुतबे के हैं। क्या इससे कलीसिया ठीक समाज जैसी नहीं बन जाएगी? क्या अंतर रह जाएगा? क्या समाज में जो लोग दौलतमंद होते हैं और जिनके पास रुतबा होता है उन्हीं के पास शक्ति नहीं होती है? क्या जिन लोगों के पास प्रतिष्ठा, जान-पहचान, शक्ति और प्रभाव होता है उन्हीं के पास रुतबा नहीं होता है और वही समाज के सभी स्तरों, क्षेत्रों और समूहों में सुर्खियाँ नहीं बटोरते हैं? अगर परमेश्वर का घर समाज जैसा हो जाए तो क्या वह तब भी परमेश्वर का घर ही रहेगा? वह तब परमेश्वर का घर नहीं रहेगा और उसे कलीसिया नहीं कहा जा सकेगा—वह एक सामाजिक समूह होगा। गरीबों का तिरस्कार और अमीरों की तरफदारी करने वाले लोगों के अगुआ बनने का नतीजा बिल्कुल यही होता है। ऐसे लोग किसी भी रुतबे वाले व्यक्ति के गुलाम बन जाते हैं। मुझे बताओ, क्या गुलामों की तरह कार्य करने वाले लोगों के कोई सिद्धांत होते हैं? क्या उनके स्व-आचरण में सीमाएँ होती हैं? (नहीं।) ऐसे लोगों के स्व-आचरण में कोई सिद्धांत या सीमाएँ नहीं होती हैं। खतरनाक परिवेश का सामना करने पर वे यहूदा बन सकते हैं। अगर उनके देश का पतन हो जाए तो वे गद्दार बन जाएँगे। अगर वे सरकारी अगुआ बन जाएँ तो वे देशद्रोही बन जाएँगे। वे बिल्कुल इसी तरह के प्राणी हैं! इसलिए वे अगुआ बनने के लिए उपयुक्त नहीं हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे वास्तविक कार्य नहीं करेंगे और भाई-बहनों को नुकसान पहुँचाएँगे, उन सभी को पैरों तले रौंद डालेंगे जो सही मायने में सत्य का अनुसरण करते हैं और जिनमें मानवता है, जबकि वे उन लोगों को पदोन्नत करेंगे जो बुरी मानवता वाले हैं, जो समाज में रुतबा रखते हैं और प्रतिष्ठित और प्रभावशाली हैं; यह लोगों को पदोन्नत करने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के बिल्कुल विपरीत है। अगर ऐसे लोग परमेश्वर के घर में राज करें और शक्ति रखें तो क्या कलीसिया का कार्य सुचारू और निर्बाध रूप से चल सकेगा? (नहीं।) कलीसिया और परमेश्वर के चुने हुए लोगों का कार्य इन लोगों के हाथों बर्बाद हो जाएगा। ये लोग एक-दूसरे के साथ सांठगांठ करेंगे, एक-दूसरे का उपयोग करेंगे और एक-दूसरे को सहारा देंगे। जो भाई-बहन सत्य का अनुसरण करते हैं उन्हें हाशिए पर डाल दिया जाएगा और अलग कर दिया जाएगा—यहाँ तक कि हो सकता है कि उन सभी को ब समूहों में डाल दिया जाए या हटा दिया जाए जिससे उनके लिए कोई रास्ता नहीं बचेगा। क्या यही बात नहीं हो सकती है? (हाँ।) इन लोगों के बीच रिश्ते कैसे हैं? जब वे इकट्ठे होते हैं तब एक-दूसरे को यार बुलाते हैं, एक-दूसरे के गले में बाँहें डालते हैं और समाज में अपने गौरवशाली इतिहास की शेखी बघारते हैं, इस बारे में बात करते हैं कि वे एक-दूसरे के लिए क्या कर सकते हैं और फिर पूछते हैं कि दूसरा उनके लिए क्या कर सकता है, एक-दूसरे का उपयोग करते हैं। ये लोग समाज के लोगों से किसी भी तरह से कैसे भिन्न हैं? जब वे इकट्ठे होते हैं तब वे परमेश्वर के वचन को खाते और पीते नहीं हैं, सत्य के बारे में संगति नहीं करते हैं, अपनी व्यक्तिगत अनुभवजन्य समझ के बारे में संगति नहीं करते हैं, खुद को जानने के बारे में बात नहीं करते हैं और अपने भ्रष्ट स्वभावों का गहन-विश्लेषण नहीं करते हैं। इसके बजाय वे सिर्फ इस बारे में बात करते हैं कि समाज में उनके लिए चीजें कितनी सफल रही हैं, उन्होंने क्या चीजें कीं जिससे वे सुर्खियों में आ गए, उनके गौरवशाली इतिहास, उन्होंने किन अधिकारियों के साथ शराब पी और खाना खाया, किन अधिकारियों की खुशामद की—वे बस इन्हीं चीजों के बारे में बात करते हैं। क्या ये लोग परमेश्वर में विश्वासी हैं? वे रुतबे, पृष्ठभूमि, क्षमताओं और साधनों को लेकर एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं और साथ ही एक-दूसरे के साथ सांठगांठ भी करते हैं और एक-दूसरे का उपयोग भी करते हैं—उनके रिश्ते ऐसे होते हैं। अगर तुम कोई आम व्यक्ति या किसान हो जो उनके लिए कुछ नहीं कर सकता है तो वे तुम्हें बेकार व्यक्ति के रूप में देखते हैं, एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो उनके ध्यान में आने के बिल्कुल लायक नहीं है, और तुम्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है। जब वे इकट्ठे होते हैं तो किस बारे में बातें करते हैं? वे इस पर चर्चा करते हैं कि कपड़ों के किस ब्रांड ने बाजार में नया आइटम पेश किया है, बाजार में कौन-सी नई कार आई है, किसने कई कैरेट का हीरा खरीदा, किसकी संपत्ति नीलाम हुई, किसके स्टॉक गिरे या चढ़े, किसकी कंपनी सार्वजनिक हुई, किसने सरकारी अधिकारियों से मिलीभगत की, किसने किस गिरोह के साथ सांठगांठ की, किसने कितने उपहार दिए और किसी काम को करवाने के लिए कितना पैसा खर्च किया—यह सब यही चीजें हैं। मुझे बताओ, क्या यह घिनौना नहीं है? अगर वे कलीसिया में हमेशा इन चीजों के बारे में बातें करते रहेंगे तो क्या कलीसियाई जीवन और कलीसिया के कार्य में उनके द्वारा व्यवधान नहीं पड़ेगा और वह बर्बाद नहीं हो जाएगा? मुझे बताओ, क्या ऐसे लोगों को अगुआ चुना जा सकता है? (नहीं।) वे अवसरवादी हैं। जब तुम लोगों को कलीसिया में ऐसे लोगों का पता लग जाता है तब तुम्हें उन्हें उजागर कर देना चाहिए और उन्हें दूर कर देना चाहिए—परमेश्वर का घर ऐसे लोगों को रोककर नहीं रखता है। परमेश्वर के घर में अवसरवादी लोग बस बेतरतीब ढंग से जीने और चालाकी से आशीष पाने के लिए मौजूद रहते हैं। वे सत्य बिल्कुल स्वीकार नहीं करते हैं और कोई भी सकारात्मक चीज स्वीकार नहीं करते हैं। इसके अलावा ये लोग बिना किसी ईमानदारी के अपना कर्तव्य करते हैं; वे खुद को बिल्कुल भी खपाना नहीं चाहते हैं और सिर्फ फायदे हासिल करना चाहते हैं। अगर कोई फायदे नहीं है तो वे कुछ भी नहीं करेंगे। जहाँ भाई-बहन अपने कर्तव्य करने और लगन से कार्य करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, वहीं ये लोग अपने कर्तव्यों को नजरअंदाज कर देते हैं और खुद को निजी मामलों में व्यस्त कर लेते हैं, यहाँ तक कि खाने-पीने और मौज-मस्ती में भी लिप्त रहते हैं। वे अक्सर ऑनलाइन भी जाते हैं और उन चीजों के बारे में जानकारी हासिल करने में बहुत सारा समय बिताते हैं जो उन्हें सबसे ज्यादा पसंद हैं या जिसे वे सबसे ज्यादा चाहते हैं, जैसे कि फैशन, सौंदर्य, केशसज्जा और उच्च श्रेणी के स्वास्थ्य उत्पाद। वे जहाँ भी जाते हैं, वहीं धौंस जमाते हैं और दूसरों को धोखा देते हैं; वे अपनी तरह के लोगों की तलाश करते हैं और जब उन्हें अपने जैसा कोई मिल जाता है तब वे तुरंत उससे घुल-मिल जाते हैं। वे सच्चे भाई-बहनों के साथ मिलजुलकर नहीं रह सकते हैं और कलीसिया में वे अनुपयुक्त और गैर-मनुष्य होते हैं। जब तुम्हें ऐसे लोग दिखाई दें तो तुम्हें उनसे दूर रहना चाहिए। इसके अलावा, अगर ज्यादातर लोगों या तुम्हारे अगुआओं में भेद पहचानने की क्षमता नहीं है और वे अब भी उन्हें सच्चा विश्वासी भाई या बहन मानते हैं तो तुम्हें उन्हें उजागर करने और दूर कर देने के लिए आगे आना होगा। अब तुम्हें समझ आया? ऐसे लोगों को दूर क्यों किया जाना चाहिए? (क्योंकि ऐसे लोग कलीसिया में आसानी से विघ्न डालते हैं, नकारात्मक परिवेश लेकर आते हैं और दूसरों को अपना कर्तव्य करने और सत्य का अनुसरण करने में प्रभावित कर सकते हैं।) बिल्कुल, वे कलीसिया का परिवेश बिगाड़ देते हैं। वे खुद सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं और दूसरों को भी प्रभावित करते हैं, उन्हें रोककर रखते हैं। एक डॉलर कीमत के कार्य के लिए वे मजदूरी में दस डॉलर माँगते हैं। ऐसे लोगों का उपयोग करना कुत्ते पालने जितना भी सार्थक नहीं है। कम-से-कम कुत्ता घर की रखवाली तो कर सकता है और अपने मालिक के प्रति वफादार हो सकता है! वह पर्दे के पीछे से कोई धूर्त चालें नहीं चलता है और तुम्हें बाद में उसके द्वारा कोई मुसीबत खड़ी किए जाने की चिंता नहीं करनी पड़ती है। अगर कलीसिया ऐसे लोगों को अनुमति दे दे जो गरीबों का तिरस्कार करते हैं और अमीरों की तरफदारी करते हैं तो क्या नतीजे होंगे? क्या वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों की मदद कर सकेंगे? क्या वे दूसरों के लिए लाभदायक हो सकेंगे? (नहीं।) एक बार जब वे बेनकाब हो जाते हैं और दूसरे लोग उनकी असलियत देख लेते हैं तो उन्हें दूर कर दिया जाना चाहिए। अगर उन्हें रहने की अनुमति दे दी जाती है तो वे सिर्फ गड़बड़ करेंगे और बाधा डालेंगे, सिर्फ मुसीबत खड़ी करेंगे और कलीसिया पर सिर्फ विपत्ति लाएँगे। अगर तुम तब तक प्रतीक्षा करोगे जब तक कि वे किसी बड़ी आपदा का कारण नहीं बन जाते और बाद में बस गड़बड़ी को साफ कर दोगे तो यह बहुत परेशानी वाली बात हो जाएगी। हम परेशानी नहीं चाहते हैं; हम खुद को चिंता से बचाए रखना पसंद करेंगे। ऐसे बहुत से काम और कर्तव्य हैं जो लोगों को करने चाहिए—इन परेशानियों को बुलावा मत भेजो।

एक और प्रकार का व्यक्ति होता है : वह जो ताकतवर लोगों की खुशामद करना पसंद करता है। क्या वे लोग जो ताकतवर लोगों की खुशामद करते हैं, अच्छे होते हैं या बुरे? (वे बुरे होते हैं।) वे किन तरीकों से बुरे होते हैं? इस तरह का व्यक्ति बेहद नकचढ़ा होता है। जब वह किसी रुतबे वाले व्यक्ति को देखता है तब वह उसकी खुशामद करने का लगातार हर प्रयास करता है; वह उससे बात करने की पहल करता है और उसे अपने दिल की सारी बातें बताता है, उसे भोजन परोसता है, उसके कपड़े धोता है और उसके लिए सफाई करता है। ऐसा कुछ भी नहीं है जो वह करने को तैयार न हो। अगर तुम्हारा कोई रुतबा नहीं है तो वह तुम्हें नहीं देखने का ढोंग करता है और अगर तुम उसके पास जाने की पहल करते हो तो जब वह तुम्हें देखता है तब उसके चेहरे की अभिव्यक्ति तुरंत कड़वाहट में बदल जाती है। क्या ऐसे लोग अच्छे होते हैं? इस तरह की समस्या किस पहलू के तहत आती है? (इस तरह का व्यक्ति निम्न चरित्र का होता है और उसमें खराब मानवता होती है।) उसकी मानवता किस हद तक बुरी होती है? (उसमें कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती है।) क्या जो लोग सक्रियता से ताकतवर लोगों की खुशामद करते हैं, वे अच्छे लोग होते हैं? (नहीं।) तो फिर ये किस तरह के लोग होते हैं? जो लोग ताकतवर लोगों की खुशामद करना पसंद करते हैं, उनका चरित्र कैसा होता है? एक ही व्यक्ति के साथ व्यवहार करते समय उनके दो अलग-अलग चेहरे होते हैं। वे दूसरे लोगों द्वारा उनकी असलियत देख लिए जाने से नहीं डरते हैं और यहाँ तक कि अपने इन पक्षों को मुक्त भाव से प्रदर्शित भी होने देते हैं। क्या इन लोगों में सत्यनिष्ठा या शर्म की कोई भावना होती है? (नहीं।) क्या इन लोगों को जिनमें सत्यनिष्ठा या शर्म की कोई भावना नहीं होती है, बुरे लोगों के रूप में श्रेणीबद्ध किया जा सकता है? (हाँ।) उन्हें बुरे लोगों के रूप में श्रेणीबद्ध क्यों किया जा सकता है? वे जिस तरीके से दूसरों से पेश आते हैं उसमें उनके दो अलग-अलग चेहरे होते हैं। आओ, इन दो अलग-अलग चेहरों की जड़ का विश्लेषण करें। ये लोग रुतबे को विशेष रूप से पसंद करते हैं और वे उन लोगों को पसंद करते हैं जिनके पास प्रतिष्ठा होती है और जो ताकतवर हैं। जब वे रुतबे वाले लोगों को देखते हैं तब वे बहुत मुस्कुराते हैं, पूरी तरह से आज्ञाकारी बन जाते हैं; वे बिना किसी संकोच के उनकी तारीफों के पुल बाँधते हैं और उनकी खुशामद करते हैं और बेशर्मी से उनकी चापलूसी करते हैं। चाहे उनका लक्ष्य उन लोगों का मिठू बनना हो या उनका कोई छिपा हुआ मकसद हो कि उन्हें महत्व दिया जाए और पदोन्नत किया जाए, दूसरों के प्रति उनका रवैया समस्यात्मक होता है और सत्य सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। तो फिर रुतबे वाले लोगों के प्रति वे इस तरह का रवैया क्यों रखते हैं? (अपने स्वार्थों की खातिर।) इससे साबित होता है कि वे रुतबे को विशेष रूप से पसंद करते हैं। रुतबा हासिल करने के लिए खुद उनमें क्षमता की कमी होती है या उनके पास योग्यताएँ, परिस्थितियाँ या अवसर नहीं होते हैं। लेकिन रुतबे वाले लोगों की खुशामद करके और उनके करीब आकर वे रुतबे की अपनी इच्छा पूरी करने में समर्थ होते हैं। इसलिए वे बिना किसी संकोच या शर्म के दूसरों की खुशामद कर सकते हैं और उनकी चापलूसी कर सकते हैं। उनका चरित्र काफी नीच होता है। वे इस बात की परवाह नहीं करते हैं कि रुतबे वाला व्यक्ति किस तरह का व्यक्ति है और न ही वे यह भेद पहचानते हैं कि इस व्यक्ति की मानवता अच्छी है या बुरी या क्या यह व्यक्ति बुरा है। जब तक इस व्यक्ति के पास रुतबा या पैसा है तब तक भले ही वह व्यक्ति बुरा व्यक्ति हो, वे फिर भी उसकी खुशामद करेंगे। क्या वे पूरी तरह से सिद्धांतहीन नहीं हैं? (हाँ, हैं।) उनके लिए, रुतबे वाले लोग जो भी कहते हैं वह सही और अच्छा होता है और वे जिस भी तरीके से बोलते हैं वह स्वीकार्य है। जब तक किसी के पास रुतबा होता है तब तक वे उस व्यक्ति से अच्छी तरह से पेश आते हैं। उनमें सिद्धांतों की पूरी कमी होती है और वे उस व्यक्ति के प्रति असामान्य रूप से अच्छे होते हैं। उनमें सत्यनिष्ठा या शर्म की सच में कोई भावना नहीं होती है जिसका जिक्र किया जा सके। वे इस बात की परवाह नहीं करते हैं कि दूसरे लोग उन्हें कैसे देखते हैं या उनका कैसे मूल्यांकन करते हैं। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि दूसरे उनके बारे में क्या सोचते हैं। वे मन ही मन सोचते हैं, “मुझे बस रुतबे वाले लोग अच्छे लगते हैं। मैं बस उनसे अच्छी तरह से पेश आना चाहता हूँ। रुतबा होने में क्या गलत है? तुम लोग जिनके पास कोई रुतबा नहीं है इस काबिल नहीं हो कि मैं तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार करूँ!” ऐसे लोगों के पास कोई सिद्धांत या गरिमा नहीं होती है। वे न तो इस बात की परवाह करते हैं कि दूसरे उन्हें किस नजर से देखते हैं और न ही इस बात की कि परमेश्वर उनका मूल्यांकन कैसे करता है। ये नीच चरित्र वाले लोग हैं। इस तरह से कार्य करने में उनका जमीर कुछ भी महसूस नहीं करता है और उनके विवेक में निर्णय का कोई मानक नहीं होता है। उनके पास कोई न्यूनतम मानक नहीं होता है और वे जिस तरीके से आचरण करते हैं उसमें वे बहुत कमजोर होते हैं। किसी रुतबे वाले व्यक्ति के सामने आने पर वे तुरंत सिमट जाते हैं, गिड़गिड़ाते हैं और गुलाम की तरह बन जाते हैं, उनके आज्ञाकारी मातहत का पद ले लेते हैं। जिस किसी के भी पास रुतबा होता है, वही उनका मालिक बन जाता है। क्या ऐसे लोगों में सत्यनिष्ठा या गरिमा होती है? (नहीं।) वे रुतबे वाले लोगों की सबसे घिनौनी चापलूसी करने में भी सक्षम होते हैं और वे ऐसा कितने भी लोगों के सामने करने की हिम्मत करते हैं। वे दूसरों के विचारों की या इस बात की परवाह नहीं करते हैं कि दूसरे लोग उन्हें कैसे देखते हैं और वे सिर्फ अपनी खुद की इच्छाएँ संतुष्ट करने का लक्ष्य रखते हैं। वे रुतबे वाले लोगों के साथ ऐसे ही व्यवहार करते हैं। लेकिन जब कोई रुतबे वाला व्यक्ति रुतबा खो देता है तब क्या होता है? फिर वे चेहरा बदल लेते हैं। तो फिर वे उस व्यक्ति से कैसे पेश आते हैं? (वे तुरंत उसे नजरअंदाज करना शुरू कर देते हैं।) उनके चेहरे पर कालिमा छा जाती है और उनका रवैया पूरी तरह से बदल जाता है : “तुमने अपना रुतबा खो दिया है और फिर भी तुम चाहते हो कि मैं तुमसे अच्छी तरह से पेश आऊँ? सपने देखते रहो!” अगर जिस व्यक्ति ने रुतबा खो दिया है वह उनसे एक गिलास पानी उड़ेलने के लिए कहता है तो वे उसे नजरअंदाज कर देते हैं। अगर वह उनसे हाथ बटाने के लिए कहता है तो वे उसे नजरअंदाज कर देते हैं। अगर वह उनसे दिल खोलकर बातचीत करना चाहता है तो वे कहते हैं, “क्या तुम इस लायक हो? क्या तुम्हारे पास मुझसे बात करने के लिए योग्यताएँ हैं? तुम खुद को समझते क्या हो?” उनका स्वभाव कितना क्रूर है! क्या रुतबा न होना कोई अपराध है? क्या किसी व्यक्ति को उसके आधिकारिक पद से हटा दिए जाने के बाद वह बदल जाता है? क्या वह अब भी वही व्यक्ति नहीं है? ऐसा क्यों है कि अब वह ऐसे लोगों से बात करने के लायक नहीं है? ऐसे लोग उसका हाथ क्यों नहीं बटा सकते हैं? अगर कोई जानवर मुसीबत में हो जिसे मनुष्य की मदद की जरूरत है, तब भी लोगों को अपने जमीर के बोध से उसकी मदद करनी चाहिए, उसकी देखभाल करनी चाहिए और उसका ख्याल रखना चाहिए—तो फिर मनुष्य के लिए यह कितना ज्यादा होना चाहिए? फिर भी उनमें लेशमात्र भी मानवीय दया नहीं है। इन अभिव्यक्तियों के अलावा कुछ लोग इससे भी आगे बढ़ जाते हैं। वे मन ही मन सोचते हैं, “इससे पहले मैं तुमसे अच्छी तरह से पेश आता था क्योंकि तुम्हारे पास रुतबा था। अब जब तुमने अपना रुतबा खो दिया है तब भी क्या तुम मुझसे यह उम्मीद करते हो कि मैं तुम्हारा सम्मान करूँगा और तुम्हारी लाज रखूँगा, बातचीत के दौरान तुम्हें असहज स्थिति में डालने से बचूँगा और पहले की तरह तुम्हारे आदेशों का पालन करूँगा? नामुमकिन! तुम्हें तो शुक्रगुजार होना चाहिए कि मैं तुम्हें पैरों तले कुचल नहीं रहा हूँ!” आखिर ये किस तरह के प्राणी हैं? जब कोई मुश्किल में होता है तब ये न सिर्फ उसे नजरअंदाज करते हैं, बल्कि पीठ पीछे उसे पैरों तले कुचलते भी हैं, उसे डराने-धमकाने और दबाने के मौके ढूँढ़ते रहते हैं। वे किस तरह के लोग हैं? (वे बुरे लोग हैं।) बुरे लोगों के रूप में उनका असली चेहरा इसी तरह से प्रकट होता है, है ना? रुतबे वाले लोगों के प्रति ये आज्ञाकारी मातहतों जैसा व्यवहार करते हैं, जो सटीक और उचित व्यवहार करते हैं और मुस्कुराहट के साथ उनका अभिवादन करते हैं। वे चापलूसी से दूसरों के साथ सहमत होने में माहिर होते हैं। अगर कोई अधिकारी कहता है कि चाँद पर आलू उगाए जा सकते हैं तो वे भी बोल पड़ेंगे, “चाँद पर उगाए गए आलू वाकई बहुत स्वादिष्ट होते हैं!” लेकिन जब वह अधिकारी अपना रुतबा खो देता है तब उनका रवैया पूरी तरह से बदल जाता है। अब वह पूर्व अधिकारी चाहे कुछ भी कहे, अगर वह सही भी हो तो भी वे उसकी बात नहीं मानेंगे। भले ही इस पूर्व अधिकारी में सच्ची समझ हो, वे उसे नजरअंदाज कर देते हैं और उसे स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं और उन्हें वह सिर्फ अप्रिय ही लगता है। अपने दिलों में वे सोचते हैं, “तुम्हारा कोई रुतबा नहीं है, इसलिए तुम्हारी कही कोई भी बात मायने नहीं रखती है। भले ही तुम जो कहते हो वह सही हो, तो भी उसका क्या फायदा है? भले ही तुम्हारे पास सत्य वास्तविकता हो, तो भी मैं तुम्हें पसंद नहीं करता। मुझे बस बिना रुतबे वाले लोगों को पैरों तले कुचलने में मजा आता है—अगर मैंने उन्हें पैरों तले नहीं कुचला तो यह मौका बरबाद करना होगा!” वे किस किस्म के प्राणी हैं? अगर तुम्हारा कोई रुतबा नहीं है तो तुम उन्हें अप्रिय लगते हो। तुम उनके साथ चाहे कितनी भी अच्छी तरह से पेश आओ, यह बेकार है। तुम चाहे उन्हें अपने समान स्तर पर रखो और उनसे सिद्धांतों के अनुसार पेश आओ, इससे तुम्हारे प्रति उनका रवैया नहीं बदल सकता है। क्या ऐसे लोगों में मानवता होती है? (नहीं।) उनमें मानवता की कमी की अभिव्यक्ति क्या है? क्या यह क्रूरता नहीं है? (हाँ।) जो लोग ताकतवर लोगों की खुशामद करना पसंद करते हैं, उनका स्वभाव अत्यंत क्रूर होता है और मुझे बस ऐसे लोग बेहद घिनौने लगते हैं। ऐसे लोगों की नजर में जब तुम्हारे पास रुतबा होता है तब तुम्हारी सारी कमियाँ और दोष तुम्हारे गुणों और मजबूत पक्षों के रूप में देखे जाते हैं। लेकिन जब तुम्हारे पास कोई रुतबा नहीं होता है तब तुम्हारे सारे गुण और मजबूत पक्ष कमियों और दोषों के रूप में देखे जाते हैं। तुम्हारी कही कोई भी बात मायने नहीं रखती है और उन्हें तुम्हारे बारे में हर चीज अप्रिय लगती है। वे हमेशा तुम्हें डराना-धमकाना, पैरों तले कुचलना और दबाना चाहते हैं। वे क्रूर स्वभाव वाले होते हैं, है ना? (हाँ।) वे बिना रुतबे वाले लोगों को जैसे चाहें वैसे डराते-धमकाते हैं। उन्हें लगता है कि सीधे-साधे लोगों को डराना-धमकाना नहीं करना पाप है। भले ही तुमने उन्हें उकसाया न हो, फिर भी वे सक्रियता से तुम्हारी गलतियाँ ढूँढ निकालेंगे, तुम्हें डराएँगे-धमकाएँगे और तुम्हें पैरों तले कुचल देंगे, घोर तिरस्कार से तुम्हें नीची नजर से देखेंगे। यह ऐसा है मानो कोई रुतबा नहीं होना पाप हो, जो तुम्हें उनके साथ रहने या उनकी मौजूदगी में रहने के अयोग्य बनाता है; मानो अगर तुम्हारे पास कोई रुतबा न हो तो तुम खुद अपने लिए मुसीबत ले आए हो और बदकिस्मती के लायक हो। वे किस किस्म के प्राणी हैं? क्या ऐसे लोगों को कलीसिया में रहने की अनुमति देनी चाहिए? (नहीं।) क्या ऐसे लोगों को जो ताकतवर लोगों की खुशामद करना विशेष रूप से पसंद करते हैं अगुआ चुना जा सकता है? (नहीं।) क्यों नहीं? वे रुतबे वाले लोगों के साथ ठीक इसी तरह से व्यवहार करते हैं—अगर खुद उन्हें रुतबा हासिल हो जाए तो क्या वे तानाशाह नहीं बन जाएँगे, खुद को सर्वोच्च नहीं बना लेंगे? यह विनाशकारी होगा! वे परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं, कलीसिया के प्रशासनिक आदेशों और भाई-बहनों के सुझावों को नजरअंदाज करेंगे और यहाँ तक कि बिना रुतबे वाले लोगों को भी दबाएँगे चाहे उन्होंने कुछ भी कहा या किया हो। वे कलीसिया को बरबाद कर देंगे। ऐसे लोगों में ताकत की अत्यधिक तेज इच्छा होती है और एक बार जब उन्हें वह चीज मिल जाती है जो वे चाहते हैं तब होने वाले नतीजों की कल्पना करना असंभव है। जो लोग ताकतवर लोगों की खुशामद करते हैं, वे विशेष रूप से क्रूर होते हैं और विशेष रूप से नीच चरित्र वाले होते हैं। उनके भ्रष्ट स्वभाव की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? (क्रूरता।) दुष्टता, क्रूरता और सत्य से विमुखता। विशेष रूप से दुष्टता यह है कि किस तरह से वे एक ही व्यक्ति से पेश आने के लिए दो पूरी तरह से अलग-अलग चेहरों का उपयोग करते हैं और बेहद जल्दी बदल जाते हैं। क्या यह दुष्ट नहीं है? (हाँ।) भले ही बिना रुतबे वाले लोग उन्हें न उकसाएँ, फिर भी वे उन पर हमला करने, उन्हें डराने-धमकाने और उन्हें रौंद डालने की पहल करेंगे। क्या यह क्रूर नहीं है? (हाँ।) चाहे दूसरे व्यक्ति के पास रुतबा हो या न हो, वे सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं कर सकते हैं या उनसे निष्पक्षता से पेश नहीं आ सकते हैं। जब तुम उनसे कहते हो, “परमेश्वर के घर में सत्य के पास शक्ति होती है और लोगों से निष्पक्षता से पेश आया जाता है” तब क्या वे इसे स्वीकारते हैं? (नहीं।) यह बात बस एक कान में प्रवेश करती है और दूसरे से निकल जाती है, और वे सोचते हैं, “यह कैसी निष्पक्षता है? लोग या तो ऊँचे होते हैं या नीचे, कुलीन होते हैं या नीच। रुतबे वाले लोग कुलीन होते हैं; रुतबे से रहित लोग बेकार कचरा होते हैं!” लोगों को देखने और उनसे पेश आने का उनका तर्क और सिद्धांत यही है। वे सत्य सिद्धांतों को स्वीकार नहीं करते हैं और अब भी अपना विकृत तर्क बोलते हैं। क्या वे सत्य से विमुख नहीं हैं? (हाँ।) वे सांसारिक आचरण के अपने खुद के तर्क और सिद्धांतों का उपयोग करते हुए और सांसारिक व्यवहार पर अपने स्वयं के परिप्रेक्ष्यों का उपयोग करते हुए, रुतबे और शक्ति के साथ पेश आते हैं, और इन मामलों को सँभालने के लिए लोगों से कैसे पेश आना है इसके लिए परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं और सिद्धांतों की जगह सांसारिक आचरण के अपने खुद के सिद्धांतों और विधियों का उपयोग करते हैं। क्या यह सत्य को स्वीकार नहीं करना, सत्य का खुलेआम विरोध करना नहीं है? वे अपने दिलों में सोचते हैं, “अगर तुम्हारे पास रुतबा है तो मेरे दिल में तुम्हीं बॉस हो।” उनके दिलों में परमेश्वर और सत्य के लिए कोई जगह नहीं होती है। यह किस तरह का स्वभाव है? इतना दबंग होना और इतना मूर्खतापूर्वक जिद्दी होना—क्या यह सत्य नहीं स्वीकार करना नहीं है? क्या यह सत्य से विमुख होना नहीं है? (हाँ।) यह बिल्कुल ऐसा ही स्वभाव है। अकेले अपनी मानवता के लिहाज से ऐसे लोग नीच चरित्र वाले होते हैं, सरासर घिनौने होते हैं और मेलजोल रखने के लायक नहीं होते हैं। लेकिन उनके स्वभाव के लिहाज से यह सिर्फ इस बात का मामला नहीं है कि वे मेलजोल रखने लायक हैं या नहीं। ये लोग क्रूर, दुष्ट स्वभाव वाले होते हैं और ये उद्धार के लक्ष्य नहीं हैं। इन सभी को सजा दी जाएगी और ये मर जाएँगे; इनके कर्म मौत की सजा के योग्य अपराध हैं। ये लोग ताकतवर लोगों की आँख मूँदकर खुशामद करते हैं और गोद में बैठनेवाले कुत्तों जैसा ताबेदार व्यवहार प्रदर्शित करते हैं, जो कि घिनौना है। कलीसियाई अगुआओं के रूप में ऐसे लोग खतरा हैं। अगर तुम लोग ऐसे लोगों को कलीसियाई अगुआ चुनते हो तो तुम लोगों पर विपत्ति आएगी। कुछ जिला अगुआ मूर्ख होने और लोगों की असलियत देखने में असमर्थ होने के कारण इस प्रकार के लोगों को कलीसियाई अगुआ के लिए उम्मीदवार भी नामित कर देते हैं जिसके फलस्वरूप कलीसिया के भाई-बहन धोखा खा जाते हैं। इस प्रकार के लोग, जो दूसरों के तलवे चाटने और ताकतवर लोगों की खुशामद करने में अच्छे होते हैं, और जो बाहर से बहुत जोशपूर्ण दिखते हैं और अगुआओं की हर बात मानते हैं, वे आसानी से उम्मीदवारों के रूप में चुन लिए जाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि कुछ अगुआ और कार्यकर्ता उन लोगों को पसंद करते हैं जो उनके तलवे चाटते हैं और ताबेदार होते हैं और वे उन नतीजों की असलियत नहीं देख पाते हैं जो इस प्रकार का पाखंडी व्यक्ति एक बार अगुआ बनते ही कलीसिया पर लेकर आएगा। अक्सर जब ऐसे लोग चुन लिए जाते हैं और उन्हें रुतबा हासिल हो जाता है तब उनका द्वेषपूर्ण पक्ष तुरंत बाहर आ जाता है और वे कलीसिया में बाधा डालना शुरू कर देते हैं। जिन अगुआओं ने उन्हें चुना था वे जब यह देखते हैं कि उन्होंने जिन लोगों को चुना वे बुरे लोग हैं, तब उन्हें पछतावा होता है, लेकिन वे उन नतीजों को ठीक नहीं कर सकते हैं जो उनके क्रियाकलाप कलीसिया पर लेकर आए हैं। यह पूरी तरह से अगुआओं और कार्यकर्ताओं के भ्रष्ट स्वभावों और बिना सिद्धांतों के कार्य करने का नतीजा है। जो लोग रुतबे और शक्ति का सम्मान करते हैं, वे सत्य से प्रेम करने वाले लोग नहीं होते हैं। वे ऐसे किसी भी व्यक्ति की खुशामद करते हैं जिसके पास रुतबा होता है और जब भी वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को देखते हैं तब वे चापलूसी भरी मुस्कान ओढ़ लेते हैं। कुछ अगुआ इस प्रलोभन का सामना नहीं कर पाते हैं; जब वे चापलूसी भरी मुस्कान वाले लोगों को देखते हैं तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता और वे अपनी खुद की सक्षमता दिखाने के लिए उन्हें पदोन्नत करना चाहते हैं। दरअसल जब वे लोग उनकी चापलूसी करते हैं और उन्हें चापलूसी भरी मुस्कान देते हैं तब उनके भयावह मकसद होते हैं, लेकिन ये अगुआ सोचते हैं कि वे लोग सच में अच्छे हैं। एक बार जब वे लोग अगुआ बन जाते हैं तब वे किसी के प्रति समर्पण नहीं करते हैं और उन्हीं अगुआओं को नजरअंदाज कर देते हैं जिन्होंने उन्हें पदोन्नत किया था। सिर्फ तब जाकर उन अगुआओं को एहसास होता है कि ये लोग अच्छे नहीं हैं और उन्होंने गलत लोगों को पदोन्नत किया। ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए? क्या इस स्थिति को ठीक नहीं करना चाहिए? (हाँ।) इसे कैसे ठीक करना चाहिए? (इन लोगों को तुरंत उजागर कर देना चाहिए और फिर बरखास्त कर देना चाहिए।) ये लोग वास्तविक कार्य नहीं कर सकते हैं; ये बस भ्रमित लोग हैं जो सिर्फ उन लोगों की खुशामद करना और उनकी चापलूसी करना जानते हैं जिनके पास शक्ति है। अगुआओं को उन्हें तुरंत बरखास्त कर देना चाहिए और इस बात का पछतावा करना चाहिए कि उस समय वे आँखों और दिल दोनों से अंधे थे और लोगों का भेद पहचानने में असमर्थ थे, इसलिए उन्होंने गलत लोगों को चुन लिया। अब परिस्थिति को तुरंत ठीक करने का अभी भी समय है। क्या अब तुम ऐसे लोगों की असलियत देखने में समर्थ हो जो ताकतवर लोगों की खुशामद करते हैं? (हाँ।) ऐसे लोग किसी भी तरह से अच्छे नहीं होते हैं।

चलो, अब हम उन अभिव्यक्तियों के बारे में बात करें जिनमें जन्मजात स्थितियाँ शामिल हैं। असाधारण याददाश्त होना—यह अभिव्यक्ति किस पहलू के तहत आती है? (जन्मजात स्थितियों के।) विशेष रूप से अच्छी याददाश्त होना, चीजों को सटीकता से याद रखना, लेखों, परमेश्वर के वचनों के अंशों, भजनों या किसी कार्य-व्यवस्था को विशेष रूप से स्पष्टता और सटीकता से याद रखना—इसे किस पहलू के तहत आना चाहिए? (अच्छी काबिलियत के—जो कि जन्मजात स्थिति है।) यह जन्मजात स्थिति है। जहाँ तक यह प्रश्न है कि यह जन्मजात स्थितियों के किस विशिष्ट पहलू से संबंधित है, तो मुझे लगता है कि इसे काबिलियत के तहत नहीं आना चाहिए। अगर यह सिर्फ अच्छी याददाश्त होना, चीजों को याद रखने में समर्थ होना, बहुत सारी चीजें याद रखना, सटीकता से याद रखना और चीजों को दृढ़ता से याद रखना है तो यह ज्यादा-से-ज्यादा जन्मजात खूबियों, प्रतिभाओं और क्षमताओं की श्रेणी में आता है। जहाँ तक यह प्रश्न है कि व्यक्ति की काबिलियत अच्छी है या नहीं, तो यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी बोध क्षमता कैसी है। अगर किसी के पास असाधारण रूप से अच्छी याददाश्त है, जो गीत के बोल के किसी हिस्से को, ज्ञान और धर्म-सिद्धांत के किसी खंड को या किसी व्यावसायिक कौशल को विशेष रूप से अच्छी तरह से, विशेष रूप से जल्दी से और विशेष रूप से दृढ़ता से याद कर सकता है, लेकिन वह जो याद करता है वह सिर्फ कुछ निर्देशात्मक और कड़ी चीजें होती हैं जिनमें सत्य सिद्धांत शामिल नहीं हैं और जिन्हें वास्तविक जीवन या कार्य में लागू या कार्यान्वित नहीं किया जा सकता है—अगर उनके पास सिर्फ अच्छी याददाश्त ही है—तो यह सिर्फ उसकी जन्मजात स्थितियों के भीतर एक खूबी और क्षमता है, यह उसकी काबिलियत के स्तर तक नहीं बढ़ती है। जैसा कि हमने पहले चर्चा की, काबिलियत क्या है? (चीजें करने में दक्षता और प्रभावशीलता।) अगर तुम्हारे पास अच्छी याददाश्त है और अच्छी काबिलियत भी है तो तुममें किस प्रकार की अभिव्यक्तियाँ और विशेषताएँ होनी चाहिए? वह यह है कि तुम्हारे द्वारा सुनी जाने वाली चीजों के संबंध में, सटीकता से याद रखने में समर्थ होने के आधार पर, तुम मुख्य बिंदुओं पर भी पकड़ बना सकते हो, सिद्धांत ढूँढ़ सकते हो, अभ्यास का मार्ग और कार्यान्वयन की योजना ढूँढ़ सकते हो और फिर वास्तविक जीवन और कार्य में इन्हें वास्तव में लागू कर सकते हो, चीजों को दक्षता और प्रभावशीलता से कर सकते हो। इसका मतलब है कि तुमने परमेश्वर के जिन वचनों और सत्य सिद्धांतों को याद किया है वे सैद्धांतिक स्तर पर नहीं रह जाते हैं, बल्कि तुम्हारे कर्तव्य के निर्वहन में कार्यान्वित होते हैं और तुम्हारी सत्य वास्तविकता बन जाते हैं जिससे कार्य में ऐसे नतीजे उत्पन्न होते हैं जिन्हें लोग देख सकते हैं और कार्य की दक्षता में सुधार होता है। यह सिर्फ अच्छी याददाश्त होना ही नहीं बल्कि अच्छी काबिलियत होना भी है। ऐसी बात नहीं है कि अच्छी याददाश्त होना अच्छी काबिलियत होने के समान है। बल्कि, बोध क्षमता होना, जब तुम्हारे साथ चीजें होती हैं तब सत्य की तलाश करने और सत्य का अभ्यास करने के सिद्धांतों को ढूँढ़ने में समर्थ होना और बिना किसी विचलन के कार्य को कार्यान्वित करना और ऐसा सटीकता से, जल्दी से और प्रभावशीलता से करना—सिर्फ यही अच्छी काबिलियत होना है। अच्छी काबिलियत कुछ धर्म-सिद्धांतों को समझने और फिर उनमें से ढेरों को बोल देने में समर्थ होने के बारे में नहीं है। बल्कि यह कुछ सत्य सिद्धांतों को समझने और उन पर पकड़ बनाने और फिर अपने कार्य और कर्तव्य में लचीले ढंग से उनको लागू करने, उन्हें अपने वास्तविक जीवन का हिस्सा बनाने और उन्हें सिद्धांत से वास्तविकता में बदलने में समर्थ होने के बारे में है जो सत्य सिद्धांत को लोगों पर प्रभाव डालने और नतीजे हासिल करने की अनुमति देता है जिससे लोगों को लाभ और सुविधाएँ मिलती हैं। काबिलियत होने का यही मतलब है। अगर तुम शब्दों और धर्म-सिद्धांतों को समझने के स्तर पर ही अटक जाते हो और कार्य को कार्यान्वित नहीं कर सकते हो और तुम सिद्धांत या साधन नहीं ढूँढ़ सकते हो—यानी अगर सत्य सिद्धांत का यह पहलू तुम्हारे लिए हमेशा बस एक सिद्धांत बनकर रह जाता है और तुम्हारे पास इसे वास्तविकता में बदलने का कोई तरीका, कोई विधि और कोई मार्ग नहीं होता है—तो इसका यही मतलब है कि तुममें कोई काबिलियत नहीं है या तुममें खराब काबिलियत है। तुम्हारी याददाश्त चाहे कितनी भी अच्छी हो, अगर वह सामान्य लोगों की याददाश्त से बढ़कर लगभग असाधारण क्षमता वाली होने की हद तक भी पहुँच जाती हो तो भी इसका मतलब यह नहीं है कि तुममें अच्छी काबिलियत है। अच्छी काबिलियत का क्या मतलब है? काबिलियत कैसे मापी जाती है? (इसका फैसला इस बात से किया जाता है कि व्यक्ति कार्य के सिद्धांतों को समझ सकता है या नहीं और नतीजे हासिल करने के लिए उन सिद्धांतों को उचित ढंग से कार्यान्वित कर सकता है या नहीं।) इसका फैसला दक्षता और प्रभावशीलता से होता है, है ना? (हाँ।) कुछ लोग कार्य-व्यवस्थाओं को जल्दी से और सटीकता से याद कर सकते हैं और वे उन्हें सैद्धांतिक रूप से भी समझ सकते हैं। हालाँकि जब कार्यान्वयन की बात आती है तब अगर कोई उनसे पूछता है, “यह कार्य कैसे किया जाना चाहिए? क्या तुम्हारे पास कोई विचार, योजना या चरण है?” तो वे उत्तर देते हैं, “नहीं, मुझे नहीं पता कि इसे कैसे करना है।” यह काबिलियत होना नहीं है। ज्यादा-से-ज्यादा यह किसी एक क्षेत्र में सिर्फ एक खूबी है। मुझे याद है कि जब हमने पहली बार इस विषय पर संगति की थी तब हमने इस मुद्दे पर चर्चा की थी। शायद तुम लोग भूल गए हो और इस बार तुमने फिर से असाधारण याददाश्त को काबिलियत के तहत श्रेणीबद्ध कर दिया। हमेशा व्यक्ति की खूबियों और प्रतिभाओं को गलत समझना और हमेशा किसी विशेष खूबी या प्रतिभा को अच्छी काबिलियत के तहत श्रेणीबद्ध करना एक गंभीर त्रुटि है। अगर यह समस्या सुलझ जाती है और तुम लोग समझ जाते हो कि खूबी क्या है, प्रतिभा या क्षमता क्या है और सच्ची काबिलियत क्या है तो यह लोगों का भेद पहचानने में और तुम्हारे अपने जीवन विकास में लाभदायक होगा। कम-से-कम यह तुम्हारे अहंकारी स्वभाव पर थोड़ी लगाम लगाने में तुम्हारी मदद कर सकता है ताकि तुम गलती से अब और यह विश्वास न करो कि तुममें श्रेष्ठ काबिलियत बस इसलिए है क्योंकि तुम अच्छा गा या नाच सकते हो। तो क्या तुम इस मामले का अब भी इसी तरीके से मूल्यांकन कर सकते हो? (नहीं।) तो फिर जो लोग गा सकते हैं, उनमें अच्छी काबिलियत होने के लिए वास्तव में क्या होना चाहिए? (उनमें बोध क्षमता होनी चाहिए, उन्हें यह पता होना चाहिए कि किस तरीके से किया गया गायन सिद्धांतों के अनुरूप है और उनमें अनुभूति क्षमता भी होनी चाहिए।) अनुभूति क्षमता बहुत ही जरूरी है। देखो, ये सभी लोग संगीत के कुछ सिद्धांत जानते हैं, लेकिन उनके गायन के प्रभाव में अंतर होता है। कुछ लोग अनुभव कर सकते हैं और गायन के लिए एक मार्ग तलाश सकते हैं। वे विभिन्न लोगों के विभिन्न गीतों, विभिन्न धुनों और विभिन्न गायन शैलियों को सुनते हैं और कौन-सी गायन तकनीकें भावुक करने वाली और आनंददायक हैं इस बात के लिए कान लगाकर सुनते हैं। उन्हें इस प्रक्रिया से एक खास अनुभूति मिलती है और फिर वे उस अनुभूति के आधार पर खोजबीन करना और प्रशिक्षण लेना जारी रखते हैं। कुछ समय बाद उन्हें लगता है कि उनके गायन में सुधार हुआ है और दूसरे लोग इसे सुनने को तैयार होते हैं। धीरे-धीरे वे इसकी तुलना सिद्धांतों से करते हैं और पुष्टि करते हैं कि अभ्यास का यह मार्ग सही है। वे अपने गायन के तरीके को बदलने और अपनी पिछली गलत गायन विधियों को ठीक करने के लिए अभ्यास के मार्ग का पता लगाने में समर्थ होते हैं। फिर वे अपने द्वारा बनाए गए अच्छे, सही, सकारात्मक तत्वों को आगे अपने गायन में कार्यान्वित और लागू कर सकते हैं। वे बूझ सकते हैं कि गायन का कौन-सा तरीका सही है और कौन-सा गलत और किस तरीके का गायन अच्छी अनुभूति और किस तरीके का गायन बुरी अनुभूति उत्पन्न करता है। यह अच्छी काबिलियत होना है। अगर उनके पास सिर्फ सैद्धांतिक ज्ञान है और वे सिद्धांत को अपने वास्तविक गायन से नहीं जोड़ सकते हैं और उनकी समझ विकृत है तो उनकी काबिलियत अच्छी नहीं है। ऐसे कुछ लोगों को देखो जो गाते हैं—जब दूसरे उन्हें ध्यान दिलाते हैं कि वे कृत्रिम स्वर का उपयोग कर रहे हैं तब वे इसे स्वीकार सकते हैं और एक-दो वर्ष के प्रशिक्षण के बाद इसे सुधार सकते हैं। वैसे तो वे अभी तक गायन में बहुत निपुण नहीं हुए हैं, फिर भी वे पहले से ही अपने असली राग और स्वर में गा रहे होते हैं। दूसरी तरफ, कुछ लोग कृत्रिम स्वर में गाते हैं और यह बात उन्हें सुनने वाले हर व्यक्ति को स्पष्ट होती है, फिर भी उन्हें लगता है कि वे अपनी प्राकृतिक स्वर में, अपने असली राग और स्वर में गा रहे हैं, वे इस अंतर का भेद पहचानने में असमर्थ होते हैं। यह काबिलियत की गैर-मौजूदगी, अनुभूति क्षमता की गैर-मौजूदगी और चीजों को बूझने में असमर्थता को दर्शाता है। काबिलियत और खूबी में यही अंतर है। अगर तुम गायन में प्रतिभाशाली हो तो यह तुम्हारी खूबी है; यह जन्मजात स्थिति है। लेकिन क्या तुम अच्छा गा सकते हो और इस क्षेत्र और इस पेशे के सार, सिद्धांतों और अनिवार्यताओं को बूझ सकते हो, यह तुम्हारी काबिलियत का मामला है। अगर तुम सार, अनिवार्यताओं और सिद्धांतों को बूझ सकते हो तो तुम गायक, एक माहिर गवैये बन सकते हो। अगर तुम्हें गायन में आनंद आता है, तुम इसे जल्दी सीख लेते हो और सुर, लय और स्वर के उतार-चढ़ाव में सटीकता से महारत हासिल कर लेते हो तो इसे सिर्फ जन्मजात खूबी और इस विशेष पेशेवर कौशल में अच्छा होना कहा जा सकता है। लेकिन अपनी औसत और सीमित काबिलियत के कारण तुम हमेशा इसमें सिर्फ अच्छे होने की सीमा के भीतर ही बने रहोगे। तुम अनिवार्यताओं में महारत हासिल करने के स्तर तक पहुँचने में असमर्थ होगे और तुम एक सच्चे गायक और माहिर गवैये बनने में असमर्थ होगे। यह तुम्हारी काबिलियत द्वारा लगाई गई सीमा है। अच्छी काबिलियत वाले लोगों में विकास की संभावनाएँ और गुंजाइश होती है जबकि औसत या खराब काबिलियत वाले लोगों में विकास की कोई संभावना या गुंजाइश नहीं होती है। इसलिए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हारी खूबियाँ किस क्षेत्र में हैं, अगर तुम्हारी काबिलियत कमजोर है तो तुम अनिवार्यतः अपनी काबिलियत द्वारा सीमित रहोगे। तुम किसी क्षेत्र में चाहे कितने भी प्रतिभाशाली हो, तुम्हें वह चाहे कितना भी पसंद हो या तुम्हारी रुचि चाहे कितनी भी ज्यादा हो, अपनी खराब काबिलियत के कारण तुम्हारे विकास की कोई संभावना नहीं रहेगी क्योंकि तुम अपनी काबिलियत से आगे नहीं बढ़ सकते। तुम समझ रहे हो? (हाँ।) अब जब मैंने यह कह दिया है तब क्या तुम लोग गायन में आत्मविश्वास खो दोगे? मैं तो बस अभी के मामले पर बात कर रहा हूँ, काबिलियत और खूबियों के बीच के अंतर के बारे में संगति करने के लिए उदाहरण के रूप में तुम लोगो की एक खूबी का उपयोग कर रहा हूँ। लेकिन परमेश्वर का घर तुम लोगों से सच्चे माहिर गवैये बनने, किसी उच्च स्तर की सटीकता से गाना गाने, एक विशेष गायन शैली विकसित करने या गायन में बड़ी सफलता हासिल करने की अपेक्षा नहीं करता है। इनकी जरूरत नहीं है। बस अपनी मौजूदा काबिलियत और खूबियों का अच्छा उपयोग करो—यह ठीक है। जब तक सच्ची भावनाओं और ईमानदारी की अभिव्यक्ति मौजूद है तब तक वह पर्याप्त है। अब सिर्फ इसलिए निराश महसूस मत करो या हार मत मानो क्योंकि मैंने कहा कि तुममें से कुछ लोगों में खराब काबिलियत है या बहुत औसत काबिलियत है और विकास की ज्यादा गुंजाइश नहीं है। यह अनावश्यक है। क्या तुम लोग निराश महसूस करोगे? (नहीं।) तुम्हें इस मामले को सही ढंग से देखना चाहिए। अगर मैं तुम्हारी परिस्थितियों का उदाहरण के रूप में उपयोग नहीं करता तो शायद तुम लोगों को यह समझ नहीं आता, तुम लोगों को पूरी समझ नहीं मिल पाती और मैं जो कुछ भी कहता, उसे तुम दिल पर नहीं लेते। तुम लोगों को पूरी तरह से समझने में मदद करने के लिए मुझे कुछ उदाहरण देने ही पड़े ताकि सभी के पास बेहतर समझ हो सके। इस तरीके से काबिलियत और खूबियों के बीच के अंतर की तुम लोगों की समझ भी ज्यादा सटीक हो जाएगी। क्या तुम लोगों को इस तरीके की संगति से आपत्ति है? (नहीं, हमें आपत्ति नहीं है।) यह अच्छी बात है कि तुम्हें आपत्ति नहीं है। इसे सही ढंग से देखो। जैसे तुम्हें अभ्यास करना चाहिए वैसे अभ्यास करो। इसमें अपना दिल लगा देना और एक अच्छे लक्ष्य और दिशा की तरफ अभ्यास करना प्रगति नहीं करने या अपने पुराने तरीकों से चिपके रहने से हमेशा बेहतर होगा। भले ही तुम्हारी काबिलियत सीमित या कमजोर हो, तुम्हें फिर भी अभ्यास करने का प्रयास करने और अपनी सीमित काबिलियत के दायरे में अधिकतम हासिल करने के लिए मेहनत करने की जरूरत है। हमें अपने पूरे दिल और हमारे भरसक प्रयास समर्पित करने होंगे, जिम्मेदारी और निष्ठा के रवैये से इस कर्तव्य को करना होगा और इस कार्य को पूरा करना होगा। तुम्हें अभ्यास के इसी सिद्धांत का पालन करना चाहिए। तुम्हें सिर्फ इसलिए नकारात्मक नहीं हो जाना चाहिए या हार नहीं मान लेनी चाहिए क्योंकि तुम्हारी खूबी में विकास की कोई संभावना नहीं है और तुम भविष्य में सुर्खियाँ बटोरने में समर्थ नहीं होगे। यह स्वीकार्य नहीं है और यह स्पष्ट रूप से वह सत्य सिद्धांत नहीं है जिसका तुम्हें इस मामले के साथ पेश आने में पालन करना चाहिए। तुम समझ रहे हो? (हाँ।)

इन तीनों क्षेत्रों—जन्मजात स्थितियाँ, मानवता और भ्रष्ट स्वभाव—के भीतर ऐसे बहुत-से विशिष्ट विवरण हैं जिन्हें समझने की जरूरत है। क्या इन मामलों पर संगति करना हमारे लिए जरूरी है? (हाँ।) कई पहलुओं के बारे में लोगों के पास सिर्फ सतही समझ होती है और वे उन्हें स्पष्ट रूप से नहीं समझा सकते हैं। हो सकता है कि उनमें कुछ खूबियाँ हों और फिर वे सोचें कि वे नेक चरित्र वाले हैं, वे खुद को सम्माननीय और भ्रष्ट स्वभावों से मुक्त, अच्छी मानवता और उच्च काबिलियत वाला मानें। यह सब कुछ लोगों की इन विभिन्न मुद्दों का स्पष्ट रूप से भेद पहचानने में असमर्थता से उत्पन्न होता है। इन मुद्दों में जितने ज्यादा विवरण शामिल होते हैं, संगति करने के लिए उतनी ही ज्यादा चीजें होती हैं; इसे सिर्फ एक-दो सत्रों में समाप्त नहीं किया जा सकता है, बल्कि इसके लिए कई संगतियों की जरूरत होती है। तो ठीक है, आज के लिए यह संगति हम यहीं समाप्त करेंगे। अलविदा!

14 अक्टूबर 2023

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