सत्य का अनुसरण कैसे करें (6)
पिछली सभा में हमने सत्य के अनुसरण से संबंधित एक प्रमुख विषय पर संगति की थी, “अपने और परमेश्वर के बीच की बाधाएँ और परमेश्वर के प्रति अपनी शत्रुता छोड़ देना।” इस प्रमुख विषय के भीतर हमने परमेश्वर के कार्य के बारे में इंसानी धारणाएँ और कल्पनाएँ छोड़ देने के बारे में बात की थी, जिसमें लोगों की जन्मजात स्थितियाँ, मानवता और भ्रष्ट स्वभावों से संबंधित विषय शामिल थे और इन विषयों के भीतर काबिलियत से संबंधित समस्याओं का उल्लेख किया गया था। पिछली बार हमने लोगों की धारणाओं के एक हिस्से का समाधान करते हुए काबिलियत से संबंधित समस्याओं के बारे में थोड़ी संगति की थी। उसे सुनने के बाद, क्या तुम्हारे पास इसकी सटीक परिभाषा है कि काबिलियत क्या होती है? काबिलियत वास्तव में है क्या? काबिलियत को कैसे समझा जाना चाहिए? कोई कैसे तय कर सकता है कि किसी व्यक्ति की काबिलियत अच्छी है, औसत है या खराब है? उसका आकलन किन पहलुओं के आधार पर किया जाना चाहिए? क्या तुम लोगों ने इन सवालों पर खोज और चिंतन किया है? (मैंने इन पर थोड़ा चिंतन किया है। पिछली सभा में परमेश्वर ने संगति की थी कि व्यक्ति की काबिलियत आँकने के लिए हमें चीजें करने में उसकी दक्षता और प्रभावशीलता देखनी होगी। पहले मुझे इस संबंध में बहुत समझ नहीं थी और मैं खूबियों को गलती से काबिलियत समझ लेता था। उदाहरण के लिए, जब मैं किसी व्यक्ति को विशेष रूप से अच्छे शैक्षिक परिणाम प्राप्त करते या कई भाषाओं में पारंगत होते देखता था तो मुझे लगता था कि यह ये दर्शाता है कि उसमें अच्छी काबिलियत है। परमेश्वर की संगति सुनकर ही मुझे इस बात का स्पष्ट विवेक मिला कि वास्तव में अच्छी काबिलियत क्या है और क्या सिर्फ कुछ खूबियाँ हैं। अगर कोई व्यक्ति बाहरी तौर पर काफी चतुर लगता है, लेकिन कर्तव्य निभाने में उसकी दक्षता बहुत कम है और वह हमेशा सत्य सिद्धांतों को समझने में असमर्थ रहता है तो उसकी काबिलियत अपेक्षाकृत खराब होती है।) चीजें करने में व्यक्ति की दक्षता और प्रभावशीलता से उसकी काबिलियत आँकना—यह इसे कहने का एक सामान्य तरीका है। चीजें करने में उसकी दक्षता और प्रभावशीलता देखने से परे, व्यक्ति की काबिलियत आँकने के विशिष्ट मानक हैं : पहला, उसकी सीखने की क्षमता। दूसरा, उसकी चीजों को समझने की क्षमता। तीसरा, उसकी बोध क्षमता। चौथा, उसकी चीजों को स्वीकारने की क्षमता। पाँचवाँ, उसकी संज्ञानात्मक क्षमता। छठा, उसकी आकलन करने की क्षमता। सातवाँ, उसकी चीजों को पहचानने की क्षमता। आठवाँ, उसकी चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता। नौवाँ, उसकी निर्णय करने की क्षमता, जिसे उसकी कार्यान्वित करने की क्षमता के रूप में भी संदर्भित किया जा सकता है। दसवाँ, उसकी चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता। ग्यारहवाँ, उसकी नवाचार क्षमता। क्या तुमने इन्हें ध्यान में रखा है? (हाँ।) ये कुल कितने हैं? (ग्यारह।) इन्हें जोर से पढ़ो। (एक, सीखने की क्षमता। दो, समझने की क्षमता। तीन, बोध क्षमता। चार, चीजों को स्वीकारने की क्षमता। पाँच, संज्ञानात्मक क्षमता। छह, आकलन करने की क्षमता। सात, चीजों को पहचानने की क्षमता। आठ, चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता। नौ, निर्णय करने की क्षमता। दस, चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता। ग्यारह, नवाचार क्षमता।) किसी व्यक्ति की काबिलियत आँकने के लिए आम तौर पर तुम्हें ये दो पहलू देखने होंगे : चीजें करने में उसकी दक्षता और प्रभावशीलता। खास तौर पर, चीजें करने में उसकी दक्षता और प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए तुम्हें इन ग्यारह मानकों के आधार पर एक व्यापक निर्धारण करना होगा। इस तरह तुम सही-सही यह आकलन कर पाओगे कि किसी व्यक्ति की काबिलियत वास्तव में कैसी है। बेशक, किसी व्यक्ति की काबिलियत का आकलन करने के लिए पहला कदम विभिन्न पहलुओं में उसकी समग्र क्षमताएँ और फिर चीजें करने में उसकी दक्षता और प्रभावशीलता देखना है। अगर उसमें विभिन्न पहलुओं में काबिलियत और क्षमता है तो वह निश्चित रूप से दक्षता और प्रभावशीलता दोनों के साथ काम करेगा। अगर चीजें करने में व्यक्ति की दक्षता अधिक है और उसकी प्रभावशीलता अच्छी है तो जब तुम ग्यारह मानकों के अनुसार प्रत्येक क्षेत्र में उसकी क्षमताओं का मूल्यांकन करोगे तो वे निश्चित रूप से अच्छे भी होंगे। इन ग्यारह क्षमताओं में से कोई भी, अलग से लेने पर, यह पूरी तरह से निर्धारित नहीं कर सकती कि व्यक्ति की काबिलियत अच्छी है या नहीं—उसका मूल्यांकन व्यापक रूप से किया जाना चाहिए। बेशक, इन ग्यारह क्षमताओं में से कौन-सी क्षमताएँ सबसे महत्वपूर्ण हैं? सबसे महत्वपूर्ण क्षमताएँ हैं आकलन करने की क्षमता, चीजों को पहचानने की क्षमता, चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता और निर्णय करने की क्षमता—इनमें व्यक्ति की किसी निश्चित सिद्धांत को समझने के बाद कार्य करने की क्षमता शामिल है। बाकी क्षमताएँ समझ और सीखने से संबंधित हैं, जिनमें मानव-मन शामिल है। आगे हम इन ग्यारह क्षमताओं पर एक-एक करके संगति करेंगे।
पहला है सीखने की क्षमता। सीखने की क्षमता का मतलब सिर्फ ज्ञान के किसी क्षेत्र को सीखना नहीं है; इसमें कोई भाषा सीखना, कोई खास तकनीकी कौशल सीखना, कोई नई चीज सीखना और उसे स्वीकारना वगैरह भी शामिल हैं—ये सब सीखने की क्षमता के दायरे में आते हैं। उदाहरण के लिए, सामान्य परिस्थितियों में कोई तकनीकी कौशल सीखते हुए व्यक्ति उसमें छह महीने के भीतर महारत हासिल कर सकता है और फिर स्वतंत्र रूप से उसमें संलग्न हो सकता है। अगर तुम भी इसे छह महीने तक सीखने के बाद इसमें महारत हासिल कर इसमें स्वतंत्र रूप से संलग्न हो सकते हो तो इसे सीखने की क्षमता माना जाता है। अगर तुम्हें सीखने में औसत व्यक्ति से दोगुना समय लगता है—अगर छह महीने के बाद भी तुम उसमें महारत हासिल नहीं कर पाते और उसे सीखने के लिए तुम्हें छह महीने और चाहिए—तो यह खराब क्षमता दर्शाता है। यानी, सीखने की क्षमता के मामले में, अगर तुम सामान्य समय-सीमा के भीतर तकनीकी कौशल या ज्ञान में महारत हासिल कर लेते हो तो इसका मतलब है कि तुम्हारी काबिलियत औसत या औसत से ऊपर है। लेकिन अगर तुम इस समय-सीमा को पार कर जाते हो और तकनीकी कौशल या ज्ञान सीखने में तुम्हें दूसरों की तुलना में दोगुना या तीन गुना तक समय लगता है तो तुम्हारी काबिलियत खराब है। अगर तुम औसत व्यक्ति की तुलना में दो या तीन गुना अधिक समय लगाते हो और फिर भी उसे नहीं सीख पाते और तुममें सीखने की क्षमता नहीं है तो यह तुम्हारी काबिलियत के बारे में क्या कहता है? सीखने की क्षमता के बिना तुम सामान्य इंसानी काबिलियत का सामान्य मानक भी पूरा नहीं करते। तुम खराब काबिलियत होने से भी बदतर हो—तुममें बिल्कुल भी काबिलियत नहीं है। काबिलियत न होना किस श्रेणी में आता है? काबिलियत न होने का मतलब है कि व्यक्ति मानसिक रूप से कमजोर और मूर्ख लोगों की श्रेणी में आता है, जिसमें सीखने की क्षमता बिल्कुल नहीं है। सीखने की क्षमता में यही शामिल है।
दूसरा है चीजों को समझने की क्षमता। चीजों को समझने की क्षमता का मतलब है व्यक्ति की किसी चीज के भीतर, जिसे वह अक्सर देखता या उसका सामना करता है, सिद्धांतों और युक्ति को समझने का सामर्थ्य। उदाहरण के लिए, कोई पेशेवर कौशल सीखते समय अगर तुम सैद्धांतिक निर्देश सुनते हो और व्यावहारिक प्रदर्शन देखते हो, और एक सामान्य समय-सीमा के भीतर तुम उस कौशल से जुड़ी युक्ति और सिद्धांतों को समझ सकते हो तो इसे अच्छी काबिलियत और चीजों को समझने की एक निश्चित क्षमता माना जाता है। अगर तुम उसे तुरंत नहीं समझ पाते, यहाँ तक कि अगर कोई तुम्हारे साथ दोबारा संगति करे फिर भी तुम नहीं समझ पाते; और उनके बार-बार संकेत देने पर भी तुम यह नहीं समझ पाते कि उस काम को करने की युक्ति क्या है और उसमें कौन-से सिद्धांत शामिल हैं—तो चीजों को समझने की तुम्हारी क्षमता खराब है। हो सकता है कुछ समय बाद तुम वास्तविक अभ्यास के जरिये धीरे-धीरे टटोलते हुए थोड़ा सीख लो, लेकिन यह यहीं तक सीमित है। चाहे तुम कितना भी समय लगाओ—चाहे तीन साल लगाओ या पाँच साल—अगर तुम जो समझ सकते हो वह एक सीमित दायरे तक ही सीमित रहता है और चीजें करते समय तुम बिना उनमें शामिल मूल सिद्धांतों को समझे और उन्हें वास्तविक अभ्यास में लागू किए कुछ निश्चित विनियमों और नियमों का ही पालन करते हो तो इसका मतलब है कि चीजों को समझने की तुम्हारी क्षमता खराब है; ऐसे लोगों की काबिलियत खराब होती है। उदाहरण के लिए, कुछ लोग कलीसिया का काम करते हैं और तुम्हारे द्वारा उनके साथ सत्य सिद्धांतों के बारे में संगति किए जाने पर उन्हें लगता है कि तुमने जो कहा वह सही है और तुमने जो संगति की है उसके बारे में उन्हें कोई संदेह नहीं होता। लेकिन वे यह नहीं समझ पाते कि चीजें इस तरह से क्यों की जानी चाहिए और वे इसमें शामिल सिद्धांतों को समझने में असमर्थ रहते हैं। खासकर वास्तविक जीवन में या अपना कर्तव्य निभाते समय विभिन्न समस्याओं या विशेष परिस्थितियों का सामना करने पर वे नहीं जानते कि सिद्धांत कैसे लागू किए जाएँ या अपने सामने आने वाली समस्याओं को सिद्धांतों के अनुसार कैसे लिया जाए। यह चीजों को समझने की क्षमता की कमी दर्शाता है। जिन लोगों में चीजों को समझने की क्षमता की कमी होती है, वे सत्य के बारे में संगति सुनने के बाद भी नहीं समझते और हमेशा ऐसे अनुरोध करते हैं “क्या तुम कोई अन्य उदाहरण दे सकते हो?” या “क्या तुम इसे और विस्तार से समझा सकते हो?” तुम्हारे द्वारा उदाहरण देने और विस्तार से समझाने के बाद ही वे थोड़ा समझ पाते हैं। लेकिन अगर तुम किसी चीज की गहराई से संगति करते हो तो वे एक बार फिर नहीं समझ पाएँगे और तुमसे कोई अन्य उदाहरण देने के लिए कहेंगे। वे तुमसे बार-बार उदाहरण देने के लिए क्यों कहते हैं? वास्तविक जीवन में समान स्थितियों को उदाहरणों के जरिये समझाना तुम्हारा काम है, ताकि वे कोई निश्चित दृष्टिकोण या विनियम याद रख सकें। वे ऐसा क्यों करते हैं? इसलिए कि चीजों को समझने की उनकी क्षमता बहुत खराब होती है—तुम यह भी कह सकते हैं कि उनमें चीजों को समझने की कोई क्षमता नहीं होती; वे नहीं जानते कि वास्तविक जीवन में या अपना कर्तव्य निभाते समय सिद्धांत कैसे लागू किए जाएँ। चाहे तुम उनके साथ कैसे भी संगति करो, चाहे तुम कितने भी विशिष्ट उदाहरण दो और कितने भी सिद्धांत स्पष्ट रूप से समझाओ, यहाँ तक कि विशेष स्थितियाँ सँभालने के सिद्धांत भी समझाओ, वे बहुत ज्यादा सुनकर भी उसे नहीं समझ सकते। उन्हें लगता है कि तुम जो कह रहे हो वह सिर्फ सिद्धांत है और वे अभी भी नहीं जानते कि वास्तविक जीवन में सामने आने वाली विभिन्न समस्याओं को कैसे सँभालें। यह चीजों को समझने की क्षमता न होना दर्शाता है। चाहे दूसरे लोग उन्हें चीजें कैसे भी समझाएँ, जिन लोगों में चीजों को समझने की क्षमता नहीं होती, वे उसे नहीं समझ पाते—यह खराब काबिलियत होना है। क्या खराब काबिलियत वाले लोगों की काम करने की दक्षता और प्रभावशीलता भी खराब होती है? (हाँ।) अगर व्यक्ति की चीजों को समझने की क्षमता खराब है तो काम करने की उसकी दक्षता और प्रभावशीलता निश्चित रूप से खराब होगी; जब वह किसी चीज का सामना करेगा तो उसे नहीं पता होगा कि इसमें कौन-से सिद्धांत शामिल हैं और वह नहीं जानता होगा कि वास्तविक जीवन में सिद्धांतों को कैसे लागू किया जाए। यह खराब काबिलियत दर्शाता है। एक और प्रकार का व्यक्ति होता है जो दूसरों की संगति जितनी विस्तृत और विशिष्ट होती है, उतना ही ज्यादा भ्रमित हो जाता है और उसे समझने में असमर्थ रहता है। उदाहरण के लिए, जब परमेश्वर का घर नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों को पहचानने के बारे में संगति करता है तो उसे सुनने के बाद वह कहता है, “मैं इसे क्यों नहीं समझ पा रहा? सिद्धांतों पर संगति होती है, उदाहरण दिए जाते हैं और विशेष स्थितियाँ सूचीबद्ध की जाती हैं, लेकिन यह सब मुझे बहुत गड्ड-मड्ड लगता है। यहाँ वास्तव में कहा क्या जा रहा है? हमसे किस तरह के लोगों को सँभालना अपेक्षित है? हमें नकली अगुआओं को सँभालना है या मसीह-विरोधियों को? क्या हमारा कलीसिया-अगुआ मसीह-विरोधी है? वह व्यक्ति थोड़ा दुष्ट लगता है—उसकी अभिव्यक्तियाँ भ्रष्ट स्वभाव के कारण हैं या बुरी मानवता के कारण? आखिर वह कौन है, नकली अगुआ या मसीह-विरोधी? मैं अभी भी नहीं समझता।” वे यह तक नहीं समझते कि तुम जिन सत्य सिद्धांतों के बारे में संगति करते हो, वे क्या हैं; जितना ज्यादा वे सुनते हैं, उतने ही ज्यादा भ्रमित हो जाते हैं। न सिर्फ वे इन सत्य सिद्धांतों को वास्तविक स्थितियों से जोड़ने में विफल रहते हैं, बल्कि वे इतने भ्रमित हो जाते हैं कि वे यह भी नहीं जानते कि तुम जो कह रहे हो, उसका विषय क्या है। क्या यह चीजों को समझने की क्षमता की कमी नहीं दर्शाता? (हाँ, दर्शाता है।) उदाहरण के लिए, ऐसी स्थिति की कल्पना करो जिसमें सभी लोग एक ही विषय पर संगति करने के लिए एकत्र हुए हैं और प्रत्येक व्यक्ति अपने विचार प्रस्तुत कर रहा है। तुम अपनी समझ के बारे में संगति करते हो, मैं उसके बारे में अपनी समझ व्यक्त करता हूँ; एक व्यक्ति एक प्रश्न करता है, दूसरा व्यक्ति एक अलग प्रश्न करता है—सब इसी विषय पर केंद्रित होते हैं। बिना काबिलियत वाले लोग इस तरह की चर्चा सुनते हैं और उसे समझ नहीं पाते। अपने दिल में वे सोचते हैं, “तुम सभी लोग किस बारे में बात कर रहे हो? मैं इसे क्यों नहीं समझ पा रहा?” वे उलझ जाते हैं। वे दूसरों द्वारा किए गए उचित प्रश्नों के पीछे का अंतर्निहित तर्क नहीं समझ पाते या यह कि ये प्रश्न क्यों उठाए जा रहे हैं—वे इसके पीछे के कारणों का पता नहीं लगा पाते; वे किसी तमाशबीन से भी बदतर होते हैं। काबिलियत वाले लोग किनारे से देखकर भी बता सकते हैं कि कौन सही है और कौन गलत है, कोई व्यक्ति कोई खास सवाल क्यों पूछ रहा है, सवाल गहरे हैं या उथले, सवालों के जवाब कैसे दिए जा रहे हैं—लेकिन बिना काबिलियत वाले लोग इनमें से कुछ नहीं समझ पाते और न इनके पीछे छिपा तर्क ही समझ पाते हैं। इससे पता चलता है कि उनमें चीजों को समझने की क्षमता नहीं होती। जब दूसरे लोग किसी चीज के बारे में संगति करते हैं तो वे सुनने के बाद समझ नहीं पाते। वे नहीं जानते कि जो कहा गया वह सत्य और वस्तुनिष्ठ है या नहीं, न ही वे मामले की पृष्ठभूमि और उसका सार समझ पाते हैं—वे पूरी तरह से किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं। जहाँ तक इन बातों का संबंध है कि इस विषय पर चर्चा क्यों की जा रही है, इस विषय में शामिल सिद्धांतों पर बार-बार जोर देने की आवश्यकता क्यों है और साथ ही किसके सवाल इन सिद्धांतों से संबंधित हैं और किसके नहीं, वे इनमें से किसी को भी नहीं समझ सकते या उसका अर्थ नहीं निकाल सकते। जैसे-जैसे वे सुनते रहते हैं, वे उनींदे हो जाते हैं; वे खुद को इस संगति में महज तमाशबीन समझने लगते हैं और उनके दिलों में धुंध छा जाती है। दूसरे लोगों के साथ सत्य सिद्धांतों पर जितनी ज्यादा संगति की जाती है, उनका दिमाग उतना ही साफ और स्पष्ट होता जाता है। लेकिन बिना काबिलियत वाले लोग जितना ज्यादा सुनते हैं, उतने ही ज्यादा उलझ जाते हैं और उनके विचार उतने ही ज्यादा धुँधले हो जाते हैं। यह चीजों को समझने की क्षमता की कमी दर्शाता है। क्या यह बेहद खराब काबिलियत नहीं दर्शाता? ऐसे लोगों को बिना काबिलियत वाले लोग भी कहा जा सकता है। बिना योग्यता वाले लोग कैसे होते हैं? (मानसिक रूप से कमजोर लोग।) मानसिक रूप से कमजोर, मूर्ख, बेवकूफ—यह सबसे खराब काबिलियत वाले लोगों की श्रेणी है। यह दूसरा पहलू है : चीजों को समझने की क्षमता।
तीसरा पहलू है बोध क्षमता। बोध क्षमता चीजों को समझने की क्षमता के समान ही है, लेकिन एक कदम आगे जाती है। इनके बीच क्या अंतर है? बोध क्षमता इस बात पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करती है कि कैसे सत्य के सिद्धांतों और अभ्यास के मार्गों को वास्तविक जीवन की विभिन्न समस्याओं के अनुरूप किया जाए और फिर इन सिद्धांतों और मार्गों को समझने और इनमें महारत हासिल करने के बाद इन्हें वास्तविक कार्य में लागू किया जाए। अंतर यहीं पर निहित है। बोध क्षमता वाले लोग किसी चीज की मूलभूत बातों और सिद्धांतों को समझने के बाद अपने दिलों में अभ्यास का एक मार्ग और एक सटीक दायरा, एक दिशा और एक लक्ष्य रखते हैं। वे जानते हैं कि ये मूलभूत बातें और सिद्धांत कैसे लागू किए जाएँ और वे कुछ विशेष स्थितियों में शामिल अभ्यास के सिद्धांत भी जानते हैं। मान लो, कुछ सत्य सिद्धांतों पर संगति सुनने के बाद व्यक्ति कुछ समस्याओं का सार पहचान सकता है और फिर वास्तविक जीवन में कुछ असली समस्याएँ हल करने के लिए सत्य का उपयोग कर सकता है। यानी, ये सिद्धांत सुनने के बाद वह तुरंत समझ जाता है कि उसे पिछली स्थिति के जवाब में कैसे अभ्यास करना चाहिए था, और जब स्थितियाँ फिर से आती हैं तो वह यह भी जानता है कि उनसे निपटने के लिए सिद्धांत कैसे लागू किए जाएँ, और उसके दिल में तुरंत अभ्यास का मार्ग होता है; सिद्धांतों और मूलभूत बातों की उसकी समझ एक मार्गदर्शक प्रकाश की तरह काम करती है, जो उसे जल्दी से यह जानने में सक्षम बनाती है कि जीवन में या काम पर विभिन्न समस्याएँ कैसे सँभालनी हैं, और वह उसे अभ्यास का मार्ग, दिशा और सिद्धांत रखने में सक्षम बनाती है। उस स्थिति में, ऐसे व्यक्ति में बोध क्षमता होती है, जो बेशक अच्छी काबिलियत की अभिव्यक्ति है। मान लो कोई व्यक्ति सत्य सिद्धांतों पर कुछ संगति सुनने के बाद जान जाता है कि उसे अपने वास्तविक जीवन की उन चीजों का अभ्यास कैसे करना चाहिए और उन्हें कैसे सँभालना चाहिए जो सामान्य और सार्वभौमिक हैं या जिन्हें उसने अनुभव किया है। लेकिन वह नहीं जानता कि ये सत्य सिद्धांत उन विशेष, जटिल स्थितियों, अप्रत्याशित स्थितियों या असामान्य समस्याओं और घटनाओं पर कैसे लागू किए जाएँ, जिनका उसने अनुभव नहीं किया है और उसे अभी भी यह जानने से पहले कि उन्हें कैसे सँभाला और हल किया जाए, एक सटीक उत्तर या अभ्यास की एक विशिष्ट योजना प्राप्त करने के लिए खोज और पूछताछ करने की जरूरत होती है। वरना सत्य सिद्धांतों को सुनने के बाद भी वह नहीं जानता कि ऐसे मामलों या समस्याओं को कैसे सँभालना है। यह दर्शाता है कि उसमें औसत बोध क्षमता है; या यह भी कहा जा सकता है कि ऐसा व्यक्ति औसत काबिलियत का होता है। कुछ लोगों ने दस या बीस साल तक काम किया होता है और कुछ कार्य-अनुभव और परमेश्वर के घर से सत्य सिद्धांतों की स्पष्ट संगति के साथ वे जानते हैं कि सामान्य परिस्थितियाँ कैसे सँभालनी हैं और उन्होंने इस बात की पुष्टि प्राप्त कर ली होती है कि उन्हें इस तरह से सँभालना सही है। लेकिन कुछ जटिल, विशेष, असामान्य समस्याओं का सामना करने पर, जिनका उन्होंने अपने काम में कभी अनुभव नहीं किया होता, वे नहीं जानते कि उन्हें कैसे सँभालना है और इससे पहले कि वे उन्हें सँभालना शुरू करें, उन्हें पूछताछ करके स्पष्ट उत्तर प्राप्त करना चाहिए। अगर स्थिति बदल जाती है और उनकी कल्पना या उनके द्वारा ज्ञात परिस्थितियों से ज्यादा जटिल हो जाती है तो वे भ्रमित हो जाते हैं, नहीं जानते कि उन्हें उनका कैसे सामना करना चाहिए और यह तो बिल्कुल नहीं जानते कि उन्हें सिद्धांतों के अनुरूप कैसे अभ्यास करना चाहिए और कैसे उन्हें सँभालना चाहिए। जब वे नहीं जानते कि अभ्यास कैसे करना है, चाहे वे अपनी कल्पनाओं, अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं के आधार पर कार्य करें या बस उसे एक तरफ रखकर अनदेखा कर दें—चाहे वे कैसे भी कार्य करें—यह तथ्य कि ऐसी स्थिति का सामना करने पर वे भ्रमित हो जाते हैं और यह नहीं जानते कि उसे सँभालने के लिए सिद्धांत कैसे लागू किए जाएँ, यह साबित करता है कि उनकी काबिलियत बहुत औसत है। अगर कोई व्यक्ति सामान्य स्थितियाँ सँभाल सकता है लेकिन विशेष स्थितियाँ सँभालना नहीं जानता तो यह औसत काबिलियत दर्शाता है। अगर कुछ विशेष स्थितियों का सामना करने पर वे इतने भ्रमित हो जाते हैं कि उन समस्याओं को भी नहीं सँभाल पाते जिन्हें वे सामान्य रूप से सँभाल सकते हैं, तो यह खराब काबिलियत दर्शाता है। खराब काबिलियत वाले व्यक्ति की बोध क्षमता भी खराब होती है। क्या खराब बोध क्षमता वाले व्यक्ति और यथोचित बोध क्षमता वाले व्यक्ति के बीच कोई अंतर होता है? (हाँ।)
कुछ लोग सिद्धांतों को नहीं समझ पाते, चाहे दूसरे लोग कैसे भी संगति करें। वे सिर्फ धर्मसिद्धांतों और विनियमों को समझते हैं और कुछ नारे लगा सकते हैं, लेकिन वे नहीं जानते कि वास्तविक कार्य कैसे करें और समस्याएँ कैसे हल करें। देखो, संगति सुनने के बाद वे बहुत स्पष्टता और विन्यास के साथ बोलते हैं, मानो वे वास्तव में समझते हों। लेकिन असल में जो कहा गया था, उसे उन्होंने बिल्कुल भी नहीं समझा होता। जब ठोस कार्य करने की बात आती है तो वे भ्रमित हो जाते हैं, नहीं जानते कि कहाँ से शुरू करें। समस्याओं का सामना करने पर वे नहीं जानते कि उन्हें कैसे हल किया जाए। वे अभी भी ठोस कार्य नहीं कर सकते। विभिन्न लोगों और मामलों के साथ पेश आने और उन्हें सँभालने में उनमें अभी भी सिद्धांतों की कमी होती है। अपने दिल में वे सोचते हैं, “उपदेश सुनते समय मैंने सत्य सिद्धांत समझे थे—मैं उन्हें वास्तविक जीवन के परिवेशों में क्यों नहीं लागू कर सकता? ऐसा क्यों है कि जो मैं समझता हूँ और जिसके बारे में अक्सर बात करता हूँ, वह काम नहीं करता?” वे फिर से हैरान हो जाते हैं। खराब काबिलियत वाले लोग सिर्फ धर्मसिद्धांतों के बारे में बात करना और विनियमों का पालन करना जानते हैं, लेकिन परिस्थितियों का सामना करने पर वे उन्हें स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते, वे जो धर्मसिद्धांत बोल सकते हैं वे पूरी तरह से बेकार होते हैं, वे विनियमों का पालन तक नहीं कर पाते और किसी समस्या का समाधान नहीं कर सकते। वे नहीं जानते कि कठिनाइयाँ आने पर उन्हें कैसे अभ्यास करना चाहिए। उदाहरण के लिए, जब कोई बेतुकी बातें कहते हुए कलीसिया के काम में विघ्न-बाधा डालता है तो वे समझ नहीं पाते कि इस मामले की प्रकृति क्या है। वे नहीं जानते कि कौन-सी चीजें विघ्न-बाधाएँ मानी जाती हैं या उनकी प्रकृति क्या है; और फिर, यह तो वे बिल्कुल भी नहीं जानते कि समस्या का समाधान कैसे किया जाना चाहिए। कोई उनसे पूछता है, “क्या तुम नहीं जानते कि बुरे लोगों को कैसे पहचाना जाए? बुरे लोगों को सँभालने की बात आने पर तुम्हारे पास सिद्धांतों की कमी क्यों होती है?” वे जवाब देते हैं, “मैं इन धर्मसिद्धांतों को समझता हूँ, लेकिन मैं यह नहीं जानता कि वे किन समस्याओं को हल करने या किन लोगों पर लागू करने के लिए उपयुक्त हैं।” यह बोध क्षमता की कमी दर्शाता है, है न? (हाँ।) देखो, सिद्धांतों को सुनने के बाद वे उनके शाब्दिक अर्थ के अनुसार उनका बिंदुवार सारांश प्रस्तुत करने, उन्हें काफी सटीक रूप से याद रखने, यहाँ तक कि उनका धाराप्रवाह ढंग से पाठ करने में भी बहुत अच्छी तरह सक्षम थे, एक भी शब्द नहीं भूलते थे। लेकिन दुर्भाग्य से वास्तविक जीवन में जब लोगों और चीजों को देखने और आचरण और क्रियाकलाप करने की बात आती है तो उनके पास अभ्यास का कोई मार्ग बिल्कुल नहीं होता, वे सिर्फ नारे लगाना, धर्मसिद्धांतों के बारे में बात करना और विनियमों का पालन करना जानते हैं। चाहे वास्तविक जीवन में हो या अपना कर्तव्य निभाते हुए, किसी भी चीज का सामना करने पर वे नहीं जानते कि सत्य कैसे खोजें या सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास कैसे करें। यह बोध क्षमता की कमी दर्शाता है। जिन लोगों में बोध क्षमता की कमी होती है, वे अक्सर परमेश्वर के वचन पढ़ते तो हैं, लेकिन यह नहीं समझ पाते कि परमेश्वर के वचनों में सत्य क्या है या सिद्धांत क्या हैं। इसलिए जब कुछ होता है तो वे उसे समझने और हल करने के लिए परमेश्वर के प्रासंगिक वचन नहीं खोज पाते और दूसरों को उनके लिए परमेश्वर के प्रासंगिक वचन खोजने पड़ते हैं। परमेश्वर के वचन पढ़ते समय वे हमेशा किस चीज पर ध्यान केंद्रित करते हैं? वे यह तलाशते हैं कि मामला समझाने के लिए विशिष्ट उदाहरण हैं या नहीं। अगर उदाहरण नहीं होते तो वे परमेश्वर के वचनों का अर्थ नहीं समझ सकते। उदाहरण के लिए, परमेश्वर के जो वचन लोगों का प्रकृति सार उजागर करते हैं, अगर उनके बारे में कोई उदाहरण नहीं दिया जाता तो वे उन्हें समझ नहीं सकते। वे परमेश्वर के वचनों के साथ अपनी अवस्थाओं की तुलना करके विवेक का अभ्यास नहीं कर सकते। अगर कोई सत्य पर संगति करे और उनकी वास्तविक स्थितियों के अनुसार उन्हें पहचाने और उनका विश्लेषण करे, तभी वे समझ सकते हैं। ऐसी संगति के बिना वे परमेश्वर के वचनों को नहीं समझ सकते। ऐसे लोग परमेश्वर के वचनों को पढ़ते समय हमेशा यह कहते हुए शिकायत करते हैं, “इनमें विशिष्ट उदाहरण क्यों नहीं हैं? मैं इसे खुद से कैसे जोड़ सकता हूँ? इन वचनों को समझना बहुत कठिन है; मैं चाहे इन्हें कैसे भी पढ़ूँ, मैं इनका अपने से मिलान नहीं कर सकता!” इससे पता चलता है कि वे परमेश्वर के वचनों को नहीं समझ सकते, सत्य को समझना या परमेश्वर के वचनों को वास्तविक जीवन में उतारना तो दूर की बात है। वे सिर्फ सरल धर्मसिद्धांत और विनियम ही समझते हैं, लेकिन ये धर्मसिद्धांत और विनियम वास्तविक जीवन में बेकार होते हैं। जब चीजें घटित होती हैं तो अभी भी उनके पास अभ्यास का कोई मार्ग नहीं होता। यह दर्शाता है कि उनमें बोध क्षमता नहीं है। क्या बिना बोध क्षमता वाले लोग खराब काबिलियत वाले होते हैं? (हाँ।) सबसे खराब काबिलियत वाले लोग वे होते हैं जिनमें बिल्कुल भी काबिलियत नहीं होती; ऐसे लोग सुने गए विभिन्न सिद्धांतों को समझ नहीं पाते; वे नहीं जानते कि फलाँ-फलाँ उदाहरण क्यों दिए जाते हैं, विशेष बातें क्यों कही जाती हैं या लोगों में कुछ खास अभिव्यक्तियाँ क्यों होती हैं—वे ऐसी चीजें नहीं समझ पाते, ये चीजें उनकी समझ से परे होती हैं। यहाँ तक कि अगर तुम उन्हें कुछ उदाहरण भी दो, तो भी उन्हें ऐसा लगता है कि तुम बस कहानियाँ या चुटकुले सुना रहे हो, मानो वे बच्चे हैं जो कोई कहानी सुन रहे हैं और वह उन्हें दिलचस्प और मनोरंजक लग रही है। अगर कोई उनसे पूछे कि जो उन्होंने सुना है क्या वे उसे समझते हैं, तो वे कहते हैं कि वे समझते हैं, यहाँ तक कि वे दूसरों के शब्दों के हास्य की या इस बात की नकल भी कर सकते हैं कि उन्होंने लोगों को कैसे डाँटा था। अगर तुम उनसे पूछो, “क्या तुम वे प्रासंगिक सिद्धांत जानते हो, जिनका लोगों को पालन करना चाहिए?” तो वे जवाब देते हैं, “अयँ? उसमें सिद्धांत भी हैं? मैं उन्हें पकड़ नहीं आया।” क्या ऐसे लोगों में बोध क्षमता होती है? (नहीं।) उनमें बोध क्षमता नहीं होती और वे परमेश्वर के वचनों को नहीं समझ सकते। जिन लोगों में बोध क्षमता नहीं होती, वे रोज नियमित तरीके से और समय-सारणी के अनुसार परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश या अध्याय खाते-पीते हैं और निर्धारित समय पर भजन भी सुनते हैं और सभाओं में भी शामिल होते हैं। लेकिन जब वे अपनी किताबें या अपने भजनों की रिकॉर्डिंग बंद कर देते हैं तो उन्होंने जो खाया-पीया था, उसमें से कुछ आध्यात्मिक वाक्यांश और कुछ मृत शब्द ही उन्हें याद रह जाते हैं, जैसे कि वे वाक्यांश जिन्हें लोग अक्सर कहते हैं—“परमेश्वर हर चीज पर संप्रभु है,” और “सभी चीजों में परमेश्वर के प्रति समर्पण करो”; या “मनुष्य का भाग्य परमेश्वर द्वारा निर्धारित किया जाता है,” और “बस परमेश्वर से प्रेम करने का अभ्यास करो।” पीड़ा की वास्तविक स्थितियों में वे सिर्फ छद्म आध्यात्मिक वाक्यांश ही बोल पाते हैं, जैसे कि “मैं भावनाओं के कारण कष्ट उठा रहा हूँ” या “मैं देह के कारण पीड़ा भोग रहा हूँ।” जहाँ तक आत्म-आचरण, दैनिक जीवन, कार्य से संबंधित सिद्धांतों और सत्य के अन्य विभिन्न सिद्धांतों की बात है, वे उनमें से किसी को भी न तो जानते हैं और न ही समझते हैं। ये चीजें उनके दिलों से गायब रहती हैं और उनके भीतर समा नहीं सकतीं। ये चीजें समा क्यों नहीं सकतीं? क्योंकि अपनी काबिलियत के संदर्भ में ऐसे लोग इन सत्य सिद्धांतों को समझ ही नहीं सकते और ये सत्य सिद्धांत उनकी समझ से परे होते हैं; इसलिए ये चीजें उनके दिलों में जड़ नहीं जमा सकतीं। व्यक्ति के पास आंतरिक रूप से जो होता है और जिसे वह स्वीकारने में सक्षम होता है, वह यह प्रमाणित करता है कि वह क्या समझ सकता है और क्या उसकी समझ से परे नहीं है। अगर व्यक्ति में काबिलियत बिल्कुल नहीं है, उसमें बोध क्षमता का अभाव है और वह परमेश्वर के वचनों का सटीक अर्थ नहीं समझ सकता तो उसे स्वर्ग या तीसरे स्वर्ग में रखने पर भी क्या वह परमेश्वर के वचन समझ सकता है? क्या वह सत्य को अभ्यास में ला सकता है? क्या वह परमेश्वर के प्रति समर्पण कर सकता है? (नहीं।) वह बिल्कुल वैसा ही बना रहेगा, जैसा वह है। उसकी काबिलियत वैसी ही रहेगी, जैसी हमेशा रही है। खराब काबिलियत वाले लोग बहुत सीमित दायरे में ही चीजों को समझ सकते हैं। अच्छी काबिलियत वाले लोग ज्यादा गहराई और ज्यादा उच्च स्तर के साथ ज्यादा समझ सकते हैं। औसत काबिलियत वाले लोग अच्छी काबिलियत वाले लोगों की तुलना में न सिर्फ बहुत कम समझते हैं बल्कि उनकी समझ भी उथली और कम गहन होती है; जो कुछ वे समझ सकते हैं वह एक औसत दायरे तक ही सीमित होता है और वह इस दायरे से आगे नहीं जा सकता क्योंकि उनकी काबिलियत उन्हें सीमित करती है। सबसे बुरे वे होते हैं, जिनमें काबिलियत बिल्कुल नहीं होती। ऐसे लोगों में, उनकी काबिलियत के संदर्भ में, कोई बोध क्षमता नहीं होती। इसलिए वास्तविक जीवन में और अपना कर्तव्य निभाने में उनकी अभिव्यक्ति यह होती है कि वे कुछ नहीं समझते; चाहे वे दस साल से, बीस साल से, यहाँ तक कि बुढ़ापे तक परमेश्वर में विश्वास करते रहे हों, परमेश्वर में विश्वास से संबंधित धर्मसिद्धांत और आध्यात्मिक वाक्यांश, जिनके बारे में वे बात करते हैं, अभी भी वही पुरानी चीजें होती हैं जिन्हें उन्होंने तब समझा था जब उन्होंने पहली बार विश्वास करना शुरू किया था। चाहे वे कितने भी साल विश्वास करें, वे कोई प्रगति नहीं करते। वे प्रगति क्यों नहीं करते? क्योंकि उनमें बोध क्षमता नहीं होती और चाहे वे कितने भी साल परमेश्वर में विश्वास करें, जो चीजें वे समझ सकते हैं वे सिर्फ मृत शब्द ही होते हैं। कई वर्षों तक विश्वास करने के बाद भी उनकी सीखने की क्षमता, चीजों को समझने की क्षमता, बोध क्षमता और अन्य क्षमताएँ सुधरती नहीं। वे किस तरह के लोग होते हैं? वे अत्यंत खराब काबिलियत वाले लोग होते हैं। चूँकि उनकी काबिलियत खराब होती है और उनकी विभिन्न क्षमताएँ नहीं सुधरतीं, इसलिए भले ही ऐसे लोग चालीस, पचास, साठ या सत्तर साल के होने तक जीवित रहें, फिर भी उनकी अपना खयाल रखने की क्षमता बहुत कमजोर होगी। उनकी जीवित रहने की क्षमता और अपना खयाल रखने की क्षमता देखकर तुम बता सकते हो कि ऐसे लोगों की काबिलियत कैसी है। ऐसा व्यक्ति मानसिक रूप से कमजोर, मूर्ख और बेवकूफ होता है और उसकी अपना खयाल रखने की क्षमता बहुत खराब होती है। मैं क्यों कहता हूँ कि उसकी अपना खयाल रखने की क्षमता खराब होती है? चूँकि उसकी सीखने की क्षमता, चीजों को समझने की क्षमता और बोध क्षमता सब खराब होती हैं, इसलिए जीवन में चीजें करने का जो अनुभव, सामान्य ज्ञान, प्रतिमान और युक्तियाँ वह हासिल करता है, वे बहुत सीमित होती हैं। साठ-सत्तर साल की उम्र में भी वह वैसा ही बना रहता है। अच्छी काबिलियत वाले लोग जब तक अपनी उम्र के तीसरे दशक में पहुँचते हैं, तब तक वे जीवन में और अपने जीवन-पथ पर आने वाली विभिन्न समस्याओं के बारे में कुछ ज्ञान प्राप्त कर चुके होते हैं, उन्हें इन चीजों की कुछ समझ, अंतर्दृष्टि और अनुभव प्राप्त हो चुका होता है। इस अनुभव के जरिये वे जानते हैं कि विभिन्न समस्याओं का सामना करने पर उन्हें क्या करना चाहिए, ताकि वे बेहतर जीवन जी सकें और खुद को ज्यादा प्रभावी ढंग से सुरक्षित रख सकें। लेकिन जहाँ तक खराब काबिलियत वाले लोगों का संबंध है, चूँकि सभी पहलुओं में उनकी क्षमताएँ कमजोर होती हैं, इसलिए चाहे वे कितनी भी उम्र के हो जाएँ, उनकी जीवित रहने की क्षमता बहुत खराब रहती है। वह कितनी खराब रहती है? वह इतनी खराब रहती है कि उनमें स्वतंत्र रूप से जीने की क्षमता नहीं होती। कुछ लोग कह सकते हैं, “देखो, वे दिल खोलकर खाते हैं, चैन की नींद सोते हैं और उनका शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा है—तुम कैसे कह सकते हो कि उनमें स्वतंत्र रूप से जीने की क्षमता नहीं है?” हम जिस जीने की क्षमता की बात कर रहे हैं, उसका संबंध इस बात से नहीं है कि कोई खा या सो सकता है या नहीं। अगर कोई व्यक्ति खाने का समय होने पर खाना तक नहीं जानता तो वह सामान्य व्यक्ति नहीं होता, बल्कि मानसिक रूप से विकलांग होता है—ऐसे लोगों की काबिलियत पर तो विचार करने की भी जरूरत नहीं है। लोगों की काबिलियत के हमारे मूल्यांकन के दायरे में मुख्य रूप से वे लोग आते हैं जिन्हें बाहरी तौर पर सामान्य माना जाता है। इसमें शारीरिक विकलांगता, मानसिक विकलांगता, मानसिक बीमारी या अपनी देखभाल करने की क्षमता की कमी वाले लोग नहीं आते। हम अक्सर कुछ ऐसे लोगों को देखते हैं जो अपने भोजन, वस्त्र, आवास और परिवहन के प्रबंधन में चीजें करने के लिए कोई प्रतिमान, सिद्धांत या युक्ति तक नहीं खोज पाते। चाहे वे कितनी भी उम्र के हो जाएँ, वे नहीं जानते कि जीवन के इन पहलुओं को उस तरह से कैसे सँभालें जो सिद्धांतों और मानवता के अनुरूप हो। उदाहरण के लिए, वे नहीं जानते कि अलग-अलग मौसमों के लिए कौन-से कपड़े सबसे उपयुक्त हैं और वे बस दूसरों का अनुसरण करते हैं। जब बाहर ठंड होती है तो वे बहुत पतले कपड़े पहन लेते हैं और उन्हें जुकाम हो जाता है, फिर भी उन्हें समझ नहीं आता कि ऐसा क्यों हुआ; या वे अस्वास्थ्यकर खाना खाने से बीमार पड़ जाते हैं, लेकिन यह नहीं जानते कि इसका क्या कारण है। वे इन अनुभवों से कोई निष्कर्ष नहीं निकाल पाते। क्या वे मानसिक रूप से कमजोर नहीं हैं? क्या उनमें स्वतंत्र रूप से जीने की क्षमता का अभाव नहीं है? (हाँ, है।) चाहे वे कितने भी साल के क्यों न हों, वे नहीं जानते कि कैसे जीना है और बस भ्रम में जीवन गुजारते रहते हैं। जहाँ तक किसी सामान्य व्यक्ति का संब्वंध है, जब उसका पहला बच्चा होता है तब उसके पास अनुभव की कमी हो सकती है, लेकिन जब तक उसका दूसरा बच्चा होता है, तब तक उसे इस बारे में कुछ अनुभव प्राप्त हो जाता है कि अपने बच्चे की देखभाल और भरण-पोषण कैसे किया जाए। लेकिन कुछ लोगों को दो-तीन बच्चे होने के बाद भी कोई अनुभव नहीं होता। जब उनसे पूछा जाता है कि वे अपने बच्चों की देखभाल कैसे करते हैं तो वे कहते हैं, “पता नहीं, मैं तो बस भ्रमित रहता हूँ। वैसे भी, जब बच्चे भूखे होते हैं तो मैं उन्हें खाना खिला देता हूँ और जब उनका पेट भर जाता है तो बस हो गया।” उनके हाथों में कोई भी बच्चा बच जाए तो भाग्यशाली होगा। उनके जीवित रहने की क्षमता के स्तर को देखते हुए, उनकी देखरेख में एक भी बच्चा जीवित नहीं बचेगा। कुछ लोग यह नहीं समझते कि जीवन में या जीवित रहने में आने वाली विभिन्न समस्याओं को कैसे सँभालना है। ऐसे लोगों में जीवित रहने की क्षमता नहीं होती। उदाहरण के लिए, जब एक ही समय में दो समस्याएँ पैदा होती हैं तो वे भ्रमित हो जाते हैं और नहीं जानते कि क्या करें या कौन-सी समस्या पहले सँभालें। वे घबरा जाते हैं, बेचैन हो जाते हैं और डर जाते हैं, और यह कहते हुए शिकायत करते हैं, “ये दो समस्याएँ एक ही समय में क्यों उत्पन्न हो गईं? अब मुझे क्या करना चाहिए?” वे इतने चिंतित हो जाते हैं कि खा या सो भी नहीं पाते। वे अपनी उम्र के तीसरे दशक में भी ऐसे ही रहते हैं और छठे दशक में भी उनका आध्यात्मिक कद यही रहता है। जब स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं और वे उनका समाधान नहीं खोज पाते तो वे रोने लगते हैं। दूसरे कहते हैं, “तुम रो क्यों रहे हो? यह कोई बड़ी बात नहीं है—ये कुछ सबसे आम समस्याएँ हैं। तुम्हें बस उन्हें प्राथमिकता प्रदान करने और महत्व के आधार पर सँभालने की जरूरत है।” अगर कोई व्यक्ति इन मामलों को नहीं सँभाल पाता और इनके कारण उसका खाना-सोना छूट जाता है, यहाँ तक कि वह अपना जीवन समाप्त करने के बारे में भी सोचने लगता है तो क्या वह बहुत ही कायर नहीं है? यहाँ तक कि वह यह शिकायत भी करता है, “यह किसी और के साथ क्यों नहीं हुआ? यह मेरे साथ ही क्यों हुआ?” यह तुम्हारे साथ हुआ है, इसलिए इसे सँभालो। अगर तुम इसे नहीं सँभाल सकते, तो अपने आस-पास के किसी ऐसे व्यक्ति से पूछो जो समझता हो। जब तुम यह समस्या स्पष्ट समझ लेते हो तो क्या तुम यह नहीं जान जाओगे कि इसे कैसे सँभालना है? जब कुछ नहीं हो रहा होता तो ऐसे लोग बहुत अच्छी तरह बात करते हैं, धर्मसिद्धांतों का एक के बाद एक समुच्चय पेश करते हैं। लेकिन जब कुछ होता है तो वे घबरा जाते हैं, भ्रमित हो जाते हैं, रिरियाने लगते हैं, उनका दिमाग खाली हो जाता है और उनके समस्त विचार गड्ड-मड्ड हो जाते हैं—वे नहीं जानते कि क्या करें। अगर कोई युवा है, उसने जीवन में बहुत-कुछ नहीं देखा है और उसमें अनुभव की कमी है, तो कुछ होने पर उसका घबरा जाना और डर जाना सामान्य है। लेकिन जब वह अपनी उम्र के तीसरे या चौथे दशक में पहुँचता है तो दुनिया में कई चीजों से गुजरने और अनुभव प्राप्त करने के बाद वह अपेक्षाकृत परिपक्व और अनुभवी हो जाता है और मामलों को ज्यादा स्थिरता और आत्मविश्वास के साथ सँभालता है। जो युवा लोग इसे देखते हैं, वे प्रभावित महसूस करते हैं और सोचते हैं कि वे ऐसे लोगों पर भरोसा कर सकते हैं। अगर व्यक्ति में काबिलियत और जीवित रहने की क्षमता नहीं होती तो उसमें अपनी देखभाल करने की क्षमता भी नहीं होती। अपने आसपास अपनी सहायता और देखरेख करने वाले वयस्कों या अनुभवी लोगों के बिना वे जो कुछ भी सँभालते हैं, वह पूरी तरह से गड़बड़ हो जाता है। ऐसे लोगों की काबिलियत पूरी तरह से खराब होती है। भला कुछ लोगों की काबिलियत कितनी खराब होती है? उदाहरण के लिए, कुछ गृहिणियों को लो, जो नहीं जानतीं कि कई लोगों के परिवार के लिए भोजन में कितना चावल या कितने व्यंजन चाहिए—कुछ गृहिणियाँ बीस-तीस साल से खाना बना रही हैं और फिर भी नहीं जानतीं कि प्रत्येक भोजन कितना बनाना है या व्यंजनों में कितना नमक होना चाहिए और कभी-कभी तो वे यह भी ठीक से नहीं समझ पातीं कि भोजन ठीक से पका है या नहीं। उनकी काबिलियत इतनी खराब होती है। क्या ऐसे लोगों में काम करने वाला दिमाग नहीं होता? उनमें सूअरों का दिमाग होता है! ऐसे लोगों में स्वतंत्र रूप से जीने की क्षमता नहीं होती। उनके पास कुछ भी करने का कोई मार्ग नहीं होता और वे आसानी से गलतियाँ कर बैठते हैं। जब कुछ होता है, तो अगर उनके लिए चीजों की देखरेख करने वाला कोई न हो तो वे जो कुछ भी करते हैं वह पूरी तरह से अराजकता में बदल जाता है, सब-कुछ पूरी तरह से गड़बड़ हो जाता है। वे मूर्ख और मानसिक रूप से कमजोर होते हैं। ऐसे व्यक्ति, जिनकी बोध क्षमता सबसे खराब होती है, सत्य सिद्धांतों के बारे में चाहे कितनी भी संगति सुनें, वे सिर्फ धर्मसिद्धांतों को ही समझते हैं। वास्तविक जीवन में वे फिर भी नहीं जानते कि इन सिद्धांतों को कैसे लागू किया जाए। दूसरे शब्दों में, जिन धर्मसिद्धांतों को वे समझते हैं, वे उन्हें वास्तविक जीवन में कोई लक्ष्य, दिशा या मार्ग प्रदान नहीं कर सकते। ये वे लोग हैं, जिनकी बोध क्षमता सबसे खराब होती है। बोध क्षमता नामक तीसरी क्षमता पर हमारी संगति यहीं समाप्त होती है।
चौथी क्षमता क्या है? चीजों को स्वीकारने की क्षमता। चीजों को स्वीकारने की क्षमता में चीजों को समझने की क्षमता और बोध क्षमता से कुछ भिन्नताएँ होती हैं। चीजों को स्वीकारने की क्षमता में यह शामिल है कि नई चीजें सामने आने पर तुम यह समझ सकते हो या नहीं कि वे सकारात्मक हैं या नकारात्मक, और तुम्हारे जीवन, कार्य और अस्तित्व के लिए उनका क्या लाभ या हानि है, साथ ही यह भी कि तुम उन्हें कैसे देखते हो, उनके साथ कैसे पेश आते हो और उन्हें कैसे लागू करते हो। अगर तुम अच्छी काबिलियत वाले हो तो नई चीजें सामने आने पर तुम विशेष रूप से संवेदनशील और विशेष रूप से अनुभव कर सकने वाले होगे। किसी नई चीज के बारे में झटपट जानकारी प्राप्त करने के बाद तुम यह समझने में सक्षम होगे कि लोगों को इसका क्या लाभ या हानि होगी या इसमें क्या कमियाँ हैं। अगर यह तुम्हारे वास्तविक जीवन में किसी निश्चित समस्या के लिए लाभदायक है तो तुम तुरंत इसकी खूबियाँ लागू कर सकते हो; अगर यह हानिकारक है तो तुम लोगों को होने वाला इसका नुकसान या कमियाँ टाल भी सकते हो। यानी, तुम नई चीजों के प्रति एक निश्चित सीमा तक स्वीकृति रखते हो और जल्दी से उन नई चीजों को पहचान सकते हो जो नकारात्मक हैं, लोगों के लिए हानिकारक हैं और जिनमें कमियाँ हैं—यह चीजों को स्वीकारने की क्षमता होना है। चीजों को स्वीकारने की क्षमता और चीजों को समझने की क्षमता और बोध क्षमता के बीच का अंतर इसी में निहित है। चीजों को स्वीकारने की क्षमता मुख्य रूप से व्यक्ति की नई चीजों के प्रति संवेदनशीलता और उन्हें पहचानने की क्षमता को संदर्भित करती है। अगर तुम नई चीजें जल्दी पहचान लेते हो, उनकी खूबियाँ और लाभ जल्दी से स्वीकार लेते हो और उन्हें अपने जीवन या कार्य में काम आने के लिए वास्तविक जीवन में लागू कर लेते हो और फिर उन पुरानी चीजों को छोड़ देते हो या खत्म कर देते हो जिनकी जगह इन नई चीजों ने ले ली है, तो इसका मतलब है कि तुममें चीजों को स्वीकारने की क्षमता है और तुम अच्छी काबिलियत वाले व्यक्ति हो। इसके बाद औसत काबिलियत वाले लोग आते हैं। ऐसे लोग उन कुछ नई चीजों को, जो पहले ही पुरानी चीजों की जगह ले चुकी होती हैं, और साथ ही नए मतों और नई प्रौद्योगिकियों को भी स्वीकारने में विशेष रूप से धीमे होते हैं। यह “धीमापन” किसे संदर्भित करता है? यह इस तथ्य को संदर्भित करता है कि जब कोई नई चीज पहले ही व्यापक हो चुकी हो, बहुत व्यापक रूप से इस्तेमाल की जा रही हो और उसका नाम बहुत आम हो गया हो, तभी वे उसे स्वीकार सकते हैं। उन्हें नई चीजों की कोई समझ नहीं होती और वे यह नहीं समझ पाते कि वे सकारात्मक चीजें हैं या नकारात्मक चीजें। यहाँ तक कि जब सकारात्मक नई चीजें सामने आती हैं, तब भी वे उनके प्रति प्रतिरोधी होते हैं और अपने दिलों में उनके प्रति तिरस्कार रखते हैं; उनकी हमेशा अपनी धारणाएँ और अपने रवैये होते हैं और वे हमेशा सांसारिक प्रवृत्तियों के अनुरूप रहते हैं और नई चीजों के प्रति बंद और उन्हें स्वीकार न करने वाले होते हैं, उन्हें खारिज कर देते हैं। जब कोई नई चीज व्यापक रूप से फैल जाती है और बहुत-से लोग उसके लाभों का अनुभव और एहसास कर लेते हैं और लोग उससे लाभान्वित हो जाते हैं, तभी वे उसे स्वीकारना और लागू करना शुरू करते हैं। यह औसत काबिलियत वाला होना है। ऐसे लोगों की नई चीजों के प्रति स्वीकृति बहुत निष्क्रिय होती है; वह सक्रिय स्वीकृति नहीं होती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि एक ओर उनमें नई चीजों के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं होती; वे सुन्न, पिछड़े और बंद होते हैं। दूसरी ओर, ऐसा इसलिए भी होता है कि उनके पास नई चीजों के बारे में कुछ धारणाएँ और मत होते हैं, जो उनके प्रति तिरस्कार और घृणा का रवैया रखते हैं। इसका व्यक्तिपरक कारण यह होता है कि उनकी काबिलियत और चीजों को स्वीकारने की क्षमता औसत होती है जो उन्हें बहुत सुन्न कर देती है; जब नई चीजें उनके सामने आती हैं तो उनमें कोई जागरूकता नहीं होती, कोई भावना नहीं होती और उन्हें सक्रिय रूप से स्वीकारने का रवैया नहीं होता। इसके अलावा, वे अंतर्निहित तौर पर विशेष रूप से पिछड़े और खास तौर से सुन्न और मंदबुद्धि होते हैं। ये दो कारण उन्हें नई चीजें स्वीकार करने में धीमा बनाते हैं। जब बहुत-से लोग पहले से ही किसी चीज का इस्तेमाल कर रहे होते हैं, इस बारे में बात कर रहे होते हैं कि उसके क्या लाभ हैं, उससे क्या सुविधा है, उसका लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता है और वह लोगों को क्या लाभ पहुँचाती है, और उन्होंने यह सब अपनी आँखों से देखा होता है—और अपने आस-पास के लोगों को कुछ हद तक व्यक्तिगत रूप से इसका अनुभव करते हुए भी देखा होता है—तभी वे धीरे-धीरे उसे अपने दिलों में स्वीकारते हैं और फिर उसका इस्तेमाल करना शुरू करते हैं। यह किस तरह की काबिलियत का संकेत देता है? ऐसे लोगों की चीजों को स्वीकारने की क्षमता औसत होती है। चीजों को स्वीकारने की औसत क्षमता होने का मतलब है कि व्यक्ति की काबिलियत औसत है। उदाहरण के लिए, सुसमाचार का प्रचार करने या कुछ पेशेवर काम करने में कुछ भाई-बहन नई पद्धति या पेशेवर तकनीक आजमाने और लागू करने में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। उन्हें जल्दी ही लगता है कि इस पेशेवर तकनीक का इस्तेमाल करना बहुत अच्छा है, क्योंकि इसके साथ अपना कर्तव्य निभाने में उनकी प्रभावशीलता बहुत अच्छी रहती है और उनकी दक्षता भी बढ़ जाती है। फिर वे तुरंत इस नई तकनीक या तरीके को बढ़ावा देते हैं, अन्य भाई-बहनों को उसे सीखने और लागू करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। अच्छी काबिलियत वाले लोग अपना कर्तव्य निभाने में नई तकनीकें और तरीके खोजने में माहिर होते हैं। बड़ी जल्दी वे नई चीज को स्पष्ट रूप से समझकर उसका सही-सही आकलन कर सकते हैं और इस अवसर का लाभ उठा सकते हैं, नई तकनीक या तरीके को पूरी तरह से स्वीकार सकते हैं और उसे वास्तविक जीवन के कार्य में लागू कर सकते हैं। उस नई चीज की क्या खूबियाँ और कमजोरियाँ हैं और वह क्या परिणाम प्राप्त कर सकती है, इस बारे में वे लगातार निष्कर्ष निकाल सकते हैं और फिर समायोजन कर सकते हैं। खोजबीन के दौर से गुजरते हुए वे धीरे-धीरे समझ जाते हैं कि उस तकनीकी पेशे या जानकारी के कौन-से पहलू कलीसिया के काम में लागू किए जा सकते हैं और कौन-से नहीं। इसके बाद, वे सिद्धांतों और परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के अनुसार अपने काम में इस नई चीज में उत्तरोत्तर सुधार करते हैं। जितना ज्यादा वे इस नई चीज में सुधार करते हैं, वह उतनी ही बेहतर होती जाती है और अंततः फल देती है। यह अच्छी काबिलियत की अभिव्यक्ति है। लेकिन कुछ लोग सुसमाचार का प्रचार करते समय अभी भी मूल तरीके से चिपके रहकर या तो एक व्यक्ति के आगे या दो व्यक्तियों के आगे प्रचार करते हैं या मात्र संख्या पर निर्भर रहते हैं। वे सुन्न और मंदबुद्धि होते हैं और उन्नत तरीका स्वीकारने में धीमे होते हैं। हालाँकि वे मौखिक रूप से स्वीकारते हैं कि उन्नत तरीका बहुत अच्छा लगता है और व्यवहार्य है, लेकिन अपने दिल में उन्हें लगातार संदेह होते हैं। वे डरते हैं कि अगर वे यह तरीका लागू करते हैं तो यह खराब परिणाम देगा, इसलिए वे उसे आजमाने की हिम्मत नहीं करते। दूसरे लोग उन्हें यह कहते हुए मनाते हैं, “तुम्हें इन सब चीजों के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है। हमने इसे पहले ही आजमा लिया है; इस तरह से अभ्यास करने से विशेष रूप से अच्छे परिणाम मिलते हैं।” लेकिन वे अभी भी उसे आजमाने की हिम्मत नहीं करते और मूल तरीके को ही पकड़े रहते हैं। जब बहुत-से लोग सुसमाचार का प्रचार करने के लिए नई पद्धति का इस्तेमाल करते हैं, हर महीने ज्यादा लोगों को प्राप्त करते हैं और दक्षता बढ़ाते हैं, तभी वे अनिच्छा से उसे आजमाने का फैसला करते हैं, लेकिन वे अभी भी सिर्फ छोटे कदम उठाते हैं और अपनी योजनाएँ और रणनीतियाँ पूरी तरह से बदलने की हिम्मत नहीं करते। यह नई चीजों को स्वीकारने में बहुत धीमा होना है; यह औसत काबिलियत का होना है। खराब काबिलियत वाले लोगों में चीजों को स्वीकारने की क्षमता और भी खराब होती है। वे किसी नई चीज को स्पष्ट रूप से नहीं समझ सकते, उसका आकलन नहीं कर सकते और नहीं जानते कि उसके साथ कैसे पेश आएँ। अपने दिलों में वे प्रतिरोधी होते हैं, सोचते हैं कि जो लोग ईश्वर में विश्वास करते हैं, उन्हें नई चीजें, नई जानकारी और प्रौद्योगिकियाँ स्वीकार नहीं करनी चाहिए। देखो, वे काफी बंद होते हैं। कुछ संप्रदायों के लोग आज भी बिजली का इस्तेमाल नहीं करते, टेलीविजन नहीं देखते और कंप्यूटर या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद का उपयोग नहीं करते। बाहर जाते समय वे आधुनिक परिवहन का इस्तेमाल नहीं करते; वे साइकिल भी नहीं चलाते। वे किस सवारी का इस्तेमाल करते हैं? बैलगाड़ियों और घोड़ागाड़ियों का, जो धूल के बादल उड़ाती चलती हैं। कुछ लोग पूछते हैं, “तुम साइकिल क्यों नहीं चलाते या कार में क्यों नहीं चलते?” वे कहते हैं, “वे चीजें मनुष्य द्वारा बनाई गई हैं। हमें डर है कि अगर हम उनका इस्तेमाल करेंगे तो परमेश्वर इसे पसंद नहीं करेगा।” यह चीजों को स्वीकारने की खराब क्षमता है। चीजों को स्वीकारने की खराब क्षमता वाले लोग कई चीजों को गलत तरीके से देखते हैं। वे अपने पुराने तरीकों से चिपके रहते हैं, अपने ही दृष्टिकोणों पर अड़े रहते हैं, तमाम नई चीजों के प्रति प्रतिरोधी होते हैं। उनका प्रतिरोधी होना अपने आप में उनकी सोच और दिमाग की समस्या है। ऐसी समस्या होना क्या दर्शाता है? रूढ़िवादी तरीके से कहें तो, यह दर्शाता है कि ऐसे लोगों की काबिलियत बहुत औसत होती है। अगर वे लगातार नई चीजें स्वीकार नहीं कर पाते तो उनकी काबिलियत खराब होती है और वे गैर-लचीले दिमाग वाले होते हैं। वे मानते हैं कि परमेश्वर का कार्य अपरिवर्तनशील है और परमेश्वर ने जो भी वचन बोले हैं, वह सदैव वे ही वचन बोलेगा और परमेश्वर ने जो भी कार्य किया है, परमेश्वर सदैव वही कार्य करेगा। जहाँ तक इस मानवजाति और इस युग की बात है, वे मानते हैं कि उन्होंने जो शुरू में देखा और अनुभव किया, वह हमेशा अपरिवर्तित रहेगा और हमेशा ऐसा ही रहेगा। उदाहरण के लिए, 20-30 साल पहले लोगों की कपड़ों के बारे में अपनी समझ के संबंध में एक निश्चित धारणा थी। वे मानते थे कि सूती सामग्री विशुद्ध रूप से प्राकृतिक होती है और सभी प्रकार के सूती वस्त्र अच्छे होते हैं; चाहे सूत की गद्देदार जैकेट हो या टी-शर्ट या अंडरवियर, अगर वह सूत से बना है तो वह सिंथेटिक फाइबर से बेहतर है। वे बस इस विश्वास पर दृढ़ता से कायम रहे। लेकिन 20-30 साल बाद कपड़ा उद्योग विकसित हो गया है और सूती कपड़े जैसे कई कपड़े और साथ ही विभिन्न सिंथेटिक फाइबर वस्त्र सामने आ गए हैं। ऐसे कई वस्त्र हैं जो सूती कपड़ों से बेहतर हैं; वे ज्यादा हवादार होते हैं, गर्मी तेजी से भगा देते हैं, नमी तेजी से सोख लेते हैं और चाहे उन्हें कैसे भी धोया जाए, वे विरूपित नहीं होते, सिकुड़ते नहीं या उनका रंग फीका नहीं पड़ता। इसके अलावा, वे पहनने में विशेष रूप से आरामदेह और हलके होते हैं, त्वचा को कोई नुकसान नहीं पहुँचाते। लेकिन कुछ लोग अभी भी सिंथेटिक फाइबर को स्वीकार नहीं पाते। वे अभी भी मानते हैं कि सिर्फ सूती कपड़े ही अच्छे होते हैं क्योंकि कपास जमीन में उगाया जाता है, परमेश्वर द्वारा निर्मित है और प्राकृतिक होता है, जबकि सिंथेटिक फाइबर मानव-निर्मित होते हैं। वे यह समझने में विफल रहते हैं कि हालाँकि कपास परमेश्वर द्वारा निर्मित और सबसे अच्छा है, लेकिन भूमि प्रदूषित हो चुकी है और कपास में लगने वाले कपास के कीड़े हर पीढ़ी के साथ मजबूत होते गए हैं। साधारण कीटनाशक इस समस्या का समाधान नहीं कर सकते। अंततः कपास को विशेष कीटाणुशोधन उपचारों से गुजरना होता है, ताकि उसे पहनने से खुजली न हो। अच्छी तरह उपचार किए जाने पर कपड़े की कीमत ज्यादा हो जाती है, जिससे बिक्री-मूल्य बहुत महँगा हो जाता है। अगर अच्छी तरह उपचार नहीं किया जाता तो वह सिंथेटिक फाइबर के कपड़े पहनने जितना अच्छा नहीं होता। देखो, आजकल सिंथेटिक फाइबर के कपड़ों की गुणवत्ता विशेष रूप से अच्छी होती है; कई पेशेवर एथलीट उन्हें पहनते हैं और उनके बारे में तमाम प्रतिक्रियाएँ काफी सकारात्मक हैं। लेकिन कुछ लोग यह सुनने के बाद भी उन्हें नहीं स्वीकारते और आश्वस्त रहते हैं कि सूती वस्त्र बेहतर हैं। क्या ऐसे लोग अज्ञानी और जिद्दी नहीं हैं? (हाँ, हैं।) यह अज्ञानता और जिद्दीपन उनकी मानवता की समस्या है। तो उनकी काबिलियत कैसी होती है? (उनकी काबिलियत अच्छी नहीं होती।) जब कोई नई चीज किसी के सामने आती है, तो यह आकलन करने में कि यह सही है या गलत—यह तय करने के लिए कि इसे स्वीकार करना है या अस्वीकार—उनका रवैया उनकी काबिलियत पर निर्भर करता है। अगर ज्यादातर लोगों को लगता है कि नई चीज सही है और वे भीड़ का अनुसरण करते हैं और निष्क्रिय रूप से उसे स्वीकार लेते हैं तो ऐसा व्यक्ति ज्यादा से ज्यादा औसत काबिलियत का होता है। अगर वे नहीं समझ पाते कि नई चीज सही है या गलत, वह लोगों के लिए फायदेमंद है या नहीं और पुरानी चीजों की तुलना में, जिन पर वे पहले दृढ़ता से विश्वास करते थे, उसमें क्या खूबियाँ और कमियाँ हैं, वे नई और पुरानी चीजों के बीच अंतर समझने या भेद करने में असमर्थ रहते हैं—अगर वे इनमें से किसी का भी आकलन नहीं कर सकते तो यह साबित होता है कि उनमें नई चीजों को स्वीकारने की क्षमता नहीं है; यानी उनमें कोई बोध क्षमता नहीं है। ऐसे लोग खराब काबिलियत वाले होते हैं। शुरू में जब कुछ नया दिखाई देता है तो उनमें एक हद तक समझ की कमी होती है। जब वे उस चीज के बारे में सुनते हैं तो उनमें उसे स्वीकारने की क्षमता भी बिल्कुल नहीं होती। अंत में, अगर वे अनिच्छा से नई चीज स्वीकारते भी हैं, तो यह सिर्फ दूसरों की मदद और समझाने-बुझाने से होता है, जिन्हें नई चीज के लाभों और खूबियों की तुलना तक पुरानी चीजों से करनी होती है, ताकि ये लोग अपनी आँखों से देख लें कि नई चीज और पुरानी चीजों के बीच स्पष्ट अंतर हैं और नई चीज स्पष्ट रूप से पुरानी चीजों से बेहतर है, तभी वे उसे स्वीकार पाते हैं। लेकिन अपने दिलों में ये लोग अभी भी स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते कि कई अन्य नई चीजों में क्या अच्छा है और अभी भी महसूस करते हैं कि पुरानी चीजें अच्छी हैं और उन्हें बनाए रखना चाहिए। सिर्फ ऐसी परिस्थितियों में, जबकि उनके पास कोई विकल्प नहीं होता, वे अनिच्छा और निष्क्रियता से नई चीजें स्वीकारते हैं। ये लोग खराब काबिलियत वाले होते हैं। औसत काबिलियत वाला व्यक्ति वह होता है जो कुछ संकेतों से तुरंत समझ जाता है, यह महसूस करते हुए कि वह चीजों को विकृत, पुराने तरीके से देख रहा था। यह औसत काबिलियत वाला होना है। दूसरी ओर, खराब काबिलियत वाले व्यक्ति को बार-बार संकेतों और प्रेरणाओं और सभी लोगों से सामूहिक मान-मनौवल की आवश्यकता होती है—साथ ही कुछ तथ्यों और ठोस उदाहरणों की भी, जो यह दर्शाते हों कि व्यापक रूप से अपनाए जाने के बाद यह नई चीज लोगों को कैसे लाभ पहुँचाएगी—तभी वे उसे अनिच्छा से स्वीकारते हैं और उसका इस्तेमाल करते हैं। हालाँकि निजी तौर पर वे अभी भी पुरानी चीज ही चुनते हैं। यह बहुत खराब काबिलियत वाला व्यक्ति होता है। खराब काबिलियत वाला होने का मतलब है कि वह लगातार नई चीजें आने से लोगों पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभावों को पहचानने में विफल रहता है और नई और पुरानी चीजों के बीच अंतर नहीं देख पाता और लगातार नई चीजों के फायदे और उन्नत गुण और पुरानी चीजों की कमियाँ और पिछड़ापन खोजने या उजागर करने में विफल रहता है और यह भी कि वह हमेशा अपने पुराने विचारों और दृष्टिकोणों पर ही अड़ा रहता है; इसलिए उसकी चीजों को स्वीकारने की क्षमता बहुत खराब होती है। चीजों को स्वीकारने की खराब क्षमता वाले लोग खराब काबिलियत वाले होते हैं। खराब काबिलियत वाले लोग समस्याओं का सार या जड़ नहीं देख सकते, चाहे तुम उन्हें चीजें कैसे भी समझाओ। लोगों के उस हिस्से के बारे में, जिसमें सबसे खराब काबिलियत होती है, यह तक नहीं कहा जा सकता कि उसमें चीजों को स्वीकारने की कोई क्षमता है—नई चीजों का सामना करने पर बात यह नहीं होती कि वे उन्हें सीखने और स्वीकारने के लिए व्यक्तिपरक ढंग से तैयार हैं या नहीं; बल्कि मुद्दा यह है कि उनमें उनके प्रति कोई समझ बिल्कुल नहीं होती। वास्तविक जीवन में हो या कर्तव्य निभाते हुए, चाहे कोई भी नई चीज सामने आए, कोई भी चीज आगे बढ़े या कोई भी चीज बेहतर हो, उन्हें कोई बोध नहीं होता और कोई जागरूकता नहीं होती। क्या इन चीजों के बारे में उनकी अज्ञानता समाचार या समाचारपत्र न पढ़ने के कारण होती है? नहीं, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनकी काबिलियत में चीजों को स्वीकारने की क्षमता ही नहीं होती। यह ऐसा है मानो उनमें ग्रहण करने की क्षमताएँ ही न हों। जहाँ तक नई चीजें आने का संबंध है, वे सुन्न, मंदबुद्धि होते हैं और उनमें बोध नहीं होता। भले ही वे किसी हलचल भरे शहर में रहते हों, ऐसा लगता है मानो वे किसी दूरदराज के पहाड़ी गाँव में रह रहे हों। वे मानव-जीवन में होने वाली किसी भी छोटी-बड़ी घटना से पूरी तरह अनजान रहते हैं। इसलिए, उनके जीवन के दायरे में ऐसी कोई नई चीज नहीं होती जो उनके खाने, कपड़े, आवास और परिवहन को प्रभावित कर सके। वे बस जानवरों की तरह होते हैं। उनके विचार के दायरे में मौजूद चीजें उनके जीवन के दायरे में मौजूद चीजों की छोटी-सी सीमा तक सीमित रहती हैं, वे चीजें जिन्हें वे उस उम्र से जानते हैं जब वे दुनिया में विभिन्न चीजें देखना सीख रहे थे। इसके परे, बाहरी दुनिया की किसी भी चीज का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता और उन्हें उसमें कोई दिलचस्पी नहीं होती। ये किस तरह के लोग होते हैं? क्या वे मानसिक रूप से कमजोर होते हैं? (हाँ।) बेशक, हम यहाँ जिन मामलों के बारे में बात कर रहे हैं, वे दैनिक जीवन के बहुत छोटे, तुच्छ पहलू हैं; हम राष्ट्रीय मामलों या प्रमुख वैश्विक समाचारों का उल्लेख नहीं कर रहे। यहाँ तक कि किसी बहुत छोटी नई चीज का दिखना भी ऐसी चीज होती है जिसके बारे में वे अनजान होते हैं और बिल्कुल भी स्वीकृति नहीं दिखाते। यह “स्वीकृति” इस बात को संदर्भित करती है कि कैसे किसी नई चीज का दिखना उनके विचार और दृष्टिकोण बदल देता है, उनके जीवन में कुछ सुधार लाता है—जिसमें जीवनशैली, बुनियादी जीवन-ज्ञान आदि शामिल हैं—और जीवन में समस्याएँ सँभालने की उनकी क्षमता में कुछ सुधार और प्रगति करता है। जिन लोगों में चीजों को स्वीकारने की क्षमता नहीं होती, वे हमेशा अपनी दिनचर्या, जीने का मूल तरीका बनाए रखते हैं। उदाहरण के लिए, पहले लोग अक्सर कहते थे कि पालक के साथ पकाया गया टोफू अच्छी चीज होती है, जो आयरन और कैल्शियम दोनों प्रदान करती है, और कोई उसे इस तरह से खाकर बड़ा हुआ। बाद में कुछ लोगों ने कहा कि खाद्य-शोधकर्ताओं ने पाया है कि पालक में ऑक्सालिक एसिड होता है और उसे लंबे समय तक टोफू के साथ खाने से शरीर में आसानी से पथरी बन सकती है। यह सुनने के बाद यह व्यक्ति सोचता है, “ऑक्सालिक एसिड क्या होता है? पालक में ऑक्सालिक एसिड कभी भी किसने देखा है? मैंने इसे इतने सालों से खाया है और कुछ नहीं हुआ। मैं इसे खाता रहूँगा!” वे इसे नहीं स्वीकारते। यह वह व्यक्ति है जिसमें नई चीजों या नए दृष्टिकोणों के प्रति स्वीकृति की कोई मात्रा नहीं है। इसके विपरीत, चीजों को स्वीकारने की क्षमता वाले लोग यह पुष्टि कर लेने के बाद कि पालक में ऑक्सालिक एसिड होता है, ऑक्सालिक एसिड हटाने के बारे में सोचेंगे, और इसके बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त करके वे पाते हैं कि पालक को उबलते पानी में उबालने से ऑक्सालिक एसिड निकल जाता है। चीजों को स्वीकारने की क्षमता वाले लोग नई जानकारी के बारे में सुनकर पूछताछ करके उस जानकारी की सच्चाई और वह लोगों के लिए फायदेमंद है या नहीं, यह समझेंगे और फिर तय करेंगे कि उसे स्वीकारना है या अस्वीकार कर देना है। वे सवाल पूछेंगे, उसमें शामिल विवरणों के बारे में जानेंगे और फिर इस जानकारी को वास्तविक जीवन में लागू करेंगे, जिससे उस नई चीज की कमियों से या उसके कारण लोगों को होने वाले नुकसान से बच सकें। दूसरी ओर, वे भ्रमित लोग जिनमें चीजों को स्वीकारने की क्षमता का पूरी तरह से अभाव होता है, चाहे कोई भी नई जानकारी सुनें, न तो उसकी परवाह करते हैं और न ही उसके बारे में पूछताछ करते हैं, बल्कि सीधे उसे अस्वीकार कर देते हैं, सिर्फ पुरानी, अप्रचलित चीजों को ही पकड़े रहते हैं। यह अंततः उनकी काबिलियत की समस्या के कारण होता है। जब नई चीजों की बात आती है तो वे नहीं जानते कि उनके साथ कैसे पेश आया जाए या उन्हें कौन-से सिद्धांत समझने चाहिए, न ही वे इस बात पर विचार करते हैं कि नई चीजें अस्वीकार करने के उनके जीवन या कार्य में क्या परिणाम हो सकते हैं। संक्षेप में, वे हमेशा नई चीजों और नई जानकारी के प्रति संदेह का रवैया रखते हैं, उन्हें स्वीकारने की हिम्मत नहीं करते। ऐसे लोग खराब काबिलियत वाले होते हैं।
खराब काबिलियत वाले लोग जीवन में आने वाली समस्याओं का स्वतंत्र रूप से समाधान नहीं कर सकते, चाहे वे समस्याएँ कितनी भी क्यों न हों। ऐसे व्यक्तियों में स्वतंत्र जीवन जीने की क्षमता नहीं होती। चाहे जो भी मामला हो, उन्हें अपने पूर्वजों से काम करने का जो भी तरीका विरासत में मिला होता है, वे उसी तरह से काम करते रहते हैं; वे कुछ भी नहीं बदलते और अंत तक उसी पर अड़े रहते हैं। अगर तुम यह कहते हुए उनकी आलोचना करते हो कि इस तरह से चीजें करना गलत है तो वे तुम्हारी बात नहीं सुनेंगे, यहाँ तक कि बेहद जिद्दी हो जाएँगे और तुमसे बहस करेंगे : “हमारे पूर्वजों से यह इसी तरह से चला आ रहा है। मेरे दादा की पीढ़ी और मेरे माता-पिता की पीढ़ी सभी ने इसे इसी तरह से किया था और यह इसी तरह से विरासत में मिला है!” क्या विरासत में मिली चीजें जरूरी तौर पर सही होती हैं? वे इस सवाल पर विचार नहीं करते, जो उनकी खराब काबिलियत साबित करता है। अगर उनमें सामान्य व्यक्ति की काबिलियत होती, तो वे इस सवाल के बारे में सोचते। नई चीजों के बारे में जानकारी सुनकर वे एक निश्चित हद तक स्वीकृति प्रदर्शित करते हैं। अगर वे ये अभिव्यक्तियाँ नहीं दिखाते, तो इसका मतलब है कि उनमें स्वीकृति की कोई मात्रा नहीं है। ऐसे लोगों में स्वतंत्र रूप से जीने की क्षमता का अभाव होता है। चाहे वे कितने भी बूढ़े क्यों न हो जाएँ, हमेशा यही कहते हैं, “मेरे पिता के समय में ऐसा ही था। मेरे दादा और परदादा के समय में भी ऐसा ही था। इसलिए, मेरी पीढ़ी में भी ऐसा ही होना चाहिए।” ये लोग स्पष्ट रूप से जीवाश्म होते हैं। ये लकड़ी के सड़े-गले लट्ठों जैसे होते हैं—दकियानूस! उनमें कोई भी नई चीज स्वीकारने की क्षमता नहीं होती, जो दर्शाता है कि वे बहुत खराब काबिलियत वाले हैं। चाहे तुम नई चीजों की उन्नत बातें कैसे भी समझाओ, वे उन्हें नहीं स्वीकारेंगे। ऐसे लोगों में स्वतंत्र रूप से जीने की क्षमता नहीं होती। हो सकता है ऊपर से वे अपना खाना, पहनना, आवास और परिवहन अपने दम पर सँभालते दिखें, लेकिन जो तरीके और पद्धतियाँ वे इस्तेमाल करते हैं, वे घटिया होती हैं। वे अपनी जीवनशैली समय के साथ या मानवजाति द्वारा अर्जित सहज बुद्धि और ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में विकास के अनुसार नहीं ढालते। ऐसे लोग खराब काबिलियत वाले होते हैं। हालाँकि वे भूखे नहीं मर रहे होते, ठंड से जम नहीं रहे होते और उन्हें कोई बड़ी बीमारी नहीं हुई होती, लेकिन जीवन जीने पर उनके परिदृश्य और उनकी जीवनशैली से आँकें तो, ऐसे लोग बस भ्रमित तरीके से जीते हैं और उन्हें मानसिक रूप से कमजोर, मूर्ख या बेवकूफ के रूप में वर्गीकृत भी कहा जा सकता है। कुछ लोग मानसिक रूप से कमजोर या मूर्ख कहे जाने पर असहज महसूस करते हैं, लेकिन अगर वे असहज महसूस करते भी हैं, तो भी यह सच है। उनकी काबिलियत वास्तव में इतनी कमजोर होती है। मैं बेशक ऐसा कुछ कहना चाहूँगा जो तुम्हें सहज महसूस कराए, लेकिन तुममें इसके लिए काबिलियत ही नहीं है। तुममें हर पहलू में क्षमता की कमी है और तुममें ऐसा कोई सही, सटीक विचार या दृष्टिकोण नहीं है जो किसी मामले के प्रति सामान्य मानवता की सोच के अनुरूप हो। क्या यह काबिलियत की कमी होना नहीं है? तुम्हें बेकार व्यक्ति न कहना ही काफी अनुग्रहपूर्ण है। ऐसा व्यक्ति, जिसमें कोई काबिलियत नहीं होती, मानसिक रूप से विकलांग होने से बस एक कदम दूर होता है। मानसिक रूप से विकलांग व्यक्तियों में अपनी देखभाल करने तक की क्षमता नहीं होती, वे पूरी तरह से दूसरों की सहायता पर निर्भर रहते हैं। भोजन के समय उनके माता-पिता को अभी भी उन्हें टुकड़ा-दर-टुकड़ा खिलाना पड़ता है और उन्हें यह भी पता नहीं चलता कि उनका पेट भर गया है या नहीं। कमजोर काबिलियत वाले लोग मानसिक रूप से कमजोर होते हैं; वे मूर्ख होते हैं और मानसिक रूप से विकलांग होने से बस एक कदम दूर होते हैं। उनकी काबिलियत इतनी खराब होती है। मुझे बताओ, क्या ऐसे लोग दयनीय नहीं होते? क्या वे बहुत नागवार नहीं होते? खराब काबिलियत वाले लोगों में सीखने की क्षमता नहीं होती, चीजों को समझने की क्षमता नहीं होती, बोध क्षमता नहीं होती; उनमें चीजों को स्वीकारने की क्षमता तो बिलकुल भी नहीं होती—उनमें किसी भी पहलू में कोई क्षमता नहीं होती। चाहे तुम उन्हें किसी भी तरह से समझाओ या उदाहरण दो, वह उनके भेजे में नहीं घुसता या वे कही गई बात समझ नहीं पाते। क्या यह मानसिक कमजोरी नहीं है? चाहे तुम उन्हें किसी भी तरह से समझाओ, वे नहीं समझ पाते। भले ही तुम बहुत स्पष्ट रूप से बोलो और पूरी तरह से समझाओ, फिर भी वे नहीं समझ पाते, यहाँ तक कि तुम्हारी बातें उन्हें बहुत अजीब लगती हैं। उनमें सामान्य मानवता की सोच का अभाव होता है और तुम्हारा खंडन करने के लिए वे कई तरह की भ्रांतियाँ भी पेश कर देते हैं। ऐसे लोगों के साथ तर्क करना असंभव है; बस उनसे तीन शब्द कहो : “तुम तर्क से परे हो!” उनकी काबिलियत इतनी खराब होती है। क्या तुम उनसे चिंतित और क्रुद्ध महसूस नहीं कर सकते? तुम ऐसे लोगों से चाहे जो भी कहो, वह बेकार होता है। तुम उन्हें चाहे जैसे भी समझाने की कोशिश करो, वे नहीं समझते। यहाँ तक कि किसी छोटी-सी बात के लिए भी उन्हें प्रबुद्ध करने में पूरा दिन लग जाता है और अगर तुम थोड़ा और गहराई से बात करते हो तो वे नहीं समझेंगे; तुम्हें बहुत ही सतही शब्दों का इस्तेमाल करना होगा और बहुत-कुछ कहना होगा, तभी वे समझ पाएँगे। एक बात समझने के बाद भी, कोई वैसा ही मुद्दा उठने पर वे उसे नहीं समझ पाते। क्या यह मानसिक कमजोरी नहीं है? लेकिन ऐसे मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति को नहीं लगता कि वे मूर्ख हैं। वे कहते हैं, “यह मत समझो कि मैं मूर्ख हूँ। मुझे दस युआन या दस अमेरिकी डॉलर देने की पेशकश करके देखो कि मैं क्या चुनता हूँ—मैं निश्चित रूप से अमेरिकी डॉलर चुनूँगा, क्योंकि मैं जानता हूँ कि वे ज्यादा मूल्यवान हैं।” दूसरे लोग कहते हैं, “तुम अभी भी मूर्ख हो।” दूसरे लोग क्यों कहते हैं कि ऐसे लोग मूर्ख हैं? क्योंकि कोई साधारण व्यक्ति यह साबित करने के लिए कि वह मूर्ख नहीं है, ऐसा उदाहरण नहीं देगा, न ही वह इसे प्रदर्शित करने के लिए ऐसा घटिया तरीका इस्तेमाल करेगा। सटीक रूप से, चूँकि ऐसे लोगों की काबिलियत बहुत खराब होती है, उनके पास किसी व्यक्ति, घटना या चीज का मूल्यांकन करने के लिए कोई मानक नहीं होते और वे उनका मूल्यांकन करना नहीं जानते, इसलिए वे कभी खुद को मूर्ख नहीं मानते। वास्तव में बुद्धिमान लोग लोगों के किसी समूह के बीच तीन से पाँच वर्षों तक लगातार प्रयास और परिश्रम करने के बाद महसूस करेंगे कि किसी भी समूह में उनसे बेहतर लोग हैं, जो उनसे आगे निकल जाते हैं। उन्हें हमेशा लगता है कि उनकी काबिलियत पर्याप्त अच्छी नहीं है, कि उनकी क्षमताएँ और बुद्धिमत्ता पर्याप्त अच्छी नहीं है। वे हमेशा अपनी कमियाँ खोजने में सक्षम रहते हैं, जानते हैं कि दूसरों की तुलना में वे कहाँ कमतर हैं और अपनी समस्याएँ पहचानते हैं; वे हमेशा दूसरों के सशक्त बिंदु देख सकते हैं। ऐसा व्यक्ति बुद्धिमान होता है और उसमें काबिलियत होती है। वहीं बिना काबिलियत वाले लोग जब लोगों के समूह में रहते हैं तो हमेशा यही महसूस करते हैं कि दूसरे उनसे कमतर हैं। वे देखते हैं कि कुछ लोग कुछ शब्दों का उच्चारण तक नहीं कर सकते या उन्हें टाइप नहीं कर सकते, और वे उन्हें खराब काबिलियत वाला मानकर उनका तिरस्कार करते हैं। वे इन तुच्छ, छोटी-छोटी चीजों का, जिन्हें वे खुद कर सकते हैं, इस्तेमाल इस बात की पुष्टि करने के लिए करते हैं कि उनकी काबिलियत अच्छी है। ऐसे लोग भी होते हैं, जो यह देखकर कि दूसरे लोग अपनी स्वच्छता के बारे में कम सतर्क रहते हैं या अच्छे कपड़े पहनना नहीं जानते, कहते हैं कि उनमें खराब काबिलियत है। वे खुद थोड़े साफ-सुथरे होते हैं, परिष्कार का दिखावा कर सकते हैं या उनमें कुछ ज्ञान और खूबियाँ होती हैं, इसलिए वे अपनी काबिलियत अच्छी मानते हैं। ऐसे लोग बुद्धिमान होते हैं या मूर्ख? वे मूर्ख होते हैं। देखो, बुद्धिमान लोग कैसे बोलते हैं : “मैंने फिर से गड़बड़ी क्यों कर दी? मैं समझता हूँ कि मैं मूर्ख हूँ!” जो लोग अक्सर कहते हैं कि वे मूर्ख हैं और उनमें कमियाँ हैं, वे सच में बुद्धिमान हैं। जो लोग कभी मूर्ख होना स्वीकार नहीं करते और हमेशा कहते हैं, “तुम मुझे मूर्ख समझते हो? मुझसे पैसे माँगने की कोशिश करो और देखो मैं तुम्हें देता हूँ या नहीं!” वे सच में मूर्ख होते हैं। बोलचाल की भाषा में मूर्खता को “ताश की पूरी गड्डी में कुछ पत्ते कम होना” कहा जाता है। उनका ऐसी मूर्खतापूर्ण बातें कह पाना क्या मूर्खता नहीं है? क्या यह “कुछ पत्ते कम होना” नहीं है? (हाँ, है।) जब वे किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जिसमें कुछ खामियाँ या दोष होते हैं या जिसके काम में कुछ कमी रह जाती है तो वे उसकी पीठ पीछे हँसते हुए कहते हैं, “वह इतना मूर्ख कैसे हो सकता है?” जब वे किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो फायदा उठाने के लिए हिसाब-किताब और धूर्ततापूर्ण योजनाओं से भरा होता है तो वे उसे बुद्धिमान और अच्छी काबिलियत वाला मानते हैं। वास्तव में बुद्धिमान लोग व्यक्ति की विभिन्न क्षमताओं के आधार पर उसकी काबिलियत की गुणवत्ता का और इस बात का मूल्यांकन करते हैं कि वह बुद्धिमान है या मूर्ख। लेकिन मूर्ख लोग सिर्फ यह देखते हैं कि कौन हिसाब-किताब करने वाला है, कौन फायदे उठाता और हमेशा नुकसान से बचता है और कौन चालाकी से खुद को लाभ पहुँचाने में माहिर है, और यह मानते हैं कि ऐसे सभी लोग बुद्धिमान और अच्छी काबिलियत वाले होते हैं। वास्तव में, ऐसे सभी लोग मूर्ख होते हैं। किसी व्यक्ति की काबिलियत की गुणवत्ता का मूल्यांकन उसके हिसाब-किताब करने वाला होने के आधार पर करना—ऐसे लोग खुद मूर्ख होते हैं। अभी कुछ समय पहले हमने सबसे मूर्खतापूर्ण अभिव्यक्तियों में से एक का उल्लेख किया था : वे कहते हैं, “मुझे दस युआन या दस अमेरिकी डॉलर देने की पेशकश करके देखो कि मैं क्या चुनता हूँ—मैं निश्चित रूप से रेनमिनबी नहीं चुनूँगा—यह मत सोचो कि मुझे नहीं पता कि अमेरिकी डॉलर ज्यादा मूल्यवान हैं! तुम मुझे मांस या टोफू देकर देखो कि मैं उनमें से क्या खाता हूँ। क्या तुम्हें लगता है कि मैं इतना मूर्ख हूँ कि मांस के बजाय टोफू खाऊँगा? मुझे पता है कि मांस का स्वाद बेहतर होता है!” ऐसे लोग वास्तव में मूर्ख होते हैं। अगर तुम वाकई नहीं चाहते कि दूसरे तुम्हारी मूर्खता देखें तो तुम्हें ऐसे उदाहरण बिल्कुल नहीं देने चाहिए। समझे? (हाँ।) क्या मूर्ख लोग अक्सर यह गलती करते हैं? (हाँ।) वे यह तक सोचते हैं, “देखो मैं उदाहरण देने में कितना अच्छा हूँ! देखो मैं कितना बुद्धिमान हूँ? क्या मैं तुम्हें मूर्ख लगता हूँ? मूर्ख तुम हो!” सबसे मूर्ख किस्म के व्यक्ति के मुख से मूर्खता हमेशा टपकती रहती है। इसके साथ ही इस क्षमता पर संगति समाप्त होती है : चीजों को स्वीकारने की क्षमता।
पाँचवीं क्षमता संज्ञानात्मक क्षमता है। संज्ञानात्मक क्षमता किसे संदर्भित करती है? इसका मुख्य जोर व्यक्ति की चीजों की समझ की मात्रा पर होता है। किसी व्यक्ति की संज्ञानात्मक क्षमता का मूल्यांकन करने के लिए यह देखना चाहिए कि उसकी किसी चीज की समझ की मात्रा कितनी है और उस चीज का सार समझने के लिए उसे किस समय-सीमा की आवश्यकता पड़ती है। अगर उसे जिस समय-सीमा की आवश्यकता पड़ती है, वह बहुत कम होती है और उसकी समझ की मात्रा पर्याप्त गहरी होती है जो उस चीज का सार समझने के स्तर तक पहुँचती है तो उसमें संज्ञानात्मक क्षमता होती है। अगर किसी व्यक्ति द्वारा किसी चीज को समझने के लिए अपेक्षित समय-सीमा सामान्य सीमा के भीतर होती है और वह उस चीज का सार समझ सकता है, उसके कारण और परिणाम और उसके भीतर की समस्याओं की जड़ और सार स्पष्ट रूप से देख सकता है और फिर अपने दिल में उस चीज की समझ रखता है—और इससे भी बेहतर, अगर वह उस चीज की परिभाषा दे सकता है और उसके बारे में कोई निष्कर्ष निकाल सकता है—तो इसे अच्छी काबिलियत होना कहा जाता है। यानी सामान्य मानवता की सोच रखने वाले एक सामान्य व्यक्ति के रूप में, चाहे तुम पुरुष हो या महिला, चाहे तुम अभी-अभी वयस्क हुए हो या पहले ही प्रौढ़ावस्था या वृद्धावस्था में प्रवेश कर चुके हो, अगर इस चीज के सार के बारे में तुम्हारी समझ सामान्य समय-सीमा के भीतर प्राप्त हो जाती है तो तुम्हारी काबिलियत अच्छी मानी जाती है। अगर इस चीज को समझने के लिए तुम्हें जिस समय-सीमा की आवश्यकता पड़ती है, वह एक सामान्य व्यक्ति से तीन या चार गुना ज्यादा है—यानी अगर अच्छी काबिलियत वाले व्यक्ति को तीन दिन चाहिए लेकिन तुम्हें दस दिन या एक महीने तक की आवश्यकता पड़ती है—और जब तक तुम इस मामले की घटनाओं का पूरा क्रम स्पष्ट रूप से समझते हो और जब इस मामले से होने वाले नुकसान और नकारात्मक परिणाम पहले ही सामने आ चुके होते हैं, तभी तुम इस मामले की गंभीरता और इसकी जड़ और सार समझते हो तो ज्यादा से ज्यादा तुम्हारी काबिलियत औसत है। दूसरे शब्दों में, अगर अभी तक इस मामले के गंभीर परिणाम नहीं आए हैं लेकिन कुछ नकारात्मक परिणाम पहले से ही लगातार सामने आ रहे हैं और इस प्रक्रिया के दौरान ही तुम धीरे-धीरे इस मामले की जड़ और सार के बारे में अवगत होते हो और एक परिभाषा और निष्कर्ष पर पहुंचते हो तो तुम्हारी काबिलियत औसत मानी जाती है। लेकिन अगर इस मामले के नकारात्मक या गंभीर परिणाम सामने आने के बाद ही तुम्हें अचानक एहसास होता है और तुम समझते हो कि इस मामले की प्रकृति क्या है तो तुम्हारी काबिलियत बेहद खराब है। अगर इस मामले के पहले ही नकारात्मक परिणाम आ गए हैं और तुम अभी भी नहीं जानते कि इस मामले के साथ क्या समस्या है या समस्या की जड़ क्या है और तुम अभी भी उसके बारे में कोई निष्कर्ष नहीं निकाल सकते तो तुममें कोई काबिलियत नहीं है। संज्ञानात्मक क्षमता इन चार स्तरों में विभाजित की जाती है। पहले वे लोग हैं जिनमें अच्छी काबिलियत होती है। यानी जब कोई चीज अभी-अभी सामने आई हो और तुमसे कुछ घंटों के भीतर ही तुरंत निष्कर्ष निकालने की अपेक्षा हो—और यह एक ऐसी अत्यावश्यक स्थिति हो जहाँ अगर तुम तुरंत कोई निर्णय नहीं लेते, मामले को सँभालने और हल करने के लिए कोई योजना नहीं बनाते या उसका आगे बढ़ना रोकने के लिए कोई नुकसान-नियंत्रण योजना तक नहीं बनाते तो इसके नकारात्मक परिणाम होंगे—अगर इस समयावधि के भीतर तुम इस मामले की जड़ से अवगत हो सकते हो और तुरंत और निर्णायक रूप से सटीक आकलन कर सकते हो, सटीक रूप से निर्णय ले सकते हो और निष्कर्ष निकाल सकते हो और फिर उसे सँभालने के लिए उचित योजना बना सकते हो तो इसका मतलब है कि तुममें अच्छी काबिलियत है। लेकिन मान लो तुम सिर्फ महसूस करते हो कि इस मामले में कुछ समस्या है लेकिन तुम नहीं जानते कि समस्या कहाँ है या उसकी जड़ क्या है और इस मामले को सँभालने की सामान्य अवधि के भीतर तुम्हारे पास कोई निष्कर्ष, निर्णय या उसे सँभालने की कोई योजना नहीं है। इसके बजाय, तुम सिर्फ निष्क्रिय रूप से प्रतीक्षा करते हो और उसका आगे का विकास देखते हो और सिर्फ उसके आगे के विकास के जरिये यह पहचानने की कोशिश करते हो कि इस मामले का सार वास्तव में क्या है और एक आकलन करते हो जो बहुत सटीक नहीं होता और उसका अनुसरण करते हुए प्रतीक्षा करना और देखना जारी रखते हो और मामला पूरी तरह से विकसित होने से पहले तुम शायद ही समस्या का सार देख पाओ या मुश्किल से कोई समाधान पेश कर पाओ, लेकिन तुम्हारा सँभालना अभी भी त्वरित नहीं होता। अगर ऐसा है तो तुम्हारी काबिलियत बहुत औसत है। अगर यह मामला पूरी तरह से विकसित हो गया है और परिणाम पहले ही सामने आ चुके हैं, समस्या का सार पहले ही पूरी तरह से उभर चुका है और सिर्फ तभी तुम्हें एहसास होता है कि यह मामला खराब है और तुम देखते हो कि उसकी अंतर्निहित जड़ क्या है—या शायद तुम जड़ बिल्कुल भी देख तक नहीं सकते, बल्कि सिर्फ निष्क्रिय रूप से उस मामले का अंतिम परिणाम भुगतते हो या उसका सामना करते हो—इसका मतलब है कि तुम्हारी काबिलियत खराब है। खराब काबिलियत वाले लोगों की एक और अभिव्यक्ति यह होती है कि अगर ऐसे मामले फिर से होते हैं तो फिर भी उनका रवैया वही रहता है, उसे सँभालने का तरीका वही होता है और वे उसे उसी गति से सँभालते हैं। यानी हर बार जब भी ऐसे मामले होते हैं, वे हमेशा उन्हें उसी तरह, उसी गति और दक्षता के साथ सँभालते हैं। चाहे कितनी भी चीजें क्यों न हों, वे उनका सार समझने में सक्षम नहीं होते, न ही वे सांसारिक मामलों पर अपने विचारों या दृष्टिकोणों में तदनुसार कोई बदलाव करते हैं। ये खराब काबिलियत वाले लोग होते हैं। ठीक इसलिए कि वे खराब काबिलियत वाले लोग होते हैं, उनमें स्वतंत्र रूप से जीने की क्षमता का अभाव होता है; यानी उनमें जीवित रहने या जीवन के बारे में कोई दृष्टिकोण नहीं होता। यह खराब काबिलियत वाले होने का संकेत है। बिना काबिलियत वाले लोगों की अभिव्यक्ति यह होती है : जब कोई मामला पहले ही हो चुका होता है, यहाँ तक कि परिणाम भी सामने आ गए हो सकते हैं, तब भी उन्हें पता नहीं होता कि क्या हुआ है, मानो वे सपना देख रहे हों। यह कोई काबिलियत और कोई संज्ञानात्मक क्षमता न होना है। क्या तुम समझे? (हाँ।) संज्ञानात्मक क्षमता मुख्य रूप से विभिन्न लोगों और घटनाओं के सार और उनकी समस्याओं की जड़ों को समझने को संदर्भित करती है; यही संज्ञानात्मक क्षमता है। इसका मतलब है कि एक निश्चित प्रकार के लोगों की अभिव्यक्तियाँ, प्रकाशन और मानवता देखकर तुम जान सकते हो कि वे किन समस्याओं का सामना कर रहे हैं, जिस परिवेश में वे रहते हैं उसमें उनकी समस्याओं की जड़ क्या है, साथ ही तुम वर्तमान में जो घटनाएँ देख रहे हो उनका सार क्या है और उनके भीतर समस्याओं की जड़ कहाँ निहित है। संज्ञानात्मक क्षमता मुख्य रूप से दो पहलुओं को संदर्भित करती है : लोगों, घटनाओं और चीजों का सार समझना और उनकी समस्याओं की जड़ भाँपना। संज्ञानात्मक क्षमता के बारे में तुम लोग और क्या समझ सकते हो? क्या कोई इसे ज्ञान को समझने और सीखने की क्षमता के रूप में समझता है? (नहीं।) हम जिस संज्ञानात्मक क्षमता की बात कर रहे हैं, उसमें मुख्य रूप से लोगों और घटनाओं को देखने की क्षमता शामिल है। तुम जिस मानक से लोगों और घटनाओं को देखते हो, अगर वह बहुत नीचा है, तुम्हारी समझ बहुत उथली है या तुम किसी व्यक्ति, घटना या चीज का सार नहीं समझ सकते तो तुम्हारी संज्ञानात्मक क्षमता बहुत खराब है या वह है ही नहीं। चाहे तुम्हारे आस-पास के लोग कितने ही स्पष्ट रूप से गलत शब्द या गलत दृष्टिकोण व्यक्त करें, वे कितने ही गलत कार्य करें या कितनी ही स्पष्ट भ्रष्टता प्रकट करें, अगर तुम समस्या का सार नहीं खोज सकते, नहीं जानते कि वे किस प्रकार के लोग हैं, क्या वे सही लोग हैं, क्या वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं, उनका चरित्र कैसा है या ऐसे लोगों का सार क्या है—अगर तुम इनमें से कुछ नहीं जानते—तो तुममें कोई संज्ञानात्मक क्षमता नहीं है। किसी व्यक्ति या मामले का सामना करने पर तुम्हारे पास आकलन के लिए कोई मानक नहीं होता। मामला बीत जाने के बाद तुम्हारे पास ऐसी समस्याओं के सार के बारे में कोई निष्कर्ष नहीं होता, और तो और, तुम्हें इसकी कोई समझ भी नहीं होती; और बेशक तुम्हारे पास ऐसे मामले सँभालने के लिए सिद्धांत या उनके लिए अभ्यास के मार्ग नहीं होते—यही है संज्ञानात्मक क्षमता न होने का अर्थ। संज्ञानात्मक क्षमता मुख्य रूप से लोगों, घटनाओं और चीजों को समझने की व्यक्ति की क्षमता को संदर्भित करती है। इस क्षमता पर हमारी चर्चा यहीं समाप्त होती है।
छठी क्षमता है आकलन करने की क्षमता। आकलन करने की क्षमता तब होती है, जब किसी मामले का सामना करने पर तुम यह निर्णय ले सकते हो कि वह उचित है या अनुचित, सही है या गलत और सकारात्मक है या नकारात्मक, और फिर अपने विवेक का इस्तेमाल करके इसका उपयुक्त तरीका निर्धारित करो कि उसे कैसे लिया जाए या कैसे सँभाला जाए। जब व्यक्ति सामान्य रूप से किसी मामले का सामना करता है, चाहे उसने उसे पहले देखा हो या नहीं, पहले अनुभव किया हो या नहीं और चाहे मामला अपेक्षाकृत सकारात्मक हो या अपेक्षाकृत नकारात्मक, तो उसे उसके प्रति कैसा रवैया अपनाना चाहिए? क्या उसे अस्वीकार कर देना चाहिए या उसे अंगीकार करके स्वीकार कर लेना चाहिए? इसे स्पष्ट रूप से देखने के बाद अगर तुम अपना रुख रखते हो और ऐसे सटीक विचार रखते हो जो सत्य सिद्धांतों के अनुरूप हों तो यह साबित होता है कि तुममें आकलन करने की क्षमता है। उदाहरण के लिए, जब तुम किसी व्यक्ति को कुछ कहते हुए सुनते हो तो उस पर विचार करने के बाद तुम यह निर्धारित कर सकते हो कि इसका क्या मतलब है, वक्ता क्या उद्देश्य हासिल करना चाहता है, वह ये शब्द क्यों बोलता हैं, वह ऐसे शब्द और लहजा इस्तेमाल क्यों करता है और इसे कहते समय उसकी आँखों में एक खास तरह का भाव क्यों होता है। तुम उसकी बातों के पीछे छिपे इरादे, उद्देश्य और प्रेरणाएँ देख सकते हो। चाहे तुम बाद में इन अंतर्निहित इरादों और प्रेरणाओं को कैसे भी सँभालो, तुम घटित होने वाले मामले के पीछे छिपी कुछ समस्याएँ मौके पर ही समझ सकते हो। तुम जानते हो कि वह क्या करना चाहता है, वह इसे इस तरह क्यों करना चाहता है, वह क्या उद्देश्य हासिल करना चाहता है, वह अपने शब्दों का क्या प्रभाव डालना चाहता है और उसमें क्या गुप्त साधन, योजनाएँ और साजिशें शामिल हैं। तुम कुछ संकेत देख सकते हो, इस बात से अवगत हो सकते हो कि यहाँ समस्या कोई साधारण समस्या नहीं है, यहाँ तक कि तुम्हारे दिल में सतर्कता की भावना भी हो सकती है। यह साबित करता है कि तुममें आकलन करने की क्षमता है। अगर तुममें आकलन करने की क्षमता है तो इसका मतलब है कि तुम अच्छी काबिलियत वाले व्यक्ति हो। चाहे किसी के शब्द कितने भी मधुर क्यों न लगें, धर्मसिद्धांत की दृष्टि से वे सत्य के कितने भी अनुरूप हों, दूसरों को उसका रवैया कितना भी ईमानदार लगे या उसका उद्देश्य कितना भी गहरा छिपा हो, तुम फिर भी उसके बाहरी प्रकाशनों, घटनाओं या उसकी बातों से समस्या का अंदाजा लगा सकते हो—यह साबित करता है कि तुममें अच्छी काबिलियत और आकलन करने की क्षमता है। उदाहरण के लिए, किसी मामले का सामना करते समय, चाहे वह मामला कितना भी बढ़ क्यों न हो गया हो, तुम उस मामले की प्रक्रिया समझकर उसका सार और समस्या की जड़ देख सकते हो। यह आकलन करने की क्षमता है। उदाहरण के लिए, जब कलीसिया में मसीह-विरोधी और बुरे लोग विघ्न-बाधा पैदा करते हैं तो इन लोगों में से कौन सरगना है, कौन अनुयायी हैं, कौन इस मामले में मुख्य भूमिका निभाता है और कौन निष्क्रिय है, साथ ही इस मामले का लोगों पर किस तरह का प्रभाव पड़ेगा और अगर यह मामला आगे बढ़ता है तो क्या प्रतिकूल परिणाम होंगे, तुम इस मामले की बुनियादी परिस्थितियाँ समझकर पूरी स्थिति के बारे में निर्णय ले सकते हो। भले ही उस समय तुम्हारा आकलन, मामला आखिरकार जैसे सामने आता है उससे कुछ भिन्न हो, फिर भी कम से कम तुम्हारे पास इस मामले को सँभालने के लिए एक दृष्टिकोण, एक रवैया और सटीक सिद्धांत होता है। यह ये साबित करने के लिए पर्याप्त है कि तुममें इस मामले के संबंध में आकलन करने की क्षमता है। यानी तुममें यह आकलन करने की क्षमता है कि मामले का सरगना या मामला भड़काने वाला कौन है या भविष्य में यह मामला किस हद तक बढ़ेगा और तुम्हें इसे सँभालने और प्रतिकूल परिणामों की ओर ले जाने से रोकने के लिए किस तरह के रवैये और सिद्धांतों का इस्तेमाल करना चाहिए। अगर तुममें आकलन करने की क्षमता है, तुम्हारे आकलन का तर्क और तरीका सही है और तुम्हारे आकलन का आधार कम से कम मानवता के अनुरूप है या इससे भी बेहतर यह कि वह सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है, तो इससे साबित होता है कि तुममें आकलन करने की क्षमता है। भले ही तुम्हारा फैसला खुद मामले से कुछ हद तक विसंगत हो, फिर भी अगर तुम्हारे आकलन का कोई आधार है, तुम्हारा फैसला मामला बढ़ने के प्रतिमानों के अनुरूप और समान या सदृश समस्याओं के मूल और सार के अनुरूप है—और साथ ही सत्य सिद्धांतों के भी अनुरूप है—तो यह भी कहा जा सकता है कि तुममें आकलन करने की क्षमता है। आकलन करने की क्षमता होना साबित करता है कि तुम समस्याओं के बारे में सोच सकते हो। अगर तुम्हारे आकलन मामले की जड़, सार और अन्य तमाम पहलुओं के अनुरूप हैं तो इससे साबित होता है कि तुम अच्छी काबिलियत वाले व्यक्ति हो।
चाहे व्यक्ति जिन भी लोगों या मामलों का सामना करे, जब उसकी सोच सही होती है सिर्फ तभी और सिर्फ इस आधार पर कि मामला उचित है या अनुचित, सही है या गलत या सकारात्मक है या नकारात्मक, वह उसे सँभालने और हल करने के लिए कोई आगे की योजना बना सकता है। अगर व्यक्ति समस्याओं के बारे में सोचना नहीं जानता—विशेष रूप से कहें तो, अगर वह समस्याओं का आकलन नहीं कर सकता—तो वह समस्याएँ सँभाल भी नहीं सकता, यानी उसमें समस्याएँ सँभालने की क्षमता नहीं होती। समस्याएँ सँभालने वाला कोई भी व्यक्ति यह आकलन करने के आधार पर ऐसा करता है कि मामला सही है या गलत; वरना समस्या हल करने की उसकी योजना और उसके अभ्यास के मार्ग में आधार का अभाव होगा। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति तुम्हें रिपोर्ट करता है कि एक कलीसिया विशेष में कलीसियाई जीवन अच्छा नहीं है; ज्यादातर लोग नकारात्मक और उदासीन हैं, सभा में आने या अपना कर्तव्य निभाने के लिए अनिच्छुक हैं। तुम ऐसी घटना का आकलन कैसे करते हो? क्या यह एक वास्तविक जीवन की समस्या है? (हाँ।) चूँकि यह एक वास्तविक जीवन की समस्या है, इसलिए तुम्हें इसे सँभालने और हल करने के लिए अभ्यास की एक विशिष्ट योजना बनाने की आवश्यकता है। समस्या हल करने से पहले क्या तुम्हें यह आकलन करने की आवश्यकता नहीं है कि इस समस्या की जड़ और सार क्या है और यह किन लोगों के कारण उत्पन्न हो रही है? क्या तुम्हें इनका आकलन करने की आवश्यकता नहीं है? (हाँ, है।) सिर्फ सोच-विचार करके ही तुम आकलन कर सकते हो और आकलन करने के बाद ही तुम समस्या की जड़ पहचान सकते हो और फिर समस्या की जड़ और सार के आधार पर तुम समस्या सँभालने के लिए उचित, उपयुक्त तरीके और उसके समाधान की योजनाएँ तय कर सकते हो। अगर तुम्हें पता चला कि कलीसिया विशेष में कलीसियाई जीवन अच्छा नहीं है, लेकिन तुम उसका कारण नहीं जानते तो तुम यह कैसे आकलन करोगे कि समस्या की जड़ कहाँ है? (मैं पहले सोचूँगा कि यह समस्या सीधे कलीसिया के अगुआ से संबंधित है। अगर कलीसिया के अगुआ में आध्यात्मिक समझ नहीं है, उसने वर्षों से परमेश्वर में विश्वास तो किया है लेकिन वह सत्य नहीं समझता, अपने सामने आने वाली कोई भी समस्या नहीं सँभाल सकता और यह नहीं जानता कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों की परमेश्वर के वचन खाने-पीने या सत्य के बारे में संगति करने के लिए अगुआई कैसे की जाए तो ऐसे नकली अगुआ वाली कलीसिया में अच्छा कलीसियाई जीवन नहीं होगा।) यह एक आकलन है। आम तौर पर, सरल समस्याओं के लिए, अगर आकलन सटीक है तो यह तुम्हें समस्या की जड़ समझने दे सकता है। लेकिन कुछ समस्याएँ जटिल होती हैं और अगर तुम्हारे द्वारा समझी गई जानकारी पूरी नहीं है तो संभव है कि तुम्हारा एक आकलन तुम्हें समस्या की जड़ न समझने दे। तो क्या दूसरा और तीसरा आकलन भी होता है? (हाँ।) तीन आकलन होने पर यह संभव है कि उनमें से एक सबसे सटीक हो। तो फिर तुम लोग अन्य कौन-से आकलन सोच सकते हो? (मैं जो सोच सकता हूँ, वह यह है कि इस कलीसिया के लोगों में आम तौर पर खराब काबिलियत और सत्य समझने की खराब क्षमता है और वे सत्य से प्रेम नहीं करते। इसीलिए वहाँ कलीसियाई जीवन के परिणाम खराब होते हैं।) क्या यह स्थिति की वास्तविकता के अनुरूप है? यह दूसरा आकलन है। क्या कोई अन्य आकलन हैं? (मैं भी यह सोचूँगा कि क्या इस कलीसिया में विघ्न पैदा करने वाले बुरे लोग हैं।) यह तीसरा आकलन है। इन तीनों आकलनों में से कौन-सा आकलन वास्तविक स्थिति के अनुरूप और ज्यादा यथार्थपरक है और कौन-सा खोखला है? (मुझे लगता है कि दूसरा आकलन कुछ हद तक खोखला है। वास्तव में, अगर कलीसिया के पास कार्य के लिए जिम्मेदार अगुआ के रूप में कोई उपयुक्त व्यक्ति हो, तो कलीसियाई जीवन के परिणाम अच्छे होंगे। परमेश्वर के वचन खाने-पीने और सत्य समझने से भाई-बहनों में निश्चित रूप से अपने कर्तव्य निभाने की प्रेरणा होगी। मुझे लगता है कि पहला और तीसरा आकलन ज्यादा यथार्थपरक हैं।) दूसरा आकलन खोखला धर्मसिद्धांत है। पहला और तीसरा आकलन वास्तविक स्थिति के साथ अनुरूप और सटीक है। एक ओर ये दोनों आकलन तार्किक सोच इस्तेमाल करते हैं; दूसरी ओर ये कुछ ऐसी घटनाओं पर आधारित हैं जो आम तौर पर वास्तविक जीवन में पाई जाती हैं। अगर तुम सामान्य घटनाएँ समझ सकते हो तो इससे साबित होता है कि तुम्हारी सोच सही और तर्क के अनुरूप है। अगर तुम वास्तविक स्थिति नहीं समझ सकते और तुम्हारा आकलन वास्तविक जीवन से जुड़ा नहीं है तो इससे साबित होता है कि तुम्हारी सोच में तर्क की कमी है और उसमें समस्याएँ हैं और तुम समस्याओं को अयथार्थपरक, गैर-उद्देश्यपूर्ण तरीके से देखते हो। पहला और तीसरा आकलन वस्तुनिष्ठ हैं। एक स्थिति यह हो सकती है कि कलीसिया का अगुआ यह नहीं जानता कि कार्य कैसे किया जाए। खुद उसके पास जीवन प्रवेश में कोई मार्ग नहीं है, इसलिए जब कलीसिया और भाई-बहनों की अगुआई करने की बात आती है तो उनके पास बिलकुल भी कोई मार्ग नहीं होता। नतीजतन, वहाँ कलीसियाई जीवन नहीं सुधरता। वास्तव में, कलीसिया में ज्यादातर लोग ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करते हैं और उनमें प्रेरणा होती है, लेकिन कलीसियाई जीवन वास्तव में कोई परिणाम नहीं देता। हर सभा एक ही दिनचर्या का पालन करती है : गाना, प्रार्थना करना, परमेश्वर के वचन पढ़ना, और फिर अगुआ या उपयाजक कुछ सतही समझ या धर्मसिद्धांत साझा करता है। वहाँ बहुत कम लोग वास्तविक अनुभवजन्य समझ के बारे में बोल पाते हैं। इसके अलावा, कलीसिया के अगुआ की काबिलियत खराब और अनुभव उथला होता है और वह समस्याएँ हल करने के लिए सत्य पर संगति करने में असमर्थ रहता है। इस प्रकार कलीसियाई जीवन नीरस और आनंदहीन लगता है। वहाँ कई सभाएँ हुई हैं लेकिन किसी को उनसे कुछ हासिल नहीं हुआ है, इसलिए ज्यादातर लोगों को लगता है कि ऐसी सभाओं में जाना घर पर परमेश्वर के वचन पढ़ने से कम लाभदायक है और वे उनमें शामिल होने के लिए अनिच्छुक हो जाते हैं। कुछ लोग एक-दो साल तक परमेश्वर में विश्वास करने और कुछ सत्य समझने के बाद कर्तव्य निभाना चाहते हैं। लेकिन कुछ कलीसिया-अगुआ नहीं जानते कि कौन-से लोग किस कर्तव्य के लिए उपयुक्त हैं या वे किस तरह के काम के लिए उपयुक्त हैं। वे लोगों को उचित रूप से व्यवस्थित करने या उनका उपयोग करने में असमर्थ रहते हैं, न ही वे लोगों का उनके कर्तव्य निभाने में समर्थन और सहायता करने के लिए अपने अनुभव इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे कुछ लोग नकारात्मक और अपने कर्तव्य निभाने के लिए अनिच्छुक हो सकते हैं। असल में, अपना कर्तव्य निभाने के इच्छुक ज्यादातर लोग अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभा सकते हैं; उन्हें बस समर्थन और सहायता नहीं मिलती। अगर कलीसिया के अगुआ और उपयाजक परमेश्वर के वचनों के अनुसार लोगों का समर्थन और सहायता कर सकें तो कलीसिया में अपना कर्तव्य निभाने के इच्छुक लोगों की संख्या बढ़ जाएगी और वे सामान्य रूप से अपना कर्तव्य निभा पाएँगे। चूँकि कलीसिया के अगुआ और उपयाजक नहीं जानते कि काम कैसे करना है, इसलिए कलीसियाई जीवन खराब परिणाम देता है और कुछ समस्याएँ लंबे समय तक अनसुलझी रहती हैं और कुछ समय बाद कई लोग नकारात्मक हो जाते हैं और उनमें कोई प्रेरणा नहीं रहती; यह परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपने कर्तव्य निभाने में प्रभावित करता है। अगर कलीसियाई जीवन के परिणाम खराब रहते हैं तो इसका मुख्य कारण यह है कि कलीसिया के अगुआ और उपयाजक नहीं जानते कि कलीसिया का काम कैसे करना है। यह एक स्थिति है। दूसरी स्थिति तब होती है जब मसीह-विरोधी और बुरे लोग सत्ता पर कब्जा कर लेते हैं और कलीसिया में विघ्न पैदा करते हैं, और ऐसा समय-समय पर होता रहता है। जब कलीसिया के अगुआ काम करना नहीं जानते और मसीह-विरोधी और बुरे लोग सत्ता में भी होते हैं, लगातार गुट बनाते हैं, स्वतंत्र राज्य स्थापित करते हैं और दूसरों को सताते और दबाते हैं तो इससे कुछ भाई-बहनों को, जो ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करते हैं और अपना कर्तव्य निभाने के लिए तैयार होते हैं, दबाया, सताया और बहिष्कृत किया जाता है। वे अपना कर्तव्य निभाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें कोई अवसर नहीं मिलता, जिससे वे नकारात्मक और कमजोर हो जाते हैं। ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करने वाले इन लोगों को मसीह-विरोधियों और उनके संगी-साथियों के साथ सभा करने में कोई आनंद नहीं आता। मसीह-विरोधी हमेशा सत्ता पर कब्जा करना और खुद को स्थापित करना चाहते हैं। जब परमेश्वर में ईमानदारी से विश्वास करने वाले लोग सभाओं में शामिल होते हैं तो वे सत्य को और ज्यादा समझना और अपने अनुभव साझा करना चाहते हैं, लेकिन मसीह-विरोधी उन्हें दबाते हैं और उन्हें अवसर नहीं देते। नतीजतन, कलीसियाई जीवन अव्यवस्थित हो जाता है; लोग अव्यवस्था में बिखर जाते हैं और सभाएँ आनंददायक नहीं रह जातीं। लोगों में जो थोड़ा-बहुत उत्साह और प्रेम रहा होता है, वह खो जाता है और वे अब अपना कर्तव्य निभाने के लिए तैयार नहीं होते। कलीसियाई जीवन के खराब परिणाम इनमें से किसी भी कारण से हो सकते हैं। यही है जिसके बारे में तुम लोग सोच सकते हो और उसका आकलन कर सकते हो। आकलन के जरिये तुम जिस निष्कर्ष पर पहुँचते हो, अगर वह वास्तविक स्थिति से जुड़ा हो, भले ही वह आंशिक रूप से जुड़ा हो या सिर्फ संभावित समस्या की पहचान करता हो, तो भी यह आकलन करने की क्षमता होने की अभिव्यक्ति है। कम से कम, आकलन के जरिये तुम जिस निष्कर्ष और राय पर पहुँचते हो वह वास्तविक स्थिति से जुड़ी होती है, न कि धर्मसिद्धांत, खोखलेपन या ऐसी चीज से जो अस्तित्व में बिल्कुल नहीं है। यह साबित करता है कि तुममें आकलन करने की क्षमता है। यदि हर मामले के बारे में तुम्हारे द्वारा निकाले गए निष्कर्ष इस चीज के सामान्य प्रतिमानों के अनुरूप नहीं होते कि चीजें कैसे विकसित होती हैं या वास्तविक जीवन में कोई मामला कैसे सामने आता है, और वे पूरी तरह से काल्पनिक, खोखले, अवास्तविक और असत्य हैं और उनका वास्तविक स्थितियों से कोई संबंध नहीं है तो इसका मतलब है कि तुममें आकलन करने की क्षमता नहीं है या तुम आकलन करने में अक्सर गलतियाँ करते हो। फिर दूसरे आकलन के बारे में क्या, जिसका तुम लोगों ने पहले उल्लेख किया था, कि कलीसियाई जीवन के खराब परिणाम इस कलीसिया के लोगों की खराब काबिलियत और उनके सत्य से प्रेम न करने के कारण हैं—यह किस तरह का आकलन है? (इस आकलन में त्रुटि है।) इसे आकलन में त्रुटि करना कहा जाता है। अगर तुम उन स्थितियों को पूरी तरह से नहीं समझ सकते जो ऐसे मामलों के साथ अक्सर होती हैं—यानी होने वाली कुछ सबसे संभावित स्थितियाँ—और तुम आकलन के जरिये केवल एक स्थिति प्रस्तुत करते हो या तुम संभव स्थितियों के बारे में सोच सकते हो लेकिन असंभव स्थितियों के बारे में भी सोच सकते हो, तो यह क्या साबित करता है? यह साबित करता है कि आकलन करने की तुम्हारी क्षमता औसत है। आकलन करने की औसत क्षमता वाले व्यक्ति के पास किसी मामले के बारे में कुछ विचार होते हैं, लेकिन वह निश्चित नहीं हो सकता। ऐसे मामलों में वह जो आकलन करता है, वह गलत होता है। अगर व्यक्ति के आकलन कभी सही होते हैं और कभी गलत, और कुछ वास्तविक स्थिति के अनुरूप होते हैं जबकि अन्य नहीं होते, लेकिन गलत आकलन अपेक्षाकृत ज्यादा बार होते हैं, तो यह दर्शाता है कि उसकी आकलन करने की क्षमता खराब है। मान लो आकलन के जरिये वह जिन निष्कर्षों पर पहुँचता है वे पूरी तरह से खोखले होते हैं, इस चीज के प्रतिमानों के बिल्कुल भी अनुरूप नहीं होते कि चीजें कैसे विकसित होती हैं, और आम या अक्सर होने वाली घटनाओं के अनुरूप तो बिल्कुल भी नहीं होते, तथ्यों से पूरी तरह से असंबंधित होते हैं। उनके आकलन कल्पनाओं के सिवाय कुछ नहीं होते, उनका चीजें कैसे विकसित होती हैं इसके प्रतिमानों से या मानवता के सार से कोई संबंध नहीं होता, और वे वास्तविक जीवन के संदर्भ और आसपास के परिवेश से पूरी तरह से बेमेल होते हैं। यानी, मान लो उनके आकलन वास्तविकता से असंबंधित हैं—वे आकलन के जरिये जो कुछ भी प्रस्तुत करते हैं वह वास्तविक जीवन में कभी नहीं हो सकता, और वे जो बोलते हैं वह समस्या का सार बिल्कुल भी नहीं होता। अगर ऐसा है तो इस व्यक्ति में आकलन करने की कोई क्षमता नहीं है।
यह आँकने के लिए कि किसी व्यक्ति में आकलन करने की क्षमता है या नहीं, मुख्य बात यह देखना है कि विभिन्न प्रकार के लोगों और विभिन्न प्रकार की चीजों के बारे में उनके आकलन सटीक हैं या नहीं। उदाहरण के लिए, मान लो तुम किसी व्यक्ति को रोते हुए देखते हो और तुम्हें नहीं पता कि वह क्यों रो रहा है। तुम देख सकते हो कि वह बहुत व्यथित और बहुत दुखी होकर रो रहा है और वह समय-समय पर प्रार्थना भी कर रहा है और परमेश्वर के वचन भी पढ़ रहा है, और वह किसी भी उस व्यक्ति को जवाब नहीं देता, जो उससे बात करता है। तुमसे यह आकलन करने के लिए कहा जाता है कि इस व्यक्ति के साथ क्या हो रहा है और तुम कहते हो, “उसे घर की याद आ रही होगी। कुछ समय पहले उसकी माँ बीमार हो गई थी, इसलिए वह घर जाना चाहता है।” क्या यह आकलन सटीक है? कुछ लोग कहते हैं, “वह नकारात्मक महसूस कर रहा होगा। ज्यादातर समय जब लोग रोते हैं तो ऐसा इसलिए होता है कि उनकी भावनाएँ आहत हो गई होती है। उदाहरण के लिए, लोग तब रोते हैं जब उन्हें धौंस दी जाती है या धोखा दिया जाता है। जब वह किसी समस्या का सामना करता है और उसके साथ गलत व्यवहार किया जाता है तो वह हमेशा रोता है और दूसरों से बात करने या मिलने-जुलने का इच्छुक नहीं होता। यह नकारात्मक महसूस करने की अभिव्यक्ति है।” कुछ दूसरे लोग यह आकलन करते हैं : “वह अक्सर बाहर सुसमाचार का प्रचार कर अपना कर्तव्य निभाता था, लेकिन अब वह लंबे समय से कलीसिया के भीतर अपना कर्तव्य निभा रहा है और हो सकता है वह इसका आदी न हो और घुटन महसूस करता हो।” क्या कोई अन्य संभावनाएँ हैं? कुछ लोग कहते हैं, “शायद उसे कल मांस खाने को नहीं मिला, जिससे वह परेशान होकर रो रहा है।” दूसरे लोग कहते हैं, “कल वह मुझसे बात करने आया था। मुझे लगा वह बस पास से गुजर रहा है, इसलिए मैंने उस पर सरसरी निगाह डाली और कुछ नहीं कहा। क्या इससे वह नाराज हो गया होगा? क्या वह इस वजह से रो रहा होगा?” इस मामले का उस तरह से कैसे आकलन किया जाए जो वास्तविक स्थिति के अनुरूप हो? क्या इसका आकलन करना आसान है? (मैं कुछ आकलन कर सकता हूँ। अभी-अभी बताए गए कुछ कारण—घर की याद, आहत भावनाएँ या खिन्न, दमित मनोदशा—संभवतः ये सभी स्थितियाँ व्यक्ति के रोने का कारण बन सकती हैं। लेकिन मांस न खाने या किसी से बात करते समय अनदेखा किए जाने जैसी छोटी-छोटी बातें व्यक्ति के रोने के लिए पर्याप्त नहीं होनी चाहिए।) कौन-से कारण हैं, जो व्यक्ति को बुरी तरह रुला सकते हैं? शिकायतें, उदासी, किसी व्यक्ति या चीज की याद आना, कृतज्ञता की भावना। इसलिए, तुम्हें उससे पूछना चाहिए, “तुम रो क्यों रहे हो? क्या तुम इसलिए रो रहे हो कि तुम्हारे साथ गलत व्यवहार किया गया है और तुम दुखी हो या इसलिए कि तुम आत्मचिंतन कर रहे हो और महसूस कर रहे हो कि तुम परमेश्वर के बहुत कृतज्ञ हो?” उसके साथ इस तरह की हार्दिक बातचीत करके तुम जान जाओगे कि वह क्यों रो रहा है। संक्षेप में, यह संभव नहीं है कि वह इसलिए रो रहा हो कि उसने ठीक से खाना नहीं खाया या मांस नहीं खा सका, न ही यह संभव है कि वह इसलिए रो रहा हो कि दूसरों ने उसे अनदेखा किया या उससे आँखें फेर लीं। बेशक, सामान्य परिस्थितियों में थोड़ी-सी कठिनाई सहने से व्यक्ति नहीं रोएगा और कभी-कभी अच्छे मूड में न होना भी उसे नहीं रुलाएगा। जो चीजें व्यक्ति को रुला सकती हैं, वे आम तौर पर ऊपर बताई गई कुछ परिस्थितियाँ ही होती हैं। तुम उन सामान्य स्थितियों के आधार पर उसके रोने का कारण तय कर सकते हो और फिर तुम उसकी सामान्य, सतत अभिव्यक्तियों के आधार पर आकलन कर सकते हो—जैसे कि यह तथ्य कि वह आम तौर पर तब तक नहीं रोता जब तक कि उसका सामना किसी दुखद या ऐसी चीज से नहीं होता जो उसका घाव हरा कर दे, कि वह आसानी से आँसू नहीं बहाता, और वह विशेष रूप से परेशान करने वाले मामलों और ऐसी चीजों के बारे में बात किए जाने पर ही रोता है जो विशेष रूप से उसकी आत्मा को छूती हैं या जब उसने कुछ गलत किया होता है या कोई गंभीर गलती की होती है और वह परमेश्वर के प्रति कृतज्ञ मासुस करता है—इस संदर्भ के आधार पर आकलन करने से तुम कमोबेश यह समझ सकते हो कि वह क्यों रो रहा है। एक स्थिति यह है कि वह तब रोएगा जब परिवार का कोई सदस्य गंभीर रूप से बीमार हो जाए या उसकी मृत्यु हो जाए, दूसरी स्थिति यह है कि वह खुद किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हो और व्यथित हो। वैकल्पिक रूप से, वह इसलिए रो सकता है कि उसने कुछ गलत किया है और इस तरह कोई अपराध किया है, और उसे लगता है कि वह परमेश्वर का ऋणी है, वह अपना मार्ग बदलने की पूरी कोशिश करना चाहता है लेकिन फिर भी उसमें कमजोरियाँ हैं और वह उन पर काबू पाने में असमर्थ है; ये जटिल भावनाएँ एक-साथ मिलकर उसे रुला देती हैं। ये आकलन वास्तविक स्थिति के साथ अपेक्षाकृत सुसंगत हैं। उसकी सतत अभिव्यक्तियों और उसके व्यक्तित्व की विशेषताओं के आधार पर आकलन करने से तुम इस बात का मूल कारण पता लगा सकते हो कि वह अभी क्यों रो रहा है। इस तरह आकलन अपेक्षाकृत ज्यादा सटीक होगा। एक ओर ऐसे लोगों का आध्यात्मिक कद और वर्तमान में उनके द्वारा अनुभव की जा रही कुछ समस्याओं को समझकर और दूसरी ओर उनकी मानवता के दोषों के साथ-साथ उनके द्वारा अक्सर प्रकट की जाने वाली कुछ भ्रष्टता और कमजोरियाँ समझकर तुम मूल रूप से दायरे को सीमित कर सकते हो और इस दायरे के भीतर इस व्यक्ति की समस्या का मूल कारण क्या है, इसका आकलन कर सकते हो। इस तरह से आकलन करना अपेक्षाकृत सटीक होगा।
हमने अब लोगों की आकलन करने की क्षमता के संदर्भ में अच्छी काबिलियत, औसत काबिलियत और खराब काबिलियत वाले लोगों की अभिव्यक्तियों के बारे में संगति समाप्त कर ली है, है न? (हाँ।) सबसे खराब काबिलियत वाले लोगों की श्रेणी भी है। चाहे कुछ भी हो जाए या वे किसी को कुछ भी करते हुए देखें, ऐसे लोग आकलन करना नहीं जानते। क्यों नहीं जानते? क्योंकि उनकी काबिलियत बहुत खराब होती है, उनके पास आकलन करने की क्षमता नहीं होती और वे नहीं जानते कि चीजों का आकलन कैसे किया जाए। उदाहरण के लिए, मान लो वे किसी को कुछ नकारात्मक कहते हुए सुनते हैं। जब इस नकारात्मक कथन के सार और प्रकृति की बात आती है तो वे नहीं जानते कि उनके आकलन का आधार क्या होना चाहिए, उनके पास इसका कोई सुराग नहीं होता। यह ये नहीं जानना है कि समस्याओं के बारे में कैसे सोचें और यह ये पता न होना है कि चीजों का आकलन कैसे करें। जब वे किसी को कुछ करते हुए देखते हैं तो वे मामले के सार के आधार पर यह आकलन नहीं कर सकते कि इस मामले की प्रकृति क्या है या इस व्यक्ति का चरित्र कैसा है; वे नहीं जानते कि अपने आचरण के अनुभव के आधार पर इन चीजों का आकलन कैसे करें, और परमेश्वर के वचनों के आधार पर उनका आकलन करना तो वे बिल्कुल भी जानते। इसलिए, उनमें आकलन करने की क्षमता नहीं होती। चीजों का आकलन न कर पाने का मूल कारण क्या होता है? यही कि ऐसे व्यक्ति को समस्याओं के बारे में सोचना नहीं आता, और जब लोगों और चीजों को देखने की बात आती है तो उन्हें नहीं पता होता कि उनके किस पहलू को देखना है, उन्हें कैसे देखना है या उन्हें किस आधार पर देखना है। और वे नहीं जानते कि बाद में क्या निष्कर्ष निकालने हैं, निष्कर्ष कैसे निकालने हैं या निष्कर्ष पर पहुँचने के बाद इस प्रकार के व्यक्ति या मामले को कैसे लेना और सँभालना है। उनके दिमाग या तो खाली होते हैं या धुँधले। यह आकलन करने की क्षमता न होना है। आकलन करने की क्षमता से रहित लोगों की मुख्य समस्या यह होती है कि वे किसी सिद्धांत को नहीं समझते या प्राप्त करते, यहाँ तक कि उन्हें आचरण करने का अनुभव भी नहीं होता। इसलिए, जब वे विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ मिलते-जुलते हैं तो वे नहीं जानते कि किस प्रकार के लोगों के साथ जुड़ना उचित है और किस प्रकार के लोगों के साथ नहीं; वे नहीं जानते है कि कौन-से लोग अपेक्षाकृत दयालु हैं जिनके पास कुछ सशक्त बिंदु भी हैं जिनसे वे अपनी कमियों की भरपाई करने के लिए सीख सकते हैं और जो उनकी मदद कर उन्हें लाभ पहुँचा सकते हैं; किस तरह के लोगों को बर्दाश्त कर उनके साथ अनिच्छा से रहा जा सकता है; और किस तरह के लोगों में इतनी ज्यादा बुराई होती है कि उनके साथ जुड़ना आसानी से परेशानी या विवादों को आमंत्रित कर सकता है और इसलिए जिनसे दूर ही रहना चाहिए—वे इन सब के बारे में अनभिज्ञ होते हैं। संक्षेप में, आकलन करने की क्षमता से रहित ये लोग कुछ नहीं जानते और किसी व्यक्ति या मामले का आकलन नहीं कर सकते। लेकिन उनका एक अपना नजरिया भी होता है, एक निश्चित नियम जिसका वे पालन करते हैं। वे कहते हैं, “चाहे मैं किसी के साथ भी चीजें सँभालूँ या किसी से भी बात करूँ, मैं बस मजाक करके उन्हें टाल देता हूँ। मैं किसी से दुश्मनी नहीं रखता। चाहे वह अच्छा व्यक्ति हो या बुरा, चाहे वह वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करता हो या न करता हो, चाहे वह सत्य से प्रेम करता हो या उससे विमुख हो—मैं उनके साथ हिल-मिलकर रहता हूँ और किसी को नाराज नहीं करता। जब मैं बुरे लोगों को देखता हूँ तो उनसे दूर रहता हूँ; जब मैं विनम्र लोगों को देखता हूँ तो उन्हें धौंस देता हूँ।” यह वास्तव में उनका शैतानी तर्क है। वे नहीं जानते कि उन्हें किस तरह के लोगों के साथ जुड़ना चाहिए, किस तरह के लोगों से दूर रहना चाहिए और किस तरह के लोगों के साथ कभी जुड़ना या कोई व्यवहार नहीं करना चाहिए। वे जरा भी विवेक नहीं लगाते और सभी को एक-जैसा समझते हैं, सभी लोगों के साथ एक-जैसा व्यवहार करते हैं। चाहे कोई भी हो, अगर वे उस व्यक्ति के बारे में अनुकूल राय नहीं रखते तो वे उसे बाहरी या दुश्मन ही मानेंगे। कोई व्यक्ति कितना भी अच्छा क्यों न हो, अगर वह उन्हें कोई लाभ नहीं देता तो वे उस व्यक्ति के साथ सतर्कता से पेश आएँगे। वे किसी के सामने अपना दिल नहीं खोलते और सभी के साथ सतर्क नजरिया अपनाते हैं। ऐसे लोग अच्छी काबिलियत वाले होते हैं या खराब काबिलियत वाले? (खराब काबिलियत वाले।) खराब काबिलियत होने पर भी उनके ऐसे विचार कैसे हो सकते हैं? ऐसे लोग बस छोटी सोच वाले होते हैं। बिना काबिलियत वाले लोगों और मानसिक रूप से अक्षम लोगों के बीच क्या अंतर होता है? बिना काबिलियत वाले लोग मानसिक रूप से कमजोर और मूर्ख होते हैं। खाने-पहनने, इज्जत बनाए रखने और लाभ लेने व नुकसान न उठाने के लिए कुछ हिसाब-किताब रखने के अलावा उनमें कोई काबिलियत नहीं होती। दूसरी ओर, मानसिक रूप से अक्षम लोगों के पास अपने हितों की रक्षा करने या लाभ लेने के लिए कोई हिसाब-किताब तक नहीं होता—उनके पास कोई विचार ही नहीं होता। मानसिक रूप से कमजोर और मूर्ख लोगों के पास कुछ हिसाब-किताब होने के अलावा जीवित रहने की कोई क्षमता, कोई काबिलियत और आकलन करने की कोई क्षमता बिल्कुल नहीं होती। इसलिए, वे किसी व्यक्ति के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, इसके कोई सिद्धांत नहीं होते; वे बस अपनी भावनाओं के अनुसार चलते हैं। अगर उन्हें लगता है कि तुम उनके लिए उपयोगी नहीं हो तो वे तुमसे दूर रहेंगे, तुम्हारे प्रति प्रतिरोधी महसूस करेंगे, अपने दिल में तुमसे नफरत करेंगे और तुम्हें नकारेंगे। चाहे तुम उनके प्रति कितनी भी सद्भावना रखो या कैसे भी उनकी मदद करो, अगर वे इसे स्पष्ट रूप से न समझ सकें तो वे यह महसूस नहीं करेंगे कि तुम उनके प्रति मित्रवत हो या तुम उनके लिए बिल्कुल भी हानिकारक नहीं हो। वे यह नहीं पहचान सकते कि लोग, घटनाएँ और चीजें उचित हैं या अनुचित, सही हैं या गलत, सकारात्मक हैं या नकारात्मक—वे इन चीजों का आकलन नहीं कर सकते। उनके पास सिर्फ कुछ हिसाब-किताब होता है। जब वे लाभ ले लेते हैं तो वे खुश महसूस करते हैं; जब वे लाभ नहीं ले पाते तो उन्हें लगता है कि उन्हें नुकसान हो गया है, उनके साथ गलत व्यवहार किया गया है, दूसरों ने उनका मजाक उड़ाया है और वे संकल्प लेते हैं कि अगली बार वे दूसरों को लाभ नहीं लेने देंगे या दूसरों को दिखावा करने या अपने सामने इक्कीस नहीं होने देंगे—वे दूसरों को कोई मौका नहीं देंगे। मुझे बताओ, क्या उनके दिमाग में ये हिसाब-किताब होना ही काबिलियत होना माना जाता है? यह मानसिक रूप से अक्षम होने से थोड़ा ही बेहतर है, लेकिन जब क्षमताओं की बात आती है, तो उनमें कोई क्षमता नहीं होती—उनमें विभिन्न प्रकार के मामले सँभालने के लिए विभिन्न क्षमताएँ नहीं होतीं। वे बस मूर्ख और मानसिक रूप से कमजोर होते हैं। ऐसे लोगों में कोई काबिलियत नहीं होती। क्या तुम समझते हो? (हाँ।) जो एकमात्र ऐसी चीज उन लोगों के पास होती है जो मानसिक रूप से अक्षम लोगों के पास नहीं होती, वह है ये हिसाब-किताब; मानसिक रूप से अक्षम लोगों के पास ये तक नहीं होते। जब ऐसे लोग यह सुनते हैं तो वे आश्वस्त नहीं होते; वे कहते हैं, “तुम दावा करते हो कि मेरे पास आकलन करने की क्षमता नहीं है? कुछ अमेरिकी डॉलर और सोना एक-साथ रखो और देखो कि क्या मैं उन्हें पहचान नहीं सकता। मैं उन्हें पहचान सकता हूँ! सोना पीला होता है और अमेरिकी डॉलर कागजी मुद्रा है! प्लैटिनम और चाँदी एक-साथ रखो और देखो कि क्या मैं आकलन नहीं कर सकता! प्लैटिनम और चाँदी सफेद रंग की अलग-अलग रंगतें हैं—मैं यह बता सकता हूँ!” क्या यह मूर्खतापूर्ण नहीं है? यह अत्यंत मूर्खतापूर्ण है। वे सिर्फ इन चीजों के बीच अंतर करने में सक्षम होते हैं और फिर भी इसके बारे में दिखावा करना चाहते हैं और साबित करना चाहते हैं कि वे मूर्ख नहीं हैं। उन्होंने बहुत-सी मूर्खतापूर्ण चीजें की होती हैं, बहुत-सी ऐसी चीजें जो काबिलियत की कमी प्रदर्शित करती हैं—वे उनके बारे में बात क्यों नहीं करते और उन्हें समझने की कोशिश क्यों नहीं करते? चूँकि उनमें काबिलियत की कमी होती है, चूँकि उनकी काबिलियत बहुत खराब होती है और वे इन चीजों को पहचान नहीं सकते या इनमें अंतर नहीं कर सकते, ठीक इसलिए वे एक-दो चीजें ऐसी लाते हैं जिन्हें मानसिक रूप से विकलांग लोग नहीं कर सकते, यह साबित करने के लिए कि वे मानसिक रूप से विकलांग नहीं हैं, यह साबित करने के लिए कि उनमें कुछ बुद्धि और काबिलियत है। क्या यह मूर्खता नहीं है? यह उनकी मूर्खता को और साबित करता है। जिन लोगों में काबिलियत नहीं है, उनकी अभिव्यक्तियों पर हमारी संगति भी अब पूरी हो गई है। किसी व्यक्ति में आकलन करने की क्षमता है या नहीं, इसका प्राथमिक पैमाना क्या है? यही कि उनके पास सामान्य मानवता की सोच है या नहीं। अगर तुममें सामान्य मानवता की सोच नहीं है तो तुम किसी चीज का आकलन नहीं कर पाओगे। अगर तुममें सामान्य मानवता की सोच है तो तुम्हारे आकलन फिर भी गलत हो सकते हैं, लेकिन कम से कम, यह दर्शाता है कि तुममें आकलन करने की क्षमता है और तुम सामान्य मानवता की सोचने की क्षमता रखते हो। तुम्हारे द्वारा किए गए आकलन अटकलें नहीं हैं, मान्यता नहीं हैं, काल्पनिक नहीं हैं, न ही वे अनुमान हैं। बल्कि वे मामले के सभी पहलुओं पर विचार करके निकाले गए विभिन्न निष्कर्ष और मत हैं। इसे ही आकलन करने की क्षमता कहते हैं।
अब जबकि हमने आकलन करने की क्षमता पर चर्चा पूरी कर ली है, तो चलो अब चीजों को पहचानने की क्षमता के बारे में बात करते हैं। चीजों को पहचानने की क्षमता का क्या मतलब है? इसका मतलब मुख्य रूप से यह पहचानना है कि लोग, घटनाएँ और चीजें सकारात्मक हैं या नकारात्मक, उचित हैं या अनुचित और सही हैं या गलत; इसका मतलब है लोगों, घटनाओं और चीजों की विशेषताएँ बताना या उन्हें वर्गीकृत करना—अपने सामने आने वाले लोगों, घटनाओं और चीजों को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत करना। पहचानने का उद्देश्य और इरादा लोगों को उनके प्रकार के अनुसार छाँटना और सकारात्मक और नकारात्मक चीजों को उनके प्रकार के अनुसार छाँटना है। बेशक, वर्गीकरण का मतलब पक्षियों को पक्षियों की श्रेणी में, जानवरों को जानवरों की श्रेणी में या पौधों को पौधों की श्रेणी में रखना नहीं है। चीजों को पहचानने की क्षमता का मतलब इन्हें पहचानने की क्षमता नहीं है, बल्कि विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की विशेषताएँ पहचानने की क्षमता है। उदाहरण के लिए, क्या तुम विभिन्न लोगों की अभिव्यक्तियों, प्रकाशनों और सार को वर्गीकृत कर सकते हो? क्या तुम अपने सामने आने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की विशेषताएँ परिभाषित कर सकते हो? उदाहरण के लिए, छद्म-विश्वासियों की पहचान करने में, क्या तुम छद्म-विश्वासियों के उन प्रकाशनों की पहचान कर सकते हो जो तुम्हें स्पष्ट रूप से यह पहचानने में सक्षम बनाते हैं कि वे छद्म-विश्वासी हैं? अगर तुम जानते हो कि छद्म-विश्वासियों की क्या विशेषताएँ और लक्षण होते हैं, वे मानवता के कौन-से प्रकाशन प्रदर्शित करते हैं, वे क्या शब्द कहते हैं, वे क्या कार्रवाइयाँ करते हैं और उनके क्या विचार और दृष्टिकोण हैं, तो तुम्हें छद्म-विश्वासियों की पहचान करने में सक्षम होना चाहिए। अच्छी काबिलियत वाला व्यक्ति विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों के दिखने पर यह पहचान सकता है कि वे सकारात्मक चीजें हैं या नकारात्मक चीजें, सकारात्मक लोग हैं या नकारात्मक लोग, वे न्यायपूर्ण हैं या बुरे, और वे सही हैं या गलत। वे विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की विशेषताएँ परिभाषित कर सकते हैं और पहचान सकते हैं कि वे मानवता और सत्य के साथ अनुरूप हैं या नहीं। यह अच्छी काबिलियत वाला व्यक्ति है। फिर औसत काबिलियत वाले लोगों के बारे में क्या? वे स्पष्ट विशेषताओं वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की पहचान कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग कहते हैं, “परमेश्वर कैसे हो सकता है? वह कहाँ है? मैं पुष्टि क्यों नहीं कर सकता कि वह मौजूद है?” उन्हें परमेश्वर को स्पष्ट रूप से नकारने वाले ऐसे शब्दों की कुछ पहचान होती है और वे पहचान सकते हैं कि ऐसे लोग छद्म-विश्वासी और नकारात्मक चरित्र वाले होते हैं। वे स्पष्ट बुराई और स्पष्ट रूप से नकारात्मक, अन्यायपूर्ण, दुष्ट चीजों की पहचान कर सकते हैं, लेकिन कुछ चीजें जो दिखावटी होती हैं और जिनके बारे में शायद ही किसी ने सुना होता है और जो बीच के स्थान या धूसर क्षेत्र में पड़ती हैं, वे उनमें अंतर नहीं कर सकते, न ही वे उनके साथ अलग व्यवहार करने में सक्षम होते हैं। उनमें स्पष्ट दुष्कर्म करने वाले बुरे लोगों को पहचानने की क्षमता होती है। वे जानते हैं कि ऐसा व्यक्ति बुरा है और अगर कोई उस जैसा बुरा व्यक्ति अगुआ बनकर रुतबा हासिल कर लेता है तो वह मसीह-विरोधी होगा। लेकिन अगर इस व्यक्ति का चरित्र खराब है और फिर भी उसने बुरे कर्म नहीं किए हैं तो वे यह नहीं पहचान पाएँगे कि उसे बुरे व्यक्ति के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है या नहीं और वह कौन-से बुरे कर्म कर सकता है, न ही वे इस व्यक्ति की विशेषताएँ परिभाषित कर पाएँगे। यह औसत काबिलियत वाला होना है। कुछ लोगों का व्यवहार बिलकुल स्पष्ट होता है, जैसे अनैतिकता में लिप्त होना, मूर्तियों की पूजा करना, सांसारिक चीजों का अनुसरण करना, गपशप पसंद करना, अक्सर दूसरों को दबाना और धौंस देना या हत्या और आगजनी करना, और वे कहेंगे कि ये अच्छे लोग नहीं हैं और ये वे लोग हैं जिनसे परमेश्वर घृणा करता है; वे यह भेद कर सकते हैं। लेकिन ऐसे कुछ लोगों के बारे में, जिनका बाहरी व्यवहार काफी अच्छा दिखाई देता है—अक्सर दान देना और दूसरों की मदद करना, लोगों के प्रति धैर्य दिखाना, दूसरों के साथ काफी अच्छी तरह मिलजुलकर रहना—जिनकी मानवता बाहर से काफी अच्छी दिखाई देती है, फिर भी जिनके शब्द और क्रियाकलाप ज्यादातर समय सत्य के अनुरूप नहीं होते और जिनके क्रियाकलाप अक्सर सत्य सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं, वे यह नहीं समझ पाएँगे कि ऐसे लोग सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं या नहीं, या वे वास्तव में किस श्रेणी में आते हैं। जो लोग, घटनाएँ और चीजें स्पष्ट होती हैं और आसानी से वर्गीकृत की जा सकती हैं, उनके बारे में वे यह समझ सकते हैं कि वे उचित हैं या अनुचित, सही हैं या गलत, न्यायी हैं या दुष्ट, और वे सकारात्मक चीजें हैं या नकारात्मक चीजें। वे ऐसे बाहरी मामलों में अंतर कर सकते हैं, लेकिन जब उन लोगों, घटनाओं और चीजों की बात आती है जिनमें वास्तव में सिद्धांत शामिल होते हैं और जो सत्य से संबंधित हैं तो वे अंतर नहीं कर सकते। वे यह नहीं समझ सकते कि कौन-सी चीजें स्पष्ट रूप से सत्य के अनुरूप हैं और कौन-सी सत्य का उल्लंघन करती हैं। यह औसत काबिलियत वाला होना है। उदाहरण के लिए, कुछ लोग अपेक्षाकृत अच्छे वस्त्र से बने कपड़े पहनते हैं जो सुरुचिपूर्ण और उच्च गुणवत्ता वाले दिखते हैं और उन्हें दुनिया की उच्च-स्तरीय हस्तियों या सफेदपोश अभिजात वर्ग जैसा दिखाते हैं। यह देखकर औसत काबिलियत वाले लोग कहते हैं, “ये कपड़े गैर-विश्वासियों को पसंद हैं। परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों के रूप में हमें उन्हें पसंद नहीं करना चाहिए; ये सकारात्मक चीजें नहीं हैं।” यह कहना गलत है। ये कपड़े आकर्षक या मनमोहक नहीं लगते, बल्कि सुरुचिपूर्ण, गरिमामय और शालीन दिखते हैं जिससे पहनने वाला कुलीन दिखाई देता है। लेकिन ये लोग ऐसे कपड़ों को—जो पहनने वाले को कुलीन और सुरुचिपूर्ण दिखाते हैं और जो वर्तमान में फैशनेबल भी हैं—नकारात्मक चीज मानते हैं और कहते हैं कि वे दुष्ट हैं। यह इन चीजों को पहचानने में असमर्थ होना है, है न? (हाँ।) तो ऐसे लोगों की चीजों को पहचानने की क्षमता कैसी है? ज्यादा से ज्यादा, यह औसत है। यह औसत काबिलियत होना है। ऐसे लोग उन कुछ चीजों में अंतर करने में भी सक्षम नहीं होते जो गैर-विश्वासी कर सकते हैं—अच्छी काबिलियत वाले गैर-विश्वासी अच्छी और बुरी मानवता में अंतर कर सकते हैं लेकिन ये लोग नहीं कर सकते। परमेश्वर में विश्वास करने के बाद कुछ धर्मसिद्धांत समझने के बावजूद ऐसे लोग सकारात्मक और नकारात्मक चीजों में अंतर नहीं कर सकते। वे उन चीजों को पहचान सकते हैं जो स्पष्ट होती हैं, लेकिन वे उन चीजों को नहीं पहचान सकते जो स्पष्ट नहीं होतीं। वे स्पष्ट रूप से बुरे लोगों, विघ्न-बाधाओं की स्पष्ट घटनाओं और सिद्धांतों के उल्लंघन की स्पष्ट घटनाओं को पहचानने में सक्षम होते हैं, लेकिन जब उन कुछ लोगों, घटनाओं और चीजों की बात आती है जो अपेक्षाकृत विशेष, भयावह और विचित्र होती हैं और छाया में छिपी होती हैं तो वे उन्हें नहीं पहचान सकते। दूसरों की संगति और प्रेरणाओं के जरिये या लोगों के खुद कुछ स्पष्ट करने पर ही वे उन्हें पहचान सकते हैं। वरना वे नहीं पहचान सकते। यह दर्शाता है कि उनकी चीजों को पहचानने की क्षमता औसत है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों, किसी व्यक्ति, घटना या चीज को नहीं पहचान सकते, न ही उसकी विशेषताएँ परिभाषित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, जब यह आकलन करने की बात आती है कि एक निश्चित श्रेणी के लोगों की विशेषताएँ वास्तव में क्या हैं—वे सच्चे विश्वासी हैं या छद्म-विश्वासी, क्या वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं या क्या वे विकसित किए जाने के लिए उपयुक्त हैं—तो वे इन चीजों को नहीं जानते और नहीं देख सकते। यहाँ तक कि जब ऐसे लोग कई अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं और उनमें बहुत स्पष्ट समस्याएँ होती हैं, तब भी वे उन लोगों को नहीं पहचान सकते या उनकी विशेषताएँ परिभाषित नहीं कर सकते। यह चीजों को पहचानने की क्षमता न होना है। यहाँ तक कि अगर कुछ सामान्य और आसानी से पहचाने जाने वाले लोग, घटनाएँ और चीजें सामने आती हैं, तो भी वे स्पष्ट रूप से नहीं कह सकते कि ये लोग अच्छे हैं या बुरे, या ये न्यायपूर्ण मामले हैं या दुष्टतापूर्ण। वे नहीं जानते कि उन्हें कैसे अलग या वर्गीकृत करना है, न ही वे उन्हें श्रेणीबद्ध करना जानते हैं। यहाँ तक कि परमेश्वर के वचन पढ़ने और दूसरों के साथ संगति करने के बाद भी वे उन्हें पहचान नहीं पाते। अंत में वे यह कहते हुए दूसरों से निर्णय करवाते हैं, “तुम उन्हें जैसा बताते हो, वे वैसे ही होते हैं। अगर तुम उन्हें न्यायपूर्ण बताते हो तो वे न्यायपूर्ण होते हैं; अगर तुम उन्हें दुष्ट बताते हो तो वे दुष्ट होते हैं।” संक्षेप में, वे खुद परिभाषाएँ नहीं बना सकते या निष्कर्ष नहीं निकाल सकते। परिस्थिति चाहे जो भी हो, जब निष्कर्ष निकालने की बात आती है तो वे हक्के-बक्के रह जाते हैं और उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं होता। क्या यह चीजों को पहचानने की क्षमता का अभाव होना नहीं है? (हाँ, है।) यहाँ तक कि सबसे सरल बाहरी घटना के मामले में भी, अगर तुम उनसे यह पहचानने के लिए कहो कि इसकी प्रकृति क्या है और इसके गुण क्या हैं, तो वे नहीं जानते। हालाँकि उनके पास एक तरकीब होती है : वे यह दोहराते हुए कि किसी व्यक्ति ने क्या कहा और किया है, बेसिरपैर की बातें कर सकते हैं। लेकिन अगर तुम उनसे पूछो, “यह व्यक्ति वास्तव में सच्चा विश्वासी है या नहीं? क्या यह ऐसा व्यक्ति है जिसकी परमेश्वर के प्रति जबरदस्त आकांक्षा है?” तो वे जवाब देते हैं, “अरे, यह दस साल से ज्यादा समय से परमेश्वर में विश्वास करता है और इसने अपना परिवार और करियर त्याग दिया है। जब इसकी बच्ची तीन-चार साल की थी तो इसने उसे भाई-बहनों को सौंपकर अपना कर्तव्य निभाने के लिए घर छोड़ दिया था।” उनके पास अपने हिसाब-किताब होते हैं; वे खुद निष्कर्ष निकालने से बचते हैं, इसके बजाय वे तुम्हें निर्णय करने देते हैं। अगर तुम उनसे पूछो, “तो क्या यह व्यक्ति सत्य स्वीकारता है?” तो वे जवाब देते हैं, “अरे, जब से यह कलीसिया का अगुआ बना है, तब से यह बहुत जल्दी जाग जाता है और बहुत देर से सोता है। जहाँ तक इस बात का सवाल है कि यह सत्य स्वीकारता है या नहीं, तो जब एक बार भाई-बहनों ने उसे उसकी कुछ समस्याओं के बारे में बताया तो वह वहीं रो पड़ा और कहने लगा कि वह परमेश्वर का ऋणी है और उसने अच्छा नहीं किया।” “और क्या उसने बाद में पश्चात्ताप किया?” “अरे, उस समय उसका रवैया बहुत अच्छा था।” वे तुम पर जानकारी लादना पसंद करते हैं, तुम्हें दिखाते हैं कि उनमें कुछ बात है, कि वे सब-कुछ जानते हैं और यह जानते हैं कि लोगों को कैसे देखना है और तुम्हें उन्हें कमतर आँकने से रोकते हैं। असल में वे लोगों को नहीं समझ सकते, न ही वे निष्कर्ष निकाल सकते हैं। वे बस तुम्हें बहुत-सी घटनाएँ और जानकारी बताते हैं और यह पहचानने का कि वह किस तरह का व्यक्ति है और उस व्यक्ति के बारे में निष्कर्ष निकालने और उसकी विशेषताएँ परिभाषित करने का काम तुम पर छोड़ देते हैं। तुम कहते हो, “इस व्यक्ति को मूल रूप से ऐसा व्यक्ति माना जा सकता है जो सत्य स्वीकारता है। इसमें परमेश्वर में विश्वास करने की प्रेरणा है और यह एक सच्चा विश्वासी है। बस, चूँकि इसमें खराब काबिलियत है और बोध क्षमता नहीं है, इसलिए इस तथ्य के बावजूद कि यह सत्य स्वीकारने का इच्छुक होता है, यह कभी अभ्यास के सिद्धांत नहीं खोज पाता और सत्य का अभ्यास नहीं कर सकता।” वे जवाब देते हैं, “मुझे तो यह बोध क्षमता वाला व्यक्ति नहीं लगता। जब भी यह किसी अप्रिय चीज के बारे में बात करता है तो रो पड़ता है—इसका रवैया हमेशा एक जैसा ही रहता है।” देखा? उनमें खुद चीजों को पहचानने की क्षमता नहीं होती, फिर भी वे दूसरों की टिप्पणियों का फायदा उठाने में काफी अच्छे होते हैं। क्या यह तकलीफदेह नहीं है? जिन लोगों में चीजों को पहचानने की क्षमता नहीं होती, उनकी सबसे आम अभिव्यक्ति यह होती है कि वे तुम्हें बहुत-सी घटनाओं, जानकारी, कठिन समस्याओं, घटना-क्रमों या किसी स्थिति के बारे में जो कुछ भी उन्होंने देखा होता है, उसके बारे में बताना पसंद करते हैं, फिर वे तुम्हारे द्वारा उसे परिभाषित किए जाने का इंतजार करते हैं और तुम्हारे द्वारा उसे परिभाषित कर दिए जाने के बाद उन्हें लगता है कि तुम्हारी परिभाषा अच्छी है और वे उसे स्वीकार सकते हैं। उसे स्वीकारने के बाद भी वे यह नहीं जानते कि तुमने उसे उस तरह से परिभाषित क्यों किया। वे तुम्हारे निष्कर्ष के पीछे के आधार या सिद्धांत नहीं जानते, न ही यह जानते हैं कि संबंधित व्यक्ति को कैसे लेना या सँभालना है। वे इनमें से किसी चीज के बारे में कुछ नहीं जानते। संगति और अध्ययन के बाद भी वे नहीं समझते। यह दर्शाता है कि उनमें चीजों को पहचानने की कोई क्षमता नहीं होती; यह कोई काबिलियत न होने की अभिव्यक्ति है। वे अक्सर तथ्यों को विकृत करने और एक चीज को दूसरी चीज समझ लेने की गलती भी करते हैं। चाहे वे किसी भी मुद्दे पर टिप्पणी करें, वे मामले की जड़ या सार समझने में विफल रहते हैं और इसके बजाय सिर्फ बाहरी घटनाओं के आधार पर निष्कर्ष निकाल लेते हैं। उदाहरण के लिए, वे मसीह-विरोधी के बुरे कर्म को अपराध बताते हैं और मानते हैं कि अगर मसीह-विरोधी इसे पहचानता है तो वह खुद को बदल सकता है। अगर वे किसी ईमानदार व्यक्ति को झूठ बोलते हुए देखते हैं तो वे उसे धोखेबाज व्यक्ति के रूप में चित्रित करते हैं। अगर वे किसी को अहंकारी और आत्म-तुष्ट देखते हैं तो उसे बुरे व्यक्ति के रूप में चित्रित करते हैं। ये वे गलतियाँ हैं जो आम तौर पर उन लोगों द्वारा की जाती हैं जिनमें चीजों को पहचानने की क्षमता नहीं होती। हर व्यक्ति के लिए चीजों को पहचानने की क्षमता एक तरह की काबिलियत होती है जो जीवन में विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों का सामना करते समय उनमें होनी चाहिए। चीजों को पहचानने की क्षमता में विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों का सार पहचानना ही शामिल नहीं है, बल्कि उनकी विशेषताएँ निर्धारित करना भी शामिल है। तुम जितनी ज्यादा सटीकता से ये विशेषताएँ निर्धारित कर सकते हो, उतनी ही तुममें चीजों को पहचानने की ऊँची क्षमता होना साबित होता है। अगर तुम्हारे निर्धारण बहुत सटीक नहीं होते और तुम्हारे निर्धारणों और मामले के सार और जड़ के बीच अंतर रहता है तो इससे साबित होता है कि तुम्हारी चीजों को पहचानने की क्षमता औसत है। अगर तुम लोगों, घटनाओं और चीजों की विशेषताएँ निर्धारित नहीं कर सकते, न ही इन विशेषताओं को समझ सकते हो तो इससे साबित होता है कि तुममें चीजों को पहचानने की क्षमता नहीं है। उदाहरण के लिए, मान लो कि जब किसी व्यक्ति की बात आती है तो तुम उसकी कई अभिव्यक्तियों और प्रकाशनों का ही वर्णन कर सकते हो लेकिन उसका सार नहीं समझ सकते। यानी तुम सिर्फ इस बारे में बात कर सकते हो कि इस व्यक्ति के किस तरह से नकारात्मक होने की संभावना है या उसमें क्या खूबियाँ हैं, तुम सिर्फ उस व्यक्ति के साथ हुई बहुत-सी चीजों के बारे में बात कर सकते हो, लेकिन तुम उसके चरित्र, उसकी काबिलियत या सत्य के प्रति उसके रवैये को नहीं जानते, तुम ये अनिवार्य मुद्दे नहीं देख सकते और तुम्हारे पास उन लोगों, घटनाओं और उनके आस-पास दिखने या घटित होने वाली चीजों के लिए कोई परिभाषा नहीं होती। चाहे वे चीजें सही हों या गलत, न्यायपूर्ण हों या दुष्ट, सकारात्मक चीजें हों या नकारात्मक, अच्छी मानवता की अभिव्यक्तियाँ हों या बुरी मानवता की, तुम इनमें से किसी भी चीज को नहीं समझ या पहचान सकते। चाहे तुमने कितने भी सत्य सुने हों या कितनी भी अनुभवजन्य गवाहियाँ सुनी हों, फिर भी तुम विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की पहचान या उनमें अंतर नहीं कर सकते; तुम्हारे दिल में लोगों, घटनाओं या चीजों की किसी भी श्रेणी के लिए कोई परिभाषा नहीं है। यह चीजों को पहचानने की क्षमता न होना है और यह काबिलियत न होने की अभिव्यक्ति भी है।
जिन लोगों में चीजों को पहचानने की क्षमता नहीं होती, अगर उनमें आत्म-जागरूकता न हो और वे अहंकारी और आत्म-तुष्ट भी हों तो वे कौन-सी गलती कर सकते हैं? यही कि वे दूसरे लोगों द्वारा प्रदर्शित कुछ अभिव्यक्तियों का इस्तेमाल करते हैं और फिर मनमाने ढंग से उन पर ठप्पा लगाकर उन्हें परिभाषित कर देते हैं। उदाहरण के लिए, वे देखते हैं कि कुछ लोग थोड़े जिद्दी हैं और फिर कहते हैं कि वे बुरे लोगों जैसे हैं, कि वे शैतान हैं—क्या यह एक बड़ी गलती नहीं है? वे लोग थोड़े जिद्दी होते हैं और पारिवारिक स्थितियों या जिस परिवेश में वे पले-बढ़े, उसके कारण उन्होंने कुछ खराब जीवन-आदतें बना लीं या कुछ बुरी आदतें और खामियाँ विकसित कर लीं। कुल मिलाकर, इन लोगों का चरित्र दयालु नहीं होता, लेकिन वह बुरा भी नहीं होता, इसलिए उन्हें बुरे लोग नहीं कहा जा सकता। फिर भी, जिन लोगों में चीजों को पहचानने की क्षमता नहीं होती, वे इनमें से किसी एक व्यक्ति द्वारा कही गई कुछ बातों या उनके द्वारा की गई एक-दो चीजों का इस्तेमाल कर लेते हैं और फिर आँख मूँदकर उन्हें परिभाषित करते हुए कहते हैं, “इस व्यक्ति का व्यक्तित्व अजीब, असामाजिक और जिद्दी है। यह एक बुरा व्यक्ति है।” यह परिभाषा गलत है। वास्तव में बुरे लोग लुभावने शब्द बोलेंगे और लोगों को बहलाएँगे; उनके पास चालें होती हैं, वे छिपेंगे और धोखा देंगे और लोगों के साथ खिलवाड़ करेंगे। यहाँ तक कि कुछ बुरे लोग दान भी दे सकते हैं, दूसरों की मदद भी कर सकते हैं और धैर्य भी दिखा सकते हैं। जिन लोगों में चीजों को पहचानने की क्षमता नहीं होती, वे ऐसे व्यक्ति के बारे में कहेंगे, “यह व्यक्ति बहुत अच्छा है, यह एक सच्चा विश्वासी है,” लेकिन असल में वह व्यक्ति एक पाखंडी फरीसी होता है। जिन लोगों में चीजों को पहचानने की क्षमता नहीं होती, वे लोगों का सार नहीं समझ सकते—चुनावों के दौरान वे बुरे लोगों को अगुआ बनने के लिए वोट तक देते हैं। यह किसके बराबर है? यह बुराई में सहायता करने और उसे बढ़ावा देने के बराबर है। कुछ बुरे लोग अपने व्यवहार में अपनी बुराई नहीं दिखाते और उसे प्रकट नहीं करते। उनकी बुराई उनके दिलों में होती है। वे जो कुछ भी करते हैं, वह सब उद्देश्यपूर्ण होता है और उनके तमाम इरादों में एक गुप्त गुण होता है। वे जो कुछ भी करते हैं जिसे कि तुम देख सकते हो, वह वास्तव में उनके वास्तविक इरादे नहीं दर्शाता। उनके सच्चे इरादे, उद्देश्य और उनकी दुष्टता सब उनके दिलों में छिपे होते हैं। अगर किसी व्यक्ति में चीजों को पहचानने की क्षमता नहीं है और वह ऐसे लोगों को नहीं पहचान सकता तो उसके द्वारा उन्हें अच्छे लोग समझे जाने, ऐसे लोग समझे जाने की संभावना है जो सत्य का अनुसरण करते हैं। कुछ लोगों का व्यक्तित्व सीधा-सादा होता है और दूसरों से जुड़ने पर वे कोई चालें नहीं चलते। वे सीधे तरीके से बात करते हैं और व्यक्तित्व और मिजाज की दृष्टि से कुछ हद तक चिड़चिड़े होते हैं। वास्तव में उनकी मानवता के साथ कोई बड़ी समस्या नहीं होती, बस कभी-कभी उनके बोलने का लहजा रूखा होता है। लेकिन वे जो प्रकट करते हैं, वह ठीक वही होता है जो वे आंतरिक रूप से सोचते हैं—वे जो आंतरिक रूप से सोचते हैं, वही वे बाहरी तौर पर प्रकट करते हैं। दूसरे लोग अक्सर सोचते हैं कि ये लोग नहीं जानते कि हर व्यक्ति के साथ कैसे बातचीत करनी है या समाज में कैसे घुलना-मिलना है और वे उन लोगों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले बोलने के तरीके से अनभिज्ञ होते हैं। ऐसे लोग विशेष रूप से सीधे-स्पष्ट बोलते हैं और हमेशा अनजाने ही दूसरों को चोट पहुँचा देते हैं। समय के साथ वे सभी को चोट पहुँचा बैठते हैं और लोग उनके प्रति अच्छी भावनाएँ नहीं रखते। कुछ लोग, जिनमें विवेक की कमी होती है, कहते हैं कि ऐसा व्यक्ति बुरा होता है, लेकिन वास्तव में वे बुरे नहीं होते। तुम कहते हो कि वे बुरे हैं—तो फिर इस बात के तथ्य सामने लाओ कि उन्होंने दूसरों को कैसे सताया है : उन्होंने किसे सताया या दबाया है? उन्होंने किसे नुकसान पहुँचाया है या धोखा दिया है? अगर वास्तव में कोई तथ्यात्मक आधार है जो साबित करता है कि यह व्यक्ति एक बुरा व्यक्ति है—कि वह सिर्फ अपने शब्दों से ही दूसरों को नुकसान नहीं पहुँचाता, कि उसके दिल की गहराइयों में भी बुराई है और वह वास्तव में दूसरों के लिए हानिकारक है—तो उसे एक बुरे व्यक्ति के रूप में चित्रित किया जा सकता है। अगर उसका दूसरों को नुकसान पहुँचाने का कोई इरादा नहीं है, तो वह बुरा व्यक्ति नहीं है। उसका बस एक सीधा-सादा व्यक्तित्व है और वह बेबाक तरीके से बोलता है—यह जन्मजात है। बेबाकी से बोलना ज्यादा से ज्यादा उसकी मानवता का एक दोष और कमी है। वह नहीं जानता कि बोलते समय व्यवहारकुशल कैसे बने और खुद को दूसरों के साथ बराबरी पर कैसे रखे, वह नहीं जानता कि दूसरे लोगों के प्रति सहिष्णुता कैसे दिखाए, दूसरों के प्रति मिलनसार और धैर्यवान कैसे बने, दूसरों की भावनाओं का ध्यान कैसे रखे। वह इनमें से कुछ नहीं जानता। उसकी मानवता से कुछ चीजें गायब होती हैं। फिर भी कुछ लोग, जिनमें विवेक की कमी होती है, ऐसे व्यक्तियों को बुरे लोग मानते हैं। वास्तव में, जब ये व्यक्ति चीजें करते हैं तो ज्यादातर समय परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करते हैं। हालाँकि दूसरों से बात करते हुए उनका लहजा थोड़ा रूखा होता है, लेकिन उन्होंने किसी को नुकसान नहीं पहुँचाया होता, न ही उनका लोगों को नुकसान पहुँचाने का इरादा होता है। बात बस इतनी है कि उनके भाषण में चातुर्य की कमी होती है और बोलते समय वे स्थिति पर विचार नहीं करते। ऐसे व्यक्तियों की मानवता में कुछ दोषों और खामियों के कारण कई अन्य लोग गलती से यह सोच लेते हैं कि वे दुष्ट लोग हैं लेकिन उनके द्वारा बुरे काम किए जाने का कोई सबूत नहीं दे पाते। यह एक गलत आकलन है, ऐसे व्यक्तियों का गलत चरित्र-चित्रण है। वास्तव में बुरे व्यक्ति बाहरी तौर पर भले ही दूसरों को नुकसान नहीं पहुँचा सकते, वे दान दे सकते हैं और दूसरों की मदद कर सकते हैं और उनके शब्दों में समझदारी, चिंता, देखभाल और समायोजन दिखाई दे सकता है, यहाँ तक कि ये व्यक्ति दूसरों के प्रति सहिष्णुता और प्रेम भी दिखा सकते हैं—उनके शब्द और क्रियाकलाप काफी अच्छे लग सकते हैं—लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों या विशेष मामलों में और ऐसे मामलों में जिनमें उनके हित शामिल होते हैं, वे दूसरों को दबा सकते हैं, नुकसान पहुँचा सकते हैं और उनके खिलाफ गुप्त रूप से षड्यंत्र कर सकते हैं, यहाँ तक कि वे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा भी बिल्कुल नहीं करेंगे। अगर किसी चीज में उनके हित शामिल न हों, अगर उन्हें बस एक उँगली ही उठानी पड़े तो भी वे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा नहीं करेंगे। ऐसे व्यक्ति जिसे बाहरी तौर पर जीते हैं वह असाधारण रूप से अच्छा लगता है और बाहर से उनकी मानवता में कोई दोष या खामियाँ नहीं देखी जा सकतीं, लेकिन वे वास्तव में पूर्णतया बुरे लोग होते हैं। बहुत-से लोग ऐसे व्यक्तियों को पहचानने में विफल रहते हैं और उनकी चालों, सांसारिक व्यवहारों के लिए उनके फलसफों और उनकी साजिशों और षड्यंत्रों से अंधे हो जाते हैं। अगर ऐसे व्यक्ति का प्रकृति सार और उसके बुरे कर्मों के तथ्य उजागर हो जाते हैं तो ये लोग न सिर्फ उसे स्वीकारते नहीं, बल्कि उस व्यक्ति को अच्छा भी मानते हैं, ऐसा व्यक्ति जिसे परमेश्वर के घर को विकसित करना चाहिए और कोई महत्वपूर्ण भूमिका देनी चाहिए। वे ऐसे व्यक्तियों के बारे में विवेक नहीं रखते। चलो हम इस बारे में बात नहीं करते कि ये लोग परमेश्वर के वचनों या सत्य सिद्धांतों के अनुसार किसी व्यक्ति का मूल्यांकन कर सकते हैं या नहीं, और सिर्फ उनकी काबिलियत देखते हैं—वे इन स्पष्ट रूप से बुरे व्यक्तियों को भी अच्छे लोग मानते हैं और इन व्यक्तियों के बुरे कर्मों के तथ्य होने पर भी वे उन्हें अच्छे लोग ही मानते हैं—इसका मतलब है कि वे पूरी तरह से भ्रमित हैं। जिन लोगों में चीजों को पहचानने की क्षमता नहीं होती, वे न सिर्फ मानसिक रूप से कमजोर और मूर्ख होते हैं, बल्कि भ्रमित भी होते हैं। इन बुरे व्यक्तियों ने दूसरों को दबाया और सताया होता है और लोगों के साथ खिलवाड़ करने के लिए विभिन्न हथकंडे अपनाए होते हैं, फिर भी ये लोग इसे बुरा नहीं समझते और यह नहीं देख पाते कि यह बुरा है। इसके अलावा, बुरे लोगों की एक स्पष्ट अभिव्यक्ति होती है और वह यह कि वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा नहीं करते—एक बार भी नहीं। अगर उन्हें सिर्फ एक शब्द ही कहना पड़े या एक उँगली ही उठानी पड़े तो भी वे उनकी रक्षा नहीं करेंगे, अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा या अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा से जुड़े मामलों की तो बात ही छोड़ो—ऐसे मामलों में तो वे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा और भी ज्यादा नहीं करेंगे। कुछ लोग इन स्पष्ट रूप से बुरे व्यक्तियों की असलियत नहीं देख सकते। मुझे बताओ, क्या ऐसे लोगों में काबिलियत होती है? बुरे लोगों में बुरा सार होता है; वे किसी को भी दबा देंगे। चाहे वह कोई भी हो, अगर व्यक्ति उनकी हैसियत या हितों को प्रभावित करता है तो वह उनके दमन का लक्ष्य बन जाता है। जिन लोगों में विवेक की कमी होती है, वे इन मामलों को नहीं समझ सकते। क्या विवेक की कमी वाले लोग भ्रमित नहीं होते? (हाँ, होते हैं।) वे यह तक नहीं जानते कि बुरे लोग उनका दमन करेंगे या नहीं—मुझे बताओ, ऐसे लोग किस हद तक भ्रमित होते हैं? क्या वे पूरी तरह से भ्रमित नहीं होते? (हाँ, होते हैं।) कुछ बुरे व्यक्तियों को बर्खास्त किए जाने पर कुछ लोग, जिनमें चीजों को पहचानने की क्षमता बिलकुल नहीं होती, उनके पक्ष में बोलने, उनका बचाव करने और उनके साथ हुए अन्याय के बारे में चिल्लाने के लिए आगे तक आ जाते हैं, सिर्फ इसलिए कि उन बुरे व्यक्तियों ने कई सालों तक परमेश्वर में विश्वास किया होता है, उनमें कुछ गुण होते हैं, वे वाक्पटु होते हैं, उनके पास युक्तियाँ होती हैं और वे बाहरी तौर पर चीजें त्याग देते हैं, खुद को खपाते और कष्ट सहते हैं। ये लोग इस बारे में बात नहीं करते कि इन बुरे व्यक्तियों ने कितनी बुराई की है। इसके बजाय, वे कहते हैं, “उन्होंने कई सालों तक परमेश्वर में विश्वास किया है, एकनिष्ठ भक्ति के साथ परमेश्वर का अनुसरण किया है और बहुत कष्ट झेला है। वे बड़े लाल अजगर द्वारा गिरफ्तार भी किए गए और उन्होंने यातना सही और जेल में समय बिताया और फलाने भाई या बहन की मदद भी की।” वे सिर्फ इन चीजों को देखते हैं और उन व्यक्तियों के बुरे कर्मों को अनदेखा करते हैं, यह जिक्र नहीं करते कि उन्होंने कितनी बुराई की है। क्या वे बहुत भ्रमित नहीं हैं? (हाँ, हैं।) जो लोग पूरी तरह से भ्रमित हैं, उनका उद्धार नहीं हो सकता, वे लाइलाज हैं। जिन लोगों में चीजों को पहचानने की क्षमता नहीं होती, वे बिना काबिलियत वाले लोग होते हैं—उनमें कोई क्षमता नहीं होती। ऐसे लोग नहीं जानते और नहीं पहचान सकते कि कोई चीज सही है या गलत, या कोई व्यक्ति सकारात्मक है या नकारात्मक। वे व्यक्ति का सार और प्रकृति स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते, या उसके व्यवहार, अभिव्यक्तियों, भ्रष्टता के प्रकाशनों और उसके बुरे कामों के कई तथ्यों के जरिये उस व्यक्ति के लक्षणों का सारांश नहीं निकाल सकते। अगर वह व्यक्ति अभी भी कलीसिया में है तो ये लोग उसके साथ भाई या बहन की तरह व्यवहार करेंगे और उसके साथ हार्दिक प्रेम से पेश आएँगे। उन्हें किसी के बारे में कोई समझ नहीं होती और वे किसी के साथ सिद्धांतों के अनुसार व्यवहार नहीं कर सकते। ऐसे लोगों में चीजों को पहचानने की क्षमता नहीं होती। वे नहीं जानते और नहीं पहचान सकते कि विभिन्न मामले न्यायसंगत हैं या दुष्टतापूर्ण, उनका लोगों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है या नकारात्मक, और उन्हें सही मानकर स्वीकारना चाहिए या गलत मानकर पहचानना, अस्वीकार करना और उनका विरोध करना चाहिए। जब तुम उन्हें किसी मामले को समझाने के लिए उदाहरण देते हो तो वे जानते हैं कि ऐसे मामले अच्छे नहीं हैं, कि वे सत्य सिद्धांतों के अनुरूप नहीं हैं और वे परमेश्वर के घर में लागू नहीं होते। लेकिन अगली बार जब ऐसा ही कोई मामला उठता है तो वे फिर भी नहीं जानते कि उसे कैसे लिया जाए और वे सिद्धांतों को लागू नहीं कर सकते—वे तभी समझते हैं जब तुम उन्हें दूसरा उदाहरण देते हो। तुम्हें उन्हें एक-एक करके मामले समझाने पड़ते हैं और इसके लिए बच्चों को सिखाने का तरीका इस्तेमाल करना पड़ता है, ताकि वे समझ सकें। यह चीजों को पहचानने की क्षमता न होना है। चाहे कोई व्यक्ति हो या कोई वस्तु, वे नहीं जानते कि यह न्यायपूर्ण है या दुष्टतापूर्ण, सही है या गलत, सकारात्मक चीज है या नकारात्मक, यह सत्य और मानवता की जरूरतों के अनुरूप है या नहीं, न ही यह कि परमेश्वर के विश्वासियों को इसे कैसे देखना चाहिए—वे इनमें से कुछ नहीं जानते। यह चीजों को पहचानने की क्षमता न होना है। तो व्यक्ति की चीजों को पहचानने की क्षमता के स्तर का आकलन करने का क्या आधार है? यह इस पर आधारित है कि विभिन्न चीजों की विशेषताओं के बारे में तुम्हारी परिभाषाएँ सटीक हैं या नहीं। अगर तुम्हारी परिभाषाएँ सटीक हैं तो तुममें चीजों को पहचानने की क्षमता है। अगर विभिन्न चीजों के लक्षणों की तुम्हारी परिभाषाओं की सटीकता पचास प्रतिशत से ज्यादा है तो तुम्हारी चीजों को पहचानने की क्षमता औसत या औसत से ऊपर है। अगर वह पचास प्रतिशत तक नहीं पहुँचती तो तुम्हारी चीजों को पहचानने की क्षमता खराब है। अगर सटीकता एक प्रतिशत भी नहीं है तो तुममें चीजों को पहचानने की क्षमता नहीं है और तुम एक ऐसे व्यक्ति हो जिसमें कोई काबिलियत नहीं है। व्यक्ति में चीजों को पहचानने की क्षमता है या नहीं, यह इसी तरह जाना जाता है। मैं इस क्षमता के बारे में और कोई उदाहरण नहीं दूँगा। तुम लोग खुद इस बारे में संगति कर सकते हो, मैं यह विषय तुम लोगों पर छोड़ता हूँ।
इसके बाद हम आठवीं क्षमता, चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता पर चर्चा करेंगे। चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता यह है कि व्यक्ति किसी मामले को कैसे हल करता है—चाहे वह मामला पहले ही घटित हो चुका हो या अचानक घटित हुआ हो, या उस मामले के विभिन्न कारक बदल गए हों, व्यक्ति उस मामले को कैसे हल करता है, यह उसकी चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता है। तो चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता मुख्य रूप से किस चीज को संदर्भित करती है? यह किसी मामले को पहचानने, उसका आकलन करने, उसे देखने और सँभालने की तुम्हारी क्षमता को संदर्भित करती है। जब तुम्हारा सामना किसी व्यक्ति, घटना या चीज से होता है तो उसकी प्रकृति क्या होती है? क्या वह सकारात्मक चीज है या नकारात्मक चीज? ऐसी चीज का सामना कैसे करना चाहिए और उसे कैसे सँभालना चाहिए? जब वह अचानक घटित होती है तो क्या सबक सीखना चाहिए? परमेश्वर के अच्छे इरादे क्या हैं? अगर ऐसी चीज कलीसिया के काम को नुकसान पहुँचा सकती है तो उसे उस तरीके से कैसे सँभालना चाहिए जो सिद्धांतों के अनुरूप हो और हुई क्षति के नतीजे ठीक करे, ताकि वह कलीसिया के काम को और नुकसान न पहुँचाए, साथ ही नकारात्मक प्रभाव बढ़ने से रोके? अगर किसी व्यक्ति, घटना या चीज का सामना करने पर तुम—स्वयं द्वारा समझे गए विवेक के सिद्धांतों और स्वयं द्वारा जाने गए सत्य सिद्धांतों के आधार पर—ऐसे मामलों के सार और मूल कारण का सही-सही आकलन कर सकते हो और उन्हें सँभालने के सिद्धांतों और योजना का पता लगा सकते हो तो तुम ऐसे व्यक्ति हो जिसमें चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता है, जिसका यह अर्थ भी है कि तुम अच्छी काबिलियत वाले व्यक्ति हो। उदाहरण के लिए, जब कोई मामला अचानक तुम्हारे सामने घटित हो तो तुम्हें उसका सामना कैसे करना चाहिए? पहले, तुम्हें स्पष्ट रूप से यह देखना चाहिए कि वह किस दिशा में विकसित हो सकता है, अगर वह विकसित होता रहा तो इसके क्या परिणाम होंगे, उसके होने का मूल कारण कहाँ निहित है, उसका सार क्या है—तुम्हें इन तमाम चीजों को समझने और स्पष्ट रूप से देखने में सक्षम होना चाहिए। विवेक के जरिये मामले को चित्रित करो और फिर तुरंत उसे सँभालने के लिए एक योजना खोजो। मामले को कैसे सँभालना चाहिए, सरगना कौन है, अनुयायी कौन हैं, मुख्य रूप से जिम्मेदार पक्ष कौन है, मुख्य जिम्मेदारी किसे उठानी चाहिए, जिम्मेदार पक्षों को कैसे सँभालना है—तुम्हें इन सभी मुद्दों का पता लगाना चाहिए। इसके अलावा, समस्याओं से सँभालते समय तुम्हें नुकसान कम करने चाहिए और कर्मियों को पुनर्व्यवस्थित और समायोजित करना चाहिए। सिर्फ इसी तरह से त्रुटियाँ तुरंत ठीक की जा सकती हैं, समस्याएँ पूरी तरह से हल की जा सकती हैं और स्थिति सुधारी जा सकती है, जिससे चीजें सही, लाभकारी दिशा में विकसित हो सकें। संक्षेप में, अगर तुम इस मामले में शामिल तमाम विभिन्न कारकों पर विचार कर सकते हो और फिर उसे सँभालने के लिए सही और सटीक सिद्धांतों के साथ उसे हल करने का सही तरीका अपना सकते हो, तो इसे चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता होना कहा जाता है और इसका मतलब है कि तुम अच्छी काबिलियत वाले व्यक्ति हो। बेशक, मामले को संबोधित करने का यह तरीका और इसे सँभालने के सिद्धांत वे निष्कर्ष और परिभाषाएँ हो सकती हैं जिन पर तुम उन लोगों के साथ संपर्क और संगति के जरिये पहुँचते हो जो स्थिति के बारे में जानते हैं या हर व्यक्ति के साथ सहयोग और चर्चा के जरिये पहुँचते हो। अगर तुम वास्तविक स्थिति के क्रम को देखकर और फिर ऐसे मामले को समझने वाले भाई-बहनों से सुझाव माँगकर अंततः एक परिभाषा पर आ सकते हो, एक निष्कर्ष निकाल सकते हो, एक समाधान निर्धारित कर सकते हो और समस्या ठीक से सँभाल सकते हो, कर्मियों का समायोजन पूरा कर सकते हो, इस मामले से होने वाले नुकसान की भरपाई कर सकते हो और फिर कलीसिया के काम को समायोजित कर सकते हो ताकि वह अब हानिकारक दिशा में विकसित न हो, तो इसे चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता होना कहा जाता है। अगर तुम इस स्तर तक मामले सँभाल सकते हो तो तुम्हें अच्छी काबिलियत वाला माना जा सकता है। बेशक, अच्छी काबिलियत वाला होने का मतलब यह नहीं कि व्यक्ति किसी मामले का सामना करने पर तुरंत उसे समझ सकता है, तुरंत निर्णय ले सकता है और उसे व्यापक और उपयुक्त तरीके से सँभाल सकता है—यह जरूरी नहीं है। लोगों को समस्याएँ सँभालने के लिए एक प्रक्रिया की आवश्यकता होती है; चीजों का सार देखने के लिए उन्हें मामले के विभिन्न पहलू समझना आवश्यक है। लोग मांस और खून से बने हैं, वे मानवता के दायरे में काम करते हैं और उन्हें एक प्रक्रिया की आवश्यकता होती है। यह परमेश्वर के आत्मा के कार्य करने से भिन्न है—परमेश्वर का आत्मा पूरी पृथ्वी की व्यापक जाँच करता है; परमेश्वर हमेशा सभी चीजों और सभी समस्याओं का सार और मूल कारण देख सकता है। जब लोग मामलों के पीछे छिपी चीजें देखने में असमर्थ होते हैं तो वे आसानी से धोखा खा जाते हैं और अंधे हो जाते हैं। ठीक इसी वजह से, लोगों को मामलों के पीछे की वास्तविक स्थिति गहराई से देखने की जरूरत होती है। मामले के पीछे छिपी वास्तविक स्थितियाँ समझने के बाद अगर तुम तुरंत समस्याएँ सँभाल सकते हो, भटकाव दूर कर सकते हो, जो लोग सीधे तौर पर प्रभारी हैं उन्हें और कर्मियों को उपयुक्त रूप से समायोजित कर सकते हो और कार्य के सामान्य संचालन की गारंटी दे सकते हो तो यह साबित करता है कि तुममें चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता है। खास तौर से अचानक घटनाओं का सामना करने पर अगर तुम विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों को सिद्धांतों के अनुसार सँभाल सकते हो तो यह साबित करता है कि तुम अच्छी काबिलियत वाले व्यक्ति हो। चीजों पर प्रतिक्रिया करने की औसत क्षमता वाले लोग नियमित और सामान्य परिस्थितियों का सामना करने पर प्रक्रियाओं का पालन करके और नियमित तरीके से कुछ चीजें कर सकते हैं, लेकिन जो नतीजे वे प्राप्त करते हैं वे औसत होते हैं—वे किसी सफलता तक नहीं पहुँचते या महत्वपूर्ण प्रगति नहीं करते। जैसे ही वे विशेष परिस्थितियों या आकस्मिक घटनाओं का सामना करते हैं, वे हक्के-बक्के रह जाते हैं और उन्हें सँभाल नहीं पाते। उदाहरण के लिए, जब कुछ लोग सुसमाचार का प्रचार करते हैं तो वे सामान्य परिस्थितियों में हर महीने कुछ लोगों को प्राप्त कर सकते हैं। यह औसत काबिलियत दर्शाता है और उनके सुसमाचार-प्रचार के परिणाम भी औसत होते हैं, विशेष रूप से अच्छे नहीं होते। अगर कलीसिया में अचानक मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को गुमराह करने की कोई घटना सामने आती है तो ये सुसमाचार-कार्यकर्ता भ्रमित हो जाते हैं और नहीं जानते कि क्या किया जाए। सुसमाचार का कार्य रुक जाता है और वे नहीं जानते कि उन्हें प्रचार जारी रखना चाहिए या कार्य-व्यवस्थाओं की प्रतीक्षा करनी चाहिए। वे सुसमाचार-प्रचार के कार्य के सिद्धांत खोजना नहीं जानते। परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं में अक्सर कहा जाता है, “सुसमाचार का कार्य किसी भी समय या किसी भी परिस्थिति में रुकना नहीं चाहिए।” फिर भी, मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को गुमराह करने की घटना का सामना करने भर से वे सुसमाचार का कार्य बंद कर देते हैं। क्या वे अपना कर्तव्य निष्ठा से निभा रहे होते हैं? वे इस पर खरे नहीं उतरते। क्या वे परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होते हैं? वे इस पर भी खरे नहीं उतरते। जब वे मसीह-विरोधियों या नकली अगुआओं को लापरवाही से दुष्कर्म करते और विघ्न-बाधा पैदा करते देखते हैं तो भ्रमित हो जाते हैं। वे उन लोगों से पूछना नहीं जानते जो सत्य समझते हैं कि उन्हें इस मामले को कैसे सँभालना चाहिए जिसका वे सामना कर रहे हैं, और परमेश्वर के वचनों में अभ्यास के सिद्धांत और अभ्यास के मार्ग ढूँढ़ना तो वे बिल्कुल भी नहीं जानते। उनमें चीजों पर प्रतिक्रिया करने की यह क्षमता नहीं होती। कुछ कलीसिया-अगुआ जब किसी मसीह-विरोधी को लोगों को गुमराह करने के लिए भ्रांतियाँ फैलाते देखते हैं तो वे भ्रांतियों का खंडन करने के लिए सत्य पर संगति करना नहीं जानते। वे नहीं जानते कि क्या करें, लेकिन प्रार्थना करते रहते हैं, “हे परमेश्वर, कृपया शैतान को बाँधो, कृपया शैतान का मुँह बंद करो और उसे लोगों को गुमराह करने के लिए भ्रांतियाँ फैलाने से रोको। कृपया उन अज्ञानी और मूर्ख लोगों को बचाओ और उन्हें मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह होने से रोको। हे परमेश्वर, कृपया उन्हें वापस लाओ!” सिर्फ प्रार्थना करना और सत्य न खोजना—क्या इससे समस्या हल हो सकती है? अगर लोग सहयोग नहीं करते और अपना कर्तव्य नहीं निभाते तो बेकार है। ऐसी कई चीजें हैं जो लोगों को करनी चाहिए। पहले, उन्हें यह देखना चाहिए कि इस मसीह-विरोधी की पृष्ठभूमि कैसी है, वह कौन-सी विशेषताएँ प्रदर्शित करता है और लोगों को गुमराह करने के लिए वह किस चीज पर निर्भर करता है; उन्हें यह भी देखना चाहिए कि क्या गुमराह किए गए लोगों के बीच कोई अच्छी काबिलियत वाले ऐसे लोग हैं जो सत्य स्वीकार सकते हों, और जल्दी से उन्हें पुनः प्राप्त करना चाहिए। यह वह काम है जो पहले करना चाहिए। लेकिन ये कलीसिया-अगुआ यह नहीं जानते और वे इस तरह से काम करना भी नहीं जानते। वे बस भ्रमित हो जाते हैं, चिंता में अपने पैर पटकते हैं। कुछ बेकार लोग चिंता में रो भी पड़ते हैं। रोने का क्या फायदा? क्या रोने से गुमराह किए गए लोग पुनः प्राप्त किए जा सकते हैं? रोना काम करना नहीं है, न ही यह ये दर्शाता है कि तुम दायित्व उठा रहे हो। यह अक्षमता की अभिव्यक्ति है। काबिलियत वाले लोग जब ऐसे मामलों का सामना करते हैं तो पहले शांत होते हैं। प्रार्थना करने, खोजने, विश्लेषण और आकलन करने और फिर संगति करने के बाद वे अंततः निर्णय करते हैं। खराब काबिलियत वाले लोग जब मामलों का सामना करते हैं तो हक्के-बक्के रह जाते हैं : वे प्रार्थना करना और खोजना नहीं जानते, न ही वे संगति करने के लिए कुछ ऐसे लोगों को ढूँढ़ना जानते हैं जो सत्य समझते हों; वे बस निष्क्रिय रूप से प्रतीक्षा करते हैं। इससे मामलों में सबसे ज्यादा देरी होती है। तुम्हारे पास कोई समाधान नहीं है, लेकिन शायद दूसरों के पास हो—तो क्यों न मदद लेने के लिए दूसरों को ढूँढ़ा जाए? बुद्धिमान लोग प्रतीक्षा करते समय भी अपना कर्तव्य और जिम्मेदारी निभाना नहीं भूलते। यह कर्तव्य और जिम्मेदारी निभाना सक्रिय होता है, निष्क्रिय नहीं। यह परमेश्वर द्वारा आदेश जारी करने या स्थिति बदलने के लिए परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से कार्य करने की प्रतीक्षा करना नहीं है। इसके बजाय, यह प्रतीक्षा-अवधि के दौरान उन लोगों को पुनः प्राप्त करने का हर संभव प्रयास करना है, जिन्हें पुनः प्राप्त किया जा सकता है। जहाँ तक उन लोगों का सवाल है जिन्हें पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता—जैसे कि भ्रमित मूर्ख, बुरी आत्माओं से ग्रस्त लोग और छद्म-विश्वासी जो सिर्फ समूह में शामिल होकर खाने का कूपन पाने के लिए परमेश्वर में विश्वास करते हैं—उनसे परेशान नहीं होना चाहिए। जो लोग अंधे नहीं हुए हैं, उनके लिए जल्दी से किसी ऐसे व्यक्ति की व्यवस्था करनी चाहिए जो उनके साथ सत्य पर संगति कर मसीह-विरोधी को पहचानने के बारे में बात करे। क्या यह स्थिति सँभालने की योजना नहीं है? यह एक प्रतिक्रिया-उपाय है। खराब काबिलियत वाले लोगों के पास ऐसे प्रतिक्रिया-उपाय नहीं होते; वे सिर्फ रोना और शिकायत करना जानते हैं। यह चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता न होना है। अगर, साधारण परिस्थितियों में, व्यक्ति सामान्य रूप से काम करने में सक्षम है लेकिन विशेष परिस्थितियों का सामना करने पर वह भौचक्का और हक्का-बक्का रह जाता है तो ऐसे व्यक्ति की चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता ज्यादा से ज्यादा औसत होती है। अगर व्यक्ति साधारण परिस्थितियाँ भी नहीं सँभाल सकता तो ऐसे व्यक्ति में चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता नहीं होती। उदाहरण के लिए, अगर उसे कलीसिया के अगुआ के चुनाव का आयोजन करने के लिए किसी कलीसिया में भेजा जाता है तो वह नहीं जानता कि किस तरह के व्यक्ति को चुनना है या लोगों को एक-साथ इकट्ठा करके चुनाव का आयोजन कैसे करना है। यहाँ तक कि वह चुनाव की बुनियादी प्रक्रियाएँ भी नहीं समझता। इसके अलावा, कलीसिया में कुछ ऐसे लोग होते हैं जिनमें अत्यधिक भ्रष्ट स्वभाव होते हैं—जो दबंगों, बदमाशों और लफंगों की श्रेणी के होते हैं—और ये लोग मौके का फायदा उठाकर चुनाव बाधित कर देते हैं। ऐसी स्थिति में, जिन लोगों में चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता नहीं होती, वे उसे सँभालने में और भी ज्यादा अक्षम होते हैं, वे बस बंदी बनाए जाकर आत्मसमर्पण कर देते हैं। अंत में वे भाई-बहनों से सिर्फ यह कह पाते हैं, “तुम लोग खुद चुन लो। तुम जिसे भी चुनोगे, हम उसे ही मान लेंगे।” ये किस तरह के प्राणी हैं? क्या ये निकम्मे नहीं हैं? यह चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता न होना है। जिन लोगों में चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता नहीं होती, उनमें काम करने की क्षमता भी नहीं होती। चाहे सामान्य परिस्थितियों में हो या विशेष परिस्थितियों में, जब कुछ होता है तो वे टूट जाते हैं और पीछे हट जाते हैं; जब कुछ होता है तो वे हक्के-बक्के रह जाते हैं और रोने लगते हैं। जब कुछ नहीं होता तो वे कुछ शब्द और धर्मसिद्धांत बोल सकते हैं, लेकिन जब कुछ होता है और उनसे समस्या सँभालने के लिए कहा जाता है तो वे ऐसा नहीं कर पाते। उदाहरण के लिए, जब कुछ व्यक्ति अपना कर्तव्य निभाने में लापरवाह होते हैं तो चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता न रखने वाले लोग यह कहते हुए उनके साथ इस पर सिर्फ चर्चा करना ही जानते हैं : “कृपया लापरवाही न करो—कृपया अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाओ!” क्या इससे उन व्यक्तियों की समस्या हल हो सकती है? उन्हें उन व्यक्तियों के साथ लापरवाह होने की समस्या के बारे में संगति करनी चाहिए। अगर वे व्यक्ति सत्य नहीं समझते और अपनी समस्या नहीं पहचान सकते तो उन्हें उनके साथ सत्य पर संगति करनी चाहिए। अगर वे व्यक्ति यह जानते हुए भी कि यह गलत है, इस तरह से काम करते हैं तो उन्हें उनका विश्लेषण और काट-छाँट करनी चाहिए। अगर यह किसी अन्य समस्या के कारण हो तो उन्हें उस समस्या के आधार पर संगति करनी चाहिए। उन्हें उत्पन्न हुई समस्या के आधार पर उचित कार्रवाई निर्धारित करनी चाहिए और फिर उसके अनुसार कार्य करना चाहिए। अगर तुम ऐसा नहीं कर सकते तो तुममें चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता नहीं है। क्या तुम समझते हो? (हाँ।) किसी मामले का सामना करने पर अगर तुम्हारे पास कोई समाधान नहीं होता, उसे हल करने का कोई तरीका नहीं होता और उसे सँभालने के लिए कोई सिद्धांत नहीं होते, तो तुममें चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता नहीं है। क्या ऐसे लोगों में चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता सबसे खराब नहीं होती? (हाँ, होती है।)
चीजों पर प्रतिक्रिया करने की सर्वोत्तम क्षमता वाले लोग वे होते हैं जो कुछ विशेष मामलों या आकस्मिक स्थितियों का सामना करने पर तुरंत उनका आकलन और पहचान कर सकते हैं और और फिर उन्हें सँभालने के लिए अपेक्षाकृत उपयुक्त योजनाएँ बना सकते हैं। चीजों पर प्रतिक्रिया करने की औसत क्षमता वाले लोग सामान्य, नियमित मामलों का सामना करने पर उन्हें सँभाल सकते हैं। वे स्थिति बनाए रखने और उसे प्रबंधित करने के लिए प्रक्रियाओं का पालन करके काम कर सकते हैं या कर्मियों को समायोजित कर बदल सकते हैं—वे ऐसे काम करने में बिल्कुल सही होते हैं। लेकिन जब वे आकस्मिक स्थितियों का सामना करते हैं तो वे उन्हें नहीं सँभाल पाते। अगर उन्हें सिद्धांत बता भी दिए जाएँ तो भी वे उन्हें लागू नहीं कर सकते; अगर उन्हें अधिकार दे दिया जाए और मामला सँभालने के लिए कहा जाए तो भी वे ऐसा करने में असमर्थ रहते हैं। यह चीजों पर प्रतिक्रिया करने की औसत क्षमता होना है। चीजों पर प्रतिक्रिया करने की खराब क्षमता वाले लोग सामान्य मामले भी अच्छी तरह से नहीं सँभालते। वे सिर्फ धर्मसिद्धांत बोलना और नियमों से चिपके रहना ही जानते हैं, और अंत में, समस्या का मूल कारण बिल्कुल भी हल नहीं होता। विघ्न पैदा करने और लोगों को गुमराह करने वाला एक मसीह-विरोधी ही उनसे सुसमाचार का प्रचार करना छुड़वाने के लिए पर्याप्त होता है; बकवास करने वाला एक नकली अगुआ भी उनसे सुसमाचार का काम बंद करवाने के लिए पर्याप्त होता है। क्या ये वे लोग हैं जो परमेश्वर की इच्छा का पालन करते हैं? वे इस पर खरे नहीं उतरते। ऐसे लोगों की चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता बहुत खराब होती है। चाहे जो भी स्थिति उत्पन्न हो, चीजों पर प्रतिक्रिया करने की खराब क्षमता वाले लोग उसे सँभाल नहीं पाते। उदाहरण के लिए, अगर किसी कमरे में आग लग जाती है तो वे घबरा जाते हैं और जल्दी से आग बुझाने वाला यंत्र खोजते हैं। आग बुझाने वाला यंत्र खोजने के बाद वे नहीं जानते कि उसका इस्तेमाल कैसे करना है और उन्हें निर्देश देखने पड़ते हैं। नतीजतन, आग और ज्यादा फैल जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वे नहीं जानते कि आग बुझाने वाले यंत्र का इस्तेमाल कैसे करना है और इस तरह से चीजों में देरी कर देते हैं, और यह उनमें चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता न होने के कारण भी होता है। वे आग लगने जैसी जरूरी स्थिति सँभालने तक में असमर्थ रहते हैं; यह चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता न होना है। एक और उदाहरण देता हूँ, अगर खाना खाते समय किसी बच्चे का दम घुट जाता है और वह साँस नहीं ले पाता और उसकी आँखें ऊपर की ओर चढ़ जाती हैं तो ये लोग घबरा जाते हैं। वे नहीं जानते कि बच्चे को अस्पताल ले जाना है या नहीं और यह भी नहीं जानते कि बच्चे को पानी पिलाना है या नहीं। वे इतने चिंतित हो जाते हैं कि उन्हें पसीना आ जाता है और उनका चेहरा लाल हो जाता है, लेकिन वे नहीं जानते कि क्या करना है। थोड़ी देर बाद बच्चा कुछ बार खाँसता है और आखिरकार फिर से साँस ले पाता है। वे बहुत देर तक घबराते रहे लेकिन समस्या हल करने का कोई उपाय उनके पास नहीं था। सौभाग्य से, बच्चा भाग्यशाली था; वरना वह उनकी देखरेख में मर ही जाता। खराब काबिलियत वाले लोगों में कोई क्षमता नहीं होती और वे कुछ भी अच्छी तरह से नहीं कर सकते। जो थोड़े-बहुत धर्मसिद्धांत वे समझते हैं, वे विनियमों और नारों से ज्यादा कुछ नहीं होते। जब सामान्य परिस्थितियों और विशेष परिस्थितियों दोनों की बात आती है तो वे उन्हें सँभालने या हल करने में समान रूप से अक्षम होते हैं। इसलिए, चीजों पर प्रतिक्रिया करने की उनकी क्षमता की दृष्टि से, ऐसे लोग और भी ज्यादा उससे रहित होते हैं—उनके पास कोई क्षमता नहीं होती। वे जिस भी स्थिति का सामना करते हैं, उस पर प्रतिक्रिया नहीं कर सकते या उसे सँभाल नहीं सकते—वे इन मामलों को नहीं समझ सकते। उन्हें लगता है कि कुछ शब्द और धर्मसिद्धांत बोल पाना और कुछ नारे लगा पाना ही काफी है, कि इसका मतलब है कि उनके पास पूँजी है और वे अपने जीवन में संतुष्ट हैं। वास्तव में, जब कुछ होता है तो जो धर्मसिद्धांत वे जानते हैं, वे किसी काम नहीं आते। फिर भी, वे यह महसूस करने में विफल रहते हैं कि यह खराब काबिलियत दर्शाता है—उनकी काबिलियत बहुत खराब होती है, लेकिन वे इससे अनभिज्ञ रहते हैं। क्या यह बेहद खराब काबिलियत नहीं है? (हाँ, है।) क्या ऐसे लोग मूर्ख नहीं हैं? (हाँ, हैं।) मूर्ख लोग ताश की पूरी गड्डी में कुछ पत्ते कम होते हैं। “ताश की पूरी गड्डी में कुछ पत्ते कम होने” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि चाहे वे कितने भी धर्मसिद्धांत समझते हों या कितने ही नियमों का पालन करते हों, जब कुछ घटित होता है तो इनमें से कोई भी विनियम या धर्मसिद्धांत वास्तविक समस्या का समाधान नहीं कर सकता। फिर भी वे इसे समझ नहीं पाते और सोचते हैं, “ये धर्मसिद्धांत और विनियम बेअसर क्यों हैं?” अगर वे अपना दिमाग खपाएँ तो भी इसका कोई फायदा नहीं होता—चाहे वे कैसे भी विचार करें, फिर भी वे यह नहीं समझ पाते कि समस्या कैसे सँभालें या कैसे हल करें। कुछ लोग मसीह-विरोधी घटनाओं को सँभालते समय पहले मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किए गए लोगों को नहीं बचाते, न ही वे मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किए जाने के कारण नकारात्मक हुए और सभाओं में आने के लिए अनिच्छुक लोगों का समर्थन करते हैं। वे पहले क्या करते हैं? वे इस बारे में बात करने के लिए बड़ी सभाएँ आयोजित करते हैं कि मसीह-विरोधियों की क्या-क्या अभिव्यक्तियाँ होती हैं, किस तरह के लोग मसीह-विरोधी होते हैं, मसीह-विरोधियों और मसीह-विरोधियों के स्वभाव वाले लोगों के बीच क्या अंतर होता है, मसीह-विरोधियों को ठीक से कैसे पहचाना जाए, मसीह-विरोधियों के स्वभाव वाले लोगों को ठीक से कैसे पहचाना जाए—जब तक वे इन सब पर संगति समाप्त करते हैं, तब तक मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किए गए कुछ लोग बहुत पहले ही कलीसिया छोड़ चुके होते हैं और कुछ जो नकारात्मक और कमजोर होते हैं वे अब सभाओं में नहीं आते। उन्होंने इन लोगों को बचाने का सबसे अच्छा समय गवाँ दिया है, जिससे उन्हें वाकई बहुत नुकसान हुआ है! संक्षेप में, खराब काबिलियत वाले लोगों में चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता के मामले में भी एक बड़ा दोष होता है—वे इससे पूरी तरह रहित होते हैं। यह मत देखो कि व्यक्ति सामान्य परिस्थितियों में कितना वाक्पटु है या वह कितनी अच्छी तरह शब्द और धर्मसिद्धांत बोल सकता है और धर्मशास्त्र के बारे में बात कर सकता है—बस यह देखो कि वास्तविक परिस्थितियों का सामना करने पर उसमें समस्याएँ सँभालने की क्षमता है या नहीं; खासकर जब आकस्मिक घटनाएँ होती हैं तो देखो कि क्या उसमें आकलन करने की क्षमता और चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता है, क्या उसके पास समस्याएँ सँभालने और हल करने की योजनाएँ हैं। अगर हैं तो इससे साबित होता है कि वह ऐसा व्यक्ति है जिसकी अपनी राय होती है और जो जानता है कि चीजों के बारे में कैसे सोचना है। लेकिन अगर उसमें चीजों को पहचानने की क्षमता और आकलन करने की क्षमता नहीं है और जब कुछ होता है तो वह घबरा जाता है और चिंतित हो जाता है और सिर्फ बड़े-बड़े धर्मसिद्धांत बोलने और नारे लगाने में सक्षम होता है तो यह व्यक्ति समस्याएँ हल नहीं कर सकता और बेकार है। चाहे किसी और के पास कितनी भी कठिनाइयाँ, समस्याएँ या खामियाँ हों, यह व्यक्ति उन्हें बताने और हल करने के लिए सिद्धांतों का वही समुच्चय इस्तेमाल करता है और इस तरह से उनके साथ संगति करता रहता है, लेकिन कभी समस्याएँ हल नहीं कर पाता—यह पूरी तरह से चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता न होना है। समस्याएँ सँभालने की क्षमता न होना वास्तव में चीजों पर प्रतिक्रिया करने की अक्षमता है। जिन लोगों में चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता नहीं होती, वे काबिलियत से रहित होते हैं। आम शब्दों में, वे मूर्ख, बेवकूफ और मानसिक रूप से कमजोर होते हैं। चाहे वे कितने भी धर्मसिद्धांत बोल पाएँ, यह बेकार है—उनका उपयोग नहीं किया जा सकता। आठवीं क्षमता, चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता पर हमारी संगति यहीं समाप्त होती है।
आओ अब नौवीं क्षमता, निर्णय करने की क्षमता पर नजर डालें। निर्णय करने की क्षमता व्यक्ति की काबिलियत का बहुत परीक्षण करती है; औसत व्यक्ति में यह नहीं होती। जिन लोगों में सच में काबिलियत और निर्णय करने क्षमता होती है, वे ही निर्णय करने के स्तर पर होते हैं। तो निर्णय करने की क्षमता मुख्य रूप से किसे संदर्भित करती है? यह इसे संदर्भित करती है कि जब विभिन्न लोग, घटनाएँ और चीजें सामने आती हैं और ज्यादातर लोग उन्हें नहीं समझ पाते तो कैसे कुछ लोग परमेश्वर के वचनों और सत्य के आधार पर विभिन्न प्रकार की समस्याओं को पहचान और सँभाल सकते हैं और विभिन्न प्रकार के लोगों को सँभाल सकते हैं। समस्याएँ सँभालने की इस क्षमता को निर्णय करने की क्षमता कहते हैं। जिन लोगों में चीजों को सँभालने की यह क्षमता होती है, उनमें निर्णय करने की क्षमता होती है; जिन लोगों में चीजों को सँभालने की यह क्षमता नहीं होती, उनमें निर्णय करने की क्षमता नहीं होती। निर्णय करने की क्षमता में क्या-क्या शामिल है? इसमें लोगों की बोध क्षमता, आकलन करने की क्षमता, चीजों को पहचानने की क्षमता और चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता शामिल होती है। इन्हें सामूहिक रूप से निर्णय करने की क्षमता कहते हैं। जिन लोगों में निर्णय करने की क्षमता होती है, वे समस्याओं के सार का आकलन और समस्याओं के लक्षणों की पहचान दोनों कर सकते हैं। बेशक, इससे भी महत्वपूर्ण चीज यह है कि वे विभिन्न समस्याएँ सँभालने के सिद्धांत और दिशा समझ सकते हैं। जो लोग ये काम कर सकते हैं, सिर्फ वे ही ऐसे लोग होते हैं जिनमें निर्णय करने की क्षमता होती है। उदाहरण के लिए, मान लो कि हर कोई एक के बाद एक कई घटनाओं, तथ्यों और साथ ही मौजूदा कारकों, परिस्थितियों, स्थितियों आदि के बारे में बात कर रहा है। जिन लोगों के पास निर्णय करने की क्षमता होती है, वे उपर्युक्त विभिन्न कारकों और स्थितियों के आधार पर अंततः यह तय करते हैं कि वास्तव में कैसे कार्य करना है, उस कार्य के साधन और दिशा क्या होनी चाहिए, सर्वोत्तम प्राप्य स्तर क्या है और न्यूनतम स्वीकार्य स्तर क्या है—उनके पास एक आधार-रेखा होती है। फिर, वे जो सत्य सिद्धांत समझते हैं, उनके आधार पर वे समस्याएँ सँभालते हैं। जिनके पास यह क्षमता होती है, वे निर्णय करने की क्षमता वाले लोग होते हैं और ऐसे लोग सबसे अच्छी काबिलियत वाले लोग होते हैं। चाहे वे किसी भी तरह के पेशेवर कौशल का सामना कर रहे हों या किसी भी तरह की समस्या सँभाल रहे हों, और चाहे खोजी गई समस्या एकल-आयामी हो या बहु-आयामी, सरल हो या जटिल, वे समस्या के सार का आकलन करने के लिए तमाम पहलुओं से आने वाली विभिन्न सूचनाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं, फिर समस्या के मूल कारण का विश्लेषण कर सकते हैं और अंत में समस्या और मौजूदा स्थितियों के आधार पर निर्णय ले सकते हैं कि कैसे कार्य करना है। यह निर्णय मुख्य रूप से इस आधार पर किया जाता है कि मौजूदा स्थितियों में क्या हासिल किया जा सकता है, और जो कार्य-पथ वे तय करते हैं, वह सर्वोत्तम समाधान होता है। जो लोग इस तरह से समस्याएँ सँभाल सकते हैं, वे निर्णय करने की क्षमता वाले लोग होते हैं। ऐसी निर्णय करने की क्षमता वाले लोग बहुत अच्छी काबिलियत वाले होते हैं। ऐसे लोग ही अगुआ बनने और निर्णय करने वाले समूह में कर्तव्य निभाने के लिए उपयुक्त होते हैं। खराब काबिलियत वाले या औसत काबिलियत वाले लोग किसी तरह की समस्या का सामना करने पर खुद को मामले तक ही सीमित रख सकते हैं और कुछ सतही शब्द कह सकते हैं और वे समस्या हल करने में पूरी तरह से असमर्थ होते हैं। अगर वे दूसरों से सलाह लेकर समस्या पर गौर करते भी हैं, तो भी वे अंततः किसी परिभाषा पर नहीं पहुँच सकते और नहीं जानते कि कैसे कार्य करना है। यह निर्णय करने की क्षमता न होना है। चाहे वर्तमान स्थिति कितनी भी जटिल क्यों न हो या वर्तमान में जिस समस्या को सँभालने की जरूरत है वह कितनी भी कठिन क्यों न हो और ऐसा करने में कितनी भी बड़ी बाधा क्यों न आए, निर्णय करने की क्षमता वाले लोग उसे सिद्धांतों के अनुसार ठीक से सँभाल सकते हैं और उनका उसे सँभालना अपेक्षाकृत उपयुक्त और विश्वसनीय होता है। ऐसे लोग वे होते हैं जिनमें निर्णय करने की क्षमता होती है। निर्णय करने की औसत क्षमता वाले लोग साधारण परिस्थितियों और कलीसिया में कुछ सामान्य घटनाओं का सामना करने पर उन्हें सँभाल सकते हैं। लेकिन अगर वे कुछ विशेष लोगों, घटनाओं और चीजों का सामना करते हैं तो वे भ्रमित हो जाते हैं, उन्हें पता नहीं होता कि उनका सामना कैसे करें या उन्हें कैसे सँभालें। बहुत सोच-विचार के बाद भी वे स्पष्ट निर्णय नहीं ले पाते या किसी निर्णय पर नहीं पहुँच पाते। निर्णय करने की क्षमता वाले लोग समस्या के मूल को लक्षित करने वाले सत्य सिद्धांत खोजना जानते हैं। निर्णय करने की क्षमता से रहित लोग नहीं जानते कि समस्या का मूल कहाँ है, कैसे खोजना है या क्या खोजना है। इनके बीच यही अंतर है। अगर खोज के जरिये कोई यह जान पाता है कि क्या करना है, तो यह दर्शाता है कि उसकी काबिलियत औसत है। जहाँ तक खराब काबिलियत वाले लोगों का संबंध है, अगर वे खोज के जरिये कुछ सत्य सिद्धांत समझ भी लें और उस समय महसूस करें कि वे जानते हैं कि मामले को कैसे सँभालना है, तो भी वे उसे सँभालने का वक्त आने पर ऐसा नहीं कर पाते। वे हैरान हो जाते हैं : “मैं वे सत्य सिद्धांत लागू क्यों नहीं कर सकता जिन्हें मैंने अभी समझा है? मैं क्या चूक कर रहा हूँ?” एक बार फिर वे भ्रमित महसूस करते हैं, और अंत में, वे अब भी समस्या का समाधान नहीं कर पाते। यह निर्णय करने की क्षमता न होना है; यह खराब काबिलियत होना है। सबसे खराब काबिलियत वाले लोग बस वही करते हैं जो तुम उनसे करने के लिए कहते हो। अगर तुम उन्हें नहीं बताते कि क्या करना है तो वे नहीं जानते कि कैसे कार्य करना है। जब निर्णय करने के स्तर के लोग उन्हें कोई कार्य करने के लिए अधिकृत करते हैं और आदेश या निर्देश देते हैं तो वे उसे सिर्फ वैसे ही कर पाएँगे जैसा उन्हें करने के लिए कहा गया है। लेकिन जहाँ तक इस बात का संबंध है कि कार्य वास्तव में उस तरीके से क्यों किया जाना है, कार्य से क्या परिणाम प्राप्त होने अभिप्रेत हैं या अगर ऐसी अप्रत्याशित परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाएँ जो मूल परिदृश्य से भिन्न हों तो क्या करना है और उन्हें कैसे सँभालना है, तो वे इनमें से कोई भी चीज नहीं जानते और उन्हें पूछना पड़ता है और समस्या हल करने में दूसरों की मदद का इंतजार करना पड़ता है। यह निर्णय करने की क्षमता न होना है। ऐसे लोग रोबोट की तरह होते हैं—उन्हें सिर्फ दूसरों द्वारा चालाकी से प्रभावित और नियंत्रित किया जा सकता है और उनके पास स्वायत्तता नहीं होती। ऐसे व्यक्ति में निर्णय करने की क्षमता होने का सवाल ही नहीं उठता जिसमें काबिलियत नहीं होती है—वह निर्णय करने की क्षमता से बहुत अलग होता है, वह इस क्षमता तक नहीं पहुँचता। निर्णय करने की क्षमता को सिर्फ तीन स्तरों में विभाजित करने की जरूरत है : उच्च, मध्यम और निम्न। उच्च, मध्यम और निम्न अच्छे, औसत और खराब होने के समान हैं। जब ऐसे लोगों की बात आती है जिनमें कोई काबिलियत नहीं होती तो निर्णय करने की क्षमता के बारे में बात करना भी बेकार है; चाहे वे कुछ भी कर रहे हों, वे निर्णय नहीं ले सकते। उदाहरण के लिए, वे नहीं जानते कि जब पतझड़ का मौसम आता है और मौसम सुहाना हो जाता है तो वास्तव में क्या पहनना उपयुक्त है और जब सर्दी आती है और मौसम ठंडा हो जाता है तो क्या पहनना उपयुक्त है—उनमें यह सबसे बुनियादी सामान्य ज्ञान भी नहीं होता, इसलिए क्या उन्हें कलीसिया के काम से संबंधित प्रमुख मामलों में निर्णय करने के लिए कहना मजाक नहीं होगा? जिन लोगों में काबिलियत नहीं होती, उनमें निर्णय करने की क्षमता होने का सवाल ही नहीं उठता। निर्णय करने की क्षमता मुख्य रूप से उन लोगों पर लागू होती है जो अगुआओं, कार्यकर्ताओं और पर्यवेक्षकों के स्तर पर होते हैं। ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जिनमें निर्णय करने की उच्च क्षमता होती है। निर्णय करने की क्षमता में और क्या शामिल होता है? इसमें उस मामले के नतीजे शामिल होते हैं जिस पर तुम निर्णय लेते हो—वे नतीजे लोगों के लिए फायदेमंद होंगे या उन पर नकारात्मक प्रभाव डालेंगे और क्या उनका सत्य समझने या सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने वाले लोगों पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा—तुम्हें यह पता लगाना होगा। ऐसा नहीं है कि सिर्फ निर्णय करने, निर्णायक होने और जल्दी से स्थिति नियंत्रित करने में सक्षम होना ही निर्णय करने की क्षमता होने के समान हो। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि तुमने जो समाधान और लक्ष्य और दिशा तय की है, वह सही है या नहीं। अगर प्राप्त नतीजे सकारात्मक हैं तो तुममें वास्तव में निर्णय करने की क्षमता है। अगर प्राप्त नतीजे नकारात्मक हैं—लोगों को गुमराह करते हैं, उन्हें बहुत नुकसान पहुँचाते हैं या उन्हें बर्बाद करते हैं—तो यह किसी भी तरह की निर्णय करने की क्षमता नहीं है। इसलिए, लोगों का यह मानना कि सभी अग्रणी व्यक्तियों और प्रमुख हस्तियों में निर्णय करने की क्षमता होती है और सभी अग्रणी व्यक्तियों में अपेक्षाकृत उच्च काबिलियत और अपेक्षाकृत निर्णय करने की उच्च क्षमता होती है, कोई सटीक दृष्टिकोण नहीं है; यह पूरी तरह से गलत मत है। तुम्हारे द्वारा लिए गए निर्णय सही हैं या नहीं, यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि उनके पीछे कौन-से सिद्धांत, लक्ष्य और दिशाएँ हैं। अगर लक्ष्य और दिशाएँ मानवजाति के लिए लाभदायक हैं और अगर वे लोगों के आत्म-आचरण, सत्य के अभ्यास, उद्धार की प्राप्ति, स्वभावगत बदलाव और परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने में सकारात्मक रूप से मदद करते और लाभ पहुँचाते हैं तो तुम्हारी निर्णय करने की क्षमता वास्तव में उच्च है। लेकिन अगर तुम बिना सोचे-समझे ऐसे निर्णय लेते हो जिससे लोगों को गंभीर चोट पहुँचती है, उन्हें बहुत नुकसान पहुँचता है, वे भटक जाते हैं, उन्हें परमेश्वर से दूर कर देते हैं और उनकी दिशा खो जाती है, तो यह लोगों को नुकसान पहुँचाना है और तुम्हारे बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि तुममें निर्णय करने की क्षमता है। निर्णय करने की क्षमता पर हमारी चर्चा यहीं समाप्त होती है।
अगली क्षमता है चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता। क्या तुम लोग जानते हो इसका क्या मतलब है? यह एक असामान्य विषय है। चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता का मतलब है कि क्या तुम किसी व्यक्ति, घटना या चीज के पास जाने पर उस जानकारी से, जिसे तुम देख और समझ सकते हो, उसकी खूबियों, गुणों और कीमती पहलुओं का मूल्यांकन कर उसे समझ सकते हो और फिर उन्हें अपने जीवन और अपने आचरण और कार्यों में लागू कर सकते हो। अगर तुम किसी चीज का मूल्यांकन कर उसे समझ नहीं सकते तो तुम यह नहीं बता पाओगे कि उसके गुण और कमियाँ क्या हैं, तुम उसकी कुंजी नहीं समझ पाओगे और तुम उससे कोई लाभ नहीं उठा पाओगे। इसका मतलब है कि तुममें चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता नहीं है। लेकिन अगर तुम चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझ सकते हो और कुछ मामलों से कुछ उपयोगी चीज सीख सकते हो और उसे अपने वास्तविक जीवन में लागू कर सकते हो और अगर तुमने जो सीखा है वह तुम्हारे मानव-जीवन में और तुम्हारे जीवन-पथ के चयन में एक निश्चित मात्रा में सहायता प्रदान कर सकता है, तो इससे साबित होता है कि तुममें चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की एक निश्चित क्षमता है। इस संबंध में तुम्हारी क्षमता जितनी ज्यादा होगी, उतना ही यह साबित होगा कि तुममें अच्छी काबिलियत है। आओ एक सरल उदाहरण लेते हैं : पेंटिंग देखना। अगर तुमने कला का अध्ययन नहीं किया है, तो भी अगर तुम किसी पेंटिंग की संरचना देख सकते हो और मानवता के परिदृश्य से उसमें निहित अर्थ समझ सकते हो—और साथ ही तुम्हारा परिदृश्य बहुत सटीक और मानव होने से संबंधित है—और तुम इसके भीतर कुछ ठोस चीजें देख सकते हो जो मानव होने से संबंधित हैं और फिर उन चीजों को अपने जीवन या काम पर लागू करते हो तो यह अभिव्यक्ति साबित करती है कि तुममें चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता है। चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता का दायरा कुछ अपेक्षाकृत ठोस चीजों को संदर्भित करता है, अमूर्त चीजों को नहीं। अमूर्त चीजों में रंग, कला के कार्य आदि शामिल होते हैं। चूँकि ये चीजें मानव होने से संबंधित नहीं हैं, पर्याप्त ठोस नहीं हैं और सामान्य इंसानी सोच और मानव-जीवन में मौजूद कुछ चीजों से अलग हैं और जीवन से निकटता से संबंधित नहीं हैं, इसलिए हम उन्हें चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता के दायरे में वर्गीकृत नहीं करते। जहाँ तक कुछ ऐसी चीजों का संबंध है जो जीवन के अपेक्षाकृत करीब हैं, जिनमें कुछ छिपे हुए अर्थ हैं या जो मनुष्य होने से संबंधित हैं, अगर तुम उनका आकलन करने, उन्हें पहचानने और लागू करने में सक्षम हो; अगर तुम उनके गुणों के साथ-साथ उनकी कमियाँ भी देख सकते हो और उनके बारे में तुम्हारे अपने विचार और दृष्टिकोण हैं और तुम उन पहलुओं को समझ सकते हो जो लोगों की मानवता के लिए फायदेमंद हैं; और अगर तुम ऐसे विकृत और गैर-लचीले तत्त्वों के मौजूद होने पर उन्हें पहचान सकते हो जो सत्य के विरुद्ध जाते हैं; तो इसे चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता होना कहा जाता है। अगर तुम इन चीजों का आकलन नहीं कर सकते और किसी ठोस चीज को देखकर तुम सिर्फ धर्मसिद्धांत की दृष्टि से उसकी खूबियाँ और कमियाँ समझ सकते हो लेकिन यह नहीं देख सकते कि यह वास्तव में दैनिक जीवन में मानवता के किन पहलुओं से संबंधित है तो चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की तुम्हारी क्षमता औसत है। अगर तुम किसी कलाकृति को देखते हो और उसकी बार-बार जाँच करने के बाद भी यह नहीं समझ पाते कि यह क्या व्यक्त करने की कोशिश कर रही है या कलाकार ने इसे इस तरह क्यों बनाया है और चाहे कलाकृति मानवता से संबंधित हो या न हो, तुम यह नहीं देख पाते कि इसमें क्या आवश्यक चीजें हैं और तुम उसकी कुंजी नहीं देख पाते, तो इसका मतलब है कि तुममें चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता नहीं है। चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता न होने का मतलब है कि तुम्हारे किसी भी चीज पर कोई दृष्टिकोण नहीं हैं और तुम सामाजिक रुझानों या लोगों द्वारा समर्थित कुछ नकारात्मक चीजों से आसानी से गुमराह हो जाते हो—यानी तुम किसी ऐसी चीज को सकारात्मक मान सकते हो जो स्वाभाविक रूप से नकारात्मक है और उसे स्वीकार सकते हो। इसका नतीजा यह होगा कि तुम उससे विषाक्त हो जाओगे और अगर वह चीज लंबे समय तक तुम्हारे अंदर बनी रहती है और तुम्हारे भीतर गहराई से जड़ें जमा लेती है तो वह तुम्हारे सत्य स्वीकारने में बाधा उत्पन्न करेगी और उसमें दखल देगी। आओ चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता के संबंध में एक और उदाहरण देते हैं। उदाहरण के लिए, मान लो किसी फिल्म का कच्चा फुटेज तीन घंटे का है और संपादन के बाद फिल्म का रनटाइम दो घंटे चालीस मिनट बैठता है। क्या यह किसी फिल्म की पारंपरिक लंबाई है? (नहीं।) यह क्या दर्शाता है? (यह दर्शाता है कि फिल्म-निर्माताओं में चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता नहीं है।) चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता न होने का किसी फिल्म के लिए विशेष रूप से क्या मतलब है? (इसका मतलब है कि वे बेहतर फुटेज का चयन नहीं कर सकते और इस बारे में सटीक निर्णय नहीं ले सकते कि कौन-सी फुटेज रखनी चाहिए और कौन-सी छोड़ देनी चाहिए।) वे नहीं जानते कि फिल्म कौन-सा थीम संप्रेषित करना चाहती है या कौन-से दृश्य थीम से निकटता से संबंधित हैं। नतीजतन, वे तय नहीं कर पाते कि क्या रखना है और क्या छोड़ना है। यानी वे नहीं जानते कि कौन-से दृश्य या कथानक-बिंदु अनावश्यक और थीम से सतही तौर पर ही संबंधित हैं और उन्हें हटाया जा सकता है, और कौन-से दृश्य या कथानक-बिंदु थीम से सबसे ज्यादा जुड़े हुए हैं और उन्हें रखने की जरूरत है। चूँकि उनमें चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता नहीं होती, इसलिए संपादन के दौरान वे यह महसूस करते हुए “दया दिखाते हैं” कि यह नहीं काटा जा सकता और वह नहीं काटा जा सकता। अंत में, काफी प्रयास के बाद वे सिर्फ स्पष्ट समस्याओं वाले दृश्य या खराब तरीके से शूट की गई फुटेज ही हटाते हैं। जो सामग्री थीम से निकटता से संबंध नहीं रखती, वे उसे फिल्म में रहने देते हैं। यह चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता न होना है। उन्हें फिल्म की परिभाषा की स्पष्ट समझ नहीं होती; फिल्म के विशिष्ट रूपों और अभिव्यंजक तकनीकों और प्रत्येक दृश्य के बीच के संबंध के साथ-साथ कौन-से दृश्य वास्तव में फिल्म के दृश्य हैं, वे इनमें से कुछ नहीं समझते। यह चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता न होना है। इसलिए, फिल्मांकन के दौरान वे आत्मविश्वास से भरे होते हैं; संपादन के दौरान उनके चेहरे पर परेशानी पुती होती है; और जब पुनरीक्षण की बात आती है तो वे बेहद चिंतित होते हैं। पुनरीक्षण के बाद वे आगे बढ़ने के बारे में बहुत आश्वस्त महसूस करते हैं क्योंकि ऊपर वाले के मार्गदर्शन के जरिये उन्होंने सीख लिया होता है कि किन दृश्यों को छोड़ना है और फिर साहसपूर्वक उन्हें काट देते हैं। अंत में वे फिल्म काटकर कितनी छोटी कर देते हैं? वे उसे काटकर एक घंटे चालीस मिनट के रनटाइम तक छोटा कर देते हैं। कैमरामैन काफी परेशान महसूस करता है : “क्या यह हमारे परिश्रम के फल की बर्बादी नहीं है? हमने इतनी फुटेज फिल्माने में छह महीने तक कड़ी मेहनत की, लेकिन तुमने निर्दयतापूर्वक इतना कुछ काट दिया—क्या यह अभी भी एक फिल्म है?” मेरा जवाब है कि इतना कुछ काटना बिल्कुल सही है—फिल्म ऐसी ही होनी चाहिए। तुम्हारे पास जो था वह कोई फिल्म नहीं थी; ज्यादा से ज्यादा वह एक टीवी नाटक था। सत्य चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की खराब क्षमता वाले लोगों से परे है—उनके साथ सत्य पर संगति करने से कोई नतीजे प्राप्त नहीं होंगे। जब किन्हीं चीजों या किन्हीं विचारों और दृष्टिकोणों की बात आती है तो वे यह मूल्यांकन नहीं कर सकते कि उनमें से कौन-सी चीजें सामान्य मानवता की जरूरतों और मानकों के अनुरूप हैं, कौन-सी चीजें सामान्य मानवता के खिलाफ हैं, कौन-सी चीजें वास्तविक और व्यावहारिक हैं, कौन-सी चीजें खोखली और कल्पित हैं, कौन-सी चीजें परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुरूप हैं और कौन-सी चीजें परमेश्वर के इरादों के खिलाफ हैं। जब फिल्म की बात आती है, तो कौन-से दृश्य थीम में सहायक भूमिका निभाते हैं, सीधे मुद्दे पर आते हैं और सीधे थीम को संप्रेषित करते हैं और थीम के केंद्रीय बिंदु को व्यक्त करने के लिए आवश्यक हैं और कौन-से असंगत या अनावश्यक हैं—वे इन चीजों का पता नहीं लगा पाते और इनमें से किसी को भी समझ नहीं पाते। जब संपादन की बात आती है तो वे हमेशा “दया दिखाते हैं” और फुटेज काटने के लिए अनिच्छुक होते हैं। यह चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता न होना है। सामग्री फिल्माने के बाद अगर तुम, फिल्म जिन विचारों को संप्रेषित करना चाहती है और जो दिशा वह दिखाना चाहती है, उस पर विचार करके जान जाते हो कि कौन-से दृश्य शामिल नहीं किए जाने चाहिए, कौन-से दृश्य पर्याप्त प्रभाव नहीं छोड़ते और कौन-से दृश्य बैकअप-शॉट्स हैं जिन्हें इस्तेमाल करना कभी अभीष्ट नहीं था बल्कि जिन्हें विशेष परिस्थितियाँ उत्पन्न होने पर बैकअप के रूप में फिल्माया गया था—अगर तुमने अपने दिल में इन मामलों पर विचार किया है और उन्हें सँभालने के लिए तुम्हारे पास योजनाएँ और समाधान हैं, तो इसे चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता होना कहा जाता है। अगर तुम इनमें से कुछ नहीं कर सकते और समस्याओं पर विचार करने और उन्हें देखने के लिए तुम जो परिदृश्य और तरीके इस्तेमाल करते हो उनका कोई आधार नहीं होता और अंत में तुम कोई सही निष्कर्ष नहीं निकाल सकते तो इसका मतलब है कि तुममें चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता नहीं है। बेशक, कलीसिया में ज्यादातर लोगों में चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता नहीं होती। चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता सिर्फ इस बारे में नहीं होती कि तुम किसी रचनात्मक कार्य, कलात्मक रचना या आध्यात्मिक पोषण या लोगों की मानवता के बारे में दार्शनिक सिद्धांत का काम देने वाली किसी चीज के जरिये कितना समझ पाते हो—मुख्य बात यह है कि इन चीजों के बारे में तुम्हारा दृष्टिकोण भी सटीक होना चाहिए। एक ओर, तुम्हारा दृष्टिकोण तथ्यों और मानवता की जरूरतों के अनुरूप होना चाहिए। दूसरी ओर, तुम जो समझते-बूझते हो, उसे सकारात्मक चीजों और सभी चीजों के नियमों के अनुरूप होना चाहिए; वह खोखला या विकृत नहीं होना चाहिए, और अंततः, वह सत्य सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिए। अगर तुम न सिर्फ यह देख सकते हो कि कौन-से विचार और दृष्टिकोण व्यक्त किए जा रहे हैं, अगर तुम सिर्फ उसी स्तर पर अटके नहीं रह जाते बल्कि यह भी देख सकते हो कि क्या ये विचार और दृष्टिकोण वास्तव में सही हैं, क्या वे वास्तव में मानवता की जरूरतों के अनुरूप हैं, क्या वे वास्तव में शुद्ध हैं और क्या वे वास्तव में सत्य के अनुरूप हैं—अगर तुम ये सभी चीजें कर सकते हो—तो तुम चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता वाले व्यक्ति हो। चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की अच्छी क्षमता वाले लोग अच्छी काबिलियत वाले होते हैं। अगर तुम ये सभी चीजें हासिल नहीं कर सकते या उन्हें सिर्फ औसत स्तर तक ही हासिल कर सकते हो तो चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की तुम्हारी क्षमता सिर्फ औसत है। अगर तुम मूलभूत रूप से ये मामले नहीं समझ सकते—उदाहरण के लिए, अगर तुम किसी दृश्य-श्रव्य कार्य, साहित्यिक और कलात्मक कार्य, कलाकृति आदि को नहीं समझ सकते, चाहे वे अमूर्त हों या ठोस, और तुम्हें वे पूरी तरह से समझ से परे लगते हैं, जैसे कोई विदेशी भाषा, और तुम्हारी मानवता के भीतर ऐसी चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता नहीं है, तो तुममें चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता नहीं है; तुम बिना काबिलियत वाले व्यक्ति हो। अगर, किसी दृश्य में किसी चरित्र की चाल-ढाल या मनोवैज्ञानिक स्थिति और मानसिक स्थिति की समग्र अभिव्यक्ति को कुछ रंगों, कुछ रोशनी और एक निश्चित परिवेश के साथ देखकर तुम यह बता सकते हो कि इस दृश्य का दर्शक के मन पर क्या प्रभाव पड़ेगा, तो तुममें चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता है। लेकिन, चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता से रहित लोग यह नहीं देख सकते। वे कहते हैं, “रोशनी मंद होने या न होने या रंग सुंदर होने या न होने से क्या फर्क पड़ता है? क्या चरित्र फिर भी वैसा ही नहीं रहता? तुम कैसे बता सकते हो कि उसकी मानसिक स्थिति क्या है? मैं इसे क्यों नहीं देख सकता?” यह चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता न होना है। चाहे तुम उन्हें इसे कैसे भी समझाओ, वे दावा कर सकते हैं कि वे समझ गए लेकिन वास्तव में अपने दिल में वे इसे अभी भी नहीं समझते। यह क्षेत्र उनके लिए हमेशा पराया ही रहेगा। जिन लोगों में चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता नहीं होती, चाहे वे किसी भी तरह का काम करते हों या किसी भी तरह का साहित्यिक या कलात्मक कार्य देखते हों, वे अपने विचार और दृष्टिकोण व्यक्त करने में असमर्थ रहते हैं। खास तौर पर ऐसे कार्य या रचनाओं के मामले में, जिनमें गहरा अर्थ व्यक्त करने, कोई थीम व्यक्त करने या आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करने की आवश्यकता होती है, वे इसे अच्छी तरह से नहीं कर सकते और ऐसे कार्यों के लिए सक्षम नहीं हो सकते। अगर तुममें चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता है और इसके अलावा, तुम सत्य भी समझते हो तो परमेश्वर के घर के फिल्म, साहित्य और कला से जुड़े काम के मामले में, जिसमें चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता शामिल होती है, तुम इसे अच्छी तरह से कर सकते हो, इसके लिए सक्षम हो सकते हो और इस तरह का कर्तव्य निभा सकते हो। अगर तुममें चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता नहीं है, तो तुममें खराब काबिलियत है और तुम ऐसे काम के लिए सक्षम नहीं हो सकते। कुछ लोग कहते हैं, “मैंने बहुत सालों तक सत्य सुना है और मैं सत्य सिद्धांतों को समझता हूँ। क्या इसका मतलब यह है कि मैं ऐसे काम के लिए सक्षम हो सकता हूँ?” इससे भी काम नहीं चलेगा। अगर तुम कुछ सत्य समझते भी हो तो भी पूरक के रूप में चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता के बिना तुम सिर्फ सुसमाचार का प्रचार करने या कलीसिया का सिंचन करने जैसे कार्य ही कर सकते हो। लेकिन जिस काम में चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता शामिल हो, उसके लिए तुम सक्षम नहीं होगे। इसलिए, अगर कुछ लोगों को गलती से ऐसे काम के लिए चुन लिया गया हो और अब उन्हें एहसास होता हो कि उनमें इस क्षेत्र में कोई सामर्थ्य नहीं है और वे सहज रूप से चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता से रहित हैं तो उन्हें यह कहते हुए तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए, “मैं यह काम नहीं कर सकता। मेरी मानवता में चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता नहीं है।” बेशक, चाहे तुममें चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता हो या न हो, यह व्यक्ति की काबिलियत का मूल्यांकन करने का एक मानक है। हालाँकि यह प्राथमिक मानक नहीं है, फिर भी कुछ विशेष कार्यों के लिए चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता भी आवश्यक है। चीजों का मूल्यांकन कर उन्हें समझने की क्षमता पर हमारी संगति यहीं समाप्त होती है। एक क्षमता और है, नवाचार क्षमता, जिस पर हम अगली बार संगति करेंगे।
क्या इस तरह संगति करना तुम लोगों के लिए चीजें ज्यादा स्पष्ट करता है? (हाँ।) अगर मैं यह कहते हुए सिर्फ सामान्य शब्दों में बात करता, “व्यक्ति की काबिलियत का मूल्यांकन चीजें करने में उसकी दक्षता और प्रभावशीलता से किया जाता है,” तो तुम सिर्फ इस धर्मसिद्धांत को दोहरा पाते, लेकिन तुम्हें फिर भी स्पष्ट न होता कि काबिलियत किन विशिष्ट पहलुओं को संदर्भित करती है। बाद में मैंने सोचा कि ज्यादा विशिष्ट रूप से संगति करना बेहतर होगा; जब तुम लोग इस विषय पर स्पष्टता प्राप्त कर लोगे तो तुम अपनी काबिलियत का सटीक मूल्यांकन कर उसे स्पष्ट रूप से समझ पाओगे। इससे तुम्हें अपने उचित स्थान पर रहने और अपनी क्षमताएँ बढ़ा-चढ़ाकर न आँकने में मदद मिलेगी। अपनी क्षमताएँ स्पष्ट रूप से देखना और समझना, यह निर्धारित करना कि तुम्हारी काबिलियत अच्छी है, औसत है, खराब है या है ही नहीं और यह पहचानना कि तुम किस समूह से संबंधित हो—इस तरह अपना उचित स्थान ढूँढ़ना तुम लोगों को शिष्ट तरीके से कार्य और आचरण करने में सक्षम बनाता है। एक ओर यह तुम्हें अपने बारे में सटीक समझ रखने में सक्षम बनाता है। दूसरी ओर तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव हल करने के मामले में यह तुम्हारा अहंकारी स्वभाव बदलने में भी कुछ हद तक सहायता प्रदान करता है। क्या यह सही नहीं है? (हाँ, है।) चलो आज संगति यहीं समाप्त करते हैं। अलविदा!
4 नवंबर 2023