116  मैं परमेश्वर की विश्वासपात्र बनना चाहती हूँ

1

हे परमेश्वर! मेरा दिल तुझे देखने के लिए तरसता है।

भले ही मैं तेरा चेहरा नहीं देख पाती,

लेकिन मेरा दिल हर समय प्रार्थना करता है और तेरी ओर खिंचता है,

मैं हर दिन तेरे वचनों से प्रबुद्ध होती हूँ।

मैं जानती हूँ तेरे वचन सत्य हैं, बहुत अनमोल हैं,

तेरे सामने रहना मेरा सबसे बड़ा आशीष है।

मैं देखती हूँ कि तेरी धार्मिकता और पवित्रता बहुत मनोहर है।

हे परमेश्वर! मैं तेरी विश्वासपात्र बनना चाहती हूँ।


2

हे परमेश्वर! केवल तेरे वचन ही मुझे बदल सकते हैं।

तेरे वचन उजागर करते हैं कि इंसान कितनी बुरी तरह से भ्रष्ट है,

वह कितना अहंकारी, आत्माभिमानी है, शैतानी स्वभावों भरा है।

तेरी धार्मिकता देखकर, मैं तुझे नमन करती हूँ, तेरी आराधना करती हूँ।

तेरे न्याय और ताड़ना ने ही मुझे बचाया है।

मैं अब फिर कभी शैतानी फ़लसफ़े के सहारे नहीं जिऊँगी।

तेरा न्याय एक आशीष है, यह प्रेम है।

मैं सत्य हासिल करती हूँ और तहे-दिल से तुझे प्रेम करती हूँ।


3

हे परमेश्वर! तू ही मुझे शुद्ध करता, मुझे बचाता है,

मैं बेहद विद्रोही और भ्रष्ट हूँ।

मैं भाग्यशाली हूँ जो आज तेरी गवाही दे पा रही हूँ, तेरी सेवा कर पा रही हूँ;

यह तेरा अपार अनुग्रह और प्रेम है।

मैं तुझसे ईमानदारी से प्रेम करना चाहती हूँ और तेरी विश्वासपात्र बनना चाहती हूँ,

तेरा गुणगान करना, तेरी गवाही देना चाहती हूँ, और आजीवन तेरी सेवा करना चाहती हूँ!

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