114  और गहराई से प्रेम करना चाहता हूँ मैं परमेश्वर को

1

मेरे दिल को पिघला देता है परमेश्वर का प्रेम,

मेरी ग़लतफहमियों को दूर कर देता है परमेश्वर का प्रेम।

उसके दिल को, उसके प्रबल प्रेम को समझता हूँ मैं।

अब से कभी शिकायत नहीं करूँगा मैं;

परमेश्वर के प्यार भरे आगोश में लौट जाऊँगामैं।

मुझ पर बहुत उपकार किया है परमेश्वर ने;

उसे अपना जीवन देना चाहता हूँ मैं।


2

सीमा है मेरे प्रेम की, पर असीम है प्रेम उसका।

इस मलिन जगत में वो आया है पूर्ण करने इंसान को,

दे रहा है अनंत जीवन का मार्ग इंसान को।

देता है वो अपना दिलो-दिमाग़ इंसान को।

बेशकीमती और महान है प्रेम उसका।

मुझ पर बहुत उपकार किया है परमेश्वर ने;

उसे अपना जीवन देना चाहता हूँ मैं।


3

मैं केवल परमेश्वर को प्रेम करने का अपना फ़र्ज़ निभाना चाहता हूँ,

उसके दिल को सुकून देने की ख़ातिर

सत्य का अनुसरण करना चाहता हूँ।

परमेश्वर की करुणा और प्रेम को मैं थामे रहूँगा;

जो उसने मुझे सौंपा है उस पर मैं ग़ौर करूँगा।

मुश्किलें, इम्तहान कोई बड़ी बात नहीं हैं;

चाहे तूफ़ान आए फिर भी मैं उसे प्रेम करूँगा।

ज़मीर से नहीं आता परमेश्वर के लिये मेरा प्रेम;

इम्तहानों से गुज़रे बिना, नहीं होगा कोई सच्चा प्रेम।

तहे-दिल से प्रेम करता हूँ अपने परमेश्वर को मैं।

शपथ लेता हूँ कभी उससे जुदा नहीं होऊँगा मैं।

कितना असली और सच्चा है प्रेम उसका।

सब-कुछ त्याग दूँ तो भी मैं हकदार नहीं इसका।

मैं पूरी तरह से, अधिक गहराई से उसे प्रेम करना चाहता हूँ।

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