17. व्यस्त दिखने के पीछे क्या राज है

डेज़ी, अमेरिका

दिसंबर 2023 में अपने कर्तव्यों के गैर-जिम्मेदाराना निर्वहन के लिए मुझे काट-छाँट झेलनी पड़ी। विचार करने के बाद मुझे एहसास हुआ कि उस दौरान मैंने अपने कर्तव्यों का निर्वहन वाकई गैर-जिम्मेदाराना ढंग से किया था। एक कलीसिया अगुआ के रूप में मैं केवल पाठ-आधारित कार्य का जायजा लेती थी और उन सभी कार्यों को नजरअंदाज कर देती थी जो सीधे मेरी जिम्मेदारी के अंतर्गत नहीं आते थे या मेरी प्रतिष्ठा और रुतबे को प्रभावित नहीं करते थे। हालाँकि मैं अपने समय का उपयोग और अधिक कार्य का जायजा लेने के लिए कुशलता से कर सकती थी, लेकिन वह मुझे कष्टदायक और थकाने वाला लगता थी, इसलिए मैं अतिरिक्त प्रयास करने को तैयार नहीं थी। नतीजतन मैं वीडियो कार्य में होने वाली देरी के बारे में अनजान थी। मैंने सचमुच कोई वास्तविक कार्य नहीं किया थी। यह देखकर कि परमेश्वर के घर ने मुझे बर्खास्त नहीं किया है और मुझे अपने कर्तव्यों को जारी रखने का मौका दिया है, मैंने सोचा, “मुझे सचमुच पश्चात्ताप करना चाहिए और अपने ऋण की भरपाई करनी चाहिए।”

इसके बाद दिन में मैं अनुभवजन्य गवाही के वीडियो की शूटिंग का जायजा लेती और रात को दस्तावेजों को व्यवस्थित करती। मेरा कार्यक्रम हर दिन व्यस्त रहता था। हालाँकि मेरे पास अवकाश का समय कम होता था, फिर भी हर दिन संतुष्टि देने वाला लगता था। बाद में मैं हर रात दो-तीन बजे तक जागती थी और सुबह सात बजे के आसपास उठ जाती थी। उस समय मुझे थकान महसूस नहीं होती थी। मुझे लगता था कि देर तक जागने से मैं अधिक कार्य कर सकूँगी, यह पहले की तरह आराम में रहने से तो बेहतर है। बाद में मेरे आस-पास की बहनों ने अक्सर देर रात तक जागने की मेरी आदत और मेरे चेहरे की चमक कम होने पर गौर किया। उन्होंने मुझे पहले आराम करने की सलाह दी। एक और बहन ने मुझसे पूछा, “तुम रात को इतनी देर तक जागती हो और दोपहर को कभी आराम भी नहीं करती। क्या तुम आगे इतनी मेहनत कर पाओगी?” मैंने मन में सोचा, “तो भाई-बहनों ने मेरी पीड़ा देख ली है। फिर तो यह कष्ट सहना सार्थक हो गया। कम से कम सबको मेरा पश्चात्तापपूर्ण रवैया दिख रहा है कि मैं एक ऐसी इंसान हूँ जो अपने कर्तव्य पालन में कष्ट सह सकती है, न कि मैं ऐसी इंसान हूँ जो आराम में लिप्त रहती है।” उस दौरान जब मैं कुछ बहनों को ग्यारह बजे बिस्तर पर जाते देखती तो मन ही मन मैं उन्हें हिकारत से देखती और सोचती, “तुम आराम में बहुत ज्यादा लिप्त हो गई हो! तुम्हें अपने कर्तव्य निर्वहन की कोई चिंता नहीं है—यानी तुम परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील नहीं हो।” उन्हें यह दिखाने के लिए कि कर्तव्यों के प्रति मेरा रवैया अलग है, मैं देर तक जागती और जल्दी उठ जाती। लेकिन जैसे-जैसे देर रात तक जागने का सिलसिला चलता रहा, मेरे शरीर पर उसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा। हर रात ग्यारह-बारह बजे के आसपास मेरा दिल धड़कने लगता। मुझे पता था कि देर तक जागना शरीर के लिए हानिकारक है, परमेश्वर ने सामान्य नींद की आदत बनाए रखने को लेकर कई बार संगति की। लेकिन मैं सोचती थी, “अगर मैं जल्दी सोने चली जाऊँगी तो भाई-बहन मेरे बारे में क्या सोचेंगे? वे कहीं ऐसा तो नहीं कहेंगे, जब काट-छाँट झेलनी पड़ती थी तब तो तुम थोड़ी-बहुत मुश्किल सहकर कीमत चुका देती थी, लेकिन समय के साथ तुम्हारा असली रंग सामने आ गया है और कुछ नहीं बदला है?” मैं नहीं चाहती थी कि भाई-बहनों के मन में मेरी ऐसी छवि बने। एक ऐसे व्यक्ति की छवि बनाए रखने के लिए जिसके पास भार हो, रात को बहुत थक जाने के बावजूद कमर कसकर मैं डटी रहती थी। दिन के वक्त मैं ज्यादा देर तक झपकी नहीं लेती थी क्योंकि मुझे डर रहता था भाई-बहन कहेंगे कि मैं दैहिक इच्छाओं में लिप्त रहती हूँ। कभी-कभी जब मैं दोपहर को झपकी नहीं ले पाती थी और बहुत थकी हुई महसूस करती थी तो सजग रहने के लिए मैं एक कप कॉफी पी लेती थी। कभी-कभी जब मैं देर रात तक कार्य करती रहती थी और देखती कि दूसरे भाई-बहन अभी भी कार्यालय में हैं तो मैं जानबूझकर थोड़ा शोर करती ताकि उन्हें जता सकूँ कि मैं भी रात-रात भर कार्य करती हूँ। अलग-अलग समय क्षेत्रों में रहने वाले कुछ भाई-बहन जब मुझे संदेश भेजते तो भले ही मैं लेटी हुई होती, मैं उन्हें उत्तर देती थी। जब कभी वे कहते, “बहुत रात हो गई है और तुम अभी तक सोई नहीं हो। थोड़ा आराम कर लो!” तो मैं मन ही मन बहुत खुश होती और सोचती कि भाई-बहन मेरे प्रयासों को देख पा रहे हैं। जब अंततः उच्च अगुआ मेरे प्रदर्शन के बारे में पूछती, चाहे मेरा कार्य कैसा भी रहा हो, तो कर्तव्य निर्वहन में मेरा रवैया समुचित माना जाता। भले ही कोई उपलब्धि नहीं रही हो, लेकिन कड़ी मेहनत जरूर दिखती थी। निश्चय ही भाई-बहन मेरे पश्चात्तापपूर्ण व्यवहार की प्रशंसा करते और मुझे एक ऐसे अगुआ के रूप में देखते जो वास्तविक कार्य करता है। इन बातों के बारे में सोचकर मैं हमेशा काफी सुरक्षित महसूस करती थी। लेकिन देर रात तक जागने के कारण हर सुबह मेरे दिल की धड़कन बढ़ी हुई होती थी और चूँकि मेरा दिमाग थका हुआ होता था, मैं दिन भर दस्तावेजों की समीक्षा करते समय ठीक से ध्यान नहीं दे पाती थी। दिन के समय मेरी कार्यकुशलता कम होती, इसलिए ज्यादा कार्य निपटाने के लिए मुझे देर रात तक जागना पड़ता था। चूँकि मैं रात को देर से सोया करती थी, इसलिए सुबह नाश्ता खत्म करते-करते लगभग आठ बज जाते थे। मैं आध्यात्मिक भक्ति करना चाहता थी, लेकिन मुझे लगता मेरे पास पर्याप्त समय नहीं है, इसलिए मैं जल्दी से परमेश्वर के कुछ वचनों पर नजर डालती और बिना गहराई से सोचे कार्य करना शुरू कर देती। लेख लिखना और भी चुनौतीपूर्ण हो गया; मैं अपने कर्तव्यों में इतनी व्यस्त रहती थी कि मेरे पास बिल्कुल भी समय नहीं होता था। बाद में मेरे कर्तव्यों में एक के बाद एक समस्याएँ आने लगीं और तब जाकर मैंने आत्मचिंतन करना शुरू किया : मैं अच्छे से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहती हूँ तो फिर लगातार समस्याएँ क्यों बढ़ती जा रही हैं? मेरे कर्तव्यों की प्रभावशीलता क्यों कम हो रही है? मुझे एहसास हुआ कि अगर मैं इस दुष्चक्र में फँसी रही तो इससे न केवल मैं शारीरिक रूप से थक जाऊँगी, बल्कि मेरे कार्य में भी नतीजे नहीं आएँगे। मुझे इस स्थिति को तुरंत पलटना था।

इसके बाद मैंने सोचा : मैं जानती थी कि देर तक जागना मेरे स्वास्थ्य के लिए बुरा है और इससे मेरे कर्तव्यों के निर्वहन में भी कमी आएगी, फिर मैं ऐसा क्यों करती रही? इन बातों का विचार करने पर मुझे एहसास हुआ कि इस दौरान मैं लोगों के सामने अपनी एक खास छवि बनाने के लिए चीजें कर रही थी। फिर मैंने सोचा कि कैसे परमेश्वर ने इसी तरह के व्यवहार के लिए मसीह विरोधियों का गहन विश्लेषण किया था, इसलिए मैंने इस विषय पर परमेश्वर के वचन खोजकर पढ़े। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “कुछ लोग भाषा का इस्तेमाल करके, और स्वयं का बखान करने वाले कुछ शब्द बोलकर अपनी गवाही देते हैं, जबकि अन्य लोग व्यवहारों का इस्तेमाल करते हैं। अपनी गवाही देने के लिए व्यवहारों का इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति के कौन-कौन से लक्षण हैं? सतही तौर पर, वे कुछ ऐसा व्यवहार करते हैं जो अपेक्षाकृत लोगों की धारणाओं के अनुरूप हैं, जो लोगों का ध्यान खींचते हैं, और जिन्हें लोग बेहद नेक और अपेक्षाकृत नैतिक मानकों के अनुरूप मानते हैं। इन व्यवहारों के चलते लोग यह सोचने पर मजबूर होते हैं कि वे सम्मान-योग्य हैं, उनमें ईमानदारी है, वे वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करते हैं, वे बेहद पवित्र हैं, और उनमें वास्तव में परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है, और वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं। वे लोगों को गुमराह करने के लिए अक्सर कुछ ऊपरी अच्छे व्यवहारों का प्रदर्शन करते हैं—क्या इसमें भी अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने की बू नहीं आती है? आमतौर पर लोग शब्दों के जरिये अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं, स्पष्ट भाषण देकर बताते हैं कि वे आम लोगों से किस प्रकार भिन्न हैं और उनके पास दूसरों के मुकाबले अधिक बुद्धिमान राय कैसे हैं, ताकि लोग उनके बारे में बहुत अच्छी राय कायम करें और उन्हें ऊँची नजरों से देखें। हालाँकि, कुछ ऐसे तरीके हैं जिनमें स्पष्ट भाषण शामिल नहीं होता है, जहाँ लोग दूसरों से बेहतर होने की गवाही देने के लिए इसके बजाय बाहरी अभ्यासों का इस्तेमाल करते हैं। ... मैं एक बेहद सरल उदाहरण दूंगा। जब कुछ लोग अपना कर्तव्य निभाते हैं, तो वे ऊपरी तौर पर बहुत व्यस्त प्रतीत होते हैं; वे विशेष उद्देश्य से उस समय भी काम कर रहे होते हैं जब अन्य लोग खा या सो रहे हों, और जब अन्य लोग अपना कर्तव्य निभाना शुरू करते हैं, तो वे खाने या सोने चले जाते हैं। ऐसा करने में उनका क्या उद्देश्य होता है? वे ध्यान आ‍कर्षित करना और हरेक को दिखाना चाहते हैं कि वे अपने कर्तव्य निभाने में इतने व्यस्त हैं कि उनके पास खाने या सोने का समय ही नहीं है। वे सोचते हैं : ‘तुम लोग वास्तव में बोझ नहीं उठाते हो। तुम लोग खाने और सोने को लेकर इतने सक्रिय कैसे हो? तुम लोग किसी काम के नहीं हो! मुझे देखो, मैं काम कर रहा हूँ जबकि तुम सभी खा रहे हो, और मैं रात में अभी भी काम कर रहा हूँ जब तुम सो रहे हो। क्या तुम लोग इस तरह कष्ट सह सकोगे? मैं इस कष्ट को सहन कर सकता हूँ; मैं अपने व्यवहार से एक मिसाल पेश कर रहा हूँ।’ तुम लोग इस प्रकार के व्यवहार और लक्षण के बारे में क्या सोचते हो? क्या ये लोग जानबूझकर ऐसा नहीं कर रहे हैं? कुछ लोग ये काम जानबूझकर करते हैं, और यह किस तरह का व्यवहार है? ये लोग संप्रदायवादी बनना चाहते हैं; वे भीड़ से अलग होना और लोगों को दिखाना चाहते हैं कि वे पूरी रात बस अपना कर्तव्य निभाते रहे हैं, वे विशेष रूप से कष्ट सहने में सक्षम हैं। इस प्रकार हरेक व्यक्ति खासकर उनके लिए दुखी होगा और यह सोचते हुए उनके प्रति विशेष रूप से सहानुभूति दिखाएगा कि उनके कंधों पर भारी बोझ है, और इस हद तक है कि वे काम में डूबे हुए हैं और उनके पास खाने या सोने का समय भी नहीं है। और अगर उन्हें बचाया नहीं जा सकता, तो हरेक उनके लिए परमेश्वर से अनुनय-विनय करेगा, उनकी ओर से परमेश्वर से याचना करेगा, और उनके लिए प्रार्थना करेगा। ऐसा करते हुए, ये लोग अन्य लोगों की आँखों में धूल झोंकने और धोखे से उनकी सहानुभूति एवं प्रशंसा प्राप्त करने के लिए ऐसे अच्छे व्यवहारों और अभ्यासों का इस्तेमाल कर रहे हैं जो व्यक्ति की धारणाओं के अनुरूप हैं, जैसे कि मुसीबत झेलना और कीमत चुकाना। और इसका अंतिम परिणाम क्या है? उनके संपर्क में आने वाला हरेक व्‍यक्ति जिसने उन्हें कीमत चुकाते हुए देखा है, वे सभी एक स्वर में कहेंगे : ‘हमारा अगुआ सर्वाधिक सक्षम है, कष्ट सहने और कीमत चुकाने में सर्वाधिक सक्षम है!’ तो क्या वे लोगों को गुमराह करने का अपना उद्देश्य पूरा नहीं कर पाए? फिर एक दिन, परमेश्वर का घर कहता है, ‘तुम लोगों का अगुआ वास्तविक काम नहीं करता है। वह अपने को व्यस्त रखता है और बिना किसी उद्देश्य के काम करता है; वह लापरवाही से काम करता है और वह मनमाना व्यवहार करने वाला और तानाशाह है। उसने कलीसिया के काम को अस्त-व्यस्त कर दिया है, उसने ऐसा कोई काम नहीं किया है जो उसे करना चाहिए था, उसने सुसमाचार का काम नहीं किया या फिल्म प्रोडक्शन का काम नहीं किया, और कलीसिया का जीवन भी अस्त-व्यस्त कर दिया है। भाई-बहन सत्य नहीं समझते हैं, उनके पास जीवन प्रवेश नहीं है, और वे गवाही के लेख भी नहीं लिख सकते हैं। सबसे दयनीय बात तो यह है कि वे झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को भी नहीं पहचान सकते हैं। इस तरह का अगुआ अत्यधिक अक्षम होता है; वो झूठा अगुआ है जिसे बर्खास्त कर देना चाहिए!’ इन परिस्थितियों में, क्या उसे बर्खास्त करना आसान होगा? यह कठिन हो सकता है। चूंकि सभी भाई-बहनों ने उसे स्वीकार किया है और उसका समर्थन किया है, यदि कोई इस अगुआ को बर्खास्त करने की कोशिश करता है, तो भाई-बहन विरोध करेंगे और उसे पद पर बनाए रखने के लिए ऊपरवाले से अनुरोध करेंगे। ऐसा परिणाम क्यों होगा? क्योंकि यह झूठा अगुआ और मसीह-विरोधी, लोगों को प्रभावित करने, उन्हें खरीदने और गुमराह करने के लिए मुसीबतें झेलने और कीमत चुकाने, और साथ ही मीठे शब्द बोलने जैसे बाहरी अच्छे व्यवहार का इस्तेमाल करता है। एक बार उसने लोगों को गुमराह करने के लिए झूठे दिखावों का इस्तेमाल कर लिया, तो हर कोई उसके पक्ष में बोलेगा और उसे छोड़ने में असमर्थ होगा। उन्हें स्पष्ट रूप से पता है कि इस अगुआ ने कोई खास वास्तविक काम नहीं किया है, और उसने सत्य को समझने और जीवन प्रवेश प्राप्त करने के लिए परमेश्वर के चुने हुए लोगों का मार्गदर्शन भी नहीं किया है, लेकिन ये लोग अभी भी उसका समर्थन करते हैं, उसको स्वीकार करते हैं, उसका अनुसरण करते हैं, और वे इस बात की भी परवाह नहीं करते कि इसका अर्थ यह है कि उन्हें सत्य और जीवन प्राप्त नहीं होगा(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद चार : वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं)। मैंने देखा कि परमेश्वर मेरा व्यवहार उजागर कर रहा है। जब से उच्च अगुआ ने बिना भार के कर्तव्य निर्वहन करने और वास्तविक कार्य न करने के लिए मेरी काट-छाँट की थी, तब से मैंने मन ही मन पश्चात्ताप करने और खुद को बदलने का संकल्प लिया। शुरू में मैंने कुछ सकारात्मक अभ्यास किया और चाहा कि मैं व्यावहारिक कार्य करके अपने ऋण की भरपाई करूँ। लेकिन धीरे-धीरे मेरे व्यवहार की प्रकृति बदलने लगी। जब मैं देर तक जागती थी और भाई-बहनों का ध्यान और देखभाल पाती थी तो मैं अपने वास्तविक व्यवहार से सबके आगे यह साबित करना चाहती थी कि इस दौरान मैंने पश्चात्ताप किया है और मैं अपने कर्तव्यों के लिए कीमत चुकाने को तैयार हूँ। मैं सोचती अगर किसी दिन उच्च अगुआ ने सबसे मेरा मूल्यांकन लेना चाहा तो निश्चय ही भाई-बहन मेरे बारे में सकारात्मक बातें कहेंगे, इससे यह साबित हो जाएगा कि मैं कोई आलसी या गैर-जिम्मेदार नकली अगुआ नहीं हूँ। इसलिए मैं बिना थके देर तक जागती और कष्ट सहती रहती थी, इसे अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठापूर्ण प्रदर्शन के रूप में इस्तेमाल करती, यहाँ तक कि भाई-बहनों के सामने जानबूझकर दिखावा तक करती थी। कभी-कभी जब मैं बहुत थकी हुई होती और सोना चाहती तो भी कोशिश करती कि मैं सबके जाने के बाद ही बिस्तर पर जाऊँ ताकि एक अगुआ के रूप में सबके सामने मेरे “व्यस्त कार्यक्रम” की झलक दिखे। कभी-कभी, चूँकि मैं देर तक जागती थी, मुझे दिन भर मानसिक रूप से थकावट और एकाग्रता में कमी महसूस होती थी; ऐसे में झपकी ले लेना एक सामान्य बात होती। लेकिन अपनी भार उठाने वाली छवि बनाए रखने के लिए कभी-कभी मैं दोपहर में आराम नहीं करती थी, मैं तभी आराम करती थी जब मैं यह और सहन नहीं कर पाती थी, लेकिन तब भी मैं बहुत देर तक सोने की हिम्मत नहीं करती थी, इस बात से डरती थी कि लोग कहेंगे कि मैं आराम फरमा रही हूँ। जब तक कुछ भाई-बहन जागते रहते थे, मैं भी देर रात तक जागती रहती थी, मैं चाहती थी कि उन्हें पता चले कि मैं अभी भी दृढ़ हूँ। मैं दूसरे देशों में रहने वाले भाई-बहनों को भी संदेश भेजा करती थी ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को पता चले कि मैं अपने कर्तव्यों के लिए कष्ट सहने को तैयार हूँ और मेरी छवि एक मेहनती इंसान की बने। यह देखकर कि परमेश्‍वर ने उजागर किया है कि कैसे कुछ लोग भाषा का प्रयोग कर अपने बारे में गवाही देने और उच्च सम्मान प्राप्त करने के लिए अहंकार से भरे शब्द बोलते हैं, जबकि अन्य लोग मानवीय धारणाओं के अनुरूप व्यवहार करते हैं, जिसे नेक और अपेक्षाकृत नैतिक मानकों के अनुरूप माना जाता है ताकि लोगों को गुमराह किया जा सके, उनसे प्रशंसा और आदर पाया जा सके, मुझे एहसास हुआ कि देर तक जागकर और कष्ट सहकर मैं अपने बारे में एक अनुकूल छवि बनाने की कोशिश कर रही हूँ, हर किसी से अनुग्रह प्राप्त करना चाह रही हूँ। मैं कष्ट सहने और कीमत चुकाने के अपने इस अच्छे व्यवहार का इस्तेमाल दिखावा करने और दूसरों को गुमराह करने के लिए कर रही थी जो कि मसीह विरोधियों की अभिव्यक्ति है। मैंने विचार किया कि फरीसी कितने पाखंडी थे। वे जानबूझकर आराधनालयों और सड़क के कोनों में प्रार्थना करते थे, उपवास करते समय उदास चेहरे बनाए रखते थे, अपने कपड़ों के किनारों को शास्त्र-वचनों से भर लेते थे और दान देने का दिखावा करते थे, अपने अच्छे व्यवहार के इन बाहरी कृत्यों का उपयोग खुद को प्रदर्शित करने और अपनी गवाही देने के लिए करते थे। फरीसी जो कुछ भी करते थे वह लोगों को गुमराह करने, फँसाने, खुद को स्थापित करने और लोगों से अपना आदर करवाने के लिए था—फरीसी परमेश्वर का प्रतिरोध करने के मार्ग पर चल रहे थे। अपने कर्तव्यों के निर्वहन में सत्य सिद्धांतों पर ध्यान देने के बजाय मैं गलत रास्ते पर चल रही थी, दूसरों को गुमराह करने और उनकी प्रशंसा पाने के लिए बाहरी दिखावे का तिकड़म कर रही थी। यह वाकई कितना नीचतापूर्ण है!

मेरा आत्मचिंतन चलता रहा : मेरे देर रात तक कष्ट सहने के पीछे भ्रष्ट स्वभाव के कौन से पहलू छिपे थे? मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “मसीह-विरोधी सत्य के विरोधी होते हैं, वे सत्य बिल्कुल नहीं स्वीकारते—जो स्पष्ट रूप से एक तथ्य की ओर संकेत करता है : मसीह-विरोधी कभी सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करते, वे कभी सत्य का अभ्यास नहीं करते—जो कि एक मसीह-विरोधी की सबसे मुखर अभिव्यक्ति है। प्रतिष्ठा और हैसियत के अलावा, आशीष और पुरस्कार पाने के अलावा, दूसरी चीज है दैहिक-सुख और हैसियत से जुड़े लाभ, जिसे पाने के पीछे वे भागते हैं; और ऐसी स्थिति में वे स्वाभाविक रूप से विघ्न-बाधाएँ पैदा करते हैं। इन तथ्यों से पता चलता है कि वे जिन चीजों के पीछे भागते हैं, और जैसा उनका व्यवहार और अभिव्यक्तियाँ हैं, वे सारी चीजें परमेश्वर को नापसंद हैं। और ये सब सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों का क्रियाकलाप और व्यवहार तो बिल्कुल नहीं होता। उदाहरण के लिए, कुछ मसीह-विरोधी जो पौलुस की तरह होते हैं, वे कर्तव्य करते समय कष्ट उठाने का संकल्प लेते हैं, पूरी-पूरी रात जागते हैं, बिना खाए-पिए काम करते रहते हैं, अपने शरीर वश में रख सकते हैं, किसी भी बीमारी और परेशानी से निकल सकते हैं। यह सब करने का उनका उद्देश्य क्या होता है? इसके जरिए वे लोगों को यह दिखाना चाहते हैं कि जब परमेश्वर के आदेश की बात आती है तो वे खुद को दरकिनार कर आत्म-त्याग कर सकते हैं; उनके लिए कर्तव्य ही सबकुछ है। वे यह सब दिखावा लोगों के सामने करते हैं, जब लोग आसपास होते हैं, तो वे जब आराम करना चाहिए, तब आराम नहीं करते, बल्कि जानबूझकर देर तक काम करते हैं, जल्दी उठते हैं और देर से सोने जाते हैं। लेकिन मसीह-विरोधी जब सुबह से शाम तक खुद को इस तरह थकाते हैं तो कर्तव्य निभाने में उनकी कार्यकुशलता और प्रभावशीलता के बारे में क्या कहेंगे? ये बातें तो उनकी सोच के दायरे से ही बाहर होती हैं। वे यह सब सिर्फ लोगों के सामने करने की कोशिश करते हैं, ताकि लोग उनका कष्ट देख सकें, और यह देख सकें कि वे अपने बारे में सोचे बिना किस तरह खुद को परमेश्वर के लिए खपाते हैं। वे इस बारे में बिल्कुल नहीं सोचते कि वे जो कर्तव्य कर रहे हैं और जो काम कर रहे हैं, वह सत्य सिद्धांतों के अनुसार हो भी रहा है या नहीं, वे इसके बारे में थोड़ा भी नहीं सोचते। वे केवल यही सोचते हैं कि सभी लोग उनके अच्छे व्यवहार को देख रहे हैं या नहीं, सबको इसकी जानकारी हो रही है या नहीं, क्या उन्होंने सब पर अपनी छाप छोड़ दी है और क्या यह छाप उनमें प्रशंसा और स्वीकार्यता का भाव पैदा करेगी, क्या ये लोग उनकी पीठ पीछे उन्हें शाबाशी देंगे और उनकी प्रशंसा करते हुए कहेंगे, ‘ये लोग वास्तव में कष्ट सह सकते हैं, इनकी सहनशक्ति और असाधारण दृढ़ता की भावना हममें से किसी के बस की बात नहीं। ये वे लोग हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं, जो कष्ट सहकर भारी बोझ उठा सकते हैं, ये लोग कलीसिया के स्तंभ हैं।’ यह सुनकर मसीह-विरोधी सन्तुष्ट हो जाते हैं। मन में सोचते हैं, ‘मैं कितना चतुर हूँ जो ऐसा दिखावा किया, ऐसा करके मैंने कितनी चालाकी की! मुझे पता था कि लोग सिर्फ बाहर की चीजें देखते हैं, और उन्हें ये अच्छे व्यवहार पसंद है। मुझे पता था कि अगर मैं इस तरह से पेश आऊँगा, तो इससे लोगों की स्वीकृति मिलेगी, इससे मुझे शाबाशी मिलेगी, वे लोग तहेदिल से मेरी प्रशंसा करेंगे, और इस तरह वे मुझे पूरी तरह एक नई रोशनी में देखेंगे, और फिर कभी कोई मुझे हिकारत से नहीं देखेगा। और अगर कभी ऊपरवाले को पता चल भी गया कि मैं असली काम नहीं कर रहा और मुझे बर्खास्त कर दिया गया, तो निस्संदेह बहुत से लोग मेरे समर्थन में खड़े हो जाएँगे, जो मेरे लिए रोएँगे, मुझसे रुकने का आग्रह करेंगे और मेरे पक्ष में बोलेंगे।’ वे गुप्त रूप से अपने नकली व्यवहार पर आनंदित रहते हैं—और क्या यह आनंद भी एक मसीह-विरोधी के प्रकृति सार को प्रकट नहीं करता? और यह क्या सार है? (दुष्टता।) सही है—यह दुष्टता का सार ही है। दुष्टता के इस सार के नियंत्रण में, मसीह-विरोधी आत्मतुष्टि और आत्मप्रशंसा की स्थिति उत्पन्न करते हैं, जिसके कारण वे गुप्त रूप से अपने दिल में परमेश्वर के विरुद्ध हल्ला मचाते हैं और उसका विरोध करते हैं। ऊपरी तौर पर, वे बड़ी कीमत चुकाते-से दिखते हैं और उनकी देह काफी पीड़ा सहती है, लेकिन क्या वे सच में परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील हैं? क्या वे सच में परमेश्वर के लिए खुद को खपाते हैं? क्या वे अपना कर्तव्य निष्ठापूर्वक कर सकते हैं? नहीं, वे नहीं कर सकते। ... क्या मसीह-विरोधियों का स्वभाव दुष्ट नहीं है? अपनी पीड़ा के पीछे, वे ऐसी महत्वाकांक्षाएँ और मिलावटें पालते हैं और इसी कारण से परमेश्वर ऐसे लोगों और ऐसे स्वभाव से घृणा करता है। लेकिन, मसीह-विरोधी कभी भी इस तथ्य को नहीं देखते या स्वीकार नहीं करते। परमेश्वर मनुष्य के अंतरतम हृदय का अवलोकन करता है, जबकि मनुष्य, मनुष्य का केवल बाहरी रूप देखता है—मसीह-विरोधियों के बारे में सबसे बेवकूफी वाली बात ये है कि वे इस तथ्य को स्वीकार नहीं करते, न ही इसे देख सकते हैं। और इसलिए वे खुद को लोगों के सामने प्रस्तुत करने और आकर्षक दिखाने के लिए अच्छे व्यवहार का उपयोग करने का हर संभव प्रयास करते हैं, ताकि दूसरे यह सोचें कि वे कष्ट और कठिनाई झेल सकते हैं, वह पीड़ा झेल सकते हैं जो आम लोग नहीं झेल सकते, वह काम कर सकते हैं जो आम लोग नहीं कर सकते, ताकि दूसरे लोग यह सोचें कि उनमें सहनशक्ति है, कि वे अपने शरीर को वश में कर सकते हैं, और उन्हें अपने स्वयं के दैहिक हितों या आनंद की कोई परवाह नहीं है। कभी-कभी तो वे इरादतन अपने कपड़े तब तक पहनेंगे, जब तक कि वे थोड़े गंदे न हो जाएँ और उन्हें धोएँगे नहीं, यहाँ तक कि तब भी नहीं धोएँगे जब उनमें से बदबू आने लग जाए; वे वह सब कुछ करेंगे जिससे दूसरे लोग उनकी आराधना करें। जितना ज्यादा वे दूसरों के सामने जाएँगे, उतना ही ज्यादा वे हरसंभव दिखावा करेंगे, ताकि लोग देख सकें कि वे सामान्य लोगों से अलग हैं, कि परमेश्वर के लिए खुद को खपाने की उनकी इच्छा सामान्य लोगों से ज्यादा है, कि पीड़ा सहने का उनका संकल्प सामान्य लोगों से ज्यादा दृढ़ है और यह कि उनमें कष्ट सहने की क्षमता सामान्य लोगों से अधिक है। मसीह-विरोधी इस तरह की परिस्थितियों में ऐसे व्यवहार करते हैं और इन व्यवहारों के पीछे मसीह-विरोधियों की दिली इच्छा ये होती है कि लोग उनकी आराधना करें और उनके बारे में ऊंचा सोचें। और जब वे अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं, जब उन्हें लोगों से प्रशंसा सुनने को मिलती है और जब वे देखते हैं कि लोग उन्हें ईर्ष्या, प्रशंसा और सराहना के भाव से देखते हैं, तब वे अपने दिल में प्रसन्न और संतुष्ट होते हैं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दस))। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि मसीह विरोधियों का स्वभाव दुष्ट होता है। जब उनका सामना किसी समस्या से होता है तो वे सत्य-सिद्धांतों की खोज नहीं करते या यह नहीं जानते कि परमेश्वर के इरादों के अनुसार कैसे कार्य करना है। इसके बजाय वे बाहरी व्यवहारों पर ध्यान देते हैं, अपने शरीर को अनुशासित करते हैं, कष्ट सहते हैं और कीमत चुकाते हैं, दूसरों को गुमराह करने के लिए बाहरी अच्छे आचरण का उपयोग करते हैं। मैं भी इसी प्रकार व्यवहार करती थी। कुछ समय तक देर तक जागने और सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त करने के बाद, अपने प्रति भाई-बहनों की चिंता देखकर, यहाँ तक कि उनकी प्रशंसा पाकर मुझे यकीन होने लगा था कि मेरा कष्ट सहना और कीमत चुकाना सार्थक है। अपनी बोझिल छवि को बनाए रखने के लिए मैंने जानबूझकर अपने कार्य के घंटे बढ़ा दिए थे। यहाँ तक कि जब मैं पहले आराम कर सकती थी तब भी मैं सोने में बहुत देर करती थी। परमेश्वर ने कहा कि मसीह-विरोधी केवल अन्य लोगों के सामने ही दिखावा करते हैं, उन्हें केवल इस बात की चिंता होती है कि क्या उनके कार्यों को देखा जा रहा है और दूसरों पर अच्छा प्रभाव पड़ रहा है। जहाँ तक सकारात्मक बातों का सवाल है, जैसे कि उनका कार्य प्रभावी है या नहीं या उनके कार्य में दक्षता है या नहीं, वे इन बातों पर बिल्कुल भी विचार नहीं करते। मैं भी बिल्कुल इसी तरह का व्यवहार कर रही थी। हाल ही में अपने कर्तव्य के निर्वहन में भार की कमी और वास्तविक कार्य न करने के कारण मुझे काट-छाँट का सामना करना पड़ा। अगर मैं सचमुच पश्चात्ताप करना चाहता थी तो मुझे अपने भ्रष्ट स्वभाव पर चिंतन करना चाहिए था, इस बात पर विचार करना चाहिए था कि कार्यकुशलता में सुधार कैसे लाया जाए और सत्य सिद्धांतों में और अधिक प्रयास कैसे किया जाए। इसके बजाय मैंने अपनी कार्य अवधि बढ़ा दी और दिखावे के लिए देर तक जागती रहती। देर रात तक कर्तव्य का निर्वहन करते समय मेरा दिमाग साफ नहीं रहता था, मुझे दिन में धुंधलापन महसूस होता था और मेरी एकाग्रता भी कमजोर पड़ गई थी। कुल मिलाकर मेरी कार्यकुशलता कम थी। लेकिन मुझे यह कभी नहीं लगता था कि कहीं परमेश्वर के घर के कार्य में देरी तो नहीं हो रही है, मुझे यही लगता था कि बस भाई-बहनों के दिलों में मेरी एक अच्छी छवि बनी रहे, मेरे लिए इतना ही काफी है। मैंने अपने कर्तव्य निर्वहन के अवसरों का इस्तेमाल दिखावा करने और प्रशंसा पाने के लिए किया। मैं रुतबे के लिए कार्य कर रही थी न कि अपने कर्तव्यों को पूरा करने और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए। मेरे विचार बहुत ही नीच और दुष्टतापूर्ण थे। इसके अलावा मेरे अंदर एक और भी घृणित विचार था। जब मेरी काट-छाँट की जा रही थी तो मैं जानती थी कि भाई-बहन और उच्च अगुआ यह देख रहे हैं कि मुझमें बदलाव आया है या नहीं। लेकिन मुझे लगता था कि वास्तविक कार्य करना और असली समस्याओं का समाधान करना बहुत थकाऊ कार्य है, हो सकता है कि तत्काल नतीजे न निकलें, जबकि देर तक जागकर कष्ट सहना और कीमत चुकाना अपेक्षाकृत सरल है। भले ही एक दिन मैं अपना कार्य ठीक से न करूँ, भाई-बहन फिर भी मेरा साथ देंगे क्योंकि उन्होंने मेरी उपलब्धियाँ न सही, मेरा प्रयास तो देखा ही है। इस तरह अगर मुझे बरखास्त भी कर दिया गया तो भी यह ज्यादा शर्मनाक नहीं होगा। कम से कम हर कोई यह तो देख सकेगा कि मैं कष्ट सहन कर सकती हूँ और अच्छा कार्य करने को तैयार हूँ। इन विचारों और इरादों पर चिंतन करते हुए मुझे खुद से घृणा होने लगी। मेरे वास्तविक कार्य न करने के कारण पहले ही कार्यों में देरी हो चुकी थी और मुझे बरखास्त कर दिया जाना चाहिए था। परमेश्वर के घर ने मुझे प्रशिक्षण जारी रखने का अवसर दिया, लेकिन मैंने न तो पश्चात्ताप किया और न ही खुद को बदला। इसके बजाय मैंने सतही कष्टों से दूसरों को गुमराह करने की कोशिश की और अपनी गलतियों को और बढ़ाती रही। भले ही देर तक जागना दूसरों को अस्थायी रूप से गुमराह कर दे, लेकिन परमेश्‍वर मानव हृदय की गहराइयों की जाँच करता है। इस तरह खुद को सजाने और सुशोभित करने से उसे चिढ़ और घृणा ही होगी। इसके अलावा परमेश्‍वर यह नहीं मापता कि अगुआ देर तक जागकर या लंबे समय तक जुटे रहकर वास्तविक कार्य कर सकते हैं या नहीं। भले ही अगुआ बहुत लंबे समय तक कार्य करें, अगर वे कार्य में समस्याओं का पता लगाकर उनका समाधान न कर सकें, भाई-बहनों को जीवन प्रवेश में आने वाली कठिनाइयों को सुलझाने में मदद करने के लिए सत्य की संगति न कर सकें या अपनी जिम्मेदारियों में वास्तविक प्रभावशीलता हासिल न कर सकें तो यह वास्तविक कार्य की श्रेणी में नहीं आएगा।

बाद में मैंने फिर से विचार किया। परमेश्वर हमेशा हमसे यह अपेक्षा करता है कि हम सामान्य नींद का कार्यक्रम बनाए रखें और शरीर की प्राकृतिक लय का पालन करें। फिर भी मैंने परमेश्वर के वचनों का पालन नहीं किया। मैं तो यहाँ तक मानती थी कि “कोई कार्य स्वीकार करो और मरते दम तक सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास करो” सराहनीय बात है। मैं इसी तरह अथक परिश्रम करते हुए अपना कर्तव्य निर्वहन कर रही थी। इस दृष्टिकोण में गलती आखिर कहाँ थी? मैंने इस मामले में परमेश्वर के वचनों में खोज की। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “परमेश्वर ने तुम्हें स्वतंत्र इच्छा, सामान्य मानवता की बुद्धि, विवेक और समझ दी है जो एक इंसान के पास होनी चाहिए। अगर तुम इन चीजों का अच्छी तरह से और सही ढंग से उपयोग करते हो, शरीर को जीवित रखने के नियमों का पालन करते हो, अपने स्वास्थ्य की उचित देखभाल करते हो, दृढ़ता से वह सब करते हो जो परमेश्वर तुमसे चाहता है, और वह सब हासिल करते हो जिसकी परमेश्वर तुमसे अपेक्षा करता है, तो इतना काफी है, और यह बहुत आसान भी है। क्या परमेश्वर ने तुमसे कार्य स्वीकार करने और मरते दम तक अपना सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास करने को कहा है? क्या उसने तुम्हें खुद को कष्ट देने के लिए कहा है? (नहीं।) परमेश्वर ऐसी चीजों की अपेक्षा नहीं करता। लोगों को खुद को कष्ट नहीं देना चाहिए, बल्कि व्यावहारिक ज्ञान से शरीर की विभिन्न आवश्यकताओं को ठीक से पूरा करना चाहिए। प्यास लगने पर पानी पियो, भूख लगने पर खाना खाओ, थके होने पर आराम करो, देर तक बैठे रहने के बाद व्यायाम करो, बीमार पड़ने पर डॉक्टर के पास जाओ, दिन में तीन बार भोजन करो और सामान्य मानवता का जीवन जीते रहो। बेशक तुम्हें अपने सामान्य कर्तव्य भी निभाते रहना चाहिए। अगर तुम्हारे कर्तव्यों में कुछ विशेषज्ञ ज्ञान शामिल है जिसे तुम नहीं समझते, तो तुम्हें अध्ययन करके उसका अभ्यास करना चाहिए। यह सामान्य जीवन है। अभ्यास के विभिन्न सिद्धांत जिन्हें परमेश्वर लोगों के लिए सामने रखता है, वे सभी चीजें हैं जिन्हें सामान्य मानवता की बुद्धि समझ सकती है, ऐसी चीजें जिन्हें लोग समझ और स्वीकार सकते हैं, और जो सामान्य मानवता के दायरे से जरा भी बाहर नहीं हैं। वे सभी मनुष्यों की प्राप्ति के दायरे में हैं, और किसी भी तरह से जो उचित है उसकी सीमा का उल्लंघन नहीं करते। परमेश्वर लोगों से अतिमानवीय या प्रख्यात व्यक्ति बनने की अपेक्षा नहीं रखता, जबकि नैतिक आचरण की कहावतें लोगों को अतिमानवीय या प्रख्यात व्यक्ति बनने की आकांक्षा रखने के लिए मजबूर करती हैं। उन्हें न केवल अपने देश और राष्ट्र के महान हित का ख्याल रखना होगा, बल्कि उन्हें इस कार्य को स्वीकार कर मरते दम तक अपना सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास भी करना होगा। यह उन्हें अपना जीवन छोड़ने के लिए मजबूर करता है, जो पूरी तरह से परमेश्वर की अपेक्षाओं के विपरीत है। लोगों के जीवन के प्रति परमेश्वर का रवैया क्या होता है? परमेश्वर लोगों को हर परिस्थिति में सुरक्षित रखता है, उन्हें प्रलोभन और अन्य खतरनाक परिस्थितियों में पड़ने से बचाता है, और उनके जीवन की रक्षा करता है। ऐसा करने में परमेश्वर का उद्देश्य क्या होता है? इसका उद्देश्य लोगों को अपना जीवन सही ढंग से जीने देना है। लोगों को अपना जीवन सही ढंग से जीने देने का उद्देश्य क्या है? परमेश्वर तुम्हें अतिमानव बनने के लिए मजबूर नहीं करता, और न ही वह तुम्हें स्वर्ग के नीचे की हर चीज को अपने दिल में रखने को कहता है और न ही देश और लोगों के बारे में चिंता करने को कहता है; सभी चीजों पर शासन करने, सभी चीजों का आयोजन करने और मानवजाति पर शासन करने के लिए परमेश्वर की जगह लेना तो दूर की बात है। बल्कि वह तुमसे अपेक्षा करता है कि तुम एक सृजित प्राणी का उचित स्थान ग्रहण करो, एक सृजित प्राणी के कर्तव्यों को पूरा करो और उन कर्तव्यों का पालन करो जो लोगों को करने चाहिए और वह करना चाहिए जो लोगों को करना चाहिए। ऐसी बहुत-सी चीजें हैं जो तुम्हें करनी चाहिए, और उनमें मानवजाति के भाग्य पर शासन करना, स्वर्ग के नीचे की हर चीज को अपने दिल में रखना, या मानवजाति, अपनी जन्मभूमि, कलीसिया, परमेश्वर की इच्छा, या मानवजाति को बचाने के उसके महान उपक्रम को पूरा करना शामिल नहीं है। ये चीजें शामिल नहीं हैं। तो तुम्हें जो चीजें करनी चाहिए उनमें क्या शामिल है? इनमें वह आदेश शामिल है जो परमेश्वर तुम्हें देता है, वे कर्तव्य जो परमेश्वर तुम्हें सौंपता है, और ऐसी हर अपेक्षा जो परमेश्वर का घर प्रत्येक अवधि में तुमसे करता है। क्या यह सरल नहीं है? क्या इसे करना आसान नहीं है? इसे करना बहुत ही सरल और आसान है। लेकिन लोग हमेशा परमेश्वर को ही गलत समझते हैं, और सोचते हैं कि वह उन्हें गंभीरता से नहीं लेता है। ऐसे लोग हैं जो सोचते हैं, ‘जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं उन्हें खुद को इतना महत्वपूर्ण नहीं समझना चाहिए, उन्हें अपने शरीर के बारे में चिंतित नहीं होना चाहिए, अधिक कष्ट सहना चाहिए और रात को जल्दी नहीं सोना चाहिए, क्योंकि अगर वे जल्दी सो गए तो परमेश्वर उनसे नाराज हो सकता है। उन्हें जल्दी उठना चाहिए और देर से सोना चाहिए, और रात भर मेहनत करके अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। भले ही वे परिणाम न दें, फिर भी उन्हें सुबह दो या तीन बजे तक जगे रहना चाहिए।’ नतीजा यह कि ऐसे लोग अपने आप ही खुद को इतना ज्यादा थका देते हैं कि उन्हें चलने में भी बहुत मेहनत करनी पड़ती है, और फिर भी कहते हैं कि अपना कर्तव्य निभाने से उन्हें थकावट होती है। क्या यह लोगों की मूर्खता और अज्ञानता के कारण नहीं है? कुछ अन्य लोग भी हैं जो सोचते हैं, ‘जब हम थोड़े विशेष और अच्छे कपड़े पहनते हैं तो इससे परमेश्वर खुश नहीं होता है, न ही वह इस बात से खुश होता है कि हम हर दिन मांस और अच्छा खाना खाते हैं। परमेश्वर के घर में हम केवल कोई कार्य स्वीकार कर मरते दम तक सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास ही कर सकते हैं,’ और उन्हें लगता है कि परमेश्वर के विश्वासी होने के नाते उन्हें मरते दम तक अपना कर्तव्य निभाना चाहिए, नहीं तो परमेश्वर उन्हें नहीं छोड़ेगा। क्या वास्तव में ऐसा है? (नहीं।) परमेश्वर चाहता है कि लोग अपना कर्तव्य जिम्मेदारी और वफादारी के साथ पूरा करें, लेकिन वह उन्हें अपने शरीर को कष्ट देने के लिए मजबूर नहीं करता, और वह उन्हें बेपरवाह होने या समय बर्बाद करने के लिए तो बिल्कुल भी नहीं कहता। मैं देखता हूँ कि कुछ अगुआ और कर्मी लोगों को इस तरह से अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए व्यवस्थित करते हैं, वे दक्षता की अपेक्षा नहीं करते, बल्कि केवल लोगों का समय और ऊर्जा बर्बाद करते हैं। सच तो यह है कि वे लोगों का जीवन बर्बाद कर रहे हैं। अंत में, लंबे समय में कुछ लोगों को स्वास्थ्य समस्याएँ, पीठ दर्द की समस्या, और घुटनों में दर्द की शिकायत रहने लगती है, और कंप्यूटर की स्क्रीन देखते ही उन्हें चक्कर आने लगता है। यह कैसे हो सकता है? यह किसने किया? (वे खुद ही इसका कारण थे।) परमेश्वर के घर की अपेक्षा होती है कि हर कोई अधिक से अधिक रात 10 बजे तक आराम करने चला जाए, लेकिन कुछ लोग रात 11 या 12 बजे तक नहीं सोते, जिसका असर दूसरे लोगों के आराम पर पड़ता है। कुछ लोग जीवन की सुख-सुविधाओं का लालच रखने और सामान्य रूप से आराम करने वालों को भी धिक्कारते हैं। यह गलत है। अगर तुम्हारे शरीर को पर्याप्त आराम नहीं मिलता तो तुम अच्छा काम कैसे कर सकते हो? परमेश्वर इस बारे में क्या कहता है? परमेश्वर का घर इसे कैसे नियंत्रित करता है? सब कुछ परमेश्वर के वचनों और परमेश्वर के घर के नियमों के अनुसार किया जाना चाहिए, और केवल यही सही है। कुछ लोग बेतुकी समझ रखते हैं, वे हमेशा चरम सीमा तक चले जाते हैं और यहाँ तक कि दूसरों को बाध्य भी करते हैं। यह सत्य के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। कुछ लोग बस बेतुके और मूर्ख होते हैं जिनके पास कोई विवेक नहीं होता, और उन्हें लगता है कि अपने कर्तव्य निभाने के लिए देर रात तक जागना जरूरी है; चाहे वे काम में व्यस्त हों या नहीं, वे थके होने पर भी खुद को आराम नहीं करने देते, बीमार होने पर किसी से कुछ नहीं कहते, और इससे भी बढ़कर डॉक्टर के पास नहीं जाते हैं, जो उन्हें समय की बर्बादी लगती है जिससे उनके कर्तव्य निर्वहन में देरी हो सकती है। क्या यह दृष्टिकोण सही है? इतने सारे धर्मोपदेश सुनने के बाद भी विश्वासी ऐसे बेतुके विचार लेकर क्यों आते हैं? परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाएँ कैसे नियंत्रित होती हैं? तुम्हें नियमित रूप से रात 10 बजे तक आराम करने चले जाना चाहिए और सुबह 6 बजे उठ जाना चाहिए, और यह ध्यान रखना चाहिए कि तुम्हें आठ घंटे की अच्छी नींद मिले। इसके अलावा इस बात पर भी बार-बार जोर दिया जाता है कि तुम्हें काम के बाद व्यायाम करके अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए, स्वस्थ आहार और दिनचर्या का पालन करना चाहिए, ताकि तुम अपना कर्तव्य निभाते समय स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बचे रहो। लेकिन कुछ लोग इसे समझ नहीं पाते हैं, वे सिद्धांतों या नियमों का पालन नहीं कर पाते, बेवजह देर तक जागते हैं और गलत तरह की चीजें खाते हैं। जब वे बीमार पड़ जाते हैं, तो अपना कर्तव्य नहीं निभा पाते, और तब पछतावा करने से कुछ नहीं बदलता(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (12))। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि लोगों से परमेश्वर की अपेक्षाएँ बहुत व्यावहारिक होती हैं—जब भूख लगे खाओ; जब थक जाओ आराम करो; बीमार हो जाओ तो चिकित्सीय देखभाल लो। परमेश्वर यह अपेक्षा नहीं करता कि लोग अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए अतिमानव बनें या शरीर की सामान्य लय का उल्लंघन करें। लेकिन अपनी भ्रामक समझ के कारण मुझे लगता था जल्दी सोना आलसीपन है, जबकि आधी रात तक जागना और नींद की उपेक्षा करना कर्तव्य के प्रति निष्ठावान होना है। बचपन से ही स्कूल और समाज ने हमें समाज में मौजूद कड़ी मेहनत के मॉडलों से सीखने की शिक्षा दी है। उनमें से कुछ तो दर्जनों घंटे अपने कार्य में दृढ़तापूर्वक डटे रहे और आखिरकार बहुत ज्यादा कार्य के कारण ढह गए और कुछ तो अपनी तैनाती के दौरान ही अचानक दम तोड़ बैठे। बाद की पीढ़ियों ने उनकी समर्पण की भावना की प्रशंसा की। मैंने इस गलत दृष्टिकोण को स्वीकार कर लिया था और देर रात तक जागकर यह साबित करना चाहा कि मेरे ऊपर अपने कर्तव्य का बोझ है। लेकिन असल में रात को ग्यारह-बारह बजे तक मेरा दिल तेजी से धड़कने लगता था। अगली सुबह मैं सिर में भारीपन और शरीर में सुस्ती के साथ जागती थी। कार्यशील स्थिति में आने से पहले मुझे खुद को समायोजित करने में काफी समय लगता था। चूँकि मैं सटीकता से ध्यान नहीं दे पाती थी, इसलिए कर्तव्यों में मेरी त्रुटि दर बढ़ गयी और मेरी कार्यकुशलता भी अधिक नहीं थी। चूँकि मैं देर से उठती थी, भक्ति छोड़कर मैं सीधे काम पर चली जाती थी। हर दिन मैं अपने द्वारा प्रकट की गई भ्रष्टता पर चिंतन करने या अपने कर्तव्य निर्वहन में आए विचलनों का सारांश प्रस्तुत करने में नाकाम रहती थी। मैंने अपना कर्तव्य बिना जीवन प्रवेश के श्रम की दशा में करती थी और मेरे कार्य की प्रभावशीलता बिगड़ती गई। दूसरों की प्रशंसा पाने के लिए मैं अतिरिक्त दो-तीन घंटे देर तक जागती रहती। लेकिन मेरी कार्यकुशलता में ज्यादा सुधार नहीं हुआ और आगे चलकर मेरा स्वास्थ्य भी खराब हो गया। मुझे एहसास हुआ कि अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान प्रदर्शन को साबित करने के लिए देर रात तक जागना बेहद मूर्खतापूर्ण और विकृत तरीका था। मुझे यह भी एहसास हुआ कि शैतान द्वारा लोगों के मन में डाले गए विचार, जैसे कि “कोई कार्य स्वीकार करो और मरते दम तक सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास करो,” और “वसंत के रेशम के कीड़े मरते दम तक बुनते रहेंगे, और मोमबत्तियाँ बाती खत्म होने तक जलती रहेंगी,” लोगों के लिए हानिकारक हैं और उनके जीवन को नुकसान पहुँचाते हैं। केवल परमेश्वर ही मानव जीवन को सँजोता और बहुमूल्य मानता है, कार्य और आराम के लिए सामान्य घंटे निर्धारित करता है, लोगों को सामान्य नियमों के अनुसार रहने और कार्य करने की छूट देता है। इसमें परमेश्वर का प्रेम निहित है। परमेश्वर चाहता है कि लोग एक सृजित प्राणी के कर्तव्य को निष्ठापूर्वक पूरा करें। निष्ठा का अर्थ यह नहीं है कि हम अपने शरीर को बीमार कर दें और बुरी तरह थका दें; इसके बजाय परमेश्वर आशा करता है कि हम अपने कर्तव्यों का निर्वहन पूरे दिल और क्षमता से करें, सत्य खोजें और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करें और अपने भ्रष्ट स्वभाव की जाँच करने पर ध्यान दें। लेकिन मैं जो प्रकट कर रही थी वह मूर्खतापूर्ण निष्ठा थी, अच्छे व्यवहार का दिखावा करके बस लोगों को गुमराह कर रही थी। जब मुझे यह बात समझ में आई तो मुझे बहुत अफसोस और ऋणी होने का एहसास हुआ। मैं अपने कर्तव्य निर्वहन में इस प्रकार की गलत प्रेरणा रखकर कार्य करती नहीं रह सकती थी।

अगले दिन मैंने अपने कार्य की अनुसूची फिर से बनाई, जल्दी सोना, जल्दी उठना और सुबह-शाम व्यायाम करना। कुछ समय तक ऐसा करने के बाद, मेरे दिल का तेज धड़कना और हृदय गति का तीव्र होना एकदम गायब हो गया। इसके अलावा सुबह जल्दी उठने से मैं भक्ति करने और अनुभवजन्य गवाही लेख लिखने के लिए भी समय निकाल पाती थी; मेरा दिल भी अपेक्षाकृत शांत था। समय की उचित योजना बनाकर मेरी कार्यकुशलता में सुधार हुआ और मेरी मानसिक स्थिति भी काफी सुधर गई। परमेश्वर का धन्यवाद!

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