19. मैंने देखा मेरे शब्दों के पीछे हमेशा अशुद्धियाँ होती थीं

शियाओ फैन, चीन

मैं कलीसिया में सिंचन कार्य का पर्यवेक्षण कर रहा था। तीन महीने से ज्यादा बीतने के बाद भी सिंचनकर्ताओं को विकसित करने का काम अभी भी धीमी गति से चल रहा था। मेरा साथी भाई वांग लेई अक्सर मुझे इस मुद्दे पर खोज करने और चिंतन करने की याद दिलाता था, लेकिन हर बार जब वह ऐसा करता था, तो मुझे अपने दिल में कुछ प्रतिरोध महसूस होता था, मैं सोचता था कि मैं आलसी नहीं हूँ और मैं सिंचनकर्ताओं की समस्याएँ हल करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा हूँ। मैंने सोचा, “उनकी प्रगति हमेशा इतनी धीमी क्यों रही है? मुझे नहीं पता कि इसका क्या कारण हो सकता है। मेरे खयाल से ऐसा इसलिए है क्योंकि उनकी काबिलियत कम है और उनके भ्रष्ट स्वभाव बहुत गंभीर हैं।” इसलिए हर बार जब भाई वांग लेई मुझे काम का सारांश देने की याद दिलाता था, तो मेरा रवैया यही होता था। मुझे लगता था कि चूँकि मैंने काफी काम किया है, इसलिए मुझे आत्म-चिंतन की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन फिर मैं सोचता था, “इतने लंबे समय बाद भी लोगों को विकसित करने के काम से कोई नतीजा नहीं आ रहा है और सिंचनकर्ता अभी भी धीमी गति से प्रगति कर रहे हैं। अगुआ और पर्यवेक्षक निश्चित रूप से इसे देख रहे हैं और अगर मैं विशिष्ट मुद्दों का सारांश नहीं बता पाया तो वे मेरे बारे में क्या सोचेंगे? क्या वे सोचेंगे कि मैं पूरी तरह से सुस्त हूँ, कि मैं अपने कर्तव्य में अप्रभावी रहा हूँ और यह कि मैं आत्म-चिंतन भी नहीं करता? लेकिन मुझे वास्तव में नहीं पता था कि मेरी समस्याएँ क्या हैं। मैं मुद्दों के बारे में बोलने की पहल करके कह सकता हूँ कि मैं कठिनाइयों का सामना कर रहा हूँ और आगे बढ़ने का रास्ता खोजना चाहता हूँ। इस तरह अगुआ न केवल मेरी काट-छाँट नहीं करेंगे, बल्कि सोचेंगे कि मैं ईमानदार हूँ और जब मेरे काम में समस्याएँ आती हैं, तो मैं उन्हें छिपाता नहीं हूँ बल्कि मदद माँगने की पहल करता हूँ और वे सोचेंगे कि मैं ऐसा व्यक्ति हूँ जो सत्य खोजता है।” यह सोचकर मुझे काफी खुशी हुई और लगा कि मैंने अपनी समस्याओं के लिए रामबाण उपाय पा लिया है। इसलिए मैंने अपनी कठिनाइयों को एक कार्य रिपोर्ट में लिखा और अंत में यह भी जोड़ दिया, “मैं खोज जारी रखूँगा; अगर आपको कोई मसला मिलता है तो उम्मीद है कि आप मुझे बताएँगे और इंगित करेंगे।” रिपोर्ट जमा करने के बाद मैं खुश था।

एक दिन वांग लेई ने कहा, “अगुआओं ने पत्र लिखकर पूछा है कि तुम्हें सिंचनकर्ताओं के विकसित करने के अपने काम में कोई नतीजे क्यों नहीं मिले हैं।” मैंने सोचा कि कैसे कुछ दिन पहले मैंने अपनी कार्य रिपोर्ट में अगुआओं से मदद माँगी थी और अब अगुआओं ने वांग लेई से मेरी स्थिति पर गौर करने के लिए कहा है तो वे शायद समस्याओं का पता लगाने में मेरी मदद करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन बाद में मैंने सोचा, “अगुआ मेरी स्थिति की जाँच करने के लिए ऐसा कर रहे हैं। क्या वे मेरी जाँच इसलिए शुरू कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि मेरे कर्तव्य में वाकई समस्याएँ हैं? मैं इतने लंबे समय से अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ और मुझे कोई नतीजा नहीं मिला है, न जाने वे क्या पर्दाफाश कर दें! अगर उन्हें पता चला कि मेरे कर्तव्य में बहुत सारी समस्याएँ हैं या कुछ गंभीर मुद्दे हैं, तो क्या वे मेरी काट-छाँट करेंगे? क्या वे सोचेंगे कि मेरी काबिलियत खराब है और मैं असल काम नहीं कर सकता और फिर मुझे बरखास्त कर देंगे? यह बेहद अपमानजनक होगा!” जब मेरे मन में ये विचार आए तो मुझे बहुत घबराहट महसूस हुई, “मुझे उम्मीद नहीं थी कि चीजें इस बिंदु तक पहुँच जाएँगी। क्या यह खुद अपनी कब्र खोदना नहीं है? मुझे इस बारे में क्या करना चाहिए?” भले ही मैंने कुछ भी किया, पर शांत नहीं हो पाया। रात में जब मैंने वांग लेई को कीबोर्ड पर कुछ लिखते हुए सुना, मैंने सोचा, “वह मेरी कितनी समस्याओं की रिपोर्ट कर रहा है? अगुआ मेरे बारे में क्या सोचेंगे?” मुझे कुछ बेचैनी महसूस हुई और मैं काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाया। इसलिए मैंने परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मुझे लगता है कि इस स्थिति ने मेरी दशा को काफी प्रभावित किया है और मुझे नहीं पता कि मैं यहाँ क्या सबक सीखूँ। इस मामले में सत्य खोजने और अपना भ्रष्ट स्वभाव जानने के लिए मेरा मार्गदर्शन करो।”

अगली सुबह नाश्ते के बाद मैंने परमेश्वर के वचन पढ़ने शुरू किए और अपनी दशा पर विचार किया। मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “अगर तुम परमेश्वर के घर द्वारा तुम्हारा पर्यवेक्षण करना, अवलोकन करना और तुम्हें समझने का प्रयास करना स्वीकार सकते हो, तो यह बहुत बढ़िया बात है। यह तुम्हारा कर्तव्य निभाने में, संतोषजनक तरीके से तुम्हारा कर्तव्य कर पाने में और परमेश्वर के इरादे पूरे करने में तुम्हारे लिए मददगार है। यह बिना किसी भी नकारात्मक पक्ष के तुम्हें फायदा पहुँचाता है और तुम्हारी मदद करता है। एक बार जब तुम इस सिद्धांत को समझ गए हो, तो क्या तुममें अब अपने अगुआओं, कार्यकर्ताओं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों की निगरानी के खिलाफ प्रतिरोध या सतर्कता की कोई भावना होनी चाहिए? भले ही कभी-कभी कोई तुम्हें समझने का प्रयास करता हो, तुम्हारा अवलोकन करता हो और तुम्हारे कार्य का पर्यवेक्षण करता हो, यह व्यक्तिगत रूप से लेने वाली बात नहीं है। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? क्योंकि जो कार्य अब तुम्हारे हैं, जो कर्तव्य तुम निभाते हो, और कोई भी कार्य जो तुम करते हो, वे किसी एक व्यक्ति के निजी मामले या व्यक्तिगत कार्य नहीं हैं; वे परमेश्वर के घर के कार्य से संबंधित हैं और परमेश्वर के कार्य के एक भाग से संबंध रखते हैं। इसलिए, जब कोई तुम्हारी पर्यवेक्षण या प्रेक्षण करने में थोड़ा समय लगाता है या तुम्हें गहराई से समझने लगता है, तुम्हारे साथ खुले दिल से बातचीत करने और यह पता लगाने की कोशिश करता है कि इस दौरान तुम्हारी स्थिति कैसी रही है, यहाँ तक कि कभी-कभी जब उसका रवैया थोड़ा कठोर होता है, और तुम्हारी थोड़ी काट-छाँट करता है, अनुशासित करता और धिक्कारता है, तो वह यह सब इसलिए करता है क्योंकि उसका परमेश्वर के घर के कार्य के प्रति एक ईमानदार और जिम्मेदारी भरा रवैया होता है। तुम्हें इसके प्रति कोई नकारात्मक विचार या भावनाएँ नहीं रखनी चाहिए(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (7))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैं समझ गया कि जब परमेश्वर का घर कार्य का पर्यवेक्षण करता है और उसे देखता है, तो इसका उद्देश्य लोगों के भटकाव ठीक करने और उन्हें उनके कर्तव्य अच्छी तरह से करने में मदद करना होता है और मुझे प्रतिरोध या सतर्कता की कोई भावना नहीं रखनी चाहिए क्योंकि यह परमेश्वर के इरादों के अनुरूप नहीं है। मैंने सोचा कि कैसे इस दौरान भले ही मैं हर दिन अपने कर्तव्य में व्यस्त रहा हूँ, अक्सर सभाओं में भाई-बहनों के साथ संगति करता रहा हूँ, लेकिन अंत में मुझे कोई अच्छे नतीजे नहीं मिले। मेरे काम में बहुत से मसले होंगे जिनके बारे में मैं नहीं जानता हूँ और अगर मैंने समय रहते इन चीजों को पहचानकर हल नहीं किया, तो वे काम में देरी करती रहेंगी। जब अगुआओं ने भाई-बहनों से मेरे कर्तव्य में मसलों के बारे में पूछा तो यह इन समस्याओं के कारणों का पता लगाने में मेरी मदद करने के लिए था और यह मेरे काम और जीवन प्रवेश दोनों के लिए फायदेमंद होगा। मुझे प्रतिष्ठा गँवाने के डर से प्रतिरोध और सतर्कता की दशा में नहीं रहना चाहिए या अपने मुद्दे सामने लाने पर पछतावा भी नहीं करना चाहिए। मुझे अपने भाई-बहनों का पर्यवेक्षण स्वीकार करना था और चाहे वे जो भी मसले इंगित करें, मुझे ईमानदार दिल और सत्य स्वीकार करने का रवैया बनाए रखना था। यही परमेश्वर के इरादों के साथ मेल खाता है। यह सोचकर मुझे कुछ हद तक मुक्ति का एहसास हुआ।

उसके बाद मैं खोजता रहा और मैंने खुद से पूछा, “मैं स्पष्ट रूप से यह जानना चाहता था कि मुझे अपने कर्तव्य में कोई नतीजे क्यों नहीं मिल रहे हैं, लेकिन जब अगुआओं ने वास्तव में मेरे काम की जाँच की तो मैं इतना संवेदनशील और नाराज क्यों हो गया?” आत्म-चिंतन के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं सचमुच धोखेबाज था। मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “शैतान द्वारा भ्रष्ट होकर पूरी मानवजाति शैतानी स्वभाव के साथ जीती है। शैतान की तरह लोग हर पहलू में भेस बदल कर खुद को बढ़िया ढंग से पेश करते हैं, और हर मामले में धोखाधड़ी और फायदे के खेल खेलते हैं। ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके लिए वे धोखाधड़ी और फायदे के खेल का सहारा नहीं लेते। कुछ लोग खरीदारी जैसी आम गतिविधियों में भी धोखाधड़ी के खेल खेलते हैं। मिसाल के तौर पर हो सकता है उन्होंने सबसे फैशनेबल पोशाक खरीदी हो, मगर—बहुत पसंद होने पर भी—वे उसे कलीसिया में पहनने की हिम्मत नहीं करते, इस डर से कि भाई-बहन उनके बारे में बातें बनाएँगे और उन्हें ओछा कहेंगे। इसलिए वे इसे दूसरों की पीठ पीछे पहनते हैं। यह कैसा बर्ताव है? यह धोखेबाज और छल करने के स्वभाव का खुलासा है। कोई फैशनेबल पोशाक खरीद कर भी भाई-बहनों के सामने पहनने की हिम्मत क्यों नहीं करेगा? फैशनेबल चीजें उनकी दिली पसंद हैं और वे गैर-विश्वासियों की ही तरह दुनिया के चलन के पीछे भागते हैं। वे डरते हैं कि भाई-बहन उनकी असलियत न जान लें, यह न देख लें कि वे कितने ओछे हैं, और वे एक सम्मानित और ईमानदार व्यक्ति नहीं हैं। दिल से वे फैशनेबल चीजों के पीछे भागते हैं, और उन्हें जाने देना उनके लिए मुश्किल होता है, इसलिए वे उन्हें सिर्फ घर पर ही पहन सकते हैं, और डरते हैं कि भाई-बहन उन्हें देख न लें। अगर उनकी पसंदीदा चीजें लोगों के सामने नहीं आ सकतीं, तो फिर वे उन्हें छोड़ क्यों नहीं सकते? क्या कोई शैतानी स्वभाव उनका नियंत्रण नहीं कर रहा है? वे निरंतर शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं, सत्य को समझते हुए-से लगते हैं, फिर भी वे सत्य को अभ्यास में नहीं ला पाते। यह वह व्यक्ति है जो शैतानी स्वभाव के साथ जीता है। अगर कोई व्यक्ति कथनी और करनी दोनों में ढोंगी है, दूसरों को अपना असली रूप नहीं देखने देता, और दूसरों के सामने हमेशा एक धर्मनिष्ठ व्यक्ति होने की छवि पेश करता है, तो फिर उसमें और किसी फरीसी में क्या फर्क है? ऐसे लोग एक वेश्या का जीवन जीना चाहते हैं, मगर साथ ही अपनी शुचिता का एक स्मारक भी बनवाना चाहते हैं। उन्हें अच्छी तरह मालूम था कि वे अपनी आकर्षक पोशाक जनता के बीच नहीं पहन सकते, तो फिर उन्होंने उसे खरीदा क्यों? क्या यह पैसे की बर्बादी नहीं थी? सिर्फ इसलिए कि उन्हें ऐसी चीज पसंद है और उनका पोशाक पर दिल आ गया था, उन्हें लगा कि यह खरीद लेनी चाहिए। लेकिन खरीद लेने के बाद वे इसे बाहर नहीं पहन सकते। कुछ साल गुजर जाने के बाद, उन्हें इसे खरीदने पर पछतावा होता है, एकाएक उन्हें एहसास होता है : ‘मैं इतना मूर्ख कैसे था, इतना घिनौना कि मैंने यह किया?’ अपने कृत्य पर उन्हें खुद भी घृणा होती है। लेकिन वह अपने कार्यों को नियंत्रित नहीं कर सकते क्योंकि वह उन चीजों को जाने नहीं दे सकते जिन्हें वह पसंद करते हैं, और जिनके पीछे भागते हैं। इसलिए वह खुद को संतुष्ट करने के लिए दोमुँही युक्ति और चाल चलते हैं। अगर वे ऐसे तुच्छ मामले में धोखेबाजी वाला स्वभाव दिखाते हैं, तो कोई बड़ा मामला आने पर क्या वे सत्य पर अमल कर पाएँगे? यह नामुमकिन होगा। स्पष्ट है कि धोखेबाज होना उनकी प्रकृति है, और धोखेबाजी उनकी दुखती रग है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, एक ईमानदार व्यक्ति होने का सबसे बुनियादी अभ्यास)। परमेश्वर के वचनों से मुझे समझ आया कि जब लोग धोखेबाज स्वभाव में रहते हैं, तो वे अपने शब्दों और कार्यों को लेकर परमेश्वर की जाँच-पड़ताल स्वीकार नहीं कर पाते और इसके बजाय दूसरों के सामने एक तरह से और उनकी पीठ पीछे दूसरे तरह से कार्य-कलाप करते हैं। वे लगातार खुद को छिपाने के लिए चालें चलते हैं, जिससे दूसरों के लिए सत्य देख पाना मुश्किल हो जाता है। यही वास्तव में धोखेबाज व्यक्ति होने का मतलब है। मैंने पिछले समय के बारे में सोचा, जब मैं काम की रिपोर्ट कर रहा था। मुझे वास्तव में नहीं लगता था कि लोगों को विकसित करने में मुझे कोई समस्या है और मुझे लगता था कि मैंने बहुत काम किया है और जब मेरे साथी भाई ने मुझे अपने भटकावों का सारांश देने की याद दिलाई, तब भी मैंने आत्म-चिंतन करने के बारे में नहीं सोचा। लेकिन नतीजे खराब होने का तथ्य पहले से ही स्पष्ट था, इसलिए अगर मैं इसके कारणों का पता नहीं लगा सका तो अगुआ और पर्यवेक्षक मेरे बारे में क्या सोचेंगे? अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए मैंने जान-बूझकर कहा कि मुझे कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है और मैं समाधान खोजना चाहता हूँ। भले ही मैं जो कह रहा था उसमें मैं गंभीर लग रहा था, मानो मुझमें काम को लेकर बोझ की बड़ी भावना है, वास्तव में समस्या हल करने के लिए सत्य खोजने का मेरा कोई इरादा नहीं था और मैं दूसरों को दिखाने के लिए बस स्वांग कर रहा था, ताकि अगुआ मुझे ऐसे व्यक्ति के रूप में देखें जिसे खोजने की बहुत इच्छा रहती है और जो ईमानदार है। लेकिन जब अगुआओं ने सचमुच मेरे कर्तव्य में भटकावों और समस्याओं पर गौर किया, तो मैं बेनकाब हो गया। मुझे डर था कि मेरे काम में गंभीर समस्याएँ उजागर हो जाएँगी और अगुआ सोचेंगे कि मेरी काबिलियत कम है, कि मुझमें काम करने की क्षमता नहीं है या वे मुझे बरखास्त भी कर देंगे, इसलिए मैं प्रतिरोध की भावनाओं के साथ जी रहा था, इस बात पर पछता रहा था कि मैंने समस्याओं पर मार्गदर्शन माँगा था, यहाँ तक सोच रहा था कि समस्याएँ रिपोर्ट करना खुद अपनी कब्र खोदने जैसा होगा। मैंने देखा कि मसलों पर मेरी खोज उनका समाधान करने के लिए नहीं थी, बल्कि अगुआओं के दिलों में अपना रुतबा और छवि बनाए रखने के लिए थी। क्या मैं सिर्फ दूसरों को धोखा देने और छल करने की कोशिश नहीं कर रहा था? यह सचमुच वही था जिसे परमेश्वर ने उजागर किया—दो-मुँहा होना और वेश्या का जीवन जीना, लेकिन साथ ही अपनी पवित्रता के लिए स्मारक भी बनवाना। मैंने पुराने फरीसियों के बारे में सोचा। हालाँकि वे बहुत पवित्र दिखते थे और मसीहा के आगमन की लालसा रखते थे, जब प्रभु यीशु वास्तव में काम करने आया, तो चाहे प्रभु यीशु ने कितने भी चमत्कार किए हों या उसने कितने भी सत्य व्यक्त किए हों, उन्होंने इनमें से किसी को भी स्वीकार नहीं किया। यहाँ तक कि उन्होंने अपना रुतबा और आजीविका बचाने के लिए प्रभु यीशु का विरोध और निंदा की। वे परमेश्वर के आगमन की अपनी लालसा में पवित्र दिखाई दिए, लेकिन वास्तव में वे लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे थे और वे पाखंडी के अलावा कुछ नहीं थे। मैं फरीसियों से किस तरह अलग व्यवहार कर रहा था?

एक सुबह भक्ति के दौरान मैंने परमेश्वर के वचनों के एक वाक्य के बारे में सोचा : “वे अपना गुप्त उद्देश्य हासिल करने के लिए एक काम करते हुए दूसरा काम करने का दिखावा करते हैं।” मुझे लगा कि यह मेरी दशा से बहुत मेल खाता है, इसलिए मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ने के लिए ढूँढ़ा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “दुष्टता की मुख्य विशेषता क्या है? यह कि सुनने में उनके शब्द खासतौर पर मीठे लगते हैं और ऊपरी तौर पर सब कुछ सही प्रतीत होता है। ऐसा नहीं लगता कि कहीं कोई समस्या है और हर कोण से चीजें काफी अच्छी नजर आती हैं। जब वे कुछ करते हैं तो तुम्हें वे किसी खास साधन का उपयोग करते हुए नजर नहीं आते और बाहर से कमजोरियों या गलतियों का कोई चिह्न दिखाई नहीं देता है, लेकिन फिर भी वे अपना लक्ष्य हासिल कर लेते हैं। वे चीजों को अत्यंत गुप्त तरीके से करते हैं। मसीह-विरोधी ठीक इसी तरीके से लोगों को गुमराह करते हैं। इस तरह के लोगों और मामलों को पहचानना सबसे मुश्किल है। कुछ लोग अक्सर सही चीजें कहते हैं, सुनने में अच्छे लगने वाले बहानों का उपयोग करते हैं और कुछ लोग लोगों की आँखों में धूल झोंकने के लिए ऐसे धर्म-सिद्धांतों, कहावतों या क्रिया-कलापों का उपयोग करते हैं जो मानवीय स्नेह के अनुरूप हैं। वे अपना गुप्त उद्देश्य हासिल करने के लिए एक काम करते हुए दूसरा काम करने का दिखावा करते हैं। यह दुष्टता है, लेकिन ज्यादातर लोग इन व्यवहारों को धोखेबाजी के व्यवहार मानते हैं। लोगों में दुष्टता की समझ और उसके गहन-विश्लेषण की क्षमता सीमित होती है। दरअसल, धोखेबाजी की तुलना में दुष्टता को पहचानना ज्यादा मुश्किल है क्योंकि यह ज्यादा गुप्त होती है और इसके तरीके और क्रिया-कलाप ज्यादा जटिल होते हैं। अगर कोई व्यक्ति धोखेबाज स्वभाव का है तो आमतौर पर, दूसरे लोगों को उससे दो-तीन दिन बात करने के बाद उसकी धोखेबाजी का पता चल जाता है, या वे उस व्यक्ति के क्रिया-कलापों और शब्दों में उसके धोखेबाज स्वभाव का खुलासा होते देख सकते हैं। लेकिन, मान लो कि वह व्यक्ति दुष्ट है : यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे कुछ दिनों में पहचाना जा सके, क्योंकि छोटी अवधि में कोई महत्वपूर्ण घटना घटे या खास परिस्थिति उत्पन्न हुए बिना, सिर्फ उसकी बातें सुनकर कुछ भी पहचानना आसान नहीं है। वह हमेशा सही चीजें कहता और करता है और एक के बाद एक सही धर्म-सिद्धांत पेश करता रहता है। कुछ दिन उससे बातचीत करने के बाद, तुम्हें लग सकता है कि वह व्यक्ति बहुत अच्छा है, वह चीजों को छोड़ सकता है और खुद को खपा सकता है, उसमें आध्यात्मिक समझ है, उसके पास एक परमेश्वर-प्रेमी दिल है और उसके कार्य करने के तरीके में अंतरात्मा और विवेक दोनों हैं। लेकिन जब वह कुछ मामले सँभाल लेता है तो तुम्हें दिखाई देता है कि उसकी बातों और क्रिया-कलापों में बहुत-सी चीजें और बहुत-से शैतानी इरादे मिले हुए हैं। तब तुम्हें एहसास होता है कि यह व्यक्ति ईमानदार नहीं बल्कि धोखेबाज है—यह एक दुष्ट चीज है। वह बार-बार सही शब्दों और ऐसे मधुर वाक्यांशों का उपयोग करता है जो सत्य के अनुरूप होते हैं और उनमें लोगों से बातचीत करने के लिए मानवीय स्नेह होता है। एक लिहाज से, वह खुद को स्थापित करता है और दूसरे लिहाज से, वह दूसरों को गुमराह करता है और इस तरह लोगों के बीच प्रतिष्ठा और रुतबा हासिल करता है। ऐसे लोग बहुत ही ज्यादा गुमराह करने वाले लोग होते हैं और एक बार ताकत और रुतबा हासिल कर लेने के बाद, वे कई लोगों को गुमराह कर सकते हैं और उनका नुकसान कर सकते हैं। दुष्ट स्वभाव वाले लोग बहुत ही खतरनाक होते हैं। क्या तुम्हारे आस-पास इस तरह के लोग हैं? क्या तुम खुद इस तरह के हो? (हाँ।) तो यह कितना गंभीर है? किसी भी सत्य सिद्धांत के बिना बात या कार्य करना, कार्य करने के लिए पूरी तरह से अपनी दुष्ट प्रकृति पर भरोसा करना, हमेशा दूसरों को गुमराह करने और एक मुखौटे के पीछे छिपकर रहने की इच्छा रखना ताकि दूसरों को तुम्हारी असलियत का पता नहीं चल सके या वे तुम्हें पहचान न सकें और तुम्हारी मानवता और रुतबे को आदर और प्रशंसा की नजर से देखें—यह दुष्टता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद पाँच : वे लोगों को गुमराह करने, फुसलाने, धमकाने और नियंत्रित करने का काम करते हैं)। परमेश्वर उजागर करता है कि दुष्ट स्वभाव वाले लोग बेहद गुप्त ढंग से बोलते और काम करते हैं। वे सही बातें कहते प्रतीत होते हैं और उनके कार्य-कलाप बेदाग दिखते हैं, लेकिन इन सबके पीछे वे दुष्ट इरादे छिपाते हैं और लगातार अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे पर ध्यान केंद्रित करते हैं। दूसरों की प्रशंसा पाने के लिए वे लोगों को गुमराह करने वाले चापलूसी भरे शब्दों और सही कार्य-कलापों का उपयोग करते हैं, दूसरों के मन में अपनी अच्छी छवि स्थापित करते हैं जबकि दूसरों को अपने दुर्भावनापूर्ण इरादों का पता लगाने से रोकते हैं। यह सचमुच दुष्टता है! ध्यान से आत्म-चिंतन करूँ तो क्या मैं ठीक ऐसा ही व्यवहार नहीं कर रहा था? मैं स्पष्ट रूप से अपनी समस्याएँ हल करने के लिए सत्य नहीं खोज रहा था, लेकिन मैंने ऐसा व्यवहार किया मानो मैं बहुत विनम्र हूँ और मुझमें खोजने की बहुत इच्छा है, मेरा उद्देश्य केवल अपने मसले छिपाना नहीं था, बल्कि दूसरों के मन में सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति के रूप में अपनी अच्छी छवि स्थापित करना भी था। मैं जानता था कि लोगों को विकसित करने का काम नतीजे नहीं दे रहा है, कि सिंचनकर्ताओं ने बहुत प्रगति नहीं की है और ये चीजें सबकी नजरों के सामने स्पष्ट थीं। अगर मैं अपने मुद्दों का सारांश नहीं बनाता और आत्म-चिंतन नहीं करता तो हर कोई मेरे बारे में क्या सोचेगा? क्या वे कहेंगे कि मैंने अपने कर्तव्य में कोई नतीजे न मिलने पर भी आत्म-चिंतन नहीं किया? क्या वे सोचेंगे कि मैंने सत्य का अनुसरण नहीं किया और मैं निपट सुन्न हूँ? उस स्थिति में मैं बोलने की पहल कर सकता हूँ। इस तरह काम से कोई नतीजे न मिलने के कारण उनके मन में मेरे बारे में नकारात्मक धारणा नहीं बनेगी और शायद वे मुझे ईमानदार व्यक्ति के रूप में भी देखेंगे। मेरे शब्दों में मेरी अपनी षडयंत्रकारी मंशाएँ थीं। मैंने अगुआओं के दिलों में अपनी अच्छी छवि स्थापित करने के लिए सत्य की अपनी दिखावटी खोज का उपयोग करने की कोशिश की थी। मैंने देखा कि मेरी प्रकृति सचमुच दुष्ट थी। जैसा कि परमेश्वर ने कहा : “कुछ लोग अक्सर सही चीजें कहते हैं, सुनने में अच्छे लगने वाले बहानों का उपयोग करते हैं और कुछ लोग लोगों की आँखों में धूल झोंकने के लिए ऐसे धर्म-सिद्धांतों, कहावतों या क्रिया-कलापों का उपयोग करते हैं जो मानवीय स्नेह के अनुरूप हैं। वे अपना गुप्त उद्देश्य हासिल करने के लिए एक काम करते हुए दूसरा काम करने का दिखावा करते हैं। यह दुष्टता है।” वास्तव में मुझे कुछ समय तक अपने कर्तव्य में कोई नतीजे नहीं मिले थे, इसलिए मुझे आत्म-चिंतन करने और इसे हल करने के लिए सत्य खोजना था। यह कलीसिया के कार्य और मेरे अपने जीवन प्रवेश दोनों के लिए फायदेमंद होता। लेकिन मैं अपने काम में आने वाली बाधाओं के बारे में चिंतित या व्याकुल नहीं था, बल्कि मेरा मन इन विचारों से भरा था कि कैसे अपनी प्रतिष्ठा खोने से बचाऊँ और यहाँ तक कि कलीसिया के कार्य और सत्य की खोज से जुड़े मामलों में भी मैं बेईमानी से काम कर रहा था और धोखेबाज था। इसने सचमुच परमेश्वर को मुझसे घृणा करने पर मजबूर कर दिया था।

बाद में जब भी मुझे काम से छुट्टी मिलती, तो मैं अपनी दशा पर विचार करता था। मुझे याद आया कि परमेश्वर ने संगति की थी कि अपने आचरण में एक व्यक्ति को सभी चीजों में उसकी जाँच-पड़ताल स्वीकार करनी चाहिए और सभी कार्य-कलापों और कर्मों को परमेश्वर के सामने लाया जाना चाहिए। इसलिए मैंने इस संबंध में जल्दी से परमेश्वर के वचन खोजे। मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “परमेश्वर में विश्वासी होने का अर्थ है कि तेरे सारे कृत्य उसके सम्मुख लाये जाने चाहिए और उन्हें उसकी छानबीन के अधीन किया जाना चाहिए। ... आज, जो कोई भी परमेश्वर की छानबीन को स्वीकार नहीं कर सकता है, वह परमेश्वर की स्वीकृति नहीं पा सकता है, और जो देहधारी परमेश्वर को न जानता हो, उसे पूर्ण नहीं बनाया जा सकता। अपने सभी कामों को देख और समझ कि जो कुछ तू करता है वह परमेश्वर के सम्मुख लाया जा सकता है कि नहीं। यदि तू जो कुछ भी करता है, उसे तू परमेश्वर के सम्मुख नहीं ला सकता, तो यह दर्शाता है कि तू एक दुष्ट कर्म करने वाला है। क्या दुष्कर्मी को पूर्ण बनाया जा सकता है? तू जो कुछ भी करता है, हर कार्य, हर इरादा, और हर प्रतिक्रिया, अवश्य ही परमेश्वर के सम्मुख लाई जानी चाहिए। यहाँ तक कि, तेरे रोजाना का आध्यात्मिक जीवन भी—तेरी प्रार्थनाएँ, परमेश्वर के साथ तेरा सामीप्य, तेरा परमेश्वर के वचनों को खाना-पीना, भाई-बहनों के साथ तेरी सहभागिता, और कलीसिया के भीतर तेरा जीवन—और सहकार में तेरी सेवा परमेश्वर के सम्मुख उसके द्वारा जाँच के लिए लाई जा सकती है। यह ऐसा अभ्यास है, जो तुझे जीवन में विकास हासिल करने में मदद करेगा। परमेश्वर की छानबीन को स्वीकार करने की प्रक्रिया शुद्धिकरण की प्रक्रिया है। जितना तू परमेश्वर की छानबीन को स्वीकार करता है, उतना ही तू शुद्ध होता जाता है और उतना ही तू परमेश्वर के इरादों के अनुरूप होता है, जिससे तू व्यभिचार की ओर आकर्षित नहीं होगा और तेरा हृदय उसकी उपस्थिति में रहेगा; जितना तू उसकी छानबीन को ग्रहण करता है, शैतान उतना ही लज्जित होता है और उतना अधिक तू देहसुख के खिलाफ विद्रोह करने में सक्षम होता है। इसलिए, परमेश्वर की छानबीन को ग्रहण करना अभ्यास का वो मार्ग है जिसका सभी को अनुसरण करना चाहिए। चाहे तू जो भी करे, यहाँ तक कि अपने भाई-बहनों के साथ संगति करते हुए भी, यदि तू अपने कर्मों को परमेश्वर के सम्मुख ला सकता है और उसकी छानबीन को चाहता है और तेरा इरादा स्वयं परमेश्वर के प्रति समर्पण का है, इस तरह जिसका तू अभ्यास करता है वह और भी सही हो जाएगा। केवल जब तू जो कुछ भी करता है, वो सब कुछ परमेश्वर के सम्मुख लाता है और परमेश्वर की छानबीन को स्वीकार करता है, तो वास्तव में तू ऐसा कोई हो सकता है जो परमेश्वर की उपस्थिति में रहता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर उन्हें पूर्ण बनाता है, जो उसके इरादों के अनुरूप हैं)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैं समझ गया कि यदि कोई व्यक्ति सभी चीजों में परमेश्वर की जाँच-पड़ताल को स्वीकार करता है, उसके कर्मों और कार्य-कलापों में कोई छिपाव या दिखावा नहीं होता और वह इन चीजों को परमेश्वर के सामने ला सकता है, तो वह व्यक्ति रोशनी में जीता है और सचमुच एक ईमानदार व्यक्ति होता है और ऐसे लोग परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन अगर कोई व्यक्ति परमेश्वर की जाँच स्वीकार नहीं कर सकता, बल्कि लगातार छल-कपट में लिप्त रहता है, तो ऐसा व्यक्ति वास्तव में दुष्ट होता है और परमेश्वर के लिए घृणित है। मुझे परमेश्वर के वचनों से अभ्यास का मार्ग भी मिला। लोगों को विकसित करने का कार्य लंबे समय से बिना नतीजे के चल रहा था और यह पहले से ही सिंचन कार्य की प्रगति को प्रभावित करने लगा था। अगर मैं धोखा देता और चीजें छिपाता रहता, तो ये समस्याएँ हल न होतीं, सिंचनकर्ता अपने कर्तव्यों में कोई प्रगति न कर पाते और नवागंतुकों को अच्छी तरह से सींचने और उन्हें जल्दी से सच्चे मार्ग पर नींव रखने में सक्षम न बना पाते और इससे सिंचन कार्य में और भी बड़े नुकसान होते। अगुआ मेरे काम में समस्याओं और भटकावों को देख रहे थे ताकि मैं अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभा सकूँ। चाहे वे जो भी मुद्दे बताएँ, मुझे अपने आत्मसम्मान या रुतबे के बारे में नहीं सोचना चाहिए और मुझे परमेश्वर की जाँच-पड़ताल स्वीकार करनी थी और एक ईमानदार व्यक्ति बनना था। मुझे अपने काम में समस्याओं के बारे में गंभीरता से आत्म-चिंतन करना था, अपने भटकावों को जल्दी से ठीक करना था और अपना कर्तव्य अच्छी तरह निभाना था।

कुछ दिन बाद मुझे अगुआ से एक पत्र मिला और मैं अभी भी थोड़ा घबराया हुआ था क्योंकि मुझे चिंता थी कि अगुआ ने मेरे कर्तव्य में गंभीर समस्याओं का पता लगा लिया होगा और वह मेरी काट-छाँट करेगी। मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की और कहा कि अगुआ ने चाहे जो भी मुद्दे बताए हों, मैं अब अपने आत्मसम्मान पर विचार नहीं करूँगा और मैं अब प्रतिरोध नहीं करूँगा या दुराव-छिपाव में लिप्त नहीं रहूँगा और मुझे इसे स्वीकार करके उचित रूप से आत्म-चिंतन करना होगा। जब मैंने पत्र खोला तो मैंने देखा कि अगुआ ने वास्तव में मेरे कर्तव्य में मसलों की ओर इशारा किया था, लेकिन उसने मेरी काट-छाँट नहीं की। इसके बजाय उसने स्वयं के अनुभव के माध्यम से मुझे मेरे कर्तव्य में खराब नतीजों के कारणों पर चिंतन करने के लिए मार्गदर्शन किया। अगुआ की संगति पढ़ने के बाद मुझे अपनी हाल की दशा और समस्याओं के बारे में कुछ समझ मिली। मैंने देखा कि मैं हमेशा से एक भ्रष्ट स्वभाव में जी रहा था और जब मेरे काम में खराब नतीजे आए, तो मैंने आत्म-चिंतन नहीं किया, बल्कि बहाने बनाता रहा। मैंने सोचा था कि मैंने खुद को हर दिन व्यस्त रखा है, भाई-बहनों के साथ समाधानों पर चर्चा की है और मैंने पहले ही अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर लिया है। इसलिए मुझे लगता था कि उनकी प्रगति में कमी मेरी समस्या नहीं थी, बल्कि उनकी खराब काबिलियत के कारण थी। काम के नतीजे अच्छे नहीं थे, लेकिन समस्याओं पर आत्म-चिंतन करने के बजाय मैं जिम्मेदारी से बचता रहा। मैं सचमुच विद्रोही और अड़ियल था! साथ ही आत्म-चिंतन करने पर मुझे एहसास हुआ कि इस दौरान लोगों को विकसित करने के मेरे काम में वास्तव में भटकाव थे। जब तक रोज मेरे पास करने के लिए काम थे और मैं बेकार नहीं था, तब तक मैं संतुष्ट था, लेकिन मैंने कभी गंभीरता से यह नहीं सोचा कि मैं अपने कर्तव्य को किस तरह निभाऊँ जिससे नतीजे मिलें। सिंचनकर्ताओं को विकसित करते समय मैंने उनके वास्तविक मुद्दों के आधार पर सारांश नहीं बनाया और संवाद नहीं किया और बस मैंने सीखने के लिए बिना सोचे-समझे यांत्रिक दृष्टिकोण अपनाया। नतीजतन, महीनों के विकास के बाद भी कोई नतीजे नहीं मिले। अपने काम में इतनी सारी समस्याएँ और भटकाव देखकर मुझे पता था कि मुझे उन्हें जल्दी से ठीक करना है। जब मैंने इस बात पर विचार किया कि मैंने सत्य खोजने का बहाना कैसे किया, तो मुझे वास्तव में शर्मिंदगी और लज्जा महसूस हुई! अगर मेरे पास सचमुच ऐसा हृदय होता जो सत्य को स्वीकार कर उसकी तलाश करता, तो ये समस्याएँ जल्दी ही खोजी और हल की जा सकती थीं और इससे भाई-बहनों और कलीसिया के कार्य को फायदा हो सकता था। आगे से मैं अपने झूठे अभिमान और आत्मसम्मान को परे रखकर सभी मामलों में सत्य खोजने और अपने कर्तव्य को जमीनी तरीके से निभाने के लिए तैयार हूँ! परमेश्वर का धन्यवाद!

पिछला:  17. व्यस्त दिखने के पीछे क्या राज है

अगला:  20. दूसरों से हमेशा ईर्ष्या करने पर चिंतन

संबंधित सामग्री

16. परमेश्वर के वचन मेरी शक्ति है

लेखिका जिंगनियाँ, कनाडामैंने बचपन से ही प्रभु में मेरे परिवार के विश्वास का अनुसरण किया है, अक्सर बाइबल को पढ़ा है और सेवाओं में हिस्सा लिया...

34. ईसाई आध्यात्मिक जागृति

लिंग वू, जापानमैं अस्सी के दशक का हूँ, और मैं एक साधारण से किसान परिवार में जन्मा था। मेरा बड़ा भाई बचपन से ही हमेशा अस्वस्थ और बीमार रहता...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 6) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 7) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 8) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

सेटिंग

  • इबारत
  • कथ्य

ठोस रंग

कथ्य

फ़ॉन्ट

फ़ॉन्ट आकार

लाइन स्पेस

लाइन स्पेस

पृष्ठ की चौड़ाई

विषय-वस्तु

खोज

  • यह पाठ चुनें
  • यह किताब चुनें

Connect with us on Messenger