22. जब एक यहूदा ने मुझे धोखा दिया

शियांग शुन, चीन

अप्रैल 2023 में मैं कलीसिया में प्रचारक का कर्तव्य निभा रही थी। उस समय जिन कई कलीसियाओं के लिए मैं जिम्मेदार थी वहाँ एक एक करके सीसीपी द्वारा गिरफ्तारियाँ शुरू हो गईं। बहुत से अगुआ और कार्यकर्ता गिरफ्तार किए जा रहे थे, इसलिए मैंने और मेरे सहयोगी भाई वांग हुई ने परमेश्वर के वचन की किताबें सुरक्षित जगहों पर पहुँचाने के लिए तुरंत भाई-बहनों से संपर्क किया। हम इन शुरुआती मुश्किलों से निपट ही पाए थे कि अचानक खबर मिली कि दो और पर्यवेक्षक गिरफ्तार कर लिए गए हैं। अपनी सुरक्षा पर खतरे को देखते हुए हमें लगातार घर बदलने पड़े। उस दौरान सभी कलीसियाओं से भाई-बहन लगातार गिरफ्तार हो रहे थे और कलीसिया के विभिन्न काम ठीक से आगे नहीं बढ़ पा रहे थे। गिरफ्तार हुए भाई-बहनों को पुलिस ने यातनाएँ दीं। एक बहन पुलिस की यातनाएँ सह न सकी और उसे मजबूरन एक इमारत से कूदकर अपनी जान देनी पड़ी। एक के बाद एक ये खबरें सुनकर मैं बहुत घबरा गई थी और अक्सर अपनी ही हालत को लेकर चिंता में डूबी रहती थी : “पुलिस मेरी तलाश में है, अगर मैं पकड़ी गई और उन्हें पता चला कि मैं अगुआ हूँ तो वे यकीनन मुझे और भी भयानक यातनाएँ देंगे। अगर यातनाओं से मेरी मौत हो गई तो क्या मेरा उद्धार पाने का मौका नहीं चला जाएगा?” जब मैं यह सोचती तो हर दिन मेरा दिल किसी शिकंजे में बुरी तरह कसा हुआ महसूस होता था। उस दौरान अपनी सुरक्षा के खतरे और काम के दोहरे दबाव ने मुझे तन और मन से पूरी तरह थका दिया था।

सितंबर में मुझे पता चला कि मेरी एक और सहयोगी बहन वेन शी गिरफ्तार कर ली गई थी। हमने कई सालों तक साथ में कर्तव्य निभाए थे और वह न सिर्फ वांग हुई और मुझे अच्छी तरह जानती थी बल्कि उसे कलीसिया के बारे में भी काफी कुछ पता था : वह बहुत से भाइयों, बहनों और मेजबान परिवारों को जानती थी। हम इन मुश्किलों से निपटने में इतने व्यस्त थे कि सिर चकरा रहा था तभी हमें भाई-बहनों से एक और संदेश मिला। उन्होंने बताया कि वेन शी ने वांग हुई और मेरे साथ विश्वासघात किया था, पुलिस ने हमारी शक्लों के आधार पर रेखाचित्र बनवा लिए थे और वे हमें गिरफ्तार करने के लिए हमारी तलाश कर रहे थे। उन्होंने हमें सावधान रहने और अपनी सुरक्षा का ध्यान रखने की याद दिलाई। यह खबर सुनते ही मैं एकदम घबरा गई। बड़ा लाल अजगर जब विश्वासियों को गिरफ्तार करता है तो उन्हें मौत के मुँह तक पहुँचा देता है; यहाँ तक कि सत्तर-अस्सी साल के बुजुर्गों को भी नहीं बख्शता। अब जब उन्हें पता चल गया था कि मैं और वांग हुई कलीसिया अगुआ थे तो वे हमें आसानी से नहीं छोड़ेंगे। बड़े लाल अजगर के निगरानी कैमरे हर गली नुक्कड़ पर लगे हैं : क्या वे सीसीटीवी के जरिए हमें ढूँढ़ लेंगे? मेरा शरीर वैसे भी थोड़ा कमजोर था। अगर मैं गिरफ्तार हो गई तो क्या मैं यातनाएँ सह पाऊँगी? अगर यातनाओं से मेरी मौत हो गई तो मैं राज्य की सुंदरता नहीं देख पाऊँगी। मैंने पहले गिरफ्तार हुए कई सहकर्मियों के बारे में सोचा। उन सभी को दस साल से भी ज्यादा की सजा हुई थी और मैं तो उनसे भी ज्यादा समय से अगुआ थी। अगर मैं गिरफ्तार हुई तो मेरी सजा यकीनन और भी लंबी होगी। मैं पहले ही साठ साल से ऊपर की हो चुकी थी, अगर मुझे गिरफ्तार करके दस-पंद्रह साल की सजा दी गई तो क्या पता मैं जेल से जिंदा बाहर आ पाऊँगी भी या नहीं! कभी कभी मैं सोचती : “काश मैं अगुआ का कर्तव्य न निभा रही होती तो कितना अच्छा होता। तब गिरफ्तार होने पर भी इतनी भारी सजा तो न मिलती।” उस दौरान मैं हर दिन डर के साये में जीती थी। कर्तव्य निभाते हुए भी मेरा मन शांत नहीं रह पाता था। खासकर जब मैंने सुना कि सीसीपी अक्सर विश्वासियों की निगरानी करने, उन्हें खोजने और पकड़ने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल करती है तो मैं बाहर की हर आहट पर और भी ज्यादा ध्यान देने लगी। कभी-कभी जब बाहर से कोई अजीब आवाज आती तो मैं तुरंत देखने दौड़ती कि कहीं ड्रोन तो नहीं आ गया। कभी-कभी जब सीढ़ियों पर कदमों की आहट सुनाई देती या बिल्डिंग का कोई कर्मचारी दरवाजा खटखटाता तो मेरा दिल तेजी से धड़कने लगता था और मुझे डर लगता कि कहीं पुलिस हमें गिरफ्तार करने तो नहीं आ गई। उस समय मेरा दिल अपने कर्तव्य में नहीं लग रहा था और काम का जायजा लेते समय भी मैं उसकी बारीकियों पर उतना ध्यान नहीं दे पाती थी। सभी कामों के नतीजों पर असर पड़ रहा था और पाठ-आधारित कार्य जिसके लिए मैं मुख्य रूप से जिम्मेदार थी, उसके नतीजे भी खराब आ रहे थे। भले ही मैं थोड़ी व्याकुल थी, पर मैंने सिर्फ पत्र लिखकर ही पूछताछ की। मैंने कभी यह समझने और खोजने की कोशिश नहीं की कि समस्या कहाँ है या उसे कैसे हल किया जाए। एक दिन मुझे एक पत्र मिला जिसमें बताया गया था कि चेंगनान कलीसिया का अगुआ वास्तविक काम नहीं कर रहा है और न ही असली समस्याओं का समाधान कर रहा है। पत्र में अगुआ के जिस रवैये के बारे में लिखा था उसे पढ़कर मैं थोड़ी हैरान हुई। मैं हमेशा से चेंगनान कलीसिया के काम का जायजा लेती रही थी लेकिन मुझे यह पता ही नहीं चला कि वहाँ का अगुआ असल काम नहीं कर रहा था। तभी मैं प्रार्थना और आत्म-चिंतन करने के लिए परमेश्वर के सामने आई। मुझे एहसास हुआ कि पिछले छह महीनों से खतरे के कारण मैं लगातार घर बदल रही थी, हमेशा इस बात से डरी रहती थी कि अगर पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर लिया और पीट पीटकर मार डाला तो मेरा उद्धार नहीं होगा और मैं स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाऊँगी। मैं चिंता और घबराहट में जी रही थी और अपने कर्तव्य की बारीकियों पर शायद ही कभी ध्यान दे पाती थी। अब चेंगनान कलीसिया में इतनी सारी अनसुलझी समस्याएँ थीं और पाठ-आधारित कार्य के नतीजे भी लगातार गिर रहे थे। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि मैं डरपोक और भयभीत थी और वास्तविक काम नहीं कर रही थी। जब मैंने यह सोचा तो मुझे बहुत ज्यादा दुख हुआ और मैं परमेश्वर के सामने प्रार्थना करने लगी : “प्रिय परमेश्वर इस पूरे समय मैं लगातार डर और भय में जीती रही और मेरे कर्तव्य में इतनी सारी समस्याएँ आने के बावजूद मैं उदासीन और बेखबर रही। प्रिय परमेश्वर, सत्य की खोज में मेरी अगुआई करो, मुझे अपनी गलत मनोदशाओं से बाहर निकालो और अपने कर्तव्य में मेरा मन लगाओ।”

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश देखा : “शैतान चाहे जितना भी ‘ताकतवर’ हो, चाहे वह जितना भी दुस्साहसी और महत्वाकांक्षी हो, चाहे नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता जितनी भी बड़ी हो, चाहे मनुष्य को भ्रष्ट करने और लुभाने की उसकी तकनीकें जितनी भी व्यापक हों, चाहे मनुष्य को डराने की उसकी तरकीबें और साजिशें जितनी भी चतुराई से भरी हों, चाहे उसके अस्तित्व के रूप जितने भी परिवर्तनशील हों, वह कभी एक भी जीवित चीज सृजित करने में सक्षम नहीं हुआ, कभी सभी चीजों के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाएँ या नियम निर्धारित करने में सक्षम नहीं हुआ, और कभी किसी सजीव या निर्जीव चीज पर शासन और नियंत्रण करने में सक्षम नहीं हुआ। ब्रह्मांड और आकाश के भीतर, एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उससे पैदा हुई हो, या उसके कारण अस्तित्व में हो; एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उसके द्वारा शासित हो, या उसके द्वारा नियंत्रित हो। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन रहना है, बल्कि, परमेश्वर के सभी आदेशों और आज्ञाओं को समर्पण करना है। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानवजाति की तो बात ही छोड़ दो। परमेश्वर की दृष्टि में, शैतान पहाड़ पर उगने वाली कुमुदनियों से, हवा में उड़ने वाले पक्षियों से, समुद्र में रहने वाली मछलियों से, और पृथ्वी पर रहने वाले कीड़ों से भी तुच्छ है। सभी चीजों के बीच उसकी भूमिका सभी चीजों की सेवा करना, मानवजाति की सेवा करना और परमेश्वर के कार्य और उसकी प्रबंधन-योजना की सेवा करना है। उसकी प्रकृति कितनी भी दुर्भावनापूर्ण क्यों न हो, और उसका सार कितना भी बुरा क्यों न हो, केवल एक चीज जो वह कर सकता है, वह है अपने कार्य का कर्तव्यनिष्ठा से पालन करना : परमेश्वर के लिए सेवा देना, और परमेश्वर को एक विषमता प्रदान करना। ऐसा है शैतान का सार और उसकी स्थिति। उसका सार जीवन से असंबद्ध है, सामर्थ्य से असंबद्ध है, अधिकार से असंबद्ध है; वह परमेश्वर के हाथ में केवल एक खिलौना है, परमेश्वर की सेवा में रत सिर्फ एक मशीन है!(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)। परमेश्वर के वचनों से मुझे एहसास हुआ कि सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता है और शैतान तो परमेश्वर के हाथ का महज एक प्यादा है। शैतान चाहे कितना भी बेलगाम और दुस्साहसी क्यों न हो, परमेश्वर की इजाजत के बिना वह जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत के एक कण को भी छूने की हिम्मत नहीं कर सकता। यह एहसास होने पर मेरी आस्था पक्की हो गई कि मैं गिरफ्तार होऊँगी या नहीं यह फैसला परमेश्वर के हाथों में है। परमेश्वर की इजाजत के बिना बड़ा लाल अजगर मुझे गिरफ्तार नहीं कर सकता, चाहे वह कितने भी उन्नत निगरानी उपकरण का इस्तेमाल कर ले। मुझे 2018 की वो घटनाएँ याद आईं जब कई बार यहूदाओं ने मेरे साथ विश्वासघात किया था। उस समय पुलिसवालों ने एक जाने-माने कलाकार से मेरा रेखाचित्र बनवाया था ताकि वे मेरी गिरफ्तारी का नोटिस जारी कर सकें। लेकिन आज तक वे मुझे गिरफ्तार नहीं कर पाए थे। यही नहीं, मैं और वांग हुई दोनों ही बड़े खतरे में थे और उस पूरे समय हम लगातार घर बदल रहे थे। कई बार तो हम गिरफ्तार होते होते बचे लेकिन परमेश्वर की सुरक्षा से हम बच निकलने में कामयाब रहे। फिर मैंने सोचा कि कैसे दानिय्येल परमेश्वर की आराधना में डटा रहा और उसे शेरों की माँद में फेंक दिया गया था। उसका मानना था कि उसका जीवन परमेश्वर के हाथों में है और परमेश्वर की इजाजत के बिना शेर उसे कोई नुकसान नहीं पहुँचाएँगे। परमेश्वर पर दानिय्येल के विश्वास ने ही उसे बचाया और माँद में भूखे शेरों के बीच होने के बावजूद उसका बाल भी बाँका नहीं हुआ। इसके अलावा दानिय्येल के तीन दोस्तों की परमेश्वर में सच्ची आस्था थी। उन्होंने मूर्तियों की पूजा करने या परमेश्वर से विश्वासघात करने के बजाय मरना बेहतर समझा। उन्हें आग की धधकती भट्ठी में फेंका गया लेकिन वे सही सलामत बाहर निकल आए। मुझे भी उन्हीं की तरह बनना चाहिए और परमेश्वर में आस्था रखनी ही चाहिए। जब मैंने यह सोचा तो मुझे उतनी चिंता नहीं हुई या उतना डर नहीं लगा। मैंने अपने दिल को शांत करने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की ताकि मैं अपने कर्तव्य में खुद को पूरी तरह समर्पित कर सकूँ।

एक दिन एक बहन ने मुझे अनुभवजन्य गवाही का एक वीडियो दिखाया। उसमें परमेश्वर के वचनों के दो अंशों ने मेरे दिल को गहराई से छू लिया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “मसीह-विरोधी आशीष पाने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते हैं। वे कभी भी परमेश्वर के घर या परमेश्वर के हितों से जुड़ी चीजों के बारे में नहीं सोचते। वे जो कुछ भी करते हैं वह उनके व्यक्तिगत हितों के इर्द-गिर्द घूमता है। अगर परमेश्वर के घर के कार्य में उनके व्यक्तिगत हित शामिल न हों तो वे परवाह करते ही नहीं और न ही इस बारे में कोई पूछताछ करते हैं। वे कितने स्वार्थी होते होंगे!(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। “अपनी सुरक्षा पर ध्यान देने के अलावा कुछ मसीह-विरोधी और क्या सोचते हैं? वे कहते हैं, ‘फिलहाल, हमारा परिवेश अनुकूल नहीं है, इसलिए हमें लोगों के सामने कम ही आना चाहिए और सुसमाचार का कम प्रचार करना चाहिए। इस तरह हमारे पकड़े जाने की संभावना कम होगी और कलीसिया का काम नष्ट नहीं होगा। अगर हम पकड़े जाने से बच गए तो हम यहूदा नहीं बनेंगे और फिर हम भविष्य में कायम रह पाएँगे, है ना?’ क्या ऐसे मसीह-विरोधी नहीं हैं जो अपने भाई-बहनों को गुमराह करने के लिए ऐसे बहाने बनाते हैं? ... जब वे अगुआ के रूप में काम करते हैं तो केवल अपने दैहिक आनंद में लिप्त रहते हैं और वास्तविक कार्य नहीं करते। विभिन्न कलीसियाओं के साथ थोड़े-बहुत पत्राचार के अलावा वे कुछ और नहीं करते हैं। वे किसी स्थान पर छिप जाते हैं और किसी से नहीं मिलते, खुद को बंद रखते हैं और भाई-बहनों को नहीं पता होता कि उनका अगुआ कौन है—ये अगुआ इतने अधिक डरे हुए होते हैं। तो क्या यह कहना सही नहीं है कि वे केवल नाम के अगुआ हैं? (सही है।) वे अगुआ के रूप में कोई वास्तविक कार्य नहीं करते हैं; उन्हें बस खुद को छिपाने की परवाह होती है। जब दूसरे उनसे पूछते हैं, ‘अगुआ होना कैसा है?’ तो वे कहेंगे, ‘मैं बहुत व्यस्त रहता हूँ और अपनी सुरक्षा की खातिर मुझे घर बदलते रहना पड़ता है। यह परिवेश इतना अस्थिर करने वाला है कि मैं अपने काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकता।’ उन्हें हमेशा ऐसा लगता है कि उन पर बहुत सी नजरें गड़ी हुई हैं और वे नहीं जानते कि कहाँ छिपना सुरक्षित है। वेश बदलने, अलग-अलग जगहों पर खुद को छिपाने और एक स्थान पर टिके न रहने के अलावा वे प्रति दिन कोई वास्तविक कार्य नहीं करते हैं। क्या ऐसे अगुआ होते हैं? (हाँ।) वे किन सिद्धांतों का पालन करते हैं? ये लोग कहते हैं, ‘एक चालाक खरगोश के पास तीन बिल होते हैं। खरगोश को शिकारी जानवर के हमले से बचने के लिए तीन बिल बनाने पड़ते हैं ताकि वह खुद को छिपा सके। अगर किसी व्यक्ति का खतरे से सामना हो और उसे भागना पड़े, मगर उसके पास छिपने के लिए कोई जगह न हो तो क्या यह स्वीकार्य है? हमें खरगोशों से सीखना चाहिए! परमेश्वर के बनाए प्राणियों में जीवित रहने की यह क्षमता होती है और लोगों को उनसे सीखना चाहिए।’ अगुआ बनने के बाद से वे इस धर्म-सिद्धांत को समझ गए हैं और यहाँ तक मानते हैं कि उन्होंने सत्य को समझ लिया है। वास्तविकता में वे बहुत डरे हुए हैं। जैसे ही वे यह सुनते हैं कि किसी अगुआ की रिपोर्ट पुलिस में इसलिए की गई क्योंकि वह किसी असुरक्षित जगह पर रह रहा था या कोई अगुआ बड़े लाल अजगर के जासूसों के चंगुल में इसलिए फँस गया कि वह अपना कर्तव्य निभाने के लिए अक्सर बाहर जाता और बहुत से लोगों से मिलता-जुलता था और आखिरकार कैसे इन लोगों को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया तो वे तुरंत डर जाते हैं। वे सोचते हैं, ‘अरे नहीं, क्या पता इसके बाद मुझे ही गिरफ्तार किया जाए? मुझे इससे सीखना चाहिए। मुझे ज्यादा सक्रिय नहीं रहना चाहिए। अगर मैं कलीसिया के कुछ काम करने से बच सकता हूँ तो मैं उसे नहीं करूँगा। अगर मैं अपना चेहरा दिखाने से बच सकूँ तो मैं नहीं दिखाऊँगा। मैं अपना काम जितना हो सके उतना कम करूँगा, बाहर निकलने से बचूँगा, किसी से मिलने-जुलने से बचूँगा और यह पक्का करूँगा कि किसी को भी मेरे अगुआ होने की खबर न हो। आजकल, कौन किसी और की परवाह कर सकता है? सिर्फ जिंदा रहना भी अपने आप में एक चुनौती है!’ जबसे वे अगुआ बने हैं, बैग उठाकर छिपते फिरने के अलावा कोई काम नहीं करते। वे हमेशा पकड़े जाने और जेल जाने के निरंतर डर के साये में जीते हैं। मान लो वे किसी को यह कहते हुए सुन लें, ‘अगर तुम पकड़े गए तो तुम्हें मार दिया जाएगा! अगर तुम अगुआ न होते, अगर तुम बस एक साधारण विश्वासी होते तो तुम्हें छोटा-सा जुर्माना भरने के बाद शायद छोड़ दिया जाता, मगर चूँकि तुम अगुआ हो, इसलिए कुछ कहना मुश्किल है। यह बहुत खतरनाक है! पकड़े गए कुछ अगुआओं या कर्मियों ने जब कोई जानकारी नहीं दी तो पुलिस ने उन्हें पीट-पीटकर मार डाला।’ जब वे किसी के पीट-पीटकर मार दिए जाने के बारे में सुनते हैं तो उनका डर और बढ़ जाता है, वे काम करने से और भी ज्यादा डरने लगते हैं। हर दिन वे बस यही सोचते हैं कि पकड़े जाने से कैसे बचें, दूसरों के सामने आने से कैसे बचें, निगरानी से कैसे बचें और अपने भाई-बहनों के संपर्क से कैसे बचें। वे इन चीजों के बारे में सोचने में अपना दिमाग खपाते हैं और अपने कर्तव्यों को बिल्कुल भूल जाते हैं। क्या ये निष्ठावान लोग हैं? क्या ऐसे लोग कोई काम सँभाल सकते हैं? (नहीं, वे नहीं सँभाल सकते।)” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर ने उजागर किया है कि मसीह-विरोधी सिर्फ आशीषें पाने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते हैं। वे अपने निजी हितों और अपनी सुरक्षा को बाकी किसी भी चीज से ज्यादा अहमियत देते हैं। जैसे ही मसीह-विरोधी किसी खतरनाक परिवेश का सामना करते हैं वे अपनी जान बचाने के लिए फौरन भागकर छिप जाते हैं और अपने कर्तव्यों को नजरअंदाज कर सकते हैं या उन्हें ताक पर भी रख सकते हैं। जब मैंने देखा कि परमेश्वर ने मसीह-विरोधी होने की इन अभिव्यक्तियों को कैसे उजागर किया था तो मैंने उस पूरी अवधि के दौरान अपनी मनोदशा के बारे में गहराई से सोचा। शुरुआत में जब परिवेश उतना खतरनाक नहीं था, मैं तब भी सक्रिय रूप से सुसमाचार प्रचार में अपने भाई-बहनों की अगुआई कर पाती थी और मेरे काम के कुछ नतीजे भी हासिल हो रहे थे। लेकिन जब कलीसिया को चारों तरफ से गिरफ्तारियों का सामना करना पड़ा और मेरे साथ एक यहूदा ने धोखा किया तो मुझे यह डर सताने लगा कि अगर मुझे गिरफ्तार करके पीट-पीटकर मार डाला गया तो मेरा कोई अच्छा परिणाम या गंतव्य नहीं होगा। अपनी जान बचाने की खातिर मैं सारा दिन बस यही सोचती रहती थी कि खुद को कैसे सुरक्षित रखूँ और इस वजह से काम का जायजा लेने में भी उतनी लगन नहीं दिखा रही थी। पाठ-आधारित काम से कई महीनों तक कोई नतीजा नहीं निकला था और मैंने ध्यान से यह जानने की भी कोशिश नहीं की थी कि समस्याएँ आखिर हैं कहाँ या उन्हें कैसे सुलझाया जाए। इसके अलावा मैं चेंगनान कलीसिया के काम का जायजा लेने में भी ढीली पड़ गई थी। मुझे यह एहसास ही नहीं हुआ कि वहाँ का नकली अगुआ कोई वास्तविक काम नहीं कर रहा था और मैंने उसे समय रहते बरखास्त भी नहीं किया था। इन सबकी वजह से कलीसिया के कई कामों में रुकावट आ गई थी। यहाँ तक कि गिरफ्तार होने और कड़ी सजा मिलने के डर से मुझे अगुआ होने को लेकर पछतावा तक महसूस होने लगा था। जब मैंने इन सब बातों पर गौर किया तो आखिरकार मुझे समझ आया कि इतने सालों से मेरा कर्तव्य निभाना, मुश्किलें झेलना और खुद को खपाना सिर्फ आशीषें और फायदे पाने की बुनियाद पर ही टिका था। अब जब कई कलीसियाओं में गिरफ्तारियाँ हो रही थीं तो कलीसिया के काम में लोगों के आपसी सहयोग की बहुत जरूरत थी। खास तौर पर चेंगनान कलीसिया जिसके लिए मैं जिम्मेदार थी, उसमें कई नए सदस्यों ने अभी तक सच्चे मार्ग पर अपनी मजबूत नींव नहीं बनाई थी। वे बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न और गिरफ्तारी के डर से इकट्ठा होने से घबराते थे और सहमे हुए थे, उन्हें फौरन सहारे और सिंचन की जरूरत थी। कुछ कलीसिया अगुआ और कार्यकर्ता गिरफ्तार कर लिए गए थे और काम में हाथ बँटाने वाला कोई नहीं था। नए चुनाव करवाने की भी तुरंत जरूरत आन पड़ी थी। एक प्रचारक होने के नाते मुझे इस समय अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए थी और परमेश्वर के इरादों पर गौर करना चाहिए था। जैसा कि परमेश्वर कहता है : “परमेश्वर के अंतरंग सीधे उसकी सेवा करने में इसलिए समर्थ हैं, क्योंकि उन्हें परमेश्वर का महान आदेश और परमेश्वर की जिम्मेदारी दी गई है, वे परमेश्वर के हृदय को अपना हृदय बनाने और परमेश्वर की जिम्मेदारी को अपनी जिम्मेदारी की तरह लेने में समर्थ हैं, और वे अपने भविष्य की संभावनाओं को लाभ या हानि पर कोई विचार नहीं करते—यहाँ तक कि जब संभावना हो कि उनके पास कुछ नहीं होगा और उन्हें कुछ भी नहीं मिलेगा, तब भी वे हमेशा एक परमेश्वर-प्रेमी हृदय से परमेश्वर में विश्वास करते हैं। और इसलिए, इस प्रकार का व्यक्ति परमेश्वर का अंतरंग होता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के इरादों के अनुरूप सेवा कैसे करें)। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि जो लोग सचमुच परमेश्वर के प्रति वफादार होते हैं वे अपनी सुरक्षा या अपने भविष्य की परवाह नहीं करते। बल्कि परमेश्वर जिस बात को जरूरी समझता है वे भी उसी को जरूरी मानते हैं और परिवेश जितना ज्यादा खतरनाक होता है वे उतना ही ज्यादा यह समझने की कोशिश करते हैं कि अपना कर्तव्य अच्छी तरह कैसे निभाएँ, कमजोर भाई-बहनों को सहारा कैसे दें और कलीसिया के काम की सही तरीके से सुरक्षा कैसे करें। लेकिन जब मैं खुद एक ऐसे खतरनाक परिवेश में थी जिसका असर मेरी जिंदगी, मेरे परिणाम और मेरी मंजिल पर पड़ रहा था तो मैंने अपने कर्तव्य को ही ताक पर रख दिया था यहाँ तक कि अगुआ का कर्तव्य निभाने पर भी पछताने लगी थी। भले ही ऊपर से ऐसा नहीं लग रहा था कि मैंने हार मान ली है, पर मेरा दिल और दिमाग तो पहले ही मेरे कर्तव्य से हट चुका था। काम में कई सारी खामियाँ आ गई थीं लेकिन मैंने उन पर ध्यान ही नहीं दिया था। मैं कोई वास्तविक काम कर ही नहीं रही थी! आज परमेश्वर ने मुझे अगुआ का कर्तव्य निभाने के लिए ऊपर उठाया है, इस उम्मीद से कि मैं यह जिम्मेदारी सँभाल सकूँ और कलीसिया का काम अच्छी तरह से कर सकूँ और साथ ही इस कर्तव्य को निभाने के जरिए वह मुझे सत्य के विभिन्न पहलुओं के बारे में बता सके। लेकिन खुद को बचाने के चक्कर में मैंने न सिर्फ अपने कर्तव्य में वफादारी नहीं दिखाई बल्कि काम में रुकावट भी डाली थी। इसमें जरा भी जमीर कहाँ बाकी रहा था? पहले मुझे लगता था कि चूँकि मैंने इतने सालों तक परमेश्वर में विश्वास किया है, अपने परिवार को छोड़ सकी हूँ, दैहिक सुखों को त्याग सकी हूँ, अपने कर्तव्य निभाने में मुश्किलें झेल सकी हूँ और कीमत भी चुका सकी हूँ तो मुझे एक ऐसी इंसान माना जा सकता है जो सचमुच परमेश्वर में विश्वास रखती है और सत्य का अनुसरण कर रही है। अब इस परिवेश ने जो भी खुलासा किया है उससे आखिरकार मुझे अपना असली आध्यात्मिक कद साफ-साफ दिख गया है। मैंने परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना की : “प्रिय परमेश्वर जब मुझे पता चला कि एक यहूदा ने मेरे साथ धोखा किया है तो मैं सिर्फ अपनी सुरक्षा करने की मनोदशा में जीने लगी। मैंने अपने कर्तव्य में लगन नहीं दिखाई और काम में रुकावट डाली। मुझे खुद पर बहुत ज्यादा अपराध बोध और अफसोस हो रहा है। प्रिय परमेश्वर, मैंने जान लिया है कि मैं स्वार्थी और नीच हूँ, मैं अब इस हाल में और नहीं जीना चाहती। अब से मैं अपनी मनोदशा सुधारकर अपना काम अच्छी तरह से करना चाहती हूँ। मेरा मार्गदर्शन करो।” प्रार्थना के बाद मेरा दिल कुछ शांत हुआ। मैंने फौरन वांग हुई से बात की कि हमारे काम की समस्याओं को कैसे सुलझाया जाए। हमने पहले चेंगनान कलीसिया से मिले रिपोर्ट पत्र की पुष्टि की और सिद्धांतों के मुताबिक नकली अगुआ को बरखास्त कर दिया। जहाँ तक पाठ आधारित काम का सवाल है, मैंने पाया कि अच्छे नतीजे इसलिए नहीं मिल रहे थे क्योंकि पाठ आधारित काम करने वाले कार्यकर्ता अनुशासनहीन थे, अपने कर्तव्यों के प्रति उनमें कोई दायित्व-बोध नहीं था और वे सामंजस्यपूर्ण ढंग से मिलकर काम नहीं कर रहे थे। बाद में मैंने पर्यवेक्षक के साथ इस मसले पर संगति की और इसे हल किया। कुछ समय तक पर्यवेक्षण करने और जायजा लेने के बाद पाठ आधारित काम के नतीजे सुधरने लगे। यह देखकर मैं सोचे बिना न रह सकी कि अगर मैंने पहले अपने कर्तव्य में और ज्यादा लगन दिखाई होती तो काम में इतनी अधिक देर न होती, इसलिए मुझे खुद पर और भी ज्यादा अपराध बोध और अफसोस हुआ और मैंने मन ही मन यह पक्का इरादा कर लिया कि भविष्य में अपना कर्तव्य ठीक से निभाऊँगी।

फरवरी 2024 में एक दिन मुझे भाई-बहनों से एक संदेश मिला कि वेन शी फिर से गिरफ्तार कर ली गई थी और उसने मेरे बारे में कुछ और बातें बता दी थीं और बड़े लाल अजगर ने दोबारा मेरा रेखाचित्र बनवाया था। कुछ दिनों बाद मुझे पता चला कि बहन यांग शुओ जो हाल ही में हमारी गाड़ी चलाती थी, उसे भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। एक के बाद एक ये खबरें सुनकर मेरा दिल और भी घबराने लगा। बड़े लाल अजगर की आम तौर पर यही चाल होती है कि वह किसी को गिरफ्तार करने से पहले कुछ समय तक उसका पीछा करता है और जाँच-पड़ताल करता है और जब उसे अपने शिकार का पक्का पता चल जाता है तभी वह उसे गिरफ्तार करता है। कुछ समय पहले ही यांग शुओ ने हमें दो बार गाड़ी से पहुँचाया था। अगर पुलिस ने उसे गिरफ्तार करने से पहले उसका पीछा किया था तो क्या हमारे पिछले कुछ ठिकाने बदलना पुलिस की पूरी निगरानी में हुआ था? अब जब यांग शुओ गिरफ्तार हो चुकी थी और वेन शी ने मेरे बारे में कुछ और बातें बता दी थीं ऐसे में अगर मैं गिरफ्तार हो गई तो पुलिस यकीनन मुझे बुरी तरह सताएगी। और अगर मुझे पीट-पीटकर मार डाला गया तो क्या मेरे उद्धार की उम्मीदें पूरी तरह खत्म नहीं हो जाएँगी? मैं जितना ज्यादा इस बारे में सोचती उतनी ही परेशान हो जाती, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह इस परिवेश में अपनी गवाही पर मजबूती से डटे रहने में मेरी अगुआई करे। प्रार्थना के बाद मेरा दिल थोड़ा शांत हुआ। मुझे परमेश्वर के कुछ वचन याद आए जो मैंने उन्हीं दिनों पढ़े थे और मैंने उन्हें ढूँढ़कर पढ़ना शुरू किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “प्रभु यीशु के उन अनुयायियों की मौत कैसे हुई? उनमें ऐसे अनुयायी थे जिन्हें पत्थरों से मार डाला गया, घोड़े से बाँध कर घसीटा गया, सूली पर उलटा लटका दिया गया, पाँच घोड़ों से खिंचवाकर उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए—हर प्रकार की मौत उन पर टूटी। उनकी मृत्यु का कारण क्या था? क्या उन्हें उनके अपराधों के लिए कानूनी तौर पर फाँसी दी गई थी? नहीं। उन्होंने प्रभु का सुसमाचार फैलाया था, लेकिन दुनिया के लोगों ने उसे स्वीकार नहीं किया, इसके बजाय उनकी भर्त्सना की, पीटा और डाँटा-फटकारा और यहाँ तक कि मार डाला—इस तरह वे शहीद हुए। ... वास्तव में, उनके शरीर इसी तरह मृत्यु को प्राप्त हुए और चल बसे; यह मानव संसार से प्रस्थान का उनका अपना माध्यम था, तो भी इसका यह अर्थ नहीं था कि उनका परिणाम भी वैसा ही था। उनकी मृत्यु और प्रस्थान का साधन चाहे जो रहा हो, या यह चाहे जैसे भी हुआ हो, यह वैसा नहीं था जैसे परमेश्वर ने उन जीवनों के, उन सृजित प्राणियों के अंतिम परिणाम को परिभाषित किया था। तुम्हें यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए। इसके विपरीत, उन्होंने इस संसार की भर्त्सना करने और परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए ठीक उन्हीं साधनों का उपयोग किया। इन सृजित प्राणियों ने अपने सर्वाधिक बहुमूल्य जीवन का उपयोग किया—उन्होंने परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए अपने जीवन के अंतिम क्षण का उपयोग किया, परमेश्वर के महान सामर्थ्य की गवाही देने के लिए उपयोग किया, और शैतान तथा इस संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए किया कि परमेश्वर के कर्म सही हैं, प्रभु यीशु परमेश्वर है, वह प्रभु है, और परमेश्वर का देहधारी शरीर है। यहां तक कि अपने जीवन के बिल्कुल अंतिम क्षण तक उन्होंने प्रभु यीशु का नाम कभी नहीं नकारा। क्या यह इस संसार के ऊपर न्याय का एक रूप नहीं था? उन्होंने अपने जीवन का उपयोग किया, संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए, मानव प्राणियों के समक्ष यह पुष्टि करने के लिए कि प्रभु यीशु प्रभु है, प्रभु यीशु मसीह है, वह परमेश्वर का देहधारी शरीर है, कि उसने समस्त मानवजाति के छुटकारे के लिए जो कार्य किया, उसी के कारण मानवता जीवित रह पाई है—यह सच्चाई कभी बदलने वाली नहीं है। जो लोग प्रभु यीशु के सुसमाचार को फैलाने के लिए शहीद हुए, उन्होंने किस सीमा तक अपने कर्तव्य का पालन किया? क्या यह अंतिम सीमा तक किया गया था? यह अंतिम सीमा कैसे परिलक्षित होती थी? (उन्होंने अपना जीवन अर्पित किया।) यह सही है, उन्होंने अपने जीवन से कीमत चुकाई। परिवार, सम्पदा, और इस जीवन की भौतिक वस्तुएँ, सभी बाहरी उपादान हैं; स्वयं से संबंधित एकमात्र चीज जीवन है। प्रत्येक जीवित व्यक्ति के लिए, जीवन सर्वाधिक सहेजने योग्य है, सर्वाधिक बहुमूल्य है, और जैसा कि होता है, ये लोग मानव-जाति के प्रति परमेश्वर के प्रेम की पुष्टि और गवाही के रूप में, अपनी सर्वाधिक बहुमूल्य चीज अर्पित कर पाए, और वह चीज है—जीवन। अपनी मृत्यु के दिन तक उन्होंने परमेश्वर के नाम को नहीं नकारा, न ही परमेश्वर के कार्य को नकारा, और उन्होंने जीवन के अपने अंतिम क्षणों का उपयोग इस तथ्य के अस्तित्व की गवाही देने के लिए किया—क्या यह गवाही का सर्वोच्च रूप नहीं है? यह अपना कर्तव्य निभाने का सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा है; अपना उत्तरदायित्व इसी तरह पूरा किया जाता है। जब शैतान ने उन्हें धमकाया और आतंकित किया, और अंत में, यहां तक कि जब उसने उनसे अपने जीवन की कीमत अदा करवाई, तब भी उन्होंने अपनी जिम्मेदारी नहीं छोड़ी। यही अपना कर्तव्य अपनी क्षमता के अनुसार सर्वोत्तम तरीके से निभाना है। इससे मेरा क्या आशय है? क्या मेरा आशय यह है कि तुम लोग भी परमेश्वर की गवाही देने और उसका सुसमाचार फैलाने के लिए इसी तरीके का उपयोग करो? तुम्हें हूबहू ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है, किन्तु तुम्हें समझना होगा कि यह तुम्हारा दायित्व है, यदि परमेश्वर ऐसा चाहे, तो तुम्हें इसे अपने बाध्यकारी कर्तव्य के रूप में स्वीकार करना चाहिए। आज लोगों के मन में भय और चिंता व्याप्त है, किंतु ये अनुभूतियां किस काम की हैं? यदि परमेश्वर तुमसे ऐसा करने के लिए न कहे, तो इसके बारे में चिंता करने का क्या लाभ है? यदि परमेश्वर को तुमसे ऐसा कराना है, तो तुम्हें इस उत्तरदायित्व से न तो मुँह मोड़ना चाहिए और न ही इसे ठुकराना चाहिए। तुम्हें आगे बढ़कर सहयोग करना और निश्चिंत होकर इसे स्वीकारना चाहिए। मृत्यु चाहे जैसे हो, किंतु उन्हें शैतान के सामने, शैतान के हाथों में नहीं मरना चाहिए। यदि मरना ही है, तो उन्हें परमेश्वर के हाथों में मरना चाहिए। लोग परमेश्वर से आए हैं, और उन्हें परमेश्वर के पास ही लौटना है—यही विवेक और रवैया सृजित प्राणियों में होना चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे थोड़ी राहत महसूस हुई। प्रभु यीशु के शिष्यों को परमेश्वर का सुसमाचार फैलाने की वजह से बहुत सताया गया था। उनमें से कुछ को पाँच घोड़ों से बँधवाकर चीर डाला गया, कुछ को पत्थर मारकर मार डाला गया, कुछ के सिर कलम कर दिए गए और कुछ को तो उल्टा सूली पर चढ़ा दिया गया था। इतने जुल्मों के बावजूद उन्होंने कभी सुसमाचार का प्रचार करना नहीं छोड़ा और मरते दम तक उन्होंने कभी परमेश्वर के नाम से इनकार नहीं किया : उन्होंने अपने जीवन से परमेश्वर के लिए एक जबरदस्त गवाही दी। भले ही लोगों की नजर में उनके शरीर मर चुके थे, पर उनकी आत्माएँ अपने सृष्टिकर्ता के पास लौट गई थीं। तब मुझे प्रभु यीशु के ये वचन याद आए : “जो अपने प्राण बचाता है, वह उसे खोएगा; और जो मेरे कारण अपना प्राण खोता है, वह उसे पाएगा(मत्ती 10:39)। प्रभु यीशु के वचन बहुत स्पष्ट हैं। यदि तुम परमेश्वर में विश्वास या अपने कर्तव्य के निर्वहन के कारण अपना जीवन खो देते हो तो भले ही तुम्हारा शरीर मर जाता है परमेश्वर में तुम्हारी आत्मा बचाई जाएगी और तुम्हें सच्चा जीवन मिलेगा। एक सृजित प्राणी होने के नाते मुझे परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित परिवेश के प्रति बिना शर्त समर्पित होना चाहिए। यदि परमेश्वर ने मुझे बड़े लाल अजगर के हाथों गिरफ्तार होने दिया तो मुझे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में दृढ़ रहने की खातिर अपना जीवन भी त्याग देना चाहिए और एक सृजित प्राणी के तौर पर अपनी सारी जिम्मेदारियाँ निभानी चाहिए। भले ही बड़ा लाल अजगर सचमुच मुझे यातना देकर मार डाले वह शैतान को शर्मिंदा करने वाली एक जबरदस्त गवाही होगी। वह गवाही मूल्यवान और महत्वपूर्ण होगी। यदि मैं पहले की तरह ही चलती रही, सिर्फ अपनी जान बचाने की सोचते हुए एक अपमानजनक जीवन घसीटती रही तो भले ही मैं अपने शरीर की रक्षा कर भी लूँ मैं एक सृजित प्राणी की जिम्मेदारी पूरी नहीं कर पाऊँगी और न ही परमेश्वर के लिए गवाही दे पाऊँगी। वह तो सचमुच उद्धार पाने का सुनहरा मौका खो देना होगा। एक बार जब मुझे यह बात समझ आ गई तो मैं पहले जैसी डरपोक और भयभीत नहीं रही। अब चूँकि मैं बड़े लाल अजगर के हाथों गिरफ्तार नहीं हुई थी और मेरे पास अभी भी अपने कर्तव्य निभाने के मौके थे, इसलिए मुझे अपने वे सभी कर्तव्य ठीक से निभाने चाहिए जो मुझे सौंपे गए हैं। खास तौर पर इन दिनों गिरफ्तारियों के कारण कुछ कलीसियाओं का काम पूरी तरह से पटरी पर नहीं लौटा था। कुछ भाई-बहन अभी भी नकारात्मकता और कमजोरी में जी रहे थे और बड़ा लाल अजगर अभी भी हठपूर्वक भाई-बहनों को गिरफ्तार करने में लगा हुआ था। ऐसे में मुझे अपने सभी प्रयास समर्पित करने चाहिए और अपने भाइयों-बहनों के साथ परमेश्वर के इरादों पर गहराई से संगति करनी चाहिए ताकि हर कोई परमेश्वर पर भरोसा कर सके, अपने कर्तव्य अच्छी तरह निभा सके और अपनी गवाही में दृढ़ता से खड़ा रह सके। जब मैंने यह सब सोचा तो मुझे प्रबुद्धता महसूस हुई। फिर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और सचेत होकर अपने कर्तव्यों में अपना पूरा दिल लगाया। जहाँ तक कलीसिया के काम में आने वाली समस्याओं का सवाल था, मैंने उन्हें हल करने के लिए वांग हुई से चर्चा और संगति की और मैंने उन कलीसियाओं के साथ व्यक्तिगत रूप से संगति करने के लिए पत्र भी लिखे जिनके काम के अच्छे नतीजे नहीं मिल रहे थे। कुछ समय बाद काम की विभिन्न मदों में कुछ सुधार दिखाई दिया और मुझे बहुत गहरी संतुष्टि महसूस हुई। परमेश्वर का धन्यवाद!

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परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 6) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 7) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 8) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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