24. मेरा खुद को ऊँचा उठाने और दिखावा करने पर चिंतन
अप्रैल 2023 में मैंने एक अभिनेत्री के रूप में फिर से अपना कर्तव्य संभाला। मैं मुख्य रूप से अनुभवजन्य गवाही वीडियो की शूटिंग में शामिल थी, मैं वाकई बहुत खुश थी और परमेश्वर के अनुग्रह के लिए आभारी थी। लेकिन मेरे दिल में कुछ चिंताएँ भी थीं और सोचती थी, “मैंने एक साल से अधिक समय से एक अभिनेत्री के रूप में अपना कर्तव्य नहीं निभाया है और मुझे यकीन नहीं है कि मैं अपनी मौजूदा स्थिति में यह कर्तव्य अच्छे से निभा भी पाऊँगी या नहीं।” मैं वाकई बहुत चिंतित थी और कई दिनों तक ठीक से सो नहीं पाई थी। अप्रत्याशित रूप से पहले अनुभवजन्य गवाही लेख में नायिका की जो मनोदशा मैं बताने वाली थी, वह मेरी अपनी मनोदशा से काफी मेल खाती थी और उसमें परमेश्वर के वचनों के अंशों ने मुझे गहराई से प्रभावित किया। परमेश्वर के वचनों पर मनन करने और नायिका की मानसिकता से अपनी मानसिकता की तुलना करने पर यह चीज वाकई मेरे दिल को छू गई। जब बहन ने परमेश्वर पर भरोसा किया और सबक सीखे तो उसे मुक्ति का एहसास हुआ, मुझे लगा कि मुझे भी आगे बढ़ने का मार्ग मिल गया है। मुझे पता भी नहीं चला कब मेरी परेशानी और चिंता कम हो गई और मैंने जल्दी ही शूटिंग पूरी कर ली। मैं परमेश्वर के मार्गदर्शन की बहुत आभारी थी, धीरे-धीरे मुझमें आत्मविश्वास आ गया और उसके बाद की शूटिंग के दौरान मैं उतनी नहीं घबराई। उसके फौरन बाद मैंने दो और वीडियो शूट किए, मुझे एहसास हुआ कि अगर मेरे इरादे सही हैं और मैं अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित हूँ तो परमेश्वर मुझे प्रबोधन और मार्गदर्शन प्रदान करेगा। लेकिन फिर मैं सोचने लगी, “मैंने इतनी जल्दी तीन अनुभवजन्य गवाही वीडियो शूट कर लिए हैं, इसलिए लगता है मैं काफी सक्षम हूँ।”
कुछ भाई-बहनों ने देखा कि मैं पहले भी कुछ फिल्मों, नाटकों, एकल प्रदर्शनों और गायन प्रस्तुतियों में काम कर चुकी हूँ और वे मुझे एक अनुभवी अभिनेत्री मानते थे, इसलिए वे मुझसे अभिनय के बारे में सवाल पूछने लगे, इस बात से मुझे काफी खुशी हो रही थी। मुझे पता था कि मुझमें कई कमियाँ हैं, लेकिन दूसरों को यह नहीं पता था कि मेरे जैसी “अनुभवी अभिनेत्री” भी कभी-कभी कठिनाइयों में जीती है। उदाहरण के लिए अपनी पहली अनुभवजन्य गवाही लेख सुनाते समय मैं घबराई हुई और चिंतित थी। लेकिन मैंने सोचा चूँकि हम पहली बार मिल रहे हैं, तो मेरे बारे में उनके मन में जो अच्छी छवि है, मुझे उसे खराब नहीं करना चाहिए। इसलिए मैंने अपनी कमियों का जिक्र न करने का निर्णय लिया। मैं पूरे जोश से और लगातार हाव-भाव बनाकर बोलने लगी। जब मैंने विशेष रूप से बड़े पैमाने के समवेत भजन राज्य गान : राज्य जगत में अवतरित होता है के फिल्मांकन के बारे में बात करना शुरू किया तो मैंने गर्व से कहा, “गायक मंडली के लिए सभी कलाकारों का चयन सावधानी से किया गया था, उन्होंने कई महीनों तक भयंकर गर्मी और कड़ाके की ठंड में कठोर प्रशिक्षण लिया।” यह सुनकर सभी भाई-बहन प्रशंसा करने लगे। मैंने यह भी शेखी बघारी, “300 से अधिक अभिनेताओं में मैं सबसे अनुभवी थी!” मैं भाई-बहनों की प्रशंसा भरी निगाहों का आनंद ले रही थी। एक बार एक अभिनेता को शूटिंग के दौरान कुछ परेशानी हो रही थी तो उसने मुझसे अपने अभिनय को निर्देशित करने में मदद माँगी। मैंने मन ही मन सोचा, “मैं इनके सामने थोड़ा अभिनय करके दिखाती हूँ। आखिर मैं नहीं चाहती कि ये लोग मुझे नीची नजर से देखें।” फिर मेरे दिमाग में एक दृश्य आया और अंदर से भावनाओं का दरिया बहने लगा। वे सब मेरी ओर प्रशंसा भरी नजरों से देखने लगे और बोले, “तुम सचमुच अभिनय करना जानती हो! कमाल है!” भले ही मैंने कहा कि यह परमेश्वर का मार्गदर्शन है, लेकिन यह सोचकर अंदर ही अंदर मुझे अपने आप पर गर्व हो रहा था कि मैं दूसरों से बेहतर और अधिक अनुभवी हूँ। एक अन्य अवसर पर निर्देशक बहन टेरी को एक अनुभवजन्य गवाही लेख को कैसे पेश करना है, इस बारे में प्रशिक्षण दे रही थी और उसने मुझसे मदद करने को कहा। मैंने मन ही मन सोचा, “मुझे कुछ मसले पहचानने होंगे ताकि वे देख सकें कि मेरे पास बताने के लिए कुछ है।” जैसे ही बहन ने बोलना बंद किया, निर्देशक के कुछ कहने की प्रतीक्षा किए बिना ही मैं झट से अपनी राय देने के लिए लपकी। बहन को सहमति में सिर हिलाते देख मुझे लगा कि मैं समस्याओं को पहचानने में सक्षम हूँ। लेकिन सच्चाई यह है कि मैं बहन को बताना चाहती थी कि मुझमें भी पहले कई कमियाँ थीं और निर्देशक की वजह से ही थोड़ा-थोड़ा करके मुझे किरदार की भावनाओं और मनोदशाओं का विश्लेषण करने और समझने में मदद मिली जिससे मैं आखिरकार इन चीजों को सटीक रूप से व्यक्त कर पाई। लेकिन फिर मैंने सोचा, “वे पहले ही मेरे बारे में बहुत अच्छी राय रखते हैं, इसलिए अगर मैं ऐसा कहती हूँ और उन्हें पता चल गया कि मुझमें इतनी कमियाँ हैं तो वे मेरे बारे में क्या सोचेंगे? रहने दो। कुछ न कहना ही बेहतर है।” वहाँ एक बहन भी थी जिसकी मंदारिन भाषा अच्छी नहीं थी और मैंने उसे सुधारने का प्रयास किया। मैंने मन ही मन सोचा, “अगर वह जल्दी सुधार कर सकती है तो क्या इससे यह नहीं पता चलेगा कि मैं एक अच्छी कोच हूँ?” इसलिए मैंने बिना किसी अवसर की परवाह किए, उसे लगातार समझाया जिससे बहन मेरे सामने बोलने में संकोच और बेबस महसूस कर रही थी। कभी-कभी मुझे अपने बारे में पता चल जाता था और मैं सोचती, “क्या मैं यहाँ दिखावा कर रही हूँ? क्या यह थोड़ा अनुचित है?” लेकिन फिर मैं सोचती, “मैं जो कह रही हूँ वह सच है, इसलिए यह ठीक ही होना चाहिए, है न?” और इसलिए मैं बस किसी तरह काम चला लेती। लेकिन जब मैं लगातार शेखी बघार रही थी और दिखावा कर रही थी तो परमेश्वर ने मुझे प्रकट करने के लिए परिस्थितियों का प्रबंध किया।
एक बार मुझे एक अनुभवजन्य गवाही लेख मिला जो काफी लंबा था और उसमें बहुत सारे संवाद थे। लेकिन शूटिंग शेड्यूल में जल्दबाजी के कारण मेरे पास तैयारी के लिए बहुत कम समय था। मैंने मन ही मन सोचा, “मैं संवाद बोलने में बहुत अच्छी हूँ, इसलिए अगर मैं कथानक को सजीव ढंग से पेश करूँ तो उसमें चमक पैदा होगी और मेरी अदाकारी लोगों का ध्यान खींचेगी। इसके अलावा मैंने जो पिछले कुछ वीडियो शूट किए थे, वो काफी अच्छे चले थे, इसलिए तैयारी के लिए अधिक समय न होना कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।” मैंने अपनी लाइनें याद कर लीं और थोड़ा अभ्यास भी कर लिया, फिर मैंने भाई-बहनों के साथ सिर्फ एक दिन रिहर्सल की और फिर शूटिंग के लिए तैयार हो गई। सच तो यह है कि मैं पूरी तरह से तैयार नहीं थी, मैं निर्देशक को सुझाव देना चाहती थी कि शूटिंग को कुछ और दिनों के लिए स्थगित कर दिया जाए, लेकिन मुझे चिंता थी कि लोग कहेंगे, “इतनी अनुभवी अभिनेत्री होकर भी इसे तैयारी में इतना समय लग रहा है?” मुझे डर था कि लोग मुझे नीची नजर से देखेंगे, इसलिए मैंने सेट पर जल्दबाजी दिखाई। शूटिंग के बाद ऐसे कई सीन थे जिनमें सुधार की जरूरत थी। वीडियो देखने के बाद, मैं चौंक गई। नायिका की भ्रष्टता का खुलासा होने पर मैंने उसकी मनोदशा और व्यवहार को सजीव ढंग से व्यक्त किया था जिससे नायिका एक नकारात्मक किरदार लग रही थी। मैं दंग रह गई और मेरा दिल भारी हो गया। मुझे हैरानी हुई, “इतना गंभीर मसला कैसे खड़ा हो गया? अगर इसे ठीक नहीं किया गया तो हमें फिर से शूटिंग करनी पड़ेगी और इससे फिल्मांकन शेड्यूल में देरी होगी। क्या मेरी वजह से बाधाएँ और गड़बड़ियाँ पैदा नहीं होंगी?” मैं डर गई और तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी है। मुझे ताड़ना दो। मैं पश्चात्ताप करने और सुधार करने की पूरी कोशिश करने को तैयार हूँ।” इसके बाद मैंने सभी के साथ मिलकर पाँच बार वीडियो की समीक्षा और संशोधन किया, तब जाकर समस्या का समाधान हुआ। इसके बाद मैंने आत्मचिंतन कर खुद से पूछा, “मेरे साथ इतनी गंभीर समस्या क्यों पैदा हुई? आखिर इसका क्या कारण है?” मैंने परमेश्वर से यह भी प्रार्थना की कि वह मुझे प्रबुद्ध करे और खुद को जानने में मेरा मार्गदर्शन करे।
अपनी भक्ति के दौरान मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना, स्वयं पर इतराना, दूसरों की अपने बारे में बहुत अच्छी राय बनवाने और उनसे अपनी आराधना करवाने की कोशिश करना—भ्रष्ट मनुष्यजाति इन चीजों में माहिर है। जब लोग अपनी शैतानी प्रकृतियों से शासित होते हैं, तब वे सहज और स्वाभाविक ढंग से इसी तरह प्रतिक्रिया करते हैं, और यह भ्रष्ट मनुष्यजाति के सभी लोगों में आम है। लोग सामान्यतः कैसे अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं? वे दूसरों की अपने बारे में बहुत अच्छी राय बनवाने और उनसे अपनी आराधना करवाने के इस लक्ष्य को कैसे हासिल करते हैं? वे इस बात की गवाही देते हैं कि उन्होंने कितना कार्य किया है, कितना अधिक दुःख भोगा है, स्वयं को कितना अधिक खपाया है, और क्या कीमत चुकाई है। वे अपनी पूँजी के बारे में बातें करके अपनी बड़ाई करते हैं, जो उन्हें लोगों के मन में अधिक ऊँचा, अधिक मजबूत, अधिक सुरक्षित स्थान देता है, ताकि अधिक से अधिक लोग उनकी सराहना करें, उन्हें मान दें, उनकी प्रशंसा करें और यहाँ तक कि उनकी आराधना करें, उनका आदर करें और उनका अनुसरण करें। यह लक्ष्य हासिल करने के लिए लोग कई ऐसे काम करते हैं, जो ऊपरी तौर पर तो परमेश्वर की गवाही देते हैं, लेकिन वास्तव में वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं। क्या इस तरह पेश आना उचित है? वे तार्किकता के दायरे से परे हैं और उन्हें कोई शर्म नहीं है, अर्थात, वे निर्लज्ज ढंग से गवाही देते हैं कि उन्होंने परमेश्वर के लिए क्या-क्या किया है और उसके लिए कितना अधिक दुःख झेला है। वे तो अपनी योग्यताओं, प्रतिभाओं, अनुभव, विशेष कौशलों पर, सांसारिक आचरण की चतुर तकनीकों पर, लोगों के साथ खिलवाड़ के लिए प्रयुक्त अपने तौर-तरीकों पर इतराते तक हैं। अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने का उनका तरीका स्वयं पर इतराने और दूसरों को नीचा दिखाने के लिए है। वे छद्मावरणों और पाखंड का सहारा भी लेते हैं, जिनके द्वारा वे लोगों से अपनी कमजोरियाँ, कमियाँ और त्रुटियाँ छिपाते हैं, ताकि लोग हमेशा सिर्फ उनकी चमक-दमक ही देखें। जब वे नकारात्मक महसूस करते हैं तब भी दूसरे लोगों को बताने का साहस तक नहीं करते; उनमें लोगों के साथ खुलने और संगति करने का साहस नहीं होता, और जब वे कुछ गलत करते हैं, तो वे उसे छिपाने और उस पर लीपा-पोती करने में अपनी जी-जान लगा देते हैं। अपना कर्तव्य निभाने के दौरान उन्होंने कलीसिया के कार्य को जो नुकसान पहुँचाया होता है उसका तो वे जिक्र तक नहीं करते। जब उन्होंने कोई छोटा-मोटा योगदान किया होता है या कोई छोटी-सी कामयाबी हासिल की होती है, तो वे उसका दिखावा करने को तत्पर रहते हैं। वे सारी दुनिया को यह जानने देने का इंतजार नहीं कर सकते कि वे कितने समर्थ हैं, उनमें कितनी अधिक क्षमता है, वे कितने असाधारण हैं, और सामान्य लोगों से कितने बेहतर हैं। क्या यह अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने का ही तरीका नहीं है? क्या अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना ऐसी चीज है, जिसे कोई जमीर और विवेक वाला व्यक्ति करता है? नहीं। इसलिए जब लोग यह करते हैं, तो सामान्यतः कौन-सा स्वभाव प्रगट होता है? अहंकार। यह प्रकट होने वाले मुख्य स्वभावों में से एक है, जिसके बाद छल-कपट आता है, जिसमें यथासंभव वह सब करना शामिल है जिससे दूसरे उनके प्रति अत्यधिक सम्मान का भाव रखें। उनके शब्द पूरी तरह अकाट्य होते हैं और उनमें अभिप्रेरणाएँ और कुचक्र स्पष्ट रूप से होते हैं, वे अपनी खूबियों का प्रदर्शन करते हैं, फिर भी वे इस तथ्य को छिपाना चाहते हैं। वे जो कुछ कहते हैं, उसका परिणाम यह होता है कि लोगों को यह महसूस करवाया जाता है कि वे दूसरों से बेहतर हैं, कि उनके बराबर कोई नहीं है, कि हर कोई उनसे हीनतर है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद चार : वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं)। परमेश्वर उजागर करता है कि लोगों द्वारा स्वयं को ऊँचा उठाने और दिखावा करने के पीछे का इरादा और मकसद दूसरों से प्रशंसा पाना, अपनी पूजा कराना और लोगों के दिलों में जगह बनाना होता है। मेरा हालिया व्यवहार बिल्कुल वैसा ही था जैसा परमेश्वर ने बताया है। मैंने अपने कर्तव्य में परमेश्वर का उत्कर्ष नहीं किया और उसकी गवाही नहीं दी, बल्कि दूसरों की प्रशंसा पाने के लिए लगातार दिखावा किया। जब मैं सबके साथ संगति करती थी तो अक्सर खुद को एक “अनुभवी अभिनेत्री” के रूप में पेश करती थी, खुद को ऊँचा उठाती थी, इस बात का बखान करती थी कि कैसे पिछले शूटिंग के दौरान मैंने कठिनाइयों पर काबू पाने के तरीके खोजे थे और अभ्यास के दौरान कष्ट सहे थे, मैंने कितने कार्यों का फिल्मांकन किया था और वे कितने प्रभावी थे, वगैरह। जब मैं विशेष रूप से बड़े पैमाने वाले समवेत प्रोडक्शन, खासकर राज्य गान : राज्य जगत में अवतरित होता है के फिल्मांकन के बारे में बात करती तो मैं इस बात पर बहुत जोर देती कि मैं ही सबसे अनुभवी हूँ, क्योंकि मेरा लक्ष्य खुद को स्थापित करना, प्रशंसा पाना और लोगों के दिलों में जगह बनाना था। जब मैं अन्य अभिनेताओं को फिल्मांकन के दौरान संघर्ष करते देखती तो मैं किरदारों की मनोदशा का विश्लेषण करने में उनकी मदद न करती जिससे कि अभिनेताओं को वास्तविक भावनाएँ व्यक्त करने में मार्गदर्शन मिल सके, बल्कि यह दिखावा करती कि मुझमें उनसे बेहतर अभिनय क्षमता है। दूसरों के साथ बातचीत करते समय मैं हमेशा अपने सकारात्मक प्रवेश के बारे में बात करती, मुझे डर रहता कि अगर मैंने अपने द्वारा प्रकट की गई भ्रष्टता के बारे में बहुत अधिक बात की तो लोग मुझे नीची नजर से देखेंगे। इसलिए मैं अपनी नकारात्मकता और भ्रष्टता को कुछ ही शब्दों में व्यक्त कर देती। हकीकत में मैंने अभिनेत्री के रूप में अपना कर्तव्य निभाने का प्रशिक्षण चीन छोड़ने के बाद ही शुरू किया था। जब मैंने फिल्मांकन शुरू किया तो मुझे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था और मुझे उनका समाधान करना नहीं आता था। मुझे अक्सर किरदार के जज्बात पकड़ में नहीं आते थे, मैं या तो बहुत ज्यादा जज्बाती हो जाती या बहुत कम या फिर जज्बात व्यक्त ही नहीं कर पाती थी। मेरे दिल में बहुत पीड़ा होती थी और न जाने कितनी बार रोती थी। जैसे इस बार एक अनुभवजन्य गवाही का वीडियो फिल्माते समय हुआ। मैंने काफी समय से फिल्मांकन नहीं किया था और जब मुझे पहला अनुभवजन्य गवाही लेख मिला तो मैं इतनी घबरा गई कि कई रात सो नहीं पाई, चिंता और परेशानी की मनोदशा में जीती रही। केवल प्रार्थना करके और परमेश्वर के वचन पढ़कर ही धीरे-धीरे मैं उसका समाधान कर पाई। लेकिन मैंने जानबूझ कर यह बात छिपाई और इस बात का जिक्र करने से बचती रही, क्योंकि मुझे डर था कि इससे दूसरों के दिलों में बनी मेरी अच्छी छवि धूमिल हो जाएगी। इसके बजाय मैंने केवल अपना अच्छा पक्ष दिखाया जिससे मैं भाई-बहनों की प्रशंसा पाती रही। ऐसा करके मैं परमेश्वर की गवाही नहीं दे रही थी, बल्कि मैं खुद को महिमान्वित कर अपने सिर पर प्रभामंडल रख रही थी। अपने अंदर के घृणित इरादों के साथ मैं दिखावा कर खुद को ऊँचा उठा रही थी और लोगों के दिलों में जगह बनाना चाह रही थी। मैं वाकई बेशर्म थी!
फिर मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े : “कुछ लोग विशेष रूप से पौलुस को आदर्श मानते हैं। उन्हें बाहर जाकर भाषण देना और कार्य करना पसंद होता है, उन्हें सभाओं में भाग लेना और प्रचार करना पसंद होता है; उन्हें अच्छा लगता है कि लोग उन्हें सुनें, उनकी आराधना करें और उनके चारों ओर घूमें। उन्हें पसंद होता है कि दूसरों के दिलों में उनकी एक जगह हो, और जब दूसरे उनके द्वारा प्रदर्शित छवि को महत्व देते हैं, तो वे उसकी सराहना करते हैं। आओ हम इन व्यवहारों से उनकी प्रकृति का गहन-विश्लेषण करें। उनकी प्रकृति कैसी है? यदि वे वास्तव में इस तरह से व्यवहार करते हैं, तो यह ये दर्शाने के लिए पर्याप्त है कि वे अहंकारी और दंभी हैं। वे परमेश्वर की आराधना तो बिल्कुल नहीं करते हैं; वे ऊँचे रुतबे की तलाश में रहते हैं और दूसरों पर अधिकार रखना चाहते हैं, उन पर अपना कब्ज़ा रखना चाहते हैं, उनके दिलों में एक जगह रखना चाहते हैं। यह शैतान की विशेष छवि है। उनकी प्रकृति के पहलू जो अलग से दिखाई देते हैं, वे हैं उनका अहंकार और दंभ, परमेश्वर की आराधना करने की अनिच्छा, और दूसरों के द्वारा आराधना किए जाने की इच्छा। ऐसे व्यवहारों से तुम उनकी प्रकृति को स्पष्ट रूप से देख सकते हो” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें)। परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन से मुझे समझ आया कि मेरे लगातार दिखावा करने और खुद को ऊँचा उठाने के पीछे मेरी अहंकारी प्रकृति है जो लोगों के दिलों में परमेश्वर के स्थान को हड़पना चाहती है। ऐसा करने का मतलब था कि मैं परमेश्वर का प्रतिरोध करने वाले पौलुस के मार्ग पर चल रही थी। मैंने विचार किया कि कैसे चीन छोड़ने के बाद से मैं एक अभिनेत्री के रूप में अपना कर्तव्य निभा रही हूँ। कुछ वीडियो शूट करने और अपने कर्तव्य में कुछ नतीजे हासिल करने के बाद मैंने इन चीजों को अपनी पूँजी बना लिया था और मैं अक्सर दूसरों के सामने बेशर्मी से दिखावा करती थी। मुझे एहसास हुआ कि मैं तो पहले से ही पौलुस के मार्ग पर चल रही थी। पहले मैं सोचा करती थी कि किसी इंसान के लिए अपनी उपलब्धियों का प्रदर्शन करना और दूसरों से प्रशंसा पाना एक सामान्य बात है। लेकिन परमेश्वर के वचनों से मुझे समझ आया कि यह एक अहंकारी प्रकृति है जो लोगों के दिलों में जगह बनाने, प्रशंसा और सम्मान पाने की इच्छा को दर्शाता है। पौलुस खास तौर से बहुत घमंडी स्वभाव का था, भले ही परमेश्वर ने उसे खूबियाँ दीं, फिर भी उसने अपने कार्य में कभी प्रभु यीशु का उत्कर्ष नहीं किया या उसकी गवाही नहीं दी, बल्कि वह लगातार खुद को ऊँचा उठाता और दिखावा करता रहा जिसका उद्देश्य लोगों को जीतना था ताकि वे उसकी प्रशंसा और पूजा करें। अन्त में उसने अहंकारपूर्वक मसीह बनने और लोगों के हृदय में परमेश्वर का स्थान लेने की कोशिश की, वह परमेश्वर के प्रतिरोध में मसीह-विरोधी के मार्ग पर चला और परमेश्वर के दंड का भागी बना। असल में परमेश्वर के घर में कर्तव्य निर्वहन को परमेश्वर के मार्गदर्शन से अलग नहीं किया जा सकता। हमारा कर्तव्य निर्वहन मात्र हमारी जिम्मेदारियों और दायित्वों को पूरा करना है, हमें बिना किसी व्यक्तिगत इरादे या इच्छा के परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए और उसका महिमागान करना चाहिए। फिर भी अपनी अहंकारी प्रकृति के चलते मैं अपनी जगह भूल गई थी और सोचती थी चूँकि मैंने कुछ वीडियो फिल्माए हैं और थोड़ा-बहुत अनुभव हासिल कर लिया है, मैं इन चीजों को पूंजी के रूप में इस्तेमाल कर शान बघार सकती हूँ और परमेश्वर की महिमा चुरा सकती हूँ। ऐसा करके मैं परमेश्वर का प्रतिरोध करने के मार्ग पर चल रही थी। मेरा हृदय परमेश्वर का भय मानने वाला कहाँ हुआ?
बाद में मैंने पढ़ा कि परमेश्वर के वचन कहते हैं : “चूँकि तुम परमेश्वर के कार्य को नहीं समझते, इसलिए तुम्हारे मन में उसके बारे में धारणाएँ होंगी, और तुम्हारे पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं होगा। तुम्हारा लहजा बदल जाएगा, तुम्हारा स्वभाव अहंकारी हो जाएगा, और अंत में तुम धीरे-धीरे अपनी बड़ाई करने और अपने लिए गवाही देने लगोगे। इंसान के पतन की प्रक्रिया यही होती है, और ऐसा पूरी तरह सत्य का अनुसरण न करने के कारण होता है। मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलने वाला हर व्यक्ति अपनी बड़ाई करता है और अपने लिए गवाही देता है, खुद को बढ़ावा देता है और हर मोड़ पर अपना दिखावा करता है, और बिल्कुल भी परमेश्वर की परवाह नहीं करता है। मैं जिन चीजों के बारे में बता रहा हूँ, क्या तुमने इनका अनुभव किया है? कई लोग लगातार अपने लिए गवाही देते हैं, बताते फिरते हैं कि उन्होंने कैसे ये-वो कष्ट सहे, वे कैसे काम करते हैं, परमेश्वर कैसे उन्हें महत्व देता है और ऐसे कुछ काम सौंपता है, और वे किस किस्म के हैं, वे जानबूझकर खास स्वर में बोलते हैं, और कुछ खास शिष्टाचार दिखाते हैं, जब तक कि आखिरकार कुछ लोग यह न सोचने लगें कि शायद वे परमेश्वर हैं। जो लोग इस स्तर तक पहुँच चुके हैं, पवित्र आत्मा बहुत पहले ही उन्हें त्याग चुका है और हालाँकि उन्हें अभी तक हटाया या निष्कासित नहीं किया गया है, बल्कि उन्हें सेवा करने के लिए रख छोड़ा गया है, उनका भाग्य पहले ही सील-बंद हो चुका है और वे अपनी सजा का इंतजार भर कर रहे हैं” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, लोग परमेश्वर से बहुत अधिक माँगें करते हैं)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे यह एहसास हुआ कि जब लोगों के दिलों में परमेश्वर के लिए जगह नहीं होती और वे लगातार दिखावा कर खुद को ऊँचा उठाते हैं तो वे पतन के मार्ग पर जा रहे होते हैं, इससे परमेश्वर घृणा करता है और अंत में वे लोग दंड के भागी बनते हैं। अपने व्यवहार पर विचार कर मैं डर गई। इस अनुभवजन्य गवाही वीडियो को फिल्माते समय मुझसे जो बड़ी गलती हुई, वह इस अवधि में कर्तव्य के प्रति मेरे अनुचित इरादों से उपजी थी। मेरे अहंकार और दंभ ने मुझे दिखावे के लिए उकसाया था, मैं हमेशा यही सोचती रहती थी कि कैसे दूसरों से अलग दिखूँ ताकि लोग मेरी प्रशंसा करें, इस वजह से मैंने सिद्धांतों को दर-किनार कर दिया था। मेरे हृदय में अब परमेश्वर के लिए कोई स्थान नहीं था। मैं दूसरों से प्रशंसा पाने के लिए लगातार दिखावा कर रही थी और प्रकट तौर पर अपने अहंकार को तुष्ट कर रही थी, लेकिन हकीकत में मेरा हृदय परमेश्वर से और अधिक दूर होता जा रहा था और मुझे अब उसका मार्गदर्शन भी महसूस नहीं होता था। मेरे कर्तव्यों का निर्वहन गलतियों से भरा हुआ था जिसके कारण कार्य में देरी हो रही थी। अगर मेरा चाल-चलन यही रहता तो यकीनन परमेश्वर मुझसे घृणा करता और मुझे हटा देता। इस गलती के कारण मैं बेनकाब हो गई और सही समय पर पतन के मार्ग पर आगे बढ़ने से रुक गई। यह परमेश्वर का प्रेम था और मुझे बचाने का उसका तरीका था। मैंने कभी दिखावा न करने का संकल्प लिया।
अपनी भक्ति के दौरान मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “परमेश्वर साधारण व्यक्ति के रूप में देहधारी होता है, जिसका अर्थ है कि परमेश्वर स्वयं को ऊँची छवि, पहचान और सबसे पहले पद से गिरा कर पूरी तरह से साधारण व्यक्ति बन जाता है। जब वह एक साधारण व्यक्ति बनता है, तो वह एक प्रतिष्ठित, धनी परिवार में जन्म लेना नहीं चुनता; उसके जन्म की पृष्ठभूमि बहुत ही सामान्य, यहाँ तक कि दुर्दशापूर्ण होती है। यदि हम इस मामले को किसी ऐसे साधारण व्यक्ति के दृष्टिकोण से देखें जिसके पास विवेक, तर्क और मानवता है, तो परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह लोगों की श्रद्धा और प्रेम के योग्य है। लोगों को इसे कैसे देखना चाहिए? (श्रद्धा के साथ।) परमेश्वर का अनुसरण करने वाले किसी साधारण और सामान्य व्यक्ति को तो इसी तथ्य के लिए परमेश्वर की सुंदरता की प्रशंसा करनी चाहिए कि परमेश्वर स्वयं को एक ऊँचे दर्जे से हटाकर एक असाधारण रूप से साधारण व्यक्ति बना लेता है—परमेश्वर की यह विनम्रता और अदृश्यता बहुत प्यारी है! यह कुछ ऐसा है जिसे न तो कोई भ्रष्ट व्यक्ति कर सकता है और न ही दानव और शैतान कर सकते हैं। ... परमेश्वर स्वयं देहधारण करता है और मानवजाति की गलतफहमियों के साथ-साथ उसके द्वारा किए गए उपहास, बदनामी और ईशनिंदा को भी सहन करता है। वह विनम्र होकर साधारण व्यक्ति बन जाता है, जो दिखने में भव्य नहीं होता, जिसमें कोई विशेष प्रतिभा और निश्चित रूप से कोई गहन ज्ञान या विद्वता नहीं होती—यह सब वह किस उद्देश्य से करता है? यह उन लोगों तक पहुँचने के लिए करता है जिन्हें उसने चुना है और जिन्हें वह इस पहचान तथा एक ऐसे मानवीय स्वरूप के साथ बचाने का इरादा रखता है जो उनकी बिल्कुल आसान पहुँच में हो। यह सब जो परमेश्वर करता है क्या यह वह कीमत नहीं है जो उसने चुकाई है? (हाँ, है।) क्या कोई और ऐसा कर सकता है? कोई भी नहीं कर सकता” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग तीन))। परमेश्वर के वचनों ने मुझे बहुत शर्मिंदा कर दिया। परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, उसके पास अधिकार और सामर्थ्य है और वह सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है, फिर भी भ्रष्ट मानवता को बचाने के लिए वह व्यक्तिगत रूप से देहधारी हुआ, दीन बनकर इंसानों के बीच एक साधारण व्यक्ति के रूप में रहता है, भ्रष्ट मानवजाति के विद्रोह और अवज्ञा को चुपचाप सहन कर रहा है। परमेश्वर कभी भी इस बात का बखान नहीं करता या डींगें नहीं मारता कि उसने मानवता के लिए कितनी बड़ी कीमत चुकाई है, बल्कि दीन बनकर लोगों के बीच छिपा रहता है और मानवजाति को बचाने के लिए सत्य व्यक्त करता है। ऐसे दुर्लभ गुण कभी किसी भ्रष्ट इंसान में नहीं हो सकते। मैंने परमेश्वर का पवित्र, सुन्दर और अच्छा सार देखा है, उसके स्वभाव में अहंकार का कोई नामो-निशान नहीं है। मुझे शैतान ने बुरी तरह भ्रष्ट कर दिया था और जब मेरे कर्तव्यों ने कुछ नतीजे हासिल किए तो मुझे अपनी तुच्छता का ध्यान नहीं रहा, मैं अहंकारी, दंभी और दिखावा करने वाली बन गई। हकीकत में मेरी काबिलियत औसत दर्जे की थी, मैं उम्रदराज थी, मेरा जीवन प्रवेश खराब था और मेरे पास कोई खूबी या कौशल नहीं था, इसलिए मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं कभी अभिनेत्री बन सकती हूँ। परमेश्वर ने मुझे ऊँचा उठाया था और कलीसिया में एक अभिनेत्री के रूप में प्रशिक्षण लेने और ऐसे वीडियो बनाने के अवसर दिए थे जो परमेश्वर की गवाही देते हों, इससे मुझ जैसे नाकारा इंसान को भी कुछ काम आने का मौका मिला। फिर भी मैं परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान और उसकी गवाही देने में असफल रही, बल्कि मैंने खुद को विशेष और एक ऐसे इंसान के रूप में देखा जिसके पास पूँजी है। कुछ वीडियो बनाने के बाद मेरे चलने और बात करने का ढंग भी बदल गया था, मुझे लगा मैं विशिष्ट हूँ, मैं दूसरों से प्रशंसा पाने के लिए दिखावा करने और खुद को ऊँचा उठाने के हर अवसर का लाभ उठाती थी। मैं सचमुच नीच, घृणित और मानवता से रहित थी। मैं तो पूरी तरह से बेशर्म हो गई थी! मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैं लगातार दिखावा करती रहती हूँ और अपना उत्कर्ष करती हूँ, मुझमें वाकई विवेक की कमी है। अब मुझे समझ आया मैं सचमुच कितनी बेचारी और दयनीय हूँ, अब मुझे एहसास हुआ कि तुम्हारे बिना मैं कुछ भी नहीं कर सकती। परमेश्वर, मेरा मार्गदर्शन करो ताकि मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्याग सकूँ।”
बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंश पढ़े : “जब तुम परमेश्वर के लिए गवाही देते हो, तो तुमको मुख्य रूप से इस बारे में बात करनी चाहिए कि परमेश्वर कैसे न्याय करता है और कैसे लोगों को ताड़ना देता है, लोगों का शोधन करने और उनके स्वभाव में परिवर्तन लाने के लिए किन परीक्षणों का उपयोग करता है। तुम लोगों को इस बारे में भी बात करनी चाहिए कि तुम्हारे अनुभव में कितनी भ्रष्टता उजागर हुई, तुमने कितना कष्ट सहा, परमेश्वर का विरोध करने के लिए तुमने कितनी चीजें कीं, और आखिरकार परमेश्वर ने कैसे तुम लोगों को जीता; इस बारे में भी बात करो कि परमेश्वर के कार्य का कितना वास्तविक ज्ञान तुम्हारे पास है और तुम्हें परमेश्वर के लिए कैसे गवाही देनी चाहिए और कैसे परमेश्वर के प्रेम का मूल्य चुकाना चाहिए। तुम्हें इन बातों को सरलता से प्रस्तुत करते हुए, इस प्रकार की भाषा में सत्व डालना चाहिए। खोखले सिद्धांतों की बातें मत करो। वास्तविक बातें अधिक किया करो; दिल से बातें किया करो। तुम्हें इसी प्रकार चीजों का अनुभव करना चाहिए। अपने आपको बहुत ऊँचा दिखाने की कोशिश मत करो, दिखावा करने के लिए खोखले सिद्धांतों की बात मत करो; ऐसा करने से तुम्हें बहुत घमंडी और तर्कहीन माना जाएगा। तुम्हें अपने वास्तविक अनुभव की असली, सच्ची और दिल से निकली बातों पर ज्यादा बोलना चाहिए; यह दूसरों के लिए सबसे अधिक लाभकारी होगा और उनके समझने के लिए सबसे उचित होगा” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, केवल सत्य की खोज करके ही स्वभाव में बदलाव लाया जा सकता है)। “तो कार्य करने का कौन-सा तरीका खुद को ऊँचा उठाना और अपने बारे में गवाही देना नहीं है? अगर तुम किसी मामले के संबंध में दिखावा करते और अपने बारे में गवाही देते हो, तो तुम यह परिणाम प्राप्त करोगे कि, कुछ लोग तुम्हारे बारे में ऊँची राय बनाएँगे और तुम्हारी पूजा करेंगे। लेकिन अगर तुम उसी मामले के संबंध में खुद को उजागर कर देते हो, और अपने आत्मज्ञान को साझा करते हो, तो उसकी प्रकृति अलग होती है। क्या यह सच नहीं है? अपने आत्मज्ञान के बारे में बात करने के लिए खुद को पूरी तरह उजागर कर देना, कुछ ऐसा है जो साधारण मानवता में होनी चाहिए। यह एक सकारात्मक चीज है। अगर तुम वास्तव में खुद को जानते हो और अपनी अवस्था के बारे में सही, वास्तविक और सटीक ढंग से बोलते हो; अगर तुम उस ज्ञान के बारे में बोलते हो जो पूरी तरह से परमेश्वर के वचनों पर आधारित है; अगर तुम्हें सुनने वाले इससे सीखते और लाभान्वित होते हैं; और अगर तुम परमेश्वर के कार्य की गवाही देते हो और उसे महिमामंडित करते हो, तो यह परमेश्वर के बारे में गवाही देना है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद चार : वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे समझ आया कि परमेश्वर की गवाही देने में मुख्य रूप से उसके कार्य और लोगों पर उसके न्याय और ताड़ना के प्रभावों के बारे में गवाही देना शामिल है। इसमें अपने कर्तव्य के दौरान बेनकाब हुई भ्रष्टता को उजागर करना आवश्यक है, साथ ही यह भी कि किसी के अनुचित इरादे क्या हैं, वह किस प्रकार परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह करता है, कोई व्यक्ति परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना से गुजरकर कैसे आत्मचिंतन करता है और आखिरकार पश्चात्ताप करके खुद को कैसे बदलता है ताकि लोग परमेश्वर के स्वभाव को समझकर उसके प्रति समर्पित हो पाएँ। दूसरों के साथ संगति करते समय मुझे फिल्मांकन के दौरान बेनकाब हुई अपनी नकारात्मकता और कमजोरी को सबके साथ साझा करना चाहिए ताकि हर कोई देख सके कि मैं परमेश्वर के मार्गदर्शन के बिना कुछ भी हासिल नहीं कर सकती थी और सारी महिमा परमेश्वर को दी जानी चाहिए। यही परमेश्वर की सच्ची गवाही है। इसलिए मैंने अपने आपको खोलकर रख देने का साहस जुटाया, मैंने एक “अनुभवी अभिनेत्री” के रूप में अपने दूसरे पक्ष के बारे में सबके सामने खुलासा करते हुए कहा, “असल में मुझमें काबिलियत की बहुत कमी है, मैंने अपनी बहुत सारी शूटिंग में असफलताएँ और नाकामियाँ झेली हैं, प्रार्थना और परमेश्वर पर भरोसा करके ही मुझे भावनाएँ प्राप्त हुई हैं। मेरे अभिनय को सफल बनाने में निर्देशक के व्यापक मार्गदर्शन और लम्बी रिहर्सलों का भी बड़ा योगदान रहा है। मेरी बनावटी और ओवरएक्टिंग की वजह से कितनी ही बार फिर से शूटिंग करनी पड़ी है और बाकी बातों के अलावा कभी-कभी अपनी खराब मनोदशा के चलते मैं अपने किरदार का सटीक चित्रण करने में भी नाकाम रही हूँ।” जब मैंने इन विषयों पर खुलकर बात की तो मैंने खुद को धरातल पर और सहज महसूस किया, अब मैंने अपने बारे में ऊँचा सोचना बंद कर दिया था, भाई-बहनों के साथ मेरे रिश्ते और भी घनिष्ठ हो गए। खासकर उस शूटिंग के दौरान जब मैंने इतनी बड़ी गलती की थी, भाई-बहनों की धैर्यपूर्ण मदद से थोड़ा-थोड़ा सुधार करके मेरे उस वीडियो को पूरा करना संभव हो सका। मुझे एहसास हुआ कि हर वीडियो परमेश्वर के मार्गदर्शन में भाई-बहनों के बीच सामंजस्यपूर्ण सहयोग का नतीजा था और उसमें मेरा योगदान बहुत थोड़ा सा था। मुझे बेहद तुच्छ होने का एहसास हुआ। इसके बाद एक और अनुभवजन्य गवाही वीडियो फिल्माने से पहले मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और उसका मार्गदर्शन माँगा। मैंने अपनी साथी बहन लिन जी से भी अपनी भ्रष्टता के बारे में खुलकर बात की और उससे मेरा पर्यवेक्षण करने और मुझे सचेत करते रहने की गुजारिश की कि कहीं मैं फिर से शेखी तो नहीं बघार रही या दिखावा तो नहीं कर रही। निर्देशक के साथ मिलकर मैं अपनी समस्याओं का सारांश भी प्रस्तुत करती, बार-बार अभ्यास और सुधार के लिए अपनी सामान्य समस्याओं को एक-एक करके सूचीबद्ध करती। इस तरह कर्तव्य निभाते हुए मुझे बहुत अधिक सहजता महसूस हुई।
बाद में मैंने एक फिल्म में एक महत्वपूर्ण दृश्य में भाग लिया। यह भूमिका मेरी अब तक की निभाई गई भूमिकाओं से बहुत अलग थी। मैंने सोचा अगर मैं यह भूमिका अच्छी तरह से निभा पाई तो मैं अपने अभिनय में सफलता प्राप्त कर लूँगी और भाई-बहन निश्चित रूप से मेरी प्रशंसा करेंगे। जब यह विचार मेरे मन में आया तो मुझे एहसास हुआ कि मैं फिर से दिखावा करना चाह रही हूँ। मैंने तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह मेरे अनुचित इरादों के खिलाफ विद्रोह करने में मेरा मार्गदर्शन करे और मेरा दिल धीरे-धीरे शांत हो गया। जब मैंने फिर से स्क्रिप्ट पर विचार किया तो मुझे एहसास हुआ कि इस क्षेत्र में मेरे पास अनुभव की कमी है और मैं इस भूमिका को अच्छे से नहीं समझ पा रही हूँ, इसलिए मैंने मदद के लिए भाई-बहनों को एक संदेश भेजा, “मैं संघर्ष कर रही हूँ और मुझे मदद की जरूरत है। मैं इस भूमिका को बिल्कुल नहीं निभा पा रही हूँ और सही मनोदशा में नहीं आ पा रही हूँ। मेरी मदद करो।” जैसे ही मैंने संदेश भेजा मुझे बहुत राहत महसूस हुई। बाद में भाई-बहनों ने धैर्यपूर्वक मेरा मार्गदर्शन किया और मेरी मदद की, मुझे आगे बढ़ने के लिए कुछ मार्ग और दिशाएँ बताईं।
अब मुझे दिखावा करने के अपने भ्रष्ट स्वभाव की कुछ समझ हासिल हो गई है। मुझे यह एहसास हो गया है कि परमेश्वर ने मुझे अपना कर्तव्य निभाने का जो अवसर दिया है वह दिखावा करने के लिए नहीं है, बल्कि मुझे अपने भ्रष्ट स्वभाव को जानने और उसका समाधान करने के लिए दिया है, अपने कर्तव्य के दौरान सत्य और जीवन प्रवेश का कर्मठता से अनुसरण करने के लिए दिया है। ये सभी लाभ और समझ परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन के नतीजे हैं। परमेश्वर का धन्यवाद!