27. जिम्मेदारी लेने के डर से मेरा स्वार्थ और घिनौनापन प्रकट हुआ
मैं 2023 में कलीसिया में पाठ-आधारित कर्तव्य निभा रहा था। जून में पर्यवेक्षक यांग फेंग ने मुझे बताया कि अगुआ उसे किसी और जगह कर्तव्य में लगाने की योजना बना रहे हैं और मुझे पर्यवेक्षक बनाया जा रहा है। यह सुनकर मैं तुरंत अभिभूत हो गया, सोचने लगा, “मुझे पर्यवेक्षक बना रहे हैं? यह कैसे संभव हो सकता है! जब से मैंने परमेश्वर को पाया है और अपना कर्तव्य निभाना शुरू किया है, मैं हमेशा कलीसिया का साधारण सदस्य रहा हूँ। मैं कभी भी पर्यवेक्षक नहीं रहा। पर्यवेक्षकों के पास कई जिम्मेदारियाँ और काम का व्यापक दायरा होता है। वे न केवल पेशेवर काम के लिए जिम्मेदार होते हैं, बल्कि उन्हें भाई-बहनों की मनोदशा को भी सुलझाना होता है और काम में आने वाली विभिन्न समस्याओं को हल करना होता है। यह सामान्य सदस्यों के काम से कहीं ज्यादा जटिल है। आमतौर पर मैं लोगों के साथ संवाद करने में अच्छा नहीं हूँ और भेद भी नहीं पहचान पाता। एक पर्यवेक्षक को जो काम करना चाहिए, उसके बारे में भी बहुत कुछ ऐसा है जो मुझे समझ नहीं आता या नहीं जानता कि उसे कैसे करना है। क्या यह कर्तव्य मेरे लिए बहुत ज्यादा नहीं है? इसके अलावा पर्यवेक्षक की जिम्मेदारियाँ एक सामान्य सदस्य की जिम्मेदारियों से कहीं ज्यादा गंभीर होती हैं। जब मैंने अभी-अभी पाठ-आधारित कर्तव्य करना शुरू किया था, वहाँ एक पर्यवेक्षक थी जो सिद्धांतों के अनुसार लेखों की जाँच नहीं करती थी और वह हमेशा व्यक्तिगत पसंद के आधार पर भाई-बहनों के अनुभवात्मक गवाही लेखों को खारिज कर देती थी। इससे काम में बाधा और गड़बड़ी पैदा हुई और उसे बर्खास्त कर दिया गया। अगर मैं यह कर्तव्य निभाऊँ और नतीजे खराब हों या कोई समस्या पैदा हो जाए तो मुझे जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी। सबसे अच्छी स्थिति में बस मेरी काट-छाँट की जाएगी, लेकिन बदतर स्थिति में, अगर काम में बाधा और गड़बड़ी पैदा हुई तो मुझे कलीसिया से दूर किया जा सकता है। अगर ऐसा हुआ तो मेरा भविष्य और नियति खत्म हो जाएगी!” जितना मैंने इसके बारे में सोचा, उतना ही मुझे लगा कि यह कर्तव्य निभाना मुश्किल है, इसलिए मैंने यांग फेंग से कहा, “मैं यह कर्तव्य नहीं निभा सकता। क्या किसी और जगह से किसी पर्यवेक्षक को स्थानांतरित करना संभव है?” यांग फेंग ने कहा कि उन्हें अभी तक कोई उपयुक्त व्यक्ति नहीं मिला है। मुझे एहसास हुआ कि यह स्थिति परमेश्वर की अनुमति से आई है और मेरे लिए बस मना कर देना और समर्पण के रवैये की कमी रखना गलत है। इसलिए मैंने पहले समर्पण करने का फैसला किया। हालाँकि मैं पर्यवेक्षक का कर्तव्य निभाने के लिए सहमत हो गया, लेकिन जब मैंने सोचा कि पेशेवर काम के अलावा मैं ज्यादा दूसरे कामों के संपर्क में नहीं आया हूँ तो मुझे बहुत दबाव महसूस हुआ और मुझे नहीं पता था कि मुझे आगे काम कैसे करना चाहिए और मुझे बस उम्मीद थी कि अगुआ किसी और को पर्यवेक्षक का कार्यभार सौंप देंगे।
इसके बाद मैं सोचने लगा, “मैंने पहले कभी यह कर्तव्य नहीं निभाया है और इसके बारे में बहुत कुछ ऐसा है जो मुझे समझ नहीं आता तो परमेश्वर ने मेरे लिए इस स्थिति क्यों व्यवस्था की? और मुझे इस मामले को कैसे सँभालना चाहिए?” जब मैं इन बातों पर विचार कर रहा था तो अचानक परमेश्वर के वचनों का एक अंश मेरे मन में आया : “जब कुछ लोगों को अभी-अभी पदोन्नत किया गया हो, तो वे नहीं जानते कि उन्हें कौन-से काम करने हैं, या उन्हें कैसे करना है, और थोड़े चकराए रहते हैं। यह सामान्य है; कभी ऐसा कोई कहाँ पैदा हुआ है जो हर काम करने में सक्षम हो? अगर तुम सब कुछ कर सकते, तो यकीनन तुम सभी लोगों में सबसे अहंकारी और दंभी होते, और किसी की बात नहीं मानते—ऐसी स्थिति में, क्या तुम तब भी सत्य को स्वीकार सकते? अगर तुम सब-कुछ कर सकते, तो क्या तब भी तुम परमेश्वर पर निर्भर रहोगे, और उसे आदरपूर्वक देखोगे? क्या तब भी तुम अपनी भ्रष्टता की समस्याओं को दूर करने के लिए सत्य को खोजोगे? तुम निश्चित रूप से नहीं खोजोगे। इसके विपरीत, तुम अहंकारी और दंभी रहोगे और मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलोगे, तुम सत्ता और रुतबे के लिए लड़ोगे और किसी के आगे नहीं झुकोगे, और तुम लोगों को गुमराह कर फँसाओगे, और कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी और बाधा डालोगे—उस स्थिति में भी क्या तुम परमेश्वर के घर द्वारा उपयोग में लिए जा सकते हो? अगर तुम जानते हो कि तुममें कई खामियाँ हैं, तो तुम्हें आज्ञापालन करना और समर्पण करना सीखना चाहिए और परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के अनुसार अच्छे ढंग से विभिन्न काम करने चाहिए; इससे तुम धीरे-धीरे उस मुकाम पर पहुँच सकोगे जहाँ तुम अपना कार्य इस तरह से कर पाओगे जो मानक स्तर का होगा” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (5))। परमेश्वर के वचनों ने मेरे हृदय में तुरंत चमक ला दी और मैं परमेश्वर के इरादे को थोड़ा बेहतर ढंग से समझने लगा। मुझे एहसास हुआ कि मेरे भीतर एक गलत दृष्टिकोण है। मैं सोचता था कि केवल वे ही पर्यवेक्षक का कर्तव्य करने के लिए पदोन्नत होने योग्य हैं जो सब कुछ जानते हैं और कुछ भी कर सकते हैं। असल में परमेश्वर के घर ने कई लोगों को पदोन्नत और विकसित किया है और उनमें से सभी शुरुआत में सब कुछ नहीं समझते थे, लेकिन इसके बजाय उन्होंने क्रमिक प्रशिक्षण के माध्यम से थोड़ा-थोड़ा करके सिद्धांत समझे। नया कर्तव्य शुरू करते समय सब कुछ न समझना या न जानना सामान्य बात है और मुझे इस मामले में सही दृष्टिकोण रखना था। पीछे मुड़कर सोचें तो क्या अपने कर्तव्यों को निभाने के इन सभी वर्षों में ऐसा ही नहीं रहा है? चाहे मैं कोई भी कर्तव्य कर रहा था, पहली बार प्रशिक्षण शुरू करते समय मुझे सब कुछ नहीं आता था, लेकिन मुझे प्रशिक्षण के लिए नियुक्त किया गया क्योंकि मैं कुछ सिद्धांतों को समझने में सक्षम था। बाद में परमेश्वर के प्रबोधन और अपने भाई-बहनों की मदद की बदौलत कुछ नाकामियों का अनुभव करने, प्रकट किए जाने, सार निकालने और चिंतन करने पर मैं धीरे-धीरे कुछ सिद्धांत समझने और महारत हासिल करने लगता था। इस बार कलीसिया ने मेरे लिए पर्यवेक्षक का कर्तव्य करने की व्यवस्था की थी और भले ही मुझे पहले यह नहीं पता था कि इसे कैसे करना है और मुझे कुछ मुश्किलें होंगी, यह पूरी तरह से सामान्य होगा और मुझे प्रशिक्षण के लिए परमेश्वर के प्रति समर्पण और भरोसा करके शुरुआत करनी थी। मैंने परमेश्वर के वचनों से यह भी महसूस किया कि इस कर्तव्य में मेरी कई कमियाँ मुझे संयमित रहने में मदद कर सकती हैं और जब मसलों का सामना करना पड़ता है तो मैं दूसरों से अधिक राय खोज सकता हूँ, जिससे मैं अपने विचारों से चिपक कर अहंकार और दंभ के कारण अपने कर्तव्यों में बाधा और गड़बड़ी पैदा करने से बच सकता हूँ। क्योंकि मैं बहुत घमंडी था और सोचता था कि मेरे पास कुछ बुद्धि और काबिलियत है, मैं कुछ सत्य सिद्धांत समझता हूँ, मैं दूसरों को नीची नजरों से देखता रहता। जब मुझे अलग-अलग राय का सामना करना पड़ता तो मैं सोचता कि मैं सही हूँ और इसलिए मैं अक्सर अपने विचारों से चिपका रहता। इससे काम में बाधा और गड़बड़ी पैदा हुई और मैं लगभग बर्खास्त होने की हद तक पहुँच गया। अगर मैं सब कुछ जानता और कर सकता तो मैं वाकई अपने घमंडी स्वभाव के आधार पर काम करने के लिए प्रवृत्त होता। लेकिन इस बार पर्यवेक्षक के कर्तव्य में मैं कई क्षेत्रों में कमजोर था और मैं चाहकर भी घमंडी तरीके से काम नहीं कर सकता था। यह वाकई मेरे लिए एक सुरक्षा थी।
बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “जब परमेश्वर का घर किसी को अगुआ बनने के लिए पदोन्नत और विकसित करता है, तो वह उन्हें प्रशिक्षित करने, परमेश्वर पर निर्भर करने और सत्य की ओर प्रयास करने के लिए उन्हें और भी अधिक दायित्व देता है; तभी उनका आध्यात्मिक कद यथाशीघ्र बढ़ेगा। उन पर जितना अधिक दायित्व डाला जाता है, उतना ही उन पर दबाव बनता है, वे सत्य को खोजने और परमेश्वर पर निर्भर रहने के लिए उतने ही मजबूर हो जाते हैं। अंत में, वे अपना कार्य ठीक से करने और परमेश्वर की इच्छा का पालन करने में सक्षम हो पाएँगे, और इस तरह वे बचाए और पूर्ण किए जाने के सही मार्ग पर कदम रखेंगे—यह प्रभाव तब प्राप्त होता है जब परमेश्वर का घर लोगों को पदोन्नत और विकसित करता है। इन विशेष कामों को किए बिना, वे यह नहीं जान पाएँगे कि उनमें क्या कमी है, यह नहीं जान पाएँगे कि सिद्धांतों के अनुसार कार्य कैसे करें और न ही यह समझ पाएँगे कि सत्य वास्तविकता होने का क्या अर्थ है। तो विशेष काम करने से उन्हें अपनी कमियाँ खोजने में मदद मिलती है, उन्हें यह देखने में मदद मिलती है कि अपने गुणों के अलावा, वे सत्य वास्तविकता से रहित हैं; उन्हें यह आभास पाने में मदद मिलती है कि वे कितने दरिद्र और दयनीय हैं, इससे उन्हें यह एहसास हो पाता है कि यदि वे परमेश्वर पर निर्भर रहकर सत्य को नहीं खोजेंगे, तो वे किसी भी कार्य के योग्य नहीं होंगे, इससे उन्हें खुद को सच में जानने और साफ तौर पर देखने का मौका मिलता है कि यदि वे सत्य का अनुसरण कर अपना स्वभाव नहीं बदलेंगे, तो उनके लिए परमेश्वर के उपयोग के लायक होना असंभव होगा—ये वे तमाम प्रभाव हैं जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को विकसित और प्रशिक्षित किए जाने पर प्राप्त होने चाहिए। केवल इन पहलुओं को समझ कर ही लोग दोनों पाँव जमीन पर रखकर सत्य का अनुसरण कर सकते हैं, विनम्रता के साथ अपना आचरण कर सकते हैं, अपना काम करते समय अपनी शेखी न बघारने के प्रति सुनिश्चित हो सकते हैं, निरंतर परमेश्वर की बड़ाई करते हैं और अपना कर्तव्य करते समय परमेश्वर की गवाही देते हैं, और कदम-दर-कदम सत्य वास्तविकता में प्रवेश करते हैं। ... प्रशिक्षण के जितने ज्यादा अवसर होंगे, उतने ही ज्यादा लोगों के अनुभव होंगे, उनकी अंतर्दृष्टियाँ उतनी ही व्यापक होंगी, और वे उतनी ही तेजी से बढ़ेंगे। लेकिन, अगर लोग अगुआ का कार्य नहीं करते, तो वे सिर्फ व्यक्तिगत अस्तित्व और व्यक्तिगत अनुभवों का सामना कर उनमें से गुजरेंगे और केवल व्यक्तिगत भ्रष्ट स्वभावों और विभिन्न व्यक्तिगत दशाओं को पहचान पाएँगे—जो सब-के-सब केवल स्वयं उनसे ही संबंधित होते हैं। जब एक बार वे अगुआ बन जाते हैं तो उनका सामना ज्यादा लोगों, ज्यादा घटनाओं और ज्यादा परिवेशों से होता है, जिससे वे अक्सर परमेश्वर के सामने आकर सत्य सिद्धांतों को खोजने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। उनके लिए ये लोग, घटनाएँ, और चीजें अलक्षित रूप से एक दायित्व बन जाती हैं, और स्वाभाविक रूप से सत्य वास्तविकता में उनके प्रवेश के लिए अत्यंत अनुकूल स्थितियाँ तैयार कर देती हैं, जोकि एक अच्छी बात है। और इसलिए जिस व्यक्ति में काबिलियत होती है, जो दायित्व उठाता है, और जिसमें कार्यक्षमता होती है, वह एक साधारण विश्वासी के रूप में धीरे-धीरे, और एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में तेजी से प्रवेश करेगा” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (5))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैं परमेश्वर के घर में लोगों को तरक्की देने और विकसित करने के महत्व के बारे में थोड़ा-बहुत समझने लगा। परमेश्वर के घर में लोगों को तरक्की देना और विकसित करना लोगों को बेनकाब करने या निकालने के लिए नहीं किया जाता है, बल्कि लोगों को जिम्मेदारी का एहसास देने और उन्हें प्रशिक्षित करने के अधिक अवसर देने के लिए किया जाता है। अधिक जिम्मेदारियों के साथ काम में आने वाली समस्याएँ बढ़ जाती हैं और काट-छाँट, झटके और नाकामियाँ भी अधिक बार होती हैं। ऐसा लग सकता है कि देह को कुछ कष्ट सहने पड़ते हैं, लेकिन परमेश्वर ऐसी स्थितियों का इस्तेमाल हमारे भ्रष्ट स्वभाव जानने, हमारी कमियों और खामियों का पता लगाने, हमें उस पर ज्यादा निर्भर होने और सत्य खोजने के लिए मजबूर करने में मदद देने की खातिर करता है। यह हमारे लिए खुद को समझने, सत्य वास्तविकताओं में प्रवेश करने और उद्धार पाने के लिए फायदेमंद है। अगर हम कम चीजों का अनुभव करते हैं और हमें कोई कठिनाई नहीं होती है तो हमारे भ्रष्ट स्वभावों का प्रकाशन कम होगा, जिससे हमारे लिए अपनी कमियाँ साफ देखना मुश्किल हो जाएगा और अपने भ्रष्ट स्वभावों की हमारी समझ सीमित हो जाएगी, हर क्षेत्र में हमारी प्रगति धीमी रहेगी। जितना अधिक मैंने इसके बारे में सोचा, उतना ही मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर के घर में किसी व्यक्ति को तरक्की देने और विकसित करने में परमेश्वर के श्रमसाध्य इरादे शामिल हैं। कलीसिया ने मुझे पर्यवेक्षक का कर्तव्य सौंपने की व्यवस्था जानबूझकर मेरे लिए चीजें कठिन बनाने के लिए नहीं की थी, न ही यह मुझे बेनकाब करने या निकालने के लिए की थी, बल्कि मुझे अधिक प्रशिक्षण पाने, सत्य वास्तविकताओं में अधिक तेजी से प्रवेश करने और अपने कर्तव्य बेहतर ढंग से करने की अनुमति देने के लिए की थी। लेकिन मैं परमेश्वर का इरादा नहीं समझ पाया, फिर भी शिकायत और प्रतिरोध करता रहा। मेरे अंदर वाकई मानवता और विवेक की कमी है!
बाद में मैंने और भी सोचा, “मैं पर्यवेक्षक का कर्तव्य निभाने के लिए क्यों अनिच्छुक था? गलत विचारों के अलावा इसके पीछे और कौन से भ्रष्ट स्वभाव थे?” अपने चिंतन में मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े : “कुछ लोग अपना कर्तव्य निभाते हुए जिम्मेदारी लेने से डरते हैं। यदि कलीसिया उन्हें कोई काम देती है, तो वे पहले इस बात पर विचार करेंगे कि इस कार्य के लिए उन्हें कहीं उत्तरदायित्व तो नहीं लेना पड़ेगा, और यदि लेना पड़ेगा, तो वे उस कार्य को स्वीकार नहीं करेंगे। किसी काम को करने के लिए उनकी शर्तें होती हैं, जैसे सबसे पहले, वह काम ऐसा होना चाहिए जिसमें मेहनत न हो; दूसरा, वह व्यस्त रखने या थका देने वाला न हो; और तीसरा, चाहे वे कुछ भी करें, वे कोई जिम्मेदारी नहीं लेंगे। इन शर्तों के साथ वे कोई काम हाथ में लेते हैं। ऐसा व्यक्ति किस प्रकार का होता है? क्या ऐसा व्यक्ति धूर्त और कपटी नहीं होता? वह छोटी से छोटी जिम्मेदारी भी नहीं उठाना चाहता। उन्हें यहाँ तक डर लगता है कि पेड़ों से झड़ते हुए पत्ते कहीं उनकी खोपड़ी न तोड़ दें। ऐसा व्यक्ति क्या कर्तव्य कर सकता है? परमेश्वर के घर में उनका क्या उपयोग हो सकता है? परमेश्वर के घर का कार्य शैतान से युद्ध करने के कार्य के साथ-साथ राज्य के सुसमाचार फैलाने से भी जुड़ा होता है। ऐसा कौन-सा काम है जिसमें उत्तरदायित्व न हो? क्या तुम लोग कहोगे कि अगुआ होना जिम्मेदारी का काम है? क्या उनकी जिम्मेदारियाँ भी बड़ी नहीं होतीं, और क्या उन्हें और ज्यादा जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए? चाहे तुम सुसमाचार फैलाते हो, गवाही देते हो, वीडियो बनाते हो, या कुछ और करते हो—इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुम क्या करते हो—जब तक इसका संबंध सत्य सिद्धांतों से है, तब तक उसमें उत्तरदायित्व होंगे। यदि तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन में कोई सिद्धांत नहीं हैं, तो उसका असर परमेश्वर के घर के कार्य पर पड़ेगा, और यदि तुम जिम्मेदारी लेने से डरते हो, तो तुम कोई काम नहीं कर सकते। अगर किसी को कर्तव्य निर्वहन में जिम्मेदारी लेने से डर लगता है तो क्या वह कायर है या उसके स्वभाव में कोई समस्या है? तुम्हें अंतर बताने में समर्थ होना चाहिए। दरअसल, यह कायरता का मुद्दा नहीं है। यदि वह व्यक्ति धन के पीछे भाग रहा है, या वह अपने हित में कुछ कर रहा है, तो वह इतना बहादुर कैसे हो सकता है? वह कोई भी जोखिम उठा लेगा। लेकिन जब वह कलीसिया के लिए, परमेश्वर के घर के लिए काम करता है, तो वह कोई जोखिम नहीं उठाता। ऐसे लोग स्वार्थी, नीच और बेहद कपटी होते हैं। ... अगर कोई समस्या आने पर तुम अपनी रक्षा करते हो और अपने लिए बचने का रास्ता रखते हो, पिछले दरवाजे से निकलना चाहते हो, तो क्या ऐसा करके तुम सत्य का अभ्यास कर रहे हो? यह सत्य का अभ्यास करना नहीं है—यह धूर्त होना है। अब तुम परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभा रहे हो। कोई कर्तव्य निभाने का पहला सिद्धांत क्या है? वह यह है कि पहले तुम्हें अपने पूरे दिल से भरसक प्रयास करते हुए वह कर्तव्य निभाना चाहिए और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करनी चाहिए। यह एक सत्य सिद्धांत है, जिसे तुम्हें अभ्यास में लाना चाहिए। अपने लिए बच निकलने का रास्ता, पिछला दरवाजा छोड़कर स्वयं को बचाना, अविश्वासियों द्वारा अपनाए गए अभ्यास का सिद्धांत है और उनका सबसे ऊँचा फलसफा है। सभी मामलों में सबसे पहले अपने बारे में सोचना और अपने हित बाकी सब चीजों से ऊपर रखना, दूसरों के बारे में न सोचना, परमेश्वर के घर के हितों और दूसरों के हितों के साथ कोई संबंध न रखना, अपने हितों के बारे में पहले सोचना और फिर बचाव के रास्ते के बारे में सोचना—क्या यह एक अविश्वासी नहीं है? एक अविश्वासी ठीक ऐसा ही होता है। इस तरह का व्यक्ति कोई कर्तव्य निभाने के योग्य नहीं है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक))। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि अपने कर्तव्य करते समय मुझे सबसे पहले यह विचार करना चाहिए कि मैं अपने दिल और खूबियों को कैसे अर्पित करूँ और कलीसिया के हितों को कैसे बनाए रखूँ। परमेश्वर कहता है कि अगर लोग जिम्मेदारी लेने से लगातार डरते हैं, हमेशा अपने निजी हितों के बारे में सोचते हैं और योजना बनाते हैं, अपने कर्तव्यों से इनकार करते हैं, उनसे बचते हैं तो वे विश्वासघाती, स्वार्थी, घिनौने हैं और गैर-विश्वासियों से अलग नहीं हैं। परमेश्वर ऐसे लोगों से घृणा और तिरस्कार करता है। शुरू में मैंने सोचा था कि चूँकि मैंने कभी पर्यवेक्षक का कर्तव्य नहीं निभाया है और मुझे कोई अनुभव नहीं है, इसलिए मेरे लिए इस कर्तव्य से इनकार करना सामान्य होगा और यह कोई गंभीर मामला नहीं है, लेकिन अब मुझे एहसास हुआ कि ये सिर्फ मेरी अपनी धारणाएँ और कल्पनाएँ थीं और सत्य के अनुरूप नहीं थीं। मैंने उस समय के बारे में सोचा जब मैंने सुना था कि मुझे पर्यवेक्षक बनाया जा रहा है। मुझे नहीं लगा कि यह परमेश्वर की ओर से उत्कर्ष है और मैंने इस कर्तव्य को अच्छी तरह से निभाने के बारे में नहीं सोचा। इसके बजाय सबसे पहले मैंने उन कई जिम्मेदारियों के बारे में सोचा, जो मुझे एक पर्यवेक्षक के रूप में उठानी पड़तीं, कि अगर मैंने अच्छा काम नहीं किया तो मेरी काट-छाँट की जाएगी और अगर मैंने कोई बाधा और गड़बड़ी पैदा की तो मेरा भविष्य और नियति खत्म हो सकते हैं। मुझे लगा कि मैं एक नियमित टीम के सदस्य के रूप में सुरक्षित रहूँगा, क्योंकि इस तरह मुझे इतनी सारी जिम्मेदारियाँ नहीं लेनी पड़ेंगी और मुझे उजागर होने या निकाले जाने का जोखिम कम होगा। बाद में भले ही मैंने यह कर्तव्य सँभाला, लेकिन मैंने इसे बहुत अनिच्छा से किया और हमेशा उम्मीद जताई कि अगुआ मेरी जगह लेने के लिए किसी और को ढूँढ़ लेंगे। मैंने सोचा कि जब गैर-विश्वासी बातचीत करते हैं तो वे हमेशा एक-दूसरे के खिलाफ सतर्क रहते हैं, हमेशा डरते हैं कि दूसरे उनके हितों के खिलाफ काम न करें और इसलिए वे हमेशा कुछ न कुछ छिपाने की कोशिश करते हैं। लेकिन भले ही मैंने परमेश्वर को पा लिया था और मैं अपने कर्तव्य कर रहा था, फिर भी मैं परमेश्वर के खिलाफ लगातार सतर्क था। अगर मुझे लगता था कि कलीसिया द्वारा मेरे लिए तय किए गए कर्तव्य मेरे भविष्य के लिए कोई खतरा नहीं हैं तो मैं कीमत चुकाने और उन्हें करने के लिए तैयार होता, लेकिन जैसे ही मुझे लगता कि इन कर्तव्यों में किसी तरह का जोखिम हो सकता है, मैं उन्हें नहीं करना चाहता था। मैं अक्सर दावा करता था कि मुझे परमेश्वर के इरादों पर विचार करना चाहिए, लेकिन जब मुझे ऐसे कर्तव्य का सामना करना पड़ा जिसमें मेरे सहयोग की जरूरत थी तो मैंने सिर्फ अपने व्यक्तिगत भविष्य और नियति पर विचार किया। मैंने अपने अनुभव की कमी का इस्तेमाल अपने कर्तव्यों से बचने के बहाने के रूप में किया, परमेश्वर के लिए जरा भी विचारशील नहीं हुआ। मैंने देखा कि मैं पूरी तरह से स्वार्थी, नीच, धूर्त और धोखेबाज था। गैर-विश्वासी व्यक्तिगत हितों को सबसे ऊपर रखते हैं, क्या मेरे ये विचार और जो चीजें मैं प्रकट कर रहा था, वे गैर-विश्वासियों के समान नहीं थे? मैंने देखा कि मुझमें वाकई अंतरात्मा और विवेक की कमी है। भले ही पर्यवेक्षक के रूप में ऐसी कई चीजें हैं जो मुझे समझ नहीं आती थीं, पर मुझे पहले प्रशिक्षण लेना चाहिए और देखना चाहिए कि चीजें कैसे होती हैं। अगर मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करता लेकिन फिर भी अपने कर्तव्य ठीक से नहीं कर पाता तो मुझे कोई पछतावा नहीं होता। बाद में यांग फेंग ने मुझे विभिन्न समूहों के काम से परिचित कराने के लिए सब कुछ दिखाया। पहले तो मैं वाकई उलझन में था और मुझे नहीं पता था कि क्या या कैसे करना है, लेकिन बाद में जब मैंने आगे का मार्ग महसूस करते हुए यह किया तो मुझे आगे बढ़ने का रास्ता मिल गया।
कुछ ही समय बाद सीसीपी ने विश्वासियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियों का एक और दौर शुरू किया और हमें तत्काल वहाँ से निकलना पड़ा क्योंकि हम जिस जगह पर रह रहे थे वह असुरक्षित हो गई थी। अन्य जगहों पर भी स्थिति खराब थी। उच्च अगुआओं ने अनुरोध किया कि विभिन्न स्थानों की कलीसियाएँ पाठ-आधारित कर्तव्यों के लिए अच्छी काबिलियत वाले कर्मी प्रदान करें। मैंने मन ही मन सोचा, “अभी हम जिस विकट स्थिति में हैं, उसमें कलीसिया के कुछ कार्यों का क्रियान्वयन पहले से ही मुश्किल है। अगर अच्छी काबिलियत वाले लोगों का तबादला हो जाता है तो हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि काम आगे चलकर प्रभावी होगा? अगर यांग फेंग भी इस महत्वपूर्ण क्षण में चला जाता है, फिर अगर काम अप्रभावी होता है या कोई समस्या आती है तो मुझे जिम्मेदारी उठानी होगी। अगर हालात वाकई खराब हो जाते हैं तो मुझे बर्खास्त किया या निकाला जा सकता है और फिर मेरा कोई भविष्य या नियति नहीं होगी।” इस बात को ध्यान में रखते हुए मुझे पहले ही इस कर्तव्य को स्वीकारने का पछतावा हुआ। ऐसा हुआ कि यांग फेंग सुरक्षा चिंताओं के कारण फिलहाल इस क्षेत्र को नहीं छोड़ सकता था, और मैंने सोचा, “अगर वह नहीं जाता है तो अभी भी काम के लिए वही जिम्मेदार होगा। भले ही मैं एक पर्यवेक्षक हूँ, मैं सिर्फ एक सहायक रहूँगा। अगर कुछ भी गलत हुआ तो अगुआ अभी भी उसके पास जाएँगे।” उस दौरान मैंने अपने काम में व्यस्त होने का बहाना बनाया और समग्र काम पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। मैंने मन ही मन सोचा, “चूँकि यांग फेंग अभी तक नहीं गया है, इसलिए वह आने वाली किसी भी समस्या को सँभाल सकता है।” कुछ ही समय बाद अगुआओं ने मेरी मनोदशा समझी और मुझे परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश भेजे। परमेश्वर कहता है : “मसीह-विरोधी आशीष प्राप्ति को स्वर्ग से भी अधिक बड़ा, जीवन से भी बड़ा, सत्य के अनुसरण, स्वभावगत परिवर्तन या व्यक्तिगत उद्धार से भी अधिक महत्वपूर्ण, और अपना कर्तव्य अच्छी तरह निभाने और मानक के अनुरूप सृजित प्राणी होने से अधिक महत्वपूर्ण मानता है। वह सोचता है कि मानक के अनुरूप एक सृजित प्राणी होना, अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करना और बचाया जाना सब तुच्छ चीजें हैं, जो मुश्किल से ही उल्लेखनीय हैं या टिप्पणी के योग्य हैं, जबकि आशीष प्राप्त करना उनके पूरे जीवन में एकमात्र ऐसी चीज होती है, जिसे कभी नहीं भुलाया जा सकता। उनके सामने चाहे जो भी आए, चाहे वह कितना भी बड़ा या छोटा क्यों न हो, वे इसे आशीष प्राप्ति होने से जोड़ते हैं और अत्यधिक सतर्क और चौकस होते हैं, और वे हमेशा अपने बच निकलने का मार्ग रखते हैं” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद बारह : जब उनके पास कोई रुतबा नहीं होता या आशीष पाने की आशा नहीं होती तो वे पीछे हटना चाहते हैं)। “विशेष रूप से कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनसे जब किसी खास काम की जिम्मेदारी लेने के लिए कहा जाता है, तो वे इस बात पर विचार नहीं करते कि वे अपनी निष्ठा कैसे प्रदान कर सकते हैं या इस कर्तव्य को कैसे निभा सकते हैं और उस काम को अच्छी तरह से कैसे कर सकते हैं। बल्कि वे इस बात पर विचार करते हैं कि जिम्मेदारी से कैसे भागा जाए, काट-छाँट से कैसे बचा जाए, किसी जिम्मेदारी को लेने से कैसे बचा जाए, और समस्याएँ या गलतियाँ होने पर कैसे बेदाग बच निकला जाए। वे पहले अपने बच निकलने का रास्ता और अपनी प्राथमिकताओं और हितों को पूरा करने पर विचार करते हैं, न कि इस पर कि अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से कैसे निभाएँ और अपनी निष्ठा कैसे प्रस्तुत करें। ... तो, किस तरह के लोग अपने कर्तव्यों का पालन इस तरह से करते हैं? क्या ये वे लोग हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं? सबसे पहले, एक बात तो तय है : इस तरह के लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते। वे कुछ आशीषों का आनंद लेने के लिए सक्रिय प्रयास करते हैं, प्रसिद्ध होना चाहते हैं और परमेश्वर के घर में ध्यान आकर्षित कराना चाहते हैं, ठीक वैसे ही जैसे वे जैसे-तैसे समाज में जी रहे थे। सार की दृष्टि से, वे कैसे लोग हैं? वे छद्म-विश्वासी हैं” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक))। “अगर लोग सत्य नहीं समझते, तो उनके लिए अपने हित छोड़ने से कठिन कुछ नहीं होता। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उनके जीवन के फलसफे होते हैं ‘हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए’ और ‘मनुष्य धन के लिए मरता है, जैसे पक्षी भोजन के लिए मरते हैं।’ जाहिर है, वे अपने हितों के लिए जीते हैं। लोग सोचते हैं कि अपने हितों के बिना—अगर उन्हें अपने हित छोड़ने पड़े—तो वे जीवित नहीं रह पाएँगे, मानो उनका अस्तित्व उनके हितों से अविभाज्य हो, इसलिए ज्यादातर लोग अपने हितों के अतिरिक्त सभी चीजों के प्रति अंधे होते हैं। वे अपने हितों को किसी भी चीज से ऊपर समझते हैं, वे अपने हितों के लिए जीते हैं, और उनसे उनके हित छुड़वाना उनसे अपना जीवन छोड़ने के लिए कहने जैसा है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने स्वभाव का ज्ञान उसमें बदलाव की बुनियाद है)। परमेश्वर उजागर करता है कि मसीह-विरोधी आशीष पाने को परमेश्वर में विश्वास करने का लक्ष्य मानते हैं। वे सत्य का अनुसरण करने में प्रयास नहीं करते और जो कुछ भी होता है उसे आशीष पाने से जोड़ते हैं। खासकर कलीसिया द्वारा सौंपे गए कर्तव्यों के संबंध में वे हमेशा काम में देरी के कारण जिम्मेदारियाँ लेने या अपराध करने से डरते हैं, वे हमेशा परमेश्वर से सतर्क रहते हैं क्योंकि उन्हें निकाले जाने और आशीष पाने का मौका खोने का डर होता है। यह वाकई उनका दुष्ट और धोखेबाज व्यवहार है! मैंने देखा कि मेरा व्यवहार बिल्कुल मसीह-विरोधी जैसा था। जब से मुझे पर्यवेक्षक का कर्तव्य सौंपा गया था, मैं यही सोचता था कि कैसे अच्छा प्रदर्शन न करने से काम को नुकसान पहुँच सकता है, जिससे संभवतः मुझे बेनकाब कर निकाला जा सकता है और मैं आशीष पाने का मौका खो सकता हूँ। मेरे विचार इस बारे में नहीं थे कि मैं काम से जल्दी कैसे परिचित हो जाऊँ या काम में विभिन्न मुद्दों को कैसे हल करूँ। मैंने केवल अपने व्यक्तिगत हितों के बारे में सोचा। अपने व्यवहार पर विचार करते हुए मुझे एहसास हुआ कि मैं “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए” के शैतानी जहर से नियंत्रित हो रहा था। मैंने जो कुछ भी किया और कहा वह स्वार्थ के सिद्धांत पर आधारित था, मैं पूरी तरह से स्वार्थी और घिनौना था। मुझे अच्छी तरह पता था कि जब यांग फेंग का काम बदला जाएगा तो कोई भी कई कलीसियाओं के पाठ-आधारित कार्य की निगरानी नहीं करेगा और यह कार्य प्रभावित होगा, लेकिन मैं अभी भी अपने व्यक्तिगत हितों के बारे में चिंतित था और इस कर्तव्य को स्वीकारने में अनिच्छुक था। भले ही मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े थे और मैं समझ गया था कि जब कलीसिया किसी को तरक्की देता है तो परमेश्वर का इरादा उन्हें प्रशिक्षित करना और सत्य समझाना होता है, न कि उन्हें बेनकाब करना और निकालना, फिर भी मैं असुरक्षित महसूस करता रहा और सब कुछ परमेश्वर को सौंपने की हिम्मत नहीं की। खासकर सीसीपी की गिरफ्तारियों के बाद कार्य को विभिन्न मुश्किलों का सामना करना पड़ा, ऐसे में अंतरात्मा और विवेक वाला कोई व्यक्ति सक्रियता से जिम्मेदारी लेता। लेकिन मैंने सिर्फ अपने भविष्य के बारे में सोचा और देखा कि मैं अपने लिए बैकअप प्लान कैसे बना सकता हूँ। जिम्मेदारी उठाने से बचने के लिए मैंने समग्र काम में भाग न लेने के लिए अपने मौजूदा काम में व्यस्त होने का बहाना बनाया और मैंने यह भी सोचा कि चूँकि यांग फेंग जोखिम में है तो उसके लिए कहीं और अपना कर्तव्य निभाना सुविधाजनक नहीं होगा, इसलिए मुझे पर्यवेक्षक बनकर खुद को जोखिम में नहीं डालना पड़ेगा। मैंने सिर्फ अपने निजी हितों के बारे में सोचा और कलीसिया के काम के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचा। मैंने दूसरों के लिए बुरा भी चाहा और दुर्भावनापूर्ण विचार प्रकट किए। मेरे पास किस तरह से कोई मानवता थी? मैंने देखा कि मैं सिर्फ आशीष और पुरस्कार पाने के लिए परमेश्वर पर विश्वास करता था और जब मैं कुछ कर्तव्य कर सकता था, तब भी मैं सिर्फ परमेश्वर से सौदेबाजी करने की कोशिश कर रहा था। जब मेरे लिए जिम्मेदारी लेना वाकई जरूरी होता तो मैं दूर छिप जाता। मेरे दिल में परमेश्वर या अपने कर्तव्य के प्रति कोई ईमानदारी नहीं थी! “मैं अपने कर्तव्यों को ठीक से निभाऊँगा और परमेश्वर के इरादों पर विचार करूँगा” जैसी जो बातें मैं कहता रहता था वे सब सिर्फ खोखले शब्द थे। मैं बस परमेश्वर का अनुग्रह पाने के लिए अच्छी-अच्छी बातें कह रहा था ताकि वह मुझे भविष्य में एक अच्छी मंजिल दे। क्या मैं परमेश्वर को धोखा देने और उसका इस्तेमाल करने की कोशिश नहीं कर रहा था? मुझे एहसास हुआ कि मैं न केवल स्वार्थी और घिनौना था बल्कि मेरा स्वभाव भी वाकई दुष्ट था। जितना अधिक मैंने सोचा, उतना ही मुझे लगा कि मैंने जो बातें प्रकट की थीं, वे परमेश्वर को घृणित और तिरस्कृत हैं। मैंने अपने सीमित आध्यात्मिक कद और अनुभव के बारे में सोचा और मैंने देखा कि परमेश्वर ने मुझे पर्यवेक्षक के कर्तव्य में प्रशिक्षित होने का अवसर देकर मुझ पर अनुग्रह किया है, यह इसलिए था ताकि मैं सिद्धांतों को जल्दी से समझ सकूँ और सत्य वास्तविकताओं में प्रवेश कर सकूँ। लेकिन मैंने परमेश्वर द्वारा दिए गए इस अवसर को नहीं सँजोया, न ही यह सोचा कि मैं अपना कर्तव्य कैसे अच्छी तरह से निभाऊँ और परमेश्वर के प्रेम का बदला कैसे चुकाऊँ। इसके बजाय मैंने मना कर दिया और अपने कर्तव्य से मुँह मोड़ लिया। मेरे पास वाकई अंतरात्मा और विवेक की कमी थी और मैं अच्छे-बुरे में अंतर नहीं कर सकता था! यह एहसास होने पर मैं अपराध बोध और कर्ज से दबे होने की भावनाओं से भर गया और मैं यांग फेंग से जितना संभव हो सके सीखने का अवसर लेना चाहता था, जब तक वह यहाँ है। कुछ समय बाद यांग फेंग और कई भाई-बहनों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और सारा काम मेरे कंधों पर आ गया। हालाँकि कुछ दबाव था, मुझे पता था कि मैं इस स्थिति से भाग नहीं सकता और मुझे अपना कर्तव्य करना है, इसलिए मैंने कर्तव्य करने के लिए भाई-बहनों के साथ मिलकर सहयोग किया।
एक बार मैंने अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर एक अनुभवात्मक गवाही लेख को हटा दिया और ऊपरी अगुआओं ने मामले की जाँच करने के लिए एक पत्र भेजा। मैंने सोचा, “यह कोई छोटी बात नहीं है। शायद यह केवल काट-छाँट का मामला न हो, सबसे खराब स्थिति में मुझे बर्खास्त भी किया जा सकता है।” मैंने अगुआओं द्वारा इसे सँभालने की प्रतीक्षा करते हुए इस समस्या के कारणों पर विचार किया। अगुआओं को पता चला कि हमारे सामने पहली बार ऐसी समस्या आई है, इसलिए उन्होंने हमें जवाबदेह नहीं ठहराया, लेकिन उन्होंने हमें और अधिक चिंतन करने और सारांश बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। उस पल मैंने सोचा, “इस कर्तव्य की जिम्मेदारी बहुत बड़ी है। क्यों न मैं अगुआओं से कह दूँ कि मैं यह कर्तव्य नहीं कर सकता और इसके बजाय कम जिम्मेदारी वाला कर्तव्य लेने के लिए कहूँ?” जब मैं यह सोच रहा था तो मुझे एहसास हुआ कि ये विचार गलत हैं और मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आ गए : “क्या तुम मानते हो कि परमेश्वर सबकी जाँच करता है? गलतियाँ सबसे होती हैं। अगर किसी नेक इरादे वाले व्यक्ति के पास अनुभव की कमी है और उसने पहले कोई मामला नहीं सँभाला है, लेकिन उसने पूरी मेहनत की है, तो यह परमेश्वर को दिखता है। तुम्हें विश्वास करना चाहिए कि परमेश्वर सभी चीजों और मनुष्य के हृदय की जाँच करता है। अगर कोई इस पर भी विश्वास नहीं करता, तो क्या वह छद्म-विश्वासी नहीं है?” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक))। परमेश्वर के वचनों ने मुझे समझाया कि परमेश्वर केवल घटनाओं के परिणाम के आधार पर हमारे साथ व्यवहार नहीं करता, बल्कि वह हमारे कर्तव्यों में हमारे इरादों और समस्याओं के उत्पन्न होने के संदर्भ पर भी विचार करता है। उदाहरण के लिए कुछ लोगों ने अभी-अभी कोई कर्तव्य सँभाला है, चूँकि उन्होंने लंबे समय तक प्रशिक्षण नहीं लिया है और सिद्धांतों की उनकी समझ सीमित है, इसलिए उनके कर्तव्यों में विचलन हो सकता है, उन्हें पहले संगति और सहायता दी जानी चाहिए। अगर प्रशिक्षण की अवधि के बाद भी अपेक्षाकृत खराब काबिलियत के कारण उनमें अभी सुधार नहीं होता है तो उनका काम बदलकर उन्हें अधिक उपयुक्त कर्तव्य में लगा देना चाहिए। लेकिन अगर उनकी काबिलियत स्वीकार्य है, फिर भी वे अपने कर्तव्यों में लगातार अपने इरादों और भ्रष्ट स्वभाव पर निर्भर रहते हैं, सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं, बाधा और गड़बड़ी पैदा करते हैं तो उनकी काट-छाँट करना जरूरी है। और अगर वे अभी भी पश्चात्ताप नहीं करते हैं तो उन्हें बर्खास्त करना और हटा दिया जाना चाहिए। परमेश्वर के घर में लोगों के साथ सिद्धांतों के अनुसार व्यवहार किया जाता है, चाहे वे कोई भी कर्तव्य करें या वे पर्यवेक्षक हों या नहीं। ठीक उस पर्यवेक्षक की तरह, जिसे मैंने तब देखा था जब मैं पहली बार पाठ-आधारित कर्तव्य निभा रहा था, जिसे बर्खास्त कर दिया गया था वह लंबे समय से गलत मनोदशा में जी रहा था, अपने कर्तव्य को अहंकारी और आत्मतुष्ट तरीके और सिद्धांत खोजे बिना कर रहा था, उसने काम को गंभीर रूप से बाधित किया था। इसके कारण उसे बर्खास्त कर दिया गया था। लेकिन परमेश्वर के घर ने उसे इस वजह से निष्कासित नहीं किया, जब उसने आत्म-चिंतन करना और खुद को जानना शुरू किया और पश्चात्ताप करने के लिए तैयार हो गया तो परमेश्वर के घर ने उसे एक और मौका दिया और वह आज भी अपना कर्तव्य निभा रहा है। दूसरी ओर कुछ लोग आपाधापी में अपने कर्तव्यों में बुरे काम करते हैं, वे कार्य में बाधा और गड़बड़ी पैदा करते हैं, पश्चात्ताप करने से इनकार करते हैं। ऐसे लोगों को भी निकाल दिया जाएगा, भले ही उनके पास बहुत कम जिम्मेदारी हो या वे पर्यवेक्षक या अगुआ या कार्यकर्ता न हों। इसका एहसास होने पर मुझे परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव की कुछ समझ मिली। पहले मैं परमेश्वर को एक सरकारी अधिकारी के रूप में देखता था जो लोगों को तब उत्पीड़ित करता और दबाता है, जब वह देखता था कि वे कुछ गलत कर रहे हैं, जिससे उसके हितों पर असर पड़ता है और जो परिस्थितियों के संदर्भ पर बिल्कुल भी विचार नहीं करता है, लोगों के साथ उनके सार के आधार पर व्यवहार करना तो दूर की बात है। मैंने सोचा कि अगर कोई व्यक्ति केवल गलत बात कहता है या उसकी इच्छा के खिलाफ कुछ करता है तो वह उस व्यक्ति से निपटने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग कर सकता है। इस दृष्टिकोण से परमेश्वर का न्याय करना उसके खिलाफ बदनामी और ईशनिंदा है! इसका एहसास होने पर मैंने परमेश्वर के प्रति अपनी सतर्कता और गलतफहमियों को छोड़ दिया, मैंने पाया कि मैं अपने कर्तव्यों का शांति से सामना करने में सक्षम हूँ। काम सँभालते समय या लेखों की जाँच करते समय मैं चीजों को अधिक गंभीरता से लेता और जो कर सकता था, वह करता और अगर वाकई कोई समस्या आती जिसकी मुझे जिम्मेदारी लेनी होती तो मैं उसे स्वीकार कर लेता, उसका सामना करता और उसका अनुभव करता।
जब मैं अब अपने कर्तव्य करता हूँ तो मैं कभी-कभी अपने भविष्य और भाग्य पर विचार करता हूँ, डरता हूँ कि अगर मैंने खराब प्रदर्शन किया तो इससे बाधा और गड़बड़ी पैदा होगी और मुझे बेनकाब कर निकाला जा सकता है, लेकिन मैं परमेश्वर से प्रार्थना करने, इन विचारों के खिलाफ विद्रोह करने और अपने कर्तव्यों को सामान्य रूप से करने में सक्षम हूँ। कभी-कभी मैं चीजों को साफ नहीं देख पाता हूँ या अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से नहीं कर पाता हूँ, जिससे समस्याएँ पैदा होती हैं, लेकिन मैं सिर्फ सतर्कता और गलतफहमी में नहीं रहता हूँ। इसके बजाय मैं चीजों को सही तरीके से देख सकता हूँ, आत्म-चिंतन कर सकता हूँ और समय रहते इन मुद्दों के कारणों का पता लगा सकता हूँ और जब मुझे समस्याएँ पता चलती हैं तो तुरंत चीजों को बदल सकता हूँ। इस तरह से अभ्यास करने से मुझे अपने दिल में शांति और सुकून मिलता है। परमेश्वर का धन्यवाद!