29. खतरे और प्रतिकूलता के बीच मैंने कैसे चुनाव किया
अप्रैल 2023 के अंत में डोंगचेंग में कई कलीसियाओं पर बड़ी कार्रवाई की गई और मैंने सुना कि बहुत से अगुआओं, कार्यकर्ताओं और भाई-बहनों को गिरफ्तार कर लिया गया है। उस समय उच्च अगुआओं ने मुझे एक पत्र भेजा, जिसमें मुझे घटना के बाद के काम को सँभालने के लिए कहा गया। पत्र पढ़ने पर मुझे खुशी और घबराहट दोनों हुई। मैं खुश थी क्योंकि यह कर्तव्य परमेश्वर का उत्कर्ष था। भले ही मैं कई वर्षों से परमेश्वर में विश्वास करती थी, लेकिन मैंने अपना कर्तव्य ठीक से नहीं किया था और हाल ही में मुझे कलीसिया के काम में बाधा और गड़बड़ी पैदा करने के लिए बर्खास्त कर दिया गया था, जिससे मेरे पीछे अपराध छूट गए। लेकिन परमेश्वर मेरे अपराधों के अनुसार मेरे साथ पेश नहीं आ रहा था और वह मुझे इतना महत्वपूर्ण कर्तव्य करने का अवसर दे रहा था। मैं बहुत आभारी थी और सहयोग करने के लिए तैयार थी। लेकिन जब मैंने इन कलीसियाओं से गिरफ्तार किए गए कई भाई-बहनों के बारे में सोचा तो मैं न चाहते हुए भी ठंडे पसीने से तरबतर हो गई। पिछले कुछ सालों में सीसीपी की पुलिस ने डोंगचेंग में कई मौकों पर भाई-बहनों को गिरफ्तार किया था, पूरे शहर में हाई-डेफिनेशन कैमरे लगे हुए थे और मुझे लगा कि अभी घटना के बाद के काम को सँभालना सीधे आग से खेलने जैसा होगा। इसके अलावा घटना के बाद का काम सँभालने में चढ़ावे और परमेश्वर के वचनों की किताबों को ले जाना शामिल है और मुझे कोई अंदाजा नहीं था कि अगर मुझे गिरफ्तार कर लिया गया तो पुलिस मुझे कैसे प्रताड़ित करेगी! एक भाई को परमेश्वर के वचनों की किताबें ले जाने के लिए पुलिस ने पीट-पीटकर मार डाला था और मुझे चिंता थी कि अगर मुझे गिरफ्तार कर लिया गया तो कहा नहीं जा सकता कि मैं जिंदा रहूँगी या मर जाऊँगी। मैंने सोचा, “अगर मैं मर गई तो क्या फिर भी मुझे बचाया जाना संभव होगा?” लेकिन मैंने सोचा कि अपने कर्तव्य से भागना परमेश्वर के इरादे के अनुरूप नहीं होगा, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! इतना महत्वपूर्ण कर्तव्य निभा पाना तुम्हारा उत्कर्ष है, लेकिन मैं डरपोक हूँ और मुझे गिरफ्तार होने का डर है, मुझे आस्था दो।” प्रार्थना करने के बाद मेरा दिल थोड़ा शांत हुआ। मैंने उन कई भाई-बहनों के बारे में सोचा जिन्हें गिरफ्तार किया गया था और उस बाद के काम के बारे में सोचा जिसे तत्काल निपटाने की जरूरत थी। मैं कलीसिया की स्थिति से अच्छी तरह वाकिफ थी, मैं स्वार्थी और घृणित नहीं हो सकती थी और सिर्फ अपनी सुरक्षा के बारे में नहीं सोच सकती थी। मुझे अपना सर्वश्रेष्ठ करना था, परमेश्वर से प्रार्थना करनी थी और इस बाद के काम को अच्छी तरह से सँभालने के लिए उस पर निर्भर होना था।
अगली शाम को मैं एक बहन से मिली, जिसने कहा कि इस कार्रवाई में डोंगचेंग में सौ से ज्यादा भाई-बहनों को गिरफ्तार किया गया है और दस से ज्यादा घरों से किताबें हटाने की जरूरत है। मैंने सोचा, “इतने सारे भाई-बहनों को गिरफ्तार किया गया है, ऐसे में तुरंत बाद के काम को निपटाना असंभव होगा। मुझे अभी भी सहयोग करने के लिए भाई-बहनों को ढूँढ़ना है, लेकिन मुझे नहीं पता कि किसे गिरफ्तार किया गया है और किस पर नजर रखी जा रही है और जब हम खुले में होते हैं तो पुलिस अंधेरे में छिपी रहती है। शहर में हर जगह इलेक्ट्रॉनिक आँखें हैं और अगर हम यहाँ ज्यादा देर तक रुके तो वह वक्त दूर नहीं होगा जब हमें भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा!” उस रात मैं बिस्तर पर लेटी रही और बिल्कुल भी सो नहीं पाई। मेरे दिमाग के घोड़े दौड़ रहे थे, मैं समझने की कोशिश कर रही थी कि किन भाई-बहनों को सहयोग के लिए ढूँढ़ सकती हूँ, मैं बस जल्दी से बाद का काम निपटाकर निकल जाना चाहती थी। क्योंकि कई भाई-बहन जोखिम में थे, हमें किताबें रखने वाले घरों की तलाश करते समय कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा और काम बहुत धीमी गति से आगे बढ़ा। मुझे वाकई बहुत दबाव महसूस हुआ, मुझे लगा कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो देर-सवेर मुझे भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा। शारीरिक कष्ट की तो बात ही क्या—अगर मैं यातना सहन नहीं कर पाई और यहूदा बन गई तो मैं अपना अच्छा परिणाम और गंतव्य गँवा दूँगी। यह सब सोचते हुए मैं वाकई कमजोर पड़ गई और मुझे लगा कि यह कर्तव्य बहुत कठिन है। इसलिए मैंने परमेश्वर से अपनी मनोदशा के बारे में बात की और उससे समर्पण करने के लिए मेरा मार्गदर्शन करने को कहा। मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “अगर तुममें सच्ची आस्था न हो तो तुम समय या परिवेश की परीक्षा में टिक नहीं पाओगे। अगर तुम परमेश्वर की परीक्षा में टिक नहीं सकते तो परमेश्वर न तो तुमसे बात करेगा, न ही तुम्हें दिखाई देगा। परमेश्वर यह देखना चाहता है कि क्या तुम उसके अस्तित्व पर विश्वास करते हो या नहीं, क्या तुम उसका अस्तित्व स्वीकारते हो या नहीं, और क्या तुम्हारे दिल में सच्ची आस्था है या नहीं। परमेश्वर इसी तरह लोगों के दिल की गहराइयों में पड़ताल करता है। क्या धरती और स्वर्ग के बीच रहने वाले लोग परमेश्वर के हाथों में हैं? वे सब परमेश्वर के हाथों में हैं। यह बिल्कुल ऐसा ही है। तुम चाहे जंगल में रहो या चाँद पर, तुम परमेश्वर के हाथों में रहते हो। बिल्कुल ऐसा ही है। अगर परमेश्वर तुम्हारे सामने प्रकट नहीं हुआ तो तुम परमेश्वर के अस्तित्व और संप्रभुता को कैसे समझ सकते हो? ‘परमेश्वर का अस्तित्व है और वह सभी चीजों का संप्रभु है,’ इस सत्य को अपने दिल में कैसे जड़ें जमाने दोगे ताकि यह कभी न मिटे? तुम इस कथन को अपना जीवन कैसे बना सकते हो, इसे अपने जीवन को चलाने वाली ताकत, और वह भरोसा और शक्ति कैसे बनाओगे जो तुम्हें जिंदा रखती है? (प्रार्थना से।) यह व्यावहारिक है। यही अभ्यास का मार्ग है। जब तुम्हारा सबसे कठिन दौर चल रहा हो, जब तुम परमेश्वर को सबसे कम महसूस कर पाते हो, जब तुम सर्वाधिक कष्ट में और अकेले होते हो, जब तुम्हें लगता है कि तुम परमेश्वर से दूर हो, तो वह इकलौती चीज क्या है जो तुम्हें सबसे पहले करनी चाहिए? परमेश्वर को पुकारना। परमेश्वर को पुकारने से तुम्हें शक्ति मिलती है। परमेश्वर को पुकारने से तुम्हें उसका अस्तित्व महसूस होता है। परमेश्वर को पुकारने से तुम्हें उसकी संप्रभुता महसूस होती है। जब तुम परमेश्वर को पुकारते हो, परमेश्वर से प्रार्थना करते हो और अपना जीवन उसके हाथों में सौंपते हो तो तुम महसूस करोगे कि परमेश्वर तुम्हारे बगल में है और उसने तुम्हें छोड़ा नहीं है। जब तुम्हें लगेगा कि परमेश्वर ने तुम्हें छोड़ा नहीं है, जब तुम वास्तव में महसूस करोगे कि वह तुम्हारे बगल में है तो क्या तुम्हारा भरोसा बढ़ेगा? अगर तुम सच्चा भरोसा रखते हो तो क्या यह समय के साथ नष्ट होकर मिट पाएगा? बिल्कुल भी नहीं। क्या भरोसे की समस्या का अब समाधान हो चुका है? क्या लोग महज बाइबल लेकर चलने और इसके पदों का प्रत्येक शब्द रटकर सच्चा भरोसा पा सकते हैं? यह समस्या सुलझाने के लिए तुम्हें अब भी परमेश्वर से प्रार्थना करनी होगी और उस पर भरोसा करना होगा। मूसा ने जंगल में वे चालीस बरस कैसे बिताए? उस समय बाइबल नहीं थी, उसके इर्दगिर्द लोग भी बहुत थोड़े थे। उसके पास कुछ था तो सिर्फ भेड़ें। बेशक मूसा की अगुआई परमेश्वर ने की। भले ही बाइबल में यह नहीं लिखा है कि परमेश्वर ने उसकी अगुआई कैसे की, परमेश्वर उसके सामने प्रकट हुआ या नहीं, परमेश्वर ने उससे बात की या नहीं की, या क्या परमेश्वर ने मूसा को यह समझने दिया या नहीं कि उसने उसे चालीस साल तक जंगल में रहने को क्यों बाध्य किया, फिर भी यह एक अकाट्य तथ्य है कि मूसा जंगल में चालीस साल रहकर भी जिंदा रहा। इस तथ्य को कोई नकार नहीं सकता। अपने दिल की बात सुनाने के लिए आसपास कोई न होने के बावजूद वह जंगल में चालीस साल कैसे जिंदा रह पाया? सच्ची आस्था के बिना किसी के लिए भी यह असंभव होगा। यह चमत्कार होगा! इस मामले में लोग चाहे जो सोचें, उन्हें लगता है कि ऐसा कभी नहीं हो सकता। यह मानवीय धारणाओं और कल्पनाओं से बिल्कुल मेल नहीं खाता! लेकिन यह कोई दंतकथा नहीं है, न फंतासी कथा है, यह वास्तविक, अपरिवर्तनीय और अकाट्य तथ्य है। इस तथ्य की मौजूदगी लोगों को क्या दिखाती है? अगर तुम्हारी परमेश्वर पर सच्ची आस्था है तो जब तक एक भी साँस बची है, परमेश्वर तुम्हें त्यागेगा नहीं। यह परमेश्वर के अस्तित्व का एक तथ्य है। अगर तुम्हारे पास ऐसा सच्चा भरोसा और परमेश्वर के बारे में ऐसी सच्ची समझ है, तो फिर तुम्हारा भरोसा काफी ज्यादा है। तुम खुद को चाहे जिस माहौल में पाओ, और तुम इस माहौल में चाहे जितनी देर रहो, तुम्हारा भरोसा नहीं मिटेगा” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, केवल सच्चे समर्पण से ही व्यक्ति असली भरोसा रख सकता है)। परमेश्वर कहता है कि सच्ची आस्था समय और परिवेश की कसौटियों पर खरी उतर सकती है। मुझे याद आया कि डोंगचेंग आने से पहले मैंने कहा था कि मैं इस अनुभव के लिए परमेश्वर पर निर्भर रहूँगी, लेकिन जब मैंने देखा कि स्थिति कितनी भयानक है और काम में कोई प्रगति नहीं हो रही है तो मैंने परमेश्वर में आस्था गँवा दी, मुझे डर था कि अगर मैं बहुत लंबे समय तक यहाँ रही तो मुझे गिरफ्तार कर लिया जाएगा। मैं हमेशा अपनी सुरक्षा के बारे में सोचती रहती थी। मैंने मूसा के बारे में सोचा जिसने जंगल में चालीस साल बिताए। यह उजाड़ था और रहने की परिस्थितियाँ बेहद कठोर थीं, लेकिन वह परमेश्वर पर निर्भर रहकर बच गया। उन चालीस वर्षों के दौरान मूसा ने वाकई अनुभव किया कि मनुष्य से संबंधित हर चीज परमेश्वर के हाथों में है, फिर उसकी आस्था और दृढ़ता पूर्ण बनाई गई। आज ऐसी स्थिति का सामना होना भी परमेश्वर की अनुमति से हुआ है और यह स्थिति मेरी आस्था को पूर्ण बनाने के लिए आई है, मैं अब और डरपोक और भयभीत नहीं रह सकती। मुझे मूसा का अनुकरण करना था और इसे अनुभव करने के लिए परमेश्वर पर निर्भर होना था, चाहे मैं पकड़ी जाऊँ या नहीं, मुझे परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करना था।
बाद में हमने रखवाली वाले घरों के बारे में और अधिक जानकारी जुटाने के लिए प्रारंभिक कलीसिया अगुआ ली जेन को खोजने का जोखिम उठाया। ली जेन से मिलने के बाद मुझे पता चला कि पुलिस उसके घर गई थी, आस-पास के भाई-बहनों के कई घरों पर छापा मारा गया था और पुलिस रखवाली वाले एक और घर भी गई थी, लेकिन परमेश्वर की सुरक्षा की बदौलत परमेश्वर के वचनों की किताबें जब्त नहीं हुई थीं। लेकिन पुलिस के जाने के बाद संरक्षक बहन के अविश्वासी पति ने उसे जल्दी से किताबें ले जाने के लिए कह दिया और उसने उसे सताया, कहा कि अगर उसने फिर से परमेश्वर के किसी विश्वासी को उनके घर आते देखा तो वह पुलिस बुला लेगा। मैंने सोचा कि बहन के घर पर रखी हुई किताबों को जल्दी से जल्दी कहीं और ले जाना चाहिए, लेकिन फिर मैंने सोचा, “पुलिस पहले ही इस घर में आ चुकी है और बहन के अविश्वासी पति ने कहा है कि वह पुलिस को बुला लेगा। अगर मैं वहाँ जाती हूँ तो इसका मतलब बस आग से खेलना नहीं होगा? अगर मैं वाकई पकड़ी जाती हूँ तो क्या पुलिस मुझे पीट-पीटकर मार नहीं डालेगी? यहाँ तक कि अगर मुझे पीट-पीटकर मार नहीं दिया जाता है तो भी मुझे कड़ी सजा मिलेगी। लेकिन परमेश्वर के वचनों की किताबों को जल्दी से जल्दी हटाना होगा, अगर मेरे मरने के डर के चलते परमेश्वर के वचनों की किताबें बड़े लाल अजगर द्वारा जब्त कर ली जाती हैं तो मुझसे अपराध हो जाएगा।” मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे मुझे आस्था देने को कहा। मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा : “तुम्हें किसी भी चीज से भयभीत नहीं होना चाहिए; चाहे तुम्हें कितनी भी मुसीबतों या खतरों का सामना करना पड़े, तुम किसी भी चीज से बाधित हुए बिना, मेरे सम्मुख स्थिर रहने के काबिल हो, ताकि मेरी इच्छा बेरोक-टोक पूरी हो सके। यह तुम्हारा कर्तव्य है; ... तुम्हें सब कुछ सहना होगा; मेरे लिए, तुम्हें अपनी हर चीज़ का त्याग करने को तैयार रहना होगा, और मेरा अनुसरण करने के लिए सबकुछ करना होगा, और कोई भी कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना होगा। अब वह समय है जब मैं तुम्हें परखूंगा : क्या तुम अपनी निष्ठा मुझे अर्पित करोगे? क्या तुम ईमानदारी से मार्ग के अंत तक मेरे पीछे चलोगे? डरो मत; मेरी सहायता के होते हुए, कौन इस मार्ग में बाधा डाल सकता है? यह स्मरण रखो! इस बात को भूलो मत! जो कुछ घटित होता है वह मेरी सदिच्छा से होता है और सब कुछ मेरी निगाह में है। क्या तुम्हारा हर शब्द व कार्य मेरे वचन के अनुसार हो सकता है? जब तुम्हारी अग्नि परीक्षा होती है, तब क्या तुम घुटने टेक कर पुकारोगे? या दुबक कर आगे बढ़ने में असमर्थ होगे?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी। जब परमेश्वर मेरा सहारा है तो मुझे किस बात का डर है? मेरा जीवन परमेश्वर के हाथों में है और मुझे पकड़ा जाएगा या नहीं, यह परमेश्वर पर निर्भर है। मुझे बस अपने क्रियाकलापों में दिल लगाना है और वही करना है जो जरूरी है। मैं बाकी सब परमेश्वर के हवाले कर दूँगी। फिर हमने इस बात पर चर्चा की कि जब बहन का पति घर पर नहीं होगा, तब हम किताबें ले जाएँगे। उस दिन जब बहन का पति बाहर गया तो हम जल्दी से रखवाली वाले घर की ओर बढ़े, लेकिन हमें हैरानी हुई कि इससे पहले कि हम उस बहन से कुछ शब्द भी कह पाते, उसका पति वापस आ गया। मैं वाकई घबरा गई और मैंने मन ही मन परमेश्वर से हमारा मार्गदर्शन करने के लिए प्रार्थना की। मैंने बहन के पति का अभिवादन करने की पहल की और मुझे हैरानी हुई कि उसने न सिर्फ हमारी रिपोर्ट नहीं की, बल्कि परमेश्वर के वचनों की किताबें ले जाने में भी मदद की। इस तरह रखवाली वाले पहले घर से किताबें सुरक्षित ले जाई गईं। इस अनुभव ने मुझे परमेश्वर के मार्गदर्शन का एहसास कराया और परमेश्वर में मेरी आस्था थोड़ी बढ़ गई।
इसके बाद मैं स्थिति के बारे में जानकारी जुटाने के लिए दूसरे घर में गई। पुलिस ने इस जगह पर भी छापा मारा था, लेकिन सौभाग्य से उन्हें परमेश्वर के वचनों की कोई भी किताब नहीं मिली थी। हमें चिंता थी कि पुलिस फिर से तलाशी लेने आएगी, इसलिए हम जितनी जल्दी हो सके किताबों को हटाना चाहते थे। लेकिन इस जगह के आस-पास कई कैमरे थे और उनमें से एक बहन के दरवाजे के ठीक सामने था। इसके अलावा बहन का घर एक गली के आखिर में था, और तुम चाहे किसी भी गली से आओ, कैमरे में सब कुछ साफ नजर आता था। मैं वाकई घबरा गई, सोचने लगी “हर जगह कैमरे हैं, अगर हम इस बहन के घर जाने वाली गली में घुसते हैं तो हम बंद गली में पहुँच जाएँगे। अगर कोई व्यक्ति अंदर जाता है तो बचना मुश्किल होगा, इसलिए अगर किताबें हटाई जा रही होंगी तो क्या बाहर निकलना और भी मुश्किल नहीं होगा? अगर हमें बड़े लाल अजगर ने पकड़ लिया तो कोई बच नहीं पाएगा!” इस समय मुझे खुद पर पछतावा हुआ, मैं सोचने लगी, “मैं इस जगह की जाँच करने क्यों आई? अब ऐसा लगता है कि किताबों को ले जाना मेरे ऊपर निर्भर है।” मैं चिंतित और भयभीत थी और मुझमें आस-पास के माहौल को और देखने का हिम्मत नहीं थी। मैं एक पल भी और रुकने की हिम्मत नहीं कर सकी और जल्दी से वहाँ से निकल गई। जब मैं घर पहुँची तो मैंने अगुआ को सच-सच आँखों देखा हाल बता दिया, बताया कि मौजूदा स्थिति में किताबों को ले जाना असंभव है। लेकिन मुझे हैरानी हुई कि अगुआ रखवाली वाले उस घर में जा चुकी थी और उसने कहा, “बहन के घर के पास वाली गली कोई बंद गली नहीं है। बगल में एक छोटा सा रास्ता है जिससे तुम जा सकती हो, उसे कैमरे नहीं देख सकते।” यह सुनकर मुझे कुछ शर्मिंदगी हुई। पता चला कि बहन का घर वाकई बंद गली में नहीं है। मैंने सोचा, “मैंने खुद इलाके का मुआयना किया था, मैं कैसे नहीं देखा कि गली से बाहर जाने के लिए एक पगडंडी भी है?” पीछे मुड़कर देखने पर मुझे एहसास हुआ कि मैं कैमरों से डर गई थी, क्योंकि मैं डरपोक और भयभीत थी, इसलिए गली में जाकर पूरी तरह से जाँच करने की मेरी हिम्मत ही नहीं हुई। मुझे एहसास हुआ कि ऐसी मनोदशा में मेरे लिए यह काम अच्छी तरह से करना असंभव होगा, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, जब मैंने हर जगह कैमरे देखे, मैं डरपोक बन गई और भयभीत हो गई, हमेशा डरती रही कि मुझे गिरफ्तार कर लिया जाएगा और कष्ट झेलना पड़ेगा। हे परमेश्वर, मुझे प्रबुद्ध करो और मार्गदर्शन दो ताकि मैं खुद को जान सकूँ और सबक सीख सकूँ।”
उसके बाद मैंने अपने मसले हल करने के लिए परमेश्वर के वचनों की तलाश की। मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “अपनी सुरक्षा पर ध्यान देने के अलावा, कुछ मसीह-विरोधी और क्या सोचते हैं? वे कहते हैं, ‘फिलहाल, हमारा परिवेश अनुकूल नहीं है, इसलिए हमें लोगों के सामने कम ही आना चाहिए और सुसमाचार को कम फैलाना चाहिए। इस तरह, हमारे पकड़े जाने की संभावना कम होगी, और कलीसिया का काम नष्ट नहीं होगा। अगर हम पकड़े जाने से बच गए, तो हम यहूदा नहीं बनेंगे, और हम भविष्य में यहाँ बने रह पाएँगे, है न?’ क्या ऐसे मसीह-विरोधी नहीं हैं जो अपने भाई-बहनों को गुमराह करने के लिए ऐसे बहाने बनाते हैं? कुछ मसीह-विरोधी मौत से बहुत डरते हैं और घिनौनी जिंदगी घसीटते रहते हैं; ... वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर लोगों की सुरक्षा कर सकता है, और वे यह तो बिल्कुल नहीं मानते कि परमेश्वर की खातिर खुद को खपाने के लिए समर्पित होना, सत्य के लिए खुद को समर्पित करना है, और परमेश्वर इसे स्वीकृति देता है। वे अपने दिलों में परमेश्वर का भय नहीं मानते; वे केवल शैतान और दुष्ट राजनीतिक दलों से डरते हैं। वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखते, वे यह नहीं मानते कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है, और यह तो बिल्कुल नहीं मानते कि परमेश्वर ऐसे व्यक्ति को स्वीकृति देगा जो परमेश्वर की खातिर, उसके मार्ग पर चलने की खातिर और परमेश्वर का आदेश पूरा करने की खातिर खुद को खपाता है। वे इनमें से कुछ भी नहीं देख पाते। वे किसमें विश्वास करते हैं? उनका मानना है कि अगर वे बड़े लाल अजगर के हाथ लग गए, तो उनका बुरा अंत होगा, उन्हें सजा हो सकती है या यहाँ तक कि अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है। अपने दिलों में, वे केवल अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं, कलीसिया के कार्य के बारे में नहीं। क्या ये छद्म-विश्वासी नहीं हैं? (बिल्कुल, हैं।) बाइबल में क्या कहा गया है? ‘जो मेरे कारण अपना प्राण खोता है, वह उसे पाएगा’ (मत्ती 10:39)। क्या वे इन वचनों पर विश्वास करते हैं? (नहीं, वे नहीं करते।) अगर उनसे अपना कर्तव्य निभाते समय जोखिम उठाने को कहा जाए, तो वे खुद को कहीं छिपाना चाहेंगे और किसी को भी उन्हें नहीं देखने देंगे—वे अदृश्य होना चाहेंगे। वे इस हद तक डरे हुए होते हैं। वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर मनुष्य का सहारा है, सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है, अगर कुछ वाकई गलत हो जाता है या वे पकड़े जाते हैं, तो यह परमेश्वर की अनुमति से हो रहा है, और लोगों के पास समर्पण वाला दिल होना चाहिए। इन लोगों के पास ऐसा दिल, ऐसी समझ या यह तैयारी नहीं है। क्या वे वाकई परमेश्वर में विश्वास रखते हैं? (नहीं, वे नहीं रखते।) क्या इस अभिव्यक्ति का सार एक छद्म-विश्वासी का सार नहीं है? (बिल्कुल है।) यह ऐसा ही है। इस तरह के लोग बहुत ज्यादा डरपोक, बुरी तरह से डरे हुए होते हैं, और शारीरिक पीड़ा सहने और उनके साथ कुछ बुरा होने से डरते हैं। वे डरपोक पक्षियों की तरह डर जाते हैं और अब अपना काम नहीं कर पाते” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। “मसीह-विरोधी बेहद स्वार्थी और घिनौने होते हैं। उनमें परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था नहीं होती, परमेश्वर के प्रति निष्ठा तो बिल्कुल नहीं होती; जब उनके सामने कोई समस्या आती है, तो वे केवल अपना बचाव और अपनी सुरक्षा करते हैं। उनके लिए, उनकी अपनी सुरक्षा से ज्यादा जरूरी और कुछ नहीं है। अगर वे जिंदा रह सकें और गिरफ्तार न हों, तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि कलीसिया के काम को कितना नुकसान हुआ है। ये लोग बेहद स्वार्थी हैं, वे भाई-बहनों या कलीसिया के काम के बारे में बिल्कुल नहीं सोचते, सिर्फ अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं। वे मसीह-विरोधी हैं” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर उजागर करता है कि मसीह-विरोधी स्वार्थी और घृणित होते हैं, उनमें परमेश्वर के प्रति वफादारी की कमी होती है, वे इस बात पर विश्वास नहीं करते कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है, जब खतरे का सामना करना पड़ता है तो वे सिर्फ अपने हितों के बारे में सोचते हैं और परमेश्वर के घर के हितों के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचते। मैं भी इसी मनोदशा में थी। मुझे पता था कि किताबें रखने वाले घरों पर पुलिस पहले ही छापा मार चुकी है और मुझे जितनी जल्दी हो सके किताबों को हटाना है, लेकिन जब मैंने देखा कि इस घर के चारों ओर हर चीज की निगरानी के लिए कई कैमरे लगे हुए हैं तो मुझे पकड़े जाने का डर लगने लगा, मैं आतंक और भय में जीने लगी और मेरे पास आस-पास की जाँच करने की भी हिम्मत नहीं थी। मुझे स्थिति की जाँच करने आने के लिए भी पछतावा हुआ। तथ्यों का सामना होने पर मुझे एहसास हुआ कि मैं केवल अपनी सुरक्षा के बारे में चिंतित थी, इस बारे में बिल्कुल भी नहीं सोच रही थी कि किताबों को सुरक्षित रूप से कैसे स्थानांतरित किया जाए, मानो सिर्फ एक ही चीज मायने रखती है कि मैं पकड़ी न जाऊँ। मैं पूरी तरह से स्वार्थी और घृणित थी और मैंने मसीह-विरोधी स्वभाव प्रकट किया था! मैंने सोचा कि इतने सालों में चीन में परमेश्वर ने कैसे काम किया है। सीसीपी मसीह का शिकार कर रही है, ईसाइयों को सता रही है और परमेश्वर के चढ़ावों को लूट रही है, लेकिन कई भाई-बहनों ने ऐसी विकट परिस्थितियों में अपनी सुरक्षा के बारे में भी नहीं सोचा। उन्होंने अपने जीने-मरने के मामलों पर कोई ध्यान नहीं दिया, वे कलीसिया के कार्य की रक्षा करने, परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपने कर्तव्य अच्छे से को पूरा करने, और परमेश्वर के लिए जबर्दस्त गवाही देने के अपने कर्तव्यों को निभाने में सक्षम हुए। मैंने फिर से खुद को देखा और मैंने पाया कि मैं बस एक कायर हूँ, एक पक्षी की तरह जो धनुष की डोरी की झनकार से चौंक जाता है, जिसका कोई आध्यात्मिक कद नहीं है। मुझे बहुत शर्मिंदगी हुई और मैं अपने दिल की गहराई से खुद से नफरत करने लगी, मैं अब इस तरह के स्वार्थी और घृणित तरीके से नहीं जीना चाहती थी। मैं जल्द से जल्द परमेश्वर के वचनों की किताबों को स्थानांतरित करने के लिए तैयार हो गई।
अगले दिन हम संरक्षक बहन के साथ किताबों को स्थानांतरित करने के तरीके पर चर्चा करने गए, लेकिन हमें हैरानी हुई कि बहन का बेटा, जो विश्वासी नहीं था, मदद करने के लिए तैयार हो गया और किताबें ले जाने के लिए वह उन्हें ऊपरी मंजिल से अपनी कार तक ले आया। इस तरह उस घर से किताबें सुरक्षित रूप से स्थानांतरित हो गईं। मुझे गहराई से अनुभव हुआ कि परमेश्वर स्वयं अपना कार्य बनाए रखता है, मुझे लगा कि परमेश्वर ने मेरे भ्रष्ट स्वभाव को शुद्ध करने और बदलने के लिए इस तरह की स्थिति की व्यवस्था की है, जिससे मैं व्यावहारिक रूप से परमेश्वर के कार्य का अनुभव कर सकूँ और उसके कर्मों को समझ सकूँ। मैंने अपने दिल की गहराई से परमेश्वर को धन्यवाद दिया और उसकी स्तुति की!
इसके बाद मैंने सोचा, “मैं लगातार पकड़े जाने और पीट-पीटकर मार दिए जाने के बारे में चिंतित रहती हूँ, इस मुद्दे को कैसे हल किया जाना चाहिए?” मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “प्रभु यीशु के उन अनुयायियों की मौत कैसे हुई? उनमें ऐसे अनुयायी थे जिन्हें पत्थरों से मार डाला गया, घोड़े से बाँध कर घसीटा गया, सूली पर उलटा लटका दिया गया, पाँच घोड़ों से खिंचवाकर उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए—हर प्रकार की मौत उन पर टूटी। उनकी मृत्यु का कारण क्या था? क्या उन्हें उनके अपराधों के लिए कानूनी तौर पर फाँसी दी गई थी? नहीं। उन्होंने प्रभु का सुसमाचार फैलाया था, लेकिन दुनिया के लोगों ने उसे स्वीकार नहीं किया, इसके बजाय उनकी भर्त्सना की, पीटा और डाँटा-फटकारा और यहाँ तक कि मार डाला—इस तरह वे शहीद हुए। हम उन शहीदों के अंतिम परिणाम की, या उनके व्यवहार की परमेश्वर की परिभाषा की बात न करें, बल्कि यह पूछें : जब उनका अंत आया, तब जिन तरीकों से उनके जीवन का अंत हुआ, क्या वह मानव धारणाओं के अनुरूप था? (नहीं, यह ऐसा नहीं था।) मानव धारणाओं के परिप्रेक्ष्य से, उन्होंने परमेश्वर के कार्य का प्रसार करने की इतनी बड़ी कीमत चुकाई, लेकिन अंत में इन लोगों को शैतान द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया। यह मानव धारणाओं से मेल नहीं खाता, लेकिन उनके साथ ठीक यही हुआ। परमेश्वर ने ऐसा होने दिया। इसमें कौन-सा सत्य खोजा जा सकता है? क्या परमेश्वर द्वारा उन्हें इस प्रकार मरने देना उसका श्राप और भर्त्सना थी, या यह उसकी योजना और आशीष था? यह दोनों ही नहीं था। यह क्या था? अब लोग अत्यधिक मानसिक व्यथा के साथ उनकी मृत्यु पर विचार करते हैं, किन्तु चीजें इसी प्रकार थीं। परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग इसी तरीके से मारे गए, इसे कैसे समझाया जाए? जब हम इस विषय का जिक्र करें, तो तुम लोग स्वयं को उनकी स्थिति में रखो, क्या तब तुम लोगों के हृदय उदास होते हैं, और क्या तुम भीतर ही भीतर पीड़ा का अनुभव करते हो? तुम सोचते हो, ‘इन लोगों ने परमेश्वर का सुसमाचार फैलाने का अपना कर्तव्य निभाया, इन्हें अच्छा इंसान माना जाना चाहिए, तो फिर उनका अंत, और उनका परिणाम ऐसा कैसे हो सकता है?’ वास्तव में, उनके शरीर इसी तरह मृत्यु को प्राप्त हुए और चल बसे; यह मानव संसार से प्रस्थान का उनका अपना माध्यम था, तो भी इसका यह अर्थ नहीं था कि उनका परिणाम भी वैसा ही था। उनकी मृत्यु और प्रस्थान का साधन चाहे जो रहा हो, या यह चाहे जैसे भी हुआ हो, यह वैसा नहीं था जैसे परमेश्वर ने उन जीवनों के, उन सृजित प्राणियों के अंतिम परिणाम को परिभाषित किया था। तुम्हें यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए। इसके विपरीत, उन्होंने इस संसार की भर्त्सना करने और परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए ठीक उन्हीं साधनों का उपयोग किया। इन सृजित प्राणियों ने अपने सर्वाधिक बहुमूल्य जीवन का उपयोग किया—उन्होंने परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए अपने जीवन के अंतिम क्षण का उपयोग किया, परमेश्वर के महान सामर्थ्य की गवाही देने के लिए उपयोग किया, और शैतान तथा इस संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए किया कि परमेश्वर के कर्म सही हैं, प्रभु यीशु परमेश्वर है, वह प्रभु है, और परमेश्वर का देहधारी शरीर है। यहां तक कि अपने जीवन के बिल्कुल अंतिम क्षण तक उन्होंने प्रभु यीशु का नाम कभी नहीं छोड़ा। क्या यह इस संसार के ऊपर न्याय का एक रूप नहीं था? उन्होंने अपने जीवन का उपयोग किया, संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए, मानव प्राणियों के समक्ष यह पुष्टि करने के लिए कि प्रभु यीशु प्रभु है, प्रभु यीशु मसीह है, वह परमेश्वर का देहधारी शरीर है, कि उसने समस्त मानवजाति के छुटकारे के लिए जो कार्य किया, उसी के कारण मानवता जीवित रह पाई है—यह सच्चाई कभी बदलने वाली नहीं है। जो लोग प्रभु यीशु के सुसमाचार को फैलाने के लिए शहीद हुए, उन्होंने किस सीमा तक अपने कर्तव्य का पालन किया? क्या यह अंतिम सीमा तक किया गया था?” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है)। प्रभु यीशु के शिष्यों को सुसमाचार का प्रचार करते समय रोमन सरकार और धार्मिक समुदाय द्वारा सताया गया था, लेकिन शैतान की ताकतों ने उन्हें कैसे भी सताया हो, उन्होंने प्रचार करना और परमेश्वर के कार्य की गवाही देना जारी रखा। उन्होंने शैतान के आगे झुकने के बजाय अपने जीवन का बलिदान देना पसंद किया। कुछ को पथराव कर मारा गया, कुछ को घोड़ों से घसीटा गया और बाकियों को सूली पर लटका दिया गया। उन्होंने अपने जीवन के साथ परमेश्वर के लिए जबर्दस्त गवाही दी। भले ही वे शारीरिक रूप से मर गए, लेकिन उनकी आत्माएँ परमेश्वर के हाथों में थीं। उनकी गवाही के बारे में सोचकर मुझे बहुत शर्मिंदगी हुई और मैं गहराई तक प्रभावित हो गई। परमेश्वर अंत के दिनों में काम करने के लिए आया है और उसने कई सत्य व्यक्त किए हैं, हमारे लिए सभी सत्य और रहस्य खोल दिए हैं। मैंने कई वर्षों तक परमेश्वर का अनुसरण किया था, परमेश्वर के वचनों के सिंचन और प्रावधान का आनंद लिया था, लेकिन मैं परमेश्वर के लिए गवाही देने में असमर्थ थी। बड़े लाल अजगर के उन्मादी उत्पीड़न के बीच मुझे पकड़े जाने और पीट-पीट कर मार डाले जाने की चिंता थी, मैं हमेशा अपने स्वयं के भौतिक हितों के बारे में सोचती रहती थी और परमेश्वर के प्रति मेरी कोई वफादारी नहीं थी। मैं पिछले युगों के संतों से बिल्कुल भी तुलना नहीं कर सकती थी और परमेश्वर की अनुयायी होने के लायक नहीं थी। किसी व्यक्ति का जीना-मरना परमेश्वर के हाथों में है और परमेश्वर उन लोगों को स्वीकार करता है जो उसके आदेश अच्छे से पूरे करने के लिए अपना जीवन लगा देते हैं। परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन में मैं अब गिरफ्तार होने के डर से बेबस नहीं रही और मुझे मुक्ति का बड़ा एहसास हुआ। इसके बाद मैंने अपने भाई-बहनों के साथ सहयोग किया और दस से अधिक रखवाली वाले घरों से सभी किताबों को सुरक्षित रूप से स्थानांतरित कर दिया गया।
नवंबर की शुरुआत में मुझे अपने जिले के अगुआओं से एक पत्र मिला, जिसमें कहा गया था कि दो कलीसियाओं के तीस से अधिक लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है और तीन कलीसिया अगुआ पहले से ही लापता हैं। उन्होंने मुझे जाकर बाद के काम सँभालने के लिए कहा। मुझे कुछ अनिच्छा महसूस हुई, सोचने लगी, “तुम मुझे फिर से क्यों जाने के लिए कह रहे हो? क्या वाकई कोई और नहीं है जो जा सकता है?” लेकिन फिर मैंने शांत होकर इस बारे में सोचा। इतने सारे अगुआओं-कार्यकर्ताओं और भाई-बहनों को गिरफ्तार करने के कारण उपयुक्त लोगों को ढूँढ़ना वाकई मुश्किल है और चूँकि मैं वहाँ की कलीसियाओं से काफी परिचित हूँ, इसलिए मैं जाने के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति हूँ। मैं अब इस कर्तव्य से बच नहीं सकती। लेकिन जब मैं वाकई सहयोग कर रही थी, तब भी मुझे बहुत डर लग रहा था, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे मेरा मार्गदर्शन करने के लिए कहा। मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा : “शैतान चाहे जितना भी ‘ताकतवर’ हो, चाहे वह जितना भी दुस्साहसी और महत्वाकांक्षी हो, चाहे नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता जितनी भी बड़ी हो, चाहे मनुष्य को भ्रष्ट करने और लुभाने की उसकी तकनीकें जितनी भी व्यापक हों, चाहे मनुष्य को डराने की उसकी तरकीबें और साजिशें जितनी भी चतुराई से भरी हों, चाहे उसके अस्तित्व के रूप जितने भी परिवर्तनशील हों, वह कभी एक भी जीवित चीज सृजित करने में सक्षम नहीं हुआ, कभी सभी चीजों के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाएँ या नियम निर्धारित करने में सक्षम नहीं हुआ, और कभी किसी सजीव या निर्जीव चीज पर शासन और नियंत्रण करने में सक्षम नहीं हुआ। ब्रह्मांड और आकाश के भीतर, एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उससे पैदा हुई हो, या उसके कारण अस्तित्व में हो; एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उसके द्वारा शासित हो, या उसके द्वारा नियंत्रित हो। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन रहना है, बल्कि, परमेश्वर के सभी आदेशों और आज्ञाओं को समर्पण करना है। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानवजाति की तो बात ही छोड़ दो। परमेश्वर की दृष्टि में, शैतान पहाड़ पर उगने वाली कुमुदनियों से, हवा में उड़ने वाले पक्षियों से, समुद्र में रहने वाली मछलियों से, और पृथ्वी पर रहने वाले कीड़ों से भी तुच्छ है। सभी चीजों के बीच उसकी भूमिका सभी चीजों की सेवा करना, मानवजाति की सेवा करना और परमेश्वर के कार्य और उसकी प्रबंधन-योजना की सेवा करना है। उसकी प्रकृति कितनी भी दुर्भावनापूर्ण क्यों न हो, और उसका सार कितना भी बुरा क्यों न हो, केवल एक चीज जो वह कर सकता है, वह है अपने कार्य का कर्तव्यनिष्ठा से पालन करना : परमेश्वर के लिए सेवा देना, और परमेश्वर को एक विषमता प्रदान करना। ऐसा है शैतान का सार और उसकी स्थिति। उसका सार जीवन से असंबद्ध है, सामर्थ्य से असंबद्ध है, अधिकार से असंबद्ध है; वह परमेश्वर के हाथ में केवल एक खिलौना है, परमेश्वर की सेवा में रत सिर्फ एक मशीन है!” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)। परमेश्वर ने कहा है कि शैतान परमेश्वर के कार्य के लिए सेवा प्रदान करने के लिए इस्तेमाल होने वाला एक साधन है, चाहे शैतान कितना भी आक्रामक हो और उसकी प्रकृति कितनी भी दुष्ट हो, परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान हमारा बाल भी बांका करने की हिम्मत नहीं करेगा। अगर परमेश्वर मुझे गिरफ्तार किए जाने की अनुमति देता है तो मुझे परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करना चाहिए और अपना जीवन लगाकर प्रभु के शिष्यों का अनुकरण करना चाहिए, लेकिन चूँकि मुझे गिरफ्तार नहीं किया गया है, इसलिए मुझे बाद के काम को अच्छी तरह से सँभालना चाहिए। मैंने सोचा कि हम यहाँ लंबे समय से कैसे सहयोग कर रहे हैं और भले ही स्थिति वाकई विकट रही हो, हम कुछ किताबों को सुरक्षित स्थानांतरित करने में कामयाब रहे। यह सब परमेश्वर द्वारा हमें कदम दर कदम आगे बढ़ाना है, यह परमेश्वर की संप्रभुता और सुरक्षा है। इसे ध्यान में रखते हुए मैं इस स्थिति का अनुभव करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करने को तैयार हो गई।
बाद में मुझे पता चला कि दो अगुआ गिरफ्तार होने के बाद यहूदा बन गए हैं, उन्होंने कलीसिया के सभी भाई-बहनों और सभी रखवाली वाले घरों को फँसा दिया है। पुलिस ने रखवाली वाले तीन घरों से परमेश्वर के वचनों की किताबें जब्त कर लीं, जबकि पुलिस के आने पर एक अन्य घर में कोई किताब नहीं मिली और भाई-बहनों ने बाद में रात में किताबों को स्थानांतरित कर दिया। लेकिन तब से रखवाली वाले इस घर को पुलिस की निगरानी में रखा गया था। पुलिस ने यह भी धमकी दी कि उसने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया पर नकेल कसने के लिए ऐसा जाल बिछाया है जिससे बच नहीं सकते। रखवाली वाला एक और घर था, जहाँ परमेश्वर के वचनों की किताबें पुलिस को नहीं मिलीं और उन्हें भी जल्दी से स्थानांतरित करने की आवश्यकता थी। ऐसी विकट स्थिति का सामना करते हुए मैं थोड़ी डर गई, सोचने लगी, “मैं अक्सर उन लोगों के संपर्क में रहती थी जिन्हें गिरफ्तार किया गया है और किसी भी समय पुलिस द्वारा मुझे निशाना बनाया जा सकता है; क्या मैं परमेश्वर के वचनों की किताबों को स्थानांतरित करने के लिए जाने पर पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर ली जाऊँगी?” मेरा पीछे हटने का मन करने लगा। लेकिन मुझे पता था कि मेरी मनोदशा गलत है, इसलिए मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती रही। मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा : “आस्था एक ही लट्ठे से बने पुल की तरह है : जो लोग हर हाल में जीवन जीने की लालसा से चिपके रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो अपनी जान देने को तैयार रहते हैं, वे बिना किसी फिक्र के, मजबूती से कदम रखते हुए उसे पार कर सकते हैं। अगर मनुष्य कायरता और भय के विचार रखते हैं तो ऐसा इसलिए है कि शैतान ने उन्हें मूर्ख बनाया है, उसे डर है कि हम आस्था का पुल पार कर परमेश्वर में प्रवेश कर जाएँगे” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। “परमेश्वर तुमसे चाहे कुछ भी माँगे, तुम्हें अपनी पूरी ताकत के साथ केवल इस ओर काम करने की आवश्यकता है, और मुझे आशा है कि इन अंतिम दिनों में तुम परमेश्वर के समक्ष उसके प्रति वफादारी निभाने में सक्षम होगे। अगर तुम सिंहासन पर बैठे परमेश्वर की संतुष्ट मुसकराहट देख सकते हो, तो भले ही यह तुम्हारी मृत्यु का नियत समय ही क्यों न हो, आँखें बंद करते समय भी तुम्हें हँसने और मुसकराने में सक्षम होना चाहिए। पृथ्वी पर अपने समय के दौरान तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपना अंतिम कर्तव्य अवश्य निभाना चाहिए। अतीत में, पतरस को परमेश्वर के लिए क्रूस पर उलटा लटका दिया गया था; परंतु तुम्हें इन अंतिम दिनों में परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए, और उसके लिए अपनी सारी ऊर्जा खर्च कर देनी चाहिए। कोई सृजित प्राणी परमेश्वर के लिए क्या कर सकता है? इसलिए तुम्हें पहले से ही अपने आपको परमेश्वर को सौंप देना चाहिए, ताकि वह अपनी इच्छा के अनुसार तुम्हारी योजना बना सके। अगर इससे परमेश्वर खुश और प्रसन्न होता हो, तो उसे अपने साथ जो चाहे करने दो। मनुष्यों को शिकायत के शब्द बोलने का क्या अधिकार है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 41)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे प्रेरित किया। हालाँकि मैं पतरस से तुलना नहीं कर सकती, मुझे उसके उदाहरण का अनुसरण करना था और परमेश्वर को मेरे लिए वैसी ही योजना बनाने देना था जैसा वह चाहता है। मुझे अपनी जान जोखिम में डालकर किताबें स्थानांतरित करनी थीं। उसके बाद मैंने और भाई-बहनों ने सुरक्षित रूप से किताबें स्थानांतरित कीं।
इस अनुभव के माध्यम से मुझे परमेश्वर के अधिकार, सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धि की वास्तविक समझ मिली और परमेश्वर में मेरी आस्था भी बढ़ी। साथ ही मुझे अपनी स्वार्थी और घृणित प्रकृति का पता चला। ये एहसास और लाभ ऐसी चीजें हैं जो मैं एक आरामदायक परिवेश में प्राप्त नहीं कर सकती थी।