43. आखिरकार मुझे एहसास हुआ मैं बिल्कुल स्वार्थी थी

सू फेंगशुआंग, चीन

2021 में मैं कलीसिया में अगुआ का कर्तव्य निभा रही थी। उस समय बहन ली हुआ मेरे साथ काम करती थी। मैं मुख्य रूप से सुसमाचार कार्य के लिए जिम्मेदार थी, जबकि ली हुआ कलीसिया की सफाई के कार्य के लिए जिम्मेदार थी। हम अन्य कार्यों पर एक साथ काम करते थे। एक दिन मुझे एक बहन का पत्र मिला जिसमें हमें सूचित किया गया था कि फांग श्या सफाई की सामग्रियों को व्यवस्थित करने में कोई प्रगति नहीं कर रही है और इससे कार्य की प्रगति में बाधा आ रही थी। पत्र में हमसे यह मूल्यांकन करने के लिए कहा गया था कि क्या उसे दूसरा काम सौंपने की आवश्यकता है। मैं जानती थी कि फांग श्या की काबिलियत बहुत अच्छी नहीं थी और सफाई की सामग्रियों को व्यवस्थित करना उसके लिए काफी कठिन काम था, इसलिए उसे वास्तव में दूसरा काम सौंपने की आवश्यकता थी। लेकिन फिर मैंने सोचा कि सफाई का काम ली हुआ की जिम्मेदारी है। यदि इसमें कोई समस्या आती है, तो उसे ही संगति करके उस समस्या को हल करना चाहिए। सुसमाचार कार्य, जिसके लिए मैं जिम्मेदार थी, उसमें कई चीजें शामिल थीं और उसमें बहुत सारी समस्याएँ थीं। पहले उच्च-स्तरीय अगुआओं ने मेरी काट-छाँट की थी क्योंकि कुछ कार्य लागू नहीं किए गए थे। यदि मैंने जल्द ही इसका जायजा लेकर इसे लागू नहीं किया, तो मेरी फिर से काट-छाँट की जा सकती है। मैंने सोचा कि अपना समय और ऊर्जा सुसमाचार कार्य में लगाना ज्यादा महत्वपूर्ण है। उन दो दिनों में ली हुआ किसी काम से हमारे मेजबान घर से दूर थी और इसलिए मैंने एक और बहन से उसे यह संदेश देने के लिए कहा कि जब वह वापस आए तो जल्दी से समझ ले कि फांग श्या के साथ क्या हो रहा है और उसे समय पर दूसरा काम सौंप दे। बाद में मैं उस कार्य में व्यस्त हो गई जिसके लिए मैं जिम्मेदार थी। कुछ समय बाद एक और बहन ने फांग श्या के साथ समस्याओं की सूचना दी, यह कहते हुए कि वह अपना कर्तव्य निभाने में बोझ नहीं उठाती थी और जब बहनों ने उसकी समस्याएँ बताईं तो उसने इसे स्वीकार नहीं किया और गुस्सा भी दिखाया। हर कोई उससे थोड़ा बेबस महसूस करता था। मैंने मन ही मन सोचा, “क्या ऐसा हो सकता है कि ली हुआ पिछली बार जाकर पता नहीं कर पाई कि क्या हो रहा था? फांग श्या को अभी तक बरखास्त क्यों नहीं किया गया है? वह हमारे भाई-बहनों के बीच गड़बड़ी और बाधा बन गई है और उसे तुरंत बरखास्त किया जाना चाहिए।” उस समय ली हुआ अपनी सुरक्षा के जोखिमों के कारण बाहर आकर अपना कर्तव्य निभाने में असमर्थ थी। इसकी भरपाई के लिए हमने एक अन्य अगुआ, डिंग यान को चुना, ताकि वह आकर उस कार्य को सँभाल ले जिसकी जिम्मेदारी ली हुआ के पास थी। मैंने मन ही मन सोचा, “डिंग यान ने पहले सफाई का काम किया है और वह लोगों का भेद पहचानने में मुझसे बेहतर है। मैं डिंग यान से फांग श्या को बरखास्त करवाऊँगी।” मैं अनुमान नहीं लगा सकती थी कि जब डिंग यान सभा के बाद वापस आई, तो उसने कहा, “मुझे चिंता थी कि अगर मैंने फांग श्या को पहली बार मिलते ही बरखास्त कर दिया, तो वह मेरे बारे में गलत राय बना सकती है, इसलिए मैंने उसे बरखास्त नहीं किया।” उस समय मैं बस यही सोच रही थी कि सफाई का काम डिंग यान की जिम्मेदारी है और अगर उसने फांग श्या को बरखास्त नहीं किया, तो यह जिम्मेदारी पूरी करने में उसकी विफलता थी, मेरी समस्या नहीं, इसलिए मैं इस मामले में शामिल नहीं हुई। बाद में उच्च-स्तरीय अगुआओं को इस मामले का पता चला, तो उन्होंने जल्दी से फांग श्या को बरखास्त करने के लिए किसी की व्यवस्था की। उन्होंने एक पत्र भी भेजा जिसमें हमसे पूछा गया था कि हमने अनुपयुक्त लोगों को तुरंत बरखास्त करके उन्हें दूसरा काम क्यों नहीं सौंपा था, उन्होंने हमसे इस मामले के संबंध में हमारे विचार और समझ लिखने को कहा। उस समय मुझे अपने बारे में जरा भी समझ नहीं थी। मैंने सोचा कि यह कार्य मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं था और भले ही किसी को जवाबदेह ठहराया जाना हो, वह मैं नहीं होनी चाहिए। यह ली हुआ और डिंग यान थीं जो फांग श्या को तुरंत बरखास्त करने में विफल रही थीं। उच्च-स्तरीय अगुआओं ने देखा कि मैं बहस कर रही थी और अपनी जिम्मेदारियों से बच रही थी, मुझे अपने बारे में जरा भी समझ नहीं थी। इसके अलावा, मेरा स्वभाव अहंकारी था और मैंने अपने भाई-बहनों की काट-छाँट और मार्गदर्शन स्वीकार नहीं किया। मैंने सिद्धांतों के अनुसार अपना कर्तव्य नहीं निभाया और परमेश्वर के घर के कार्य और अपने भाई-बहनों के जीवन प्रवेश को नुकसान पहुँचाया था। इसलिए उन्होंने मुझे बरखास्त कर दिया।

अपनी भक्ति के दौरान मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा जो मेरी मनोदशा के लिए बहुत प्रासंगिक था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “मसीह-विरोधियों की स्वार्थपरता और नीचता कैसे प्रकट होती हैं? उनके रुतबे और प्रतिष्ठा को जिससे लाभ होता है, वे उसके लिए जो भी जरूरी होता है उसे करने या बोलने के प्रयास करते हैं और वे स्वेच्छा से हर पीड़ा सहन करते हैं। लेकिन जहाँ बात परमेश्वर के घर द्वारा व्यवस्थित कार्य से संबंधित होती है, या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन के विकास को लाभ पहुंचाने वाले कार्यों से संबंधित होती है, वे पूरी तरह इसे अनदेखा करते हैं। यहाँ तक कि जब बुरे लोग विघ्न-बाधा डाल रहे होते हैं, सभी प्रकार की बुराई कर रहे होते हैं और इसके फलस्वरूप कलीसिया के कार्य को बुरी तरह प्रभावित कर रहे होते हैं, तब भी वे उसके प्रति आवेगहीन और उदासीन बने रहते हैं, जैसे उनका उससे कोई लेना-देना ही न हो। और अगर कोई किसी बुरे व्यक्ति के बुरे कर्मों के बारे में जान जाता है और इसकी रिपोर्ट कर देता है, तो वे कहते हैं कि उन्होंने कुछ नहीं देखा और अज्ञानता का ढोंग करने लगते हैं। लेकिन अगर कोई उनकी रिपोर्ट करता है और यह उजागर करता है कि वे वास्तविक कार्य नहीं करते और सिर्फ प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत का अनुसरण करते हैं, तो वे आगबबूला हो जाते हैं। यह तय करने के लिए आनन-फानन में बैठकें बुलाई जाती हैं कि क्या उत्तर दिया जाए, यह पता लगाने के लिए जाँच की जाती है कि किसने गुपचुप यह काम किया, सरगना कौन था और कौन शामिल था। जब तक वे इसकी तह तक नहीं पहुँच जाते और मामला शांत नहीं हो जाता, तब तक उनका खाना-पीना हराम रहता है—उन्हें केवल तभी खुशी मिलती है जब वे अपनी रिपोर्ट करने वाले सभी लोगों को धराशायी कर देते हैं। यह स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति है, है न? क्या वे कलीसिया का काम कर रहे हैं? वे अपने सामर्थ्य और रुतबे के लिए काम कर रहे हैं, और कुछ नहीं। वे अपना कारोबार चला रहे हैं। मसीह-विरोधी व्यक्ति चाहे जो भी कार्य करे, वह कभी परमेश्वर के घर के हितों पर विचार नहीं करता। वह केवल इस बात पर विचार करता है कि कहीं उसके हित तो प्रभावित नहीं हो रहे, वह केवल अपने सामने के उस छोटे-से काम के बारे में सोचता है, जिससे उसे फायदा होता है। उसकी नजर में, कलीसिया का प्राथमिक कार्य बस वही है, जिसे वह अपने खाली समय में करता है। वह उसे बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लेता। वह केवल तभी हरकत में आता है जब उसे काम करने के लिए कोंचा जाता है, केवल वही करता है जो वह करना पसंद करता है, और केवल वही काम करता है जो उसकी हैसियत और सत्ता बनाए रखने के लिए होता है। उसकी नजर में, परमेश्वर के घर द्वारा व्यवस्थित कोई भी कार्य, सुसमाचार फैलाने का कार्य, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों का जीवन-प्रवेश महत्वपूर्ण नहीं हैं। चाहे अन्य लोगों को अपने काम में जो भी कठिनाइयाँ आ रही हों, उन्होंने जिन भी मुद्दों को पहचाना और रिपोर्ट किया हो, उनके शब्द कितने भी ईमानदार हों, मसीह-विरोधी उन पर कोई ध्यान नहीं देते, वे उनमें शामिल नहीं होते, मानो इन मामलों से उनका कोई लेना-देना ही न हो। कलीसिया के काम में उभरने वाली समस्याएँ चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हों, वे पूरी तरह से उदासीन रहते हैं। अगर कोई समस्या उनके ठीक सामने भी हो, तब भी वे उस पर लापरवाही से ही ध्यान देते हैं। जब ऊपरवाला सीधे उनकी काट-छाँट करता है और उन्हें किसी समस्या को सुलझाने का आदेश देता है, तभी वे बेमन से थोड़ा-बहुत काम करके ऊपरवाले को दिखाते हैं; उसके तुरंत बाद वे फिर अपने धंधे में लग जाते हैं। जब कलीसिया के काम की बात आती है, व्यापक संदर्भ की महत्वपूर्ण चीजों की बात आती है, तो वे इन चीजों में रुचि नहीं लेते और इनकी उपेक्षा करते हैं। जिन समस्याओं का उन्हें पता लग जाता है, उन्हें भी वे नजरअंदाज कर देते हैं और समस्याओं के बारे में पूछने पर लापरवाही से जवाब देते हैं या आगा-पीछा करते हैं, और बहुत ही बेमन से उस समस्या की तरफ ध्यान देते हैं। यह स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति है, है न?(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग एक))। परमेश्वर उजागर करता है कि मसीह-विरोधी भयानक रूप से स्वार्थी और नीच होते हैं। वे केवल कड़ी मेहनत करने, कष्ट सहने और कीमत चुकाने को तैयार होते हैं उन चीजों के लिए जो उन्हें अच्छा दिखा सकती हैं और दूसरों का सम्मान दिला सकती हैं। वे कलीसिया के कार्य और भाई-बहनों की कठिनाइयों के बारे में बिल्कुल भी चिंतित नहीं होते और इन सब के साथ लापरवाही से पेश आते हैं। वे पूरी तरह से उदासीन होते हैं, भले ही वे जानते हों कि कोई व्यक्ति गड़बड़ियाँ और बाधाएँ उत्पन्न कर रहा है। मैंने जो स्वभाव प्रकट किया वह एक मसीह-विरोधी के समान था। मैं अच्छी तरह से जानती थी कि फांग श्या अपने कर्तव्यों में नतीजे नहीं पा रही थी और उसे जल्दी से दूसरा काम सौंपने की आवश्यकता थी, लेकिन मुझे लगा कि सफाई का काम ली हुआ की जिम्मेदारी है और कोई भी समस्या उसी के द्वारा हल की जानी चाहिए। मुझे लगा कि भले ही मैंने इन समस्याओं को हल करने की कोशिश में समय बिताया होता, इससे मैं अच्छी नहीं दिखती और यह मेरे समय की बर्बादी होती। इसलिए, मैंने गैर-जिम्मेदाराना ढंग से काम किया और मामले की उपेक्षा की। बाद में, ली हुआ अपने कर्तव्य निभाने में असमर्थ हो गई। डिंग यान को अभी-अभी अगुआ चुना गया था और मुझे फांग श्या को बरखास्त करने के लिए उसके साथ जाना चाहिए था। लेकिन मैंने केवल संक्षेप में उसके साथ इस पर चर्चा की। बाद में मैंने उसे यह कहते सुना कि उसे आशंकाएँ थीं और इसलिए उसने फांग श्या को बरखास्त नहीं किया था, लेकिन मैंने फिर भी समय पर मामले को सुलझाया नहीं था। मैं कलीसिया के कार्य के प्रति लापरवाह रही थी और इसके साथ कर्तव्यनिष्ठा से पेश नहीं आई थी। जब उच्च-स्तरीय अगुआ मेरी काट-छाँट करने आए, मैंने न केवल आत्म-चिंतन नहीं किया, बल्कि दोष मढ़ने की भी कोशिश की, यह कहते हुए कि मेरे साथ काम करने वाली बहनों ने ही फांग श्या को समय पर बरखास्त नहीं किया था। ऐसा करके, मैंने मामले से अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश की। यदि उच्च-स्तरीय अगुआओं ने फांग श्या को तुरंत बरखास्त न किया होता, तो कहा नहीं जा सकता कि वह कब तक टीम को परेशान करती रहती और उसने सफाई कार्य और भाई-बहनों के जीवन को कितना नुकसान पहुँचाया होता। मैं दो साल से अधिक समय से अगुआ रही और मैंने कुछ सिद्धांत समझ लिए थे। मुझे और अधिक चिंता दिखानी चाहिए थी और अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए थीं ताकि कलीसिया के विभिन्न कार्यों की रक्षा हो सके। जब मैंने किसी को कलीसिया के कार्य में बाधा डालते और गड़बड़ी करते देखा, तो मुझे उसे तुरंत रोकना और नियंत्रित करना चाहिए था। जो अनुपयुक्त थे उन्हें समय पर दूसरा काम सौंपा जाना चाहिए था या बरखास्त किया जाना चाहिए था। यदि मैं चीजों को स्पष्ट रूप से नहीं देख सकती थी, तो मुझे अपने सहकर्मियों के साथ खोजना और परामर्श करना चाहिए था। अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करने का यही मतलब है। लेकिन प्रतिष्ठा और रुतबे की खोज में और उच्च-स्तरीय अगुआओं का सम्मान पाने के लिए, मैंने केवल अपनी प्राथमिक जिम्मेदारियों से जुड़े कार्य से ही सरोकार रखा और जब मैंने कार्य के अन्य क्षेत्रों में समस्याएँ उत्पन्न होते देखीं, तो मैंने उन पर कोई ध्यान नहीं दिया। मुझमें सचमुच बिल्कुल भी मानवता नहीं थी! मैं पूरी तरह से स्वार्थी थी! यदि उच्च-स्तरीय अगुआओं ने मुझे उजागर न किया होता, मेरी काट-छाँट न की होती और मुझे बरखास्त न किया होता, तो मैं अभी भी आत्म-चिंतन करने के बारे में नहीं जान पाती। मैं यह नहीं समझ पाती कि मैं शैतान द्वारा कितनी गहराई से भ्रष्ट कर दी गई थी या मैं जिस तरह से जी रही थी वह कितना नीच और घिनौना था। जब मैं यह समझी, तो मुझे गहरा पछतावा और आत्म-ग्लानि महसूस हुई। साथ ही, मैंने अपने दिल में परमेश्वर को धन्यवाद देते हुए उससे प्रार्थना की, “प्रिय परमेश्वर, मेरी बरखास्तगी तुम्हारी धार्मिकता है। तुमने मेरे अपराधों के अनुसार मेरे साथ व्यवहार नहीं किया, बल्कि मुझे पश्चात्ताप करने का अवसर भी दिया, ताकि मैं आत्म-चिंतन करते हुए खुद को समझ सकूँ। यह तुम्हारा प्रेम और उद्धार है। प्रिय परमेश्वर, इस मामले में खुद को समझने और सच्चा पश्चात्ताप करने में मेरी अगुआई करो।”

बाद में, मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “परमेश्वर के घर में, सत्य का अनुसरण करने वाले सभी लोग परमेश्वर के सामने एकजुट रहते हैं, न कि विभाजित। वे सभी एक ही साझा लक्ष्य के लिए कार्य करते हैं : अपने कर्तव्य को निभाना, खुद को मिला हुआ कार्य करना, सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना, परमेश्वर की अपेक्षा के अनुसार कार्य करना और उसके इरादों को पूरा करना। यदि तुम्हारा लक्ष्य इसके लिए नहीं है बल्कि तुम्हारे अपने लिए है, अपनी स्वार्थी इच्छाओं को पूरा करने के लिए है, तो यह एक भ्रष्ट शैतानी स्वभाव का खुलासा है। परमेश्वर के घर में लोग सत्य सिद्धांतों के अनुसार अपने कर्तव्य निभाते हैं, जबकि अविश्वासियों के कार्य उनके शैतानी स्वभावों द्वारा नियंत्रित होते हैं। ये दो बहुत अलग रास्ते हैं। अविश्वासी अपने षड्यंत्र मन में पाले रहते हैं, उनमें से हर एक के अपने लक्ष्य और योजनाएँ होती हैं और हर कोई अपने हितों के लिए जीता है। यही कारण है कि वे सभी अपने लाभ के लिए छीना-झपटी करते रहते हैं और जो भी उन्हें मिलता है उसका एक इंच भी छोड़ने को तैयार नहीं होते। वे विभाजित होते हैं, एकजुट नहीं होते, क्योंकि उनका एक सामान्य लक्ष्य नहीं होता। वे जो करते हैं उसके पीछे का इरादा और उद्देश्य एक ही होता है। वे सभी अपने लिए ही प्रयास करते हैं। इस पर सत्य का शासन नहीं होता बल्कि इस पर भ्रष्ट शैतानी स्वभाव का शासन होता है और वही इसे नियंत्रित करता है। वे अपने भ्रष्ट शैतानी स्वभाव के नियंत्रण में रहते हैं और अपनी सहायता नहीं कर सकते और इसलिए वे पाप में गहरे से गहरे धंसते चले जाते हैं। परमेश्वर के घर में, यदि तुम लोगों के कार्यों के सिद्धांत, तरीके, प्रेरणा और प्रारंभ बिंदु अविश्वासियों से अलग नहीं होंगे, यदि तुम भी भ्रष्ट शैतानी स्वभाव के कब्जे, नियंत्रण और बहकावे में रहोगे और यदि तुम्हारे कार्यों का प्रारंभ बिंदु तुम्हारे अपने हित, प्रतिष्ठा, गर्व और हैसियत होगी, तो फिर तुम लोग अपना कर्तव्य उसी तरह निभाओगे जैसे अविश्वासी लोग कार्य करते हैं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए मुझे एहसास हुआ कि भले ही मैं परमेश्वर में विश्वास रखती थी, उसका अनुसरण करती थी और कलीसिया में कर्तव्य निभा रही थी, मेरे विचार और दृष्टिकोण नहीं बदले थे। मैं अभी भी “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए” और “एक व्यक्‍ति जहाँ रहता है वहाँ अपना नाम छोड़ता है, जैसे कि एक हंस जहाँ कहीं उड़ता है आवाज़ करता जाता है” के शैतानी जहरों पर निर्भर होकर जी रही थी। मैं एक स्वार्थी और नीच भ्रष्ट स्वभाव में जी रही थी, केवल अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे पर विचार कर रही थी। जब मुझे पता चला कि फांग श्या अपना कर्तव्य निभाते समय कोई नतीजे नहीं पा रही थी और अन्य भाई-बहनों को भी परेशान कर रही थी और सफाई कार्य में बाधा डाल रही थी, मैं अच्छी तरह से जानती थी कि उसे तुरंत बरखास्त किया जाना चाहिए और उसकी जगह एक उपयुक्त व्यक्ति को लाया जाना चाहिए। लेकिन मैंने केवल उस कार्य के बारे में सोचा जिसके लिए मैं खुद जिम्मेदार थी और केवल अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागी। मैंने सोचा कि यदि यह समस्या हल हो गई, तो दूसरे लोग श्रेय ले लेंगे और मुझे चर्चा में आने का मौका नहीं मिलेगा। इसलिए, मैंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। मैंने उस नुकसान की भयावहता पर विचार नहीं किया जो यह समस्या हल नहीं होने पर कलीसिया के कार्य और मेरे भाई-बहनों के जीवन को होता। भले ही सफाई का काम मुख्य रूप से मेरी साथी की जिम्मेदारी थी, इसका मतलब यह नहीं था कि मुझे इस कार्य से सरोकार रखने की जरूरत नहीं थी। एक अगुआ के रूप में, यदि किसी कार्य में कोई मुद्दा उठता है, तो मुझे उसमें शामिल होना चाहिए और अपने सहकर्मियों के साथ मिलकर इस पर चर्चा करनी चाहिए, सिद्धांत खोजना चाहिए और इसे हल करना चाहिए। यह मेरी जिम्मेदारी है और मेरे पद से जुड़े कर्तव्य हैं। लेकिन मैं केवल अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए जीती थी। मैं स्वार्थी और नीच थी और मैंने कलीसिया के हितों की रक्षा नहीं की या समग्र कार्य पर विचार नहीं किया। मैंने कलीसिया के कार्य को एक टीम के हिस्से के रूप में नहीं देखा। अविश्वासी अपने कार्य में अपनी योजनाएँ रखते हैं और वे जो कुछ भी करते हैं अपने लिए करते हैं। मैं अब जिस तरह से काम कर रही थी वह अविश्वासियों के काम करने के तरीके से बिल्कुल भी अलग नहीं था।

एक दिन मैंने एक अनुभवजन्य गवाही वीडियो में परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “परमेश्वर ने सत्य व्यक्त करने और लोगों को बचाने का इतना बड़ा कार्य किया है, और इसमें अपना अथक प्रयास किया है। परमेश्वर इस सबसे न्यायसंगत कार्य को बहुत गंभीरता से लेता है; उसने अपनी सारी कोशिश इन लोगों के लिए की है जिन्हें वह बचाना चाहता है, उसकी सारी अपेक्षाएँ भी इन्हीं लोगों पर टिकी हैं, और अपनी 6,000 वर्षीय प्रबंधन योजना से जो अंतिम परिणाम और महिमा वह प्राप्त करना चाहता है, वह सब इन्हीं लोगों पर साकार होगा। अगर कोई परमेश्वर से दुश्मनी मोल लेता है, उसके कार्य के परिणाम का विरोध करता है, उसे बाधित या नष्ट करता है, तो क्या परमेश्वर उसे माफ करेगा? (बिल्कुल नहीं।) क्या यह परमेश्वर के स्वभाव को नाराज करता है? अगर तुम यह कहते रहो कि तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो, उद्धार का अनुसरण करते हो, परमेश्वर की पड़ताल और मार्गदर्शन को स्वीकारते हो, और परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार कर उसके प्रति समर्पण करते हो, मगर यह सब कहते हुए भी तुम कलीसिया के विभिन्न कार्यों में बाधा डाल रहे हो, उनमें गड़बड़ी पैदा कर रहे हो और उन्हें नष्ट कर रहे हो, और तुम्हारी इस बाधा, गड़बड़ी और तबाही के कारण, तुम्हारी लापरवाही या कर्तव्यहीनता के कारण या तुम्हारी स्वार्थी इच्छाओं और अपने व्यक्तिगत हितों के अनुसरण के कारण, परमेश्वर के घर के हितों, कलीसिया के हितों और अन्य अनेक पहलुओं को नुकसान हुआ है, यहाँ तक कि परमेश्वर के घर के कार्य में बहुत बड़ी गड़बड़ी हुई और वह तबाह हो गया है, तो फिर, परमेश्वर को तुम्हारे जीवन की किताब में क्या परिणाम लिखना चाहिए? तुम्हें किस रूप में चित्रित किया जाना चाहिए? निष्पक्षता से कहें तो तुम्हें दंड मिलना चाहिए। इसे ही तुम्हारा उचित परिणाम मिलना कहते हैं। अब तुम लोग क्या समझते हो? लोगों के हित क्या हैं? (वे दुष्ट हैं।) लोगों के हित वास्तव में उनकी सभी अनावश्यक इच्छाएँ हैं। साफ-साफ कहें, तो वे सभी लालच, झूठ, और शैतान द्वारा लोगों को लुभाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले चारे हैं। शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागना, और अपने व्यक्तिगत हितों का अनुसरण करना—यह बुराई करने में शैतान का सहयोग करना, और परमेश्वर का विरोध करना है। परमेश्वर के कार्य में बाधा डालने के लिए, शैतान लोगों को लुभाने, परेशान करने और गुमराह करने, उन्हें परमेश्वर का अनुसरण करने और परमेश्वर के प्रति समर्पित हो सकने से रोकने के लिए कई तरह के माहौल बनाता है। बल्कि लोग शैतान के साथ सहयोग करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं, जानबूझकर परमेश्वर के कार्य को बाधित करने और नष्ट करने के लिए आगे बढ़ते हैं। परमेश्वर सत्य पर चाहे कितनी भी संगति क्यों न करे, वे फिर भी होश में नहीं आते। चाहे परमेश्वर का घर उनकी कितनी भी काट-छाँट करे, वे फिर भी सत्य को स्वीकार नहीं करते। वे परमेश्वर के प्रति बिल्कुल भी समर्पित नहीं होते, बल्कि चीजों को अपने तरीके से और अपनी मनमर्जी करने पर जोर देते हैं। नतीजतन, वे कलीसिया के कार्य में बाधा डालते और उसे नष्ट कर देते हैं, कलीसिया के विभिन्न कार्यों की प्रगति को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश को बहुत अधिक नुकसान पहुँचाते हैं। यह बहुत बड़ा पाप है, और ऐसे लोगों को परमेश्वर निश्चित रूप से दंड देगा(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग एक))। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए, मैं समझ गई कि परमेश्वर ने मानवजाति को बचाने में अपना सारा श्रमसाध्य प्रयास लगाया है। परमेश्वर नहीं चाहता कि उसके कार्य में कोई बाधा आए या क्षति पहुँचे। परमेश्वर उन सभी लोगों से घृणा और नफरत करता है जो परमेश्वर के कार्य को बाधित करते और क्षति पहुँचाते हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं। इस तरह के व्यक्ति को दंडित किया जाना चाहिए। परमेश्वर उन लोगों से प्रेम करता है जो सत्य का अनुसरण करते हैं, परमेश्वर के प्रति समर्पण करते हैं और परमेश्वर के प्रति वफादारी दिखाते हैं। परमेश्वर आशा करता है कि हम कलीसिया के कार्य की रक्षा करने की अपनी जिम्मेदारी पूरी कर सकें। मैंने इस पर चिंतन किया कि जब मैं एक अगुआ थी, तो कैसे मैं फांग श्या को तुरंत बरखास्त करने की अपनी जिम्मेदारी पूरी करने में असमर्थ थी, जिससे सफाई कार्य में देरी हुई। मैं एक ऐसी इंसान बन गई थी जिसने कलीसिया के कार्य में बाधा डाली और गड़बड़ी की जिससे परमेश्वर घृणा और नफरत करता है। जब मुझे यह बात समझ आई, तो मैं डर गई और प्रार्थना करने के लिए परमेश्वर के पास आई, “प्रिय परमेश्वर, मैं पूरी तरह से स्वार्थी हूँ। मुझमें कोई मानवता नहीं है। मैं केवल प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागती हूँ और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा नहीं करती। मैंने ऐसे काम किए हैं जो तुम्हारे खिलाफ विद्रोह और तुम्हारा प्रतिरोध करते हैं। मैं तुम्हारे उद्धार के के लायक नहीं हूँ। प्रिय परमेश्वर, मैं पश्चात्ताप करने को तैयार हूँ। अभ्यास का मार्ग खोजने में मेरी अगुआई करो।”

मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े : “अगर तुम एक अगुआ हो, तो फिर चाहे तुम कितने भी कार्यों के लिए जिम्मेदार क्यों न हो, यह तुम्हारी जिम्मेदारी है कि तुम लगातार उनके बारे में प्रश्न पूछो और जाँच-पड़ताल करो, साथ ही चीजों का निरीक्षण भी करो और समस्याएँ उत्पन्न होने पर उन्हें तुरंत हल करो। यह तुम्हारा कार्य है। और इसलिए, चाहे तुम कोई क्षेत्रीय अगुआ हो या जिला अगुआ, कलीसिया अगुआ या कोई टीम अगुआ या निरीक्षक, एक बार जब तुम अपनी जिम्मेदारियों के दायरे के बारे में जान जाते हो, तो तुम्हें बार-बार जाँच करनी चाहिए कि क्या तुम वास्तविक कार्य कर रहे हो, क्या तुमने वे जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं जो एक अगुआ या कार्यकर्ता को पूरी करनी चाहिए, साथ ही—तुम्हें सौंपे गए कार्यों में से—तुमने कौन से कार्य नहीं किए हैं, कौन से तुम नहीं करना चाहते हो, किन कार्यों ने खराब परिणाम दिए हैं और किन कार्यों के सिद्धांतों की गहरी समझ प्राप्त करने में तुम विफल रहे हो। तुम्हें इन सभी चीजों की अक्सर जाँच करनी चाहिए। साथ ही, तुम्हें अन्य लोगों के साथ संगति करना और उनसे प्रश्न पूछना, और परमेश्वर के वचनों और कार्य-व्यवस्थाओं में कार्यान्वयन के लिए एक योजना, सिद्धांतों और अभ्यास के लिए एक मार्ग की पहचान करना सीखना चाहिए। किसी भी कार्य व्यवस्था के संबंध में, चाहे वह प्रशासन, कर्मियों, या कलीसियाई जीवन से, या फिर किसी भी किस्म के पेशेवर कार्य से संबंधित क्यों ना हो, अगर यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों का जिक्र करता है, तो यह एक ऐसी जिम्मेदारी है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को पूरी करनी पड़ेगी, और यह उसी के दायरे में आती है जिसके लिए अगुआ और कार्यकर्ता जिम्मेदार हैं—यही वे नियत कार्य हैं जो तुम्हें सँभालने चाहिए। स्वाभाविक रूप से, प्राथमिकताएँ परिस्थिति के आधार पर नियत की जानी चाहिए; कोई भी कार्य पिछड़ नहीं सकता है। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता कहते हैं, ‘मेरे पास तीन सिर और छह हाथ नहीं हैं। कार्य-व्यवस्था में बहुत सारे नियत कार्य हैं; अगर मुझे उन सभी का प्रभार दे दिया गया, तो मैं बिल्कुल भी सँभाल नहीं पाऊँगा।’ अगर कुछ ऐसे नियत कार्य हैं जिनमें तुम व्यक्तिगत रूप से शामिल नहीं हो सकते हो, तो क्या तुमने उन्हें करने के लिए किसी और की व्यवस्था की है? यह व्यवस्था करने के बाद, क्या तुमने अनुवर्ती कार्रवाई की और पूछताछ की? क्या तुमने उनके कार्य का पुनरीक्षण किया? यकीनन तुम्हारे पास पूछताछ करने और पुनरीक्षण करने का समय था? तुम्हारे पास बिल्कुल था!(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (10))। “अपने कर्तव्य को निभाने वाले सभी लोगों के लिए, फिर चाहे सत्य को लेकर उनकी समझ कितनी भी उथली या गहरी क्यों न हो, सत्य वास्तविकता में प्रवेश के अभ्यास का सबसे सरल तरीका यह है कि हर काम में परमेश्वर के घर के हित के बारे में सोचा जाए, और अपनी स्‍वार्थपूर्ण इच्छाओं, व्यक्तिगत मंशाओं, अभिप्रेरणाओं, घमंड और हैसियत का त्याग किया जाए। परमेश्वर के घर के हितों को सबसे आगे रखो—कम से कम इतना तो व्यक्ति को करना ही चाहिए। अपना कर्तव्य निभाने वाला कोई व्यक्ति अगर इतना भी नहीं कर सकता, तो उस व्यक्ति को कर्तव्य निभाने वाला कैसे कहा जा सकता है? यह अपने कर्तव्य को पूरा करना नहीं है। तुम्‍हें पहले परमेश्वर के घर के हितों के बारे में सोचना चाहिए, परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होना चाहिए, और कलीसिया के कार्य का ध्यान रखना चाहिए। इन चीजों को पहले स्थान पर रखना चाहिए; उसके बाद ही तुम अपनी हैसियत की स्थिरता या दूसरे लोग तुम्‍हारे बारे में क्या सोचते हैं, इसकी चिंता कर सकते हो। क्या तुम लोगों को नहीं लगता कि जब तुम इसे दो चरणों में बाँट देते हो और कुछ समझौते कर लेते हो तो यह थोड़ा आसान हो जाता है? यदि तुम कुछ समय के लिए इस तरह अभ्यास करते हो, तो तुम यह अनुभव करने लगोगे कि परमेश्वर को संतुष्ट करना इतना भी मुश्किल काम नहीं है। इसके अलावा, तुम्‍हें अपनी जिम्मेदारियाँ, अपने दायित्व और कर्तव्य पूरे करने चाहिए, और अपनी स्वार्थी इच्छाओं, मंशाओं और उद्देश्‍यों को दूर रखना चाहिए, तुम्‍हें परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशीलता दिखानी चाहिए, और परमेश्वर के घर के हितों को, कलीसिया के कार्य को और जो कर्तव्य तुम्हें निभाना चाहिए, उसे पहले स्थान पर रखना चाहिए। कुछ समय तक ऐसे अनुभव के बाद, तुम पाओगे कि यह आचरण का एक अच्छा तरीका है। यह सरलता और ईमानदारी से जीना और नीच और भ्रष्‍ट व्‍यक्ति न होना है, यह घृणित, नीच और निकम्‍मा होने की बजाय न्यायसंगत और सम्मानित ढंग से जीना है। तुम पाओगे कि किसी व्यक्ति को ऐसे ही कार्य करना चाहिए और ऐसी ही छवि को जीना चाहिए। धीरे-धीरे, अपने हितों को तुष्‍ट करने की तुम्‍हारी इच्छा घटती चली जाएगी(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि परमेश्वर के घर के सभी कार्य बहुत महत्वपूर्ण हैं और प्रत्येक कार्य अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पर्यवेक्षण और जायजा लेने की जिम्मेदारियों के अंतर्गत आता है। कार्यों को विभाजित करना कार्य का केवल एक आवश्यक हिस्सा है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि कार्य और भी बेहतर नतीजे दे। लेकिन मेरा मानना था कि कार्यों को विभाजित करने का मतलब है कि मेरी अन्य कार्यों के लिए कोई जिम्मेदारी नहीं है। मैंने सोचा कि यदि उस कार्य में समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जो फलाँ व्यक्ति की जिम्मेदारी थी, तो उसी व्यक्ति को जाकर उसे हल करना चाहिए और उसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। यह दृष्टिकोण गलत है और अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं है। अगुआ समग्र कार्य के लिए जिम्मेदार होते हैं और सफाई का काम भी मेरे काम के दायरे में आता था। यदि इसमें कोई समस्या थी, तो मुझे अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी थी : मुझे अपने सहकर्मियों के साथ मिलकर समस्याओं पर चर्चा करनी थी और उन्हें हल करना था। साथ ही मैं समझ गई कि अपना कर्तव्य निभाते समय मुझे परमेश्वर के घर के हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए और समग्र कार्य पर विचार करना चाहिए। मैं अपने व्यक्तिगत हितों से संबंधित लाभों और हानियों को परमेश्वर के घर के कार्य को प्रभावित करने और अपने भाई-बहनों के जीवन प्रवेश में देरी करने नहीं दे सकती थी। भविष्य में मुझे परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करना होगा। चाहे मैं कोई भी कार्य करूँ, मुझे हमेशा अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए। मैं अब और अपने व्यक्तिगत हितों पर विचार नहीं कर सकती।

बाद में मैं नए लोगों को सींचने के कार्य के लिए जिम्मेदार थी। मेरी साथी बहन यांग ली को कुछ समय के लिए किसी काम से कहीं और जाना पड़ा। जाने से पहले उसने उन सभी नए लोगों का जिम्मा मुझे सौंप दिया जिनका वह सिंचन कर रही थी। मैंने मन ही मन सोचा, “जिन नए लोगों का मैं सिंचन कर रही हूँ उनमें से कुछ लोग अच्छी दशा में नहीं हैं। मुझे उनकी समस्याएँ हल करनी चाहिए। जिन नए लोगों के लिए तुम जिम्मेदार हो, उनका सिंचन करने के लिए मुझे समय कहाँ से मिलेगा? यदि यह मेरे कर्तव्य के आड़े आता है, तो अगुआ मेरे बारे में क्या सोचेंगे? क्या वे कहेंगे कि मैं बोझ नहीं उठा रही हूँ और वास्तविक कार्य नहीं कर रही हूँ?” जब मैंने इस तरह सोचा, तो मुझे एहसास हुआ कि मेरी मनोदशा गलत थी। मैं फिर से अपने हितों पर विचार कर रही थी और अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए काम कर रही थी। मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : “अपने कर्तव्य को निभाने वाले सभी लोगों के लिए, फिर चाहे सत्य को लेकर उनकी समझ कितनी भी उथली या गहरी क्यों न हो, सत्य वास्तविकता में प्रवेश के अभ्यास का सबसे सरल तरीका यह है कि हर काम में परमेश्वर के घर के हित के बारे में सोचा जाए, और अपनी स्‍वार्थपूर्ण इच्छाओं, व्यक्तिगत मंशाओं, अभिप्रेरणाओं, घमंड और हैसियत का त्याग किया जाए। परमेश्वर के घर के हितों को सबसे आगे रखो—कम से कम इतना तो व्यक्ति को करना ही चाहिए। अपना कर्तव्य निभाने वाला कोई व्यक्ति अगर इतना भी नहीं कर सकता, तो उस व्यक्ति को कर्तव्य निभाने वाला कैसे कहा जा सकता है? यह अपने कर्तव्य को पूरा करना नहीं है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। मुझे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करनी थी। मैं अब और अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे पर विचार नहीं कर सकती थी। यांग ली द्वारा मुझे सौंपे गए नए लोगों ने अभी तक सच्चे मार्ग में दृढ़ता से जड़ें नहीं जमाई थीं। सीसीपी हर जगह ईसाइयों को गिरफ्तार करके सता रही थी और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को बदनाम करने के लिए निराधार अफवाहें फैला रही थी। यदि नए लोग सत्य नहीं समझते तो शैतान उन्हें किसी भी समय गुमराह करके अपने कब्जे में कर सकता था। अब यांग ली ने इन नए लोगों का जिम्मा मुझे सौंप दिया था, तो उनका सिंचन करना और उन्हें सहारा देना जिम्मेदारी थी जो मुझे पूरी करनी थी। यदि मैंने अपने स्वार्थी, नीच और गैर-जिम्मेदार होने के कारण इन नए लोगों को पीछे हटने और विश्वास रखना बंद करने पर मजबूर किया तो मेरे जमीर पर एक आरोप लटकता रहता। मैं अब और अपने स्वार्थी और नीच भ्रष्ट स्वभाव पर निर्भर होकर नहीं जी सकती थी। चाहे ये नए लोग किसी की भी जिम्मेदारी हों, मुझे उनका अच्छी तरह से सिंचन करना होगा ताकि वे जितनी जल्दी हो सके दृढ़ता से जड़ें जमा सकें। इसलिए मैंने खुद को सत्य से लैस किया और सभी नए लोगों को उनकी धारणाओं और समस्याओं के अनुसार सींचा और उन्हें सहारा दिया। जब मैंने इस तरह से अभ्यास किया, तो मेरा दिल शांत और सहज हो गया।

इन अनुभवों के बाद, मुझे यह गहरा एहसास हुआ कि जब लोग स्वार्थी और नीच भ्रष्ट स्वभाव में जीते हैं और केवल प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने पर ध्यान देते हैं, भले ही वे उस समय प्रतिष्ठा का आनंद ले सकते हैं, वे अपने पीछे अपराध छोड़ जाते हैं जब वे अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी नहीं करते और उनके दिल पीड़ा से जलते हैं। लेकिन जब तुम व्यक्तिगत हितों को जाने देते हो और परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास और प्रवेश करते हो, तो तुम्हारा दिल शांत और सहज होता है। परमेश्वर, इस तरह की समझ और लाभों की ओर मेरी अगुआई करने के लिए तुम्हारा धन्यवाद!

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