44. एक खतरनाक माहौल ने मेरा स्वार्थीपन प्रकट कर दिया

हान मिंग, चीन

1998 में मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकार किया। बाद में मैं अपनी आस्था के लिए अच्छी तरह जाना जाने लगा और सीसीपी के पुलिस बल की निगरानी का एक प्रमुख निशाना बन गया। 2016 में मैंने और मेरी पत्नी ने घर छोड़ दिया और अपने कर्तव्य निभाने के लिए दूसरी जगह एक घर किराए पर ले लिया। बाद में मेरे गृहनगर के भाई-बहनों ने मुझे बताया कि पुलिस अभी भी मेरी तलाश कर रही है और अगर मैं दिखाई दूँ तो मेरी सूचना देने के लिए एक पड़ोसी को रिश्वत दे चुकी है। इस कारण हम दूसरी जगह अपने कर्तव्य निभाते समय बहुत सतर्क रहते थे, हमेशा सावधान रहते थे और निगरानी और गिरफ्तारी से डरते थे।

2023 की पहली छमाही में एक सुबह बहन झांग निंग अचानक मेरे घर आई, उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं और उसने कहा कि उसकी साथी बहन को गिरफ्तार कर लिया गया है और कलीसिया के कई अन्य भाई-बहनों को भी गिरफ्तार किया गया है। पुलिस पूछताछ के लिए कुछ मेजबान घरों में भी गई थी। उसके और बहन लियू मिंग के पास कहीं जाने की कोई जगह नहीं थी और वे कुछ समय के लिए मेरे घर में रहना चाहती थीं। यह सोचकर कि उनका पीछा किया जा रहा है और वे घर वापस नहीं जा सकतीं, मैंने तुरंत सहमति दे दी। लेकिन दो दिन बाद मुझे पता चला कि उन दोनों के साथ गद्दारी की गई है और पुलिस को लियू मिंग की एक तस्वीर मिल गई है और वह उसकी तलाश कर रही है। यह सुनकर मैं बहुत घबरा गया और मुझे लगा कि चीन पर अंधेरे बादल छा गए हैं, जहाँ कहीं भी कोई सुरक्षित जगह नहीं है। मैं चिंता किए बिना भी नहीं रह पाया और सोचने लगा, “चूँकि सीसीपी की पुलिस मेरा भी पीछा कर रही है, तो क्या इस समय इन दोनों बहनों को यहाँ अपने साथ रखना बहुत खतरनाक नहीं है? खासकर लियू मिंग को, पुलिस के पास उसकी तस्वीर है और वह उसके पता-ठिकानों का सक्रिय तौर से पता लगा रही है। वह मेरे घर तक पहुँचने के रास्ते में कई निगरानी कैमरों से गुजरी थी और अगर पुलिस ने फुटेज की जाँच की तो वह फौरन उसके आने-जाने का पता लगा लेगी और मेरा घर ढूँढ़ लेगी। फिर हमें भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा!” मैंने यह भी विचार किया कि कैसे मुझे कई साल से उच्च रक्तचाप और हृदय रोग है और मैंने सोचा, “अगर अंततः मुझे गिरफ्तार कर लिया गया और प्रताड़ित किया गया तो क्या मैं इसे सहन कर पाऊँगा? अगर मैं पीड़ा न सह पाया और परमेश्वर से विश्वासघात कर बैठा तो क्या मेरी आस्था व्यर्थ नहीं चली जाएगी? और मुझे भविष्य में दंडित भी किया जाएगा।” मैं इसके बारे में जितना सोचता गया उतना ही भयभीत होता गया और मुझे लगा कि मैं बेहद दबाव में हूँ। उस पल मेरे दिमाग में एक विचार कौंधा, “अगर मुझे पता होता कि यह सब इतना खतरनाक होगा तो मैं झांग निंग और लियू मिंग की मेजबानी करने को सहमत नहीं होता। इस तरह मैं कम जोखिम उठाता। अभी स्थिति इतनी खराब है कि वे जितने लंबे समय तक यहाँ रहेंगी, मैं उतने ही अधिक खतरे में रहूँगा।” यह विचार घर करने के बाद जब भी हम बात करते तो मैं संकेत देता कि मेरा स्थान सुरक्षित नहीं है, मेरा इरादा होता कि झांग निंग और लियू मिंग अगुआओं से आग्रह करें कि वे जल्द से जल्द उनके लिए कोई दूसरा मेजबान घर ढूँढ़ लें। हर बार जब मैं इस तरह की बातें कहता तो वे दोनों असहाय लगतीं। बाद में मुझे अपराध-बोध महसूस होता, मैं सोचता कि मुझे उनके साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए, खासकर लियू मिंग के साथ। उसकी तबीयत पहले से ही खराब थी और अब उसका पीछा किया जा रहा था। कुछ समय पहले उसकी माँ को गिरफ्तार किया गया था और किसी को नहीं पता था कि उनके साथ क्या हुआ और एक बार मैंने उसे रसोई में अकेले रोते हुए देखा था। वे बहुत खतरे में थीं और मुझे उन्हें जाने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए था, लेकिन अपनी सुरक्षा का ख्याल आने पर मैं अब भी यही उम्मीद कर रहा था कि वे जल्द चली जाएँ।

एक सभा के दौरान मैंने परमेश्वर के वचन का एक अंश पढ़ा और इसने मुझे गहराई से प्रभावित किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “शैतान चाहे जितना भी ‘ताकतवर’ हो, चाहे वह जितना भी दुस्साहसी और महत्वाकांक्षी हो, चाहे नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता जितनी भी बड़ी हो, चाहे मनुष्य को भ्रष्ट करने और लुभाने की उसकी तकनीकें जितनी भी व्यापक हों, चाहे मनुष्य को डराने की उसकी तरकीबें और साजिशें जितनी भी चतुराई से भरी हों, चाहे उसके अस्तित्व के रूप जितने भी परिवर्तनशील हों, वह कभी एक भी जीवित चीज सृजित करने में सक्षम नहीं हुआ, कभी सभी चीजों के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाएँ या नियम निर्धारित करने में सक्षम नहीं हुआ, और कभी किसी सजीव या निर्जीव चीज पर शासन और नियंत्रण करने में सक्षम नहीं हुआ। ब्रह्मांड और आकाश के भीतर, एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उससे पैदा हुई हो, या उसके कारण अस्तित्व में हो; एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उसके द्वारा शासित हो, या उसके द्वारा नियंत्रित हो। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन रहना है, बल्कि, परमेश्वर के सभी आदेशों और आज्ञाओं को समर्पण करना है। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानवजाति की तो बात ही छोड़ दो। परमेश्वर की दृष्टि में, शैतान पहाड़ पर उगने वाली कुमुदनियों से, हवा में उड़ने वाले पक्षियों से, समुद्र में रहने वाली मछलियों से, और पृथ्वी पर रहने वाले कीड़ों से भी तुच्छ है। सभी चीजों के बीच उसकी भूमिका सभी चीजों की सेवा करना, मानवजाति की सेवा करना और परमेश्वर के कार्य और उसकी प्रबंधन-योजना की सेवा करना है। उसकी प्रकृति कितनी भी दुर्भावनापूर्ण क्यों न हो, और उसका सार कितना भी बुरा क्यों न हो, केवल एक चीज जो वह कर सकता है, वह है अपने कार्य का कर्तव्यनिष्ठा से पालन करना : परमेश्वर के लिए सेवा देना, और परमेश्वर को एक विषमता प्रदान करना। ऐसा है शैतान का सार और उसकी स्थिति। उसका सार जीवन से असंबद्ध है, सामर्थ्य से असंबद्ध है, अधिकार से असंबद्ध है; वह परमेश्वर के हाथ में केवल एक खिलौना है, परमेश्वर की सेवा में रत सिर्फ एक मशीन है!(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि शैतान परमेश्वर के कार्य के लिए सेवा प्रदान करता है और परमेश्वर की अनुमति के बिना वह कुछ भी नहीं कर सकता। हालाँकि बड़ा लाल अजगर बहुत बर्बर लगता है, लेकिन वह भी परमेश्वर के हाथों में है। लियू मिंग के यहाँ आने पर उसकी निगरानी की गई या नहीं और मुझे गिरफ्तार किया जाएगा या नहीं, ये सभी मामले परमेश्वर के नियंत्रण में थे और परमेश्वर का अंतिम निर्णय होगा। परमेश्वर की अनुमति के बिना पुलिस हमें नहीं ढूँढ़ेगी। मैं अभी गिरफ्तार तक नहीं किया गया था, फिर भी इतना कायर और भयभीत था और यहाँ तक कि मैंने दोनों बहनों की मेजबानी करने से इनकार के बारे में सोच लिया था। इससे पता चलता है कि मुझे परमेश्वर पर बिल्कुल भी सच्ची आस्था नहीं थी। जब मेरे साथ चीजें हुईं तब मेरे दिल में परमेश्वर के लिए कोई जगह नहीं थी। मैं किस तरह से परमेश्वर में सच्चा विश्वास करने वाला था? मैं व्यावहारिक रूप से एक छद्म-विश्वासी था। मैंने देखा कि इतने सालों तक परमेश्वर में विश्वास करने के बाद भी मेरा आध्यात्मिक कद अभी बहुत छोटा था और सत्य का अनुसरण न करने के लिए मुझे खुद से घृणा हो गई। जब मेरे सामने स्थितियाँ खड़ी हुईं तो उन्होंने प्रकट कर दिया कि मुझमें सत्य वास्तविकताओं की कितनी दयनीय रूप से कमी थी।

बाद में जब हम एकत्र हुए, मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े : “बड़े लाल अजगर के देश में मैंने कार्य का एक ऐसा चरण पूरा कर लिया है जिसकी थाह मनुष्य नहीं पा सकते, जिसके कारण वे हवा में डोलने लगते हैं, जिसके बाद कई लोग हवा के वेग में चुपचाप बह जाते हैं। सचमुच, यह एक ऐसा ‘खलिहान’ है जिसे मैं साफ करने वाला हूँ, यही मेरी लालसा है और यही मेरी योजना है। हालाँकि मेरे कार्य करते समय कई कुकर्मी लोग आ घुसे हैं, लेकिन मुझे उन्हें खदेड़ने की कोई जल्दी नहीं है। इसके बजाय, सही समय आने पर मैं उन्हें तितर-बितर कर दूँगा। केवल इसके बाद ही मैं जीवन का सोता बनूँगा, और जो लोग मुझसे सच में प्रेम करते हैं, उन्हें अपने से अंजीर के पेड़ का फल और कुमुदिनी की सुगंध प्राप्त करने दूँगा। जिस देश में शैतान का डेरा है, जो गर्दो-गुबार का देश है, वहाँ शुद्ध सोना नहीं रहा, सिर्फ रेत ही रेत है, और इसलिए, इन हालात को देखते हुए, मैं कार्य का ऐसा चरण पूरा करता हूँ(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सात गर्जनाएँ गरजती हैं—भविष्यवाणी करती हैं कि राज्य का सुसमाचार पूरे ब्रह्मांड में फैल जाएगा)। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि परमेश्वर बड़े लाल अजगर को परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सताने और गिरफ्तार करने की अनुमति देता है ताकि उसका इस्तेमाल हर एक को परखने की सेवा में कर सके। एक अर्थ में यह लोगों के एक समूह को पूर्ण बनाने के लिए किया जाता है और दूसरे अर्थ में यह छद्म-विश्वासियों और कायर लोगों का खुलासा भी करता है। अतीत में मैं अक्सर कहता था कि मैं परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील रहूँगा और मैं परमेश्वर के प्रति समर्पण करने और वफादार होने को तैयार हूँ। मैंने यह भी कहा था कि भाई-बहनों को एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए और एक-दूसरे से प्रेम करना चाहिए, लेकिन तथ्यों ने यह प्रकट कर दिया कि मैं बिना किसी वास्तविकता के बस धर्म-सिद्धांत और नारे बोल रहा था। झांग निंग और लियू मिंग मेरे घर रहने आई थीं और पहले तो मैं उनकी मेजबानी करने के लिए तैयार था। लेकिन यह देखकर कि काफी सारे लोग पकड़ लिए गए हैं और यह सुनने के बाद कि उन दोनों के साथ गद्दारी की गई है और पुलिस लियू मिंग का पीछा कर रही है, मुझे लगा कि उनकी मेजबानी करने में बहुत बड़ा जोखिम निहित है और अगर मुझे गिरफ्तार कर लिया गया तो मुझे कड़ी सजा मिलेगी। अपनी सुरक्षा की खातिर मैं अब और उनकी मेजबानी नहीं करना चाहता था। मैंने अपने दिल में जो महसूस किया था और अपने मुँह से जो कहा था, उसका उद्देश्य उन्हें जल्द से जल्द वहाँ से चले जाने के लिए मजबूर करना था। मैंने अपने बारे में सोचा। बड़े लाल अजगर द्वारा मेरा भी पीछा किया जा रहा था और मेरे पास जो घर था, वहाँ मैं लौट नहीं सकता था और जब मेरे शरीर में दर्द था और मेरा दिल पीड़ित था तो मैंने भी दूसरों से मदद पाने की उम्मीद रखी थी। अब परमेश्वर मेरे लिए एक उपयुक्त स्थान तैयार कर चुका था, लेकिन जब बहनें अब आगे घर नहीं लौट सकती थीं और उनके पास कहीं जाने की जगह नहीं थी तो मैंने उनकी सुरक्षा की उपेक्षा की और लगातार उन्हें दूर धकेलना चाहा। मुझे एहसास हुआ कि मुझे भाई-बहनों से बिल्कुल भी प्रेम नहीं था। झांग निंग और लियू मिंग कलीसिया में महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाती थीं, लेकिन इस अहम क्षण में मैंने यह नहीं सोचा कि उनकी सुरक्षा कैसे सुनिश्चित करूँ या कलीसिया के कार्य की रक्षा कैसे करूँ। मुझमें किस तरह परमेश्वर के प्रति कोई वफादारी थी? मेरी प्रकृति इतनी स्वार्थी थी और मुझमें मानवता की कमी थी! अब जाकर मुझे एहसास हुआ कि बड़ा लाल अजगर परमेश्वर के कार्य के लिए सेवा प्रदान करता है और इस तरह की स्थिति के बिना मैं अपनी भ्रष्टता न पहचान पाता। उसके बाद मैंने खुद से संकल्प लिया कि अगर एक दिन मुझे वास्तव में गिरफ्तार भी कर लिया गया, तो मैं अपनी गवाही में पूरी तरह से अडिग रहूँगा और परमेश्वर के साथ विश्वासघात नहीं करूँगा। इसलिए मैंने झांग निंग और लियू मिंग से इस बारे में चर्चा की कि अगर पुलिस घर की तलाशी लेने आए या कोई अप्रत्याशित परिस्थिति आ जाए तो कैसे प्रतिक्रिया देनी है और कैसे बाहर निकलना है। इससे मेरा डर कम हुआ।

थोड़े समय बाद झांग निंग और लियू मिंग दूसरी जगह रहने चले गए। मेरी छोटी बहन और उसका पति मुझे सावधान रहने के लिए याद दिलाने मेरे घर आए, उन्होंने कहा कि पुलिस मेरी तलाश में है और इसके अलावा पुलिस को लगता है कि मैं एक अगुआ हूँ और अगर मैं पकड़ा गया, तो मुझे निश्चित रूप से सजा होगी। मेरा दिल भारी हो गया और मैं सोचने लगा कि जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया था और फिर जिन्होंने भाई-बहनों से गद्दारी की थी, कहीं उन्होंने मेरी शिनाख्त और मुझसे गद्दारी तो नहीं कर दी। सुरक्षा के लिहाज से मैंने अपने घर की सभी अहम चीजें छिपा दीं। मैंने सोचा कि अगर कुछ भी हुआ तो मैं शहर छोड़ दूँगा और कुछ समय के लिए जाकर छिप जाऊँगा। तभी अचानक लियू मिंग वापस आ गई। वह जिस मेजबान घर में गई थी, वहाँ नहीं रह पाई क्योंकि वह निगरानी में था। मैं चौंक गया और सोचने लगा “लियू मिंग का पीछा किया जा रहा है और हर जगह कैमरे लगे हैं। अब जब वह दूसरी जगह रहने जाकर लौट चुकी है, अगर उसकी निगरानी हो रही है तो पुलिस आसानी से उसका ठिकाना पता लगा लेगी। मूल रूप से मेरा घर अपेक्षाकृत सुरक्षित था, लेकिन अगर पुलिस लियू मिंग का पीछा करने के लिए निगरानी फुटेज के आधार पर सुरागकशी करती है तो क्या इससे मेरा घर निगाह में नहीं आ जाएगा?” उस शाम मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, लियू मिंग अचानक लौट आई है। मुझे चिंता है कि अगर उस पर नजर रखी जा रही है और उसका पीछा हो रहा है तो मुझे फँसाया जा सकता है और मैं गिरफ्तार होने से डरता हूँ। परमेश्वर, मेरे दिल की रक्षा करो और इस माहौल में सबक सीखने के लिए मेरा मार्गदर्शन करो।” प्रार्थना करने के बाद मुझे थोड़ी सी और अधिक शांति महसूस हुई। मैं लियू मिंग को फिलहाल अपने घर रहने देने के लिए तैयार हो गया।

कुछ दिन बाद मुझे पता चला कि लियू मिंग की माँ यह जानती है कि मेरा घर कहाँ है। उसका एक रिश्तेदार विश्वासी था, उसे भी पता था कि लियू मिंग मेरे घर में रह रही है। मैंने सोचा, “अभी किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता। अगर यह रिश्तेदार पकड़ा गया और उसने यह प्रकट कर दिया कि लियू मिंग मेरे घर पर है तो क्या मैं और अधिक खतरे में नहीं पड़ जाऊँगा?” मुझे यह सोचकर फिर से तनाव होने लगा, “लियू मिंग की सुरक्षा को बहुत बड़ा खतरा है, मुझे उसे कुछ दिन पहले तभी बता देना चाहिए था जब वह घर छोड़कर गई थी कि चूँकि वह जा रही है, इसलिए वापस नहीं आ सकती, तब इन जोखिमों के बारे में अब चिंता करने की कोई जरूरत नहीं होती।” यह सोचकर मैंने उससे अगुआओं को पत्र लिखने को कहा कि वे जल्दी से जल्दी उसके लिए एक मेजबान घर ढूँढ़ें। लेकिन दिन बीतते गए और अगुआओं की ओर से लियू मिंग को लेने आने का कोई संकेत नहीं मिला, इसलिए मुझे चिंता होने लगी। लियू मिंग ने असहाय होकर कहा, “पूरी कलीसिया का माहौल अभी काफी खराब है और इस समय एक उपयुक्त मेजबान घर ढूँढ़ना मुश्किल है।” लियू मिंग की उदास अभिव्यक्ति देखकर मुझे पछतावा हुआ और मैं उसे दूसरी जगह भेजने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पाया। बाद में अगुआओं की राय थी कि मेरा घर भी सुरक्षित नहीं रहा, इसलिए उन्होंने लियू मिंग को एक दूसरे घर भेज दिया।

उसके बाद मैंने आत्म-चिंतन और मंथन करना शुरू किया, खुद से पूछा कि इन दो अवसरों पर झांग निंग और लियू मिंग की मेजबानी से मैंने क्या सबक सीखा है। पीछे मुड़कर देखने पर मैंने दोनों मौकों पर जो प्रकट किया वह कायरता थी, खुद को बचाने की चाहत थी और लगातार अपने कर्तव्यों से बचना और बहनों की मेजबानी करने के लिए अनिच्छुक होना था। इसलिए मैंने इस दशा के बारे में पढ़ने के लिए परमेश्वर के वचन तलाशे। परमेश्वर कहता है : “मसीह-विरोधी बेहद स्वार्थी और घिनौने होते हैं। उनमें परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था नहीं होती, परमेश्वर के प्रति निष्ठा तो बिल्कुल नहीं होती; जब उनके सामने कोई मसला आता है तो वे केवल अपना बचाव और अपनी सुरक्षा करते हैं। उनके लिए अपनी सुरक्षा से ज्यादा जरूरी और कुछ नहीं है। अगर वे जिंदा रह सकें और गिरफ्तार न हों तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि कलीसिया के काम को कितना नुकसान हुआ है। ये लोग बेहद स्वार्थी हैं, वे भाई-बहनों के बारे में या कलीसिया के काम के बारे में बिल्कुल नहीं सोचते, सिर्फ अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं। वे मसीह-विरोधी हैं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन से मैंने देखा कि मसीह-विरोधी वाकई स्वार्थी और घृणित होते हैं। वे केवल अपनी और अपने हितों की रक्षा करने के बारे में चिंतित रहते हैं और उन्हें कलीसिया के कार्य की रक्षा या अपने भाई-बहनों की सुरक्षा की जरा भी परवाह नहीं होती। मैंने बिल्कुल एक मसीह-विरोधी की तरह व्यवहार किया था, मुसीबत के समय में केवल अपने बारे में सोचा और अपने हितों को सबसे आगे रखा, अपने भाई-बहनों की या कलीसिया के कार्य की सुरक्षा के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचा। झांग निंग और लियू मिंग पाठ-आधारित कर्तव्य निभा रही थीं, जो कलीसिया के लिए एक महत्वपूर्ण काम होता है। अब जबकि कलीसिया बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियों का सामना कर रही थी, तो कई मेजबान घर अब आश्रय देने में सक्षम नहीं थे। मेरा किराये का घर अपेक्षाकृत सुरक्षित था, इसलिए इस तरह की स्थिति में उनकी अगवानी करना मेरे लिए नैतिक बाध्यता होनी चाहिए थी ताकि उन्हें अपने कर्तव्य निभाने के लिए एक शांत वातावरण मिल सके। इसके अलावा लियू मिंग की सेहत ठीक नहीं थी, अपनी माँ की गिरफ्तारी के कारण वह बहुत व्यथित थी और खुद उसका पीछा होने के कारण उसके पास कहीं जाने का कोई ठिकाना नहीं था, इसलिए मुझे उसे अपने साथ रखकर उसकी देखभाल करनी चाहिए थी ताकि वह यहाँ घर जैसा महसूस कर पाए और शांति से अपने कर्तव्य निभा सके। हालाँकि मैंने केवल इस बारे में सोचा कि क्या मुझे गिरफ्तार किया जा सकता है, क्या मैं गिरफ्तार होने की स्थिति में अडिग रह पाऊँगा और क्या मुझे उसके बाद कोई अच्छी मंजिल मिल पाएगी, लेकिन मैंने उनकी परिस्थितियों या भावनाओं से समानुभूति नहीं जताई। अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मैंने उन्हें दूर करने की अप्रत्यक्ष कोशिश तक की। मैं केवल अपने हितों के बारे में विचारशील था, यह सोच रहा था कि जब तक मैं सुरक्षित हूँ, तब तक यही सब मायने रखता है। मैंने देखा कि मैं बिल्कुल उन मसीह-विरोधियों के समान था जिन्हें परमेश्वर ने उजागर किया है—स्वार्थी, नीच और मानवता विहीन। मैंने कलीसिया के भाई-बहनों के बारे में सोचा, जिनमें से कुछ उन भाई-बहनों को अपने साथ रख लेते हैं, जिनका खतरनाक परिस्थितियों में पीछा किया जा रहा है। वे बिना जरा भी शिकायत किए अपने भाई-बहनों की रक्षा के लिए खुद जोखिम उठाने को तैयार होते हैं। कुछ लोग तो बहुत खतरे के बावजूद बाद का कार्य भी सँभालते हैं, अपनी निजी सुरक्षा पर विचार किए बिना परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें स्थानांतरित करते हैं और कुछ अपने भाई-बहनों की रक्षा के लिए तब आगे आते हैं जब उन्हें गिरफ्तार कर सताया जाता है। ऐसे लोगों की सूची लंबी है। ये लोग अपनी देह के खिलाफ विद्रोह, कलीसिया के कार्य की रक्षा, अपने भाई-बहनों की सुरक्षा और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपनी वफादारी दिखाने को परमेश्वर पर भरोसा कर पाते हैं। उनकी तुलना में मैं सचमुच कमतर था। मैंने उन यहूदाओं के बारे में भी सोचा जिन्होंने गिरफ्तार होने के बाद कलीसिया की संपत्ति और अपने भाई-बहनों से गद्दारी की थी। उन्होंने ऐसा अपनी बेहद स्वार्थी प्रकृति के कारण किया था और इसलिए किया कि वे मृत्यु से डरते थे और अपना जीवन बचाना चाहते थे। जब बड़े लाल अजगर ने उन्हें धमकाया, डराया और सताया तो वे इस बात के लिए तैयार नहीं थे कि अपनी देह को पीड़ा सहने दें, इसलिए उन्होंने बड़े लाल अजगर का अनुसरण किया, परमेश्वर से विश्वासघात किया और उसकी ईशनिंदा की और परमेश्वर के स्वभाव को नाराज किया। मैं भी इसी तरह स्वार्थी था और अगर मुझे बड़े लाल अजगर द्वारा गिरफ्तार किया जाता, तो मैं भी परमेश्वर को धोखा देने के खतरे में होता! मुझे अपनी दशा ठीक करने के लिए तेजी से सत्य खोजना था।

मैंने खोज के दौरान आत्म-चिंतन भी किया और खुद से पूछा, “मैं हमेशा गिरफ्तार होने से क्यों डरता हूँ?” सच में ऐसा इसलिए था क्योंकि मुझे डर था कि अगर मैं मर गया तो मुझे उसके बाद कोई अच्छा परिणाम या गंतव्य नहीं मिलेगा। मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “संपूर्ण मानवजाति में कौन है जिसकी सर्वशक्तिमान की नज़रों में देखभाल नहीं की जाती? कौन सर्वशक्तिमान द्वारा तय प्रारब्ध के बीच नहीं रहता? क्या मनुष्य का जीवन और मृत्यु उसका अपना चुनाव है? क्या मनुष्य अपने भाग्य को खुद नियंत्रित करता है? बहुत से लोग मृत्यु की कामना करते हैं, फिर भी वह उनसे काफी दूर रहती है; बहुत से लोग वैसे व्यक्ति बनना चाहते हैं जो जीवन में मज़बूत हैं और मृत्यु से डरते हैं, फिर भी उनकी जानकारी के बिना, उनकी मृत्यु का दिन निकट आ जाता है, उन्हें मृत्यु की खाई में डुबा देता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 11)। “प्रभु यीशु के उन अनुयायियों की मौत कैसे हुई? उनमें ऐसे अनुयायी थे जिन्हें पत्थरों से मार डाला गया, घोड़े से बाँध कर घसीटा गया, सूली पर उलटा लटका दिया गया, पाँच घोड़ों से खिंचवाकर उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए—हर प्रकार की मौत उन पर टूटी। उनकी मृत्यु का कारण क्या था? क्या उन्हें उनके अपराधों के लिए कानूनी तौर पर फाँसी दी गई थी? नहीं। उन्होंने प्रभु का सुसमाचार फैलाया था, लेकिन दुनिया के लोगों ने उसे स्वीकार नहीं किया, इसके बजाय उनकी भर्त्सना की, पीटा और डाँटा-फटकारा और यहाँ तक कि मार डाला—इस तरह वे शहीद हुए। ... जब हम इस विषय का जिक्र करें, तो तुम लोग स्वयं को उनकी स्थिति में रखो, क्या तब तुम लोगों के हृदय उदास होते हैं, और क्या तुम भीतर ही भीतर पीड़ा का अनुभव करते हो? तुम सोचते हो, ‘इन लोगों ने परमेश्वर का सुसमाचार फैलाने का अपना कर्तव्य निभाया, इन्हें अच्छा इंसान माना जाना चाहिए, तो फिर उनका अंत, और उनका परिणाम ऐसा कैसे हो सकता है?’ वास्तव में, उनके शरीर इसी तरह मृत्यु को प्राप्त हुए और चल बसे; यह मानव संसार से प्रस्थान का उनका अपना माध्यम था, तो भी इसका यह अर्थ नहीं था कि उनका परिणाम भी वैसा ही था। उनकी मृत्यु और प्रस्थान का साधन चाहे जो रहा हो, या यह चाहे जैसे भी हुआ हो, यह वैसा नहीं था जैसे परमेश्वर ने उन जीवनों के, उन सृजित प्राणियों के अंतिम परिणाम को परिभाषित किया था। तुम्हें यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है)। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि हममें से प्रत्येक का जीवन-मरण परमेश्वर के हाथ में है और कोई व्यक्ति कब और कैसे मरेगा, यह परमेश्वर द्वारा पहले ही पूर्वनियत किया जा चुका है। व्यक्ति के मरने के कई तरीके होते हैं, लेकिन इन मौतों का मूल्य और महत्व बहुत अलग-अलग होता है और लोगों के अंतिम परिणाम और गंतव्य अलग-अलग होते हैं। ठीक प्रभु यीशु के शिष्यों की तरह, जिन्होंने पहचाना था कि प्रभु यीशु ही देहधारी परमेश्वर है, वे अंत तक परमेश्वर के प्रति वफादार रहने में सक्षम थे, उसके लिए अपनी गवाही में अडिग रहने को उन्होंने अपने जीवन बलिदान कर दिए। युगों-युगों से बहुत सारे संत भी प्रभु के सुसमाचार का प्रचार करने के लिए शहीद हो चुके हैं। उनकी मौतें मूल्यवान और सार्थक थीं। भले ही उनके शरीर विभिन्न तरीकों से मरे, लेकिन उनकी आत्माएँ नहीं मरीं। अंत के दिनों में हम इस नास्तिक देश में परमेश्वर पर विश्वास करते हैं और अपने कर्तव्य निभाते हैं और हमें अनिवार्य रूप से उत्पीड़न और क्लेशों का सामना करना पड़ेगा। हमें अतीत के संतों के उदाहरणों का भी पालन करना चाहिए और मृत्यु पर्यंत परमेश्वर का अनुसरण करने का दृढ़ संकल्प रखना चाहिए। लेकिन परमेश्वर द्वारा आयोजित इस स्थिति में मैंने केवल इस बारे में सोचा कि कैसे इससे पलायन करूँ और खुद को बचाऊँ। मेरी परमेश्वर में कोई आस्था या उसमें वफादारी नहीं थी, न मुझे अपने भाई-बहनों से कोई प्रेम था। हालाँकि मेरी देह जीवित थी, मैंने सत्य का अभ्यास नहीं किया था और मेरी कोई सच्ची गवाही नहीं थी, इसलिए मुझे परमेश्वर की स्वीकृति बिल्कुल नहीं मिली। अगर मैंने सत्य का अनुसरण नहीं किया, पश्चात्ताप न किया और बदलाव नहीं किया तो मुझे निश्चित रूप से हटा दिया जाएगा।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंश पढ़े और अभ्यास का मार्ग पाया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “परमेश्वर की गवाही देने के लिए और विशाल लाल अजगर को शर्मिंदा करने के लिए व्यक्ति के पास एक सिद्धांत का होना जरूरी है, और जरूरी है एक शर्त को पूरा करना : उसे परमेश्वर को दिल से प्रेम करना चाहिए और परमेश्वर के वचनों में प्रवेश करना चाहिए। यदि तुम लोग परमेश्वर के वचनों में प्रवेश नहीं करते तो तुम्हारे पास शैतान को शर्मिंदा करने का कोई तरीका नहीं होगा। अपने जीवन के विकास द्वारा, तुम बड़े लाल अजगर के खिलाफ विद्रोह करते हो और उसका घोर तिरस्कार करते हो; केवल इसी तरह विशाल लाल अजगर को सही में शर्मिंदा किया जा सकता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो परमेश्वर के आज के कार्य को जानते हैं केवल वे ही परमेश्वर की सेवा कर सकते हैं)। “अगर लोग सत्‍य का अभ्‍यास करने का चुनाव करते हैं, तो वे अपने हितों को गँवा देने के बावजूद परमेश्वर का उद्धार और शाश्‍वत जीवन हासिल कर रहे होते हैं। वे सबसे ज्‍़यादा बुद्धिमान लोग हैं। अगर लोग अपने हितों के लिए सत्‍य को त्‍याग देते हैं, तो वे जीवन और परमेश्वर के उद्धार को गँवा देते हैं; वे लोग सबसे ज्‍यादा बेवकूफ होते हैं। कोई व्‍यक्ति क्‍या चुनता है—अपने हित या सच—वह अविश्‍वसनीय रूप से उजागर करने वाला होता है। जो लोग सत्‍य से प्रेम करते हैं वे सत्‍य को चुनेंगे; वे परमेश्वर के प्रति समर्पण और उसका अनुसरण करना चुनेंगे। वे सत्‍य का अनुसरण करने के लिए अपने निजी हितों तक को त्‍याग देना पसन्‍द करेंगे। उन्‍हें कितना ही दुख क्‍यों न झेलना पड़े, वे परमेश्वर को सन्‍तुष्‍ट करने के लिए अपनी गवाही पर अडिग बने रहने के लिए दृढ़ निश्‍चयी होते हैं। यह सत्‍य का अभ्‍यास करने और सत्‍य की वास्‍तविकता में प्रवेश करने का मूलभूत मार्ग है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने स्‍वभाव का ज्ञान उसमें बदलाव की बुनियाद है)। परमेश्वर के वचनों से मुझे समझ में आया कि जब विकट परिस्थितियों से सामना हो तो मुझे अपनी देह के विरुद्ध विद्रोह करना चाहिए और अपने निजी हितों को परे रखना चाहिए। भले ही इसका मतलब मेरे निजी हितों को जोखिम में डालना या नुकसान उठाना हो, फिर भी मुझे कलीसिया के कार्य को कायम रखना चाहिए और अपने भाई-बहनों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। लियू मिंग के जाने के कुछ समय बाद कई भाई-बहन अक्सर अपने कर्तव्यों की जरूरतों के कारण मेरे घर आते थे। उनमें से एक भाई को तो पहले भी गिरफ्तार किया जा चुका था। मैंने मन ही मन सोचा, “पुलिस अक्सर अपनी गाड़ियों में सड़कों पर गश्त करती रहती है; पुलिस की फाइल में पहले से ही इस भाई का नाम है और मेरे घर के रास्ते पर बहुत सारे निगरानी कैमरे लगे हैं। अगर पुलिस निगरानी कर रही है तो मुझे देर-सवेर जरूर गिरफ्तार कर लिया जाएगा!” मुझे फिर से थोड़ा डर लगा और मैंने सोचा कि भाई-बहनों से कह दूँ कि वे इतनी बार मेरे घर न आएँ। लेकिन फिर मैंने सोचा कि वे अपने कर्तव्यों की जरूरतों की वजह से यहाँ आते हैं और अगर मैंने ऐसा कहा, तो यह निश्चित रूप से उन्हें बाधित करेगा। मुझे दो बहनों की मेजबानी करने का अपना पिछला अनुभव याद आया और मुझे पता था कि इस बार मैं सिर्फ अपने हितों के बारे में नहीं सोच सकता। मुझे आस्था थी कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है और मुझे कलीसिया के कार्य को बनाए रखने को प्राथमिकता देनी चाहिए। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, सब कुछ उसे सौंप दिया और अब मैं खुद को उतना बेबस महसूस नहीं कर रहा था।

इस दौरान अपने अनुभवों पर चिंतन करते हुए मैंने देखा कि मेरी प्रकृति सचमुच स्वार्थी थी और परमेश्वर में मेरी आस्था बहुत कमजोर थी। हालाँकि मैं कई सालों से परमेश्वर पर विश्वास करता रहा हूँ, लेकिन मुझे न तो परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता की सच्ची समझ थी, न ही किन्हीं सत्य वास्तविकताओं की। भाई-बहनों की मेजबानी करने के इस अनुभव ने मुझे प्रकट कर दिया और यह मेरे लिए परमेश्वर का उद्धार भी था, जिसने मुझे मेरी भ्रष्टता और कमियाँ दिखाईं और मुझे सत्य का अनुसरण करने को प्रेरित किया। मैं अपने दिल की गहराई से परमेश्वर को धन्यवाद देता हूँ!

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