50. मैं इतनी स्वार्थी क्यों हूँ?
मई 2020 में मैं कलीसिया अगुआ थी। मैं बहन चेन डैन की भागीदार थी और हम कलीसिया के कार्य के लिए जिम्मेदार थीं। काम का जायजा लेने को सुविधाजनक बनाने के लिए हम दोनों अपने-अपने काम बाँट कर मिलकर कार्य करती थीं। मैं सुसमाचार कार्य के लिए जिम्मेदार थी, जबकि चेन डैन सिंचन कार्य और स्वच्छता कार्य के लिए जिम्मेदार थी। उस समय काम की जरूरतों के कारण हमें कुछ और सुसमाचार कार्यकर्ता और सिंचनकर्ता खोजने थे। मैंने और चेन डैन ने इस मामले पर चर्चा की और फिर लोगों को ढूँढ़ने और काम की व्यवस्था करने के लिए अलग-अलग चली गईं। कुछ दिनों बाद चेन डैन एक सभा से वापस आई और बहुत उत्साह से बोली कि नवागंतुकों का सिंचन करने के लिए उसने अपेक्षाकृत अच्छी काबिलियत वाले कुछ भाई-बहनों की व्यवस्था कर ली है। यह सुनते ही मैं चिंतित हो गई। मैंने सोचा, “अगर तुमने उन सभी को नवागंतुकों का सिंचन करने भेजने की व्यवस्था कर दी है तो मैं क्या करूँगी? मेरे पास अभी भी सुसमाचार कार्य के लिए लोगों की कमी है! बाद में तुम्हारा सारा काम व्यवस्थित हो जाएगा और क्या मेरा काम पीछे नहीं छूट जाएगा? लगता है मुझे भी तत्काल सुसमाचार कार्यकर्ता ढूँढ़ने होंगे और सुसमाचार कार्य व्यवस्थित करना होगा। वरना अगर मेरा कार्य ठीक से पूरा नहीं हुआ तो उच्च-स्तरीय अगुआ और मेरे भाई-बहन मेरे बारे में क्या सोचेंगे? क्या वे कहेंगे कि मैं वास्तविक कार्य नहीं कर रही हूँ?” इसलिए जब मैंने बाद में अपने भाई-बहनों के साथ सभा की, मैंने सिर्फ और सिर्फ सुसमाचार कार्य के बारे में बात की। मैंने सिंचन कार्य के बारे में संगति पर ध्यान केंद्रित नहीं किया। बस जब सभा लगभग समाप्त हो गई थी, तब मैंने संक्षेप में इसका उल्लेख किया, हालाँकि मेरा दिल इसमें नहीं था। यहाँ तक कि मैंने अपने भाई-बहनों को यह कहते हुए सुना कि सिंचन कार्य में कुछ मुश्किलें आई हैं, मैंने ऐसा दिखावा किया कि मैंने नहीं सुना है और मैंने समस्याओं को सुलझाने के लिए इसके बारे में संगति नहीं की। मैंने मन ही मन सोचा, “सिंचाई कार्य चेन डैन की जिम्मेदारी है। उसे इन समस्याओं को हल करना चाहिए। जब तक मैं अपनी जिम्मेदारी वाला कार्य करती हूँ और इसे अच्छी तरह से करती हूँ, तब तक यही मायने रखता है। मैं किसी और चीज के बारे में ज्यादा नहीं सोच सकती।” जब मैंने अपने काम की रिपोर्ट की तो मैंने देखा कि चेन डैन ने जो सिंचनकर्ता ढूँढ़े हैं, वे सभी अपेक्षाकृत अच्छी काबिलियत वाले हैं, जबकि मेरे सुसमाचार कार्यकर्ता औसत काबिलियत वाले हैं। मैं थोड़ी प्रतिरोधी हो गई, “अच्छी काबिलियत वाले सभी कार्यकर्ताओं को नवागंतुकों का सिंचन करने के लिए नियुक्त किया गया है, जबकि मेरे पास जो कार्यकर्ता हैं, वे सभी औसत हैं। मेरे काम के नतीजे निश्चित रूप से प्रभावित होंगे। बाद में अगर सिंचन कार्य के नतीजे सुसमाचार कार्य से बेहतर रहे तो क्या मैं चेन डैन से कमतर नहीं लगूँगी? अगुआ मेरे बारे में क्या सोचेंगे?” जब मैंने इस बारे में सोचा तो मैं बहुत चिंतित हो गई, सुसमाचार का प्रचार करने के लिए अच्छी काबिलियत वाले कुछ और भाई-बहनों को ढूँढ़ना चाहती थी, जो अपने कर्तव्य के निर्वहन में जिम्मेदारी का बोझ उठा रहे हों। मैंने दो बहनों के बारे में सोचा जो नवागंतुकों का सिंचन कर रही थीं। पहले अपने कर्तव्य निर्वहन में जिम्मेदारी का बोझ नहीं उठाने के कारण उनका काम बदला गया था और वे अभी घर पर आध्यात्मिक भक्ति और चिंतन का अभ्यास कर रही थीं। एक प्रचारक भी था जिसे पहले बर्खास्त कर दिया गया था। अब वे सभी अपने बारे में कुछ समझ हासिल कर चुके थे और वे सभी कर्तव्य भी निभाना चाहते थे, इसलिए मैं उनके लिए सुसमाचार प्रचार करने की व्यवस्था कर सकती थी। फिर मुझे लगा कि सिंचनकर्ताओं की कमी है, क्योंकि हाल ही में बहुत से नवागंतुक कलीसिया में शामिल हुए हैं। कई कलीसियाओं में कोई भी ऐसा नहीं था जो नवागंतुकों का सिंचन कर सके और इसलिए नवागंतुकों का सिंचन करने की व्यवस्था करना अधिक उचित था। लेकिन दोबारा सोचने पर, “अगर वे सभी जाकर नवागंतुकों का सिंचन करते हैं तो भी अपने सुसमाचार कार्य के लिए मेरे पास कम लोग होंगे। बाद में अगर मेरे काम के नतीजे नहीं सुधरे तो क्या मुझमें कार्यक्षमता की कमी नहीं दिखेगी? ऊपरी स्तर के अगुआ मेरे बारे में क्या सोचेंगे? इसके अलावा सुसमाचार प्रचार करना भी अभी बहुत महत्वपूर्ण है। अगर सुसमाचार का प्रचार करने के लिए पर्याप्त लोग नहीं होंगे तो यह काम भी नहीं चलेगा।” जब मैंने यह सोचा, मैंने सीधे तीनों बहनों को तुरंत सुसमाचार प्रचार करने में लगा दिया। बाद में सिंचनकर्ताओं की कमी के कारण कुछ नवागंतुकों का समय पर सिंचन नहीं किया जा सका और एक दर्जन से अधिक नवागंतुकों ने कलीसिया छोड़ दी। चेन डैन इस वजह से चिंतित और परेशान थी और उसकी मनोदशा बहुत हताश थी। मैंने भी मन ही मन खुद को धिक्कारा। मुझे लगा कि मैं काम के संबंध में गैर-जिम्मेदार रही हूँ और मैंने चेन डैन के प्रति कोई प्यार नहीं दिखाया। अगर मैं और चेन डैन एकमत होकर लोगों को नियुक्त कर पातीं और सहयोग से काम कर पातीं तो समय पर सिंचन नहीं होने के कारण नवागंतुक कलीसिया नहीं छोड़ते और चेन डैन इतनी हताश नहीं होती। लेकिन फिर मैंने यह भी सोचा, “सिंचन कार्य चेन डैन की जिम्मेदारी है—यह मेरी प्राथमिक जिम्मेदारी नहीं है। जब तक मैं अपने काम पर ध्यान देती हूँ, मेरे लिए यही मायने रखता है।” इस तरह मैं सिंचन कार्य में होने वाली समस्याओं के बारे में चिंतित या परेशान नहीं हुई।
एक दिन उच्च-स्तरीय अगुआओं का एक पत्र आया, जिसमें कलीसिया के सफाई कार्य में प्रगति का आग्रह किया गया था। मैं देख सकती थी कि चूँकि चेन डैन का स्वास्थ्य ठीक नहीं है और वह अन्य कार्यों में व्यस्त है, वह कभी भी सफाई कार्य का जायजा नहीं ले पाई थी या क्रियान्वयन नहीं कर पाई थी। मैंने मन ही मन सोचा, “अगर यह कार्य तुरंत क्रियान्वित नहीं किया गया तो क्या इसमें देरी नहीं होगी? शायद मुझे इसका जायजा लेना चाहिए और इसे क्रियान्वित करना चाहिए।” लेकिन फिर मैंने अपना विचार बदल दिया, “सफाई कार्य चेन डैन की जिम्मेदारी है। भले ही मैं इसे अच्छी तरह से करूँ, इसे मेरे अपने योगदान के रूप में नहीं देखा जाएगा। इसके अलावा सुसमाचार कार्य में अभी बहुत व्यस्तता है। अगर मैं जाकर सफाई कार्य का जायजा लेती हूँ, क्या होगा अगर इससे सुसमाचार कार्य में देरी हो जाए और उच्च-स्तरीय अगुआ मेरी काट-छाँट कर दें?” जब मैंने इस पर विचार किया तो मैं अब नहीं जाना चाहती थी। उस रात अचानक मेरे सिर में दर्द होने लगा, मानो यह फटने वाला हो। मुझे एहसास हुआ कि शायद यह परमेश्वर का अनुशासन है क्योंकि मैं बहुत स्वार्थी थी और सफाई कार्य से परेशान नहीं होना चाहती थी। मैंने पश्चात्ताप में जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना की, “प्रिय परमेश्वर, मैं जानती हूँ कि सफाई कार्य में देरी नहीं की जा सकती, लेकिन चूँकि यह काम चेन डैन की जिम्मेदारी है, इसलिए मैं इसमें शामिल नहीं होना चाहती। मैं बहुत स्वार्थी और नीच हूँ! मैं सफाई कार्य जल्द से जल्द पूरा और क्रियान्वित करने के लिए अपने शरीर के खिलाफ विद्रोह करने को तैयार हूँ।”
अगली सुबह अभी भी मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा था। मैंने खुद को सफाई कार्य पूरा करने के लिए मजबूर किया और धीरे-धीरे मेरे सिर में दर्द होना बंद हो गया। जब मैं वापस आई तो मैंने आत्म-चिंतन किया। मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “परमेश्वर के घर में, सत्य का अनुसरण करने वाले सभी लोग परमेश्वर के सामने एकजुट रहते हैं, न कि विभाजित। वे सभी एक ही साझा लक्ष्य के लिए कार्य करते हैं : अपने कर्तव्य को निभाना, खुद को मिला हुआ कार्य करना, सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना, परमेश्वर की अपेक्षा के अनुसार कार्य करना और उसके इरादों को पूरा करना। यदि तुम्हारा लक्ष्य इसके लिए नहीं है बल्कि तुम्हारे अपने लिए है, अपनी स्वार्थी इच्छाओं को पूरा करने के लिए है, तो यह एक भ्रष्ट शैतानी स्वभाव का खुलासा है। परमेश्वर के घर में लोग सत्य सिद्धांतों के अनुसार अपने कर्तव्य निभाते हैं, जबकि अविश्वासियों के कार्य उनके शैतानी स्वभावों द्वारा नियंत्रित होते हैं। ये दो बहुत अलग रास्ते हैं। अविश्वासी अपने षड्यंत्र मन में पाले रहते हैं, उनमें से हर एक के अपने लक्ष्य और योजनाएँ होती हैं और हर कोई अपने हितों के लिए जीता है। यही कारण है कि वे सभी अपने लाभ के लिए छीना-झपटी करते रहते हैं और जो भी उन्हें मिलता है उसका एक इंच भी छोड़ने को तैयार नहीं होते। वे विभाजित होते हैं, एकजुट नहीं होते, क्योंकि उनका एक सामान्य लक्ष्य नहीं होता। वे जो करते हैं उसके पीछे का इरादा और उद्देश्य एक ही होता है। वे सभी अपने लिए ही प्रयास करते हैं। इस पर सत्य का शासन नहीं होता बल्कि इस पर भ्रष्ट शैतानी स्वभाव का शासन होता है और वही इसे नियंत्रित करता है। वे अपने भ्रष्ट शैतानी स्वभाव के नियंत्रण में रहते हैं और अपनी सहायता नहीं कर सकते और इसलिए वे पाप में गहरे से गहरे धंसते चले जाते हैं। परमेश्वर के घर में, यदि तुम लोगों के कार्यों के सिद्धांत, तरीके, प्रेरणा और प्रारंभ बिंदु अविश्वासियों से अलग नहीं होंगे, यदि तुम भी भ्रष्ट शैतानी स्वभाव के कब्जे, नियंत्रण और बहकावे में रहोगे और यदि तुम्हारे कार्यों का प्रारंभ बिंदु तुम्हारे अपने हित, प्रतिष्ठा, गर्व और हैसियत होगी, तो फिर तुम लोग अपना कर्तव्य उसी तरह निभाओगे जैसे अविश्वासी लोग कार्य करते हैं” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचनों से मुझे एहसास हुआ कि जो लोग वाकई परमेश्वर में विश्वास करते हैं और सत्य का अनुसरण करते हैं, वे सत्य खोजने और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने में सक्षम होते हैं। जब वे कर्तव्य करने के लिए अन्य लोगों के साथ साझेदारी करते हैं तो उनका कोई व्यक्तिगत स्वार्थ या इच्छाएँ नहीं होती हैं। वे जो कुछ भी करते हैं, वे अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करने और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए करते हैं। इसके विपरीत अविश्वासी अपने शैतानी स्वभाव के अनुसार जीते हैं। वे सिर्फ अपने हितों की रक्षा के लिए काम करते हैं और दूसरों के साथ काम करते समय अपनी खुद की योजनाओं को आश्रय देते हैं। वे प्रसिद्धि और लाभ के लिए होड़ करते हैं, ईर्ष्या और झगड़े में लिप्त रहते हैं, अपने व्यक्तिगत लक्ष्य पाने में बेईमान होते हैं, एक दूसरे का शोषण करते हैं और धोखा देते हैं। मैंने परमेश्वर के वचनों की तुलना अपनी मनोदशा से की। मैं अच्छी तरह जानती थी कि सिंचनकर्ताओं की कमी है और कुछ नवागंतुकों का सिंचन करने के लिए कोई नहीं है और अच्छी तरह जानती थी कि चेन डैन इस वजह से चिंतित और परेशान है। लेकिन अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा के लिए मैंने जबरन ऐसे लोगों को बुला लिया जो नवागंतुकों का सिंचन करने में माहिर थे और उन्हें सुसमाचार का प्रचार करने भेज दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि कुछ नवागंतुक छोड़कर चले गए क्योंकि उनका समय पर सिंचन नहीं किया गया, जिससे सिंचन कार्य को नुकसान पहुँचा। मैं स्पष्ट रूप से जानती थी कि चेन डैन की सेहत ठीक नहीं है और उसने सफाई कार्य का तुरंत जायजा नहीं लिया है और इसे क्रियान्वित नहीं किया है और मुझे इस काम को जल्द से जल्द क्रियान्वित करना चाहिए। लेकिन मुझे डर था कि इस काम पर ध्यान देने और दिमाग खपाने से सुसमाचार कार्य में बाधा आएगी और अगर बाद में सुसमाचार के काम के नतीजे खराब हुए तो मैं बुरी दिखूँगी। इसलिए सफाई कार्य में शामिल होने के बजाय मैं इसे बिलंबित होते देखती रही। अपने कार्यकलापों पर पीछे मुड़कर देखूँ तो वे वाकई गैर-विश्वासियों की हरकतों से अलग नहीं थे। अविश्वासी लोग सांसारिक आचरण के शैतानी फलसफे के अनुसार ही कार्य करते हैं। वे खासकर स्वार्थी और नीच होते हैं। वे सिर्फ अपने हितों की चिंता करते हैं और दूसरों के जीने या मरने की परवाह नहीं करते। भले ही मैं तकनीकी रूप से एक विश्वासी हूँ, मेरी कथनी और करनी एक अविश्वासी की तरह ही थी। मैंने जो कुछ भी किया वह मेरे अपने हितों के लिए था। मुझे सिर्फ अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा करने की परवाह थी। मैंने अपने काम पर ध्यान दिया जबकि अन्य कार्यों पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया और कलीसिया के समग्र कार्य पर बिल्कुल भी विचार नहीं किया। मैं बिना कुछ महसूस किए अपनी आँखों के सामने कलीसिया के काम को नुकसान पहुँचते देखती रही। मैं वाकई बहुत स्वार्थी और नीच थी! क्या मैंने इस सब में मानवता या विवेक का जरा सा भी संकेत दिखाया? क्या इस तरह से अपना कर्तव्य करना परमेश्वर के इरादों के अनुसार है?
बाद में मैंने परमेश्वर के प्रासंगिक वचन खाने और पीने से अपनी मनोदशा सँभाली। मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “मसीह-विरोधियों में कोई जमीर, विवेक या मानवता नहीं होती। वे न केवल शर्म से बेपरवाह होते हैं, बल्कि उनकी एक और खासियत भी होती है : वे असाधारण रूप से स्वार्थी और नीच होते हैं। उनके ‘स्वार्थ और नीचता’ का शाब्दिक अर्थ समझना कठिन नहीं है : उन्हें अपने हित के अलावा कुछ नहीं सूझता। अपने हितों से संबंधित किसी भी चीज पर उनका पूरा ध्यान रहता है, वे उसके लिए कष्ट उठाएँगे, कीमत चुकाएँगे, उसमें खुद को तल्लीन और समर्पित कर देंगे। जिन चीजों का उनके अपने हितों से कोई लेना-देना नहीं होता, वे उनकी ओर से आँखें मूँद लेंगे और उन पर कोई ध्यान नहीं देंगे; दूसरे लोग जो चाहें सो कर सकते हैं—मसीह-विरोधियों को इस बात की कोई परवाह नहीं होती कि कोई विघ्न-बाधा पैदा तो नहीं कर रहा, उन्हें इन बातों से कोई सरोकार नहीं होता। युक्तिपूर्वक कहें तो वे अपने काम से काम रखते हैं। लेकिन यह कहना ज्यादा सही है कि इस तरह का व्यक्ति नीच, अधम और कुत्सित होता है; हम उन्हें ‘स्वार्थी और नीच’ के रूप में निरूपित करते हैं। ... मसीह-विरोधी चाहे जो भी कार्य करें, वे कभी परमेश्वर के घर के हितों पर विचार नहीं करते। वे केवल इस बात पर विचार करते हैं कि कहीं उनके हित तो प्रभावित नहीं हो रहे, वे केवल अपने सामने के उस छोटे-से काम के बारे में सोचते हैं, जिससे उन्हें फायदा होता है। उनकी नजर में, कलीसिया का प्राथमिक कार्य बस वही है, जिसे वे अपने खाली समय में करते हैं। वे उसे बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लेते। वे केवल तभी हरकत में आते हैं जब उन्हें काम करने के लिए कोंचा जाता है, केवल वही करते हैं जो वह करना पसंद करते हैं और केवल वही काम करते हैं जो उसके अपने रुतबे और सत्ता को कायम रखने के लिए होता है। उसकी नजर में परमेश्वर के घर द्वारा व्यवस्थित कोई भी कार्य, सुसमाचार फैलाने का कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों का जीवन प्रवेश महत्वपूर्ण नहीं हैं। चाहे अन्य लोगों को अपने काम में जो भी कठिनाइयाँ आ रही हों, उन्होंने जिन भी मुद्दों को पहचाना और रिपोर्ट किया हो, उनके शब्द कितने भी ईमानदार हों, मसीह-विरोधी उन पर कोई ध्यान नहीं देते, वे उनमें शामिल नहीं होते, मानो इन मामलों से उनका कोई लेना-देना ही न हो। कलीसिया के काम में उभरने वाली समस्याएँ चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हों, वे पूरी तरह से उदासीन रहते हैं। अगर कोई समस्या उनके ठीक सामने भी हो, तब भी वे उस पर लापरवाही से ही ध्यान देते हैं। जब ऊपरवाला सीधे उनकी काट-छाँट करता है और उन्हें किसी समस्या को सुलझाने का आदेश देता है, तभी वे बेमन से थोड़ा-बहुत काम करके ऊपरवाले को दिखाते हैं; उसके तुरंत बाद वे फिर अपने धंधे में लग जाते हैं। जब कलीसिया के काम की बात आती है, व्यापक संदर्भ की महत्वपूर्ण चीजों की बात आती है तो वे इन चीजों में रुचि नहीं लेते और इनकी उपेक्षा करते हैं। जिन समस्याओं का उन्हें पता लग जाता है, उन्हें भी वे नजरअंदाज कर देते हैं और समस्याओं के बारे में पूछने पर लापरवाही से जवाब देते हैं या आगा-पीछा करते हैं और बहुत ही बेमन से उस समस्या की तरफ ध्यान देते हैं। यह स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति है, है न? इसके अलावा, मसीह-विरोधी चाहे कोई भी काम कर रहे हों, वे केवल यही सोचते हैं कि क्या इससे वे सुर्खियों में आ पाएँगे; अगर उससे उनकी प्रतिष्ठा बढ़ती है तो वे यह जानने के लिए अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाते हैं कि उस काम को कैसे करना है, कैसे अंजाम देना है; उन्हें केवल एक ही फिक्र रहती है कि क्या इससे वे औरों से अलग नजर आएँगे। वे चाहे कुछ भी करें या सोचें, वे केवल अपनी प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे से सरोकार रखते हैं। वे चाहे कोई भी काम कर रहे हों, वे केवल इसी स्पर्धा में लगे रहते हैं कि कौन बड़ा है या कौन छोटा, कौन जीत रहा है और कौन हार रहा है, किसकी ज्यादा प्रतिष्ठा है। वे केवल इस बात की परवाह करते हैं कि कितने लोग उनकी आराधना और सम्मान करते हैं, कितने लोग उनका आज्ञा पालन करते हैं और कितने लोग उनके अनुयायी हैं। वे कभी सत्य पर संगति या वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं करते। वे कभी विचार नहीं करते कि अपना काम करते समय सिद्धांत के अनुसार चीजें कैसे करें, न ही वे इस बात पर विचार करते हैं कि क्या वे निष्ठावान रहे हैं, क्या उन्होंने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी कर दी हैं, क्या उनके काम में कोई विचलन या चूक हुई है या अगर कोई समस्या मौजूद है तो वे यह तो बिल्कुल नहीं सोचते कि परमेश्वर क्या चाहता है और परमेश्वर के इरादे क्या हैं। वे इन सब चीजों पर रत्ती भर भी ध्यान नहीं देते। वे केवल प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के लिए, अपनी महत्वाकांक्षाएँ और जरूरतें पूरी करने का प्रयास करने के लिए कार्य करते हैं। यह स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति है, है न? यह पूरी तरह से उजागर कर देता है कि उनके हृदय किस तरह उनकी महत्वाकांक्षाओं, इच्छाओं और बेसिर-पैर की माँगों से भरे होते हैं; उनका हर काम उनकी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं से नियंत्रित होता है। वे चाहे कोई भी काम करें, उनकी महत्वाकांक्षाएँ, इच्छाएँ और बेसिर-पैर की माँगें ही उनकी प्रेरणा और स्रोत होती हैं। यह स्वार्थ और नीचता की विशिष्ट अभिव्यक्ति है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग एक))। जब मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े तो मुझे एहसास हुआ कि मसीह-विरोधी स्वार्थी और नीच हैं और उनमें अंतरात्मा और विवेक की कमी है। चाहे वे परमेश्वर में अपने विश्वास और अपने कर्तव्य के पालन में खुद को कैसे भी त्यागें और खपाएँ, वे सिर्फ अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए कीमत चुकाते हैं, कलीसिया के काम की बिल्कुल भी रक्षा नहीं करते। अपनी खुद की अभिव्यक्तियों के बारे में सोचूँ तो क्या वे मसीह-विरोधियों जैसी नहीं थीं? अगुआओं से प्रशंसा पाने के लिए मैंने हर मोड़ पर अपने कर्तव्य के नतीजों की तुलना चेन डैन के कर्तव्य से की। अपने काम के नतीजे बेहतर बनाने, अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा करने के लिए, यहाँ तक कि जब मुझे अच्छी तरह से पता था कि सिंचनकर्ताओं की कमी है, मैंने अपनी अंतरात्मा दबा ली और सिद्धांतों के खिलाफ चली गई, नवागंतुकों का सिंचन करने में अच्छे लोगों को सुसमाचार का प्रचार करने भेज दिया। मैंने लोगों को अपने अधिकार के तहत फँसाया ताकि वे मेरी प्रतिष्ठा और रुतबे की सेवा कर सकें और कलीसिया के समग्र कार्य पर बिल्कुल भी विचार नहीं किया। इसका नतीजा यह हुआ कि कुछ नवागंतुक छोड़कर चले गए क्योंकि उनका समय पर सिंचन नहीं किया गया। इसके अलावा लंबे समय तक मैंने कलीसिया के सफाई कार्य का जायजा लिए बिना या उसे क्रियान्वित हुए बिना वैसे का वैसा देखा, इसके बारे में पूछने के लिए थोड़ी सी भी चिंता करने को तैयार नहीं हुई। मैं वाकई स्वार्थी, लालची, नीच और दुर्भावनापूर्ण थी, मेरे अंदर अंतरात्मा या विवेक का एक भी अंश नहीं था। भाई-बहनों ने मुझे अगुआ बनने के लिए चुना, इसलिए मुझे परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होना चाहिए, भाई-बहनों के साथ एकदिल और एकमन से कलीसिया के काम की रक्षा करनी चाहिए, ताकि हम परमेश्वर का उद्धार स्वीकारने के लिए अधिक लोगों को परमेश्वर के घर में ला सकें। लेकिन मैं हर मोड़ पर सांसारिक आचरण के शैतानी फलसफे के अनुसार जी रही थी, “हर आदमी अपनी सोचे और बाकियों को शैतान ले जाए” और “सबसे अलग दिखने और श्रेष्ठ बनने का लक्ष्य बनाओ” जैसे जहरों का अनुसरण कर रही थी। मैंने जो कुछ भी किया, उसमें मेरा सिद्धांत यह था कि मैं इसे अपने लिए, अपने लाभ के लिए करूँ। मैंने सिर्फ अपने हितों के लिए योजना बनाई, अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा की। भले ही मैंने नवागंतुकों को जाते देखा, कलीसिया के काम को नुकसान पहुँचा और मेरी भागीदार बहन चेन डैन नकारात्मक मनोदशा में चली गई, मैं अविचलित रही। मैं बहुत ही उदासीन और हृदयहीन थी! यह देखते हुए कि कैसे मेरी अभिव्यक्तियों ने मसीह-विरोधियों का स्वभाव को प्रकट किया, मैंने देखा कि मैं वाकई मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चल रही थी! जब मैंने यह समझा तो मैं पछतावे से भर गई और मुझे खुद से नफरत होने लगी। मैंने पश्चात्ताप में परमेश्वर से प्रार्थना की और मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव सुलझाने के लिए सत्य खोजने के लिए तैयार हो गई।
अपनी आध्यात्मिक भक्ति के दौरान मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “परमेश्वर ने सत्य व्यक्त करने और लोगों को बचाने का इतना बड़ा कार्य किया है और इसमें अपने हृदय का सारा रक्त लगाया है। परमेश्वर इस सबसे न्यायोचित ध्येय को इतनी गंभीरता से लेता है; उसके हृदय का सारा रक्त इन लोगों के लिए खप चुका है जिन्हें वह बचाना चाहता है, उसकी सारी अपेक्षाएँ भी इन्हीं लोगों पर टिकी हैं और अपनी 6,000-वर्षीय प्रबंधन योजना से जो अंतिम नतीजे और महिमा वह प्राप्त करना चाहता है, वह सब इन्हीं लोगों पर साकार होगा। अगर कोई परमेश्वर से दुश्मनी मोल लेता है, इस ध्येय के नतीजे का विरोध करता है, इसे बाधित या नष्ट करता है तो क्या परमेश्वर उसे माफ करेगा? (नहीं।) क्या यह परमेश्वर के स्वभाव को नाराज करता है? अगर तुम यह कहते रहो कि तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो, उद्धार का अनुसरण करते हो, परमेश्वर की पड़ताल और मार्गदर्शन को स्वीकारते हो और परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार कर उसके प्रति समर्पण करते हो, मगर यह सब कहते हुए भी तुम कलीसिया के विभिन्न कार्यों में बाधा डाल रहे हो, उनमें गड़बड़ी पैदा कर रहे हो और उन्हें नष्ट कर रहे हो, और तुम्हारी इस बाधा, गड़बड़ी और तबाही के कारण, तुम्हारी लापरवाही या कर्तव्यहीनता के कारण या तुम्हारी स्वार्थी इच्छाओं और अपने व्यक्तिगत हितों के अनुसरण के कारण, परमेश्वर के घर के हितों, कलीसिया के हितों और अन्य अनेक पहलुओं को नुकसान हुआ है, यहाँ तक कि परमेश्वर के घर के कार्य में बहुत बड़ी गड़बड़ी हुई और वह तबाह हो गया है तो फिर परमेश्वर को तुम्हारे जीवन की किताब में क्या परिणाम लिखना चाहिए? तुम्हें किस रूप में चित्रित किया जाना चाहिए? पूरी तरह निष्पक्ष होकर कहें तो तुम्हें दंड मिलना चाहिए। इसे ही अपनी करनी का उचित फल मिलना कहते हैं। अब तुम लोग क्या समझते हो? लोगों के हित क्या हैं? (वे दुष्ट हैं।) लोगों के हित वास्तव में उनकी सारी असंयमित इच्छाएँ हैं। साफ-साफ कहें तो वे सभी प्रलोभन, झूठ और शैतान द्वारा लोगों को लुभाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला चारा हैं। शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागना और अपने व्यक्तिगत हितों का अनुसरण करना—यह बुराई करने में शैतान का सहयोग करना, और परमेश्वर का विरोध करना है। परमेश्वर के कार्य में बाधा डालने के लिए शैतान लोगों को लुभाने, परेशान और गुमराह करने, उन्हें परमेश्वर का अनुसरण करने और परमेश्वर के प्रति समर्पण कर सकने से रोकने के लिए विभिन्न माहौल बनाता है। इसके बजाय लोग शैतान के साथ सहयोग करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं, जानबूझकर परमेश्वर के कार्य को बाधित करने और नष्ट करने के लिए आगे बढ़ते हैं। परमेश्वर सत्य पर चाहे कितनी भी संगति क्यों न करे, वे फिर भी होश में नहीं आते। चाहे परमेश्वर का घर उनकी कितनी भी काट-छाँट करे, फिर भी वे सत्य को स्वीकार नहीं करते। वे परमेश्वर के प्रति बिल्कुल भी समर्पण नहीं करते, बल्कि चीजों को अपने तरीके से करने और अपनी मनमर्जी करने पर अड़े रहते हैं। नतीजतन, वे कलीसिया के कार्य में बाधा डालते हैं और उसे नष्ट कर देते हैं, कलीसिया के विभिन्न कार्यों की प्रगति को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश को बहुत अधिक नुकसान पहुँचाते हैं। यह बहुत बड़ा पाप है और ऐसे लोगों को परमेश्वर निश्चित रूप से दंड देगा” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग एक))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे लगा कि परमेश्वर का स्वभाव मनुष्य द्वारा नाराज किए जाने को बर्दाश्त नहीं करता। परमेश्वर ने लोगों के एक समूह को बचाने और प्राप्त करने में अपना सारा श्रमसाध्य प्रयास लगा दिया है। अगर हम अपने स्वयं के हितों को बनाए रखने के लिए अपना कर्तव्य करते हैं और इस तरह कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुँचाते हैं तो यह शैतान के सेवक के रूप में विनाश और विघटन के लिए काम करना है। यह बुराई करना और परमेश्वर का विरोध करना है। इस प्रकार के व्यक्ति को परमेश्वर द्वारा निंदित और दंडित किया जाएगा। मैंने सोचा, अपने कर्तव्य निर्वहन में मैंने क्या भूमिका निभाई? कलीसिया अगुआ के रूप में न सिर्फ मैं कलीसिया के कार्य की रक्षा करने में अग्रणी भूमिका निभाने में नाकाम रही, बल्कि मैंने प्रतिष्ठा और रुतबे की तलाश करने, प्रतिष्ठा और लाभ के लिए लोगों से लड़ने के लिए अपने कर्तव्य करने के मौके का फायदा उठाया। इसने कलीसिया का कार्य अस्त-व्यस्त कर दिया। मैं और चेन डैन कलीसिया का कार्य करने के लिए एक साथ भागीदार थीं। मुझे कलीसिया के सभी कार्यों की निगरानी और सुरक्षा करनी चाहिए थी, ताकि कलीसिया का काम सुचारू रूप से आगे बढ़े। ये मेरी भूमिका के कर्तव्य थे और एक जिम्मेदारी थी जिससे मैं पीछे नहीं हट सकती थी। हमने अपने काम की दक्षता में सुधार करने और बेहतर काम करने के लिए काम की जिम्मेदारी को विभाजित किया, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मेरी बहन की जिम्मेदारी वाले काम के लिए मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं थी : अगर कलीसिया के किसी भी काम में समस्या आती तो मैं अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकती थी। लेकिन मैं स्वार्थी और लालची थी। जब हमने अपने कामों को विभाजित किया तो मैंने अपनी बहन के साथ एक टीम के रूप में काम नहीं किया। मैंने अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा के लिए लोगों के कर्तव्यों को सिद्धांतों के विपरीत तरीके से व्यवस्थित किया। इसका नतीजा यह हुआ कि सिंचन की कमी के कारण नवागंतुक चले गए और कलीसिया के काम को बहुत नुकसान पहुँचा। इसके अलावा परमेश्वर के घर ने बार-बार अपेक्षा की कि सफाई कार्य जल्द से जल्द पूरा किया जाए, ताकि अविश्वासियों, बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को कलीसिया से बाहर निकाला जा सके। इस तरह परमेश्वर के चुने हुए लोग अच्छे कलीसियाई जीवन का आनंद ले सकते है और तेजी से जीवन प्रगति कर सकते हैं। लेकिन मैंने देखा कि सफाई कार्य का पालन या कार्यान्वयन नहीं किया जा रहा है, फिर भी मैं इसमें शामिल होने के लिए तैयार नहीं हुई। क्या इन कार्यों की प्रकृति बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को कलीसिया में बने रहने, बुराई करना और गड़बड़ी पैदा करना जारी रखने की अनुमति नहीं दे रही थी? मैंने जो विचार प्रकट किए और जो कुछ मैंने किया था, उस पर चिंतन करते हुए मुझे एहसास हुआ कि इनमें से कोई भी कलीसिया के कार्य की रक्षा करने या परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए नहीं था। यह सब परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह और परमेश्वर का प्रतिरोध था और इससे कलीसिया के कार्य में सिर्फ व्यवधान और गड़बड़ी आई। मैं कलीसिया के कार्य को बाधित करने और नष्ट करने में शैतान की भूमिका निभा रही थी। मैं परमेश्वर के विरोध में थी! परमेश्वर का स्वभाव मनुष्य द्वारा नाराज किए जाने को बर्दाश्त नहीं करता। अगर मैंने पश्चात्ताप नहीं किया और नहीं बदली तो आखिरकार मुझे परमेश्वर द्वारा निंदित और दंडित किया जाएगा। जब मैंने इस बारे में सोचा तो मुझे अपने किए पर डर लगा, और मैंने पश्चात्ताप में परमेश्वर से प्रार्थना की, “प्रिय परमेश्वर, अपने कर्तव्य करते हुए मैंने सिर्फ अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा की और कलीसिया के काम में बाधा डाली। इससे वाकई तुम्हें घिन्न और घृणा हुई। परमेश्वर, मैं पश्चात्ताप करने के लिए तैयार हूँ और चेन डैन के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग करने के लिए तैयार हूँ ताकि हम एकमत होकर अपने कर्तव्य अच्छे से कर सकें।”
बाद में मैंने परमेश्वर के और भी वचन पढ़े : “हमेशा अपने लिए कार्य मत कर, हमेशा अपने हितों की मत सोच, इंसान के हितों पर ध्यान मत दे, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा और हैसियत पर विचार मत कर। तुम्हें सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उन्हें अपनी प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुम्हें परमेश्वर के इरादों का ध्यान रखना चाहिए और इस पर चिंतन से शुरुआत करनी चाहिए कि तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन में अशुद्धियाँ रही हैं या नहीं, तुम वफादार रहे हो या नहीं, तुमने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं, और अपना सर्वस्व दिया है या नहीं, साथ ही तुम अपने कर्तव्य, और कलीसिया के कार्य के प्रति पूरे दिल से विचार करते रहे हो या नहीं। तुम्हें इन चीजों के बारे में अवश्य विचार करना चाहिए। अगर तुम इन पर बार-बार विचार करते हो और इन्हें समझ लेते हो, तो तुम्हारे लिए अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना आसान हो जाएगा। अगर तुम्हारे पास ज्यादा काबिलियत नहीं है, अगर तुम्हारा अनुभव उथला है, या अगर तुम अपने पेशेवर कार्य में दक्ष नहीं हो, तब तुम्हारे कार्य में कुछ गलतियाँ या कमियाँ हो सकती हैं, हो सकता है कि तुम्हें अच्छे परिणाम न मिलें—पर तब तुमने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया होगा। तुम अपनी स्वार्थपूर्ण इच्छाएँ या प्राथमिकताएँ पूरी नहीं करते। इसके बजाय, तुम लगातार कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करते हो। भले ही तुम्हें अपने कर्तव्य में अच्छे परिणाम प्राप्त न हों, फिर भी तुम्हारा दिल निष्कपट हो गया होगा; अगर इसके अलावा, इसके ऊपर से, तुम अपने कर्तव्य में आई समस्याओं को सुलझाने के लिए सत्य खोज सकते हो, तब तुम अपना कर्तव्य निर्वहन मानक स्तर का कर पाओगे और साथ ही, तुम सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर पाओगे। किसी के पास गवाही होने का यही अर्थ है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अभ्यास का मार्ग दिखाया। मैंने समझा कि कर्तव्य करने में किसी को सही इरादे रखने चाहिए, व्यक्तिगत हितों को त्यागना चाहिए, कलीसिया के काम और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए। सिर्फ इस तरह से अपना कर्तव्य निभाना ही सत्य का अभ्यास करना और गवाही देना है। परमेश्वर के घर में किसी भी मामले में कोई भी काम अकेले किसी एक व्यक्ति द्वारा पूरा नहीं किया जा सकता। भाई-बहनों को हमेशा एक-दूसरे की कमियों को पूरा करने, एक साथ मिलकर काम करने और काम अच्छी तरह से पूरा करने के लिए पवित्र आत्मा के काम को पाने की जरूरत होती है। मैं इतनी स्वार्थी और नीच नहीं रह सकती थी। मुझे अपनी बहन के साथ साझेदारी में काम करना चाहिए, चाहे हम दोनों में से कोई भी उस काम के लिए जिम्मेदार हो। सिर्फ इस तरह से काम करने से ही यह परमेश्वर के इरादों के अनुरूप होगा। इसलिए मैंने चेन डैन से खुलकर बात की, अपनी मनोदशा और खुद के बारे में अपनी समझ के बारे में संगति की। मैंने यह भी प्रस्ताव रखा कि भविष्य में हम दोनों की जिम्मेदारी के दायरे में जो भी काम होगा, हम दोनों मिलकर काम करेंगीं और अगर हमारे सामने कोई समस्या या मुश्किल आती है तो हम मिलकर उसका समाधान करने के लिए सत्य की खोज करेंगीं। चेन डैन खुशी-खुशी मान गई। बाद में मैंने और चेन डैन ने कलीसिया के काम की जरूरतों के हिसाब से कार्यकर्ताओं को उचित तरीके से व्यवस्थित किया। हमने दो बहनों का काम बदल दिया जो सिंचन करने में अच्छी थीं और उन्हें नवागंतुकों को सिंचन करने के लिए भेजा। इससे सिंचनकर्ताओं की कमी की समस्या दूर हो गई।
उसके बाद से मैंने और चेन डैन ने अपने काम बाँट लिए थे, लेकिन हम फिर भी एक टीम के रूप में काम करती थीं। हम दोनों की जिम्मेदारी वाला कोई भी काम होता, हम हमेशा उसके बारे में संगति करतीं और मिलकर उसका समाधान करतीं। जहाँ तक उन समस्याओं का सवाल है जिन्हें हम स्पष्ट नहीं देख पातीं, हम प्रार्थना करतीं और उन्हें सुलझाने के लिए प्रासंगिक सत्य खोजने की कोशिश करतीं। हालाँकि कभी-कभी मुझे अभी भी लगता है मेरे गलत इरादे खुद को प्रकट कर सकते हैं, मैं सचेत होकर परमेश्वर से प्रार्थना कर सकती हूँ और सत्य का अभ्यास कर सकती हूँ। एक रात मैं उस काम को करने की योजना बना रही थी जिसके लिए मैं जिम्मेदार थी, लेकिन अप्रत्याशित रूप से चेन डैन ने बताया कि सिंचन टीम की अगुआ की मनोदशा खराब है। वह नहीं जानती थी कि इसे कैसे सुलझाया जाए और चाहती थी कि मैं उसके साथ सभा में चलूँ ताकि संगति में मदद कर सकूँ और समस्या का समाधान कर सकूँ। मैंने मन ही मन सोचा, “अगर मैं तुम्हारे साथ सभा में जाऊँगी तो क्या मेरा काम विलंबित नहीं हो जाएगा? इतना ही नहीं, अगर मैं इस समस्या को सुलझाने में तुम्हारी मदद करूँगी तो तुम्हारे काम के नतीजे बेहतर होंगे और मेरा काम पिछड़ जाएगा। क्या तब दूसरे लोग तुम्हारी प्रशंसा नहीं करेंगे?” जब मैंने इस बारे में सोचा तो मुझे एहसास हुआ कि मेरी मनोदशा गलत है और मैंने जल्दी से अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना की। मैंने परमेश्वर के कुछ वचनों के बारे में सोचा जो मैंने पहले पढ़े थे : “हमेशा अपने लिए कार्य मत कर, हमेशा अपने हितों की मत सोच, इंसान के हितों पर ध्यान मत दे, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा और हैसियत पर विचार मत कर। तुम्हें सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उन्हें अपनी प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुम्हें परमेश्वर के इरादों का ध्यान रखना चाहिए” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। मैं तुरंत जाग गई। मुझे कलीसिया के काम को प्राथमिकता देनी चाहिए, व्यक्तिगत हितों को त्यागना चाहिए और अपना कर्तव्य अच्छे से पूरा करना चाहिए। फिर मैं जल्दी से अपनी बहन के साथ सभा में चली गई। सभा और संगति के माध्यम से हमने सिंचन टीम की अगुआ की मनोदशा सुलझाई और मुझे अपने दिल में शांति और सुकून मिला।