51. मैंने अपनी उलझन क्यों छिपाई

मियाओ मियाओ, चीन

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “ईमानदारी का अर्थ है अपना हृदय परमेश्वर को अर्पित करना; हर बात में उसके साथ सच्चाई से पेश आना; हर बात में उसके साथ खुलापन रखना, कभी तथ्यों को न छुपाना; अपने से ऊपर और नीचे वालों को कभी भी धोखा न देना, और मात्र परमेश्वर की चापलूसी करने के लिए चीजें न करना। संक्षेप में, ईमानदार होने का अर्थ है अपने कार्यों और शब्दों में शुद्धता रखना, न तो परमेश्वर को और न ही इंसान को धोखा देना(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तीन चेतावनियाँ)। “गैर-विश्वासियों के बीच यदि तुम खुलकर बोलते हो, सच बोलते हो और ईमानदार रहते हो, तो तुम्हें बदनाम किया जाएगा, तुम्हारी आलोचना की जाएगी और तुम्हें त्याग दिया जाएगा। इसलिए तुम सांसारिक चलन का पालन करते हो और शैतानी फलसफों के अनुसार जीते हो; तुम झूठ बोलने में ज्यादा-से-ज्यादा माहिर और अधिक से अधिक धोखेबाज होते जाते हो। तुम अपना मकसद पूरा करने और खुद को बचाने के लिए कपटपूर्ण साधनों का उपयोग करना भी सीख जाते हो। तुम शैतान की दुनिया में समृद्ध होते चले जाते हो और परिणामस्वरूप, तुम पाप में इतने गहरे गिरते जाते हो कि फिर उसमें से खुद को निकाल नहीं पाते। परमेश्वर के घर में चीजें ठीक इसके विपरीत होती हैं। तुम जितना अधिक झूठ बोलते और कपटपूर्ण खेल खेलते हो, परमेश्वर के चुने हुए लोग तुमसे उतना ही अधिक ऊब जाते हैं और तुम्हें त्याग देते हैं। यदि तुम पश्चात्ताप नहीं करते, अब भी शैतानी फलसफों और तर्क से चिपके रहते हो, अपना भेस बदलकर खुद को बढ़िया दिखाने के लिए चालें चलते हो और बड़ी-बड़ी साजिशें रचते हो, तो बहुत संभव है कि तुम्हारा खुलासा कर तुम्हें हटा दिया जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि परमेश्वर धोखेबाज लोगों से घृणा करता है। केवल ईमानदार लोग ही परमेश्वर के घर में समृद्ध हो सकते हैं, धोखेबाज लोगों को अंततः त्याग कर हटा दिया जाता है। यह सब परमेश्वर ने पूर्वनिर्धारित कर दिया है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, एक ईमानदार व्यक्ति होने का सबसे बुनियादी अभ्यास)। परमेश्वर के वचनों से मैं देखती हूँ कि परमेश्वर ईमानदार लोगों को पसंद करता है। ईमानदार लोग सरलता से और खुलकर बोलते हैं, परमेश्वर और दूसरों के प्रति ईमानदार होते हैं। वे वही कहते हैं जो उनके दिल में होता है, बिना किसी छद्मवेश या धोखे के। ऐसे लोग को ही परमेश्वर बचाना चाहता है। धोखेबाज लोगों के विचार बहुत जटिल होते हैं। उनकी कथनी और करनी में कोई पारदर्शिता नहीं होती। जब उन्हें कुछ समझ नहीं आता है तो वे पूछते या खोजते नहीं हैं। इसके बजाय वे लगातार खुद को छिपाते और छद्मवेश धारण करते हैं। ऐसे लोगों का स्वभाव धोखेबाज होता है और उन्हें आसानी से नहीं बचाया जा सकता। पीछे मुड़कर देखें तो मैं अक्सर अपना मान और रुतबा बचाने के लिए खुद को छिपा लेती थी। मैं एक धोखेबाज स्वभाव में जीती थी। जब मुझे अपने कर्तव्यों में कोई समस्या या मुश्किल आती, जिसे मैं समझ या सुलझा नहीं पाती तो मैं खुलकर खोजती नहीं थी। मैं न सिर्फ अंधकार, नकारात्मकता और दर्द में जीती, बल्कि मैं अपने कर्तव्यों में अप्रभावी भी थी। बाद में परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे ईमानदार व्यक्ति होने का महत्व समझ आया और मैं सचेत होकर ईमानदार व्यक्ति होने का अभ्यास करने लगी।

यह जून 2020 था और मैं कलीसिया में वीडियो बना रही थी। पहले तो मैंने सोचा कि चूँकि मैं अभी अभ्यास शुरू ही किया है, जब भी मुझे अपने काम में कुछ समझ नहीं आता तो मैं भाई-बहनों से पूछने और सीखने की पहल करती। मैं अपनी किसी भी मनोदशा पर खुलकर संगति भी करती और हर कोई धैर्यपूर्वक संगति करता और मेरी मदद करता और कुछ समय बाद सभी भाई-बहनों ने कहा कि मुझमें तेजी से सुधार हो रहा है। कार्य समीक्षा के दौरान पर्यवेक्षक ने कहा कि हालाँकि मैं छोटी हूँ, मेरी काबिलियत काफी अच्छी है, मैं अपने काम में तेजी से सीख रही हूँ और मैं विकसित किए जाने के लिए एक उम्मीदवार हूँ। उसने दूसरों को भी मेरी मदद और मार्गदर्शन करने का निर्देश दिया तो इस तरह मेरी प्रगति और भी तेज होगी। पर्यवेक्षक को मेरा इतना सम्मान करते देख मुझे बहुत खुशी हुई, लेकिन मुझे कुछ दबाव भी महसूस हुआ, “पर्यवेक्षक को मुझसे बहुत उम्मीदें हैं, इसलिए मुझे अब से कड़ी मेहनत करनी होगी, जल्दी से चीजों को समझने की कोशिश करनी होगी और स्वतंत्र रूप से वीडियो बनाने में सक्षम बनना होगा। मैं पहले की तरह बहुत सारी समस्याएँ उजागर नहीं कर सकती, नहीं तो भाई-बहन पक्का सोचेंगे कि मैं अक्षम हूँ और फिर पर्यवेक्षक मुझे विकसित करने के लिए उम्मीदवार नहीं मानेगी।” उसके बाद जब वीडियो बनाते समय मेरा सामना ऐसी समस्याओं से हुआ जो मुझे समझ नहीं आईं तो मुझे पूछने में झिझक हुई। मैंने सोचा, “अगर मैं सवाल पूछती रहूँगी तो क्या भाई-बहन हैरान होंगे कि कुछ महीनों तक अभ्यास करने के बाद भी मेरे पास अभी भी इतने सारे सवाल क्यों हैं? अगर पर्यवेक्षक को पता चल गया तो क्या वह मुझे नीची नजरों से देखेगी? क्या इससे दूसरों की नजरों में मेरी अच्छी काबिलियत वाली छवि को नुकसान नहीं पहुँचेगा? इसे भूल जाओ, मैं अब और नहीं पूछूँगी, मैं खुद ही शोध करूँगी। इस तरह मैं कम कमियाँ उजागर करूँगी।” इसलिए मैं खुद ही अध्ययन करने के लिए ट्यूटोरियल ढूँढ़ने लगी और समस्याएँ सुलझाने के लिए विभिन्न तरीके आजमाए। नतीजतन वीडियो बनाने में मेरी प्रगति धीमी हो गई। एक बार एक बहन ने देखा कि वीडियो बनाने में मेरी प्रगति थोड़ी धीमी है और पूछा कि क्या मुझे कोई मुश्किल आ रही है। सच तो यह था कि मैं वाकई कहना चाहती थी कि मुझे मुश्किलें आ रही हैं, ताकि मैं तुरंत समाधान पा सकूँ, बहुत सारा समय बचा सकूँ और चीजों को लंबा खींचने से बच सकूँ। लेकिन फिर मैंने सोचा, “मैंने इस समस्या के बारे में पहले भी पूछा है। अगर मैं फिर से पूछूँगी तो बहन क्या सोचेगी? क्या वह सोचेगी कि मुझमें काबिलियत की कमी है और मैं पहले सिखाई गई बातों को याद नहीं रख पाती हूँ? क्या वह सोचेगी कि मैं विकसित किए जाने के लायक नहीं हूँ? रहने दो, पर्यवेक्षक ने कहा था कि मुझमें अच्छी काबिलियत है और मैं जल्दी सीखती हूँ और मेरे बारे में उसकी अच्छी राय है, इसलिए मैं उसे यह नहीं दिखा सकती कि मैं कितनी अपर्याप्त हूँ।” इसलिए मैंने बहन से कहा, “फिलहाल कोई समस्या नहीं है, बस इतना है कि मैंने इस तरह की तकनीक का पहले ज्यादा इस्तेमाल नहीं किया है। अगर मैं कुछ और बार अभ्यास करूँगी तो मुझे इसकी आदत हो जाएगी।” मेरी बात सुनने के बाद उसने इसके बारे में और कुछ नहीं पूछा। इसी तरह अभी भी कुछ ऐसे क्षेत्र थे जहाँ मुझे नहीं पता था कि क्या करना है, लेकिन मैंने अपने भाई-बहनों से पूछने के बजाय खुद से अध्ययन करना और ट्यूटोरियल देखना पसंद किया। नतीजतन मेरा वीडियो निर्माण धीरे-धीरे आगे बढ़ा और मुझे बहुत अच्छे नतीजे नहीं मिल रहे थे।

बाद में एक बहन ने बेबाक कहा, “पहले मुझे लगा कि तुम खुली और ईमानदार हो। तुम अपनी किसी भी समस्या के बारे में खुलकर बात करती थी और सवाल पूछती थी। क्या बदल गया है? हम तुम्हारा दिल नहीं देख सकते और नहीं जानते कि तुम क्या सोच रही हो। हम देखते हैं कि तुम्हारा निर्माण कार्य धीमा है, लेकिन हम नहीं जानते कि तुम कहाँ फँस गई हो या तुम्हारी मदद कैसे की जाए। क्या तुमने इन दशाओं पर चिंतन किया है?” मैं अच्छी तरह से जानती थी कि बहन के शब्द परमेश्वर ने अनुमति से निकले हैं और वे मुझे आत्म-चिंतन करने की याद दिला रहे हैं लेकिन मुझे डर था कि अगर मैंने अपनी असली मनोदशा के बारे में बताया तो हर कोई मेरी असलियत जान जाएगा, इसलिए मैं दिखावा करती रही। यह स्थिति दो या तीन महीने तक चली और जब मेरी मनोदशा खराब होती गई तो मेरे कर्तव्य भी अप्रभावी हो गए और अंत में मुझे बर्खास्त कर दिया गया। जिस क्षण मैंने यह समाचार सुना, मुझे बहुत पीड़ा और व्यथा महसूस हुई। मुझे लगा कि मैं बहुत मूर्ख थी। मैंने उस हद तक खुद को छिपाए रखा था, कभी नहीं चाहा कि दूसरे मेरी कमियाँ देखें, लेकिन मुझे क्या हासिल हुआ? मैं अपने भाई-बहनों से दूर हो गई और वे मेरी असलियत नहीं देख पाए। और मैंने अपने कर्तव्यों में कोई प्रगति नहीं की और अंत में मुझे बर्खास्त भी कर दिया गया। जितना अधिक मैंने इसके बारे में सोचा, उतना ही मुझे अपने किए पर पछतावा हुआ और न चाहते हुए भी मेरे आँसू बहने लगे। मैंने खुद से पूछा, “यह साफ है कि ऐसी कई चीजें हैं जिन्हें मैं नहीं समझती हूँ या नहीं करना जानती हूँ तो मैंने सक्रियता से दूसरों से खोज क्यों नहीं की और उनसे क्यों नहीं सीखा? मेरी मनोदशा स्पष्ट रूप से अच्छी नहीं थी तो मैं क्यों नहीं खुलना चाहती थी?” अपनी खोज में मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश मिला : “लोग स्वयं भी सृजित प्राणी हैं। क्या सृजित प्राणी सर्वशक्तिमान हो सकते हैं? क्या वे पूर्णता और निष्कलंकता हासिल कर सकते हैं? क्या वे हर चीज में दक्षता हासिल कर सकते हैं, हर चीज समझ सकते हैं, हर चीज की असलियत देख सकते हैं, और हर चीज में सक्षम हो सकते हैं? वे ऐसा नहीं कर सकते। हालाँकि, मनुष्यों में भ्रष्ट स्वभाव और एक घातक कमजोरी है : जैसे ही लोग किसी कौशल या पेशे को सीख लेते हैं, वे यह महसूस करने लगते हैं कि वे सक्षम हो गये हैं, वे रुतबे वाले और योग्य लोग हैं, और वे पेशेवर हैं। चाहे वे कितने भी साधारण हों, वे सभी अपने-आपको किसी प्रसिद्ध या असाधारण व्यक्ति के रूप में पेश करना चाहते हैं, अपने-आपको किसी छोटी-मोटी मशहूर हस्ती में बदलना चाहते हैं, ताकि लोग उन्हें पूर्ण और निष्कलंक समझें, जिसमें एक भी दोष नहीं है; दूसरों की नजरों में वे प्रसिद्ध, शक्तिशाली, या कोई महान हस्ती बनना चाहते हैं, पराक्रमी, कुछ भी करने में सक्षम और ऐसे व्यक्ति बनना चाहते हैं, जिनके लिए कोई चीज ऐसी नहीं, जिसे वे न कर सकते हों। उन्हें लगता है कि अगर वे दूसरों की मदद माँगते हैं, तो वे असमर्थ, कमजोर और हीन दिखाई देंगे और लोग उन्हें नीची नजरों से देखेंगे। इस कारण से, वे हमेशा एक झूठा चेहरा बनाए रखना चाहते हैं। जब कुछ लोगों से कुछ करने के लिए कहा जाता है, तो वे कहते हैं कि उन्हें पता है कि इसे कैसे करना है, जबकि वे वास्तव में कुछ नहीं जानते होते। बाद में, वे चुपके-चुपके इसके बारे में जानने और यह सीखने की कोशिश करते हैं कि इसे कैसे किया जाए, लेकिन कई दिनों तक इसका अध्ययन करने के बाद भी वे नहीं समझ पाते कि इसे कैसे करें। यह पूछे जाने पर कि उनका काम कैसा चल रहा है, वे कहते हैं, ‘जल्दी ही, जल्दी ही!’ लेकिन अपने दिलों में वे सोच रहे होते हैं, ‘मैं अभी उस स्तर तक नहीं पहुँचा हूँ, मैं कुछ नहीं जानता, मुझे नहीं पता कि क्या करना है! मुझे अपना भंडा नहीं फूटने देना चाहिए, मुझे दिखावा करते रहना चाहिए, मैं लोगों को अपनी कमियाँ और अज्ञानता देखने नहीं दे सकता, मैं उन्हें अपना अनादर नहीं करने दे सकता!’ यह क्या समस्या है? यह हर कीमत पर इज्जत बचाने की कोशिश करने का एक जीवित नरक है। यह किस तरह का स्वभाव है? ऐसे लोगों के अहंकार की कोई सीमा नहीं होती, वे अपनी सारी समझ खो चुके हैं। वे हर किसी की तरह नहीं बनना चाहते, वे आम आदमी या सामान्य लोग नहीं बनना चाहते, बल्कि अतिमानव, असाधारण व्यक्ति या कोई दिग्गज बनना चाहते हैं। यह बहुत बड़ी समस्या है! जहाँ तक सामान्य मानवता के भीतर की कमजोरियों, कमियों, अज्ञानता, मूर्खता और समझ की कमी की बात है, वे इन सबको छिपा लेते हैं और दूसरे लोगों को देखने नहीं देते, और फिर खुद को छद्म वेश में छिपाए रहते हैं। कुछ ऐसे लोग होते हैं जो कुछ भी साफ तौर पर नहीं देख पाते, फिर भी अपने दिल में सब कुछ जानने का दम भरते हैं। जब तुम उन्हें इसकी व्याख्या करने के लिए कहते हो तो वे कुछ नहीं बता पाते। जब कोई दूसरा उस बात को समझा देता है तो वे दावा करते है कि वे यही बात कहने वाले थे, पर समय पर ऐसा नहीं कर पाए। वे एक छद्म रूप धरने और अच्छा दिखने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। तुम लोग क्या कहते हो, क्या ऐसे लोग कल्पना-लोक में नहीं रहते हैं? क्या वे सपने नहीं देख रहे हैं? वे नहीं जानते कि वे स्वयं क्या हैं, न ही वे सामान्य मानवता को जीने का तरीका जानते हैं। उन्होंने एक बार भी व्यावहारिक मनुष्यों की तरह काम नहीं किया है। यदि तुम कल्पना-लोक में रहकर दिन गुजारते हो, जैसे-तैसे काम करते रहते हो, यथार्थ में रहकर काम नहीं करते, हमेशा अपनी कल्पना के अनुसार जीते हो, तो यह परेशानी वाली बात है। तुम जीवन में जो मार्ग चुनते हो वह सही नहीं है। अगर तुम ऐसा करते हो, तो फिर चाहे तुम जैसे भी परमेश्वर में विश्वास करते हो, तुम सत्य को नहीं समझोगे, न ही तुम सत्य को हासिल करने में सक्षम होगे(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, पाँच शर्तें, जिन्हें परमेश्वर पर विश्वास के सही मार्ग पर चलने के लिए पूरा करना आवश्यक है)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए मुझे लगा कि मैं ठीक उसी मनोदशा में थी जिसे परमेश्वर ने उजागर किया है। मैं हमेशा श्रेष्ठ बनना चाहती थी, जैसे कि मैं महामानव हूँ, इसलिए जब भी मैं अपनी भ्रष्टता प्रकट करती या मेरे सामने ऐसी समस्याएँ आतीं, जिन्हें मैं समझ नहीं पाती तो मैं हमेशा खुद को छिपा लेती थी। ऐसे लोगों के लिए सत्य पाना मुश्किल है। जब मैंने पहली बार वीडियो बनाना शुरू किया था, उस पर विचार करूँ तो तब मुझे कुछ समझ नहीं आता था और कोई दबाव महसूस नहीं होता था, इसलिए मैं समस्याओं और मुश्किलों का सामना होने पर दूसरों से खोजने और उनसे सीखने के लिए तैयार थी। इस तरह अभ्यास करने से मुझे लगा कि मैंने बहुत कुछ हासिल किया है और तेजी से प्रगति की है। लेकिन बाद में जब मैंने पर्यवेक्षक को यह कहते हुए सुना कि मेरी काबिलियत अच्छी है और मैं संभावनाओं वाली ऐसी प्रतिभावान इंसान हूँ जिसे विकसित किया जाना चाहिए, मैंने अनजाने में खुद को कलीसिया के भीतर विकसित किए जाने वाले प्रमुख व्यक्तियों में शामिल कर लिया। मुझे लगा कि पर्यवेक्षक की मेरे बारे में अच्छी राय है और वह मुझे महत्व देती है, इसलिए मुझे अपनी छवि की रक्षा करने और बहुत अधिक कमियाँ उजागर न करने की जरूरत महसूस हुई, वरना लोग मेरी असलियत जान जाएँगे और मुझे नीची नजरों से देखेंगे। मैंने हमेशा दूसरों की नजरों में अपनी रुतबे और छवि की रक्षा की और जब भी मुझे वीडियो निर्माण में ऐसी समस्याएँ और मुश्किलें आईं, जिनका समाधान मैं नहीं जानती थी तो मेरी पूछने की हिम्मत नहीं हुई, क्योंकि मुझे डर था कि मेरी कमियों को उजागर करने से दूसरे लोग मेरे बारे में ऊँचा नहीं सोचेंगे या मेरी कद्र नहीं करेंगे। प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे की मेरी इच्छा बहुत प्रबल थी! मैं खुद को छिपाने की मनोदशा में रहती थी, नतीजतन कई महीनों तक वीडियो निर्माण में मेरी कोई प्रगति नहीं हुई और आखिरकार मैंने वीडियो बनाने का अवसर गँवा दिया। मैं कितनी मूर्ख थी! जब मैंने पहली बार वीडियो बनाने का अभ्यास किया था, उस समय को याद करूँ तो मेरे लिए कमियाँ और खामियाँ होना सामान्य बात थी और इसके अलावा मेरे लिए अपने दम पर काम सँभालना असंभव था, इसलिए मुझे अपने भाई-बहनों से और अधिक पूछने, सहयोग करने और उनसे अधिक सीखने की जरूरत थी। सिर्फ ऐसा करके ही मैं निरंतर प्रगति कर सकती थी। अगर मैं अपने आत्मसम्मान को अलग रख पाती और सक्रियता से अपने भाई-बहनों से सीखती तो मुझे अपने कर्तव्यों में लगातार अप्रभावी होने के कारण बर्खास्त नहीं किया जाता। इसका एहसास होने पर मुझे लगा कि यह बर्खास्तगी पूरी तरह से परमेश्वर की धार्मिकता के कारण है।

बाद में मैंने सोचा, “मैं हमेशा खुद को छिपाती क्यों हूँ?” बाद में मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश मिला, जिसने अपनी मनोदशा अधिक स्पष्टता से देखने में मेरी मदद की। परमेश्वर कहता है : “जब कोई व्यक्ति भाई-बहनों द्वारा अगुआ के रूप में चुना जाता है या परमेश्वर के घर द्वारा कोई निश्चित कार्य करने या कोई निश्चित कर्तव्य निभाने के लिए पदोन्नत किया जाता है, तो इसका यह मतलब नहीं कि उसका कोई विशेष रुतबा या पद है या वह जिन सत्यों को समझता है, वे अन्य लोगों की तुलना में अधिक गहरे और संख्या में अधिक हैं—तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि यह व्यक्ति परमेश्वर के प्रति समर्पण करने में सक्षम है और उसे धोखा नहीं देगा। निश्चय ही, इसका यह मतलब भी नहीं है कि ऐसे लोग परमेश्वर को जानते हैं और परमेश्वर का भय मानते हैं। वास्तव में उन्होंने इसमें से कुछ भी हासिल नहीं किया है। पदोन्नयन और संवर्धन सीधे मायने में केवल पदोन्नयन और संवर्धन ही है, और यह भाग्य में लिखे होने या परमेश्वर की अभिस्वीकृति पाने के समतुल्य नहीं है। उनकी पदोन्नति और विकास का सीधा-सा अर्थ है कि उन्हें उन्नत किया गया है, और वे विकसित किए जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। और इस विकसित किए जाने का अंतिम परिणाम इस बात पर निर्भर करता है कि क्या यह व्यक्ति सत्य का अनुसरण करता है और क्या वह सत्य के अनुसरण का रास्ता चुनने में सक्षम है। इस प्रकार, जब कलीसिया में किसी को अगुआ बनने के लिए पदोन्नत और विकसित किया जाता है, तो उसे सीधे अर्थ में पदोन्नत और विकसित किया जाता है; इसका यह मतलब नहीं कि वह पहले से ही अगुआ के रूप में मानक स्तर का है, या सक्षम अगुआ है, कि वह पहले से ही अगुआई का काम करने में सक्षम है, और वास्तविक कार्य कर सकता है—ऐसा नहीं है। ज्यादातर लोग इन चीजों को स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते, और अपनी कल्पनाओं के आधार पर वे इन पदोन्नत लोगों का सम्मान करते हैं, पर यह एक भूल है। जिन्हें पदोन्नत किया जाता है, उन्होंने चाहे कितने ही वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखा हो, क्या उनके पास वास्तव में सत्य वास्तविकता होती है? ऐसा जरूरी नहीं है। क्या वे परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाएँ लागू करने में सक्षम हैं? अनिवार्य रूप से नहीं। क्या उनमें जिम्मेदारी की भावना है? क्या वे निष्ठावान हैं? क्या वे समर्पण करने में सक्षम हैं? जब उनके सामने कोई समस्या आती है, तो क्या वे सत्य की खोज करने योग्य हैं? यह सब अज्ञात है। क्या इन लोगों के अंदर परमेश्वर का भय मानने वाले हृदय हैं? और परमेश्वर का भय मानने वाले उनके हृदय कितने विशाल हैं? क्या काम करते समय वे अपनी इच्छा का पालन करना टाल पाते हैं? क्या वे परमेश्वर की खोज करने में समर्थ हैं? अगुआई का कार्य करने के दौरान क्या वे अक्सर परमेश्वर के इरादों की तलाश में परमेश्वर के सामने आने में सक्षम हैं? क्या वे लोगों के सत्य वास्तविकता में प्रवेश की अगुआई करने में सक्षम हैं? निश्चय ही वे ऐसी चीजें कर पाने में अक्षम होते हैं। उन्हें प्रशिक्षण नहीं मिला है और उनके पास पर्याप्त अनुभव भी नहीं है, इसलिए वे ये चीजें नहीं कर पाते। इसीलिए, किसी को पदोन्नत और विकसित करने का यह मतलब नहीं कि वह पहले से ही सत्य को समझता है, और न ही इसका अर्थ यह है कि वह पहले से ही अपना कर्तव्य एक मानक तरीके से करने में सक्षम है। तो किसी को पदोन्नत और विकसित करने का क्या उद्देश्य और मायने हैं? वह यह है कि इस व्यक्ति को, एक व्यक्ति के रूप में पदोन्नत किया गया है, ताकि वह अभ्यास कर सके, और वह विशेष रूप से सिंचित और प्रशिक्षित हो सके, जिससे वह इस योग्य हो जाए कि सत्य सिद्धांतों, और विभिन्न कामों को करने के सिद्धांतों, और विभिन्न कार्य करने और विभिन्न समस्याओं को हल करने के सिद्धांतों, साधनों और तरीकों को समझ सके, साथ ही यह भी कि जब वह विभिन्न प्रकार के परिवेशों और लोगों का सामना करे, तो परमेश्वर के इरादों के अनुसार और उस रूप में, जिससे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा हो सके, उन्हें सँभालने और उनके साथ निपटने का तरीका सीख सके(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (5))। पहले मैं हमेशा सोचती थी कि चूँकि मैं कलीसिया में पदोन्नत और विकसित की गई एक व्यक्ति हूँ, मैं निश्चित रूप से दूसरों की तुलना में बेहतर और अधिक सक्षम हूँ और मुझे सब कुछ अच्छे से करना है और बहुत अधिक गलतियाँ नहीं करनी हैं ताकि मैं दिखा सकूँ कि मैं बाकी सभी से अलग हूँ। खासकर जब मैंने अपने आस-पास के भाई-बहनों को देखा जो अपने कौशल और कार्यों में अच्छे थे और उनके द्वारा बनाए गए वीडियो उच्च गुणवत्ता वाले थे और कुशलता से बनाए गए थे, मुझे बहुत दबाव महसूस हुआ और मैं हमेशा उनके स्तर तक पहुँचने या उनसे आगे निकलने का प्रयास करती थी ताकि मैं दिखा सकूँ कि मेरी काबिलियत अच्छी है और मैं विकसित किए जाने लायक हूँ। इसलिए जब मुझे ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ा जो मुझे समझ में नहीं आईं तो मैं खुद को छिपाती और छद्मवेश धारण करती रही, डरती रही कि मेरी कमियाँ भाई-बहनों को दिख जाएँगी और मैं “अच्छी काबिलियत” वाली अपनी छवि कायम नहीं रख पाऊँगी। सच तो यह है कि पर्यवेक्षक ने मेरे लिए वीडियो बनाने की व्यवस्था सिर्फ इसलिए की क्योंकि वीडियो निर्माण में मेरी कुछ खूबियाँ थीं। इसका मतलब यह नहीं था कि मैं दूसरों से बेहतर हूँ या कि मैंने इस काम के लिए जरूरी कौशल पर महारत हासिल कर ली है। लेकिन मैं अपनी कमियों का सामना नहीं कर सकी और खुद को ऊँचे पायदान पर रख दिया। यह पदोन्नति और विकसित किए जाने के प्रति मेरी गलतफहमी थी और यह मेरी आत्म-जागरूकता की कमी का भी संकेत था। अब मुझे समझ आया कि पदोन्नति कोई पूंजी नहीं है, न ही यह साबित करती है कि मैं कोई कर्तव्य निभाने में सक्षम हूँ और मुझे पता था कि मैं इस भ्रामक दृष्टिकोण के आधार पर खुद को छिपाती नहीं रह सकती। अगर मैं कुछ कर सकती हूँ तो मुझे कहना चाहिए कि मैं कर सकती हूँ। अगर मैं नहीं कर सकती हूँ तो मुझे कहना चाहिए कि मैं नहीं कर सकती। मुझे भाई-बहनों के सामने खुलकर बात करने और ईमानदार इंसान होने का अभ्यास करने की जरूरत है। यही परमेश्वर के इरादों के साथ मेल खाता है। उसके बाद मैंने भाई-बहनों के सामने पिछले कुछ महीनों में अपनी मनोदशा के बारे में खुलकर बात की और बात करने के बाद मुझे वाकई राहत और मुक्ति मिली।

बाद में अगुआ ने मेरे लिए डिजाइन का काम करने की व्यवस्था की। पहले तो मैं डिजाइन कार्य के सिद्धांत नहीं समझ पाई और मैंने जो चित्र बनाए, उनमें कई समस्याएँ थीं। मैं अपने डिजाइन कार्य में आने वाली समस्याओं और मुश्किलों को सबके साथ मिलकर सुलझाने के लिए सामने रखना चाहती थी। इस बिंदु पर एक बहन ने सभी से कहा कि मैंने पहले कलीसिया में वीडियो बनाए हैं, मेरी मानसिक काबिलियत अच्छी है और मैं जल्दी सीखती हूँ और उसके ऐसा कहने के बाद सभी भाई-बहन मेरी ओर देखने लगे। उसकी बातों का मतलब था कि इतनी कम उम्र में वीडियो बनाना प्रभावशाली है। मेरा चेहरा तमतमाने लगा, क्योंकि मैं ही एकमात्र इंसान थी जो जानती थी कि मुझे पहले सिर्फ इसलिए बर्खास्त किया गया था क्योंकि मैंने वीडियो निर्माण में ज्यादा प्रगति नहीं की थी। लेकिन अब सभी को लगा कि मैं वीडियो बना सकती हूँ और मुझमें क्षमता है और वे मेरे बारे में ऊँचा सोचते हैं। अनजाने में मेरा स्वभाव तब फिर से प्रकट होने लगा जब मैंने सोचा, “मैं जो प्रश्न पूछना चाहती हूँ, वे शायद उनके लिए सरल हैं, अगर मैं उन्हें सामने रखूँगी तो क्या वे मुझे नीची नजर से देखेंगे? शायद मुझे उन्हें खुद ही सुलझाना चाहिए।” मन में यह बात आने पर मैंने कोई सवाल नहीं पूछा। बाद में मुझे बहुत पछतावा हुआ, मैंने सोचा, “मैंने फिर से खुद को क्यों छिपाया और छद्मवेश धारण किया? इसके पीछे असली कारण क्या है?” अपनी खोज में मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “जब लोग हमेशा मुखौटा लगाए रहते हैं, हमेशा खुद को अच्छा दिखाते हैं, हमेशा खास होने का ढोंग करते हैं जिससे दूसरे उनके बारे में अच्छी राय रखें, और अपने दोष या कमियाँ नहीं देख पाते, जब वे लोगों के सामने हमेशा अपना सर्वोत्तम पक्ष प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं, तो यह किस प्रकार का स्वभाव है? यह अहंकार है, कपट है, पाखंड है, यह शैतान का स्वभाव है, यह एक दुष्ट स्वभाव है। शैतानी शासन के सदस्यों को लें : वे अंधेरे में कितना भी लड़ें-झगड़ें या हत्या तक कर दें, किसी को भी उनकी शिकायत करने या उन्‍हें उजागर करने की अनुमति नहीं होती। वे डरते हैं कि लोग उनका राक्षसी चेहरा देख लेंगे, और वे इसे छिपाने का हर संभव प्रयास करते हैं। सार्वजनिक रूप से वे यह कहते हुए खुद को पाक-साफ दिखाने की पूरी कोशिश करते हैं कि वे लोगों से कितना प्यार करते हैं, वे कितने महान, गौरवशाली और अमोघ हैं। यह शैतान की प्रकृति है। शैतान की प्रकृति की सबसे प्रमुख विशेषता धोखाधड़ी और छल है। और इस धोखाधड़ी और छल का उद्देश्य क्या होता है? लोगों की आँखों में धूल झोंकना, लोगों को अपना सार और असली रंग न देखने देना, और इस तरह अपने शासन को दीर्घकालिक बनाने का उद्देश्य हासिल करना। साधारण लोगों में ऐसी शक्ति और हैसियत की कमी हो सकती है, लेकिन वे भी चाहते हैं कि लोग उनके पक्ष में राय रखें और उन्हें खूब सम्मान की दृष्टि से देखें और अपने दिल में उन्हें ऊँचे स्थान पर रखें। यह भ्रष्ट स्वभाव होता है, और अगर लोग सत्य नहीं समझते, तो वे इसे पहचानने में असमर्थ रहते हैं। ... गलतियाँ करना या छद्मवेश धारण करना : इनमें से कौन-सी चीज स्वभाव से संबंधित है? छद्मवेश धारण करना स्वभाव का मामला है, इसमें अहंकारी स्वभाव, दुष्टता और धूर्तता शामिल होती है; परमेश्वर इससे विशेष रूप से घृणा करता है। वास्तव में, जब तुम छद्मवेश धारण करते हो, तो हर कोई समझता है कि क्या हो रहा है, लेकिन तुम्हें लगता है कि दूसरे इसे नहीं देखते, और तुम अपनी इज्जत बचाने और इस प्रयास में कि दूसरे सोचें कि तुमने कुछ गलत नहीं किया, बहस करने और खुद को सही ठहराने की पूरी कोशिश करते हो। क्या यह बेवकूफी नहीं है? दूसरे इस बारे में क्या सोचते हैं? वे कैसा महसूस करते हैं? ऊब और घृणा। यदि कोई गलती करने के बाद तुम उसे सही तरह से ले सको, और अन्य सभी को उसके बारे में बात करने दे सको, उस पर टिप्पणी और विचार करने दे सको, और उसके बारे में खुलकर बात कर सको और उसका गहन-विश्लेषण कर सको, तो तुम्हारे बारे में सभी की राय क्या होगी? वे कहेंगे कि तुम एक ईमानदार व्यक्ति हो, क्योंकि तुम्हारा दिल परमेश्वर के प्रति खुला है। तुम्हारे कार्यकलापों और व्यवहार के माध्यम से वे तुम्हारे दिल को देख पाएँगे। लेकिन अगर तुम खुद को छिपाने और हर किसी को धोखा देने की कोशिश करते हो, तो लोग तुम्हें तुच्छ समझेंगे और कहेंगे कि तुम मूर्ख और नासमझ व्यक्ति हो। यदि तुम ढोंग करने या खुद को सही ठहराने की कोशिश न करो, यदि तुम अपनी गलतियाँ स्वीकार सको, तो सभी लोग कहेंगे कि तुम ईमानदार और बुद्धिमान हो। और तुम्हें बुद्धिमान क्या चीज बनाती है? सब लोग गलतियाँ करते हैं। सबमें दोष और कमजोरियाँ होती हैं। और वास्तव में, सभी में वही भ्रष्ट स्वभाव होता है। अपने आप को दूसरों से अधिक महान, परिपूर्ण और दयालु मत समझो; यह एकदम अनुचित है। जब तुम लोगों के भ्रष्ट स्वभाव और सार, और उनकी भ्रष्टता के असली चेहरे को पहचान जाते हो, तब तुम अपनी गलतियाँ छिपाने की कोशिश नहीं करते, न ही तुम दूसरों की गलतियों के कारण उनके बारे में गलत धारणा बनाते हो—तुम दोनों का सही ढंग से सामना करते हो। तभी तुम समझदार बनोगे और मूर्खतापूर्ण काम नहीं करोगे, और यह बात तुम्हें बुद्धिमान बना देगी। जो लोग बुद्धिमान नहीं हैं, वे मूर्ख होते हैं, और वे हमेशा पर्दे के पीछे चोरी-छिपे अपनी छोटी-छोटी गलतियों पर देर तक बात किया करते हैं। यह देखना घृणास्‍पद है। वास्तव में, तुम जो कुछ भी करते हो, वह दूसरों पर तुरंत जाहिर हो जाता है, फिर भी तुम खुल्लम-खुल्ला वह करते रहते हो। लोगों को यह मसखरों जैसा प्रदर्शन लगता है। क्या यह मूर्खतापूर्ण नहीं है? यह सच में मूर्खतापूर्ण ही है। मूर्ख लोगों में कोई अक्ल नहीं होती। वे कितने भी उपदेश सुन लें, फिर भी उन्हें न तो सत्य समझ में आता है, न ही वे चीजों की असलियत देख पाते हैं। वे अपने हवाई घोड़े से कभी नीचे नहीं उतरते और सोचते हैं कि वे बाकी सबसे अलग और अधिक सम्माननीय हैं; यह अहंकार और आत्मतुष्टता है, यह मूर्खता है। मूर्खों में आध्यात्मिक समझ नहीं होती, है न? जिन मामलों में तुम मूर्ख और नासमझ होते हो, वे ऐसे मामले होते हैं जिनमें तुम्हें कोई आध्यात्मिक समझ नहीं होती, और तुम आसानी से सत्य को नहीं समझ सकते। मामले की सच्‍चाई यह है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, व्यक्ति के आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत)। परमेश्वर के वचनों से मुझे समझ आया कि मैं अनजाने में ही खुद को छिपाती और छद्मवेश धारण करती रही, क्योंकि प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे की मेरी इच्छा बहुत प्रबल है और मेरा स्वभाव वाकई अहंकारी है। चाहे मैं कहीं भी जाती या अपना कर्तव्य निभाती, मैं हमेशा खुद को स्थापित करना चाहती और चाहती कि दूसरे मेरे बारे में अच्छा सोचें और मेरे बारे में अच्छी राय बनाएँ, इसलिए मैं अपनी कमियाँ छिपाने और लोगों के दिलों में अच्छी छवि कायम रखने के लिए कई तरह की तरकीबें अपनाती। जब मैं वीडियो बना रही थी उस समय के बारे में सोचूँ तो मैं खुद को छिपाती थी और खोजने के लिए तैयार नहीं थी, इसलिए मैंने अपना कर्तव्य ठीक से नहीं किया और आखिरकार मुझे बर्खास्त कर दिया गया। इस बार जब मैंने किसी को यह कहते सुना कि मुझमें अच्छी काबिलियत और क्षमता है और वे मेरे बारे में बहुत अच्छा सोचते हैं तो मैं खुद को फिर से ऊँचे पायदान पर रखने से नहीं रोक पाई और फिर से छद्मवेश धारण करना चाहती थी। अगर मैं इसी तरह चलती रही तो मैं अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभा पाऊँगी या कोई प्रगति नहीं कर पाऊँगी। इसके बारे में सोचूँ तो मैं वाकई बहुत कुछ नहीं समझती हूँ और कई क्षेत्रों में मुझमें बहुत कमी है, लेकिन फिर भी मैंने दूसरों को मेरे बारे में ऊँची राय बनाने और भाई-बहनों के दिलों में अपने रुतबे और छवि की रक्षा करने के लिए दिखावा किया। मैं वाकई बहुत पाखंडी और धोखेबाज थी! मैं सिर्फ एक सृजित प्राणी हूँ, इसलिए मुझे अपनी जगह पर रहना चाहिए और अपनी उचित स्थिति में खड़े होना चाहिए और चाहे मेरा कौशल स्तर कुछ भी हो या मुझमें क्या कमी है, मुझे इसके बारे में खुलना चाहिए, अपनी कमियों की भरपाई करने के लिए भाई-बहनों की मदद लेनी चाहिए और उनके साथ सामंजस्यपूर्ण सहयोग से काम करना चाहिए। मेरी पास यही विवेक होना चाहिए और इसी तरह मुझे सक्रियता से अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना चाहिए और कलीसिया के काम की रक्षा करनी चाहिए। लेकिन जब मैं स्पष्ट रूप से न कुछ जानती थी, न कर सकती थी, तब भी मैंने ऐसे दिखाया जैसे मुझे सब आता हो। मैं बहुत घमंडी, शर्मनाक और पाखंडी थी और मुझमें कोई आत्म-जागरूकता नहीं थी! मैंने यहूदी धर्म में फरीसियों के बारे में सोचा। वे भक्त प्रतीत होते थे, यहाँ तक कि चौराहे पर प्रार्थना भी करते थे, लेकिन वे दूसरों को दिखाने के लिए, लोगों को गुमराह करने और उनके दिलों को फँसाने के लिए ऐसा करते थे। वे परमेश्वर में विश्वास करते थे, लेकिन उसका प्रतिरोध करते थे और परमेश्वर द्वारा उन्हें निंदित और शापित किया गया। मैं भी वैसी ही थी और फरीसियों के जैसे ही मार्ग पर चल रही थी। अगर मैं पश्चात्ताप नहीं करती और नहीं बदलती तो मैं बहुत खतरे में पड़ जाती और देर-सवेर मुझे भी परमेश्वर द्वारा बेनकाब कर निकाल दिया जाता। इसका एहसास होने पर मुझे थोड़ा डर लगा और मैं जल्दी से अपनी मनोदशा सुधारना चाहती थी और इस तरह से आगे नहीं बढ़ना चाहती थी।

अपनी भक्ति के दौरान मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “कोई भी समस्या पैदा होने पर, चाहे वह कैसी भी हो, तुम्हें सत्य की खोज करनी चाहिए, और तुम्हें किसी भी तरीके से छद्म व्यवहार नहीं करना चाहिए या दूसरों के सामने नकली चेहरा नहीं लगाना चाहिए। तुम्हारी कमियाँ हों, खामियाँ हों, गलतियाँ हों, तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव हों—तुम्हें उनके बारे में कुछ छिपाना नहीं चाहिए और उन सभी के बारे में संगति करनी चाहिए। उन्हें अपने अंदर न रखो। अपनी बात खुलकर कैसे रखें, यह सीखना जीवन-प्रवेश करने की दिशा में सबसे पहला कदम है और यही वह पहली बाधा है जिसे पार करना सबसे मुश्किल है। एक बार तुमने इसे पार कर लिया तो सत्य में प्रवेश करना आसान हो जाता है। यह कदम उठाने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि तुम अपना हृदय खोल रहे हो और वह सब कुछ दिखा रहे हो जो तुम्हारे पास है, अच्छा या बुरा, सकारात्मक या नकारात्मक; दूसरों और परमेश्वर के देखने के लिए खुद को खोलना; परमेश्वर से कुछ न छिपाना, कुछ गुप्त न रखना, कोई स्वांग न करना, धोखे और चालबाजी से मुक्त रहना, और इसी तरह दूसरे लोगों के साथ खुला और ईमानदार रहना। इस तरह, तुम प्रकाश में रहते हो, और न सिर्फ परमेश्वर तुम्हारी जाँच करेगा बल्कि अन्य लोग यह देख पाएँगे कि तुम सिद्धांत से और एक हद तक पारदर्शिता से काम करते हो। तुम्हें अपनी प्रतिष्ठा, छवि और हैसियत की रक्षा करने के लिए किसी भी तरीके का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं है, न ही तुम्हें अपनी गलतियाँ ढकने या छिपाने की आवश्यकता है। तुम्हें इन बेकार के प्रयासों में लगने की आवश्यकता नहीं है। यदि तुम इन चीजों को छोड़ पाओ, तो तुम बहुत आराम से रहोगे, तुम बिना बाधाओं या पीड़ा के जियोगे, और पूरी तरह से प्रकाश में जियोगे(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अभ्यास का मार्ग दिया, जो यह है कि जब मेरा सामना ऐसी चीजों से होता है जिन्हें मैं नहीं समझती या नहीं कर सकती तो मुझे तुरंत बोलना चाहिए और परमेश्वर या अन्य लोगों से कुछ भी नहीं छिपाना चाहिए, बल्कि खुला और ईमानदार होना चाहिए। इस तरह मुझे थकान नहीं होगी और पवित्र आत्मा का कार्य पाना मेरे लिए आसान होगा। परमेश्वर ईमानदार लोगों को पसंद करता है और समस्याएँ या कमियाँ होना कोई ऐसी चीज नहीं है जिससे डरना चाहिए। कुंजी यह है कि हम अपनी कमियों और अपर्याप्तताओं का सही तरीके से सामना करें और सरल रहें, खुले रहें और सक्रियता से खोज करें। यह ईमानदार रवैया है और यह परमेश्वर को प्रसन्न करता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे मुझे मेरी गलत मनोदशा से बाहर निकालने, सरल और खुला ईमानदार इंसान बनने के लिए मेरा मार्गदर्शन करने का कहा। बाद में मैंने तस्वीरें बनाते समय आने वाली समस्याओं और मुश्किलों को सामने रखा और भाई-बहनों से पूछा। सभी के संवाद के माध्यम से मुझे एक मार्ग मिला और मुझे पता था कि क्या करना है और मेरा दिल बहुत अधिक स्वतंत्र और सहज हो गया।

इस अनुभव के माध्यम से मैंने समझा कि प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए खुद को छिपाने से सिर्फ दर्द ही मिलता है। इससे न केवल मुझे अपने कर्तव्यों में कुछ भी हासिल नहीं हो पाता और जीवन में कोई प्रगति नहीं होती, बल्कि यह मुझे मेरे भाई-बहनों से भी दूर कर देता है। इससे मुझे कोई लाभ नहीं है। सिर्फ एक सृजित प्राणी के स्थान पर खड़े होकर और दूसरों के साथ खुले और ईमानदार रहकर, अपने मन की बात कहकर और खुद को छिपाने या धोखेबाज न बनने से मैं सहज और स्वतंत्र रह सकती हूँ।

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