6. थ्री सेल्फ-चर्च टीचर की पसंद

झाओ यान, चीन

मैं 1987 में अपनी माँ के साथ प्रभु यीशु में विश्वास करने लगी। मैं जल्द ही मंडली में शामिल हो गई और चाहे मैं काम में कितनी भी व्यस्त क्यों न रहूँ, मैं सभाओं में जाती रही। उपयाजक ने देखा कि मैं कितनी अच्छी तरह से अनुसरण करती हूँ और उसने मुझे रविवारीय स्कूल में पढ़ाने के लिए विकसित किया और इसलिए मैंने खुद को खपाया और प्रभु के लिए और भी कड़ी मेहनत की। साल 1995 आते-आते मैंने देखा कि सभाओं में आने वाले विश्वासियों की संख्या धीरे-धीरे कम हो रही है। मेरे सहकर्मियों के बीच भी ईर्ष्या और कलह थी और धर्मोपदेश बासी और नीरस हो गए। मुझे चिंता हुई और मैं मंडली की अपनी बहनों के साथ दूसरी कलीसियाओं में खोज करने चली गई। एक एल्डर ने कहा, “प्रभु जल्द ही वापस आ रहा है, हमें सतर्कता से प्रतीक्षा करनी होगी।” एक अन्य कलीसिया के दूसरे पादरी ने भी कहा, “प्रभु जल्द ही आ रहा है, खुद को खाली करो और अपना बर्तन तैयार करो और प्रभु के सामने पाप कबूल करो और पश्चात्ताप करो।” उनके जवाबों ने मुझे निराश कर दिया। मैंने देखा कि कलीसियाएँ उजाड़ पड़ी हैं, प्रचारकों के पास प्रचार करने के लिए कुछ नहीं है और विश्वासियों की आस्था ठंडी पड़ चुकी है, इसलिए मैं धर्मशास्त्र का अध्ययन करने चली गई और मेरी योजना आखिरकार वापस लौटने, भेड़ों की रखवाली करने और कलीसिया को पुनर्जीवित करने की थी। तीन साल बाद मैं धर्मशास्त्र पाठ्यक्रम में स्नातक कर कलीसिया में लौट आई और एक शिक्षिका बन गई, मैं कलीसिया में नई ऊर्जा का संचार करने की महत्वाकांक्षा और उत्सुकता से भरी हुई थी। मैं हर जगह प्रचार करने लगी। एक बार एक पादरी ने मुझे एक बड़ी कलीसिया में प्रचार करने के लिए आमंत्रित किया और एक हजार से अधिक लोग सेवा में शामिल हुए। एनेक्सी में सीसीटीवी कनेक्शन था, जिससे हर कोई स्क्रीन पर मेरा धर्मोपदेश देख रहा था। मुझे बहुत खुशी हुई। भाई-बहन गर्मजोशी से मुझे टीचर झाओ कह रहे थे और अपनी शंकाएँ लेकर मुझे घेर रहे थे। मेरा दिल यह सोचकर आनंद से भर गया, “एक टीचर होना एक साधारण भाई या बहन होने से अलग है। कलीसिया न सिर्फ मुझे वेतन देती है, बल्कि मैं जहाँ भी जाती हूँ, लोग मेरा आदर करते हैं और मुस्कुराते हुए मेरा स्वागत करते हैं। जब मैं प्रचार करने जाती हूँ तो कलीसिया मेरी यात्रा का खर्च भी उठाती है। पादरी बनने से पहले ही मेरे साथ इतना अच्छा व्यवहार होता है, इसलिए अगर मैं पादरी बन गई और बड़ी कलीसियाओं में उपदेश देती हूँ तो भाई-बहन मुझे और भी ज्यादा सम्मान देंगे और मेरी आराधना करेंगे।” जल्द ही मुझे स्थानीय थ्री-सेल्फ पेट्रियॉटिक मूवमेंट कमेटी का उपाध्यक्ष चुन लिया गया और मैंने मन ही मन सोचा, “ऐसा लगता है कि मेरा अनुसरण और प्रचार बेहतर है। अगर मुझे भविष्य में पादरी बनाया जाता है तो मेरी व्यवस्था का क्षेत्र विस्तृत होगा और ज्यादा लोग मुझे जानेंगे, और मैं जहाँ भी जाऊँगी, मेरा सम्मान और प्रशंसा होगी, हर कोई मुझे प्रसिद्ध पादरी झाओ के रूप में जानेगा।” लेकिन कुछ समय बाद मैंने अपने धर्मशास्त्र पाठ्यक्रम में सीखा अधिकांश सैद्धांतिक ज्ञान पढ़ाया और प्रत्येक धर्मोपदेश बस उन्हीं पुराने रूखे और अरुचिकर विषयों का चक्र बन गया। मैं धर्मोपदेश तैयार करने के लिए विभिन्न सामग्रियों और किताबों को छान मारने लगी, यहाँ तक कि अपने धर्मशास्त्र पाठ्यक्रम से कक्षा नोट्स भी खँगाले, लेकिन यह सब बेकार था। मैंने देखा कि कलीसिया में लगातार वीरानी छाई हुई है, मेरे धर्मोपदेशों में आने वाले लोगों की संख्या कम होती जा रही है और सभाओं में शामिल होने वाले कुछ लोग अपनी कुर्सियों पर सो जाते हैं। मैं काफी उलझन में थी, मन ही मन सोच रही थी, “मैं कलीसिया को पुनर्जीवित करने और भाई-बहनों का साथ देने में प्रभु के लिए सक्रियता से काम कर रही हूँ तो कलीसिया और भी वीरान क्यों हो गई है?”

सितंबर 1999 में मैं अपने पिता से मिलने दूसरे इलाके में गई। मेरी छोटी बहन सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार सुनाने के लिए एक बहन को लेकर मेरे पास आई। मुझे लगा कि यह बहन एक साधारण विश्वासी है और बाइबल को मुझसे कम समझती है और मुझे लगा कि उसे गुमराह किया गया है, इसलिए मैंने उसकी बात नहीं सुनी। बाद में मैंने सुना कि एक प्रचारक जिसे मैं जानती थी, वह प्रभु के लिए काम करने वाले 120 लोगों को सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास दिलाने के लिए लाया था और एक गाँव में एक सभा स्थल से लगभग 100 लोगों ने भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकारा था। इन खबरों ने मुझे वाकई चौंका दिया और मैंने सोचा, “अगर एक व्यक्ति भ्रमित है और सच्चा मार्ग नहीं समझता है तो वह गुमराह हो सकता है, लेकिन इतने सारे लोग जो अपने अनुसरण में गंभीर हैं, उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार कर लिया है—क्या वे वाकई गुमराह हो सकते हैं? ऐसा नहीं हो सकता! मैं जिस प्रचारक को जानती हूँ, वह बाइबल में पारंगत है और भेद पहचानता है, लेकिन वह इतने सारे सहकर्मियों के साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने लगा है। कहीं वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखकर सही तो नहीं कर रहे हैं?” मैं उलझन में थी इसलिए मैं अक्सर प्रभु से प्रार्थना करती, “प्रभु, इतने सारे लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास क्यों करने लगे हैं? ये सब अच्छी भेड़ें और अगुआ बहुत लगन से अनुसरण करते हैं और बाइबल में पारंगत हैं तो वे सभी सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास कैसे कर सकते हैं? सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया क्यों फल-फूल रही है जबकि हमारी कलीसिया इतनी वीरान होती जा रही है? क्या ऐसा हो सकता है कि तुम वाकई वापस आ गए हो? हे प्रभु, मैं बहुत उलझन में हूँ। मेरा मार्गदर्शन करो।” अप्रैल 2000 में मैं अपनी छोटी बहन के घर गई और उसने एक बार फिर मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार सुनाया। उसने परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों के बारे में संगति की : व्यवस्था का युग, अनुग्रह का युग और राज्य का युग, ये सभी एक परमेश्वर द्वारा चलाए गए। व्यवस्था के युग में परमेश्वर को यहोवा कहा जाता था और उसने व्यवस्थाएँ जारी कीं और लोगों को उनके जीवन में मार्गदर्शन दिया; अनुग्रह के युग में परमेश्वर को यीशु कहा गया, जिसने छुटकारे का कार्य किया; राज्य के युग में परमेश्वर का कार्य लोगों को पूरी तरह से शुद्ध करने के लिए अपने वचन व्यक्त करना है, मानव पाप की जड़ को सुलझाना है और परमेश्वर को सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहा जाता है। परमेश्वर ने हर युग में अलग कार्य किया है, हर बार एक अलग नाम के तहत। कार्य के प्रत्येक चरण का प्रभाव पाने के बाद परमेश्वर कार्य का अगला चरण शुरू करता है, जिसमें प्रत्येक चरण पिछले का अनुसरण करता है और गहरा होता जाता है, क्योंकि प्रत्येक खंड अगले से जुड़ता है, जब तक कि संपूर्ण युग आखिरकार समाप्त नहीं हो जाता और परमेश्वर लोगों को एक सुंदर गंतव्य की ओर नहीं ले जाता। उस समय मैं कार्य के पहले दो चरणों को तो स्वीकार कर सकती थी क्योंकि ये सभी मामले बाइबल में दर्ज हैं, लेकिन चाहे कुछ भी हो, मैं राज्य के युग के कार्य के इस तीसरे चरण को स्वीकार नहीं कर सकती थी। मैं सोचती थी कि जो कुछ भी बाइबल के बाहर है, वह परमेश्वर का कार्य नहीं है। फिर मेरी बहन ने मेरे साथ संगति की, “बाइबल परमेश्वर के कार्य के पहले दो चरणों का अभिलेख है। परमेश्वर का कार्य पहले आया, उसके बाद मनुष्यों का अभिलेख। जब बाइबल संकलित की गई, तब परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य अभी तक नहीं हुआ था तो यह पहले से ही बाइबल में कैसे दर्ज हो सकता है?” यह बात मुझे कुछ समझ आई। मेरी बहन ने मेरे साथ और भी बहुत कुछ संगति की और उसने जो कहा वह बाइबल के अनुरूप था और काफी अच्छा लग रहा था, लेकिन मैं अभी भी गलत चुनाव करने से डर रही थी और इसलिए मैं इसे स्वीकारने के लिए तैयार नहीं थी। मेरी बहन ने मुझे एक किताब दी जिसका शीर्षक था “न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है” और उसने परमेश्वर के वचनों के कुछ अध्याय ढूँढ़कर मुझे पढ़ने के लिए दिए। मैंने मन ही मन सोचा कि जब से मेरी बहन ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकारा है, वह बाइबल को मुझसे बेहतर समझ गई है और उसकी आस्था बहुत बढ़िया है। उसने परमेश्वर द्वारा देहधारण का रहस्य प्रकट करने और छोटी पोथी की गुत्थियाँ सुलझाने के बारे में संगति की और इस बारे में भी संगति की कि लोगों को शुद्ध करने के लिए परमेश्वर कैसे काम करता है। उसने जो साझा किया वह तरोताजा और प्रबुद्ध करने वाला था और मैंने प्रभु में अपने इतने वर्षों के विश्वास में पहले कभी ऐसी कोई बात नहीं सुनी थी। मैंने कभी नहीं सोचा था कि वह सिर्फ एक साल में इतनी आगे बढ़ जाएगी। मैं धर्मशास्त्र का अध्ययन करने के बाद भी उसके जितनी ज्ञानी नहीं थी। मेरी बहन ने मुझे बताया कि उसने इन सारी चीजों की समझ सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से हासिल की है। मैंने सोचा, “कहीं सर्वशक्तिमान परमेश्वर वाकई प्रभु यीशु की वापसी तो नहीं है?” अतीत में मेरी माँ मुझसे बार-बार जोर देकर कहती थी कि मैं खोज और जाँच करूँ और परमेश्वर का उद्धार पाने के लिए जीवन में एक बार मिलने वाले अवसर को न चूकूँ। यह सोचकर मैंने खोजने और जाँचने का फैसला किया।

इसके बाद मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़े। इसमें जो कहा गया था उसका एक हिस्सा यह है : “यीशु की वापसी उन लोगों के लिए एक महान उद्धार है, जो सत्य को स्वीकार करने में सक्षम हैं, पर उनके लिए जो सत्य को स्वीकार करने में असमर्थ हैं, यह दंडाज्ञा का संकेत है। तुम लोगों को अपना स्वयं का रास्ता चुनना चाहिए, और पवित्र आत्मा के खिलाफ निंदा नहीं करनी चाहिए और सत्य को अस्वीकार नहीं करना चाहिए। तुम लोगों को अज्ञानी और अभिमानी व्यक्ति नहीं बनना चाहिए, बल्कि ऐसा बनना चाहिए जो पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन के प्रति समर्पण करता हो और सत्य के लिए प्यासा होकर इसकी खोज करता हो; सिर्फ इसी तरीके से तुम लोग लाभान्वित होगे। मैं तुम लोगों को परमेश्वर में विश्वास के रास्ते पर सावधानी से चलने की सलाह देता हूँ। निष्कर्ष पर पहुँचने की जल्दी में न रहो; और परमेश्वर में अपने विश्वास में लापरवाह और विचारहीन न बनो। तुम लोगों को जानना चाहिए कि कम से कम, जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं उनके पास विनम्र और परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय होना चाहिए। जिन्होंने सत्य सुन लिया है और फिर भी इस पर अपनी नाक-भौंह सिकोड़ते हैं, वे मूर्ख और अज्ञानी हैं। जिन्होंने सत्य सुन लिया है और फिर भी लापरवाही के साथ निष्कर्षों तक पहुँचते हैं या उसकी निंदा करते हैं, ऐसे लोग अभिमान से घिरे हैं। जो भी यीशु पर विश्वास करता है वह दूसरों को शाप देने या निंदा करने के योग्य नहीं है। तुम सब लोगों को ऐसा व्यक्ति होना चाहिए, जो समझदार है और सत्य स्वीकार करता है। शायद, सत्य के मार्ग को सुनकर और जीवन के वचन को पढ़कर, तुम विश्वास करते हो कि इन 10,000 वचनों में से सिर्फ एक ही वचन है, जो तुम्हारे दृष्टिकोण और बाइबल के अनुसार है, और फिर तुम्हें इन 10,000 वचनों में खोज करते रहना चाहिए। मैं अब भी तुम्हें सुझाव देता हूँ कि विनम्र बनो, अति-आत्मविश्वासी न बनो और अपनी बहुत बड़ाई न करो। परमेश्वर का भय मानने वाले अपने थोड़े-से हृदय से तुम अधिक रोशनी प्राप्त करोगे। यदि तुम इन वचनों की सावधानी से जाँच करो और इन पर बार-बार मनन करो, तब तुम समझोगे कि वे सत्य हैं या नहीं, वे जीवन हैं या नहीं। शायद, केवल कुछ वाक्य पढ़कर, कुछ लोग इन वचनों की आँखें मूँदकर यह कहते हुए निंदा करेंगे, ‘यह पवित्र आत्मा की थोड़ी प्रबुद्धता से अधिक कुछ नहीं है,’ या ‘यह एक झूठा मसीह है जो लोगों को गुमराह करने आया है।’ जो लोग ऐसी बातें कहते हैं वे अज्ञानता से अंधे हो गए हैं! तुम परमेश्वर के कार्य और बुद्धि को बहुत कम समझते हो और मैं तुम्हें पुनः शुरू से आरंभ करने की सलाह देता हूँ! तुम लोगों को अंत के दिनों में झूठे मसीहों के प्रकट होने की वजह से आँख मूँदकर परमेश्वर द्वारा अभिव्यक्त वचनों का तिरस्कार नहीं करना चाहिए और चूँकि तुम गुमराह होने से डरते हो, इसलिए तुम्हें पवित्र आत्मा के खिलाफ निंदा नहीं करनी चाहिए। क्या यह बड़ी दयनीय स्थिति नहीं होगी? यदि, बहुत जाँच के बाद, अब भी तुम्हें लगता है कि ये वचन सत्य नहीं हैं, मार्ग नहीं हैं और परमेश्वर की अभिव्यक्ति नहीं हैं, तो फिर अंततः तुम दंडित किए जाओगे और आशीष के बिना होगे। यदि तुम ऐसा सत्य, जो इतने सादे और स्पष्ट ढंग से कहा गया है, स्वीकार नहीं कर सकते, तो क्या तुम परमेश्वर के उद्धार के अयोग्य नहीं हो? क्या तुम ऐसे व्यक्ति नहीं हो, जो परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौटने के लिए पर्याप्त सौभाग्यशाली नहीं है? इस बारे में सोचो! उतावले और अविवेकी न बनो और परमेश्वर में विश्वास के साथ खेल की तरह पेश न आओ। अपनी मंज़िल के लिए, अपनी संभावनाओं के वास्ते, अपने जीवन के लिए सोचो और स्वयं से खेल न करो। क्या तुम इन वचनों को स्वीकार कर सकते हो?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को फिर से बना चुका होगा)। इस अंश को पढ़ने के बाद मैं तुरंत “10,000 में एक ही वचन” से प्रभावित हो गई। जब तक ये वचन दुविधा दूर कर सकते हैं और मेरे जीवन को लाभ पहुँचा सकते हैं, मैं इन्हें छोड़ नहीं सकती। अगली सुबह मैंने अपनी बहन से कहा, “तुमने जो संगति की, उसका लगभग 60 या 70 प्रतिशत मैं स्वीकार कर सकती हूँ। तुमने जिन चीजों के बारे में बात की, उनमें से बहुत सारी मैंने पहले कभी नहीं सुनीं और इस किताब में दिए गए वचन शक्तिशाली हैं। मुझे गंभीरता से जाँच करनी चाहिए और देखना चाहिए कि क्या यह वाकई परमेश्वर का कार्य है।” परमेश्वर का धन्यवाद! कुछ समय तक जाँचने के बाद मुझे यकीन हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर वाकई प्रभु यीशु की वापसी है। यह सोचकर कि जिस प्रभु यीशु का मैं लंबे समय से इंतजार कर रही थी वह लौट आया है, मैं अविश्वसनीय रूप से उत्साहित और भावुक हो गई। फिर भी अपने आनंद के बीच मैं हिचकिचा भी रही थी। कलीसिया चमकती पूर्वी बिजली का कड़ा विरोध करती है। इसलिए अगर मैंने इसे स्वीकार कर लिया तो क्या वे पता चलने पर मुझे नकार नहीं देंगे और कलीसिया से निकाल नहीं देंगे? मेरा ओहदा चले जाने पर भाई-बहन मेरे बारे में क्या सोचेंगे? लेकिन फिर मैंने सोचा, “चमकती पूर्वी बिजली ही सच्चा मार्ग है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर वाकई प्रभु यीशु है, जिसके लिए मैं इतने वर्षों से तरस रही हूँ। यह चरण अंत के दिनों में युग को समाप्त करने के लिए परमेश्वर का कार्य है और अगर मैंने इसे स्वीकार न किया तो अंत में मैं आत्मा, मन और शरीर से नष्ट हो जाऊँगी और मैं बचाए जाने का अवसर हमेशा के लिए खो बैठूँगी। लेकिन मैंने टीचर का ओहदा पाने के लिए बहुत बड़ी कीमत चुकाई है। धर्मशास्त्र विद्यालय में जाने के लिए मैंने अच्छी सरकारी नौकरी छोड़ दी और अपने परिवार को त्याग दिया और मैंने बाइबल का अध्ययन करने में इतनी अधिक मेहनत की है। मैं पहले से ही सीसीसी और टीएसपीएम (चीन में प्रोटेस्टेंट कलीसियाओं की चीन ईसाई परिषद और थ्री-सेल्फ पैट्रियटिक मूवमेंट को सामूहिक रूप से सीसीसी और टीएसपीएम के रूप में जाना जाता है) की उपाध्यक्ष हूँ और जल्द ही मैं पादरी बन सकती हूँ। तब तक और भी भाई-बहन मेरा आदर और प्रशंसा करने लगेंगे और मैं अपने ओहदे से मिलने वाले सभी लाभों का आनंद उठाऊँगी। अगर मैं अभी कलीसिया छोड़ दूँगी तो मेरे पास कुछ नहीं होगा।” लेकिन तब मैंने फिर से सोचा, “मैं पहले से ही जानती हूँ कि परमेश्वर नया कार्य करने आया है और अगर मैं परमेश्वर के कार्य के बारे में जानती हूँ लेकिन उसे नहीं स्वीकारती हूँ तो क्या मैं पीछे नहीं रह जाऊँगी? क्या इतने सालों तक प्रभु में मेरी आस्था व्यर्थ नहीं हो जाएगी? अगर मैं सच्चा मार्ग छोड़ दूँ तो प्रभु मुझे त्याग देगा, लेकिन अगर मैं अपना ओहदा छोड़ दूँ तो इसका मतलब है कि भाई-बहन मुझे अस्वीकार कर देंगे और कलीसिया से निकाल देंगे।” चाहे मैंने कितना भी सोचा हो, मैं टीचर का अपना ओहदा छोड़ नहीं सकी। मैंने मन ही मन सोचा, “प्रभु यीशु का कार्य दो हजार वर्षों तक चला, इसलिए इस चरण में परमेश्वर का कार्य तुरंत समाप्त नहीं होगा, है न? मैं दो वर्षों तक पादरी के रूप में सेवा करूँगी—मैं इतने वर्षों की कड़ी मेहनत व्यर्थ नहीं जाने दे सकती। उसके बाद मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास वापस आ जाऊँगी।” अंत में मैंने निर्णय लिया कि मैं अपनी मूल कलीसिया में उपदेश देती रहूँगी और साथ ही सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की सभाओं में भी भाग लेती रहूँगी, मुझे लगा कि इस तरह से मेरे दोनों हाथों में लड्डू होंगे।

इसके बाद मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में सभाओं में भाग लेने लगी। मैं सुन सकती थी कि परमेश्वर के वचनों पर भाई-बहनों की संगति में रोशनी होती है और वे जिस अनुभवजन्य समझ पर संगति करते थे, वह काफी व्यावहारिक होती है। उन्होंने परमेश्वर के वचनों के आधार पर अपने भ्रष्ट स्वभावों पर भी विचार किया और उन्हें जाना और उन्होंने परमेश्वर के वचनों से अभ्यास के मार्ग खोजे। सभी ने खुलकर और स्वतंत्र रूप से संगति की और मुझे सभाएँ काफी पोषण देने वाली लगीं। लेकिन मुझे थोड़ा अजीब लगा, क्योंकि अपनी मूल कलीसिया में मैं ही मंच से उपदेश देती हूँ जबकि अन्य लोग नीचे से सुनते हैं, लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में मैं बस एक साधारण अनुयायी हूँ और यहाँ मुझे अपने वास्तविक अनुभवों पर थोड़ी संगति करना मुश्किल लगा और मैं सिर्फ दूसरों की संगति ही सुन सकी। मुझे अपने दिल में निराशा का एहसास हुआ और मैंने मन ही मन सोचा, “एक बार जब मैं मूल कलीसिया छोड़ दूँगी तो कौन मुझे गंभीरता से लेगा? मैं इसमें और दो साल तक रह सकती हूँ!” इसलिए मैं निजी तौर पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ते हुए अपनी मूल कलीसिया में उपदेश देती रही। एक बार जब मैंने उपदेश देना समाप्त किया तो एक बहन ने मेरे पास आकर पूछा, “टीचर झाओ, तुम्हारा धर्मोपदेश इतना रूखा क्यों था? यह बिल्कुल भी आनंददायक नहीं था।” मेरा चेहरा तुरंत शर्मिंदगी से लाल हो गया और मैं बस अजीब तरह से मुस्कुराती रही। उस दौरान मैं काफी दुखी थी। हर बार जब मैं कोई धर्मोपदेश तैयार करती, मैं पाती कि मैं पहले दिया गया उपदेश ही दोहरा रही हूँ, इसमें कोई नई रोशनी या प्रबोधन नहीं है। बाद में मैंने पाया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन वाकई व्यावहारिक और ताजा हैं, क्योंकि उन्होंने बाइबल के रहस्यों को प्रकट किया है और अभ्यास के बारे में सत्य प्रदान किए हैं, जैसे कि परमेश्वर के सामने अपने दिल को कैसे शांत किया जाए और कैसे प्रार्थना की जाए। उन्होंने अनुसरण करने के लिए स्पष्ट मार्ग दिए हैं। एक धर्मोपदेश के दौरान मैंने इसमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पिरो दिए तो भाई-बहनों में उत्साह भर गया और वे उतने उनींदे नहीं रहे। मंडली के बाद भाई-बहन मेरे चारों ओर जमा हो गए। कुछ ने कहा, “टीचर झाओ, आज तुम्हारा धर्मोपदेश बहुत बढ़िया था।” दूसरों ने कहा, “तुम्हारा धर्मशास्त्रीय अध्ययन व्यर्थ नहीं गया, तुम वाकई हमसे ज्यादा समझती हो।” एक बहन ने यहाँ तक कहा, “टीचर झाओ, क्या तुम अगली बार वापस आकर हमारे लिए उपदेश दे सकती हो?” मैं अंदर से बहुत खुश थी, सोच रही थी, “अगर मैं इसी तरह उपदेश देती रही तो भाई-बहन मुझे नीची नजर से नहीं देखेंगे।” लेकिन मुझे बेचैनी महसूस हुई, सोचने लगी, “मुझे यकीन है कि कलीसिया में पवित्र आत्मा का कोई कार्य नहीं है और मेरे पास उपदेश देने के लिए कुछ नहीं बचा है। इसलिए मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को अपने धर्मोपदेश में शामिल कर लिया, जिससे सभी को गलती से यह विश्वास हो गया कि वे मेरी अपनी समझ हैं। क्या यह सही है?” जितना मैंने इसके बारे में सोचा, उतना ही मैं असहज होने लगी, इसलिए मैंने अपनी छोटी बहन से बात की। मेरी बहन ने मुझसे सख्ती से कहा, “क्या तुम जानती हो कि तुम सिर्फ धर्मोपदेश चुरा रही हो? यह परमेश्वर के स्वभाव के खिलाफ अपराध है! पूरा धार्मिक समुदाय बहुत पहले ही पवित्र आत्मा के कार्य से वंचित हो चुका है। उनके पास प्रचार करने के लिए कुछ भी नहीं है। अगर तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार नहीं करती हो तो पवित्र आत्मा का कार्य कैसे हो सकता है? तुम्हारे पास उपदेश देने के लिए कुछ भी कैसे हो सकता है? अगर तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को कलीसिया में लाती हो और उन्हें अपना बताकर प्रस्तुत करती हो और सभी से अपनी आराधना करवाती हो तो क्या तुम लोगों को गुमराह नहीं कर रही हो और उन्हें नया कार्य स्वीकारने से नहीं रोक रही हो? बहन, तुम्हें अपराध कबूलना चाहिए और पश्चात्ताप करना चाहिए!” फिर उसने मुझसे पूछा, “क्या तुम जानती हो कि जॉन बैपटिस्ट को कैसे कैद किया गया था? उस समय जब प्रभु यीशु आया और उसने लोगों को बपतिस्मा दिया तो जॉन भी दूसरी जगह लोगों को बपतिस्मा दे रहा था। जब प्रभु यीशु आया तो जॉन को सभी को उसके पास लाना चाहिए था, लेकिन उसने लोगों को अपना अनुसरण करने दिया। ऐसा करके वह परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी और बाधा डाल रहा था और अंत में जॉन को कैद कर लिया गया और उसकी जान चली गई। आज सर्वशक्तिमान परमेश्वर आ चुका है और बहुत सारे सत्य व्यक्त कर चुका है। तुम्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सामने परमेश्वर में विश्वास करने वाले हर व्यक्ति को उसके वचनों को खाने-पीने और उसके पास लौटने के लिए लाना चाहिए—यही एक विवेकशील व्यक्ति को करना चाहिए। लेकिन तुम न सिर्फ सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकारने से इनकार करती हो, बल्कि तुम अपने उपदेशों के लिए उनके वचन भी चुरा रही हो, ताकि दूसरे लोग देखें कि तुम्हारे धर्मोपदेश बहुत ऊँचे हैं और सभी तुम्हारी प्रशंसा और आदर करें। यह लोगों को गुमराह करना है। तुम लोगों को सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास लौटने से रोक रही हो और तुम अपने उपदेशों के लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन चुरा रही हो, अपनी प्रतिष्ठा बना रही हो और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपने हाथों में नियंत्रित कर रही हो। यह परमेश्वर के खिलाफ विरोध का एक गंभीर कार्यकलाप है और यह फरीसियों द्वारा किए गए कार्यों से अलग नहीं है। अगर तुम पश्चात्ताप नहीं करती हो तो तुम्हें परमेश्वर द्वारा शापित और दंडित किया जाएगा!” अपनी बहन से ये बात सुनकर मुझे चिंता और भय दोनों महसूस हुए। उस पल के बाद मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को अपने धर्मोपदेशों में शामिल करने की हिम्मत नहीं की।

उसके बाद थ्री-सेल्फ चर्च ने सीसीपी के साथ मिलीभगत करके सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का उत्पीड़न तेज कर दिया। तब तक मैंने थ्री-सेल्फ चर्च को नहीं छोड़ा था, न ही मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के कलीसियाई जीवन में भाग लिया था। उन दिनों मुझे हर धर्मोपदेश के बाद थकावट होती और मेरा दिल अंधकार से भर जाता और मैं जो कुछ भी करती, उसके लिए कोई ऊर्जा नहीं जुटा पाती। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में होने वाली सभाओं के बारे में सोचा, जहाँ भाई-बहन खुलकर बात रखते हैं और संगति के माध्यम से किसी भी कठिनाई का समाधान पाते हैं और मुझे याद आया कि मैंने मुक्ति की उस भावना का कितना आनंद लिया था। मैंने सोचा कि कैसे थ्री-सेल्फ चर्च ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का उत्पीड़न करने के लिए सरकार के साथ मिलीभगत की और कैसे थ्री-सेल्फ चर्च बेबीलोन का महान शहर था। मैं बुराई करने और परमेश्वर का प्रतिरोध करने में थ्री-सेल्फ चर्च का साथ नहीं देना चाहती थी और वहाँ रहने से मैं उनके साथ नरक में नष्ट हो जाती। लेकिन अगर मैं थ्री-सेल्फ चर्च छोड़ देती हूँ तो कभी पादरी नहीं बन पाऊँगी। इस विचार ने मुझे बहुत उलझन और पीड़ा में डाल दिया। मैंने सोचा कि कैसे मैंने प्रभु में विश्वास करने के लिए अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी और अपने छोटे बच्चे को घर पर छोड़ दिया। मुझे लगा कि अगर मैं थ्री-सेल्फ चर्च को छोड़ देती हूँ तो वे सभी त्याग और खपना बेकार हो जाएँगे। मैं न सिर्फ पादरी नहीं बन पाऊँगी, बल्कि मैं अपने भाई-बहनों का साथ भी खो दूँगी। जब मैंने इस बारे में सोचा तो मुझे अपने दिल में यातना और दर्द की एक अवर्णनीय भावना महसूस हुई। मैंने यह भी सोचा, “थ्री-सेल्फ चर्च सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के सुसमाचार प्रचारकों की रिपोर्ट करता है, लेकिन अगर मैं इसमें शामिल नहीं होती हूँ तो मैं परमेश्वर का प्रतिरोध नहीं कर रही हूँगी। साथ ही मेरी लंबे समय तक थ्री-सेल्फ चर्च में रहने की योजना नहीं है, मैं बस दो साल तक पादरी होने की प्रतिष्ठा का आनंद लेना चाहती हूँ और फिर मैं छोड़ दूँगी। इस तरह परमेश्वर मुझे फटकार नहीं लगाएगा।” मैंने अपनी बहन के साथ अपने विचार साझा किए। उसने कहा, “तुम असल में किस वजह से परमेश्वर में विश्वास करती हो? क्या तुम्हारा ओहदा तुम्हें बचाएगा या परमेश्वर तुम्हें बचाएगा?” मेरी माँ ने भी कहा, “यह आखिरी बार है जब परमेश्वर मानवजाति को बचा रहा है। आने वाली आपदाएँ मनुष्य की देह के लिए असहनीय होंगी और इन आपदाओं के निशाने पर सिर्फ देह नहीं होगी, बल्कि आत्मा भी होगी।” मेरी माँ और बहन ने बार-बार मेरे साथ संगति की और इससे मैं काफी व्यथित हो गई। मैं अच्छी तरह जानती थी कि यही सच्चा मार्ग है और परमेश्वर के कार्य का अंतिम चरण है और मुझे तुरंत कलीसिया छोड़ देनी चाहिए, लेकिन अगर मैं छोड़ देती तो मैं अपना ओहदा खो देती और कोई भी मेरी प्रशंसा या आदर नहीं करता। मैं पादरी बनने का मौका भी खो देती। हर साल क्रिसमस, ईस्टर या थैंक्सगिविंग पर सभी लोग उपदेश देने और उत्सवों की मेजबानी करने के लिए हमेशा मुझे नामित करते हैं और मुझे अपने भाई-बहनों की प्रशंसा का आनंद मिलता है, जिससे मुझे वाकई खुशी होती है। लेकिन अगर मैं काम के इस नए चरण को स्वीकार कर लूँ और कलीसिया छोड़ दूँ तो मेरे पास कोई ओहदा नहीं होगा। अगर ऐसा हुआ तो क्या मैं अब भी ऐसे मौकों का आनंद ले पाऊँगी? क्या मेरे भाई-बहन अब भी मेरी प्रशंसा करेंगे? एक तरफ सच्चा मार्ग था और दूसरी तरफ मेरा ओहदा। मुझे बहुत उलझन महसूस हुई।

एक दिन मेरी माँ ने चिंतित होकर मुझसे पूछा, “तुम्हें पता है कि प्रभु नया कार्य करने आया है तो तुमने अपनी कलीसिया क्यों नहीं छोड़ी?” मैंने अपनी माँ से कहा, “मैं पादरी बनना चाहती हूँ!” मेरी माँ ने ईमानदारी से मेरे साथ संगति की और कहा, “प्रभु यीशु ने कहा था : ‘जो मुझ से, “हे प्रभु! हे प्रभु!” कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, “हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्‍टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्‍चर्यकर्म नहीं किए?” तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, “मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ”’ (मत्ती 7:21-23)। ‘सकेत फाटक से प्रवेश करो, क्योंकि चौड़ा है वह फाटक और सरल है वह मार्ग जो विनाश को पहुँचाता है; और बहुत से हैं जो उस से प्रवेश करते हैं। क्योंकि सकेत है वह फाटक और कठिन है वह मार्ग जो जीवन को पहुँचाता है; और थोड़े हैं जो उसे पाते हैं(मत्ती 7:13-14)। तुम सिर्फ प्रभु का नाम पुकारती हो, लेकिन परमेश्वर का नया कार्य नहीं स्वीकारती। प्रभु कहता है कि यह कुकर्मियों की हरकतें है जो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते और पादरी होने से तुम बचा नहीं ली जाओगी।” मेरी छोटी बहन ने भी मेरे साथ संगति करते हुए कहा, “तुम्हारे पास उपदेश देने के लिए स्पष्ट रूप से कुछ भी नहीं है, फिर भी अपने ओहदे के लिए तुम कलीसिया में लोगों को उपदेश देती हो और गुमराह करती हो। क्या तुम भी उन पाखंडी फरीसियों की तरह नहीं हो?” उसने मेरे लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से एक अंश भी पढ़ा : “ऐसे भी लोग हैं जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में दिन-भर बाइबल पढ़ते और याद करके सुनाते रहते हैं, फिर भी उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को समझता हो। उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर को जान पाता हो; उनमें से परमेश्वर के इरादों के अनुरूप तो एक भी नहीं होता। वे सबके सब निकम्मे और अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक ‘परमेश्वर’ को सिखाने के लिए ऊँचे पायदान पर खड़ा रहता है। वे ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर के नाम का झंडा उठाते हैं, पर जानबूझकर उसका विरोध करते हैं, जो मनुष्यों का माँस खाते और रक्त पीते हुए भी परमेश्वर में आस्था रखने का दावा करते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्माओं को निगल जाते हैं, ऐसे मुख्य राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें परेशान करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाने का प्रयास करते हैं और ऐसी बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। वे ‘मजबूत देह’ वाले दिख सकते हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे मसीह-विरोधी हैं जो लोगों से परमेश्वर का विरोध करवाते हैं? अनुयायी कैसे जानेंगे कि वे जीवित शैतान हैं जो इंसानी आत्माओं को निगलने को समर्पित हुए बैठे हैं?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मेरी बहन ने कहा, “तुम सिर्फ उन लाभों का आनंद लेती हो जो टीचर के ओहदे से तुम्हें कलीसिया में मिलते हैं और यह परमेश्वर का विरोध करना है! विश्वासी जो पैसा परमेश्वर को चढ़ाते हैं, उसका इस्तेमाल तुम टीचरों और पादरियों के वेतन का भुगतान करने के लिए किया जाता है, लेकिन असल में वह पैसा परमेश्वर को चढ़ाया जाता है और किसी को भी इसका आनंद लेने का अधिकार नहीं है। इस पैसे का आनंद लेना चढ़ावे को चुराने के बराबर है! तुम जानती हो कि प्रभु वापस आ गया है, फिर भी तुम एक टीचर के अपने ओहदे और आजीविका से चिपकी हो और दूसरों को गुमराह करने के लिए कलीसिया में उपदेश दे रही हो। क्या तुम उन फरीसियों की तरह नहीं हो जो मनुष्य का माँस खाते और खून पीते हैं?” मेरी माँ ने भी कहा, “पहले मैं यह नहीं समझती थी कि ‘मनुष्य का माँस खाने और खून पीने’ का क्या मतलब है, लेकिन अब मैं समझती हूँ कि जो भी व्यक्ति कलीसिया में वेतन पाता है वह परमेश्वर के चढ़ावे का मजा ले रहा है और चढ़ावे को चुरा रहा है। ये चढ़ावे भाई-बहनों ने अपनी मितव्ययी जीवनशैली से बचाकर परमेश्वर को चढ़ाए हैं, लेकिन तुम पादरी और टीचर उनका मजा लूटते हो। तुम विश्वासियों का माँस खा रही हो और उनका खून पी रही हो। क्या तुम परमेश्वर के सामने इसका हिसाब दे सकती हो?” अपनी माँ और बहन की बातें सुनकर मैं बहुत परेशान हो गई। खासकर जब मैंने परमेश्वर के ये वचन सुने : “जो मनुष्यों का माँस खाते और रक्त पीते हैं,” मैं वाकई बहुत परेशान हो गई। क्या यह सच नहीं था कि मैं जो वेतन पाती हूँ वह भाई-बहनों द्वारा परमेश्वर को अर्पित चढ़ावा होता है? मैं वाकई “इंसान का माँस खा रही थी और उसका खून पी रही थी”! मेरी बहन ने आगे कहा, “प्रभु यीशु ने फरीसियों को फटकारते हुए कहा : ‘हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है तो उसे अपने से दूना नारकीय बना देते हो(मत्ती 23:15)। उस समय फरीसी मसीहा के आने के लिए लालायित थे। लेकिन जब मसीहा—प्रभु यीशु—आया, भले ही वे जानते थे कि प्रभु यीशु द्वारा बोले गए वचनों में अधिकार और सामर्थ्य है, अपने ओहदे और आजीविका बनाए रखने के लिए उन्होंने न सिर्फ स्वयं उसे नकार दिया, बल्कि उसका प्रतिरोध भी किया और निंदा भी की और विश्वासियों को उसे स्वीकारने से रोका। फिर उन्होंने प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ा दिया और परमेश्वर द्वारा शापित और दंडित हुए। बाइबल कहती है : ‘इस कारण यहोवा इस्राएल में से सिर और पूँछ को, खजूर की डालियों और सरकंडे को, एक ही दिन में काट डालेगा। पुरनिया और प्रतिष्‍ठित पुरुष तो सिर हैं, और झूठी बातें सिखानेवाला नबी पूँछ है; क्योंकि जो इन लोगों की अगुवाई करते हैं वे इनको भटका देते हैं, और जिनकी अगुवाई होती है वे नष्‍ट हो जाते हैं(यशायाह 9:14-16)। सिर कौन है? इसका आशय उन पादरियों और एल्डरों से है जो सच्चे मार्ग को जानते हैं लेकिन इसे स्वीकार नहीं करते। तो सिर और पूँछ क्यों काटे गए हैं? क्योंकि वे सच्चे मार्ग को स्पष्ट रूप से जानते हैं लेकिन इसे स्वीकार नहीं करते, क्योंकि वे अपने ओहदे और आजीविका छोड़ नहीं सकते और वे परमेश्वर के कार्य का विरोध और निंदा करते हैं, विश्वासियों को सच्चा मार्ग स्वीकारने से रोकते हैं। टीचर के रूप में अपने मौजूदा ओहदे से मूर्ख मत बनो। तुम जानती हो कि प्रभु आ गया है, फिर भी तुमने अपनी मूल कलीसिया नहीं छोड़ी है। इसके बजाय तुम दो नावों की सवारी करने की कोशिश कर रही हो और अपने ओहदे से चिपकी हुई हो, लोगों को गुमराह करने के लिए उस कलीसिया में उपदेश देती हो और दूसरों से अपनी आराधना और सम्मान करवाने के मजे लेती हो। क्या तुम दूसरों को सच्चा मार्ग स्वीकारने से रोकने वाली शाश्वत पापी नहीं बन गई हो? अगर तुम अपने ओहदे से चिपकी रहती हो और परमेश्वर के नए कार्य के साथ नहीं चलती हो तो अंत में तुम्हें परमेश्वर द्वारा अलग कर दिया जाएगा। आखिर हम प्रभु पर विश्वास क्यों करते हैं? क्या यह सिर्फ प्रभु के आने और हमें बचाए जाने का इंतजार करने के लिए नहीं है? अगर हम सिर्फ पादरी के ओहदे के लिए प्रभु पर विश्वास करते हैं तो इसका एक ही परिणाम होगा, जो है नरक में जाना और सजा भुगतना! क्या तुम्हें बाइबल में दर्ज पतरस और मत्ती याद हैं? जब प्रभु यीशु ने पतरस को बुलाया तो पतरस ने तुरंत मछली पकड़ने के अपने जाल छोड़ दिए और प्रभु का अनुसरण किया। मत्ती कर संग्रहकर्ता था, जो सीमा शुल्क घर पर कर जमा करता था और जब उसने प्रभु यीशु का आह्वान सुना तो उसने तुरंत अपना काम छोड़ दिया और उसका अनुसरण किया। अब खुद को देखो, तुम हिचकिचा रही हो और एक चीज भी नहीं छोड़ पा रही हो। प्रभु यीशु ने कहा : ‘तुम में से जो कोई अपना सब कुछ त्याग न दे, वह मेरा चेला नहीं हो सकता(लूका 14:33)। नीतिवचन 14:12 और 16:25 दोनों हमें याद दिलाते हैं कि, ‘ऐसा मार्ग है, जो मनुष्य को ठीक जान पड़ता है, परन्तु उसके अन्त में मृत्यु ही मिलती है।’ जब परमेश्वर एक नया कार्य करने आता है तो हमें उसके पदचिह्नों पर चलना चाहिए, चूँकि जो लोग परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य नहीं स्वीकारते और इसके बजाय लोगों को उनके ओहदे और आजीविका बनाए रखने के लिए परमेश्वर के पास लौटने से रोकते हैं, उन्हें परमेश्वर द्वारा निंदित और दंडित किया जाएगा। इसके बारे में सोचो!” अपनी माँ और बहन की बात सुनकर मैं वाकई भावुक हो गई और थोड़ा डर गई, सोचने लगी “फरीसी बाइबल के अच्छे जानकार थे, कलीसिया में उपदेश देते थे और धर्मपरायण दिखते थे, लेकिन सार में उन्होंने यह सब अपने ओहदे, आजीविका और दूसरों से प्रशंसा और सम्मान पाने के लिए किया। यह प्रभु की सच्ची सेवा नहीं थी। वे अपने ओहदे और आजीविका की खातिर प्रभु यीशु का प्रतिरोध और उसकी निंदा करते थे, विश्वासियों को प्रभु का सुसमाचार स्वीकारने से रोकते थे। वे परमेश्वर की सेवा करते थे लेकिन उसका विरोध करते थे और उन्हें प्रभु यीशु द्वारा निंदित और शापित किया गया।” मैंने अपनी मूल कलीसिया के उपदेशक के बारे में सोचा, जिसने झुंड की रक्षा करने के बहाने कलीसिया को बंद कर दिया और विश्वासियों को सच्चे मार्ग की जाँच करने से रोक दिया और राज्य के सुसमाचार का प्रचार करने वालों की ओर इशारा करते हुए कहा, “अब से सुसमाचार का प्रचार करने हमारी कलीसिया में मत आना। अगर तुम वापस आए तो मैं पुलिस बुलाऊँगा और तुम सभी को गिरफ्तार करवा दूँगा!” साथ ही, थ्री-सेल्फ पेट्रियॉटिक कमेटी का अध्यक्ष यूनाइटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट के साथ मिलकर उन लोगों को गिरफ्तार करता है जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करते हैं और जब उन्हें लोग सुसमाचार का प्रचार करते हुए मिलते हैं तो वे पुलिस बुला लेते हैं। खुद को फिर से देखूँ तो मुझे साफ पता था कि प्रभु वापस आ गया है, लेकिन रुतबे के आशीष का आनंद लेने और प्रशंसा पाने के लिए मैंने कलीसिया छोड़ने से इनकार कर दिया और अपने धर्मोपदेशों के लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन चुरा लिए, खुद की बड़ाई की, खुद को बनाया और लोगों को अपना सम्मान और पूजा करने दी। क्या मैं फरीसियों के मार्ग पर नहीं चल रही थी? प्रभु यीशु ने फरीसियों पर सात विपत्तियाँ घोषित कीं। अगर मैं कलीसिया नहीं छोड़ती तो मैं जानबूझकर और भी बड़ा पाप कर रही होती और मेरा परिणाम भी फरीसियों जैसा ही होता!

एक दिन मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा जिसने मुझे गहराई से प्रभावित किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “अगर मैं तुम लोगों के सामने कुछ पैसे रखूँ और तुम्हें चुनने की आजादी दूँ—और अगर मैं तुम्हारी पसंद के लिए तुम्हारी निंदा न करूँ—तो तुममें से ज्यादातर लोग पैसे का चुनाव करेंगे और सत्य को छोड़ देंगे। तुममें से जो बेहतर होंगे, वे पैसे को छोड़ देंगे और अनिच्छा से सत्य को चुन लेंगे, जबकि इन दोनों के बीच वाले एक हाथ से पैसे को पकड़ लेंगे और दूसरे हाथ से सत्य को। इस तरह तुम्हारा असली रंग क्या स्वतः प्रकट नहीं हो जाता? सत्य और किसी ऐसी अन्य चीज के बीच, जिसके प्रति तुम वफादार हो, चुनाव करते समय तुम सभी ऐसा ही निर्णय लोगे, और तुम्हारा रवैया ऐसा ही रहेगा। क्या ऐसा नहीं है? क्या तुम लोगों में बहुतेरे ऐसे नहीं हैं, जो सही और ग़लत के बीच में झूलते रहे हैं? सकारात्मक और नकारात्मक, काले और सफेद, परिवार और परमेश्वर, संतानों और परमेश्वर, सौहार्द और बिगाड़, अमीरी और ग़रीबी, हैसियत और मामूलीपन, समर्थन दिए जाने और दरकिनार किए जाने इत्यादि के बीच सभी संघर्ष के दौरान तुम लोगों ने जो विकल्प चुने हैं उनके बारे में तुम लोग निश्चित ही जानते हो। एक सौहार्दपूर्ण परिवार और टूटे हुए परिवार के बीच, तुमने पहले को चुना, और ऐसा तुमने बिना किसी संकोच के किया; धन-संपत्ति और कर्तव्य के बीच, तुमने फिर से पहले को चुना, यहाँ तक कि तुममें किनारे पर वापस लौटने की इच्छा[क] भी नहीं रही; विलासिता और निर्धनता के बीच, तुमने पहले को चुना; अपने बेटों, बेटियों, पत्नियों और पतियों तथा मेरे बीच, तुमने पहले को चुना; और धारणा और सत्य के बीच, तुमने एक बार फिर पहले को चुना। तुम लोगों के दुष्कर्मों को देखते हुए मेरा विश्वास ही तुम पर से उठ गया है। मुझे बहुत आश्चर्य होता है कि तुम्हारे हृदय कोमल बनाए जा सकने में इतने अक्षम हैं। सालों तक मैंने अपने हृदय का जो खून खपाया है उससे मुझे आश्चर्यजनक रूप से तुम लोगों द्वारा परित्याग और निवृत्ति से अधिक कुछ नहीं मिला, लेकिन तुम लोगों के प्रति मेरी आशाएँ हर गुजरते दिन के साथ बढ़ती ही जाती हैं, क्योंकि मेरा दिन सबके सामने पूरी तरह से खुला पड़ा रहा है। फिर भी तुम लोग लगातार अँधेरी और बुरी चीजों की तलाश में रहते हो, और उन पर अपनी पकड़ ढीली करने से इनकार करते हो। तो फिर तुम्हारा परिणाम क्या होगा? क्या तुम लोगों ने कभी इस पर सावधानी से विचार किया है? अगर तुम लोगों को फिर से चुनाव करने को कहा जाए, तो तुम्हारा क्या रुख रहेगा? क्या अब भी तुम लोग पहले को ही चुनोगे? क्या अब भी तुम मुझे निराशा और भयंकर कष्ट ही पहुँचाओगे? क्या अब भी तुम्हारे हृदयों में थोड़ा-सा भी सौहार्द होगा? क्या तुम अब भी इस बात से अनभिज्ञ रहोगे कि मेरे हृदय को सुकून पहुँचाने के लिए तुम्हें क्या करना चाहिए? इस क्षण तुम्हारा चुनाव क्या है? क्या तुम मेरे वचनों के प्रति समर्पण करोगे या उनसे विमुख रहोगे? मेरा दिन तुम लोगों की आँखों के सामने रख दिया गया है, और एक नया जीवन और एक नया प्रस्थान-बिंदु तुम लोगों के सामने है। लेकिन मुझे तुम्हें बताना होगा कि यह प्रस्थान-बिंदु पिछले नए कार्य का प्रारंभ नहीं है, बल्कि पुराने का अंत है। अर्थात् यह अंतिम कार्य है। मेरा ख्याल है कि तुम लोग समझ सकते हो कि इस प्रस्थान-बिंदु के बारे में असामान्य क्या है। लेकिन जल्दी ही किसी दिन तुम लोग इस प्रस्थान-बिंदु का सही अर्थ समझ जाओगे, अतः आओ, हम एक-साथ इससे आगे बढ़ें और आने वाले समापन का स्वागत करें! लेकिन तुम्हारे बारे में जो बात मुझे चिंतित किए रहती है, वह यह है कि अन्याय और न्याय से सामना होने पर तुम लोग हमेशा पहले को चुनते हो। हालाँकि यह सब तुम्हारे अतीत की बात है। मैं भी तुम्हारे अतीत की हर बात भूल जाने की उम्मीद करता हूँ, हालाँकि ऐसा करना बहुत मुश्किल है। फिर भी मेरे पास ऐसा करने का एक अच्छा तरीका है : भविष्य को अतीत का स्थान लेने दो और अपने अतीत की छाया मिटाकर अपने आज के सच्चे व्यक्तित्व को उसकी जगह लेने दो। इस तरह मैं एक बार फिर तुम लोगों को चुनाव करने का कष्ट दूँगा : तुम वास्तव में किसके प्रति वफादार हो?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम किसके प्रति वफादार हो?)। परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिल को प्रभावित किया और मुझे लगा जैसे परमेश्वर मुझसे रूबरू पूछ रहा है, जिससे मैं अवाक रह गई। मैं पश्चात्ताप और अपराध बोध से भर गई और मैं खुद को रोने से नहीं रोक पाई। मैं जानती थी कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही प्रभु यीशु की वापसी है, और मुझे परमेश्वर का कार्य स्वीकार कर लेना चाहिए था और मूल कलीसिया छोड़ देनी चाहिए थी। लेकिन मुझे डर था कि अगर मुझे इससे निकाल दिया गया तो मैं पादरी नहीं बन पाऊँगी, इसलिए मैं दो नावों की सवारी करने लगी, यह सोचने लगी कि दो साल के लिए पादरी बन जाऊँगी और उसके बाद छोड़ दूँगी। चूँकि कलीसिया में उपदेश देने के लिए कुछ भी नहीं बचा था, मुझे अपना ओहदा खोने की चिंता थी, इसलिए मैंने प्रचार करने के लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन चुरा लिए, उम्मीद जताई कि इससे सभी का सहयोग और प्रशंसा मिलेगी। मैंने देखा कि थ्री-सेल्फ चर्च सरकार के साथ मिलकर परमेश्वर का प्रतिरोध कर रही है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के सुसमाचार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करवा रही है। मुझे पता था कि मुझे जल्दी से इसे छोड़ देना चाहिए, लेकिन मैं अपना ओहदा बनाए रखने के लिए अपनी मूल कलीसिया में ही रही। हर बार मैंने सत्य के बजाय अपने रुतबे को चुना। मैंने देखा कि बहुत सारे वर्षों से मेरी वफादारी अपने रुतबे और लोगों से सराहना के प्रति थी। मेरे परिवार ने बार-बार मेरे साथ संगति की, लेकिन मैंने अपने रुतबे की खातिर परमेश्वर का हठपूर्वक प्रतिरोध किया। मैं परमेश्वर में सचमुच विश्वास नहीं करती थी, बल्कि मैं बस एक ऐसी इंसान थी जो रुतबे और अपने ओहदे के लाभों का मजा लेना चाहती थी। मैं पूरी तरह से पाखंडी फरीसी थी। मैंने जो किया था, उससे परमेश्वर का दिल सचमुच टूट गया। मैंने अपनी मूल कलीसिया छोड़ने और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहनों के साथ सुसमाचार का प्रचार करने का फैसला किया। कुछ दिनों बाद मेरी मूल कलीसिया के पर्यवेक्षक और सहकर्मी मुझे खोजने आए और कहने लगे, “टीचर झाओ, कलीसिया ने कई साल तक तुम्हें विकसित किया है और तुम्हारे धर्मशास्त्रीय अध्ययनों का साथ दिया है। तुम्हें जल्दी से उठकर प्रभु के लिए काम करने की जरूरत है। तुम अपने प्रति प्रभु के प्रेम और भाई-बहनों के भरोसे को निराश नहीं कर सकती हो!” उनकी बातें सुनने के बाद मैंने सोचा, “मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए वचन पढ़े हैं और मुझे यकीन है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही प्रभु यीशु की वापसी है और उसने अंत के दिनों में मानवजाति का न्याय करने और उसे शुद्ध करने का कार्य करने के लिए सत्य व्यक्त किया है। कलीसिया में अब पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है। भले ही मैं पादरी बन जाऊँ, पवित्र आत्मा के कार्य और रखरखाव के बिना इसका कोई मूल्य या अर्थ नहीं है। मैं कलीसिया में नहीं रह सकती, क्योंकि अब और रुकना मुझे विनाश की ओर ले जाता और परमेश्वर ठीक फरीसियों की तरह मेरी निंदा करता। मुझे परमेश्वर के पदचिह्नों का अनुसरण करना चाहिए और परमेश्वर के प्रकटन के लिए तरस रहे अधिक से अधिक लोगों तक परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार प्रचारित करना चाहिए।” उस पल मैं पूरी तरह से अडिग हो गई और मैंने उन्हें नकार दिया।

इसके बाद मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में सुसमाचार प्रचार का कर्तव्य निभाने लगी। बाद में मैंने एक पादरी के बारे में सुना जिसने “वचन देह में प्रकट होता है” पुस्तक पढ़ी और स्वीकारा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए हैं और सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटा हुआ प्रभु यीशु है, लेकिन उसने इसे स्वीकार नहीं किया क्योंकि वह पादरी का अपना ओहदा छोड़ नहीं सका, जिससे उसने बचाए जाने का मौका गँवा दिया। मेरे लिए यह और भी स्पष्ट हो गया कि ओहदे की चाहत सिर्फ परमेश्वर का प्रतिरोध करने और खुद को नष्ट करने की ओर ले जाती है। अगर परमेश्वर मेरे परिवार और भाई-बहनों का उपयोग बार-बार मेरे साथ संगति करने के लिए नहीं करता तो मैं भी उस पादरी की तरह होती, सच्चा मार्ग जानते हुए भी उसे स्वीकार नहीं करती और आखिरकार मैं फरीसियों की तरह अपनी आत्मा, मन और शरीर में दंडित हो जाती। अब हालाँकि मैंने पादरी बनने का मौका खो दिया है, लेकिन मैंने अनंत जीवन का मार्ग प्राप्त कर लिया है और परमेश्वर का अंत के दिनों का उद्धार पा लिया है, जो ऐसी चीज है जिसका सौदा किसी भी ऊँचे ओहदे के एवज में नहीं किया जा सकता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर से उद्धार के इस अनुग्रह के लिए मैं अपने दिल में और भी अधिक आभारी हूँ।

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