74. खतरनाक परिवेशों में कर्तव्य पालन
2017 में मेरे पास कलीसिया में सफाई कार्य की जिम्मेदारी थी। 2 जुलाई को कई अगुआ, कार्यकर्ता और भाई-बहन गिरफ्तार कर लिए गए। तब कलीसिया में कुछ रिपोर्ट पत्र थे जिन्हें तत्काल सँभालने की आवश्यकता थी, लेकिन उन्हें सँभालने वाले कुछ लोग गिरफ्तार किए जा चुके थे। इस कार्य के लिए जिम्मेदार रही बहन यांग चेन भी गिरफ्तार हो चुकी थी। उच्च अगुआओं ने रिपोर्ट पत्र सँभालने के लिए मेरी व्यवस्था की और मैं कुछ हद तक अनिच्छुक महसूस कर रही थी, मैंने मन में सोचा, “ये लोग पुलिस की निगरानी के बाद पकड़े गए थे क्योंकि वे अपने कर्तव्य पूरे करने के लिए बाहर जाते रहे थे। हर जगह निगरानी उपकरण हैं और कुछ तो चेहरे की पहचान करने की क्षमताओं से भी लैस हैं। अगर मैं यह कर्तव्य स्वीकार करती हूँ, तो मुझे अक्सर भाई-बहनों से मिलना होगा और यहाँ तक कि कुछ ऐसे लोगों के संपर्क में भी आना होगा जिनकी सुरक्षा को जोखिम हैं। अगर निगरानी उपकरणों से मेरी पहचान हो गई, तो पुलिस के लिए मेरा पीछा करना और मुझे पकड़ना आसान हो जाएगा। सीसीपी परमेश्वर में विश्वास करने वालों को राज्य के खिलाफ गंभीर अपराधी मानती है, इसलिए अगर मैं गिरफ्तार हो गई, तो भले ही मुझे पीट-पीटकर न मारा जाए, कम से कम मैं अपंग तो हो ही जाऊँगी। अगर इसके प्रभाव बाद तक चले, तो आने वाले सालों में मुझे न केवल शारीरिक पीड़ा झेलनी होगी, बल्कि दूसरों का तिरस्कार और भावहीन टिप्पणियाँ भी सहनी होंगी।” मैंने यह भी सोचा कि पुलिस भाई-बहनों को पीड़ा देने के लिए सभी प्रकार की यातनाओं का उपयोग करती है और उनके तरीके पूरी तरह से क्रूर होते हैं। मेरा आध्यात्मिक कद छोटा था और अगर मैं यातना का सामना न कर पाई और यहूदा बन गई, तो मेरे पास बचने का कोई मौका नहीं होगा और मुझे दंडित भी किया जाएगा। जितना मैंने इसके बारे में सोचा, उतनी ही मैं डर गई और मुझे लगा कि यह कर्तव्य करना बहुत खतरनाक है। मैंने सोचा कि मेरा वर्तमान कर्तव्य बेहतर है क्योंकि मुझे इसके लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं है और यह सुरक्षित भी है। इस बात के मद्देनजर मैं कर्तव्य को अस्वीकार करना चाहती थी, लेकिन इस कर्तव्य से सीधे खुद को अलग करना यह दिखाता कि मेरे पास कोई उचित कारण नहीं है, इसलिए मैंने उच्च अगुआओं को जवाब दिया, कहा कि मेरी काबिलियत कम है, मैं लोगों का भेद नहीं पहचान पाती, मेरी कार्य-कुशलता भी कम है और मेरे इस कार्य को सँभालने से काम में देरी होगी। कुछ दिन बाद अगुआओं ने मुझे परमेश्वर के इरादे के बारे में संगति करने के लिए एक पत्र भेजा, जिसमें कहा गया था कि रिपोर्ट पत्र सँभालने के लिए तत्काल किसी की जरूरत है और उन्हें उम्मीद है कि मैं परमेश्वर के इरादे पर विचार कर सकती हूँ। मैं अब इस कर्तव्य से नहीं बच सकती थी, इसलिए मैंने अनिच्छा से इसे करने के लिए सहमति जता दी लेकिन फिर भी मन ही मन मैं शिकायत कर रही थी, सोच रही थी, “मुझे ऐसा खतरनाक कर्तव्य क्यों सौंपा जा रहा है?” लेकिन फिर मुझे खयाल आया कि मेरा सीसीपी के साथ कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और मैं ही वर्तमान में सबसे उपयुक्त व्यक्ति हूँ। अगुआओं ने मेरी वास्तविक स्थिति के व्यापक आकलन के आधार पर ही यह व्यवस्था की थी, यही कारण है कि उन्होंने मुझे यह कर्तव्य निभाने के लिए कहा, लेकिन मैं क्यों हमेशा इससे बचना और इसे ठुकराना चाहती थी? मुझे एहसास हुआ कि मेरी दशा सही नहीं है, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह मेरा मार्गदर्शन करे ताकि मैं उसका इरादा समझ सकूँ।
मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंश पढ़े : “तुम सब लोगों को शायद ये वचन स्मरण हों : ‘क्योंकि हमारा पल भर का हल्का-सा क्लेश हमारे लिये कहीं अधिक और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है।’ तुम सब लोगों ने पहले भी ये वचन सुने हैं, किंतु तुममें से कोई भी इनका सच्चा अर्थ नहीं समझा। आज तुम उनकी वास्तविक महत्ता से गहराई से अवगत हो। ये वचन परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों के दौरान पूरे किए जाएँगे और वे उन लोगों में पूरे किए जाएँगे जिन्हें बड़े लाल अजगर द्वारा निर्दयतापूर्वक उत्पीड़ित किया गया है, उस देश में जहाँ वह कुण्डली मारकर बैठा है। बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, इसीलिए इस देश में लोगों को परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण अपमान और अत्याचार का सामना करना पड़ता है और परिणामस्वरूप ये वचन तुम लोगों में, लोगों के इस समूह में पूरे किए जाते हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। “आशीष एक या दो दिन में प्राप्त नहीं किए जा सकते हैं; उन्हें कई कीमतों से अर्जित किया जाना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है, तुम लोगों को उस प्रेम से युक्त होना ही चाहिए जो शोधन से गुज़र चुका है, तुममें अत्यधिक आस्था होनी ही चाहिए, और तुम्हारे पास कई सत्य होने ही चाहिए जो परमेश्वर अपेक्षा करता है कि तुम प्राप्त करो; इससे भी बढ़कर, भयभीत हुए या टाल-मटोल किए बिना, तुम्हें न्याय की ओर जाना चाहिए, और मृत्युपर्यंत परमेश्वर-प्रेमी हृदय रखना चाहिए। तुममें संकल्प होना ही चाहिए, तुम लोगों के जीवन स्वभाव में बदलाव आने ही चाहिए; तुम लोगों की भ्रष्टता की चंगाई होनी ही चाहिए, तुम्हें परमेश्वर के सारे आयोजन बिना शिकायत स्वीकार करने ही चाहिए, और तुम्हें मृत्युपर्यंत समर्पित होना ही चाहिए। यह वह है जो तुम्हें प्राप्त करना ही है, यह परमेश्वर के कार्य का अंतिम लक्ष्य है, और यह वह है जो परमेश्वर लोगों के इस समूह से चाहता है। चूँकि वह तुम लोगों को देता है, इसलिए वह बदले में तुम लोगों से निश्चय ही माँगेगा भी, और तुम लोगों से निश्चय ही उपयुक्त माँगें ही करेगा। इसलिए, परमेश्वर जो भी कार्य करता है उस सबका कारण होता है, जो दिखलाता है कि परमेश्वर बार-बार ऐसा कार्य क्यों करता है जो इतने उच्च मानक स्थापित करता और कड़ी अपेक्षाएँ करता है। यही कारण है कि परमेश्वर के प्रति विश्वास तुममें समाया होना चाहिए। संक्षेप में, परमेश्वर का समूचा कार्य तुम लोगों के लिए किया जाता है, ताकि तुम लोग उसकी विरासत पाने के योग्य बन सको। यह कहने के बजाय कि यह परमेश्वर की महिमा के लिए है यह कहना बेहतर होगा कि यह तुम्हारे उद्धार के लिए है और इस समूह के लोगों को पूर्ण बनाने के लिए है जो अशुद्ध भूमि में बहुत अधिक पीड़ित हैं। तुम लोगों को परमेश्वर के इरादे को समझना चाहिए” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे यह समझाया कि बड़े लाल अजगर का सार परमेश्वर से घृणा करना है और उसने हमेशा परमेश्वर का विरोध किया है, ईसाइयों की निगरानी, उनका पता लगाने और उन्हें पकड़ने के लिए उच्च तकनीकी साधनों का उपयोग, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बाधित करने और उन्हें सताने के लिए हर संभव तरीके और परमेश्वर की कलीसिया को मिटाने का व्यर्थ प्रयास किया है। लेकिन परमेश्वर हमारे विश्वास और प्रेम को पूर्ण करने के लिए बड़े लाल अजगर द्वारा उत्पीड़न का उपयोग करता है। मैंने युग-युगांतर में हुए प्रेरितों के बारे में सोचा। परमेश्वर के सुसमाचार का प्रचार करने के लिए उन्हें दुनिया से बदनामी और उपहास सहना पड़ा, लेकिन जब उनका जीवन दांव पर था, तब भी उन्होंने परमेश्वर का आदेश नहीं छोड़ा। ये लोग सचमुच परमेश्वर का अनुसरण करते थे। अपने बारे में सोचा कि जब मैंने अपने भाई-बहनों को गिरफ्तार होते और कुछ को तो यातनाएँ पाते हुए देखा, तो मैं डरपोक और भयभीत हो गई थी और अपना जीवन बचाने के लिए मैं कलीसिया के हितों के बारे में कोई विचार किए बिना रिपोर्ट पत्र न सँभालकर अपने कर्तव्य से बचना चाहती थी। मैं वास्तव में स्वार्थी और नीच थी, मुझमें बिल्कुल भी मानवता नहीं थी! अब भले ही मुझे गिरफ्तार नहीं किया गया था, लेकिन मैं इतनी डरी हुई थी कि मुझमें अपना कर्तव्य निभाने की हिम्मत भी नहीं थी। क्या मैं बस कायर नहीं बन गई थी, जिसे जीवन की लालसा और मृत्यु का डर था? मैं किस तरह से परमेश्वर की विश्वासी थी? प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में कहा गया है कि कायर स्वर्ग के राज्य के द्वार में प्रवेश नहीं कर सकते, इसलिए अगर मैं इतनी कायर बनी रही और अपने जीवन के डर से खुद को बचाने के लिए अपना कर्तव्य करने की हिम्मत न की, तो अंततः मुझे हटा दिया जाएगा। इस क्षण मैं आखिर समझ गई कि परमेश्वर इस परिवेश का उपयोग मेरा विश्वास पूर्ण करने और मेरी भ्रष्टता को शुद्ध करने के लिए कर रहा था और यह सब मेरे उद्धार की खातिर था।
फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “अतीत में जब परमेश्वर ने मूसा को इस्राएलियों को मिस्र से बाहर ले लाने के लिए भेजा, तो परमेश्वर द्वारा उसे ऐसा आदेश दिए जाने पर मूसा की क्या प्रतिक्रिया थी? (उसने कहा कि वह बोलने में निपुण नहीं है, बल्कि मुँह और जीभ का भद्दा है।) उसे यह एक, थोड़ा-सा संदेह था कि वह बोलने में निपुण नहीं, बल्कि मुँह और जीभ का भद्दा है। लेकिन क्या उसने परमेश्वर के आदेश का विरोध किया? उसने इसे कैसे लिया? वह जमीन पर लेटकर दंडवत हो गया। जमीन पर लेटकर दंडवत होने का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है समर्पित होकर स्वीकार करना। वह अपनी निजी प्राथमिकताओं की परवाह किए बिना परमेश्वर के सामने पूरा दंडवत हो गया, और उसने अपनी किसी भी संभावित कठिनाई का उल्लेख नहीं किया। परमेश्वर जो कुछ भी उससे कराए, वह उसे तुरंत करने के लिए तैयार था। ... इसका क्या अर्थ है कि वह निकल पड़ा? इसका अर्थ है कि वह परमेश्वर पर सच्चा भरोसा करता था, उस पर सच्चे मन से निर्भर था और उसके प्रति सच्चा समर्पण करता था। वह कायर नहीं था, और उसने अपनी पसंद नहीं चुनी या मना करने की कोशिश नहीं की। इसके बजाय उसे पूरा विश्वास था, और भरोसे से ओतप्रोत होकर वह परमेश्वर का आदेश कार्यान्वित करने निकल पड़ा। वह यह मानता था, ‘अगर परमेश्वर ने यह आदेश दिया है, तो यह सब परमेश्वर के कहे अनुसार किया जाएगा। परमेश्वर ने मुझे इस्राएलियों को मिस्र से बाहर लाने को कहा है, इसलिए मैं जाऊँगा। चूँकि यह आदेश परमेश्वर ने दिया है, इसलिए वही काम कराएगा, और वही मुझे शक्ति देगा। मुझे सिर्फ सहयोग करने की जरूरत है।’ यही अंतर्दृष्टि मूसा के पास थी। आध्यात्मिक समझ की कमी वाले लोग सोचते हैं कि परमेश्वर के सौंपे हुए कार्य वे अपने दम पर कर सकते हैं। क्या लोगों में ऐसी क्षमताएँ होती हैं? बिल्कुल नहीं। अगर लोग कायर होंगे तो वे मिस्र के फिरौन से मिलने का साहस तक नहीं करेंगे। वे मन ही मन में कहेंगे : ‘मिस्र का फिरौन शैतान राजा है। उसके पास फौज है और वह एक आदेश पर मुझे मरवा सकता है। मैं इतने सारे इस्राएलियों की अगुआई कर कैसे ले जा सकता हूँ? क्या मिस्र का फिरौन मेरी सुनेगा?’ इन शब्दों में इनकार, प्रतिरोध और विद्रोह है। ये परमेश्वर में कोई विश्वास प्रकट नहीं करते, और यह असली भरोसा नहीं है। उस दौर के हालात इस्राएलियों या मूसा के लिए अनुकूल नहीं थे। मनुष्य के दृष्टिकोण से इस्राएलियों को मिस्र से बाहर ले जाना असंभव काम था, क्योंकि मिस्र की सीमा पर लाल सागर था, जिसे पार करना एक बहुत बड़ी चुनौती थी। क्या मूसा को सचमुच पता नहीं होगा कि इस आदेश को पूरा करना कितना कठिन है? वह दिल ही दिल में ये जानता था, फिर भी उसने केवल यही कहा कि वह बोलने-चालने में धीमा है और कोई भी उसकी बातों पर ध्यान नहीं देगा। उसने परमेश्वर का आदेश दिल से खारिज नहीं किया। परमेश्वर ने जब इस्राएलियों को मिस्र से बाहर ले जाने को कहा तो मूसा ने दंडवत होकर इसे स्वीकार कर लिया। उसने मुश्किलों का जिक्र क्यों नहीं किया? क्या ऐसा था कि चालीस साल जंगल में बिताने के बाद वह यह नहीं जानता था कि इंसानों की दुनिया के खतरे क्या हैं या मिस्र में चीजें किस स्थिति में पहुँच चुकी हैं या इस्राएलियों की वर्तमान दुर्दशा क्या है? क्या वह इन चीजों को साफ तौर पर नहीं देख पा रहा था? क्या यही हो रहा था? बिल्कुल भी नहीं। मूसा होशियार और बुद्धिमान था। वह ये सारी चीजें जानता था, इंसानों की दुनिया में इन्हें खुद भुगतकर अनुभव लेने के बाद वह इन्हें कभी नहीं भुला सकता था। वह उन चीजों को बखूबी जानता था। तो क्या वह जानता था कि परमेश्वर ने उसे जो आदेश दिया है, वह कितना कठिन है? (हाँ।) अगर वह जानता था तो वह उस आदेश को कैसे स्वीकार कर सका? उसे परमेश्वर पर भरोसा था। अपने जीवन भर के अनुभव से वह परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता में विश्वास करता था, इसलिए उसने परमेश्वर के इस आदेश को जरा-भी संदेह किए बिना पूरे भरोसे के साथ स्वीकार लिया” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, केवल सच्चे समर्पण से ही व्यक्ति असली भरोसा रख सकता है)। परमेश्वर ने मूसा को आदेश दिया कि इस्राएलियों को मिस्र से बाहर निकाले। उस समय मिस्र का फिरौन बेहद शक्तिशाली और बहुत क्रूर था। मूसा के पास कुछ भी नहीं था, लेकिन वह परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने में सक्षम था। उसे परमेश्वर में सच्ची आस्था थी और वह मानता था कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है और परमेश्वर जो पूरा करना चाहता है उसे कोई भी ताकत नहीं रोक सकती। उसके दिल में कोई डर या चिंता नहीं थी। तथ्यों से पुष्टि हो गई कि पूरी प्रक्रिया के दौरान परमेश्वर का कार्य स्वयं परमेश्वर द्वारा किया गया था। परमेश्वर दस महामारियाँ लाया, लाल सागर को विभाजित किया और आखिरकार इस्राएलियों को मिस्र से बाहर लाने के लिए मूसा की अगुआई की। मूसा ने इन घटनाओं का अनुभव करके परमेश्वर का महान सामर्थ्य देखा, इसलिए परमेश्वर में उसकी आस्था और भी बढ़ गई। परमेश्वर में मूसा की आस्था के उलट मुझे सचमुच शर्मिंदगी महसूस हुई। अगुआ ने रिपोर्ट पत्र सँभालने के लिए मेरी व्यवस्था की थी, लेकिन मुझे निगरानी और गिरफ्तार होने का डर था और इसलिए मैं आसानी से समर्पण कर यह कर्तव्य स्वीकार नहीं कर पाई। मैंने इन उच्च तकनीक वाले उपकरणों को बहुत शक्तिशाली माना, मुझे लगा कि पुलिस बड़ी आसानी से मुझे पकड़ लेगी। मैं अक्सर कहती थी कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है और मुझे परमेश्वर के अधिकार पर भरोसा करना चाहिए, लेकिन अब जब तथ्य मेरे सामने आए, तो मैं कायर और भयभीत हो गई थी, मुझमें बिल्कुल भी आस्था नहीं थी। मुझे एहसास हुआ कि मैं परमेश्वर की संप्रभुता को बिल्कुल नहीं जानती थी। भले ही हर जगह चेहरे की पहचान करने की क्षमता वाले निगरानी कैमरे लगे थे, लेकिन मुझे पकड़ा जाएगा या नहीं यह परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं पर निर्भर था। इसका एहसास होने पर मुझे आस्था मिली और मैं इससे बाहर निकलने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करने को तैयार थी।
रिपोर्ट पत्र सँभालने के दौरान एक कलीसिया अगुआ हमें हर दिन भाई-बहनों से मिलाने के लिए ले जाता था ताकि हम मामलों की जाँच-पड़ताल कर सकें और भले ही माहौल खतरनाक था, हम प्रार्थना करते थे और परमेश्वर पर भरोसा करते थे और हमने सफलतापूर्वक रिपोर्ट पत्रों को सँभाला। यह तो हमें इस कलीसिया से निकलने के बाद पता चला कि पुलिस ने इस अगुआ को पकड़ने के लिए पहले ही सार्वजनिक बुलेटिन बोर्ड पर उसकी तस्वीर लगा दी थी, लेकिन वह समय रहते छिप गया और पकड़ा नहीं गया। मैंने देखा कि परमेश्वर के कार्य की रक्षा स्वयं परमेश्वर करता है और वह हमारी भी रक्षा कर रहा है। इस अनुभव से मुझे कुछ आस्था मिली।
अब मार्च 2020 में आते हैं, जब मुझे पता चला था कि यांग चेन को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने प्रताड़ित किया था और जमानत पर रिहा होने के कुछ समय बाद ही उसकी मृत्यु हो गई थी। इसके तुरंत बाद मैंने यह भी सुना कि मई के अंत में सीसीपी विश्वासियों पर बड़े पैमाने पर कार्रवाई करने वाली है। एक सभा के दौरान अगुआ ने हमें बताया कि कई रिपोर्ट पत्रों को तत्काल सँभालने की जरूरत है, लेकिन उन्हें अभी तक ऐसा करने वाला कोई नहीं मिला है। बात करते समय अगुआ ने मेरी तरफ देखा। मेरा दिल धड़क उठा और मैंने सोचा, “तुम जो भी करो, बस मुझे रिपोर्ट पत्र सँभालने को मत कहना। मई में सीसीपी बड़े पैमाने पर एक और कार्रवाई शुरू करेगी और हाल के वर्षों में विश्वासियों को पकड़ने के लिए सड़कों और गलियों में कई और निगरानी कैमरे लगाए गए हैं। अगर मैं बाहर घूमती रही तो मेरे गिरफ्तार होने की आशंका बहुत अधिक है। यांग चेन को इतनी कम उम्र में पुलिस ने मौत के घाट उतार दिया, मैं यांग चेन से 10 साल से भी ज्यादा बड़ी हूँ, इसलिए अगर मुझे पकड़ा गया, तो मैं और भी कम यातना झेल पाऊँगी। मैं मारी न भी जाऊँ, तो भी मैं शायद अपंग तो हो ही जाऊँगी।” यह सोचकर मुझे थोड़ा डर लगा। उस पल अगुआ ने मुझसे पूछा, “तुमने पहले भी रिपोर्ट पत्र सँभाले हैं, इसलिए मैं चाहता हूँ कि इस बार भी तुम ही जाओ। क्या खयाल है?” हालाँकि मुझे अपने दिल में पता था कि अपने कर्तव्य से बचना परमेश्वर के इरादों के अनुरूप नहीं है, मैंने सोचा कि यह कर्तव्य वास्तव में बहुत खतरनाक है, इसलिए मैंने यह कहते हुए टालने का बहाना बनाया, “बहन शेन रान को भेद की पहचान है और वह अच्छी तरह से संगति करना जानती है। तुम उसके जाने की व्यवस्था कर सकती हो। वह बस पास के ही कलीसिया में है, इसलिए उसके लिए जाना सुविधाजनक रहेगा।” लेकिन अगुआ ने कहा कि शेन रान ने पहले कभी भी रिपोर्ट पत्र नहीं सँभाले हैं और मुझे उसके साथ जाने के लिए कहा, तो मेरे पास सहमत होने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। उसके बाद मैंने रिपोर्ट पत्र सत्यापित करने के लिए शेन रान के साथ भाई-बहनों से मिलने की व्यवस्था की और हमने जल्दी से तीन रिपोर्ट पत्र सँभाल लिए।
बाद में मैंने खुद पर विचार किया और सोचा, “खतरनाक कर्तव्यों से सामना होने पर मैं हमेशा सबसे पहले अपने बारे में ही क्यों सोचती हूँ और यहाँ तक कि अपने कर्तव्य से बचना चाहती हूँ? मुझे कौन नियंत्रित कर रहा है?” बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : “शैतान राष्ट्रीय सरकारों और प्रसिद्ध एवं महान व्यक्तियों की शिक्षा और प्रभाव के माध्यम से लोगों को दूषित करता है। उनके शैतानी शब्द मनुष्य के जीवन और प्रकृति बन गए हैं। ‘हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए’ एक प्रसिद्ध शैतानी कहावत है जिसे हर किसी में डाल दिया गया है और यह मनुष्य का जीवन बन गया है। सांसारिक आचरण के फलसफों के लिए कुछ अन्य शब्द भी हैं जो इसी तरह के हैं। शैतान प्रत्येक देश के लोगों को शिक्षित करने, गुमराह करने और भ्रष्ट करने के लिए पारंपरिक संस्कृति का इस्तेमाल करता है, और मानवजाति को विनाश की विशाल खाई में गिरने और उसके द्वारा निगल लिए जाने पर मजबूर कर देता है, और अंत में, परमेश्वर लोगों को नष्ट कर देता है क्योंकि वे शैतान की सेवा करते हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं। ... शैतान ने मनुष्य को गंभीर ढंग से दूषित कर दिया है। शैतान का विष हर व्यक्ति के रक्त में बहता है, और यह कहा जा सकता है कि मनुष्य की प्रकृति भ्रष्ट, दुष्ट, प्रतिरोधात्मक और परमेश्वर के विरोध में है, शैतान के फलसफों और विषों से भरी हुई और उनमें डूबी हुई है। यह पूरी तरह शैतान का प्रकृति-सार बन गया है। इसीलिए लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं और परमेश्वर के विरूद्ध खड़े रहते हैं” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें)। परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन से मुझे एहसास हुआ कि बार-बार मैंने अपने कर्तव्य से कतराकर खुद को बचाने की कोशिश की। ऐसा इसलिए था क्योंकि “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए” और “बुरा जीवन भी अच्छी मृत्यु से बेहतर है” जैसे शैतानी जहरों ने मेरे दिल में गहराई से जड़ें जमा ली थीं और लंबे समय से मेरी प्रकृति बन गए थे। जब भी कोई चीज मेरे हितों से जुड़ी होती, तो मैं खुद के बारे में विचार किए बिना नहीं रह पाती थी। विकट परिस्थितियों के दौरान रिपोर्ट पत्रों का ढेर लग गया था और अगुआ ने मेरे लिए यह कर्तव्य निभाने की व्यवस्था की थी, लेकिन मैं लगातार अपने हितों के बारे में सोच रही थी। मुझे पकड़े जाने, अपंग होने या पीट-पीटकर मार दिए जाने का डर था, जिसका कोई अच्छा परिणाम या गंतव्य नहीं था, इसलिए मैंने अपने कर्तव्य से कतराने के लिए बहाने बनाए और यहाँ तक कि शिकायत भी की कि अगुआ ने इसे सँभालने के लिए दूसरों की व्यवस्था नहीं की। मैंने सोचा कि बहन शेन रान को सुरक्षा जोखिम था लेकिन फिर भी वह यह कर्तव्य निभाने के लिए तैयार थी, जबकि मैं बस घर पर रहना चाहती थी, यह मानती थी कि इससे मेरे पकड़े जाने की आशंका कम हो जाएगी। मैं वास्तव में स्वार्थी और नीच थी जिसमें बिल्कुल भी मानवता नहीं थी! मैंने परमेश्वर के वचनों के सिंचन और आपूर्ति का आनंद लिया था, परमेश्वर के प्रेम का भरपूर आनंद लिया था, इसलिए अहम क्षणों में मुझे परमेश्वर का ऋण चुकाने के लिए अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना चाहिए था और जितनी जल्दी हो सके कलीसिया से मसीह-विरोधियों, बुरे लोगों और छद्म विश्वासियों को निकाल देना चाहिए था ताकि भाई-बहनों को एक अच्छा कलीसियाई जीवन और अपने कर्तव्य निभाने के लिए एक जगह मिल पाए। लेकिन मैंने कलीसिया के हितों या भाई-बहनों के जीवन प्रवेश के बारे में कोई विचार नहीं किया, केवल अपनी सुरक्षा के बारे में सोचा। क्या मैं परमेश्वर से विश्वासघात नहीं कर रही थी? मैं वास्तव में परमेश्वर की उपस्थिति में रहने योग्य नहीं थी! इस एहसास के बाद मैं अब अपने भ्रष्ट स्वभाव में जीते रहना और परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह जारी नहीं रखना चाहती थी। मैंने अपने भ्रष्ट स्वभाव के समाधान के लिए परमेश्वर के वचनों में अभ्यास का मार्ग खोजा।
मैंने परमेश्वर के वचनों के इन अंशों को पढ़ा : “परमेश्वर तुम्हें अपने घर का सदस्य और अपने कार्यों के विस्तार का एक भाग मानता है। इस बिंदु पर, तुम्हारे पास वह कर्तव्य है जिसका तुम्हें निर्वाह करना चाहिए। तुम जो कुछ भी करने में सक्षम हो, जो कुछ भी हासिल करने में सक्षम हो, वे तुम्हारी जिम्मेदारियां और तुम्हारा कर्तव्य हैं। कहा जा सकता है कि वे परमेश्वर का आदेश हैं, तुम्हारा मिशन हैं और तुम्हारे निर्दिष्ट कर्तव्य हैं। कर्तव्य परमेश्वर से आते हैं; ये वे ज़िम्मेदारियाँ और आदेश हैं जिन्हें परमेश्वर मनुष्य को सौंपता है। तो फिर, मनुष्य को उन्हें कैसे समझना चाहिए? ‘चूंकि यह मेरा कर्तव्य और परमेश्वर द्वारा मुझे दिया गया आदेश है, इसलिए यह मेरा दायित्व और जिम्मेदारी है। यह उचित ही है कि मैं इसे अपना परम कर्तव्य समझूं। मैं इसे मना या अस्वीकार नहीं कर सकता; मैं इसमें चुनाव नहीं कर सकता। जो मुझे सौंपा गया है, निश्चित रूप से मुझे वही करना चाहिए। ऐसा नहीं है कि मैं चयन का हकदार नहीं हूं—पर यह ऐसा है कि मुझे चयन नहीं करना चाहिए। यही वह भाव है जो किसी सृजित प्राणी में होना चाहिए।’ यह समर्पण का रवैया है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। “परमेश्वर तुमसे चाहे कुछ भी माँगे, तुम्हें अपनी पूरी ताकत के साथ केवल इस ओर काम करने की आवश्यकता है, और मुझे आशा है कि इन अंतिम दिनों में तुम परमेश्वर के समक्ष उसके प्रति वफादारी निभाने में सक्षम होगे। जब तक तुम सिंहासन पर बैठे परमेश्वर की संतुष्ट मुसकराहट देख सकते हो, तो भले ही यह तुम्हारी मृत्यु का नियत समय ही क्यों न हो, आँखें बंद करते समय भी तुम्हें हँसने और मुसकराने में सक्षम होना चाहिए। जब तक तुम जीवित हो, तुम्हें परमेश्वर के लिए अपना अंतिम कर्तव्य निभाना चाहिए। अतीत में, पतरस को परमेश्वर के लिए क्रूस पर उलटा लटका दिया गया था; परंतु तुम्हें इन अंतिम दिनों में परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए, और उसके लिए अपनी सारी ऊर्जा खर्च कर देनी चाहिए। कोई सृजित प्राणी परमेश्वर के लिए क्या कर सकता है? इसलिए तुम्हें पहले से ही अपने आपको परमेश्वर को सौंप देना चाहिए, ताकि वह अपनी इच्छा के अनुसार तुम्हारी योजना बना सके। जब तक इससे परमेश्वर खुश और प्रसन्न होता हो, तो उसे अपने साथ जो चाहे करने दो। मनुष्यों को शिकायत के शब्द बोलने का क्या अधिकार है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 41)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए मैंने समझा कि परमेश्वर का घर मेरे लिए चाहे जिस कर्तव्य की व्यवस्था करे, यह मेरी जिम्मेदारी और दायित्व है और मुझे इसे अपने अपरिहार्य कर्तव्य के रूप में स्वीकार करना चाहिए। हमें कब और क्या पीड़ा सहनी है, यह सब परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित है। यदि परमेश्वर मुझे पकड़े जाने देता, तो मैं बिना किसी शिकायत के परमेश्वर की संप्रभुता के आगे समर्पण करने को तैयार हो जाती और भले ही मैं अपंग कर दी जाती या पीट-पीटकर मार डाली जाती, मैं कभी भी बड़े लाल अजगर के आगे नहीं झुकती। बड़े लाल अजगर को अपमानित करने के लिए मुझे अपनी गवाही में अडिग रहना था। मैंने पूरे इतिहास के संतों के बारे में सोचा, जो प्रभु यीशु के सुसमाचार का प्रचार करने के कारण पत्थरों से मार दिए गए, घोड़ों द्वारा खींचकर जिनके टुकड़े कर दिए गए, आरे से चीर दिए गए या फाँसी पर लटका दिए गए। ऐसा लग सकता है कि वे दर्दनाक ढंग से मरे, लेकिन उनकी आत्मा नष्ट नहीं हुई और उन्होंने अपने जीवन का उपयोग प्रभु यीशु की गवाही देने के लिए किया और वे परमेश्वर द्वारा स्वीकृत हुए। इसके उलट एक मैं हूँ जो सृजित प्राणी के रूप में परमेश्वर द्वारा दी गई सभी चीजों का आनंद ले रही हूँ, लेकिन जब खतरनाक स्थितियों का सामना करना पड़ा, तो मैंने खुद को बचाने के लिए अपने कर्तव्यों से मुँह मोड़ लिया। ऐसा व्यक्ति परमेश्वर की नजर में एक कायर गद्दार है और भले ही शरीर संघर्षरत हो, वह केवल भूसा है। जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा : “जो अपने प्राण बचाता है, वह उसे खोएगा; और जो मेरे कारण अपना प्राण खोता है, वह उसे पाएगा” (मत्ती 10:39)।
जून 2023 में सीसीपी ने सामूहिक गिरफ्तारियों का एक और अभियान चलाया और मेरे गृहनगर की कई कलीसियाओं में सौ से अधिक लोग गिरफ्तार किए गए। कई भाई-बहन डरे हुए थे और उनका सामान्य कलीसियाई जीवन चला गया था। अक्टूबर के मध्य में उन कलीसियाओं में से एक में लोगों को गुमराह करने वाले झूठे मसीह से जुड़ी एक घटना घटी, कई भाई-बहन गुमराह हो गए और एक यहूदा के विश्वासघात के कारण पूरी कलीसिया पुलिस की निगरानी में आ गई। बाद का कार्य सँभालने के लिए तत्काल किसी की जरूरत थी और अगुआ मेरे जाने की व्यवस्था करना चाहते थे। इस बारे में सोचकर कि उस कलीसिया में स्थिति कितनी विकट है, मुझे लगा कि बाद का कार्य सँभालने के दौरान पकड़े जाने की बहुत अधिक आशंका है और मैं कुछ हद तक डरपोक और भयभीत महसूस कर रही थी। लेकिन अपने पिछले अनुभव याद करते हुए मुझे एहसास हुआ कि यह परमेश्वर की ओर से यह देखने के लिए परीक्षा है कि क्या मैं उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होकर उसके प्रति वफादार रह सकती हूँ। इस बार मैं फिर से परमेश्वर को निराश नहीं करना चाहती थी, इसलिए मैंने यह कर्तव्य स्वीकार कर लिया। बाद में सहयोग के दौरान मुझे कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन परमेश्वर पर भरोसा करके और वास्तव में कार्य करके मैंने परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों को सफलतापूर्वक स्थानांतरित कर दिया और झूठे मसीह द्वारा गुमराह किए गए अधिकांश भाई-बहनों को बचा लिया गया।
इस अनुभव से मुझे परमेश्वर में और अधिक आस्था हो गई और मुझे परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता के बारे में भी कुछ समझ मिली और मुझे एहसास हुआ कि सीसीपी की अनियंत्रित हरकतें परमेश्वर के हाथों में हैं। जैसा कि परमेश्वर ने कहा : “परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानवजाति की तो बात ही छोड़ दो। परमेश्वर की दृष्टि में, शैतान पहाड़ पर उगने वाली कुमुदनियों से, हवा में उड़ने वाले पक्षियों से, समुद्र में रहने वाली मछलियों से, और पृथ्वी पर रहने वाले कीड़ों से भी तुच्छ है। सभी चीजों के बीच उसकी भूमिका सभी चीजों की सेवा करना, मानवजाति की सेवा करना और परमेश्वर के कार्य और उसकी प्रबंधन-योजना की सेवा करना है। उसकी प्रकृति कितनी भी दुर्भावनापूर्ण क्यों न हो, और उसका सार कितना भी बुरा क्यों न हो, केवल एक चीज जो वह कर सकता है, वह है अपने कार्य का कर्तव्यनिष्ठा से पालन करना : परमेश्वर के लिए सेवा देना, और परमेश्वर को एक विषमता प्रदान करना। ऐसा है शैतान का सार और उसकी स्थिति। उसका सार जीवन से असंबद्ध है, सामर्थ्य से असंबद्ध है, अधिकार से असंबद्ध है; वह परमेश्वर के हाथ में केवल एक खिलौना है, परमेश्वर की सेवा में रत सिर्फ एक मशीन है!” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)।