85. पैसे के बंधन से कैसे मुक्त हों

मेंगफैन, चीन

मेरे माता-पिता का निधन मेरे बचपन में ही हो गया था। घर पर हम बहुत से भाई-बहन थे, हम बहुत गरीब थे और सभी पड़ोसी हमें नीची नजरों से देखते थे। कभी-कभी जब मैं पड़ोसी के बच्चों के साथ खेलने जाती थी तो पड़ोसी मुझे बाहर निकालने का बहाना ढूँढ़ लेते थे। मुझे बहुत दुख होता था और लगता था कि लोग हमें नीची नजरों से देखते हैं क्योंकि हम गरीब हैं। एक बार वसंत में जब मौसम गर्म होने लगा था, मेरे पास बदलने के लिए कोई मौसमी कपड़े नहीं थे, इसलिए मैंने सूती जैकेट और पैंट पहनना जारी रखा, उनकी भराई बाहर निकल रही थी। जब मैं सार्वजनिक जगहों पर घूमती थी तो लोग मेरी ओर इशारा करते हुए कहते थे, “इस बिन माँ की बेचारी बच्ची को देखो!” मुझे दूसरों को अच्छा खाते और अच्छे कपड़े पहनते देखकर बहुत ईर्ष्या होती थी और मैं सोचती थी, “जब मैं बड़ी हो जाऊँगी तो मैं बहुत सारा पैसा कमाऊँगी, ताकि मैं जो चाहूँ खा सकूँ, पहन सकूँ और फिर कभी नीची नजरों से न देखी जाऊँ।” बाद में मेरी शादी हो गई, लेकिन मेरे पति का परिवार भी गरीब था। रिश्तेदार और पड़ोसी हमें नीची नजरों से देखते थे, लेकिन मैंने सोचा, “अगर हम कड़ी मेहनत करते रहे तो यकीनन अपनी स्थिति बदल सकते हैं और अमीर बन सकते हैं।” मैंने और मेरे पति ने अस्थायी नौकरियाँ कीं, छोटे-मोटे व्यवसाय किए और कृषि उत्पादों का व्यापार किया। अगर हमें पैसे कमाने का कोई तरीका पता चलता था तो वह चाहे जो भी हो, हम उसे आजमाते थे। लेकिन कुछ साल बाद भी हम बस गुजारा करने लायक पैसे जुटा पाए और हमारे पास ज्यादा बचत नहीं थी। एक बार दोस्तों के साथ खाना खाते समय उनमें से एक ने हमारा मजाक उड़ाया, “ऐसा नहीं है कि मैं तुम्हें नीची नजरों से देखता हूँ, लेकिन भले ही तुम अगले दस साल काम कर लो तो भी तुम उस तरह नहीं जी पाओगे, जैसा मैं अभी जी रहा हूँ!” उसके शब्दों ने मुझे बहुत गुस्सा दिलाया। ऐसा लगा जैसे मुझे थप्पड़ मारा गया हो और मेरा चेहरा तमतमा गया। मैंने सोचा, “तुम अपना मुँह बंद करो। जैसा कि कहा जाता है, ‘गरीबी की कोई जड़ नहीं होती, न ही धन का कोई बीज होता है।’ धन और गरीबी पत्थर की लकीर नहीं है और अगर हम कड़ी मेहनत करते रहे तो हमेशा गरीब नहीं रहेंगे!” मैंने अपने पति से कहा, “हम इस बात को अपने ऊपर हावी नहीं होने दे सकते, हमें उससे बेहतर प्रदर्शन करना होगा और उसे यह मनवाना होगा कि वह गलत था।”

बाद में हमने सामान्य चीजों का थोक व्यापार शुरू करने के लिए पैसे उधार लिए। अपने ग्राहकों को संतुष्ट करने के लिए हम उनके दरवाजे तक सामान पहुँचाते थे, मैं और मेरा पति सामान ढोते थे और घर-घर जाकर बेचते थे। ग्राहक बनाने के लिए हम उन्हें सस्ते दाम पर या उधार बेचते थे। कुछ ग्राहक अप्रिय बातें कहते थे, लेकिन पैसे कमाने के लिए हमें बस मुस्कुराते रहना पड़ता था। मैं दिन में कम से कम दस घंटे काम करती थी और दिनभर मैं इतनी थक जाती थी कि न चाहते हुए भी झपकी लेने लगती थी, लेकिन फिर भी मैंने खुद को आराम करने नहीं दिया। जैसे-जैसे व्यापार में सुधार हुआ, हमने अपने परिचालन का विस्तार किया। लागत बचाने के लिए हमने किसी को काम पर नहीं रखा और हम सारा सामान खुद ही चढ़ाते और उतारते। रोज ही दिन खत्म होने तक हम इतने थक जाते थे कि हमारे पास बात करने की भी ऊर्जा नहीं होती थी। कई वर्षों तक ऐसा चलने के बाद हमने आखिरकार कुछ पैसे कमाए, अपने कर्ज चुकाए और एक डिलीवरी कार खरीदी। हमने एक घर भी बनाया और अपने इलाके में कुछ हद तक प्रसिद्ध हो गए। रिश्तेदार और दोस्त इतना योग्य और सक्षम होने के लिए हमें सराहते थे और हमारी तारीफ करते थे। दोस्तों और रिश्तेदारों से मिली यह सारी तारीफ मुझे गर्व महसूस कराती थी और मैं सोचती थी, “वो दिन आखिरकार लद गए जब लोग मुझे हेय दृष्टि से देखते थे और अब मैं दूसरों के सामने अपना सिर ऊँचा रख सकती हूँ। पैसा होना कितनी बड़ी बात है! जबकि मैं अभी भी युवा हूँ और काम करने के लिए फिट हूँ, मैं और भी अधिक पैसे कमाना चाहती हूँ, एक बेहतर घर और कार खरीदना चाहती हूँ और बेहतर जिंदगी जीना चाहती हूँ जिससे लोग मेरी और अधिक सराहना करें!” उसके बाद मैंने और भी कड़ी मेहनत की और मैं इतनी व्यस्त हो गई कि मेरे पास नियमित भोजन के लिए भी समय नहीं होता था। जब मैं रात को बिस्तर पर लेटी होती तो मेरा दिमाग अभी भी व्यावसायिक मामलों में उलझा रहता और कभी-कभी मैं पूरी रात सो पाए बिना गुजार देती थी, यहाँ तक कि नींद की गोलियाँ भी काम नहीं आती थीं। सूरज उगने से पहले ही मुझे डिलीवरी के लिए कॉल आ जाते और मैं उन्हें पहुँचाने के लिए दौड़ पड़ती। मैं हर दिन घबराई रहती थी। क्योंकि कुछ सामान ज्वलनशील था, कभी-कभी जब मैं रात को सो रही होती और कार की हेडलाइट घर में चमकती तो मुझे लगता कि आग लग गई है, मैं उछलकर बाहर भागती और देखती कि कहीं आग तो नहीं लग गई है। मेरी नसें हमेशा तनी हुई रहती थीं और इस तरह जीना थकाऊ था। लेकिन जब मैं देखती कि मैंने कितना पैसा कमाया है तो मैं खुश हो जाती, मैं इस बारे में सोचती थी कि कैसे मैं और भी ज्यादा पैसा कमाना चाहती हूँ ताकि उन लोगों को शर्मिंदा कर सकूँ जो मुझे हेय दृष्टि से देखते थे।

एक दिन जब मेरा पति घर पर नहीं था, मैंने अकेले ही एक बड़ा ट्रक माल उतारा और उस रात सोते समय मेरी पीठ में बहुत दर्द हुआ। अगली सुबह मेरी पीठ में इतना दर्द हो रहा था कि मैं झुक नहीं पा रही थी और चलना तक मुश्किल था। मैं अस्पताल गई और डॉक्टर ने बताया कि मुझे रीढ़ की हड्डी खिसकने की समस्या ‘हर्नियेटेड डिस्क’ है। उसने कहा कि मुझे आराम करने की जरूरत है और मैं अब भारी काम नहीं कर सकती और अगर मैंने इस पर आइंदा जोर डाला तो यह स्थिति और बिगड़ सकती है और लकवे का कारण बन सकती है। डॉक्टर की बातों ने मुझे दहला दिया। मैंने कारोबार अपने पति को सौंपने और कुछ समय आराम करने की सोची, लेकिन फिर मुझे ख्याल आया कि मेरा पति कितना लापरवाह है। वह स्टोर के उत्पादों के खरीद मूल्य या खुदरा मूल्य की परवाह नहीं करता था और मेरे बिना स्टोर नहीं चल सकता था। व्यापार इतना अच्छा चल रहा था कि एक दिन भी गैरहाजिर होने का मतलब था बहुत सारा पैसा गँवा देना। मैंने सोचा कि मैं जब तक मैं जा सकती हूँ जाती रहूँगी और जब आखिरकार गिर जाऊँगी तो तभी रुकूँगी। इसलिए मैंने काम करना जारी रखा और जब भी संभव हुआ, बीच-बीच में इलाज कराने के लिए समय निकालती रही। बाद में मुझे हृदय रोग, गर्भाशय फाइब्रॉएड, एलर्जिक राइनाइटिस और न्यूरैस्थेनिया हो गया। कभी-कभी मैं पूरी रात सो नहीं पाती थी, मैं बहुत चिड़चिड़ी हो गई, अपने आस-पास के हर व्यक्ति और हर चीज से मुझे खीझ होती थी और मैं अक्सर भड़क जाती थी। भले ही मेरे पास पैसे थे, लेकिन बीमारी की यातना ने मुझे ऐसा महसूस कराया कि जीवन जीने लायक नहीं है। एक स्मृति जो वाकई उल्लेखनीय है, वह वसंत महोत्सव की पूर्व संध्या की है, जब बहुत देर हो चुकी थी। सड़क किनारे की सभी दुकानें बंद थीं और मैं पूरी सड़क पर अकेली बची थी। मैंने दुकान के सामने सामान का एक बड़ा ढेर देखा जिसे अंदर ले जाने की जरूरत थी, लेकिन मैं इतना थक गई थी कि मेरे पास चलने की भी ताकत नहीं थी। मैंने अकेलेपन और वीरानी की एक सिहरन महसूस की और यह अनुभूति महसूस की कि यह जीवन मुझ पर कैसा कठोर और थकाऊ बोझ डाल रहा है। आँखों में आँसू भरकर मैंने आसमान की ओर देखा और फफक-फफककर रो पड़ी, “हे स्वर्ग! मैं इस तरह जीने से बहुत थक गई हूँ। क्या जीवन वाकई सिर्फ पैसा कमाने के बारे में है? जीवन का सच्चा उद्देश्य क्या है?”

जब मैं इस दर्द और उलझन में संघर्ष कर रही थी, 2014 के वसंत में हाल-फिलहाल में ही परमेश्वर का अंत का दिनों कार्य स्वीकार करने वाली मेरी बेटी ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार सुनाया। उस समय मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा जिसने मेरे दिल को गहराई से प्रभावित किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “सर्वशक्तिमान ने बुरी तरह से पीड़ित इन लोगों पर दया की है; साथ ही, वह उन लोगों से विमुख महसूस करता है जिनमें जरा-सा भी चेतना नहीं है, क्योंकि उसे लोगों से जवाब पाने के लिए बहुत लंबा इंतजार करना पड़ा है। वह खोजना चाहता है, तुम्हारे दिल और तुम्हारी आत्मा को खोजना चाहता है, तुम्हें पानी और भोजन देना चाहता है, ताकि तुम जाग जाओ और अब तुम भूखे या प्यासे न रहो। जब तुम थक जाओ और तुम्हें इस दुनिया के बेरंगपन का कुछ-कुछ एहसास होने लगे, तो तुम दिशाहीन मत होना, रोना मत। सर्वशक्तिमान परमेश्वर, प्रहरी, किसी भी समय तुम्हारे आगमन को गले लगा लेगा। वह तुम्हारी बगल में पहरा दे रहा है, तुम्हारे लौट आने का इंतजार कर रहा है। वह उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा है जिस दिन तुम अचानक अपनी याददाश्त फिर से पा लोगे : जब तुम्हें यह एहसास होगा कि तुम परमेश्वर से आए हो लेकिन किसी अज्ञात समय में तुमने अपनी दिशा खो दी थी, किसी अज्ञात समय में तुम सड़क पर होश खो बैठे थे, और किसी अज्ञात समय में तुमने एक ‘पिता’ को पा लिया था; इसके अलावा, जब तुम्हें एहसास होगा कि सर्वशक्तिमान तो हमेशा से ही तुम पर नज़र रखे हुए है, तुम्हारी वापसी के लिए बहुत लंबे समय से इंतजार कर रहा है। वह हताश लालसा लिए देखता रहा है, जवाब के बिना, एक प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करता रहा है। उसका नज़र रखना और प्रतीक्षा करना बहुत ही अनमोल है, और यह मानवीय हृदय और मानवीय आत्मा के लिए है। शायद ऐसे नज़र रखना और प्रतीक्षा करना अनिश्चितकालीन है, या शायद इनका अंत होने वाला है। लेकिन तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम्हारा दिल और तुम्हारी आत्मा इस वक्त कहाँ हैं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सर्वशक्तिमान की आह)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैं बहुत भावुक हो गई और मैं खुद को रोने से रोक नहीं पाई। यह पता चला कि परमेश्वर हमेशा मेरे साथ था, मेरे लौटने का इंतजार कर रहा था। पैसों के अनुसरण में मैंने खुद को थका दिया था और बीमार बना लिया था। मैं अपने दिन बेचैनी में बिताती थी और मेरा जीवन बहुत पीड़ादायक और खाली लगता था। परमेश्वर ने मुझे सुसमाचार सुनाने के लिए मेरी बेटी का उपयोग किया, मुझे परमेश्वर की वाणी सुनने दी और परमेश्वर के घर लौटने दिया। उस पल मुझे लगा जैसे मैं अपने माता-पिता के पास लौट आई हूँ और मेरा दिल शांति, सहजता और इस बोध से भर गया कि मेरे पास कोई है जिस पर भरोसा किया जा सकता है।

परमेश्वर को पाने के बाद मेरी मानसिक दशा अधिकाधिक सुधरती गई और धीरे-धीरे मेरी हृदय गति सामान्य हो गई। मेरी एलर्जिक राइनाइटिस में भी सुधार हुआ और मैं रात को सो पा रही थी। मुझे पता था कि परमेश्वर ने मेरी बीमारी हर ली है और मेरा दिल परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता से भर गया। बाद में मैंने कलीसिया में नवागंतुकों के सिंचन का काम सँभाला। इस तरह मैं अपना व्यवसाय सँभालने के साथ-साथ अपना कर्तव्य भी निभा रही थी, लेकिन ज्यादातर समय मेरा दिल अभी भी अपने व्यवसाय में ही लगा रहता था और मुझे लगता था कि यह तब तक ठीक है जब तक इससे नवागंतुकों के साथ होने वाली सभाओं में खलल न पड़े। कभी-कभी किसी सभा से पहले वाली रात को ग्राहक सामान लेने आते थे और अधिक बिक्री के लिए मैं उन्हें और अधिक उत्पाद दिखाती रहती थी। जब तक मैं घर पहुँचती, तब तक बहुत देर हो चुकी होती थी, मैं इतना थक जाती थी कि मेरा पूरा शरीर दर्द करने लगता था और मैं घुटनों के बल प्रार्थना करते हुए सो जाती थी। क्योंकि मैंने ठीक से आराम नहीं किया होता था, इसलिए अगले दिन नवागंतुकों के साथ होने वाली सभाओं में मुझे नींद आने लगती थी। उस समय जिस बहन का मैं सिंचन कर रही थी, वह भी अपने व्यवसाय में व्यस्त थी। वह हमेशा सभाओं में देर से आती थी, लेकिन मैं उसके साथ केवल शब्दों और धर्म-सिद्धांतों के बारे में बात करती थी और उसकी दशा का समाधान नहीं करती थी। कभी-कभी सभाओं के दौरान मैं ग्राहकों को सामान पहुँचाने के लिए जल्दी से घर जाने के बारे में सोचती थी, चिंतित रहती थी कि अगर मैंने कुछ देर से डिलीवरी की तो ग्राहक उसे लेना नहीं चाहेंगे। मेरा दिल स्थिर नहीं हो पाता था और मैं बस यह चाहती थी कि सभाएँ जल्दी से खत्म हो जाएँ। एक दूसरे मौके की बात है, मेरा पति सामान खरीदने के लिए शहर से बाहर गया था और वह कई दिनों के लिए गया था। उन दिनों मुझे नवागंतुकों का सिंचन करना था और अगर मैं अपना कर्तव्य करने के लिए बाहर जाती तो दुकान बंद करनी पड़ती। मैं सोचती थी, “मैं एक दिन में एक हजार युआन से ज्यादा कमा सकती हूँ। अगर मैं कई दिनों तक दुकान बंद रखूँ तो मुझे कितना पैसा गँवाना पड़ेगा?” इसलिए मैंने अगुआ से कपट से कहा, “अगर मैं दुकान बंद रखूँगी तो पड़ोसियों को शक होने लगेगा कि मैं परमेश्वर में विश्वास करती हूँ और इससे सुरक्षा में जोखिम पैदा हो सकता है।” इसलिए अपनी ओर से मैंने अगुआ से नवागंतुकों के लिए सभाओं की मेजबानी करवाई। एक शाम को भोजन के बाद मुझे अचानक चक्कर आने लगा और पेट में बेचैनी होने लगी, जिससे मैंने अभी-अभी खाया हुआ सारा खाना उल्टी कर बाहर निकाल दिया। पहले मुझे लगा कि शायद यह कुछ खाने के कारण हुआ हो, लेकिन उल्टी होने के बाद चक्कर आना और बढ़ गए। मेरा पति मुझे अस्पताल ले गया और मैं अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना करती रही, “हे परमेश्वर, तुमने आज मुझे यह बीमारी होने दी है। मुझे प्रबुद्ध करो ताकि मैं तुम्हारा इरादा समझ सकूँ और देख सकूँ कि मैंने कहाँ गलती की है। मैं पश्चात्ताप करने को तैयार हूँ।”

मैंने खोज में परमेश्वर के वचनों के एक अंश के बारे में सोचा : “अगर मैं तुम लोगों के सामने कुछ पैसे रखूँ और तुम्हें चुनने की आजादी दूँ—और अगर मैं तुम्हारी पसंद के लिए तुम्हारी निंदा न करूँ—तो तुममें से ज्यादातर लोग पैसे का चुनाव करेंगे और सत्य को छोड़ देंगे। तुममें से जो बेहतर होंगे, वे पैसे को छोड़ देंगे और अनिच्छा से सत्य को चुन लेंगे, जबकि इन दोनों के बीच वाले एक हाथ से पैसे को पकड़ लेंगे और दूसरे हाथ से सत्य को। इस तरह तुम्हारा असली रंग क्या स्वतः प्रकट नहीं हो जाता? सत्य और किसी ऐसी अन्य चीज के बीच, जिसके प्रति तुम वफादार हो, तुम सभी ऐसा ही चुनाव करोगे, और तुम्हारा रवैया ऐसा ही रहता। क्या ऐसा नहीं है? क्या तुम लोगों में बहुतेरे ऐसे नहीं हैं, जो सही और गलत के बीच डगमगाए हैं? सकारात्मक और नकारात्मक, काले और सफेद, परिवार और परमेश्वर, संतानों और परमेश्वर, सौहार्द और बिगाड़, धन और गरीबी, रुतबा और मामूलीपन, समर्थन दिए जाने और ठुकरा दिए जाने इत्यादि के बीच सभी संघर्ष के दौरान तुम लोगों ने जो विकल्प चुने हैं उनके बारे में तुम लोग निश्चित ही अनजान नहीं हो! एक सौहार्दपूर्ण परिवार और टूटे हुए परिवार के बीच तुमने पहले को चुना और तुमने ऐसा बिना किसी संकोच के किया; धन-संपत्ति और कर्तव्य के बीच तुमने फिर से पहले को चुना, यहाँ तक कि तुममें किनारे पर वापस लौटने की इच्छा भी नहीं रही; विलासिता और निर्धनता के बीच तुमने पहले को चुना; अपने बेटों, बेटियों, पत्नियों और पतियों तथा मेरे बीच तुमने पहले को चुना; और धारणा और सत्य के बीच तुमने अब भी पहले को चुना। तुम लोगों के तरह-तरह के बुरे कर्मों को देखते हुए मेरा विश्वास तुम पर से बिल्कुल उठ गया है, मैं बिल्कुल स्तब्ध हूँ। तुम्हारे हृदय अप्रत्याशित रूप से इतने कठोर हैं कि उन्हें कोमल नहीं बनाया जा सकता। सालों तक मैंने अपने हृदय का जो खून खपाया है, उससे मुझे आश्चर्यजनक रूप से तुम्हारे परित्याग और विवशता से अधिक कुछ नहीं मिला, लेकिन तुम लोगों के प्रति मेरी आशाएँ हर गुजरते दिन के साथ बढ़ती ही जाती हैं, क्योंकि मेरा दिन सबके सामने पूरी तरह से खुला पड़ा रहा है। फिर भी अब तुम लोग अंधेरी और बुरी चीजों का पीछा कर रहे हो और उनसे अपनी पकड़ ढीली करने से इनकार करते हो। तो फिर तुम्हारा परिणाम क्या होगा? क्या तुम लोगों ने कभी इस पर सावधानी से विचार किया है? अगर तुम लोगों को फिर से चुनाव करने को कहा जाए, तो तुम्हारा क्या रुख रहेगा? क्या अब भी तुम लोग पहले को ही चुनोगे? क्या अब भी तुम मुझे निराशा और पीड़ादायक शोक ही पहुँचाओगे? क्या अब भी तुम्हारे हृदयों में जरा-सी भी गर्मजोशी होगी? क्या तुम अब भी इस बात से अनभिज्ञ रहोगे कि मेरे हृदय को सुकून पहुँचाने के लिए तुम्हें क्या करना चाहिए? इस क्षण तुम्हारा चुनाव क्या है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम किसके प्रति वफादार हो?)। परमेश्वर के वचनों पर चिंतन करूँ और अपने व्यवहार के बारे में सोचूँ तो क्या मैं बिल्कुल वही व्यक्ति नहीं थी जिसके बारे में परमेश्वर ने कहा था, जो एक हाथ में धन और दूसरे हाथ में सत्य पकड़ने की कोशिश कर रही है? हालाँकि मैं परमेश्वर में विश्वास करती थी और अपना कर्तव्य निभाती थी, फिर भी मेरा मन हर दिन व्यापार में लगा रहता था और मैं हमेशा इस बारे में सोचती रहती थी कि कैसे अधिक पैसा कमाया जाए। मैं अपना सारा समय धन कमाने में बिताती थी और शायद ही कभी परमेश्वर के वचनों को खाती या पीती थी। मैं अपने कर्तव्य से ऐसे पेश आती थी कि जैसे यह कोई खाली समय में करने वाली चीज हो और जब मैं इसे करती थी तो अनमने ढंग से करती थी, बस खानापूरी करती थी। नवागंतुकों का सिंचन करने के अपने कर्तव्य में प्रशिक्षित होने में सक्षम होना परमेश्वर द्वारा मेरा उत्थान था और मुझे गंभीरता से इस बात पर विचार करना चाहिए कि मैं अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से कैसे निभाऊँ, अपने भाई-बहनों की दशाओं और मुश्किलों को कैसे सुलझाऊँ। लेकिन मैंने अपने कर्तव्य को अपनी जिम्मेदारी नहीं माना था और मेरा मन केवल इस बात पर केंद्रित था कि कैसे अधिक पैसा कमाया जाए। मैं अपने व्यवसाय के लिए हर दिन देर तक जागती थी, जिससे अगले दिन नवागंतुकों के साथ सभाओं के दौरान मुझे नींद आती थी और मैं सिर्फ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों पर संगति करती थी। हालाँकि सभाओं के दौरान मेरे पास भाई-बहनों के साथ ज्यादा संगति करने का समय होता था, मैं डरती थी कि अगर सभाएँ देर से खत्म होंगी तो इससे अपनी चीजें बेचने में देरी होगी, इसलिए मैं सभाएँ जल्दी-जल्दी खत्म कर देती थी। ज्यादा पैसे कमाने के लिए मैंने अगुआ से झूठ भी बोला, उसे नवागंतुकों के साथ सभाओं में मेजबान के तौर पर मेरे लिए खड़े होने के लिए कहा। परमेश्वर को पाने से पहले मैं हर दिन पैसे के लिए खुद को व्यस्त रखती थी, खुद को थका देती थी और बीमार बना लेती थी। मैं इस हद तक संताप और असहनीय दर्द में थी कि मैंने जीने की हिम्मत तक खो दी। यह परमेश्वर ही था जिसने मुझे बचाया और मुझे अपनी वाणी सुनने दी और मुझे परमेश्वर के उद्धार के लिए कृतज्ञ होना चाहिए और परमेश्वर को संतुष्ट करने के वास्ते अपना कर्तव्य अच्छे से निभाने के लिए जीवन में एक बार मिलने वाले इस अवसर को लपक लेना चाहिए। लेकिन मेरा दिमाग अभी भी ऐसे विचारों से भरा हुआ था कि कैसे और अधिक पैसा कमाया जाए और जब भी मेरा कर्तव्य मेरे व्यक्तिगत हितों से टकराता था तो मैं हमेशा अपने कर्तव्य को एक तरफ रख देती थी। मैं वाकई स्वार्थी और नीच थी और मुझमें मानवता की कमी थी! परमेश्वर कहता है : “अगर तुम लोगों को फिर से चुनाव करने को कहा जाए, तो तुम्हारा क्या रुख रहेगा? क्या अब भी तुम लोग पहले को ही चुनोगे?” मैं केवल पैसे के अनुसरण पर ध्यान केंद्रित किया करती थी और अपना कर्तव्य अच्छे से नहीं निभाती थी, लेकिन परमेश्वर ने मुझे चुनने का एक और मौका दिया। मैं परमेश्वर पर भरोसा करने, पैसे के अनुसरण को ताक पर रखने, परमेश्वर के वचनों को अधिक खाने और पीने, सत्य का अनुसरण करने और अपने कर्तव्य के प्रति अपने हृदय को समर्पित करने के लिए तैयार थी।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “लोग अपना सारा जीवन धन-दौलत, प्रसिद्धि और लाभ का पीछा करते हुए बिता देते हैं; वे इन तिनकों को कसकर पकड़े रहते हैं, उन्हें केवल अपने जीवन का एकमात्र सहारा मानते हैं, मानो कि उनके होने से वे निरंतर जीवित रह सकते हैं और मृत्यु से बच सकते हैं। परन्तु जब मृत्यु उनके सामने खड़ी होती है, केवल तभी उन्हें समझ आता है कि ये चीज़ें उनकी पहुँच से कितनी दूर हैं और मृत्यु के सामने वे कितने कमज़ोर और शक्तिहीन हैं, वे कितने असुरक्षित हैं और कितने एकाकी और असहाय हैं, और वे कहीं से सहायता नहीं माँग सकते। उन्हें समझ आ जाता है कि जीवन को धन-दौलत, प्रसिद्धि और लाभ से नहीं खरीदा जा सकता है, कि कोई व्यक्ति चाहे कितना ही धनी क्यों न हो, उसका पद कितना ही ऊँचा क्यों न हो, मृत्यु के सामने सभी समान रूप से कंगाल और महत्वहीन हैं। उन्हें समझ आ जाता है कि धन-दौलत से जीवन नहीं खरीदा जा सकता है, प्रसिद्धि और लाभ मृत्यु को नहीं मिटा सकते, न तो धन-दौलत और न ही प्रसिद्धि और लाभ किसी व्यक्ति के जीवन को एक मिनट, या एक पल के लिए भी बढ़ा सकते हैं(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिल को छू लिया। मैंने बस दूसरों से सराहना पाने की खातिर पैसा कमाने के लिए बेतहाशा काम किया, मानती रही कि पैसा कमाने से मुझे सब कुछ मिल जाएगा। लेकिन जब बीमारी का कष्ट आया तो पैसे ने मेरा दर्द कम करने में कोई मदद नहीं की। केवल तब जाकर मुझे एहसास हुआ, “अगर मैं अपनी जान गँवा दूँ तो ज्यादा पैसे कमाने से क्या फायदा? अगर मैं मर गई तो लोगों से क्षणिक सराहना और प्रशंसा पाने से क्या फायदा?” मैंने अपने दो अमीर पड़ोसियों के बारे में सोचा। एक को तीस की उम्र में ल्यूकेमिया हो गया और बहुत सारा पैसा खर्च करने के बावजूद वह कभी ठीक नहीं हो पाई। आखिर में वह अपने पीछे दो छोटे बच्चों को छोड़कर चल बसी। एक अन्य पड़ोसी अपनी उम्र के चालीस के दशक में था, उसे दिमाग में रक्तस्राव हुआ, वह वानस्पतिक दशा में चला गया और कुछ समय बाद ही उसकी मृत्यु हो गई। यह देखकर मुझे एहसास हुआ कि कोई भी रकम किसी इंसान की जिंदगी नहीं बढ़ा सकती और मुझे पता था कि मैं सिर्फ पैसा कमाने के लिए अपनी जान जोखिम में नहीं डाल सकती। इसके बाद मैं अपने कर्तव्य पर ध्यान केंद्रित करने लगी। अपने कर्तव्यों के अलावा मैंने परमेश्वर के सामने खुद को शांत रखने, उसके वचनों को खाने-पीने और खुद को सत्य से सुसज्जित करने का अभ्यास किया। धीरे-धीरे मेरे कर्तव्य के नतीजे बेहतर होते गए और मुझे सभी के साथ कलीसिया का जीवन जीने में भी बहुत आनंद मिला।

एक दिन अपना कर्तव्य पूरा करने के बाद मैं दुकान पर लौटी, मेरे पति ने मुझे बिक्री की पर्ची थमाई और मैंने देखा कि कुछ मदों का हिसाब नहीं था। जब मैंने ग्राहक से पता किया तो मुझे पता चला कि मेरे पति ने कई चीजों को कम दर्ज किया था। एक चालान भी था जिसमें उसे 500 युआन लगाने चाहिए थे, लेकिन उसने सिर्फ 50 युआन लिखे थे। मैंने सोचा, “मुझे हमेशा से पता था कि मेरा पति लापरवाह है, अक्सर कम कीमत लगाता है और अतिरिक्त सामान दे देता है और हर दिन सामान खरीदने आने वाले ग्राहकों के चलते इस हिसाब से तो कोई भी रकम हमारे नुकसान की भरपाई नहीं कर पाएगी। ऐसा लगता है कि दुकान वाकई मेरे बिना नहीं चल सकती।” मेरे लिए इस मामले को एक तरफ रखना मुश्किल हो गया। उसी पल मुझे एहसास हुआ कि मैं एक बार फिर पैसे पर ध्यान केंद्रित कर रही हूँ, इसलिए मैंने सोचा, “मैं जानती हूँ कि किसी व्यक्ति के पास कितना पैसा होना है, यह परमेश्वर द्वारा पूर्वनियत है, तो मुझे पैसे का अनुसरण करने से पीछे हटने में हमेशा इतनी परेशानी क्यों होती है?” मैंने पढ़ा कि परमेश्वर के वचन कहते हैं : “‘दुनिया पैसों के इशारों पर नाचती है’ यह शैतान का एक फ़लसफ़ा है। यह संपूर्ण मानवजाति में, हर मानव-समाज में प्रचलित है; तुम कह सकते हो, यह एक रुझान है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यह हर एक व्यक्ति के हृदय में बैठा दिया गया है, जिन्होंने पहले तो इस कहावत को स्वीकार नहीं किया, किंतु फिर जब वे जीवन की वास्तविकताओं के संपर्क में आए, तो इसे मूक सहमति दे दी, और महसूस करना शुरू किया कि ये वचन वास्तव में सत्य हैं। क्या यह शैतान द्वारा मनुष्य को भ्रष्ट करने की प्रक्रिया नहीं है? शायद लोगों के पास इस कहावत को लेकर समान मात्रा में अनुभवजन्य ज्ञान नहीं होता, बल्कि हर एक आदमी अपने आसपास घटित घटनाओं और अपने निजी अनुभवों के आधार पर इस कहावत की अलग-अलग रूप में व्याख्या करता है और इसे अलग-अलग मात्रा में स्वीकार करता है। क्या ऐसा नहीं है? चाहे इस कहावत के संबंध में किसी के पास कितना भी अनुभव हो, इसका किसी के हृदय पर कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है? तुम लोगों में से प्रत्येक को शामिल करते हुए, दुनिया के लोगों के स्वभाव के माध्यम से कोई चीज प्रकट होती है। यह क्या है? यह पैसे की उपासना है। क्या इसे किसी के हृदय में से निकालना कठिन है? यह बहुत कठिन है! ऐसा प्रतीत होता है कि शैतान का मनुष्य को भ्रष्ट करना सचमुच गहन है! शैतान लोगों को प्रलोभन देने के लिए धन का उपयोग करता है, और उन्हें भ्रष्ट करके उनसे धन की आराधना करवाता है और भौतिक चीजों की पूजा करवाता है। और लोगों में धन की इस आराधना की अभिव्यक्ति कैसे होती है? क्या तुम लोगों को लगता है कि बिना पैसे के तुम लोग इस दुनिया में जीवित नहीं रह सकते, कि पैसे के बिना एक दिन जीना भी असंभव होगा? लोगों की हैसियत इस बात पर निर्भर करती है कि उनके पास कितना पैसा है, और वे उतना ही सम्मान पाते हैं। गरीबों की कमर शर्म से झुक जाती है, जबकि धनी अपनी ऊँची हैसियत का मज़ा लेते हैं। वे ऊँचे और गर्व से खड़े होते हैं, जोर से बोलते हैं और अहंकार से जीते हैं। यह कहावत और रुझान लोगों के लिए क्या लाता है? क्या यह सच नहीं है कि पैसे पाने के लिए लोग कुछ भी बलिदान कर सकते हैं? क्या अधिक पैसे की खोज में कई लोग अपनी गरिमा और ईमान का बलिदान नहीं कर देते? क्या कई लोग पैसे की खातिर अपना कर्तव्य निभाने और परमेश्वर का अनुसरण करने का अवसर नहीं गँवा देते? क्या सत्य प्राप्त करने और बचाए जाने का अवसर खोना लोगों का सबसे बड़ा नुकसान नहीं है? क्या मनुष्य को इस हद तक भ्रष्ट करने के लिए इस विधि और इस कहावत का उपयोग करने के कारण शैतान कुटिल नहीं है?(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है V)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे एहसास हुआ कि सराहना पाने के लिए धन खोजना कोई सकारात्मक बात नहीं है और यह शैतान द्वारा लोगों को भ्रष्ट करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला तरीका है। लोग पैसे के लिए जीते हैं और एक बार जब उनके पास कुछ पैसा आ जाता है तो वे और अधिक चाहते हैं। धन के लिए उनकी इच्छा बढ़ती ही जाती है और अंत में वे पैसे के लिए मर जाते हैं, सत्य का अनुसरण करने और बचाए जाने का अपना अवसर गँवा देते हैं। जब मैं छोटी थी तो हमारा परिवार गरीब था और हमारे आस-पास के लोग हमारा मजाक उड़ाते थे, इसलिए मैं दूसरों से कमतर महसूस करती थी। जब मैं बड़ी हुई और फिर भी पैसा नहीं कमा सकी तो दोस्त और रिश्तेदार मुझे नीची नजर से देखते थे और मुझे और भी ज्यादा लगने लगा कि पैसे के बिना जीवन असहनीय है। इसलिए मैंने पैसा कमाने को अपना जीवन लक्ष्य बना लिया। मैं इन जहरों के अनुसार जीती थी कि “पैसा ही सब कुछ नहीं है, किन्तु इसके बिना, आप कुछ नहीं कर सकते हैं,” “दुनिया पैसों के इशारों पर नाचती है,” “मनुष्य धन के लिए मरता है, जैसे पक्षी भोजन के लिए मरते हैं” और ऐसे ही अन्य जहरों के अनुसार जीती थी जो शैतान लोगों में भरता है। जब तक मैं पैसे कमा सकती थी, मैं कोई भी मुश्किल सहने के लिए तैयार थी और जब मैं हर्नियेटेड डिस्क से लकवाग्रस्त होने के कगार पर थी, तब भी मैंने आराम नहीं किया। मुझे चिंता थी कि काम न करने का मतलब कम पैसे कमाना है, इसलिए मैं खुद को धकेलती रही, मानों मैं बाइक चला रही हूँ और मैं तब तक नहीं रुकूँगी जब तक कि वह गिर न जाए। आखिरकार मेरी बीमारी ने मुझे इतना दर्द दिया कि मैं जीना नहीं चाहती थी। परमेश्वर को पाने के बाद भी मैं इन शैतानी जहरों से जीती रही। भले ही मैं अपने कर्तव्य कर रही थी, फिर भी मेरा दिल इस बात पर केंद्रित था कि कैसे अधिक से अधिक पैसे कमाए जाएँ और सभाओं में मैं बस खानापूरी कर रही थी और समय बिता रही थी। इससे मेरे भाई-बहनों के जीवन प्रवेश में नुकसान हुआ और मैं कोई प्रगति नहीं कर पाई। शैतान के जहर के अनुसार जीने ने मुझे अपने कर्तव्य निर्वहन में केवल पीड़ा और अपराध ही दिए। सराहना अर्जित करने के लिए धन का अनुसरण वह तरीका है जिससे शैतान लोगों को नियंत्रित करता है और उन्हें विनाश की ओर ले जाता है। मैं अब और शैतान के प्रलोभन में नहीं आना चाहती थी, धन-दौलत के पीछे भागकर अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहती थी। मुझे अपनी ऊर्जा परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने और अपने कर्तव्य निभाने पर केंद्रित करनी थी। उसके बाद मैंने व्यवसाय पर कम ध्यान दिया, दुकान पर जाना कम किया और मुझे शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से बहुत आराम मिला। बाद में मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े : “एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो सामान्य है और जो परमेश्वर के लिए प्रेम का अनुसरण करता है, परमेश्वर के जन बनने के लिए राज्य में प्रवेश करना ही तुम लोगों का सच्चा भविष्य है और यह ऐसा जीवन है, जो अत्यंत मूल्यवान और सार्थक है; कोई भी तुम लोगों से अधिक धन्य नहीं है। मैं यह क्यों कहता हूँ? क्योंकि जो लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, वो देह के लिए जीते हैं और वो शैतान के लिए जीते हैं, लेकिन आज तुम लोग परमेश्वर के लिए जीते हो और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलने के लिए जीवित हो। यही कारण है कि मैं कहता हूँ कि तुम्हारा जीवन सबसे सार्थक है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करो)। पहले मैं देह और पैसे के लिए जी रही थी, दूसरों से सराहना पाने के पीछे भागती थी और विनाश के रास्ते पर चल रही थी। अब मैं परमेश्वर का अनुसरण करने, सत्य का अनुसरण करने और एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य पूरा करने में सक्षम थी। यही सबसे मूल्यवान और सार्थक जीवन है। मुझे अवश्य ही अपने विचारों को सत्य के अनुसरण और अपने कर्तव्यों पर केंद्रित करना चाहिए और परमेश्वर के प्रेम का बदला चुकाने के लिए अपने कर्तव्य अच्छे से निभाने चाहिए।

एक दिन मेरा पति घर आया और मुझे बताया कि हमारे क्षेत्र में एक हाइपरमार्केट खुला है और विपणन विभाग व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए बड़े व्यापारियों को आकर्षित करके शुरुआत करना चाहता है। वे हमारे जैसे बड़े व्यापारियों को बहुत अनुकूल शर्तें दे रहे थे, हमें तीन साल का मुफ्त किराया और मुफ्त गोदाम की जगह दे रहे थे। मेरे पति ने मुझसे इस मामले पर चर्चा की और मेरे लिए वहाँ सामान बेचने के लिए स्टॉक करना चाहा, कहा कि इसमें गारंटीशुदा लाभ है। मैं थोड़ा-सा ललचा गई और सोचने लगी, “क्या यह हमारे लिए सुनहरा अवसर नहीं है? हम अभी हर साल किराए के रूप में दसियों हजार युआन का भुगतान कर रहे हैं। अगर हम इस नए बाजार में थोक और खुदरा व्यापार करते हैं तो हमारा व्यवसाय निश्चित रूप से चमक उठेगा और एक बार जब हम ज्यादा कमा लेते हैं तो हम बेहतर घर और अच्छी कार खरीद सकते हैं। इससे हमारे रिश्तेदार और दोस्त हमारी और भी अधिक सराहना करेंगे और हमसे और भी अधिक ईर्ष्या करेंगे!” लेकिन अगर मैं सहमत हो गई तो मुझे और मेरे पति को अलग-अलग स्टोर चलाने पड़ेंगे और यूँ तो हम बहुत ज्यादा पैसे कमा लेंगे, लेकिन हम निश्चित रूप से पहले से ज्यादा व्यस्त और थके हुए होंगे। मैंने परमेश्वर के वचनों के एक अंश के बारे में सोचा : “परमेश्वर द्वारा मनुष्य पर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक कदम में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय विघ्न से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक कदम, और घटित होने वाली हर चीज, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाजी है और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब का परीक्षण हुआ : पर्दे के पीछे शैतान परमेश्वर के साथ शर्त लगा रहा था और अय्यूब के साथ जो हुआ वह मनुष्यों के कर्म थे और मनुष्यों के विघ्न थे। परमेश्वर द्वारा तुम लोगों में किए गए कार्य के हर कदम के पीछे शैतान की परमेश्वर के साथ बाजी होती है—इस सब के पीछे एक लड़ाई होती है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए मुझे एहसास हुआ, “क्या यह हूबहू शैतान का प्रलोभन नहीं है? अगर हम एक और स्टोर खोलते हैं तो हम ज्यादा पैसे कमा सकते हैं और अपनी प्रतिष्ठा बढ़ा सकते हैं, लेकिन तब मेरे पास परमेश्वर के वचन खाने और पीने या अपने कर्तव्य निभाने का समय नहीं होगा। क्या यह मेरे बचाए जाने के अवसर को चौपट नहीं कर देगा?” मैंने सोचा कि प्रभु यीशु ने क्या कहा : “यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्‍त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा?(मत्ती 16:26)। यह बिल्कुल सही था। चाहे मैं कितना भी पैसा कमा लूँ, अगर मेरी जान ही चली जाए तो इसका क्या फायदा? परमेश्वर मुझे पहले ही काफी आशीष दे चुका था, इसलिए मैं अपना सारा समय और सारी ऊर्जा पैसा कमाने में नहीं लगाए रख सकती थी। परमेश्वर का इरादा समझते हुए मैंने अपने पति को नए बाजार में दुकान खोलने का विचार छोड़ने के लिए मनाया। मुझे हैरानी हुई कि वह मान गया और मैंने अपने दिल में राहत की एक गहरी भावना महसूस की। पैसे के बंधन से मेरा मुक्त होना मुझमें परमेश्वर के वचनों के कार्य करने का नतीजा है!

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