91. मैंने ईर्ष्या को कैसे दूर किया

मेल्विन, दक्षिण कोरिया

मैं कलीसिया में वीडियो बनाता था और आमतौर पर मेरे बनाए वीडियो में कुछ नई विशेषताएँ होती थीं। जब भाई-बहन ये वीडियो देखते थे तो वे बहुत सहायक होते थे और जब वे समस्याओं का सामना करते थे तो अक्सर मदद के लिए मेरे पास आते थे। मुझे लगता था कि मैं अच्छा कर रहा हूँ और मेरे पास कुछ योग्यता और खूबियाँ हैं। 2016 में मुझे पर्यवेक्षक चुना गया और मुझे काफी खुशी हुई। मैंने सोचा कि पर्यवेक्षक बनने में सक्षम होने का मतलब है कि मेरे पास अच्छे तकनीकी कौशल हैं और मैं भाई-बहनों से थोड़ा-बहुत बेहतर हूँ। सभी को यह दिखाने के लिए कि मैं अपने काम में सक्षम हूँ, मैंने और भी कड़ी मेहनत से पेशेवर ज्ञान का अध्ययन किया। बाद में अगुआ ने बहन डाएन की मेरे साथ सहयोग करने की व्यवस्था की। उसके पास अच्छी काबिलियत थी और अच्छे खासे तकनीकी कौशल थे, इसलिए मैं उसके साथ सहयोग करके खुश था। हम अक्सर वीडियो नवाचार और साथ मिलकर अपनी तकनीकों को बेहतर बनाने के तरीके पर चर्चा करते थे और अपने आदान-प्रदान और चर्चाओं के जरिए हमें हमेशा कुछ प्रकाश मिलता था। मुझे लगता था कि ऐसी बहन के साथ मेरी भागीदारी होना बहुत अच्छी बात है। कुछ समय बाद हमारे बनाए गए वीडियो की गुणवत्ता में काफी सुधार हो गया। डाएन अक्सर सभी को तकनीकी कौशल सीखने को इकट्ठा करती थी और जब भाई-बहनों को मुश्किलें आती थीं तो वह परमेश्वर के वचनों के प्रकाश में उन पर संगति और उनका समाधान कर सकती थी। धीरे-धीरे मुझे उससे थोड़ी जलन होने लगी। खास तौर पर काम पर चर्चा करते समय जब भाई-बहन सवाल पूछने के लिए उसके आसपास इकट्ठे होते थे, तो मुझे बहुत बुरा लगता था और सोचता था कि मेरी उपेक्षा की जा रही है। मैं सोचता था, “अगर ऐसे ही चलता रहा तो क्या मैं सिर्फ सजावटी पर्यवेक्षक नहीं रह जाऊँगा? फिर भाई-बहन मेरे बारे में क्या सोचेंगे? क्या वे सोचेंगे कि मैं डाएन जितना अच्छा नहीं हूँ?” इसलिए मैंने यह सोचकर खुद को चुपके से प्रेरित किया, “ऐसे नहीं चलेगा, मुझे दोगुनी मेहनत करनी होगी, मैं उससे पीछे नहीं रह सकता!”

इसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों पर चिंतन करने के लिए इस आशा से और अधिक समय दिया कि उनसे कुछ रोशनी हासिल करूँ ताकि सभाओं के दौरान मैं उन अंतर्दृष्टियों पर संगति कर सकूँ जो दूसरों को नहीं मिली थीं। मैं सबको यह दिखाना चाहता था कि मैं चीजों को डाएन से बेहतर समझता हूँ। पेशेवर कौशल सीखने में मैंने लगन से अध्ययन किया, अक्सर अतिरिक्त समय लगाता था और जानकारी खोजने के लिए देर रात तक जागता रहता था। हालाँकि नतीजे बहुत अच्छे नहीं थे और कुछ तकनीकी कठिनाइयाँ अभी भी हल नहीं हुई थीं। सच तो यह था कि मुझे पता था कि डाएन के पास तकनीकी कौशल का अध्ययन करने के कुछ अच्छे तरीके हैं, लेकिन मैं उससे पूछने को यह सोचकर तैयार नहीं था, “उसके आने से पहले मैं ही भाई-बहनों को सीखने के लिए एक साथ ला रहा था और नतीजे बहुत अच्छे थे। अगर मैं उससे जाकर पूछता हूँ तो क्या इससे सिर्फ यह नहीं दिखेगा कि मैं उसके जितना अच्छा नहीं हूँ? अगर भाई-बहनों को पता चल गया तो वे निश्चित रूप से कहेंगे कि भले ही मैं इतने लंबे समय से अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ, फिर भी मेरी काबिलियत नई आई बहन जितनी अच्छी नहीं है।” इस बात को ध्यान में रखकर मैं उससे मदद माँगने में और भी कम इच्छुक था। लगातार कई दिनों तक मैंने न केवल कुछ भी नहीं सीखा, बल्कि मैंने बहुत समय और ऊर्जा भी बरबाद की। लग रहा था मानो मेरा दिल किसी भारी पत्थर के नीचे दबा हो और मुझे बहुत थकान महसूस हो रही थी। बाद में मेरी ईर्ष्या और भी प्रबल हो गई। मुझे एक सभा की याद है, मैंने यह सोचकर परमेश्वर के वचनों पर पहले ही चिंतन कर लिया कि मुझे इस सभा में किसी नई रोशनी पर संगति करनी है, लेकिन जब संगति करने की बारी आई तो मुझे कुछ नहीं सूझा और मैं पहले से तैयार की गई संगति नहीं कर सका। डाएन को स्पष्ट और व्यावहारिक रूप से संगति करते हुए देखकर भाई-बहन सहमति में सिर हिला रहे थे, मैं बहुत परेशान हो गया, सोचने लगा, “क्या तुम कम नहीं बोल सकती हो और मुझे शर्मिंदा होने से बचाने की थोड़ी गुंजाइश नहीं छोड़ सकती हो? तुम्हारी संगति के बाद सब लोग तुलनात्मक रूप से मुझे कैसे देखेंगे? क्या वे सोचेंगे कि मैं तुम्हारे जितना अच्छा नहीं हूँ?” जितना अधिक मैंने ऐसा सोचा, उतना ही डाएन के प्रति मेरा पूर्वाग्रह बढ़ता गया। मुझे लगा कि उसके साथ सहयोग करने से मैं बेकार लग रहा हूँ। मुझे बेहद अपमानित महसूस हुआ! उसकी संगति के बाद मैं एक शब्द भी नहीं बोलना चाहता था या अपना सिर नहीं उठाना चाहता था, मुझे डर था कि भाई-बहन मेरी अजीब अभिव्यक्ति देख लेंगे। तब डाएन ने मुझसे पूछा, “क्या तुम इसमें कुछ जोड़ना चाहते हो?” तब मैं अपने होश में आया और शांत भाव से मैंने कहा, “नहीं।” मैं बस इतना चाहता था कि बस सभा खत्म हो जाए। उसके बाद साथ में सहयोग करते समय मैं हमेशा उससे बचने के बहाने ढूँढ़ता रहता था और कभी-कभी जब वह मुझे काम के बारे में बताने के लिए संदेश भेजती थी तो मैं उन्हें देखता तो था लेकिन जवाब नहीं देना चाहता था। कभी-कभी मैं अंदर से उसके विचारों से सहमत भी होता था, लेकिन फिर भी मैं ठंडे दिमाग से ऐसी बातें कहता था, “तुम जो कह रही हो वह केवल एक पहलू से जुड़ा है,” जिसका अर्थ है, “तुम समग्रता में नहीं देख रही हो, इसलिए दिखावा करने की कोशिश करना बंद करो!” जब हमने भाई-बहनों के बनाए वीडियो देखे तो उसने कुछ सुझाव दिए, जो मुझे उचित लगे, लेकिन मैं फिर भी छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देता और मुद्दों की ओर इशारा करता। उसके बाद डाएन मुझसे बात करते समय बहुत सतर्क रहने लगी, जैसे उसे कुछ गलत कहने का डर हो और काम पर चर्चा करते समय वह हिचकिचाने लगती, अक्सर मुझसे ऐसी बातें पूछती थी, “क्या यह ठीक है? वह कैसा रहेगा?” सभाओं में संगति के दौरान वह कभी-कभी मेरी ओर देख लेती थी। मुझे एहसास हुआ कि मैं अपनी बहन को बेबस कर रहा हूँ और मुझे थोड़ा-बहुत अपराध-बोध हुआ। मुझे लगा कि उसके साथ इस तरह व्यवहार करना अनुचित है, लेकिन मुझे पता नहीं था कि उसका सामना कैसे करूँ। कभी-कभी मैं सोचता था, “काश, वह इस टीम में न आई होती तो मैं अभी भी अगुआई कर सकता था।”

इस दौरान मैं ईर्ष्यालु होने की दशा में जीता रहा, लगातार सोचता रहता था कि डाएन से कैसे आगे निकलूँ और मेरा मन अपने कर्तव्यों पर बिल्कुल भी नहीं था, मैं भाई-बहनों के बनाए वीडियो की जाँच करते समय भी समस्याएँ नहीं ढूँढ़ पाता था। एक दिन अगुआ मेरे पास आया और बोला कि मैं प्रतिष्ठा और लाभ के लिए होड़ कर रहा हूँ, मैं प्रतिभाशाली व्यक्तियों से ईर्ष्या करता हूँ और यह कि मैं दूसरों के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग नहीं कर रहा हूँ और इसने वीडियो के काम को प्रभावित किया है और मुझे बरखास्त कर दिया जाएगा और मुझे गहराई से आत्म-चिंतन करना चाहिए। अगुआ के यह कहने पर मैं अवाक रह गया और मुझे कुछ नहीं सूझा और अगुआ ने जो कुछ और संगति की वह मैंने नहीं सुनी। अगले दिन अगुआ ने मेरे लिए यह व्यवस्था करनी चाही कि अपने चित्रांकन कौशल के कारण मैं ग्राफिक डिजाइन करूँ, लेकिन कला टीम की प्रभारी बहन ने कहा कि उसके पास पहले ही पर्याप्त सदस्य हैं और उसे किसी और की जरूरत नहीं है। यह मेरे लिए एक बड़ा झटका था और मुझे लगा कि मैं एक बेकार व्यक्ति हूँ जिसे कोई नहीं चाहता और मैं पूरी तरह से बेनकाब हो गया हूँ और हटा दिया गया हूँ। मैं खुद से हार मानने की दशा में जी रहा था, प्रार्थना करना या परमेश्वर के वचन पढ़ना नहीं चाहता था और मैं भाई-बहनों का सामना करने की हिम्मत नहीं करता था। मैं इतनी ज्यादा पीड़ा में था। एक रात मैं एक बुरे सपने से जाग गया, पसीने से लथपथ, डर और बेचैनी से भरा हुआ और मुझे एहसास हुआ कि अगर मैं इतना हताश और भ्रष्ट रहा, तो मेरा वास्तव में खुलासा कर मुझे हटा दिया जाएगा। मैंने घुटनों के बल बैठकर परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मैं अपनी समस्याओं को हल करना चाहता हूँ, कृपया मुझे प्रबुद्ध और रोशन करो ताकि मैं खुद को समझ पाऊँ और अपनी गलत दशा को बदल सकूँ।”

इसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “कलीसिया का अगुआ होने के नाते तुम्‍हें समस्याएँ सुलझाने के लिए केवल सत्य का प्रयोग सीखने की आवश्‍यकता ही नहीं है, बल्कि प्रतिभाशाली लोगों का पता लगाने और उन्‍हें विकसित करना सीखने की आवश्‍यकता भी है, जिनसे तुम्‍हें बिल्कुल ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए या जिनका बिल्कुल दमन नहीं करना चाहिए। इस तरह के अभ्यास से कलीसिया के काम को लाभ पहुँचता है। अगर तुम अपने कार्यों में सहयोग के लिए सत्य के कुछ खोजी तैयार कर सको और सारा काम अच्‍छी तरह से करो, और अंत में, तुम सभी के पास अनुभवजन्‍य गवाहियाँ हों, तो तुम एक योग्य अगुआ या कार्यकर्ता होंगे। यदि तुम हर चीज़ सिद्धांतों के अनुसार संभाल सको, तो तुम अपनी वफादारी निभा रहे हो। कुछ लोग हमेशा इस बात से डरे रहते हैं कि दूसरे लोग उनसे बेहतर और ऊपर हैं, अन्‍य लोगों को पहचान मिलेगी, जबकि उन्हें अनदेखा किया जाता है, और इसी वजह से वे दूसरों पर हमला करते हैं और उन्हें अलग कर देते हैं। क्या यह प्रतिभाशाली लोगों से ईर्ष्या करने का मामला नहीं है? क्या यह स्‍वार्थपूर्ण और निंदनीय नहीं है? यह कैसा स्वभाव है? यह दुर्भावना है! जो लोग दूसरों के बारे में सोचे बिना या परमेश्वर के घर के हितों को ध्‍यान में रखे बिना केवल अपने हितों के बारे में सोचते हैं, जो केवल अपनी स्‍वार्थपूर्ण इच्छाओं को संतुष्ट करते हैं, वे बुरे स्वभाव वाले होते हैं, और परमेश्वर में उनके लिए कोई प्र‍ेम नहीं होता। अगर तुम वाकई परमेश्वर के इरादों का ध्यान रखने में सक्षम हो, तो तुम दूसरे लोगों के साथ निष्पक्ष व्यवहार करने में सक्षम होंगे। अगर तुम किसी अच्छे व्यक्ति की सिफ़ारिश करते हो और उसे प्रशिक्षण प्राप्‍त करने और कोई कर्तव्य निर्वहन करने देते हो, और इस तरह एक प्रतिभाशाली व्यक्ति को परमेश्वर के घर में शामिल करते हो, तो क्या उससे तुम्‍हारा काम और आसान नहीं हो जाएगा? तब क्या यह तुम्‍हारा कर्तव्‍य के प्रति वफादारी प्रदर्शित करना नहीं होगा? यह परमेश्वर के समक्ष एक अच्छा कर्म है; अगुआ के रूप में सेवाएँ देने वालों के पास कम-से-कम इतनी अंतश्‍चेतना और तर्क तो होना ही चाहिए। जो लोग सत्य को अभ्‍यास में लाने में सक्षम हैं, वे अपने कार्यों में परमेश्वर की पड़ताल को स्वीकार कर सकते हैं। परमेश्वर की पड़ताल को स्वीकार करने पर तुम्‍हारा हृदय निष्कपट हो जाएगा(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर उजागर करता है कि लोग हमेशा इस बात से डरे रहते हैं कि दूसरे उनसे बेहतर या ऊपर हैं और यही बात उन्हें दूसरों पर हमला करने और उन्हें अलग-थलग करने की ओर ले जाती है। ऐसे लोग प्रतिभावान लोगों के प्रति ईर्ष्यालु होते हैं और दुर्भावनापूर्ण स्वभाव रखते हैं। मैं ऐसी ही दशा में था। यह देखकर कि डाएन में अच्छी काबिलियत और तकनीकी कौशल हैं और भाई-बहन उसकी प्रशंसा करते हैं और उससे सवाल पूछते हैं, मुझे संकट का एहसास हुआ, मुझे डर था कि वह मुझे पीछे छोड़ देगी। अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए मैंने पेशेवर ज्ञान का अध्ययन करने और परमेश्वर के वचनों पर चिंतन करने के लिए कड़ी मेहनत की और यहाँ तक कि सभाओं के दौरान भी मैं यह सोचता था कि किस तरह संगति करूँ कि उससे आगे निकल जाऊँ। डाएन को व्यावहारिक रूप से संगति करते देखकर मुझे ईर्ष्या और नाराजगी महसूस होती थी और यहाँ तक कि मैंने उम्मीद की कि वह कोई गलती करे ताकि भाई-बहन उसकी अब और प्रशंसा न करें। मैंने बस अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को बचाने के बारे में सोचा। यह मेरा निरा स्वार्थीपन और घिनौनापन था! यह तथ्य कि डाएन में अच्छी काबिलियत थी और उसके काम के अच्छे नतीजे मिलते थे, एक अच्छी बात थी, क्योंकि इससे भाई-बहनों को मदद मिलती थी और कलीसिया के कार्य को लाभ होता था। यह परमेश्वर को सांत्वना देने वाला था और मुझे इस पर खुश होना चाहिए था। लेकिन मैंने इन बातों पर विचार नहीं किया और इसके बजाय मैं हमेशा इस बारे में सोचता रहा कि कैसे उससे आगे निकलूँ। यहाँ तक कि मैंने जान-बूझकर उसे अलग-थलग किया, मीन-मेख निकाली और उसके प्रति बुरा रवैया दिखाया, जिसने उसे बेबस किया और उसे नुकसान पहुँचाया। मैंने देखा कि मुझमें मानवता नहीं थी और मेरा स्वभाव दुर्भावनापूर्ण था। इस एहसास ने मुझे शर्मिंदा कर दिया। मैंने कभी नहीं उम्मीद की थी कि मैं इस तरह का व्यक्ति हूँ!

बाद में मैंने इस पर फिर से सोचा : मैं अपनी बहन के प्रति हमेशा ईर्ष्यालु रहा हूँ, मैंने कौन सा स्वभाव प्रकट किया? इसका कारण क्या था? मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “शक्ति और रुतबा हासिल करने के लिए मसीह-विरोधी कलीसिया में सबसे पहले दूसरों का भरोसा और सम्मान जीतने की कोशिश करते हैं, ताकि वे ज्यादा लोगों को अपने पक्ष में कर सकें, ज्यादा लोग उन्हें ऊँची नजरों से देखें और उनकी आराधना करें और इस तरह कलीसिया में अंतिम फैसला लेने और शक्ति पाने का उनका लक्ष्य पूरा होता है। जब शक्ति हासिल करने की बात आती है, वे दूसरे लोगों से होड़ करने और लड़ने में माहिर होते हैं। जो लोग सत्य का अनुसरण करते हैं, कलीसिया में जिनकी प्रतिष्ठा है और जिनसे भाई-बहन प्रेम करते हैं, वे उनके मुख्य प्रतिस्पर्धी होते हैं। जो कोई भी उनके रुतबे के लिए खतरा है वह उनका प्रतिस्पर्धी है। वे अपने से शक्तिशाली लोगों से बिना किसी हिचकिचाहट के होड़ करते हैं; और अपने से कमजोर लोगों से भी बिना किसी दया भाव के प्रतिस्पर्धा करते हैं। उनके दिल संघर्ष के फलसफों से भरे हुए हैं। उनका मानना है कि अगर लोग लड़ेंगे नहीं और होड़ नहीं करेंगे तो उन्हें कोई लाभ नहीं मिल पाएगा और वे केवल लड़कर और प्रतिस्पर्धा करके ही अपनी मनचाही चीजें हासिल कर सकते हैं। प्रतिष्ठा हासिल करने और लोगों के समूह में एक प्रमुख स्थान पाने के लिए वे दूसरों से प्रतिस्पर्धा करने के लिए कुछ भी करते हैं और वे ऐसे किसी भी व्यक्ति को नहीं छोड़ते जो उनके रुतबे के लिए खतरा हो। चाहे वे किसी से भी बातचीत करें, वे संघर्ष करने की इच्छा से भरे होते हैं और यहाँ तक कि जब वे बुजुर्ग हो जाते हैं, तब भी लड़ते रहते हैं। वे अक्सर कहते हैं : ‘अगर मैं उस व्यक्ति से प्रतिस्पर्धा करूँ तो क्या उसे हरा पाऊँगा?’ जो कोई भी वाक्पटु है और तर्कसंगत, संरचित और व्यवस्थित ढंग से बोल सकता है, वह उनकी ईर्ष्या और उनकी नकल का लक्ष्य बन जाता है। यहाँ तक कि वह उनका प्रतिस्पर्धी बन जाता है। जो कोई भी सत्य का अनुसरण करता है और आस्था रखता है, अक्सर भाई-बहनों की मदद करने और उन्हें सहारा देने में समर्थ है और उन्हें नकारात्मकता और कमजोरी से निकलने में सक्षम बना सकता है, वह भी उनकी प्रतिस्पर्धा का निशाना बन जाता है, उसी तरह कोई भी ऐसा व्यक्ति उनकी प्रतिस्पर्धा का निशाना बन जाता है जो किसी निश्चित पेशे में विशेषज्ञ है और जिसका भाई-बहन थोड़ा-बहुत सम्मान करते हैं। जो कोई भी अपने काम में नतीजा प्राप्त करता है और ऊपरवाले की स्वीकृति प्राप्त करता है, स्वाभाविक रूप से उनके लिए प्रतिस्पर्धा का एक बड़ा स्रोत बन जाता है। मसीह-विरोधी चाहे किसी भी समूह में हों, उनके आदर्श वाक्य क्या होते हैं? तुम लोग अपने विचार बताओ। (अन्य लोगों और स्वर्ग के साथ लड़कर बहुत मजा आता है।) क्या यह पागलपन नहीं है? यह पागलपन है। क्या कोई और भी है? (परमेश्वर, क्या वे यह नहीं सोचते कि : ‘सारे ब्रह्मांड का सर्वोच्च शासक बस मैं ही हूँ’? यानी कि वे सबसे ऊपर रहना चाहते हैं और चाहे वे किसी के भी साथ हों, हमेशा उनसे आगे निकलना चाहते हैं।) यह उनके कई विचारों में से एक है। कोई और विचार? (परमेश्वर, मुझे चार वचन याद आते हैं : ‘विजेता राजा होता है।’ मुझे लगता है कि वे हमेशा दूसरों से बेहतर बनना चाहते हैं और अलग दिखना चाहते हैं, चाहे वे कहीं भी हों और वे सबसे ऊपर रहने की कोशिश करते हैं।) तुम लोगों ने जो कुछ भी कहा है उनमें से ज्यादातर विचारों के प्रकार हैं; किसी प्रकार के व्यवहार का इस्तेमाल करके उनका वर्णन करने की कोशिश करो। यह जरूरी नहीं कि मसीह-विरोधी जहाँ भी हों, वहाँ सबसे ऊँचा स्थान पाना चाहते हों। जब भी वे किसी स्थान पर जाते हैं तो उनके पास एक स्वभाव और एक मानसिकता होती है जो उन्हें इस तरह काम करने के लिए मजबूर करती है। वह मानसिकता क्या है? वह यह है, ‘मुझे प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए! प्रतिस्पर्धा! प्रतिस्पर्धा!’ तीन ‘प्रतिस्पर्धाएँ’ क्यों, एक ही ‘प्रतिस्पर्धा’ क्यों नहीं? (प्रतियोगिता उनका जीवन बन गई है, वे इसी के सहारे जीते हैं।) यह उनका स्वभाव है। वे ऐसे स्वभाव के साथ पैदा हुए थे, जो बेतहाशा अहंकारी है और जिसे नियंत्रित करना मुश्किल है; यानी वे खुद को किसी से भी कम नहीं समझते और बेहद अहंकारी होते हैं। कोई भी उनका यह बेहद अहंकारी स्वभाव कम नहीं कर सकता; वे खुद भी इसे नियंत्रित नहीं कर सकते। इसलिए उनका जीवन लड़ने और प्रतिस्पर्धा करने वाला होता है। वे किसके लिए लड़ते और प्रतिस्पर्धा करते हैं? स्वाभाविक रूप से, वे शोहरत, लाभ, रुतबे, नाम और अपने हितों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। चाहे उन्हें जिन भी तरीकों का इस्तेमाल करना पड़े, अगर हर कोई उनके प्रति समर्पण करता है और अगर उन्हें अपने लिए लाभ और प्रतिष्ठा मिलती है तो उन्होंने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया होता है। प्रतिस्पर्धा करने की उनकी इच्छा कोई अस्थायी मनोरंजन नहीं होता; यह एक प्रकार का स्वभाव है, जो शैतानी प्रकृति से आता है। यह बड़े लाल अजगर के स्वभाव जैसा है, जो स्वर्ग से लड़ता है, पृथ्वी से लड़ता है और लोगों से लड़ता है। अब, जब मसीह-विरोधी कलीसिया में दूसरों से लड़ते और प्रतिस्पर्धा करते हैं तो वे क्या चाहते हैं? निस्संदेह, वे प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग तीन))। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ गया कि मसीह-विरोधियों में यही स्वभाव होता है—“प्रतिस्पर्धा! प्रतिस्पर्धा! प्रतिस्पर्धा!” वे मानते हैं कि केवल प्रतिस्पर्धा और लड़ाई के माध्यम से ही कोई अपनी हर इच्छित वस्तु पा सकता है। इसलिए चाहे वे किसी भी समूह के लोगों के बीच हों, वे शीर्ष पर पहुँचने के लिए जी-जान से लड़ेंगे। एक मसीह-विरोधी का यही प्रकृति सार होता है। परमेश्वर के वचनों के प्रकाश में आत्म-चिंतन करते हुए मुझे एहसास हुआ कि मैंने भी इसी तरह का स्वभाव प्रकट किया है। यह देखकर कि डाएन को भाई-बहनों की स्वीकृति और प्रशंसा मिली, मेरा दिल नाराजगी से भर गया था। मुझे लगा कि चूँकि मैं वीडियो बना रहा था और मेरे पास कुछ अनुभव और पेशेवर कौशल थे, इसलिए मैं कोई उससे बदतर नहीं था। उसके आने से पहले भाई-बहन मेरे साथ अपनी सभी समस्याओं और कठिनाइयों पर चर्चा करते थे और सभी मेरे बारे में बहुत अच्छा सोचते थे। लेकिन अब हर कोई उसके इर्द-गिर्द इकट्ठा होकर उससे सवाल पूछता था और यह कुछ ऐसा था जो मुझे स्वीकार नहीं था। मुझे लगा कि उसने सबका ध्यान आकर्षित कर लिया है और इसलिए मैं अपना प्रभामंडल वापस पाना चाहता था। इसलिए मैंने पर्दे के पीछे कड़ी मेहनत की, तकनीकी कौशल सीखने के लिए अतिरिक्त समय दिया और यहाँ तक कि परमेश्वर के वचन पढ़ते समय भी यह अपने मुद्दे हल करने के लिए सत्य को समझने के लिए नहीं था, बल्कि दिखावा करने और दूसरों की प्रशंसा पाने को गहन सिद्धांतों पर पकड़ बनाने के लिए था। मैं अपने दिल में हमेशा यही सोचता रहता था कि डाएन से आगे कैसे निकलूँ, कैसे उसे नीचे गिराऊँ और कैसे अपनी स्थिति मजबूत करूँ। मैं अपने पिछले अनुभव को भी पूँजी मानता था, यह सोचता था कि चूँकि मेरे पास कुछ पेशेवर ज्ञान है, मैं असाधारण हूँ और मानो मुझे दूसरों से बेहतर होना चाहिए और मैं पीछे नहीं रह सकता, इसलिए जब मैं किसी को अपने से बेहतर देखता था तो मुझे नाराजगी महसूस होती थी और मैं उससे प्रतिस्पर्धा और लड़ाई करना चाहता था। मैं सचमुच अहंकारी और विवेकहीन हो गया था! मैंने देखा कि “प्रतिस्पर्धा करो! प्रतिस्पर्धा करो! प्रतिस्पर्धा करो!” मेरी प्रकृति बन गई थी। मैं जो प्रकट करता था वह एक मसीह-विरोधी का स्वभाव था! इस एहसास पर मुझे अपने दिल में पछतावे और अपराध-बोध की गहरी भावना महसूस हुई, प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए इतनी जबरदस्त इच्छा रखने और कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी और उसे बाधित करने और अपना पद मजबूत करने के लिए भाई-बहनों को चोट पहुँचाने के लिए खुद से नफरत होने लगी। मुझमें सचमुच मानवता की कमी थी!

बाद में मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “शैतान मनुष्य के विचारों को नियंत्रित करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का तब तक उपयोग करता है, जब तक सभी लोग प्रसिद्धि और लाभ के बारे में ही नहीं सोचने लगते। वे प्रसिद्धि और लाभ के लिए संघर्ष करते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए कष्ट उठाते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपमान सहते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देते हैं, और प्रसिद्धि और लाभ के लिए कोई भी फैसला या निर्णय ले लेते हैं। इस तरह शैतान लोगों को अदृश्य बेड़ियों से बाँध देता है और इन बेड़ियों को पहने रहते हुए, उनमें उन्हें उतार फेंकने का न तो सामर्थ्‍य होता है, न साहस। वे अनजाने ही ये बेड़ियाँ ढोते हैं और बड़ी कठिनाई से पैर घसीटते हुए आगे बढ़ते हैं। इस प्रसिद्धि और लाभ के लिए मानवजाति परमेश्वर से दूर हो जाती है, उसके साथ विश्वासघात करती है और अधिकाधिक दुष्ट होती जाती है। इसलिए, इस प्रकार एक के बाद एक पीढ़ी शैतान की प्रसिद्धि और लाभ के बीच नष्ट होती जाती है। अब, शैतान की करतूतें देखते हुए, क्या उसके भयानक इरादे एकदम घिनौने नहीं हैं? हो सकता है, आज शायद तुम लोग शैतान के भयानक इरादों की असलियत न देख पाओ, क्योंकि तुम लोगों को लगता है कि व्यक्ति प्रसिद्धि और लाभ के बिना नहीं जी सकता। तुम लोगों को लगता है कि अगर लोग प्रसिद्धि और लाभ पीछे छोड़ देंगे, तो वे आगे का मार्ग नहीं देख पाएँगे, अपना लक्ष्य देखने में समर्थ नहीं हो पाएँगे, उनका भविष्य अंधकारमय, धुँधला और विषादपूर्ण हो जाएगा। परंतु, धीरे-धीरे तुम लोग समझ जाओगे कि प्रसिद्धि और लाभ वे विशाल बेड़ियाँ हैं, जिनका उपयोग शैतान मनुष्य को बाँधने के लिए करता है। जब वह दिन आएगा, तुम पूरी तरह से शैतान के नियंत्रण का विरोध करोगे और उन बेड़ियों का विरोध करोगे, जिनका उपयोग शैतान तुम्हें बाँधने के लिए करता है। जब वह समय आएगा कि तुम वे सभी चीजें निकाल फेंकना चाहोगे, जिन्हें शैतान ने तुम्हारे भीतर डाला है, तब तुम शैतान से अपने आपको पूरी तरह से अलग कर लोगे और उस सबसे सच में घृणा करोगे, जो शैतान तुम्हारे लिए लाया है। तभी मानवजाति को परमेश्वर के प्रति सच्चा प्रेम और तड़प होगी(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। परमेश्वर के वचनों से मुझे एहसास हुआ कि दूसरों के प्रति मेरी ईर्ष्या की जड़ मेरा रुतबे की इच्छा से बँधे होना था। अंदर ही अंदर मैं ऐसी धारणाओं पर अड़ा रहता था—“सबसे अलग दिखने और श्रेष्ठ बनने का लक्ष्य रखो,” “एक व्यक्‍ति जहाँ रहता है वहाँ अपना नाम छोड़ता है, जैसे कि एक हंस जहाँ कहीं उड़ता है आवाज़ करता जाता है”, “लोगों को हमेशा अपने समकालीनों से बेहतर होने का प्रयत्न करना चाहिए”, इत्यादि। ये शैतानी जहर मेरी प्रकृति बन गए थे, जिससे मेरा स्वभाव अधिकाधिक अहंकारी होता जा रहा था। मैं हमेशा भीड़ से अलग दिखना चाहता था और प्रशंसा पाने की होड़ में लगा रहता था और खासकर जब से मुझे लगा कि मेरे पास कुछ खूबियाँ और योग्यताएँ हैं, मैं और भी अधिक आत्मतुष्ट हो गया और श्रेष्ठ होने का दिखावा करने लगा। जब मैं दूसरों को खुद से बेहतर देखता तो मुझे ईर्ष्या होती थी और मैं दूसरों से प्रतिस्पर्धा और अपनी तुलना किए बिना रह नहीं पाता था। और अगर मैं उन्हें पछाड़ नहीं पाता था तो हताशा और पीड़ा में डूब जाता था। प्रसिद्धि, लाभ और रुतबा मेरे लिए अदृश्य बेड़ियों जैसे बन गए थे और मैं अनियंत्रित रूप से उनके जाल में फँस गया था और उनसे बँध गया था, मानो प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागने के बिना जीने का कोई अर्थ या मूल्य नहीं था। स्कूल के दिनों में प्रसिद्धि, लाभ और रुतबा पाने के खयाल ने मेरे बाल मन में जड़ें जमा ली थीं, इसलिए मैं जो कुछ भी करता, उसमें प्रथम आना चाहता था। अच्छे ग्रेड प्राप्त करने और दूसरों से अलग दिखने के लिए मैं इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पर्दे के पीछे कोई भी कठिनाई सहने को तैयार रहता था। काम करना शुरू करने के बाद मैं दूसरों की प्रशंसा पाने के लिए पैसों के लिए कड़ी मेहनत करने को तैयार था, यहाँ तक कि अपने स्वास्थ्य की कीमत पर भी। नतीजतन, मैंने कम उम्र में ही अपनी सेहत चौपट कर दी और अपनी जान लगभग गँवा ही दी थी। यहाँ तक कि परमेश्वर को पाने के बाद भी मैं प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे से बँधा रहा, खुद को उन लोगों से ईर्ष्या करने से नहीं रोक पाया जो मुझसे बेहतर करते थे और उनके साथ प्रतिस्पर्धा करता था, क्योंकि मैं यह साबित करना चाहता था कि मैं उनसे बेहतर हूँ। जब मैं किसी भाई या बहन को पदोन्नत होते और कोई महत्वपूर्ण भूमिका सौंपे जाते या व्यावहारिक तरीके से सत्य पर संगति करते देखता था तो मैं अपने में ईर्ष्या की एक गहरी भावना महसूस करता था। ठीक इस बार की तरह डाएन के साथ सहयोग करते समय मैंने देखा कि वह मुझसे बेहतर है तो इससे मुझे ईर्ष्या और नाराजगी महसूस हुई। मैं कभी-कभी उससे प्रतिस्पर्धा और होड़ करने तक का सपना देखता था क्योंकि मैं पीड़ा में जी रहा था। मैंने अपनी लगभग सारी सोच और ऊर्जा प्रसिद्धि और लाभ का पीछा करने में लगा दी और मुझमें खुद को शांत रखने और सत्य खोजने की बिल्कुल भी इच्छा नहीं थी, न ही यह सोचने की इच्छा थी कि कैसे अपने कर्तव्य अच्छी तरह निभाए जाएँ। मैं अपनी उचित जिम्मेदारियों की उपेक्षा कर रहा था और परमेश्वर की अपेक्षाओं के विरुद्ध जा रहा था। प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे दौड़ना न केवल मेरे जीवन को दर्दनाक बना रहा था, बल्कि मेरी बहन को भी नुकसान पहुँचा रहा था और वीडियो कार्य की प्रगति में देरी कर रहा था और अगर मैं पश्चात्ताप न करता, तो मैं बस परमेश्वर द्वारा खुलासा कर हटा दिया जाता। इस एहसास ने मुझे भयभीत कर दिया, इसलिए मैंने पश्चात्ताप के लिए जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना की, मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव के अनुसार जीते रहने को अनिच्छुक था।

एक दिन अपनी भक्ति के दौरान मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “अगर परमेश्वर ने तुम्हें मूर्ख बनाया है तो तुम्हारी मूर्खता अर्थवान है; अगर उसने तुम्हें तेज दिमाग का बनाया है तो तुम्हारा तेज होना अर्थवान है। परमेश्वर तुम्हें जो भी प्रतिभा दे, तुम्हारे जो भी ताकत हो, चाहे तुम्हारी बौद्धिक क्षमता कितनी भी ऊँची हो, उन सभी का परमेश्वर के लिए एक उद्देश्य है। ये सब बातें परमेश्वर द्वारा पूर्वनियत हैं। अपने जीवन में तुम जो भूमिका और कर्तव्य निभाते हो—उन्‍हें परमेश्वर ने बहुत पहले ही नियत कर दिया था। कुछ लोग देखते हैं कि दूसरों के पास ऐसी क्षमताएँ हैं जो उनके पास नहीं हैं और असंतुष्ट रहते हैं। वे अधिक सीखकर, अधिक देखकर, और अधिक मेहनती होकर चीजों को बदलना चाहते हैं। लेकिन उनकी मेहनत जो कुछ हासिल कर सकती है, उसकी एक सीमा है, और वे प्रतिभा और विशेषज्ञता वाले लोगों से आगे नहीं निकल सकते। तुम चाहे जितना भी लड़ो, वह व्‍यर्थ है। परमेश्वर ने तय किया हुआ है कि तुम क्या होगे, और उसे बदलने के लिए कोई कुछ नहीं कर सकता। तुम जिस भी चीज में अच्छे हो, तुम्हें उसी में प्रयास करना चाहिए। तुम जिस भी कर्तव्य के लिए उपयुक्त हो, तुम्‍हें वही कर्तव्य निभाना चाहिए। अपने कौशल से बाहर के क्षेत्रों में खुद को विवश करने का प्रयास न करो और दूसरों से ईर्ष्या मत करो। हरेक का अपना कार्य है। हमेशा दूसरे लोगों का स्थान लेने या आत्म-प्रदर्शन करने की इच्छा रखते हुए यह मत सोचो कि तुम सब-कुछ अच्छी तरह कर सकते हो, या तुम दूसरों से अधिक परिपूर्ण या बेहतर हो। यह भ्रष्ट स्वभाव है। ऐसे लोग भी हैं जो सोचते हैं कि वे कुछ भी अच्छा नहीं कर सकते, और उनके पास बिल्कुल भी कौशल नहीं है। अगर ऐसी बात है तो तुम्हें एक ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो शालीनता से सुने और समर्पण करे। तुम जो कर सकते हो, उसे अच्छे से, अपनी पूरी ताकत से करो। इतना पर्याप्त है। परमेश्वर संतुष्ट होगा। हमेशा सभी से आगे निकलने, सब-कुछ दूसरों से बेहतर करने और हर तरह से भीड़ से अलग दिखने की मत सोचो। यह कैसा स्वभाव है? (अहंकारी स्वभाव।) लोगों का स्वभाव हमेशा अहंकारी होता है, और यदि वे सत्य के लिए प्रयास करना और परमेश्वर को संतुष्ट करना भी चाहें, तो कर नहीं पाते। अपने अहंकारी स्वभाव के नियंत्रण में होने के कारण लोगों के आसानी से भटकने की काफी संभावना होती है। ... जब तुम्हारा ऐसा स्वभाव होता है, तो तुम हमेशा दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करते हो, हमेशा उनसे आगे निकलने की कोशिश करते हो, हमेशा प्रतिस्‍पर्धा करते हो, हमेशा लोगों से कुछ लेने की कोशिश करते हो। तुम अत्यधिक ईर्ष्यालु होते हो, किसी के सामने नहीं झुकते और हमेशा खुद को भीड़ से अलग दिखाने की कोशिश करते हो। इससे समस्‍या होती है; शैतान इसी तरह काम करता है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, व्यक्ति के आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत)। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ गया कि किसी व्यक्ति की काबिलियत परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित है और उसमें उसके इरादे निहित होते हैं। लोगों को सृजित प्राणियों के रूप में समर्पण करना और अपना उचित स्थान लेना सीखना चाहिए और अपने कर्तव्य अच्छी तरह निभाने के लिए अपनी खूबियों का उपयोग करना चाहिए। उन्हें खुद को उन क्षेत्रों में नहीं धकेलना चाहिए जिनमें वे कुशल नहीं हैं, न ही दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए, बल्कि उन्हें परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने में सक्षम होना चाहिए और एक-दूसरे का पूरक बनने के लिए भाई-बहनों के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग करना चाहिए। यही उन लोगों की अभिव्यक्ति है जिनमें विवेक होता है। डाएन के साथ अपने मेलजोल पर नजर डालूँ तो शुरुआत में मैं उसकी खूबियाँ देखने में सक्षम था, लेकिन जैसे-जैसे मेरी ईर्ष्या बढ़ती गई, मैं अपनी इच्छाओं के नियंत्रण में आ गया, कुछ भी स्पष्ट रूप से देखने में असमर्थ हो गया, मानो मैं अंधा हो गया था और इसलिए मेरी ईर्ष्या पहले से प्रबल होती गई। सच तो यह था कि डाएन काफी सतर्क रहती थी और मुद्दों पर समग्र रूप से विचार करती थी और खासकर जब सिद्धांतों के किन्हीं मुद्दों की बात आती थी तो वह बहुत सावधान रहती थी; जबकि मुझमें साधारण ढंग से सोचने की प्रवृत्ति थी, जिससे अक्सर दोबारा काम करने की जरूरत होती थी और मैं सिद्धांतों के मुद्दों से निपटने में भी असमर्थ था। इसके अलावा सीखने के लिए सबको साथ लाने में डाएन माहिर थी, अध्ययन करते समय वह मुख्य बिंदुओं पर पकड़ बना पाती थी और वह स्पष्ट विचारों के साथ एक व्यवस्थित तरीके से संवाद करती थी। हर बार जब भी हम काम पर चर्चा करते तो उसकी संगति उसे पूरा कर देती थी, जो संभवत : मुझसे छूट जाता था, जिससे हमारी चर्चाएँ और भी व्यापक हो जाती थीं। उसकी खूबियाँ मेरी कमजोरियों की पूरक होती थीं और इस सहयोग से हमारे कर्तव्यों में बेहतर परिणाम मिलते थे। इस एहसास से मुझे अपने दिल में मुक्ति का एहसास हुआ।

इसके बाद मैंने डाएन से संपर्क करने की पहल की और ईर्ष्या में जीने की अपनी हालिया दशा के बारे में उसके साथ खुलकर संगति की और उससे माफी माँगी। मैंने जो समझ हासिल कर ली थी उसे देखकर डाएन खुश हो गई और उसने भी मेरे साथ इस बारे में खुलकर बात की कि उसने क्या भ्रष्टता प्रकट की थी और क्या सबक सीखे थे। इस तरह से अभ्यास करने से मुझे मुक्ति का एहसास हुआ। बाद में कलीसिया को जब कभी किसी कार्य के लिए मेरी जरूरत पड़ती थी तो मैं सक्रिय रूप से सहयोग करता था और मेरी दशा में बहुत सुधार हो गया। कुछ समय बाद अगुआओं ने मुझे फिर से वीडियो कार्य की निगरानी करने के लिए नियुक्त किया और मैंने दिल से परमेश्वर को धन्यवाद दिया। एक बार मैंने डाएन के साथ एक वीडियो पर सहयोग किया, जिसमें डाएन मुख्य रूप से प्रगति रिपोर्ट और मुद्दों के बारे में सूचना अगुआओं को देती थी। कभी-कभी अगुआ डाएन से जानकारी माँगते थे और मुझे यह सोचकर थोड़ा अप्रिय लगता था, “इस वीडियो को बनाने में पर्दे के पीछे मैं बहुत सारी मेहनत कर रहा हूँ, लेकिन अंत में डाएन काम की रिपोर्ट करती है और सुर्खियाँ बटोरती है, क्या अगुआ सोचेंगे कि मैं उसके जितना अच्छा नहीं हूँ?” उस पल मुझे एहसास हुआ कि मेरी ईर्ष्या फिर से सक्रिय हो रही थी, इसलिए मैंने जल्दी से अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना की, खुद के खिलाफ विद्रोह करने की कोशिश की। मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा : “तुम्‍हें नजरअंदाज करने औरइन चीजों को अलग करने, दूसरों की अनुशंसा करने, और उन्हें विशिष्ट बनने देने का तरीका सीखना चाहिए। विशिष्‍ट बनने और कीर्ति पाने के लिए संघर्ष मत करो अवसरों का लाभ उठाने के लिए जल्‍दबाजी मत करो। तुम्‍हें इन चीजों को दरकिनार करना आना चाहिए, लेकिन तुम्‍हें अपने कर्तव्य के निर्वहन में देरी नहीं करनी चाहिए। ऐसा व्यक्ति बनो जो शांत गुमनामी में काम करता है, और जो वफादारी से अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए दूसरों के सामने दिखावा नहीं करता है। तुम जितना अधिक प अपने अहंकारऔर हैसियत को छोड़ते हो, और जितना अधिक अपने हितों को नजरअंदाज करते हो, उतनी ही शांति महसूस करोगे, तुम्‍हारे हृदय में उतना ही ज्‍यादा प्रकाश होगा, और तुम्‍हारी अवस्था में उतना ही अधिक सुधार होगा। तुम जितना अधिक संघर्ष और प्रतिस्पर्धाकरोगे, तुम्‍हारी अवस्था उतनी ही अंधेरी होती जाएगी। अगर तुम्‍हें मुझ पर विश्वास नहीं है, तो इसे आजमाकर देखो! अगर तुम इस तरह की भ्रष्ट स्थिति को बदलना चाहते हो, और इन चीज़ों से नियंत्रित नहीं होनाचाहते, तो तुम्‍हेंसत्य की खोज करनी चाहिए और इन चीजों का सार स्पष्ट रूप से समझना चाहिए, और फिर इन्हें एक तरफ रख देना चाहिए और त्याग देना चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अभ्यास के सिद्धांत प्रदान किए। जब अलग दिखने या सुर्खी बटोरने की स्थितियाँ आती हैं तो मुझे अपनी इच्छा को छोड़ना और दरकिनार करना सीखना होगा। यही वह चीज है जिसकी परमेश्वर अपेक्षा करता है और जिसका लोगों को अभ्यास करना चाहिए। इस बार मैं इस मामले में परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहता था, इसलिए चाहे अगुआ मुझे कैसे भी देखें या भाई-बहन मेरे बारे में कुछ भी सोचें, मुझे अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना था। भले ही मैं दूसरों को नजर न आऊँ, मुझे परमेश्वर की जाँच-पड़ताल स्वीकार करनी चाहिए और अपने कर्तव्य अच्छी तरह से करने चाहिए। इसके अलावा डाएन का सक्रिय रूप से अगुआओं को काम की रिपोर्ट करना गलत नहीं था और इससे पता चलता है कि काम के प्रति उसका रवैया गंभीर और जिम्मेदाराना था। डाएन अपेक्षाकृत स्पष्ट ढंग से बात करती थी, इस काम में वह अच्छी थी और उसका काम को स्पष्ट रूप से रिपोर्ट करने में सक्षम होना काम के लिए फायदेमंद था। इस समझ के साथ मुझे काफी सहजता महसूस हुई।

उसके बाद मैं डाएन के साथ सामान्य रूप से सहयोग कर पाया। हम अक्सर मिलकर काम पर चर्चा करते थे और समस्याओं का सारांश तैयार करते थे, मैं अक्सर तकनीकी मुद्दों पर उसकी सलाह लेता था और मैंने उससे बहुत कुछ सीखा। मैंने एहसास किया कि अपने कर्तव्य अच्छी तरह निभाने के लिए सामंजस्यपूर्ण सहयोग बहुत लाभदायक है। परमेश्वर का धन्यवाद!

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