96. सत्य बताने की अनिच्छा के पीछे क्या छिपा है?

यी किउ, चीन

सितंबर 2022 की शुरुआत में मैं कलीसिया में सिंचन टीम की अगुआ थी। उस समय दो नवागंतुक बहना किउ जेन और बहन यांग युन को दूसरी कलीसिया से स्थानांतरित किया गया था। अगुआ ने मुझे जल्दी से उनका सिंचन करने के लिए लोगों की व्यवस्था करने को कहा, कहा कि इन दोनों बहनों में अच्छी काबिलियत और समझ है, मुझे हालिया सिंचन के दौरान उनके प्रदर्शन पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए और उन्हें जल्द से जल्द कर्तव्यों के लिए विकसित और प्रशिक्षित किया जाए। अगुआ ने यह भी बताया कि किउ जेन की मनोदशा हाल ही में उसके परिवार द्वारा उत्पीड़न और रुकावटों के कारण बाधित हो गई है, उसे संगति और मदद की ज्यादा जरूरत है। इसके बाद मैंने किउ जेन और यांग युन से मिलने के लिए सिंचनकर्ताओं की व्यवस्था की और मैंने परमेश्वर के वचनों का उपयोग करके किउ जेन के साथ संगति भी की। यांग युन की मनोदशा ठीक थी, इसलिए मैंने विश्वास के साथ उसे सिंचनकर्ताओं के पास छोड़ दिया।

एक महीना बीत गया, अगुआ ने मुझसे पूछा कि किउ जेन और यांग युन का कैसा चल रहा है, क्या उन्होंने कोई प्रगति की है और क्या उन्हें विकसित किया जा सकता है। अगुआ का पत्र देखकर मैं थोड़ी घबरा गई, सोचने लगी, “मैंने शुरुआत में केवल किउ जेन के साथ संगति की थी और उसकी मनोदशा में सुधार देखने के बाद मैंने उसकी प्रगति का जायजा नहीं लिया था, ये दोनों नवागंतुक कैसा कर रही हैं, मैं इनका जायजा लेना और विस्तार से जाँच करना भूल गई थी। अब मुझे क्या करना चाहिए? मुझे कैसे जवाब देना चाहिए? अगर मैं बस यह कहूँ कि मैं जायजा लेना भूल गई तो अगुआ निश्चित रूप से कहेगी कि मैं अनमने ढंग से काम कर रही हूँ, वास्तविक कार्य नहीं कर रही हूँ, कि मैंने वह नहीं किया जो मुझे विशेष रूप से करने के लिए कहा गया था और मैं पूरी तरह से विश्वास योग्य नहीं हूँ। इससे मेरा गौरव नष्ट हो जाएगा और मेरी काट-छाँट भी की जा सकती है।” अगुआ को यह देखने से रोकने के लिए कि मैंने वास्तविक कार्य नहीं किया है, मैंने एक समाधान के बारे में सोचा, “मैं जल्दी से सिंचनकर्ताओं को एक पत्र भेजूँगी कि वे देखें कि किउ जेन और यांग युन कैसा कर रही हैं, फिर मैं अगुआ को जवाब दूँगी कि मैं जायजा ले रही हूँ। लेकिन मैंने स्पष्ट रूप से किउ जेन के साथ शुरुआत में केवल एक बार संगति की थी, और फिर उसके और यांग युन के बारे में जायजा लेना भूल गई। क्या यह कहना कि मैंने उनके बारे में जायजा लिया है, सरासर झूठ नहीं होगा? नहीं, मैं सफेद झूठ नहीं बोल सकती।” इसलिए मैंने एक और तरीका सोचा। मैं न तो सीधे तौर पर कहूँगी कि मैंने जायजा लिया है, न ही यह कहूँगी कि मैंने जायजा लेने पर ध्यान नहीं दिया। इसके बजाय मैं इधर-उधर की बातें करूँगी और कहूँगी, “ऐसा हुआ कि मैंने दो सिंचनकर्ताओं के साथ एक सभा निर्धारित की है। मैंने उस सभा के दौरान यह देखने की योजना बनाई है कि हाल ही में नवागंतुक कैसा कर रही हैं। मैं उसके तुरंत बाद तुमसे संपर्क करूँगी।” पत्र लिखने के बाद मुझे अपने दिल में बेचैनी का एक अस्पष्ट भाव महसूस हुआ। मुझे लगा कि मैं वाकई धूर्त और धोखेबाज बन रही हूँ, लेकिन मुझे डर था कि अगर मैंने इस तरह से जवाब नहीं दिया तो अगुआ कहेगी कि मैं वास्तविक कार्य नहीं कर रही हूँ। इसलिए आखिरकार मैंने इसी तरह जवाब दिया।

अगले दिन मुझे अचानक चक्कर आने लगे, मिचली आने लगी और मैं खड़ी नहीं रह पा रही थी। एक बहन ने मुझे याद दिलाया कि जब कोई अचानक बीमार हो जाए तो उसे खोजना चाहिए कि क्या कोई सबक सीखने को है। बाद में मैंने सोचा कि अगुआ ने मुझे यांग युन और किउ जेन के प्रदर्शन का जायजा लेने को कहा था। मैंने इसे ठीक से करने का वादा किया था, लेकिन फिर इस बारे में भूल गई। मैं पहले से ही इस मामले में बहुत गैर-जिम्मेदार थी, लेकिन मैं अभी भी ईमानदार नहीं थी, बल्कि मैंने टालमटोल, धोखेबाजी और चीजों को छिपाने का विकल्प चुना। क्या यह परमेश्वर के लिए और भी ज्यादा घृणित नहीं होगा? मैंने देखा कि मेरी कथनी और करनी में अंतर है, इसलिए मैंने ऐसे व्यवहार को उजागर करने वाले परमेश्वर के वचनों की खोज की। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “आओ, पहले देखें कि यहोवा परमेश्वर ने शैतान से किस प्रकार के प्रश्न पूछे। ‘तू कहाँ से आता है?’ क्या यह एक सीधा प्रश्न नहीं है? क्या इसमें कोई छिपा हुआ अर्थ है? नहीं; यह केवल एक सीधा प्रश्न है। यदि मुझे तुम लोगों से पूछना होता : ‘तुम कहाँ से आए हो?’ तब तुम लोग किस प्रकार उत्तर देते? क्या इस प्रश्न का उत्तर देना कठिन है? क्या तुम लोग यह कहते : ‘इधर-उधर घूमते-फिरते और डोलते-डालते आया हूँ’? (नहीं।) तुम लोग इस प्रकार उत्तर न देते। तो फिर शैतान को इस तरीके से उत्तर देते देख तुम लोगों को कैसा लगता है? (हमें लगता है कि शैतान बेतुका है, लेकिन धूर्त भी है।) क्या तुम लोग बता सकते हो कि मुझे कैसा लग रहा है? हर बार जब मैं शैतान के इन शब्दों को देखता हूँ, तो मुझे घृणा महसूस होती है, क्योंकि वह बोलता तो है, पर उसके शब्दों में कोई सार नहीं होता। क्या शैतान ने परमेश्वर के प्रश्न का उत्तर दिया? नहीं, शैतान ने जो शब्द कहे, वे कोई उत्तर नहीं थे, उनसे कुछ हासिल नहीं हुआ। वे परमेश्वर के प्रश्न के उत्तर नहीं थे। ‘पृथ्वी पर इधर-उधर घूमते-फिरते और डोलते-डालते आया हूँ।’ तुम इन शब्दों से क्या समझते हो? आखिर शैतान कहाँ से आया था? क्या तुम लोगों को इस प्रश्न का कोई उत्तर मिला? (नहीं।) यह शैतान की धूर्त योजनाओं की ‘प्रतिभा’ है—किसी को पता न लगने देना कि वह वास्तव में क्या कह रहा है। ये शब्द सुनकर भी तुम लोग यह नहीं जान सकते कि उसने क्या कहा है, हालाँकि उसने उत्तर देना समाप्त कर लिया है। फिर भी वह मानता है कि उसने उत्तम तरीके से उत्तर दिया है। तो तुम कैसा महसूस करते हो? घृणा महसूस करते हो ना? (हाँ।) अब तुमने इन शब्दों की प्रतिक्रिया में घृणा महसूस करना शुरू कर दिया है। शैतान के शब्दों की एक निश्चित विशेषता है : शैतान जो कुछ कहता है, वह तुम्हें अपना सिर खुजलाता छोड़ देता है, और तुम उसके शब्दों के स्रोत को समझने में असमर्थ रहते हो। कभी-कभी शैतान के इरादे होते हैं और वह जानबूझकर बोलता है, और कभी-कभी वह अपनी प्रकृति से नियंत्रित होता है, जिससे ऐसे शब्द अनायास ही निकल जाते हैं, और सीधे शैतान के मुँह से निकलते हैं। शैतान ऐसे शब्दों को तौलने में लंबा समय नहीं लगाता; बल्कि वे बिना सोचे-समझे व्यक्त किए जाते हैं। जब परमेश्वर ने पूछा कि वह कहाँ से आया है, तो शैतान ने कुछ अस्पष्ट शब्दों में उत्तर दिया। तुम बिल्कुल उलझन में पड़ जाते हो, और नहीं जान पाते कि आखिर वह कहाँ से आया है। क्या तुम लोगों के बीच में कोई ऐसा है, जो इस प्रकार से बोलता है? यह बोलने का कैसा तरीका है? (यह अस्पष्ट है और निश्चित उत्तर नहीं देता।) बोलने के इस तरीके का वर्णन करने के लिए हमें किस प्रकार के शब्दों का प्रयोग करना चाहिए? यह ध्यान भटकाने वाला और गलत दिशा दिखाने वाला है। मान लो, कोई व्यक्ति नहीं चाहता कि दूसरे यह जानें कि उसने कल क्या किया था। तुम उससे पूछते हो : ‘मैंने तुम्हें कल देखा था। तुम कहाँ जा रहे थे?’ वह तुम्हें सीधे यह नहीं बताता कि वह कहाँ गया था। इसके बजाय वह कहता है : ‘कल क्या दिन था। बहुत थकाने वाला दिन था!’ क्या उसने तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दिया? दिया, लेकिन वह उत्तर नहीं दिया, जो तुम चाहते थे। यह मनुष्य के बोलने की चालाकी की ‘प्रतिभा’ है। तुम कभी पता नहीं लगा सकते कि उसका क्या मतलब है, न तुम उसके शब्दों के पीछे के स्रोत या इरादे को ही समझ सकते हो। तुम नहीं जानते कि वह क्या टालने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि उसके हृदय में उसकी अपनी कहानी है—वह कपटी है। क्या तुम लोगों में भी कोई है, जो अक्सर इस तरह से बोलता है? (हाँ।) तो तुम लोगों का क्या उद्देश्य होता है? क्या यह कभी-कभी तुम्हारे अपने हितों की रक्षा के लिए होता है, और कभी-कभी अपना गौरव, अपनी स्थिति, अपनी छवि बनाए रखने के लिए, अपने निजी जीवन के रहस्य सुरक्षित रखने के लिए? उद्देश्य चाहे कुछ भी हो, यह तुम्हारे हितों से अलग नहीं है, यह तुम्हारे हितों से जुड़ा हुआ है। क्या यह मनुष्य का स्वभाव नहीं है? ऐसी प्रकृति वाले सभी व्यक्ति अगर शैतान का परिवार नहीं हैं, तो उससे घनिष्ठ रूप से जुड़े अवश्य हैं। हम ऐसा कह सकते हैं, है न? सामान्य रूप से कहें, तो यह अभिव्यक्ति घृणित और वीभत्स है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV)। शैतान का प्रकाशन करने वाले परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि शैतान जिस तरह से बोलता है वह वाकई घृणित है। जब परमेश्वर एक सरल प्रश्न पूछता है तो शैतान स्पष्ट रूप से उत्तर दे सकता है, लेकिन इसके बजाय वह अपने वास्तविक इरादे और मकसद छिपाने के लिए घुमा-फिराकर बोलता है, जिससे भ्रम पैदा होता है, उसके सच्चे विचारों और इरादों का भेद पहचानना मुश्किल हो जाता है। यह वाकई कपट और धोखेबाजी है। परमेश्वर के वचनों की रोशनी में मैंने देखा कि परमेश्वर ने जो उजागर किया वह मेरा अपना व्यवहार था। जब अगुआ ने यह पता लगवाया कि दो नवागंतुक कैसा कर रही हैं, तो मुझे एहसास हुआ कि मैंने शुरुआत में सिर्फ एक बार किउ जेन के साथ संगति की थी, लेकिन बाद में जब मैं अन्य चीजों में व्यस्त हो गई, मैंने उन्हें सिंचनकर्ताओं के हवाले करने के बाद उनसे संपर्क नहीं किया। मुझे उनकी प्रगति, उनके सामने आने वाली किसी भी समस्या या विकसित होने की उनकी संभावना के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। अगर मैं सीधे जाकर कह दूँ कि मैंने कोई जायजा नहीं लिया है तो इससे अगुआ को लगेगा कि मैंने वास्तविक कार्य नहीं किया है और मैं सिर्फ अनमने और गैर-जिम्मेदाराना तरीके से चीजों से निपट रही हूँ। इससे मेरा गौरव और छवि खराब होगी और मेरी काट-छाँट भी की जा सकती है। इसलिए मैंने कपट का सहारा लिया, दावा किया कि मैंने दो सिंचनकर्ताओं के साथ एक सभा तय की है, जिसका उद्देश्य यह देखना है कि नवागंतुक हाल ही में कैसा प्रदर्शन कर रहे हैं और उसके बाद रिपोर्ट भेजूँगी, इस तरह अगुआ को लगेगा कि मैं वास्तविक कार्य कर रही हूँ और मैं लगातार जायजा ले रही हूँ, इस पर ध्यान दे रही हूँ कि नवागंतुक कैसा काम कर रहे हैं। मैंने सिंचनकर्ताओं से व्यक्तिगत रूप से मिलने का भी उल्लेख किया ताकि देख सकूँ कि वे क्या कर रहे हैं जिससे ऐसा लगे कि मुझमें दायित्व-बोध बहुत ज्यादा है, इस तरह मैंने अपने गौरव और छवि की रक्षा करते हुए मसले को छिपाया। मैंने देखा कि मेरे इरादे कितने कपटी हैं, मेरी कथनी और करनी शैतान जैसी ही है। मैं टालमटोल, ध्यान भटकाने और गुमराह करने वाली थी। मैं सच में धूर्त और धोखेबाज थी! मुझे लगा कि मैं चतुराई से काम ले रही हूँ, अच्छा समाधान लेकर आ रही हूँ और बढ़िया जवाब दे रही हूँ, लेकिन इस कुटिल और धोखेबाज स्वभाव से परमेश्वर को घिन हुई और उसकी घृणा को भड़काया। अगर मैंने जल्दी से पश्चात्ताप नहीं किया तो आखिरकार परमेश्वर द्वारा मुझे बेनकाब कर निकाल दिया जाएगा।

बाद में परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे अपने कपट के पीछे के इरादों के बारे में कुछ समझ मिली। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “जब लोग छल-कपट में संलग्न होते हैं, तब वे ऐसा किन उद्देश्‍यों से करते हैं? वे कौन सा लक्ष्‍य प्राप्‍त करने की कोशिश कर रहे हैं? बिना किसी अपवाद के, ऐसा प्रसिद्धि, लाभ और रुतबा हासिल करने के लिए है; संक्षेप में, यह उनके अपने हितों के लिए है। और निजी हितों के पीछे भागने के मूल में क्या है? जड़ यह है कि लोग अपने हितों को बाक़ी सब चीज़ों से ज्‍़यादा महत्‍वपूर्ण मानते हैं। वे अपना स्‍वार्थ साधने के लिए छल-कपट में संलग्न होते हैं, और इससे उनका कपटपूर्ण स्‍वभाव प्रकट हो जाता है। इस समस्‍या का समाधान कैसे किया जाना चाहिए? पहले तुम्हें यह जानना और समझना चाहिए कि हित क्या हैं, वे लोगों के लिए सटीक रूप से क्या लाते हैं, और उनके पीछे भागने के क्या परिणाम होते हैं। अगर तुम इसका पता नहीं लगा सकते, तो उनका त्याग कहना आसान होगा, करना मुश्किल। अगर लोग सत्य नहीं समझते, तो उनके लिए अपने हित छोड़ने से कठिन कुछ नहीं होता। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उनके जीवन के फलसफे होते हैं ‘हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए’ और ‘मनुष्य धन के लिए मरता है, जैसे पक्षी भोजन के लिए मरते हैं।’ जाहिर है, वे अपने हितों के लिए जीते हैं। लोग सोचते हैं कि अपने हितों के बिना—अगर उन्‍हें अपने हित छोड़ने पड़े—तो वे जीवित नहीं रह पाएँगे, मानो उनका अस्तित्व उनके हितों से अविभाज्य हो, इसलिए ज्यादातर लोग अपने हितों के अतिरिक्त सभी चीजों के प्रति अंधे होते हैं। वे अपने हितों को किसी भी चीज से ऊपर समझते हैं, वे अपने हितों के लिए जीते हैं, और उनसे उनके हित छुड़वाना उनसे अपना जीवन छोड़ने के लिए कहने जैसा है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने स्‍वभाव का ज्ञान उसमें बदलाव की बुनियाद है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे समझाया कि मैं अपनी गलतियाँ छिपाने के लिए हर संभव कोशिश क्यों कर रही थी। मूल कारण यह था कि मैं शैतान के सिद्धांत “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए” के अनुसार जी रही थी और व्यक्तिगत हितों को हर चीज से ऊपर रख रही थी। उदाहरण के लिए, जब अगुआ ने पूछा कि क्या मैंने दोनों नवागंतुकों के प्रदर्शन के बारे में पता लगाया है, मैं स्पष्ट रूप से उनसे संपर्क करना भूल गई थी जिससे पता चला कि मुझमें दायित्व-बोध और जिम्मेदारी की भावना नहीं है, लेकिन तुरंत आत्म-चिंतन करने और खुद को सुधारने के बजाय मैंने बस अपने गौरव और हितों की परवाह की। मैंने वही किया जो मेरे लिए फायदेमंद था और जब कोई चीज मेरे लिए नुकसानदेह थी, मेरे गौरव को खतरा था या मेरी काट-छाँट की जा सकती थी, मैंने खुद को बचाने के लिए धूर्तता भरी चालें चलीं, लोगों को धोखा देने और उनकी आँखों में धूल झोंकने के लिए झूठे प्रभाव पैदा करने वाले मिथ्यापूर्ण शब्दों का इस्तेमाल किया, अगुआ को मेरी समस्याओं का पता लगाने और यह समझने से रोका कि मेरे कर्तव्यों में क्या परेशानी आ रही है। मैंने देखा कि जब मैं इन शैतानी जहरों के साथ जी रही थी, तो मैं बहुत ज्यादा धूर्त, धोखेबाज, नीच और दुष्ट होती जा रही थी और मैं किसी भी तरह मानव के समान नहीं रह गई थी।

फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “परमेश्वर का लोगों से ईमानदार बनने का आग्रह करना यह साबित करता है कि वह धोखेबाज लोगों से सचमुच घृणा करता है, उन्हें नापसंद करता है। धोखेबाज लोगों के प्रति परमेश्वर की नापसंदगी उनके काम करने के तरीके, उनके स्वभावों, उनके इरादों और उनकी चालबाजी के तरीकों के प्रति नापसंदगी है; परमेश्वर को ये सब बातें नापसंद हैं। यदि धोखेबाज लोग सत्य स्वीकार कर लें, अपने धोखेबाज स्वभाव को मान लें और परमेश्वर का उद्धार स्वीकार करने को तैयार हो जाएँ, तो उनके बचने की उम्मीद भी बँध जाती है, क्योंकि परमेश्वर सभी लोगों के साथ समान व्यवहार करता है, जैसा कि सत्य करता है। और इसलिए, यदि हम परमेश्वर को प्रसन्न करने वाले लोग बनना चाहें, तो सबसे पहले हमें अपने व्यवहार के सिद्धांतों को बदलना होगा। अब हम और शैतानी फलसफों के अनुसार नहीं जी सकते, हम और झूठ और चालबाजी के सहारे नहीं चल सकते। हमें अपने सारे झूठ त्याग कर ईमानदार बनना होगा। तब हमारे प्रति परमेश्वर का दृष्टिकोण बदलेगा। पहले लोग दूसरों के बीच रहते हुए हमेशा झूठ, ढोंग और चालबाजी पर निर्भर रहते थे, और अपने आचरण में शैतानी फलसफों को अपने अस्तित्व, अपने जीवन और अपनी नींव के रूप में लेते थे। इससे परमेश्वर को घृणा थी। गैर-विश्वासियों के बीच यदि तुम खुलकर बोलते हो, सच बोलते हो और ईमानदार रहते हो, तो तुम्हें बदनाम किया जाएगा, तुम्हारी आलोचना की जाएगी और तुम्हें त्याग दिया जाएगा। इसलिए तुम सांसारिक चलन का पालन करते हो और शैतानी फलसफों के अनुसार जीते हो; तुम झूठ बोलने में ज्यादा-से-ज्यादा माहिर और अधिक से अधिक धोखेबाज होते जाते हो। तुम अपना मकसद पूरा करने और खुद को बचाने के लिए कपटपूर्ण साधनों का उपयोग करना भी सीख जाते हो। तुम शैतान की दुनिया में समृद्ध होते चले जाते हो और परिणामस्वरूप, तुम पाप में इतने गहरे गिरते जाते हो कि फिर उसमें से खुद को निकाल नहीं पाते। परमेश्वर के घर में चीजें ठीक इसके विपरीत होती हैं। तुम जितना अधिक झूठ बोलते और कपटपूर्ण खेल खेलते हो, परमेश्वर के चुने हुए लोग तुमसे उतना ही अधिक ऊब जाते हैं और तुम्हें त्याग देते हैं। यदि तुम पश्चात्ताप नहीं करते, अब भी शैतानी फलसफों और तर्क से चिपके रहते हो, अपना भेस बदलकर खुद को बढ़िया दिखाने के लिए चालें चलते हो और बड़ी-बड़ी साजिशें रचते हो, तो बहुत संभव है कि तुम्हारा खुलासा कर तुम्हें हटा दिया जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि परमेश्वर धोखेबाज लोगों से घृणा करता है। केवल ईमानदार लोग ही परमेश्वर के घर में समृद्ध हो सकते हैं, धोखेबाज लोगों को अंततः त्याग कर हटा दिया जाता है। यह सब परमेश्वर ने पूर्वनिर्धारित कर दिया है। केवल ईमानदार लोग ही स्वर्ग के राज्य में साझीदार हो सकते हैं। यदि तुम ईमानदार व्यक्ति बनने की कोशिश नहीं करोगे, सत्य का अनुसरण करने की दिशा में अनुभव प्राप्त नहीं करोगे और अभ्यास नहीं करोगे, यदि अपना भद्दापन उजागर नहीं करोगे और यदि खुद को खोल कर पेश नहीं करोगे, तो तुम कभी भी पवित्र आत्मा का कार्य और परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त नहीं कर पाओगे(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, एक ईमानदार व्यक्ति होने का सबसे बुनियादी अभ्यास)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैंने देखा कि परमेश्वर का स्वभाव पवित्र और धार्मिक है। परमेश्वर ईमानदार लोगों से प्रेम करता है और धोखेबाज लोगों से घृणा करता है। अगर कोई व्यक्ति ईमानदार होने के बजाय तात्कालिक हितों को संतुष्ट करने के लिए धोखेबाजी की रणनीति का इस्तेमाल करता है तो उसे कभी भी परमेश्वर की स्वीकृति नहीं मिलेगी और वह उसे ठुकराकर निकाल देगा। मुझे एक बहन याद आई जो सिंचन कार्य के लिए जिम्मेदार थी। अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा करने और अगुआ की नजर में अपनी छवि कायम रखने के लिए, भले ही नवागंतुकों की कई समस्याएँ स्पष्ट रूप से उसके द्वारा अनसुलझी रह गईं, उसने इसे सभी से छिपाने के लिए कपट का इस्तेमाल किया और अपनी कार्य रिपोर्ट में उसने लिखा कि नवागंतुकों के मुद्दे सुलझ गए हैं। नतीजतन परमेश्वर ने सत्य प्रकट करने के लिए परिस्थितियों की व्यवस्था की, अन्य बहनों का उपयोग करके सत्य उजागर करने के लिए नवागंतुकों के बारे में विस्तृत जानकारी माँगी। आखिरकार इस बहन को वास्तविक कार्य करने के बजाय प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने के लिए बरखास्त कर दिया गया। मैंने देखा कि परमेश्वर हर चीज की जाँच-पड़ताल करता है और चाहे लोग कितनी भी चीजों को छिपाने या ढकने की कोशिश करें, सत्य आखिरकार प्रकट हो ही जाएगा। मुझे एहसास हुआ कि मैं ऐसी ही थी, मैं स्पष्ट रूप से वास्तविक कार्य नहीं कर रही थी, फिर भी मैंने सत्य छिपाने के लिए मुद्दे को टालने और उसे अस्पष्ट बनाने की कोशिश की, अगुआ को अपनी समस्याएँ देखने से रोका। मेरे कार्यकलाप मूल रूप से कपटपूर्ण और धोखेबाज थे। भले ही मैंने अपने गौरव और छवि की रक्षा के लिए चतुराईपूर्ण रणनीति सोची थी, लेकिन परमेश्वर हर चीज की जाँच-पड़ताल करता है, ऐसी चालों और कपट की वजह से परमेश्वर को मुझसे चिढ़ और घृणा हो गई। इसका एहसास होने पर मैंने देखा कि मैंने खुद को खतरे में डाल दिया था और मूर्खता की थी, अगर मैंने पश्चात्ताप कर तुरंत खुद को नहीं सुधारा तो मैं आखिरकार बेनकाब कर निकाल दी जाऊँगी।

बाद में अगुआ को पत्र लिखते समय मैंने अपने धोखेबाज और कुटिल होने पर विस्तृत जानकारी देने का विचार किया और यह कि कैसे मैंने द्वैधता और कपट का इस्तेमाल किया है, लेकिन जब मैंने कंप्यूटर में कुछ शब्द टाइप किए तो मैं झिझकी, सोचने लगी, “अगर मैं यह लिखती हूँ तो यह सिर्फ जायजा न लेने और गैर-जिम्मेदार होने का मामला नहीं होगा, बल्कि कपट और विश्वासघात भी होगा, जो और भी बुरा है। अगर अगुआ को इस बारे में पता चला तो वह मुझे कैसे देखेगी? मेरी काट-छाँट की जा सकती है, इसलिए शायद इसे छोड़ देना ही बेहतर होगा। आखिरकार अगर मैं कुछ न कहूँ तो अगुआ को पता ही नहीं चलेगा और मुझे ये कष्ट नहीं सहना पड़ेगा।” जब मैं अंदर से संघर्ष कर रही थी तो मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा : “केवल ईमानदार लोग ही स्वर्ग के राज्य में साझीदार हो सकते हैं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, एक ईमानदार व्यक्ति होने का सबसे बुनियादी अभ्यास)। “अगर लोग अपने हितों के लिए सत्‍य को त्‍याग देते हैं, तो वे जीवन और परमेश्वर के उद्धार को गँवा देते हैं; वे लोग सबसे ज्‍यादा बेवकूफ होते हैं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने स्‍वभाव का ज्ञान उसमें बदलाव की बुनियाद है)। मैंने तुरंत परमेश्वर के वचन खोजकर पढ़े। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “परमेश्वर सत्य का अनुसरण करने वालों को ही बचाता है। अगर तुम सत्य स्वीकार नहीं करते, अगर तुम अपने भ्रष्ट स्वभाव पर आत्म-चिंतन करने और उसे जानने में असमर्थ रहते हो, तो तुम सच्चा पश्चात्ताप नहीं करोगे और तुम जीवन-प्रवेश नहीं कर पाओगे। सत्य को स्वीकारना और स्वयं को जानना तुम्हारे जीवन के विकास और उद्धार का मार्ग है, यह तुम्हारे लिए अवसर है कि तुम परमेश्वर के सामने आकर उसकी जाँच को स्वीकार करो, उसके न्याय और ताड़ना को स्वीकार करो और जीवन और सत्य को प्राप्त करो। अगर तुम प्रसिद्धि, लाभ, रुतबे और अपने हितों के लिए सत्य का अनुसरण करना छोड़ देते हो, तो यह परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को प्राप्त करने और उद्धार पाने का अवसर छोड़ने के समान है। तुम प्रसिद्धि, लाभ, रुतबा और अपने हित चुनते हो, लेकिन तुम सत्य का त्याग कर देते हो, जीवन खो देते हो और बचाए जाने का मौका गँवा देते हो। किसमें अधिक सार्थकता है? अगर तुम अपने हित चुनकर सत्य को त्‍याग देते हो, तो क्या यह मूर्खतापूर्ण नहीं है? आम बोलचाल की भाषा में कहें तो यह एक छोटे से फायदे के लिए बहुत बड़ा नुकसान उठाना है। प्रसिद्धि, लाभ, रुतबा, धन और हित सब अस्थायी हैं, ये सब धुएँ के गुबार की तरह लुप्त हो जाते हैं, जबकि सत्य और जीवन शाश्वत और अपरिवर्तनीय हैं। अगर लोग प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे दौड़ाने वाले भ्रष्ट स्वभाव दूर कर लें, तो वे उद्धार पाने की आशा कर सकते हैं। इसके अलावा, लोगों द्वारा प्राप्त सत्य शाश्वत होते हैं; शैतान लोगों से ये सत्‍य छीन नहीं सकता, न ही कोई और उनसे यह छीन सकता है। तुमने अपने हित त्याग देते हो, लेकिन तुम्‍हें सत्य और उद्धार प्राप्त हो जाते हैं; ये तुम्हारे अपने परिणाम हैं और इन्हें तुम अपने लिए प्राप्त करते हो। अगर लोग सत्‍य का अभ्‍यास करने का चुनाव करते हैं, तो वे अपने हितों को गँवा देने के बावजूद परमेश्वर का उद्धार और शाश्‍वत जीवन हासिल कर रहे होते हैं। वे सबसे ज्‍़यादा बुद्धिमान लोग हैं। अगर लोग अपने हितों के लिए सत्‍य को त्‍याग देते हैं, तो वे जीवन और परमेश्वर के उद्धार को गँवा देते हैं; वे लोग सबसे ज्‍यादा बेवकूफ होते हैं। कोई व्‍यक्ति क्‍या चुनता है—अपने हित या सच—वह अविश्‍वसनीय रूप से उजागर करने वाला होता है। जो लोग सत्‍य से प्रेम करते हैं वे सत्‍य को चुनेंगे; वे परमेश्वर के प्रति समर्पण और उसका अनुसरण करना चुनेंगे। वे सत्‍य का अनुसरण करने के लिए अपने निजी हितों तक को त्‍याग देना पसन्‍द करेंगे। उन्‍हें कितना ही दुख क्‍यों न झेलना पड़े, वे परमेश्वर को सन्‍तुष्‍ट करने के लिए अपनी गवाही पर अडिग बने रहने के लिए दृढ़ निश्‍चयी होते हैं। यह सत्‍य का अभ्‍यास करने और सत्‍य की वास्‍तविकता में प्रवेश करने का मूलभूत मार्ग है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने स्‍वभाव का ज्ञान उसमें बदलाव की बुनियाद है)। परमेश्वर के वचन मेरे लिए एक चेतावनी बनकर आए और मुझे अभ्यास का मार्ग दिया। परमेश्वर का धार्मिक और पवित्र स्वभाव अपमान बर्दाश्त नहीं करता। परमेश्वर के राज्य में वह ईमानदार लोगों को चाहता है और ईमानदार लोगों को बचाता है। अगर मैं अपने हितों की रक्षा के लिए सत्य का अभ्यास करना छोड़ देती हूँ तो यह सत्य प्राप्त करने और बचाए जाने के अवसर को छोड़ने के बराबर है। शायद एक बार सत्य का अभ्यास न करने के गंभीर परिणाम न हों, लेकिन लंबे समय तक अगर मैं हमेशा व्यक्तिगत हितों को त्याग नहीं सकी या चीजों का सामना करते समय देह के खिलाफ विद्रोह नहीं कर सकी तो मेरे पास अच्छा परिणाम या गंतव्य नहीं होगा। अगर मैं धीरे-धीरे व्यक्तिगत हितों को त्याग सकी और सत्य का अभ्यास करने के लिए देह के खिलाफ विद्रोह कर सकी तो मैं परमेश्वर की अपेक्षाओं के मानक स्तर के और करीब पहुँचती जाऊँगी। फिर मैंने पढ़ा कि परमेश्वर के वचन कहते हैं : “लोगों का पर्यवेक्षण करना, प्रेक्षण करना, और उन्हें समझने की कोशिश करना—यह सब उन्हें परमेश्वर में विश्वास के सही रास्ते में प्रवेश करने में मदद करने के लिए है, ताकि वे परमेश्वर के कहे के मुताबिक और सिद्धांत के अनुसार अपना कर्तव्य कर सकें, ताकि उन्हें किसी प्रकार की गड़बड़ियाँ करने और विघ्न उत्पन्न करने से रोका जा सके, ताकि उन्हें व्यर्थ का कार्य करने से रोका जा सके। ऐसा करने का उद्देश्य पूरी तरह से उनके प्रति और परमेश्वर के घर के कार्य के प्रति उत्तरदायित्व दिखाने के लिए है; इसमें कोई दुर्भावना नहीं है(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (7))। परमेश्वर के वचनों ने मुझे समझाया कि एक ईमानदार व्यक्ति होने का अभ्यास करने से दूसरों को मेरे काम में भ्रष्टता और कमियाँ देखने को मिलती हैं और अगुआ मेरे काम की बेहतर निगरानी और निरीक्षण कर सकते हैं, मेरी समस्याएँ पहचान सकते हैं और समय पर मार्गदर्शन और मदद प्रदान कर सकते हैं, ताकि मैं अपने कर्तव्यों का पालन करने में ज्यादा सतर्क और जिम्मेदार हो सकूँ, जो मेरे लिए अपने कर्तव्य अच्छी तरह से करने में लाभदायक होगा। इसका एहसास होने पर मैं अचानक रोशन हो गई और परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, अपने गौरव और रुतबे की रक्षा के लिए मैंने कपट का इस्तेमाल किया और तुम्हारे अंदर चिढ़ पैदा की। इस बार भाई-बहन चाहे जो भी सोचें, मैं तुम्हारी जाँच-पड़ताल स्वीकारने, सत्य का अभ्यास करने और ईमानदार व्यक्ति बनने के लिए तैयार हूँ। मेरा मार्गदर्शन करो।” इसके बाद मैंने अगुआ को अपनी मनोदशा और भ्रष्टता के खुलासे के बारे में खुलकर बताया और मुझे कुछ हद तक राहत और मुक्ति मिली।

बाद में पर्यवेक्षक ने मुझसे रिपोर्ट करने के लिए कहा कि हाल ही में सिंचन कार्य कैसा चल रहा है और मुझे अचानक बहुत चिंता होने लगी। चूँकि पिछले कुछ दिनों से मैं अन्य कार्यों में व्यस्त थी, मैंने कुछ सिंचनकर्ताओं द्वारा उठाए गए मुद्दों पर विस्तृत प्रतिक्रियाएँ नहीं दी थीं। अगुआ ने हमें सिंचनकर्ताओं के लिए कुछ अच्छे मार्ग प्रदान करने के लिए कहा था और मैंने उसे भी कार्यान्वित नहीं किया था। अगर मैंने पर्यवेक्षक को ईमानदारी से इसकी रिपोर्ट दी तो कहीं वह यह तो नहीं सोचेगी कि मैं टाल-मटोल कर रही हूँ और वास्तविक कार्य नहीं कर रही हूँ? रात को बिस्तर पर लेटे-लेटे मैं सो नहीं पा रही थी, क्योंकि मैं सोच रही थी कि अपने गौरव और छवि की रक्षा कैसे करूँ। मुझे एहसास हुआ कि मैं फिर से धोखेबाज बनना चाहती हूँ और यह भी एहसास हुआ कि इस स्थिति के जरिए परमेश्वर मेरी परीक्षा ले रहा है, यह देखने के लिए कि क्या मैं उसकी जाँच-पड़ताल स्वीकार सकती हूँ और ईमानदार इंसान बन सकती हूँ। मैंने परमेश्वर के वचनों के एक अंश के बारे में सोचा : “परमेश्वर लोगों से ईमानदार बनने, ईमानदारी से बात करने और ईमानदार चीजें करने, और धोखेबाज न बनने के लिए कहता है। परमेश्वर के यह कहने का महत्व लोगों को एक सच्ची मानवीय समानता रखने देना है, ताकि उनमें शैतान की समानता न हो, जो जमीन पर रेंगते साँप की तरह बोलता है, हमेशा छल भरी बातें करता है और दूसरों को हमेशा वस्तुस्थिति समझने से रोकता है। अर्थात्, ऐसा इसलिए कहा गया है, ताकि लोग अपनी कथनी-करनी में मानवोचित ढंग से जिएँ, और किसी बुरे पहलू या शर्मनाक चीजों से रहित गरिमापूर्ण, ईमानदार और शिष्ट बनें। ऐसा इसलिए कहा गया है ताकि लोग अंदर और बाहर से एक जैसे हों, वे जो कुछ भी सोचते हैं वही कहें, वे न तो परमेश्वर को, न किसी व्यक्ति को धोखा दें, अपने दिल में कुछ भी छिपाकर न रखें, और उनका दिल शुद्ध भूमि के टुकड़े की तरह हो। लोगों से ईमानदार होने की अपेक्षा करने के पीछे परमेश्वर का यही उद्देश्य है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर की प्रबंधन योजना का सर्वाधिक लाभार्थी मनुष्‍य है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे फिर से याद दिलाया कि ईमानदार व्यक्ति होने का मतलब है ईमानदारी और खुले तरीके से बोलना और पेश आना, जो किया गया है और जो नहीं किया गया है, उस पर परमेश्वर की जाँच-पड़ताल को स्वीकारना, परमेश्वर और लोगों दोनों के साथ सरल और खुला होना। भले ही इसकी वजह से मेरी काट-छाँट की जाए, मुझे सत्य छिपाने के लिए चाल या कपट का इस्तेमाल किए बिना ईमानदारी से बोलना है। इस तरह ईमानदारी से व्यवहार करना ही एक ईमानदार व्यक्ति की सही पहचान है। बाद में मैंने पर्यवेक्षक को सच्चाई से बताया कि काम कैसा चल रहा है, फिर मैंने सिंचनकर्ताओं की समस्याओं को सुलझाने के लिए संगति की और सभी के साथ नवागंतुकों का सिंचन करने के कुछ अच्छे तरीके साझा किए। इस तरह से अभ्यास करके मैंने खुद अनुभव किया कि परमेश्वर की जाँच-पड़ताल और मानवीय पर्यवेक्षण स्वीकार सकने वाला ईमानदार व्यक्ति होने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि मैं अपने कार्य को जिम्मेदारी और परिश्रम के साथ करूँ, जो वाकई अपने कर्तव्य करते समय मेरी रक्षा करता है।

इस अनुभव से गुजरने के बाद मैं देखती हूँ कि परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना के बिना मेरा धोखेबाज और दुष्ट स्वभाव बिल्कुल भी नहीं बदल सकता था। सिर्फ परिस्थितियों का सामना करने और परमेश्वर की ज्यादा जाँच-पड़ताल स्वीकारने, व्यक्तिगत हितों को त्यागने और सचेत रूप से एक ईमानदार व्यक्ति होने का अभ्यास करने से मेरा भ्रष्ट स्वभाव धीरे-धीरे परिवर्तन पाने में सक्षम हुआ।

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