97. पैसे के पीछे भागने के दिनों को अलविदा कहना

झेंग यी, चीन

मेरा जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था, जहाँ मेरे भोले-भाले और मेहनती माता-पिता खेती करके हमारे परिवार का भरण-पोषण करते थे। बचपन में मैं गाँव के धनी लोगों को अच्छा खाना और अच्छे कपड़े का आनंद उठाते और दूसरों से प्रशंसा और सहयोग पाते देखता था। मुझे उनसे ईर्ष्या होती थी और मानता था कि पैसा होना ही सब कुछ होना है। अपने सपनों में भी मैं बहुत सारा पैसा कमाना चाहता था। मैंने मन ही मन संकल्प लिया कि मैं अमीर बनूँगा और भविष्य में एक बेहतरीन जीवन जियूँगा।

शादी के बाद अपने सपने जल्दी से जल्दी साकार करने के लिए मैं अकेले ही शहर चला गया और ईंटें बिछाने का काम करने लगा। कई साल तक ओवरटाइम काम करने के बावजूद मेरी बचत बहुत कम ही रही। मैं अपने दिल में सोचने लगा कि जीवन भर इतनी मेहनत करने से मेरे सपने कभी पूरे नहीं हो सकते। बहुत सोचने के बाद मैंने ठेकेदार बनने का फैसला किया और अपना खुद का निर्माण व्यवसाय शुरू किया। मैंने रिश्तेदारों और दोस्तों से पैसे उधार लिए, शहर में जमीन का एक टुकड़ा खरीदा और एक इमारत बनाई। ठेके हासिल करने और जल्दी से पैसे कमाने के लिए मैंने अपने संपर्कों और उपहारों का इस्तेमाल करके एक निर्माण कंपनी से परियोजना हासिल की। यह सुनिश्चित करने के लिए कि काम अच्छी तरह से किया जाए, हर दिन मैं सुबह जल्दी उठकर निर्माण स्थल का पर्यवेक्षण करने लगा, मैं अक्सर नाश्ता छोड़ देता था और शाम को श्रमिकों का काम खत्म होने के बाद काम का निरीक्षण करता था। किसी भी घटिया गुणवत्ता वाला काम नष्ट कर दिया जाता था और ओवरटाइम मेहनत करके उसे फिर से बनाया जाता था। आखिरकार मैंने कंपनी के अधिकारियों का भरोसा जीत लिया और सहायक परियोजनाएँ हासिल कर लीं। दो साल में मैंने कुछ पैसे कमा लिए, अपने कर्ज चुकाए और अपने घर का नवीनीकरण किया। मुझे अपने दिल में अवर्णनीय आनंद मिला। चंद्र नववर्ष के दौरान रिश्तेदार और दोस्त जश्न मनाने के लिए मेरे घर आए। कुछ ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा, “बॉस, हम तुम्हें नए साल की शुभकामनाएँ देने आए हैं! तुम्हें अधिक से अधिक सफलता मिले और तुम्हारा व्यवसाय समृद्ध हो!” दूसरों ने मेरे साथ हाथ मिलाया और कहा, “हम सभी पैसे कमाने के लिए तुम पर निर्भर हैं!” उस पल मुझे ऐसा लगा कि मैं आकर्षण का केंद्र हूँ, चारों तरफ मेरी प्रशंसा हो रही है। मैंने मन ही मन सोचा, “पैसा होना वाकई बहुत बढ़िया है। पैसे से लोग तुम्हारी प्रशंसा और आदर करते हैं और तुम एक बेहतरीन जीवन जी सकते हो।” यह सोचकर मुझे बहुत खुशी हुई। ज्यादा पैसे कमाने के लिए मैंने कई और निर्माण परियोजनाएँ ले लीं और हर दिन सुबह से शाम तक अथक परिश्रम करने लगा। जैसे-जैसे समय बीतता गया, मैं रात को सो नहीं पाता था, चिंता रहती थी कि कहीं मजदूर मचान से गिर न जाएँ और दुर्घटना न हो जाए, जिससे काफी वित्तीय नुकसान हो सकता है। मैं हर दिन दबाव महसूस करता था और मुझे अक्सर बुखार, जुकाम हो जाता था और चक्कर आते रहते थे। लगभग 5’8” का कद होने के बावजूद मेरा वजन केवल एक सौ बीस पाउंड था, आवाज कमजोर थी और खड़े होने पर भी नींद आती रहती थी। मैं वाकई ब्रेक लेना चाहता था। लेकिन अगर मैं निर्माण परियोजनाओं पर काम नहीं करता तो पैसे नहीं कमा पाता या मुझे दूसरों से प्रशंसा नहीं मिल पाती। मेरे पास अपनी ऊर्जा जुटाकर काम जारी रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। जैसे-जैसे मैं अधिक से अधिक पैसे कमाता गया, मुझे लगा कि मेरी सारी पीड़ा और थकावट सार्थक है। जब मेरा निर्माण व्यवसाय फल-फूल रहा था, मेरी पत्नी तीसरी मंजिल पर मचान पर काम कर रही थी, एक दीवार को सँभाल रही थी, जब वह गलती से एक बोर्ड से टकरा गई और पहली मंजिल पर गिर गई और तुरंत बेहोश हो गई। उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया और एक घंटे से अधिक समय तक उसका आपातकालीन इलाज चला, आखिरकार उसकी हालत स्थिर हुई और उसे होश आ गया। उसे अस्पताल छोड़ने लायक ठीक होने में एक महीने से अधिक समय लग गया।

बाद में मेरी बड़ी बहन को पता चला कि मेरी पत्नी को अस्पताल से छुट्टी मिल गई है और वह हमसे मिलने आई। उसने हमें परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य का उपदेश सुनाया। मुझे याद है कि उस समय परमेश्वर के कुछ वचनों ने मुझे बहुत प्रभावित किया था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “जिस क्षण तुम रोते हुए इस दुनिया में आते हो उसी पल से तुम अपनी जिम्मेदारियाँ निभाना शुरू कर देते हो। परमेश्वर की योजना और उसके विधान की खातिर तुम अपनी भूमिका निभाते हो और अपनी जीवन यात्रा शुरू करते हो। तुम्हारी पृष्ठभूमि जो भी हो और तुम्हारी आगे की यात्रा जैसी भी हो, किसी भी स्थिति में कोई भी स्वर्ग के आयोजनों और व्यवस्थाओं से बच नहीं सकता और कोई भी अपनी नियति को नियंत्रित नहीं कर सकता, क्योंकि जो सभी चीजों का संप्रभु है सिर्फ वही ऐसा करने में सक्षम है। मनुष्य के अस्तित्व में आने की शुरुआत से ही परमेश्वर अपने कार्य को हमेशा से इसी ढंग से करता आ रहा है, ब्रह्मांड को सँभाल रहा है और सभी चीजों के लिए परिवर्तन के नियमों और उनकी गतिविधियों के पथ को संचालित कर रहा है। सभी चीजों की तरह मनुष्य भी चुपचाप और अनजाने में परमेश्वर से मिठास और बारिश और ओस से पोषित हो रहा है; सभी चीजों की तरह मनुष्य भी अनजाने में परमेश्वर के हाथ के आयोजन के अधीन रहता है। मनुष्य का हृदय और आत्मा परमेश्वर की मुट्ठी में होते हैं और उसके जीवन की हर चीज परमेश्वर की दृष्टि में रहती है। चाहे तुम यह सब मानो या न मानो, एक-एक चीज चाहे वह सजीव हो या मृत, परमेश्वर के विचारों के अनुसार ही उसकी दशा, बदलेगी, नवीनीकृत और गायब होगी। परमेश्वर इसी तरह सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मैं समझ गया कि हर किसी का भाग्य परमेश्वर के हाथों में है। जब मेरी पत्नी तीसरी मंजिल से गिरी और बच गई, यह इसलिए नहीं हुआ क्योंकि वह भाग्यशाली थी, बल्कि यह परमेश्वर की सुरक्षा के कारण हुआ। मैंने अन्य ठेकेदारों के निर्माण स्थलों पर होने वाली दुर्घटनाओं के बारे में सोचा। कुछ श्रमिक तीसरी मंजिल की मचान से गिर गए थे और अस्पताल ले जाने के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका था। अन्य लोग दूसरी या पहली मंजिल की मचान से गिर गए और मौके पर ही मर गए। क्या यह सब परमेश्वर के इस कथन का प्रमाण नहीं है : “कोई भी अपनी नियति को नियंत्रित नहीं कर सकता, क्योंकि जो सभी चीजों का संप्रभु है सिर्फ वही ऐसा करने में सक्षम है”? आज मेरी बड़ी बहन द्वारा हमारे लिए सुसमाचार का प्रचार करना भी परमेश्वर द्वारा ही आयोजित और व्यवस्थित था। उसकी संगति के माध्यम से मैंने सीखा कि मनुष्य और सभी चीजें परमेश्वर द्वारा सृजित की गई हैं। मानवता को बचाने के लिए परमेश्वर ने तीन चरणों का कार्य किया है, आज तक मानवता की अगुआई और उसके लिए प्रावधान करता आया है। अंत के दिनों का यह कार्य मानवता को बचाने के परमेश्वर के कार्य का अंतिम चरण है और यह लोगों के लिए बचाए जाने का एक दुर्लभ अवसर है। हम केवल परमेश्वर पर विश्वास करके और उसके सामने उसकी आराधना करके ही अच्छा भाग्य प्राप्त कर सकते हैं। मैंने और मेरी पत्नी ने परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार खुशी-खुशी स्वीकार लिया और तब से हम सक्रियता से सभाओं में भाग लेते रहे। सभाओं के दौरान भाई-बहन परमेश्वर के वचनों पर संगति करते थे और मैंने कुछ सत्य समझे, जिससे मेरा हृदय खासकर सुरक्षित और शांत हो गया, अब मुझे वह दबाव महसूस नहीं हुआ जो पहले होता था।

बाद में अगुआ ने देखा कि मैं सभाओं में सक्रियता से भाग लेता हूँ तो उसने मुझे तीन नए विश्वासियों का सिंचन करने के लिए समूह अगुआ बनाना चाहा। लेकिन मैं थोड़ा हिचकिचा रहा था, क्योंकि मैं दिन में निर्माण कार्य का प्रबंधन करता था और मुझे रात में काम की बातों को रिकॉर्ड करना और बही-खातों का रखरखाव करना होता था। नए विश्वासियों का सिंचन करने के लिए मुझे समय कहाँ मिलता? मैं यह कर्तव्य नहीं करना चाहता था। लेकिन मुझे थोड़ा पछतावा हुआ : जब मैंने पहली बार परमेश्वर में विश्वास रखा और निर्माण कार्य में व्यस्त था, भाई-बहनों ने देखा कि मेरे पास दिन में सभा करने का समय नहीं है तो वे शाम को मेरा सिंचन करने और सहारा देने आए, परमेश्वर के वचनों की संगति के माध्यम से सत्य समझने में मेरी मदद करने लगे। अब जबकि कलीसिया में ज्यादा नए विश्वासी हैं और सिंचनकर्ता कम हैं, मुझे अपना योगदान देना चाहिए। यह सोचकर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे सही फैसला लेने में मेरा मार्गदर्शन करने और मुझे प्रबुद्ध करने के लिए कहा। मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “मैं तुम लोगों को यह बात बता दूँ : मनुष्य द्वारा अपने कर्तव्य का निर्वाह ऐसी चीज है, जो उसे करनी ही चाहिए, और यदि वह अपना कर्तव्य करने में अक्षम है, तो यह उसकी विद्रोहशीलता है। अपना कर्तव्य पूरा करने की प्रक्रिया के माध्यम से मनुष्य धीरे-धीरे बदलता है, और इसी प्रक्रिया के माध्यम से वह अपनी वफ़ादारी प्रदर्शित करता है। इस प्रकार, जितना अधिक तुम अपना कर्तव्य करने में सक्षम होगे, उतना ही अधिक तुम सत्य को प्राप्त करोगे, और उतनी ही अधिक तुम्हारी अभिव्यक्ति वास्तविक हो जाएगी(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे यह समझने में मदद की कि सृजित प्राणियों के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करना पूरी तरह से स्वाभाविक और न्यायसंगत है क्योंकि हमारा जीवन परमेश्वर से आता है और हम जिन चीजों का भी आनंद लेते हैं, वह सब परमेश्वर द्वारा दिया जाता है। अपने कर्तव्यों का पालन करना हममें से प्रत्येक के लिए ऐसी जिम्मेदारी और दायित्व है जिससे बचा नहीं जा सकता। अगर मैंने इस कर्तव्य को नहीं स्वीकारा तो मुझमें वाकई अंतरात्मा की कमी होगी। इसके अलावा नए विश्वासियों का सिंचन सप्ताह में सिर्फ दो बार शाम को होता था, इसलिए इससे मेरे निर्माण कार्य के प्रबंधन में बहुत हस्तक्षेप नहीं होगा। इसका एहसास होने पर मैं यह कर्तव्य निभाने के लिए सहमत हो गया। कभी-कभी जब मैं नए विश्वासियों की मनोदशाएँ या धारणाएँ नहीं सुलझा पाता तो मैं परमेश्वर से प्रार्थना और खोज करता। परमेश्वर के वचन पढ़कर मैंने अनजाने में कुछ सत्य समझ लिए। नए विश्वासियों की मनोदशाएँ और धारणाएँ हल हो गईं और दर्शनों के सत्य के बारे में मेरी समझ और स्पष्ट हो गई, इसलिए मैं अपना कर्तव्य निभाने में अधिक सक्रिय हो गया। मुझे लगा कि अपना कर्तव्य निभाने से मैं पवित्र आत्मा का प्रबोधन और अगुआई हासिल कर सकता हूँ, अधिक सत्य समझ सकता हूँ और अपने दिल में शांति और सुकून की भावना प्राप्त कर सकता हूँ।

बाद में जब भाई-बहनों ने मेरा उत्साही अनुसरण देखा तो उन्होंने मुझे सुसमाचार उपयाजक के रूप में सेवा करने के लिए चुना। मैं काफी खुश था, जानता था कि मेरे पास आने वाला यह कर्तव्य परमेश्वर के प्रेम की अभिव्यक्ति है। मैं इसे सँजोना चाहता था और इस कर्तव्य को अच्छी तरह से निभाना चाहता था। लेकिन मेरे दिल में कुछ चिंताएँ थीं : काफी प्रयास के बाद मेरा निर्माण व्यवसाय काफी बढ़ गया और इसकी लाभप्रदता में सुधार जारी रहने की संभावना थी। अगर मैंने सुसमाचार उपयाजक का कर्तव्य स्वीकार लिया तो निश्चित रूप से मेरे पास निर्माण व्यवसाय को प्रबंधित करने के लिए कम ऊर्जा बचेगी, जिससे मेरी आय में काफी कमी आएगी। मैंने खुद को दुविधा में पाया। फिर मुझे याद आया कि अंत के दिनों का कार्य मानवता को बचाने का परमेश्वर का अंतिम कार्य है। अगर मैं सिर्फ पैसा कमाने पर ध्यान केंद्रित करता और अपने कर्तव्य की उपेक्षा करता तो मैं सत्य कैसे प्राप्त कर सकता था? इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे सत्य खोजने और अपनी मुश्किलें सुलझाने में मेरा मार्गदर्शन करने के लिए कहा। मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “आज तुम लोगों से जो कुछ हासिल करने की अपेक्षा की जाती है, वे अतिरिक्त माँगें नहीं, बल्कि मनुष्य का कर्तव्य है, जिसे सभी लोगों द्वारा किया जाना चाहिए। यदि तुम लोग अपना कर्तव्य तक निभाने में या उसे भली-भाँति करने में असमर्थ हो, तो क्या तुम लोग अपने ऊपर मुसीबतें नहीं ला रहे हो? क्या तुम लोग मृत्यु को आमंत्रित नहीं कर रहे हो? कैसे तुम लोग अभी भी भविष्य और संभावनाओं की आशा कर सकते हो? परमेश्वर का कार्य मानवजाति के लिए किया जाता है, और मनुष्य का सहयोग परमेश्वर के प्रबंधन के लिए दिया जाता है। जब परमेश्वर वह सब कर लेता है जो उसे करना चाहिए, तो मनुष्य से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने अभ्यास में उदार हो और परमेश्वर के साथ सहयोग करे। परमेश्वर के कार्य में मनुष्य को कोई कसर बाकी नहीं रखनी चाहिए, उसे अपनी वफादारी प्रदान करनी चाहिए, और अनगिनत धारणाओं में संलग्न नहीं होना चाहिए, या निष्क्रिय बैठकर मृत्यु की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। परमेश्वर मनुष्य के लिए स्वयं को बलिदान कर सकता है, तो क्यों मनुष्य परमेश्वर को अपनी वफादारी प्रदान नहीं कर सकता? परमेश्वर मनुष्य के प्रति एक हृदय और मन वाला है, तो क्यों मनुष्य थोड़ा-सा सहयोग प्रदान नहीं कर सकता? परमेश्वर मानवजाति के लिए कार्य करता है, तो क्यों मनुष्य परमेश्वर के प्रबंधन के लिए अपना कुछ कर्तव्य पूरा नहीं कर सकता? परमेश्वर का कार्य इतनी दूर तक आ गया है, पर तुम लोग अभी भी देखते ही हो किंतु करते नहीं, सुनते ही हो किंतु हिलते नहीं। क्या ऐसे लोग तबाही के लक्ष्य नहीं हैं? परमेश्वर पहले ही अपना सर्वस्व मनुष्य को अर्पित कर चुका है, तो क्यों आज मनुष्य ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाने में असमर्थ है? परमेश्वर के लिए उसका कार्य उसकी पहली प्राथमिकता है, और उसके प्रबंधन का कार्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। मनुष्य के लिए परमेश्वर के वचनों को अभ्यास में लाना और परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करना उसकी पहली प्राथमिकता है। इसे तुम सभी लोगों को समझ लेना चाहिए(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैं गहराई से प्रभावित हुआ। मानवता को मुक्ति दिलाने के लिए परमेश्वर ने सबसे पहले एक मनुष्य के रूप में देह धारण किया और उसे मानव जाति के पाप क्षमा करने के लिए सूली पर चढ़ाया गया। अंत के दिनों में मानवता के पूर्ण उद्धार के लिए आवश्यक सभी सत्य व्यक्त करने के लिए परमेश्वर फिर से देहधारी हुआ है, इन सत्यों पर स्पष्ट और पूरी तरह से संगति करते हुए सत्य को बेहतर ढंग से समझने, सत्य प्राप्त करने और उद्धार पाने में हमारी मदद कर रहा है। परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह हमारे लिए है। तो मैं परमेश्वर के प्रेम का मूल्य चुकाने के लिए अपना कर्तव्य क्यों नहीं निभा सकता? मैं परमेश्वर के इरादों के प्रति बिल्कुल भी विचारशील नहीं था और इस बात की चिंता करता रहा कि यह कर्तव्य स्वीकारने से मेरी अपनी आय प्रभावित होगी, इसलिए मैं मना करना चाहता था। मैं पैसे कमाने के प्रति विचारशील था और मुझे अपने कर्तव्य की परवाह नहीं थी—मैं वाकई स्वार्थी और नीच था! जब भाई-बहनों ने मुझे सुसमाचार उपयाजक के रूप में सेवा करने के लिए चुना, यह कर्तव्य मुझे परमेश्वर से मिला था—यह एक जिम्मेदारी और दायित्व था—और मुझे इसे स्वीकारना और समर्पण करना चाहिए। अगर मैं इनकार कर देता तो मैं इंसान कहलाने के लायक नहीं रहता और मैं सत्य पाने का अवसर गँवा देता और आखिरकार हटा दिया जाता। भले ही मैं तुरंत धन के प्रति अपना लगाव नहीं छोड़ सका, मैं परमेश्वर के वचनों के अनुसार पेश आने, इस कर्तव्य को स्वीकारने और इसे पूरा करने की भरसक कोशिश करने के लिए तैयार था।

शुरू में मैं सभाओं में भाग लेने, सुसमाचार प्रचार का प्रशिक्षण लेने और भाई-बहनों के साथ परमेश्वर की गवाही देने के लिए समय निकालने में कामयाब रहा। लेकिन जैसे-जैसे मैंने और निर्माण परियोजनाएँ लीं, मैंने पाया कि मैं अपने कर्तव्य और सभाओं के लिए निर्धारित समय का त्याग कर रहा हूँ। एक बार एक संपत्ति के मालिक ने अनुरोध किया कि मैं कुछ सहायक परियोजनाओं के साथ चार तीन मंजिला इमारतें भी बनाऊँ। मैं हिचकिचाया : यह परियोजना काफी बड़ी थी और मेरे पास अभी भी एक और अधूरी परियोजना थी, जिसके प्रबंधन के बारे में मुझे चिंता करने की जरूरत थी। नई परियोजना के लिए सहमत होने का मतलब था कि मेरे पास अपने कर्तव्य और सभाओं के लिए और भी कम समय होता। मैंने शुरुआत की तारीख स्थगित करने के लिए संपत्ति के मालिक से बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन वह सहमत नहीं हुआ। मैं दबाव में आ गया क्योंकि समय पर काम शुरू न होने पर हस्ताक्षरित अनुबंध अमान्य हो जाते। न केवल मैं पैसे कमाने में असमर्थ होता, बल्कि मुझे मुआवजा भी देना पड़ता और मेरी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचता। अगर मैं अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा नहीं कर पाया तो भविष्य की परियोजनाओं के लिए कौन मुझ पर भरोसा करेगा? क्या मैं अब बिना किसी परियोजना के भी पैसे कमा पाऊँगा? इन चिंताओं के साथ मैंने आखिरकार संपत्ति के मालिक की माँगों पर सहमति जताई और नए निर्माण कार्य में व्यस्त हो गया। कभी-कभी जब निर्माण स्थल पर कई समस्याएँ होती थीं तो मैं सुबह बाहर निकलने से पहले बस परमेश्वर के वचनों पर एक नजर डालता था। इससे न केवल मेरे सामान्य आध्यात्मिक जीवन में गड़बड़ी पैदा हुई, बल्कि मेरे पास सुसमाचार कार्य का जायजा लेने का भी समय नहीं बचा। उस अवधि के दौरान सुसमाचार कार्य में कोई नतीजा न मिलते देखकर मुझे थोड़ा पछतावा हुआ। अपने दिल में मैंने चुपचाप संकल्प लिया : भविष्य में निर्माण कार्य चाहे कितना भी व्यस्त क्यों न हो, मैं सभाओं में भाग लूँगा और अपना कर्तव्य निभाऊँगा।

एक दिन जैसे ही मैंने एक सभा में भाग लेने की व्यवस्था की, रास्ते में अचानक मेरा फोन बज उठा। निर्माण स्थल पर एक समस्या थी जिस पर मुझे तुरंत ध्यान देने की जरूरत थी। मैं हिचकिचाया : इस बार मैं मूल रूप से सुसमाचार कार्य के बारे में सभा और संगति करना चाहता था, लेकिन अब यह समस्या आ गई। अगर मैं निर्माण स्थल पर समस्या सँभालने गया तो सभा में शामिल नहीं हो पाऊँगा—क्या यह परमेश्वर को धोखा देना नहीं होगा? लेकिन अगर मैं नहीं गया और संपत्ति के मालिक ने शिकायत कर दी तो क्या होगा? इससे मेरी प्रतिष्ठा और वित्तीय स्थिति को नुकसान पहुँच सकता है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो मैं अपनी निर्माण परियोजनाओं का प्रबंधन कैसे कर पाऊँगा? मैंने निर्माण की समस्या सुलझाने को प्राथमिकता देने का फैसला किया और बाद में सभाओं और अपने कर्तव्य के लिए समय निकालने का वादा किया। इसलिए मैं निर्माण स्थल पर चला गया। शाम को घर लौटते हुए और दिन की घटनाओं पर विचार करते हुए मुझे पछतावा हुआ। मैंने सभा में भाग लेने की योजना बनाई थी लेकिन वित्त संबंधी अपनी चिंताओं को अपने कर्तव्य पालन में हस्तक्षेप करने दिया। इस अवधि के दौरान निर्माण कार्य पर मेरे ध्यान ने सुसमाचार कार्य की प्रगति में रुकावट डाली और मुझे एहसास हुआ कि मैंने अपना कर्तव्य ठीक से नहीं किया है। लेकिन अगर मैं निर्माण परियोजनाओं को अलग रख दूँ और पैसा कमाना बंद कर दूँ तो मैं समृद्ध और सम्मानित जीवन कैसे जी सकता हूँ? असमंजस के बीच मैंने परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना की, “परमेश्वर, मेरा दिल अशांत है। मैं जानता हूँ कि तुम पर विश्वास करना और अपना कर्तव्य करना पूरी तरह से स्वाभाविक और उचित है, लेकिन मुझे पैसे को छोड़ना मुश्किल लगता है। सही फैसला करने के लिए मेरा मार्गदर्शन करो।” प्रार्थना करने के बाद मेरा दिल धीरे-धीरे शांत हो गया। अपनी खोज में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “अगर मैं तुम लोगों के सामने कुछ पैसे रखूँ और तुम्हें चुनने की आजादी दूँ—और अगर मैं तुम्हारी पसंद के लिए तुम्हारी निंदा न करूँ—तो तुममें से ज्यादातर लोग पैसे का चुनाव करेंगे और सत्य को छोड़ देंगे। तुममें से जो बेहतर होंगे, वे पैसे को छोड़ देंगे और अनिच्छा से सत्य को चुन लेंगे, जबकि इन दोनों के बीच वाले एक हाथ से पैसे को पकड़ लेंगे और दूसरे हाथ से सत्य को। इस तरह तुम्हारा असली रंग क्या स्वतः प्रकट नहीं हो जाता? सत्य और किसी ऐसी अन्य चीज के बीच, जिसके प्रति तुम वफादार हो, चुनाव करते समय तुम सभी ऐसा ही निर्णय लोगे, और तुम्हारा रवैया ऐसा ही रहेगा। क्या ऐसा नहीं है? क्या तुम लोगों में बहुतेरे ऐसे नहीं हैं, जो सही और गलत के बीच में झूलते रहे हैं? सकारात्मक और नकारात्मक, काले और सफेद, परिवार और परमेश्वर, संतानों और परमेश्वर, सौहार्द और बिगाड़, धन और गरीबी, रुतबा और मामूलीपन, समर्थन दिए जाने और ठुकरा दिए जाने इत्यादि के बीच सभी संघर्ष के दौरान तुम लोगों ने जो विकल्प चुने हैं उनके बारे में तुम लोग निश्चित ही अनजान नहीं हो! ... सालों तक मैंने अपने हृदय का जो खून खपाया है उससे मुझे आश्चर्यजनक रूप से तुम लोगों द्वारा परित्याग और निवृत्ति से अधिक कुछ नहीं मिला, लेकिन तुम लोगों के प्रति मेरी आशाएँ हर गुजरते दिन के साथ बढ़ती ही जाती हैं, क्योंकि मेरा दिन सबके सामने पूरी तरह से खुला पड़ा रहा है। फिर भी तुम लोग लगातार अँधेरी और बुरी चीजों की तलाश में रहते हो, और उन पर अपनी पकड़ ढीली करने से इनकार करते हो। तो फिर तुम्हारा परिणाम क्या होगा? क्या तुम लोगों ने कभी इस पर सावधानी से विचार किया है? अगर तुम लोगों को फिर से चुनाव करने को कहा जाए, तो तुम्हारा क्या रुख रहेगा?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम किसके प्रति वफादार हो?)। परमेश्वर ने मेरी मनोदशा उजागर कर दी। क्या मैं ऐसा व्यक्ति नहीं था जिसने एक हाथ में पैसा और दूसरे हाथ में सत्य पकड़ रखा था? मैंने परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपना कर्तव्य निभाने की अपनी इच्छा जाहिर की थी और अपने हृदय में देह के खिलाफ विद्रोह करने और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करने का संकल्प लिया था। लेकिन जब मेरा कर्तव्य वित्तीय हितों से टकराया तो मैं पैसा, प्रसिद्धि और लाभ के लालच का प्रतिरोध नहीं कर सका। मैंने पाया कि मैं अनजाने में अपनी इच्छाओं का अनुसरण कर रहा था और पैसे को चुन रहा था। मुझे पता था कि इस बड़ी निर्माण परियोजना को शुरू करने के लिए अधिक समय और प्रयास की जरूरत है, जिससे मेरे पास अपना कर्तव्य करने के लिए कोई समय नहीं बचेगा। फिर भी मैंने अधिक पैसा कमाने और दूसरों की प्रशंसा पाने के लिए इसे स्वीकारने का हठ किया, भले ही मुझे पता था कि यह गलत है। मेरा हृदय पैसा कमाने पर केंद्रित था और मैंने एक महीने से अधिक समय तक सुसमाचार कार्य का जायजा लेने की उपेक्षा की, नतीजतन सुसमाचार कार्य में ठहराव आ गया। मैं परमेश्वर द्वारा दिए गए कर्तव्य से इस तरह पेश आया, जिसने वाकई मुझे परमेश्वर का ऋणी बना दिया।

फिर मैंने विचार किया कि मैं पैसे को क्यों नहीं छोड़ सकता, जबकि मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि अपना कर्तव्य निभाने से मुझे सत्य की प्राप्ति होगी। बाद में अपनी खोज में मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंश पढ़े : “शैतान एक बहुत ही सौम्य तरीका चुनता है, एक ऐसा तरीका जो मनुष्य की धारणाओं के बहुत ही अनुरूप है और जो बहुत आक्रामक नहीं है, ताकि वह लोगों से अनजाने में ही जीवित रहने के अपने साधन और नियम स्वीकार करवा ले, जीवन लक्ष्य और जीवन की दिशाएँ विकसित करवा ले और जीवन की आकांक्षाएँ रखवाने लगे। लोग अपने जीवन की आकांक्षाओं के बारे में चर्चा करने के लिए जिन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं वे चाहे कितने ही आडंबरपूर्ण क्यों न लगते हों, ये आकांक्षाएँ ‘प्रसिद्धि’ और ‘लाभ’ से अटूट रूप से जुड़ी होती हैं। कोई भी महान या प्रसिद्ध व्यक्ति—या वास्तव में कोई भी व्यक्ति—जीवन भर जिन सारी चीजों का पीछा करता है वे केवल इन दो शब्दों से जुड़ी होती हैं : ‘प्रसिद्धि’ और ‘लाभ’। लोग सोचते हैं कि एक बार उनके पास प्रसिद्धि और लाभ आ जाए तो उनके पास वह पूँजी होती है जिसका इस्तेमाल वे ऊँचे रुतबे और अपार धन-संपत्ति का आनंद लेने के लिए कर सकते हैं और जीवन का आनंद लेने के लिए कर सकते हैं। उन्हें लगता है कि एक बार उनके पास प्रसिद्धि और लाभ आ जाए तो उनके पास वह पूँजी होती है जिसका इस्तेमाल वे सुख खोजने और देह के उच्छृंखल आनंद में लिप्त रहने के लिए कर सकते हैं। लोग जिस प्रसिद्धि और लाभ की कामना करते हैं उनकी खातिर वे स्वेच्छा से, यद्यपि अनजाने में, अपने शरीर, दिल और यहाँ तक कि अपनी संभावनाओं और नियतियों समेत वह सब जो उनके पास है, शैतान को सौंप देते हैं। वे ऐसा बिना किसी हिचकिचाहट के, बिना एक पल के संदेह के करते हैं और बिना कभी यह जाने करते हैं कि वे वह सब कुछ वापस पा सकते हैं जो कभी उनके पास था। लोग जब इस प्रकार खुद को शैतान को सौंप देते हैं और उसके प्रति वफादार हो जाते हैं तो क्या वे खुद पर कोई नियंत्रण बनाए रख सकते हैं? कदापि नहीं। वे पूरी तरह से और बुरी तरह शैतान से नियंत्रित होते हैं। वे पूरी तरह से और सर्वथा दलदल में धँस जाते हैं और अपने आप को मुक्त कराने में असमर्थ रहते हैं। जब कोई प्रसिद्धि और लाभ की दलदल में फँस जाता है तो फिर वह कभी उसे नहीं खोजता जो उजला है, जो न्यायोचित है या वे चीजें नहीं खोजता जो खूबसूरत और अच्छी हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि लोगों के लिए प्रसिद्धि और लाभ का प्रलोभन बहुत बड़ा होता है; ये ऐसी चीजें हैं जिनका अनुसरण लोग अंतहीन ढंग से अपने पूरे जीवन भर और यहाँ तक कि अनंत काल तक कर सकते हैं। क्या यह असली स्थिति नहीं है?(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। “शैतान मनुष्य के विचारों को नियंत्रित करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का तब तक उपयोग करता है, जब तक सभी लोग प्रसिद्धि और लाभ के बारे में ही नहीं सोचने लगते। वे प्रसिद्धि और लाभ के लिए संघर्ष करते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए कष्ट उठाते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपमान सहते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देते हैं, और प्रसिद्धि और लाभ के लिए कोई भी फैसला या निर्णय ले लेते हैं। इस तरह शैतान लोगों को अदृश्य बेड़ियों से बाँध देता है और इन बेड़ियों को पहने रहते हुए, उनमें उन्हें उतार फेंकने का न तो सामर्थ्‍य होता है, न साहस। वे अनजाने ही ये बेड़ियाँ ढोते हैं और बड़ी कठिनाई से पैर घसीटते हुए आगे बढ़ते हैं(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए मुझे समझ आया कि लोगों को पैसा, प्रसिद्धि और लाभ की ओर लुभाने में शैतान का मकसद उन्हें भ्रष्ट और नियंत्रित करना है, उनके दिलों को परमेश्वर से और दूर ले जाना है, आखिरकार उन्हें शैतान के जाल में फँसाना है, ताकि वे खुद को मुक्त न कर सकें। हर दिन मैं पैसे कमाने के लिए निर्माण परियोजनाओं पर सुबह से शाम तक अथक परिश्रम करता था। यह बचपन से ही मेरे मन में बैठे शैतान के जहर के प्रभाव से उपजा था, जैसे कि “दुनिया पैसों के इशारों पर नाचती है” और “पैसा ही सब कुछ नहीं है, किन्तु इसके बिना तुम कुछ नहीं कर सकते हो।” मेरा मानना था कि पैसे का मतलब सब कुछ होना है, जिसमें दूसरों से प्रशंसा पाना और बेहतर जीवनशैली होना शामिल है। जैसे-जैसे मेरी निर्माण परियोजनाएँ बड़ी होती गईं और रिश्तेदारों और दोस्तों द्वारा मेरी बहुत प्रशंसा की गई, मुझे और भी यकीन हो गया कि धन लोगों को आदर दिला सकता है। मैंने पैसे की खोज को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया, हर दिन इसके लिए अथक परिश्रम किया, निरंतर चिंता और भय में जीता रहा, कार्य स्थल पर संभावित दुर्घटनाओं और इसके अंजाम के बारे में हमेशा चिंतित रहा। बाहर से ऐसा लगता था कि मैं पैसे कमा रहा हूँ, प्रसिद्धि पा रहा हूँ, वैभव और प्रशंसा का आनंद ले रहा हूँ, लेकिन आंतरिक रूप से मैं दबाव में था। मेरे शरीर को कष्ट हुआ और मेरी पत्नी ने लगभग अपनी जान ही गँवा दी थी। इन अनुभवों के बावजूद मैं अभी भी पैसे, प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागना छोड़ नहीं सका। परमेश्वर के घर में आने के बाद मैं समझ गया कि मुझे अपने विश्वास में सत्य का अनुसरण करना चाहिए। लेकिन मैं शैतान की साजिशों की असलियत देखने में असमर्थ था और मैंने पाया कि मैं अनजाने में प्रसिद्धि और लाभ के लिए प्रयास कर रहा हूँ। कलीसिया में सुसमाचार उपयाजक के रूप में सुसमाचार कार्य अच्छी तरह से करना मेरा कर्तव्य था। लेकिन अधिक पैसा कमाने के लिए मैंने अपने कर्तव्य को दरकिनार करते हुए एक महीने तक सुसमाचार कार्य का जायजा लेने को नजरअंदाज किया। इस व्यवहार की प्रकृति परमेश्वर को धोखा देने और विश्वासघात करने के बराबर थी। मैं प्रतिदिन निर्माण परियोजनाओं के प्रबंधन में व्यस्त रहता था, भक्ति और सभाओं की उपेक्षा करता था, जिससे मेरा दिल परमेश्वर से दूर होता चला गया और मेरे जीवन को नुकसान उठाना पड़ा। अगर मैं इसी तरह चलता रहा तो मैं आखिरकार अपना कर्तव्य करने और उद्धार पाने का अवसर गँवा दूँगा। मुझे आखिरकार एहसास हुआ कि धन, प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागना अच्छा रास्ता नहीं है; यह एक ऐसा साधन है जिससे शैतान लोगों को भ्रष्ट करता है और उन्हें नुकसान पहुँचाता है, यह लोगों को बाँधने का एक साधन है। अगर मैं इसी तरह आगे बढ़ता रहा तो आखिरकार शैतान मेरे साथ खिलवाड़ करेगा, मुझे नुकसान पहुँचाएगा और निगल जाएगा।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “तुम लोगों को सत्य और जीवन की ज़रूरत नहीं है; न ही तुम्हें अपने आचरण के सिद्धांतों की ज़रूरत है, मेरे श्रमसाध्य कार्य की तो निश्चित रूप से ज़रूरतनहीं है। इसके बजाय तुम लोगों को उन चीज़ों की ज़रूरत है, जो तुम्हारी देह से जुड़ी हैं—धन-संपत्ति, हैसियत, परिवार, विवाह आदि। तुम लोग मेरे वचनों और कार्य को पूरी तरह से ख़ारिज करते हो, इसलिए मैं तुम्हारी आस्था को एक शब्द में समेट सकता हूँ : लापरवाह। जिन चीज़ों के प्रति तुम लोग पूर्णतः समर्पित हो, उन्हें हासिल करने के लिए तुम किसी भी हद तक जा सकते हो, लेकिन मैंने पाया है कि तुम लोग परमेश्वर में अपने विश्वास से संबंधित मामलों में ऐसा नहीं करते। इसके बजाय, तुम सापेक्ष रूप से समर्पित हो, सापेक्ष रूप से गंभीर हो। इसीलिए मैं कहता हूँ कि जिनके दिल में पूर्ण ईमानदारी का अभाव है, वे परमेश्वर के प्रति अपने विश्वास में असफल हैं। ध्यान से सोचो—क्या तुम लोगों के बीच कई लोग असफल हैं?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, गंतव्य के बारे में)। “एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो सामान्य है और जो परमेश्वर के लिए प्रेम का अनुसरण करता है, परमेश्वर के जन बनने के लिए राज्य में प्रवेश करना ही तुम लोगों का सच्चा भविष्य है और यह ऐसा जीवन है, जो अत्यंत मूल्यवान और सार्थक है; कोई भी तुम लोगों से अधिक धन्य नहीं है। मैं यह क्यों कहता हूँ? क्योंकि जो लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, वो देह के लिए जीते हैं और वो शैतान के लिए जीते हैं, लेकिन आज तुम लोग परमेश्वर के लिए जीते हो और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलने के लिए जीवित हो। यही कारण है कि मैं कहता हूँ कि तुम्हारे जीवन अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। केवल इसी समूह के लोग, जिन्हें परमेश्वर द्वारा चुना गया है, अत्यंत महत्वपूर्ण जीवन जीने में सक्षम हैं : पृथ्वी पर और कोई इतना मूल्यवान और सार्थक जीवन नहीं जी सकता(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करो)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे यह समझने में मदद की कि परमेश्वर में विश्वास करने के लिए सत्य का अनुसरण करना और अपने कर्तव्य अच्छे से पूरा करना जरूरी है। अपने कर्तव्यों का पालन करने और सत्य समझने से हम धीरे-धीरे अपने भ्रष्ट स्वभाव उतार फेंकते हैं और इस प्रकार परमेश्वर का उद्धार प्राप्त कर सकते हैं। मुझे याद आया कि प्रभु यीशु ने क्या कहा था : “तुम में से जो कोई अपना सब कुछ त्याग न दे, वह मेरा चेला नहीं हो सकता(लूका 14:33)। अनुग्रह के युग में पतरस ने धन, प्रसिद्धि या लाभ का पीछा नहीं किया। जब प्रभु यीशु ने उसे बुलाया तो वह मछली पकड़ने का काम छोड़कर प्रभु का अनुसरण करने में सक्षम हो गया। उसका अनुसरण पूरी तरह से सत्य के लिए, सृजित प्राणी के कर्तव्य अच्छे से पूरे करने, परमेश्वर के वचनों के माध्यम से खुद को जानने और अपने भ्रष्ट स्वभाव उतार फेंकने के लिए था। अंत में उसने परमेश्वर के लिए सुंदर और जबर्दस्त गवाही दी, परमेश्वर ने उसे पूर्ण बनाया और उसने सार्थक जीवन जिया। पतरस के अनुभव पर विचार करते हुए मुझे एहसास हुआ कि हमारे लिए सत्य का अनुसरण करना और अपने कर्तव्य पूरे करना कितना सार्थक है। अब जब महा विनाश आ चुके हैं, अगर मैं धन, प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागने में लगा रहा और सत्य का अनुसरण नहीं किया या अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से नहीं किया तो बहुत देर हो जाएगी। अंत में मैं केवल महा विनाशों में गिर जाऊँगा, रोऊँगा और अपने दाँत पीसता रह जाऊँगा। मुझे पतरस की मिसाल पर चलकर सत्य का अनुसरण करना चाहिए। मैं अपने कर्तव्य करने के बजाय पैसा कमाने को प्राथमिकता नहीं दे सकता। नियमित रूप से सभाओं में भाग लेने और अपने कर्तव्य करने में सक्षम होने के लिए मैंने अपनी पत्नी के साथ हमारे सभी निर्माण उपकरण किसी दूसरे को बेचने और अपनी आजीविका कायम रखने के लिए छोटे-मोटे काम करने के विचार पर चर्चा की। शुरू में मेरी पत्नी असहमत थी, इसलिए मैंने इस अवधि के दौरान अपनी समझ और विचार उसके साथ साझा किए तो उसने अब और आपत्ति नहीं की। बाद में मैंने सभी उपकरण बेच दिए और अपने कर्तव्य पूरे करने के लिए खुद को समर्पित कर दिया। अपने कर्तव्य करने में मैंने भाई-बहनों के साथ अपनी साझेदारी में पवित्र आत्मा के कार्य और मार्गदर्शन का अनुभव किया जिससे मैंने मुक्त और स्वतंत्र महसूस किया। जब भी मैंने अपनी भ्रष्टता उजागर की, मैंने अपने इरादे और अपने क्रियाकलापों की प्रकृति और अंजाम जानने के लिए चिंतन और प्रयास करते हुए सत्य की खोज की। जब मैं खुद के खिलाफ विद्रोह करने और सत्य सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास करने में सक्षम हुआ तो मुझे आनंद, आंतरिक शांति और सुकून मिला। इस अनुभव के माध्यम से मुझे सत्य का अनुसरण करने और अपने कर्तव्य करने के महत्व की व्यावहारिक समझ मिली।

कुछ समय बाद जब मैं छोटे-मोटे काम कर रहा था, मेरे बॉस ने मुझसे कहा, “मुझे पता है कि तुम निर्माण परियोजनाओं का प्रबंधन करने में सक्षम हो। यहाँ बहुत काम है और यह काफी लाभदायक है। चलो साझेदारी करते हैं—हम दोनों बराबर के हिस्सेदार होंगे। हर काम के लिए कई लाख युआन कमाना कोई बड़ी बात नहीं होगी।” अपने बॉस की बातें सुनकर मैं थोड़ा विचलित हो गया और सोचा, “अच्छा पैसा कमाने का यह दुर्लभ अवसर है। अगर मैं कुछ साल तक ऐसा करता रहूँ तो मैं लाखों कमा सकता हूँ। जिंदगी थोड़ी बेहतर होगी। क्या मुझे अपने बॉस के प्रस्ताव पर सहमत हो जाना चाहिए?” लेकिन फिर मेरे मन में एक और विचार आया, “अगर मैं पैसे के लिए परियोजना प्रबंधन में जाता हूँ तो सभाओं में कैसे जाऊँगा और अपने कर्तव्य कैसे करूँगा? मैं सत्य और परमेश्वर के उद्धार को पाने का मौका खो दूँगा। क्या यह शैतान की साजिश नहीं है? शैतान मुझे फिर से पैसे का लालच देने की कोशिश कर रहा है, लेकिन मैं उसकी चाल में नहीं फँस सकता।” इसलिए मैंने अपने बॉस को मना कर दिया। मेरा दृढ़तापूर्ण रवैया देखकर मेरा बॉस निराश होकर चला गया।

इन अनुभवों के माध्यम से मुझे धन, प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागने के नुकसान और अंजामों का एहसास हुआ। मैंने इस तथ्य की असलियत को देखा कि शैतान लोगों को लुभाने और भ्रष्ट करने के लिए पैसे का इस्तेमाल करता है। मैंने यह भी समझा कि परमेश्वर चाहता है कि हम सत्य का अनुसरण करें ताकि हम शैतान के नुकसान से मुक्त हो सकें, सत्य और परमेश्वर का उद्धार प्राप्त कर सकें। यह सबसे सार्थक और मूल्यवान बात है। अब मैं काम और पैसे को अलग रख सकता हूँ, खुद को पूरी तरह से अपने कर्तव्य पूरे करने में लगा सकता हूँ। परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन से ही मुझे यह सारा ज्ञान और परिवर्तन प्राप्त हुआ है। परमेश्वर का धन्यवाद!

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