14. रुतबे को बचाना बेहद शर्मनाक है

फ्रेंकलिन, स्पेन

मई 2023 में मेरे पास कई कलीसियाओं के सुसमाचार कार्य की जिम्मेदारी थी। जब मैंने देखा कि मेरे साथ काम करने वाले कई भाई-बहनों को वास्तविक कार्य न करने जैसी वजहों को लेकर एक के बाद एक बरखास्त कर दिया गया, तो अनजाने ही मेरे दिल में एक विचार ने जन्म लिया, “मुझे वास्तविक कार्य न करने के कारण बरखास्त नहीं किया जा सकता। अगर मुझे बरखास्त कर दिया जाता है, तो मेरे भाई-बहन मेरे बारे में क्या सोचेंगे? मुझे अपने भाई-बहनों के काम का अनुवर्तन और उसका पता लगाना चाहिए। जब सभी देखेंगे कि मैं अपने कर्तव्य निभाते हुए वास्तविक समस्याएँ हल कर सकता हूँ, तभी वे मेरी प्रशंसा करेंगे; इस तरह मैं अपना रुतबा भी बरकरार रख सकता हूँ।” इसके बाद चाहे कोई भी भाई या बहन सवाल पूछता, मैं उसे जल्द से जल्द हल कर देता, मुझे डर रहता था कि अगर मैंने कोई काम तुरंत न किया, तो लोग मेरा खराब मूल्यांकन कर देंगे और मुझे बरखास्त कर दिया जाएगा। एक बार सुसमाचार टीम की एक अगुआ ने मुझसे पूछा कि अच्छे नतीजे पाने के लिए गवाही कैसे दी जाए। मेरी बहन की मेरे बारे में अच्छी राय बने, इसके लिए मैंने तुरंत उसे अपना परिप्रेक्ष्य बता दिया। उसे सुनकर वह बहुत संतुष्ट हुई और मुझे भी अपने दिल में खुशी महसूस हुई। मगर मैंने बहुत-सी बातें कही थीं और मुझे पक्का नहीं था कि मेरी बहन इस पर पकड़ बना पाई है या नहीं या फिर अभ्यास में विचलन हो सकते हैं; थोड़ी देर बाद मुझे उससे इस बारे में फिर से पूछना चाहिए था और इस पर अनुवर्ती कार्रवाई करनी चाहिए थी और फिर वास्तविक समस्याओं के साथ मिलाकर कुछ और विशिष्ट मार्ग प्रदान करने चाहिए थे। लेकिन तब मैंने इसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया। मैंने सोचा कि चूँकि मैंने उससे इतना कुछ कहा था, तो शायद उसके मन में मेरी अच्छी छवि बनी होगी। मैंने इस बात पर विचार नहीं किया कि उसके बाद उसका क्या होगा। बाद में चाहे किसी भी टीम के सुसमाचार के नतीजे खराब रहे हों, मैं जल्दी से स्थिति समझने और उसके हल को लेकर संगति करने के लिए टीम अगुआओं से संपर्क करता था, ताकि मेरे भाई-बहन देख सकें कि मैंने समस्याएँ तुरंत हल करता और वास्तविक कार्य कर सकता हूँ। मगर उसके बाद मुझे वास्तव में इसकी परवाह नहीं रहती थी कि टीम अगुआओं ने चीजों को उचित ढंग से लागू किया है या नहीं या वास्तविक समस्याओं का सचमुच समाधान हुआ या नहीं। कभी-कभी जब सभाओं में या कार्य पर चर्चा करते समय मैं जान-बूझकर या अनजाने में उन समस्याओं का उल्लेख कर देता था जो मुझे कार्य का अनुवर्तन करते समय मिली थीं ताकि मेरे भाई-बहन देख सकें कि मैं कोई नौकरशाह नहीं हूँ और मैं समस्याएँ हल करने के लिए कलीसिया में गहराई में प्रवेश कर सकता हूँ। दो सप्ताह बाद मैंने कई कलीसियाओं के सुसमाचार कार्य की जाँच की। मैंने पाया कि नतीजों में बिल्कुल भी सुधार नहीं हुआ था और इसलिए मैंने टीम अगुआओं से स्थिति के बारे में पूछा। मैंने पाया कि टीम के अगुआ कुछ कठिनाइयों के बीच जी रहे थे। कुछ कलीसियाओं में बहुत से लोग जाँच करने आए थे, लेकिन उनमें से अधिकांश सुसमाचार प्रचार के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं थे। अंत में बहुत से लोग वास्तव में कलीसिया में शामिल नहीं हुए। जब मैंने यह स्थिति देखी तो मैं दंग रह गया, “मैं ही तो इन सभी कलीसियाओं में सुसमाचार कार्य का अनुवर्तन कर रहा हूँ। अब जब इतनी सारी समस्याएँ सामने आ गई हैं, तो मेरे साथ काम करने वाले भाई-बहन मेरे बारे में क्या सोचेंगे? क्या वे कहेंगे कि मुझमें कार्य करने की क्षमता नहीं है?” जब मैंने यह सोचा, तो मुझे अंदर से थोड़ी हताशा महसूस हुई। मुझे एहसास हुआ कि कार्य के नतीजे न मिलने का कारण यह था कि मेरे कर्तव्य करने के ढंग में समस्याएँ थीं। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, परमेश्वर से विनती की कि वह मुझे प्रबुद्ध करे और सबक सीखने में मेरी अगुआई करे।

मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “यह फैसला कैसे किया जाना चाहिए कि क्या कोई अगुआ अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी कर रहा है, या वह एक नकली अगुआ है? सबसे बुनियादी स्तर पर, यह देखना चाहिए कि वे वास्तविक कार्य करने में सक्षम हैं या नहीं, कि उनमें यह काबिलियत है या नहीं। फिर, यह देखना चाहिए कि क्या वे इस काम को अच्छे तरीके से करने का भार उठाते हैं या नहीं। इसकी अनदेखी करो कि वे जो बातें बोलते हैं वे कितनी अच्छी लगती हैं और वे धर्म-सिद्धांतों की कितनी समझ रखने वाले लगते हैं, इस पर भी ध्यान मत दो कि बाहरी मामलों से निपटने में वे कितने प्रतिभाशाली और गुणी हैं—ये बातें महत्वपूर्ण नहीं हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे कलीसिया के काम की सबसे बुनियादी मदों का काम ठीक तरीके से करने की योग्यता रखते हैं या नहीं, वे सत्य का उपयोग कर समस्याओं को हल कर सकते हैं या नहीं और कि वे लोगों को सत्य वास्तविकता में ले जा सकते हैं या नहीं। यह सबसे मूलभूत और आवश्यक कार्य है। यदि वे वास्तविक कार्य की इन मदों पर काम करने में अक्षम हैं, तो फिर चाहे उनमें कितनी भी काबिलियत हो, वे कितने भी प्रतिभावान हों, या कितनी भी कठिनाइयाँ सह सकते हों और कीमत चुका सकते हों, वे नकली अगुआ ही रहेंगे। ... कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने प्रतिभाशाली हो, तुम्हारे पास किस स्तर की काबिलियत और शिक्षा है, तुम कितने नारे लगा सकते हो, या कितने शब्द और धर्म-सिद्धांतों पर तुम्हारी पकड़ है; इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने व्यस्त हो, या दिन भर में कितने थके हो, या तुमने कितनी दूर की यात्रा की है, कितनी कलीसियाओं में जाते हो, या तुम कितने जोखिम उठाते हो और कितना कष्ट सहते हो—इनमें से कोई भी बात मायने नहीं रखती। जो बात मायने रखती है वह यह है कि क्या तुम अपना काम दी गई कार्य व्यवस्थाओं के आधार पर कर रहे हो, क्या तुम उन व्यवस्थाओं को सही ढंग से कार्यान्वित कर रहे हो; क्या तुम अपनी अगुआई के दौरान हर उस विशिष्ट कार्य में भाग ले रहे हो जिसके लिए तुम जिम्मेदार हो, और तुमने वास्तव में कितने वास्तविक मुद्दों का समाधान किया है; तुम्हारी अगुआई और मार्गदर्शन के कारण कितने लोग सत्य सिद्धांतों को समझ पाए हैं, और कलीसिया का काम कितना आगे बढ़ा और विकसित हुआ है—जो मायने रखता है वह यह है कि तुमने ये परिणाम हासिल किए हैं या नहीं। तुम जिस भी विशिष्ट कार्य में लगे हो, उसके बावजूद जो मायने रखता है वह यह है कि क्या तुम उच्चपदस्थ और शक्तिशाली बन कर आदेश जारी करने के बजाय लगातार कार्य का अनुसरण और निर्देशन कर रहे हो या नहीं। इसके अलावा यह भी मायने रखता है कि तुम अपने कर्तव्य निभाते हुए जीवन प्रवेश करते हो या नहीं, क्या तुम सिद्धांतों के अनुसार मामलों से निपट सकते हो, क्या तुम्हारे पास सत्य को अभ्यास में लाने की गवाही है, और क्या तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामने आने वाले वास्तविक मुद्दों को सँभाल सकते हो और उनका समाधान कर सकते हो। ये और इसी तरह की दूसरी चीजें यह आकलन करने की कसौटियाँ हैं कि किसी अगुआ या कार्यकर्ता ने अपनी जिम्मेदारियों को पूरा किया है या नहीं(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (9))। “अगर अगुआ और कार्यकर्ता सच में बोझ उठाएँ और थोड़ा और अधिक कष्ट सह पाएँ, सत्य की संगति करने का थोड़ा अधिक अभ्यास करें और थोड़ी ज्यादा वफादारी दिखाएँ, सत्य के सभी पहलुओं पर स्पष्ट रूप से संगति करें जिससे वे सुसमाचार कार्यकर्ता लोगों की धारणाओं और शंकाओं के समाधान के लिए सत्य पर संगति करने में सक्षम हो सकें तो सुसमाचार प्रचार करने के परिणाम अधिकाधिक बेहतर होते जाएँगे। इससे सच्चे मार्ग की खोजबीन करने वाले और भी ज्यादा लोगों को परमेश्वर के कार्य को पहले ही स्वीकार करने और परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करने के लिए परमेश्वर के सामने जल्दी लौट आने का अवसर मिलेगा। कलीसिया का कार्य सिर्फ इसलिए रुक जाता है क्योंकि नकली अगुआ गंभीर रूप से अपनी जिम्मेदारियों की उपेक्षा करते हैं, वास्तविक कार्य नहीं करते या कार्य की खोज-खबर नहीं लेते और उसकी निगरानी नहीं करते और समस्याएँ सुलझाने के लिए सत्य पर संगति करने में असमर्थ होते हैं। बेशक, इसका यह कारण भी है कि नकली अगुआ रुतबे के लाभों में लिप्त होते हैं, सत्य का लेशमात्र भी अनुसरण नहीं करते और सुसमाचार फैलाने के कार्य की खोज-खबर लेने, पर्यवेक्षण या निर्देशन करने को तैयार नहीं होते—लिहाजा कार्य धीमी गति से आगे बढ़ता है और बहुत-से मानव-जनित भटकाव, बेतुकेपन और लापरवाह गलत काम मुस्तैदी से सुधारे या सुलझाए नहीं जाते, जिससे सुसमाचार फैलाने की प्रभावशीलता पर गंभीर असर पड़ता है(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (4))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे समझ आया कि यह मापते समय कि कोई अगुआ या कार्यकर्ता मानक के अनुसार है या नहीं, तुम यह नहीं देख सकते कि वे कितने कष्ट सहते हैं या उन्होंने सतह पर कितनी कीमत चुकाई है; तुम्हें यह देखना होगा कि उन्होंने अपने कार्य में क्या नतीजे हासिल किए हैं, उन्होंने परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं और सिद्धांतों के अनुरूप कितना वास्तविक कार्य किया है और कार्य को आगे बढ़ाने में वे कितनी भूमिका निभाते हैं। यदि कोई अगुआ या कार्यकर्ता ऊपरी तौर पर अपना कर्तव्य करने में बहुत सक्रिय और व्यस्त है, लेकिन सिद्धांतों के अनुरूप काम नहीं करता, बहुत सारी वास्तविक समस्याएँ अनसुलझी ही छोड़ देता है और केवल वही काम करता है, जिसमें वह अच्छा दिखे, तो वह खुद को अलंकृत करने के लिए व्यस्त होने का दिखावा कर रहा है। इस तरह का अगुआ नकली अगुआ है। परमेश्वर के वचनों से अपनी तुलना करते हुए मैंने पाया कि यद्यपि मैं ऊपर से तो सुसमाचार कार्य का अनुवर्तन कर रहा था, लेकिन मैंने केवल औपचारिक रूप से अपना कर्तव्य निभाया; मैंने यह नहीं खोजा कि नतीजे हासिल करने के लिए क्या किया जाए। यह वैसा ही है जैसे जब सुसमाचार टीम की अगुआ ने मुझसे पूछा कि अच्छे नतीजे पाने के लिए गवाही कैसे दी जाए। भले ही मैंने उसे कुछ रास्तों के बारे में बताया था, लेकिन मैंने वास्तविक समस्याओं का अनुवर्तन और समाधान नहीं किया, जैसे कि क्या उसे वास्तव में उन पर पकड़ थी और क्या उसके सहयोग की प्रक्रिया में विचलन पैदा होंगे। मैं बस इस बात से संतुष्ट था कि मैंने उसके साथ संगति की लेकिन वास्तविक नतीजों की तलाश नहीं की। जब समस्याएँ आईं तो मैंने कुछ कलीसियाओं के सुसमाचार कार्य का अनुवर्तन किया, लेकिन मैंने इस तरह के मुद्दों पर विचार नहीं किया कि क्या टीम के अगुआओं की सिद्धांतों पर पकड़ थी और क्या वे कार्य को सही तरीके से लागू कर रहे थे और न ही मैंने अनुवर्तन या पर्यवेक्षण किया। नतीजतन, कार्य से कोई वास्तविक नतीजे नहीं मिले और इसमें सभी प्रकार की खामियाँ थीं। मैंने बिना विवरण तलाशे केवल सतही तौर पर काम किया। देखने को तो मैंने बहुत काम किया था, लेकिन मुझे बिल्कुल कोई नतीजा नहीं मिला था। केवल इस समय आकर मुझे एहसास हुआ कि यह एक नकली अगुआ का काम करने का तरीका था और खास तौर पर गैर-जिम्मेदाराना था। मुझे अपने दिल में अपराध-बोध हुआ और मैं चीजों को उचित ढंग से बदलना चाहता था और भ्रष्ट स्वभावों पर भरोसा करके काम करना बंद करना चाहता था। हालाँकि इसके तुरंत बाद मुझ पर कुछ ऐसे परिवेश आए जिन्होंने फिर से मुझे बेनकाब कर दिया।

कुछ समय बाद कलीसिया के पास एक अत्यावश्यक सुसमाचार कार्य आया, जिस पर हमें काम करने की आवश्यकता थी। मैं और मेरे साथ काम करने वाले भाई-बहनों ने इसे सभी कलीसियाओं में गहनता के साथ और तत्परता से कार्यान्वित कर दिया। उन कुछ दिनों में ऐसा हुआ कि उच्च अगुआओं ने उस कार्य की जाँच की जिसके लिए मैं जिम्मेदार था और उन्हें कुछ विचलन मिले। उन्होंने यह भी बताया कि मैंने सावधानीपूर्वक काम नहीं किया। हालाँकि प्रत्येक कलीसिया में कई सुसमाचार कार्यकर्ता थे, अधिकांश सुसमाचार कार्यकर्ता परमेश्वर के कार्य के पहलू के सत्य को लेकर बहुत स्पष्ट नहीं थे और सुसमाचार प्रचार करने में कई कमियाँ थीं। इसके अतिरिक्त मैंने सुसमाचार कार्यकर्ताओं को तेजी से विकसित नहीं किया था। जब मैंने अगुआओं को अपनी समस्याओं की ओर इशारा करते सुना, तो मुझे बेहद शर्म आई। अगुआओं ने मुझसे प्रत्येक कलीसिया में सुसमाचार कार्यकर्ताओं की स्थिति और सुसमाचार प्रचार में आ रही समस्याओं के बारे में पता लगाने के लिए समय निकालने और जितनी जल्दी हो सके एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा। मैंने मन ही मन सोचा, “इतनी सारी समस्याओं का पता लगने के बाद अगुआ मेरे बारे में क्या सोचेंगे? क्या वे सोचेंगे कि मैं पर्यवेक्षक बनने के लिए उपयुक्त नहीं हूँ और मुझे बरखास्त कर देंगे? अगर मुझे बरखास्त कर दिया जाता है, तो मेरे भाई-बहन मेरे बारे में क्या सोचेंगे? नहीं, मैं लोगों को यह नहीं देखने दे सकता कि मैं वास्तविक कार्य नहीं कर रहा हूँ। अब मुझे उस काम को तत्काल लागू करना है, जिसे करने का अगुआओं ने मुझे निर्देश दिया है। तभी मैं उन्हें दिखा सकता हूँ कि यद्यपि मेरे काम में पहले विचलन थे, लेकिन मैं उन्हें सक्रिय रूप से बदलने में सक्षम हूँ। केवल इसी तरह से मैं अगुआओं के मन में अपने प्रति बनी अच्छी छवि को बहाल कर सकता हूँ।” उसके बाद मैं गर्म टिन की छत पर बिल्ली की तरह था, जो जितनी जल्दी हो सके उन चीजों को पूरा करने के लिए बेताब था, जिनके लिए अगुआओं ने मुझे कहा था। असल में मैं अपने दिल में भी सचेत था कि हर किसी के पास अन्य जरूरी काम थे जिन्हें क्रियान्वित करने की आवश्यकता थी और मुझे सुसमाचार कार्यकर्ताओं की स्थिति के बारे में पता लगाने के लिए ऐसे समय का लाभ उठाना चाहिए जब कर्तव्यों में कम व्यस्तता हो, जैसे कि दोपहर का भोजन या शाम। इस तरह मैं प्रत्येक की अपना कर्तव्य निभाने की लय को बाधित नहीं करूँगा। लेकिन चीजों का पता लगाने और अगुआओं को जल्द से जल्द रिपोर्ट करने के लिए मैंने शर्त रखी कि हर किसी को आधे दिन के भीतर सुसमाचार कार्यकर्ताओं की स्थिति और समस्याओं पर आंकड़े एकत्र करने होंगे। मेरे बोलना बंद करने के बाद वे सभी काफी परेशान महसूस कर रहे थे। कुछ ने कहा कि उस दिन उनकी एक सभा है और कुछ ने कहा कि उनके पास समय नहीं है क्योंकि उन्हें सुसमाचार का प्रचार भी करना था। कोई अन्य विकल्प न होने के कारण मैंने उन्हें वक्त दे दिया, लेकिन मैंने इस पूरे समय में लगातार उन पर दबाव बनाए रखा। मगर अगले दिन सुबह तक भी यह पूरा नहीं हुआ था। मैं अपने दिल में बहुत व्याकुल था। मुझे डर था कि अगर इसे बहुत धीमी गति से किया गया, तो उच्च अगुआ सोचेंगे कि मैं अपने काम में टाल-मटोल कर रहा हूँ और इसलिए मैंने अपने भाई-बहनों पर उनकी असल स्थिति की परवाह किए बिना लगातार दबाव बनाए रखा। जब तीसरे दिन आखिरकार आंकड़े एकत्र किए गए, तब जाकर मैंने चैन की साँस ली। मगर मैंने सुसमाचार कार्य में आने वाली समस्याएँ हल करने की गंभीरता से कोशिश नहीं की थी, जिसके बारे में सभी को पता चल गया था। अगले कुछ दिन मैं उच्च अगुआओं द्वारा व्यवस्थित किसी भी काम को बहुत तत्परता से करता, लेकिन ऐसा करते समय मैंने कभी चिंतन नहीं किया कि उच्च अगुआओं की बताई गई वास्तविक समस्याएँ असल में क्या थीं या नतीजे हासिल करने के लिए क्या करें। मैंने आंकड़ों से संबंधित केवल कुछ सतही काम किए। मैंने अपने भाई-बहनों पर लगातार दबाव डाला ताकि मैं अपना काम जल्द से जल्द पूरा कर सकूँ। इसका मतलब यह था कि बाकी सभी लोग भी अपने काम को लेकर घबरा गए और अपने दिल को शांत नहीं कर पाए। कई भाई-बहनों को बहुत तनाव महसूस हुआ। उनमें से कुछ ने काम को उचित ढंग से कार्यान्वित नहीं किया क्योंकि समय काफी कम था। उन्हें लगा कि उनकी काबिलियत काम के लिए उपयुक्त नहीं थी, उनकी दशाएँ प्रभावित हुईं। कुछ को डर था कि उन्हें अपना काम कभी भी अच्छी तरह से न कर पाने के कारण दूसरा काम सौंप दिया जाएगा और वे नकारात्मक दशा में रह रहे थे। सिर्फ इसलिए कि मैंने गलत रास्ता अपनाया था, मैंने अपने भाई-बहनों को बिना सिद्धांतों के और बिना प्राथमिकताओं के लिहाज से कार्य-कलाप करने के लिए मजबूर कर दिया था। इसने अन्य कार्यों के कार्यान्वयन की प्रगति पर असर डाला था। समस्याओं की एक श्रृंखला से जूझने के बाद ही मैंने सत्य की खोज करना और आत्म-चिंतन करना शुरू किया।

खोज करते समय मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “मसीह-विरोधी हर दिन केवल प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए जीते हैं, वे केवल रुतबे के लाभों में लिप्त रहने के लिए जीते हैं, वे बस इसी बारे में सोचते हैं। यहाँ तक कि जब वे कभी-कभी कोई छोटा-मोटा कष्ट सहते हैं या कोई मामूली कीमत चुकाते हैं तो वह भी रुतबा और प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए होता है। ... जो कोई मसीह-विरोधी है वह गंभीरता से परमेश्वर के लिए नहीं खपेगा, उसके कर्तव्यों का निर्वाह सिर्फ औपचारिकताओं और बेमन से काम करने का मामला होगा। वे वास्तविक कार्य नहीं करेंगे, भले ही वे अगुआ या कार्यकर्ता हों, कलीसिया के कार्य की रक्षा बिल्कुल न करते हुए वे सिर्फ शोहरत, लाभ और रुतबे के लिए बोलेंगे और कार्य करेंगे। तो मसीह-विरोधी पूरे दिन क्या करते हैं? वे प्रदर्शन और दिखावा करने में व्यस्त रहते हैं। वे सिर्फ अपनी शोहरत, लाभ और रुतबे से जुड़े काम करते हैं। वे दूसरों को गुमराह करने, लोगों को फुसलाने में व्यस्त रहते हैं और जब वे ताकत बटोर लेते हैं तो वे और ज्यादा कलीसियाओं को नियंत्रित करने में लग जाते हैं। वे सिर्फ राजा की तरह राज करना चाहते हैं और कलीसिया को अपने स्वतंत्र राज्य में बदलना चाहते हैं। वे सिर्फ महान अगुआ बनना चाहते हैं, पूर्ण, एकतरफा अधिकार प्राप्त करना चाहते हैं, और ज्यादा कलीसियाओं को नियंत्रित करना चाहते हैं। वे किसी और चीज की जरा भी परवाह नहीं करते। वे कलीसिया के कार्य या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश से सरोकार नहीं रखते, इस बात की परवाह तो बिल्कुल नहीं करते कि परमेश्वर की इच्छा पूरी होती है या नहीं। वे केवल इस बात की चिंता करते हैं कि कब वे स्वतंत्र रूप से सत्ता धारण कर सकते हैं, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नियंत्रित कर सकते हैं और परमेश्वर के साथ बराबरी पर खड़े हो सकते हैं। मसीह-विरोधियों की इच्छाएँ और महत्वाकांक्षाएँ वास्तव में बहुत बड़ी होती हैं! मसीह-विरोधी चाहे कितने भी मेहनती दिखाई पड़ते हों, वे मनमाफिक कार्य करते हुए केवल अपने ही उद्यमों में और अपनी शोहरत, लाभ और रुतबे से संबंधित चीजों में व्यस्त रहते हैं। यहाँ तक कि वे अपनी जिम्मेदारियों या उस कर्तव्य के बारे में भी नहीं सोचते जो उन्हें निभाना चाहिए और वे कुछ भी ठीक से नहीं करते। मसीह-विरोधी इसी तरह की चीज हैं—वे दानव और शैतान हैं जो परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी और बाधा पैदा करते हैं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर उजागर करता है कि अपने दिलों में मसीह-विरोधी केवल रुतबे के बारे में सोचते हैं और केवल रुतबे के लिए काम करते हैं। वे केवल अपनी प्रसिद्धि, फायदे और रुतबे से जुड़ी चीजों में व्यस्त रहते हैं, जबकि ऐसा कुछ नहीं करते जो उनकी जिम्मेदारी है। मुझे एहसास हुआ कि मेरा तरीका एक मसीह-विरोधी के समान ही था। उच्च अगुआओं को मेरे काम में विचलन मिले थे और मैं नहीं चाहता था कि वे मुझे नीची नजर से देखें। इसलिए अगुआओं द्वारा सौंपे गए कार्य में मैंने अपना दिखावा करने की पूरी कोशिश की और उसे जितनी जल्दी हो सके पूरा करना चाहता था। मैं चाहता था कि अगुआ देखें कि मैं बिजली की गति से कुशलतापूर्वक और निर्णायक तौर पर काम करता हूँ ताकि मेरे बारे में उनकी अच्छी राय बन सके। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए मैंने लगातार सतही काम किया, भाई-बहनों से कहा कि वे सुसमाचार कार्यकर्ताओं पर आंकड़े इकट्ठे करें और सुसमाचार कार्य में समस्याओं का सारांश आदि दें। लेकिन मैंने इस बात पर विचार करने का कोई प्रयास नहीं किया कि सुसमाचार कार्य में दिखाई देने वाली समस्याएँ या विचलन कैसे हल किए जाएँ। इसका मतलब यह था कि कुछ समस्याओं का वास्तविक समाधान नहीं हुआ और अन्य कार्यों के कार्यान्वयन में देरी हुई। अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को बचाने के लिए मैंने अपने भाई-बहनों की वास्तविक कठिनाइयों पर कोई ध्यान नहीं दिया और उन्हें तेजी से प्रगति करने के लिए लगातार धकेला। इसका मतलब यह हुआ कि कुछ भाई-बहन बहुत तनाव में आ गए और कुछ को तो यहाँ तक लगा कि उनकी काबिलियत काम के लायक नहीं है और वे नकारात्मक दशा में रहने लगे, जिससे काम में देरी हुई। जब मैंने इस पर विचार किया तो मुझे एकदम से डर लगने लगा। मैं बुरा काम कर रहा था! इसलिए मैंने जल्दी से अपनी दशा को समायोजित किया। साथ ही मैंने काम को फिर से सुलझाया और उन कार्यों के लिए एक विस्तृत योजना बनाई जो अधिक महत्वपूर्ण थे और जिन्हें तत्काल सँभालने और उनका समाधान करने की जरूरत थी। जहाँ तक कम जरूरी कार्यों की बात है, मैंने उन्हें अपने खाली समय में हल करने के लिए छोड़ दिया। सभाओं में मैंने उन भ्रष्ट स्वभावों के बारे में भी अपने भाई-बहनों के सामने खुलकर बात की, जिन्हें मैंने इस दौरान प्रकट किया था, ताकि मेरे भाई-बहन अपनी दशाओं को समायोजित कर सकें और सक्रिय रूप से अपने कर्तव्यों में खुद को लगा सकें। इसके बाद काम धीरे-धीरे पटरी पर आ गया।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों के दो और अंश पढ़े : “मसीह-विरोधी चालाक किस्म के होते हैं, है ना? वे जो कुछ भी करते हैं, उसकी आठ-दस बार या उससे भी अधिक बार गुप्त योजना बनाते और हिसाब-किताब करते हैं। वे सोचते रहते हैं कि कैसे भीड़ में अपनी स्थिति को मजबूत बनाया जाए, कैसे अच्छी प्रतिष्ठा और ऊँचा सम्मान प्राप्त किया जाए, कैसे ऊपरवाले की कृपा हासिल की जाए, भाई-बहनों का समर्थन, प्रेम और सम्मान कैसे पाया जाए और वे इन परिणामों को प्राप्त करने के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहते हैं। वे किस मार्ग पर चल रहे हैं? उनके लिए परमेश्वर के घर के हित, कलीसिया के हित और परमेश्वर के घर का कार्य उनकी मुख्य चिंता के विषय नहीं होते, ये ऐसी चीजें तो और भी नहीं हैं जिनकी वे फिक्र करें। वे क्या सोचते हैं? ‘इन बातों का मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए; लोगों को अपने लिए, अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए जीना चाहिए। यही सर्वोच्च लक्ष्य होता है। अगर कोई यह नहीं जानता कि उसे अपने लिए जीना चाहिए और अपनी रक्षा करनी चाहिए तो वह मूर्ख है। अगर मुझे सत्य सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास करने, परमेश्वर और उसके घर की व्यवस्था के प्रति समर्पण करने को कहा जाए तो यह इस पर निर्भर करेगा कि इससे मेरा हित सधेगा या नहीं और क्या ऐसा करने का कोई लाभ होगा। यदि परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण न करने से मुझे निकाल दिए जाने का और आशीष प्राप्त करने का अवसर खोने का डर है तो मैं समर्पण कर दूँगा।’ इस प्रकार अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा के लिए मसीह-विरोधी अक्सर कुछ समझौते करने का फैसला करते हैं। तुम कह सकते हो कि रुतबे की खातिर मसीह-विरोधी किसी भी प्रकार की पीड़ा सहने को और एक अच्छी प्रतिष्ठा के लिए वे किसी भी तरह की कीमत चुकाने में सक्षम होते हैं। उन पर यह कहावत खरी उतरती है, ‘एक महान व्यक्ति जानता है कि कब झुकना है और कब नहीं।’ यह शैतान का तर्क है, है ना? यह सांसारिक आचरण के लिए शैतान का फलसफा है और यह जीवित रहने का शैतान का सिद्धांत भी है। यह बेहद घृणित है!(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। “जो लोग हटा दिए जाते हैं वे कभी भी सत्य का अनुसरण करने और उसका अभ्यास करने के मार्ग पर नहीं चलते। वे हमेशा इस रास्ते से भटक जाते हैं और बस वही करते हैं जो वे करना चाहते हैं, अपनी इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं के अनुसार कार्य करते रहते हैं, अपने रुतबे, प्रतिष्ठा और गौरव की रक्षा करते हैं, और अपनी इच्छाएँ पूरी करते रहते हैं—वे जो कुछ भी करते हैं वह इन्हीं चीजों के इर्द-गिर्द घूमता है। हालाँकि उन्होंने भी कीमत चुकाई है, समय और ऊर्जा खर्च की है, और सुबह से शाम तक काम किया है, पर उनका अंतिम परिणाम क्या होता है? क्योंकि जो काम उन्होंने किए वे परमेश्वर की दृष्टि में बुराई के रूप में निंदित है, इसलिए इसके परिणामस्वरूप उन्हें हटा दिया जाता है। क्या उनके पास अब भी बचाए जाने की संभावना है? (नहीं।) यह अविश्वसनीय रूप से गंभीर परिणाम है! यह ठीक वैसा ही है जैसे जब लोग बीमार पड़ते हैं : एक छोटी सी बीमारी जिसका तुरंत इलाज नहीं किया जाता वह बड़ी बीमारी बन सकती है, या लाइलाज बीमारी भी बन सकती है। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति को सर्दी और खाँसी है, तो सामान्य उपचार मिलने पर वे जल्दी ठीक हो जाएँगे। हालाँकि कुछ लोग सोचते हैं कि उनका शरीर मजबूत है और इसलिए वे अपनी सर्दी को गंभीरता से नहीं लेते या इलाज नहीं कराते। नतीजतन, यह लंबे समय तक खिंचता जाता है और उन्हें न्यूमोनिया हो जाता है। न्यूमोनिया होने के बाद भी उन्हें लगता है कि वे मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली वाले युवा हैं, इसलिए वे महीनों तक इसका इलाज नहीं कराते। वे अपनी खाँसी पर रोज तब तक कोई ध्यान नहीं देते जब तक कि यह उस बिंदु तक न पहुँच जाए जहाँ वह अनियंत्रित और असहनीय हो जाए, और उनकी खाँसी में खून आने लगे। तो वे जाँच कराने के लिए अस्पताल जाते हैं, जहाँ उन्हें पता चलता है कि उन्हें तपेदिक हो गया है। दूसरे लोग उन्हें तुरंत इलाज कराने की सलाह देते हैं, लेकिन फिर भी उन्हें लगता है कि वे युवा और मजबूत हैं, उन्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, इसलिए वे उचित इलाज नहीं कराते। आखिर में एक दिन चलने में उन्हें शरीर में बहुत कमजोरी लगती है, और जब वे जाँच के लिए अस्पताल जाते हैं, तब तक उन्हें अंतिम चरण का कैंसर हो चुका होता है। जब लोगों के स्वभाव भ्रष्ट होते हैं जिनका वे इलाज नहीं करते, तो इसके नतीजे असाध्य भी हो सकते हैं। भ्रष्ट स्वभाव से डरने जैसी कोई बात नहीं है, लेकिन भ्रष्ट स्वभाव वाले किसी व्यक्ति को इसे तुरंत हल करने के लिए सत्य की तलाश करनी चाहिए; केवल इसी तरह भ्रष्ट स्वभाव को धीरे-धीरे स्वच्छ किया जा सकता है। यदि वे इसे हल करने पर ध्यान केंद्रित नहीं करते, तो यह और अधिक गंभीर हो जाएगा, और वे परमेश्वर को अपमानित कर सकते हैं और उसका विरोध कर सकते हैं, परमेश्वर उन्हें ठुकरा सकता है और उन्हें हटा सकता है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, केवल सत्य का अभ्यास और परमेश्वर को समर्पण करके ही व्यक्ति अपने स्वभाव में बदलाव हासिल कर सकता है)। परमेश्वर उजागर करता है कि मसीह-विरोधी अपने हर काम में अपनी प्रसिद्धि, फायदे और रुतबे को ही ध्यान में रखते हैं। वे प्रसिद्धि, फायदे और रुतबे के लिए कोई भी कष्ट सहने के इच्छुक रहते हैं। जब मैंने अपने दैनिक जीवन के बारे में सोचा, तो मैंने बहुत सारे ऐसे व्यवहार दिखाए थे। मिसाल के लिए सभाओं और संगति के दौरान मैं ईमानदारी से चिंतन करता था ताकि मैं थोड़ी सी रोशनी की संगति कर सकूँ और दूसरों का सम्मान जीत सकूँ। कभी-कभी मैं कुछ प्रयास करता और कुछ काम करता था, लेकिन यह सिर्फ इसलिए था ताकि लोग देख सकें कि मैं आलसी नहीं हूँ और मुझमें अच्छी मानवता है। जब मैं अपना कर्तव्य करता था, तो मैं सिर्फ दिखावे पर ध्यान केंद्रित करता था कि मैं कैसे काम करता हूँ और शायद ही कभी सिद्धांतों को लेकर कोई प्रयास करता था। मैंने देखा कि मैं जो कुछ भी करता था, उसके पीछे मेरी अपनी छवि और रुतबा बचाने की इच्छा होती थी। प्रसिद्धि, फायदे और रुतबे का अनुसरण पहले से ही मेरे दिल में गहरी जड़ें जमा चुका था। अगर मैं इसे न बदलता, तो मैं अपनी प्रसिद्धि, फायदा और रुतबा बनाए रखने के लिए निश्चित रूप से कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी करता और उसे बाधित कर देता। मैंने उन मसीह-विरोधियों के बारे में सोचा जिन्हें निष्कासित कर दिया गया था। प्रसिद्धि, फायदे और रुतबे को पाने के लिए उन्होंने सिद्धांतों का पालन किए बिना सुसमाचार का प्रचार किया, गलत संख्याएँ बताईं और छल-कपट में लिप्त रहे। इसने परमेश्वर के घर के कार्य को बुरी तरह से गड़बड़ और बाधित किया। अंत में उन्हें असंख्य तरीकों से बुराई करने की वजह से परमेश्वर द्वारा हटा दिया गया। उस अवधि को याद करते हुए मैंने केवल दूसरों के सामने काम करने और कुछ ऐसा काम करने पर ध्यान केंद्रित किया जिससे मैं अच्छा दिखूँ। मुझे महत्वपूर्ण या आवश्यक काम की बिल्कुल भी परवाह नहीं थी। इसका मतलब यह था कि मेरी जिम्मेदारी के दायरे में सुसमाचार कार्य ने बिल्कुल भी प्रगति नहीं की और लगातार धीमा पड़ रहा था। यह परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित मानकों को पूरा नहीं करता था। क्या यह सुसमाचार कार्य की प्रगति में रोड़े नहीं अटका रहा था? अगर मैं पश्चात्ताप किए बिना प्रसिद्धि, फायदे और रुतबे के पीछे भागना जारी रखता, तो चाहे मुझे कितना भी कष्ट उठाना पड़ता या मैं कितनी भी कीमत चुकाता, मुझे परमेश्वर द्वारा कभी याद नहीं किया जाता। इसके बजाय मैंने जो कुछ भी किया था, उसके कारण मुझे बुरे के रूप में निरूपित किया जाता और हटा दिया जाता! केवल इस दौरान मुझे एहसास हुआ कि प्रसिद्धि, फायदे और रुतबे का लगातार पीछा करना बहुत खतरनाक है। मैं अपनी खोज के पीछे के गलत दृष्टिकोणों को भी जल्दी से जल्दी बदलना चाहता था और अपने कर्तव्य को व्यावहारिक तरीके से करना चाहता था।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “परमेश्वर के घर द्वारा जारी की गई हर कार्य-व्यवस्था के साथ अगुआओं और कार्यकर्ताओं को गंभीरता से पेश आना चाहिए और इसे गंभीरता से कार्यान्वित करना चाहिए। अपने द्वारा किए गए तमाम कार्य की तुलना और निरीक्षण करने के लिए तुम्हें कार्य-व्यवस्थाओं का बार-बार उपयोग करना चाहिए। तुम्हें यह भी जाँचना चाहिए और विचार करना चाहिए कि इस अवधि के दौरान तुमने कौन-से कार्य अच्छी तरह से नहीं किए हैं या उचित रूप से कार्यान्वित नहीं किए हैं। कार्य-व्यवस्थाओं द्वारा सौंपे गए और अपेक्षित किसी भी कार्य के प्रति लापरवाही की गई है, तो तुम्हें उसकी तुरंत भरपाई करनी चाहिए और उसके बारे में पूछताछ करनी चाहिए। ... और इसलिए, चाहे तुम कोई क्षेत्रीय अगुआ हो या जिला अगुआ, कलीसिया अगुआ या कोई टीम अगुआ या निरीक्षक, एक बार जब तुम अपनी जिम्मेदारियों के दायरे के बारे में जान जाते हो, तो तुम्हें बार-बार जाँच करनी चाहिए कि क्या तुम वास्तविक कार्य कर रहे हो, क्या तुमने वे जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं जो एक अगुआ या कार्यकर्ता को पूरी करनी चाहिए, साथ ही—तुम्हें सौंपे गए कार्यों में से—तुमने कौन से कार्य नहीं किए हैं, कौन से तुम नहीं करना चाहते हो, किन कार्यों ने खराब परिणाम दिए हैं और किन कार्यों के सिद्धांतों की गहरी समझ प्राप्त करने में तुम विफल रहे हो। तुम्हें इन सभी चीजों की अक्सर जाँच करनी चाहिए। साथ ही, तुम्हें अन्य लोगों के साथ संगति करना और उनसे प्रश्न पूछना, और परमेश्वर के वचनों और कार्य-व्यवस्थाओं में कार्यान्वयन के लिए एक योजना, सिद्धांतों और अभ्यास के लिए एक मार्ग की पहचान करना सीखना चाहिए। किसी भी कार्य व्यवस्था के संबंध में, चाहे वह प्रशासन, कर्मियों, या कलीसियाई जीवन से, या फिर किसी भी किस्म के पेशेवर कार्य से संबंधित क्यों ना हो, अगर यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों का जिक्र करता है, तो यह एक ऐसी जिम्मेदारी है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को पूरी करनी पड़ेगी, और यह उसी के दायरे में आती है जिसके लिए अगुआ और कार्यकर्ता जिम्मेदार हैं—यही वे नियत कार्य हैं जो तुम्हें सँभालने चाहिए। स्वाभाविक रूप से, प्राथमिकताएँ परिस्थिति के आधार पर नियत की जानी चाहिए; कोई भी कार्य पिछड़ नहीं सकता है(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (10))। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अभ्यास का मार्ग दिखाया। किसी भी एक कार्य को कार्यान्वित करना केवल सतही रूप से काम करने के बारे में नहीं होता : तुम्हें लगातार जाँच करनी होती है कि क्या तुम वास्तविक कार्य कर रहे हो या नहीं और कौन सा कार्य ठीक से नहीं किया जा रहा है। चाहे कार्य कुछ भी हो, तुम्हें असल स्थिति में गहराई से जाने की जरूरत होती है खुद को दिखाने का अनुसरण करने के लिए तुम्हें अच्छा दिखने वाले काम नहीं करने चाहिए और लोगों से अपना सम्मान नहीं कराना चाहिए। इस तरह का कार्य वास्तविक समस्याओं को बिल्कुल भी हल नहीं कर पाता। इसके बाद जब भी मुझे पता चलता कि सुसमाचार कार्य के नतीजे अच्छे नहीं हैं, तो मैं असल में पता लगाता कि खराब नतीजों की वजह क्या है और अपने भाई-बहनों की दशाएँ और कठिनाइयाँ समझता था, कि वे सुसमाचार कार्य का अनुसरण कैसे कर रहे हैं, इत्यादि। जब मैंने कार्य की विस्तार से जाँच की तो मुझे ऐसी समस्याएँ और विचलन पता चले, जो मैंने पहले नहीं देखे थे। कुछ कलीसियाओं में सुसमाचार के बहुत कम कार्यकर्ता थे; कुछ सुसमाचार टीम अगुआओं को नहीं पता था कि कार्य का अनुवर्तन कैसे किया जाए; और कुछ सुसमाचार कार्यकर्ता सत्य को नहीं समझते थे। वे परमेश्वर के कार्य से जुड़े कई सत्यों के बारे में स्पष्ट रूप से संगति नहीं कर पाते थे, इसका मतलब यह कि कुछ संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता जो सचमुच परमेश्वर में विश्वास करते थे, अपनी जाँच जारी रखने को तैयार नहीं थे क्योंकि उनकी धारणाओं का समाधान नहीं हुआ था। इन समस्याओं को ठीक करने के लिए, इनके बारे में मैंने उन भाई-बहनों के साथ संगति की जिनके साथ मैं काम कर रहा था। हमने सुसमाचार कार्यकर्ताओं के काम का विस्तार से अनुवर्तन किया और उनकी गवाही में मौजूद समस्याओं को इंगित किया, उन्हें मार्गदर्शन दिया और उनके साथ संगति की। एक साथ काम करने की अवधि के बाद कुछ संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता अपनी जाँच जारी रखने को तैयार हो गए और आखिरकार अंत के दिनों का परमेश्वर का कार्य स्वीकार कर लिया। इस दौरान मुझे आखिरकार यह गहरा एहसास हुआ कि केवल वास्तविक समझ और हमारे कार्य के माध्यम से विवरणों में गहराई से जाने से ही हम समस्याओं की खोज और समाधान कर सकते हैं; और तभी मेरा दिल सहज और शांत महसूस कर पाया।

एक बार मैं एक कलीसिया के सुसमाचार कार्य का अनुवर्तन कर रहा था। मैंने देखा कि सुसमाचार कार्य में नतीजे नहीं मिल रहे थे और अधिकांश भाई-बहन कुछ हद तक नकारात्मक थे। इसलिए मैंने अपने भाई-बहनों की दशाएँ हल करने के लिए एक सभा बुलाई। इसी दौरान मैंने सुसमाचार प्रचार में मौजूद समस्याओं के बारे में भी संगति की और उनका समाधान किया। कुछ समय बाद सुसमाचार कार्य में कुछ सुधार दिखने लगा। मैं बहुत खुश था और सोचने लगा, “मेरे भाई-बहन निश्चित रूप से मेरा आदर करेंगे। मैं बस टीम अगुआओं से भविष्य में इसका अनुवर्तन करने को कह दूँगा।” जब मैंने यह सोचा तो मुझे एहसास हुआ कि अतीत में मैंने केवल वही काम किया था जिससे मैं अच्छा दिख सकूँ और कई समस्याएँ वास्तव में हल नहीं हुई थीं। इस बार मैं केवल अपने भाई-बहनों की दशाएँ हल करके और बस इतना करके छोड़ देने से संतुष्ट नहीं हो सकता था। मुझे इस बारे में सोचना था कि कौन से कार्य अभी भी उचित ढंग से पूरे नहीं हुए हैं। जब मैं असल में यह पता लगाने गया कि क्या चल रहा था, तो मैंने पाया कि इस कलीसिया में पर्याप्त सुसमाचार कार्यकर्ता नहीं हैं और कुछ सुसमाचार कार्यकर्ता बहुत धीमी गति से प्रगति कर रहे हैं, लेकिन टीम अगुआ उनकी मदद नहीं करते और सहारा नहीं देते। उन्हें यह भी नहीं पता था कि सुसमाचार कार्य में आने वाले विचलनों को कैसे हल किया जाए। नतीजतन, सुसमाचार कार्य ने कई महीनों तक स्पष्ट नतीजे नहीं दिए। इसके बाद मैंने टीम अगुआओं के साथ इन समस्याओं को हल करने के तरीके पर चर्चा की और कुछ सुसमाचार कार्यकर्ताओं का चयन किया। मैंने टीम अगुआओं को सिखाया कि कार्य का अनुवर्तन और उसकी व्यवस्था कैसे करें और उनकी समस्याओं और कठिनाइयों का समाधान किया। कुछ समय बाद सुसमाचार प्रचार के नतीजों में कुछ और सुधार हुआ। जब मैंने यह नतीजा देखा तो मुझे बहुत खुशी हुई, लेकिन कुछ हद तक खुद के लिए अपराध-बोध भी हुआ। वजह यह थी कि मैंने अतीत में खुद को अच्छा दिखाने के लिए बहुत अधिक काम किया था, इसलिए सुसमाचार कार्य में प्रगति नहीं हुई थी। मैंने परमेश्वर का धन्यवाद किया कि उसने इस परिवेश का उपयोग कर मुझे खुद को थोड़ा बेहतर ढंग से समझने दिया, और सीखने दिया कि वास्तविक कार्य कैसे करना है।

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जायोयू, चीनमेरा नाम जायोयू है और मैं 26 साल की हूँ। मैं एक कैथोलिक हुआ करती थी। जब मैं छोटी थी, तो अपनी माँ के साथ ख्रीस्तयाग में भाग लेने...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 6) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 7) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 8) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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