27. पकड़े जाने और यातना के बाद परमेश्वर से विश्वासघात किए जाने का सबक
2022 के अंत में एक दिन, मुझे पता चला कि कलीसिया अगुआ लिन हुई ने गिरफ्तार किए जाने के बाद परमेश्वर से विश्वासघात किया और यहूदा बन गया। पूछताछ के दौरान, पुलिस ने लिन हुई को कलीसिया के पैसों और भाई-बहनों के बारे में जानकारी का खुलासा करने के लिए धमकाया। उन्होंने कहा कि अगर उसने कुछ नहीं कबूला तो उसे जेल हो जाएगी और उन्होंने उसे मजबूर करने के लिए उसकी बेटी के भविष्य का इस्तेमाल किया। जेल में कष्ट झेलने के डर से और अपनी बेटी का भविष्य खराब होने की चिंता में वह सीसीपी का सह-अपराधी बन गया। उसने पुलिस को ले जाकर उस घर की पहचान करवाई जहाँ परमेश्वर के वचनों की किताबें रखी थीं और यहाँ तक कि गिरफ्तार किए गए भाई-बहनों का मत-परिवर्तन करने में भी पुलिस की मदद की। यह देखकर कि लिन हुई यहूदा के रूप में उजागर हो गया था और उसे कलीसिया से निष्कासित कर दिया गया था, मैं गहरी सोच में पड़ गई, “लिन हुई कई सालों से एक अगुआ के रूप में अपना कर्तव्य निभा रहा था। भाई-बहनों के साथ उसकी संगति आमतौर पर काफी स्पष्ट होती थी। तर्क की दृष्टि से, उसके जैसे उत्साह से अनुसरण करने वाले व्यक्ति का कुछ आध्यात्मिक कद होना चाहिए। गिरफ्तार होने के बाद वह यहूदा कैसे बन सकता था? यहाँ तक कि लिन हुई, जो इस तरह से अनुसरण करता था, अपनी गवाही में अडिग नहीं रह सका। मैं अगुआ नहीं रही हूँ और मुझे ज्यादा सत्य समझ नहीं आता; अगर मैं किसी दिन गिरफ्तार हो गई तो क्या होगा? अगर पुलिस मुझे सजा सुनाती है या मेरे परिवार के भविष्य का इस्तेमाल करके मुझे धमकी देती है, तो क्या मैं अपनी गवाही में अडिग रह पाऊँगी? अगर मैं अडिग न रह सकी और यहूदा बन गई, तो मेरा अनंत काल के लिए सर्वनाश हो जाएगा! क्या इसका मतलब यह नहीं होगा कि मेरा कोई अच्छा भविष्य या मंजिल नहीं होगी? मैं कैसे बचाई जा सकूँगी और राज्य में प्रवेश कर सकूँगी?” जितना मैंने इस बारे में सोचा, मैं उतनी ही हताश होती गई और मैंने अपना कर्तव्य निभाने की प्रेरणा खो दी। जब भी मैं सुनती कि किसी कलीसिया में भाई-बहन गिरफ्तार कर लिए गए हैं, तो मैं बहुत डर जाती थी, लगातार इस बात की चिंता करती थी कि कहीं मैं भी एक दिन पुलिस द्वारा गिरफ्तार न कर ली जाऊँ और अडिग न रह पाऊँ। उस दौरान, सफाई कार्य के लिए जिम्मेदार कुछ बहनों की दशा खराब थी और उनके मुद्दों को हल करने के लिए संगति की जरूरत थी। मैंने उनके साथ बैठक के लिए समय और स्थान तय कर लिया था। बाद में, यह सुनने के बाद कि उस इलाके में सुरक्षा जोखिम हैं, मैं नहीं जाना चाहती थी। “अगर मैं गिरफ्तार हो गई तो क्या होगा?” बाद में, एक बहन ने मेरे साथ संगति की और मैं आखिरकार गई और काम में देरी नहीं की।
बाद में, मैंने यह तलाश की कि लिन हुई की गिरफ्तारी के बाद परमेश्वर से उसके विश्वासघात को मुझे कैसे समझना चाहिए। मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “राज्य के युग में मनुष्य को पूरी तरह से पूर्ण किया जाएगा। विजय के कार्य के पश्चात् मनुष्य को शुद्धिकरण और क्लेश का भागी बनाया जाएगा। जो लोग विजय प्राप्त कर सकते हैं और इस क्लेश के दौरान अपनी गवाही पर दृढ़ रह सकते हैं, वे वो लोग हैं जिन्हें अंततः पूर्ण बनाया जाएगा; वे विजेता हैं। इस क्लेश के दौरान मनुष्य से अपेक्षा की जाती है कि वह इस शुद्धिकरण को स्वीकार करे, और यह शुद्धिकरण परमेश्वर के कार्य की अंतिम घटना है। यह अंतिम बार है कि परमेश्वर के प्रबंधन के समस्त कार्य के समापन से पहले मनुष्य को शुद्ध किया जाएगा, और जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, उन सभी को यह अंतिम परीक्षा स्वीकार करनी चाहिए, और उन्हें यह अंतिम शुद्धिकरण स्वीकार करना चाहिए। जो लोग क्लेश से व्याकुल हैं, वे पवित्र आत्मा के कार्य और परमेश्वर के मार्गदर्शन से रहित हैं, किंतु जिन्हें सच में जीत लिया गया है और जो सच में परमेश्वर की खोज करते हैं, वे अंततः डटे रहेंगे; ये वे लोग हैं, जिनमें मानवता है, और जो सच में परमेश्वर से प्रेम करते हैं। परमेश्वर चाहे कुछ भी क्यों न करे, इन विजयी लोगों को दर्शनों से वंचित नहीं किया जाएगा, और ये फिर भी अपनी गवाही में असफल हुए बिना सत्य को अभ्यास में लाएँगे। ये वे लोग हैं, जो अंततः बड़े क्लेश से उभरेंगे। भले ही आपदा को अवसर में बदलने वाले आज भी मुफ़्तख़ोरी कर सकते हों, किंतु अंतिम क्लेश से बच निकलने में कोई सक्षम नहीं है, और अंतिम परीक्षा से कोई नहीं बच सकता। जो लोग विजय प्राप्त करते हैं, उनके लिए ऐसा क्लेश जबरदस्त शुद्धिकरण हैं; किंतु आपदा को अवसर में बदलने वालों के लिए यह पूरी तरह से उन्हें निकाले जाने का कार्य है। जिनके हृदय में परमेश्वर है, उनकी चाहे किसी भी प्रकार से परीक्षा क्यों न ली जाए, उनकी निष्ठा अपरिवर्तित रहती है; किंतु जिनके हृदय में परमेश्वर नहीं है, वे अपनी देह के लिए परमेश्वर का कार्य लाभदायक न रहने पर परमेश्वर के बारे में अपना दृष्टिकोण बदल लेते हैं, यहाँ तक कि परमेश्वर को छोड़कर चले जाते हैं। इस प्रकार के लोग ऐसे होते हैं जो अंत में डटे नहीं रहेंगे, जो केवल परमेश्वर के आशीष खोजते हैं और उनमें परमेश्वर के लिए अपने आपको व्यय करने और उसके प्रति समर्पित होने की कोई इच्छा नहीं होती। ऐसे सभी अधम लोगों को परमेश्वर का कार्य समाप्ति पर आने पर बहिष्कृत कर दिया जाएगा, और वे किसी भी प्रकार की सहानुभूति के योग्य नहीं हैं। जो लोग मानवता से रहित हैं, वे सच में परमेश्वर से प्रेम करने में अक्षम हैं। जब परिवेश सही-सलामत और सुरक्षित होता है, या जब लाभ कमाया जा सकता है, तब वे परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से आज्ञाकारी रहते हैं, किंतु जब जो वे चाहते हैं, उसमें कमी-बेशी की जाती है या अंततः उसके लिए मना कर दिया जाता है, तो वे तुरंत बगावत कर देते हैं। यहाँ तक कि एक ही रात के अंतराल में वे अपने कल के उपकारियों के साथ अचानक बिना किसी तुक या तर्क के अपने घातक शत्रु के समान व्यवहार करते हुए, एक मुस्कुराते, ‘उदार-हृदय’ व्यक्ति से एक कुरूप और जघन्य हत्यारे में बदल जाते हैं। यदि इन पिशाचों को निकाला नहीं जाता, तो ये पिशाच बिना पलक झपकाए हत्या कर देंगे, तो क्या वे एक छिपा हुआ खतरा नहीं बन जाएँगे? विजय के कार्य के समापन के बाद मनुष्य को बचाने का कार्य हासिल नहीं किया जाता। यद्यपि विजय का कार्य समाप्ति पर आ गया है, किंतु मनुष्य को शुद्ध करने का कार्य नहीं; वह कार्य केवल तभी समाप्त होगा, जब मनुष्य को पूरी तरह से शुद्ध कर दिया जाएगा, जब परमेश्वर के प्रति वास्तव में समर्पण करने वाले लोगों को पूर्ण कर दिया जाएगा, और जब अपने हृदय में परमेश्वर से रहित छद्मवेशियों को सफा कर दिया जाएगा। जो लोग परमेश्वर के कार्य के अंतिम चरण में उसे संतुष्ट नहीं करते, उन्हें पूरी तरह निकाल दिया जाएगा, और जिन्हें निकाल दिया जाता है, वे शैतान के हैं। चूँकि वे परमेश्वर को संतुष्ट करने में अक्षम हैं, इसलिए वे परमेश्वर के प्रति विद्रोही हैं, और भले ही वे लोग आज परमेश्वर का अनुसरण करते हों, फिर भी इससे यह साबित नहीं होता कि ये वो लोग हैं, जो अंततः बने रहेंगे। ‘जो लोग अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करेंगे, वे उद्धार प्राप्त करेंगे,’ इन वचनों में ‘अनुसरण’ का अर्थ क्लेश के बीच डटे रहना है। आज बहुत-से लोग मानते हैं कि परमेश्वर का अनुसरण करना आसान है, किंतु जब परमेश्वर का कार्य समाप्त होने वाला होगा, तब तुम ‘अनुसरण करने’ का असली अर्थ जानोगे। सिर्फ इस बात से कि जीत लिए जाने के पश्चात् तुम आज भी परमेश्वर का अनुसरण करने में समर्थ हो, यह प्रमाणित नहीं होता कि तुम उन लोगों में से एक हो, जिन्हें पूर्ण बनाया जाएगा। जो लोग परीक्षणों को सहने में असमर्थ हैं, जो क्लेशों के बीच विजयी होने में अक्षम हैं, वे अंततः डटे रहने में अक्षम होंगे, और इसलिए वे बिल्कुल अंत तक अनुसरण करने में असमर्थ होंगे। जो लोग सच में परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, वे अपने कार्य की परीक्षा का सामना करने में समर्थ हैं, जबकि जो लोग सच में परमेश्वर का अनुसरण नहीं करते, वे परमेश्वर के किसी भी परीक्षण का सामना करने में अक्षम हैं। देर-सवेर उन्हें निर्वासित कर दिया जाएगा, जबकि विजेता राज्य में बने रहेंगे। मनुष्य वास्तव में परमेश्वर को खोजता है या नहीं, इसका निर्धारण उसके कार्य की परीक्षा द्वारा किया जाता है, अर्थात्, परमेश्वर के परीक्षणों द्वारा, और इसका स्वयं मनुष्य द्वारा लिए गए निर्णय से कोई लेना-देना नहीं है। परमेश्वर हल्के में किसी मनुष्य को अस्वीकार नहीं करता; वह जो कुछ भी करता है, वह मनुष्य को पूर्ण रूप से आश्वस्त कर सकता है। वह ऐसा कुछ नहीं करता, जो मनुष्य के लिए अदृश्य हो, या कोई ऐसा कार्य जो मनुष्य को आश्वस्त न कर सके। मनुष्य का विश्वास सही है या नहीं, यह तथ्यों द्वारा साबित होता है, और इसे मनुष्य द्वारा तय नहीं किया जा सकता। इसमें कोई संदेह नहीं कि ‘गेहूँ को जंगली दाने नहीं बनाया जा सकता, और जंगली दानों को गेहूँ नहीं बनाया जा सकता।’ जो सच में परमेश्वर से प्रेम करते हैं, वे सभी अंततः राज्य में बने रहेंगे, और परमेश्वर किसी ऐसे व्यक्ति के साथ बुरा व्यवहार नहीं करेगा, जो वास्तव में उससे प्रेम करता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए मैं समझ गई कि अंत के दिनों में परमेश्वर सभी को उनकी किस्म के अनुसार छाँटने का कार्य कर रहा है। जंगली दाने और गेहूँ, अच्छे और बुरे सेवक, भेड़ें और बकरियाँ केवल परीक्षणों और क्लेशों के द्वारा ही प्रकट किए जा सकते हैं। परमेश्वर का हम पर उत्पीड़न और क्लेश आने देना अर्थपूर्ण है। जो लोग सच्चे मन से परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, उनके लिए यह पूर्णता है; जो लोग अवसरवादिता से आशीष पाना चाहते हैं और बस जैसे-तैसे काम चलाते हैं, उनके लिए यह प्रकाशन और निष्कासन है। जो लोग सचमुच परमेश्वर को चाहते हैं, वे चाहे किसी भी तरह के उत्पीड़न या क्लेश का सामना करें, परमेश्वर से इनकार या उससे विश्वासघात नहीं करेंगे और सत्य की खोज कर अपनी गवाही में अडिग रह सकते हैं। लेकिन जो लोग सच्चे मन से परमेश्वर का अनुसरण नहीं करते, भले ही वे कुछ समय के लिए सतही तौर पर त्याग कर सकते हैं और खुद को खपा सकते हैं, परमेश्वर के घर में खुद को एक विश्वासी के रूप में छिपा सकते हैं, एक बार जब परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित परिवेश उनकी देह के लिए प्रतिकूल हो जाता है और आशीष पाने की उनकी इच्छा चूर-चूर हो जाती है, तो वे तुरंत परमेश्वर से इनकार और उससे विश्वासघात कर सकते हैं। परीक्षणों के बीच जो सत्य का अभ्यास कर सकते हैं और अपनी गवाही में अडिग रह सकते हैं, वे ही हैं जिन्हें परमेश्वर बचाना और पूर्ण बनाना चाहता है। जो अपनी गवाही में अडिग नहीं रह सकते, वे बेनकाब किए गए जंगली दाने हैं। परमेश्वर का कार्य कितना बुद्धिमत्तापूर्ण है! मैंने कलीसिया की फिल्म “मेरी जवानी की यादें” के उस भाई के बारे में सोचा जो केवल 20 साल का था। परमेश्वर में अपने विश्वास के कारण उसे सीसीपी द्वारा गिरफ्तारी और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। उसे परमेश्वर को नकारने और उससे विश्वासघात करने को मजबूर करने के लिए पुलिस ने क्रूरतापूर्वक उसके शरीर पर कप भर-भर कर खौलता हुआ पानी डाला। लेकिन भाई को यकीन था कि यही सच्चा मार्ग है और उसने हर तरह की यातना सहने के बावजूद परमेश्वर से इनकार या उससे विश्वासघात नहीं किया। एक और फिल्म है “शोधन करने वाले की आग”, जिसमें पुलिस ने बहन को परमेश्वर से विश्वासघात करने को मजबूर करने के लिए बेशर्मी से उसके कपड़े उतार दिए और उसे बिजली के डंडों से झटका दिया। बहन ने अत्यधिक अपमान और यातना सही। अपनी पीड़ा में उसने परमेश्वर से प्रार्थना की, शैतान के आगे झुकने के बजाय मरने की कसम खाई, परमेश्वर से इनकार नहीं किया, उससे विश्वासघात नहीं किया, सुंदर और जोरदार गवाही दी और शैतान को शर्मिंदा किया। मैंने देखा कि जो भाई-बहन सचमुच परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, वे चाहे कितने भी खतरे या क्लेश का सामना करें, परमेश्वर से इनकार या उससे विश्वासघात नहीं करेंगे। लेकिन लिन हुई, जो लंबे समय से कलीसिया में अगुआ था, गिरफ्तार होने के बाद क्रूर यातना से बचने, अपनी बेटी के भविष्य को सुरक्षित करने और अपनी जान बचाने की कोशिश में यहूदा बन गया और कलीसिया के हितों से गद्दारी की, और बड़े लाल अजगर का सह-अपराधी और अनुचर बन गया। वह कई सालों से परमेश्वर में विश्वास रखता आया था और अक्सर भाई-बहनों के साथ बहुत संगति करता था, लेकिन उसे विश्वास नहीं था कि लोगों का भाग्य परमेश्वर के हाथों में है। जब महत्वपूर्ण क्षण आया, तो वह परमेश्वर से इनकार और उससे विश्वासघात करने में सक्षम था। तो फिर, जो संगति उसने दूसरों को दी, क्या वह सब केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत नहीं थे? तथ्यों से पता चला कि उसके पास बिल्कुल भी सत्य वास्तविकता नहीं थी। वह सिर्फ एक छद्म-विश्वासी था जो अवसरवादिता के माध्यम से आशीष पाने की व्यर्थ आशा में परमेश्वर के घर में घुस आया था। अतीत में, मैंने केवल उसके बाहरी व्यवहार को देखा था। क्योंकि वह एक अगुआ था और वाक्पटुता से बोल सकता था, मैंने सोचा कि उसके पास सत्य वास्तविकता है। परमेश्वर के प्रकाशन के माध्यम से ही मुझमें भेद पहचानने की क्षमता बढ़ी। साथ ही, मैंने अपना असली आध्यात्मिक कद भी देखा। अक्सर, जब मुझ पर कोई खतरनाक स्थिति नहीं आती थी, तो मैं यह भी सोचती थी कि मुझमें कुछ आस्था है, लेकिन जब मुझे पता चला कि किसी को यातना दी गई है और उसने परमेश्वर से विश्वासघात किया है, तो मैं डर और कायरता में जीती रही। मैंने सबक सीखने के लिए सत्य की खोज नहीं की थी, न ही मैंने यह सोचा था कि अपने कर्तव्य को कैसे बनाए रखा जाए। मैंने देखा कि मेरे पास कोई सत्य वास्तविकता नहीं थी। अब वह समय है जब परमेश्वर लोगों के काम की परीक्षा लेता है। मुझे और अधिक सत्य से खुद को लैस करने की जरूरत है ताकि मैं परीक्षणों और क्लेशों में दृढ़ रह सकूँ।
बाद में, मैंने अपनी नकारात्मकता के मूल कारण पर भी विचार किया। मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “तो क्या तुम लोग जानते हो कि लोगों के दिलों की गहराइयों में कौन-सी चीजें रहती हैं? (आशीष पाने के लिए परमेश्वर में विश्वास; यह वो चीज है जो लोगों के दिलों में रहती है।) बिल्कुल सही, लोग आशीष पाने, पुरस्कृत होने, ताज पहनने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते हैं। क्या यह सबके दिलों में नहीं है? यह एक तथ्य है कि यह सबके दिलों में है। हालाँकि लोग अक्सर इसके बारे में बात नहीं करते, यहाँ तक कि वे आशीष प्राप्त करने का अपना मकसद और इच्छा छिपाते हैं, फिर भी यह इच्छा और मकसद लोगों के दिलों की गहराई में हमेशा अडिग रहा है। लोग चाहे कितना भी आध्यात्मिक सिद्धांत समझते हों, उनके पास जो भी अनुभवजन्य ज्ञान हो, वे जो भी कर्तव्य निभा सकते हों, कितना भी कष्ट सहते हों, या कितनी भी कीमत चुकाते हों, वे अपने दिलों में गहरी छिपी आशीष पाने की प्रेरणा कभी नहीं छोड़ते, और हमेशा चुपचाप उसके लिए कड़ी मेहनत करते हैं। क्या यह लोगों के दिल के अंदर सबसे गहरी दबी बात नहीं है? आशीष प्राप्त करने की इस प्रेरणा के बिना तुम लोग कैसा महसूस करोगे? तुम किस रवैये के साथ अपना कर्तव्य निभाओगे और परमेश्वर का अनुसरण करोगे? अगर लोगों के दिलों में छिपी आशीष प्राप्त करने की यह प्रेरणा दूर कर दी जाए तो ऐसे लोगों का क्या होगा? संभव है कि बहुत-से लोग नकारात्मक हो जाएँगे, जबकि कुछ अपने कर्तव्यों के प्रति प्रेरणाहीन हो जाएँगे। वे परमेश्वर में अपने विश्वास में रुचि खो देंगे, मानो उनकी आत्मा गायब हो गई हो। वे ऐसे प्रतीत होंगे, मानो उनका हृदय छीन लिया गया हो। इसीलिए मैं कहता हूँ कि आशीष पाने की प्रेरणा ऐसी चीज है जो लोगों के दिल में गहरी छिपी है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, जीवन संवृद्धि के छह संकेतक)। परमेश्वर के वचनों के प्रकाश में खुद को देखने पर, मुझे आखिरकार एहसास हुआ कि मेरी नकारात्मकता और प्रेरणा की कमी मुख्य रूप से आशीष पाने की मेरी मंशा से प्रेरित थी। अतीत में, जब माहौल आरामदायक था, तो मैं अपने अनुसरण में उत्साही थी और अपना कर्तव्य सक्रिय रूप से करती थी। लेकिन पीछे मुड़कर देखती हूँ तो मेरी प्रेरणा मुख्य रूप से इस विचार से आती थी कि केवल अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करने से ही मेरा भविष्य और मंजिल अच्छी हो सकती है। अब, लिन हुई को यहूदा बनते और परमेश्वर से उसके विश्वासघात को देखकर, मुझे चिंता हुई कि अगर मैं गिरफ्तार हो गई, तो मैं लिन हुई की तरह हो जाऊँगी और अपनी गवाही में अडिग नहीं रह पाऊँगी, और तब मेरा कोई अच्छा परिणाम या मंजिल नहीं होगी, इसलिए मैंने पीछे हटना शुरू कर दिया। यहाँ तक कि जब मैं अपना कर्तव्य कर रही थी, तो मैं बस काम चला रही थी, अगर कोई खतरा होता, तो मैं जल्दी से घर भागकर छिप जाती, जब तक मैं सुरक्षित थी, मैं इस बात की परवाह नहीं करती थी कि मैंने अपना कर्तव्य कितनी अच्छी तरह से किया। परमेश्वर में मेरा विश्वास केवल आशीष और एक अच्छी मंजिल के लिए था, मैं किसी भी खतरे या क्लेश का सामना नहीं करना चाहती थी। मैंने परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित परिस्थितियों में सबक सीखने के लिए सत्य की खोज नहीं की। परमेश्वर में मेरे विश्वास और उन छद्म-विश्वासियों के विश्वास के बीच क्या अंतर था जो परमेश्वर के घर में घुल-मिल जाते हैं और सत्य का अनुसरण नहीं करते, व्यर्थ में आशीषें पाने की आशा करते हैं? अगर मैंने इस दशा को हल करने के लिए सत्य की खोज नहीं की, तो जब मुझ पर परीक्षण आएँगे तो मैं निश्चित रूप से गिर जाऊँगी। इस बार परमेश्वर ने ऐसी स्थिति के माध्यम से मुझे बेनकाब किया और यह मेरे लिए उसका उद्धार था। मैंने अपने दिल से परमेश्वर का धन्यवाद किया।
बाद में मैंने यह भी विचार किया : जब मैंने देखा कि एक अगुआ को गिरफ्तार कर लिया गया है और वह यहूदा बन गया है तो मुझ पर इतनी तीव्र प्रतिक्रिया क्यों हुई? मैंने सोचा कि अगुआ वे सभी लोग हैं जिन्हें सत्य की काफी अच्छी समझ है और जिनके पास वास्तविकता है और अगर उन्हें गिरफ्तार किया गया, तो उन्हें अपनी गवाही में अडिग रहना चाहिए। लेकिन क्या मेरे विचार सत्य के अनुरूप थे? अपनी खोज के दौरान मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “जब कोई व्यक्ति भाई-बहनों द्वारा अगुआ के रूप में चुना जाता है या परमेश्वर के घर द्वारा कोई निश्चित कार्य करने या कोई निश्चित कर्तव्य निभाने के लिए पदोन्नत किया जाता है, तो इसका यह मतलब नहीं कि उसका कोई विशेष रुतबा या पद है या वह जिन सत्यों को समझता है, वे अन्य लोगों की तुलना में अधिक गहरे और संख्या में अधिक हैं—तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि यह व्यक्ति परमेश्वर के प्रति समर्पण करने में सक्षम है और उसे धोखा नहीं देगा। निश्चय ही, इसका यह मतलब भी नहीं है कि ऐसे लोग परमेश्वर को जानते हैं और परमेश्वर का भय मानते हैं। वास्तव में उन्होंने इसमें से कुछ भी हासिल नहीं किया है। पदोन्नयन और संवर्धन सीधे मायने में केवल पदोन्नयन और संवर्धन ही है, और यह भाग्य में लिखे होने या परमेश्वर की अभिस्वीकृति पाने के समतुल्य नहीं है। उनकी पदोन्नति और विकास का सीधा-सा अर्थ है कि उन्हें उन्नत किया गया है, और वे विकसित किए जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। और इस विकसित किए जाने का अंतिम परिणाम इस बात पर निर्भर करता है कि क्या यह व्यक्ति सत्य का अनुसरण करता है और क्या वह सत्य के अनुसरण का रास्ता चुनने में सक्षम है” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (5))। “परमेश्वर के वचनों को मानते हुए स्थिरता के साथ उनकी व्याख्या करने के योग्य होने का अर्थ यह नहीं है कि तुम्हारे पास वास्तविकता है; बातें इतनी भी सरल नहीं हैं जितनी तुम सोचते हो। तुम्हारे पास वास्तविकता है या नहीं, यह इस बात पर आधारित नहीं है कि तुम क्या कहते हो; अपितु यह इस पर आधारित है कि तुम किसे जीते हो। जब परमेश्वर के वचन तुम्हारा जीवन और तुम्हारी स्वाभाविक अभिव्यक्ति बन जाते हैं, तभी कहा जा सकता है कि तुममें वास्तविकता है और तभी कहा जा सकता है कि तुमने वास्तविक समझ और असल आध्यात्मिक कद हासिल कर लिया है। तुम्हारे अंदर लम्बे समय तक परीक्षा को सहने की क्षमता होनी चाहिए, और तुम्हें उस समानता को जीने के योग्य होना अनिवार्य है, जिसकी अपेक्षा परमेश्वर तुम से करता है; यह मात्र दिखावा नहीं होना चाहिए; बल्कि यह तुम में स्वाभाविक रूप से प्रवाहित होना चाहिए। तभी तुम में वस्तुतः वास्तविकता होगी और तुम जीवन प्राप्त करोगे” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल सत्य का अभ्यास करना ही इंसान में वास्तविकता का होना है)। परमेश्वर के वचनों से, मुझे समझ आया कि परमेश्वर का घर कलीसिया के कार्य की जरूरतों के अनुसार लोगों को पदोन्नत और विकसित करता है। कुछ लोग जिनमें अगुआ या कार्यकर्ता होने की काबिलियत और अपेक्षित शर्तें होती हैं, उन्हें अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में चुना जाता है या कुछ खास काम करने के लिए पदोन्नत किया जाता है। यह उन्हें प्रशिक्षण के अवसर देने के लिए है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उनके पास सत्य वास्तविकताएँ हैं, न ही इसका मतलब यह है कि उनका आध्यात्मिक कद अन्य भाई-बहनों से बड़ा है। बस इतना है कि वे जो कर्तव्य करते हैं और जो कार्य करते हैं, वे अलग-अलग हैं। परमेश्वर के वचनों के प्रकाश में खुद को देखने पर, मैंने पाया कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं के प्रति मेरा परिप्रेक्ष्य गलत था। उदाहरण के लिए, जब मैंने लिन हुई को गिरफ्तार होते देखा, तो मैंने सोचा कि चूँकि वह एक अगुआ था और उसकी संगति काफी स्पष्ट थी, तो वह निश्चित रूप से सत्य का अनुसरण करता होगा और उसके पास वास्तविकताएँ होंगी, अगर उसे गिरफ्तार किया गया, तो उसे अपनी गवाही में अडिग रहना चाहिए। जब मैंने उसे पूरी तरह से यहूदा बनते देखा, तो मैं यह समझ नहीं पाई। मुझे यह भी चिंता हुई कि चूँकि मैं अगुआ या कार्यकर्ता नहीं रही हूँ, इसलिए अगर मुझे गिरफ्तार किया गया तो मैं अडिग नहीं रह पाऊँगी। अब मैं समझ गई कि किसी व्यक्ति के पास सत्य वास्तविकताएँ हैं या नहीं, यह इस बात से तय नहीं होता कि उसने कौन-सा कर्तव्य किया है या वह कितने धर्म-सिद्धांत बोल सकता है, बल्कि मुख्य रूप से इस बात से तय होता है कि क्या वह मामलों का सामना करते समय सत्य का अभ्यास कर सकता है। मैंने कलीसिया की एक बुजुर्ग बहन के बारे में सोचा जो भेंटों को सुरक्षित रखने के लिए जिम्मेदार थी। जब एक यहूदा पुलिस को तलाशी के लिए उसके घर ले गया और पुलिस ने उसे धमकाया और भेंटें सौंपने के लिए मजबूर करने की कोशिश की, तो बहन शैतान की बुरी शक्तियों से नहीं डरी और उसने भेंटों की रक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी, बुद्धिमानी से पुलिस को जवाब देने के लिए परमेश्वर पर भरोसा किया और पुलिस के जाने के बाद, उसने तुरंत भेंटों को सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया। लोगों की नजरों में, बुजुर्ग बहन अगुआ नहीं रही थी और संगति या धर्मोपदेश नहीं दे सकती थी, लेकिन जब मामलों का सामना करना पड़ा, तो वह अपनी सुरक्षा की परवाह न करके भेंटों की रक्षा कर सकी और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा कर सकी। ऐसे व्यक्ति ने गवाही दी।
लिन हुई की विफलता का एक कारण जेल में कष्ट झेलने का उसका डर था। दूसरा कारण यह था कि जब बड़े लाल अजगर ने उसे धमकाने के लिए उसकी बेटी के भविष्य का इस्तेमाल किया, तो उसे विश्वास नहीं था कि लोगों का भाग्य परमेश्वर के हाथों में है। अपनी इसी तरह की दशा के बारे में सोचते हुए, मैंने अपनी इस दशा के संबंध में परमेश्वर के वचन खोजे। मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “मनुष्य का भाग्य परमेश्वर के हाथों से नियंत्रित होता है। तुम स्वयं को नियंत्रित करने में असमर्थ हो : हमेशा अपनी ओर से भाग-दौड़ करते रहने और व्यस्त रहने के बावजूद मनुष्य स्वयं को नियंत्रित करने में अक्षम रहता है। यदि तुम अपने भविष्य की संभावनाओं को जान सकते, यदि तुम अपने भाग्य को नियंत्रित कर सकते, तो क्या तुम तब भी एक सृजित प्राणी होते? ... मनुष्य की मंज़िल सृजनकर्ता के हाथ में है, तो मनुष्य स्वयं को नियंत्रित कैसे कर सकता है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के सामान्य जीवन को बहाल करना और उसे एक अद्भुत मंजिल पर ले जाना)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए, मैं समझ गई कि परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, मनुष्य एक सृजित प्राणी है और लोगों का भाग्य परमेश्वर के हाथों में है। किसी व्यक्ति का भाग्य कैसा होगा, यह परमेश्वर ने बहुत पहले ही निर्धारित और व्यवस्थित कर दिया है। भले ही लोग अपने लिए योजनाएँ बनाएँ और साजिशें रचें, वे अपने भाग्य को नियंत्रित नहीं कर सकते। मेरी यह चिंता कि सीसीपी की पुलिस मुझे धमकाने के लिए मेरे परिवार के भविष्य का इस्तेमाल करेगी, मुख्य रूप से परमेश्वर की संप्रभुता की सच्ची समझ की कमी के कारण थी। अब मैं समझ गई कि अगर मैं सचमुच एक दिन गिरफ्तार होकर जेल में डाल दी गई, तो मेरा परिवार इसमें फँसेगा या नहीं, यह सब परमेश्वर के हाथों में है। मैं एक सृजित प्राणी हूँ, मैं अपना भाग्य भी नियंत्रित नहीं कर सकती, फिर भी मैं अपने परिवार के भविष्य के बारे में चिंता कर रही थी। मैं कितनी मूर्ख थी! गिरफ्तार होने से पहले ही, मैं यहूदा के रूप में बेनकाब होने को लेकर चिंतित थी, इसलिए मैंने घर पर छिपकर अपनी जान बचाने की कोशिश की, यहाँ तक कि जो कर्तव्य मुझे करने चाहिए थे, वे भी नहीं किए और अपने कर्तव्य के प्रति पूरी तरह से वफादारी से रहित थी। बाहरी तौर पर, मैंने लिन हुई की तरह यहूदा बनकर सीधे परमेश्वर से विश्वासघात नहीं किया था, लेकिन अपना कर्तव्य अच्छी तरह से न करके, क्या मैं शैतान की चाल में नहीं फँस गई थी और अपनी गवाही नहीं खो बैठी थी? इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, लिन हुई यहूदा के रूप में बेनकाब हुआ है। मैंने कई गलत विचार प्रकट किए हैं और मैं डरपोक और भयभीत रही हूँ, लेकिन इस प्रकाशन के माध्यम से, मैंने अपना असली आध्यात्मिक कद स्पष्ट रूप से देखा है और मैं देखती हूँ कि मुझमें कितनी कम आस्था है। हे परमेश्वर, भविष्य में अपने कर्तव्य निर्वहन में अपनी गवाही में अडिग रहने के लिए मेरा मार्गदर्शन करो।” बाद में, मैंने सफाई कार्य के लिए जिम्मेदार उन बहनों के बारे में सोचा जो खराब दशा में थीं, मैंने यह भी सोचा कि अभी भी कुछ काम हैं जिन पर उनके साथ चर्चा करने की जरूरत है। इसलिए मैंने उनसे मिलने का समय तय किया और हमारी सभा से कुछ नतीजे मिले।
इस बार, एक यहूदा के प्रकाशन ने मुझे अपना असली आध्यात्मिक कद पहचानने और यह देखने का अवसर दिया कि आशीष पाने की मेरी इच्छा कितनी प्रबल थी। मुझे अपने स्वार्थी और नीच शैतानी स्वभाव की भी कुछ समझ मिली। साथ ही, इसने मुझे और भी स्पष्ट रूप से यह देखने में मदद की कि सीसीपी द्वारा शासित देश में सत्य पाने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखना कोई आसान बात नहीं है। सचमुच अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ती है! भले ही मेरा आध्यात्मिक कद अभी भी छोटा है, मैं इस तरह के परिवेश में समर्पण करने और परमेश्वर के वचनों और कार्य का अनुभव करने को तैयार हूँ। परमेश्वर का धन्यवाद!