35. एक मुश्किल फैसला
मेरा वैवाहिक जीवन दुखद रहा था। तलाक के बाद अकेले अपनी बेटियों को पालना बहुत मुश्किल था। बाद में, मैं अपने स्कूल के एक सहकर्मी के साथ रहने लगी। शादी के बाद, वह मेरे और मेरी बेटियों के प्रति बहुत अच्छा था, मुझे घर की किसी भी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं थी। मैं उसकी बहुत आभारी थी। भले ही मेरा जीवन स्थिर था, मेरे दिल की गहराई में हमेशा एक अजीब सा खालीपन रहता था। अगस्त 2012 में, मेरी मौसेरी बहन ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार सुनाया। मैंने परमेश्वर के वचन पढ़ना शुरू कर दिया और सप्ताहांत में अपनी मौसेरी बहन के साथ सभा करने लगी। परमेश्वर के वचनों से मैं समझी कि मनुष्य को परमेश्वर ने बनाया है। हमारे पूर्वज आदम और हव्वा को शैतान ने बहकाया और उन्होंने परमेश्वर से विश्वासघात किया, जिसके कारण मानवजाति पाप में जीने लगी। दुनिया में सारी दुष्टता और व्यभिचार शैतान की भ्रष्टता का नतीजा है। मुझे यह भी पता चला कि परमेश्वर हमेशा से मानवजाति को बचाता रहा है। अनुग्रह के युग में, परमेश्वर ने देहधारण किया और मानवजाति के लिए पाप-बलि बनने के वास्ते उसे सूली पर चढ़ाया गया। अंत के दिनों में, परमेश्वर ने सत्य व्यक्त करने और न्याय और शुद्धिकरण का अपना कार्य करने के लिए फिर से देहधारण किया है, ताकि वह मनुष्य के पाप के मूल कारणों का समाधान करे, लोगों को पूरी तरह से शुद्ध करे और बचाए और लोगों को एक अद्भुत मंजिल तक लाए। यह समझने के बाद, मुझे अपने जीवन और दुनिया की कई पहेलियों के जवाब मिल गए, सालों से मुझे परेशान करने वाली अनिद्रा की बीमारी अनजाने में ही ठीक हो गई, मेरे दिल में डर और अकेलेपन की भावनाएँ भी गायब हो गईं। ऐसा लगा जैसे मुझे एक खाली और निराश जंगल से एक उजली और स्नेहपूर्ण जगह पर ले जाया गया है। मेरा दिल शांत और सहज महसूस कर रहा था। मैं यह भी समझ गई कि परमेश्वर के सिवा कोई भी इंसान को सत्य नहीं दे सकता या इंसान के दिल में शांति नहीं ला सकता। एक सृजित प्राणी के रूप में मुझे परमेश्वर में विश्वास रखना चाहिए, परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए और सत्य को पाने का प्रयास करना चाहिए। वरना, जीवन खाली और अर्थहीन है। जब मेरे पति ने देखा कि परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद से मेरा मन कितना खिल गया है, तो उसने मेरी आस्था का समर्थन किया।
दिसंबर 2012 में, मेरे पति ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को बदनाम करने और उसकी निंदा करने के लिए सीसीपी द्वारा इंटरनेट पर फैलाई गई निराधार अफवाहें पढ़ीं। इस डर से कि मुझे गिरफ्तार कर लिया जाएगा, उसने मुझे परमेश्वर में विश्वास रखने से रोकने की कोशिश शुरू कर दी। वह मुझे परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ने देता था और मेरी मौसेरी बहन को मेरे साथ सभा करने नहीं देता था। उस समय, मुझे भी चिंता थी कि अगर मैंने परमेश्वर में विश्वास रखा तो मुझे पकड़कर कैद कर लिया जाएगा, लेकिन मेरी मौसेरी बहन ने मेरे साथ इस बारे में संगति की कि कैसे प्राचीन काल से ही सच्चे मार्ग पर हमेशा अत्याचार किया जाता रहा है। बाइबल में मैंने यह भी पढ़ा कि कैसे प्रभु यीशु और उसके शिष्यों ने अत्याचार सहा और देखा कि इस दुनिया में शैतान का राज है। यह बहुत दुष्ट और अंधकारमय है, यह सकारात्मक चीजों को अस्तित्व में नहीं रहने देता। परमेश्वर में विश्वास रखकर और उसका अनुसरण करके मैं जीवन में सही मार्ग पर चल रही हूँ और भले ही मुझ पर अत्याचार किया जाए, मुझे इसे छोड़ना नहीं चाहिए। मैंने अपने पति को वह सब कुछ बताया जो मैं समझ चुकी थी, लेकिन उसने मेरी एक न सुनी। जब वह घर पर नहीं होता था तो मुझे छिपकर परमेश्वर के वचन पढ़ना और सभाओं में शामिल होना पड़ता था। अप्रैल 2013 में, मेरी लम्बर स्पोंडिलोसिस की बीमारी बढ़ गई। मैं न तो बैठ सकती थी और न ही खड़ी हो सकती थी—मैं केवल सीधी लेट सकती थी। मेरे पति ने मेरे नियोक्ता से कई महीनों की छुट्टी के लिए आवेदन करने में मेरी मदद की। परमेश्वर की सुरक्षा से, कुछ दवा वाले प्लास्टर लगाने के बाद ही मेरी बीमारी लगभग ठीक हो गई। इसके बाद, मैंने अपनी छुट्टी का फायदा उठाकर सुसमाचार का प्रचार करना शुरू कर दिया, लेकिन जल्दी ही मेरे पति को पता चल गया। वह दोपहर के भोजन के अवकाश का फायदा उठाकर घर आता और देखता कि मैं वहाँ हूँ या नहीं। अगर मैं थोड़ी देर से घर आती और उसकी गाड़ी नीचे खड़ी देखती, तो मेरा दिल तुरंत घबराहट से भर जाता था। हमारी शादी के कई सालों में, उसने हमेशा मेरी अच्छी देखभाल की थी, लेकिन जब मैंने परमेश्वर में अपनी आस्था को लेकर उसकी बात नहीं मानी, तो मुझे लगा कि मैंने उसे निराश किया है, जब वह मुझे डांटता और मुझ पर चिल्लाता, तो मुझे बस सहना पड़ता था। जैसे-जैसे मैं ज्यादा से ज्यादा सभाओं में जाने लगी, मैं समझ गई कि परमेश्वर ही मनुष्य के जीवन का स्रोत है। हर व्यक्ति का जीवन परमेश्वर के भरण-पोषण, देखभाल और सुरक्षा के कारण ही है। लोगों का परमेश्वर में विश्वास रखना और कर्तव्य निभाना पूरी तरह से स्वाभाविक और न्यायोचित है। यह सबसे न्यायसंगत बात है। मुझे और भी ज्यादा महसूस होने लगा कि मैंने परमेश्वर का अनुसरण करके सही मार्ग चुना है। मेरे दिल को ताकत मिली और मैं अपने पति के गुस्सा होने से कम डरने लगी। कभी-कभी, मैं उससे तर्कसंगत रूप से बहस भी कर लेती थी। एक बार, उसने गुस्से में मेरी ओर इशारा करते हुए चिल्लाया, “अब तुम मेरी कोई बात नहीं सुनती! मैंने तुमसे कहा था कि सरकार लोगों को विश्वास रखने नहीं देती, पर तुम सुनती ही नहीं। क्या तुम्हें सच में लगता है कि अगर तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं रखोगी तो तुम जीवित नहीं रह पाओगी?” मैंने कहा, “अब, यह दुनिया बहुत दुष्ट और अंधकारमय है। जरा हमारे स्कूल को ही देखो—दिन भर धोखाधड़ी चलती रहती है। मैं इससे तंग आ गई हूँ! परमेश्वर का सत्य व्यक्त करने और लोगों को बचाने के लिए आना अद्भुत है। परमेश्वर में विश्वास के बिना, मुझे नहीं लगता कि जीवन में कोई अर्थ है!” उसने मेरी ओर देखा और कहा, “मैं जानता हूँ कि परमेश्वर में विश्वास रखना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी को इसकी परवाह नहीं है। अगर तुम विश्वास रखती रहोगी, तो तुम्हारे गिरफ्तार होने की संभावना है। जब ऐसा होगा, तो तुम अपनी नौकरी खो दोगी और तुम्हें जेल में कष्ट सहना पड़ेगा। तुम यह सब क्यों करती हो? बस अब विश्वास रखना बंद कर दो!” यह सुनते ही मैं समझ गई कि मेरा पति कम्युनिस्ट पार्टी के हथकंडों को अच्छी तरह जानता था, इसीलिए वह डर गया था और मुझे रोकने की कोशिश कर रहा था। असल में, मुझे भी गिरफ्तार होने और जेल में डाले जाने की चिंता थी, यहाँ तक कि पुलिस द्वारा पीट-पीटकर मार डाले जाने की संभावना भी थी। सीसीपी सरकार द्वारा मानव जीवन का पूरी तरह से तिरस्कार करने की बहुत सारी घटनाएँ हैं। बाद में, मैंने सोचा कि प्रभु यीशु ने क्या कहा था : “जो अपने प्राण बचाता है, वह उसे खोएगा; और जो मेरे कारण अपना प्राण खोता है, वह उसे पाएगा” (मत्ती 10:39)। मेरा दिल काफी रोशन हो गया। इंसान का जीवन बहुत छोटा है। हर दिन देह के लिए और गुजारा करने के लिए संघर्ष करने का बिल्कुल भी कोई मतलब नहीं है। परमेश्वर में विश्वास रखने और उसका अनुसरण करने से तुम अनंत जीवन पा सकते हो—यह बहुत कीमती है! अगर मैं गिरफ्तार होने के डर से परमेश्वर में विश्वास रखने की हिम्मत नहीं करती, तो मैं कभी भी अनंत जीवन नहीं पाऊँगी। चाहे कुछ भी हो जाए, मैं परमेश्वर में विश्वास रखना नहीं छोड़ सकती। लेकिन मेरे पति ने जोर दिया कि वह मुझे विश्वास नहीं रखने देगा। मैं मन ही मन चिंतित हो गई, “हमारी शादी को लगभग छह साल हो गए हैं, उसने हमेशा इस परिवार का ख्याल रखा है और मेरे प्रति विचारशील रहा है। हमने एक घर और एक गाड़ी खरीदने के लिए मिलकर कड़ी मेहनत की है। हम देख सकते हैं कि हमारा जीवन बेहतर से बेहतर होता जा रहा है। मेरे सभी सहकर्मी कहते हैं कि आखिरकार मेरा एक अच्छा परिवार है। मुझे यह भी लगता है कि यह परिवार ही इस जीवन में मेरी जगह है, मैं अपने दिल की गहराई से यह स्थिर और शांतिपूर्ण जीवन जीना पसंद करती हूँ। लेकिन अगर मेरा पति मुझे परमेश्वर में विश्वास न रखने देने पर अड़ा है, तो मुझे क्या करना चाहिए? क्या मैं अभी भी परमेश्वर का अनुसरण करना जारी रख सकती हूँ?” इन सवालों में उलझकर, मैं लगातार परमेश्वर से प्रार्थना करती रही, उससे मुझे रास्ता दिखाने की विनती करती रही।
एक सभा के दौरान, मैंने अपने भाई-बहनों को अपनी चिंताओं के बारे में बताया, उन्होंने मेरे साथ परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए खुद को बलिदान करना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा और तुम्हें और अधिक सत्य प्राप्त करने की खातिर और अधिक कष्ट सहना होगा। यही तुम्हें करना चाहिए। पारिवारिक सामंजस्य का आनंद लेने के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए और तुम्हें अस्थायी आनन्द के लिए जीवन भर की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है और तुम्हें जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तुम ऐसा साधारण और सांसारिक जीवन जीते हो और आगे बढ़ने के लिए तुम्हारा कोई लक्ष्य नहीं है तो क्या इससे तुम्हारा जीवन बर्बाद नहीं हो रहा है? ऐसे जीवन से तुम्हें क्या हासिल हो सकता है? तुम्हें एक सत्य के लिए देह के सभी सुखों का त्याग करना चाहिए, और थोड़े-से सुख के लिए सारे सत्यों का त्याग नहीं कर देना चाहिए। ऐसे लोगों में कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होता!” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, मेरे दिल में धीरे-धीरे ताकत आ गई। मैं परमेश्वर के अनुग्रह से उसके सामने आई, परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए इन सभी सत्यों को देखने के बाद, यह उचित है कि मैं इनका अच्छी तरह से अनुसरण करूँ। भले ही इसका मतलब कष्ट सहना हो, यह सार्थक है। भले ही एक सामंजस्यपूर्ण परिवार मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन सत्य का अनुसरण करना सबसे सार्थक बात है। परमेश्वर के वचन पढ़ने से पहले, मुझे नहीं पता था कि मैं कहाँ से आई हूँ या मैं किस लिए जी रही हूँ। मुझे नहीं पता था कि यह दुनिया इतनी दुष्ट और अंधकारमय क्यों है, मैं हर दिन अंधेरे में जीती थी, मुश्किल से अपने दिन गुजारती थी। जीवन बहुत दर्दनाक था! अब बड़ी मुश्किल से मैं सच्चा मार्ग खोजने और प्रकाश देखने में कामयाब हुई हूँ। मैंने परमेश्वर के वचनों से जीवन के कई रहस्य समझे हैं और जीने का मूल्य पाया है। अगर मैं एक सामंजस्यपूर्ण परिवार की खातिर सत्य को त्याग दूँ, तो क्या इस तरह जीना खाली और पूरी तरह से अर्थहीन नहीं होगा? मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े : “पति अपनी पत्नी से क्यों प्रेम करता है? पत्नी अपने पति से क्यों प्रेम करती है? बच्चे क्यों माता-पिता के प्रति कर्तव्यशील रहते हैं? और माता-पिता क्यों अपने बच्चों से अतिशय स्नेह करते हैं? लोग वास्तव में किस प्रकार की इच्छाएँ पालते हैं? क्या उनकी मंशा उनकी खुद की योजनाओं और स्वार्थी आकांक्षाओं को पूरा करने की नहीं है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे समझाया कि पति-पत्नी के बीच का प्यार निजी हितों की नींव पर बना होता है। मैंने सोचा—मेरा पति पहले मेरे प्रति अच्छा क्यों था? ऐसा इसलिए था क्योंकि मैं ठीक दिखती थी और मुझे पैसे का प्रबंधन करना पसंद नहीं था, जिससे परिवार का आर्थिक नियंत्रण उसके हाथ में था। मैं उसकी आदर्श पत्नी के मानकों पर काफी हद तक खरी उतरती थी, जिससे वह संतुष्ट था। लेकिन जब मैंने अपना विश्वास और जीवन का अनुसरण विकसित कर लिया, जिसे इस देश में बर्दाश्त नहीं किया जाता था, तो उसे लगने लगा कि मैं उसके लिए फायदेमंद नहीं हूँ और वह फिर कभी मेरे प्रति अच्छा नहीं होगा। इस बीच, मैं अपने पति को छोड़ने के लिए अनिच्छुक थी क्योंकि वह मेरे प्रति विचारशील था और मेरी देखभाल करता था, मुझे घर की कई बातों की चिंता नहीं करनी पड़ती थी। सभी लोग स्वार्थी होते हैं और पति-पत्नी भी एक-दूसरे का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में सच्चा प्रेम कहाँ हो सकता है? मैं इस थोड़ी सी वैवाहिक भावना के लिए परमेश्वर के उद्धार को नहीं छोड़ सकती। इसके बाद, मैंने सभाओं में शामिल होने और अपना कर्तव्य करने पर जोर देना जारी रखा।
जून 2013 में एक दिन, मैं सुसमाचार का प्रचार करके लौटने के बाद रात का खाना बना रही थी। जब मेरा पति घर आया, तो उसका चेहरा बहुत उतरा हुआ था, लेकिन मैंने उसे नजरअंदाज कर दिया। रात के खाने के बाद, मैं अपनी दोनों बेटियों को बाइबल की कहानियाँ सुनाने के लिए अपने कमरे में चली गई। वे खुशी-खुशी सुन रही थीं कि तभी मेरा पति अचानक दरवाजे पर खड़े होकर मुझे डाँटने लगा। मेरी बेटियाँ इतनी डर गईं कि उन्होंने एक शब्द भी कहने की हिम्मत नहीं की और मैंने जल्दी से उन्हें दिलासा देने के लिए कुछ कहा। अपनी बात खत्म करने के बाद, मैं टहलने के लिए बाहर चली गई। मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरा पति मेरा पीछा करेगा। जब हम अपनी इमारत से कुछ दूर एक कोने पर पहुँचे, तो उसने मेरी बाँह पकड़कर मुझे बगल की सीढ़ियों पर गिरा दिया। मेरी बाँह में तेज दर्द हुआ, मैं धीरे-धीरे उठी और एक शब्द भी कहे बिना घर की ओर चलने लगी। उसने फिर से मेरी बाँह पकड़कर हिंसक तरीके से खींचा, जिससे मैं फिर से जमीन पर गिर गई। उसने मेरी नाक की ओर इशारा किया और मुझे फटकारा, “तुम्हें परमेश्वर में विश्वास क्यों रखना है? कोई परमेश्वर कैसे हो सकता है? जब मैं तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार कर रहा हूँ तो तुम्हारा परमेश्वर कहाँ है? वह तुम्हारी रक्षा क्यों नहीं करता?” मुझे एहसास हुआ कि वह तर्क से परे है। मैंने मन ही मन सोचा, “तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते—तुम क्या जानते हो? तुम मुझे पीटकर मुझमें परमेश्वर के प्रति संदेह पैदा करना और उसे नकारने पर मजबूर करना चाहते हो। तुम्हारे इरादे सचमुच नीच हैं!” उसने फिर कहा, “मैं चाहे कुछ भी कहूँ, तुम सुनती ही नहीं—तुम जितना विश्वास रखती हो, उतनी ही जुनूनी होती जाती हो। अब तो तुम हर जगह सुसमाचार का प्रचार भी कर रही हो। हमारे जीजाजी ने कहा है, अगर तुम बात नहीं मानोगी, तो मैं तुम्हें बुरी तरह पीटूँगा। देखते हैं कि तुम कैसे सीधी नहीं होती! तो बताओ, तुम अभी भी विश्वास रखती हो या नहीं?” जब उसने देखा कि मैंने कुछ भी नहीं कहा, तो वह मेरे पीछे गया और मेरी पीठ के निचले हिस्से में लात मारी। मेरी पीठ के निचले हिस्से में इतना दर्द हुआ कि मेरा दिल दहल गया और मेरे आँसू तुरंत बहने लगे। लेकिन मेरे पति ने फिर भी बिल्कुल दया नहीं दिखाई। मुझे लात मारते हुए उसने कहा, “मैं तुम्हें कभी विश्वास नहीं रखने दूँगा! मैं तुम्हें तब तक लात मारूँगा जब तक तुम अपाहिज न हो जाओ! भले ही मुझे तुम्हारी देखभाल करनी पड़े, मैं तुम्हें किसी परमेश्वर में विश्वास नहीं रखने दूँगा!” जब मैंने उसे यह कहते सुना, तो मेरे दिल में सिहरन सी उठी। पहले, मुझे हमेशा लगता था कि मेरे पति की मानवता बहुत अच्छी है और वह हमेशा मेरे प्रति बहुत विचारशील रहा है। मुझे कभी उम्मीद नहीं थी कि वह सीसीपी की निराधार अफवाहों और भ्रांतियों पर विश्वास करेगा, मुझे परमेश्वर में विश्वास रखने से रोकने की कोशिश करेगा और यहाँ तक कि मुझे तब तक लात मारने की कोशिश करेगा जब तक मैं अपाहिज न हो जाऊँ! वह बहुत ही क्रूर था! इसके बाद उसने कहा, “अगर तुम घर पर अकेली रहती हो, तो तुम्हारे सभाओं में जाने की संभावना है। मैं तुम्हें बस दूर भेज दूँगा। तुम जैसे लोग मेरे अच्छे घर में रहने के भी लायक नहीं हैं। उठो!” बोलते-बोलते उसने मुझे घसीटकर उठाया, गाड़ी में ठूँसा और मेरी माँ के घर ले गया। मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरी माँ परमेश्वर में मेरे विश्वास का इतना समर्थन करेगी। मैंने उसे सुसमाचार सुनाया और उसने भी अंत के दिनों का परमेश्वर का कार्य स्वीकार लिया। लेकिन मेरा छोटा भाई लगातार मेरे पति की ओर से बोलता रहा। उसने मुझे मनाने की भी कोशिश की, “दीदी, इस दुनिया में कभी-कभी तुम बिल्कुल असहाय होती हो। तुम्हें और यथार्थवादी होने की जरूरत है। कुछ दिन यहाँ आराम करो और फिर घर वापस जाकर एक अच्छा जीवन जियो।” मेरे भाई की बातों ने मुझे गहरी सोच में डाल दिया, “इस दुनिया में तुम्हें सच में यथार्थवादी होना पड़ता है। मैं लगभग चालीस साल की हूँ। मैंने अपनी आधी जिंदगी संघर्ष करके आज का जीवन पाया है। परमेश्वर में मेरे विश्वास से जुड़ी बातों के अलावा हर चीज में मेरा पति मेरे प्रति बहुत अच्छा है। सिर्फ मेरे परमेश्वर में विश्वास के कारण ही वह एक अलग इंसान में बदल गया लगता है। जिस तरह से वह व्यवहार कर रहा है उसे देखते हुए, अगर मैं परमेश्वर में विश्वास रखना जारी रखती हूँ, तो बहुत मुमकिन है कि वह मुझे तलाक दे देगा। तब मैं इस परिवार को खो दूँगी जिस पर मैं अपने जीवन के लिए निर्भर हूँ। उसके बाद मैं अपनी जिंदगी का क्या करूँगी? क्या मुझे फिर से अकेले और असहाय होकर अपने बच्चों की देखभाल करने वाले जीवन में वापस जाना होगा?” मैं उस तरह का जीवन जीने से डरती थी, लेकिन परमेश्वर में अपना विश्वास भी नहीं छोड़ना चाहती थी। मैं दुविधा में पड़ गई। मैंने मन ही मन सोचा, “शायद मैं कुछ समय के लिए पीछे हट जाऊँ। क्या होगा अगर मैं सभाओं में न जाऊँ या अपना कर्तव्य न करूँ और कुछ समय के लिए घर पर ही छिपकर परमेश्वर के वचन पढ़ूँ? लेकिन यह काम नहीं करेगा। मुझे क्या करना चाहिए?”
उन कुछ दिनों के दौरान, मैंने लगातार परमेश्वर से प्रार्थना की और मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “तुम सृजित प्राणी हो—तुम्हें निस्संदेह परमेश्वर की आराधना और सार्थक जीवन का अनुसरण करना चाहिए। यदि तुम परमेश्वर की आराधना नहीं करते हो बल्कि अपनी अशुद्ध देह के भीतर रहते हो, तो क्या तुम बस मानव भेष में जानवर नहीं हो? चूँकि तुम मानव प्राणी हो, इसलिए तुम्हें स्वयं को परमेश्वर के लिए खपाना और सारे कष्ट सहने चाहिए! आज तुम्हें जो थोड़ा-सा कष्ट दिया जाता है, वह तुम्हें प्रसन्नतापूर्वक और दृढ़तापूर्वक स्वीकार करना चाहिए और अय्यूब तथा पतरस के समान सार्थक जीवन जीना चाहिए। इस संसार में, मनुष्य शैतान का भेष धारण करता है, शैतान का दिया भोजन खाता है, और शैतान के अँगूठे के नीचे कार्य और सेवा करता है, और गंदगी में पूरी तरह ढँक जाने तक उसके पैरो तले रौंदा जाता है। यदि तुम जीवन का अर्थ नहीं समझते हो या सच्चा मार्ग प्राप्त नहीं करते हो, तो इस तरह जीने का क्या महत्व है? तुम सब वे लोग हो, जो सही मार्ग का अनुसरण करते हो, जो सुधार की खोज करते हो। तुम सब वे लोग हो, जो बड़े लाल अजगर के देश में ऊपर उठते हो, जिन्हें परमेश्वर धार्मिक कहता है। क्या यह सबसे सार्थक जीवन नहीं है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (2))। परमेश्वर के वचनों पर विचार करने से मुझे शक्ति मिली। मुझे जीवन में कौन सा मार्ग चुनना चाहिए, इस बारे में मुझे स्पष्ट दिशा मिल गई। परमेश्वर में विश्वास रखना और उसकी आराधना करना पूरी तरह से स्वाभाविक और उचित है। यदि तुम एक सार्थक जीवन जीना चाहते हो, तो तुम्हें परमेश्वर के लिए खुद को खपाना होगा, किसी भी व्यक्ति, घटना या चीज से बाधित नहीं होना होगा और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए सभी कष्ट सहने होंगे। अय्यूब की तरह : उसकी संपत्ति और बच्चे चले गए थे, लेकिन उसने फिर भी परमेश्वर की आराधना की और परमेश्वर के नाम की स्तुति की। और फिर पतरस भी है : उसने प्रभु का अनुसरण करने के लिए सब कुछ छोड़ दिया और अपना पूरा जीवन प्रभु के लिए खपा दिया। अंत में उसने परमेश्वर से अत्यधिक प्रेम किया, मृत्यु तक परमेश्वर के प्रति समर्पित रहा और एक सार्थक जीवन जिया। कर वसूलने वाला मत्ती भी वैसा ही था। जैसे ही प्रभु यीशु ने बुलाया, उसने बिना किसी हिचकिचाहट के प्रभु का अनुसरण किया। परमेश्वर में उनकी आस्था सचमुच ईर्ष्या के लायक है! भले ही मैं परमेश्वर का अनुसरण करने को तैयार थी, फिर भी अपने परिवार को नहीं छोड़ सकती थी। मैं कष्ट सहने और सब कुछ पीछे छोड़ने को तैयार नहीं थी। उन संतों की तुलना में, मुझे सचमुच शर्मिंदगी महसूस हुई! अब जीवन का सही मार्ग मेरे सामने था। मैं अब और कमजोर नहीं हो सकती थी : मैं परमेश्वर का अनुसरण करने और सत्य और जीवन पाने का यह मौका बिल्कुल नहीं छोड़ सकती थी! उस समय, मुझे कलीसिया में अगुआ चुना गया था और मैं हर दिन अपना कर्तव्य निभाने में व्यस्त थी। कुछ ही समय बाद मेरा पति मुझे घर वापस ले आया। उस समय गर्मी की छुट्टियाँ थीं और इसलिए उसे काम पर नहीं जाना पड़ता था। वह हर दिन मुझ पर नजर बनाए रखता था। वह मुझे परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ने देता था, सभाओं में नहीं जाने देता था या अपना कर्तव्य नहीं करने देता था। हर दिन, मैं केवल उसके साथ घर का काम कर सकती थी और बच्चों की देखभाल कर सकती थी। परमेश्वर के वचनों का प्रावधान न मिलने पर मैं जल बिन मछली की तरह हो गई थी, मेरा दिल अत्यधिक दर्द और पीड़ा में था। एक दिन मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “विश्वासी और अविश्वासी आपस में मेल नहीं खाते हैं, बल्कि वे एक दूसरे के विरोधी हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। यह सचमुच ऐसा ही है। मेरा पति परमेश्वर में विश्वास नहीं रखता था और उसने मुझे विश्वास रखने से दृढ़ता से मना कर दिया। हर दिन वह मुझ पर ऐसे नजर रखता था जैसे किसी कैदी की रखवाली कर रहा हो। वह पति नहीं था—वह साफ तौर पर मेरा दुश्मन था! जब मैं सचमुच और बर्दाश्त नहीं कर सकी, तो मैंने उससे कहा, “तुमने मुझे सिर्फ पीटा ही नहीं है, तुम मुझे कोई आजादी भी नहीं देते। मैं अब और ऐसे नहीं जी सकती। चलो बस तलाक ले लेते हैं और अपने-अपने रास्ते चले जाते हैं। इस तरह हम दोनों के लिए आसान होगा।” लेकिन उसने कहा, “तुम्हें मारना मेरी गलती थी। मैं माफी माँगता हूँ। तुम जैसे भी चाहो मैं तुम्हारी भरपाई कर दूँगा, सब ठीक है। बस एक ही बात है, हम तलाक नहीं ले सकते। तुम एक अच्छी इंसान हो। हमें यह परिवार बहुत मुश्किल से मिला है। हम तलाक क्यों लेंगे? मैं तुम्हारी भलाई के लिए ही तुम पर नजर रख रहा हूँ। कुछ समय बाद, तुम परमेश्वर में विश्वास रखने की बात भूल जाओगी और सब ठीक हो जाएगा। अगर तुम्हें घुटन महसूस हो रही है, तो मैं तुम्हें बाहर घुमाने क्यों न ले चलूँ?” जब मैंने उसे यह कहते सुना, मैं जान गई कि वह मुझे यहाँ रोके रखने और धीरे-धीरे मुझे परमेश्वर से दूर ले जाने के लिए नरम तरीका अपना रहा है। मुझे नहीं पता था कि क्या करूँ। मैं परमेश्वर में विश्वास जारी रखना चाहती थी, लेकिन इस परिवार और अपने पति को छोड़ने के लिए अनिच्छुक थी। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे विनती की कि वह मेरे दिल को किसी भी समय उससे दूर न जाने दे, मैंने उससे मेरे लिए एक रास्ता खोलने की विनती की, ताकि मैं कलीसिया में लौटकर अपना कर्तव्य निभा सकूँ।
एक दिन, सभा का समय था। मैंने चतुराई से अपने पति से कहा कि हमें साइकिल चलाने के लिए बाहर चलना चाहिए। मैंने उसे साइकिल चलाने को कहा, जबकि मैं इलेक्ट्रिक स्कूटर पर सवार हुई। वह मान गया। जब हम आधे रास्ते पर थे, तो मैंने गति बढ़ा दी और उसे बहुत पीछे छोड़ दिया। सभा स्थल पर पहुँचने से पहले मैंने कई चक्कर भी लगाए। आखिरकार, इतनी मुश्किल के बाद, मैं एक सभा में शामिल होने में कामयाब रही। जब मैं शाम को घर लौटी, तो मेरा पति बहुत गुस्से में था। उसने कहा, “तुम और भी साहसी होती जा रही हो। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे पीछे छोड़कर सभा में जाने की। अगर तुममें हिम्मत है, तो वापस मत आना!” मैंने कहा, “क्या तुमने मेरे लिए कोई और विकल्प छोड़ा था? मेरे पास बिल्कुल भी आजादी नहीं है। तुम मुझ पर ऐसे नजर रखते हो जैसे मैं कोई कैदी हूँ। अगर तुम ऐसे ही करते रहे, तो हम दोनों का साथ में कोई भविष्य नहीं है।” अप्रत्याशित रूप से, इसके बाद वह मुझ पर पहले से भी ज्यादा सख्ती से नजर रखने लगा। जब स्कूल शुरू हुआ, तो उसने मुझे अपने साथ काम पर जाने के लिए मजबूर किया, सप्ताहांत में, जब तक वह ओवरटाइम काम नहीं करता, वह हर कदम पर मेरा पीछा करता। मैं सभाओं में शामिल नहीं हो सकती थी या अपना कर्तव्य नहीं निभा सकती थी, मुझे लगा जैसे मैं नरक में जी रही हूँ। मैं अपने आँसू बहने से नहीं रोक सकी और खुद से पूछे बिना नहीं रह सकी : यह कैसी दुनिया है? लोगों को परमेश्वर में विश्वास रखने और सही मार्ग पर चलने की अनुमति क्यों नहीं है? बाद में मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “इस तरह के अंधकारपूर्ण समाज में, जहाँ राक्षस बेरहम और अमानवीय हैं, पलक झपकते ही लोगों को मार डालने वाला शैतानों का सरदार, ऐसे मनोहर, दयालु और पवित्र परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकता है? वह परमेश्वर के आगमन की सराहना और जय-जयकार कैसे कर सकता है? ये अनुचर! ये दया के बदले घृणा देते हैं, लंबे समय पहले ही ये परमेश्वर से शत्रु की तरह पेश आने लगे थे, ये परमेश्वर को अपशब्द बोलते हैं, ये बेहद बर्बर हैं, इनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं है, ये हमला करते हैं और लूटते हैं, इनका विवेक मर चुका है, ये अंतश्चेतना के विरुद्ध कार्य करते हैं, और लालच देकर निर्दोषों को गहन अचेतावस्था में पहुँचा देते हैं। प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुआ? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज को अँधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब बुराई को छिपाने की चालें हैं!” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। परमेश्वर के वचनों ने मुझे मेरे सपने से जगा दिया, मुझे सीसीपी के परमेश्वर-प्रतिरोधी दुष्ट सार को और भी स्पष्ट रूप से देखने में मदद की। मैंने इतने सालों तक कम्युनिस्ट पार्टी की शिक्षा प्राप्त की थी और हमेशा पार्टी की बहुत प्रशंसा की थी। समाज में दुष्टता और अंधकार देखने के बाद भी, मुझे विश्वास नहीं हुआ कि यह पार्टी के शासन के कारण है। मेरा मानना था कि भले ही सीसीपी की तानाशाही में कुछ समस्याएँ हैं, लेकिन मूल रूप से यह काफी बुद्धिमानीपूर्ण है। अब मैं समझी कि सीसीपी एक नास्तिक पार्टी है। यह दुनिया को धोखा देकर जीती गई चोरी की प्रतिष्ठा का आनंद लेती है, संविधान में झूठा प्रावधान करती है कि चीनी नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता है, लेकिन वास्तव में यह चीनी लोगों को परमेश्वर में विश्वास रखने की अनुमति नहीं देती है। यह न केवल चीनी लोगों को धोखा देती है, बल्कि पूरी दुनिया को धोखा देती है। अपने तानाशाही शासन को बनाए रखने के लिए, यह ऑनलाइन मीडिया में बेतहाशा सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को बदनाम करने वाली निराधार अफवाहें फैलाती है और ईसाइयों को अंधाधुंध गिरफ्तार करने के लिए विभिन्न साधनों का उपयोग करती है। इसके परिणामस्वरूप मेरा पति गुमराह हो गया और उसने मुझे विभिन्न तरीकों से रोका और सताया। इन सब में कम्युनिस्ट पार्टी का काला हाथ नुकसान पहुँचाता रहा है। यह न केवल नहीं चाहती कि लोग परमेश्वर में विश्वास करें और बचाए जाएँ, बल्कि यह चाहती है कि लोग उसके पीछे नरक में जाएँ और दंडित हों। यही इसका दुष्ट उद्देश्य है। अगर मैं परमेश्वर के सामने नहीं आई होती, तो मैं कभी भी इसके असली रंग को स्पष्ट रूप से नहीं देख पाती।
बाद में मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े : “‘प्रेम’, जैसा कि कहा जाता है, ऐसे स्नेह को कहते हैं जो शुद्ध और निष्कलंक है, जहाँ तुम अपने हृदय का उपयोग प्रेम करने, महसूस करने और विचारशील होने के लिए करते हो। प्रेम में कोई शर्त, कोई बाधा और कोई दूरी नहीं होती। प्रेम में कोई संदेह, कोई कपट और कोई चालाकी नहीं होती। प्रेम में कोई व्यापार या मिलावट नहीं होती। यदि तुम प्रेम करते हो, तो तुम धोखा नहीं दोगे, शिकायत, विश्वासघात, विद्रोह नहीं करोगे, कुछ माँग रखने, कुछ पाने या एक निश्चित मात्रा पाने की कोशिश नहीं करोगे। यदि तुम प्रेम करते हो, तो खुशी-खुशी खुद को समर्पित करोगे, खुशी-खुशी कष्ट सहोगे, मेरे अनुरूप हो जाओगे, मेरे लिए अपना सर्वस्व त्याग दोगे, तुम अपना परिवार, अपना भविष्य, अपनी जवानी और अपना विवाह छोड़ दोगे। वरना तुम लोगों का प्रेम, प्रेम बिल्कुल नहीं होगा, बल्कि कपट और विश्वासघात होगा!” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बुलाए बहुत जाते हैं लेकिन चुने कुछ ही जाते हैं)। परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिल को गहराई से छू लिया। इस प्रकार का प्रेम, शुद्ध और निष्कलंक है, लोगों के लिए बहुत आकर्षक है और इसने मुझे विशेष रूप से शर्मिंदा भी महसूस कराया। मैंने सोचा कि कैसे अनुग्रह के युग में, परमेश्वर ने देहधारण किया और स्वर्ग से पृथ्वी पर आया, हमारी खातिर सूली पर चढ़ाया गया और मानवजाति को छुटकारा दिलाने के लिए अपने कीमती लहू की हर एक बूँद बहा दी। अंत के दिनों में, परमेश्वर ने एक बार फिर देहधारण किया है और मानवजाति के उद्धार के लिए आवश्यक सत्य प्रदान करने पृथ्वी पर आया है। उसे न केवल बड़े लाल अजगर द्वारा पीछा किए जाने और उसके अत्याचार को सहना पड़ा है, बल्कि उसने धार्मिक दुनिया की निंदा और ईशनिंदा को भी सहा है, उसे हम विश्वासियों के विद्रोहीपन और गलतफहमियों को भी सहना पड़ता है। परमेश्वर चुपचाप सत्य व्यक्त करके लोगों का भरण-पोषण करता है और उनका मार्गदर्शन करता है, वह उस समय की प्रतीक्षा करता है जब लोगों का जमीर जागेगा। परमेश्वर का प्रेम कितना वास्तविक है! परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह मानवजाति की खातिर है! आज परमेश्वर ने मुझे अगुआ बनने का अवसर दिया है और मुझे परमेश्वर के प्रेम का मूल्य चुकाने के लिए अपना कर्तव्य पूरा करना होगा।
बाद में मेरे पति ने देखा कि वह मुझे नहीं रोक सकता, तो उसने कहा, “अब मेरी समझ में आ गया है। कोई भी तुम्हें परमेश्वर में विश्वास रखने से नहीं रोक सकता। उस स्थिति में, तुम बस आगे बढ़ो और विश्वास रखो। मुझे अब कोई परवाह नहीं है। लेकिन तुम केवल घर पर ही विश्वास रख सकती हो—तुम बाहर नहीं जा सकती और तुम दूसरे लोगों को हमारे घर नहीं आने दे सकती। अगर तुम मानती हो, तो हम एक साथ रहना जारी रख सकते हैं, लेकिन अगर तुम नहीं मानती, तो हमें तलाक लेना होगा।” जब मैंने उसकी बात सुनी, तो मुझे एहसास हुआ कि वह अभी भी मुझे बाहर नहीं जाने देगा। मैं जानती थी कि वह बस मुझे अस्थायी रूप से स्थिर करने की कोशिश कर रहा है, फिर धीरे-धीरे कलीसिया और भाई-बहनों से मेरा रिश्ता तुड़वा देगा, ताकि अंत में मैं विश्वास रखना जारी न रख सकूँ। मैं उसके जाल में नहीं फँस सकती थी। तो मैंने दृढ़ता से कहा, “अगर तुम सच में मेरे परमेश्वर में विश्वास रखने से सहमत हो, तो मुझे अपने भाई-बहनों के साथ मेलजोल रखने से मत रोको और मुझे सभाओं में जाने या अपना कर्तव्य करने से मत रोको। मैं कैसे विश्वास रखती हूँ यह तुम पर निर्भर नहीं है।” उसने चिंता से कहा, “अगर तुम अपने तरीके से विश्वास रखोगी, तो देर-सबेर तुम्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। एक बार जब तुम गिरफ्तार हो गई, तो मैं भी फँस जाऊँगा और मेरा कोई भविष्य नहीं रहेगा। अगर तुम ऐसी ही रहना चाहती हो, तो हमें तलाक लेना होगा!” उसने अपने मन की सारी बातें कह दीं। मैं एक पल के लिए हक्की-बक्की रह गई। उसे मेरे गिरफ्तार होने और उसके परिणामस्वरूप कष्ट सहने की चिंता नहीं थी। उसे चिंता थी कि उसका अपना भविष्य प्रभावित हो सकता है। ऐसा होने पर, मैंने उसके फैसले का सम्मान किया। मैंने कहा, “ठीक है। मैं तलाक के लिए सहमत हूँ। कब चलें?” वह भी दंग रह गया और मुझसे पूछा, “क्या तुमने इस बारे में सोच लिया है? तुम्हें भविष्य में सच में पछतावा नहीं होगा?” मैंने कहा, “हर कोई अपनी पसंद बना सकता है और हर किसी का अपना रास्ता होता है। मुझे इसका पछतावा नहीं होगा!” बस इसी तरह हम तलाक की कार्यवाही से गुजरे। जब हम नागरिक मामलों के ब्यूरो से निकले और वापस कार में बैठे, तो मुझे लगा जैसे कोई भारी बोझ उतर गया हो। लेकिन उसने रोते हुए कहा, “यह तलाक मेरे जीवन की सबसे दुखद घटना रही है। मैं सच में तुमसे तलाक नहीं लेना चाहता था, लेकिन तुमने परमेश्वर में विश्वास रखने का रास्ता चुना, इसलिए मेरे पास कोई विकल्प नहीं था।” मैंने उसके चेहरे पर आँसुओं की दो लकीरें देखीं और चुपचाप आह भरी। मैंने मन ही मन सोचा, “तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते, इसलिए तुम नहीं समझते। यह सब कम्युनिस्ट पार्टी के कारण हुआ। यह परमेश्वर का प्रतिरोध करती है, परमेश्वर का अनुसरण करने वालों पर अत्याचार करती है और निराधार अफवाहें फैलाती है, लोगों को परमेश्वर का अनुसरण करने से रोकने के लिए परिवार के सदस्यों का उपयोग करती है। तुम कम्युनिस्ट पार्टी की दुष्टता की असलियत को नहीं समझते, कम्युनिस्ट पार्टी की व्यवस्था में एक अधिकारी के रूप में काम करने और अपने करियर को आगे बढ़ाने का विकल्प चुनने पर जोर देते हो। हम एक साथ कैसे चल सकते थे?” गाड़ी आगे बढ़ती रही, लेकिन मैं जानती थी कि हम अंततः अलग हो जाएँगे और अलग-अलग दिशाओं में जाएँगे।
तब से मैं आखिरकार बिना किसी बाधा के, स्वतंत्र रूप से परमेश्वर में विश्वास रखने और अपना कर्तव्य निभाने में सक्षम हुई। मैं परमेश्वर की अगुआई के लिए बहुत आभारी हूँ कि उसने मुझे कदम-दर-कदम विवाह और परिवार के जाल से मुक्त होने में मदद की।