42. मैंने अपनी ईर्ष्या का समाधान कैसे किया

सोंगयी, चीन

अक्टूबर 2019 में, मैं फोटोग्राफी के काम में मो हान का सहयोग कर रही थी। चूँकि मैंने पहले फोटोग्राफी सीखी थी, इसलिए मेरे शूट किए गए मानक स्तर के शॉट्स की संख्या उसकी तुलना में बहुत ज्यादा थी। मैंने सोचा, “लगता है फोटोग्राफी में मुझमें कुछ प्रतिभा है, शुरू करते ही मैं इतनी सारी इस्तेमाल करने लायक सामग्री तैयार कर सकती हूँ। पर्यवेक्षक निश्चित रूप से सोचेगी कि मैं फोटोग्राफी की एक दुर्लभ प्रतिभा हूँ।” मैं मन-ही-मन खुश हुई और मैंने मो हान को नीची नजर से भी देखा, सोचने लगी, “तुम तो पहले फोटोग्राफी एसोसिएशन का हिस्सा भी रह चुकी हो, फिर भी तुम्हारा हुनर उतना प्रभावशाली नहीं है!” बाद में एक सभा के दौरान पर्यवेक्षक ने मेरे हुनर और अपने कर्तव्यों के प्रति मेरे समर्पण की प्रशंसा की और मो हान से मुझसे और सीखने को कहा। यह सुनकर मेरा दिल बाग-बाग हो गया। उसके बाद, मैंने अपने कर्तव्यों में और भी अधिक मेहनत की। कभी-कभी दोपहर में मैं चिलचिलाती धूप सहती और सरकंडों के खेतों में अकेली ही तस्वीरें खींचती थी। एक बार अस्वस्थ महसूस करने के बावजूद मैंने भारी बारिश में भी शूटिंग जारी रखी। मैंने सोचा कि जब तक मैं और अच्छी तस्वीरें लेती रहूँगी, हर कोई मुझे और भी ऊँची नजर से देखेगा और इसके लिए यह कष्ट सहना सार्थक था। कुछ समय बाद यह स्पष्ट हो गया कि पर्यवेक्षक मुझे बहुत महत्व देती है और हर तकनीकी चर्चा के दौरान, मुझसे हमेशा अपने शूटिंग अनुभवों के बारे में बात करने के लिए कहा जाता था। प्रशिक्षण सत्रों के दौरान भी, मुझसे सबसे पहले विश्लेषण करने और सारांश तैयार करने के लिए कहा जाता था। पर्यवेक्षक को मुझे इतना महत्व देते देख, मुझे और भी अधिक प्रतिभाशाली व्यक्ति जैसा महसूस हुआ।

एक शाम, पर्यवेक्षक हमारी टीम में आई और कहा कि हमें काम का प्रबंधन करने के लिए एक टीम अगुआ चुनने की जरूरत है। सिद्धांतों पर संगति करने के बाद, मो हान और एक अन्य बहन ने टीम अगुआ के रूप में मेरे नाम की सिफारिश की। मैं मन-ही-मन खुश हुई, सोचने लगी, “आखिरकार मेरे कर्तव्य में किए गए प्रयास व्यर्थ नहीं गए। सबने ध्यान दिया है।” लेकिन ऊपर से, मैंने विनम्रता का दिखावा करते हुए कहा, “ओह, मैं नहीं कर सकती। भले ही मैं तकनीकी मामलों में काफी अच्छी हूँ, लेकिन मुझमें जीवन प्रवेश की कमी है। मैं टीम अगुआ की जिम्मेदारियाँ नहीं निभा सकती।” बाद में, पर्यवेक्षक ने एक व्यापक मूल्यांकन किया और मो हान को टीम अगुआ के रूप में चुना। मैंने सोचा कि कैसे मो हान अपने काम में स्थिर है, कुछ सिद्धांतों पर पकड़ बना सकती है और उसका जीवन प्रवेश भी बेहतर है। मैंने कम समय से परमेश्वर में विश्वास किया था और केवल तकनीकी मामलों में ही बेहतर थी, फिलहाल, मैं वास्तव में एक ही कार्य के लिए अधिक उपयुक्त हूँ। लेकिन यह परिणाम देखकर मुझे अभी भी बहुत उलझन और नुकसान की तीव्र भावना महसूस हुई। मैंने पूरा दिन विचलित मनोदशा में बिताया और कुछ भी करने के लिए खुद को प्रेरित नहीं कर पाई। भले ही मैं जानती थी कि मो हान टीम अगुआ के लिए सही चुनाव है, फिर भी मैं परेशान थी, मैं सोचने लगी, “क्या पर्यवेक्षक को लगता है कि मैं सत्य नहीं समझती, मेरा कोई जीवन प्रवेश नहीं है, मैं सिर्फ एक श्रमिक हूँ जो केवल काम करती है और इसलिए वह मुझे विकसित करने की योजना नहीं बना रही है?” बाद में, जब पर्यवेक्षक हमारे साथ सभा करने आई, तो मैंने उसे देखना शुरू कर दिया, यह सोचते हुए कि वह मुझ पर ज्यादा ध्यान देती है या मो हान पर। मैंने देखा कि कभी-कभी पर्यवेक्षक मो हान की दशा के बारे में विस्तार से पूछती थी और कुछ बार पर्यवेक्षक ने उसके साथ अकेले में संगति भी की। इससे मेरे विचारों की और भी पुष्टि हो गई और मुझे लगा कि पर्यवेक्षक मो हान को अधिक महत्व देती है। मैं बहुत हताश और परेशान महसूस करने लगी और यहाँ तक कि मुझे मो हान से द्वेष होने लगा। एक बार, पर्यवेक्षक ने कहा कि मो हान ने शॉट्स लेने में सुधार किया है और उसे अपना शूटिंग का अनुभव साझा करने के लिए कहा। इससे मुझे मो हान से और भी ज्यादा ईर्ष्या होने लगी और मुझे लगा कि उसने मेरी सारी चमक चुरा ली है। उसके बाद, मुझे मो हान के साथ बहुत अजीब लगने लगा और कभी-कभी तो मुझे उसकी बातें सुनकर भी चिढ़ होती थी, मैं जान-बूझकर उसका खंडन करने और उसका विरोध करने की इच्छा महसूस करती थी। मेरा यह रवैया देखकर मो हान बेबस महसूस करने लगी, उसने एक बार मुझसे कहा था कि मेरे लगातार उससे बहस करने और उसका विरोध करने से उसे बहुत दुख होता है और उसे मेरे साथ बातचीत करना थकाऊ लगता है। मैं जानती थी कि उससे इस तरह ईर्ष्या करना गलत है, लेकिन मैं खुद पर काबू नहीं रख पा रही थी। पहले जब भी मुझे अच्छे वीडियो ट्यूटोरियल मिलते थे, तो मैं उन्हें मो हान को सुझाती थी और अगर मुझे उसके शूट किए गए शॉट्स में कोई समस्या दिखती, तो मैं उसकी मदद करने के लिए उसे बता देती थी। लेकिन जब से मुझे लगा कि पर्यवेक्षक उसे अधिक महत्व देती है, तब से मैं तकनीकी मामलों में उसकी मदद नहीं करना चाहती थी। कभी-कभी मैं उसके मुँह पर ही उसका मजाक उड़ाती थी, कहती थी कि उसकी रचनाएँ कमजोर हैं और उनमें सुंदरता की कमी है। ऐसा कुछ बार होने के बाद, मो हान को शक होने लगा कि क्या उसकी काबिलियत इस कर्तव्य के उपयुक्त होने के लिए पर्याप्त रूप से अच्छी है। जब मैंने देखा कि मेरे तानों ने उसका आत्मविश्वास तोड़ दिया है, तो मुझे बुरा नहीं लगा, बल्कि मैं कुछ हद तक खुश हुई, यह सोचते हुए कि अगर वह नकारात्मक हो गई, तो पर्यवेक्षक उसे अक्षम समझकर शायद फिर से मुझे महत्व देना शुरू कर देगी। एक बार हमें जल्दी से कुछ शॉट्स लेने थे और मो हान को दिन भर लोकेशन खोजने में मेहनत करते देख मुझे चिढ़ हो रही थी। मुझे डर था कि उसे कुछ बेहतरीन लोकेशन मिल जाएँगी और वह कुछ ऐसे शॉट्स ले लेगी जो स्वीकार कर लिए जाएँगे, ऐसे में पर्यवेक्षक उसे और भी अधिक महत्व देगी। इसलिए मैंने उसके उत्साह को कम करने की कोशिश की, यह कहते हुए कि वह केवल लोगों की प्रशंसा पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है, वह केवल प्रतिष्ठा और रुतबे की खातिर यह सब कर रही है। मेरी यह बात सुनकर, मो हान अपने कर्तव्य में बेबस महसूस करने लगी। एक और बार, मैंने देखा कि पर्यवेक्षक मो हान की दशा को हल करने के लिए लगातार संगति कर रही है और मुझे ईर्ष्या हुई। जब संगति करने की मेरी बारी आई, तो मैंने खुद को जानने का दिखावा करते हुए जान-बूझकर पर्यवेक्षक के सामने कहा, “मैं मो हान से बहुत ज्यादा उम्मीदें रखती हूँ। मुझे बस लगा कि चूँकि वह इतने सालों से परमेश्वर में विश्वास रखती आई है, इसलिए उसके अंदर सत्य वास्तविकताएँ होनी चाहिए, इसलिए मैं चाहती थी कि वह मेरे जीवन प्रवेश में मेरी मदद करे। लेकिन जब उसने मेरी मदद नहीं की, तो मैं उसे नीची नजर से देखने लगी।” मैंने यह भी बताया कि कैसे पहले मिले दूसरे भाई-बहन मेरी मदद करते थे। यह कहने के बाद मुझे अपराध-बोध हुआ। पर्यवेक्षक ने मो हान से पूछा कि वह क्या सोचती है। मो हान ने कहा, “उसकी बातें सुनकर मुझे बहुत दुख हो रहा है। मुझे लगता है कि इतने सालों तक परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद भले ही मैं कुछ धर्म-सिद्धांत समझती हूँ, लेकिन मेरे पास ज्यादा सत्य वास्तविकता या उसके लिए प्यार नहीं है।” यह देखकर कि बहन अभी भी इन बातों को परमेश्वर से आया मानकर स्वीकार सकती है और आत्म-चिंतन कर सकती है, मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई और मेरी इच्छा हुई कि धरती फट जाए और मैं उसमें समा जाऊँ। इस घटना के बाद मैंने आत्म-चिंतन करना शुरू कर दिया, मुझे एहसास हुआ कि मैं प्रतिष्ठा और रुतबे की खातिर मो हान को दबा रही थी और नीचा दिखा रही थी। बाद में, मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े जो यह उजागर करते हैं कि कैसे मसीह-विरोधी रुतबे की खातिर असंतुष्टों को दबाते और बाहर निकालते हैं और इससे मुझे अपनी प्रकट की हुई भ्रष्टता के बारे में कुछ समझ मिली।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों का सार्वजनिक दमन, लोगों को अलग करना, लोगों के विरुद्ध हमले और लोगों की समस्याएँ उजागर करना, सब निशाना बनाने के लिए होते हैं। निस्संदेह, वे ऐसे साधनों का उपयोग उन लोगों को निशाना बनाने के लिए करते हैं, जो सत्य का अनुसरण करते हैं और उनका भेद पहचान सकते हैं। इन लोगों को तोड़कर वे अपनी स्थिति मजबूत करने का लक्ष्य हासिल करते हैं। इस तरह से लोगों पर आक्रमण करना और उन्हें अलग करना एक दुर्भावनापूर्ण प्रकृति का कार्य है। उनकी भाषा और बोलने के तरीके में आक्रामकता होती है : उजागर करना, निंदा करना, बदनामी करना और दुष्टतापूर्वक चरित्रहनन करना। यहाँ तक कि वे तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं, सकारात्मक चीजों के बारे में ऐसे बोलते हैं, मानो वे नकारात्मक हों और नकारात्मक चीजों के बारे में ऐसे, मानो वे सकारात्मक हों। इस तरह काले और सफेद को उलटना और सही और गलत को मिश्रित करना मसीह-विरोधियों का लोगों को हराने और उनका नाम खराब करने का लक्ष्य पूरा करता है। कौन सी मानसिकता विरोधियों पर इस आक्रमण और उन्हें अलग करने को जन्म दे रही है? ज्यादातर समय यह ईर्ष्यालु मानसिकता से आता है। शातिर स्वभाव में ईर्ष्या के साथ तीव्र घृणा रहती है; और अपनी ईर्ष्या के परिणामस्वरूप मसीह-विरोधी लोगों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें अलग कर देते हैं। इस तरह की स्थिति में अगर मसीह-विरोधियों को उजागर किया जाता है, उनकी रिपोर्ट की जाती है और वे अपना रुतबा खो देते हैं और उन्हें झटका लगता है, तो वे उद्दंड और असंतुष्ट हो जाएँगे और उनके लिए घोर प्रतिशोधी बनना और भी आसान हो जाएगा। प्रतिशोध की भावना एक प्रकार की मानसिकता है, और वह एक तरह का भ्रष्ट स्वभाव भी है। जब मसीह-विरोधी देखते हैं कि किसी ने जो किया है, वह उनके लिए नुकसानदेह है, कि दूसरे उनसे ज्यादा सक्षम हैं, या किसी के कथन और सुझाव उनसे बेहतर या समझदारीपूर्ण हैं, और हर कोई उस व्यक्ति के कथनों और सुझावों से सहमत है, तो मसीह-विरोधी महसूस करते हैं कि उनका पद खतरे में है, उनके दिलों में ईर्ष्या और घृणा पैदा हो जाती है, और वे आक्रमण कर बदला लेते हैं। बदला लेते समय मसीह-विरोधी आम तौर पर अपने लक्ष्य पर पूर्वनिर्धारित वार करते हैं। वे तब तक लोगों पर आक्रमण करने और उन्हें तोड़ने में सक्रिय रहते हैं, जब तक दूसरा पक्ष समर्पण नहीं कर देता। तब जाकर उन्हें लगता है कि उनकी भड़ास निकल गई। लोगों पर आक्रमण और उन्हें अलग करने की और क्या अभिव्यक्तियाँ होती हैं? (दूसरों को नीचा दिखाना।) दूसरों को नीचा दिखाना इसे अभिव्यक्त करने के तरीकों में से एक है; चाहे तुम कितना भी अच्छा काम करो, मसीह-विरोधी फिर भी तुम्हें नीचा दिखाएँगे या तुम्हारी निंदा करेंगे, जब तक कि तुम नकारात्मक, कमजोर और खड़े होने में अक्षम नहीं हो जाते। तब वे प्रसन्न होंगे, और उन्होंने अपना लक्ष्य पूरा कर लिया होगा(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद दो : वे विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें अलग कर देते हैं)। “जब वे किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो उनसे बेहतर है तो वह उन्हें नीचे गिराने की कोशिश करता है, उनके बारे में निराधार अफवाहें गढ़ता है या उन्हें बदनाम करने और उनकी प्रतिष्ठा कम करने के लिए कुछ घिनौने तरीके इस्तेमाल करता है—यहाँ तक कि उन्हें रौंदता है—ताकि लोगों के मन में अपनी जगह की रक्षा कर सके। यह किस तरह का स्वभाव है? यह केवल अहंकार और दंभ नहीं है, यह शैतान का स्वभाव है, यह दुर्भावनापूर्ण स्वभाव है। यह व्यक्ति अपने से बेहतर और मजबूत लोगों पर हमला कर सकता है और उन्हें अलग-थलग कर सकता है, यह कपटपूर्ण और दुष्ट है। वह लोगों को नीचे गिराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगा, यह दिखाता है कि उसके अंदर का दानव काफी बड़ा है! शैतान के स्वभाव के अनुसार जीते हुए वह लोगों को कमतर दिखा सकता है, उन्हें फँसाने की कोशिश कर सकता है और उन्हें सता सकता है। क्या यह कुकृत्य नहीं है? और इस तरह जीते हुए वह अभी भी सोचता है कि वह ठीक है, एक अच्छा इंसान है—फिर भी जब वह अपने से बेहतर किसी व्यक्ति को देखता है तो उसे सता सकता है, उसे पूरी तरह कुचल सकता है। यहाँ मुद्दा क्या है? जो लोग ऐसे बुरे कर्म कर सकते हैं, क्या वे अनैतिक और स्वेच्छाचारी नहीं हैं? ऐसे लोग केवल अपने हितों के बारे में सोचते हैं, वे केवल अपनी भावनाओं का खयाल करते हैं, और वे केवल अपनी इच्छाओं, महत्वाकांक्षाओं और अपने लक्ष्यों को पाना चाहते हैं। वे इस बात की परवाह नहीं करते कि वे कलीसिया के कार्य को कितना नुकसान पहुँचाते हैं, और वे अपनी प्रतिष्ठा और लोगों के मन में अपने रुतबे की रक्षा के लिए परमेश्वर के घर के हितों का बलिदान करना पसंद करेंगे। क्या ऐसे लोग अभिमानी और आत्मतुष्ट, स्वार्थी और नीच नहीं होते? ऐसे लोग अभिमानी और आत्मतुष्ट ही नहीं, बल्कि बेहद स्वार्थी और नीच भी होते हैं। वे परमेश्वर के इरादों को लेकर बिल्कुल विचारशील नहीं हैं। क्या ऐसे लोगों में परमेश्वर का भय मानने वाला दिल होता है? उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल बिल्कुल नहीं होता। यही कारण है कि वे मनमाने ढंग से कार्य करते हैं और वही करते हैं जो करना चाहते हैं, उन्हें कोई अपराध-बोध नहीं होता, कोई घबराहट नहीं होती, कोई भी भय या चिंता नहीं होती और वे परिणामों पर भी विचार नहीं करते। यही वे अकसर करते हैं, और इसी तरह उन्‍होंने हमेशा आचरण किया है। इस तरह के आचरण की प्रकृति क्या है? हल्‍के-फुल्‍के ढंग से कहें, तो इस तरह के लोग बहुत अधिक ईर्ष्‍यालु होते हैं और उनमें अपनी निजी प्रतिष्ठा और रुतबे की बहुत प्रबल आकांक्षा होती है; वे बहुत धोखेबाज और धूर्त होते हैं। और अधिक कठोर ढंग से कहें, तो समस्‍या का सार यह है कि इस तरह के लोगों में परमेश्वर का भय मानने वाला दिल बिल्कुल नहीं होता। उन्हें परमेश्वर से नहीं डरते, वे अपने आपको सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानते हैं और वे अपने हर पहलू को परमेश्वर से भी ऊँचा और सत्य से भी बड़ा मानते हैं। उनके दिलों में परमेश्वर उल्लेख के योग्य नहीं है और महत्वहीन है, उनके दिलों में परमेश्वर का कहीं कोई दर्जा नहीं होता है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, पाँच शर्तें, जिन्हें परमेश्वर पर विश्वास के सही मार्ग पर चलने के लिए पूरा करना आवश्यक है)। परमेश्वर के वचन पढ़कर, मैं सचमुच भयभीत और संतप्त हो गई। अपने कर्तव्यों में मो हान के साथ सहयोग करने के दृश्य मेरे मन में कौंधते रहे। जब मेरे लिए गए शॉट्स से कुछ नतीजे मिलने लगे और मैंने देखा कि पर्यवेक्षक मुझ पर अधिक ध्यान दे रही है, तो मुझे लगा कि मैं प्रतिभाशाली हूँ। जब टीम अगुआ चुनने का समय आया, तो मैंने सोचा कि मैं निश्चित रूप से चुनी जाऊँगी। लेकिन जब मो हान को चुना गया, तो मैं सचमुच नकारात्मक और निराश हो गई, मैं मो हान के प्रति द्वेषपूर्ण और ईर्ष्यालु हो गई, यह सोचते हुए कि उसने मेरी सारी चमक चुरा ली है। पर्यवेक्षक की नजरों में अपनी जगह वापस पाने के लिए, मैंने मो हान को बाहर निकालने की कोशिश शुरू कर दी। मैंने न केवल अक्सर उसके विपरीत रुख अपनाया, बल्कि जब मैंने उसके लिए गए शॉट्स में खामियाँ देखीं, तो मैंने उसके उत्साह को कम करने के लिए उसका मजाक उड़ाया और उसे नीचा दिखाया। जब मैंने उसे खुद को सीमित करते देखा, तो मैं मन-ही-मन खुश हुई, मैंने उम्मीद की कि वह और भी नकारात्मकता में डूबती जाए, इस तरह, पर्यवेक्षक उसे अक्षम समझेगी और फिर से मुझे महत्व देगी। जब मैंने उसे लोकेशन खोजने के लिए इधर-उधर भागते देखा, तो मुझे डर था कि वह कुछ अच्छे शॉट्स ले लेगी और पर्यवेक्षक उसे और अधिक महत्व देने लगेगी, इसलिए मैंने उस पर हमला करने के लिए उसके प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने का आरोप लगाया। यहाँ तक कि सभाओं के दौरान भी, जब पर्यवेक्षक उसके साथ अधिक संगति करती थी तो मुझे असंतोष होता था, इसलिए मैंने पर्यवेक्षक के सामने उसे नीचा दिखाया, यह कोशिश करते हुए कि पर्यवेक्षक उसे सत्य वास्तविकता और दूसरों के प्रति प्रेम से रहित समझे। अपनी बहन को दबाने के मेरे अनैतिक प्रयास सचमुच नीच और दुष्ट थे! मेरे ये बुरे काम मसीह-विरोधियों के अपने रुतबे की रक्षा करने के तरीके से किस तरह अलग थे? मेरे साथ सहयोग करने के बाद से, मो हान हमेशा मेरे प्रति सहनशील और धैर्यवान रही थी। जब मैं बुरी दशा में होती थी, तो वह मेरा मार्गदर्शन करने और मेरी मदद करने के लिए अपने अनुभव साझा करती थी। वह तकनीकी क्षेत्रों में अपनी कमियों से वाकिफ थी, वह सीखने के लिए लगातार प्रयास करती रही और उसने अच्छे शॉट्स लेने के लिए कड़ी मेहनत की। बाहरी शूटिंग के दौरान उसे चाहे कितनी भी कठिनाइयों और थकावट का सामना करना पड़ा हो, उसने शायद ही कभी शिकायत की। चाहे उसके जीवन प्रवेश में हो या अपने कर्तव्यों के प्रति उसके रवैये में, वह मुझसे बेहतर थी, टीम अगुआ के रूप में उसका चयन पूरी तरह से सिद्धांतों के अनुरूप था। फिर भी ईर्ष्या के कारण, मैंने बार-बार उसे दबाया और बाहर निकाला। मैं सचमुच मानवता से रहित थी! परमेश्वर संगति में मसीह-विरोधियों के स्वभाव का गहन-विश्लेषण करता रहा है, फिर भी मैं इस प्रकाश में खुद को देखने और आत्म-चिंतन करने में विफल रही, मैं अपनी बहन को दबाने के लिए अपने भ्रष्ट स्वभाव के अनुसार चलती रही। मेरे अंदर परमेश्वर का भय मानने वाला सबसे बुनियादी दिल भी नहीं था। मेरे क्रियाकलापों से परमेश्वर को घृणा और बेइंतहा नफरत कैसे नहीं हो सकती थी? मैं मो हान के साथ अपनी बातचीत को जितना याद करती, उतना ही मुझे पछतावा और अपराध-बोध होता। मैं खुद से नफरत करती थी कि मैंने सत्य का अनुसरण नहीं किया और इतने सारे बुरे काम करने के लिए अपनी शैतानी प्रकृति का पालन किया।

उस दौरान, मैं बहुत हताश महसूस करती थी। जब भी मैं सोचती कि मैंने प्रतिष्ठा और रुतबे की खातिर बुराई की है और मसीह-विरोधियों के रास्ते पर चली हूँ, तो मैं पछतावे से भर जाती थी। अक्सर आधी रात को मैं कंबल के नीचे छिपकर चुपचाप रोती थी। मैं भाई-बहनों के सामने खुलकर बात करने की भी हिम्मत नहीं करती थी, क्योंकि मुझे डर था कि जब उन्हें पता चलेगा कि मैं ऐसी हूँ तो वे मुझसे घृणा करेंगे और मुझे अस्वीकार कर देंगे, तब शायद मैं अपने कर्तव्य करने का मौका भी खो दूँगी। मैं परमेश्वर से प्रार्थना करने की भी हिम्मत नहीं करती थी, क्योंकि मुझे लगता था कि मुझ जैसे व्यक्ति से परमेश्वर को बहुत पहले ही घृणा और बेइंतहा नफरत हो गई होगी और इसलिए परमेश्वर मेरी प्रार्थनाएँ नहीं सुनेगा। इस तरह, मैं अत्यधिक नकारात्मकता और पीड़ा की मनोदशा में डूब गई।

एक दिन, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा जिसने मुझे गहराई से प्रभावित किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “परमेश्वर नीनवे के लोगों से चाहे जितना भी क्रोधित रहा हो, लेकिन जैसे ही उन्होंने उपवास की घोषणा की और टाट ओढ़कर राख पर बैठ गए, उसका हृदय धीरे-धीरे नरम पड़ने लगा और उसने अपना मन बदलना शुरू कर दिया। उनसे यह घोषणा करने के एक क्षण पहले कि वह उनके नगर को नष्ट कर देगा—उनके द्वारा अपने पाप स्वीकार करने और पश्चात्ताप करने से पहले के क्षण तक भी—परमेश्वर उनसे क्रोधित था। लेकिन जब वो लोग लगातार पश्चात्ताप के कार्य करते रहे, तो नीनवे के लोगों के प्रति परमेश्वर का कोप धीरे-धीरे उनके प्रति दया और सहनशीलता में बदल गया। एक ही घटना में परमेश्वर के स्वभाव के इन दो पहलुओं के एक-साथ प्रकाशन में कोई विरोध नहीं है। तो विरोध के न होने को कैसे समझना और जानना चाहिए? नीनवे के लोगों द्वारा पहले और बाद में पश्चात्ताप करने पर परमेश्वर ने ये दो एकदम विपरीत सार व्यक्त और प्रकाशित किए, जिससे लोगों ने परमेश्वर के सार की वास्तविकता और अनुल्लंघनीयता देखी। परमेश्वर ने लोगों को निम्नलिखित बातें बताने के लिए अपने रवैये का उपयोग किया : ऐसा नहीं है कि परमेश्वर लोगों को बरदाश्त नहीं करता, या वह उन पर दया नहीं दिखाना चाहता; बल्कि वे कभी परमेश्वर के सामने सच्चा पश्चात्ताप नहीं करते, और उनका सच में अपने कुमार्ग को छोड़ना और हिंसा त्यागना एक दुर्लभ बात है। दूसरे शब्दों में, जब परमेश्वर मनुष्य से क्रोधित होता है, तो वह आशा करता है कि मनुष्य सच में पश्चात्ताप करेगा और वह मनुष्य का सच्चा पश्चात्ताप देखने की आशा करता है, और उस दशा में वह मनुष्य पर उदारता से अपनी दया और सहनशीलता बरसाता रहेगा। कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य का बुरा आचरण परमेश्वर के कोप को जन्म देता है, जबकि परमेश्वर की दया और सहनशीलता उन लोगों पर बरसती है, जो परमेश्वर की बात सुनते हैं और उसके सम्मुख वास्तव में पश्चात्ताप करते हैं, जो कुमार्ग छोड़कर हिंसा त्याग देते हैं। नीनवे के लोगों के प्रति परमेश्वर के व्यवहार में उसका रवैया बहुत साफ तौर पर प्रकट हुआ था : परमेश्वर की दया और सहनशीलता पाना कठिन नहीं है; और वह इंसान से सच्चा पश्चात्ताप चाहता है। जब तक लोग अपने बुरे तरीकों से दूर रहते हैं और हिंसा छोड़ देते हैं, तो परमेश्वर उनके प्रति अपना हृदय और रवैया बदल लेता है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II)। परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़कर, मेरे दिल में एक ऐसी भावना उठी जिसे मैं बयां नहीं कर सकती थी। मुझे अपने प्रति परमेश्वर की दया महसूस हुई। ऐसा लगा मानो मैं एक अंधेरी बंद गली में रोशनी की एक किरण देख रही थी। मैंने प्रतिष्ठा और रुतबे की खातिर किए गए अपने सभी बुरे कामों और अपनी बहन को पहुँचाए नुकसान के बारे में सोचा, फिर भी परमेश्वर ने मुझे त्यागा नहीं था और इसके बजाय अपने वचनों से मुझे प्रबुद्ध और मेरा मार्गदर्शन कर रहा था, जिससे मैं अपने अंदर की समस्याएँ देख सकी और यह समझ सकी कि बेनकाब किए जाने पर हताशा, नकारात्मकता और कमजोरी में डूबना बेकार है, सबसे जरूरी बात पश्चात्ताप करना है। मैंने सोचा कि कैसे सदोम और नीनवे के लोगों ने इस हद तक बुराई की थी कि परमेश्वर ने उन्हें नष्ट करने का फैसला कर लिया था। लेकिन नीनवे के लोगों को एहसास हुआ कि उनके क्रियाकलाप परमेश्वर के लिए इस हद तक बेइंतहा नफरत के लायक थे कि वे विनाश के कगार पर थे, वे पश्चात्ताप करने और अपने पापों को कबूलने के लिए समय पर परमेश्वर के सामने आ सके। अपने सच्चे पश्चात्ताप के कारण, उन्हें परमेश्वर की दया मिली। मैंने देखा कि भले ही परमेश्वर लोगों के बुरे कामों से घृणा करता है, वह फिर भी लोगों की परवाह करता है और उन पर दया करता है, वह लोगों को पश्चात्ताप करने का हर मौका देता है। मैं बहुत भावुक हो गई। मानवता के लिए परमेश्वर का प्रेम कितना सच्चा है! मो हान के साथ लगभग एक साल काम करने पर विचार करते हुए, मैंने देखा कि मैं हमेशा उससे ईर्ष्या करती रही और उसे बाहर निकालती रही, मैंने कभी आत्म-चिंतन नहीं किया। मैं बहुत सुन्न हो गई थी। अगर परमेश्वर के वचनों का न्याय और प्रकाशन न होता, तो मैं अपने अंदर की समस्याओं को बिल्कुल भी नहीं देख पाती, मैं अपनी शैतानी प्रकृति के अनुसार व्यवहार करती रहती और अधिक बुरे काम करती रहती। परमेश्वर का न्याय और ताड़ना उसकी सुरक्षा और प्रेम हैं! यह सोचकर मैंने संकल्प लिया और परमेश्वर से प्रार्थना की, यह कहते हुए कि मैं अपने अंदर की समस्याओं का सीधे तौर पर सामना करने और उसके सामने पश्चात्ताप करने को तैयार हूँ।

इसके बाद मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “मसीह-विरोधियों के लिए प्रतिष्ठा और रुतबा कोई अतिरिक्त आवश्यकता नहीं है, ये कोई बाहरी चीज तो बिल्कुल भी नहीं है जिसके बिना उनका काम चल सकता हो। ये मसीह-विरोधियों की प्रकृति का हिस्सा हैं, ये उनकी हड्डियों में हैं, उनके खून में हैं, ये उनमें जन्मजात हैं। मसीह-विरोधी इस बात के प्रति उदासीन नहीं होते कि उनके पास प्रतिष्ठा और रुतबा है या नहीं; यह उनका रवैया नहीं होता। फिर उनका रवैया क्या होता है? प्रतिष्ठा और रुतबा उनके दैनिक जीवन से, उनकी दैनिक स्थिति से, जिस चीज का वे रोजाना अनुसरण करते हैं उससे, घनिष्ठ रूप से जुड़ा होता है। और इसलिए मसीह-विरोधियों के लिए रुतबा और प्रतिष्ठा उनका जीवन हैं। चाहे वे कैसे भी जीते हों, चाहे वे किसी भी परिवेश में रहते हों, चाहे वे कोई भी काम करते हों, चाहे वे किसी भी चीज का अनुसरण करते हों, उनके कोई भी लक्ष्य हों, उनके जीवन की कोई भी दिशा हो, यह सब अच्छी प्रतिष्ठा और ऊँचा रुतबा पाने के इर्द-गिर्द घूमता है। और यह लक्ष्य बदलता नहीं है; वे कभी ऐसी चीजों को दरकिनार नहीं कर सकते हैं। यह मसीह-विरोधियों का असली चेहरा और सार है। तुम उन्हें पहाड़ों की गहराई में किसी घने-पुराने जंगल में छोड़ दो, फिर भी वे प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे दौड़ना नहीं छोड़ेंगे। तुम उन्हें लोगों के किसी भी समूह में रख दो, फिर भी वे सिर्फ प्रतिष्ठा और रुतबे के बारे में ही सोचेंगे। यूँ तो मसीह-विरोधी भी परमेश्वर में विश्वास करते हैं, फिर भी वे प्रतिष्ठा और रुतबे के अनुसरण को परमेश्वर में आस्था के समकक्ष देखते हैं और दोनों चीजों को समान पायदान पर रखते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि जब वे परमेश्वर में आस्था के मार्ग पर चलते हैं तो वे प्रतिष्ठा और रुतबे का अनुसरण भी करते हैं। यह कहा जा सकता है कि मसीह-विरोधियों के दिलों में परमेश्वर पर उनकी आस्था में सत्य का अनुसरण ही प्रतिष्ठा और रुतबे का अनुसरण है तो प्रतिष्ठा और रुतबे का अनुसरण सत्य का अनुसरण भी है; प्रतिष्ठा और रुतबा हासिल करना सत्य और जीवन हासिल करना है। अगर उन्हें लगता है कि उनके पास कोई प्रसिद्धि, लाभ या रुतबा नहीं है, कि कोई उनका आदर नहीं करता, सम्मान नहीं करता या उनका अनुसरण नहीं करता है तो वे बहुत निराश हो जाते हैं, वे मानते हैं कि परमेश्वर में विश्वास करने की कोई तुक नहीं है, इसका कोई मूल्य नहीं है और वे मन-ही-मन कहते हैं, ‘क्या परमेश्वर में ऐसी आस्था एक असफलता है? क्या मैं बिना आशा के नहीं हूँ?’ वे अक्सर अपने दिलों में ऐसी चीजों का हिसाब-किताब लगाते हैं। वे यह हिसाब-किताब लगाते हैं कि वे कैसे परमेश्वर के घर में अपने लिए जगह बना सकते हैं, वे कैसे कलीसिया में उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकते हैं, जब वे बात करें तो वे कैसे खुद को सुनने के लिए लोगों को जुटा सकते हैं और जब वे कार्य करें तो वे कैसे अपने सहारे के लिए लोगों को जुटा सकते हैं, वे जहाँ कहीं भी हों वे कैसे अपना अनुसरण करने के लिए लोगों को जुटा सकते हैं और उनके पास कैसे कलीसिया में एक प्रभावी आवाज हो सकती है और उनके पास कैसे शोहरत, लाभ और रुतबा हो सकता है—वे वास्तव में अपने दिलों में ऐसी चीजों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। ऐसे लोग इन्हीं चीजों के पीछे भागते हैं। वे हमेशा ऐसी बातों के बारे में ही क्यों सोचते रहते हैं? परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, उपदेश सुनने के बाद, क्या वे वाकई यह सब नहीं समझते, क्या वे वाकई यह सब नहीं जान पाते? क्या परमेश्वर के वचन और सत्य वास्तव में उनकी धारणाएँ, विचार और मत बदलने में सक्षम नहीं हैं? मामला ऐसा बिल्कुल नहीं है। समस्या उनमें ही है, यह पूरी तरह से इसलिए है क्योंकि वे सत्य से प्रेम नहीं करते, क्योंकि अपने दिल में वे सत्य से विमुख हो चुके हैं और परिणामस्वरूप वे सत्य के प्रति बिल्कुल भी ग्रहणशील नहीं होते—जो उनके प्रकृति सार से निर्धारित होता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग तीन))। परमेश्वर कहता है कि मसीह-विरोधी जो कुछ भी करते हैं, वह अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए करते हैं, वे प्रतिष्ठा और रुतबे को अपनी जान की तरह सँजोते हैं। वे रुतबे के लिए लड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ते, भले ही परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाना पड़े। प्रतिष्ठा और रुतबे के प्रति अपने रवैये पर विचार करते हुए, क्या यह मसीह-विरोधियों जैसा नहीं था? जब से मैंने अपने फोटोग्राफी के कर्तव्य में कुछ छोटे-मोटे नतीजे हासिल किए और पर्यवेक्षक की नजरों में मुझे महत्व मिलने लगा, मुझे लगा कि मैं असाधारण हूँ और दूसरों द्वारा महत्व दिए जाने का सचमुच आनंद लेती थी। पर्यवेक्षक की नजरों में एक अच्छी छवि बनाए रखने के लिए, मुझे लगा कि अपने कर्तव्य को करने में मैंने जो भी कीमत चुकाई या कष्ट सहा, वह सार्थक था, मानो दूसरों की प्रशंसा ही मेरे लिए सब कुछ हो। जब मैंने पर्यवेक्षक को मो हान को टीम अगुआ के रूप में चुनते देखा, तो मुझे लगा कि उसने दूसरों के दिलों में मेरी जगह ले ली है, इससे मुझे असहनीय पीड़ा महसूस हुई। मेरे लिए, दूसरों का उच्च सम्मान खोना अपनी रीढ़ की हड्डी खोने जैसा था। मैं पूरी तरह से पंगु महसूस कर रही थी। पर्यवेक्षक की नजरों में अपना महत्व वापस पाने के लिए मैंने मो हान का मजाक उड़ाया, उसे ताने मारे, बाहर निकाला और दबाया। मैंने न केवल बुराई की, अपनी बहन को चोट पहुँचाई और कलीसिया के काम में देरी की, बल्कि मैं अंधकार में भी गिर गई और अत्यधिक पीड़ा में जीती रही। यह सब मेरे निरंतर प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने के कारण हुआ था। मैं “सारे ब्रह्मांड का सर्वोच्च शासक बस मैं ही हूँ” और “सिर्फ एक अल्फा पुरुष हो सकता है” जैसे शैतानी जहरों के अनुसार जीती थी और मैं अकेली ही सबसे अलग दिखना चाहती थी। जब मैंने पर्यवेक्षक को अपनी बहन पर थोड़ा अधिक ध्यान देते देखा, तो मैं ईर्ष्यालु और द्वेषपूर्ण हो गई। मैंने उसे दुश्मन तक मान लिया और मैं उसे बरदाश्त ही नहीं कर पाती थी, मैं एक मसीह-विरोधी के रास्ते पर चल रही थी! मैंने देखा कि प्रतिष्ठा और लाभ अदृश्य बेड़ियाँ हैं जो शैतान लोगों पर डालता है, वे लोगों को भ्रष्ट करने और नुकसान पहुँचाने के साधन हैं। अगर परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन और न्याय ने मेरे सुन्न दिल को न जगाया होता, तो मैं अभी भी अपने भ्रष्ट स्वभाव के अनुसार जी रही होती और अगर मैं इसी तरह चलती रहती, तो देर-सबेर, मैं सभी प्रकार की बुराइयाँ करके परमेश्वर के स्वभाव को नाराज कर देती, अंत में मुझे परमेश्वर द्वारा हटा दिया जाता और दंडित किया जाता।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “अगर लोग सिर्फ प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे भागते हैं, अगर वे सिर्फ अपने हितों के पीछे भागते हैं, तो वे कभी भी सत्य और जीवन प्राप्त नहीं कर पाएँगे और अंततः वे ही नुकसान उठाएँगे। परमेश्वर सत्य का अनुसरण करने वालों को ही बचाता है। अगर तुम सत्य स्वीकार नहीं करते, अगर तुम अपने भ्रष्ट स्वभाव पर आत्म-चिंतन करने और उसे जानने में असमर्थ रहते हो, तो तुम सच्चा पश्चात्ताप नहीं करोगे और तुम जीवन प्रवेश नहीं कर पाओगे। सत्य को स्वीकारना और स्वयं को जानना तुम्हारे जीवन के विकास और उद्धार का मार्ग है, यह तुम्हारे लिए अवसर है कि तुम परमेश्वर के सामने आकर उसकी जाँच-पड़ताल को स्वीकार करो, उसके न्याय और ताड़ना को स्वीकार करो और जीवन और सत्य को प्राप्त करो। अगर तुम प्रसिद्धि, लाभ, रुतबे और अपने हितों के लिए सत्य का अनुसरण करना छोड़ देते हो, तो यह परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को प्राप्त करने और उद्धार पाने का अवसर छोड़ने के समान है। तुम प्रसिद्धि, लाभ, रुतबा और अपने हित चुनते हो, लेकिन तुम सत्य का त्याग कर देते हो, जीवन खो देते हो और बचाए जाने का मौका गँवा देते हो। किसमें अधिक सार्थकता है? अगर तुम अपने हित चुनकर सत्य को त्‍याग देते हो, तो क्या यह मूर्खतापूर्ण नहीं है? आम बोलचाल की भाषा में कहें तो यह एक छोटे से फायदे के लिए बहुत बड़ा नुकसान उठाना है। प्रसिद्धि, लाभ, रुतबा, धन और हित सब अस्थायी हैं, ये सब धुएँ के गुबार की तरह लुप्त हो जाते हैं, जबकि सत्य और जीवन शाश्वत और अपरिवर्तनीय हैं। अगर लोग प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे दौड़ाने वाले भ्रष्ट स्वभाव दूर कर लें, तो वे उद्धार पाने की आशा कर सकते हैं। इसके अलावा, लोगों द्वारा प्राप्त सत्य शाश्वत होते हैं; शैतान लोगों से ये सत्‍य छीन नहीं सकता, न ही कोई और उनसे यह छीन सकता है। तुम अपने हित त्याग देते हो, लेकिन तुम्हें सत्य और उद्धार प्राप्त हो जाते हैं; ये तुम्हारे अपने परिणाम हैं और इन्हें तुम अपने लिए प्राप्त करते हो। अगर लोग सत्‍य का अभ्‍यास करने का चुनाव करते हैं, तो वे अपने हितों को गँवा देने के बावजूद परमेश्वर का उद्धार और शाश्‍वत जीवन हासिल कर रहे होते हैं। वे सबसे ज्‍़यादा बुद्धिमान लोग हैं। अगर लोग अपने हितों के लिए सत्‍य को त्‍याग देते हैं, तो वे जीवन और परमेश्वर के उद्धार को गँवा देते हैं; वे लोग सबसे ज्‍यादा बेवकूफ होते हैं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने स्‍वभाव का ज्ञान उसमें बदलाव की बुनियाद है)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, मैं समझ गई कि प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे की प्राप्ति केवल अस्थायी है, केवल सत्य को पाना ही शाश्वत है। जो चीजें हमारे साथ होती हैं उनमें परमेश्वर के इरादों को खोजना और परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार आचरण करने के लिए व्यक्तिगत हितों को छोड़ देना ही परमेश्वर की स्वीकृति पाने का तरीका है। जीवन जीने का यह सबसे मूल्यवान तरीका है। मैंने अय्यूब के बारे में सोचा, जो अपने शानदार पद और रुतबे के बावजूद, अपने पद से चिपका नहीं रहा। जब उसका रुतबा ऊँचा था और लोग उसकी प्रशंसा करते थे, तो वह आनंद में लिप्त नहीं हुआ, बल्कि परमेश्वर का भय मानता रहा और बुराई से दूर रहा। जब परमेश्वर के परीक्षण उस पर आए और उसने अपना रुतबा, बच्चे और संपत्ति खो दी, तो भी वह राख में बैठकर परमेश्वर की धार्मिकता की प्रशंसा करता रहा। उसने दूसरों की राय या उसके बारे में विचारों की परवाह नहीं की, इसके बजाय उसने बस परमेश्वर द्वारा उसके लिए व्यवस्थित परिस्थितियों के प्रति समर्पण किया। अपने क्रियाकलापों के माध्यम से अय्यूब ने एक सृजित प्राणी को जैसा जीवन जीना चाहिए, उसका उचित सादृश्य प्रदर्शित किया। आत्म-चिंतन करते हुए मैंने देखा कि मुझे दूसरों से थोड़ी अस्थायी प्रशंसा मिली थी, सिर्फ इसलिए कि मैं कुछ तकनीकी कौशल जानती थी और कुछ अच्छे शॉट्स लिए थे, मगर मैं अपने पद और रुतबे की अहमियत ही भूल गई। मैंने सोचा कि मैं असाधारण हूँ और दूसरों को मुझे महत्वपूर्ण समझना चाहिए। जब मैंने दूसरों को मुझसे आगे निकलते देखा, तो मैं ईर्ष्यालु और द्वेषपूर्ण हो गई। मैंने बुराई भी की और दूसरों को चोट पहुँचाई। अय्यूब की तुलना में, मैं पूरी तरह से अविवेकी और बेशर्म थी!

इसके तुरंत बाद, बहन झांग नुओ का हमारी टीम में तबादला हो गया। जल्द ही, उसे टीम अगुआ के रूप में चुन लिया गया। जब मैंने देखा कि मेरे आस-पास की बहनें अपने काम में न समझ आने वाली बातों के बारे में झांग नुओ से सलाह लेती थीं, कभी-कभी पर्यवेक्षक भी झांग नुओ की उसके कर्तव्यों के प्रति दायित्व की भावना और तकनीकी कौशल के अध्ययन में उसकी लगन के लिए प्रशंसा करती थी, तो मैं काफी परेशान और निराश महसूस करती थी। अतीत में, पर्यवेक्षक मुझे अधिक महत्व देती थी, लेकिन अब झांग नुओ के आने से मैं उससे कमतर लगने लगी। एक दिन, जब मैं अपने कंप्यूटर पर बैठी थी, तो मैंने इस पर विचार किया कि मैं क्या प्रकट कर रही हूँ। जब मैंने झांग नुओ को उत्कृष्टता प्राप्त करते देखा तो मैं परेशान क्यों हो गई? जब मेरे आस-पास की बहनें उसकी प्रशंसा करती थीं तो मैं इतनी निराश क्यों महसूस करती थी? क्या यह इसलिए नहीं था क्योंकि यह मेरी प्रतिष्ठा और रुतबे से जुड़ा था? इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मेरी प्रतिस्पर्धा करने की इच्छा फिर से जाग उठी है। मैं अब और प्रतिष्ठा और रुतबे से बँधना और बेबस होना नहीं चाहती। भले ही दूसरे मेरे बारे में कुछ भी सोचें, मैं केवल अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करना चाहती हूँ। कृपया मेरे दिल की रक्षा करो।” इसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “अगर कोई और तुमसे बेहतर है और सत्य को तुमसे ज्यादा समझता है, तो तुम्हें उससे सीखना चाहिए—क्या यह अच्छी बात नहीं है? यह ऐसी चीज है जिस पर सभी को खुश होना चाहिए। उदाहरण के लिए, अय्यूब था, जो मानव इतिहास में परमेश्वर के अनुयायियों में से एक था। यह परमेश्वर के छह हजार साल के प्रबंधन कार्य में घटित एक शानदार बात थी, या यह एक शर्मनाक बात थी? (यह एक शानदार बात थी।) यह शानदार बात थी। इस मामले में तुम्हें क्या रवैया अपनाना चाहिए? तुम्हारा क्या दृष्टिकोण होना चाहिए? तुम्हें परमेश्वर के लिए खुश होना चाहिए और उसका जश्न मनाना चाहिए, परमेश्वर की शक्ति की स्तुति करनी चाहिए, प्रशंसा करनी चाहिए कि परमेश्वर ने महिमा प्राप्त की है—यह एक अच्छी बात थी(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग एक))। परमेश्वर के वचनों से मुझे अचानक सब कुछ साफ समझ में आ गया। सचमुच, जब भाई-बहन अपने कर्तव्यों में बेहतर नतीजे हासिल करते हैं, तो क्या यह नहीं दिखाता कि लोगों में परमेश्वर का काम फलीभूत हो रहा है? यह कुछ ऐसा है जो परमेश्वर के दिल को सुकून देता है। यह एक अच्छी बात है! मैं अब और अपने भ्रष्ट स्वभाव से बँधकर परमेश्वर की शत्रु नहीं बन सकती थी। अगले दिन, मैंने खुद पहल करके झांग नुओ से अपनी दशा के बारे में खुलकर बात की। इस तरह से अभ्यास करने के बाद, मैंने अपने दिल में बहुत आजादी की भावना महसूस की और उसके साथ मेरा रिश्ता भी बहुत गहरा हो गया। बाद में, पर्यवेक्षक कभी-कभी फिर भी यह कहती थी कि झांग नुओ अपने तकनीकी कौशल में तेजी से प्रगति कर रही है और उसमें विकसित होने की क्षमता है। जब मैंने पर्यवेक्षक को उसे इतना अधिक महत्व देते देखा, तो मैं कभी-कभी फिर भी निराश महसूस करती थी, लेकिन यह पहले जितना पीड़ादायक नहीं था। इसके बजाय, मैंने उससे सीखने और उसकी खूबियों को अपनाने पर ध्यान केंद्रित किया। इस तरह से अभ्यास करने से मुझे अपने दिल में बहुत अधिक सुकून और आजादी महसूस हुई और उसकी मदद से, मैंने अपने तकनीकी कौशल में भी कुछ प्रगति की।

बेनकाब होने का यह अनुभव मेरे लिए पीड़ादायक था, लेकिन यह कीमती भी था, मुझे अनुभव कराने के लिए ऐसी स्थिति की व्यवस्था करने के लिए मैं परमेश्वर की बहुत आभारी हूँ। मैं जो भी बदलाव ला पाई हूँ, यह पूरी तरह से परमेश्वर के प्रेम के कारण है!

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