47. अब मुझे पता है शादी से कैसे पेश आना है

सोंग शियाओ, चीन

जब मैं 18 साल का था, तब मेरी दादी ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार सुनाया था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ने के माध्यम से मैंने समझा कि अंत के दिनों में परमेश्वर सत्य व्यक्त करता है और लोगों को शुद्ध करने और बचाने के लिए न्याय का कार्य करता है, अपनी किस्म के अनुसार उनकी छँटाई करता है और आखिकार इस युग को समाप्त करता है। मैंने कभी प्रभु यीशु पर विश्वास नहीं किया था पर मैं इतना भाग्यशाली था कि परमेश्वर के कार्य के अंतिम चरण को जान पाया। यह मेरे लिए परमेश्वर का अनुग्रह था। मुझे परमेश्वर पर ईमानदारी से विश्वास रखना था और परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान चुकाने के लिए अपना कर्तव्य करना था। तब से मैंने जोश के साथ अनुसरण किया, अक्सर परमेश्वर के वचन पढ़े, अपने माता-पिता और दादी के साथ सभा की। मैं अपने कर्तव्य करने में भी सक्रिय था। छह महीने बाद कार्य की जरूरत के कारण मैंने अपना कर्तव्य करने के लिए घर छोड़ दिया। कभी-कभी जब मैं अपने गृहनगर से गुजरता था तो घर लौटने के लिए कुछ समय निकाल लेता था।

2019 में मैं 25 वर्ष का था। एक बार जब मैं घर लौटा तो मेरे पिता ने मुझसे कहा, “बेटा, तुम्हारी उम्र शादी के लायक हो गई है और तुम्हें अपना परिवार बसा लेना चाहिए। अपने चचेरे भाई और उसकी पत्नी को देखो। शादी के बाद भी वे कलीसिया में कर्तव्य करने में सक्षम थे और यह काफी अच्छा रहा।” उन्होंने युवा भाई-बहनों के कुछ और उदाहरण दिए, जिन्होंने शादी कर ली थी और मुझे भी ऐसा करने के लिए मनाने की कोशिश की। मैंने कहा, “मैं अपना कर्तव्य निभाने में व्यस्त हूँ। मेरा वाकई शादी करने और पारिवारिक जीवन जीने का मन नहीं है। इस जीवन में अपना सारा समय मैं परमेश्वर पर विश्वास रखने और अपना कर्तव्य करने में लगाना चाहता हूँ। सिर्फ सत्य का अनुसरण करने और अपने कर्तव्य अच्छी तरह करने से ही हमारा जीवन सार्थक हो सकता है। परमेश्वर कहता है : ‘कुछ लोगों का परिवार उन्हें परमेश्वर में आस्था रखने से रोकता है जिससे कि वे जब तक शादी न करें, परमेश्वर में आस्था न रख पाएँ। इस तरह, विवाह विपरीत तौर पर उनके लिए मददगार है। दूसरों के लिए, विवाह फायदेमंद नहीं है, बल्कि उसके कारण उन्हें वह भी गँवाना पड़ता है जो पहले उनके पास था(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (7))। हमारे परिवार में कोई भी मुझे सता नहीं रहा है, इसलिए मैं अपना सारा समय अपने कर्तव्य करने में लगाना चाहता हूँ। यह मेरे जीवन अनुसरण के लिए लाभदायक होगा।” जब मैं बोल रहा था, मैंने अपने पिता को बिस्तर पर लेटे हुए देखा, वह निराश दिख रहे थे। वह धीमी आवाज में बुदबुदाए, “अपना सारा समय अपने कर्तव्य करने में लगाना सही मार्ग पर चलना है। अगर तुम शादी नहीं करना चाहते हो तो यह तुम्हारी आजादी है और मैं तुम्हारे रास्ते में नहीं आऊँगा। लेकिन जब मैं अपने परिवार के बारे में सोचता हूँ, जो तीन पीढ़ियों से इकलौते बेटे के जरिए आगे बढ़ा है और अगर तुम शादी नहीं करते हो तो कैसे हमारी वंशावली तुम्हारे साथ खत्म हो जाएगी तो मैं दिल से दुखी हो जाता हूँ। इसलिए मैंने तुमसे चर्चा करने के बारे में सोचा कि क्या तुम अपने चचेरे भाई की तरह शादी करना चुन सकते हो।” उसके बाद मेरे पिता ने मुझे फिर कभी इस तरह मनाने की कोशिश नहीं की।

2024 में वसंत महोत्सव के बाद कुछ भाई-बहनों को उस क्षेत्र में गिरफ्तार किया गया, जहाँ मैं अपना कर्तव्य कर रहा था। कुछ समय तक रहने के लिए मेरे पास कोई उपयुक्त मेजबान घर नहीं था, इसलिए मैंने अगुआओं को सुझाव दिया कि मैं अस्थायी रूप से घर लौट जाता हूँ। जब मैं घर पर था तो मेरी माँ समय-समय पर मुझसे शादी करने के बारे में बात करती थीं। एक बार उन्होंने कुछ बहनों की बेटियों से परिचय कराया। उन्हें लगा कि उनमें से एक बहुत अच्छी है और मुझसे पूछा कि मैं इस बारे में क्या सोचता हूँ। यह सुनते ही मैंने सोचा, “मेरी शादी का मामला लगातार मेरे माता-पिता के दिमाग में घूम रहा है और अब वे इसके लिए कदम भी उठा रहे हैं। अगर मैं सीधे मना कर देता हूँ तो इससे मेरी माँ को बहुत दुख पहुँचेगा।” इसलिए मैंने बातचीत का विषय बदल दिया, जानबूझकर इसे टालने की कोशिश की। एक शाम को मैं अपनी माँ से बात कर रहा था। मेरी माँ ने गंभीरता से कहा, “बेटा, क्या तुम जानते हो कि मैंने इतना सारा पैसा क्यों बचाया है? एक कारण तो तुम्हारी दादी के इलाज का खर्च उठाना था; दूसरा कारण किसी से तुम्हारी शादी करवाना है। अब तुम्हारी दादी चल बसी हैं और हमारे परिवार में एकमात्र प्रमुख मामला तुम्हारी शादी का है। अगर तुम्हें कोई उपयुक्त मेल मिले तो तुम्हें शादी कर लेनी चाहिए! इससे परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास में कोई बाधा नहीं आएगी। तुम पहले ही तीस वर्ष के हो चुके हो और उम्र तो बढ़ती ही जाएगी। अगर तुम किसी से शादी नहीं करते हो तो तुम्हारा साथ देने वाला कोई नहीं होगा और तुम अकेले रह जाओगे। तुम्हारे पिता और मैं बूढ़े हो रहे हैं और हम पूरी जिंदगी तुम्हारा साथ नहीं दे पाएँगे।” अपनी माँ के ये शब्द सुनकर मेरे दिल में हल्का सा दर्द हुआ। कई साल से शादी के बारे में मेरा दृष्टिकोण हमेशा बहुत दृढ़ रहा था, लेकिन अब मैं वाकई डगमगा रहा था। मुझे याद आया कि पिछले साल मेरी दादी का निधन हो गया था। मुझे लगा कि दुनिया में एक रिश्तेदार कम हो जाने से एक ऐसा इंसान भी कम हो गया है जो मेरा साथ दे सकता था और मुझे अपने दिल में एक तरह का डर महसूस हुआ, “अगर मैंने शादी नहीं की तो मेरे माता-पिता के गुजर जाने के बाद मैं अपना बुढ़ापा अकेलेपन में बिताऊँगा।” साथ ही मेरे माता-पिता ने बचपन से ही मुझसे कभी कोई माँगें नहीं की थीं। इतने वर्षों में जब मैं घर से दूर अपना कर्तव्य कर रहा था, तब उन्होंने मेरा साथ दिया। और मैं इस जीवन में मुझसे की गई एकमात्र छोटी सी अपेक्षा को भी पूरा करने में सफल नहीं हो पाया था। मुझे लगा कि मैंने अपने माता-पिता को निराश किया है। लेकिन फिर मेरे मन में एक और विचार आया, “अगर मैं शादी कर लूँ और बच्चे पैदा करूँ तो मेरे जीवन में और भी उलझनें होंगी और मेरे पास अपने कर्तव्य के लिए कम समय और ऊर्जा होगी। मैं अपना कर्तव्य करने में भी असमर्थ हो सकता हूँ। एक भाई के साथ ऐसा ही हुआ था, जिसकी जिंदगी ने उसे शादी के बाद पैसे कमाने के लिए दुनिया में वापस जाने को मजबूर किया। वह नियमित रूप से सभाओं में भी शामिल नहीं हो पाता था। मुझे अपना कर्तव्य करने परमेश्वर के घर आने का परमेश्वर का अनुग्रह मिला है और इतने वर्षों में मैंने परमेश्वर से बहुत कुछ पाया है। अगर मैं अपना कर्तव्य न करूँ और इसके बजाय विवाहित जीवन व्यतीत करूँ तो मैं परमेश्वर को निराश करूँगा!” इसलिए मैंने अपनी माँ से कहा, “मैं परिवार नहीं बसाना चाहता। एक बार जब मैं परिवार बसा लूँगा तो मेरे सामने बहुत सारी उलझनें आ जाएँगी और मेरा कर्तव्य प्रभावित होगा। मैं अकेला ही ठीक हूँ। तुम बस अच्छी जिंदगी जियो और मेरी चिंता मत करो।” जब मेरी माँ ने मुझे यह कहते हुए सुना तो वह इतनी दुखी हुईं कि उन्होंने अपना सिर झुका लिया और कुछ और नहीं कहा। इससे मुझे कुछ साल पहले वाली अपने पिता की निराश और उदास छवि याद आ गई और मेरा दिल अचानक नरम पड़ गया। मैंने सोचा, “अगर मैं अपने माता-पिता की इस जरूरत को भी पूरा नहीं कर सकता, उन्हें हमारे रिश्तेदारों और उनके दोस्तों के सामने शर्मिंदा होने, दूसरों का उपहास बनने और आलोचना झेलने के लिए छोड़ देता हूँ तो क्या यह मेरा बहुत स्वार्थी बनना नहीं होगा? मैं अपने माता-पिता की एकमात्र संतान हूँ, इसलिए अगर मैंने शादी नहीं की और बच्चे पैदा नहीं किए तो मेरे परिवार के कोई वंशज नहीं होंगे। मैं अपने माता-पिता और पूर्वजों को निराश कर दूँगा। क्या यह गैर-संतानोचित होना नहीं है? मेरे रिश्तेदार और दोस्त सभी मुझसे पूछते हैं कि मैं कब शादी करूँगा। उनमें से कुछ का कहना है कि मेरे माता-पिता उचित जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं। वे कहते हैं कि भले ही मेरी काफी उम्र हो गई है, लेकिन मेरे पास पत्नी भी नहीं है, बच्चों की तो बात ही छोड़ दो और मैं परिवार की वंशावली तोड़ रहा हूँ। अगर मैं अभी भी अपना परिवार बसाने और करियर बनाने की जल्दी में नहीं हूँ तो कौन जानता है कि वे मेरी पीठ पीछे और क्या कहेंगे!” उस दौरान, मैं इस मामले से परेशान था और कभी-कभी आधी रात के बाद भी सो नहीं पाता था। मैंने मन ही मन सोचा, “मैं इतने साल से घर से दूर अपना कर्तव्य कर रहा हूँ, मैंने अपनी उम्र के कुछ भाई-बहनों को देखा है, जिन्होंने शादी कर ली है और उनके बच्चे भी हैं। हालाँकि उनके पास बहुत सी उलझनें हैं, फिर भी वे कुछ कर्तव्य कर सकते हैं। अगर मैं कोई उपयुक्त मेल ढूँढ़ लूँ, शादी कर लूँ और वह जीवन जीते हुए परमेश्वर में विश्वास रखूँ तो? मुझे अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को यह नहीं कहने देना चाहिए कि मैं परिवार की वंशावली तोड़ रहा हूँ, क्योंकि इससे मेरे माता-पिता उनके सामने शर्मिंदा होंगे। लेकिन शादी करना और बच्चे पैदा करना मेरे लिए बहुत बड़ी उलझनें लेकर आएगा और अपने कर्तव्य करने में बहुत सी सीमाएँ खड़ी हो जाएँगी, परमेश्वर में मेरे विश्वास या सत्य की खोज के लिए इससे थोड़ा भी लाभ नहीं होगा ...” मैं असमंजस में था। बाद में अगुआओं ने मेरे लिए एक उपयुक्त मेजबान परिवार ढूँढ़ लिया और मुझे एक पत्र भेजा, जिसमें मुझे जाकर अपना कर्तव्य करने के लिए कहा गया था। मेरी माँ मुझे विदा करते समय रो पड़ीं। मुझे बहुत दुख हुआ और मैंने जबरन अपने आँसू रोक लिए ताकि मेरी माँ उन्हें न देख सकें। मुझे लगा जैसे मैंने इस जीवन में अपने माता-पिता को निराश किया है। यह बात तो छोड़ ही दो कि उनका बेटा होने के नाते मैं उनके साथ नहीं रह पा रहा था, मैंने उन पर अपनी चिंता भी लाद दी और उनकी पीठ पीछे उन्हें गपशप का विषय भी बना दिया था। इस मनोदशा में रहते हुए मैं संतप्त महसूस करता था और इससे मेरे कर्तव्य का प्रदर्शन भी प्रभावित होता था। मुझे पता था कि मेरी मनोदशा गलत है इसलिए मैंने समस्या को सुलझाने के लिए सचेत होकर परमेश्वर के वचन पढ़े।

एक दोपहर मुझे अचानक परमेश्वर के वचनों का एक भजन याद आया जो मैंने पहले सुना था “किसका अनुसरण करें नौजवान।” फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश खोजा और पढ़ा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “युवा लोगों को आकांक्षाओं, प्रबल प्रेरणाओं और ऊपर की ओर बढ़ने की प्रचंड भावना से रहित नहीं होना चाहिए; उन्हें अपनी संभावनाओं को लेकर निराश नहीं होना चाहिए और न ही उन्हें जीवन में आशा और भविष्य में भरोसा खोना चाहिए; उनमें उस सत्य के मार्ग पर बने रहने की दृढ़ता होनी चाहिए, जिसे उन्होंने अब चुना है—ताकि वे मेरे लिए अपना पूरा जीवन खपाने की अपनी इच्छा साकार कर सकें। उन्हें सत्य से रहित नहीं होना चाहिए, न ही उन्हें ढोंग और अन्याय को प्रश्रय देना चाहिए—उन्हें अपने उचित रुख पर अडिग रहना चाहिए। उन्हें धारा के साथ बहना नहीं चाहिए, बल्कि उनमें न्याय और सत्य के लिए बलिदान और संघर्ष करने की हिम्मत होनी चाहिए। युवा लोगों में अँधेरे की शक्तियों के दमन के सामने समर्पण न करने और अपने अस्तित्व के महत्व को रूपांतरित करने का साहस होना चाहिए। युवा लोगों को प्रतिकूल परिस्थितियों के सामने नतमस्तक नहीं हो जाना चाहिए, बल्कि उनमें और भी अधिक अपने भाइयों और बहनों के लिए खुलेपन और बेबाकी और माफी की भावना होनी चाहिए। बेशक, मेरी ये अपेक्षाएँ सभी से हैं और सभी को मेरी यह सलाह है। लेकिन इससे भी बढ़कर, ये सभी युवा लोगों के लिए मेरे सुखदायक वचन हैं। तुम लोगों को मेरे वचनों के अनुसार अभ्यास करना चाहिए। विशेष रूप से युवा लोगों को चीजों के तरीकों का भेद पहचानने और न्याय और सत्य खोजने के संकल्प से रहित नहीं होना चाहिए। तुम लोगों को सभी सुंदर और अच्छी चीजों का अनुसरण करना चाहिए और तुम्हें सभी सकारात्मक चीजों की वास्तविकता प्राप्त करनी चाहिए। यही नहीं, तुम्हें अपने जीवन के लिए उत्तरदायी होना चाहिए और तुम्हें इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। लोग पृथ्वी पर आते हैं और मेरे सामने आ पाना दुर्लभ है और सत्य को खोजने और प्राप्त करने का अवसर पाना भी दुर्लभ है। तुम लोग इस खूबसूरत समय को इस जीवन में अनुसरण करने का सही मार्ग मानकर महत्त्व क्यों नहीं दोगे? और तुम लोग हमेशा सत्य और न्याय के प्रति इतने तिरस्कारपूर्ण क्यों बने रहते हो? तुम लोग क्यों हमेशा उस अधार्मिकता और गंदगी के लिए स्वयं को रौंदते और बरबाद करते रहते हो, जो लोगों के साथ खिलवाड़ करती है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, युवा और वृद्ध लोगों के लिए वचन)। परमेश्वर के वचन पढ़ते हुए मुझे ऐसा लगा जैसे परमेश्वर मेरा आमने-सामने मार्गदर्शन कर रहा हो। मैं बहुत प्रोत्साहित हो गया। मैंने देखा कि परमेश्वर युवा लोगों से सत्य का अनुसरण करने की बड़ी अपेक्षाएँ रखता है। एक युवा व्यक्ति के रूप में परमेश्वर में विश्वास रखते हुए मेरे लिए सिर्फ इतना जरूरी नहीं है कि मेरे पास सत्य पाने के लिए अनुसरण करने का आदर्श और लक्ष्य हो, बल्कि इसके लिए मेरे पास एक रुख होना भी जरूरी है : मैं बहाव के साथ नहीं बह सकता, लेकिन मुझे मुद्दों में भेद पहचानने का अभ्यास करने में सक्षम होना चाहिए। मैंने पतरस के बारे में सोचा। वह छोटी उम्र से ही परमेश्वर में विश्वास रखने लगा था। वह न्याय के लिए तरसता था और सत्य के लिए प्यासा था। उसके माता-पिता ने माँग की कि वह स्कूल जाए ताकि वह बड़ा होने पर किसी तरह का आधिकारिक ओहदा प्राप्त कर सके, लेकिन पतरस जानता था कि यह सही मार्ग के अनुसरण के विपरीत है, यह खोखला जीवन है। वह अपने माता-पिता द्वारा बेबस नहीं था और उसने परमेश्वर में विश्वास के मार्ग पर चलना चुना। पतरस सही-गलत के बीच अंतर कर सकता था और उसने अडिग रुख अपनाया। वह मनुष्य से आने वाली चीजों से घृणा करने, उन्हें नकारने और उनका अनुसरण करने से इनकार करने में सक्षम था और जो परमेश्वर से आया था उसका अनुसरण करने के लिए अपमान सहने और यहाँ तक कि अपना जीवन देने में सक्षम था। आखिरकार उसे परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाया गया और उसने सबसे सार्थक जीवन जीया। पतरस के अनुभव की तुलना में मुझे बहुत शर्मिंदगी हुई। जब शादी के मामले में मुझे अविश्वासियों की निंदा का सामना करना पड़ा, कुछ अपमान और पीड़ा सहनी पड़ी तो मैंने अपना रुख खो दिया। मैं अपने माता-पिता के प्रति अपने कर्तव्यों को अच्छे से पूरा करने के लिए शादी करना और बच्चे पैदा करने को एक सृजित प्राणी के कर्तव्य करने के समान ही महत्वपूर्ण मानता था। मैं एक साथ दो नावों पर खड़ा था, प्रत्येक पर एक पैर टिकाए था : दोनों पलड़े अस्थिर थे क्योंकि मैंने किसी को भी नहीं चुना था। अब वह महत्वपूर्ण समय है जब परमेश्वर लोगों को बचाने के लिए कार्य करता है। अगर मैं इस समय शादी कर लूँ और बच्चे पैदा करूँ तो मुझे उनका पालन-पोषण करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी और मेरे पास अपना कर्तव्य करने या सत्य का अनुसरण करने के लिए इतना समय और ऊर्जा नहीं होगी। अगर मैं अपनी वर्तमान अनुकूल परिस्थितियों को गँवा देता हूँ तो मुझे जीवन भर इसका अफसोस रहेगा। जब मैंने यह समझा, मैंने देखा कि परमेश्वर में उचित विश्वास रखते हुए और साथ ही अपना कर्तव्य करते हुए परिवार बसाने की मेरी इच्छा बिल्कुल भी यथार्थवादी नहीं थी। एक बार मैंने शादी कर ली तो यह शायद मेरी मर्जी न चले। मैं अपने माता-पिता से प्रभावित नहीं हो सकता था। मुझे अपना अनुसरण जारी रखना होगा। इसका एहसास होने पर मुझे अब अपने दिल में इतना संघर्ष और यातना महसूस नहीं हुई। लेकिन बाद में जब भी मेरे सामने कोई उपयुक्त परिवेश आता तो मैं अभी भी शादी करने और उसी तरह का जीवन जीने पर विचार करता। एक बार मैंने परमेश्वर से ईमानदारी से प्रार्थना की, “प्रिय परमेश्वर, जिस दिन मैं तुम्हारे पास लौटा, मैंने दृढ़ निश्चय किया कि मैं जीवन भर तुम्हारा अनुसरण करूँगा, तुम्हारे लिए खुद को खपाऊँगा और सृजित प्राणी के कर्तव्य करूँगा। लेकिन हाल ही में मैं लगातार एक साथी खोजने, परिवार बसाने और परमेश्वर में विश्वास रखते हुए पारिवारिक जीवन जीने के बारे में सोच रहा हूँ। मैं इस तरह गिरना नहीं चाहता, लेकिन मेरे पास अपना संकल्प मजबूत करने की ताकत नहीं है। मुझे इस गलत मनोदशा से बाहर निकालो।”

एक दिन मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा और अपनी समस्या के बारे में कुछ समझ हासिल की। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “कुछ लोग अपने माता-पिता का यूँ तंग करना बर्दाश्त नहीं कर सकते। पहले तो वे सोचते हैं कि कितनी अच्छी बात है कि वे एकल हैं, और उन्हें बस अपनी ही देखभाल करनी है। खास तौर से परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद, वे हर दिन अपने कर्तव्य निभाने में व्यस्त रहते हैं, और उनके पास इन चीजों के बारे में सोचने का वक्त नहीं होता, इसलिए वे किसी के साथ घूमते-फिरते नहीं और वे आगे चलकर शादी नहीं करेंगे। लेकिन वे अपने माता-पिता की जाँच से बच नहीं सकते। उनके माता-पिता राजी नहीं होते और हमेशा उनसे आग्रह करते और उन पर दबाव डालते रहते हैं। जब भी वे अपने बच्चों को देखते हैं, वे तंग करना शुरू कर देते हैं : ‘क्या तुम किसी से मिलते-जुलते हो? क्या कोई है जिसे तुम पसंद करते हो? जल्दी से उसे घर ले आओ ताकि हम तुम्हारे लिए उसे जाँच सकें। अगर वह उपयुक्त हो, तो फौरन जाकर शादी कर लो, तुम्हारी उम्र कम नहीं हो रही है! महिलाएँ तीस साल की हैं और अविवाहित हैं और पुरुष पैंतीस साल के हैं और किसी साथी की तलाश नहीं कर रहे हैं—यह क्या है। क्या यह दुनिया में उलट-पुलट करने की कोशिश है? अगर तुम शादी नहीं करोगे तो बुढ़ापे में तुम्हारा ख्याल कौन रखेगा?’ माता-पिता हमेशा इसी बात में खुद को व्यस्त रखकर चिंता करते रहते हैं, वे चाहते हैं कि तुम किसी-न-किसी को खोज लो, दबाव बनाते हैं कि कोई साथी ढूँढ़ कर शादी कर लो। और तुम्हारे शादी कर लेने के बाद, तुम्हारे माता-पिता तुम्हें तंग करते रहते हैं : ‘जल्दी करो, जब तक मेरी उम्र बहुत नहीं हुई तब तक बच्चा कर लो। मैं उसका ख्याल रखूँगी।’ तुम कहते हो, ‘मेरे बच्चों का ख्याल रखने के लिए मुझे आपकी जरूरत नहीं है। फिक्र मत कीजिए।’ वे जवाब देते हैं, ‘“फिक्र मत कीजिए” का क्या मतलब है? जल्दी से बच्चा कर लो! उसके पैदा होने के बाद तुम्हारे लिए मैं उसकी देखभाल करूंगी। वह थोड़ा बड़ा हो जाए तो तुम ख्याल रख लेना।’ अपने बच्चों से माता-पिता की जो भी अपेक्षाएँ होती हैं—उनका रवैया चाहे जो हो या ये अपेक्षाएँ सही हों या न हों—ये हमेशा बच्चों को बोझ जैसे लगते हैं। अगर वे अपने माता-पिता की बात मान लें, तो उन्हें आराम और खुशी नहीं मिलेगी। अगर वे अपने माता-पिता की बात न मानें, तो उनकी अंतरात्मा दोषी महसूस करेगी : ‘मेरे माता-पिता गलत नहीं हैं। उनकी इतनी उम्र हो गई है, और वे मुझे शादी करते या मेरे बच्चे होते हुए नहीं देख रहे हैं। वे दुखी हैं, इसलिए मुझसे शादी करने और मेरे बच्चे होने का आग्रह करते हैं। यह भी उनकी जिम्मेदारी है।’ तो, इस बारे में माता-पिता की अपेक्षाओं से पेश आते हुए लोगों के मन में कहीं गहरे यह भावना होती है कि यह एक बोझ है। वे सुनें या न सुनें, यह गलत लगता है, और किसी भी स्थिति में उन्हें लगता है कि अपने माता-पिता की माँगों या आकांक्षाओं का पालन न करना बहुत शर्मनाक और अनैतिक है। यह ऐसा मामला है जो उनके जमीर पर बोझ बन जाता है। कुछ माता-पिता अपने बच्चों के जीवन में दखल भी देते हैं : ‘जल्दी करो, शादी करके बच्चे कर लो। पहले मुझे एक स्वस्थ पोता दे दो।’ इस तरह वे बच्चे के लिंग के मामले में भी दखलंदाजी करते हैं। कुछ माता-पिता यह भी कहते हैं, ‘अभी तुम्हारी एक बेटी है न, जल्दी से मुझे एक पोता दे दो, मुझे पोता-पोती दोनों चाहिए। तुम दोनों परमेश्वर में विश्वास रखने और पूरा दिन अपने कर्तव्य निर्वहन में व्यस्त हो। तुम अपना काम ढंग से नहीं कर रहे हो; बच्चे होना बड़ी बात है। तुम्हें नहीं पता, “तीन संतानोचित दोषों में से कोई वारिस न होना सबसे बुरा है”? क्या तुम्हें लगता है कि सिर्फ एक बेटी होना काफी है? जल्दी करो और मुझे एक पोता भी दे दो! हमारे परिवार में तुम अकेले हो; अगर तुमने पोता नहीं दिया, तो क्या हमारा वंश खत्म नहीं हो जाएगा?’ तुम चिंतन करते हो, ‘सही बात है, अगर मेरे साथ यह वंश खत्म हो गया, तो क्या मैं अपने पूर्वजों को निराश नहीं कर दूँगा?’ तो, शादी न करना गलत है, और शादी करने के बाद बच्चे न होना भी गलत है; मगर यह भी काफी नहीं है कि सिर्फ एक बेटी हो, एक बेटा भी जरूर होना चाहिए। कुछ लोगों का पहले बेटा होता है, मगर उनके माता-पिता कहते हैं, ‘एक काफी नहीं है। अगर कुछ हो गया तो? एक और हो ताकि वे एक-दूसरे का साथ दे सकें।’ अपने बच्चों के विषय में माता-पिता का कहा कानून होता है, और वे बेहद अविवेकी हो सकते हैं, वे सबसे टेढ़े तर्क देने में सक्षम होते हैं—उनके बच्चे समझ नहीं पाते कि इनसे कैसे निपटें। माता-पिता दखल देते हैं और अपने बच्चों के जीवन, कार्य, शादी और विभिन्न चीजों के प्रति उनके रवैयों की आलोचना करते हैं। बच्चे बस अपना गुस्सा पी सकते हैं। वे अपने माता-पिता से छिप नहीं सकते, या उन्हें झटक नहीं सकते। वे अपने ही माता-पिता को डाँट नहीं सकते, शिक्षित नहीं कर सकते—तो वे क्या कर सकते हैं? वे उसे सहते हैं, जितना हो सके उनसे उतना कम मिलने की कोशिश करते हैं, और मिलना ही पड़े तो इन मसलों को उठाने से बचते हैं। और अगर ये मामले उठे भी, तो वे उन्हें फौरन काटकर कहीं जाकर छिप जाते हैं। मगर ऐसे भी कुछ लोग हैं जो अपने माता-पिता की अपेक्षाओं को पूरा करने और उन्हें निराश न करने के लिए, अपने माता-पिता की माँगें पूरी करने को राजी हो जाते हैं। हो सकता है तुम डेटिंग, शादी, और बच्चे होने की दिशा में बेमन से आगे बढ़ जाओ। लेकिन एक बच्चा होना काफी नहीं है; तुम्हारे कई बच्चे होने चाहिए। तुम यह अपने माता-पिता की माँगें पूरी करने और उन्हें खुश और प्रफुल्लित करने के लिए करते हो। चाहे तुम अपने माता-पिता की कामनाएँ पूरी कर सको या नहीं, उनकी माँगें किसी भी बच्चे को परेशान करने वाली ही होंगी। तुम्हारे माता-पिता कानून के खिलाफ कुछ नहीं कर रहे हैं, और तुम उनकी आलोचना नहीं कर सकते, इस बारे में किसी दूसरे से बात नहीं कर सकते, या उनसे तर्क-वितर्क नहीं कर सकते। तुम्हारे यूँ सोच-विचार करने से यह मामला तुम्हारे लिए बोझ बन जाता है। तुम्हें हमेशा लगता है कि अगर तुम शादी और बच्चों को लेकर अपने माता-पिता की माँगें पूरी नहीं कर सकते, तो तुम एक साफ जमीर के साथ अपने माता-पिता और पूर्वजों का सामना नहीं कर पाओगे। अगर तुम अपने माता-पिता की माँगें पूरी नहीं करते—यानी तुम किसी के साथ घूमते-फिरते नहीं, शादी नहीं करते, और तुम्हारे बच्चे नहीं हुए हैं, और उनके कहे अनुसार तुमने परिवार का वंश जारी नहीं रखा है—तो तुम अपने भीतर एक दबाव महसूस करोगे। तुम्हें थोड़ा आराम तभी मिलेगा अगर तुम्हारे माता-पिता कहें कि वे इन मामलों में दखल नहीं देंगे, और तुम्हें चीजें जैसी भी हों उन्हें अपनाने की आजादी देंगे। हालाँकि अगर तुम्हारे विस्तारित संबंधियों, दोस्तों, सहपाठियों, सहयोगियों और बाकी सबसे आने वाली सामाजिक प्रतिक्रिया तुम्हारी निंदा करने और तुम्हारी पीठ पीछे बातें बनाने का हो, तो यह भी तुम्हारे लिए एक बोझ होगा। जब तुम 25 के हो और अविवाहित हो, तो तुम नहीं सोचते कि इससे कोई फर्क पड़ता है, लेकिन 30 के होने पर, तुम्हें लगने लगता है कि यह उतनी अच्छी बात नहीं है, इसलिए तुम इन रिश्तेदारों और परिवार के सदस्यों से बचते हो और यह विषय नहीं उठाते। और अगर 35 की उम्र में भी तुम अविवाहित रहो, तो लोग कहेंगे, ‘तुमने शादी क्यों नहीं की? क्या तुममें कोई खोट है? तुम अजीब किस्म के इंसान हो, है कि नहीं?’ अगर तुम शादीशुदा हो मगर बच्चे नहीं चाहते, तो वे कहेंगे, ‘शादी करने के बाद तुम्हारे बच्चे क्यों नहीं हैं? दूसरे लोग शादी करते हैं, उनकी एक बेटी और फिर एक बेटा होता है या एक बेटा और फिर एक बेटी होती है। तुम्हें बच्चे क्यों नहीं चाहिए? आखिर माजरा क्या है? क्या तुम्हारे भीतर मानवीय भावनाएँ नहीं हैं? क्या तुम एक सामान्य व्यक्ति हो भी?’ ये बातें माता-पिता कहें या समाज, अलग-अलग माहौल और पृष्ठभूमि में ये मसले तुम्हारे लिए बोझ बन जाएँगे। तुम्हें लगता है तुम गलत हो, खास तौर से अपनी इस उम्र में। मिसाल के तौर पर, अगर तुम तीस और पचास के बीच हो, और अभी भी शादी नहीं की है, तो तुम लोगों से मिलने की हिम्मत नहीं करोगे। वे कहते हैं, ‘उस महिला ने अपनी पूरी जिंदगी शादी नहीं की है, वह एक अधेड़ अविवाहिता है, किसी को वह नहीं चाहिए, कोई उससे शादी नहीं करेगा।’ ‘वह आदमी, उसकी पूरी जिंदगी उसकी कोई पत्नी नहीं रही।’ ‘उन लोगों ने शादी क्यों नहीं की?’ ‘किसे पता, शायद उनके साथ कोई गड़बड़ है।’ तुम सोच-विचार करते हो, ‘मेरे साथ कोई गड़बड़ नहीं है। तो फिर मैंने शादी क्यों नहीं की? मैंने अपने माता-पिता की नहीं सुनी, और मैं उन्हें निराश कर रहा हूँ।’ लोग कहते हैं, ‘वह आदमी शादीशुदा नहीं है, वह लड़की शादीशुदा नहीं है। देखो, उनके माता-पिता अब कितने दयनीय हैं। दूसरे माता-पिता के नाती-पोते हैं, और पड़नाती और पड़पोते भी हैं, मगर ये अभी भी एकल हैं। उनके पूर्वजों ने जरूर कोई भयानक काम किया होगा, है ना? क्या यह परिवार को बिना वंशज के छोड़ देना नहीं है? वंश जारी रखने के लिए उनके कोई वंशज नहीं होंगे। उस परिवार के साथ क्या माजरा है?’ तुम्हारा मौजूदा रवैया चाहे जितना जिद्दी हो, अगर तुम एक नश्वर साधारण इंसान हो, और तुम्हें इस बात को समझने के लिए पर्याप्त सत्य प्राप्त न हो, तो देर-सवेर, तुम इससे परेशान और विचलित हो जाओगे(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (16))। परमेश्वर के वचन ने मेरी सटीक मनोदशा उजागर कर दी। मैं जानता था कि शादी करना बड़ी उलझन है और इससे सत्य का अनुसरण करने या अपना कर्तव्य निभाने में कोई लाभ नहीं होगा, इसलिए मैं शादी नहीं करना चाहता था। लेकिन जब मैं तीस साल का हुआ और न मेरी शादी हुई थी न ही बच्चे थे तो मेरे रिश्तेदारों और मित्रों ने मेरा मजाक उड़ाया और मेरी आलोचना की। न तो मुझे और न ही मेरे माता-पिता को लगा कि हम अपना सिर ऊँचा रख सकते हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि मेरे माता-पिता ने बार-बार मुझसे शादी करने का आग्रह किया ताकि परिवार की वंशावली न टूटे। उन्होंने सक्रियता से मेरे लिए संभावित जीवनसाथियों से परिचय भी कराया। यह सब “तीन संतानोचित दोषों में से कोई वारिस न होना सबसे बुरा है” और “जब पुरुष वयस्क हो जाएँ तो उन्हें शादी कर लेनी चाहिए; जब महिलाएँ वयस्क हो जाएँ तो उन्हें शादी कर लेनी चाहिए” की पारंपरिक धारणाओं से बंधे होने का नतीजा था। हमने शैतान द्वारा हमारे अंदर डाले गए इन भ्रामक विचारों को अपने आचरण और कार्यकलापों को निर्देशित करने वाले सिद्धांतों के रूप में माना था। हमारा मानना था कि माता-पिता को अपने बच्चों की शादी और करियर बनाने की चिंता करनी चाहिए ताकि परिवार की वंशावली आगे बढ़ाने के लिए बच्चे हों, जबकि बच्चों को इसके लिए तैयार रहना चाहिए और भरपूर वंशज सुनिश्चित करने के लिए स्वयं बच्चे पैदा करने चाहिए, ताकि उनके माता-पिता बच्चों और नाती-पोतों से भरे घर का आनंद ले सकें। अगर बच्चे ऐसा नहीं करते तो यह बहुत ही विद्रोही और गैर-संतानोचित होता। मैं अपने माता-पिता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया, मेरे कारण उन्हें चिंता और दुख हुआ और उनका नाम खराब हुआ। मुझे लगा कि एक बेटे के रूप में मैं बहुत स्वार्थी और गैर-संतानोचित था। मैं रिश्तेदारों और दोस्तों की निंदा सहन नहीं कर सका और अपने माता-पिता के प्रति अपना कर्ज चुकाने के लिए शादी करने के बारे में सोचने लगा। लेकिन मैं सत्य का अनुसरण करने और अपना कर्तव्य निभाने के लिए अपनी अनुकूल परिस्थितियों को गँवाना नहीं चाहता था। नतीजतन मैं ठीक से खा या सो नहीं पाता था और तनाव में जीता था। परमेश्वर ने लोगों को यह तय करने का अधिकार दिया है कि वे संतान पैदा करें या नहीं और लोग जो भी चुनते हैं, वह उचित है। लेकिन शैतान पारंपरिक धारणाओं जैसे कि “तीन संतानोचित दोषों में से कोई वारिस न होना सबसे बुरा है,” और “जब पुरुष वयस्क हो जाएँ तो उन्हें शादी कर लेनी चाहिए; जब महिलाएँ वयस्क हो जाएँ तो उन्हें शादी कर लेनी चाहिए” का इस्तेमाल लोगों को बाध्य करने के लिए करता है, ताकि किसी व्यक्ति में मानवता है या नहीं और वह संतानोचित है या नहीं, इसका मूल्यांकन उसकी वैवाहिक स्थिति और उसके बच्चे हैं या नहीं, के आधार पर किया जाता है, न कि उसके चरित्र के आधार पर और परमेश्वर के वचनों के आधार पर तो कतई नहीं। इस तरह न सिर्फ लोग किसी का निष्पक्ष मूल्यांकन करने में असमर्थ होंगे, बल्कि हर कोई दूसरों द्वारा निंदा और तिरस्कार के डर से शादी करने और परिवार की वंशावली आगे बढ़ाने के लिए जीने को मजबूर हो जाएगा। सच में शादी न करने का मतलब अपने माता-पिता के प्रति गैर-संतानोचित होना नहीं है। कुछ लोग गंभीर रिश्तों पर विचार नहीं करना चाहते क्योंकि वे अपने करियर में व्यस्त होते हैं। कुछ लोग जीवन के दबाव के कारण शादी नहीं करते हैं। मैंने शादी न करने का फैसला किया ताकि मैं सृजित प्राणी के कर्तव्य अच्छी तरह से कर सकूँ। यह मेरी स्वतंत्रता और सबसे सही विकल्प है। लेकिन मेरे पास सत्य नहीं था और मैं चीजों की असलियत नहीं देख पाता था, इसलिए मैं पारंपरिक धारणाओं से बंधा हुआ था और मुक्ति नहीं पा सका। मैं सिर्फ अपने परिवार के दबाव और सामाजिक राय की निंदा को असहाय रूप से सहन कर सकता था। मैं और मेरे पिता कई साल से परमेश्वर में विश्वास रखते थे, फिर भी हम इन भ्रामक दृष्टिकोणों पर भरोसा करके चीजों को देखते थे और अभी भी इन पारंपरिक धारणाओं से बंधे और जकड़े हुए थे। हम वाकई बहुत मूर्ख थे!

एक दिन मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “वंश टूट भी गया तो क्या हो जाएगा? क्या यह सिर्फ देह के कुलनामों का मामला नहीं है? आत्माओं का एक-दूसरे से कोई रिश्ता नहीं होता; उनके बीच कहने जैसी कोई विरासत या निरंतरता नहीं होती। मानवजाति का एक पूर्वज है; सभी लोग उसी पूर्वज के वंशज हैं, इसलिए मानव वंश की समाप्ति का कोई प्रश्न ही नहीं है। वंश चलाना तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं है। जीवन में सही पथ पर चलना, स्वतंत्र और आजाद जीवन जीना, और सच्चा सृजित प्राणी बनना ही वे बातें हैं जिनका लोगों को अनुसरण करना चाहिए। मानवजाति को आगे बढ़ाने वाली एक मशीन बनना वह बोझ नहीं है जो तुम्हें ढोना चाहिए। किसी परिवार की खातिर प्रजनन कर वंश को जारी रखना भी तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं है। परमेश्वर ने तुम्हें यह जिम्मेदारी नहीं दी है। जिसे भी संतानें पैदा करनी हों, कर सकता है; जो भी अपना वंश जारी रखना चाहे, रख सकता है; जो भी यह जिम्मेदारी उठाना चाहे, उठा सकता है; इसका तुमसे कोई लेना-देना नहीं है। अगर तुम यह जिम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं हो, और यह दायित्व पूरा करने की इच्छा नहीं रखते, तो ठीक है, यह तुम्हारा अधिकार है। क्या यह उपयुक्त नहीं है? (हाँ।)” (वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (16))। परमेश्वर के वचनों ने मेरे हृदय में बड़ी स्पष्टता और प्रबुद्धता लाई, मानो कोई भारी बोझ उतर गया हो। मैं समझ गया कि लोगों पर परिवार की वंशावली आगे बढ़ाने की कोई जिम्मेदारी नहीं है। शुरुआत में परमेश्वर ने आदम और हव्वा को बनाया, जो मानवजाति के पूर्वज थे, निरंतर प्रजनन के माध्यम से मानवजाति ने कुलों और परिवारों का सृजन किया, लेकिन एक व्यक्ति की आत्मा किसी एक कुल या परिवार से विशेष रूप से संबंधित नहीं होती है। परमेश्वर संप्रभु है और वह व्यवस्था करता है कि कौन किस परिवार में जाएगा। इस जीवन में तुम ली परिवार में पैदा हो सकते हो; अगले जीवन में तुम झाओ परिवार में पैदा हो सकते हो और उसके बाद के जीवन में परमेश्वर तुम्हारे लिए विदेश में जन्म लेने की व्यवस्था कर सकता है। उपनाम किसी व्यक्ति का पहचान-चिह्न होता है और कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी व्यक्ति का उपनाम क्या है, अंतिम विश्लेषण में हम सभी सृजित मानवता हैं और हमारे जीवन का स्रोत परमेश्वर है। पहले मैंने इस मामले को स्पष्टता से नहीं देखा था। मैंने हमेशा यह माना था कि चूँकि मेरे परिवार की तीन पीढ़ियाँ सिर्फ बेटों के माध्यम से आगे बढ़ी हैं तो अगर मैं अपनी पीढ़ी में शादी नहीं करता हूँ और बच्चे पैदा नहीं करता हूँ तो मैं परिवार की वंशावली खत्म कर दूँगा और अपने माता-पिता और पूर्वजों को निराश करूँगा। नतीजतन मैंने अपने दिल में खुद को दोषी ठहराया। परमेश्वर के वचनों ने मुझे समझाया कि लोगों की आत्माओं का एक-दूसरे से कोई संबंध नहीं है। अगर मैं शादी नहीं करना या बच्चे पैदा नहीं करना चाहता तो इसका इस बात पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता कि मैं संतानोचित हूँ या नहीं। मैं और मेरे माता-पिता अपने-अपने मिशन के साथ इस दुनिया में आए हैं। परमेश्वर ने कर्तव्य करने के लिए परमेश्वर के घर आने की अनुमति देकर मुझ पर अनुग्रह किया और मैंने अपने कर्तव्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए सांसारिक उलझनों को छोड़ना चुना। यह सही मार्ग पर चलना और उचित कर्तव्यों का पालन करना है। यह परमेश्वर द्वारा अनुमोदित है।

बाद में मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े : “जहाँ तक शादी की बात है, आओ पहले इस तथ्य को किनारे रख दें कि शादी परमेश्वर द्वारा नियत होती है। इस मामले के प्रति परमेश्वर का रवैया लोगों को खुद चुनने का अधिकार देने का है। तुम चुन सकते हो कि तुम्हें एकल रहना है या शादी करनी है; तुम एक दंपत्ति के रूप में जी सकते हो, या एक भरा-पूरा परिवार बना सकते हो। यह तुम्हारी आजादी है। ये चुनने का तुम्हारा आधार चाहे जो हो, या तुम जो भी उद्देश्य या परिणाम पाना चाहते हो, संक्षेप में कहें, तो यह अधिकार तुम्हें परमेश्वर ने दिया है; चुनने का अधिकार तुम्हारे पास है। ... हालाँकि परमेश्वर ने तुम्हें ऐसा अधिकार दिया है, पर इस अधिकार का प्रयोग करते समय तुम्हें सावधानी से विचार करना होगा कि तुम क्या चुनने वाले हो, और इस चयन के क्या नतीजे हो सकते हैं। नतीजे चाहे जो भी हों, तुम्हें दूसरों को दोष नहीं देना चाहिए, न ही परमेश्वर को। तुम्हें अपने चयन के नतीजों की जिम्मेदारी खुद उठानी चाहिए। ... एक ओर, शादी को चुनने का यह मतलब नहीं है कि तुमने इस तरह अपने माता-पिता की दयालुता का कर्ज चुका दिया है या अपना संतानोचित कर्तव्य निभा दिया है; बेशक एकल रहना चुनने का यह अर्थ भी नहीं है कि तुम अपने माता-पिता की अवज्ञा कर रहे हो। दूसरी ओर, शादी करने या कई बच्चे होने को चुनना परमेश्वर के प्रति विद्रोह करना नहीं है। इसके लिए तुम्हारी निंदा नहीं की जाएगी। न ही एकल रहने के चुनाव के कारण अंततः परमेश्वर तुम्हें उद्धार दे देगा। संक्षेप में कहें, तो चाहे तुम एकल हो या शादीशुदा, या तुम्हारे कई बच्चे हों, परमेश्वर इन घटकों के आधार पर यह निर्धारित नहीं करेगा कि आखिरकार तुम बचाए जाओगे या नहीं। परमेश्वर तुम्हारी वैवाहिक पृष्ठभूमि या वैवाहिक स्थिति पर ध्यान नहीं देता; वह सिर्फ इस बात पर गौर करता है कि क्या तुम सत्य का अनुसरण करते हो, अपने कर्तव्य निभाने के प्रति तुम्हारा रवैया क्या है, तुमने कितना सत्य स्वीकार कर उसके प्रति समर्पण किया है, और क्या तुम सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करते हो। आखिरकार, परमेश्वर भी यह निर्धारित करने के लिए कि तुम बचाए जाओगे या नहीं, तुम्हारे जीवन पथ, तुम्हारे जीने के सिद्धांतों और तुम्हारे द्वारा चुने गए जीवित रहने के नियमों की जाँच करने के लिए तुम्हारी वैवाहिक स्थिति को किनारे रख देगा। बेशक, हमें एक तथ्य का जिक्र जरूर करना चाहिए। जिन्होंने शादी नहीं की है या शादी छोड़ दी है, उन्हीं की तरह एकल या तलाकशुदा लोगों के हित में एक बात है, और वह यह है कि विवाह-तंत्र में किसी व्यक्ति या चीज के प्रति उन्हें जिम्मेदार होने की जरूरत नहीं है। उन्हें इन जिम्मेदारियों और दायित्वों का बोझ उठाने की जरूरत नहीं है, इसलिए वे अपेक्षाकृत ज्यादा स्वतंत्र होते हैं। समय के मामले में उन्हें ज्यादा आजादी होती है, उनमें अधिक जोश होता है, और कुछ हद तक ज्यादा व्यक्तिगत स्वतंत्रता होती है। मिसाल के तौर पर, बतौर एक वयस्क, जब तुम अपने कर्तव्य निभाने बाहर जाते हो, तो कोई तुम्हें प्रतिबंधित नहीं कर सकता—तुम्हारे माता-पिता को भी यह अधिकार नहीं है। तुम खुद परमेश्वर से प्रार्थना करोगे, वह तुम्हारे लिए व्यवस्थाएँ करेगा, और तुम अपना सामान बाँध कर जा सकोगे। लेकिन अगर तुम शादीशुदा हो और तुम्हारा एक परिवार है, तो तुम उतने आजाद नहीं होगे। तुम्हें उनके प्रति जिम्मेदार होना होगा। सबसे पहले, जीवन स्थितियों और रुपये-पैसों के मामले में, तुम्हें कम-से-कम उन्हें खाना-कपड़ा मुहैया करना होगा, और जब तुम्हारे बच्चे छोटे हों, तो तुम्हें उन्हें स्कूल लाना-ले जाना होगा। तुम्हें ये जिम्मेदारियाँ संभालनी होंगी। इन स्थितियों में, विवाहित लोग आजाद नहीं होते हैं, क्योंकि उन्हें सामाजिक और पारिवारिक दायित्व पूरे करने होते हैं। जो अविवाहित हैं और जिनके कोई बच्चे नहीं हैं, उनके लिए यह अधिक सरल होता है। परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य निभाते समय वे भूखे नहीं रहेंगे या उन्हें ठंड नहीं लगेगी; उनके पास खाना और आसरा दोनों होंगे। उन्हें पारिवारिक जीवन की जरूरतों की खातिर काम करने और पैसे कमाने के लिए भाग-दौड़ नहीं करनी पड़ती। यही अंतर है। अंत में, जब शादी का मामला आता है, तो बात वही रहती है : तुम्हें कोई बोझ नहीं उठाने चाहिए। चाहे तुम्हारे माता-पिता की अपेक्षाएँ हों, समाज के पारंपरिक नजरिये हों, या तुम्हारी अपनी अंधाधुंध आकांक्षाएँ, तुम्हें कोई बोझ नहीं उठाने चाहिए(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (16))। परमेश्वर के वचनों से मुझे समझ आया कि लोगों को शादी करने या न करने के अपने चुनाव में कोई बोझ नहीं उठाना चाहिए। परमेश्वर ने हमें स्वतंत्र रूप से चुनने का अधिकार दिया है। अगर मैं शादी करता हूँ तो परमेश्वर मुझे दोषी नहीं ठहराएगा, न ही वह यह निर्धारित करेगा कि मुझे सिर्फ इसलिए बचाया जा सकता है क्योंकि मैंने शादी नहीं करना चुना है। परमेश्वर लोगों की वैवाहिक स्थिति के आधार पर उनके परिणामों का निर्धारण नहीं करता है। वह देखता है कि क्या लोगों ने परमेश्वर में अपने विश्वास में सत्य में प्रवेश किया है और क्या उन्होंने अपने कर्तव्य अच्छी तरह से किए हैं। सत्य की खोज में सभी समान हैं। असल में मुझे यह भी एहसास हुआ कि अविवाहित रहने से भाई-बहनों को सत्य का अनुसरण करने और अपने कर्तव्य करने में कुछ लाभ मिलते हैं। परिवार की उलझनों के बिना उनके पास अपने कर्तव्य करने और परमेश्वर के वचनों पर विचार करने के लिए अधिक समय और ऊर्जा होती है। यह लोगों के लिए सत्य में प्रवेश करने के लिए लाभदायक है। जब मैंने देखा कि दुनिया भर में परमेश्वर में कई नए विश्वासियों ने परमेश्वर की गवाही देने के लिए सुसमाचार का प्रचार करना शुरू कर दिया है तो मैंने परमेश्वर ने जो कहा है उस पर विचार किया : “बड़े लाल अजगर के उत्तरोत्तर ढहने का सबूत परमेश्वर के लोगों की निरंतर परिपक्वता में देखा जा सकता है; मनुष्य इसे स्पष्ट रूप से देख सकता है। परमेश्वर के लोगों की परिपक्वता दुश्मन की मृत्यु का संकेत है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 10)। परमेश्वर का कार्य लगभग समाप्त होने को है और अब आपदाएँ और भी गंभीर होती जा रही हैं। अगर हम अभी अपने कर्तव्यों में अधिक समय और ऊर्जा नहीं लगाते हैं तो बाद में सत्य का उचित तरीके से अनुसरण करने या अपने कर्तव्य करने का अवसर नहीं मिलेगा, भले ही हम ऐसा करना चाहें। अब दुनिया भर के भाई-बहन सक्रियता से अपने कर्तव्य कर रहे हैं और परमेश्वर के कार्य का प्रसार कर रहे और उसकी गवाही दे रहे हैं। ये अच्छे कर्म हैं, जिन्हें परमेश्वर याद रखता है। आज मैंने शादी न करने का चुनाव किया है। मुझे अपना कर्तव्य ठीक से निभाना है, अपने भ्रष्ट स्वभाव दूर करने के लिए नियमित रूप से परमेश्वर के वचनों पर विचार करना है और सत्य का अनुसरण करने के लिए अपने समय का उपयोग करना है। सिर्फ तभी जब मैं परमेश्वर की गवाही दे सकूँ और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से कर सकूँ, यह जीवन व्यर्थ नहीं जाएगा। यह समझने के बाद मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “प्रिय परमेश्वर, मैंने शादी नहीं करने और अपने सारे समय का उपयोग अपनी स्वतंत्र इच्छा से अपने कर्तव्य करने में लगाने का चुनाव किया है। सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चलने और अपने भ्रष्ट स्वभाव सुलझाने के लिए परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और अनुभव करने में तुम मेरा मार्गदर्शन करो।”

बाद में मैंने परमेश्वर के और भी वचन पढ़े : “अपने माता-पिता से पेश आने में पहले तुम्हें तर्कसंगत रूप से इस रक्त संबंध से बाहर निकलना चाहिए और तुम जो सत्य पहले ही स्वीकार और समझ चुके हो उसका प्रयोग कर अपने माता-पिता का भेद पहचानना चाहिए। अपने माता-पिता का भेद इस आधार पर पहचानो कि कार्य और आचरण करने के बारे में उनके विचार, दृष्टिकोण और प्रयोजन क्या हैं और कार्य और आचरण करने के बारे में उनके सिद्धांत और तौर-तरीके क्या हैं, जिससे यह पुष्टि हो जाएगी कि वे भी शैतान द्वारा भ्रष्ट किए हुए लोग हैं। सत्य के परिप्रेक्ष्य से अपने माता-पिता को देखो और उनका भेद पहचानो, न कि उन्हें हमेशा ऊँचा, निस्वार्थ और तुम्हारे प्रति दयालु समझो; अगर तुम उन्हें इस तरह देखोगे, तो कभी पता नहीं लगा पाओगे कि उनकी समस्याएँ क्या हैं। अपने माता-पिता को अपने पारिवारिक रिश्तों या पुत्र-पुत्री की भूमिका के परिप्रेक्ष्य से मत देखो। इस घेरे से बाहर कदम रखो और देखो कि वे दुनिया, सत्य, लोगों, घटनाओं और चीजों से कैसे निपटते हैं। साथ ही, और ज्यादा विशिष्ट रूप से, लोगों और चीजों को देखने और अपना आचरण और कार्य करने के बारे में उन विचारों और सोच पर गौर करो जिनकी शिक्षा का प्रभाव तुम्हारे माता-पिता ने तुममें डाला है—तुम्हें इसी तरीके से उन्हें मानना और उनका भेद पहचानना चाहिए। इस प्रकार, उनके मानवीय गुण और शैतान द्वारा उनके भ्रष्ट होने की सच्चाई थोड़ा-थोड़ा कर स्पष्ट हो जाएगी। वे किस प्रकार के लोग हैं? अगर वे विश्वासी नहीं हैं, तो परमेश्वर में विश्वास रखने वाले लोगों के प्रति उनका रवैया क्या है? अगर वे विश्वासी हैं तो सत्य के प्रति उनका रवैया क्या है? क्या वे ऐसे लोग हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं? क्या वे सत्य से प्रेम करते हैं? क्या उन्हें सकारात्मक चीजें पसंद हैं? जीवन और दुनिया के बारे में उनका नजरिया क्या है? वगैरह-वगैरह। अगर इन चीजों के आधार पर तुम अपने माता-पिता को जान सको, तो तुम्हारे मन में स्पष्टता होगी। एक बार ये विषय स्पष्ट होने पर, तुम्हारे मन में बसी अपने माता-पिता की ऊँची, शिष्ट और अडिग हैसियत बदल जाएगी। इसके बदलने पर तुम्हारे माता-पिता द्वारा दिखाया गया मातृ और पितृ प्रेम—साथ ही उनकी विशेष बातें और कार्य तथा उनके बारे में तुम्हारे मन में बसी वे ऊँची छवियाँ—उनकी छाप अब तुम्हारे मन में उतनी गहरी नहीं होगी। तुम्हारे बिना जाने तुम्हारे प्रति तुम्हारे माता-पिता के प्रेम की निस्वार्थता और महानता और साथ ही तुम्हारी देखभाल और रक्षा के प्रति उनके समर्पण और तुम्हारे प्रति अनुराग का तुम्हारे मन में महत्वपूर्ण स्थान नहीं रह जाएगा(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (13))। परमेश्वर के वचनों ने मुझमें जागृति उत्पन्न कर दी। मुझे याद आया कि कैसे मेरे माता-पिता बार-बार मुझसे शादी करने के लिए कहते थे। सतह पर मेरे माता-पिता मेरे बारे में सोच रहे थे और चिंतित थे कि मैं अकेला रहूँगा, लेकिन सार में वे पारंपरिक धारणाओं पर निर्भर होकर जी रहे थे, जिसके कारण मैं देह के पारिवारिक जीवन में फँस जाता और सत्य का अनुसरण करने के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ गँवा देता। यह शैतान की बाधाओं से उत्पन्न होता है। पहले मैं हमेशा चीजों को देह और पारिवारिक स्नेह के नजरिए से देखता था; मैं सत्य के अनुसार चीजों का भेद नहीं पहचानता था। मैं हमेशा सोचता था कि मेरे माता-पिता मुझे शादी करने के लिए कह रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि यह मेरे लिए अच्छा होगा और उनकी बात अस्वीकार करने के लिए मुझे अपराध बोध हुआ। अगर परमेश्वर के वचनों ने बार-बार मेरा मार्गदर्शन नहीं किया होता तो मैं इन पारंपरिक सांस्कृतिक मूल्यों का भेद बिल्कुल भी नहीं पहचान पाता। अब मुझे परमेश्वर में विश्वास रखने और अपना मार्ग चुनने के मामले में परमेश्वर के वचनों का पालन करना था। मैं अपने माता-पिता से प्रभावित नहीं हो सकता। अगर वे जो कहते हैं वह परमेश्वर के वचनों के अनुसार है तो मैं उसका पालन कर सकता हूँ; लेकिन अगर वह सत्य के विपरीत है और मेरे जीवन के लिए लाभदायक नहीं है तो मुझे उसे नकार देना चाहिए। जब मैंने यह समझ लिया तो मेरे दिल में शादी न करने का फैसला करने पर कोई दबाव महसूस नहीं हुआ।

उसके बाद मुझे अपने पिता के साथ अपनी अनुभवजन्य समझ के बारे में संगति करने के लिए पत्र लिखने का समय मिला, ताकि वे भी परमेश्वर के वचनों से सत्य समझ सकें और पारंपरिक धारणाओं के नुकसान को पीछे छोड़ सकें। बाद में मेरे पिता ने जवाब में एक पत्र लिखा, “तुम्हारा अनुभव बहुत अच्छा लिखा गया है। उस समय मैं पारंपरिक विचारों के कारण तुमसे एक साथी खोजने के लिए कहना चाहता था। तुम्हारा पत्र पढ़ने के बाद मैं वाकई तुम्हारी पसंद की प्रशंसा करता हूँ। मेरे लिए तुम्हारे द्वारा खोजे गए परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैं भी इस दृष्टिकोण को बदलने में सक्षम हूँ। अतीत में मैंने दैहिक स्नेह पर भरोसा करके तुम्हें परेशान किया था, लेकिन अब मैं समझता हूँ कि तुम अपना सारा समय अपने कर्तव्य करने में लगाने के लिए शादी नहीं करना चाहते हो, जो सबसे सार्थक बात है!” अपने पिता का उत्तर देखकर मैं बहुत संतुष्ट हुआ। परमेश्वर के वचन सत्य हैं। उन्होंने हमारे गलत विचारों और दृष्टिकोणों को बदल दिया। उन्होंने हमें पारंपरिक धारणाओं की बाधाओं से मुक्त किया ताकि हम स्वतंत्रता और मुक्ति में अपने कर्तव्य कर सकें। मैंने परमेश्वर के उद्धार और परमेश्वर के प्रेम का स्पष्ट अनुभव किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद और स्तुति हो!

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