60. मैं अपने कर्तव्य को लेकर मीनमेख क्यों निकालती थी?

झोउ फेंग, चीन

जुलाई 2023 में, प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने और वास्तविक काम न करने के कारण मुझे अगुआ के पद से बरखास्त कर दिया गया। दो हफ़्ते बाद, मेरी पूर्व सहयोगी, बहन लियू शिआओ, मुझसे मिलने आई। उसने कहा, “सीसीपी अब जगह-जगह परमेश्वर में विश्वास करने वालों को गिरफ्तार कर रही है। कुछ मेजबान परिवारों के बारे में सबको पता है कि वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, इसलिए वे सुरक्षित नहीं हैं। तुम्हारे विश्वासी होने के बारे में ज्यादा पता नहीं है और तुम्हारे परिवार की स्थिति भी उपयुक्त है। अब से तुम अपने घर पर मेजबानी का कर्तव्य कर सकती हो।” लियू शिआओ को देखकर मुझे शर्मिंदगी महसूस हुई। मैंने सोचा, “अभी दो हफ़्ते पहले ही तो मैं उसके साथ मिलकर अगुआई का कर्तव्य निभा रही थी, और अब वह मेरा कर्तव्य तय करने आई है, उससे भी बुरा है कि यह मेजबानी का कर्तव्य है! मैं कितनी नीचे गिर गई हूँ! क्या वह सोचती है कि मैं सत्य का अनुसरण करने वाली इंसान नहीं हूँ और सिर्फ मेजबानी का कर्तव्य निभाने के लायक हूँ?” फिर मैंने सोचा कि मेजबानी का कर्तव्य निभाने वाले ज्यादातर भाई-बहन बड़ी उम्र के और औसत काबिलियत वाले होते हैं। अगर मुझे जानने वाले भाई-बहनों को पता चला कि मैं घर पर मेजबानी का कर्तव्य कर रही हूँ, तो यह कितनी शर्म की बात होगी! मैं तहे दिल से मेजबानी का कर्तव्य नहीं करना चाहती थी, और सोचती थी कि मेजबानी का कर्तव्य निम्न दर्जे का है, उन अगुआओं की तरह नहीं है जो जहाँ भी जाते हैं, प्रतिष्ठा और सम्मान पाते हैं। लेकिन जब कर्तव्य सामने हो तो उसे ठुकराना विवेक की कमी को दिखाता है, इसलिए मैं बेमन से मान गई। मैं मन ही मन यह भी सोच रही थी, “जब मैं आध्यात्मिक भक्ति और आत्म-चिंतन के जरिए खुद को थोड़ा समझ जाऊँगी, तो शायद मुझे कोई दूसरा कर्तव्य सौंप दिया जाएगा।”

मेजबानी का कर्तव्य शुरू करने के बाद, लियू शिआओ कभी-कभी भाई-बहनों के साथ काम पर चर्चा करने के लिए मेरे घर आती थी। मैंने सोचा कि कैसे मैं भी कभी उसी की तरह थी, लेकिन अब मैं उनके लिए खाना बना रही थी, रोज बर्तन धो रही थी और साफ-सफाई कर रही थी। इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या हो सकता था! एक दिन दरवाजे की घंटी बजी, मैंने दरवाजा खोला तो देखा कि बहन वांग डैन थी। मेरा चेहरा तुरंत शर्म से तमतमा गया। पहले की बातें सोचने लगी, हमेशा मैं ही वांग डैन को सारे काम सौंपती थी, लेकिन अब वांग डैन मेरे लिए काम की व्यवस्था कर रही थी। भाग्य में इतना बड़ा बदलाव बहुत शर्मनाक था! वांग डैन ने कहा, “अगले कुछ दिनों में, हम आपके घर में रह रहे भाई-बहनों को ले जाकर दूसरे मेजबान घर में स्थानांतरित कर देंगे।” यह सुनकर मैं बहुत खुश हुई, “क्या वे मेरे लिए कोई दूसरा कर्तव्य तय करने वाले हैं? जब तक यह मेजबानी का कर्तव्य नहीं है, मुझे नवागंतुकों का सिंचन करने या सुसमाचार का प्रचार करने में कोई आपत्ति नहीं है। जब तक मैं अपने भाई-बहनों के संपर्क में रह सकती हूँ, तो जब कलीसिया में चुनाव का दिन आएगा, तो मेरे पास अगुआ या उपयाजक के चुनाव में खड़े होने का मौका होगा। मेजबानी के कर्तव्य जैसा नहीं, जहाँ पहचान बनाने का भी मौका नहीं मिलता।” मैं ख्यालों में खोई हुई थी कि वांग डैन ने कहा, “हम उन्हें ले जाएँगे और उनकी जगह दूसरे भाई-बहनों को ले आएँगे।” यह सुनकर मुझे बहुत निराशा हुई। “यह मेजबानी का कर्तव्य कब खत्म होगा?” बाद में, मैंने ऊपरी अगुआओं का एक पत्र देखा। उसमें लिखा था कि सीसीपी परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों की जाँच-पड़ताल, तलाश और उन्हें गिरफ्तार कर रही है, और सभी को सुरक्षा पर ध्यान देना था और कलीसिया के हितों की रक्षा करनी थी, और खास तौर पर, मेजबान परिवारों को एक अच्छा माहौल बनाए रखना था और अपने भाई-बहनों की रक्षा करनी थी। पत्र पढ़ने के बाद, मैंने सोचा, “मौजूदा माहौल तेजी से तनावपूर्ण होता जा रहा है और हमें और अधिक सुरक्षित मेजबान परिवारों की जरूरत है। ऐसा लगता है कि मेरे मेजबानी के कर्तव्य में आसानी से बदलाव नहीं होगा।” उस दौरान मैं दिन भर उदास और दुखी रहती थी। जब मेरी बहनें रोजमर्रा की जिंदगी में कुछ ऐसा करतीं या कहतीं जो मुझे पसंद नहीं आता, तो मैं उन्हें देखकर चिढ़ जाती थी, और जब मैं सफाई कर रही होती थी और समेटने को बहुत सारी चीजें होतीं तो मुझे गुस्सा आता और मैं प्रतिरोधी महसूस करती थी। मुझे एक नौकरानी की तरह महसूस होता था, जो सारे गंदे और थकाऊ काम करती है, और मैं गुस्से में चीजों को पटक-पटक कर उठाती-रखती थी। मैं अपनी बहनों से बात करते समय भी खुश नहीं दिखती थी। उस दौरान, बहनें मुझसे बाधित रहती थीं, और मेरी अपनी दशा बद से बदतर होती गई। मैं नियमित रूप से आध्यात्मिक भक्ति भी नहीं करती थी, और कभी-कभी तो मैं फोन चलाकर मनमाने ढंग से देह की इच्छा पूरी करती थी। बहन ली लू ने देखा कि मेरी दशा खराब है, और मुझे परमेश्वर के और वचन पढ़ने, और भजन सीखने और लेख लिखने का अभ्यास करने की याद दिलाई, लेकिन मैंने उसकी बात नहीं सुनी। एक दिन, ली लू ने मेरी दशा की ओर इशारा किया, कहा कि हालाँकि मैं बाहर से अपना कर्तव्य कर रही थी, पर मैं राजी नहीं थी। उसकी बात सुनकर, मैंने थोड़ा प्रतिरोधी महसूस किया, “मैं हर दिन तुम लोगों के लिए खाना बनाने में व्यस्त रहती हूँ। यह अनिच्छुक होना कैसे हुआ?” बाद में, उसके शब्द बार-बार मेरे दिमाग में आते रहे। उस रात, मैं बिस्तर पर करवटें बदलती रही, सो नहीं पाई। मैंने मन ही मन सोचा, “मेरी बहन ने मेरी आलोचना क्यों की? परमेश्वर का इरादा क्या है?” मैंने सोचा कि हाल ही में मेरी दशा कैसे खराब हो गई थी और मैं अपने कर्तव्य पर ध्यान नहीं दे रही थी, या अपनी बहनों के लिए प्यार नहीं दिखा रही थी। मैं अक्सर उन्हें बुरी नजर से देखती और उन्हें बाधित करती थी... जितना मैंने इस बारे में सोचा, उतना ही मुझे दोषी और आत्म-ग्लानि महसूस हुई। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, विनती की कि वह मेरा मार्गदर्शन करे कि मैं खुद को समझ सकूँ। मुझे परमेश्वर के कुछ वचन याद आए जो मैंने पहले पढ़े थे : “तुम्हारा चाहे जो भी कर्तव्य हो, उसमें ऊँचे और नीचे के बीच भेद न करो। मान लो तुम कहते हो, ‘हालाँकि यह काम परमेश्वर का आदेश और परमेश्वर के घर का कार्य है, पर यदि मैं इसे करूँगा, तो लोग मुझे नीची निगाह से देख सकते हैं। दूसरों को ऐसा काम मिलता है, जो उन्हें विशिष्ट बनाता है। मुझे यह काम दिया गया है, जो मुझे विशिष्ट नहीं बनाता, बल्कि परदे के पीछे मुझसे कड़ी मेहनत करवाता है, यह अनुचित है! मैं यह कर्तव्य नहीं करूँगा। मेरा कर्तव्य वह होना चाहिए, जो मुझे दूसरों के बीच खास बनाए और मुझे प्रसिद्धि दे—और अगर प्रसिद्धि न भी दे या खास न भी बनाए, तो भी मुझे इससे लाभ होना चाहिए और शारीरिक आराम मिलना चाहिए।’ क्या यह कोई स्वीकार्य रवैया है? मीन-मेख निकालना परमेश्वर से आई चीजों को स्वीकार करना नहीं है; यह अपनी पसंद के अनुसार विकल्प चुनना है। यह अपने कर्तव्य को स्वीकारना नहीं है; यह अपने कर्तव्य से इनकार करना है, यह परमेश्वर के खिलाफ तुम्हारी विद्रोहशीलता की अभिव्यक्ति है। इस तरह मीन-मेख निकालने में तुम्हारी निजी पसंद और आकांक्षाओं की मिलावट होती है। जब तुम अपने लाभ, अपनी ख्याति आदि को महत्त्व देते हो, तो अपने कर्तव्य के प्रति तुम्हारा रवैया आज्ञाकारी नहीं होता(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, कर्तव्‍य का समुचित निर्वहन क्‍या है?)। परमेश्वर ने जो कहा, वह ठीक मेरी ही दशा थी। मैंने अतीत के बारे में सोचा, जब मैं कलीसिया में एक अगुआ थी और खुद को दिखा सकती थी। मैं जहाँ भी जाती, भाई-बहन मेरा आदर करते थे, और मैं दिल से खुश महसूस करती थी और अपने कर्तव्य करने के लिए मुझमें ऊर्जा होती थी। खास तौर पर, जब मुझे क्षेत्रीय अगुआ चुना गया तो मैं बहुत खुश हुई, और सोचा कि आखिरकार मुझे सबसे अलग दिखने का मौका मिल गया है। मेरा कर्तव्य करने का उत्साह दोगुना हो गया। उस समय, मैं हर दिन सुबह से शाम तक काम करती थी। सर्दी का मौसम था और बहुत ठंड थी, लेकिन जब मैं रात को 11 या 12 बजे घर लौटती, तब भी मैं खुश रहती थी; मुझे न ठंड लगती थी और न ही थकान महसूस होती थी। लेकिन जब मुझे बरखास्त कर दिया गया और अगुआ ने मेरे लिए मेजबानी का कर्तव्य की व्यवस्था की, तो मुझे एक नौकरानी की तरह महसूस हुआ, जो सारे मेहनत वाले और फुटकर काम करती है, जैसे मैं एक निम्न दर्जे की नौकर हूँ। मेरा दिल समर्पण नहीं कर सका, और मैं उस दिन का इंतजार करती रही जब अगुआ मेरा कर्तव्य बदल देंगे। बाद में, ऊपरी अगुआओं ने एक पत्र भेजा, जिसमें कहा गया था कि मौजूदा माहौल तेजी से तनावपूर्ण होता जा रहा है और अधिक सुरक्षित मेजबान परिवारों की जरूरत है। जब मुझे एहसास हुआ कि मेरा कर्तव्य जल्दी ही नहीं बदला जाएगा, तो मुझे असहज महसूस हुआ और मैं नकारात्मकता में जीने लगी। मैंने अपना कर्तव्य निभाया, लेकिन मेरा दिल तहे दिल से राजी नहीं था, और बहनों के सामने मुँह भी बनाया, उन्हें नाराजगी से देखा, जिससे वे बाधित रहती थीं। मुझमें परमेश्वर के प्रति कैसा समर्पण था? मेरा समर्पण शर्तों पर आधारित था, और उसमें मेरी अपनी पसंद और मिलावट शामिल थी। यह परमेश्वर के प्रति सच्चा समर्पण नहीं था। मैं तभी समर्पण करती थी जब इससे मुझे फायदा होता और मुझे कुछ प्रतिष्ठा मिलती, लेकिन अगर यह मेरे लिए फायदेमंद नहीं होता और खुद का दिखावा न कर पाती, तो मैं समर्पण नहीं कर पाती थी। अगर मैंने इस दशा को नहीं बदला, तो यह बहुत खतरनाक होगा।

एक दिन, मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “परमेश्वर के घर में परमेश्वर का आदेश स्वीकारने और इंसान के कर्तव्य-निर्वहन का निरंतर उल्लेख होता है। कर्तव्य कैसे अस्तित्व में आता है? आम तौर पर कहें, तो यह मानवता का उद्धार करने के परमेश्वर के प्रबंधन-कार्य के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आता है; खास तौर पर कहें, तो जब परमेश्वर का प्रबंधन-कार्य मानवजाति के बीच खुलता है, तब विभिन्न कार्य प्रकट होते हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए लोगों का सहयोग चाहिए होता है। इससे जिम्मेदारियाँ और विशेष कार्य उपजते हैं, जिन्हें लोगों को पूरा करना है, और यही जिम्मेदारियाँ और विशेष कार्य वे कर्तव्य हैं, जो परमेश्वर मानवजाति को सौंपता है। परमेश्वर के घर में जिन विभिन्न कार्यों में लोगों के सहयोग की आवश्यकता है, वे ऐसे कर्तव्य हैं जिन्हें उन्हें पूरा करना चाहिए। तो, क्या बेहतर और बदतर, बहुत ऊँचा और नीचा या महान और छोटे के अनुसार कर्तव्यों के बीच अंतर होता है? ऐसे अंतर नहीं होते; यदि किसी चीज का परमेश्वर के प्रबंधन कार्य के साथ कोई लेना-देना हो, उसके घर के काम की आवश्यकता हो, और परमेश्वर के सुसमाचार-प्रचार को उसकी आवश्यकता हो, तो यह व्यक्ति का कर्तव्य होता है। यह कर्तव्य की उत्पत्ति और परिभाषा है। परमेश्वर के प्रबंधन कार्य के बिना, क्या पृथ्वी के लोगों के पास—चाहे वे कैसे भी रहते हों—कर्तव्य होंगे? नहीं। अब तुम स्पष्ट रूप से समझ पा रहे हो। व्यक्ति का कर्तव्य किससे संबंधित है? (यह मानवजाति के उद्धार के लिए परमेश्वर के प्रबंधन कार्य से संबंधित है।) सही कहा। मानवजाति के कर्तव्यों, सृजित प्राणियों के कर्तव्यों और मानवजाति के उद्धार के परमेश्वर के प्रबंधन कार्य में एक प्रत्यक्ष संबंध है। यह कहा जा सकता है कि परमेश्वर द्वारा मानवजाति के उद्धार के बिना और उस प्रबंधन कार्य के बिना जो देहधारी परमेश्वर ने मनुष्यों के बीच आरम्भ किया है, लोगों के पास बताने के लिए कोई कर्तव्य न होता। कर्तव्य परमेश्वर के कार्य से उत्पन्न होते हैं; यही परमेश्वर लोगों से चाहता है। इसे इस परिप्रेक्ष्य से देखते हुए परमेश्वर का अनुसरण करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए कर्तव्य महत्वपूर्ण है, है ना? यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। मोटे तौर पर, तुम परमेश्वर की प्रबंधन योजना के काम में हिस्सा ले रहो हो; खासतौर पर, तुम परमेश्वर के विभिन्न प्रकार के कामों में सहयोग कर रहे हो, जिनकी अलग-अलग समय और लोगों के अलग-अलग समूहों के बीच में आवश्यकता है। भले ही तुम्हारा कर्तव्य जो भी हो, यह परमेश्वर ने तुम्हें एक लक्ष्य दिया है। कभी-कभी शायद तुम्हें किसी महत्वपूर्ण वस्तु की देखभाल या सुरक्षा करने की जरूरत पड़ सकती है। यह अपेक्षाकृत एक नगण्य-सा मामला हो सकता है जिसे केवल तुम्हारी ज़िम्मेदारी कहा जा सकता है, लेकिन यह एक ऐसा कार्य है जो परमेश्वर ने तुम्हें दिया है; इसे तुमने परमेश्वर से स्वीकार किया है। तुमने इसे परमेश्वर के हाथों से स्वीकार किया है और यह तुम्हारा कर्तव्य है। मुद्दे की बात करें तो तुम्हारा कर्तव्य तुम्हें परमेश्वर ने सौंपा है। इसमें मुख्य रूप से सुसमाचार फैलाना, गवाही देना, वीडियो बनाना, कलीसिया में अगुवा या कार्यकर्ता बनना शामिल है, या यह ऐसा काम हो सकता है जो और भी जोखिम भरा और महत्वपूर्ण हो। चाहे जो हो, जब तक इसका संबंध परमेश्वर के कार्य और सुसमाचार के प्रसार के कार्य की आवश्यकता से है, तब तक लोगों को इसे परमेश्वर से प्राप्त कर्तव्य के रूप में स्वीकार करना चाहिए। इसे और भी व्यापक शब्दों में कहें तो कर्तव्य व्यक्ति का लक्ष्य होता है, परमेश्वर द्वारा सौंपा गया आदेश होता है; खासतौर पर, यह तुम्हारा दायित्व है, तुम्हारी बाध्यता है। ऐसा मानते हुए कि यह तुम्हारा लक्ष्य है, परमेश्वर द्वारा तुम्हें सौंपा गया आदेश है, तुम्हारा दायित्व और बाध्यता है, कर्तव्य निर्वहन का तुम्हारे व्यक्तिगत मामलों से कोई लेना-देना नहीं है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, कर्तव्‍य का समुचित निर्वहन क्‍या है?)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, मैं समझ गई कि लोगों को केवल मानवजाति को बचाने की परमेश्वर की प्रबंधन योजना के कारण ही कर्तव्य निभाने और बचाए जाने का अवसर मिलता है, और परमेश्वर के घर में ऐसे कई कर्तव्य हैं जिन्हें करने की जरूरत है। कुछ कलीसिया की अगुआई करते हैं, कुछ सुसमाचार का प्रचार करते हैं, और कुछ सामान्य मामलों के काम करते हैं, वगैरह-वगैरह। परमेश्वर की नजरों में, कर्तव्यों में अच्छे-बुरे या ऊँच-नीच का कोई भेद नहीं है। सृजित प्राणी होने के नाते, हमें परमेश्वर के प्रति समर्पण करना चाहिए, चाहे कर्तव्य कोई भी हो या हम खुद को दिखा सकें या न दिखा सकें, और हमें अपनी पसंद के आधार पर चुनाव नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, मैंने परमेश्वर से मिले कर्तव्यों को विभिन्न श्रेणियों में बाँट दिया, और मानती थी कि अगुआ होना बहुत प्रतिष्ठित है, क्योंकि वे जहाँ भी जाते हैं, उनका आदर और उनसे ईर्ष्या की जाती है। वे किसी कंपनी के वरिष्ठ प्रबंधन की तरह होते हैं, जो उनकी प्रशंसा करने वाले लोगों से घिरे रहते हैं। लेकिन, जब आप मेजबानी का कर्तव्य करते हैं, तो आप थकाऊ और गंदे फुटकर कामों में मेहनत करते हैं; ठीक वैसे ही जैसे अगर आप दुनिया में एक नौकरानी हैं, तो आप एक सेवक हैं, और आपको नीची नजर से देखा जाता है। इसीलिए जब अगुआ ने मेरे लिए मेजबानी का कर्तव्य तय किया, तो मैंने सोचा कि यह बहुत शर्मनाक और अपमानजनक है, और मैंने अपना कर्तव्य करते हुए शिकायत की। अंत में, मेरी दशा बद से बदतर होती गई, यहाँ तक कि मैं नियमित रूप से भक्ति भी नहीं करती थी और न ही लेख लिखने का मन करता था। यह सब मेरे कर्तव्य के प्रति मेरे गलत दृष्टिकोण के कारण हुआ। मैंने चीजों को एक अविश्वासी के नजरिए से देखा, और अपने कर्तव्य को अपनी जिम्मेदारी और दायित्व नहीं समझा। एक सृजित प्राणी के रूप में, मानवजाति को बचाने की परमेश्वर की प्रबंधन योजना में अपना कर्तव्य निभा पाना ही सबसे सार्थक बात है। यह सबसे बड़ा सम्मान है, और मुझे यह अवसर देने के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहिए। सीसीपी पागलों की तरह परमेश्वर का प्रतिरोध कर रही है, और वह परमेश्वर के कार्य में बाधा डालने और उसे नष्ट करने के लिए ईसाइयों को सताने और गिरफ्तार करने के अपने तरीकों में कोई संकोच नहीं करती है। इस प्रतिकूल माहौल में यह मेरी जिम्मेदारी और दायित्व है कि मैं अपने भाई-बहनों की अच्छी तरह से मेजबानी करूँ, एक सुरक्षित माहौल में उन्हें अपना कर्तव्य निभाने में मदद करूँ। लेकिन, मैं गौरव और रुतबे से बहुत कसकर बंधी हुई थी, और भ्रामक रूप से मानती थी कि जो लोग मेजबानी का कर्तव्य करते हैं, वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग नहीं हैं, और यह कर्तव्य केवल बड़ी उम्र के लोग ही करते हैं। यह सब मेरी धारणाएँ और कल्पनाएँ थीं।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “मनुष्य, जो ऐसी गंदी भूमि में जन्मा, समाज द्वारा गंभीर हद तक संक्रमित हो गया है, वह सामंती नैतिकता से अनुकूलित कर दिया गया है और उसने ‘उच्चतर शिक्षा संस्थानों’ की शिक्षा प्राप्त की है। पिछड़ी सोच, भ्रष्ट नैतिकता, अवमूल्यित जीवन दृष्टिकोण, सांसारिक आचरण के घृणित फलसफे, बिल्कुल मूल्यहीन अस्तित्व, नीच रिवाज और दैनिक जीवन—ये सभी चीजें मनुष्य के हृदय में गंभीर घुसपैठ करती रही हैं, उसकी अंतरात्मा को गंभीरता से नष्ट और उसकी अंतरात्मा पर गंभीर प्रहार करती रही हैं। फलस्वरूप, मनुष्य परमेश्वर से अधिक से अधिक दूर हो रहा है और परमेश्वर का अधिक से अधिक विरोधी हो गया है। दिन-प्रतिदिन मनुष्य का स्वभाव और अधिक निर्दयी हो रहा है और एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो स्वेच्छा से परमेश्वर के लिए कुछ भी त्याग करे, एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो स्वेच्छा से परमेश्वर के प्रति समर्पण करे और एक भी ऐसा व्यक्ति तो और भी नहीं है जो स्वेच्छा से परमेश्वर के प्रकटन की खोज करे। इसके बजाय, इंसान शैतान की सत्ता में अपने दिल के तृप्त होने तक सुख का अनुसरण करता है और कीचड़ में अपनी देह को बेहिचक भ्रष्ट करता है। सत्य सुनने के बाद भी जो लोग अंधकार में जीते हैं उनमें इसका अभ्यास करने की कोई इच्छा नहीं होती है और यह देखने के बावजूद कि परमेश्वर पहले ही प्रकट हो चुका है वे खोजने की ओर उन्मुख नहीं होते हैं। ऐसी भ्रष्ट मानवजाति के पास उद्धार की गुंजाइश कैसे हो सकती है? ऐसी पतित मानवजाति रोशनी में कैसे जी सकती है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपरिवर्तित स्वभाव होना परमेश्वर के साथ शत्रुता रखना है)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, मैं समझ गई कि परमेश्वर के प्रति समर्पण न कर पाने का मूल कारण यह था कि मैं शैतानी विचारों और दृष्टिकोणों से प्रभावित थी, जैसे, “एक व्यक्‍ति जहाँ रहता है वहाँ अपना नाम छोड़ता है, जैसे कि एक हंस जहाँ कहीं उड़ता है आवाज़ करता जाता है,” “जैसे पेड़ को उसकी छाल की जरूरत है वैसे ही लोगों को आत्मसम्मान की जरूरत है,” और “आदमी ऊपर की ओर जाने के लिए संघर्ष करता है; पानी नीचे की ओर बहता है” मैंने अपने मान-सम्मान और रुतबे को बहुत ज्यादा महत्व दिया था। मैंने उस समय के बारे में सोचा जब मैं एक सरकारी उद्यम में काम करती थी, और लगातार महसूस करती थी कि मैं दूसरों से बेहतर हूँ। मैं ईंट-भट्टों, निर्माण स्थलों या छोटे कारखानों में काम करने वाले लोगों को नीची नजर से देखती थी। परमेश्वर में विश्वास करने के बाद भी मैं वैसी ही थी, और सोचती थी कि अगुआ होना प्रतिष्ठा की बात है, जबकि मैं मेजबानी का कर्तव्य या सामान्य मामलों का कर्तव्य करने वालों को नीची नजर से देखती थी। मुझे लगता था कि वे कर्तव्य सिर्फ छोटे-मोटे और शारीरिक श्रम वाले काम हैं, कि वे निम्न दर्जे के हैं। इसीलिए जब लियू शिआओ ने मेरे लिए मेजबानी का कर्तव्य तय किया, तो मैंने खुद को दूसरों से कमतर महसूस किया, और उसे देखकर छिप जाना चाहती थी। जब वांग डैन किसी काम से मेरे पास आई तो मुझे उसे देखने में भी बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई और उन दोनों से ईर्ष्या हुई कि वे अगुआ हैं, जहाँ भी जाती हैं प्रतिष्ठा का आनंद लेती हैं और अपने भाई-बहनों का आदर पाती हैं। मैंने सोचा कि मेजबानी का कर्तव्य करके, मैं उनके बराबर के स्तर पर नहीं हूँ, और बहुत शर्मिंदगी महसूस की। जैसे ही मैंने वांग डैन को यह कहते सुना कि वह भाई-बहनों को ले जाएगी, मैं खुश हो गई, और उम्मीद करने लगी कि एक दिन कलीसिया में सभा समूहों का पर्यवेक्षण करूँगी, और भविष्य में पदोन्नत होने का मौका मिलेगा। लेकिन जैसे ही मैंने सुना कि मुझे अभी भी मेजबानी का कर्तव्य करना है, मेरा मन बैठ गया, और मैं अपने कर्तव्य करने में नकारात्मक और सुस्त हो गई। मैंने उस समय के बारे में सोचा जब मैं एक अगुआ थी और मुझे इसलिए बरखास्त कर दिया गया था क्योंकि मैंने मान-सम्मान और रुतबे का अनुसरण किया और नतीजतन गलत रास्ते पर चली; मैं अब मेजबानी का कर्तव्य कर रही थी, लेकिन मेरी पुरानी प्रकृति नहीं बदली थी। मैं अभी भी मान-सम्मान और रुतबे के बारे में सोचती थी और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से नहीं कर पाती थी। मुझे एहसास हुआ कि मैं शैतान के भ्रामक विचारों और दृष्टिकोणों से बंधी और नियंत्रित थी, और अपना कर्तव्य करते हुए, मैंने हर मोड़ पर केवल अपने मान-सम्मान और रुतबे के बारे में सोचा। मैंने कोई समर्पण नहीं दिखाया, वफादारी तो और भी कम दिखाई, और लोगों और चीजों को देखने का मेरा नजरिया एक अविश्वासी की तरह था। मैंने चीजों को परमेश्वर के वचनों पर आधारित नहीं किया। मैंने जो कुछ भी किया था वह सत्य के प्रति शत्रुतापूर्ण था और परमेश्वर का प्रतिरोध करता था। जब मैं यह समझ गई, तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “प्रिय परमेश्वर, मैं अपने मान-सम्मान और रुतबे की रक्षा के लिए आपकी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण नहीं कर सकी। मैं अब और शैतानी विचारों और दृष्टिकोणों के अनुसार नहीं जीना चाहती। क्या आप मुझे अपने वचनों के अनुसार लोगों और चीजों को देखने और आपकी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।”

बाद में, मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े : “अपने कर्तव्य को निभाने वाले सभी लोगों के लिए, फिर चाहे सत्य को लेकर उनकी समझ कितनी भी उथली या गहरी क्यों न हो, सत्य वास्तविकता में प्रवेश के अभ्यास का सबसे सरल तरीका यह है कि हर काम में परमेश्वर के घर के हित के बारे में सोचा जाए, और अपनी स्‍वार्थपूर्ण इच्छाओं, व्यक्तिगत मंशाओं, अभिप्रेरणाओं, घमंड और हैसियत का त्याग किया जाए। परमेश्वर के घर के हितों को सबसे आगे रखो—कम से कम इतना तो व्यक्ति को करना ही चाहिए। अपना कर्तव्य निभाने वाला कोई व्यक्ति अगर इतना भी नहीं कर सकता, तो उस व्यक्ति को कर्तव्य निभाने वाला कैसे कहा जा सकता है? यह अपने कर्तव्य को पूरा करना नहीं है। तुम्‍हें पहले परमेश्वर के घर के हितों के बारे में सोचना चाहिए, परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होना चाहिए, और कलीसिया के कार्य का ध्यान रखना चाहिए। इन चीजों को पहले स्थान पर रखना चाहिए; उसके बाद ही तुम अपनी हैसियत की स्थिरता या दूसरे लोग तुम्‍हारे बारे में क्या सोचते हैं, इसकी चिंता कर सकते हो। क्या तुम लोगों को नहीं लगता कि जब तुम इसे दो चरणों में बाँट देते हो और कुछ समझौते कर लेते हो तो यह थोड़ा आसान हो जाता है? यदि तुम कुछ समय के लिए इस तरह अभ्यास करते हो, तो तुम यह अनुभव करने लगोगे कि परमेश्वर को संतुष्ट करना इतना भी मुश्किल काम नहीं है। इसके अलावा, तुम्‍हें अपनी जिम्मेदारियाँ, अपने दायित्व और कर्तव्य पूरे करने चाहिए, और अपनी स्वार्थी इच्छाओं, मंशाओं और उद्देश्‍यों को दूर रखना चाहिए, तुम्‍हें परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशीलता दिखानी चाहिए, और परमेश्वर के घर के हितों को, कलीसिया के कार्य को और जो कर्तव्य तुम्हें निभाना चाहिए, उसे पहले स्थान पर रखना चाहिए। कुछ समय तक ऐसे अनुभव के बाद, तुम पाओगे कि यह आचरण का एक अच्छा तरीका है। यह सरलता और ईमानदारी से जीना और नीच और भ्रष्‍ट व्‍यक्ति न होना है, यह घृणित, नीच और निकम्‍मा होने की बजाय न्यायसंगत और सम्मानित ढंग से जीना है। तुम पाओगे कि किसी व्यक्ति को ऐसे ही कार्य करना चाहिए और ऐसी ही छवि को जीना चाहिए। धीरे-धीरे, अपने हितों को तुष्‍ट करने की तुम्‍हारी इच्छा घटती चली जाएगी(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचन पढ़ने से मेरा दिल रोशन हो गया। अपने कर्तव्य निभाते समय, हमें सबसे पहले अपने व्यक्तिगत हितों, मान-सम्मान और रुतबे को छोड़ना होगा। चाहे दूसरे हमारे बारे में कुछ भी सोचें, हमें अपने कर्तव्य को पहले रखना चाहिए और परमेश्वर के घर के हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए। इस तरह, हम परमेश्वर के सामने काम करते हैं और अपना कर्तव्य निभाते हैं। आजकल, सीसीपी परमेश्वर में विश्वास करने वालों को पागलों की तरह गिरफ्तार करने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। वे तरह-तरह के उच्च-तकनीकी निगरानी उपकरण लाए हैं, रास्तों और गलियों में हाई-डेफिनिशन कैमरे लगाए हैं, और परमेश्वर में विश्वास करने वालों की निगरानी और पीछा करने के लिए मोहल्ला समितियों में और न्यूनतम जीवन भत्ता पाने वाले लोगों के बीच मुखबिर भी तैयार किए हैं। कई मेजबान परिवारों को अपनी सुरक्षा को लेकर खतरों का सामना करना पड़ता है, और एक सुरक्षित मेजबान परिवार ढूँढ़ना आसान नहीं है। मेरे विश्वासी होने के बारे में ज्यादा पता नहीं है और मेरी सुरक्षा को लेकर कोई खतरा नहीं है, इसलिए मेरे लिए मेजबानी का कर्तव्य करना उचित है। मुझे कलीसिया की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करना चाहिए और अपना मेजबानी का कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना चाहिए। यह कलीसिया के हितों की रक्षा करना भी है। परमेश्वर का इरादा समझकर, मैं अपने मान-सम्मान और रुतबे को छोड़ने और अपने भाई-बहनों की रक्षा के लिए अपना मेजबानी का कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने को तैयार थी, ताकि उन्हें अपने कर्तव्य निभाने के लिए एक सुरक्षित माहौल मिल सके। बाद में, जब मेरे पास समय होता, तो मैं परमेश्वर के और वचन पढ़ती, भक्ति करती और लेख लिखने का अभ्यास करती। इस तरह से अभ्यास करने से, मेरे दिल को पहले से कहीं ज्यादा सुकून महसूस हुआ। मैं जो ये लाभ पा सकी, वह परमेश्वर की अगुआई के कारण था। परमेश्वर का धन्यवाद!

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16. परमेश्वर के वचन मेरी शक्ति है

लेखिका जिंगनियाँ, कनाडामैंने बचपन से ही प्रभु में मेरे परिवार के विश्वास का अनुसरण किया है, अक्सर बाइबल को पढ़ा है और सेवाओं में हिस्सा लिया...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 6) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 7) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 8) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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