62. कलीसिया के कार्य की रक्षा करना मेरी जिम्मेदारी है
2019 में मैं कलीसिया में पाठ-आधारित कर्तव्य कर रही थी। एक दिन मुझे पता चला कि किंगयुआन कलीसिया की बहन युआन ली को अगुआ चुन लिया गया है। जब मैंने यह खबर सुनी तो मैं थोड़ी चौंक गई। मैं युआन ली से बहुत अच्छी तरह परिचित थी। वह अपने कर्तव्य करने में बहुत उत्साही थी और हमेशा सुसमाचार प्रचार में बहुत सक्रिय रहती थी। वह कष्ट झेलने या थकावट से डरती नहीं थी। लेकिन जब पहले वह अगुआ थी तो वह हमेशा प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागती थी, अपनी बड़ाई और दिखावा करती थी। इतना ही नहीं, जब मुद्दे सामने आए तो उसने सत्य खोजने और सबक सीखने के लिए अपने भाई-बहनों का मार्गदर्शन नहीं किया। इसके बजाय उसने कलह के बीज बोए, जिससे उसके भाई-बहन सही-गलत की मनोदशा में रहने लगे और कलीसिया का कार्य भी प्रभावित हुआ। और भले ही ऊपरी अगुआओं ने उसे कई मौकों पर सुझाव दिए और उसकी मदद की, उसने इसे नहीं स्वीकारा, यहाँ तक कि अपना बचाव करने के लिए कारण भी बताए। अंत में उसे बरखास्त कर दिया गया। बरखास्त होने के बाद उसे अपनी भ्रष्टता से सचमुच घृणा या खेद नहीं हुआ। युआन ली ऐसी नहीं लग रही थी जो सत्य का अनुसरण करती हो। वह अगुआ बनने के लिए उपयुक्त नहीं थी। सिद्धांतों के अनुसार, जो लोग अगुआ चुने जाते हैं, उन्हें सत्य का अनुसरण करने वाले लोग होने चाहिए। वरना कलीसिया में सभी भाई-बहनों का जीवन प्रवेश प्रभावित होगा और कलीसिया के कार्य में देरी होगी। मैं युआन ली के व्यवहार की रिपोर्ट उच्च अगुआओं को देना चाहती थी, लेकिन फिर मैंने सोचा कि किंगयुआन कलीसिया में लगातार कई बड़ी गिरफ्तारियाँ हुई हैं। बहुत से भाई-बहनों को सीसीपी ने गिरफ्तार कर लिया है और इसलिए अगुआ चुनने में वाकई मुश्किलें थीं। अगर मैं अलग राय जताती तो क्या उच्च अगुआ यह सोचते कि मैं मीन-मेख निकाल रही हूँ और उन्हें मुश्किल स्थिति में डाल रही हूँ? मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगी जो अगुआओं को नाराज कर दे। इसके अलावा, मैंने कुछ समय पहले ही किंगयुआन कलीसिया छोड़ दी थी। शायद इस दौरान युआन ली ने कुछ समझ हासिल की हो और पश्चात्ताप किया हो। फिर मैंने सोचा, युआन ली ने वाकई अतीत में सत्य का अनुसरण नहीं किया था। मैं उच्च अगुआओं से अपने विचार साझा करते हुए एक पत्र लिख सकती हूँ और पूछ सकती हूँ कि क्या युआन ली ने पश्चात्ताप का कोई संकेत दिखाया है। इससे मेरी जिम्मेदारी अच्छे से पूरी हो जाएगी। लेकिन जब इसे लिखने की बारी आई तो मैं फिर सोचने लगी, “अगर युआन ली चुनी गई है तो निश्चित रूप से उच्च अगुआओं को उसके बारे में पता होगा और उन्होंने उसकी जाँच की होगी। उच्च अगुआ मुझसे ज्यादा सत्य समझते हैं और उन्हें सिद्धांतों पर ज्यादा महारत हासिल है। अगर वे सहमत हैं तो युआन ली चुने जाने के लिए उपयुक्त रही होगी। मुझे इसका उल्लेख करने की जरूरत नहीं है। इसके अलावा मैं केवल पाठ-आधारित कर्तव्य कर रही हूँ, जबकि युआन ली कलीसिया अगुआ है। भले ही वह इस कर्तव्य के लिए उपयुक्त न हो, यह उच्च अगुआओं का मामला है। यह मेरा काम नहीं है। अगर मैं युआन ली की समस्याओं की रिपोर्ट करती हूँ तो क्या वे सोचेंगे कि मैं उन चीजों में टाँग अड़ा रही हूँ जो मुझसे संबंधित नहीं हैं और वे मेरे बारे में बुरी राय बना लेंगे? मुझे बस इसे यहीं छोड़ देना चाहिए।” इसलिए मैंने उसकी रिपोर्ट नहीं की।
बाद में हम कलीसिया के उस क्षेत्र के भीतर एक नए मेजबान घर में चले गए जिसके लिए युआन ली जिम्मेदार थी। जब युआन ली हमें पत्र देने आई तो हमने एक साथ अपनी मनोदशा के बारे में बात की। युआन ली ने कहा कि उसकी साथी बहन झांग हुआ की काबिलियत खराब है और वह कुछ भी अच्छी तरह से नहीं कर सकती। एक अन्य अगुआ रानरान की काबिलियत अच्छी है, लेकिन वह देह में लिप्त रहती है और अपना कर्तव्य करते समय बोझ नहीं उठाती। बाद में उसने बताया कि कैसे उसने अपना कर्तव्य निभाते समय बोझ उठाया। मैंने मन ही मन सोचा, “युआन ली अभी भी दूसरों को नीचा क्यों दिखा रही है और खुद को क्यों ऊँचा उठा रही है?” दरअसल मैं झांग हुआ और रानरान के बारे में थोड़ा-बहुत समझती थी। झांग हुआ बूढ़ी थी और यह सच था कि उसकी काबिलियत थोड़ी खराब थी। लेकिन वह अपना कर्तव्य निभाते समय बोझ उठाती थी। रानरान निश्चित रूप से अपना कर्तव्य निभाते समय बोझ उठाने में थोड़ी कमजोर थी, लेकिन लगातार संगति और पर्यवेक्षण के साथ वह अपना कर्तव्य सामान्य रूप से करने में सक्षम थी। वह उतनी बुरी नहीं थी, जितना युआन ली ने कहा था। जिस तरह से उसने अपनी बात रखी, उससे ऐसा लग रहा था कि ये दोनों अगुआ कोई काम ही नहीं कर रही थीं और वह सब कुछ खुद ही कर रही थी। उस समय युआन ली ने भी कई घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि रानरान में बुरी मानवता है। वास्तव में युआन ली तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रही थी। मुझे रानरान से पता चला कि युआन ली हमेशा उसके और झांग हुआ के बीच झगड़ा करवाती थी, उन दोनों को दूसरे की गलतियों के बारे में बताती थी और परेशानी खड़ी करती थी। इसका मतलब था कि रानरान और झांग हुआ ने एक-दूसरे के बारे में पूर्वाग्रह बना लिए थे और वे सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग नहीं कर सकती थीं, जिससे कलीसिया में काम की विभिन्न मदों का कोई नतीजा नहीं निकला। इसलिए मैंने युआन ली को बताया कि उसके कार्यों की प्रकृति क्या है और इसके क्या अंजाम हो सकते हैं। युआन ली का चेहरा बहुत नाखुश लग रहा था और उसने इसका स्पष्टीकरण देकर बात खत्म करने के लिए कारण ढूँढ़ लिए। युआन ली के जाने के बाद मेरा दिल बिल्कुल भी शांत नहीं था। मैंने मन ही मन सोचा, “युआन ली को अपना दिखावा करना और दूसरों को नीचा दिखाना पसंद है और वह सत्य नहीं स्वीकारती। उसका व्यवहार निरंतर एक जैसा है। अगर तुम सिद्धांत के अनुसार इसे तौलते हो, इससे पता चलता है कि उसने सच में पश्चात्ताप नहीं किया है और वह कलीसिया अगुआ जैसे महत्वपूर्ण कर्तव्य को निभाने के लिए अनुपयुक्त है। मुझे युआन ली की समस्याओं की रिपोर्ट उच्च अगुआओं को देनी चाहिए।” लेकिन जब मैं पत्र लिख रही थी तो उलझन में पड़ गई, “आमतौर पर मेरी युआन ली के साथ अच्छी बनती है। अगर मैं अगुआओं को उसकी परिस्थितियों के बारे में विस्तार से बताती हूँ तो वे निश्चित रूप से स्थिति की पुष्टि करने और यह पता लगाने के लिए आएँगे कि क्या चल रहा है। इसी बीच अगर युआन ली को पता चल जाता है कि मैंने ही उसकी समस्याओं की रिपोर्ट की है तो वह पक्का मुझसे नफरत करेगी। मैं भविष्य में उसके साथ कैसे तालमेल बिठा पाऊँगी? साथ ही अगर मैं इस मामले की रिपोर्ट करती हूँ, तो क्या अगुआ कहेंगे कि मैं अपना पाठ-आधारित कर्तव्य ठीक से नहीं कर रही हूँ और उन चीजों में टाँग अड़ा रही हूँ, जिनसे मेरा कोई सरोकार नहीं है और इसलिए उनके मन में मेरी बुरी छवि बनेगी? यह मेरे लिए दोनों तरफ से बुरा होगा। मैं बस इसे जाने देती हूँ। परेशानी जितनी कम हो उतना अच्छा है। जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा, अगुआ निश्चित रूप से उसकी समस्याओं का पता लगा लेंगे और उसे बरखास्त कर देंगे। मैं इसमें टॉंग नहीं अड़ाऊँगी।” लेकिन बाद में जब भी मैंने इस बारे में सोचा तो मैं थोड़ी बेचैन हो गई। रात को मैं बिस्तर पर करवटें बदलती रही, सो नहीं पाई। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “प्रिय परमेश्वर, मैं अपने दिल में स्पष्ट हूँ कि युआन ली कलीसिया अगुआ के कर्तव्य करने के लिए अनुपयुक्त है। मैं जानती हूँ कि मुझे एक पत्र लिखकर उसकी समस्याओं की रिपोर्ट करनी चाहिए, लेकिन मैं इसे अभ्यास में लाने में सक्षम नहीं हो पाई हूँ। तुम मेरी अगुआई और मार्गदर्शन करो।” मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “परमेश्वर के मार्ग पर चलना सतही तौर पर विनियमों का पालन करना नहीं है; बल्कि, इसका अर्थ है कि जब तुम्हारा सामना किसी मामले से होता है, तो सबसे पहले, तुम इसे एक ऐसी परिस्थिति के रूप में देखते हो जिसकी व्यवस्था परमेश्वर के द्वारा की गई है, ऐसे उत्तरदायित्व के रूप में देखते हो जिसे उसके द्वारा तुम्हें प्रदान किया गया है, या किसी ऐसे कार्य के रूप में देखते हो जो उसने तुम्हें सौंपा है। जब तुम इस मामले का सामना कर रहे होते हो, तो तुम्हें इसे परमेश्वर से आए किसी परीक्षण के रूप में भी देखना चाहिए। इस मामले का सामना करते समय, तुम्हारे हृदय में एक मानक अवश्य होना चाहिए, तुम्हें सोचना चाहिए कि यह परमेश्वर की ओर से आया है। तुम्हें इस बारे में सोचना चाहिए कि कैसे इस मामले से इस तरह से निपटा जाए कि तुम अपने उत्तरदायित्व को पूरा कर सको, और परमेश्वर के प्रति वफ़ादार भी रह सको, इसे कैसे किया जाए कि परमेश्वर क्रोधित न हो, या उसके स्वभाव का नाराज न करे” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का स्वभाव और उसका कार्य जो नतीजा हासिल करेगा, उसे कैसे जानें)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैं समझ गई कि मैं हर दिन जिन चीजों का सामना करती हूँ, वे सभी परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित हैं। चाहे मैं किसी भी चीज का सामना करूँ, मुझे सचेत होकर परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करना चाहिए, सिद्धांत के अनुसार अपना कर्तव्य करना चाहिए और अपनी जिम्मेदारी और वफादारी को अच्छे से पूरा करना चाहिए। सिर्फ इसी तरह से मैं खुद को उन चीजों को करने से रोक सकती हूँ जो परमेश्वर के स्वभाव को नाराज करती हैं। युआन ली के मामले में मैंने कैसे व्यवहार किया, इस बारे में सोचूँ तो हो सकता है कि दूसरे उसे अच्छी तरह से न जानते हों, लेकिन मैं कुछ हद तक उसका भेद पहचानने में सक्षम थी। युआन ली ने सिर्फ बाहरी तौर पर कुछ अच्छे व्यवहार दिखाए थे। अपना कर्तव्य करते समय वह अक्सर अपनी बड़ाई और दिखावा करती थी। जब उसके सामने चीजें आईं तो उसने सत्य खोजने और सबक सीखने पर ध्यान केंद्रित नहीं किया। वह सही-गलत की मनोदशा में रहती थी और अपने भाई-बहनों के सुझाव और काट-छाँट नहीं स्वीकारती थी। अगर वह भाई-बहनों की अगुआई करती तो सभी को नुकसान पहुँचता। मैं अच्छी तरह से जानती थी कि युआन ली अगुआ होने के लिए अनुपयुक्त है, लेकिन मैंने उसकी समस्याओं की रिपोर्ट करने के लिए पत्र लिखने की हिम्मत नहीं की। मैं देखती रही कि कलीसिया के हितों को नुकसान पहुँचाया जा रहा है। मेरे पास वाकई रत्ती भर भी परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं था! मैंने देखा कि कलीसिया के कार्य के प्रति मेरा रवैया बहुत ही अपमानजनक था। मैंने बस अपनी जिम्मेदारियों और वफादारी को बिल्कुल भी पूरा नहीं किया। मैं पूरी तरह से अपने हितों की रक्षा कर रही थी। मेरे अंदर मानवता की बहुत कमी थी! मुझे अपने दिल में बहुत पछतावा हुआ और खुद से नफरत हुई। मैं इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती थी?
एक दिन मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “अंतरात्मा की जागरूकता होना उतना ही मूल्यवान है, जितना सच और झूठ के बीच भेद करने की क्षमता का होना मूल्यवान है और जब सकारात्मक चीजों से प्यार करने की बात आए तो न्याय की भावना होना मूल्यवान है। ये तीन चीजें सामान्य मानवता में सबसे अधिक वांछनीय और मूल्यवान हैं। अगर तुम्हारे पास ये तीन चीजें हैं, तो तुम निश्चित रूप से सत्य का अभ्यास करने में सक्षम हो पाओगे। यहाँ तक कि अगर तुम्हारे पास इनमें से केवल एक या दो चीजें ही हैं, फिर भी तुम कई सत्य का अभ्यास करने में सक्षम हो जाओगे। चलो हम अंतरात्मा की जागरूकता पर नजर डालते हैं। उदाहरण के लिए अगर तुम्हारा सामना किसी ऐसे बुरे व्यक्ति से होता है जो कलीसिया के काम में विघ्न-बाधा डालता है, तो क्या तुम इसे पहचान पाओगे? क्या तुम प्रत्यक्ष बुरे कर्मों को चुन सकते हो? बिल्कुल चुन सकते हो। बुरे लोग खराब चीजें करते हैं, और अच्छे लोग अच्छी चीजें करते हैं; औसत व्यक्ति एक नजर में अंतर बता सकता है। अगर तुम्हारे अंदर अंतरात्मा की जागरूकता है तो क्या तुम्हारे अंदर भावनाएँ और विचार नहीं होंगे? अगर तुम्हारे अंदर विचार और भावनाएँ हैं, तो तुम्हारे पास सत्य का अभ्यास करने के लिए सबसे बुनियादी बातों में से एक है। अगर तुम बता सकते हो और महसूस कर सकते हो कि यह व्यक्ति बुराई कर रहा है, और इसकी पहचान करने के बाद उस व्यक्ति को उजागर कर सकते हो, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को इस मामले को समझने में मदद कर सकते हो, तो क्या यह समस्या हल नहीं हो जाएगी? क्या यही सत्य का अभ्यास और सिद्धांतों पर चलना नहीं है? यहाँ सत्य का अभ्यास करने के लिए कौन से तरीके इस्तेमाल किए जाते हैं? (बुराई को उजागर करना, इसकी रिपोर्ट करना और रोकना।) सही। इस तरह से काम करना सत्य का अभ्यास करना होता है, और ऐसा करके ही तुम अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करोगे। अगर तुम इस तरह की स्थितियों का सामना करने पर अपनी समझ के अनुसार सत्य सिद्धांतों के अनुरूप काम करते हो, तो यह सत्य का अभ्यास करना और सिद्धांतों के साथ काम करना है। लेकिन अगर तुम्हारे अंदर अंतरात्मा की जागरूकता न हो और तुम बुरे लोगों को बुराई करते देखो, तो क्या तुम्हें इसके प्रति जागरूकता होगी? (मुझे नहीं होगी।) और बिना जागरूकता वाले लोग इसके बारे में क्या सोचेंगे? ‘अगर वह व्यक्ति बुराई करता है तो मुझे इससे क्या? वह मेरा तो कोई नुकसान नहीं कर रहा, तो मैं उसे नाराज क्यों करूँ? क्या ऐसा करना सच में आवश्यक है? इससे मुझे क्या लाभ होगा?’ क्या इस तरह के लोग बुरे लोगों की बुराई उजागर करते हैं, उनकी रिपोर्ट करते हैं और बुराई करने से उन्हें रोकते हैं? निश्चित रूप से नहीं। वे सत्य को समझते तो हैं लेकिन इसका अभ्यास नहीं कर सकते। क्या ऐसे लोगों के पास अंतरात्मा और विवेक होता है? उनके पास न तो अंतरात्मा होती है और न ही विवेक। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? क्योंकि वे सत्य को समझते तो हैं लेकिन इसका अभ्यास नहीं करते; इसका मतलब है कि उनके पास न तो अंतरात्मा है और न ही तर्क और वे परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह कर रहे हैं। वे केवल अपने हितों को नुकसान से बचाने पर ध्यान देते हैं; उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं होती कि कलीसिया के काम का नुकसान हो रहा है या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के हितों को क्षति पहुँच रही है। वे केवल खुद की रक्षा करने की कोशिश करते हैं, और अगर उन्हें समस्याएँ दिखती हैं, तो वे उन्हें अनदेखा कर देते हैं। यहाँ तक कि जब वे किसी को बुराई करते हुए देखते भी हैं, तो वे उस पर ध्यान नहीं देते और सोचते हैं कि जब तक इस से उनके हितों को कोई नुकसान नहीं पहुँच रहा, यह ठीक है। दूसरे चाहे जो भी करें, उन्हें उस से कोई लेना-देना नहीं होता; उनमें जिम्मेदारी की कोई भावना नहीं होती और उनकी अंतरात्मा का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इन अभिव्यक्तियों के आधार पर क्या इन लोगों में मानवता है? अंतरात्मा और तर्क से रहित व्यक्ति मानवता से रहित होता है। अंतरात्मा और तर्क से रहित सभी लोग बुरे होते हैं : वे मनुष्यों के भेष में जानवर हैं, जो हर प्रकार की बुरी चीजें करने में सक्षम होते हैं” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के लिए व्यक्ति में कम से कम जमीर और विवेक तो होना ही चाहिए)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे समझ आया कि एक सच्चे व्यक्ति के पास अंतरात्मा और विवेक होता है। वह सही-गलत में अंतर करने में सक्षम होता है और उसमें न्याय की भावना होती है जो सकारात्मक चीजों को पसंद करती है। जब वह किसी बुरे व्यक्ति को कलीसिया के कार्य में बाधा डालते और गड़बड़ी करते हुए देखता है तो वह इसका भेद पहचान सकता है और कलीसिया के हितों को नुकसान पहुँचने से बचाने के लिए समय पर इसकी रिपोर्ट करने और उसे उजागर करने में सक्षम होता है। जिस किसी व्यक्ति के पास अंतरात्मा और विवेक नहीं होता, वह समस्याओं को अनदेखा कर देता है, भले ही वह उनका पता लगा ले। वह केवल अपने हितों की रक्षा के बारे में सोचता है और जब वह लोगों को बुराई करते, कलीसिया के कार्य में बाधा डालते और गड़बड़ी करते देखता है तो वह इस पचड़े में नहीं पड़ता है। उसमें जिम्मेदारी की भावना का एक कण भी नहीं होता है। मैंने सोचा कि कैसे किंगयुआन कलीसिया को लगातार कई बड़ी गिरफ्तारियों का सामना करना पड़ा था। भाई-बहनों का कलीसियाई जीवन अच्छा नहीं था और वे अच्छे अगुआ का इंतजार कर रहे थे, जो उनके जीवन प्रवेश में उनकी मदद कर सके। लेकिन मैं अच्छी तरह से जानती थी कि युआन ली अगुआ बनने के लिए उपयुक्त नहीं है, लेकिन उसे नाराज करने से डरती थी, मुझे डर था कि वह मेरे खिलाफ पूर्वाग्रही हो जाएगी और डरती थी कि अगुआओं के मन में मेरी बुरी छवि बनेगी। इसलिए समझने के बावजूद मैंने मूर्ख होने का नाटक किया और युआन ली की समस्याओं की रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं की। मैं चुपचाप खड़ी रहकर कलीसिया का कार्य खराब होते और अपने भाई-बहनों के जीवन का नुकसान होते हुए देखती रही। मैं वाकई बहुत स्वार्थी और धोखेबाज थी! अतीत में मैं मानती थी कि मैं कलीसिया में कुछ कर्तव्य करने में सक्षम हूँ; बाहर से मेरा कुछ अच्छा व्यवहार था और मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया था जो स्पष्ट रूप से कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी पैदा करता हो, इसलिए ऐसा लगता था कि मुझमें थोड़ी मानवता है। अब मैंने देखा कि मेरे पास वह अंतरात्मा और विवेक भी नहीं था जो सामान्य व्यक्ति के पास होना चाहिए। मैं एक इंसान कहलाने के लायक नहीं थी! अगर मैंने परमेश्वर के सामने पश्चात्ताप नहीं किया तो पक्का परमेश्वर मुझसे घृणा करेगा और मुझे हटा देगा। जब मैंने इस तरह सोचा तो मेरा दिल पछतावे और आत्म-ग्लानि से भर गया। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, सत्य का अभ्यास करने और अपना कर्तव्य अच्छे से पूरा करने की इच्छा जताई। मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “वह सब कुछ करो जो परमेश्वर के कार्य के लिए लाभदायक है और ऐसा कुछ भी न करो जो परमेश्वर के कार्य के हितों के लिए हानिकर हो। परमेश्वर के नाम, परमेश्वर की गवाही और परमेश्वर के कार्य की रक्षा करो” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, राज्य के युग में परमेश्वर के प्रशासनिक आदेशों के बारे में)। “तुम्हें उस हर चीज का समर्थन करना चाहिए और उसके प्रति जवाबदेह होना चाहिए जो परमेश्वर के घर के हित से संबंध रखती है, या जिसका ताल्लुक परमेश्वर के घर के कार्य और परमेश्वर के नाम से है। तुममें से हर एक की यह जिम्मेदारी और दायित्व है, और यही तुम सबको करना चाहिए” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, राज्य के युग में परमेश्वर के प्रशासनिक आदेशों के बारे में)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे यह समझाया कि जब कुछ घटित होता है तो व्यक्ति को अपने लाभ छोड़कर कलीसिया के कार्य को प्राथमिकता देनी चाहिए। अगर कोई कलीसिया में ऐसी चीजें देखता है जो सिद्धांतों के अनुरूप नहीं हैं, जो कलीसिया के हितों को नुकसान पहुँचाती हैं तो उसे अपनी जिम्मेदारी अच्छे से पूरी करनी चाहिए, सिद्धांतों को कायम रखना चाहिए और कलीसिया के कार्य की रक्षा करनी चाहिए। तभी कोई व्यक्ति परमेश्वर के घर का सदस्य बन सकता है और परमेश्वर द्वारा अनुमोदित हो सकता है। अगर वह लोगों को नाराज करने के डर से उदासीन रहता है तो इससे कलीसिया के कार्य की रक्षा नहीं होती है। यह परमेश्वर के प्रति अपमान है। बाद में मैंने युआन ली की समस्याओं की रिपोर्ट करते हुए अगुआओं को एक पत्र लिखा। अगुआओं ने किसी को भेजकर इसकी पुष्टि करने की व्यवस्था की। स्थिति के बारे में पता लगाने के बाद उन्होंने पाया कि युआन ली लगातार अपनी बड़ाई और दिखावा कर रही थी। जब चीजें सामने आईं तो उसने उन्हें परमेश्वर के वचनों के अनुसार नहीं देखा; वह सही-गलत की मनोदशा में रहती थी। उसने भाई-बहनों के बीच मतभेद भी भड़काए और कलीसिया के कार्य में बाधा और गड़बड़ी पैदा की। जब सिद्धांत के अनुसार इसका मूल्यांकन किया गया तो वह अगुआ बनने के लिए अनुपयुक्त पाई गई, इसलिए उसे बरखास्त कर दिया गया। जब मुझे इस नतीजे के बारे में पता चला तो मेरे दिल को काफी सुकून मिला। मुझे लगा कि जब मैंने सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास किया तो मेरी अंतरात्मा ने मुझे नहीं धिक्कारा और मेरा दिल मुक्त हो गया।
बाद में मैंने इस पर विचार किया, “जब मेरे अपने हित शामिल होते हैं तो मैं सिद्धांत के अनुसार अभ्यास क्यों नहीं कर पाती हूँ? सत्य का अभ्यास करना मेरे लिए इतना थकाऊ क्यों है?” मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “शैतान राष्ट्रीय सरकारों और प्रसिद्ध एवं महान व्यक्तियों की शिक्षा और प्रभाव के माध्यम से लोगों को दूषित करता है। उनके शैतानी शब्द मनुष्य के जीवन और प्रकृति बन गए हैं। ‘हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए’ एक प्रसिद्ध शैतानी कहावत है जिसे हर किसी में डाल दिया गया है और यह मनुष्य का जीवन बन गया है। सांसारिक आचरण के फलसफों के लिए कुछ अन्य शब्द भी हैं जो इसी तरह के हैं। शैतान प्रत्येक देश के लोगों को शिक्षित करने, गुमराह करने और भ्रष्ट करने के लिए पारंपरिक संस्कृति का इस्तेमाल करता है, और मानवजाति को विनाश की विशाल खाई में गिरने और उसके द्वारा निगल लिए जाने पर मजबूर कर देता है, और अंत में, परमेश्वर लोगों को नष्ट कर देता है क्योंकि वे शैतान की सेवा करते हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं। ... शैतान ने मनुष्य को गंभीर ढंग से दूषित कर दिया है। शैतान का विष हर व्यक्ति के रक्त में बहता है, और यह कहा जा सकता है कि मनुष्य की प्रकृति भ्रष्ट, दुष्ट, प्रतिरोधात्मक और परमेश्वर के विरोध में है, शैतान के फलसफों और विषों से भरी हुई और उनमें डूबी हुई है। यह पूरी तरह शैतान का प्रकृति-सार बन गया है। इसीलिए लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं और परमेश्वर के विरूद्ध खड़े रहते हैं” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें)। परमेश्वर के वचनों के इस अंश को पढ़ने के बाद मुझे समझ आया कि शैतान हमारे अंदर अपने जहर भरने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रसिद्ध और महान लोगों के शब्दों का उपयोग करता है। उदाहरण के लिए, “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए,” “जब पता हो कि कुछ गड़बड़ है, तो चुप रहना ही बेहतर है,” “परेशानी जितनी कम हो उतना अच्छा है” और “जो ज्यादा बोलता है वह अधिक गलतियाँ करता है।” मैं इन शैतानी जहरों के अनुसार जी रही थी और अपने हितों को सबसे ऊपर रखती थी। मैं जो कुछ भी करती थी, उसे इस आधार पर तौलती थी कि क्या यह मेरे लिए फायदेमंद है। अगर यह मेरे लिए फायदेमंद होता तो मैं बिना एक शब्द कहे तुरंत कर देती; अगर यह ऐसा कुछ होता जो मेरे लिए फायदेमंद नहीं होता और किसी को नाराज कर सकता तो मैं निश्चित रूप से ऐसा नहीं करती। मैं खासकर स्वार्थी और धोखेबाज थी। मैं अच्छी तरह से जानती थी कि युआन ली अगुआ बनने के लिए उपयुक्त नहीं है और मैं इस बारे में उच्च अगुआओं को रिपोर्ट करना चाहती थी, लेकिन मुझे डर था कि अगर मैंने इसकी रिपोर्ट की तो उच्च अगुआ कहेंगे कि मैं अपने कर्तव्य नहीं कर रही हूँ और उन चीजों में घुस रही हूँ जिनसे मेरा कोई लेना-देना नहीं है, इसलिए मेरे बारे में गलत आकलन करेंगे। मैं युआन ली को नाराज करने और हमारे रिश्ते पर प्रभाव पड़ने से भी डरती थी, इसलिए बार-बार मैंने चुप्पी साध ली। मेरा मानना था कि ऐसा करने से मैं किसी को नाराज नहीं करूँगी और खुद को कोई नुकसान नहीं पहुँचाऊँगी। बाहर से ऐसा करने का मेरा निर्णय बहुत चतुराई भरा लग रहा था, लेकिन असल में मैं वाकई परमेश्वर को नाराज कर रही थी। मैंने देखा कि कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुँच रहा था और मेरे भाई-बहनों का कलीसियाई जीवन अच्छा नहीं था, लेकिन मैं चिंतित या दुखी नहीं थी और मैंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। मैं शैतान के साथी के रूप में काम कर रही थी। परमेश्वर ने मेरे द्वारा किए गए हर काम की पूरी स्पष्टता से जाँच-पड़ताल की, लेकिन फिर भी मुझे लगा कि मैं चतुर बन रही हूँ। कितना दयनीय! कितना घृणित! मैंने देखा कि इन शैतानी जहरों के अनुसार जीने से, मैं स्पष्ट रूप से सत्य समझती थी, लेकिन इसे अभ्यास में नहीं ला पाती थी। मैं सही-गलत में अंतर नहीं कर पाती थी, मुझमें न्याय और मानवता की कोई समझ नहीं थी। मैं जैसे जी रही थी, वह पूरी तरह से शैतान की बदसूरत छवि थी, जिससे मैं खुद भी घृणा करती थी, परमेश्वर को इससे और भी अधिक घृणा और नफरत थी। अगर मैं सत्य का अभ्यास किए बिना इन शैतानी फलसफों के अनुसार जीती रहती तो आखिरकार मैं उद्धार पाने का अपना मौका पूरी तरह से गँवा देती और परमेश्वर द्वारा दंडित की जाती।
अपने चिंतन में मुझे यह भी एहसास हुआ कि मेरे कुछ दृष्टिकोण गलत थे। मैं अगुआओं-कार्यकर्ताओं के साथ सही तरीके से व्यवहार करने में असमर्थ थी और नतीजतन सत्य का अभ्यास करने में भी असमर्थ थी। मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “जब कलीसिया में किसी को अगुआ बनने के लिए पदोन्नत और विकसित किया जाता है, तो उसे सीधे अर्थ में पदोन्नत और विकसित किया जाता है; इसका यह मतलब नहीं कि वह पहले से ही अगुआ के रूप में मानक स्तर का है, या सक्षम अगुआ है, कि वह पहले से ही अगुआई का काम करने में सक्षम है, और वास्तविक कार्य कर सकता है—ऐसा नहीं है। ज्यादातर लोग इन चीजों को स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते, और अपनी कल्पनाओं के आधार पर वे इन पदोन्नत लोगों का सम्मान करते हैं, पर यह एक भूल है। जिन्हें पदोन्नत किया जाता है, उन्होंने चाहे कितने ही वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखा हो, क्या उनके पास वास्तव में सत्य वास्तविकता होती है? ऐसा जरूरी नहीं है। क्या वे परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाएँ लागू करने में सक्षम हैं? अनिवार्य रूप से नहीं। क्या उनमें जिम्मेदारी की भावना है? क्या वे निष्ठावान हैं? क्या वे समर्पण करने में सक्षम हैं? जब उनके सामने कोई समस्या आती है, तो क्या वे सत्य की खोज करने योग्य हैं? यह सब अज्ञात है। क्या इन लोगों के अंदर परमेश्वर का भय मानने वाले हृदय हैं? और परमेश्वर का भय मानने वाले उनके हृदय कितने विशाल हैं? क्या काम करते समय वे अपनी इच्छा का पालन करना टाल पाते हैं? क्या वे परमेश्वर की खोज करने में समर्थ हैं? अगुआई का कार्य करने के दौरान क्या वे अक्सर परमेश्वर के इरादों की तलाश में परमेश्वर के सामने आने में सक्षम हैं? क्या वे लोगों के सत्य वास्तविकता में प्रवेश की अगुआई करने में सक्षम हैं? निश्चय ही वे ऐसी चीजें कर पाने में अक्षम होते हैं। उन्हें प्रशिक्षण नहीं मिला है और उनके पास पर्याप्त अनुभव भी नहीं है, इसलिए वे ये चीजें नहीं कर पाते। इसीलिए, किसी को पदोन्नत और विकसित करने का यह मतलब नहीं कि वह पहले से ही सत्य को समझता है, और न ही इसका अर्थ यह है कि वह पहले से ही अपना कर्तव्य एक मानक तरीके से करने में सक्षम है। ... मेरे यह कहने का क्या मतलब है? सभी को यह बताया जाना है कि उन्हें परमेश्वर के घर में विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को बढ़ावा दिए जाने और विकसित किए जाने को सही तरह से लेना चाहिए, और इन लोगों से अपनी अपेक्षाओं में उन्हें कठोर नहीं होना चाहिए, और निश्चय ही उन्हें इन लोगों के बारे में अपनी राय बनाने में अयथार्थवादी भी नहीं होना चाहिए। उनकी अत्यधिक सराहना करना या सम्मान देना मूर्खता है, तो उनके प्रति अपनी अपेक्षाओं में अत्यधिक कठोर होना भी अमानवीय और यथार्थ से परे होना है। तो उनके साथ व्यवहार का सबसे उचित तरीका क्या है? उन्हें सामान्य लोगों की तरह ही समझना, और जब तुम्हें किसी समस्या के संदर्भ में किसी को तलाशने की आवश्यकता हो, तो उनके साथ संगति करना और एक-दूसरे के मजबूत पक्षों से सीखना और एक-दूसरे का पूरक होना। इसके अतिरिक्त, अगुआ और कार्यकर्ता का यह देखने के लिए निरीक्षण करना कि वे वास्तविक कार्य कर रहे हैं या नहीं, वे समस्याएँ सुलझाने के लिए सत्य का इस्तेमाल कर सकते हैं या नहीं, इस पर नजर रखना सभी की जिम्मेदारी है; अगुआ या कार्यकर्ता मानक स्तर का है या नहीं, इसे मापने के ये मानक और सिद्धांत हैं। अगर कोई अगुआ या कार्यकर्ता आम समस्याओं से निपटने और उन्हें सुलझाने में सक्षम है, तो वह सक्षम है। लेकिन अगर वह साधारण समस्याओं से भी नहीं निपट सकता, उन्हें हल नहीं कर सकता, तो वह अगुआ या कार्यकर्ता बनने के योग्य नहीं है, और उसे फौरन उसके पद से हटा देना चाहिए। किसी दूसरे को चुनना चाहिए, और परमेश्वर के घर के काम में देरी नहीं की जानी चाहिए। परमेश्वर के घर के काम में देरी करना खुद को और दूसरों को आहत करना है, इसमें किसी का भला नहीं है” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (5))। “सत्य के सामने हर कोई बराबर है और परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य निभाने वालों के लिए उम्र या नीचता और कुलीनता का कोई भेद नहीं है। अपने कर्तव्य के सामने हर कोई बराबर है, वे बस अलग-अलग काम करते हैं। वरिष्ठता के आधार पर उनके बीच कोई भेद नहीं है। सत्य के सामने सबको विनम्र, समर्पण करने और स्वीकारने वाला दिल रखना चाहिए। लोगों में यही विवेक और रवैया होना चाहिए” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग आठ))। परमेश्वर के वचनों ने मुझे यह समझाया कि कलीसिया में सभी स्तरों के अगुआ भाई-बहनों में से चुने जाते हैं। वे अगुआ का कर्तव्य निभाते हैं, जो यह दर्शाता है कि उनमें अगुआ बनने की कुछ काबिलियत है। लेकिन उन्हें तरक्की देकर परमेश्वर का घर उन्हें केवल प्रशिक्षित करने का अवसर देता है : इसका मतलब यह नहीं है कि वे अगुआ के रूप में मानक स्तर पर हैं। वे अपने स्वभाव में परिवर्तन करने की अवधि में हैं और अपने कर्तव्य करने की प्रक्रिया में उनसे अपरिहार्य रूप से कुछ भटकाव होते हैं। हमें इसे सही तरीके से लेना चाहिए। अगर कोई समस्याएँ हैं तो हम उन्हें उठा सकते हैं और अगुआओं के साथ मिलकर खोज कर सकते हैं। इसके अलावा भाई-बहनों की जिम्मेदारी है कि वे अगुआओं का पर्यवेक्षण करें और कलीसिया के कार्य की रक्षा करें। यही कर्तव्य हमें करना चाहिए। उदाहरण के तौर पर युआन ली के चुनाव को ही लो। अगुआओं ने बाद में मुझे बताया कि उनका अभी-अभी दूसरी कलीसिया से तबादला किया गया है और इसलिए वे युआन ली के निरंतर व्यवहार से बहुत परिचित नहीं थे। उस समय उन्होंने माना कि कलीसिया में कोई भी उपयुक्त व्यक्ति नहीं था और देखा कि बाहर से युआन ली अपने कर्तव्य करने में काफी सक्रिय थी और उसने सुसमाचार प्रचार में कुछ नतीजे प्राप्त किए थे। इसलिए वे सहमत हो गए कि उसे अगुआ चुना जाना चाहिए। उनके काम में भी भटकाव थे। तथ्यों से मैंने देखा कि हर किसी में कमियाँ हैं और कोई भी अपना कर्तव्य पूर्णता से नहीं कर सकता। भाई-बहनों को एक-दूसरे का पूरक बनने की जरूरत होती है। अतीत में मैं सोचती थी कि अगुआ चीजों की जाँच कर रहे हैं और इसलिए कोई समस्या नहीं हो सकती, लेकिन ये मेरी धारणाएँ और कल्पनाएँ थीं। एक अन्य संदर्भ में, जब हम परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य करते हैं तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम अगुआ हैं या साधारण विश्वासी : बस इतना है कि हम अलग-अलग कर्तव्य करते हैं। परमेश्वर के घर में कोई उच्च या निम्न दर्जा नहीं होता। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि अगुआओं का दर्जा सामान्य भाई-बहनों से अधिक होता है और वे जो कहते हैं वही होता है। परमेश्वर का घर अविश्वासी दुनिया से अलग है। परमेश्वर के घर में सत्य की सत्ता होती है और धार्मिकता की सत्ता होती है। क्योंकि मैं बड़े लाल अजगर के देश में शिक्षित और संस्कारित हुई थी, मेरा मानना था कि अगुआ होना एक अधिकारी होने के समान ही है—तुम्हारे पास सत्ता है और तुम सामान्य विश्वासियों से एक स्तर ऊपर हो। भले ही मुझे अगुआओं की समस्याएँ पता चलीं, लेकिन मैंने उन्हें उठाने की हिम्मत नहीं की, क्योंकि मैंने सोचा कि अपनी राय रखना अगुआओं से अलग राग अलापना होगा, जिससे वे असहज स्थिति में पड़ जाएँगे। मैं यह भी मानती थी कि मेरा कर्तव्य पाठ-आधारित कर्तव्य है और मुझे अगुआओं से संबंधित मामलों में शामिल नहीं होना चाहिए। मैंने सोचा कि अगर मैं उन चीजों में शामिल हो गई जो मेरे अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं तो मैं अगुआओं को नाराज कर दूँगी और मेरे लिए चीजें खराब हो जाएँगी। आत्म-संरक्षण के लिए मैंने परमेश्वर के घर के अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ वैसा ही व्यवहार किया जैसा कि अविश्वासी अधिकारियों के साथ करते हैं। अपने दिल में मैं बस यह नहीं मानती थी कि परमेश्वर के घर में सत्य की सत्ता होती है। चीजों पर मेरे दृष्टिकोण बहुत हास्यास्पद थे! असल में परमेश्वर के घर में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन अपनी राय रखता है। जब तक यह सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है, परमेश्वर के घर के कार्य और भाई-बहनों के लिए फायदेमंद है, हर कोई इसे स्वीकार करेगा और अपनाएगा। यह वैसा ही है जैसे जब मैंने युआन ली की समस्याओं की रिपोर्ट की थी। स्थिति को समझने और सत्यापित करने के बाद अगुआओं ने उसे बरखास्त कर दिया। इससे मुझे और भी स्पष्ट हो गया कि परमेश्वर के घर में सत्य की सत्ता होती है और धार्मिकता की सत्ता होती है।
2022 में एक दिन मैं एक कलीसिया अगुआ वांग मिन से मिली। जब मैंने वांग मिन को उसकी मनोदशा के बारे में चर्चा करते हुए सुना, मैंने पाया कि वह आराम में लिप्त रहती है और अपने कर्तव्य निर्वहन में बोझ नहीं उठाती है। उसने कहा कि व्यक्तिगत मामलों के कारण वह अक्सर सभाओं में देर से आती है या अनुपस्थित रहती है और कलीसिया के कार्य में देरी करती है। मैंने उसके साथ कर्तव्य निर्वहन के अर्थ के बारे में संगति की, लेकिन उसने यह कहते हुए इसे टाल दिया कि उसे विशेष कठिनाइयाँ हैं। फिर वांग मिन ने बताना शुरू किया कि जब उसने अभी-अभी परमेश्वर पर विश्वास करना शुरू किया था तो वह सीसीपी की निराधार अफवाहों से प्रभावित हो गई थी और उसने परमेश्वर के कार्य के बारे में कुछ धारणाएँ विकसित कर ली थी और इसलिए पीछे हटते हुए उसने विश्वास करना बंद कर दिया था। बाद में उसे एक गंभीर बीमारी हो गई थी जो ठीक नहीं हो रही थी। उसके बाद ही वह वापस आई और परमेश्वर पर विश्वास करने लगी। जब वह इस अनुभव पर चर्चा कर रही थी तो उसने परमेश्वर के साथ अपने पिछले विश्वासघात के बारे में थोड़ी सी भी समझ या खेद नहीं दिखाया। मैंने उससे पूछा कि इस घटना के बारे में उसके क्या विचार और समझ है, लेकिन उसने मुझे कोई सीधा जवाब नहीं दिया। उसने अपना बचाव करते हुए कहा कि उस समय सीसीपी की अफवाहें बहुत जोरदार थीं और यही एकमात्र कारण था कि वह गुमराह हो गई थी। उसने कुछ ऐसे शब्द भी दोहराए जो परमेश्वर के खिलाफ ईशनिंदा करते थे। उसकी ऐसी बातें सुनकर मैं वाकई चौंक गई। यह समझ आता है कि जब उसने अभी-अभी परमेश्वर पर विश्वास करना शुरू किया था तो वह सीसीपी की निराधार अफवाहों का भेद पहचान नहीं पाई थी, लेकिन अब एक दशक से अधिक समय तक परमेश्वर पर विश्वास करने के बाद भी वह परमेश्वर के खिलाफ ईशनिंदा करने वाले शब्दों को दोहराती रही। इससे भी बदतर, उसने उन्हें बोलते समय कोई जागरूकता नहीं दिखाई। मैंने उसे परमेश्वर का भय मानने से संबंधित कुछ वचन पढ़कर सुनाए और उसे बताया कि उसकी बातों और क्रियाकलापों की प्रकृति क्या है। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद भी उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। मुझे लगा कि यह इंसान काफी सुन्न है और मैं वांग मिन की समस्याओं की रिपोर्ट करने के लिए अगुआओं को एक पत्र लिखना चाहती थी। लेकिन मेरा दिल उलझन में था, मैं सोच रही थी, “मैंने सुना है कि ऊपरी अगुआ उसे विकसित करने की योजना बना रहे हैं। साथ ही यह वांग मिन से मेरी पहली मुलाकात है। अगर मैं तुरंत उसकी समस्याओं की रिपोर्ट करती हूँ तो क्या ऊपरी अगुआ कहेंगे कि मैं वाकई घमंडी हूँ क्योंकि मैंने सिर्फ एक बार मिलने के बाद ही इस इंसान की समस्या का भेद पहचान लिया? क्या इसे उनकी भेद पहचानने की क्षमता पर संदेह माना जाएगा? साथ ही अगर मेरी बात गलत निकली और इससे किसी को तरक्की देने और विकसित करने के मामले में कलीसिया पर प्रभाव पड़ा, तो क्या अगुआ मेरे बारे में गलत राय रखेंगे?” जब मैंने इस बारे में सोचा तो मैं झिझक गई। तब मुझे एहसास हुआ कि मैं फिर से अपने हित साधने के बारे में सोच रही हूँ और इसलिए मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की। मुझे परमेश्वर के वचन याद आ गए : “हमेशा अपने लिए कार्य मत कर, हमेशा अपने हितों की मत सोच, इंसान के हितों पर ध्यान मत दे, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा और हैसियत पर विचार मत कर। तुम्हें सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उन्हें अपनी प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुम्हें परमेश्वर के इरादों का ध्यान रखना चाहिए और इस पर चिंतन से शुरुआत करनी चाहिए कि तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन में अशुद्धियाँ रही हैं या नहीं, तुम वफादार रहे हो या नहीं, तुमने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं, और अपना सर्वस्व दिया है या नहीं, साथ ही तुम अपने कर्तव्य, और कलीसिया के कार्य के प्रति पूरे दिल से विचार करते रहे हो या नहीं। तुम्हें इन चीजों के बारे में अवश्य विचार करना चाहिए। अगर तुम इन पर बार-बार विचार करते हो और इन्हें समझ लेते हो, तो तुम्हारे लिए अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना आसान हो जाएगा” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अभ्यास का मार्ग दिया, मुझे आत्म-निंदा और शर्मिंदगी महसूस कराई। मैंने पहले से ही भेद पहचान लिया था कि वह सत्य का अनुसरण करने वाली इंसान नहीं है और अगुआ बनने के लिए अनुपयुक्त है। अगुआ अभी भी उसे विकसित करने की योजना बना रहे थे। अगर उसे वाकई पदोन्नत किया जाता तो क्या परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान नहीं पहुँचता? मैं इस तरह के स्वार्थी और नीच तरीके से नहीं जी सकती थी। मुझे कलीसिया के कार्य की रक्षा करनी चाहिए, अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को अच्छे से पूरा करना चाहिए। इसलिए मैंने फिर वांग मिन की समस्याओं की रिपोर्ट उच्च अगुआओं को दी। अगुआओं ने स्थिति के बारे में पता लगाने के बाद देखा कि वांग मिन वाकई विकसित होने के लिए अनुपयुक्त है और फिलहाल उसे पदोन्नत नहीं करने का फैसला किया।
2023 में मैंने सुना कि वांग मिन को गिरफ्तार कर लिया गया था और वह यहूदा बन गई थी। उसे निष्कासित कर दिया गया था। जब मैंने इस बारे में सुना तो मुझे एहसास हुआ कि अगर मैंने खुद को बचाने के लिए समय पर स्थिति की रिपोर्ट नहीं की होती तो वांग मिन को पदोन्नत किए जाने पर कलीसिया को होने वाला नुकसान और भी अधिक हो सकता था। मेरी अंतरात्मा मेरे इस बचे हुए जीवन में बेचैन ही रहती। साथ ही मुझे समझ आया कि मुझे समय पर उन लोगों की रिपोर्ट करनी चाहिए जो सही लोग नहीं हैं और सिद्धांतों को कायम रखना चाहिए। सत्य के इस पहलू का अभ्यास करना बहुत महत्वपूर्ण है! भले ही हमें सत्य की उथली समझ हो, हम कुछ लोगों या चीजों की असलियत न जान पाएँ और समस्याओं की रिपोर्ट करने में थोड़े गलत हों, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मुख्य बात यह है कि अगर हम कलीसिया के कार्य की रक्षा कर सकते हैं तो यह दिल वाकई अनमोल है। बाद में जब मैंने कलीसिया में किसी को सिद्धांतों के विपरीत काम करते देखा तो मैं समय पर अगुआओं को उनकी रिपोर्ट करने में सक्षम थी, कलीसिया के कार्य की रक्षा करने की अपनी जिम्मेदारी को अच्छे से पूरा करती थी। मुझे लगा कि इस तरह से आचरण करने से मेरे दिल को सुकून और शांति मिली। मुझमें यह परिवर्तन लाने में मार्गदर्शन के लिए परमेश्वर का धन्यवाद!