78. अपना छद्मवेश हटाना मेरे लिए बहुत राहत भरा था
मार्च 2021 में मैं वीडियो कार्य के लिए जिम्मेदार थी। शुरू में मुझे लगा मुझमें काफी कमियाँ हैं। अगर मुझे कुछ समझ न आता तो मैं अक्सर अगुआओं या भाई-बहनों से पूछ लेती। एक बार मैंने अगुआओं द्वारा किसी और को लिखा गया एक पत्र देखा। उसमें कहा गया था कि भले ही मैं लंबे समय से यह कर्तव्य नहीं कर रही थी, लेकिन मुझमें कुछ काबिलियत है और वीडियो बनाने में मेरी प्रगति अपेक्षाकृत तेज है। मैं विकसित किए जाने के लिए एक उपयुक्त प्रत्याशी हूँ। पत्र में दूसरे भाई-बहनों की समस्याओं का भी उल्लेख किया गया था। मैं एकमात्र व्यक्ति थी जिसकी प्रशंसा की गई थी। मेरी मनोदशा में कुछ सूक्ष्म परिवर्तन हुए। मुझे लगा मैं दूसरे भाई-बहनों से बेहतर हूँ, इसके अलावा मैं पर्यवेक्षक भी थी। इसलिए भविष्य में अगर वे वीडियो तकनीकों के बारे में कोई सवाल उठाते हैं तो मुझे उनका समाधान करने में सक्षम होना होगा। एक बार हम कार्य पर चर्चा कर रहे थे। एक बहन ने एक सवाल किया, लेकिन मैं उसका समाधान नहीं कर सकी। मैंने मन ही मन सोचा, “अगर मैंने कहा कि मुझे इसका समाधान नहीं आता और मुझे समझ में नहीं आ रहा तो कहीं वे मुझे नीची नजर से तो नहीं देखेंगे? कहीं वे यह तो नहीं सोचेंगे कि मैं कुछ विशेष नहीं हूँ और वास्तव में उनसे बेहतर नहीं हूँ?” इसलिए मैंने दूसरे भाई-बहनों से पूछा कि क्या उनके पास कोई विचार है। जब भाई-बहन अपनी राय पर बातचीत कर रहे थे तो मैंने जल्दी से सामग्री खोजी। जब उनकी बातचीत समाप्त हो गई तो मैंने कुछ समाधान बताए जिनका जिक्र उन्होंने नहीं किया था। जैसे ही मैंने बोलना समाप्त किया, कुछ बहनों ने कहा, “अगर हमने तुम्हारे साथ इस पर चर्चा न की होती तो हम वाकई इसके इस पहलू को नहीं समझ पाते। जैसे ही तुमने हमारे साथ इस पर चर्चा की, हमें बहुत स्पष्ट हो गया।” बाद में जब भी किसी को कोई समस्या या कठिनाई होती तो वे मेरे साथ इस पर चर्चा करना चाहते थे। मैं बहुत खुश थी। मैंने मन ही मन सोचा, “अब वे सभी मेरी प्रशंसा करते हैं। वे निश्चित रूप से सोचते हैं कि मैं पर्यवेक्षक के रूप में अच्छी हूँ। मुझे अच्छा प्रदर्शन करना होगा। मैं गलती नहीं कर सकती।”
एक बार एक अगुआ ने मुझे एक वीडियो भेजा। उसे बहन शियाओ रान ने बनाया था और उसमें कुछ मसले थे। अगुआओं को लग रहा था कि शियाओ रान के तकनीकी कौशल वीडियो को संपादित करने के कार्य के लिए उपयुक्त नहीं हैं, इसलिए उन्होंने मुझे उसके साथ इसे संपादित करने को कहा। जब मैंने वीडियो में समस्याएँ देखीं तो मेरे पास संपादन के लिए कुछ विचार थे। लेकिन मुझे कुछ तकनीकों की अच्छी समझ नहीं थी और वाकई यह नहीं पता था कि उसे अच्छे से कैसे संपादित करना है। मैंने मन ही मन सोचा, “अगर मैं इसे अच्छे से संपादित नहीं करती हूँ तो अगुआ मेरे बारे में क्या सोचेंगे? पहले उनके मन में मेरा बहुत अच्छा प्रभाव था। अगर मैं इस वीडियो को अच्छे से संपादित नहीं कर पाई तो कहीं अगुआ यह तो नहीं सोचेंगे कि मैं अकुशल हूँ और उनके मन में मेरा जो प्रभाव है, उसके मुताबिक मैं उतनी अच्छी नहीं हूँ? ऐसा तो नहीं चलेगा। अगुआओं के मन से मेरा यह प्रभाव जाना नहीं चाहिए।” उस समय मैंने सोचा, “आखिर यह वीडियो शियाओ रान ने बनाया है। क्यों न शियाओ रान से ही इसे संपादित करवाया जाए? अगर वह इसे अच्छे से संपादित नहीं कर पाई है तो यह उसकी समस्या है। अगर अगुआ बाद में इसके बारे में पूछेंगे तो मैं बस इतना कह दूँगी कि मुझे दूसरे महत्वपूर्ण कार्य करने थे।” लेकिन शियाओ रान को वीडियो संपादित करना नहीं आता था और उसने मेरी राय माँगी। मैंने मन ही मन सोचा, “अगर मैं कहूँ कि इस वीडियो से जुड़ी तकनीकों पर मेरी पकड़ नहीं है तो शियाओ रान मेरे बारे में क्या सोचेगी? कहीं वह यह तो नहीं सोचेगी कि एक पर्यवेक्षक होकर भी मुझे यह नहीं आता?” बहन कहीं यह न देख ले कि मेरे दिमाग में क्या चल रहा है, मैंने केवल अपने विचारों का उल्लेख किया कि मैं इसे कैसे संपादित करूँगी। मैंने केवल विशिष्ट तकनीकी पहलुओं को संचालित करने के तरीके पर ही चर्चा की। शियाओ रान के भ्रमित चेहरे को देखते हुए मैंने आगे कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं की। मुझे डर था कि अगर मैंने और सवाल पूछे और फिर उसने मुझसे दूसरे सवाल पूछ लिए जिनका उत्तर मैं न दे पाई तो मुझे समझ नहीं आएगा कि क्या करूँ। मैंने उसे केवल परमेश्वर से बार-बार प्रार्थना करने और परमेश्वर पर भरोसा करने को कहा। बाद में शियाओ रान अभी भी संपादन नहीं कर पा रही थी। अब कोई चारा नहीं था। मुझे बस अपनी हिम्मत जुटाकर उसके साथ इसे संपादित करना था। शियाओ रान को यह जानने से रोकने के लिए कि मुझे यह करना नहीं आता, मैंने गुप्त रूप से संसाधनों की जाँच की और ट्यूटोरियल देखे। मैं इतनी व्यस्त थी कि मुझे चक्कर आ रहे थे, लगा मेरा दिमाग सूज गया है, मैं दिल से बहुत थक गई थी। अंत में इस वीडियो का संपादन समाप्त होते-होते लगभग एक महीना निकल गया।
बाद में अगुआओं ने हमें वीडियो तकनीकों पर कुछ अध्ययन सामग्रियाँ दीं ताकि हम उन पर चर्चा कर सकें और साथ मिलकर सीख सकें। मुझे पहले इस तरह की नई वीडियो तकनीक की कोई जानकारी नहीं थी और मुझे कुछ अध्ययन सामग्री भी समझ में नहीं आई। लेकिन मैं भाई-बहनों के सामने दिल खोलकर इस पर चर्चा नहीं करना चाहती थी। नतीजतन मुझे अध्ययन सामग्री पढ़ने में बहुत अधिक प्रयास करने पड़े। एक बार हम किसी अध्ययन सामग्री पर चर्चा कर रहे थे। ली शिन ने मुझसे पूछा, किसी प्रस्तुति विशेष के लिए कौन-सी तकनीक, सिद्धांत और आवश्यकताएँ होती हैं। उस समय मुझे ज्यादा कुछ पता नहीं था। मुझे चिंता हुई कि अगर मैं कुछ नहीं कह पाई तो ली शिन मेरे बारे में क्या सोचेगी, इसलिए मैंने हिम्मत दिखाते हुए बहुत ही औपचारिक जवाब दिया। ली शिन के आधा-अधूरा समझने के भाव को देखकर मैं जान गई कि मेरा जवाब उसकी समस्या का समाधान नहीं कर सका, इसलिए मैंने उसका ध्यान बँटाने के लिए जल्दी से दूसरा सवाल पूछ लिया। ली शिन ने फिर मुझसे दूसरे मसलों पर बात की। हालाँकि उस समय मुझे कुछ आत्मग्लानि हुई और मैं जान गई कि इस तरह से पेश आना ठीक नहीं था, मैंने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और इसे अनदेखा कर दिया। जब कभी मुश्किलें आतीं तो मैं अगुआओं से उनके बारे में पूछना चाहती थी, लेकिन फिर सोचती, “अगर अगुआओं को लगा कि अपनी काबिलियत के आधार पर मुझे इस समस्या का समाधान आना चाहिए, लेकिन मैं पूछताछ का पत्र लिखती हूँ तो वे मेरे बारे में क्या सोचेंगे? कहीं वे यह तो नहीं सोचेंगे कि मैं उतनी काबिल नहीं हूँ और कोई प्रगति नहीं कर रही हूँ? मैं भी दूसरे भाई-बहनों से अलग नहीं हूँ?” जब मैंने यह सोचा तो मुश्किलें आने पर भी मैं अपने वरिष्ठों से मदद न माँगती। इसके बजाय यही सोचती कि मैं खुद ही समस्याओं का समाधान कैसे करूँ। कुछ वीडियो की प्रगति इसलिए बाधित हुई क्योंकि मैं किसी समाधान के बारे में नहीं सोच पाई थी। इस दशा में रहने से मैं बेहद निराश थी, मानो परमेश्वर ने मुझे त्याग दिया हो। जब मैं परमेश्वर के वचन पढ़ती तो कोई रोशनी न होती और कभी-कभी तो मेरा दिल इतना दबा हुआ महसूस करता कि रोने का मन करता था। मैं बहनों से खुलकर बात करना और अपनी दशा पर संगति चाहती थी, लेकिन फिर मैं अपना विचार बदल देती : “उन सबको अपने कर्तव्यों में बहुत-सी कठिनाइयाँ हैं और वे सब थोड़ी नकारात्मक महसूस कर रही हैं। अगर मैं भी नकारात्मक हो जाऊँ तो क्या वे और भी ज्यादा नकारात्मक नहीं हो जाएँगी? मैं पर्यवेक्षक हूँ। इस टीम की मुखिया हूँ। दूसरे लोग नकारात्मक हो सकते हैं, लेकिन पर्यवेक्षक के तौर पर मुझे डटे रहना है, फिर चाहे कितनी भी मुश्किलें आएँ।” जब मैंने इस तरह सोचा तो मेरे मुँह से शब्द नहीं निकल पाए। उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए मुझे मजबूरन कुछ शब्द और धर्मसिद्धांत बोलने पड़े, लेकिन वो खुद मुझे भी नीरस लग रहे थे। उस समय मेरा दिल पीड़ा में था, मुझे लगा यह कर्तव्य निभाना बहुत कठिन है। कभी-कभी बाइक चलाते समय मैं फूट-फूट कर रो पड़ती थी और कभी-कभी भाई-बहनों के घर जाने पर मैं बाथरूम में जाकर रोती थी। रोना बंद होने पर मैं अपने आँसू पोंछती और आईने में देखती। जब फिर से बाहर आती तो मैं मजबूरन यह दिखावा करती जैसे कुछ हुआ ही नहीं है। उस समय, मैं लगातार अपनी दशा और कठिनाइयों को दबा रही होती थी। मेरा दिल बहुत निराश था। मुझे नहीं पता था कि मैं किस भ्रष्ट स्वभाव में जी रही हूँ जिसकी वजह से ऐसा हुआ होगा। मार्च 2022 में एक दिन अगुआओं का पत्र आया जिसमें सटीक कारण पूछा गया था कि मेरे कर्तव्यों ने लंबे समय तक कोई नतीजे क्यों नहीं दिए हैं। क्या इसकी वजह मेरा गलत रास्ते पर चलना था? तब जाकर मैंने आत्मचिंतन करना शुरू किया। अपने दिमाग में मैंने बार-बार हर उस दृश्य को याद किया जो मेरे पर्यवेक्षक बनने के बाद से हुआ था। मेरे दिमाग में एक ही शब्द आया : छद्मवेश।
बाद में मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “लोगों के भ्रष्ट स्वभाव में एक आम समस्या है, एक ऐसी समस्या जो हर व्यक्ति की मानवता में होने वाली सबसे गंभीर समस्या है। यह आम समस्या उनकी मानवता का सबसे कमजोर और सबसे घातक पहलू है, और उनके प्रकृति सार में इसे खोजना या बदलना सबसे मुश्किल चीज है। यह समस्या क्या है? वह यह है कि मनुष्य हमेशा असाधारण, अतिमानव और पूर्ण व्यक्ति बनना चाहता है। लोग स्वयं भी सृजित प्राणी हैं। क्या सृजित प्राणी सर्वशक्तिमान हो सकते हैं? क्या वे पूर्णता और निष्कलंकता हासिल कर सकते हैं? क्या वे हर चीज में दक्षता हासिल कर सकते हैं, हर चीज समझ सकते हैं, हर चीज की असलियत देख सकते हैं, और हर चीज में सक्षम हो सकते हैं? वे ऐसा नहीं कर सकते। हालाँकि, मनुष्यों में भ्रष्ट स्वभाव और एक घातक कमजोरी है : जैसे ही लोग किसी कौशल या पेशे को सीख लेते हैं, वे यह महसूस करने लगते हैं कि वे सक्षम हो गये हैं, वे रुतबे वाले और योग्य लोग हैं, और वे पेशेवर हैं। चाहे वे कितने भी साधारण हों, वे सभी अपने-आपको किसी प्रसिद्ध या असाधारण व्यक्ति के रूप में पेश करना चाहते हैं, अपने-आपको किसी छोटी-मोटी मशहूर हस्ती में बदलना चाहते हैं, ताकि लोग उन्हें पूर्ण और निष्कलंक समझें, जिसमें एक भी दोष नहीं है; दूसरों की नजरों में वे प्रसिद्ध, शक्तिशाली, या कोई महान हस्ती बनना चाहते हैं, पराक्रमी, कुछ भी करने में सक्षम और ऐसे व्यक्ति बनना चाहते हैं, जिनके लिए कोई चीज ऐसी नहीं, जिसे वे न कर सकते हों। उन्हें लगता है कि अगर वे दूसरों की मदद माँगते हैं, तो वे असमर्थ, कमजोर और हीन दिखाई देंगे और लोग उन्हें नीची नजरों से देखेंगे। इस कारण से, वे हमेशा एक झूठा चेहरा बनाए रखना चाहते हैं। जब कुछ लोगों से कुछ करने के लिए कहा जाता है, तो वे कहते हैं कि उन्हें पता है कि इसे कैसे करना है, जबकि वे वास्तव में कुछ नहीं जानते होते। बाद में, वे चुपके-चुपके इसके बारे में जानने और यह सीखने की कोशिश करते हैं कि इसे कैसे किया जाए, लेकिन कई दिनों तक इसका अध्ययन करने के बाद भी वे नहीं समझ पाते कि इसे कैसे करें। यह पूछे जाने पर कि उनका काम कैसा चल रहा है, वे कहते हैं, ‘जल्दी ही, जल्दी ही!’ लेकिन अपने दिलों में वे सोच रहे होते हैं, ‘मैं अभी उस स्तर तक नहीं पहुँचा हूँ, मैं कुछ नहीं जानता, मुझे नहीं पता कि क्या करना है! मुझे अपना भंडा नहीं फूटने देना चाहिए, मुझे दिखावा करते रहना चाहिए, मैं लोगों को अपनी कमियाँ और अज्ञानता देखने नहीं दे सकता, मैं उन्हें अपना अनादर नहीं करने दे सकता!’ यह क्या समस्या है? यह हर कीमत पर इज्जत बचाने की कोशिश करने का एक जीवित नरक है। यह किस तरह का स्वभाव है? ऐसे लोगों के अहंकार की कोई सीमा नहीं होती, वे अपनी सारी समझ खो चुके हैं। वे हर किसी की तरह नहीं बनना चाहते, वे आम आदमी या सामान्य लोग नहीं बनना चाहते, बल्कि अतिमानव, असाधारण व्यक्ति या कोई दिग्गज बनना चाहते हैं। यह बहुत बड़ी समस्या है! जहाँ तक सामान्य मानवता के भीतर की कमजोरियों, कमियों, अज्ञानता, मूर्खता और समझ की कमी की बात है, वे इन सबको छिपा लेते हैं और दूसरे लोगों को देखने नहीं देते, और फिर खुद को छद्म वेश में छिपाए रहते हैं” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, पाँच शर्तें, जिन्हें परमेश्वर पर विश्वास के सही मार्ग पर चलने के लिए पूरा करना आवश्यक है)। परमेश्वर कहता है कि मनुष्य सृजित प्राणी है, वह सर्वशक्तिशाली नहीं हो सकता। न ही यह संभव है कि वह हर चीज में दक्षता प्राप्त कर सके और सब कुछ समझ सके। लोगों में आत्म-ज्ञान की कमी होती है, जैसे ही वे किसी चीज के बारे में थोड़ा-बहुत सीखते हैं, उन्हें लगता है वे असाधारण हो गए हैं। वे मुखौटा लगाते हैं और खुद को एक महान हस्ती के छद्मवेश में पेश करते हैं जो कुछ भी कर सकता है। भले ही उनमें दोष और खामियाँ हों, वे खुद को छिपाने के लिए बहुत प्रयास करते हैं ताकि कोई उनकी असलियत न देख सके। यह लोगों के अहंकारी स्वभाव के कारण होता है। मुझे याद आया जैसे ही मुझे अगुआओं से थोड़ी प्रशंसा मिलती, सोचती मैं दूसरे भाई-बहनों से बेहतर हूँ। इसके अलावा मैं पर्यवेक्षक थी, मुझे लगता भाई-बहन जो समस्याएँ उठा रहे हैं, मुझे उन सभी का समाधान करने में सक्षम होना चाहिए। इसलिए मैंने सब कुछ समझने का दिखावा करना शुरू कर दिया। चाहे मुझे कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ या मुझमें कैसे भी दोष हों, मैं नहीं चाहती थी कि लोगों को उनके बारे में पता चले। अगुआओं ने शियाओ रान और मुझे वीडियो का संपादन करने को कहा। मैं अपनी कमियाँ और दोष उजागर नहीं करना चाहती थी, इसलिए मैंने समस्याएँ शियाओ रान पर थोप दीं। जब उसने मेरी राय पूछी तो मैंने समझने का नाटक किया और उसे लापरवाही भरे अंदाज में बेवकूफ बना दिया। अंत में जब मेरे पास कोई और विकल्प नहीं बचा, तब जाकर मैंने उसके साथ वीडियो संपादित किया। इसका नतीजा यह हुआ कि संपादन पूरा होने से पहले वीडियो एक महीने तक लटका रहा। ली शिन ने मुझसे पेशेवर कौशल से संबंधित एक पेचीदा सवाल पूछा जिसकी मुझे साफ तौर पर कोई समझ नहीं थी। मैं इस बात को लेकर परेशान थी कि बहन मुझे नीची नजर से देखेगी, इसलिए मैंने जवाब में केवल कुछ औपचारिक शब्द कहे। बाद में जब बहन ने फिर से पूछा तो मुझे पोल खुलने का डर था, बहन का ध्यान भटकाने के लिए मैंने छल-कपट का इस्तेमाल किया। जब मेरे कर्तव्य में कुछ ऐसी चीजें आतीं जो मेरी समझ से परे होतीं तो मैं अपने वरिष्ठों से नहीं पूछती थी। मुझे लगातार लगता कि अगर मैंने ऐसा किया तो मैं अक्षम दिखूँगी, इसलिए मैं दिखावा करती ताकि अगुआओं को पता न चले। मैं इस ढंग से अपना असली रूप छिपाती जिससे लगता कि मैं सब कुछ समझती हूँ। इसका नतीजा यह हुआ कि कुछ समस्याएँ लंबे समय तक अनसुलझी रहीं और इसका सीधा असर वीडियो निर्माण की प्रगति पर पड़ा। दरअसल मैंने अभी-अभी यह कर्तव्य निभाना शुरू किया था। भले ही मैंने कुछ प्रगति कर ली थी, लेकिन कुछ ऐसी तकनीकें थीं जिनके बारे में मैं पहले नहीं जानती थी, इसलिए कुछ ऐसी चीजों का होना एकदम सामान्य बात थी जो मुझे समझ में नहीं आती थीं। थोड़ी सी भी समझ रखने वाला व्यक्ति जानता है कि वह पूर्ण नहीं है और हर चीज को समझना असंभव है, इसलिए उसे अपने कर्तव्यों का पालन करते समय दूसरों के मार्गदर्शन और मदद की आवश्यकता होती है और जब उसके पास कोई सवाल होता है तो वह पहल करके दूसरों से पूछता है, यह बिल्कुल सामान्य बात है। लेकिन यह मेरी सबसे बड़ी कठिनाई बन गई थी। मैं खुद ही अपने दोषों और कमियों का सामना नहीं कर पा रही थी और मैं एक सामान्य व्यक्ति नहीं बनना चाहती थी जिसमें दोष हों। मैं लगातार दिखावा करके एक पूर्ण व्यक्ति बनना चाहती थी। मैं हर मोड़ पर खुद को छिपा रही थी। मैं यह भी सोचती थी कि मुश्किल घड़ी में दूसरों से पूछना अक्षमता की अभिव्यक्ति है, इससे दूसरों को मुझे नीची नजर से देखने का मौका मिल जाएगा। मैं बस बहुत घमंडी और पाखंडी थी! जब मैंने इस स्तर पर चिंतन-मनन किया तो मुझे अंदर से खुद से नफरत होने लगी। मुझे लगा कि मैंने जो कुछ किया है वह वाकई घिनौना है।
बाद में मैंने आत्म-चिंतन भी किया। मैं लगातार खुद को क्यों छुपाती रही और दिखावा क्यों करती रही? मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा जिससे मेरा दिल रोशन और साफ महसूस करने लगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “चाहे कोई भी संदर्भ हो, मसीह-विरोधी चाहे कोई भी कर्तव्य कर रहा हो, वह यह छाप छोड़ने का प्रयास करेगा कि वह कमजोर नहीं है, कि वह हमेशा मजबूत, आस्था से पूर्ण है, कभी नकारात्मक नहीं है, ताकि लोग कभी भी उसके वास्तविक आध्यात्मिक कद या परमेश्वर के प्रति उसके वास्तविक रवैये को नहीं देख पाएँ। वास्तव में, अपने दिल की गहराइयों में क्या वे सचमुच यह मानते हैं कि ऐसा कुछ नहीं है जो वे नहीं कर सकते हैं? क्या वे वाकई यह मानते हैं कि उनमें कोई कमजोरी, नकारात्मकता या भ्रष्टता के खुलासे नहीं हैं? बिल्कुल नहीं। वे दिखावा करने में अच्छे होते हैं, चीजों को छिपाने में माहिर होते हैं। वे लोगों को अपना मजबूत और शानदार पक्ष दिखाना पसंद करते हैं; वे नहीं चाहते हैं कि वे उनका वह पक्ष देखें जो कमजोर और सच्चा है। उनका उद्देश्य स्पष्ट होता है : सीधी-सी बात है, वे अपना गुरूर और गर्व बरकरार रखना चाहते हैं, इन लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाए रखना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि अगर वे अपनी नकारात्मकता और कमजोरी दूसरों के सामने उजागर कर देंगे, अपना विद्रोही और भ्रष्ट पक्ष प्रकट कर देंगे, तो इससे उनके रुतबे और प्रतिष्ठा को गंभीर क्षति होगी—फायदे से ज्यादा नुकसान होगा। इसलिए, वे इस बात को स्वीकार करने के बजाय मरना ज्यादा पसंद करेंगे कि ऐसे समय भी आते हैं जब वे कमजोर, विद्रोही और नकारात्मक होते हैं। और अगर ऐसा कभी हो भी जाए जब हर कोई उनके कमजोर और विद्रोही पक्ष को देख ले, जब वे देख लें कि वे भ्रष्ट हैं, और बिल्कुल नहीं बदले हैं, तो वे अभी भी उस दिखावे को बरकरार रखेंगे। वे सोचते हैं कि अगर वे यह स्वीकार कर लेंगे कि उनके पास भ्रष्ट स्वभाव है, वे एक साधारण महत्वहीन व्यक्ति हैं, तो वे लोगों के दिलों में अपना स्थान खो देंगे, सबकी आराधना और श्रद्धा खो देंगे, और इस प्रकार पूरी तरह से विफल हो जाएँगे। और इसलिए, चाहे कुछ भी हो जाए, वे लोगों से खुलकर बात नहीं करेंगे; कुछ भी हो जाए, वे अपना सामर्थ्य और रुतबा किसी और को नहीं देंगे; इसके बजाय, वे प्रतिस्पर्धा करने का हर संभव प्रयास करेंगे, और कभी हार नहीं मानेंगे। ... मसीह-विरोधी खुद को बहुत पक्के, दृढ़-इच्छाशक्ति वाले, अहं का त्याग करने और कष्ट सहने में सक्षम व्यक्ति के रूप में चित्रित करते हैं, एक ऐसे व्यक्ति के रूप में, जो बस निर्दोष, त्रुटिरहित या समस्याविहीन हो। अगर कोई उनकी भ्रष्टता और कमियों की ओर इशारा करता है, उनके साथ किसी सामान्य भाई या बहन के रूप में बराबरी का व्यवहार करता है, और उनके साथ खुलकर सहभागिता करता है, तो वे मामले को कैसे देखते हैं? वे स्वयं को सच्चा और सही ठहराने, खुद को सही साबित करने और अंततः लोगों को यह दिखाने का भरसक प्रयास करते हैं कि उनके साथ कोई समस्या नहीं है, और वे एक परिपूर्ण, आध्यात्मिक व्यक्ति हैं। क्या यह सब कुछ पाखंड नहीं है? जो भी लोग खुद को निष्कलंक और पवित्र समझते हैं, वे सभी ढोंगी हैं। मैं क्यों कहता हूँ कि वे सभी ढोंगी हैं? मुझे बताओ, क्या भ्रष्ट मनुष्यों में कोई निर्दोष है? क्या वाकई कोई पवित्र है? (नहीं।) निश्चित रूप से नहीं है। मनुष्य निर्दोष कैसे हो सकता है जब उसे शैतान ने इतनी बुरी तरह से भ्रष्ट कर दिया है? इसके अलावा, इंसान सहज रूप से सत्य से युक्त नहीं होता है। सिर्फ परमेश्वर पवित्र है; सारी भ्रष्ट मानवता मलिन है। अगर कोई व्यक्ति किसी पवित्र व्यक्ति का रूप धारण करता है और कहता है कि वह निष्कलंक है, तो वह व्यक्ति कैसा होगा? वह एक दानव, एक शैतान, एक महादूत होगा—वह पक्के तौर पर मसीह-विरोधी होगा। सिर्फ कोई मसीह-विरोधी ही निर्दोष और पवित्र व्यक्ति होने का दावा करेगा” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दस))। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे लगा जैसे किसी ने मेरे दिल में चाकू घोंप दिया हो। मसीह-विरोधी प्रतिष्ठा और रुतबे को जीवन से भी ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं। वे लोग छद्मवेश और चालाकी में विशेष रूप से अच्छे होते हैं। वे खुद को एक पूर्ण छवि में ढाल लेते हैं जिसमें कोई कमजोरी या दोष नहीं होता और न ही भ्रष्टता का खुलासा होता है। वे दूसरों से अपनी पूजा और आदर करवाने के अपने मकसद को हासिल करने के लिए ऐसा करते हैं। मैं भी बिल्कुल मसीह-विरोधियों जैसी ही थी जिन्हें परमेश्वर ने उजागर किया था। मुझे भी विशेष रूप से दूसरों के सामने अपना मजबूत और गौरवशाली पक्ष दिखाना पसंद है, मैं चाहती हूँ कि दूसरे मेरा सम्मान करें, मेरी ओर देखें और दूसरों के दिलों में मेरा रुतबा कायम हो। चाहे अगुआ मुझसे वीडियो संपादित करने को कहें या भाई-बहन मुझसे सवाल पूछें, मैं हमेशा अपनी असलियत छिपाकर समझने का दिखावा करती, फिर भले मुझे कोई समझ न हो। मैं भाई-बहनों तक को धोखा देती और गुमराह करती थी। जब भाई-बहन कोई सवाल पूछते और मुझे उसकी समझ न होती तो मैं स्पष्ट और ईमानदार क्यों नहीं हो पाती थी? कहीं इसकी वजह मेरा यह डर तो नहीं था कि वे मेरी कमियाँ देख लेंगे और यह मान लेंगे कि मैं भी उन्हीं की तरह साधारण हूँ और फिर वे मेरी प्रशंसा या सम्मान नहीं करेंगे? एक पर्यवेक्षक के रूप में अपनी छवि की रक्षा के लिए मैंने अपने कर्तव्य में उन चीजों के बारे में सवाल पूछने की हिम्मत नहीं कर पाती थी जो मुझे समझ नहीं आती थीं। मुझे डर रहता था कि कहीं अगुआ यह तो नहीं सोचेंगे कि मैं उस तरह की काबिल इंसान नहीं हूँ जिसके बारे में वे पहले बात किया करते थे और मुझे नीची नजर से देखेंगे। मैं पहले ही अपने कर्तव्यों और जीवन में आगे बढ़ने के मार्ग के बिना कठिनाइयों का सामना करने के कारण पीड़ा में थी, लेकिन मैं दूसरों के सामने अपनी नकारात्मकता और कमजोरियों को उजागर करने के बजाय अकेले में रोना पसंद करती थी। मुझे इस बात का बेहद डर रहता था कि भाई-बहन मेरा असली आध्यात्मिक कद और काबिलियत देख लेंगे और मेरी सराहना नहीं करेंगे। मैं वास्तव में बहुत पाखंडी और दिखावा करने में बहुत कुशल थी! सभी सृजित लोगों में दोष और कमजोरियाँ होती हैं। लेकिन मैं अपनी अपूर्णता को स्वीकार नहीं कर पाती थी, अपनी सभी कमियों और कमजोरियों को छिपाने के लिए दिखावा करती थी। मैं हमेशा छद्म मुखौटा पहने रहती थी, हमेशा मजबूत और आस्था से भरी होने का दिखावा करती थी। इसमें मेरा मकसद दूसरों के दिलों में अपना रुतबा कायम करना, लोगों से प्रशंसा और सम्मान पाना था। दिनभर मैं अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के बारे में सोचती रहती थी, लाभ और हानि के बारे में चिंता करती रहती थी, लेकिन मैं उस कार्य के प्रति उदासीन रहती थी जो सच में मेरे मुख्य कर्तव्यों से संबंधित था। मैं कोई वास्तविक कार्य नहीं कर पाती थी। क्योंकि मुझे डर रहता था कि अगर मैं वीडियो को अच्छे से संपादित नहीं कर पाई तो मेरी प्रतिष्ठा गिर जाएगी, इसलिए मैं देरी करती और उसे संपादित करने की हिम्मत न कर पाती थी। इससे वीडियो कार्य की प्रगति प्रभावित हुई। एक पर्यवेक्षक के रूप में मेरा मुख्य कार्य भाई-बहनों के साथ अपने कर्तव्यों के निष्पादन में आने वाली विभिन्न समस्याओं को हल करना और वीडियो कार्य की सुचारू प्रगति सुनिश्चित करना था। लेकिन मैंने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी नहीं कीं और लगातार अपनी असलियत छिपाई। मेरे अंदर मानवता नहीं थी! मैंने परमेश्वर के इन वचनों पर विचार किया : “क्या सृजित प्राणी सर्वशक्तिमान हो सकते हैं? क्या वे पूर्णता और निष्कलंकता हासिल कर सकते हैं?” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, पाँच शर्तें, जिन्हें परमेश्वर पर विश्वास के सही मार्ग पर चलने के लिए पूरा करना आवश्यक है)। मनुष्य महत्वहीन हैं। वे सर्वशक्तिशाली नहीं बन सकते। लेकिन सीधे शब्दों में कहूँ तो मेरा व्यवहार खुद को सर्वशक्तिशाली, एक पूर्ण व्यक्ति बनाने का एक प्रयास था। एक भ्रष्ट व्यक्ति के रूप में मैं दिनभर यही सोचती रहती थी कि सर्वशक्तिशाली कैसे बनूँ। मेरी प्रकृति बहुत दुष्ट थी!
बाद में मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “अगर अपने दिल में तुम स्पष्ट हो कि तुम किस तरह के इंसान हो, तुम्हारा सार क्या है, तुम्हारी विफलताएँ क्या हैं, और तुम कौन-सी भ्रष्टता प्रकट करते हो, तो तुम्हें अन्य लोगों के साथ खुले तौर पर इसकी संगति करनी चाहिए, ताकि वे देख सकें कि तुम्हारी असली हालत क्या है, तुम्हारे विचार और मत क्या हैं, ताकि वे जान सकें कि तुम्हें ऐसी चीजों के बारे में क्या ज्ञान है। चाहे जो भी करो, ढोंग या दिखावा मत करो, दूसरों से अपनी भ्रष्टता और असफलताएँ मत छिपाओ जिससे कि किसी को उनके बारे में पता न चले। इस तरह का झूठा व्यवहार तुम्हारे दिल में एक बाधा है, और यह एक भ्रष्ट स्वभाव भी है और लोगों को पश्चात्ताप करने और बदलने से रोक सकता है। तुम्हें परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए, और दूसरों के द्वारा तुम्हें दी जाने वाली प्रशंसा, उनके द्वारा तुम पर बरसाई जाने वाली महिमा और उनके द्वारा तुम्हें प्रदान किए जाने वाले मुकुटों जैसी झूठी चीजों पर रुककर विचार और विश्लेषण करना चाहिए। तुम्हें देखना चाहिए कि ये चीजें तुम्हें कितना नुकसान पहुँचाती हैं। ऐसा करने से तुम्हें अपना माप पता चल जाएगा, तुम आत्म-ज्ञान प्राप्त कर लोगे, और फिर खुद को एक अतिमानव या कोई महान हस्ती नहीं समझोगे। जब तुम्हें इस तरह की आत्म-जागरूकता प्राप्त हो जाती है, तो तुम्हारे लिए दिल से सत्य को स्वीकार करना, परमेश्वर के वचनों को स्वीकार करना और मनुष्य से परमेश्वर की अपेक्षाएँ स्वीकार करना, अपने लिए परमेश्वर का उद्धार स्वीकार करना, दृढ़ता से एक आम इंसान, एक ईमानदार और भरोसेमंद इंसान बनना, और अपने—एक सृजित प्राणी और परमेश्वर—सृष्टिकर्ता के बीच सामान्य संबंध स्थापित करना आसान हो जाता है। परमेश्वर लोगों से ठीक यही अपेक्षा करता है, और यह उनके द्वारा पूरी तरह से प्राप्य है। ... तुम लोगों को बस मेरे बताए तरीके का अभ्यास करना है। एक साधारण व्यक्ति बनो, खुद को छिपाओ मत, परमेश्वर से प्रार्थना करो और सरल तरीके से खुलना और दूसरों के साथ दिल से बात करना सीखो। ऐसा अभ्यास स्वाभाविक रूप से फलीभूत होगा। धीरे-धीरे तुम एक सामान्य व्यक्ति बनना सीख जाओगे, जीना अब थकाने वाला नहीं होगा और तुम अब व्यथित नहीं रहोगे, पीड़ा में नहीं रहोगे। सभी लोग साधारण हैं। उनमें कोई अंतर नहीं है, सिवाय इसके कि उनके व्यक्तिगत गुण अलग-अलग हैं और उनकी काबिलियत कुछ हद तक भिन्न हो सकती है। अगर परमेश्वर का उद्धार और सुरक्षा न हो तो वे सभी बुराई करेंगे और सजा भुगतेंगे। अगर तुम यह स्वीकार सको कि तुम एक साधारण व्यक्ति हो, अगर तुम मानवीय कल्पनाओं और खोखले भ्रमों से बाहर निकल सको और एक ईमानदार व्यक्ति बनने और ईमानदार कर्म करने का प्रयास कर सको, अगर तुम निष्ठापूर्वक परमेश्वर के प्रति समर्पण कर सको तो फिर तुम्हें कोई समस्या नहीं होगी और तुम पूरी तरह मानव के समान जियोगे। यह इतनी सीधी-सरल बात है तो कोई मार्ग क्यों नहीं है?” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर के वचनों को सँजोना परमेश्वर में विश्वास की नींव है)। “तुम्हें यह कहना सीखना चाहिए, ‘मैं नहीं कर सकता,’ ‘यह मेरे वश में नहीं,’ ‘मैं इसे नहीं समझ सकता,’ ‘मैंने इसका अनुभव नहीं किया है,’ ‘मैं कुछ भी नहीं जानता,’ ‘मैं इतना कमजोर क्यों हूँ? मैं इतना बेकार क्यों हूँ?’ ‘मैं इतना नाकाबिल हूँ,’ ‘मैं इतना सुन्न और मंदबुद्धि हूँ,’ ‘मैं इतना अज्ञानी हूँ कि मुझे इस चीज को समझने और सँभालने में कई दिन लग जाएँगे,’ और ‘मुझे इस पर किसी से चर्चा करने की जरूरत है।’ तुम्हें इस तरह से अभ्यास करना सीखना चाहिए। यह तुम्हारे एक सामान्य व्यक्ति होने और एक सामान्य व्यक्ति बने रहने की स्वीकारोक्ति का बाहरी लक्षण है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर के वचनों को सँजोना परमेश्वर में विश्वास की नींव है)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मैं विचार करने लगी। वास्तव में पहले अगुआ मेरी प्रशंसा सिर्फ इसलिए करते थे क्योंकि मैं उस दौरान व्यावसायिक कौशल का अध्ययन करने में काफी सक्रिय थी, मैंने कुछ वीडियो बनाए थे और कुछ सुधार किए थे। एक प्राथमिक विद्यालय की पहली कक्षा के उस बच्चे की तरह जिसने कक्षा में कुछ दिनों तक अच्छी तरह ध्यान दिया हो और फिर शिक्षकों से कई बार प्रशंसा पाई हो, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि वह अपने सहपाठियों से बेहतर है। न ही इसका मतलब यह है कि उसने सभी पुस्तकों का सारा ज्ञान सीख लिया है। अगुआओं से प्रशंसा पाने का मतलब यह नहीं था कि मैं वीडियो तकनीकों की विशेषज्ञ थी और अब मुझे कोई समस्या नहीं होगी। वास्तव में मैं अभी भी एक नौसिखिया थी जिसने तकनीकों को केवल आधा-अधूरा ही समझा था। मुझमें अभी भी कई दोष और खामियाँ थीं। अभी भी बहुत कुछ सीखना और समझना बाकी था। मुझे खुद से सही व्यवहार करना चाहिए, अपने वास्तविक आध्यात्मिक कद और वास्तविक स्तर के बारे में स्पष्ट दृष्टिकोण रखना चाहिए। अगर मैं किसी और से तारीफ पाने की वजह से खुद को आँकना भूल जाऊँ तो आखिरकार मैं एक अहंकारी व्यक्ति बन जाऊँगी जिसमें हर तरह से विवेक की कमी होगी। पहले मुझे लगातार लगता था कि चूँकि मैं एक पर्यवेक्षक हूँ, इसलिए दूसरे लोगों का नकारात्मक होना ठीक है, लेकिन मेरा नहीं। चाहे कोई भी समस्या आए, मुझे दृढ़ रहना था और दूसरे लोगों को अपनी कमजोरी नहीं दिखानी थी। वास्तव में यह खुद को एक महामानव समझना था; यह सामान्य मानवता की अभिव्यक्ति नहीं थी। भले ही मैं पर्यवेक्षक थी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं अपने भाई-बहनों से बेहतर थी : अंतर केवल कर्तव्य और जिम्मेदारियों में था। चाहे जीवन प्रवेश हो या पेशेवर कौशल, हर किसी में कमियाँ और दोष होते हैं। यह पूरी तरह से सामान्य बात थी कि मैं कुछ समस्याएँ देख नहीं पाई या समझ नहीं पाई। यह कोई ऐसी बात नहीं है जिसे लेकर परेशान हुआ जाए। मुझे ईमानदार रवैया अपनाना चाहिए, अपनी कमियों को स्वीकारना चाहिए और भाई-बहनों के साथ अध्ययन के लिए सामग्री ढूँढ़नी चाहिए। मुझे हमारे वरिष्ठों से उन सभी चीजों के बारे में पूछना चाहिए जो हमें समझ में नहीं आती हैं ताकि हम समस्याओं का पता लगा सकें और उन्हें कलीसिया के कार्य में बाधा न बनने दें।
एक सभा में मैंने भाई-बहनों के सामने अपने दिल की बात कही। मैंने इस दौरान दिखावा करने और छद्म-वेश बनाने की अपनी दशा को उजागर और उसका गहन विश्लेषण किया। मैंने अपनी कमियों और दोषों के बारे में बात की ताकि भाई-बहन मेरी काबिलियत और मेरा आध्यात्मिक कद स्पष्ट रूप से देख सकें। साथ ही मैंने अपने कर्तव्य के प्रति अपना रवैया भी बदला। जब वीडियो बनाते समय मुझे कोई विचार न मिल पाते तो मैं दिखावा न करती। बल्कि मैं भाई-बहनों के साथ मिलकर खोज करती। कुछ भाई-बहन कहते, कुछ मैं कहती और कुछ कठिनाइयाँ हमारे देखते-देखते हल हो जातीं। जब मैंने अपने छद्मवेश का मुखौटा हटाया तो मुझे अपने कर्तव्यों का पालन करते समय सहज महसूस हुआ। मैंने खुद को उतना दबा हुआ या दुखी महसूस नहीं किया। एक बार एक बहन ने मुझसे पूछा कि वीडियो का नया प्रारूप कैसे बनाया जाए। चूँकि मैं वीडियो के सिद्धांतों और आवश्यकताओं के बारे में उतनी स्पष्ट नहीं थी, मेरे पास उसे बनाने को लेकर कोई विचार नहीं था। मैंने सोचा, “अगर मैं कहूँ कि मुझे समझ नहीं आया तो बहन कहीं यह तो नहीं सोचेगी, जब मुझे इतना पेशेवर ज्ञान भी नहीं है तो मैं पर्यवेक्षक कैसे हो सकती हूँ? बहन मुझे नीची नजर से तो नहीं देखेगी?” उस समय मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “तुम्हें यह कहना सीखना चाहिए, ‘मैं नहीं कर सकता,’ ‘यह मेरे वश में नहीं,’ ‘मैं इसे नहीं समझ सकता,’ ‘मैंने इसका अनुभव नहीं किया है,’ ... तुम्हें इस तरह से अभ्यास करना सीखना चाहिए। यह तुम्हारे एक सामान्य व्यक्ति होने और एक सामान्य व्यक्ति बने रहने की स्वीकारोक्ति का बाहरी लक्षण है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर के वचनों को सँजोना परमेश्वर में विश्वास की नींव है)। जब मैंने छद्मवेश की दशा में रहने के अपने पिछले कष्टदायक अनुभव के बारे में सोचा तो मैं अब उस तरह से नहीं जीना चाहती थी। मुझे अपने कर्तव्य के बारे में अपने गलत इरादों और रवैये को बदलना था और एक सामान्य व्यक्ति बनना था। बाद में मैंने बहन से खुलकर कहा, “मुझे भी यह समझ में नहीं आ रहा, इस तरह के वीडियो में निर्माण सिद्धांतों को लेकर मैं उतनी स्पष्ट नहीं हूँ।” बाद में हमने इस क्षेत्र में सिद्धांतों और प्रासंगिक पाठ्यक्रम सामग्री की तलाश की ताकि हम एक साथ अध्ययन कर सकें और मुझे वीडियो निर्माण की दिशा के बारे में स्पष्टता मिली। मैंने अपने दिल में राहत और मुक्ति महसूस की। कुछ समय बाद अगुआओं का एक पत्र आया। उसमें कहा गया था कि हमारे द्वारा बनाए गए कई वीडियो में प्रगति दिखाई दी है और हमें अच्छा कार्य करते रहने को कहा। जब मैंने अगुआओं का प्रोत्साहन भरा पत्र देखा तो मैं वाकई उत्साहित थी और अनजाने में ही आँसू बहाने लगी। एक तरह से मुझे शर्मिंदगी महसूस हुई, क्योंकि मैं पहले जिस तरह के छद्मवेश की दशा और दिखावे में जी रही थी, उसने वीडियो के कार्य में देरी कर दी थी। दूसरी तरह से मैंने परमेश्वर की पवित्रता का अनुभव किया। जब मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव में जी रही थी जिसे मैंने लंबे समय तक नहीं बदला था तो परमेश्वर ने मेरा मार्गदर्शन नहीं किया था। जब मैं परमेश्वर की ओर मुड़ी और परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करने को तैयार हुई तो मैंने परमेश्वर का मुस्कुराता हुआ चेहरा देखा। अब मुझे अपने भ्रष्ट स्वभाव की कुछ समझ है, दिखावा करने और खुद को छिपाने की मेरी दशा भी कुछ हद तक बदल गई है। ये सभी नतीजे परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन से प्राप्त हुए थे।