80. अपने परिवार से घिरने और हमला होने पर मैंने एक विकल्प चुना
अगस्त 2012 में एक रिश्तेदार ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों के कार्य का सुसमाचार सुनाया। मैंने देखा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सभी वचन सत्य हैं और पहचाना कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है। मैं बहुत उत्साहित थी। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं अपने जीवनकाल में प्रभु यीशु की वापसी का स्वागत कर पाऊँगी। यह वास्तव में परमेश्वर का अनुग्रह था; परमेश्वर मुझे ऊपर उठा रहा था! मेरे पति के साथ मेरी शादी को कई साल हो चुके थे और हमारा विवाह प्रेमपूर्ण था। मुझे अपने पति को खुशखबरी देनी थी कि मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर आ गया है ताकि उसे परमेश्वर द्वारा बचाए जाने का अवसर मिले। अच्छा होगा अगर हम परमेश्वर में विश्वास रखकर एक साथ राज्य में प्रवेश कर सकें! जब मैंने अपने पति को सुसमाचार सुनाया तो उसने कहा कि वह कार्य में व्यस्त है, उसके पास समय नहीं है, लेकिन उसने परमेश्वर में मेरे विश्वास रखने का विरोध नहीं किया। जैसे-जैसे परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार मुख्यभूमि चीन में तेजी से फैलने लगा, सीसीपी ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को बदनाम करने के लिए सबूत गढ़ते हुए बेतहाशा अफवाहें फैलाना शुरू कर दिया और निंदा-लेख छपवाने लगी। मेरे पति ने अपने फोन में कई नकारात्मक अफवाहें पढ़ीं। जब उसे पता चला कि परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण सरकार मुझे गिरफ्तार कर सजा सुना सकती है और इससे हमारे बच्चे की आगे की पढ़ाई और रोजगार पर भी असर पड़ सकता है तो उसने परमेश्वर में विश्वास रखने से रोकने के लिए मुझे सताना शुरू कर दिया।
मार्च 2013 की एक दोपहर को मेरा पति जो घर से दूर काम करता था, खास तौर से गाड़ी चलाकर घर वापस आ गया। चेहरे पर गंभीरता लिए वह मुझसे बोला, “पुलिस मेरे एक सहकर्मी को सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण गिरफ्तार करने खदान गई थी। अगर वह तेजी से भाग न निकला होता तो वे उसे पकड़ लेते। अब मेरा दिल दिनभर बेचैन रहता है क्योंकि तुम भी परमेश्वर में विश्वास रखती हो। अगर किसी दिन तुम गिरफ्तार हो गईं तो हमारा क्या होगा? हमारा बच्चा इतना छोटा है—उसकी देखभाल कौन करेगा? सरकार अब तुम्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने की अनुमति नहीं देती है। अगर तुम विश्वास रखोगी तो वे तुम्हें गिरफ्तार कर लेंगे। जब तक राज्य इसकी अनुमति नहीं देता तुम प्रतीक्षा क्यों नहीं करती और उसके बाद विश्वास रखो? जब समय आएगा तो मैं अपने पूरे परिवार को और कई दर्जन लोगों को तुम्हारे साथ परमेश्वर में विश्वास रखने के लिए ले जाऊँगा।” मैंने कहा, “सीसीपी एक नास्तिक पार्टी है। वह नहीं मानती कि परमेश्वर है। वह लोगों को परमेश्वर में विश्वास रखने की अनुमति कैसे देगी? तुम चाहे मुझे विश्वास रखने दो या न रखने दो मैं कभी भी परमेश्वर को धोखा नहीं दूँगी।” यह देखकर कि मैं उसके कहे अनुसार नहीं करने वाली, मेरे पति ने आगे कुछ नहीं कहा। उसके जाने के बाद मुझे याद आया उसने कहा था कि अगर मुझे परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया तो हमारे आठ साल के बेटे की देखभाल करने वाला कोई नहीं होगा। मुझे बहुत दुख हुआ। मैं 40 साल की थी जब मैंने अपने बेटे को जन्म दिया और उसे जन्म देते समय मैं मरते-मरते बची थी। मैंने ही बचपन से उसकी परवरिश की थी। मुझे उससे बहुत प्यार था—मुझे घबराहट होती थी कि अगर वह मेरे में मुँह होगा तो पिघल जाएगा; अगर वह मेरे हाथों में होगा तो मैं उसे गिरा दूँगी। अगर मुझे गिरफ्तार कर लिया गया तो उसकी देखभाल कौन करेगा? यह सोचकर ही मेरा दिल दुखी हो जाता था, मैं ऐसी जगह ढूँढ़ना चाहती थी जहाँ कोई न हो और मैं खुलकर रो सकूँ। मुझे प्रार्थना करने या परमेश्वर के वचन खाने और पीने का मन नहीं करता था। मैं नकारात्मक दशा में रहती थी।
एक सभा में एक बहन ने मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़कर सुनाया : “कौन वास्तव में पूरी तरह से मेरे लिए खप सकता है और मेरी खातिर अपना सब-कुछ अर्पित कर सकता है? तुम सभी अनमने हो; तुम्हारे विचार इधर-उधर घूमते हैं, तुम घर के बारे में, बाहरी दुनिया के बारे में, भोजन और कपड़ों के बारे में सोचते रहते हो। इस तथ्य के बावजूद कि तुम यहाँ मेरे सामने हो, मेरे लिए काम कर रहे हो, अपने दिल में तुम अभी भी घर पर मौजूद अपनी पत्नी, बच्चों और माता-पिता के बारे में सोच रहे हो। क्या ये सभी चीजें तुम्हारी संपत्ति हैं? तुम उन्हें मेरे हाथों में क्यों नहीं सौंप देते? क्या तुम्हें मुझ पर पर्याप्त विश्वास नहीं है? या ऐसा है कि तुम डरते हो कि मैं तुम्हारे लिए अनुचित व्यवस्थाएँ करूँगा? तुम हमेशा अपने दैहिक परिवार के बारे में परेशान क्यों रहते हो और तुम हमेशा अपने प्रियजनों के लिए चिंता क्यों महसूस करते हो? क्या तुम्हारे दिल में मेरा कोई निश्चित स्थान है? तुम फिर भी मुझे अपने भीतर प्रभुत्व रखने और अपने पूरे अस्तित्व पर कब्जा करने देने की बात करते हो—ये सभी कपटपूर्ण झूठ हैं! तुम में से कितने लोग कलीसिया के लिए पूरे दिल से समर्पित हो? और तुम में से कौन अपने बारे में नहीं सोचता, बल्कि आज के राज्य की खातिर कार्य कर रहा है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 59)। परमेश्वर के वचनों से मुझे समझ आ गया कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है। परमेश्वर स्वर्ग, पृथ्वी और सभी चीजों को सही क्रम में व्यवस्थित करता है, एक बच्चे की नियति के बारे में तो कहना ही क्या। मुझे गिरफ्तार किया जाएगा या नहीं और मेरा बच्चा कष्ट झेलेगा या नहीं, यह सब परमेश्वर पर निर्भर करता है। मुझे याद है जब मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं रखती थी, मेरे तीन साल के बेटे का हाथ टूट गया था। जब वह 6 साल का था तो एक कार ने उसे टक्कर मार दी थी और उसे बहुत चोटें आई थीं। जब वह 8 साल का था तो कार के दरवाजे में फँसने से उसकी उंगली टूट गई थी। हालाँकि उन हादसों के दौरान मैं उसके साथ ही थी, सावधानी से उसकी देखभाल कर रही थी, फिर भी जिन आपदाओं से उसे गुजरना पड़ा, उन्हें टाला नहीं जा सकता था। जब से मैंने परमेश्वर में विश्वास रखना और कलीसिया में अपना कर्तव्य निभाना शुरू किया, भले ही मैं हर दिन अपने बेटे के साथ नहीं रह पाती थी, मेरा बेटा परमेश्वर की सुरक्षा में और स्वस्थ देखभाल में बड़ा हुआ। जब मैं घर पर रहा करती थी, तब की तुलना में उसकी देखभाल बेहतर ढंग से हुई। इससे पता चलता है कि लोगों की नियति परमेश्वर के हाथों में है। जब मैंने यह सोचा तो मैंने अपने बेटे के बारे में चिंता करना बंद कर दिया और मेरा दिल बहुत अधिक मुक्त महसूस करने लगा। मैंने अपना कर्तव्य निभाना जारी रखा।
बाद में मेरे पति ने बार-बार मुझे परमेश्वर में अपना विश्वास त्यागने के लिए मनाने की कोशिश की। जब उसने देखा कि वह वाकई मुझे नहीं मना सकता तो उसने मुझे सताना और रोकना शुरू कर दिया। जुलाई में मेरे पति ने तीन महीने की छुट्टी ले ली। वह पूरे दिन मेरे क्रिया-कलापों पर नजर रखता था, उसने ऐलान कर दिया, “मैं परमेश्वर में विश्वास रखने वाले हर व्यक्ति की रिपोर्ट कर उसे जेल भिजवा दूँगा!” मैं सभाओं में जाने की हिम्मत नहीं कर पाती थी, भाई-बहनों को संभावित खतरे में डालने से डरती थी। घर पर मेरा पति मुझ पर गुस्सा करता और हर वक्त मुझे बुरी तरह कोसता रहता था, गंदी-गंदी बातें कहकर अपनी भड़ास निकालता था। उसने पूरे घर को भी उल्टा-पुल्टा कर दिया था। अगर उसे परमेश्वर के वचनों की किताबें मिल जातीं तो वह उन्हें फाड़ देता। अगर उसे एमपी5 प्लेयर मिल जाता तो वह उसे तोड़ डालता। उस दौरान मैं भयंकर पीड़ा में जी रही थी। मेरे लिए अपने दिल को शांत करना और परमेश्वर से प्रार्थना करना या परमेश्वर के वचन पढ़ना एक असंभव सपना बन गया था। हर दिन मुझे अपने पति की गाली-गलौज और उत्पीड़न सहना पड़ता था। मुझे लगता परमेश्वर के नए कार्य का अनुसरण करना बहुत कठिन है। जब मैं कलीसिया में यीशु में विश्वास रखती थी तो मेरा पति मुझे नहीं सताता था, इसलिए शायद कलीसिया में वापस जाकर यीशु में विश्वास रखना ही बेहतर था। लेकिन तुम यूँ ही कलीसिया में अंत के दिनों में परमेश्वर की सत्य की अभिव्यक्तियाँ नहीं सुन सकते। तुम्हें परमेश्वर के वचनों का सिंचन और आपूर्ति नहीं मिलती, इसलिए तुम चाहे जितने भी साल कलीसिया में जाओ, सब व्यर्थ ही होगा; तुम बचाए नहीं जाओगे और राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे। आखिरकार परमेश्वर का प्रकटन देखने और प्रभु की वापसी का स्वागत करने से पहले मैंने उन तमाम वर्षों के बारे में सोचा जब मैं यीशु में विश्वास रखती थी, उम्मीद और इंतजार किया करती थी कि कैसे मुझे परमेश्वर का अंत के दिनों का न्याय और शुद्धिकरण स्वीकारने का अवसर मिला, कैसे अपने पति के उत्पीड़न और रुकावट के कारण मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर में अपना विश्वास लगभग त्याग ही दिया था। मैं इतनी अनिच्छुक थी कि मुझे ऐसा लगता था जैसे मेरे दस हजार दिल एक साथ चिल्ला रहे हों, “नहीं!” पीड़ा में मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मेरा पति हर दिन मुझे रोकने के लिए घृणित हथकंडे अपनाता और गाली-गलौज करता है। वह मेरा पीछा भी करता है। मुझे तुम्हारे वचन पढ़ने का मौका नहीं मिलता और मैं भाई-बहनों से संपर्क करने की हिम्मत नहीं कर पाती। मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं किसी दरार में रह रही हूँ। मैं बहुत पीड़ा और यातना में हूँ! प्रिय परमेश्वर, तुम्हारे लौटने का इंतजार करना मेरे लिए बहुत मुश्किल था और मैं तुम्हें छोड़कर जाने को तैयार नहीं हूँ। मेरी प्रार्थना सुनो और मेरे लिए कोई मार्ग खोलो।”
बाद में मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “जब तुम कष्टों का सामना करते हो, तो तुम्हें देह की चिंता छोड़ने और परमेश्वर के विरुद्ध शिकायतें न करने में समर्थ होना चाहिए। जब परमेश्वर तुमसे अपने आप को छिपाता है, तो उसका अनुसरण करने के लिए तुम्हें अपने पिछले प्रेम को डिगने या मिटने न देते हुए उसे बनाए रखने के लिए विश्वास रखने में समर्थ होना चाहिए। परमेश्वर चाहे कुछ भी करे, तुम्हें वह जैसे चाहे वैसे आयोजन करने देना चाहिए, और उसके विरुद्ध शिकायतें करने के बजाय अपनी देह को धिक्कारने के लिए तैयार रहना चाहिए। जब परीक्षणों से तुम्हारा सामना हो, तो तुम जिन चीजों से प्रेम करते हो, उन्हें त्यागने का दर्द सहने के लिए का इच्छुक होना चाहिए और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए फूट-फूटकर रोने का इच्छुक होना चाहिए। केवल यही सच्चा प्यार और विश्वास है। तुम्हारा वास्तविक आध्यात्मिक कद चाहे जो भी हो, तुममें पहले कठिनाई झेलने की इच्छा और सच्चा विश्वास, दोनों होने चाहिए, और तुममें देह-सुख के खिलाफ विद्रोह करने की इच्छा भी होनी चाहिए। तुम्हें परमेश्वर के इरादे पूरे करने के लिए व्यक्तिगत रूप से कठिनाइयों का सामना करने और अपने व्यक्तिगत हितों का नुकसान उठाने के लिए तैयार होना चाहिए। तुम्हें अपने हृदय में अपने बारे में पछतावा महसूस करने में भी समर्थ होना चाहिए : अतीत में तुम परमेश्वर को संतुष्ट करने में असमर्थ थे, और अब, तुम पछतावा कर सकते हो। तुममें इनमें से किसी भी मामले में कमी नहीं होनी चाहिए—इन्हीं चीजों के द्वारा परमेश्वर तुम्हें पूर्ण बनाएगा। अगर तुम इन कसौटियों पर खरे नहीं उतर सकते, तो तुम्हें पूर्ण नहीं बनाया जा सकता” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मैं समझ गई कि परमेश्वर ने ही मेरे पति को मेरा उत्पीड़न करने और रुकावट डालने की अनुमति दी है। परमेश्वर ने मेरी आस्था और कष्ट सहने के मेरे संकल्प को पूर्ण करने के लिए ऐसा किया था। जब मैंने पहली बार परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू किया और उसका अनुग्रह, आशीष देखा और सब कुछ सुचारू रूप से चल रहा था, तो मैं खुश थी और मेरे अंदर परमेश्वर का अनुसरण करने की आस्था थी। लेकिन जब मेरा पति मुझे सताने लगा, गाली-गलौज करने लगा और मुझे कष्ट सहना पड़ा तो परमेश्वर में मेरी आस्था जाती रही, यहाँ तक कि थ्री-सेल्फ कलीसिया में लौटने की सोचने लगी। मैं एक कमजोर इंसान थी जिसमें कष्ट सहने का संकल्प नहीं था। मुझे परमेश्वर से ईमानदारी से प्रार्थना करनी थी, मुझे आस्था और कष्ट सहने का संकल्प देने के लिए कहना था। मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया जो मैंने एक सभा में पढ़ा था : “मनुष्य का हृदय और आत्मा परमेश्वर की मुट्ठी में होते हैं और उसके जीवन की हर चीज परमेश्वर की दृष्टि में रहती है। चाहे तुम यह सब मानो या न मानो, एक-एक चीज चाहे वह सजीव हो या मृत, परमेश्वर के विचारों के अनुसार ही उसकी दशा, बदलेगी, नवीनीकृत और गायब होगी। परमेश्वर इसी तरह सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। मैं समझ गई कि सजीव और निर्जीव सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है, मेरे पति के विचार और सोच भी परमेश्वर के हाथों में है। मुझे इस स्थिति का अनुभव करने के लिए परमेश्वर में आस्था रखनी थी और भरोसा करना था। इसके बाद परमेश्वर ने मेरे लिए एक मार्ग खोल दिया। कुछ समय के लिए मेरा पति अपने सोने का बिस्तर दूसरे कमरे में ले गया और मैं अपने दिल को शांत करने और परमेश्वर से प्रार्थना करने योग्य हो गई। जब कभी मेरा पति बाहर जाता तो मैं उस थोड़े से समय का उपयोग भाई-बहनों को ढूँढ़ने और परमेश्वर के घर के नवीनतम वीडियो डाउनलोड करने में करती। जैसे ही मुझे मौका मिलता मैं परमेश्वर के वचन पढ़ती और परमेश्वर के घर से भेजे गए वीडियो देखती। धीरे-धीरे परमेश्वर के साथ मेरा रिश्ता काफी सामान्य हो गया और मेरा दिल कम पीड़ित महसूस करने लगा। तीन महीने बाद मेरे पति की छुट्टियाँ खत्म हो गईं और वह फिर से काम पर जाने लगा। मैं फिर से सामान्य रूप से कलीसिया में भाग ले पाती थी।
लेकिन ये अच्छे दिन ज्यादा समय तक नहीं टिके। दो महीने बाद एक बड़ी खनन दुर्घटना हो गई जिसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए। सरकार ने सभी खदानों को कार्य बंद करने के लिए मजबूर किया, इसलिए मेरे पति को और दो महीनों की छुट्टी मिल गई। पहले की तरह वह घर पर रहकर मेरा पीछा करने और मेरी निगरानी करने लगा। वह मुझे सभाओं में जाने या परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ने देता था। एक शाम मैंने पति को अपने कंप्यूटर पर इंटरनेट चलाते देखा। मैंने इस अवसर का लाभ उठाते हुए बेडरूम में जाकर, कंबल ओढ़कर जीवन प्रवेश के बारे में उपदेश और संगति सुनी। आधे घंटे के बाद मेरा पति बेडरूम में आ गया। मैंने सहज रूप से अपना एमपी5 प्लेयर छिपा दिया, लेकिन मेरे पति ने उसे खोज लिया और पागलों की तरह छीन लिया। उसने क्रूरता से कहा, “तुम चाहती हो कि मैं तुम्हें मार डालूँ!? तुम अब भी विश्वास रखने की हिम्मत कर रही हो! तुम्हारी सुनने की हिम्मत कैसे हुई! विश्वास रखने का साहस कैसे हुआ!” बोलते-बोलते उसने MP5 प्लेयर उठाकर जमीन पर बुरी तरह से पटक दिया। वह टुकड़े-टुकड़े हो गया और मैं उठाने के लिए लपकी। फिर मेरे पति ने मुझे घूँसे और लात मारी, वह लगातार मेरे चेहरे पर थप्पड़ और लातें मारता रहा। बुरी तरह से पिटने के कारण देखते-देखते मेरा चेहरा जख्मी होकर सूज गया, मेरी नाक और मुँह से खून बहने लगा। हमारा बेटा एक तरफ खड़ा डर से काँप रहा था और कँपकपाती आवाज में रोते-रोते चिल्ला रहा था, “पापा, माँ को मारना बंद करो! माँ को मत मारो!” तब जाकर मेरे पति ने मुझे पीटना बंद किया। वह क्रूरता से बोला, “अगर हमारा बच्चा न होता तो मैं आज रात तुम्हें पीट-पीटकर मार डालता! मैं तुम्हारी टाँगें तोड़ देता और देखता क्या तुममें अभी भी परमेश्वर में विश्वास रखने की हिम्मत है!” अपने पति के इस व्यवहार से मैं अंदर तक काँप उठी। मैंने सोचा कि कैसे हम इतने साल एक साथ रह रहे थे और पूरे दिलो-जान से मैंने इस परिवार की देखभाल की थी। लेकिन फिर परमेश्वर में मेरे विश्वास के कारण मेरा पति मुझे पीटने लगा और मुझे मरते हुए देखना चाहता था। अगर मेरा बेटा गिड़गिड़ाकर उसे पीटने से न रोकता तो पता नहीं वह मेरा क्या हाल करके छोड़ता। वह असल में शैतान था जो खुद को प्रकट कर रहा था। बाद में मेरे पति ने अपने छोटे भाई-बहनों को बुला लिया। वे आए और मुझे बिस्तर पर पड़े देखा। बिना एक शब्द भी कहे उन्होंने मुझे बिस्तर से घसीटकर हॉल में पटक दिया। मैं बेजान-सी किसी तरह सोफे पर बैठ गई। उसकी दूसरी भाभी ने क्रूरता से कहा, “क्या तुम्हारे पास करने को कोई इससे अच्छा काम नहीं हैं? तुम क्या सोच रही थी, एक अच्छी-खासी जिंदगी को दर-किनार कर किसी परमेश्वर में विश्वास रखने पर जोर दे रही थी?!” उसकी चौथी भाभी ने कहा, “तुम्हें पता है सरकार सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने वालों को गिरफ्तार कर रही है, फिर भी तुम विश्वास रखती हो। तुम मेरे भाई के हाथों पिटने लायक ही हो!” उसका साला किनारे पर खड़ा हुआ आग को हवा दे रहा था, “मैं देख रहा हूँ कि मेरा बड़ा भाई तुम्हें बहुत ही नजाकत से पीटता है। मेरी चाची भी तुम्हारी तरह ही विश्वासी है। जब भी वह बाहर जाती है तो मेरा चाचा उसे पीटता है। हर बार वह उसे पीट-पीटकर अधमरा कर देता है।” मेरी दस साल की भतीजी भी मेरी तरफ इशारा करते हुए क्रूरता से बोली, “चाची, तुम बहुत मूर्ख हो। हमारे परिवार में कई दर्जन लोग हैं, लेकिन हममें से कोई भी विश्वास नहीं रखता। सिर्फ तुम ही ऐसी हो!” उन सबको एक साथ हमला करते देखकर, उनके मुँह से अपशब्द सुनकर मुझे असह्य दुख हुआ, “मैंने परमेश्वर में विश्वास रखकर कोई कानून नहीं तोड़ा है और मैंने कुछ गलत नहीं किया है। फिर भी ये लोग मेरे साथ दुश्मन जैसा व्यवहार कर रहे हैं! मैं बड़ों का हमला तो बरदाश्त भी कर लूँ, लेकिन यहाँ मेरी भतीजी तक मेरी ओर इशारा करके मेरी आलोचना कर रही है!” मुझे बेहद शर्मिंदगी हो रही थी और मेरी गरिमा को बहुत ठेस पहुँच रही थी। मैं बहुत दुखी थी और मन ही मन प्रार्थना की, “प्रिय परमेश्वर, मैं नहीं जानती कि इस स्थिति का सामना कैसे करूँ। मैं तुमसे विनती करती हूँ, मुझे प्रबुद्ध करो और मेरा मार्गदर्शन करो।” प्रार्थना करने के बाद मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “परमेश्वर का साढ़े तैंतीस सालों तक देहधारण करके पृथ्वी पर रहना अपने आप में एक बेहद दर्दनाक चीज थी, और कोई भी उसे समझ नहीं सका। ... अधिकांश कष्ट जो वह सहता है, वह चरम सीमा तक भ्रष्ट मानवता के साथ रहना है; उपहास, अपमान, आलोचना, और सभी प्रकार के लोगों की निंदा सहने के साथ-साथ राक्षसों द्वारा पीछा किया जाना और धार्मिक दुनिया से ठुकराया जाना और उनकी शत्रुता सहना, जिससे आत्मा पर ऐसे घाव पड़े जिसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता। यह एक दर्दनाक बात है। वह बहुत धैर्य के साथ भ्रष्ट मानवता को बचाता है, अपने घावों के बावजूद वह लोगों से प्रेम करता है, यह बेहद कष्टदायी कार्य है। मानवता के दुष्ट प्रतिरोध, निंदा और बदनामी, झूठे आरोप, उत्पीड़न, और उनके द्वारा पीछा करने और मार डाले जाने के कारण परमेश्वर का देह यह कार्य खुद पर इतना बड़ा जोखिम उठाकर करता है। जब वह यह दर्द सह रहा होता है तो उसे समझने वाला कौन है, और कौन उसे आराम दे सकता है?” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, मसीह का सार प्रेम है)। परमेश्वर के वचनों ने मेरे हृदय को स्नेह से भर दिया मानो कोई गर्म धारा बह रही हो। परमेश्वर निर्दोष है और मानवता को बचाने के लिए पृथ्वी पर देहधारी हुआ है। परमेश्वर को सत्ताधारी पार्टी द्वारा गिरफ्तार किया जाता है और निराधार अफवाहें फैलाई जाती हैं, धार्मिक समुदाय द्वारा निंदा जाती है, ठुकराया जाता है और दुनिया के लोगों द्वारा धिक्कारा जाता है और ईशनिंदा की जाती है। परमेश्वर इतना कष्ट सहकर भी सत्य व्यक्त करता है और मानवता को बचाने के लिए अपना कार्य करता है। उसने हमें बचाने का अपना उद्धार-कार्य कभी नहीं छोड़ा है। इसके विपरीत मैं एक बहुत ही भ्रष्ट इंसान हूँ। चूँकि परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण मेरे परिवार ने मुझे ठुकराया, मारा-पीटा और धिक्कारा, मेरे मान-सम्मान और रुतबे को कुछ हद तक नुकसान पहुँचाया और मैं यह सह न सकी। मुझे लगा मेरे पास आगे बढ़ने का अब कोई रास्ता नहीं है। मैं बहुत कमजोर और अक्षम थी! यह सब सोचते हुए परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण मैं अपमानित महसूस कर रही थी। यह धार्मिकता के लिए सताया जाना है। यह गौरवशाली है। यह जरा भी अपमानजनक या शर्मनाक नहीं है। इसके अलावा यह ठीक उनका उत्पीड़न और बाधा ही थी जिसने मुझे उनके सार के भेद को पहचानने में मदद की जिसे परमेश्वर और सत्य से घृणा है। परमेश्वर में विश्वास रखकर और अपना कर्तव्य निभाकर मैं अपने जीवन में सही मार्ग पर चल रही हूँ। मैं जो कर रही हूँ वह मानवजाति के बीच सबसे न्यायपूर्ण कार्य है। चाहे वे मुझे कितना भी रोकें या सताएँ, मुझे अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करना है। यह देखकर कि मैं कुछ नहीं बोल रही हूँ, उसके दूसरे छोटे भाई ने और भी भयावह हथकंडे अपनाए। उसने मेरे पति से कहा, “भाई, भाभी हमारी बात ही नहीं सुन रही हैं, चाहे हम कुछ भी कहें। परमेश्वर में विश्वास रखने पर सिर्फ सरकार ही इन्हें गिरफ्तार नहीं करेगी, बल्कि इससे आपके बेटे के विश्वविद्यालय में प्रवेश या नौकरी पाने पर भी असर पड़ेगा। इनसे और सिर खपाने का कोई मतलब नहीं है। एक कलम और कागज लेकर इनसे एक गारंटी पत्र लिखवाइए कि यह अब परमेश्वर पर विश्वास नहीं रखेंगी।” मैंने मन ही मन सोचा, “लोगों को परमेश्वर ने बनाया है। लोगों का परमेश्वर में विश्वास रखना और उसकी आराधना करना पूरी तरह से स्वाभाविक और न्यायसंगत है। तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते, सीसीपी का अनुसरण करते हो और मुझे गारंटी पत्र लिखने को मजबूर करते हो कि मैं परमेश्वर में विश्वास न रखूँ। असंभव!” मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की, “प्रिय परमेश्वर, चाहे ये लोग मुझे कितना भी सताएँ, मैं यह लिखने के बजाय मरना पसंद करूँगी। मैं तुम्हारी गवाही में दृढ़ रहूँगी और शैतान को अपमानित करूँगी। मैं तुमसे विनती करती हूँ कि मुझे और अधिक आस्था और शक्ति दो।” आधी रात हो चुकी थी, लेकिन वो लोग जरा भी नरमी नहीं दिखा रहे थे। मैंने समझदारी से कहा, “भविष्य में मैं घर पर रहकर ही विश्वास रखूँगी। कहीं बाहर नहीं जाऊँगी।” तब जाकर उन्होंने थोड़ी नरमी दिखाई। मैंने कभी नहीं सोचा था कि कई महीनों बाद मेरे घरवाले ही मुझे सताएँगे, घेर लेंगे और मुझ पर हमला करेंगे।
फरवरी 2014 में एक दिन मैं बाहर जाकर अपना कर्तव्य निभाने की तैयारी कर रही थी। मैं बाहर जाने ही वाली थी कि मेरे पति ने मेरा कॉलर पकड़ा और मुझे जमीन पर पटक दिया। उसने क्रूरता से कहा, “आज तुम कहीं नहीं जा रही हो। हम तलाक लेने के लिए सिविल अफेयर्स ब्यूरो जा रहे हैं!” जब मैंने अपने पति को यह कहते सुना कि वह तलाक चाहता है तो मैंने मन ही मन सोचा, “जब से मैंने परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू किया है तब से लेकर आज तक मुझे लगातार तुमने सताया और रोका ही है। न तो मैं कलीसियाई जीवन जी पा रही हूँ और न ही अपना कर्तव्य निभा पा रही हूँ। मेरे पास न तो भक्ति करने का कोई अवसर है और न ही परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने का कोई मौका है। अगर हम तलाक नहीं लेते हैं तो मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं रख पाऊँगी और ठीक से परमेश्वर का अनुसरण नहीं कर पाऊँगी।” तो मैंने कहा, “अगर तुम तलाक चाहते हो, तो ठीक है तलाक ले लेते हैं। चलो सिविल अफेयर्स ब्यूरो चलते हैं।” हम सिविल अफेयर्स ब्यूरो पहुँचे, लेकिन तलाक नहीं ले पाए क्योंकि हमें अपने घरेलू पंजीकरण पुस्तिका का आदान-प्रदान करना था। दोपहर को मेरे पति ने मेरे मायके से मेरे भाई-बहनों को फोन करके बुला लिया। उसने कहा, “मैं आज ही इससे तलाक लेना चाहता हूँ क्योंकि राज्य परमेश्वर में इसके विश्वास का विरोध करता है। न केवल इसे गिरफ्तार किए जाने का खतरा है, बल्कि मुझे और हमारे बच्चों को भी इसमें घसीटा जा सकता है। मैंने हर तरह से समझा कर देख लिया लेकिन यह मेरी बात सुनने को तैयार नहीं है, बस परमेश्वर में विश्वास रखना चाहती है। मैंने आज आप लोगों को यहाँ इसलिए बुलाया है ताकि आप लोग इसे समझाने की कोशिश करें कि परमेश्वर में विश्वास रखना बंद करे और घर पर एक अच्छी सामान्य जिंदगी जिए। मैं इसे दो विकल्प दे रहा हूँ : पहला यह कि परमेश्वर में विश्वास रखना छोड़ दे और घर पर एक अच्छा सामान्य जीवन जिए। मैं बीती बातों को भूल जाऊँगा और बाहर जाकर सामान्य रूप से पैसे कमाऊँगा। दूसरा यह कि अगर यह परमेश्वर में विश्वास रखना जारी रखती है तो हम तलाक ले लेंगे और मैं अपने बच्चों की कस्टडी ले लूँगा। घर हमारे बच्चों का होगा और घर की हर चीज हमारे बच्चों की होगी। इसे परिवार से बाहर हो जाना होगा और इसके नाम पर कुछ भी नहीं होगा।” जब मेरे बड़े भाई ने यह सुना तो वह मुझ पर चिल्लाया, “हमारे माता-पिता मर चुके हैं और एक बड़े भाई को पिता मानकर उसकी आज्ञा माननी चाहिए। मैं जो भी कहूँ तुम्हें करना होगा! परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास कितना भी अच्छा क्यों न हो, अगर राज्य की नीति इसकी अनुमति नहीं देती तो तुम्हें विश्वास नहीं रखना चाहिए। तब तक प्रतीक्षा करो जब तक राज्य इसकी अनुमति नहीं देता और फिर विश्वास रखो!” मेरे तीसरे छोटे भाई ने कहा, “बहन, तुम जानती हो कि सरकार परमेश्वर में विश्वास रखने वालों को गिरफ्तार कर लेती है और फिर भी तुम विश्वास रखती हो। क्या तुम अपना सिर शेर के मुँह में नहीं डाल रही हो?” मैंने दृढ़ता से कहा, “मैं परमेश्वर में विश्वास रखने के मार्ग पर चलने के लिए अडिग हूँ। तुम्हारा कुछ भी कहना बेकार है! मैंने इतने साल यीशु में विश्वास रखा, आखिरकार एक लंबे और मुश्किल इंतजार के बाद प्रभु की वापसी देख रही हूँ। तुम मुझे किसी भी सूरत में परमेश्वर से विश्वासघात करने को मजबूर नहीं कर सकते!” मेरे पति ने भयंकर गुस्से में कहा, “चूंकि कोई तुम्हें मना नहीं पा रहा, इसलिए चलकर तलाक ले लेते हैं!” मेरे भाई-बहनों ने देखा कि मेरा पति मुझे तलाक देने वाला है तो वे बेचैन हो गए। मेरी छोटी बहन एक तरफ रोते हुए बोली, “एक समय था जब यह परिवार सामंजस्यपूर्ण था और अब यह बिखरने वाला है। परमेश्वर में विश्वास रखने का क्या मतलब है?” मेरे बाकी रिश्तेदार जल्दी-जल्दी बोल रहे थे और मुझे घर पर एक अच्छा सामान्य जीवन जीने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे थे। जब मैंने उनकी बातें सुनीं तो मेरा दिल परेशान हो गया। मैंने चुपचाप परमेश्वर को पुकारा, “प्रिय परमेश्वर, मैं इन तमाम रिश्तेदारों से जूझ रही हूँ जो मुझे रोक रहे हैं और मेरा दिल परेशान हो गया है। मुझे समझ नहीं आ रहा क्या करूँ। परमेश्वर, तुम मुझे प्रबुद्ध कर मेरा मार्गदर्शन करो।” मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आये : “परमेश्वर द्वारा मनुष्य पर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक कदम में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय विघ्न से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक कदम, और घटित होने वाली हर चीज, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाजी है और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब का परीक्षण हुआ : पर्दे के पीछे शैतान परमेश्वर के साथ शर्त लगा रहा था और अय्यूब के साथ जो हुआ वह मनुष्यों के कर्म थे और मनुष्यों के विघ्न थे” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। परमेश्वर के वचनों ने अचानक मुझे प्रबुद्ध कर दिया। मेरा पति और घरवाले जिस तरह से मुझे सता रहे थे और परमेश्वर में मेरे विश्वास को रोक रहे थे, उसके पीछे शैतान की साजिशें थीं। मैंने अय्यूब के साथ किए शैतान के दुर्व्यवहार को याद किया। देखने में ऐसा लगता है कि अय्यूब की सारी संपत्ति लूट ली गई और घर के ढह जाने से उसके बच्चे मर गए। लेकिन असल में शैतान परमेश्वर के सामने अय्यूब पर आरोप लगा रहा था। हालाँकि उस समय अय्यूब को अंदर की कहानी नहीं पता थी, फिर भी उसने परमेश्वर के बारे में शिकायत नहीं की। उसने यहाँ तक कहा, “मैं अपनी माँ के पेट से नंगा निकला और वहीं नंगा लौट जाऊँगा; यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है” (अय्यूब 1:21)। जब अय्यूब परमेश्वर के प्रति अपनी गवाही में दृढ़ रहा तो शैतान बुरी तरह से अपमानित हुआ और चला गया। परमेश्वर के हृदय को भी सांत्वना मिली। अब जाकर मुझे समझ आया कि एक सृजित प्राणी के रूप में जब शैतान मेरे साथ गड़बड़ी और हमले करता है तो मुझे परमेश्वर के प्रति अपनी गवाही में दृढ़ रहकर शैतान को अपमानित करना चाहिए। यह परिवार मुझे परमेश्वर में विश्वास नहीं रखने देगा, अगर मैं यहाँ और ज्यादा समय तक रही तो मैं सत्य प्राप्त करने और बचाए जाने का अवसर गँवा बैठूँगी। इस बारे में सोचकर मैंने उनसे कहा, “हम तलाक ले रहे हैं!” मैं अपनी बात खत्म करके उठने ही वाली थी कि मेरे तीसरे छोटे भाई ने मेरे चेहरे पर कसकर एक थप्पड़ मारा और लात मारी। रोते हुए उसने कहा, “बहन, तुम सच में पागल हो गई हो! हम सब तुम्हें मनाने की कोशिश कर रहे हैं और तुम हो कि कुछ सुनने को तैयार ही नहीं!” मेरी छोटी बेटी ने रोते हुए कहा, “माँ, पापा को तलाक मत दो। तलाक के बाद तुम क्या करोगी? हम क्या करेंगे?” जब मैंने यह बात सुनी तो मुझे समझ आ गया कि यह शैतान की एक चाल है, शैतान एक बार फिर मुझे लुभाने के लिए स्नेह का प्रयोग कर रहा है। मैंने कुछ देर सोचा और फिर शांति से कहा, “मेरी चिंता मत करो। मैंने अपना मार्ग चुन लिया है।” फिर मैंने अपनी बेटियों से कहा, “तुम्हारे पापा तुम्हारे छोटे भाई का ख्याल रख लेंगे। तुम दोनों बड़ी हो गई हो और तुम्हारे अपने परिवार हैं : तुम दोनों अपनी देखभाल खुद कर सकती हो।” अपनी बात खत्म करके मैं नीचे चली गई।
सिविल अफेयर्स ब्यूरो जाते वक्त मेरे पति ने तलाक का करारनामा निकाला और मुझसे हस्ताक्षर करने को कहा। उसने मुझसे यह भी पूछा कि मैं क्या चाहती हूँ। मैंने कहा मैं कुछ नहीं चाहती, और करारनामे पर हस्ताक्षर कर दिए। जैसे ही मैंने हस्ताक्षर किए मेरा दिल बेहद उन्मुक्त महसूस कर रहा था। कार अभी सिविल अफेयर्स ब्यूरो पहुँची भी नहीं थी कि मैंने देखा जो परिवार अभी-अभी मुझ दबाव डाल रहा था, दरवाजे के बाहर खड़ा है। जैसे ही हम कार से बाहर निकले, वे हमें रोकने के लिए दौड़ पड़े। मेरी बड़ी बेटी ने कहा कि वह मुझे मेरी बहन के घर ले जाना चाहती है ताकि माहौल बदल सके। मेरे दामाद ने कहा कि वह मेरे पति को शराब पिलाने के लिए बाहर ले जाएगा। तलाक का संकट बस इस तरह खत्म हुआ। इसके बाद मेरे पति ने फिर कभी तलाक का जिक्र नहीं किया, फिर कभी उसने मुझसे यह गारंटी पत्र लिखने को नहीं कहा कि मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं रखूँगी। मैंने देखा कि जब मैंने सच्चे दिल से परमेश्वर पर भरोसा किया और अपनी गवाही में दृढ़ रही तो शैतान अपमानित और असफल हुआ।
एक बार अपनी भक्ति के दौरान मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े जिनसे मुझे बेहतर ढंग से अपने पति का भेद पहचानने में मदद मिली। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “पति अपनी पत्नी से क्यों प्रेम करता है? पत्नी अपने पति से क्यों प्रेम करती है? बच्चे क्यों माता-पिता के प्रति कर्तव्यशील रहते हैं? और माता-पिता क्यों अपने बच्चों से अतिशय स्नेह करते हैं? लोग वास्तव में किस प्रकार की इच्छाएँ पालते हैं? क्या उनकी मंशा उनकी खुद की योजनाओं और स्वार्थी आकांक्षाओं को पूरा करने की नहीं है? क्या उनका इरादा वास्तव में परमेश्वर की प्रबंधन योजना के लिए कार्य करने का है? क्या वे परमेश्वर के कार्य के लिए कार्य कर रहे हैं? क्या उनकी मंशा सृजित प्राणी के कर्तव्यों को अच्छे से पूरा करने की है? ... एक विश्वासी पति और अविश्वासी पत्नी के बीच कोई संबंध नहीं होता और विश्वासी बच्चों और अविश्वासी माता-पिता के बीच कोई संबंध नहीं होता; ये दोनों तरह के लोग पूरी तरह असंगत हैं। विश्राम में प्रवेश करने से पहले, लोगों में दैहिक, पारिवारिक स्नेह होता है, लेकिन एक बार जब वे विश्राम में प्रवेश कर जाते हैं, फिर दैहिक, पारिवारिक स्नेह जैसी कोई बात नहीं रह जाती” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। मैंने विचार किया कि मेरे परमेश्वर का नया कार्य स्वीकारने से पहले मेरा पति मेरे साथ अच्छा व्यवहार करता था और मैं बच्चों की और घर की देखभाल करती थी ताकि उसे घर की कोई चिंता न रहे। सरकार की अनुमति न होने के बावजूद जब मैं परमेश्वर में विश्वास रखती थी तो उसे चिंता रहती थी कि अगर किसी दिन मुझे गिरफ्तार कर लिया गया तो उसके गौरव और हितों को ठेस पहुँचेगी और हमारे बेटे की देखभाल करने वाला कोई नहीं होगा। इसलिए उसने मुझे सताने और परमेश्वर में विश्वास रखने से रोकने के लिए हर तरह की चालें और हथकंडे अपनाए। पहले तो उसने मुझे मनाने और लुभाने के लिए मीठी-मीठी बातें कीं। लेकिन जब इनसे बात नहीं बनी तो उसने मुझे धिक्कारा और मारपीट शुरू कर दी। लगा जैसे वह मुझे पीट-पीटकर मार डालने के लिए आतुर है। उसने अपने रिश्तेदारों के साथ मिलकर मुझे परमेश्वर के साथ विश्वासघात करने के लिए गारंटी पत्र लिखने तक को मजबूर किया और धमकी दी कि अगर मैंने यह नहीं लिखा तो वह मुझे तलाक दे देगा। परमेश्वर में मेरे विश्वास को रोकने के लिए मेरे पति ने कोई कसर नहीं छोड़ी और हर तरह से अपनी अक्ल के घोड़े दौड़ाए। जैसा कि परमेश्वर ने उजागर किया है, लोगों के बीच कोई पारिवारिक भावनाएँ नहीं होतीं, केवल स्वार्थ के रिश्ते होते हैं। मेरा पति वास्तव में मेरे साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रहा था। केवल परमेश्वर ही लोगों को सच्चा प्यार और निस्वार्थ उद्धार देता है। अब मेरे अंदर सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए अधिक आस्था और अधिक इच्छाशक्ति थी।
इसके बाद जब भी मैं सभाओं में जाती या अपना कर्तव्य निभाती तो मेरा पति मुझे बिल्कुल बेबस नहीं करता था। मेरे पति ने देखा कि वह वास्तव में मुझे रोक नहीं सकता, इसलिए उसने हस्तक्षेप करना बंद कर दिया। मेरे रिश्तेदारों ने भी परमेश्वर में विश्वास रखने से संबंधित किसी भी बात का उल्लेख करना बंद कर दिया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने अपने परिवार के अंधेरे प्रभाव को पीछे छोड़ देने के लिए मेरा मार्गदर्शन किया। अब मैं अपने पति द्वारा बाधित और परेशान नहीं होती हूँ और अपना कर्तव्य सामान्य रूप से निभा सकती हूँ। परमेश्वर का धन्यवाद!