211 अगर तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो तो अपना हृदय उसके सामने अर्पित करो
1 चूँकि तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो, इसलिए तुम्हें अपने हृदय को परमेश्वर के समक्ष सौंप देना चाहिए। यदि तुम अपना हृदय परमेश्वर को चढ़ा दो और उसे उसके सामने रख दो, तो शोधन के दौरान तुम्हारे लिए परमेश्वर को नकारना या त्यागना असंभव होगा। इस तरह परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध ज्यादा से ज्यादा घनिष्ठ और सामान्य हो जाएगा और परमेश्वर के साथ तुम्हारी संगति ज्यादा से ज्यादा निरंतर हो जाएगी। यदि तुम सदैव ऐसे ही अभ्यास करोगे तुम परमेश्वर की रोशनी में अधिक समय बिताओगे, और उसके वचनों के मार्गदर्शन में और अधिक समय व्यतीत करोगे, तुम्हारे स्वभाव में भी अधिक से अधिक बदलाव आएँगे, और तुम्हारा ज्ञान दिन-प्रतिदिन बढ़ता जाएगा।
2 जब वह दिन आएगा, जब परमेश्वर के परीक्षण अचानक तुम पर आ पड़ेंगे, तो तुम न केवल परमेश्वर की ओर खड़े रह पाओगे, बल्कि परमेश्वर की गवाही भी दे पाओगे। उस समय तुम अय्यूब और पतरस के समान होगे। परमेश्वर की गवाही देकर तुम सच में उससे प्रेम करते हो और खुशी-खुशी उसके लिए अपना जीवन बलिदान कर देते हो; तुम परमेश्वर के गवाह बनते हो और वह बनते हो जिससे परमेश्वर प्रेम करता है। जिस प्रेम ने शोधन का अनुभव किया है वह मजबूत होता है, नाज़ुक नहीं। हाँ, इस बात की परवाह किए बिना कि परमेश्वर तुम्हें कब या कैसे अपने परीक्षणों के अधीन करता है, तुम इस बारे में अपनी चिंताओं को त्यागने में सक्षम हो कि तुम जीते हो या मरते हो, परमेश्वर के लिए खुशी-खुशी सब कुछ त्याग देते हो और परमेश्वर के लिए खुशी-खुशी सब कुछ सह लेते हो, इस प्रकार तुम्हारा प्रेम शुद्ध होगा और तुम्हारी आस्था में वास्तविकता होगी। केवल तभी तुम ऐसे व्यक्ति बनोगे, जिसे सचमुच परमेश्वर द्वारा प्रेम किया जाता है, और जिसे सचमुच परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाया गया है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल शोधन का अनुभव करके ही मनुष्य सच्चे प्रेम से युक्त हो सकता है