548  कोई भी परमेश्वर के आगमन से अवगत नहीं है

कोई ईश्वर के आगमन से अवगत नहीं,

उसके आगमन का कोई स्वागत न करे,

न कोई ये जाने वो क्या करेगा।

इंसान का जीवन वैसा ही रहता

उसका दिल भी बदलता नहीं।


1

ईश्वर हमारे बीच जीता है आम इंसान की तरह,

एक साधारण विश्वासी, अनुयायी।

उसके अपने लक्ष्य और प्रयास हैं;

पर उसमें दिव्यता है जो आम इंसान में नहीं।

किसी ने उसकी दिव्यता पर ध्यान न दिया,

उसके और इंसान के सार का अंतर न देखा।


हम उसके साथ भयमुक्त और आज़ाद होकर जीते हैं,

क्योंकि हम उसे आम विश्वासी समझते हैं।

वो हमारी सारी क्रिया, विचार और खयाल देखे।

कोई न सोचे, वो क्या करता है, यहाँ क्यों है,

वो कौन है, इसे लेकर किसी को संदेह नहीं।

इससे अनजान रहकर हम अपने प्रयास में लगे रहते।


लेकिन ये आम इंसान, जो भीड़ में छुपा

नया काम कर रहा हमें बचाने का।

वो अब अक्सर बोलने लगा।

उसके वचन दया दिखाते पर हमें डराते भी हैं।

उसका स्वर मृदु से लेकर गंभीर और प्रचंड है,

वो सांत्वना, चेतावनी देता,

अनुशासित और आग्रह करता।

उसके वचन हमारे राज़ खोलते,

हमारे दिल को भेदे, आत्मा पर चोट करे

जिससे हम ऐसे शर्मसार होते कि सह न पाते,

मुँह छिपाने को जगह ढूँढ़ते।


2

यह मामूली-सा इंसान, हमारे बिन जाने,

कदम-दर-कदम ईश्वर के काम में ले गया हमें।

हम परीक्षणों, ताड़ना से गुज़रते, मृत्यु परीक्षा लेती।

हम ईश-प्रेम और दया का आनंद लेते,

उसकी धार्मिकता को जानते;

उसकी मनोहरता देखते,

उसका सामर्थ्य और बुद्धि महान है,

इंसान को बचाने की ईश्वर की आतुर इच्छा देखते।


हम इस आम इंसान के वचनों से समझते

ईश्वर की इच्छा, उसका सार और स्वभाव,

इंसान की प्रकृति और उसका सार,

देख पाते उद्धार और पूर्णता का मार्ग।


इस क्षण से हमारा मन जाग गया है,

हमारी आत्मा पुनर्जीवित-सी लगे:

जिस इंसान को हमने नकारा, जो हमारे बीच रहे

क्या वो प्रभु यीशु मसीह नहीं,

जो सोते-जागते खयालों में रहे?

वो हमारा ईश्वर है, हाँ, वही है!

वो सत्य, मार्ग और जीवन है!

हमारा पुनर्जन्म होता, हम सच में रोशनी देखते हैं।

ईश्वर के आमने-सामने, फिर से उसके सिंहासन के आगे,

हमने उसका चेहरा और आगे का मार्ग देखा है।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 4: परमेश्वर के प्रकटन को उसके न्याय और ताड़ना में देखना से रूपांतरित

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