अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त पुस्तक, वचन देह में प्रकट होता है का तीसरा खंड है। पुस्तक के पहले भाग में सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा सभा में दिए गए उपदेश और संगति को शामिल किया गया है, दूसरे भाग में है सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा अगुआओं और कार्यकर्ताओं को दिए प्रवचन, और तीसरा भाग अपने चुने हुए लोगों के एक हिस्से के साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर की संगति से बना है। ये उपदेश और संगति कलीसिया में मौजूद समस्याओं के साथ-साथ परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश की व्यावहारिक कठिनाइयों को हल करते हैं। वे न केवल लोगों के सार और वर्तमान स्थितियों के बारे में बताते हैं, बल्कि लोगों के लिए उन लक्ष्यों पर भी रोशनी डालते हैं जिनका उन्हें अनुसरण करना चाहिए। वे लोगों की सत्य की समझ और जीवन-प्रवेश की प्राप्ति के लिए बेहद फायदेमंद हैं।
अंत के दिनों के मसीह के कथन
1सत्य के अनुसरण का महत्व और उसके अनुसरण का मार्ग
2एक ईमानदार व्यक्ति होने का सबसे बुनियादी अभ्यास
3अपना स्वभाव बदलने के लिए अभ्यास का मार्ग
4अपने गलत विचारों को पहचानकर ही खुद को सचमुच बदला जा सकता है
5केवल सच्चे समर्पण के साथ ही व्यक्ति असली भरोसा रख सकता है
6छह प्रकार के भ्रष्ट स्वभावों का ज्ञान ही सच्चा आत्म-ज्ञान है
8वह वास्तव में क्या है, जिस पर लोग जीने के लिए निर्भर हैं?
9केवल सत्य का अभ्यास और परमेश्वर को समर्पण करके ही व्यक्ति अपने स्वभाव में बदलाव हासिल कर सकता है
10केवल सत्य समझकर ही व्यक्ति परमेश्वर के कर्मों को जान सकता है
11पौलुस के प्रकृति सार को कैसे पहचानें
12सत्य के अभ्यास में ही होता है जीवन प्रवेश
13अपनी धारणाओं का समाधान करके ही व्यक्ति परमेश्वर पर विश्वास के सही मार्ग पर चल सकता है (1)
14अपनी धारणाओं का समाधान करके ही व्यक्ति परमेश्वर पर विश्वास के सही मार्ग पर चल सकता है (2)
15अपनी धारणाओं का समाधान करके ही व्यक्ति परमेश्वर पर विश्वास के सही मार्ग पर चल सकता है (3)
16अपने कर्तव्य का मानक स्तर का निर्वहन क्या है?
17सुसमाचार का प्रचार करना वह कर्तव्य है जिसे अच्छे से निभाना सभी विश्वासियों का दायित्व है
18मनुष्य और परमेश्वर के बीच संबंध को दुरुस्त करना बहुत आवश्यक है
19अपना कर्तव्य सही ढंग से पूरा करने के लिए सत्य को समझना सबसे महत्वपूर्ण है
20परमेश्वर के वचनों को सँजोना परमेश्वर में विश्वास की नींव है
1मनुष्य नए युग में कैसे प्रवेश करता है
2राज्य के युग में परमेश्वर के प्रशासनिक आदेशों के बारे में
3देहधारण के अर्थ का दूसरा पहलू
4परमेश्वर द्वारा जगत की पीड़ा का अनुभव करने का अर्थ
5परमेश्वर पर विश्वास करने में सत्य प्राप्त करना सबसे महत्वपूर्ण चीज है
6परमेश्वर के प्रति मनुष्य के प्रतिरोध की जड़ में अहंकारी प्रकृति है
7प्रार्थना के मायने और उसका अभ्यास
9स्वभाव बदलने के बारे में क्या जानना चाहिए
10मनुष्य की प्रकृति को कैसे जानें
11सत्य का अनुसरण करके ही व्यक्ति स्वभाव में बदलाव ला सकता है
12सही मार्ग चुनना परमेश्वर में विश्वास का सबसे महत्वपूर्ण भाग है
13क्या तुम मनुष्यजाति के प्रति परमेश्वर का प्रेम जानते हो?
14लोग परमेश्वर से बहुत अधिक माँगें करते हैं
16परमेश्वर में विश्वास की शुरुआत संसार की बुरी प्रवृत्तियों की असलियत देखने से होनी चाहिए
17अपना हृदय परमेश्वर को देने में व्यक्ति सत्य प्राप्त कर सकता है
18अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है
19सत्य प्राप्त करने के लिए अपने आसपास के लोगों, घटनाओं और चीजों से सीखना चाहिए
20जीवन प्रवेश कर्तव्य निभाने से प्रारंभ होता है
21सत्य का अभ्यास करके ही व्यक्ति भ्रष्ट स्वभाव की बेड़ियाँ तोड़ सकता है
22पाँच शर्तें, जिन्हें परमेश्वर पर विश्वास के सही मार्ग पर चलने के लिए पूरा करना आवश्यक है
23अपने भ्रष्ट स्वभाव का समाधान करने से ही सच्चा परिवर्तन आ सकता है
24परमेश्वर पर विश्वास करने में सबसे महत्वपूर्ण उसके वचनों का अभ्यास और अनुभव करना है
25परमेश्वर की प्रबंधन योजना का सर्वाधिक लाभार्थी मनुष्य है
26भ्रष्ट स्वभाव केवल सत्य स्वीकार करके ही दूर किया जा सकता है
28परमेश्वर का भय मानकर ही इंसान उद्धार के मार्ग पर चल सकता है
29केवल परमेश्वर के वचन बार-बार पढ़ने और सत्य पर चिंतन-मनन करने में ही आगे बढ़ने का मार्ग है
30रुतबे के प्रलोभन और बंधन कैसे तोड़ें
31सत्य प्राप्त करने के लिए कीमत चुकाना बहुत महत्वपूर्ण है
32अक्सर परमेश्वर के सामने जीने से ही उसके साथ एक सामान्य संबंध बनाया जा सकता है
33सत्य का अभ्यास करना क्या है?
34सामंजस्यपूर्ण सहयोग के बारे में
36परमेश्वर के प्रति समर्पित होने के अभ्यास के सिद्धांत
37परमेश्वर के प्रति समर्पण सत्य प्राप्त करने में बुनियादी सबक है
38परमेश्वर की संप्रभुता को कैसे जानें
39सृजित प्राणी का कर्तव्य उचित ढंग से निभाने में ही जीने का मूल्य है
40केवल एक ईमानदार व्यक्ति बनकर ही कोई सच्चे मानव के समान जी सकता है
41भ्रष्ट स्वभाव दूर करने का मार्ग
42धर्म में आस्था रखने या धार्मिक समारोह में शामिल होने मात्र से किसी को नहीं बचाया जा सकता
43अच्छे व्यवहार का यह मतलब नहीं कि व्यक्ति का स्वभाव बदल गया है
44अपने स्वभाव का ज्ञान उसमें बदलाव की बुनियाद है
46सत्य के अनुसरण में केवल आत्म-ज्ञान ही सहायक है
47सत्य सिद्धांत खोजकर ही कोई अपना कर्तव्य अच्छी तरह निभा सकता है
48परमेश्वर के प्रति मनुष्य का जो रवैया होना चाहिए
49कर्तव्य के उचित निर्वहन के लिए सामंजस्यपूर्ण सहयोग आवश्यक है
50अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के लिए व्यक्ति में कम से कम जमीर और विवेक तो होना ही चाहिए
51व्यक्ति के स्व-आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत
52केवल वे जो सत्य को समझते हैं, उनके पास आध्यात्मिक समझ होती है
53“प्रेम के कारण” भजन के बारे में संगति
(भजन मंडली के साथ संगति)
1सत्य और परमेश्वर तक पहुँचने के उपायों के बारे में वचन
2सत्य की खोज और इसका अभ्यास करने के बारे में वचन
3परमेश्वर का कार्य और स्वभाव जानने के बारे में वचन
4परमेश्वर के देहधारण को जानने के बारे में वचन
5कर्तव्य निभाने के बारे में वचन
6स्वयं को जानने के बारे में वचन
7भ्रष्ट स्वभाव हल करने के उपायों के बारे में वचन
8असफलता, पतन, परीक्षण और शोधन झेलने के तरीकों के बारे में वचन
9शब्द और धर्म-सिद्धांत सुनाने और सत्य वास्तविकता के बीच अंतर
10परमेश्वर की सेवकाई के बारे में वचन
11परमेश्वर लोगों का परिणाम कैसे तय करता है इसके बारे में वचन