सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंत के दिनों का मसीह, सत्य व्यक्त करता है, परमेश्वर के घर से शुरूआत करते हुए न्याय का कार्य करता है और लोगों को शुद्ध करने और बचाने के लिए आवश्यक सभी सत्यों की आपूर्ति करता है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों ने परमेश्वर की वाणी सुनी है, वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने लाए गए हैं, उन्होंने मेमने की दावत में भाग लिया है और राज्य के युग में परमेश्वर के लोगों के रूप में परमेश्वर के आमने-सामने अपना जीवन शुरू किया है। उन्होंने परमेश्वर के वचनों की सिंचाई, चरवाही, प्रकाशन और न्याय प्राप्त किया है, परमेश्वर के कार्य की एक नई समझ हासिल की है, शैतान द्वारा उन्हें भ्रष्ट किए जाने का असली तथ्य देखा है, सच्चे पश्चात्ताप का अनुभव किया है और सत्य का अभ्यास करने पर और स्वभाव में बदलाव से गुजरने पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया है; उन्होंने परमेश्वर के न्याय और ताड़ना का अनुभव करते हुए भ्रष्टता के शुद्धिकरण के बारे में विभिन्न गवाहियाँ तैयार की हैं। अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय कार्य ने विजेताओं का एक समूह बनाया है जो अपने व्यक्तिगत अनुभवों के जरिए यह गवाही देते हैं कि अंत के दिनों में महान श्वेत सिंहासन का न्याय पहले ही शुरू हो चुका है!
अनुभवजन्य गवाहियाँ
1चाहे मेरे कर्तव्य कितने भी व्यस्त क्यों न हों, मुझे जीवन प्रवेश पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए
221 साल की एक लड़की का मुश्किल फैसला
3सुसमाचार फैलाने का मेरा कर्तव्य अडिग है
4जब मेरे चाचा को निष्कासित किया गया
7जिन आशंकाओं ने मुझे दूसरों की समस्याएँ उजागर करने से रोका
8बीमारी के अनुभव से मुझे बहुत कुछ मिला
9वैवाहिक आनंद की खोज से मिला दर्द
10मेरी ज्यादा उम्मीदों ने मेरे बेटे को नुकसान पहुँचाया
11निगरानी स्वीकार कर मुझे कैसे मदद मिली
12छद्मवेश हटाना और एक ईमानदार व्यक्ति बनना
13जीवन प्रवेश का अनुसरण न करने के परिणाम
14उत्पीड़न और क्लेश के दौरान एक विकल्प
15अपना कर्तव्य निभाना वह जिम्मेदारी है जिससे मैं भाग नहीं सकती
16परमेश्वर में आस्था के मार्ग पर चलने का संकल्प
17व्यस्त दिखने के पीछे क्या राज है
19मैंने देखा मेरे शब्दों के पीछे हमेशा अशुद्धियाँ होती थीं
20दूसरों से हमेशा ईर्ष्या करने पर चिंतन
21मूत्ररुधिरता से पीड़ित मरीज का आत्म-चिंतन
22जब एक यहूदा ने मुझे धोखा दिया
23मैं अपने कर्तव्य में मुश्किलों का सामना क्यों नहीं कर सकी?
24मेरा खुद को ऊँचा उठाने और दिखावा करने पर चिंतन
25जिम्मेदारी स्वीकारने और इस्तीफा देने के बाद चिंतन
26अपना कर्तव्य बदले जाने के प्रति मैं समर्पण क्यों नहीं कर सका?
27जिम्मेदारी लेने के डर से मेरा स्वार्थ और घिनौनापन प्रकट हुआ
28मैंने अपने परिवार द्वारा सताए जाने से क्या हासिल किया
29खतरे और प्रतिकूलता के बीच मैंने कैसे चुनाव किया
30मैंने अपने बोन कैंसर का सामना कैसे किया
32मुझे अपने अपराधों को किस तरह से लेना चाहिए
33बहुतों को बेनकाब होते और हटाए जाते देखने के बाद
34खुद का दिखावा करके मैंने क्या सीखा
35धूर्त और कपटी होना आपको अपना कर्तव्य अच्छे से निभाने से रोकती है
37बधिर होने के बाद अस्सी की उम्र पार कर चुकी महिला का अनुभव
38अब मैं जानती हूँ कि अपने अपराधों से कैसे पेश आना है
41एक छोटे से मामले से मेरा कपटीपन प्रकट हुआ
42बिजली के झटके की यातना के दिन
43आखिरकार मुझे एहसास हुआ मैं बिल्कुल स्वार्थी थी
44एक खतरनाक माहौल ने मेरा स्वार्थीपन प्रकट कर दिया
45जिम्मेदारी लेने के अपने डर पर चिंतन
46मेरा अहंकारी स्वभाव कैसे बदला
47बीमारी ने मेरी आशीष पाने की मंशा प्रकट कर दी
48अपना मुखौटा उतारना सचमुच सुकून देता है
49हमें पालने-पोसने के लिए अपने परिवार की दयालुता से कैसे पेश आएँ
50मैं इतनी स्वार्थी क्यों हूँ?
52अपने कर्तव्य पूरे करने के लिए घटियापन का समाधान करना
55सच बोलना इतना मुश्किल क्यों है?
56आपदा में भी कर्तव्यों पर डटे रहना
57अब मैं अपनी बीमारी के कारण परेशान नहीं रहती
58क्या “दूसरों के प्रति सहिष्णु होना” सचमुच अच्छी मानवता है?
59बोझ उठाने में अनिच्छा के पीछे क्या है
60क्या खराब काबिलियत के साथ बचाया जाना असंभव है?
61परिवार के उत्पीड़न के बीच एक फैसला
62एक छोटे से मामले से सीखे गए सबक
65प्रसिद्धि और लाभ की चाहत ने मुझे सचमुच बर्बाद कर दिया
66अपनी हीनता की भावनाओं को पहचानना
67मैं अपने शौकों के साथ सही ढंग से पेश आ सकती हूँ
68दूसरों से अपनी तुलना करने से होने वाली पीड़ा
69बीमारी की चिंताओं को पीछे छोड़ना
70पैसे और हैसियत ने मेरे लिए किया ही क्या?
72मेरी गलतफहमी और परमेश्वर के प्रति सतर्कता हट गई
73गरिमा के साथ जीने के लिए ईमानदारी के साथ जियो
74खतरनाक परिवेशों में कर्तव्य पालन
75क्या दूसरों के सौंपे गए कामों के प्रति निष्ठावान होना सही तरीका है?
76क्या अपने माता-पिता की देखभाल करना परमेश्वर द्वारा सौंपा गया मिशन है?
77अपना कर्तव्य निभाने के लिए मैं हमेशा दूसरों पर क्यों निर्भर रहती हूँ?
79समस्याएँ बताने से जुड़ी चिंताएँ
82बरखास्त होने के बाद पश्चात्ताप
83अपने बेटे के प्रति ऋणी होने की भावना से मुक्त होना
85पैसे के बंधन से कैसे मुक्त हों
86मूल्यांकन लिखने से सीखे गए सबक
87पढ़ाई के बहुत ज्यादा दबाव ने मेरी बेटी को नुकसान पहुँचाया
88विपत्ति के बीच अपने कर्तव्य पर कैसे कायम रहें
90मैं अपने भाग्य को लेकर फिर कभी शिकायत नहीं करूँगी
91मैंने ईर्ष्या को कैसे दूर किया
92दूसरों से आगे निकलने की होड़ पर चिंतन
93आशीष पाने के मेरे इरादे कैसे गायब हो गए
94अपने कर्तव्य में दूसरा काम सौंपे जाने से सीखे गए सबक
95क्या किसी की दयालुता का बदला चुकाना आत्म-आचरण का सिद्धांत है?
96सत्य बताने की अनिच्छा के पीछे क्या छिपा है?
97पैसे के पीछे भागने के दिनों को अलविदा कहना
98मुखौटे के पीछे क्या छिपा था?