भजन की यह किताब दो मुख्य भागों में विभाजित है : पहले खंड में परमेश्वर के वचनों के भजन शामिल हैं, जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर से मिले अत्यावश्यक कथनों से बने हैं, और दूसरे में परमेश्वर के चुने हुओं की वास्तविक गवाहियाँ है जो परमेश्वर के न्याय से गुज़रने और उसका अनुसरण करने में आई कठिनाइयों और यंत्रणाओं को झेलने के बाद दी गयी हैं। ये भजन, परमेश्वर के चुने हुए लोगों की आध्यात्मिक भक्ति के लिए बहुत ही लाभकारी हैं, इससे उन्हें परमेश्वर के करीब आने, परमेश्वर के वचनों के चिंतन और सत्य समझने में बहुत मदद मिलेगी; इसके अलावा, ये भजन परमेश्वर के वचनों का अनुभव करने वाले और उनके वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करने वाले लोगों के लिए बहुत हितकर हैं।
जीवन-प्रवेश पर पुस्तकें
1राज्य गान
(I) दुनिया में राज्य का अवतरण हुआ है
2राज्य गान
(II) आगमन हुआ है परमेश्वर का, राजा है परमेश्वर
3राज्य गान
(III) सभी जन आनंद के लिये जयकार करते हैं
5हम सिंहासन के सामने उठाए गए हैं
6गौरवशाली सिंहासन पर विराजमान है सर्वशक्तिमान परमेश्वर
8केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही शाश्वत पुनर्जीवित जीवन है
9बीमारी का आना परमेश्वर का प्रेम है
13सर्वशक्तिमान परमेश्वर का पवित्र आध्यात्मिक देह प्रकट हो चुका है
14परमेश्वर की भेड़ें सुनती हैं उसकी वाणी
16मनुष्यों के लिए परमेश्वर का अनुस्मारक
18पूरी धरती ख़ुश होकर परमेश्वर की स्तुति करती है
19समय जो गँवा दिया कभी वापस न आएगा
20सिंहासन से आती हैं सात गर्जनाएँ
21परमेश्वर का राज्य प्रकट हुआ है धरती पर
22ईश्वर की सात तुरहियाँ फिर बजती हैं
23परीक्षणों की पीड़ा एक आशीष है
25बेपर्दा हो चुके हैं रहस्य सारे
28सभी राष्ट्रों और लोगों पर परमेश्वर का न्याय
31परमेश्वर का न्याय पूरी तरह से प्रकट होता है
33परमेश्वर के सिय्योन लौट जाने के बाद
34सब-कुछ परमेश्वर के हाथ में है
35क्या तुम परमेश्वर को आनंद देने वाला फल बनना चाहते हो?
36परमेश्वर पर विश्वास करके भी उसकी अवहेलना करने वालों का परिणाम
37क्या तुम सचमुच परमेश्वर के आयोजनों के प्रति समर्पण कर सकते हो?
38परमेश्वर के कर्म व्याप्त हैं ब्रह्मांड के विशाल विस्तार में
40परमेश्वर की सहिष्णुता के कारण अपने आप में लिप्त मत हो जाओ
41परीक्षाओं के प्रति पतरस का रवैया
42तुम्हें पतरस का अनुकरण करना चाहिए
44पतरस जानता था परमेश्वर को सबसे अच्छी तरह
45परमेश्वर के भवन में अपनी निष्ठा अर्पित करो
48देहधारी परमेश्वर को कोई नहीं जानता
51जब परमेश्वर स्वयं इस संसार में आता है
52परमेश्वर स्वर्ग में है और धरती पर भी
53परमेश्वर के वचनों का सच्चा अर्थ कभी समझा नहीं गया है
54परमेश्वर के सभी लोग अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं
55इंसान फिर से पाता है वो पवित्रता जो उसमें पहले कभी थी
58सबसे बड़ी आशीष जो ईश्वर मानव को प्रदान करता है
60मनुष्य के कामों में परमेश्वर के प्रति उसकी धोखाधड़ी व्याप्त है
61हैसियत सँजोने में क्या मूल्य है?
62लोग परमेश्वर से ईमानदारी से प्रेम क्यों नहीं करते?
63परमेश्वर का खुला प्रशासन अखिल ब्रह्माण्ड में
64परमेश्वर बहाल कर देगा सृजन की पूर्व स्थिति
65पूरी कायनात में पहुँचे परमेश्वर का धार्मिक न्याय
66परमेश्वर इंसानी दुनिया के अन्याय को दूर करेगा
67कौन परमेश्वर की इच्छा की परवाह कर सकता है?
68परमेश्वर के वचन से सब-कुछ पूरा होता है
69परमेश्वर राज्य में शासन करता है
70ब्रह्माण्ड में परमेश्वर के कार्य की लय
71इंसान के लिये परमेश्वर की इच्छा कभी नहीं बदलेगी
72पूरी कायनात में गढ़ा है परमेश्वर ने नया कार्य
74यीशु के बारे में पतरस का ज्ञान
75परमेश्वर के लोगों के बढ़ने के साथ बड़ा लाल अजगर होता है धराशायी
78क्या इंसान इस थोड़े समय के लिए अपनी देह की इच्छाओं का त्याग नहीं कर सकता?
79सृजित जीव को होना चाहिये परमेश्वर की दया पर
80परमेश्वर आशा करता है कि मनुष्य उसे पूरे दिलो-दिमाग और क्षमता से प्रेम करे
81काश हम जान जायें परमेश्वर की मनोहरता
82क्या तुम अपने दिल का प्रेम दोगे परमेश्वर को?
83परमेश्वर विश्वास को पूर्ण बनाता है
84क्या तुमने ईश्वर में विश्वास के सही रास्ते में प्रवेश कर लिया है?
85परमेश्वर की सेवा के लिए न्यूनतम आवश्यकता
86स्वभाव बदले बिना कोई परमेश्वर की सेवा नहीं कर सकता
87त्याग दो धार्मिक अवधारणाएं परमेश्वर द्वारा पूर्ण किये जाने के लिए
88ऐसी आस्था जिसकी ईश्वर प्रशंसा न करे
90पारस्परिक रिश्ते परमेश्वर के वचनों के अनुसार बनाने चाहिए
91उन लोगों के गुण जिनका परमेश्वर उपयोग करता है
92परमेश्वर के सामने शांत कैसे रहें
93परमेश्वर उन्हीं को पूर्ण बनाता है जो प्रेम करते हैं उसे
94सभी चीज़ों में परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जाने की कोशिश करनी चाहिए
95परमेश्वर के वादे उनके लिए जो पूर्ण किए जा चुके हैं
96वही पात्र हैं सेवा के जो अंतरंग हैं परमेश्वर के
98परमेश्वर की सेवा करने के लिए तुम्हें उसे अपना हृदय अर्पित करना चाहिए
99पवित्र आत्मा के कार्य के सिद्धांत
100परमेश्वर द्वारा प्राप्त लोगों ने वास्तविकता प्राप्त की है
102विश्वास रखो कि ईश्वर इंसान को निश्चित रूप से पूर्ण बनाएगा
103केवल परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करने से ही वास्तविकता आती है
104सत्य को जितना अधिक अमल में लाओगे उतनी तेज़ी से प्रगति करोगे
105सत्य पर अमल के लिये सबसे सार्थक है दुख सहना
107परमेश्वर अंत के दिनों में अपने वचनों से पूरी कायनात को जीतता है
108परमेश्वर के वचनों से दूर नहीं जा सकता कोई
110परमेश्वर के साथ सामान्य रिश्ता कैसे स्थापित करें
111परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध रखना महत्वपूर्ण है
112क्या परमेश्वर से तुम्हारा संबंध सामान्य है?
115व्यावहारिक परमेश्वर इंसानों के बीच प्रकट होता है
116देह में काम करके ही परमेश्वर इंसान को हासिल कर सकता है
117अंत के दिनों में परमेश्वर अपने वचनों से इंसान का न्याय करता है, उसे पूर्ण करता है
118एक दूसरा युग, दूसरा दिव्य कार्य
120तुम सब वो हो जो परमेश्वर की विरासत पाओगे
121तुम्हें ईश्वर की इच्छा समझनी चाहिए
123परमेश्वर के वचन के अपने अभ्यास में प्रयास करो
124मृत्यु-शैय्या पर सत्य के प्रति जागना बड़ी देर से जागना है
125परमेश्वर का सच्चा प्रेम पाने की खोज करनी चाहिए तुम्हें
126पूरब की ओर लाया है परमेश्वर अपनी महिमा
127परमेश्वर की महिमा पूर्व से चमकती है
128प्रकट हुआ परमेश्वर जग के पूरब में महिमा लेकर
129पवित्र आत्मा का कार्य पाने के लिए परमेश्वर के वचनों में जियो
130परमेश्वर द्वारा हासिल होने के लिए अन्धकार के प्रभाव को त्याग दो
133परमेश्वर में आस्था की राह, है राह उससे प्यार करने की
134परमेश्वर से प्रेम करने में समर्थ होने के लिए अपना हृदय पूरी तरह उसकी ओर मोड़ो
135मैं परमेश्वर से प्रेम करने को संकल्पित हूँ
138सच्ची प्रार्थना में प्रवेश कैसे किया जाता है
140पवित्र आत्मा का कार्य पाने के लिए प्रार्थना में दिल से बात करो
141पवित्र आत्मा के नए काम का अनुसरण करो और परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करो
142क्या तुम परमेश्वर के वर्तमान कार्य का अनुसरण करते हो
144ईश्वर की इच्छा को निराश नहीं कर सकते तुम
145परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलने के लिए जीना सबसे सार्थक है
147पवित्र आत्मा ज़्यादा कार्य करता है उनमें, पूर्ण किये जाने की तड़प है जिनमें
149जो परमेश्वर के सामने शांत रहते हैं, केवल वही जीवन पर ध्यान केंद्रित करते हैं
150परमेश्वर के समक्ष अपने हृदय को शांत करने पर तुम्हें ध्यान देना चाहिए
151अपने हृदय को परमेश्वर के आगे शांत करने के तरीके
152परमेश्वर के समक्ष शांत रहने का अभ्यास
153परमेश्वर के समक्ष अपने हृदय को शांत रखने के फ़ायदे
154अधिक बोझ उठाओ ताकि परमेश्वर द्वारा अधिक आसानी से पूर्ण किये जा सको
155परमेश्वर उन्हें पूर्ण बनाता है जो उसे सच में प्रेम करते हैं
158परमेश्वर के वचनों को जो संजोते हैं वे धन्य हैं
159तुम्हें अपने हर काम में परमेश्वर की निगरानी को स्वीकार करना चाहिए
160अंत तक अनुसरण करने के लिये आत्मा के कार्य का पालन करो
162पवित्र आत्मा के काम को मानो तो तुम चलोगे पूर्णता के पथ पर
163पूर्ण किए जाने के लिए जो अपेक्षित है
166राज्य के युग में, वचन सब पूर्ण करते हैं
167राज्य के युग में परमेश्वर मनुष्य को वचनों के द्वारा पूर्ण करता है
168परमेश्वर के वचनों की महत्ता
169परमेश्वर को बेहतर जान सकते हैं लोग वचनों के कार्य के ज़रिये
170विश्वास के लिए मुख्य है परमेश्वर के वचनों को जीवन की वास्तविकता के रूप में स्वीकार करना
172अंत के दिनों में हासिल करता है सब परमेश्वर मुख्यतः वचनों से
173अंत के दिनों में, देहधारी परमेश्वर मनुष्य को मुख्य रूप से वचनों से पूर्ण बनाता है
174परमेश्वर के वचनों से खुद को लैस करना तुम्हारी सर्वोच्च प्राथमिकता है
175देहधारी परमेश्वर की आज्ञा का पालन करो और पूर्ण हो जाओ
177तुम्हें अपने विश्वास में ईश्वर से प्रेम करने का प्रयास करना चाहिए
178लक्ष्य जिसका अनुसरण करना चाहिये विश्वासियों को
179परीक्षण माँग करते हैं आस्था की
181जब परीक्षण आ पड़ें तो तुम्हें परमेश्वर की ओर खड़े होना चाहिए
182परमेश्वर द्वारा मनुष्य के परीक्षणों और शुद्धिकरण का अर्थ
183आस्था केवल शोधन से ही आती है
184परमेश्वर के परीक्षण और शुद्धिकरण मानव की पूर्णता के लिए हैं
185इंसान को पूर्ण बनाने के लिए न्याय परमेश्वर का मुख्य तरीका है
187केवल पीड़ादायक परीक्षणों के माध्यम से तुम परमेश्वर की सुंदरता को जान सकते हो
188मुश्किलों और परीक्षणों के ज़रिए ही तुम ईश्वर को सचमुच प्रेम कर सकते हो
189ईश्वर सबकुछ इंसान को पूर्ण बनाने और प्रेम करने के लिए करता है
190परमेश्वर को उसके अनुग्रह का आनंद लेकर नहीं जाना सकता
191जितना अधिक तुम परमेश्वर को संतुष्ट करोगे, तुम उतने ही अधिक धन्य होगे
192तुम्हारी पीड़ा जितनी भी हो ज़्यादा, परमेश्वर को प्रेम करने का करो प्रयास
193असल कीमत चाहिये सत्य के अमल के लिये
194सत्य का अभ्यास करने वाले ही परीक्षणों में गवाही दे सकते हैं
195देह-सुख को त्यागना सत्य का अभ्यास करना है
197दैहिक इच्छाएँ त्यागने का अर्थ
198परमेश्वर की मनोरमता को देखने के लिए देहासक्ति को त्याग दो
199तुम्हें सभी चीज़ों में परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए
200ईश्वर की संतुष्टि के लिए हर चीज़ में ईश्वर की गवाही दो
201परमेश्वर में विश्वास करना लेकिन उसे प्रेम नहीं करना एक व्यर्थ जीवन है
202केवल कष्ट और शोधन के ज़रिये ही तुम ईश्वर द्वारा पूर्ण किए जा सकते हो
203परमेश्वर उनकी रक्षा करता है जो उससे प्रेम करते हैं
204परमेश्वर पूरी तरह महिमान्वित किया गया है
205परमेश्वर के गवाहों के लिए स्वभाव में बदलाव आवश्यक है
206इंसान से परमेश्वर की अंतिम अपेक्षा है कि इंसान उसे जाने
207केवल ईश्वर को जानकर ही इंसान ईश्वर से प्रेम कर सकता है
208परमेश्वर के प्रति निष्ठावान हृदय
209पतरस ने सच्चे विश्वास और प्रेम को बनाए रखा
210पतरस ने परमेश्वर को व्यवहारिक रूप से जानने पर ध्यान दिया
211अगर तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो तो अपना हृदय उसके सामने अर्पित करो
212इंसान का शोधन बेहद सार्थक है परमेश्वर के द्वारा
213शुद्धिकरण के दौरान परमेश्वर से प्रेम कैसे करें
214परमेश्वर द्वारा मनुष्य को पूर्ण बनाने का सर्वोत्तम साधन शोधन है
215शुद्धिकरण की पीड़ा के मध्य ही शुद्ध बनता है इंसान का प्रेम
216आशीषित हैं वो जो करते हैं परमेश्वर से प्रेम
217ईश्वर से प्रेम करने के लिए उसकी मनोहरता का अनुभव करो
218केवल वही लोग परमेश्वर की गवाही दे सकते हैं जो उसे जानते हैं
219सत्य पर और अमल करो, परमेश्वर का और आशीष पाओ
220सच्चाई से जी कर ही तू दे सकता है गवाही
221क्या परमेश्वर के वचन सचमुच तुम्हारा जीवन बन गए हैं?
222बहुत प्यारी है परमेश्वर की विनम्रता
223अंत के दिनों में परमेश्वर के देहधारण के पीछे का उद्देश्य
224पूर्ण किए जाने के लिए सत्य के अभ्यास पर ध्यान लगाओ
225जब पवित्र आत्मा मनुष्य पर कार्य करता है
226लोगों को परमेश्वर का भय मानने वाले हृदय के साथ उस पर विश्वास करना चाहिए
227जो भी सत्य का अभ्यास नहीं करता वो हटा दिया जाएगा
228जो सत्य पाने की कोशिश नहीं करते, वे अंत तक अनुसरण नहीं कर सकते
229परीक्षणों के दौरान मनुष्य को किसका पालन करना चाहिए
230इंसान को जो करना है उस पर उसे अटल रहना चाहिये
231विजेता हैं वे जो परमेश्वर की शानदार गवाही दें
232एक सही आध्यात्मिक जीवन हमेशा बनाये रखना चाहिए
233परमेश्वर का उद्धार पाने वाले ही जीवित हैं
235मनुष्य का स्वभाव अत्यंत दुष्ट हो गया है
236इतनी मलिन धरती पर रहते हैं लोग
238परमेश्वर उनका त्याग नहीं करेगा जो निष्ठापूर्वक उसके लिए लालसा रखते हैं
239केवल स्वभावगत बदलाव ही सच्चे बदलाव हैं
240परमेश्वर द्वारा लोगों की निंदा का आधार
241जो परमेश्वर को नहीं जानते, वे उसका विरोध करते हैं
242परमेश्वर के हृदय को कौन समझ सकता है?
243लोगों के इस समूह को पूरा करने का संकल्प लिया है परमेश्वर ने
245ईश्वर से प्रेम करने वालों का आदर्श-वाक्य
246परमेश्वर की एकमात्र ख़्वाहिश धरती पर
247अंधेरे में हैं जो उन्हें ऊपर उठना चाहिये
248परमेश्वर का कार्य कितना कठिन है
249अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य का उद्देश्य
250परमेश्वर मनुष्य के उद्धार के लिए भयंकर कष्ट सहता है
251परमेश्वर मानव जाति के लिए एक ज़्यादा सुंदर कल बनाता है
253किसने कभी परमेश्वर के दिल को समझा है?
254चीन में परमेश्वर के विजय-कार्य का अर्थ
255अंत के दिनों में परमेश्वर का धार्मिक न्याय मनुष्य का उनकी किस्म के अनुसार छँटाई करता है
256परमेश्वर का सार अपरिवर्तनीय है
257परमेश्वर भिन्न-भिन्न युगों का प्रतिनिधित्व करने के लिए अलग-अलग नाम धरता है
258क्या सर्जित प्राणी परमेश्वर के नाम का निर्धारण कर सकते हैं?
260परमेश्वर ने अंत के दिनों में अन्य राष्ट्रों में ज़्यादा बड़ा और ज़्यादा नया काम किया है
261क्या पूरी बाइबल ईश्वर की प्रेरणा से लिखी गयी है?
262ईश्वर के विश्वासियों को उसकी वर्तमान इच्छा खोजनी चाहिए
263इंसान जब शैतान के प्रभाव को त्याग देता है, तो उसे बचा लिया जाता है
264परमेश्वर 6000 वर्षीय प्रबंधन योजना का संप्रभु है
265परमेश्वर आरम्भ है और अंत भी
266परमेश्वर सभी को अपना धार्मिक स्वभाव दिखाता है
267अंत के दिनों में परमेश्वर इंसान का न्याय और शुद्धिकरण वचनों से करता है
268न्याय-कार्य इंसान की भ्रष्टता साफ करने के लिए है
269इंसान की पापी प्रकृति को बदलने के लिए क्या किया जा सकता है?
270न्याय और ताड़ना का कार्य छुटकारे के काम से गहरा है
271वचन द्वारा न्याय बेहतर दर्शाये परमेश्वर का अधिकार
272अंत के दिनों का कार्य ख़ासकर इंसान को जीवन देने के लिए है
273कार्य के तीनों चरणों को जानकर ही तुम परमेश्वर के पूरे स्वभाव को समझ सकते हो
274देहधारी परमेश्वर ही बचा सकता है इंसान को पूरी तरह
275परमेश्वर के देहधारण का अधिकार और मायने
276परमेश्वर के देहधारण का अधिकार
277परमेश्वर के दो देहधारणों के मायने
278परमेश्वर ने अंतिम दिनों में अपना पूरा स्वभाव प्रकट किया है
281क्या तुमने अपनी आस्था में सचमुच अपना जीवन समर्पित किया है?
282अंत के दिनों के देहधारण से देहधारण का अर्थ पूरा हुआ
283अंत के दिनों में विजय-कार्य का सत्य
284जीत का अंतिम चरण है इंसान को बचाने के लिए
285लोगों का वर्गीकरण विजय के कार्य से किया जाता है
287जिनके पास सच्चा विश्वास होता है उन्हीं को परमेश्वर की स्वीकृति मिलती है
288विश्वास की वजह से ही तुमने पाया इतना कुछ
289सत्य का अनुसरण न करने से रोना और दाँत पीसना पड़ता है
290यदि तुम परमेश्वर के न्याय से भाग निकलते हो, तो क्या होगा?
291परमेश्वर में विश्वास करना पर जीवन को हासिल न करना, दंड का कारण बनता है
292मैं हूँ बस एक अदना सृजित प्राणी
295परमेश्वर का न्याय उसकी धार्मिकता और पवित्रता को प्रकट करता है
296हम बचाए गए हैं क्योंकि हमें परमेश्वर ने चुना है
297तुम्हें अय्यूब और पतरस की गवाहियाँ हासिल करनी चाहिए
298विजय कार्य का अर्थ बहुत गहरा है
299परमेश्वर की ताड़ना और न्याय प्रेम हैं ये जान लो
300वे अभिव्यक्तियाँ जो पूर्ण बनाए जाने वाले लोगों के पास होती हैं
301सबसे असल है परमेश्वर का प्रेम
302ताड़ना मिलने और न्याय किए जाने के कारण तुम लोगों को सुरक्षा दी जाती है
303पश्चाताप-रहित लोग जो पाप में फँसे हैं उद्धार से परे हैं
304किस तरह का व्यक्ति बचाया नहीं जा सकता?
305तुमने ईश्वर को क्या समर्पित किया है?
306मोआब के वंशजों पर परमेश्वर के कार्य का अर्थ
307मानव के लिए परमेश्वर का प्रेम
308परमेश्वर बड़ा अपमान सहता है
309सत्य के लिए तुम्हें सब कुछ त्याग देना चाहिए
310जो सत्य की तलाश नहीं करते वो अफ़सोस करेंगे
311आज का सत्य उन्हें दिया जाता है जो उसके लिए लालसा और उसकी खोज करते हैं
312तुम्हारी बेरूख़ी तुम्हें नष्ट कर देगी
313ईमानदार लोग रोशनी में जीते हैं
314मैंने ताड़ना और न्याय में परमेश्वर का प्रेम देखा है
315परमेश्वर की ताड़ना और न्याय के बिना नहीं रह सकती मैं
316मैं अपना जीवन परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के साथ बिताने को तैयार हूँ
317परमेश्वर के लिए पतरस का प्रेम
318परमेश्वर का न्याय, मेरे परमेश्वर-प्रेमी हृदय को और भी शुद्ध बनाता है
319परमेश्वर की ताड़ना और न्याय है मनुष्य की मुक्ति का प्रकाश
320शैतान के प्रभाव को दूर करने के लिए परमेश्वर के न्याय का अनुभव करो
321क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जिसने ताड़ना और न्याय को हासिल किया है?
322मनुष्य को एक सार्थक जीवन जीने की कोशिश करनी चाहिए
323जो पूर्ण किए गए हैं उनके पास क्या है
324पूर्ण किए जाने के लिए तुम्हारे पास संकल्प और साहस होने चाहिए
325परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण न करने वाले दंडित किये जाएंगे
326पतरस के अनुभव का अनुकरण करो
327मार्ग के आखिरी दौर में अच्छी तरह अनुसरण कैसे करें?
328क्या तुम हो अपने लक्ष्य के प्रति आगाह?
329परमेश्वर के लोगों के प्रबंधन के कार्य के बारे में सच्चाई
331क्या वर्षों के विश्वास से तुमने कुछ भी हासिल किया है?
332क्या तुमने अभी तक परमेश्वर से कुछ ख़ास हासिल नहीं किया है?
334क्या ईश्वर का देहधारण कोई साधारण बात है?
335क्या परमेश्वर उतना ही सरल है जितना तुम कहते हो?
336क्या तुम सचमुच परमेश्वर की गवाही देने का आत्मविश्वास रखते हो?
337मूल इंसान आत्मा युक्त सजीव प्राणी थे
338इंसान वो नहीं रहा जैसा परमेश्वर चाहता है
339क्या ये दुनिया तुम्हारी आरामगाह है?
340परमेश्वर में विश्वास करने के पीछे मनुष्य के घृणित इरादे
341परमेश्वर के लिए गवाही देना मानव का कर्तव्य है
343क्या तुम परमेश्वर के कार्य के अर्थ और उद्देश्य को जानते हो?
344एक विश्वासी के रूप में तुम्हारा कर्तव्य परमेश्वर के लिए गवाही देना है
345सृजित प्राणियों को परमेश्वर के अधिकार के प्रति समर्पण करना चाहिए
346अंत के दिनों में न्याय का कार्य है युग को समाप्त करना
347जिनको परमेश्वर पा लेगा, वो अनंत आशीष का आनंद लेंगे
348परमेश्वर की नज़रों में तुम्हारी बातें और तुम्हारे कर्म मैले हैं
350इंसान "उद्धारकर्ता यीशु" को स्वर्ग से उतरते कैसे देख सकता है?
351परमेश्वर विजेताओं के एक समूह के बीच उतरा है
352परमेश्वर संपूर्ण सृष्टि का प्रभु है
353परमेश्वर का डेरा विश्व में प्रकट हुआ है
354अन्यजाति के देशों में परमेश्वर का नाम फैलेगा
355परमेश्वर चुपचाप मनुष्य के शब्दों और कर्मों को देखता है
356परमेश्वर के कार्य के लिए पूरी तरह समर्पित हो जाओ
357बदले में क्या दिया है तुमने परमेश्वर को
358कोई नहीं समझता परमेश्वर की इच्छा
361कहाँ है तुम्हारा सच्चा विश्वास?
362स्तुति करो परमेश्वर की वह विजेता बनकर लौटा है
363परमेश्वर का समस्त कार्य परम व्यावहारिक है
364परमेश्वर की बुद्धि, शैतान की साज़िशों का सामना करने में प्रकट होती है
366शुद्ध होने के लिए अंत के दिनों के मसीह के न्याय को स्वीकार करो
367परमेश्वर के न्याय-कार्य का उद्देश्य
368न्याय और ताड़ना परमेश्वर का उद्धार प्रकट करते हैं
369परमेश्वर का न्याय और ताड़ना इंसान को बचाने के लिये है
370परमेश्वर के वचन का न्याय इंसान को बचाने के लिये है
371परमेश्वर इंसान को अधिकतम सीमा तक बचाना चाहता है
372काम परमेश्वर का, आगे बढ़ता रहता है
373क्या तुम लोगों ने पवित्र आत्मा को बोलते सुना है?
374मनुष्य की सोच बहुत रूढ़िवादी है
375सच्चे मार्ग की तलाश के सिद्धांत
376सत्य जीवन का सबसे ऊंचा सूत्र है
378इंसान का फ़र्ज़ सृजित प्राणी का उद्यम है
379अपने कर्तव्य में सत्य का अभ्यास करना ही कुंजी है
380बड़े लाल अजगर के देश में परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य का अर्थ
381लोग अपने विश्वास में विफल क्यों हो जाते हैं?
382सफलता या विफलता मनुष्य की कोशिश पर निर्भर है
383मनुष्य जिस मार्ग पर चलता है, उस पर उसकी सफलता या असफलता निर्भर करती है
384परमेश्वर के विश्वासी को किस चीज़ की खोज करनी चाहिए
385परमेश्वर द्वारा प्राप्त किया जाना तुम्हारी अपनी कोशिश पर निर्भर है
386परमेश्वर के लिए पतरस के प्रेम की अभिव्यक्ति
387सारी सृष्टि परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन होनी चाहिए
390मसीह जिस चीज को व्यक्त करता है वह है आत्मा का अंतर्निहित अस्तित्व
391अंतिम परिणाम जिसे हासिल करना परमेश्वर के कार्य का लक्ष्य है
392परमेश्वर को जानना सृजित प्राणियों के लिए सबसे बड़े सम्मान की बात है
393सभी चीज़ें परमेश्वर के अधिकार-क्षेत्र के अधीन होंगी
395भ्रष्ट मानवता को आवश्यकता है देहधारी परमेश्वर के उद्धार की
396उद्धार-कार्य के अधिक उपयुक्त है देहधारी परमेश्वर
397अपना काम करने के लिए परमेश्वर को देहधारण करना होगा
398देहधारी परमेश्वर के कार्य की सबसे अच्छी बात
399केवल देहधारी परमेश्वर ही मानवजाति को बचा सकता है
400परमेश्वर इंसान की जरूरत के कारण काम करने के लिए देह बना
402देहधारी परमेश्वर के माध्यम से मनुष्य परमेश्वर को बेहतर समझ सकता है
403मानवता के लिये बहुत महत्वपूर्ण देहधारी परमेश्वर
406देहधारी परमेश्वर के पास मानवता है और उससे भी अधिक दिव्यता है
407विश्वासियों को ध्यान से ईश्वर के पदचिह्नों का अनुसरण करना ही चाहिए
408क्या पवित्रात्मा के नए कार्य को स्वीकार न करने वाले परमेश्वर के प्रकटन को देख सकते हैं?
409परमेश्वर के सच्चे विश्वासी परीक्षाओं में मजबूती से खड़े रह सकते हैं
411देह और आत्मा का कार्य एक ही सार का है
412सार में मसीह स्वर्गिक पिता की इच्छा का पालन करता है
413मसीह के प्रति मनुष्य के विरोध और अवज्ञा का मूल
414विजय के कार्य का आतंरिक अर्थ
415परमेश्वर के तीन चरणों के कार्य ने इंसान को पूरी तरह से बचा लिया है
416इंसान को संभालने का काम है शैतान को हराने का काम
417इंसान के उद्धार के लिये हैं परमेश्वर के दो देहधारण
418हर किसी के पास पूर्ण किये जाने का अवसर है
419परमेश्वर चाहता है कि हर कोई पूर्ण हो सके
420इंसान से परमेश्वर का आखिरी वादा
421अंत के दिनों में मनुष्य से परमेश्वर का वादा
422जब मनुष्य अनंत मंजिल में प्रवेश करेगा
425विश्राम में प्रवेश करने की मानवता के लिए एकमात्र राह
426परमेश्वर मानव के सृजन के अर्थ को पुनर्स्थापित करेगा
428स्वभाव में बदलाव पवित्र आत्मा के काम से अलग नहीं हो सकता
429जो सत्य का अभ्यास नहीं करते वे नष्ट किए जाएंगे
430इंसान के अंत के लिए परमेश्वर की व्यवस्था
431इंसान का अंत तय करता है परमेश्वर, उनके सार के अनुसार
432विश्वासी और अविश्वासी तो संगत हो ही नहीं सकते
434परमेश्वर और इंसान के लिये अलग-अलग आरामगाह
435शुद्ध हो चुके हैं जो वही विश्राम में प्रवेश करेंगे
436जब मानवजाति विश्राम में प्रवेश कर लेती है
439तुम लोगों को सत्य स्वीकार करने वाला बनना चाहिए
440सत्य के प्रति तुम्हारा रवैया अति महत्वपूर्ण है
441यीशु के प्रति फ़रीसियों के विरोध का मूल कारण
442अंत के दिनों के मसीह को त्यागने वाले सदा के लिए सज़ा पाएँगे
443अंत के दिनों के मसीह को स्वीकार न करने वाले पवित्र आत्मा का तिरस्कार करने वाले लोग हैं
444मनुष्य के पुत्र का आना सभी लोगों को उजागर करता है
445ऐसी तर्कशीलता के साथ तुम परमेश्वर से संपर्क करने में अयोग्य हो
446भ्रष्ट मानवजाति मसीह को देखने के अयोग्य है
447असल में कैसी है तुम्हारी आस्था?
449तुम सच में ईश्वर से प्रेम नहीं करते
451वे सभी जो बाइबल का उपयोग परमेश्वर की निंदा के लिए करते हैं, फरीसी हैं
452तुम्हें मसीह के साथ संगत होने का मार्ग खोजना चाहिए
454कहाँ है ईश्वर से तुम्हारी अनुकूलता का प्रमाण?
457क्या यही है आस्था तुम सबकी?
458इंसान की मसीह में कोई सच्ची आस्था नहीं है
459परमेश्वर इंसान के सच्चे विश्वास की आशा करता है
460परमेश्वर में विश्वास करके भी सत्य को स्वीकार न करना अविश्वासी होना है
461सभी लोगों के परिणाम के लिये परमेश्वर की व्यवस्था
463अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य के मायने
464परमेश्वर उन सभी का न्याय करेगा, उन्हें शुद्ध करेगा जो उसके सिंहासन के सामने आएँगे
465न्याय का कार्य स्वयं परमेश्वर द्वारा ही किया जाना चाहिए
466अंत के दिनों का मसीह लाया है राज्य का युग
467अंत के दिनों के मसीह के प्रकटन और कार्य को कैसे जानें
468ईश्वर ईश्वर है, इंसान इंसान है
469परमेश्वर के कार्य की थाह कोई नहीं पा सकता
470मसीह की वापसी का स्वागत तुम कैसे करोगे?
471परमेश्वर पर भरोसे का सच्चा अर्थ
472अंत के दिनों का मसीह राज्य का प्रवेश द्वार है
473तुम लोगों के लिए देहधारी परमेश्वर की महत्ता सबसे अधिक है
474हर राष्ट्र सर्वशक्तिमान परमेश्वर की आराधना करता है
475मसीह का सारतत्व है परमेश्वर
476परमेश्वर स्वयं ही सत्य और जीवन है
477केवल परमेश्वर के पास है जीवन का मार्ग
478क्या तुम्हें पता है स्रोत अंनत जीवन का?
479अंत के दिनों का मसीह अनंत जीवन का मार्ग लाता है
480अंत के दिनों के मसीह को त्यागना पवित्र आत्मा की ईश-निंदा है
481अंत के दिनों के मसीह को स्वीकार न करने के परिणाम
482दुनिया में इंसान का अंत लाता ईश्वर
483मानव का अस्तित्व परमेश्वर पर निर्भर है
485परमेश्वर मनुष्य के कर्मों के बारे में क्या सोचता है
486परमेश्वर मनुष्य का परिणाम इस आधार पर तय करता है कि क्या उसके पास सत्य है
487तुम किसके प्रति वफ़ादार हो?
488हर दिन जो तुम अभी जीते हो, निर्णायक है
489उम्मीद करता है परमेश्वर कि इंसान उसके वचनों के प्रति निष्ठावान बन सके
490ऐसा व्यक्ति बनो जो परमेश्वर को संतुष्ट करे और उसके मन को चैन दे
491परमेश्वर उन्हें आशीष देता है जो ईमानदार हैं
492अंत में किसी का भाग्य कैसे संपन्न होगा?
494तुम्हें परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करनी चाहिए
497परमेश्वर की इंसान को चेतावनी
498परमेश्वर उम्मीद करता है कि लोग प्रकाश का मार्ग प्राप्त करेंगे
499परमेश्वर के स्वभाव को समझने का प्रभाव
500परमेश्वर के स्वभाव को न जानने के नतीजे
501परमेश्वर का स्वभाव है उत्कृष्ट और भव्य
502परमेश्वर के स्वभाव का प्रतीक
503कैसे परमेश्वर के स्वभाव का अपमान न करें
504क्या तुम्हें मसीह के प्रति सच्चा विश्वास और प्रेम है?
505परमेश्वर उन्हीं की प्रशंसा करता है जो ईमानदारी से मसीह की सेवा करते हैं
506तुम्हारे दिलों में केवल नाइंसाफ़ी है
507तुम्हारा विश्वास अभी भी भ्रमित है
508परमेश्वर के बारे में संदेह करने वाले सबसे अधिक कपटी होते हैं
510परमेश्वर के वचनों को अपने आचरण का आधार बनाओ
511परमेश्वर की इंसान से अंतिम अपेक्षा
512परमेश्वर का देह और आत्मा सार में एक-समान हैं
513परमेश्वर से विश्वासघात करने के खतरनाक परिणाम
514परमेश्वर के वचनों का एक भजन परमेश्वर के वचन हैं, कभी न बदलने वाले सत्य
515परमेश्वर को सबसे अधिक क्या दुखी करता है
516कैसे शासन करता है हर चीज़ पर परमेश्वर
517सभी प्राणियों का जीवन आता है परमेश्वर से
518ईश्वर की जीवन-शक्ति का मूर्त रूप
519मनुष्य को बचाने के परमेश्वर के श्रमसाध्य इरादे कोई नहीं समझता
520इंसान के जीवन के लिए, परमेश्वर सारे कष्ट झेलता है
521मानव के भविष्य पर परमेश्वर विलाप करता है
524परमेश्वर तुम्हारे हृदय और रूह को खोज रहा
525परमेश्वर के प्रकटन की महत्ता
526कैसे खोजें परमेश्वर के पदचिह्न
527सत्य को स्वीकारने वाले ही परमेश्वर की वाणी सुन सकते हैं
528ईश्वर के प्रकटन को परिसीमित करने के लिए कल्पना पर भरोसा न करो
529परमेश्वर के प्रकटन की खोज के लिए तुम्हें राष्ट्रीयता और जातीयता की धारणाओं को तोड़ना होगा
530मानवजाति द्वारा परमेश्वर के मार्गदर्शन को खो देने के परिणाम
531इंसान को ज़रूरत है परमेश्वर द्वारा जीवन के पोषण की
532परमेश्वर उनकी तलाश कर रहा है जो उसके प्रकटन के प्यासे हैं
533इंसान को सौभाग्य के लिये करनी चाहिये परमेश्वर की आराधना
534परमेश्वर सभी राष्ट्रों और लोगों का भाग्यविधाता है
535मानव जाति के भाग्य की ओर ध्यान दो
536जो परमेश्वर के स्वभाव को भड़काता है उसे अवश्य दंडित किया जाना चाहिए
537कोई ताकत आड़े आ नहीं सकती उस लक्ष्य के जो हासिल करना चाहता है परमेश्वर
538परमेश्वर में मनुष्य का विश्वास असहनीय रूप से बुरा है
539परमेश्वर में मनुष्य के विश्वास की सबसे दुखद बात
540परमेश्वर को अर्पित करना सबसे मूल्यवान बलिदान
541जब तक तुम परमेश्वर को नहीं छोड़ते
542इंसान के लिए परमेश्वर के प्रबंध के मायने
543वह सत्ता जो हर चीज़ पर अपनी संप्रभुता रखती है
544व्यवहारिक परमेश्वर में आस्था से बहुत लाभ हैं
545जीवन प्राप्त करने के लिए न्याय स्वीकारो
546इंसान को बचाने के लिये ख़ामोशी से कार्य करता है देहधारी परमेश्वर
547ख़ामोशी से आता है हमारे मध्य परमेश्वर
548कोई भी परमेश्वर के आगमन से अवगत नहीं है
549मसीह व्यावहारिक परमेश्वर है
550परमेश्वर इंसान से क्या पाता है?
551इंसान को परमेश्वर के वचनों के अनुसार चलना चाहिये
552चाहे बड़ा हो या छोटा, सबकुछ मायने रखता है जब परमेश्वर की राह का पालन कर रहे हो
554इम्तहान में परमेश्वर को इंसान का सच्चा दिल चाहिए
555परमेश्वर का भय मानने से ही बुराई दूर रह सकती है
556मनुष्य के पास परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय होना चाहिए
559परमेश्वर धर्मी है सभी के लिये
567परमेश्वर सदा से काम करता रहा है इंसान को राह दिखाने के लिए
568परमेश्वर चाहता है इंसानियत जीती रहे
569किसी को भी सक्रिय रूप से परमेश्वर को समझने की परवाह नहीं
570परमेश्वर स्वयं के लिए इंसान की सच्ची आस्था और प्रेम पाने की करता है आशा
571परमेश्वर मूल्यवान मानता है उनको जो उसकी सुनते और उसका आदेश मानते हैं
572परमेश्वर का ध्यान मनुष्य के हृदय पर है
573तुम्हें जानना चाहिए परमेश्वर को उसके कार्य द्वारा
574परमेश्वर की वास्तविकता और सुंदरता
575मनुष्य के लिए परमेश्वर का प्रेम कितना महत्वपूर्ण है
576परमेश्वर मानता है इंसान को अपना सबसे प्रिय
577परमेश्वर का सार सचमुच अस्तित्व में है
578परमेश्वर का प्रेम और सार है निस्वार्थ
579परमेश्वर सभी का चुपचाप साथ देता और प्रदान करता है
583लोग परमेश्वर से परमेश्वर जैसा बर्ताव नहीं करते
584इंसान ने ईश्वर को अपना दिल नहीं दिया है
585परमेश्वर अपनी उम्मीद रखता है पूरी तरह इंसान पर
586परमेश्वर उत्सुकतापूर्वक उन्हें चाहता है जो उसकी इच्छा पूरी कर सकें
587बदली नहीं हैं परमेश्वर की उम्मीदें इंसान के लिये
588मनुष्य परमेश्वर के नेक इरादों को न समझ पाए
589परमेश्वर के प्रति श्रद्धा रखने वाले लोग सभी चीज़ों में उसका गुणगान करते हैं
590जो परमेश्वर का सम्मान करते हैं केवल वही परीक्षाओं में गवाह बन सकते हैं
591शैतान पर अय्यूब की जीत का प्रमाण
592अय्यूब के धार्मिक कार्यों ने शैतान को हरा दिया
593अय्यूब ईश्वर का आदर कैसे कर पाया?
594परमेश्वर के आशीषों के प्रति अय्यूब का मनोभाव
595जो शैतान को बुरी तरह हराते हैं, केवल उन्हीं को प्राप्त करेगा परमेश्वर
596केवल उन लोगों को बचाया जाता है जो शैतान को हरा देते हैं
597आने वाली पीढ़ियों के लिए अय्यूब की गवाही की चेतावनी
598परमेश्वर शैतान को उन्हें नुकसान पहुंचाने नहीं देता जिन्हें वो बचाना चाहता है
599बेहद दयालु और अत्यंत क्रोधी है परमेश्वर
600अंत के दिनों के लोगों ने परमेश्वर के क्रोध को कभी नहीं देखा
608परमेश्वर का कार्य और वचन इंसान को जीवन देते हैं
609देहधारी मानव पुत्र स्वयं परमेश्वर है
610मानवता में परमेश्वर के कार्य का तरीक़ा और सिद्धांत
611परमेश्वर मनुष्य को किस तरह देखता है
612जब तुम खोलते हो अपना हृदय परमेश्वर के लिए
613परमेश्वर को अपने हृदय में आने दो
614केवल सत्य ही इंसान के दिल को सुकून दे सकता है
615परमेश्वर के कार्य का अनुभव उसके वचनों से अविभाज्य है
616देहधारी परमेश्वर काफ़ी समय तक मनुष्यों के बीच रहा है
617पुनरुत्थान के बाद यीशु के प्रकट होने का अर्थ
618परमेश्वर बचाना चाहता है जिस मानवजाति को, सर्वोपरि है वह उसके हृदय में
619मरे हुए को जीवित करने का परमेश्वर का अधिकार
620परमेश्वर के स्वभाव को भड़काने के परिणाम
621परमेश्वर द्वारा मनुष्य की दी गयी तीन चेतावनियाँ
624परमेश्वर का अधिकार प्रतीक है उसकी पहचान का
625परमेश्वर के अधिकार को जानने का मार्ग
626परमेश्वर का अधिकार असली और सच्चा है
627सृष्टिकर्ता का अधिकार अपरिवर्तनीय है
628कोई भी ईश-अधिकार का स्थान नहीं ले सकता
629कोई थाह लगा नहीं सकता परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्य
630परमेश्वर के अधिकार से हर चीज़ जीवित रहती और नष्ट होती है
631कोई भी मनुष्य या वस्तु परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्य से बढ़कर नहीं हो सकता
632शैतान कभी भी परमेश्वर के अधिकार से आगे नहीं निकल सकता
633परमेश्वर के अधिकार के तहत शैतान कुछ नहीं बदल सकता
634परमेश्वर का अधिकार स्वर्गिक आदेश है जिसे शैतान कभी नहीं लांघ सकता
635ये वही इंसान है बनाया था परमेश्वर ने जिसे
639परमेश्वर ने नीनवे के राजा के पश्चाताप की प्रशंसा की
640ख़्यालों से और कल्पनाओं से परमेश्वर को कभी न जान पाओगे
641केवल सृष्टिकर्ता मानवता पर दया करता है
642मानवजाति पर परमेश्वर की दया
643मानवजाति के प्रति परमेश्वर की करुणा निरंतर बहती है
644सृष्टिकर्त्ता की सच्ची भावनाएँ मानवता के लिये
645शैतान का सार क्रूरता और दुष्टता वाला है
646परमेश्वर का धर्मी स्वभाव सच्चा और सुस्पष्ट है
647परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव है अनूठा
648परमेश्वर का स्वभाव दयालु, प्रेमपूर्ण, धार्मिक और प्रतापी है
649परमेश्वर अपने धार्मिक स्वभाव से इंसान का अस्तित्व बनाए रखता है
651परमेश्वर द्वारा सदोम के विनाश में मनुष्यों के लिए चेतावनी
652परमेश्वर के क्रोध का प्रतीकात्मक अर्थ
653परमेश्वर का स्वभाव अपमान सहता नहीं
654इंसान के प्रति परमेश्वर का रवैया
655परमेश्वर मनुष्य से सच्चे पश्चात्ताप की आशा करता है
659एकमात्र परमेश्वर का प्रभुत्व है इंसान की नियति पर
660इंसान अपनी किस्मत पर काबू नहीं कर सकता
661बहुत पहले ही तय कर दिया इंसान की नियति को परमेश्वर ने
662इंसान का जीवन पूरी तरह है परमेश्वर की संप्रभुता में
663मनुष्य की पीड़ा कैसे उत्पन्न होती है?
664दुख से भर जाते हैं दिन परमेश्वर के बिन
665सत्य से प्रेम करने वाले ही परमेश्वर की संप्रभुता को समर्पित हो सकते हैं
667सृष्टिकर्ता के अधिकार का सच्चा मूर्तरूप
668सब ओर है परमेश्वर का अधिकार
681परमेश्वर निरंतर मनुष्य के जीवन का मार्गदर्शन करता है
683दौलत-शोहरत से शैतान लोगों के विचारों पर नियंत्रण करता है
684शैतान मनुष्य को भ्रष्ट करने के लिए कैसे सामाजिक प्रवृत्तियों का उपयोग करता है
685इंसान को बचाने के कार्य के पीछे परमेश्वर के सच्चे इरादे
686मनुष्य को बचाने का परमेश्वर का इरादा बदलेगा नहीं
688परमेश्वर के पवित्र सार को समझना बहुत ही महत्वपूर्ण है
689मनुष्य परमेश्वर के संरक्षण में विकसित होता है
692हर चीज़ के प्रबंधन में परमेश्वर के अद्भुत कर्म
693परमेश्वर ने स्वर्ग, धरती और सभी चीज़ें इंसान के लिये बनाई हैं
694परमेश्वर कोई अपमान बर्दाश्त नहीं करता है
695परमेश्वर है सभी चीज़ों का शासक
697सभी चीज़ों पर परमेश्वर की संप्रभुता द्वारा उसे जानो
698परमेश्वर के कर्मों को जानकर ही उसकी सच्ची गवाही दी जा सकती है
699परमेश्वर के लिए तुम्हारा विश्वास हो सबसे ऊँचा
700स्वयं परमेश्वर की पहचान और पदवी
701अपने अनुयायियों से परमेश्वर की अपेक्षाएँ
702ईश-वचन इंसान के जीवन की सभी जरूरतों के लिए आपूर्ति करते हैं
703परमेश्वर में सच्चा विश्वास उसके वचनों का अभ्यास और अनुभव है
704परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने का ज़रूरी रास्ता
705इंसान परमेश्वर को उसके वचनों के अनुभव से जानता है
706परमेश्वर को जानकर ही कोई उसका भय मान सकता है और बुराई से दूर रह सकता है
707परमेश्वर को जान लेने का परिणाम
710अपनी कठिनाइयों को हल करने के लिए सत्य की तलाश करो
713एक ईमानदार व्यक्ति बनने का अभ्यास कैसे करें
719परमेश्वर की सच्ची आराधना करने वाला बनने का प्रयास करो
720परमेश्वर को पसंद हैं लोग जिनमें संकल्प है
721स्वभावगत बदलाव पर भरोसा रखो
733सृजित प्राणियों को सर्जक की आज्ञा माननी चाहिए
736असफलतायें और मुश्किलें परमेश्वर के आशीष हैं
741जब परमेश्वर देहधारण करता है तभी मनुष्य को उद्धार का अवसर मिलता है
766मनुष्य के लिए परमेश्वर जो करता वो हर काम नेकनीयत है
768मनुष्य के स्थान पर कष्ट झेलने के लिए परमेश्वर के देहधारण का महत्व
770बीमारी का प्रहार होने पर परमेश्वर की इच्छा की खोज करनी चाहिए
775जब तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते तो तुम पौलुस के रास्ते पर चलते हो
777पतरस का अनुसरण परमेश्वर की इच्छा के सर्वाधिक अनुरूप था
778परमेश्वर क वचनों द्वारा पूर्ण बनाए गए लोग
779स्वभाव में बदलाव है मुख्यत: प्रकृति में बदलाव
780तुम्हारे स्वभाव में बदलाव की शुरुआत तुम्हारी प्रकृति को समझने से होती है
781स्वभाव में परिवर्तन की प्रक्रिया
783परमेश्वर के आदेश को किस ढंग से लें
784तुम्हें अपनी वर्तमान पीड़ा का अर्थ समझना होगा
786जिनके पास सत्य है सिर्फ़ वही एक वास्तविक जीवन जी सकते हैं
789परमेश्वर के वचनों का आधार ही अभ्यास का मार्ग प्रदान करता है
792व्यवहारिक परिणाम हासिल करने के लिए परमेश्वर की गवाही कैसे दें
793परमेश्वर द्वारा जीते जाने के बाद मनुष्य में क्या समझ होनी चाहिए
794इंसान के लिए परमेश्वर का प्रेम सच्चा और असली है
795मनुष्य को बचाने के लिए परमेश्वरघोर अपमान सहता है
796परमेश्वर ही सबसे ज़्यादा प्यार करता है इंसान को
798परमेश्वर के प्रति मनुष्य की आज्ञाकारिता का मानदंड
802परमेश्वर ने अपना सारा प्रेम दिया है मानवता को
807पवित्र आत्मा के कार्य के अपने सिद्धांत हैं
810परमेश्वर की जाँच को तुझे हर चीज़ में स्वीकर करना चाहिए
813परमेश्वर द्वारा इंसान के आसपास लोगों, घटनाओं और चीजों को व्यवस्थित करने का उद्देश्य
814असफलता, खुद को जानने का सबसे अच्छा अवसर है
815परमेश्वर जो भी करता है, वह सब इंसान को बचाने के लिए होता है
818केवल ईमानदार लोग अपना कर्तव्य ठीक से कर सकते हैं
819लापरवाही से काम करना कर्तव्यपालन नहीं है
831सबसे महत्वपूर्ण चीज़ जो परमेश्वर के विश्वासियों को हासिल करना चाहिये
849अपना कर्तव्य पूरा करोगे तो गवाही दे पाओगे
854सच का अनुसरण करने के लिए ज़रूरी संकल्प
881सिद्धांत के अनुसार काम करने से ही लोग अपना कर्तव्य ठीक से कर सकते हैं
896हर चीज़ में सत्य की खोज करें
901व्यक्ति की प्रकृति सुधारने के मूलभूत सिद्धांत
902परमेश्वर अंततः उसी को स्वीकार करते हैं, जिसके पास सत्य होता है
903परमेश्वर का सार सर्वशक्तिमत्ता भी है और व्यवहारिकता भी
904परमेश्वर के प्रति उचित दृष्टिकोण
905परमेश्वर जो भी करता है वह धार्मिक होता है
907क्या तुम सचमुच परमेश्वर को समझते हो?
913अपनी प्रकृति को जानना स्वभाव में परिवर्तन की कुंजी है
916यही एक वास्तविक इंसान के समान होना है
925परमेश्वर के वचनों के अनुसार स्वयं को समझो
926अच्छा व्यवहार स्वभाव-संबंधी बदलाव के समान नहीं होता
928जिन लोगों का स्वभाव बदल गया है उनकी अभिव्यक्तियाँ
929स्वभाव-संबंधी बदलाव हासिल कर चुके लोग इंसान के समान जी सकते हैं
930परमेश्वर के परीक्षण इंसान को शुद्ध करने के लिए होते हैं
932जो सत्य से प्रेम करते हैं उन्हें ही सत्य प्राप्त होगा
936समस्त मानवजाति को परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए
942क्या तुम सचमुच परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को जानते हो?
943परमेश्वर लोगों को अंतिम सीमा तक बचाता है
1051परमेश्वर मनुष्य की सच्ची आज्ञाकारिता चाहता है
1073परमेश्वर की इच्छा है कि मानवजाति सत्य का अनुसरण करे और जीवित रहे
1107परमेश्वर के वचनों का पालन करो तो तुम कभी राह से नहीं भटकोगे